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बुधवार, 26 अप्रैल 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कहानी.....'तिरस्कार' ​


नेहा सजी सँवरी अपनी भाभी के कमरे में बैठी हुई थी आज पापाजी ने सख्ती से कह दिया था कि नेहा आज ऐसे रंग की साड़ी पहने जिसमें उसका रंग निखरा सा लगे क्योंकि पिछली बार जब लड़के वाले आए थे तब उसको सलवार सूट में ही दिखा दिया था जिसमें लड़के ने साफ मना कर दिया कि नेहा मोटी लग रही है .

"​नेहा ...आ गए ?"भाभी चहकते हुए कमरे में आईं .सुनकर नेहा के दिल की धड़कन और चेहरे की उदासी बढ़ गई , क्योंकि यह तीसरी दफा है उसको इस तरह से सजाकर लड़के वालों के सामने ले जाने की .

​सबका हाल बुरा था दादी ने तो गणेश जी से मन्नत मांगी थी कि आज अगर उनकी पोती पास हो गई तो सवा कुन्तल लड्डुओं का प्रसाद बांटेंगी ...और माँ ने तो साईं बाबा का उपवास भी रखना प्रारम्भ कर दिया साथ ही पिछले सोमवार से नेहा से भी सोलह सोमवार का व्रत रखवाना शुरू कर दिया था दादी ने तो .

​लड़का भी देखने आया अच्छा मोटा काला सा था लेकिन अच्छा कमा रहा था .जब फोटो देखकर माँ और नेहा की छोटी बहन ने मूँह बिगाड़ा तो दादी ने फटकार लगाई कि लड़के तो जैसे भी हों काले गोरे मोटे पतले कोई फर्क नहीं पड़ता बस संस्कारी और कमाऊ हों .

​सुनकर नेहा के मन में सवाल आया कि वह भी तो पढ़ी लिखी संस्कारी लड़की है क्या वह अच्छी नहीं है क्यों समाज द्वारा दोहरे मापदंड बनाए गए है लड़कियों और लड़कों के लिए ?

​लड़के की माँ और बहन भी आईं थीं जो बातचीत से होशियार मगर देखने में तो ठीकठाक ही थीं ,उनको देखकर पूरे घर की जान में जान आ गई कि चलो ये ज्यादा खूबसूरत नहीं तो नेहा को भी पास कर ही देंगी . पानी पीने के बाद सभी ने भर पेट नाश्ता किया मिठाई शहर के नामी हलवाई के यहां से मंगाई .

​नेहा को भीतर ही भीतर बहुत बुरा लग रहा था .दादी पापा से कह रहीं थीं कि" जैसे भी हो वैसे रिश्ता कर ही देना अपने सिक्के में ही दोष है तो भला परखने वाले का क्या दोष ?"

​खुद को खोटा सिक्का  सुनना नेहा को भीतर तक उसके अस्तित्व को झकझोर गया .

​"दादी ऐसे क्यों बोल रही हो ...दीदी में क्या कमी है ..हर काम में तो परफेक्ट हैं फिर भी ?"छोटे भाई रजत ने गुस्सा करते हुए कहा .

​"अरे चुप हो जा तू क्या किसी मोटी काली लड़की से विवाह कर लेगा ?"

​"अगर दीदी जैसी हुई तो ज़रूर l"रजत ने गुस्से से कहा l

​'"अरे जा यहां से ....l"दादी ने रजत को फटकार दिया वह बुदबुदाता चला गया गया दादी ने अपनी छड़ी दीवार से टेक दी और पापा से कहा कि यह रिश्ता होना जरूरी है बड़ी मुश्किल से उनकी भतीजी जोकि लड़के वालों के शहर में ही रहतीं हैं और लड़के की दूर की मामी हैं उन्होने कराया है l

​"हाँ अम्मा ...मगर किसी से जबरदस्ती तो नहीं कर सकते ...लड़के वालों के पता नहीं कितने भाव बड़े हुए हुए हैं ...सबके रेट फिक्स हैं पता नहीं ...पता नहीं क्या होगा इस दुनियाँ का ?"पापा ने परेशान होते हुए कहा .

​"आज कर रहा है तू बड़ी बड़ी बातें मगर योगेश की शादी के वक्त तो तूने भी खूब नखरे दिखाए थे बहु के मायके वालों को ...भूल गया क्या ..वह तो खूबसूरत भी थी ...l"

​"अरे माँ आप भी गडे  मुर्दे उखेडने बैठ गई ....l"

​"गड़े  मुर्दों से डर लगता है तो ऐसे काम ही क्यों करते हो ?"गायत्री देवी ने गुस्से से कहा l

​"गायत्री यार तुम भी ....मैं तो बड़ा परेशान हूँ l"

​"हाँ हाँ सबको अपनी परेशानी ही बड़ी लगती है .....लड़की का बाप बनते ही लाचारी और लड़के का नंबरदारी ...वाह रे वाह समाज l"

​दादी अब ज्यादा आक्रमक हो चलीं थीं .

​फिर गायत्री देवी ने दोनों को चुप कराया .

​"देख ...लड़के वालों को लालच दे दे ...एक दो लाख रुपए उनकी हैसियत से ज्यादा का तभी बात बनेगी ...l"दादी ने फुसफुसाते हुए कहा .

​"हाँ , रजत की शादी में वसूल कर लेना l"गायत्री देवी ने पति पर व्यंग तीर छोड़ा .सुनकर उनकी त्यौरियां चढ़ गयीं l

​"पापा वो लोग नेहा को बुला रहे हैं  l"योगेश ने भीतर आकर कहा l

​"अगर इस बार नेहा को फेल कर गए तो बड़ी जग हँसाई होगी l"दादी ने चिंता जाहिर की l

​नेहा की धुकधुकी दोगुनी हो गई थी .वह बहुत ही घबरा रही थी .भाभी ने उसके सिर पर हाथ फेरा और कहा ..."दीदी आप घबरा रही हो ...मुझे भी बहुत डर लगा था जब आप सब लोग ....l"

​"हाँ हाँ अब आप बीती मत सुनाओ जाओ भी इसको लेकर l"दादी ने भाभी की बात को बीच में ही काट दिया l

​नेहा सिर झुकाकर चुपचाप जाकर बैठ गई थी सर्दी के मौसम में भी उसके माथे पर पसीना आ गया था , सभी उसकी ओर घूर रहे थे और आपस में

​ इशारेबाजी भी .

​देखने आई तमाम महिलाएं अध्यापक या यूँ कही हस्ताक्षर कर्ता  बन चुकीं थी उन्होने सबसे पहले चूल्हे चौके के बारे में बात की ....कौन सी डिश बना लेती है ....सिलाई कढ़ाई बुनाई से लेकर कम्पूटर तक ...ढोलक से लेकर डांस हारमोनियम और तबला तक सबके बारे में पूँछ लिया कि आता है या नहीं .

​लग रहा था मानो उनको बहु नहीं चलता फिरता रोबोट या कामवाली चाहिए थी .

​लड़के का मूँह थोड़ा सिकुड़ा हुआ था , पहले से ही भालू जैसा था अब तो लंगूर को और लपेट लिया .अरे भई मिठाई खिलाइए आनंद जी नेहा पसंद है दादी की भतीजी ने हंसकर सबकी ओर देखते हुए कहा l

​"देखिए इन्हौने कहा था कि आप बहुत अच्छे इंसान हैं इसलिए रिश्ता तो कर रहे हैं हम मगर जो तय हुआ है उसमें थोड़ी बढ़ोत्तरी कर दीजिएगा ...वो क्या है न हमारे बेटे के बहुत अच्छे अच्छे रिश्ते आ रहे हैं ...अरे भई बैंक में बाबू है बाबू l"लड़के के पिता ने बेशर्मी से कहा l

​"हाँ हाँ ....आपको शिकायत का मौका नहीं मिलेगा l"पापा ने खुश होते हुए कहा l आखिरकार नेहा की शादी हो ही गई . पापा ने पानी की तरह पैसा बहाया .कुछ लोग कह रहे थे कि लड़की ज्यादा खूबसूरत नहीं है इसलिए इतना दिखावा किया जा रहा है .

"​भाभी बाहर आ जाइए ....आपको कोई देखने आया है ...भैया के दोस्त विमल और उनकी पत्नी रंजना l"छोटी ननद पाखी ने भीतर आकर कहा तो नेहा की तंद्रा भंग हुई वह एकदम उठी और उठकर साड़ी ठीक करने लगी .

​"भाभी जी जरा अच्छे से मेकअप कर लेना रंजना भाभी बहुत खूबसूरत हैं l"पाखी ने थोड़ा नाक सिकोड़ते हुए कहा .सुनकर नेहा को अजीब सा लगा .पूरा घर दहेज के सामान से भरा हुआ था देखकर नेहा को बुरा भी लगा कि उसके पापा ने अपनी मेहनत से कमाई जमा पूंजी से इन लोगों का घर भर दिया और और यहां का माहौल बहुत ही भारी है ...ऐसा लग रहा था कि कोई खुश नहीं है ...अभी पिछले महीने ही तो बैंक का एग्जाम दिया है उसने अभी रिजल्ट आना बाकी है .सोच रही थी कि पता नहीं आगे क्या होगा ?खैर वह तैयार होकर ड्राइंग रूम में आ गई .उसकी सास ने पहले से ही सफाई देना शुरू कर दिया .

​"भई हमारी बहु तो सांवली है ....पाखी तो कहती थी कि रंजना भाभी जैसी भाभी लाना मगर कहीं बात जमी ही नहीं, इन्ही को आना था यहां ?"सास ने नेहा कि तरफ इशारा करते हुए कहा .

​"अरे सुचित्रा तू ....?"रंजना ने आश्चर्य से नेहा का हाथ पकड़ते हुए कहा .नेहा भी खुश होकर उससे लिपट गई , सभी आश्चर्य में पड़ गए .

​"तुम जानती हो इनको ?"विमल ने पत्नी से आश्चर्य से पूँछा  .

​"हाँ भई ....एमकॉम मैने और सुचित्रा ने एक ही कॉलेज से तो किया है ...मगर ...l"

​"मगर क्या ?"सब एक साथ बोले 

​"यह टॉपर और मैं ....पासिंग मार्क्स लाने वाली ही रही ....और देखो इतना अच्छा नाम बदलकर सुचित्रा क्यों रख लिया ?"रंजना ने ठहाका लगाते हुए कहा .नेहा मुस्करा भर दी .यह ससुराल वालों की मर्जी थी कि सुचित्रा ओल्ड फैशन्ड नेम है इसलिए .कई बार तो नेहा को जब कोई आवाज देता है तो वह भूल जाती है जवाब देना .

​तभी घर पर लगा लैंड लाइन फोन घनघना उठा l

​"हाँ ...भाभी आपका फोन है l"पाखी ने नेहा को बुलाया .

​"हाँ भैया नमस्ते .....क्या ...सच ....मैं बहुत खुश हूँ भैया l"नेहा चिल्ला पड़ी वह भूल गई कि वह ससुराल में आई है .सब चौंक गए .

​"क्या हुआ ...कोई सलीका नहीं है क्या ससुराल में रहने का l"उनकी बात सुनकर रंजना भी सकपका गई .

​"वो ....मम्मी जी मेरा बैंक में नंबर आ गया है ....भैया कह रहे थे l"

​"अच्छी बात है ....इसमें इतना कूदने की क्या आवश्यकता है ....यहीं ज्वाइनिंग करवा लेना ...सुबह को काम निपटाकर चली जाया करना ."सास ने फिर मूँह बिगाड़ा .

​"जी ...जी l"

​"मुबारक हो नेहा ही ही ही सुचित्रा  ....आखिर तुमको तुम्हारी मंजिल मिल ही गई l"रंजना ने नेहा को गले से लगाते हुए कहा .

​सुबह से कमरे में न झांकने वाला सुलभ यानि उसका पति भी पास आकर बैठ गया ...दोनों हाथों में लड्डू जो थे इतना सारा दहेज और ऊपर से कमाऊ घर के कामों में दक्ष बीवी .ताना मारने को उसकी साँवली सूरत .

​लेकिन नेहा अब मन में निश्चय कर चुकी थी ईंट का जवाब पत्थर से देने के लिए कि इतनी ही बुरी थी तो लालचियो शादी ही क्यों की ?उसके चेहरे की चमक बढ़ चुकी थी अब वह आत्मविश्वास के साथ सबके सवालों का जवाब दे रही थी मगर उसका दिल अब तक लोगों द्वारा किए तिरस्कार से भर उठा था .

​✍️ राशि सिंह 

​मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत 


बुधवार, 19 अप्रैल 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा....'संस्कारी बेटा '


"ट्रीन ...ट्रीन ...ट्रीन ...!"

"अरे जगत फोन उठा बेटा ...।"माँ रसोई में से बोलीं 

"हां ...हेल्लो ...अच्छा शुभि ..हाँ लायब्रेरी से ले लेना ...ठीक है ...ठीक है ।"

"किसका फोन है बेटा ?"

"माँ वो शुभि का था ...पूँछ रही थी कौन कौन सी बुक्स ले लूँ ?"जगत ने मोबाइल टेबल पर रखते हुए कहा ।

"भैया कह रही होगी !"निकिता जगत की बहिन ने व्यंगात्मक लहजे में कहा ।

"हाँ तो क्या हुआ ?"जगत ने उसके पास बैठते हुए कहा ।

"जगत अगर तुम यूँ ही हर लड़की के भाई बनते गए न तो देख लेना तुम्हारी तो शादी होने से रही ।

"चुप कर निकिता क्या बोलती रहती है ?"माँ ने निकिता को डाँटा ।

"बोलने दो माँ इसको ।"जगत ने हँसकर कहा ।

"तुमको बुरा नहीं लगता ...कॉलेज में 'अड़ोस पड़ोस में रिश्तेदारी में सब लड़कियाँ तुमको भैया भैया कहकर पुकारती हैं ।"निकिता ने फिर मुँह बनाया ।

"मैं उनकी हेल्प करता हूँ कह देती हैं मुझे अच्छा लगता है ।"जगत ने चाय का घूँट भरते हुए कहा ।

माँ रसोई में खड़ी मुस्करा रहीं थीं ।

"तो तुमतो क्वारे ही रहोगे ।"निकिता ने जगत को फिर चिढ़ाया ।

"ठीक है ।"जगत ने मुस्कराते हुए कहा ।

"क्या ठीक है ...अरे डाँट दिया करो लड़कियों को जब तुमसे भैया कहें ।"

"तुझे डांटता हूँ क्या बता ?सब में मुझे तू ही दिखती है । रही शादी की बात तो शादी तो एक लड़की से होगी और प्यार भी एक से ही फिर सब पर ट्राई मारकर खुद की आत्मा को मैला क्यों करूं ?"जगत ने निकिता से कहा तो निकिता को अपने भाई और माँ को अपने बेटे को दिए संस्कारों पर गर्व हो उठा ।

✍️ राशि सिंह 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश , भारत


गुरुवार, 6 अप्रैल 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघु कथा ... 'सच्चा सुकून '



पूरा स्कूल का हॉल विद्यार्थियों और पैरेंट्स से भरा हुआ था । बच्चे चहक रहे थे । जब रिजल्ट की घोषणा हुई तो सिया आश्चर्यचकित रह गयी अपनी बेटी दिव्या की प्रथम श्रेणी देखकर एल के जी में देखकर ।

जब सिया रिजल्ट लेने गयी तो प्रधानाचार्य ने एक माँ के रूप में उसकी बहुत प्रशंसा की । सुनकर भाव विभोर हो गयी और अतीत में खो गयी ।

"मम्मी ...मम्मी |"छोटी सी दिव्या ने तोतली जुबान से सिया की साड़ी का पल्ला पकड़कर कहा ।

"हाँ ..क्या चाहिए मेरी विटटो को ?"सिया ने दिव्या को प्रेम से गोदी में उठाकर सीने से लगाते हुए कहा ।

"जब आप ऑफिस जाती हो न ..!"

"हाँ ..हाँ बोलो क्या हुआ ?"

"तब मुझे न ....मुझे न ...आपकी बहुत याद आती है ।"नन्ही सी दिव्या ने आँखों में आँसू भरते हुए कहा ।

"बेटा आप भी तो स्कूल जाते हो न ...फिर दादी कितना प्यार करती हैं ?"सिया ने दिव्या का गाल पर ममत्व से हाथ फेरते हुए कहा ।

"पर मैं तो जल्दी आ जाती हूँ न ...फिर मैं आपका इंतजार करती रहती हूँ ।"

"दादी तो कह रहीं थीं कि आप बहुत खेलती हो मेरे जाने के बाद ।"

"खेलती तो हूँ ,मगर आपकी याद आती है । आप ऑफिस मत जाया करो प्लीज ।"नन्ही दिव्या ने मम्मी के दोनो गालों को अपनी छोटी -छोटी हथेलिओं से पकड़ते हुए कहा ।

सिया ने दिव्या को सीने से चिपका लिया और प्रण किया कि जब तक दिव्या थोड़ी बड़ी नहीं हो जाती वह ऑफिस नहीं जायेगी । सारा वक्त बेटी के साथ बिताएगी अपनी आत्मिक संतुष्टि और बेटी के विकास के लिए ।

"मम्मी घर चलो न ।"दिव्या ने माँ का हाथ हिलाया 

सिया बेटी की  ट्रॉफी  पाकर आज बहुत ही अच्छा महसूस कर रही थी । ऐसी खुशी उसको कभी महसूस नहीं हुई ।

✍️राशि सिंह 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


बुधवार, 1 मार्च 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ..'इतना आसान कहाँ ' ​


शुभि ने जल्दी जल्दी सारा घर का काम निपटाया और तैयार होकर सोफे पर बैठकर छोटे बेटे कुणाल की स्कूल शर्ट का बटन टाँकने लगी, साथ ही मन में कल की घटना भी उसको रह रह कर याद आ रही थी ।

​सोचने लगी "आजकल के बच्चे भी न ....पता नहीं क्या होता जा रहा है ?"

​कल उसकी बेटी सान्या का बर्थडे था , बस बच्चों को तो मौका मिल जाए गिफ्ट का , फिर भले ही उसकी जरूरत हो या न हो ।

​"मॉम मुझे इस बार कुछ नया गिफ्ट  चाहिए ....जो मेरी किसी फिरेण्ड के पास नहीं हो । "बेटी ने ठुनकते हुए कहा ।

​"मगर बेटा ...किसी की होड़ थोड़े ही करते हैं ...जिसकी जरूरत हो ....l"

​"मॉम प्लीज यह जरूरत वाली बात मुझे अच्छी नहीं लगती ....डैड देखो न मम्मा ...l"

​"ठीक तो कह रही है तुम्हारी मम्मी l"सूरज ने भी डरती हुई आवाज में कहा l

​"बस रहने ही दो मुझे नहीं जाना आपके साथ मार्केट ...l"चिढ़ते हुए सान्या ने कहा और पैर पटकते हुए अपने कमरे में भाग गई l

"​सान्या.........l"दोनों आवाज देते रह गए l

​"क्या जरूरत थी उसको ज्ञान देने की ?"सूरज का भी मूड खराब हो गया l

​"आप भी न ....चढ़ा लो इस लड़की को सिर पर ...क्या समझाना बुरी बात है ?"शुभि ने चिढ़कर कहा l

​"नहीं ...मगर अब कुछ माँग रही है तो देना ही होगा l"

​"और क्या देना ही होगा ...डिमांड तो रोज बढ़ती ही जा रहीं हैं दोनों की ...सुर भी तो कुछ कम नहीं l"

​"अभी तो दोनों आठवीं और दसवीं कक्षा में हैं ...पता नहीं आगे क्या होगा ?"शुभि ने संदेह व्यक्त करते हुए कहा l

​"शुभि तुम क्यों परेशान हो ....आजकल पेरेंट्स होना कोई इतना आसान नहीं ...हमारे तुम्हारे जैसा जिनके लिए माँ बाप की बात मानना भगवान की बात से भी ज्यादा आवश्य था l"

​तभी दरवाजे की घंटी बजती है वह उठकर दरवाजा खोलती है l

​"अरे आप तो तैयार हैं ....मैँ अभी रेडी होकर आती हूँ l"

​सान्या ने बैग सोफे पर पटकते हुए कहा l

​अपनी जीत पर सान्या बहुत खुश जो थी आखिर पेरेंट्स को हरा जो दिया था l

​रात खाना इसने तभी खाया  था जब यह तय कर लिया कि जो मांगेगी  वही  दिलाना पड़ेगा l

​✍️ राशि सिंह 

​मुरादाबाद 244001 

उत्तर प्रदेश , भारत


गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा.....'सराय'


"बहु आज पिताजी आ रहे हैं मेरे । दो-चार दिन ठहरेंगे यहाँ । सुबह को जरा जल्दी उठ जाया करना। उनको पसंद नहीं बहु बेटियों का देर तक सोना । "सास लक्ष्मी देवी ने पूजा के लोटे में जल भरते हुए कहा ।

"जी, माँ जी जल्दी ही तो उठती हूँ शीरु स्कूल जाता है न .......।"

"बस बहुओं से तो जुबान लड़वा लो । "सास ने पूजा की घंटी बजाते हुए कहा । "दो चार दिन ही की तो बात है चले जाएंगे फिर ....।"

"ट्रीन....ट्रीन!"

"हेल्लो ...हाँ पापा ...नमस्ते ...क्या ससुर जी से बात कराऊँ ....हाँ अभी कराती हूँ ।"कहकर बहु ने फोन अखबार पढ़ रहे ससुर जी को थमा दिया और खुद रसोई में चली गयी ।

"अजी सुनो लक्ष्मी ..!"

"पूजा भी नहीं करने दोगे क्या ?"

"अरे समधी जी का फोन था |"

"कौन से समधी ?"

बहु के पापा का ।"

"हाँ तो क्या करूँ ?"

"आ रहे हैं कल को यहाँ अपनी छोटी बेटी के लिए लड़का देखने ।"

"तो मैं क्या बधाई गाऊँ ...घर न सराय हो गया। जब मन करता है चले आते हैं मुँह उठाये । "लक्ष्मी देवी ने सूर्यनारायण को जल का अर्ध्य देते हुए गुस्से में कहा ।

बहु के हाथ से दूध का बर्तन छूटते-छूटते बचा ।


✍️ राशि सिंह 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत 

गुरुवार, 6 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ...जख्म


घर के बाहर ढोल नगाड़े बज रहे थे ।सभी घर परिवार के सदस्य और नाते रिश्तेदार थिरक थिरक कर नाच रहे थे ।पूरा घर नए रंग बिरंगे गुब्बारों से सजाया गया था ।

गाड़ी से बाहर पैर रखने से पहले ही सासू मां ने फूल बिछा दिए मुक्ता के।

वह आश्चर्य चकित हो सबको देख रही थी ।निहाल ,उसके पति भी तो कैसे उसको सहारा देने में लगे हुए थे ।

"परिस्थितियों का गुलाम होता है इंसान भी ।"मुक्ता ने मन ही मन सोचा।

"न ईमान न धर्म और न ही गैरत ।"

उसकी दोनों फूल सी आठ और दस साल की बेटियां भी नाच रहीं थीं ।अचानक सभी की लाडली हो गईं वो ।

"अब इनके उपर का ढक्कन आ गया तो , ये भी प्यारी लगने लगेगी ।"दादी सास ने दांत निपोरते हुए कहा तो सभी हां में हां मिलाने लगे ।ऐसा नहीं था कि वो सब अशिक्षित थे लेकिन सिर्फ कहने भर के कागजी शिक्षित थे शायद ।

मुक्ता की गोद से झट से सासू मां ने पोते को ले लिया और उसकी बलैया लेने लगीं। 

"ये सभी वही लोग हैं जो मेरी दोनों बेटियों के होने पर मेरे पास तक नहीं फटके थे ।"सोचकर मुक्ता का मन घृणा से भर आया उसके जख्म फिर से हरे हो गए ।

दरवाजे पर पहुंचने से पहले ही उसने अपनी दोनों बेटियों को गले से लगा लिया और सुबकने लगी ।

वह यादों के आगोश में चली गई ।

जब दोनों बेटियों के जन्म के बाद वह घर आई थी तब घर में मानो सन्नाटा सा पसर जाता था ।

दूधमुही बेटियों को कोई छूता तक नहीं था । सभी घर में मुक्ता की तरफ मुंह बनाकर बात करते ।निहाल तो बहुत दिनों तक कमरे तक में नहीं आए और आज ......

"अरे बहु चलो तुम्हारी आरती होगी ।"सासू मां चिल्लाई ।

मुक्ता ने दोनों बेटियों को आगे कर कहा ।

"इनकी कर दोगी तो मेरी ही हो जायेगी ।"

सभी एक दूसरे का मुंह देखने लगे ।निरुत्तर ।

✍️ राशि सिंह

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


गुरुवार, 23 जून 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा --दौर -


"जिंदाबाद जिंदाबाद हमारे नेता जी जिंदाबाद ...मुर्दाबाद मुर्दाबाद तुम्हारे नेता जी मुर्दाबाद ।" भीड़ चिल्लाती जा रही थी ।

"अभी सब कुछ ठीक नहीं  है क्या देश में ।"आरोप जोर से चिल्लाया और यह सुनकर प्रत्यारोप भी कहां चुप रहने वाला था ।

"तुम्हारे शासनकाल में तो सब कुछ जैसे अच्छा ही अच्छा था ।"उसने तंज कसा ।

"हां जिन कमियों के लिए जब तुम चिल्ला रहे थे अब वही तुम्हारे भी तो शासन में हैं ?"आरोप फिर से बौखलाया सा चिल्लाया ।

"हां अभी सत्ता परिवर्तन होने दो पाली बदल जायेगी क्योंकि चेहरे बदलते हैं विचारधारा नहीं । " घायल समय असहनीय पीड़ा से कराह उठा ।


✍️ राशि सिंह

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत 




शुक्रवार, 3 सितंबर 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ---बहरूपिया


     कचहरी  के एक ओर बनी एक वकील  की गद्दी  पर , हंसा  सकुचाई  सी गुलाबी  कुर्ता  और सफ़ेद रंग का दुपट्टा  सिर पर ओढ़े  हुए बैठी थी पास में ही उसके पिता  आनंदी लाल  खड़े थे । कई बार वह गद्दी से दूर जाकर बीड़ी  पी आये थे ।

मन बड़ा विचलित  सा था कि केस वापस लें या अपनी बेटी के अधिकार  की लड़ाई जारी  रखें । 

वकील दया शंकर  जिनकी उम्र लगभग  साठ के करीब थी  उन्होंने बड़ी खुशी ...खुशी इस केस  को अपने हाथ में लिया।

वह बार -बार हंसा को पानी और चाय  के लिए  पूँछते वह इंकार  में सिर हिला  देती वह उसके सिर और खूबसूरत गालों को प्रेम से लाड  लड़ाते  हुए सहला  देते जैसे कि हँसा के पिता अक्सर करते हैं ।

मगर इस छुवन  से पता नहीं क्यों उसको असहजता  सी महसूस  होती ।

"हाँ...हँसा बेटा अब मुझे पूरी कहानी बताओ कि तुम्हारे साथ क्या हुआ ...देखो मुझसे कुछ छिपाना  मत क्योंकि डॉक्टर  और वकील से कुछ छिपाना यानि की मामले  को और पेचीदा  करना ...। " उसने जोर से हँसकर फिर से उसके गालों पर हाथ फेरा  l 

"ज...जी...जी । " हँसा ने अपने चेहरे को पीछे हटाने  की नाकामयाब  कोशिश की ।

"अरेवकील साहब हमने आपको बता तो दी सारी कहानी l " हँसा के पिता ने जोर देकर कहा तो वकील दयाशंकर  मुस्करा भर दिए । 

"अच्छा तो हँसा बेटा तुम्हारे पति के सम्बन्ध  गैर  औरत से थे ?" उसने कुटिल मुस्कान फेंकते  हुए बेगैरत  भरे अंदाज में कहा ।

"ज...जी ...जी ।"

"बताओ क्या  कमी है इस फूल सी बच्ची में ....?" इतनी खूबसूरत ...इतनी सादगी  से भरी .और क्या चाहिए था उस मरजाने  को ?"दयाशंकर. ने अपनी गिद्ध सी दृष्टि  से हँसा के मन को हिला कर रख दिया ।

"मारता पीटता  भी था ?"

"हाँ साहब नशे  में जानवरों  की तरह पीटता था मेरी फूल सी बच्ची को l " आनन्दी लाल. ने भरे हुए गले से कहा ।

"इनगालों  पर भी मारता  था ?" दयाशंकर. ने जहरीली  आवाज में दोबारा  हँसा को छूने   का प्रयास किया मगर वह पीछे हटकर  खड़ी हो गयी ।

"क्या हुआ बेटा ?" उसने बेशर्मी  से बेटा शब्द  निकाला सुनकर वह तिलमिला उठी  ।

"आपकी फीस क्या है वकील साहब ?" हँसा ने प्रश्न  किया l 

"देखो बेटा  तुम मेरी बेटी की तरह हो ...तुमसे कैसी  फीस .तुमकेस. के  डिश्कशन   के लिए बस इस पते   पर अपने पापा के साथ आ जाया   करना   .बसकल से कार्यवाही शुरू  करते हैं केस की ?"उसकी वासना   से भरी आवाज ने हँसा को अंदर   तक हिला दिया l 

यह आदमी  उसको अपने पति से भी ज्यादा दरिंदा   लगा  ..मुखौटा   लगाए बहरूपिया  l 

✍️ राशि  सिंह, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश , भारत


शनिवार, 28 अगस्त 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ---सच्चा तोहफा

"उफ्फ न जाने कब तक आएंगी आपकी दीदी मैं लेट हो रही हूं अपने भाई को जाकर रखी बांधने के लिए...कल का भी पूरा दिन बाजार में उनके लिए गिफ्ट लेने में गुजर गया बेकार ही और आज ...।" नेहा ने बेचैनी से कमरे में चहलकदमी करते हुए पति निखिल से कहा ।

"हां आ ही रही होंगी दीदी ...अभी कॉल करता हूं कहां हैं ।"निखिल ने फोन मिलाते हुए कहा ।

"हेलो दीदी कहां हो ?"

"सरप्राइज ।"मालती दीदी ने घर में घुसते ही हंसते हुए कहा लेकिन नेहा के चेहरे पर अभी भी गुस्सा के ही भाव थे ।

"देखा मैने कहा न था कि दीदी आएंगी जरूर ।"निखिल ने बच्चों की तरह खुश होते हुए कहा ।

"दीदी पानी लीजिए ।"नेहा ने पानी की ट्रे में पर रखते हुए कहा वह बार बार घड़ी की तरफ देखती जा रही थी ।

"अरे नेहा तुमको भी रखी बांधनी है न अपने भाई के ...जाओ जाओ जल्दी तैयार हो जाओ मैं इसके अभी रखी बांधती हूं ।"मालती दीदी ने मुस्कराते हुए कहा ।

"दीदी आप आई हो तो मैं कैसे जा सकता हूं अभी और नेहा भी ...?"

"अरे कैसी बात कर रहा है निखिल नेहा का भी भाई है और वह भी इंतजार कर रहा होगा तेरी तरह ।"मालती दीदी ने अपने भाई के रखी बांधते हुए डपटकर कहा ।

नेहा की आंखें भर आईं कितना नकारात्मक सोच रही थी वह अपनी ननद के बारे मे इस साल ही तो उसका विवाह हुआ था इसलिए रिश्तों से अनजान थी ।

नेहा ने गिफ्ट अपनी ननद की तरफ बढ़ाया तो मालती दीदी ने कहा 

"देखी कर दिया न मुझे पराया मुझे गिफ्ट की नहीं बस तुम दोनो ऐसे ही रहना मुझे कभी मम्मी पापा की कमी का एहसास नहीं होने देना ।"मालती ने भरी आंखों से आंसू पोंछते हुए कहा तो निखिल और नेहा दोनों ही अपनी दीदी से लिपट गए ।


✍️ राशि सिंह, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश , भारत


मंगलवार, 27 जुलाई 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ----जय एकतावाद


अचानक सारा वातावरण  कौओ की काँव-काँव से गूँज उठा l वारिश के दिन है कहीं  कोई साँप वगैरह  न निकल आया हो यही सोचकर सभी घरों  से लोग बाहर निकल आये क्योंकि  अक्सर साँप को देखकर ही पंछी  ज्यादा चिल्लाते हैं l 

यह क्या एक कौवा  नीचे पडा  हुआ था और उसके  पास देवेंद्र जी  का पालतु  कुत्ता  जैसे ही वह कुत्ता  इसको उठाने  की कोशिश करता सभी कौवे काँव -काँव कर उसके  पीछे  पड़ जाते वह भागता तो उसके ऊपर उड़कर रोकने का प्रयास करते l 

अन्त में  कुत्ता  थक गया और बैठकर लम्बी जीभ निकाल कर हाँफ़ने लगा l 

कौवे अभी भी चिल्ला रहे थे l 

आदमी  सोचने  लगे शायद  यह  सब कौवे एक ही जाति के हैं  तभी तो इतनी एकता है कि अपने जैसे ही कौवे को बचाने के लिये इतनी एकता के साथ कुत्ते  से लड़ रहे हैं l 

एक और अच्छाई कि  इन के पास मोबाईल नहीं  है नहीं  तो बचाने की बजाय वीडीओ बनाने में  लग जाते हमारी  तरह l 

✍️ राशि सिंह , मुरादाबाद,  उत्तर प्रदेश, भारत 

शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा --..'आस्तीन का सांप '​


"देखो मैं अछूत हूँ ...तुम्हारे घरवाले मुझे कभी स्वीकारा  नहीं करेंगे l"अ  ने श नाम की लड़की से परेशान होते हुए कहा .

​"नहीं ...आपने मेरा कितना ख्याल रखा है बचपन से लेकर अब तक ...सब कुछ l"श ने रोकर उसके कांधे पर सिर लगाते हुए कहा 

​"वह तो ठीक है मगर ...तुम्हारा भाई और तुम्हारे पापा का वह चमचा मिश्रा क्या हमको जीने देगा ?"अ ने संदेह प्रकट किया l

​"हमारा परिवार ऐसा नहीं है ....तुम तो बचपन से पापा जी को जानते हो ...कितना विश्वास करते हैं तुम पर ?"श ने उसके चेहरे को मासूमियत से अपनी कोमल हथेलियों में भरते हुए कहा l

​"यह सच है कि हम दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करते हैं ...और तुम्हारे लिए तो मैं अपनी जान भी दे दूंगा l"

​"तो फिर परेशानी क्या है ...मैं तुमसे शादी करना चाहती हूँ ...ले चलो मुझे अपने साथ ...l"उसने उतावलेपन से कहा l

​"मैं तुमसे उम्र में दस साल बड़ा हूँ ...l"

​"तो क्या हुआ मैं तुमसे प्यार करती हूँ ...तुम जैसा कहोगे वैसा ही होगा l"

​उसकी तो वाछे खिल गयीं ...यह सुनकर कि कल तक जिस घर की चाकरी की ...लड़की के दिमाग को ऐसा धोया कि दामाद बनाने को आमादा है .

​इस सुनहरे मौके को भला वह कैसे हाथ से जाने देता ....ऊंची जाति वालों  को नीचा दिखाने का अद्भुत अवसर जो उसके हाथ लगा था .

​कुटिलता उसके चेहरे पर नाचने लगी ...."बात आई गई भी हो सकती है ...हो सकता सच में लड़की का बाप लड़की प्रेम के आगे नतमस्तक होकर उसे माँफ कर दे और उसको अपना दामाद स्वीकार कर ले ...नहीं नहीं ..यह तो ठीक नहीं होगा ...इससे तो उसकी अछूत आत्मा को शांति नहीं मिलेगी ...कुछ नया करते हैं l"अ ने मन ही मन सोचा l

​"मैं तुमसे शादी करूंगा ...मगर l"

​"मगर क्या ?"

​"तुमको एक काम करना होगा ?"

​"क्या ?"

​"अपने पापा और घरवालों के विरुद्ध एक वीडिओ बनाना होगा ....ताकि वे हमको नुकसान न पहुंचा पाएं ...दिखा दो सारी दुनियाँ को कि हम एक दूसरे को कितना प्यार करते हैं ?"उसने एक और तीर छोड़ा जो निशाने पर जा लगा , क्योंकि शिकार मूर्ख है ..नादान है ...अधीर है ...अपनों के खिलाफ ही खड़ा हो गया ...तोड़ने के लिए ...मारने के लिए ....समाज में सिर झुकाने के लिए .

​और फिर उन्हौने बाकायदा वीडिओ बनाकर वायरल कर दिया ....पिता भी अवाक ....समाज भी अवाक ...क्या सिला दिया उस शक्स ने जिसे बेटी की हिफाजत के लिए रखा था वही ....छी ...

​पूरी दुनियाँ को पता चल गया कि फलाने की बेटी भाग गई ...और उनको मरने के लिए छोड़ गई ...तड़पने के लिए छोड़ गई .

​बहुतेरे बापों के मुंह से निकल रहा है .....बिटिया न दीजो ....

​प्रेम त्याग का नाम है ...प्रेम महसूस किया जाने का नाम है ...एक एहसास है ...जिसे डंके की चोट पर नहीं ह्रदय की गहराइयों से महसूस करो ...प्रेम पाने का नहीं ....अपनों को दर्द देने का नहीं ....दर्द सहने का नाम है l

​✍️ राशि सिंह , मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश 


रविवार, 20 जून 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की रचना ----उँगली पकड़कर सिर्फ चलना ही नहीं सिखाया दे हथियार शिक्षा का मेरे विश्वास को बढ़ाया

 


तुमसा मुझे जहाँ में ........कोई नहीं दिखता 

हर ख्वाहिश कर दी पूरी कारवां नहीं रुकता !


करने को पूरे मेरे सपने तुम रात भर जगे 

हम सोये गहरी नींद में तुम सोचते रहे ।


उँगली पकड़कर सिर्फ चलना ही नहीं सिखाया 

दे हथियार शिक्षा का मेरे विश्वास को बढ़ाया ।


देख देख कर हमको हर पल तुम जिये 

करने को हमें काबिल क्या दर्द न सहे ।


बचपन का दुलार दे हमको शिक्षा का उपहार 

विवाह की सौगात और विदाई पर आंसूओं को पी गए ।


पूँछना हाल चालजैसेतुम्हारीआदतबनगयाहै 

आज हैं हम जो भी तुम्हारा कर्ज चढ़ गया है 




राशि सिंह, मुरादाबाद उत्तर प्रदेश 

शुक्रवार, 18 जून 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ---पहला प्यार


फूलों से सजी सुहाग सेज पर वह सिकुड़ी और शरमाई सी बैठी थी ।बाहर जोर की हवाएं और बादलों में गरज हो रही थी कुल मिलाकर एक तरफ जहां हसीन थी यह रात वहीं कई रहस्य और वास्तविकता से परिचय कराने वाली थी  नवविवाहित जोड़े का ।

उसके मन में कई सवाल उमड़ घुमड़ रहे थे अपनी सहेलियों से उसने सुना था कि सुहाग सेज पर पति कई बार तुम्हारे अतीत के बारे में भी पूछते हैं कि कहीं तुम्हारा कोई किसी से चक्कर बक्कर तो नहीं था वगैरह वगैरह ।

तभी दरवाजे पर किसी के आने की आहट हुई वह सकपका गई क्योंकि कोई प्रेमविवाह तो था नहीं दोनो एक दूसरे से वाकिफ भी नहीं थे ।

तभी किसी ने उसके हाथों को जैसे ही स्पर्श किया उसका ह्रदय जोर से धड़कने लगा ।

अजीब सा कंपन उसके पूरे शरीर में दौड़ गया ।

"नीना जी ।"

"जी ।"

"हमारी शादी इतनी जल्दीबाजी में हुई थी कि हम दोनों को किसी से को समझने का मौका ही नहीं मिला ।"उसने धीरे से कहा ।

पति की बात सुनकर उसको थोड़ी सी राहत सी महसूस हुई थी ।

वह अब संयमित हो गई ।

"जी ।"

"मुझे इन बातों से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता कि तुमने किसी को प्यार किया या नहीं क्योंकि आज से हमारे जीवन की नई शुरुआत हुई है और मैं तुमको और तुम मुझको बस हम दोनों एक दूसरे को जानते हैं ।"

पति ने फिर से उसका विश्वास जीता ।

"जी ।"

"क्या जी जी किए जा रही हो तुम भी कुछ बोलो न !" उसने जोर का ठहाका लगाते हुए कहा इस बार नीना के मूंह में आया "जी " शब्द मूंह में ही रह गया वह सकपका गई ।

"एक बात पूंछ लूं !"पति की यह बात सुनकर नीना फिर से भयभीत हो गई ।

"जी पूछिए ।"

" जीवन में प्रेम कितनी बार हो सकता है ?"

"और यही अगर मैं तुमसे पूछूं तो ?"

"बड़ी चालाक हो तुम ..हम पर ही हमारा प्रश्न दे मारा ।"वह फिर से हंसा ।

"मेरे खयाल से तो कई बार हो सकता है ...लेकिन ...?"

"लेकिन क्या ...?"नीना ने फिर से पूछा ।

"पहले प्रेम जैसा विश्वास दोबारा नहीं होता किसी पर चाहे पहला प्रेम एक तरफा हो या फिर दो ।"

उसने नीना की आंखों के गहरे समुद्र में डूबते हुए कहा और नीना ने आंखे बंद कर समर्पण कर 

दिया ।

✍️ राशि सिंह, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश 


शुक्रवार, 4 जून 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा -----नया चश्मा


पिद्धान जी तुमने तो कही थी कि अगर हम तुमको वोट दें तो हमारे घर नयो पखानो बन जायेगो ।"वह नीचे बैठा गिड़गिड़ा रहा था ।

"हां भई हां कही थी हमने जे बात मगर अबे पैसा कहां आयो है सरकार से जो तुम्हारी जरूरतें ऐक दिन में पूरी कर दें ...सरकारी काम है दद्दा टेम लगेगो टेम ।"नवनियुक्त प्रधानजी ने मूंह से बीड़ी का धुआं निकालते हुए कहा ।

वह अब खामोश होकर उल्टे पांव जाने लगा ।

"का करें नैकौ चैन से न रहन देत हैं जे सब मूरख ।"पिद्धान जी ने अपने नए नवेले काले चश्मे को पौंचते हुए कहा ।

और पहली ही किश्त में आई बुलेट पर बैठकर फुर्र हो गए अब इस नए चश्मा से गांव की समस्याएं  दिखाई देने बंद जो हो चुकी थीं ,जो पहले नंगी आंखों से साफ दिखाई दे रहीं थीं लेकिन सिर्फ वोट लेने से पहले तक ।

✍️ राशि सिंह, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश


शनिवार, 13 मार्च 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ------कर्ज


"अले ..अले मेला छोता छा बाबू ...कैछे हचेगा ....मेला नूनू वेवी ...।"दिया की सास अपने हाल में ही जन्मे पोते को पालने में झुला रहीं थी और बातें कर रहीं थीं तोतली आवाज में यह सब देखकर दिया भी बहुत खुश हो रही थी ।

"सुनो बहु ।"

"जी माँ जी ।"

"अगले हफ्ते इसका नामकरण करा ही देते हैं ।""

"जी माँ जी ।"

"अले ...अले ऐसे क्यों रो रहा है मेरा लाल ..क्या नाना नानी को बुला रहा है ...हाँ ..हाँ आ जाएंगे ...आ जायेंगे और बहुत सारी चीजें लायेंगे ...बहुत सारे कपड़े ...खिलौने हाथों के खडु आ  गले की चैन भी लेगा ....बदमाच कहीं का ...।"सास की पुनः लालची लालसा को देखकर दिया की मुस्कान गायब हो गयी ।शादी को अभी एक ही साल हुआ है और ऊपर बाले की कृपा से साल भीतर ही दिया की झोली भी भर दी ।

दिया सोच में डूब गयी कि लड़की का बाप कभी कर्ज से मुक्ति नहीं पाता शादी के बाद कभी रीति _रिवाज तो कभी परम्पराओं के नाम पर माँग ही लेते हैं लालची ससुरालीजन ।कभी पहली बार गौर पूजन कभी करबा चौथ तो कभी अन्य पूजाओं के बहाने माँगते ही रहते हैं ।

"सुना बहु छोटू क्या _क्या माँग रहा है नाना से ?"

"हाँ माँजी सुन रही हूँ ।"कहते हुए दिया ने एक गहरी साँस ली 

✍️ राशि सिंह, मुरादाबाद उत्तर प्रदेश 


शुक्रवार, 5 मार्च 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ---इतना आसान कहाँ ...

     


शुभि ने जल्दी जल्दी सारा घर का काम निपटाया और तैयार होकर सोफे पर बैठकर छोटे बेटे कुणाल की स्कूल शर्ट का बटन टाँकने लगी , साथ ही मन में कल की घटना भी उसको रह रह कर याद आ रही थी ।

​सोचने लगी "आजकल के बच्चे भी न ....पता नहीं क्या होता जा रहा है ?"

​कल सान्या उसकी बेटी का बर्थडे था , बस बच्चों को तो मौका मिल गया गिफ्ट का फिर भले ही उसकी जरूरत हो या न हो ।

​"मॉम मुझे इस बार कुछ नया गिफ्ट  चाहिए ....जो मेरी किसी फ्रेंड के पास नहीं हो ।"बेटी ने ठुनकते हुए कहा  था ।

​"मगर बेटा ...किसी की होड़ थोड़े ही करते हैं ...जिसकी जरूरत हो ....।"

​"मॉम प्लीज यह जरूरत वाली बात मुझे अच्छी नहीं लगती ....डैड देखो न मम्मा ...l"

​"ठीक तो कह रही है तुम्हारी मम्मी ।"सूरज ने भी डरती हुई आवाज में कहा ।

​"बस रहने ही दो मुझे नहीं जाना आपके साथ मार्केट ...।"चिढ़ते हुए सान्या ने कहा और पैर पटकते हुए मॉल से बाहर  भाग गई l

"​सान्या.........।"दोनों आवाज देते रह गए l

​"क्या जरूरत थी उसको ज्ञान देने की ?"सूरज का भी मूड खराब हो गया ।

​"आप भी न ....चढ़ा लो इस लड़की को सिर पर ...क्या समझाना बुरी बात है ?"शुभि ने चिढ़कर कहा l

​"नहीं ...मगर अब कुछ माँग रही है तो देना ही होगा l"

​"और क्या देना ही होगा ...डिमांड तो रोज बढ़ती ही जा रहीं हैं दोनों की ...सुर भी तो कुछ कम नहीं ।"

​"अभी तो दोनों आठवीं और दसवीं कक्षा में हैं ...पता नहीं आगे क्या होगा ?"शुभि ने संदेह व्यक्त करते हुए कहा l

​"शुभि तुम क्यों परेशान हो ....आजकल पेरेंट्स होना कोई इतना आसान नहीं ...हमारे तुम्हारे जैसा जिनके लिए माँ बाप की बात मानना भगवान की बात से भी ज्यादा अवश्य था ।"

​तभी दरवाजे की घंटी बजती है तब शुभि की तंद्रा भंग होती है और  वह उठकर दरवाजा खोलती है l

​"अरे आप तो तैयार हैं ....मैँ अभी रेडी होकर आती हूँ ।"

​सान्या ने बैग सोफे पर पटकते हुए कहा l

​अपनी जीत पर सान्या बहुत खुश जो थी आखिर पेरेंट्स को हरा जो दिया था ।

​रात खाना तभी खाया जब आज वह जो चाहेगी वह दिलाना पड़ेगा l

​✍️ राशि सिंह, मुरादाबाद उत्तर प्रदेश 


शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ......'आवारा जानवर '


"शर्मा जी गली में बहुत आवारा कुत्ते हो गए हैं |"गुप्ता जी ने सामने बालकनी में खड़ी मिसेज खन्ना की तरफ धूर्त मुस्कान फैंकते हुए शर्मा जी से कहा ।

"हाँ बंदर भी बहुत हैं |"शर्मा जी ने पास से गुजरती एक विद्यालय जाने वाली लड़की की तरफ घूरते हुए कहा ।

"हाँ इन सबको तो नगरपालिका वाले ले जायेंगे मगर यह यहाँ वहाँ खड़े होकर औरतों को ताकने लड़कियों को छेड़ने वालों का क्या हो....?"पीछे से पान के खोखे वाला पीक मारते हुए बोला ।

✍️ राशि सिंह ,मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश 


रविवार, 21 फ़रवरी 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कविता ---सूरज -

 


सुबह का सूरज देखा है?

​ ऊर्जा से ओतप्रोत

​ बिल्कुल मासूम बच्चे की तरह

​  नदी की लहरों के साथ

​  अठखेलियां करता

​   हिलता हुआ पानी की लहरों पर

​ धमा चौकड़ी करने को आतुर

​ मासूम से बच्चे की तरह

​ फैला देता है सारे जग पर फिर

​ अपनी असीम ऊर्जा की चादर

​ और ढक लेता है सारे संसार को

​ ऊर्जा की तपन से

​  कभी   झुलसाता है

​  तो कभी मन को भाता है

​ अपनी मीठी गर्माहट लिए

​ सर्दियों में

​ और जलाता है अपनी तपन से

​ गर्मियों में

​ सूरज तो वही है और वही रहता है

​ बस

​ बदल लेते हैं हम उसकी भूमिका

​ अपने सुख और अपने दुख

​  के अनुसार

​ शाम को फिर इकट्ठी करके अपनी सारी ऊर्जा

​ सो जाता है अनंत आकाश की गोद में

​ कल फिर उगने के लिए

​ जैसे कोई  इंसान

​ मृत्यु की गोद में सोने के बाद

​ पुनः जन्म लेता है

​ फिर अनोखी  ऊर्जा के साथ

​ यह समय का चक्र है

​ चलता रहता है सूरज की तरह

​ हर घड़ी हर पल हर दिन

​ शून्य से अनंत की ओर

​ और अनंत से शून्य  की ओर

​✍️राशि सिंह, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश

​ 

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ---संपत्ति


आज भोर से ही मन बड़ा घबरा रहा था राजेश्वरी का पति की असमय मौत और इकलौते बेटे की बीमारी की दुख रूपी कडी धूप ने उसके सीधे -साधे जीवन का रंग -रूप ही बदल कर रख दिया था ।

घर में पति द्वारा एकत्रित जो जमा पूंजी थी वह धीरे -धीरे घर के खर्च और बेटे की बीमारी पर खर्च हो गयी ।इसलिये उसने खुद को मानसिक रूप से घर से बाहर  निकलने के लिये खुद को मजबूत किया परंतु यक्ष प्रश्न उसके सामने आ खड़ा हुआ कि वह करेगी क्या पढी-लिखी तो वह थी नहीं इसलिये घर-घर झाडू -पौछा ,बर्तन साफ़ करने का काम चुन लिया ।

जिन्दगी की वास्तविकता से सामना हुआ उसका ,जिन घरों में वह कामकरती सभी तरह के अच्छे -बुरे लोग मिलते लेकिन वह ज्यादा ध्यान नहीं देती ,अपना काम इस तरह से करती कि कोई उसके काम में मीन-मेख न निकाले फिर भी कामवालिओं को नीचा दिखाना शायद मालिक अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं ।

लेकिन उस दिन तो हद ही हो गयी ,एक घर जिसकी मालकिन बैंक में जॉव करती थीं ,उनके बैंक जाने के बाद ज्यौं ही वह काम करने उसके घर गयी ,अचानक बर्तन साफ़ करते हुए उनके शरीफ़ पति ने उसका हाथ पकड़ लिया ।वह स्तब्ध रह गयी ।

''अरे यह का कर रहे हैं साहब ?''राजेश्वरी गिड़गिड़ाई 

''अब ज्यादा नाटक मत कर शरीफ़ होने का मैं जानता हूँ तुम जैसी औरतो को ।''उस नीच आदमी ने नीचता से कहा।

''छोडो मेरा हाथ ।''कहते हुए राजेश्वरी ने करछली हाथ में लेकर बिजली की भांति कडकते हुए बोली ।

''तुम खुद को बहुत ऊँचा समझते हो चंद नोट के टुकडे इकट्ठे करके समझते हो कि हम जैसे गरीब लोग तुम्हारी बपौती हो गये खबरदार !जो मुझे छूने की कोशिश की ।''और आगे बढते उस दुष्ट पर अपने हाथ में ली हुई करछली से भरपूर प्रहार किया तो वह कायर पीछे हट गया ।

आज राजेश्वरी ने अपनी चरित्र और आबरू रूपी संपत्ति को लुटने से बचा लिया ।

✍️ राशि सिंह , मुरादाबाद


शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा -- लिटरेरी इनविटेशन


"​नील जी क्यों न साहित्यिक संध्या का आयोजन करा लिया जाए ...शाम भी रंगीन हो जाएगी और नाम भी हो जाएगा ....रही बात लेखकों की तो वे तो दौड़े चले आएंगे ।" श्रीप्रकाश जी ने नील जी से कहा।

​"अजी हाँ ...नेकी और पूछ पूछ ...आज ही इंतजाम कराते हैं जनाब ...बताइए लिस्ट में कौन कौन से साहित्यकारों को बुलाया जाए ?"नील जी ने पान  चबाते हुए कहा ।

​"हाँ ...पिछले मुशायरे में गए थे न ...वहाँ जितनी भी महिला साहित्यकार आईं थीं सभी के नाम नोट कर लीजिए जनाब ...और हाँ वो नीली साड़ी पहने जो मोहतरमा थीं उनका ज़रूर ...क्या गजब ढा रहींथींl"श्रीप्रकाश जी ने चटकारे लेते हुए कहा l

​"कौन सी कविता बोली थी उन्होने ?"

​"अजी छोड़िए कविता बबिता ...हमें क्या करना । "श्रीप्रकाश जी ने बेशर्मी से कहा और दोनोंं ठहाका मारकर जोर से हंसते हुए एक और शाम की रंगीनियत के ख्वाबों में खो गए l

​✍️ राशि सिंह , मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश