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गुरुवार, 5 सितंबर 2024

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'सवेरा' एवं 'अक्षरा' के तत्वावधान में तीन सितंबर 2024 को वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी के गीत-संग्रह ‘गीतों के भी घर होते हैं' का लोकार्पण समारोह

"शहरों से जो मिली चिट्ठियां, 

गांव-गांव के नाम। 

पढ़ने में बस आंसू आये, 

अक्षर मिटे तमाम।" 

जैसे संवेदनशील गीतों के रचनाकार डॉ मक्खन मुरादाबादी के गीत-संग्रह ‘गीतों के भी घर होते हैं' का लोकार्पण मंगलवार तीन सितंबर 2024 को साहित्यिक संस्था - 'सवेरा' एवं 'अक्षरा' के तत्वावधान में काँठ रोड मुरादाबाद स्थित मिगलानी सेलीब्रेशंस के सभागार में किया गया। 

युवा कवि प्रत्यक्ष देव त्यागी द्वारा डॉ मक्खन मुरादाबादी द्वारा लिखित सरस्वती वंदना की प्रस्तुति से आरम्भ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दयानन्द आर्य कन्या महाविद्यालय के प्रबंधक उमाकांत गुप्त ने कहा "डा. मक्खन मुरादाबादी के गीत संभावना से सार्थकता तक की यात्रा के साक्षी हैं, उनकी रचनाधर्मिता लोक मंगल के लिए समर्पित है। संग्रह के गीत देशज अनुभूतियों की गहरी अभिव्यक्ति हैं।"

 मुख्य अतिथि के रूप में प्रख्यात साहित्यकार मंसूर उस्मानी ने कहा कि "मक्खन जी को हास्य व्यंग्य कवि के रूप में दुनिया जानती है लेकिन उन्होंने गीत रचकर एक तरह से चौंकाने का काम किया।उनके गीत यह साबित करते हैं कि उनके भीतर शुरू से ही गीत कहीं नहीं पनपते रहे हैं।" 

विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर ने कहा कि "सहज और सरल भाषा में लिखे गये मक्खन जी के गीत मन को छूते हैं।" 

विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ कृष्ण कुमार नाज ने कहा कि "चूँकि मक्खन जी व्यंग्य कवि हैं, इसलिए उनके गीतों में भी सशक्त व्यंग्य के दर्शन होते हैं। उनके यहाँ आम आदमी की दौड़-धूप, उसकी समस्याएँ और उन समस्याओं का निदान आसानी से देखा जा सकता है।" 

 कार्यक्रम का संचालन करते हुए चर्चित नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने डॉ मक्खन मुरादाबादी की गीत यात्रा पर केंद्रित गीत ....

उन्होंने अपने आलेख का वाचन भी किया। उन्होंने कहा ‘'मक्खन जी के गीतों से गुज़रते हुए साफ-साफ महसूस किया जा सकता है कि उनकी यह अभिनव गीत-यात्रा लोकरंजन से लेकर लोकमंगल तक की वैचारिक पगडंडियों से होती हुई निरंतर आगे बढ़ी है।"   

    वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि "डॉ मक्खन मुरादाबादी के गीतों में जहां समाज की पीड़ा का स्वर मुखरित हुआ है वहीं राजनीतिक विद्रूपताओं को भी उजागर किया गया है। अपने गीतों के माध्यम से वह पाठकों को सामाजिक सरोकारों से  जोड़ते हैं तो राष्ट्र के प्रति कर्तव्य का बोध भी कराते हैं।"

शायर ज़िया जमीर ने कहा-"ये गीत ज़िंदगी और समाज की कड़वी सच्चाइयों को सिर्फ दिखा नहीं रहे बल्कि ज़िंदगी की आंख में आंख डालकर उससे सवाल कर रहे हैं, यकीनन इस गीत संग्रह ने डॉ मक्खन मुरादाबादी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक तमग़ा और लगा दिया है।"  

 कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा- "आपके गीत पढ़ना जीवन को एक नई दृष्टि देता है। हृदय के उच्च भावों को अपने समृद्ध शब्दकोश से चयनित श्रेष्ठ शब्दों की पोशाक पहनाना, शब्दों की मितव्ययिता के साथ ही उन्हें उनके सटीक स्थान पर रखना,जैसी लेखन टिप्स को उन्होंने सोदाहरण अपने गीतों के माध्यम से लेखकों की नव पीढ़ी को समझा दिया है।"               महाराजा हरिश्चन्द्र डिग्री कालेज के प्रबंधक डॉ काव्य सौरभ जैमिनी ने कहा कि "मक्खन जी ने अपने गीतों के माध्यम से सरलता व कोमलता के साथ यथार्थ को समाविष्ट कर एक अभिनव पहल की है। उनके गीतों में विषय की विविधता एवं संवेदनाओं का विस्तार है। बौ‌द्धिक चेतना से ओतप्रोत इन गीतों में वैचारिक गांभीर्य है।" 

     इस अवसर पर लोकार्पित कृति- ‘गीतों के भी घर होते हैं' से मक्खन मुरादाबादी जी के गीत का पाठ करते हुए वरिष्ठ कवयित्री डा. प्रेमवती उपाध्याय ने सुनाया- 

" गीत वंदना करते-करते, 

अभिनव बोल रहा है।

 नव स्वर नव लय ताल छंद नव, 

सबको तोल रहा है।"          

   वरिष्ठ कवयित्री डा. पूनम बंसल ने मक्खन जी का गीत सुनाया-

"अर्थहीन हो चुका बहुत सा, 

उसको मानी दो। 

प्यासे झील नदी नद पोखर 

सबको पानी दो।" 

      कवि राजीव प्रखर ने मक्खन जी का गीत सुनाया- 

"कुछ ऐसा भी जग में, 

इसके गहरे अर्थ निकलते। 

वसुधा होना क्या समझें 

जो फसलें रोज निगलते।" 

       कवि मयंक शर्मा ने भी मक्खन जी का गीत सुनाया- 

"बाहर से जो कभी न दिखते, 

पर सबके भीतर होते हैं। 

मानो या मत मानो लेकिन, 

गीतों के भी घर होते हैं।" 

 कार्यक्रम में वरिष्ठ कवि वीरेंद्र सिंह बृजवासी, शिव मिगलानी, आर.के.जैन, समीर तिवारी, दुष्यंत बाबा, अशोक विश्नोई, मनोज मनु, खुशी त्यागी, नकुल त्यागी, रघुराज सिंह निश्चल, अक्षरा तिवारी, अतुल जैन, सुभाष आदि उपस्थित रहे। आभार अभिव्यक्ति अक्षिमा त्यागी ने प्रस्तुत की।





























































रविवार, 12 जनवरी 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डा. मक्खन मुरादाबादी की व्यंग्यकाव्य-कृति 'कड़वाहट मीठी सी' का 11 जनवरी 2020 को लोकार्पण- समारोह एवं कृति चर्चा का आयोजन .....

साहित्यिक संस्था 'अक्षरा', 'सवेरा', 'अंतरा' एवं 'हिन्दी साहित्य सदन' के संयुक्त तत्वावधान में  शनिवार 11 जनवरी 2020 को नवीन नगर मुरादाबाद स्थित डा. मक्खन मुरादाबादी के आवास पर लोकार्पण समारोह एवं कृति चर्चा का कार्यक्रम संपन्न हुआ, जिसमें हिन्दी व्यंग्यकविता के महत्वपूर्ण तथा विख्यात हस्ताक्षर डा. मक्खन मुरादाबादी की काव्य-कृति 'कड़वाहट मीठी सी' का लोकार्पण किया गया। 

कवयित्री डॉ. प्रेमवती उपाध्याय द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से आरम्भ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध नवगीतकार  माहेश्वर तिवारी ने कहा, "मक्खन मुरादाबादी रूढ़ अर्थों में छांदस कवि नहीं हैं लेकिन वह अपनी ध्वन्यात्मकता का प्रयोग करते हुए अपनी कविता का वितान मुक्त छंद में बुनते हैं।उनकी कविताएँ सामाजिक विसंगतियों पर करारी चोट करती हैं।मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. आर. सी. शुक्ला ने अपने उद्बोधन में कहा, "पुस्तक 'कड़वाहट मीठी सी' की कविताओं में व्यंग्य को विसंगति के विरुद्ध शस्त्र की तरह इस्तेमाल नहीं किया गया है, बल्कि मक्खन जी की कविताओं में व्यंग्य स्वयं शस्त्र बन जाता है। उनकी कविताओं के कथ्य में व्यंग्य की ऐसी अंतर्धारा प्रवाहित होती है जो बाह्य प्रदर्शन से परे है।"

विशिष्ट अतिथि श्री मंसूर 'उस्मानी' ने कहा, "मक्खन जी 1970 से कवि सम्मेलन के मंचों पर अपनी कविताओं के माध्यम से लोकप्रिय हैं। 50 वर्ष की कविता साधना के बाद आई उनकी कृति हिन्दी साहित्य में निश्चित रूप से अपना अलग स्थान बनाएगी और सराही जाएगी।" कार्यक्रम का संचालन कर रहे संस्था-अक्षरा के संयोजक योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने कहा, ''मक्खनजी की कविताओं में समाज और देश में व्याप्त अव्यवस्थाओं, विद्रूपताओं, विषमताओं के विरुद्ध एक तिलमिलाहट, एक कटाक्ष, एक चेतावनी दिखाई देती है, यही कारण है कि उनकी कविताओं में विषयों, संदर्भों का वैविध्य पाठक को पुस्तक के आरंभ से अंत तक जोड़े रखता है। नि:संदेह इस कृति की कविताएं संग्रहणीय हैं।" डॉ. अजय 'अनुपम' ने इस अवसर पर कहा, "मक्खन जी की कविताएँ समाज में, देश में व्याप्त विसंगतियों पर कटाक्ष करते हुए बिसंगतियों के लिए जिम्मेदार चेहरों को बेनकाब भी करती हैं और आईना भी दिखाती हैं।" श्री गगन भारती ने कहा, "मक्खन जी की कविताएं व्यंग्य की श्रेष्ठ कविताएं हैं जो उनके व्यक्तित्व की तरह सहज व सरल भाषा में कही गई हैं और पाठक के मन को छूती हैं।" इसके अतिरिक्त डॉ. आसिफ हुसैन, शायर ज़िया ज़मीर, डॉ. मनोज रस्तोगी, डॉ. महेश दिवाकर, विशाखा तिवारी, डॉ.प्रेमवती उपाध्याय, अशोक विश्नोई, डॉ. अर्चना गुप्ता, कशिश वारसी, भोलाशंकर शर्मा, फक्कड़ मुरादाबादी, अक्षिमा त्यागी, अखिलेश शर्मा, आदि ने भी कृति के संदर्भ में विस्तारपूर्वक विचार व्यक्त किए तथा सर्वश्री काव्यसौरभ रस्तोगी, मयंक शर्मा, राजीव 'प्रखर', कौशल शलभ, धन सिंह, प्रशांत मिश्र, एम. पी. बादल जायसी, शैलेश भारतीय, खुशबू त्यागी आदि उपस्थित रहे। अंत में कृति के कवि डॉ. मक्खन मुरादाबादी ने एकल कविता-पाठ भी किया।