सोमवार, 30 नवंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की कुण्डलिया -------गंगाजल अमृत कहो ,इसको कोटि प्रणाम-


गंगाजल अमृत कहो ,इसको कोटि प्रणाम

मुक्ति दिलाती यह नदी ,सत्य राम का नाम

सत्य  राम का नाम ,जटा से शिव की आई

स्वर्गलोक   की  देन , भरी  इसमें  अच्छाई

कहते  रवि  कविराय ,हुआ  रोगी तन चंगा

मन  पवित्र अभिराम ,लगाओ डुबकी गंगा


 ✍️ रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)

 मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में जकार्ता इंडोनेशिया निवासी ) वैशाली रस्तोगी की कविता -–- गुरु मेरा पावन गंगा की धारा .....


 

मुरादाबाद के साहित्यकार नवल किशोर शर्मा नवल की ग़ज़ल ---- नवल की आरजू इतनी मिले हक अब किसानों को-----




मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार डॉ अजय जनमेजय का गीत -----टूट कर गिरने से कर इंकार/पात पीले चाहते हैं / फिर हरापन ......




 


रविवार, 29 नवंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के चंदौसी (जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार अतुल मिश्र का व्यंग्य ---हिंदी-पत्रकारिता का पूरा सच



हिंदी पत्रकारों की पोज़ीशन उस आम आदमी की तरह होती है, जो अपने घरेलू बजट के लिए, स्वतः उत्पन्न हुई महंगाई को दोष ना देकर अपने पूर्वजन्म के किन्हीं पापों को इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराते हैं.
हिंदी-पत्रकारिता का इतिहास बताता है कि शुरूआती दौर में लोगों ने कैसे अपने घर के बर्तन बेचकर अखब़ार निकाले थे और बाद में कैसे वे एक बड़े बर्तन-निर्यातक बन गए ? वे लोग बिना खाए तो रह सकते थे, मगर अखब़ार बिना निकाले नहीं. हिंदी के अखब़ार पढ़ना तब आज की ही तरह बैकवर्ड होने की पहचान थी और लोग अखब़ार खुद ना खरीदकर चने या मूंगफलियां बेचने वालों के सौजन्य से पढ़ लिया करते थे. खुद को विद्वान् मानने वाले 
कुछ विद्वान् तो यहां तक मानते हैं कि हिंदी के अखबारों में रखकर दिए गए ये चने या मूंगफलियां तब हिंदी पत्रकारिता को एक नयी दिशा दे रहे थे. इनका यह योगदान आज भी ज्यों का त्यों बरकरार है और अभी भी सिर्फ़ नयी दिशाएं ही देने में लगा हुआ है.
      हिंदी का पहला अखब़ार ‘ उत्तंग मार्तंड ‘ जब निकाला गया, तब लोगों ने यह सोचा भी नहीं होगा कि आगे चल कर हिंदी-पत्रकारिता का हश्र क्या होगा ? उन्होंने यह कल्पना भी नहीं की होगी कि इसकी आड़ में ‘ प्रेस-कार्ड ‘ भी धड़ल्ले से चल निकलेंगे और उन लोगों को ज़ारी करने के काम आयेंगे, जो उन्हें अपनी दवाओं के विज्ञापन दे रहे हैं और समाचार लिखना तो अलग, उनको पढ़ पाना भी वे सही ढंग से नहीं जानते होंगे. हिंदी अखबारों के रिपोर्टर या एडीटर पत्रकारिता के स्तम्भ नहीं माने जायेंगे, बल्कि ये वे लोग होंगे, जो मर्दाना ताक़त की दवाइयों के विज्ञापन देकर देश को भरपूर सुखी और ताक़तवर बनाने में लगे हैं. हिंदी-पत्रकारिता को एक नयी दिशा देकर वे आज भी उसकी दशा सुधार रहे हैं और जब तक उनके पास ‘ प्रेस कार्ड ‘ हैं, वे अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे कि हिंदी-पत्रकारिता की जो दशा है, वो सुधरी रहे.
    हमसे कल कहा गया कि ‘ हिंदी-पत्रकारिता दिवस ‘ पर ‘ पोज़ीशन ऑफ हिंदी जर्नलिज्म ‘ विषय पर बोलने के लिए इंग्लिश में एक स्पीच तैयार कर लीजियेगा और उसे कल एक भव्य समारोह में पढ़ना है आपको, तो हम खुद को बिना अचंभित दिखाए, अचंभित रह गए. हम समझ गए कि ये लोग इंग्लिश जर्नलिस्ट हैं और हिंदी जर्नालिस्म की ख़राब हो चुकी पोज़ीशन पर मातमपुर्सी की रस्म अदा
करना चाहते हैं. हिंदी-पत्रकारिता में चाटुकारिता का बहुत महत्त्व है और इसी की माबदौलत बहुत से लोग तो उन स्थानों पर पहुंच जाते हैं, जहां कि उन्हें नहीं होना चाहिए था और जिन्हें वहाँ बैठना चाहिए था, वे वहाँ बैठे होते हैं, जहां कोई शरीफ आदमी बैठना पसंद नहीं करेगा. लेकिन क्या करें, मज़बूरी है. हिंदी के अखब़ार में काम करना है तो इतना तो बर्दाश्त करना ही पड़ेगा. हिंदी के पत्रकार को पैदा होने से पूर्व ही यह ज्ञान मिल जाता है कि बेटे, हिंदी से प्यार करना है तो इतना तो झेलना ही पड़ेगा.
    हिंदी के किसी पत्रकार को अगर आप ध्यान से देखें, तो ऐसा लगेगा जैसे उसके अन्दर कुछ ऐसे भाव चल रहे हों कि ” मैं इस दुनिया में क्यों आया या आ ही गया तो इस आने का मकसद क्या है या ऐसा आख़िर कब तक चलता रहेगा ? ” 
     यह एक कड़वा सच है जिस शोषण के ख़िलाफ अक्सर हिंदी के अखब़ार निकलने शुरू हुए, वही अखब़ार प्रतिभाओं का आर्थिक शोषण करने लग जाता है और फिर वे प्रतिभाएं अपनी वेब साइटें बनाकर अपने घर की इनकम में इज़ाफा करती हैं. क्या करें, हिंदी को इस हिंदुस्तान में पढ़ना ही कितने लोग चाहते हैं ?
 जो पढ़ना चाहते हैं, उनकी वो पोज़ीशन नहीं कि वे पढ़ सकें. इसलिए हिंदी की दुर्दशा के लिए ऐसी बात नहीं है कि सिर्फ़ हिंदी ही दोषी हो, विज्ञापन देकर ‘ प्रेस कार्ड ‘ हासिल करवाने वालों से लेकर सब वे लोग दोषी हैं, जो
हमें हिंदी-पत्रकारिता पर अंग्रेजी में स्पीच देने के लिए निमंत्रित करने आये थे.

✍️ अतुल मिश्र

श्री धन्वंतरि फार्मेसी, मौ. बड़ा महादेव, चन्दौसी, जनपद सम्भल

 

शनिवार, 28 नवंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के चंदौसी, जनपद सम्भल (वर्तमान में लखनऊ निवासी) की साहित्यकार जया शर्मा की गीतिका


आती जाती हवायें कह रहीं,अब बहार आने को है      

बिगड़ गये जो रंग ढंग उनके ,अब सुधार आने को है


समझ गये वह क्या छूटा है क्या खो दिया क्या पाया    

छोड़ दिया है लेना देना समानाधिकार पाने को है


समय कभी न होता किसी का कभी जीत तो है हार कभी 

पहचान लिया है बुरे समय को अब करार लाने को है


खामोशी भरी उनकी निगाहें गवाहियां दे रहीं सुनो        

लूटा चैन करार हमारा तो वह उधार चुकाने को है


संयम नियम सभी सुधरेंगे जिनसे भटका हुआ था मन 

पदचिन्हों पर चल गुरुजी के सागर  पार आने को है 

 

✍️ जया शर्मा , लखनऊ 

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की कविता -----कोरोना शादी


लीक से हटकर थी

कोरोना शादी

बहुत से प्रतिबंध थे

इसलिए चिन्ता थी आधी

सरकारी आदेश निभाना था

केवल पचास लोगों को

बुलाना था

दूल्हा दुल्हन

उनके माता पिता,भाई बहन

इनको डायरेक्ट प्रवेश दिया गया

बाकी रिश्तेदारों का चयन

सिक्का उछाल कर किया गया

पांच रिश्तेदारों को

रिजर्व में रखा गया

उनके निमंत्रण पत्र में

स्पष्ट लिखा गया

अटैची लगाकर तैयार रहें

आपको अचानक बुलाया जा सकता है

किसी के अनुपस्थित रहने पर

आपका नंबर आ सकता है

निमंत्रण पत्र में था

एक और बात का विशेष जिक्र

हमें आपके स्वास्थ की है

पूरी पूरी फिक्र

हम अपना वादा 

गंभीरता से निभायेंगे

खाना बनाने का

सारा सामान उपलब्ध कराएंगे

आपको जो भी खाना है

खुद ही बनाना है

शादी के दिन

एक और काम किया गया

सभी को

कोरोना गिफ्ट हैम्पर दिया गया

जब दुल्हन की

विदाई का समय आया

घर वालो ने भारी मन से गाया

बाबुल की दुआएं लेती जा

जा तुझको डिजाइनर मास्क मिले

जब भी प्यास लगे, गरम

पानी से भरा फ्लास्क मिले

कभी ना होने पाए कमी

हैंड वॉश,सैनिटाइजर की

जिसमे किसी से मिलना हो

कोई ना ऐसा टास्क मिले

जिनको बुलाया नहीं गया

खुशियां मना रहे थे

लेकिन कुछ यार दोस्त 

गालियां सुना रहे थे

गालियों का भी

अलग अंदाज था

उन पर भी कोरोना का 

प्रभाव था

सैनिटाइजर कहां रखा है

तुझे याद ना आए

तू हाथ धोने को जाए

तो हैण्ड वॉश खत्म हो जाए


✍️ डॉ पुनीत कुमार

टी 2/505 आकाश रेसीडेंसी, मधुबनी पार्क के पीछे, मुरादाबाद 244001, उत्तर प्रदेश, भारत              मोबाइल फोन नंबर  9837189600

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार रेखा रानी का एकांकी "श्रमिक पलायन"


(चेहरे पर परेशानी का भाव लिए  किशोर आता है और  माथा पकड़ कर जमीन पर बैठ जाता है)  

सूत्रधार :  अरे सब इधर तो आओ, जरा देखो तो यहां क्या हो रहा है ? यह किशोर कैसा अनमना सा माथा पकड़ कर बैठ गया है? यह चुप क्यों है ? .....कुछ बोलता क्यों नहीं ?

अरे काका- काकी सब दौड़े आओ,

मिलकर सारे किशोर को समझाओ।

रामू - अरे, किशोर भाई कुछ तो बोलो काहे हैरान परेशान हो? क्या तुमको कोरोना का डर सता रहा है? काहे चिंता करते हो? यह कोरोना बड़े लोगों को ही होता है ,हम जैसे मजदूरों को कुछ नहीं होता।

किशोर - अरे बबुआ, चिंता की तो  बात है , सुना है मालिक कारखाना बंद करने वाले हैं , जब कारखाना बंद हो जाएगा तो खाओगे क्या? बीवी बच्चे क्या खाएंगे? कौन जिंदा रहेगा ?.....और देखो मेरी मुन्नी को तो कितना तेज बुखार है?

किशोर की पत्नी सुखिया  - अरे, आप तो मुन्नी की दवाई लेने गए थे, परंतु यह कैसी खबर ले आये

। अब, मुन्नी का बुखार कैसे उतरेगा?

किशोर - घबरा मत सुखिया, तू धीरज रख मैं सब संभाल लूंगा।

(तभी इमरजेंसी बेल बजती है 

सायरन के साथ)

सब शांत होकर सुनने लगते हैं।

सुनो ! ....सुनो  !!.....सुनो !!!...

खोली के सभी लोगों ध्यान से सुनो 

कोविड-19 के मरीजों की संख्या बहुत बढ़ चुकी है।

तुम सभी लोगों को अभी फौरन खोली  खाली करनी होगी। यह कारखाना बंद हो गया है।

( यह सुनते ही खोली में अफरा-तफरी मच जाती है।)

सूत्रधार- देखिए  बस्ती में कैसा अफरा-तफरी का माहौल है। अभी सारे लोग कैसे अपने गांव को वापस होंगे।  उनके पास न तो कोई सवारी का साधन है ना कुछ खाने की सामग्री और ना ही सामग्री खरीदने के लिए पैसे) किशोर - (दुःखी होकर)

मना किया था कि गांव नहीं छोड़ते।

महानगरों से नाता नहीं जोड़ते।

पर तुमने मेरी एक न मानी।

 दिखलाई अपनी मनमानी।

किसी की खाट बुनता था।

किसी की छान चढ़ाता था।

अपनी कहता था ,

औरों की सुनता था।

गांव की दावतों  में 

गर्व से पत्तल सजाता था।

दुखी मन से सुखिया गठरी में सामान समेटकर बुखार में तपती मुन्नी को लेकर चल दिया सपनों को मसल कर गांव की ओर। वि

सूत्रधार- गांवों  में रहो,

 शिक्षित बनो ।

सभी अपने गांव को

 विकसित करो।

(धीरे धीरे पर्दा गिरता है)

✍️  रेखा रानी 

प्रधानाध्यापिका , एकीकृत विद्यालय- गजरौला 

जनपद- अमरोहा।

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ जगदीश शरण का व्यंग्य -------चुनाव: एक प्रत्याशी की भावभीनी प्रार्थना

   


  "हे आदरणीय मतदाताजी ! मेरे प्रभु ! हे मेरे भाग्य-विधाता ! अन्नदाता ! मेरे परिवार के रक्षक ! हे मेरी तकदीर के निर्माणकर्ता ! मैं तुमसे पूरे पाँच साल दूर रहा । तुमसे मिलने का औसर ही न मिला । तुम जानते हो, प्रभु ! इस लम्बे गैप में मेरे दिल पर क्या बीती ? एक-एक पल तुमसे मिलने को आतुर रहा; पर कमबख्त इस शरीर में घुसे पंचविकारों ( काम, क्रोध, माया, मद, मत्सर ) ने तुमसे मिलने न दिया । जब भी तुमसे मिलने का प्रयास करता, ससुरा 'काम'  रोक लेता । वैसे, मैंने समाज में 'काम' खूब किया । इस 'काम' में मैंने, सच पूछो तो, न छोटा देखा न बड़ा । आयु, लिंग व धर्मनिरपेक्ष रहा तथापि 'काम-वृत्ति' और 'निवृत्ति' के परस्पर द्वन्द्व से उपजे 'क्रोध' को कुछ कम करने का सद्प्रयास करता तो 'माया' के 'जम-जाल' में फँस जाता । कबीर के लिखेनुसार, 'माया'  "महाठगिनी'' तो है पर ससुरी को खुद हमने ही ठग लिया । हम 'महाठग' जो ठहरे ! अपने 'परमपद'  के 'परममद' ( तीव्र अहंकार ) में कमबख्त हम इतने 'मत्सरी' ( लालची ) हो गये कि स्वदर्शन में मगन हम तुम्हारे दर्शनों से चिरलाभान्वित होने के बजाय चिरवंचित होकर चिरनुकसानन्वित हो गये ! किन्तु , हे परन्तप ! मैं अब इन पंच चोरों से मुक्त होकर तुम्हारी शरण में आया हूँ ।

   "हे मेरी पंचवर्षीय कुसफलीभूत कुयोजना के निर्माता ! पूरे पाँच साल बाद मैं तुम्हारे दर्शन करने आया हूँ । अपने आराध्य के दर्शनों की इतनी लम्बी अवधि के उपरान्त अपने भक्त के हृदय में छिपी गहरी लालसा को तो तुम समझते ही हो, प्रभु ! संसार जानता है कि तुम कितने गुणी हो और मैं कितना अवगुणी ! बार-बार गलतियाँ करने पर भी तुम मुझे छिमा कर देते हो । तुम कितने दयालु हो ! बस, एक बार और छिमा कर दो, भगवन् !

  "अंई....क्या कहा, प्रभु ? छिमा कर दिया ? ओह, धन्य हो तुम ! धन्य है तुम्हारी महादयालुता और धन्य है तुम्हारा महाज्ञान ! !


 ✍️ डॉ. जगदीश शरण

 डी- 217, प्रेमनगर, लाइनपार, माता मंदिर गली, मुरादाबाद-- 244001, उत्तर प्रदेश ,भारत

मोबाइल :  983730 8657  

प्रख्यात साहित्यकार डॉ हरिवंश राय बच्चन का पत्र । यह पत्र उन्होंने मुझे 1 मई 1985 को लिखा था ------


 :::::::::प्रस्तुति::::::::

डॉ मनोज रस्तोगी, 8 जीलाल स्ट्रीट, मुरादाबाद 244001 उत्तर प्रदेश, भारत मोबाइल फोन नम्बर 9456687822


शुक्रवार, 27 नवंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के चंदौसी (जनपद संभल) निवासी साहित्यकार अतुल मिश्र का व्यंग्य ------ बुजुर्ग नेता, मज़बूत सरकार


” नेताजी ने अपने भाषण के दौरान जो कुछ भी कहा, वह पूरी तौर पर सही था ! ” चुनावी जनसभा से लौट रहे युवक ने कहा !

” क्या कहा था ? ” साथ लौट रहे बुजुर्ग ने, जो भाषण सुनने कम और टाइम पास करने ज्यादा गया था, पूछ लिया !

” यही कि मज़बूत और निर्णायक सरकार सिर्फ वही दे सकते हैं और वर्तमान सरकार तो कुत्ते के गोबर की तरह किसी काम की नहीं है ! “युवक ने कुत्ते के गोबर पर अधिक बल दिया !

“वो तो ठीक है बेटा, लेकिन वो जो बुड्ढे से नेता ‘ हम सत्ता में आये तो आतंकवाद को जड़ से उखाड़ फेंकेंगे, ‘ जैसी बातें कहते वक़्त काँप रहे थे, वो कौन थे ? ” बुजुर्ग ने अपनी जानकारी में इजाफा करने के लिहाज़ से पूछा !

“वो ही तो हैं, जो अपनी सरकार आने पर प्रधानमन्त्री बनेंगे ! ” युवक ने अपना अब तक अर्जित पूरा ज्ञान बिखेरा !

“क्या उम्र होगी उनकी ? ” बुजुर्ग ने जिज्ञासा ज़ाहिर की !

“अस्सी से ऊपर ही चल रहे हैं ! ” युवक की आवाज़ में गर्व था.

” हम यहाँ सत्तर की उम्र में हिले पड़े हैं और यह जनाब अस्सी के बाद भी प्रधानमंत्री बनने के लिए अभी तक मौजूद हैं ? ” बुजुर्ग कि बात तो सही थी, मगर इस समय युवक को सिर्फ इसलिए अच्छी नहीं लग रही थी कि उसे इस साल ही इस पार्टी का सदस्य बनाया गया था और भविष्य में कोई ऊंचा पद दिए जाने की भी पूरी संभावना दिखाई गयी थी.

” बादाम, पिश्ते और अन्य तमाम तरह की ताकत वाली चीजें खाते हैं वो ! वर्ना आप की तरह चाय से डबल रोटियाँ निगल रहे होते तो आपकी उम्र से पहले ही खिसक लिए होते ! ” युवक ने बुजुर्ग की ओ़र हिकारत की नज़र से देखते हुए कहा !

” बेटा, यह बुड्ढन मजबूत किस तरह से हैं, जो मज़बूत सरकार देने की बात कहते वक़्त भी काँप रहे थे ? ” बुजुर्ग ने फिर वही सवाल किया, जो इस वक़्त उस युवक को नाजायज लग रहा था !

” मज़बूत आदमी दिल से होता है, शरीर से नहीं ! शरीर तो इस उम्र में सभी का हिलता है, मगर हौंसले देखे हैं कभी इनके ? माइक तक काँप जाता है कि यार, किसी और को बुलाओ, वर्ना मैं फट जाऊँगा ! ” युवक की झल्लाहट अपने चरमोत्कर्ष पर थी !

बुजुर्ग के सारे सवाल फ़ेल हो चुके थे, लेकिन एक सवाल उसके ज़हन में भी कौंध रहा था कि जो नेता खुद ही मौत की दहलीज़ पर खडा हो, वह देश को अपने साथ आखिर ले किस दिशा में जाएगा ?

✍️ अतुल मिश्र

श्री धन्वंतरि फार्मेसी, मौ. बड़ा महादेव, चन्दौसी, जनपद सम्भल

गुरुवार, 26 नवंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के चंदौसी जनपद सम्भल (वर्तमान में अलीगढ़ निवासी ) के साहित्यकार लव कुमार प्रणय की ग़ज़ल -----कोई बचपन की याद ही होगी जिसने उसको बहुत हँसाया है


दोस्त का पत्र  जब से आया है

प्यार का फूल खिलखिलाया है


कोई बचपन की याद ही होगी

जिसने उसको बहुत हँसाया है


खूब  उसने  मुझे    कुरेदा पर

राज़ दिल का न जान पाया है


माँ की ममता कि भूखे बच्चे को

जल भी अब दूध कह पिलाया है


चुपके चुपके से रो रहा है वह

कौन  सा  गीत तुमने गाया है


लौट आओ प्रिये कहाँ हो तुम

बिन तुम्हारे न अपना साया है


है 'प्रणय' का ही तो करिश्मा ये

हर कली  पर  जो  नूर छाया है


✍️ लव कुमार 'प्रणय'

 के-17, ज्ञान सरोवर कॉलोनी, अलीगढ़ .

चलभाष - 09690042900

ईमेल  - l.k.agrawal10@ gmail .Com


मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में बरेली निवासी) सुभाष राहत की ग़ज़ल - कैसे कहें हम तंगहाली में, कैसे मनेगी दीवाली ,फटा-पुराना सूट था जिसको ,रफू करा रक्खा है .....


हमने ख़ुद को ज़िंदा, ग़म से आँख मिला कर रक्खा है
अहल-ए-दुनिया देखे तो, क्या हाल बना कर रक्खा है

नादारी  की  आँधी भी  न, दिल  का  ईमाँ  तोड़  सकी
हमने तसल्ली का आँगन में, शजर लगा कर रक्खा है

आक़िल-शाहों  को भी उसके, दर पे झुकना पड़ता है
इस  मिट्टी पर  जिसने सारा, मज़मा ला कर  रक्खा है

गर है तुझको शौक-ए-यारी तुरबत को भी  ताज बना
गौर  से  देखो  दरियाओं  ने  चाँद  डुबा कर  रक्खा है

कैसे   कहें   हम   तंगहाली  में, कैसे  मनेगी   दीवाली
फटा-पुराना  सूट था जिसको,  रफ़ू  करा कर रक्खा है

हम  देखेंगे  कब  तक शातिर,  ई. वी. एम  से  जीतेंगे
हमने भी इक तुरुप का पत्ता दिल में छुपा कर रक्खा है

हमको     'राहत'    देने    वाले    तेरे    वादे    झूठे   थे
तूने  सबको  अंग्रेज़ी   का,   फूल  बना  कर  रक्खा है

 ✍️ सुभाष रावत 'राहत बरेलवी'

मकान सँ० 41, तिरुपति विहार कॉलोनी, अंकुर नर्सिंग होम के पीछे, नेकपुर, बदायूँ रोड, बरेली-243001 (उत्तर प्रदेश)

मोबाइल फोन नंबर :- 09456988483/ 7017609930

ईमेल :-subhashrawat59@gmail.com

मुरादाबाद मंडल के चंदौसी, जनपद सम्भल (वर्तमान में मेरठ निवासी ) के साहित्यकार डॉ कृष्ण कुमार बेदिल की ग़ज़ल ---पत्थरों पर फिर भरोसा कर लिया, ज़िंदगी फिर एक ठोकर खा गयी ----


 

✍️ कृष्ण कुमार "बेदिल"

"साई सुमरन", डी-115,सूर्या पैलेस,दिल्ली रोड, मेरठ-250002

मोब-9410093943, 8477996428

E-MAIL-kkrastogi73@gmail.com

बुधवार, 25 नवंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के चंदौसी ( जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार डॉ मूलचंद्र गौतम का व्यंग्य -----अथ श्री गमछा माहात्म्य

 


वेद की करतल भिक्षा तरुतल वास की करपात्री संस्कृति से ही गमछा सम्पूर्ण सृष्टि का आधार है ।शंकर जी का बाघम्बर और ऋषि मुनियों की मृगछाला गमछे के ही आदि रूप हैं।या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर कौ तजि डारौं की कामरिया गमछे का ही विराट रूप है ।
इसी तर्ज पर कलिकाल में गिरिधर कविराय की सलाह पर   गमछे के साथ लाठी भी जुड़ गयी।गांधीजी ने भी इसी के चलते लाठी को अपने व्यक्तित्व का अनिवार्य अंग बना लिया था ।बाद में बंजी वालों ने इसमें झोला और जोड़ दिया ,  लेकिन फिर भी गमछा भारतीय ग्राम जीवन का अपने आप में आत्मनिर्भर तत्व है जिसे कहीं कहीं अँगोछा भी कहा जाता है ,तौलिया उर्फ टॉवल इसी का शहरी आभिजात्य रूप है बाजरे की कलगी की तरह ।
प्रधानमंत्री ने कोरोना काल में पूरे विश्व में भइयों की स्थायी पहचान बन चुके  गमछे को सुरक्षा कवच की तरह धारण करके इसके सेंसेक्स को आसमान की ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया है ।अब पूरा विश्व समुदाय वायरस के खिलाफ इसे मास्क से बेहतर और सस्ता सुरक्षित उपाय मान चुका है ।बड़ी बड़ी मल्टीनेशनल कम्पनियों ने इसके उत्पादन और निर्यात के प्रबंध कर लिये हैं।लोकल ने ग्लोबल को मैदान में पछाड़ दिया है।
जिन्हें पुराने जमाने की बगीचियों की सांयकालीन दिनचर्या की थोड़ी भी याद बाकी है उन्हें मालूम है कि पहलवान और भंगड़ी वहाँ नियमित रूप से मिलते थे ।लंगोट से मुक्त होकर लाल और हरे गमछे लपेटकर नित्य नैमित्तिक क्रियाओं के बाद बादाम ,किशमिश मिली भंग छनती थी और बतरस की फुहारें उड़ती थीं ।पहलवान टाइप लोग अखाड़े में जोर आजमाइश करते थे ।रात होते ही बगीची भूत प्रेतों के हवाले हो जाती थी ।
गमछा मालिक की बेफिक्री और मस्ती का प्रतीक चिन्ह होता था ।भगवा सरकार के दौरान भगवे गमछों का उत्पादन बढ़ गया है ।इसे देखते ही पुलिस और अफसरों की सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती है ।काँवड़ के दिनों में इसका शबाब चरम पर होता है ।गमछा सड़कों पर साक्षात ताण्डव प्रस्तुत करता है ।भले लोग रास्ते खाली कर देते हैं।कांवड़ियों में जब से बहनों ने भाग लेना शुरू किया है तब से भगवा गमछा और अधिक आक्रामक हो गया है ।जय श्रीराम और बम भोले के उद्घोष से इसकी शक्ति सहस्र गुनी हो जाती है ।
मॉडर्निटी के चक्कर में अब लाल ,हरे गमछे पिछड़ेपन में शुमार हैं।डिजायनर गमछों की बहार है ।अब गाँव तक में पाँच गजी धोती पहनने वाले गिने चुने रह गये हैं ।ढाई गज की अद्धी पहनने वाले मजदूर भी दिखाई नहीं देते ।अमेरिका के मजदूरों ने जीन्स का जो प्रचार किया है उससे भारतीय मजदूर भी प्रभावित हुआ है ।यही वजह है कि साबुत जीन्स के मुकाबले फ़टी हुई जीन्स ज्यादा कीमती है ।अमीरी का पैमाना अब फ़टी हुई चिन्दियों से भरी जीन्स है । गिरिमिटिया विश्व में जहां जहां गये हैं वहां गमछे में बंधा सत्तू ,भूजा ,नमक ,गुड़ और मिर्च उनकी विश्वविजय की पताका की तरह लहराते हैं।कोरोना काल ने इनके इस स्वाभिमान और परिश्रम को ध्वस्त कर दिया है ।बेचारे जान हथेली पर रखकर घर की ओर प्लेग के चूहों की तरह भाग रहे हैं और हर ऐरे गैरे द्वारा दुरदुराये जा रहे हैं।रेणु के हीरामन गाड़ीवान की तरह उन्होंने कभी वापस न लौटने की  तीसरी कसम पता नहीं ली है कि नहीं ?लेकिन प्यारे गमछे ने यहाँ भी उनका साथ नहीं छोड़ा है ।
हो सकता है अगले चुनाव तक गमछा किसी पार्टी का चुनाव चिन्ह और झंडा ही बन जाय ।

✍️ डॉ मूलचंद्र गौतम
शक्तिनगर, चंदौसी (जनपद सम्भल ) -244412
उत्तर प्रदेश,भारत 
मोबाइल फोन नम्बर 9412322067


मुरादाबाद के रंगमंच को सर्वाधिक कलाकार दिए स्मृतिशेष बलवीर पाठक ने


::::जयंती 25 नवंंबर पर विशेष ::::: 
              मुरादाबाद नगर की सांस्कृतिक एवं रंगमंच की परंपरा में सर्वाधिक योगदान यहां जन्मे  बलबीर पाठक का रहा ,जिन्होंने न केवल नाटकों एवं एकांकियों का निर्देशन किया बल्कि शताधिक एकांकियों की रचना कर एकांकी साहित्य को समृद्ध भी किया। दिल्ली के परेड ग्राउंड मैदान पर वर्ष 1966 से निरंतर रामलीला मंचन को परिष्कृत व परिमार्जित रूप देकर रामायण दर्शन में परिवर्तित कर मुरादाबाद शैली के नाम से विख्यात किया। यही नहीं मुरादाबाद के रंगमंच को सर्वाधिक कलाकार देने का श्रेय भी श्री बलवीर पाठक को जाता है । नगर की प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देने के लिए आपने रंग शिविरों और आदर्श कला माध्यम से संगीत एवं नृत्य प्रतियोगिताओं के आयोजन भी किए थे।

 

श्री पाठक का जन्म नगर के ही मोहल्ला गंज में 25 नवंबर 1929 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। आपके पिता स्वर्गीय कुंवर जीत पाठक रेलवे विभाग में कार्यरत थे । उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय पारकर इंटर कॉलेज में हुई जहां से उन्होंने वर्ष 1946 में हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की ।हिंदू इंटर कॉलेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा 1948 में उत्तीर्ण की  । 1949 में रेलवे विभाग में माल बाबू के पद पर नजीबाबाद के निकट  एक स्टेशन पर उनकी नियुक्ति  हो गई जिसके कारण उनके शिक्षा अध्ययन में कुछ वर्षों के लिए व्यवधान पड़ गया।           
इसी बीच वर्ष 1951 में उनका विवाह हो गया। पत्नी का नाम उर्मिला पाठक था। बाद में वर्ष 1969 में स्नातक की परीक्षा डीएसएम कॉलेज कांठ से उत्तीर्ण की।  स्थानीय केजीके महाविद्यालय से वर्ष 1971 में स्नातकोत्तर की परीक्षा समाजशास्त्र विषय से उत्तीर्ण की। 


उन्हें रंगमंच के क्षेत्र में उतारने का श्रेय श्री राम सिंह चित्रकार को जाता है जब श्री पाठक कक्षा 9 में पढ़ते थे उस समय उनके मोहल्ले में एक विजयलक्ष्मी ड्रामेटिक क्लब था जिसके तत्वावधान में कुछ शौकिया कलाकार मुकटा प्रसाद की धर्मशाला में नाटक खेला करते थे उन्हें देखते देखते उनके मन में भी संगीत व नाटक के प्रति अभिरुचि जागृत हो गई वहीं श्री राम सिंह चित्रकार से उनकी भेंट हुई जिन के निर्देशन में मंचित नाटक सती वैश्या में उन्होंने सन् 1945 में पहली बार एक वेश्या का अभिनय कर अपने रंगमंचीय जीवन की शुरुआत की। इसी शुरुआत को निरंतर गति देने का श्रेय श्री कामेश्वर सिंह जी को जाता है। महिला कलाकारों को नगर के रंगमंच से जुड़ने का श्रेय श्री पाठक जी को जाता है प्रथम महिला कलाकार के रूप में उनकी धर्मपत्नी श्रीमती उर्मिला देवी ने इंटरव्यू नाटक में भाग लेकर मंच पर महिला कलाकारों के आने का मार्ग प्रशस्त किया था। 
श्री पाठक वर्ष 1949 में जब इंटरमीडिएट में अध्ययन कर रहे थे तब उन्हें पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों के निर्देशन का सौभाग्य प्राप्त हुआ इसके बाद प्रतिवर्ष होने वाले श्री कृष्ण जन्माष्टमी समारोह का निर्देशन वह करते रहे वर्ष 1956 में उत्तर रेलवे वाद्यव्रन्द मंडली में चुन लिया गया और उसमें लगभग 10 साल तक जलतरंग बजाकर श्रोताओं को  सम्मोहित करते रहे निर्देशक के रूप में उन्होंने भारत भवन भोपाल में आयोजित ग्रीष्मकालीन नाट्य समारोह में 13 जून 1990 को पारसी रंगमंच  शैली में वीर अभिमन्यु नाटक का मंचन किया। 17 मार्च 1975 को लखनऊ के रवींद्रालय प्रेक्षागृह में संगीत नाटक अकादमी की ओर से आयोजित नाटक प्रतियोगिता में आपके निर्देशन में जियो और जीने दो एकांकी का मंचन किया गया। यही नहीं वर्ष 1979 में परेड मैदान दिल्ली वर्ष 1987 में श्री राम कला केंद्र दिल्ली 26 फरवरी90 को राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के प्रेक्षागृह  में भी आपको विभिन्न नाटकों का मंचन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसके अलावा हरिद्वार देहरादून रुड़की चन्दौसी अमरोहा बरेली रामनगर और शाहजहांपुर आदि अनेक नगरों में उन्होंने अनेक नाटकों व एकांकियों का मंचन किया। आपके द्वारा निर्देशित नाटक ख्वाबे शाहजहां लायंस क्लब मुरादाबाद द्वारा, सुनहरी किरण उत्तर रेलवे द्वारा, हिमालय की गुफा में लेडीज क्लब द्वारा तथा भारत महान श्री धार्मिक लीला कमेटी परेड ग्राउंड दिल्ली द्वारा पुरस्कृत किया जाना उल्लेखनीय है।

वर्ष 1948 के आसपास उन्होंने विद्यालयों के लिए एकांकियों व नाटकों का लेखन शुरू किया। आपका एक एकांकी संग्रह कर्फ्यू सख्त कर्फ्यू  भी वर्ष 1987 में प्रकाशित हो चुका है जिसमें राष्ट्रीय एकता एवं सद्भावना पर आधारित चार एकांकी संग्रहित हैं । आपके द्वारा लिखित एकांकी कर्फ्यू सख्त कर्फ्यू को आकाशवाणी रामपुर की नाट्य लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त हो चुका है  ।

 वर्ष 1965 में उन्हें दिल्ली के परेड ग्राउंड में रामलीला मंचन करने का अवसर मिला लेकिन भारत पाक युद्ध होने के कारण उस साल वह मंचित ना हो सकी बाद में वर्ष 1966 से निरंतर उन्हीं के निर्देशन में नगर के कलाकारों ने परेड मैदान में रामलीला का मंचन किया। नगर में छिपी हुई प्रतिभाओं को उजागर करने के उद्देश्य से वर्ष 1962 में उन्होंने आदर्श कला संगम की स्थापना की । श्री पाठक आकाशवाणी रामपुर की कार्यक्रम सलाहकार समिति के सदस्य  भी रहे । उनका निधन 11 जुलाई 2017 में हुआ था ।


✍️ डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश,भारत

मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मंगलवार, 24 नवंबर 2020

वाट्सएप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। मंगलवार 20 अक्टूबर 2020 को आयोजित बाल साहित्य गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों अशोक विद्रोही, प्रीति चौधरी, डॉ पुनीत कुमार, रामकिशोर वर्मा, विवेक आहूजा, कमाल जैदी वफा, मीनाक्षी ठाकुर, राजीव प्रखर, धर्मेंद्र सिंह राजोरा, डॉ शोभना कौशिक, दीपक गोस्वामी चिराग, श्री कृष्ण शुक्ल और शिव अवतार रस्तोगी सरस की बाल रचनाएं------


देखो एक मदारी आया ,

बंदर और बंदरिया लाया ।
   तरह तरह के खेल दिखाता ,
   गाता और डुगडुगी बजाता।।
   बजी डुगडुगी आए बच्चे ,
   लोग यहां के सीधे सच्चे।
सबने मिलकर शोर मचाया ।
देखो एक मदारी आया।।
   रामू, हैदर, डेविड आओ!
   मीरा सलमा को बुलवाओ!
   लगी भीड़ सब ताक रहे हैं,
   कुछ ऊपर से झांक रहे है।
सबका दिल इसने भरमाया।
देखो एक मदारी आया।।
     बंदर को कहते हैं गोपी,
     पहनी पैंट शर्ट और टोपी।
     घघरी चोली पहन बंदरिया,
     सजी हुई है बनी दुल्हनिया।
रूप निराला सब को भाया,
देखो एक मदारी आया।।
     ससुरे के संग मैं न जाऊं,
     जेठा संग हरगिज़ न आऊं।
     सास ननद से भी न मानूं,
     गोपी संग दौड़ी चली आऊं।।
आखिर गोपी को बुलवाया।
देखो एक मदारी आया।।
     ठुमक ठुमक कर नाच रही है.
     आयी चिट्ठी बांच रही है।
     रह रह देखे फिर फिर दर्पन
     छूट रहा बाबुल का आंगन।
विदा कराने गोपी आया।
देखो एक मदारी आया।।
      मंत्र मुग्ध सबको कर देता,
      ज़्यों चुनाव में करते नेता।
      भीड़ इकट्ठी कर लेता है,
      सबको बस में कर लेता है।
खेल गज़ब सबको दिखलाया। 
देखो एक मदारी आया।।
        
✍️अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर ,
मुरादाबाद, मोबाइल फोन 82 188 25 541
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  पापा गुडिया आपको  , करे बहुत ही  याद ।
  जग सूना लगता मुझे , एक आपके  बाद।।
  एक आपके बाद,  हुई मैं आज अकेली ।
  उलझाती हैं रोज़, ज़िंदगी हुई पहेली।
  सबल वृक्ष की छाँव, गया कब उसको मापा ।
  वह मजबूती-साथ ,कहाँ से लाऊँ, पापा !!

✍️ प्रीति चौधरी, गजरौला,अमरोहा
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सर्दी में भी लाए पसीना
मुश्किल कर देता है जीना
गर्मी में कंपकपी छुटाता
सबका इसने चैन है छीना

इम्तिहान का ये मौसम है
कोई ना इसका निश्चित क्रम है
जब मर्जी हो,तब आ जाता
करता सबकी नाक में दम है

जो बच्चे प्रतिदिन पढ़ते हैं
नियमित खेला भी करते हैं
उनको फर्क ना पड़ता कोई
वे इम्तिहान से नहीं डरते हैं

✍️ डॉ पुनीत कुमार
टी 2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
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मम्मी-दादी पूजा करतीं
नित्य मात से अर्चन करतीं ।
'राम' दिया है तुमने माता
देना उसको भी इक भ्राता ।
काज संँवारे तुमने देवी
लाज हाथ फिर तेरे देवी ।
नवरात्री के व्रत जब आये ‌
मम्मी से उपवास रखाये ।
अष्टमी को कन्या जिमायीं
बेटा हो इच्छा बतलायीं ‌।
'राम' नित्य सब देख रहा था
मन-ही-मन वह सोच रहा था ।
मांँ मुझको इक बहिना देना
राखी का सुख मुझको लेना ।
मम्मी के मन में भी आता
बेटी से चलता जग नाता ।
देवी ने मन की सुन लीनी
नवमी को लक्ष्मी इक दीनी ।
राम की मम्मी खुश अधिक थी
पापा को चिन्ता न तनिक थी ।
दादी बोलीं -- देवी इच्छा
मानव की वह लेंय परीक्षा ।
देवी ही मेरे घर आयीं
सही मार्ग लगता दिखलायीं ।
जब जग में कन्या कम होगी
जीवन में अधिक व्याधि होगी ।
लड़का-लड़की सभी जरूरी
इच्छाऐं होंगी तब पूरी ।
जय माता की सारे बोलो
राम नाम लो; कभी न डोलो ।
 
✍️राम किशोर वर्मा, रामपुर
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बचपन के दिन याद है मुझको ,
याद नहीं अब , कुछ भी तुझको ।
तेरा मेरा वो स्कूल को जाना ,
इंटरवल में टिक्की खाना ,
भूल गया है ,सब कुछ तुझको ।
कैसे तुझको याद दिलाऊ ,
स्कूल में जाकर तुझे दिखाऊ ,
याद आ जाए ,शायद तुझको ।
                  
भूला नहीं हूं सब याद है मुझको ,
मैं तो यूं ही ,परख रहा तुझको ।
तेरा मेरा  वो याराना ,
स्कूल को जाना पतंग उड़ाना ,
कैसे भूल सकता हूं , मैं तुझको ।
याद है तेरी सारी यादें ,
बचपन के वो कसमें वादे ,
आज मुझे कुछ , बताना है तुझको ।
"तू सबसे प्यारा है मुझको"

✍️विवेक आहूजा , बिलारी , जिला मुरादाबाद
मो 9410416986
Vivekahuja288@gmail.com
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बच्चो ने अखबार निकाला,
सबको हैरत में कर डाला।
अच्छी अच्छी खबरें छापी,
नहीं बनाया किसी को पापी।
मार धाड़ की खबर न छापी,
झूठी बातें नही अलापी।
गीत कहानी और पहेली,
दोस्त बना और बना सहेली।
अच्छी बातें सबकी मानी,
नही करी बिल्कुल मनमानी।
दूर दूर तक नाम हुआ,
सबके हित का काम हुआ।
बच्चो की आवाज़ उठाई,
कब तक घर पर करें पढ़ाई।
शासन तक बातें पहुँचायी,                                      तभी तो शाला भी खुल पाई।
बच्चो का अखबार है प्यारा,
सारे अखबारों से न्यारा।

✍️कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'                                          प्रधानाचार्य,अम्बेडकर हाई स्कूल
बरखेड़ा (मुरादाबाद)
सिरसी (सम्भल)9456031926
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एक बड़ा प्यारा सा बेटा
दो दिन से बिस्तर पर लेटा।

तीन तरह की दवा खिलाई,
लेकिन बात समझ न आयी ।

चार  डाक्टर बात बतायें
कुरकुरे चिप्स न इसे खिलायें

पंचो सुनो लगाकर कान
प्लास्टिक इनमें,कर लो ध्यान।

छह- छह इंजेक्शन लगवाये,
देख कलेजा मुँह को आये।

सात जन्म तक याद रहेगा,
क्रेक्स खाना भारी पड़ेगा।

आठवें दिन कुछ तबियत सँभली
कभी न आवे दुख की बदली।

नौवैं दिन कुछ मन हर्षाया,
बीमारी पर काबू पाया।

दसवें दिन फिर मना दशहरा
अब न खाना चिप्स कुरकरा ।।

✍️मीनाक्षी ठाकुर, मुरादाबाद
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मम्मी-पापा झगड़ा छोड़ो,
अपना प्यारा सा संसार।

सुबह निकल जाते हो दोनों,
घर की खातिर दिन भर खपने।
साथ आपके जुड़े हुए हैं,
हम बच्चों के भी कुछ सपने।
आपस में यों चुप्पी रखना,
सुन लो बिल्कुल है बेकार।
मम्मी-पापा झगड़ा छोड़ो,
अपना प्यारा सा संसार।

दुनिया कहती हम हैं छोटे,
भला बड़ों को क्या समझायें।
उनके आपस के झगड़े में,
नहीं कभी भी टांग अड़ायें।
सुनो हमारी हम भी तो हैं,
इस नैया की ही पतवार।
मम्मी-पापा झगड़ा छोड़ो,
अपना प्यारा सा संसार।

करो आज यह वादा हमसे,
आगे से अब नहीं लड़ोगे।
और हमारे आहत मन की,
भाषा को भी सदा पढ़ोगे।
घर मुस्काये यही हमारे,
जन्म-दिवस का है उपहार।
मम्मी पापा झगड़ा छोड़ो,
अपना प्यारा सा संसार।

✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद
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बंदर राजा लगा के छतरी☔
आज अपनी ससुराल चले
होगी कैसी रानी बंदरिया
करके यही खयाल चले
जैसे सोहनी हो बंदरिया
बनकर वो महिवाल चले
सूट बूट डाले थे फिर भी
जेब से वो तंगहाल चले
आयेगी या ना 👰दुल्हनिया
मन में लिए सवाल चले

✍️धर्मेंद्र सिंह राजौरा बहजोई
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बंदर वाला आया ।
बच्चों के मन भाया ।
दौड़े दौड़े बच्चे आये ।
साथ में केला चना भी लाये।
खाया और खिलाया खूब।
बंदर भी मन भाया खूब।
खौं -खौं -खौं-खौं करता जाये।
बच्चों का डर घटता जाये।
तक-धिन -तक धिन नाच दिखाये।
कभी घुँघट में छिप जाये।
इधर मटक कभी उधर मटक।
बच्चे भी करते नकल।
खुशियों से दामन भर भर के।
लौट गये बच्चे हँसते-हँसते।

✍️ डॉ शोभना कौशिक, मुरादाबाद
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सुबह-सुबह आता अखबार ।
हर मन को भाता अखबार।

दादा जी का यही नाश्ता,
खबरों का दाता अखबार।

पढ़कर भी बेकार नहीं है,
काम बहुत आता अखबार।

जग का ज्ञान हमें यह देता,
बहुत बड़ा ज्ञाता अखबार।

मुझको ऐसा शहर बता दो,
जहाँ नहीं आता अखबार।

कभी नहीं छुट्टी यह लेता,
सातों दिन आता अखबार।

हत्या-लूट और रेप-डकैती,
अब बस दिखलाता अखबार।

✍️ दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिव बाबा सदन, कृष्णाकुंज, बहजोई
पिन-244410(संभल), उत्तर प्रदेश
मो. 9548812618
ईमेल- deepakchirag.goswami@gmail.com
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बच्चों जरा बताओ तो ये, बिजली कैसे बनती है।
छोटू बोला सर जी, ये तो आसमान में बनती है।
जब जब बारिश होती है बादल खूब गरजते हैं।
तब तब घोर गर्जना से बिजली बहुत तड़कती है।
बात तुम्हारी भी सच है, टीचर जी ने समझाया ।
किंतु आसमानी बिजली अपने काम न आती है ।।
पंखा नहीं चलाती है, लाइट नहीं जलाती है।
ये बिजली तो मानव को स्वयं बनानी पड़ती है।
बाँध बनाकर बड़े बड़े, पानी की ही ताकत से,
जब टर्बाइन घुमाते हैं, तब बिजली बन जाती है।
कभी कोयला जला जला, तापमान से बनती है
यही ऊर्जा अणु से पाकर, भी बिजली बन जाती है।
पवन शक्ति से बनती है तो सूरज से भी बनती है।
और हमारे घर के कचरे से भी बिजली बनती है।
छोटू बोला , बात समझ में सोलह आने आई।
शायद इसीलिए ये बिजली मुफ्त नहीं मिलती है।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG 69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद ।
मोबाइल नंबर 9456641400
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मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ सरोजिनी अग्रवाल की कृति 'छायावाद का गीतिकाव्य' की दुष्यन्त बाबा द्वारा की गई समीक्षा

डॉ. सरोजिनी अग्रवाल द्वारा अपने आदरणीय बाबूजी श्री कांति मोहन अग्रवाल को समर्पित पुस्तक 'छायावाद का गीति-काव्य' पुस्तक छायावाद काल में  रचित गीति-काव्यों का समीक्षात्मक संग्रह के रूप में उनके शोध प्रबंध का एक संक्षिप्त व संशोधित रूप है आप इसकी भूमिका में लिखती है कि भारतीय काव्य-शास्त्र में गीति-काव्य शब्द का उल्लेख कहीं नहीं मिलता है। वहाँ मुक्तक काव्य के दो भेद किए गए हैं- पाठ्य मुक्तक व गेय मुक्तक।  इसी गेय मुक्तक को गीत की संज्ञा मिली। पाश्चात्य साहित्य में उन गीतात्मक लघु।कविताओं को जिनमें कवि ने अपने व्यक्तिगत जीवन के सुख-दुखात्मक अनुभवों को प्रत्यक्ष रूप 'मैं', 'मेरी' शैली में अभिव्यक्त किया वे लिरिकल पोएट्री कहलाईं। इसी लिरिकल पोइट्री का हिंदी अनुवाद गीति-काव्य है।

        संयोग से जिस समय पश्चिम में शैली, किड्स, वायरन, वर्ड्सवर्थ आदि रोमांटिक काव्य धारा के कवि 'लिरिक' लिख रहे थे उसी समय हमारे यहां भी 'छायावाद' नाम से एक नया युग प्रारंभ हो चुका था और श्री जयशंकर 'प्रसाद' श्री सुमित्रानंदन पंत श्री सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' और श्रीमती महादेवी वर्मा की कविताओं में यही आत्मकपरक स्वर प्रधान था। प्रारंभ में आचार्य रामचंद्र शुक्ल आदि परंपरावादी समालोचकों ने इस बढ़ती हुई व्यक्तिवादी प्रवृत्ति का प्रबल विरोध किया और अपने तीखे व्यंग्य बाणों के प्रहार से इसे धराशाई करने का हर प्रयत्न किया पर इस कवि चतुष्टय की अद्भुत सृजन प्रतिभा का संयोग पाकर यह गीत विधा निरंतर अपने उत्कर्ष की ओर बढ़ती गई और कुछ ही वर्षों में यह प्रबंध और मुक्तक की तरह एक स्वतंत्र काव्य विधा के रूप में सर्वमान्य हो गई। जिस प्रकार महाकवि सूरदास के 'सूरसागर' के पदों के आधार पर 'वात्सल्य रस' को दसवें रस के रूप में प्रतिष्ठा मिली ठीक इसी प्रकार इन चारों कवियों की गीति-सृष्टि ने इस विधा को प्रतिष्ठित किया।

        इस पुस्तक को आपके द्वारा 7 अध्यायों में विभाजित किया गया है। प्रथम अध्याय गीति काव्य परिभाषा एवं तत्व।(पृष्ठ सं.01-29) 

2-गीतिकाव्य का वर्गीकरण (पृष्ठ सं.30-60)

3-छायावाद से पूर्व गीति-काव्य का स्वरूप(पृष्ठ सं.61-90)

 4- छायावादी काव्य में गीति भावना के विकास के           कारण(पृष्ठ सं.91-99)

 5-छायावाद के गीतिकाव्य(पृष्ठ सं.100-159)

 6-उत्तर छायावादी गीतिकाव्य(पृष्ठ सं.160-171)

 7- गीतिकाव्य की भावी संभावनाएं(पृष्ठ सं.172-178 तक)

 उपर्युक्त सात अध्यायों के माध्यम से लेखिका ने छायावाद के सभी गीति-काव्यों की समीक्षा की है। यदि छायावाद को भलीभांति समझना है तो इस पुस्तक का अध्ययन करना उपयोगी होगा। क्योंकि प्रसाद के नाटकों के गीत व महादेवी वर्मा की रहस्य भावना से ओत-प्रोत गीतों के साथ ही पन्त का गीतों के द्वारा किये गए प्रकृति चित्रण की शानदार समीक्षा की गयी है। 



 कृति : छायावाद का गीति-काव्य

लेखिका : डॉ सरोजिनी अग्रवाल

प्रकाशक : देशभारती प्रकाशन, सी-595, गली नं. 7, नियर वजीराबाद रोड़, दिल्ली-110093, भारत

 प्रथम संस्करण : 2017 ई ,मूल्य : 500₹

समीक्षक : दुष्यंत 'बाबा', पुलिस लाइन, मुरादाबाद। मो.-9758000057


सोमवार, 23 नवंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता ----- भीख


हमारे देश का

हर दूसरा व्यक्ति

हाथ में कटोरा लिए खड़ा है

किसी का कटोरा छोटा

किसी का बड़ा है

किसी का कटोरा मिट्टी

किसी का लोहे का है

किसी के पास चांदी

किसी के पास सोने का है

सबका अपना अलग कटोरा है

किसी किसी के पास

पूरा बोरा है

कटोरो का आकार और प्रकार

तय करता है

भीख की मात्रा का आधार

कुछ लोग होते है अत्यधिक गरीब

उनको कटोरा तक,नहीं हो पाता नसीब

वो भीख मांगने के लिए

अपने दोनों हाथ फैलाते हैं

उनमें जितना आता है

उससे ही काम चलाते हैं

कुछ फुटपाथ पर 

बैठ कर भीख मांगते हैं

कुछ वातानुकूलित ऑफिस में

ऐंठ कर भीख मांगते हैं 

भीख से हमारे देश का

बहुत पुराना नाता है

आधुनिक युग में भीख को

अलग अलग नामों से जाना जाता है


शादी के समय

लड़के का परिवार

लड़की के परिवार से

जो कुछ भी मांगता है

इस भीख पर समाज

दहेज़ का लेबल टांगता है

सरकारी विभागों में

सब काम विधिवत किया जाता है

अलग अलग कार्यों के लिए

अलग अलग धन लिया जाता है

इस भीख को रिश्वत कहा जाता है

इन विभागों में

एक और तरह की भीख चलती है

ये बॉस को अपने अधीनस्थों से

पारिवारिक आयोजनों में

उपहार के रूप में मिलती है

कुछ प्रशासनिक अधिकारी

बेटियो को लकी मानते है

किसी वजनदार जगह

नियुक्ति मिलते ही

उनकी शादी कर डालते है

बेटी को आशीर्वाद के नाम पर

ठेकेदारों और दलालों से

इतनी भीख मिल जाती है

बाकी बेटियो की शादी

निपटाने के बाद भी बच जाती है

नेता भी चुनाव के समय 

पब्लिक से भीख मांगते रहते हैं

इस राजनीतिक भीख को,

वोट कहते हैं

आजकल इस लिस्ट में

एक नई भीख का नाम जुड़ा है

जिस पर फाइव स्टार भीख का

लेबल लगा है

इसमें बैंकों से

मोटा कर्ज लिया जाता है

और उसको

वापस नहीं किया जाता है

विकास की कहानी

इस भीख के बिना अधूरी है

लेकिन इसे पाने के लिए

बडे़ राजनेताओं से

घनिष्ठता जरूरी है


भीख के लेन देन ने

पूरी रामायण रच डाली है

उन सबको कभी ना कभी

भीख मांगनी पड़ती है

जिनकी निगाह में

किसी दूसरे की थाली है

भीख मांगना हमारा

जन्मसिद्ध अधिकार है

भीख मांगने की प्रवृत्ति

ईश्वर का हम पर

बहुत बड़ा उपकार है

मैं भी आपसे अलग नहीं हूं

मुझे आपसे,ना कोई सलाह

ना कोई सीख चाहिए

केवल प्रशंसा की

थोड़ी सी भीख चाहिए।


✍️ डॉ पुनीत कुमार

टी 2/505 आकाश रेजीडेंसी, मधुबनी पार्क के पीछे, मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद की साहित्यकार मोनिका शर्मा मासूम की ग़ज़ल ----तुमको पाने की तमन्ना उम्र भर करते रहे कुछ ज़ियादह ही यकीं तक़दीर पर करते रहे

 


तुमको पाने की तमन्ना उम्र भर करते रहे

कुछ ज़ियादह ही यकीं तक़दीर पर करते रहे


चांद की "मासूम" नज़रें थीं दरो-दीवार पर

और तारे रक़्स शब भर बाम पर करते रहे


तुम उधर मशगूल अपनी बज़्म की रानाई में

गुफ्तगू तन्हाइयों से हम इधर करते रहे


हँस दिए खुद पर कभी, क़िस्मत पे अपनी रो दिए

ग़म ग़लत करने को अपना  कुछ मगर करते रहे


वो समझ पाए नहीं इन धड़कनों की बंदिशें

दिल की दुनिया हम यूं ही ज़ेरो ज़बर  करते रहे

✍️ मोनिका मासूम, मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक की ग़ज़ल --------लगें हैं ढेर हरिक सिम्त नंगी लाशों के, लहू ग़रीब का सस्ता है क्या किया जाए

वो  मक्रो-झूठ  का  शैदा  है  क्या  किया जाए,

 हमारा  सत्य   से  रिश्ता  है  क्या  किया  जाए।


 यकीं   है    मंज़िले - मक़सूद   पाँव   छू    लेती,

 कड़े  सफ़र  से  वो  डरता  है  क्या किया जाए।


 जो गुलसिताँ  की हिफ़ाज़त की बात करता है,

  उसी  का आग  से  रिश्ता  है क्या किया जाए।


 यकीं  है   ईद  का  होली  से   मेल  हो   जाता,

दिलों  में  ख़ौफ़-सा बैठा  है क्या किया जाए।


सदैव  रहता  है  जो  शख़्स  मेरी  ऑंखों   में,

वो  मेरे  नाम  से जलता है  क्या किया जाए।


लगें   हैं  ढेर  हरिक   सिम्त   नंगी  लाशों  के,

लहू  ग़रीब  का  सस्ता  है  क्या  किया जाए ।

✍️ ओंकार सिंह विवेक, रामपुर 

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार अशोक मधुप की रचना ---- ------मुझको न दिल्ली भाती है ना दिल्ली दरबार सखे! मुझको बस अच्छा लगता है, अपना घर और द्वार सखे!


मुझको न दिल्ली भाती है

ना दिल्ली दरबार सखे!

मुझको बस अच्छा लगता है,

अपना घर और द्वार सखे!

ये नगरी पैसे वालों की,

नगरी यह धनवानों की,

मुझको भाते बस बिजनौरी,

बिजनौरी हैं यार सखे!

चाहे कितनी घूमूॅ दुनिया,

चाहे कितना सफर करूँ।

मन रमता बिजनौर में आकर,

ये बिजनौरी प्यार सखे !

कहीं जाकर न मन मिलता है,

 ना ही मिलता है अपनापन ।

 बिजनौर ही है दुनिया अपनी ,

ये ही बस स्वीकार सखे !

जंगल से ये शहर लगे हैं,

बियाबान सी कालोनी ।

सब अपने में मस्त यहाँ है,

इनका पैसा प्यार  सखे।

यहां सड़क पर भी पहरा है,

गली -गली  फैला कोरोना।

साॅस यहां लेना दुष्कर है,

 है विषभरी  बयार सखे !

यहां दौड़ ही दौड़ मची है,

यहां दौड़ ही जीवन है,

तुमको ही ये रहे मुबारक,

 बेमुरव्वत  संसार सखे।

मेरे शहर में प्यार मिलेगा,

और  मिलेंगे दिलवाले,

तुम  तो राजा हो ,भूलोगे,

भूलोगे ये प्यार सखे,

पूरा शहर लगे है अपना,

 यहीं हुए सब पूरे सपना ।

यही बसे हैं मीत हमारे,

यहीं बसे हैं यार सखे।


✍️ अशोक मधुप

25- अचारजान

कुंवर बाल गोविंद स्ट्रीट, बिजनौर 246701

मोबाइल फोन नम्बर - 9412215678, 9675899803


मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में दिल्ली निवासी ) आमोद कुमार अग्रवाल का गीत ------------ ये प्यार तुम्हेंं दे सकता हूँ


जीवन के चौराहों पर आ मिलने वाली,

हर साँस -साँस की राहों से,

मृत्यु की सीमाओं पर फैली हर डाली की

 फाँस -फाँस की आहों से,

विशवास दिला दो किंचित भी तो,

जीवन के मंजुल सपनो का

बलिदान तुम्हेंं दे सकता हूँ,

ये प्यार तुम्हेंं दे सकता हूँ।


आशाओं के दीपों पर आ घिरने वाली,

रजनी की निश्छल बाहों का,

शत -शत जन्मों तक भी न मिलने वाली

अव्यक्त अधूरी चाहों का,

व्यवधान हटा दो इतना सा भी तो,

चिड़ियों के चंचल गीतों का,

मृदु गान तुम्हेंं दे सकता हूँ,

ये प्यार तुम्हेंं दे सकता हूँ।


भँवरों के गुंजन से ही क्यों

खिल उठती मुरझाए फूलों की लाली,

प्रियतम के वन्दन चिन्तन से ही क्यों

प्रिया हो जाती मतवाली, 

यह रहस्य बता दो मुझको तुम तो,

सान्ध्य गगन पर फैली अरुणा का

परिधान तुम्हेंं दे सकता हूँ,

ये प्यार तुम्हेंं दे सकता हूँ।

✍️ आमोद कुमार अग्रवाल

सी -520, सरस्वती विहार
पीतमपुरा, दिल्ली -34
मोबाइल फोन नंबर  9868210248

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक की रचना ----व्यथा


मैं वो अनसुलझी कहानी ।

मुझे कोई समझ न पाया ।

जीवन के हर मोड़ पे ,

मुझे कोई मिल न पाया।

       अकेली आई ,अकेली चल दी इन 

       राहों पर ।

        जिन राहों पर कोई और चल न  

        पाया।

मंजिल दूर-दूर होकर मुझसे चली ।

न जाने क्यों कहाँ कैसे मुझसे यूँ चली।

चाहा बहुत कुछ था ,जीवन में।

फिर भी कुछ मिल न पाया ।

          मैं वो अनसुलझी कहानी ।

           मुझे कोई समझ न पाया ।

           जीवन के हर मोड़ पे ।

           मुझे कोई मिल न पाया ।

थी ,एक आस सी मन में मेरे।

छू लू ये आसमान धरती तले ।

शायद वो आस मेरी आस 

बन के मन में रही ।

मेरी उस आस को कोई किनारा

मिल न पाया ।

मैं वो अनसुलझी कहानी ।

मुझे कोई समझ न पाया ।

जीवन के हर मोड़ पे ।

मुझे कोई मिल न पाया ।

 ✍️ डॉ शोभना कौशिक, मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में जकार्ता इंडोनेशिया निवासी ) वैशाली रस्तोगी की कविता -----क्या खोया क्या पाया


 

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ कृष्ण कुमार नाज की ग़ज़ल ------बंद कमरे में जो जलता था बड़ी शान के साथ वो दिया सहन में जलते हुए घबराता है


जब कोई अक्स निगाहों में ठहर जाता है

दिल तमन्नाओं को कपड़े नये पहनाता है 


ज़िंदगी होती है जब मौत की आग़ोश में गुम 
पंछी उड़कर कहीं आकाश में खो जाता है 

खाइयाँ लेती हैं बरसात के पानी का मज़ा 
ये हुनर ख़ुश्क पहाड़ों को कहाँ आता है 

बंद कमरे में जो जलता था बड़ी शान के साथ 
वो दिया सहन में जलते हुए घबराता है

आसमाँ आ गया क़दमों में ज़मीं के, वो देख 
तेरी औक़ात ही क्या, किसलिए इतराता है 

कौन दे पाया उसे उसके सवालों के जवाब
इस क़दर बातों ही बातों में वो उलझाता है

✍️ डा. कृष्णकुमार 'नाज़', मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के नजीबाबाद (जनपद बिजनौर ) निवासी साहित्यकार इंद्रदेव भारती का गीत ----गुनगुनी धूप अब मन को भाने लगी


ओ री मन-मोहिनी !

क्यों  सताने  लगी ।

देर से आ,क्यूं जल्दी

तू    जाने     लगी ।।

धूप   सी,  रूपसी !

ये   तेरे   रुप   की ।

गुनगुनी   धूप   अब

मन को भाने लगी ।।

काहे   जाने  लगी  ?

काहे   जाने  लगी  ??


बाहर    शीतल   मेरे ।

भीतर   दहकन   मेरे ।

शीत रुत भी तो अंग-

अंग    जलाये    मेरे ।।

जो भी  होता है,  हो ।

जग  कहे  तो,  कहो ।

मै    तेरा     हो    रहूँ,

तू   मेरी    हो    रहो ।।

बात  जाने  की   कर,

कर न  ये   दिल्लगी ।

गुननगुनी  धूप   अब

मन  को  भाने  लगी ।।

काहे   जाने   लगी ?

काहे   जाने   लगी ??


हाला  से   तू   बनी ।

तुझ से  हाला  बनी ।

सर से  पाँ  तक तुही

मधुशाला.......बनी ।।

मुझको  पीने तो  दे ।

रूह  बहकने तो  दे ।

रूप   के   कुंड   में,

गिर  संभलने तो  दे ।।

अभी  पी  भी  नहीं,

और तू  जाने  लगी ।

गुनगुनी   धूप  अब

मन को  भाने  लगी ।।

काहे   जाने   लगी ?

काहे   जाने   लगी ??


तुझको मै पा तो लूँ ।

होश  में  आ  तो लूँ ।

दिल संभल जाएगा,

तुझको मैं गा तो लूँ ।।

रात    जाने  भी  दे ।

सुबह  आने  भी  दे ।

लिक्खा तुझपे है जो,

गीत   गाने  वो   दे ।।

ये  पिपासा  अजब,

ग़ज़ब    की   जगी ।

गुनगुनी   धूप   अब

मन को  भाने लगी ।।

काहे  जाने  लगी ? 

काहे  जाने  लगी ?

✍️ इन्द्रदेव भारती

 ए / 3 - आदर्श  नगर, नजीबाबाद - 246 763

   ( बिजनौर )  उत्तर  प्रदेश

मोबाइल फोन नम्बर 99 27 40 11 11