माता शाकुम्भरी देवी के सिद्धपीठ स्थल और लकड़ी की नक्काशी के लिए दुनिया भर में मशहूर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शहर सहारनपुर में मरहूम अमीरउद्दीन एवं श्रीमती लतीफन बेगम के आँगन में 8 दिसम्बर, 1943 को जन्में ज़मीरउद्दीन को अदबी दुनिया में उस्ताद शायर ज़मीर ‘दरवेश’ के नाम से जाना जाता है। सरल और सहज दरवेश साहब की शायरी भी बेहद सादगी लेकिन ताज़गी भरी है। उनकी शायरी से होकर गुजरना मतलब ज़िन्दगी की बारीकियों से रूबरू होना और उन्हें महसूस करना है। उनकी ग़ज़ल का शेर देखिए-
'मैं घर का कोई मसअला दफ़्तर नहीं लाता,
अन्दर की उदासी कभी बाहर नहीं लाता,
तन पर वही कपड़ों की कमी, धूप की किल्लत,
मेरे लिए कुछ और दिसम्बर नहीं लाता।'
मण्डल रेल प्रबंधक कार्यालय मुरादाबाद में दूरभाष अधीक्षक के पद से वर्ष 2003 में सेवानिवृत्त हुए दरवेश साहब की शायरी के विभिन्न चित्र मिलते हैं, कभी वह अपनी समसामयिक विसंगतियों को अपनी शायरी का मौज़ू बनाते हैं तो कभी फलसफ़े उनके शे’रों की अहमियत को ऊचाईयों तक ले जाते हैं। उनका एक शे'र देखिए-
'आदमी को इतना ख़ुदमुख़्तार होना चाहिए,
खुलके हँसना चाहिए, जी भरके रोना चाहिए।'
सेवानिवृत्ति उपरान्त पूर्णतः साहित्य सृजन को समर्पित दरवेश जी की ग़ज़लें फ़ारसी की इज़ाफ़त वाली उर्दू के मुकाबले आज की आम बोलचाल की भाषा को तरजीह देती हैं। उनके अश्’आर मन-मस्तिष्क पर अपनी आहट से ऐसी अमिट छाप छोड़ जाते हैं जिनकी अनुगूँज काफी समय तक मन को झकझोरती रहती है। साधारण सी बात भी वह असाधारण रूप में कह देते हैं-
'घर के दरवाज़े हैं छोटे और तेरा क़द बड़ा,
इतना इतराके न चल चौखट में सर लग जायेगा।'
इतिहास विषय में परास्नातक दरवेश साहब ने पिछले लगभग साठ वर्षों से साहित्य सृजन में रत रहकर ख़ूबसूरत ग़ज़लें तो कही ही हैं, बाल साहित्य के क्षेत्र में भी बहुत काम किया है। उनकी अब तक 22 पुस्तकें प्रकाशित होकर चर्चित हो चुकी हैं जिनमें 'अंकुर'(ग़ज़ल संग्रह), 'जो दिल पे गुज़रती है'(ग़ज़ल संग्रह), 'अलअतश'(ग़ज़ल संग्रह), 'हाशिया'(ग़ज़ल संग्रह), ‘क़लम काग़ज़ के बोसे’(नात संग्रह) के साथ-साथ उर्दू में बाल कविताओं के संग्रहों में 'अबलू बबलू की नज़्में', 'खेल-खिलौनों जैसी नज़्में', 'प्यारी-प्यारी नज़्में', 'प्यारे नबी जी', 'तराना ए नौनिहालाने मिल्लत', 'गुंचा नज़्मों का', 'शाही चीलों के जज़ीरे पर', 'आदमज़ात परीलोक में' आदि चर्चित रही हैं तथा उनकी कुछ बाल कविताएँ महाराष्ट्र में पाठ्यक्रम में भी शामिल हैं। उनकी तीन कृतियों की पांडुलिपियाँ प्रकाशनाधीन हैं।
दैनिक जागरण मुरादाबाद की ओर से 2019 में सम्मानित होने के साथ-साथ साहित्यिक संस्था ‘अक्षरा’ से 2013 में समग्र साहित्यिक साधना के लिए ‘देवराज वर्मा उत्कृष्ट साहित्य सृजन सम्मान’ व संस्था 'हरसिंगार' की ओर से 'माहेश्वर तिवारी गज़ल साधक सम्मान' व साहित्यिक संस्था 'हम्दो नात फाउंडेशन' व 'हस्ताक्षर' से सम्मानित होने वाले ज़मीर दरवेश साहब के ग़ज़ल संग्रह 'हाशिया' और नात संग्रह ‘क़लम काग़ज़ के बोसे’ के लिए बिहार उर्दू अकादमी द्वारा दरवेश जी को पुरस्कृत किया जा चुका है। दरवेश जी पर समूचे मुरादाबाद को गर्व है।
✍️ योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
ए.एल.-49, उमा मेडिकल के पीछे,दीनदयाल नगर-।, काँठ रोड, मुरादाबाद , उत्तर प्रदेश, भारत चलभाष- 9412805981