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मंगलवार, 3 दिसंबर 2024

मुरादाबाद की संस्था कला भारती की ओर से 30 नवंबर 2024 को आयोजित कार्यक्रम में साहित्यकार डॉ. अजय 'अनुपम' को कलाश्री सम्मान प्रदान किया गया

मुरादाबाद की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था कला भारती की ओर से शनिवार 30 नवंबर 2024 को वरिष्ठ साहित्यकार एवं इतिहासकार डॉ. अजय 'अनुपम' को कलाश्री सम्मान से अलंकृत किया गया। सम्मान-समारोह का आयोजन मिलन विहार स्थित आकांक्षा इंटर कॉलेज में हुआ। मयंक शर्मा द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता बाबा संजीव आकांक्षी  ने की। मुख्य अतिथि ओंकार सिंह ओंकार  एवं विशिष्ट  अतिथियों के रूप में रामदत्त द्विवेदी तथा हरि प्रकाश शर्मा उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन राजीव प्रखर ने किया। 

 अलंकरण स्वरूप श्री अनुपम को अंग वस्त्र, मान-पत्र एवं प्रतीक चिह्न भेंट किए गये। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मनोज रस्तोगी ने डॉ. अजय अनुपम के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा वह न केवल एक संवेदनशील, सुहदय कवि हैं बल्कि  संस्कृत भाषा में रचे वैदिक ग्रंथों के एक समर्थ, सुयोग्य व कुशल काव्यानुवादक भी हैं। यही नहीं वह मुरादाबाद की विरासत को समृद्ध करने वाले इतिहासकार भी हैं। आमुक्ति, आभास, अग्नि साक्षी है, धूप धरती पे जब उतरती है, दर्द अभी सोए हैं, अविराम , सामवेद और अथर्ववेद का संपूर्ण काव्यानुवाद उल्लेखनीय कृतियां हैं। मान-पत्र का वाचन योगेन्द्र वर्मा व्योम द्वारा किया गया। 

 कार्यक्रम के अगले चरण में एक काव्य-संध्या का भी आयोजन किया गया जिसमें रचना पाठ करते हुए डॉ. अजय अनुपम ने कहा - 

जैसी जिसकी बिसात देता है। 

ग़म को हॅंस-हॅंस के मात देता है। 

साफ़ दिल से मदद करे कोई, 

तो यूं समझो ज़कात देता है।

 इसके अतिरिक्त महानगर के रचनाकारों कमल शर्मा, राजीव प्रखर, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, पल्लवी भारद्वाज, ज़िया ज़मीर, राजीव सक्सेना, नकुल त्यागी, रामसिंह निशंक, ओंकार सिंह ओंकार, वीरेन्द्र ब्रजवासी, रामदत्त द्विवेदी, बाबा संजीव आकांक्षी आदि ने काव्य-पाठ किया। 

कार्यक्रम के अंत में नजीबाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार श्री महेन्द्र अश्क के निधन पर उपस्थित साहित्यकारों द्वारा दो मिनट का मौन रखते हुए उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गयी। आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ ने आभार-अभिव्यक्त किया।





























शुक्रवार, 3 मई 2024

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष माहेश्वर तिवारी को श्रद्धा सुमन अर्पित करता डॉ अजय अनुपम का गीत ......



...खुशबुओं के बीच माहेश्वर


बन उतरती धूप 

जिसके गीत में अक्षर

बो गये हैं खुशबुओं के बीज

माहेश्वर


चेतना में चांदनी की

दमकती काया

भाव से जिसने सहज ही

नेह बरसाया

खोल मन की बात

मिलना नेह में भरकर


आंँसुओं को गीत के कपड़े

पिन्हाते थे

गुनगुना कर चांँद-तारों को

बुलाते थे

अब बनाया चांँद-तारों में

उन्होंने घर


वह कनेरों के बगीचे के

दुलारे थे

फूल खुशबू या कि चमकीले

सितारे थे

बन गये नवगीत का पर्याय

शाश्वत-स्वर

खो गये हैं खुशबुओं के बीच

माहेश्वर


✍️डॉ. अजय अनुपम

मुरादाबाद


रविवार, 12 मार्च 2023

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य सदन के तत्वावधान में 11 मार्च 2023 को डॉ अजय अनुपम मुक्तक-कृति 'अविराम' का लोकार्पण

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ. अजय अनुपम के मुक्तक-संग्रह ‘अविराम' का लोकार्पण साहित्यिक संस्था - हिंदी साहित्य सदन के तत्वावधान में श्रीराम विहार कालोनी मुरादाबाद स्थित विश्रांति भवन में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने की, मुख्य अतिथि के रूप में व्यंग्य कवि डा मक्खन मुरादाबादी तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में पर्यावरण मित्र समिति के संयोजक के. के. गुप्ता उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन योगेंद्र वर्मा व्योम द्वारा किया गया। 

       कवयित्री डा. पूनम बंसल द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से आरम्भ हुए कार्यक्रम में लोकार्पित कृति- ‘अविराम' से रचनापाठ करते हुए डॉ अजय अनुपम ने मुक्तक सुनाये- 

"ड्योढ़ी पर सांकल की आहट नहीं रही

घूंघट उतर गया, शरमाहट नहीं रही/

हाय-हलो पर सिमट गई दुनियादारी/

रिश्तों के भीतर गर्माहट नहीं रही।" 

उन्होंने एक और मुक्तक सुनाया -

 "पीड़ा या भार नहीं होती/

वह जय या हार नहीं होती/

दुनिया में सब कुछ होती है/

मांँ रिश्तेदार नहीं होती।"  

"दर्द दूर करना चाहो तो, सच कहना होगा

गति पाने के लिये, धार के संग बहना होगा

इतिहासों में शब्द बदलकर घटित नहीं मिटता

सुख को परिभाषित करने में, दुख सहना होगा।"

    कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध नवगीतकार यश भारती माहेश्वर तिवारी ने कहा- "डा. अनुपम के मुक्तक संभावना से सार्थकता तक की यात्रा के साक्षी हैं, उनकी रचनाधर्मिता लोक मंगल के लिए समर्पित है। संग्रह के मुक्तक कविता की व्याख्या से परे की अभिव्यक्ति है। निश्चित रूप से वह मुक्तकों के रूप में साहित्य की भावी पीढ़ी को एक रास्ता दिखा रहे हैं।" 

          मुख्य अतिथि के रूप में विख्यात व्यंग्य कवि डा मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि "अनुपम जी के मुक्तक जीवन की धुकर-पुकर के मुक्तक हैं,जिन्हें उन्होंने पिया भी है और जिया भी है। इनमें उनका वह मन भी खुलकर खुला है जो अन्यत्र कहीं नहीं खुला। इनमें अनुपम जी की वह मुस्कानें भी हैं जो शायद और कहीं नहीं मुस्काईं। इनमें संस्कारों भरी वह शरारतें भी मौजूद हैं जिनका फलक बहुत बड़ा है।" 

   योगेंद्र वर्मा व्योम ने अपने आलेख का वाचन करते हुए कहा कि ‘'अविराम' पुस्तक के सभी मुक्तक पृथक-पृथक विस्तृत व्याख्या की अपेक्षा रखते हैं। यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि इक्कीसवीं सदी के वर्तमान कालखंड का यह सौभाग्य है कि उसके पास एक सशक्त, समृद्ध और विलक्षण मुक्तककार के रूप में डॉ. अजय अनुपम हैं जिनकी लेखनी से सृजित मुक्तक भावी पीढ़ी के लिए प्रकाशपुंज के रूप में पर्याप्त मार्गदर्शन करेंगे।" 

      शायर ज़िया जमीर ने कहा-"डॉ अजय अनुपम जी का यह दूसरा मुक्तक संकलन देर तक याद रखा जाएगा क्योंकि इसमें मौजूद जज़्बात और एहसासात सिर्फ़ काग़ज़ रंगने  या काव्य कौशल की संतुष्टि भर नहीं हैं, बल्कि भोगे हुए हैं। तभी शब्दों के पुल से होते हुए मन के भीतर उतरने और ठहरे रहने की ताक़त रखते हैं।"  

        लोकार्पित मुक्तक-संग्रह पर आयोजित चर्चा में कवि राजीव प्रखर ने पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा- ‘जीवन के विभिन्न रंगों को सुंदरता से समेटे डॉ अजय अनुपम के इस मुक्तक-संग्रह के विषय में यह नि:संकोच कहा जा सकता है कि यह मात्र एक उत्कृष्ट मुक्तक-संग्रह ही नहीं अपितु, रचनाकार की लेखनी से होकर पाठकों व श्रोताओं के सम्मुख साकार हुआ जीवन का सार एवं उसकी मनोहारी काव्यात्मक अभिव्यक्ति भी है।’ 

       शायर डॉ आसिफ हुसैन ने कहा कि "अनुपम जी ने अपने मुक्तक संग्रह अविराम में अपने रचना कौशल से साधारण शब्दों को असाधारण रूप देकर समाज को दर्पण दिखाने की जो कामयाब कोशिश की है, उसके लिए वह बधाई के पात्र हैं" 

     कवयित्री डॉ पूनम बंसल, डॉ अंजना दास, राजन राज, ज्योतिर्विद विजय दिव्य, सुशील शर्मा आदि ने भी डॉ अजय अनुपम को बधाई दी। आभार अभिव्यक्ति डॉ कौशल कुमारी ने प्रस्तुत की।













::::प्रस्तुति::::::::

योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल- 9412805981

बुधवार, 21 सितंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ अजय अनुपम के सात गीत । ये गीत हमने लिए हैं उनके वर्ष 2022 में प्रकाशित गीत संग्रह "दर्द अभी सोए हैं" से.....


1 ....अब हम ख़ुद बाबा-दादी हैं

अब हम खुद बाबा-दादी हैं 

कल आदेश दिया करते थे, आज हो गए फ़रियादी हैं


माँ से जन्म, पिता से पालन, नई फसल को व्यर्थ हो गया 

संयम को बंधन कहते हैं, भोग प्यार का अर्थ हो गया

 दो पल के आकर्षण को ही जन्म-जन्म की प्रीति समझते 

जाने किसने ऐसी बातें इन बच्चों को समझा दी हैं


भीषण कोलाहल के भीतर असमय सोना, असमय खाना 

मोबाइल से कान लगाए यहाँ खड़े हों वहाँ बताना 

अपने को ही भ्रम में रखना, सच को हौले से धकियाना 

छोटे-बड़े सभी की इसमें देख रहे हम बरबादी हैं।


आना-जाना, सैर-सपाटा, गाड़ी से भरना फ़र्राटा

 अपने लिये न सीमा व्यय की, घर माँगे तो कहना घाटा , 

सब कुछ जिन्हें दे दिया, उनको पलभर का भी समय नहीं है 

हमने ही उलझनें हमारी, खुद अपने सर पर लादी हैं


2.....परिवर्तन तो परिवर्तन है


आएगा ही परिवर्तन तो परिवर्तन है


अब कुत्ते- बंदर आपस में मित्र हो गए 

भाषा में गाली के शब्द पवित्र हो गए 

चाहो या मत चाहो सुनना है मजबूरी 

बोल सिनेमा रहा, लोक- प्रत्यावर्तन है


जैसा देख रहे पर्दे पर, वही करेंगे 

कोमल मन में जब अनियंत्रित भाव भरेंगे 

देह मात्र उपभोग्य रहेगी, कहना क्या है , 

जो जैसा है वही दिखा देता दरपन है


अंतरिक्ष में खोज रहे हैं नए धरातल 

गढ़ता है विज्ञान सोच में नित्य हलाहल 

ईश्वर दृश्य-अदृश्य कर्मफल ही अवश्य है 

जीवन नश्य, यही कहता भारत दर्शन है


3......दुनिया सोने की


मिट्टी से भी कमतर है दुनिया सोने की


संबंधों का अर्थ किसी को क्या समझाना

 बिखरा-बिखरा है सामाजिक ताना-बाना 

घर जिससे घर है, उसका अनमना हुआ मन

 पति-पत्नी के बीच विवशता है ढोने की


कल की आशा में संसार जुटा है सारा

घर आकर सब सुख पाते, बाबू, बंजारा 

पिता देख बच्चों की हरकत को घुटता है

माँ को आशंका रहती बेटा खोने की


शिक्षा, नैतिकता सब कुछ व्यापार हो गया 

अस्थिर हुए चरित्र, निभाना भार हो गया 

रहे मनीषी खोज कि हम सुधरें, जग सुधरे 

क्या संभव है, संभावना कहाँ होने की


4.......सबमें ऐसी डील हुई


नेता- पुलिस-प्रशासन, सबमें ऐसी डील हुई 

कर्फ्यू में बारह से दो तक की ही ढील हुई


गेंद और पाली के पीछे दो लड़के झगड़े 

उलझ गए छुटभैये, टोपी वाले ग्रुप तगड़े 

रोज़गार रुक गया, आ लगी नौबत फ़ाक़ों की

 जिसमें बच्चे पढ़ते थे, वह बैठक सील हुई


बदचलनी में धरे गए हैं दर्जी- पनवाड़ी 

ब्राउन शुगर बेधड़क बेचे अंधा गुनताड़ी 

पुलिस माँगती हफ्ता, नेता लगा उगाही में 

शांति न होगी भंग, किसी पर कहाँ दलील हुई


बड़े दिनों में हत्या के नोटिस तामील हुए 

बच्चे-बूढ़े, मर्द-औरतें, सभी ज़लील हुए 

बरसों चली जाँच को जाने किसने लीक किया 

बीती आधी सदी, कोर्ट में पुनः अपील हुई


5......हाथों से निकली जाती बाज़ी है


जागो रे ! हाथों से निकली जाती बाज़ी है

हर बेटे को अपने पापा से नाराज़ी है


जिसको देखो रोना रोता है महँगाई का 

पर सबका खर्चा सुन्दरता पर चौथाई का 

सबकी चिंता बना प्रदूषण है लेकिन फिर भी 

त्योहारों पर खूब फूटती अतिशबाज़ी है


महानगर में चौबीसों घंटे चलते होटल 

आमदनी से ज़्यादा घर के खर्चे का टोटल 

कपड़ों या चरित्र दोनों की रही न गारंटी 

दो दिन पहले कटी हुई सब्जी भी ताज़ी है


हुआ कमाई का धंधा है अब बीमारी भी 

कुर्सी जैसी अब बिकती है रिश्तेदारी भी

 राजनीति की तरह सभी के पास मुखौटे हैं 

 हँसकर ‘हाय-हलो' करना भी अब अल्फ़ाज़ी है


6.......बिना तेल के कब चलती है


बिना तेल के कब चलती है गाड़ी भी सरकार


दो थानों की सीमाओं में फूल रही है लाश 

जब तक हुई काम्बिंग तब तक दूर गए बदमाश

 रपट लिखाने से डरता है अब तो चौकीदार


जब तक ढूँढे जाते अफ़सर, दफ्तर और वकील

 दीवारों पर कोर्ट कराता नोटिस की तामील 

जब मिलती तारीख़, दरोगा हो जाता बीमार


बिकता मंगलसूत्र, कलाई के कंगन, पाज़ेब

हर दिन भरती ही जाती है मुंशी जी की जेब 

सीट मलाई वाली पाते मंत्री जी हर बार


7.......किसे पता है


किसे पता है क्यों, कब देगा कंधा कौन किसे


बदल रहे हैं नई सदी में सब रिश्ते-नाते 

राम-राम बंदगी न होती अब आते-जाते 

अर्थ-स्वार्थ की चक्की में सारे संबंध पिसे


कहने-सुनने की बातें आपस में बंद हुईं 

स्वर बहके, मर्यादा की कंदीलें मंद हुईं 

सहमे कौतूहल लज्जा के जर्जर वस्त्र चिसे


अपनेपन का पानी आँखों से भी उतर गया 

अहंकार का चूहा मुस्कानें तक कुतर गया 

कतरन से घर भरे, ढूँढती ममता उसे-इसे


✍️ डॉ अजय अनुपम

विश्रान्ति 47, श्रीराम विहार, कचहरी मुरादाबाद-244001 

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन : 9761302577

:::::::::प्रस्तुति::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत 

मोबाइल फोन 9456687822



मंगलवार, 13 सितंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ अजय अनुपम के गीत संग्रह --- 'दर्द अभी सोये हैं' की राजीव प्रखर द्वारा की गई समीक्षा ..... भंवर से किनारे की ओर लाता गीत-संग्रह

 एक रचनाकार अपने मनोभावों को पाठकों/श्रोताओं के समक्ष प्रकट करता ही है परन्तु, जब पाठक/श्रोता उसकी अभिव्यक्ति में स्वयं का सुख-दु:ख देखते हुए ऐसा अनुभव करें कि रचनाकार का कहा हुआ उनके ही साथ घट रहा है, तो उस रचनाकार की साधना सार्थक मानी जाती है। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय 'अनुपम' की प्रवाहमयी लेखनी से होकर साहित्य-जगत् के सम्मुख आया गीत-संग्रह - 'दर्द अभी सोये हैं' इसी तथ्य को प्रमाणित करता है।

      एक आम व्यक्ति के हृदय में पसरे इसी दर्द पर केन्द्रित एवं उसके आस-पास विचरण करतीं इन 109 अनुभूतियों ने यह दर्शाया है कि रचनाकार का हृदय भले ही व्यथित हो परन्तु, उसने आशा एवं सकारात्मकता का दामन भी बराबर थामे रखा है। यही कारण है कि ये 109 अनुभूतियाॅं वेदना की इस चुनौती का सफलतापूर्वक सामना करते हुए, उजली आशा का मार्ग तलाश लेती हैं। 

     पृष्ठ 17 पर उपलब्ध गीत - 'दर्द अभी सोये हैं' से आरम्भ होकर वेदना के अनेक सोपानों से मिलती, एवं उनमें प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से विद्यमान आशा की किरणों में नहाती हुई यह पावन गीत-माला, जब पृष्ठ 126 की रचना - 'मैं तो सहज प्रतीक्षारत हूॅं' पर विश्राम लेती है, तो एक संदेश दे देती है कि अगर एक और ॲंधेरे ने अपनी बिसात बिछा रखी है तो उसे परास्त करने में उजली आस भी पीछे नहीं रहेगी। साथ ही दैनिक जीवन की मूलभूत समस्याओं तथा पारिवारिक व अन्य सामाजिक संबंधों पर दृष्टि डालते हुए, उनके यथासंभव हल तलाशने के प्रयास भी संग्रह को एक अलग ऊॅंचाई प्रदान कर रहे हैं। अतएव,  औपचारिकता वश ही कुछ पंक्तियों अथवा रचनाओं का  यहाॅं उल्लेख मात्र कर देना, इस उत्कृष्ट गीत-संग्रह के साथ अन्याय ही होगा। वास्तविकता तो यह है कि ये सभी 109 गीत पाठकों के अन्तस को गहनता से स्पर्श कर लेने की अद्भुत क्षमता से ओत-प्रोत हैं, ऐसा मैं मानता हूॅं। निष्कर्षत: यह गीत-संग्रह मुखरित होकर यह उद्घोषणा कर रहा है कि दर्द भले ही अभी सोये हैं परन्तु, जब जागेंगे तो आशा के झिलमिलाते दीपों की ओर भी उनकी दृष्टि अवश्य जायेगी।

मुझे आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है कि सरल व सहज भाषा-शैली में पिरोया गया एवं आकर्षक साज-सज्जा व छपाई के साथ, सजिल्द स्वरूप में तैयार यह गीत-संग्रह गीत-काव्य की अनमोल धरोहर तो बनेगा ही, साथ ही वेदना व निराशा का सीना चीरकर, उजली आशा की धारा भी निकाल पाने में सफल सिद्ध होगा। 



कृति : दर्द अभी सोये हैं (गीतसंग्रह)

संपादक : डा. कृष्णकुमार 'नाज़'

कवि : डा. अजय 'अनुपम'

प्रथम संस्करण : 2022

मूल्य : 200 ₹

प्रकाशक : गुंजन प्रकाशन

सी-130, हिमगिरि कालोनी, काँठ रोड, मुरादाबाद (उ.प्र., भारत) - 244001 

समीक्षक : राजीव 'प्रखर' 

डिप्टी गंज,

मुरादाबाद

8941912642, 9368011960


रविवार, 11 सितंबर 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य सदन की ओर से शनिवार 10 सितंबर 2022 को आयोजित कार्यक्रम में मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ अजय अनुपम के गीत-संग्रह ‘दर्द अभी सोये हैं’ का लोकार्पण

      मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ अजय अनुपम के  गीत-संग्रह ‘दर्द अभी सोये हैं’ का लोकार्पण शनिवार 10 सितंबर 2022 को साहित्यिक संस्था  हिंदी साहित्य सदन के तत्वावधान में श्रीराम विहार कालोनी मुरादाबाद स्थित विश्रांति भवन में आयोजित कार्यक्रम में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने की, मुख्य अतिथि के रूप में दिव्य सरस्वती इंटर कालेज के प्रधानाचार्य अनिल शर्मा तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में पर्यावरण मित्र समिति के संयोजक के. के. गुप्ता उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम द्वारा किया गया।

      इस अवसर पर लोकार्पित कृति- ‘दर्द अभी सोये हैं’ से रचनापाठ करते हुए डॉ अजय अनुपम ने गीत सुनाये-

 "दर्द क्या है दंश का

यह बोलती हैं चुप्पियाँ

कौन इस चेतन घृणा के

पाप का दोषी कहो

ज़ख़्म, सिसकी, मौत या फिर

एक खामोशी कहो

नर्म कलियाँ खोजती हैं

तेल वाली कुप्पियाँ"

 उन्होंने एक और गीत सुनाया -

 "अब हम खुद बाबा दादी हैं

कल आदेश दिया करते थे

आज हो गए फरियादी हैं

भीषण कोलाहल के भीतर

असमय सोना असमय खाना

मोबाइल से कान लगाए

यहाँ खड़े हो वहाँ बताना

अपने को ही भ्रम में रखना

सच को हौले से धकियाना

छोटे बड़े सभी की इसमें

देख रहे हम बर्बादी हैं।"

 कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध नवगीतकार यश भारती माहेश्वर तिवारी ने कहा- "अजय अनुपम ने अपने गीतों में जहाँ एक ओर सामाजिक विसंगतियों पर अपनी टिप्पणी की है और आज के समय के सच को बयान किया है वहीं दूसरी ओर समाज के अलिखित संदर्भों पर अपनी तीखी अभिव्यक्ति भी दी है। कवि ने अपने गीत संग्रह के माध्यम से अपने समय की पड़ताल भी की है।"

      वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. मनोज रस्तोगी ने इस अवसर पर अपने आलेख का वाचन किया- ‘इस संग्रह के अधिकांश गीतों में जहां समाज की पीड़ा का स्वर मुखरित हुआ है वहीं राजनीतिक विद्रूपताओं को भी उजागर किया गया है। जिंदगी की भाग दौड़ में व्यस्तता के बीच रिश्तों में आ रही टूटन, बिखराव, स्वार्थ लोलुपता  और भूमंडलीकरण के मकड़जाल में उलझती जा रही नई पीढ़ी की मानसिकता को भी उन्होंने अपने गीतों में बखूबी व्यक्त किया है।"

  कवि राजीव प्रखर ने पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा- ‘डॉ अजय अनुपम के 109 गीतों को संजोए हुए यह गीत संग्रह यह दर्शाता है कि रचनाकार विद्रूपताओं एवं विसंगतियों से भले ही व्यथित हो किंतु उसने सकारात्मकता एवं आशा का दामन नहीं छोड़ा है। यह सभी गीत पाठक के अंतस को गहरे स्पर्श करने की अद्भुत क्षमता लिए हुए हैं।’ 

    कवयित्री डॉ पूनम बंसल, के पी सरल, ज्योतिर्विद विजय दिव्य, सुशील कुमार शर्मा आदि ने भी डॉ अजय अनुपम को बधाई दी। आभार-अभिव्यक्ति डॉ कौशल कुमारी ने प्रस्तुत की।