क्लिक कीजिए
रविवार, 7 दिसंबर 2025
रविवार, 1 अगस्त 2021
मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का आलेख ----डॉक्टर भूपति शर्मा जोशी की कुंडलियाँ : एक अध्ययन
मुरादाबाद मंडल के जिन कवियों ने कुंडलिया छंद-विधान पर बहुत मनोयोग से कार्य किया है ,इनमें से एक नाम डॉ. भूपति शर्मा जोशी का भी है । (जन्म अमरोहा 13 दिसंबर 1920 - मृत्यु 15 जून 2009 मुरादाबाद )
आपकी 21 कुंडलियाँ हस्तलिखित रूप में मुझे साहित्यिक मुरादाबाद वाट्स एप समूह के एडमिन डॉ मनोज रस्तोगी के प्रयासों के फलस्वरूप पढ़ने को मिलीं। इससे पता चलता है कि कुंडलिया छंद शास्त्र में श्री जोशी की अच्छी पकड़ है ।
कुछ कुंडलियों में "कह मधुकर कविराय" टेक का प्रयोग किया गया है । कुछ बिना टेक के लिखी गई हैं। दोनों में माधुर्य है । इनमें जमाने की जो चाल चल रही है ,उसकी परख है । श्रेष्ठ समाज की रचना की एक बेचैनी है और कतिपय ऊंचे दर्जे के आदर्शों को समाज में प्रतिष्ठित होते देखने की गहरी लालसा है। कुंडलिया लेखन में जोशी जी ने ब्रजभाषा अथवा लोक भाषा के शब्द बहुतायत से प्रयोग में लाए हैं । इनसे छंद-रचना में सरलता और सरसता भी आई है तथा वह जन मन को छूते हैं । फिर भी मूलतः जोशी जी खड़ी बोली के कवि हैं ।
कुंडलियों में कवि का वाक्-चातुर्य भली-भांति प्रकट हो रहा है । वह विचार को एक निर्धारित बिंदु से आरंभ करके उसे अनेक घुमावदार मोड़ों से ले जाते हुए निष्कर्ष पर पहुंचने में सफल हुआ है। सामाजिक चेतना डॉक्टर भूपति शर्मा जोशी की कुंडलियों में भरपूर रूप से देखने को मिलती है ।
"खैनी" के संबंध में आपने एक अत्यंत सुंदर कुंडलिया रची है ,जिसमें इस बुराई का वर्णन किया गया है । सार्वजनिक जीवन में हम लोगों को प्रायः बाएं हाथ की हथेली पर अंगूठे से खैनी रगड़ कर मुंह में रखते हुए देखते हैं और फिर बीच-बीच में स्थान-स्थान पर ऐसे लोग थूकते हुए पाए जाते हैं । गुटखा ,तंबाकू आदि खैनी का ही स्वरूप है । यह बुराई न केवल गंदगी पैदा करती है बल्कि देखने में भी बड़ी भद्दी मालूम पड़ती है । थूकने की आदत के खिलाफ स्वच्छताप्रिय समुदाय द्वारा यद्यपि अनेक आह्वान किए जाते रहे हैं ,आंदोलन चलाए गए हैं ,लोगों को जागरूक किया जाता है । कुछ लोगों ने अपने गली-मोहल्लों में पोस्टर लगाकर इस बुराई के प्रति जनता को सचेत भी किया है । लेकिन यह बुराई दुर्भाग्य से अभी तक समाप्त नहीं हो पाई है। थूकने को *थुक्कम-थुक्का* शब्द का बड़ा ही सुंदर प्रयोग करते हुए डॉक्टर भूपति शर्मा जोशी ने खैनी की बुराई पर एक ऐसी कुंडलिया रच डाली है जो युगों तक स्मरणीय रहेगी । प्रेरक कुंडलिया आपके सामने प्रस्तुत है:-
खैनी तू बैरिन भई , हमको लागी बान
नरक निसैनी बन गई ,जानत सकल जहान
जानत सकल जहान,सदा ही थुक्कम-थुक्का
याते रहतो नीक ,पियत होते जो हुक्का
छिन-छिन भई छिनाल ,बनी जीवन कहँ छैनी
अस औगुन की खान ,हाय तू बैरिन खैनी
अर्थात कवि कहता है कि हे खैनी ! तू तो बाण के समान हमारी शत्रु हो गई है ,नरक की निशानी बन गई है । तेरे कारण थुक्कम-थुक्का अर्थात चारों तरफ थूक ही थूक बिखरा रहता है । इससे तो ज्यादा अच्छा होता ,अगर हुक्का का प्रयोग कर लिया गया होता । तू सब प्रकार से अवगुण की खान है । 'खैनी' शब्द से कुंडलिया का आरंभ करके कवि ने अद्भुत चातुर्य का परिचय देते हुए कुंडलिया को 'खैनी' शब्द पर ही समाप्त किया है ।
एक अन्य कुंडलिया देखिए । इसमें 'नेतागिरी' का खूब मजाक उड़ाया गया है। 'नेता' शब्द से कुंडलिया का आरंभ हो रहा है तथा नेता शब्द पर ही कुंडलिया समाप्त हो रही है । इसमें कह मधुकर कविराय टेक का प्रयोग हुआ है । दरअसल राजनीति का स्वरूप आजादी के बाद एक बार जो विकृत हुआ तो फिर नहीं सँभला । अशिक्षित, स्वार्थी ,लोभी और दुष्ट लोग राजनीति के अखाड़े में प्रवेश करते गए। दुर्भाग्य से उनको ही सफलता भी मिली । कवि ने कितना सुंदर चित्र नेतागिरी के माहौल का किया है ! आप पढ़ेंगे ,तो वाह- वाह कर उठेंगे । देखिए :-
नेता बनना सरल है ,कोई भी बन जाय
हल्दी लगै न फिटकरी ,चोखा रंग चढ़ाय
चोखा रंग चढ़ाय ,बिना डिग्री के यारो
झूठे वादे करो ,मुफ्त की दावत मारो
कह मधुकर कविराय ,नाव उल्टी ही खेता
लाज शर्म रख ताख ,बना जाता है नेता
सचमुच नेतागिरी के कार्य की कवि ने पोल खोल कर रख दी है । जितनी तारीफ की जाए ,कम है ।
विशुद्ध हास्य रस की एक कुंडलिया पर भी हमारी नजर गई । पढ़ी तो हंसते हंसते पेट में बल पड़ गए । कल्पना में पात्र घूमने लगा और कवि के काव्य-कौशल पर वाह-वाह किए बिना नहीं रहा गया । आप भी कुंडलिया का आनंद लीजिए :-
पेंट सिलाने को गए ,लाला थुल-थुलदास
दो घंटे में चल सके ,केवल कदम पचास
केवल कदम पचास ,हाँफते ढोकर काया
दीर्घ दानवी देह ,देख दर्जी चकराया
बोला होती कमर ,नापता पेंट बनाने
पर कमरे की नाप ,चले क्यों पेंट सिलाने
मोटे थुल-थुल शरीर के लोग समाज में सरलता से हास्य का निशाना बन जाते हैं। काश ! वह अपने शरीर पर थोड़ा ध्यान दें और जीवन को सुखमय बना पाएँ !
डॉ भूपति शर्मा जोशी ने सामयिक विषयों पर भी कुंडलियां लिखी हैं । कश्मीर के संदर्भ में रूबिया सईद को छुड़वाने के लिए जो वायुयान का अपहरण हुआ था और उग्रवादी छोड़े गए थे ,उस पर भी एक कुंडलिया लिखी है । चुनाव में सिर - फुटव्वल पर भी आपकी कुंडलिया-कलम चली है। अंग्रेजी के आधिपत्य को समाप्त करने आदि अनेक विषयों पर आपने सफलतापूर्वक लेखनी चलाई है ।
अनेक स्थानों पर यद्यपि त्रिकल आदि का प्रयोग करने में असावधानी हुई है लेकिन कुंडलियों में विषय के प्रतिपादन और प्रवाह में अद्भुत छटा बिखेरने की सामर्थ्य में कहीं कोई कमी नहीं है ।
डॉक्टर भूपति शर्मा जोशी की कुंडलियाँँ बेहतरीन कुंडलियों की श्रेणी में रखे जाने के योग्य हैं । उनकी संख्या कम है लेकिन , जिनका मैंने ऊपर उल्लेख किया है ,वह खरे सिक्के की तरह हमेशा चमकती रहेंगी। कुंडलियाकारों में डॉ भूपति शर्मा जोशी का नाम बहुत सम्मान के साथ सदैव लिया जाता रहेगा ।
✍️ रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश),भारत, मोबाइल फोन नम्बर 99976 15451
रविवार, 25 जुलाई 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ भूपति शर्मा जोशी पर केंद्रित राजीव सक्सेना का आलेख ---- हिन्दी के विनम्र सेवक-डॉ० भूपति शर्मा जोशी। यह आलेख उनकी कृति समय की रेत पर ( साहित्यकारों के व्यक्तित्व- कृतित्व पर एक दृष्टि ) में संगृहीत है। यह कृति वर्ष 2006 में श्री अशोक विश्नोई ने अपने सागर तरंग प्रकाशन मुरादाबाद द्वारा प्रकाशित की थी। श्री सक्सेना वर्तमान में प्रभारी सहायक निदेशक (बचत) , मथुरा हैं ।
वे प्राचीन ऋषियों जैसे दिखाई देते हैं-श्वेत श्मश्रू और धवल दाढ़ी छोटा कद, तेजस्वी चेहरा और मुस्कराती हुई आँखें। जब वे वेदमंत्रों का पाठ करते है या किसी साहित्यिक समागम की अध्यक्षता कर रहे होते हैं। तो अगस्त्य के कलियुगी संस्करण सरीखे जान पड़ते हैं। साक्षात सरस्वती ही उनकी जिह्वा पर विराजमान रहती हैं। ये हैं डॉ० भूपति शर्मा जोशी | अगस्त्य जैसे संकल्प और इच्छा शक्ति के धनी ।
उन्होंने आजीवन हिन्दी प्रचार-प्रसार का व्रत धारण किया है और आयु के नवे दशक में भी पूर्ण निष्ठा और समर्पण के साथ वे इसका निर्वाह कर रहे हैं। जैसे कभी अगस्त्य ने विंध्य के पार द्रविड़ और आर्येतर सभ्यताओं के मध्य वैदिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया था ठीक उसी तरह डॉ० भूपति शर्मा जोशी ने देश-विदेश में राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार-प्रसार कर इसे विश्वसनीय स्वरूप प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार में जोशी जी का योगदान अप्रतिम है। आज जबकि भारत की सीमाओं के परे हिन्दी के प्रसार के लिए निर्मल वर्मा, बटरोही, अभिमन्यु अनत तथा विश्वयात्री प्रो० कामता कमलेश का उल्लेख किया जा सकता है, इन सबके बहुत पहले जोशी जी ने हिन्दी की कीर्ति पताका समस्त भूमण्डल में फहराने का 'कोलम्बस प्रयास किया था।
दक्षिण अमेरिका के चिली, कोलम्बिया, अर्जेण्टीना, पेरू और पनामा में, साथ ही उत्तरी अमेरिका के संयुक्त राज्य अमेरिका और मेक्सिको में न केवल भारतवंशियों के बीच बल्कि हिस्पानी सभ्यताओं में देवभाषा और देवसंस्कृति का प्रचार जोशी जी ने किया और उन्हें हिन्दी का सम्यक ज्ञान कराया। उन्होंने आर्य होने के दंभ में जीने वाले जर्मन और साहसी डचों को भी हिन्दी का ज्ञान कराया हिन्दी प्रसार के लिए इन देशों की यात्रा करते हुए जोशी जो अनेक यूरोपिय विद्वानों और भारत विद्यानुरागी लोगो के सम्पर्क में आये। हिन्दी के लिए अपनी विश्वयात्राओं के संस्मरण जोशी जी आज भी बड़े चाव से साहित्यिक आयोजनों के मध्य सुनाते हैं।
डॉ० जोशी ने हिन्दी के लिए पीढ़ियां तैयार की हैं। उन्होंने विदेशियों को न केवल हिन्दी का अक्षर ज्ञान कराया है बल्कि इसकी वैज्ञानिकता और व्यवहारिकता से भी पाश्चात्य जगत को अवगत कराया है। यह जोशी जी के भगीरथ प्रयासों का ही सुफल है जो डॉ० लोढार लुत्शे सहित अनेक विश्वविश्रुत विद्वान हिन्दी ज्ञानार्जन के साथ-साथ साहित्य सृजन के लिए भी प्रेरित हुए। आज विदेशियों द्वारा भी विपुल मात्रा में हिन्दी का साहित्य रचा गया है। कभी हिन्दी के नाम पर नाक-भौह सिकोड़ने वाले और इसे एक समय गंवारों या जाहिलों की भाषा समझने वाले अमेरिकी लोग भी अब इसे सीखने के लिए विवश हो गये है।
डॉ० जोशी ने विदेशियों के साथ-साथ देश में भी हिन्दी अध्यापकों की पूरी खेप तैयार की है। वे लम्बे समय तक भारत के उत्तर पूर्वी प्रान्तों में अधिकारियों को हिन्दी सिखाते रहे है। उन्होंने कोचीन और डिब्रूगढ़ में बड़ी संख्या में अधिकारियों को हिन्दी भाषा का व्यवहारिक प्रशिक्षण दिया है। दरअसल, भारतीय संस्कृति और हिन्दी भाषा के प्रति अनुराग का बीजारोपण जोशी जी के भीतर बचपन में ही हो गया था जो आज एक विशाल वट वृक्ष का रूप धारण कर चुका है। संकल्प के धनी जोशी जी ने बाल्यकाल में हिन्दी को विश्वजनीन भाषा का रूप देने का संकल्प किया था, वह आज फलीभूत हो चुका है। इसका प्रमुख कारण यह है कि जोशी जी आजीवन एक कार्यपुरुष रहे है, उन्होंने 'वार्तापुरुष' जैसा व्यवहार कभी नहीं किया है।
जोशी जी केवल हिन्दी के विनम्र सेवक ही नहीं है। उनके विराट किन्तु सरल व्यक्तित्व के अनेक आयाम हैं। डॉ० जोशी में हिन्दी प्रचार-प्रसार और शिक्षण के साथ अनुवाद जैसा उपेक्षित और प्रायः गौण समझा जाने वाला काम भी किया है। जोशी जी बंगला, असमिया और मलयालम जैसी दुरुह भाषाओं के साहित्य का गहन अध्ययन कर कतिपय प्रमुख कृतियों का अनुवाद कर हिन्दी जगत से इनका परिचय कराया है। उन्होंने प्रसिद्ध असमिया उपन्यास 'सपोन जोतिया माँगे, बंगला के पद्य नाटक
'मीरा 'बाई' और मलयालम की कतिपय कविताओं का पद्यानुवाद कर अपनी विलक्षण मेधा का परिचय दिया है।
जोशी जी बहुभाषाविद होने के साथ-साथ स्वयं भी उच्च कोटि के मौलिक सर्जक हैं। उन्होंने हिन्दी में अनेक गीतों का प्रणयन किया है जो न केवल छन्द या शिल्प की दृष्टि से बल्कि कथ्य के स्तर पर भी अद्वितीय है। उन्होंने लोकजीवन, लोकआख्यानों और लोकपरम्पराओं पर आधारित अनेक मौलिक गीतों का सृजन किया है और कृष्ण की बाललीलाओं का अपनी पद्य रचनाओं में सजीव और मनोहारी चित्रण किया है।
जोशी जी ने बालगीतों में भी अभिनव प्रयोग किये है। उनके बालगीत रुढ़ अर्थों में रचे गये बाल गीतों से अलग है। जोशी जी के बालगीत केवल बालकों के लिए नहीं है बल्कि बड़े भी समान रूप से उनसे रस ग्रहण कर सकते है। दरअसल, जोशी जी के बालगीत बड़ों की दृष्टि से बच्चों को लक्ष्य करके लिखे गये गीत है। यहाँ उनका एक 'नन्हा मुन्ना गीत' दृष्टव्य है
" जिन्हें मनुहार मान कर गाया । .
जिनमें दूर कपट छल माया ।
मेरे नन्हे-मुन्ने गीत ।
याद तो आते होंगे मीत । "
जोशी जी स्वयं एक वेदज्ञ और ऋषि व्यक्तित्व होने के कारण भारत के स्वर्णिम अतीत से खासे प्रभावित रहे है। उनका सदैव यह विश्वास रहा है कि एक दिन आर्य संस्कृति या वैदिक संस्कृति पुनः अपने भव्य रूप में वापस आयेगी। शायद यूँ ही उनके गीतों में वैदिक कालीन सभ्यता और संस्कृति का विशद और सजीव चित्रण यत्र-तत्र विद्यमान है। दरअसल, भारत के स्वर्णिम अतीत का वर्णन करते हुए वे सामवेद के उद्गाता सरीखे दिखाई पड़ते हैं। उनका यह उद्गाता इस गीत में स्पष्ट मुखर हुआ है
"आओ बैठे उस धरती पर जहाँ यज्ञ का राज्य रहा है। अश्वमेध औं राजसूय के अग्निकुण्ड में आज्य बहा है। देवों के सहयोगी हम थे देव हमारे सहयोगी ।
सत्य अहिंसा वीरभाव युक्त का साम्राज्य रहा है। "
मूलतया ऋषि व्यक्तित्व होने के कारण और काफी हद तक भारत की प्राचीन वाचिक परम्परा से जुड़े होने के कारण जोशी जी ने अधिक मात्रा में साहित्य सृजन नहीं किया है। संभवतया उन्हें अपने व्यस्त जीवन में इसके लिए पर्याप्त अवकाश नहीं मिल सका। यद्यपि वे इतने समर्थ सर्जक है कि यदि चाहते तो दर्जनों ग्रन्थों का प्रणयन कर सकते थे। किन्तु उन्होंने 'स्वांतः सुखाय' जो भी रचा है उससे उनके 'क्लास' और व्यापक जीवन दृष्टि का परिचय तो मिल ही जाता है।
वयोवृद्ध होने के बावजूद डॉ० भूपति शर्मा जोशी आज भी युवकोचित ऊर्जा और उत्साह से भरपूर हैं। वे सदैव क्रियाशील और गतिमान रहते हैं नगर के साहित्यिक आयोजनों का वे लगभग एक स्थायी 'फीचर' है। सफल साहित्यिक आयोजनों के लिए उनकी उपस्थिति अनिवार्य और अपरिहार्य समझी जाती है। दरअसल, वे हिन्दी साहित्य जगत के 'प्राण' तत्व है।
(प्रस्तुत आलेख उस समय लिखा व प्रकाशित हुआ था जब डॉ भूपति शर्मा जोशी जी जीवित थे )
✍️ राजीव सक्सेना, डिप्टी गंज मुरादाबाद 244001, उत्तर प्रदेश, भारतसोमवार, 12 जुलाई 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ भूपति शर्मा जोशी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से दो दिवसीय ऑन लाइन आयोजन
हिन्दी एवं संस्कृत के साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ भूपति शर्मा जोशी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर 'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से नौ और दस जुलाई 2021 को दो दिवसीय ऑन लाइन आयोजन किया गया। आयोजन में साहित्यकारों ने कहा कि बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी डॉ भूपति ने साहित्य सृजन के साथ देश के अहिन्दी भाषी प्रान्तों तथा अनेक देशों में हिन्दी एवं भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया।
मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तंभ के तहत आयोजित इस कार्यक्रम के संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने डॉ भूपति शर्मा का परिचय देते हुए कहा कि तहसील अमरोहा के ग्राम सरकड़ा कमाल में 13 दिसंबर 1920 को जन्मे डॉ भूपति शर्मा जोशी हिंदी, संस्कृत, उर्दू, बंगला, असमिया और मलयालम भाषाओं में पारंगत थे। इसके अलावा उन्हें फारसी भाषा का भी ज्ञान था। उन्होंने विविध भाषा मर्मज्ञ डॉ रमानाथ त्रिपाठी के निर्देशन में शोध कार्य पूर्ण किया ,जिसका विषय था- 'फारसी भाषा से हिंदी में आगत शब्दों का भाषा शास्त्रीय अध्ययन' । उन्होंने हिंदी के साथ-साथ संस्कृत भाषा में भी गीतों और छंदों की रचना की । इसके अतिरिक्त बंगला भाषा के पद्य नाटक 'मीराबाई' और असमिया के उपन्यास 'सपोन जोतिया मांगे' का हिंदी में अनुवाद किया। मलयालम की अनेक कविताओं का भी पद्यानुवाद किया। पुष्पेंद्र वर्णवाल के खंडकाव्य 'विराधोद्धार' का संस्कृत भाषा में रूपांतर भी किया। यही नहीं उन्होंने अहिन्दी भाषी प्रदेशों के अलावा अनेक देशों में हिन्दी व भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार भी किया। उनका निधन 15 जून 2009 को गांधीनगर स्थित आवास पर हुआ। केजीके महाविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ मीरा कश्यप ने कहा कि प्रदीप्त चेहरा, भावमयी आंखे ,मनीषी व्यक्तित्व के धनी कवि भूपति शर्मा जी का साधारण व्यक्तित्व उन्हें एक अलग पहचान देता है।आजीवन हिंदी के प्रचार- प्रसार के लिए अपना जीवन समर्पित करते हुए माँ भारती की सेवा में लगे रहे।देश-विदेश का भृमण करते हुए अपनी भाषा की श्रेष्ठता व गरिमा बनाये रखने में उनका अप्रतिम योगदान देखा जा सकता है ।बहुभाषी होने के साथ ही शिक्षकीय दायित्व का निर्वाह करते हुए वैश्विक क्षितिज पर उनका भाषायी प्रेम सदा ही उनके व्यक्तित्व को सरस करता रहा है ।बाल्यावस्था से ही कविता उनकी अनुगामिनी रही है ,जो समय के साथ- साथ निरन्तर प्रौढ़ होती गयी है ।भूपति जी सादगी और सरल जीवन पसंद व्यक्ति थे, उनके लिए व्यक्ति से बड़ा समाज और राष्ट्र था। अन्ततः देखा जाय तो भूपति शर्मा जी के व्यक्तित्व और कृतित्व को उनकी कविता एक नया आयाम देती है।उनके साहित्य में कहीं सुख -दुःख की पीड़ा दिखती है तो, कहीं प्रेम और श्रृंगार की झलक दिख पड़ती है तो कहीं देश -प्रेम की मशाल जलती दिखायी पड़ती है । मृदुल हृदय भूपति जी सौम्य ,सरल व विनम्र प्रकृति के सर्जनशील प्रतिभाशाली व्यक्ति थे ,बहु भाषाओं का ज्ञान उनके व्यापक जीवन दृष्टि का परिचायक है ।मथुरा के प्रभारी सहायक निदेशक (बचत) राजीव सक्सेना ने कहा कि डॉ० भूपति शर्मा जोशी ने आजीवन हिन्दी प्रचार-प्रसार का व्रत धारण किया और अंतिम समय तक निष्ठा और समर्पण के साथ इसका निर्वाह किया। देश-विदेश में देवभाषा और देवसंस्कृति का प्रचार जोशी जी ने किया और उन्हें हिन्दी का सम्यक ज्ञान कराया। डॉ० जोशी ने विदेशियों के साथ-साथ देश में भी हिन्दी अध्यापकों की पूरी खेप तैयार की है। वे लम्बे समय तक भारत के उत्तर पूर्वी प्रान्तों में अधिकारियों को हिन्दी सिखाते रहे है।उन्होंने हिन्दी और सँस्कृत में अनेक गीतों का प्रणयन किया है जो न केवल छन्द या शिल्प की दृष्टि से बल्कि कथ्य के स्तर पर भी अद्वितीय है। उन्होंने लोकजीवन, लोकआख्यानों और लोकपरम्पराओं पर आधारित अनेक मौलिक गीतों का सृजन किया है और कृष्ण की बाललीलाओं का अपनी पद्य रचनाओं में सजीव और मनोहारी चित्रण किया है।
दयानन्द आर्य कन्या महाविद्यालय के प्रबंधक उमाकांत गुप्त ने कहा कि स्मृति शेष डाक्टर भूपति शर्मा जी की समस्त रचनाएँ संवेदनाओ से भरी, मानवीय अनुभूतियों से रंगी सजी हृदय को छू जाती हैं। मनुष्य की कोमलतम भावनाये व संवेदनशीलता, चाहे प्रकृति के प्रति अथवा देश व समाज के प्रति हमेशा प्रेरणा देती हैं। अध्यात्म की ओर इंगित करती: "जग एक मनोहर माया है / जिसका कण-कण मन भाया है / जो इसकी महिमा जान गया, / उसने ही प्रभु को पाया है। " उक्त पंक्तियाँ मन को विभोर कर देती हैं और जगत नियन्ता के लिये पाठक को नमन करने को विवश कर देती हैं।
डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा कि डॉ भूपति शर्मा जोशी साहित्य को पूर्ण ब्राह्मणत्व के आवरण में समेटे एक निश्छल सन्त थे। वे एक ऋषि थे जिनका कार्य सदैव खोज करना होता है । संस्कृत हिंदी अंग्रेजी सब पर उनकी विशिष्ट पकड़ थी । ऐसा आभास होता था कि सभी भाषाओं का उद्गम उनसे ही हुआ हो ।सदैव मुस्कराते रहने का स्वभाव ।वेद स्मृति पुराण व्याकरण उनमें सहज रूप में समाहित थे। जोशी जी स्वम् में साहित्य का भंडार थे ।आचरण से ,व्यवहार से, ज्ञान से अति विलक्षण प्रतिभा थे।
डॉ श्वेता पूठिया ने कहा कि सँस्कृत भाषा मे रचे उनके गीत उनके व्यक्तित्व के सुकोमल पक्ष की अभिव्यक्ति है।संस्कृत मे काव्य गीत एक कठिन विधा समझा जाता है किन्तु उसमें सहजता एवं सरलता उनके ज्ञान की ही पुष्टि करते है।उनके संस्कृत गीतों मे पांडित्य प्रदर्शन के स्थान पर भाव प्रदर्शन महत्वपूर्ण है।शब्दों में क्लिष्टता के स्थान पर मधुरता है यथा-द्विजात्मजाः गीत में
वेदवेदागं स्वाध्याये पठने पाठ्येरताः।
सन्ध्यावन्दन संलग्ना विराजन्ते द्विजात्मजाः।।
डा.जोशी ने काव्य मे मधुरता को आवश्यक माना है इसलिए कहा है-कर्कशकाव्यकारकःकाकोवर्णे समतां भजति।। कृष्ण गीत मे गेयता के साथ अलंकार का प्रयोग मधुरता की सृष्टि करता है-
कृष्णःपक्षो निशा कृष्णा,कृष्णाssसीत् यमुना सरित्।
तत्र जातोsभवत् कृष्णाः काराकृत्य निवारकः।।
सुमधुर गीतों का सृजन कर डा .भूपति शर्मा जोशी ने संस्कृत में सरल एवं मधुर साहित्य की विधा को पल्लवित किया है।
रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा कि मुरादाबाद मंडल के जिन कवियों ने कुंडलिया छंद-विधान पर बहुत मनोयोग से कार्य किया है ,इनमें से एक नाम डॉ. भूपति शर्मा जोशी का भी है । कुंडलिया छंद शास्त्र में श्री जोशी की अच्छी पकड़ थी। कुंडलिया लेखन में जोशी जी ब्रजभाषा अथवा लोक भाषा के शब्द बहुतायत से प्रयोग में लाए हैं । इनसे छंद-रचना में सरलता और सरसता भी आई है तथा वह जन मन को छूते हैं । फिर भी मूलतः जोशी जी खड़ी बोली के कवि हैं । कुंडलियों में कवि का वाक्-चातुर्य भली-भांति प्रकट हो रहा है । वह विचार को एक निर्धारित बिंदु से आरंभ करके उसे अनेक घुमावदार मोड़ों से ले जाते हुए निष्कर्ष पर पहुंचने में सफल हुआ है। सामाजिक चेतना डॉ भूपति शर्मा जोशी की कुंडलियों में भरपूर रूप से देखने को मिलती है । उन्होंने सामयिक विषयों पर भी कुंडलियां लिखी हैं ।
श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा कि उनकी रचनाओं को पढ़कर सहजता में ही उनकी सृजनशीलता, चिंतन एवं सामाजिक परिस्थितियों के प्रति एक जागरूक नागरिक के दृष्टिकोण और योगदान का भान होता है। उनकी रचनाओं का विषय प्रमुखता से सामाजिक चिंतन, आध्यात्मिकता, तथा सामाजिक बुराइयां ही हैं, कहीं कहीं प्रेम व श्रृंगार का समावेश भी दिखाई देता है। साथ ही उन्होंने सामाजिक, व राजनीतिक विषयों पर कुंडलियां भी लिखी हैं। कुछ विशुद्ध हास्य रस की कुंडलियां भी हैंं जो उनके मनोविनोदी पक्ष को परिलक्षित करती हैं। यही नहीं, उन्होंने संस्कृत में भी छंदों की रचना की है। संस्कृत में रचित उनका काव्य मुख्यत: अध्यात्म व दर्शन पर ही रचित है, तथा उनकी ये समस्त रचनाएं संस्कृत के श्लोकों से किसी भी प्रकार से कम नहीं हैं। उनका बात कहने का अंदाज स्वयं में विशिष्ट है। भाषा भी सरल है। अशोक विश्नोई ने उनके संस्मरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि बात सन 78-79 की है उन्होंने अपने घर पर एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया। मेरे पास भी न जाने कैसे निमंत्रण आया परन्तु परिचय न होने कारण मैं असमंजस में पड़ गया।अगले दिन स्मृति शेष पुष्पेंद्र जी मेरे पास आये । मुझसे बोले जोशी जी के यहाँ नहीं चलना क्या। मैं उनके साथ गोष्ठी में चला गया, तब मेरा प्रथम परिचय हुआ और ऐसा हुआ कि अंत तक रहा। जोशी जी साधारण दिखने वाले असाधारण व्यक्तित्व के धनी थे। एक बार एक काव्य गोष्ठी में वह अध्यक्ष थे कार्यक्रम हिंदू कॉलेज में था।कार्यक्रम का संचालन मैं कर रहा था एक ,दो कवियों ने रचना पाठ किया ही था कि जोशी जी बीच में ही उठकर चले गए मैं समझ नहीं पाया बहराल गोष्ठी समाप्त होने के बाद मैं और पुष्पेंद्र जी उनके घर पहुँचे हमने गोष्ठी में से बीच में आने का कारण पूछा वह बोले भाई अशोक जी जहां सरस्वती वंदना न होती हो वहाँ मैं नहीं रुक सकता यह अपमान है।
डॉ अजय अनुपम ने कहा कि डॉ भूपति शर्मा जोशी का स्मरण, मुरादाबाद के विद्वानों की अतीत की कड़ियों को जोड़ने के काम जैसा है।सौम्य व्यक्तित्व,सरल। व्यवहार, अपनी विद्वत्ता के प्रति निरभिमान का भाव, मुखमंडल पर मुस्कान और स्वाभिमान दोनों की आभा लिए ,मन से मिलते थे।कई वर्ष अन्नपूर्णा मंदिर,साहू मुहल्ला, मुरादाबाद में, तुलसी जयन्ती के वार्षिक आयोजन में मेरे निमन्त्रण पर वह सप्रेम आशीर्वाद देने आया करते थे।कवि गोष्ठियों में भी उनसे भेंट होने पर उनका साथमिलता था। बड़ों को सम्मान तथा छोटों को प्रोत्साहन देने की उनकी आदत थी। उनमें बनावटीपन नहीं था। संतोषी स्वभाव ही उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी। उनके घर जाकर विद्वान के आश्रम जैसे वातावरण का सुख मिलता था।डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि मैं आदरणीय को जितना जानता हूं, ऐसा लगता है कि हिन्दी के एक संत को जानता हूं।मेरा मन भाव केवल औपचारिकता नहीं है,यह उनके श्रीचरणों में घुला-मिला मन भाव है।उनका प्यार याद है और उनका कर्माधार याद है। मकान किसी के भी कितने सुन्दर बन जायें, पर मजबूत मकानों के कुछ आधार होते हैं।मेरे लिए तो आदरणीय मुरादाबाद की साहित्यिक परंपरा का आधार ही थे, जिस पर हम खड़े हैं।
वीरेंद्र सिंह बृजवासी ने कहा कि स्मृतिशेष डॉ भूपति शर्मा जोशी जी ने साहित्य साधना के मर्म को केवल साधा ही नहीं अपितु अंतर्मन से जिया भी है। आप संस्कृत के भी प्रकांड विद्वान रहे।जिसका परिचय संस्कृत भाषा में लिखे बहुत से गीतों में मिलता है।स्व0 जोशी जी बहुत ही सरल स्वभाव के रचनाकार होने के साथ-साथ शब्द पारखी भी थे। किसी भी रचनाकार की रचना को बड़ी ही बारीकी से सुनतेऔर उसमें छांदिक,मात्रिक दोष के अतिरिक्त उसकी लयात्मकता,रागात्मकता एवं उसके प्रस्तुतिकरण पर भी अपनी पैनी दृष्टि का प्रहार करना नहीं भूलते थे। एक बार मैं काव्य गोष्ठी का निमंत्रण देने उनके घर गया।सादर चरण स्पर्श करके मैंने निमंत्रण पत्र उन्हें सौंपते हुए गोष्ठी में पधारने का व्यक्तिगत रूप से आग्रह भी किया। बड़े प्यार से बिठाया स्वयं लाकर पानी भी पिलाया।कुशल क्षेम के पश्चात उस निमंत्रण पत्र को बड़े ध्यान से पढ़ कर बड़े शांत स्वभाव से कहा कि इस में तो कई त्रुटियां हैं।ये या तो छापने वाले ने की या फिर आपने इसे पढ़ने में चूक की है।कहीं विराम कहीं चंद्रबिन्दी तो कहीं मंचासीन अतिथियों के क्रम पर भी आपत्ति व्यक्त की। सादा जीवन उच्च विचार ही आपके जीवन का मूल मंत्र रहा।
शिशुपाल सिंह मधुकर ने कहा कि आध्यात्म और साहित्य की महान विभूति कीर्ति शेष डा. भूपति शर्मा जोशी जी को याद करते हुए उनके साथ हुई मुलाकातों की एक एक पल की स्मृतियाँ चलचित्र की भाँति मस्तिष्क में चलने लगती हैं। सीधे साधे लिबास में असाधारण व्यक्तित्व वाले वास्तविक संत की उनकी छवि इतनी आकर्षक थी कि उनसे मिलने वाला हर व्यक्ति उनसे बिना प्रभावित हुए नहीं रह सकता था। उनके सम्मोहक चेहरे पर विराजमान मृदु मुस्कराहट उनके निष्कलंक मन की गवाही देती रहती थी। उनसे साहित्यिक कार्य क्रमों में असर मुलाकात होती रहती थी और वे मेरी रचनाओं को बहुत गौर से सुनते थे। छांदसिक कसावट लिए उनकी रचनाओं का विषय मूलतः सामाजिक मूल्यों के क्षरण, पारिवारिक समस्याओं हिंदी भाषा और धार्मिक स्तुति गान पर केंद्रित है।
दिल्ली के साहित्यकार आमोद कुमार ने कहा कि डॉ जोशी अध्यात्मिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक आभूषणों से सुसज्जित एक सात्विक, सरल व्यक्तित्व थे। हिन्दी एवं संस्कृत दोनो ही भाषाओं मे सृजन. के धनी, गीत,मुक्तक, कुंडली, दोहे आदि सभी विधाओं मे डा. भूपति शर्मा जोशी की रचनाएं साहित्य की धरोहर हैं, दक्षिण भारत मे वहीं की भाषाओं के माध्यम से अहिन्दी भाषी कर्मचारियों को प्रबोध,प्रवीण,प्राज्ञ आदि हिन्दी कक्षाओं मे हिन्दी सिखाने का अति महत्व का प्रशंसनीय कार्य किया ।
अशोक विद्रोही ने कहा कि डॉ भूपति शर्मा जोशी ने संस्कृत साहित्य में भी श्रम साध्य सर्जना की और मुरादाबाद को अपनी तपस्या साधना से गौरवान्वित किया। उन्होंने हिंदी में गीत, कुंडलियां, दोहे, मुक्तक, हास्य व्यंग, जोकि समाज सेवा, से लेकर प्रेम, श्रंगार सभी विधाओं में रचनाएं की उनका हिंदी संस्कृत के अलावा भी अन्य कई भाषाओं पर एकाधिकार रहा स्वयं से बहुत ही सरल हृदय, मुख मंडल पर सदैव एक स्नेह सिक्त मुसकान लिए दुर्लभ व्यक्तित्व के धनी रही , उन्होंने अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में जाकर हिन्दी साहित्य शिक्षा का प्रचार,प्रसार किया । भारत सरकार की हिंदी शिक्षण योजना के अंतर्गत उन्होंने शिक्षण का कार्य किया विदेशों में जाकर भी उन्होंने हिंदी शिक्षण का कार्य किया जिसके लिए मुरादाबाद साहित्य जगत हमेशा उन पर गौरव करेगा।
डॉ पुनीत कुमार ने कहा कि स्मृतिशेष डॉ भूपतिशर्मा जोशी जी से पहली बार दिशा की कवि गोष्ठी में मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।प्रथम दृष्टया वे एक संत सरीखे नजर आए।मुखमंडल पर तेज,शांत चित्त, सरल, सौम्य एवं विनम्र स्वभाव और एक सीधा सादा प्रभावशाली व्यक्तित्व।धीरे धीरे उनकी बहुमुखी साहित्यिक प्रतिभा से परिचय हुआ। विभिन्न विधाओं में सार्थक लेखन और कई भाषाओं पर मजबूत पकड़,रचनाकारों की भीड़ में,उनको अलग पहचान दिलाती हैं। उनके आचरण और व्यवहार से लेशमात्र भी अहंकार नहीं झलकता था , अपितु हम जैसे नौसिखिए रचनाकारों को कभी कभी अहंकार होने लगता था कि हमने उन जैसे युगपुरुष की छत्रछाया में काव्यपाठ किया है।
राजीव प्रखर ने कहा कि भूपति जी का रचनाकर्म जीवन की विभिन्न संवेदनाओं को गहराई से स्पर्श करता है। वह साहित्य के सृजक ही नहीं अपितु एक ऐसे महान साधक भी थे जिन्होंने काव्य को स्वयं में जीते हुए साहित्यिक समाज को अपनी लेखनी से आलोकित किया। उपलब्ध रचनाएं यह स्पष्ट दर्शा रही हैं कि उनकी रचनाधर्मिता बहुआयामी है। जहाँ उनमें विभिन्न सामाजिक मूल्यों के प्रति गहन चिंतन दृष्टिगोचर होता है वहीं उनके भीतर का रचनाकार आध्यात्म जैसे गूढ़ विषय पर भी अपना सशक्त नियंत्रण सिद्ध करता है। "तिल-तिल नित्य जला करता हूँ", "आज मुझे लगता है ऐसा, सारे काम चूक गये.....", "पथिक रे ! साँझ पड़ी गर चल......", "हमारो जीवन घनश्याम ....", " अरी ओ रुक जा आँसू धारा.....", "मैं गीत लिखूँ या सुनूँ उनकी.....", " कविता से वार्ता...", "याद शहीदों के शोणित की....", " गा दो कवि एक मधुर गीत...." आदि मनभावन रचनाओं की एक सुदृढ़ श्रृंखला के रूप में उन्होंने जीवन के प्रत्येक पहलू का सफलता से स्पर्श किया है। निःसंदेह, उनकी लेखनी से निकला यह साहित्यामृत उस आधुनिक वर्ग के बिल्कुल भी अनुकूल नहीं है जो व्यवसायिकता में आकण्ठ डूबा रहकर तथाकथित काव्य मंचों अथवा तथाकथित कविता को महत्व देता है अपितु, यह उस वर्ग के अन्तस को गहराई से स्पर्श करता है जिसका लक्ष्य वास्तविक रूप से गंभीर व सात्विक साहित्य-साधना ही है। हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि उनकी कुछ रचनाएं मुझे बेहद आकर्षक और न्यारी लगी,उन्हें समझने की कुछ कुछ कुंजी की तरह ये मुझे महसूस हुई।जैसे जोंक और जलजात , शलभ क्यों खोते हो प्राण, कविता से वार्ता , पश्चाताप , कवि तुम्हारे रूदन में भी गान बसता है, तिल तिल नित्य जला करता हूँ आदि। उनकी एक कुण्डलिया वाहवाही के इस दौर पर कितना सटीक व्यंग्य है और कितनी बेबाकी से वह अपनी बात रखते हैं,यह वाकई अनुकरणीय है।आप भी आनंद लें।
हम से दाद ना मांँगिए, हम कितने लाचार
बिना दाद पढ़ जाइए,कविताएं दो चार
कविताएं दो चार,वाहवाही यदि चाहो
बिना सिफारिश मुफ्त,मुक्त हम से पा जाओ
कह मधुकर कविराय,दाद घातक है जम से
मत दो तुम भी दाद,और मत चाहो हम से
उनकी भाषा प्रायः संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है और संस्कृत में भी उन्होंने लिखा है।यह उनके पाण्डित्य को सिद्ध करती है।जहाँ वह गूढ़ आध्यात्मिक सृजन करते हैं वहीं उनकी हल्के फुल्के हास्य विनोद की रचना भी दृष्टिगोचर होती है जो उनके रचना क्षेत्र का विस्तार बताती है।उनका व्यक्तित्व और सृजन निश्चित ही प्रणम्य है।
मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि माँ सरस्वती के अनन्य उपासक कीर्तिशेष डा. भूपति शर्मा जोशी जी एक चलता फिरता साहित्यिक व आध्यात्मिक तीर्थस्थान ही थे,जिन्होंने संस्कृत में काव्यरचना करके सनातन संस्कृति को पोषित ही किया । संस्कृत पढ़ना, लिखना अलग बात है,परंतु संस्कृत में काव्य लिखना अति कठिन कार्य है और यह कार्य आपने जिस सरलता व सहजता से किया वह आश्चर्यजनक है।देश विदेश में हिंदी के प्रचार प्रसार हेतु की गयी आपकी साहित्यिक यात्राएँ अनंत काल तक हिंदी साहित्य के पथिकों का पथ प्रदर्शन करती रहेंगीं।आपकी रचनाओं में आपके व्यक्तित्व के समान ही सरलता व सहजता के दर्शन होते हैं।आपकी विद्धता को अहंकार ने लेश मात्र भी स्पर्श नहीं किया है।आपकी बढ़ी हुई सफेद दाढ़ी व आपका संत रूप है,उज्जवल हिमगिरि पर बैठे तपस्वी के समान है,जिसमें कोई बनावट नहीं दिखती। आपके बहुआयामी साहित्यिक व्यक्तित्व के विराट दर्शन आपकी रचनाओं में साक्षात प्रकट हैं। आपने दोहे, गीत, कुंडलिया, मुक्तक, बालगीत, लघुकाव्य, खण्डकाव्य व संस्कृत काव्य की रचना की है जिनकी लेखन शैली सरल व जनमानस को प्रभावित करने वाली है। अलंकारों व साहित्य के विभिन्न रसों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग हुआ है।आपने देशभक्ती की रचनाओं, सामाजिक समस्याओं, सकारात्मक भावनाओं, श्रृंगारिक रचनाओं के साथ साथ हास्य पर भी खूब लेखनी चलायी है।डॉ शोभना कौशिक ने कहा कि हिंदी साहित्य की महान विभूति कीर्तिशेष डॉ भूपति शर्मा जोशी जी साहित्य की पृष्ठभूमि पर ध्रुव तारे के समान अपने प्रकाश से प्रकाशित करते हुए एक महान स्मृतिशेष हैं ।उन्होंने हिंदी की अनेकानेक विधाओं जिनमें कुंडलिया, गीत ,मुक्तक ,दोहे एवं ब्रज भाषा में मनोहारी गीत लिखे है ।उनका हिंदी ,संस्कृत भाषा के अतिरिक्त अन्य कई भाषाओं पर भी पूर्णाधिकार था ।उन्होंने अपनी रचनाओं में सामाजिक चिंतन , आध्यात्मिकता ,प्रेम व श्रृंगार का समावेश किया है ।अपनी विभिन्न विधाओं में यथार्थ लेखन और कई भाषाओं में मजबूत पकड़ उन्हें अन्य रचनाकारों से अलग पहचान दिलाती है ।कीर्तिशेष डॉ भूपति शर्मा जोशी जी को मुरादाबाद की साहित्यिक परम्परा का केन्द्र बिंदु कहना गलत न होगा
दुष्यन्त बाबा ने कहा कि जोशी जी अपने समय के एक ऐसे लेखक/कवि और समाजसेवी थे जिनकी रचनाओं ने मनुष्य की प्रत्येक मनोवृत्ति (हास्य, व्यंग्य, तर्क, और अध्यात्म) को प्रभावित किया है। साथ ही समाज में व्याप्त कुरीतियों पर सीधा कुठाराघात किया है। उर्दू, हिंदी और संस्कृत तीनों भाषाओं में अपनी मजबूत पैठ रखने वाले जोशी जी ने हिंदी विषय के शिक्षक के रूप में कार्य करते हुए भी हिंदी की जननी संस्कृत पर अपना रचनाकर्म और शोध जारी रखा। मुझे उनकी रचनाओं में संस्कृत में लिखित मंगलामुखी, द्विजात्मजा: (ब्राह्मण की बेटी), कोकिल: (कोयल), गुर्नष्टकम्, सर्व देवावाहन, कृष्ण: तथा हिंदी में वीणावादिनी वन्दना व 21 शानदार रचनाओं के साथ-साथ प्रत्येक रस का रसास्वादन कराती शानदार हिंदी कुंडलियां, जिनमें एक हास्य कुंडलियां पेंट सिलाने को गये लाला थुल-थुलदास, दस घण्टे में चल सके केवल कदम पचास, मुझे बहुत अधिक पसंद आयी। साथ ही एक पति-पत्नी की तीक्ष्ण हास्य-व्यंग्य रचना ने बहुत अधिक प्रभावित किया है।
मुरादाबाद की प्राचीन संस्था राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति के संस्थापक सचिव श्री मदन लाल वर्मा क्रांत (वर्तमान में ग्रेटर नोयडा निवासी) ने अपने भावपूर्ण विचार कुछ तरह व्यक्त किये है -----प्रियवर मनोज जिस तरह आप स्मृतियाँ सहज सँजोये हो,
कैसे कह दूँ तन से हो दूर मग़र मन कितना अधिक भिगोये हो।
जोशी जी गान्धी नगर शहर मुरादाबाद
में रहते थे वहीं पर मेरे घर के पास।
संचालन इतना अधिक सुन्दर और सटीक।
करते थे कि मैं क्या कहूँ मेरे बहुत क़रीब ॥
जब भी कोई कविता लिखते वह मुझे अवश्य दिखाते थे
जब तक हम गान्धी नगर में रहते थे वह घर आ जाते थे।
सन् उन्निस सौ उन्हत्तर से चौरासी तक जोशी जी से
जितनी भी आत्मीयता रही वो गयी नहीं मेरे जी से।
कुण्डलियाँ सब पढ़ लिये,
सभी पते की बात।
डाक्टर भूपति जो लिखे,
मन ये नाहिं अघात॥
मन ये नाहिं अघात,
लिखी सारी जग बीती।
बीच-बीच में एक या दो,
हैं अपनी बीती॥
कहें ‘क्रान्त’ माने या ना माने ये दुनिया।
विद्वानों को भायेंगीं मधुकर की कुण्डलियाँ॥
भूपति शर्मा जोशी ‘मधुकर’
की सब रचनाएँ पढ़ डालीं।
प्रियवर उमेश एवम् मनोज
की वृत्ति प्रखर प्रतिभा वालीं॥
दोनों को शुभ अाशीर्वाद।
चन्दौसी के साहित्यकार रमेश अधीर ने कहा कि जोशी जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से मानवता का उत्कृष्ट नमूना पेश करते हुए जो प्रबोधन मानव जाति को दिया है, स्तुत्य है। अपनी एक रचना में उन्होंने ठीक ही सचेत किया है कि यदि मानव समय रहते स्वयं के महत्व को पहचान ले और चाँदी अर्थात सम्पन्न होने पर मिट्टी अर्थात विपन्नता को हेय दृष्टि से न देख कर एक संतुलित जीवन जिये और जीने की प्रेरणा दे तो उसको अपने जीवन में अपने कृत्यों पर कभी भी पछताना नहीं पड़ेगा।ऐसा व्यक्ति सदैव ही ईश-कृपा का सहज पात्र भी होता है।दिल्ली की साहित्यकार डॉ इंदिरा रानी ने कहा कि वह उच्च स्तरीय साहित्यकार होने के साथ साथ अति सज्जन और सम्वेदनशील व्यक्ति थे. विद्वता के साथ यदि मानवता भी हो, तो व्यक्ति अति विशिष्ट हो जाता है. डॉ जोशी जी एक ऐसे प्रज्जवलित दीपक के समान थे जिसके दिव्य आलोक में मानवता और साहित्य का पथ प्रकाशित होता रहेगा.
'जयंति ते सुक्रतीनो रससिद्धाकवीश्वराः
नास्ति येशाम् यशः काये जरा मरन जम भयम्।'
अर्थात उन रससिद्ध कवीश्वरों की जय हो जिनकी यश रूपी काया को वृद्धावस्था या मृत्यु का डर नहीं होता।
दयानन्द आर्य कन्या महाविद्यालय की पूर्व प्राचार्य डॉ स्वीटी तलवाड़ ने कहा कि स्मृतिशेष डॉ भूपति शर्मा जोशी पर आधारित इस कार्यक्रम के लिये डॉ मनोज रस्तोगी तो साधुवाद के पात्र हैं ही, भूपति जी के सुपुत्र श्री उमेश शर्मा जी भी बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने अपने पूज्य पिता जी की हस्तलिखित कृतियों को इतना सहेज कर रखा और मनोज जी को सौंपा। मनोज जी अपने इस कार्यक्रम के माध्यम से आप अप्रकाशित रचनाओं को जिस प्रकार संरक्षित कर रहे हैं, उसके लिये आपकी जितनी सराहना की जाए कम होगी। मुरादाबाद के स्मृतिशेष साहित्यकारों के प्रति आपकी ये श्रद्धांजलि अनुपम, अप्रतिम व प्रशंसनीय है। अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा ने कहा कि आप संस्कृत और संस्कृति के सच्चे उपासक रहे हैं । आपकी संस्कृत की रचनाएं आपकी विद्वत्ता का परिचय अपने आप दे रहीं हैं । पटल पर आज उनकी रचनाओं से और उनकी निस्वार्थ सेवाओं के बारे में हमें जानने का सुअवसर मिला और उनका हिन्दी भाषा के विकास में और प्रचार- प्रसार में समर्पण के बारे में जानने का जो सौभाग्य हमें मिला । कीर्तिशेष परम आदरणीय डा.भूपति शर्मा जोशी जी की उच्चकोटि की रचनाधर्मिता वास्तव में हमारे साहित्य की अनमोल सहभागिता है उन्होंने आजीवन कितनी निष्ठा से परोपकार से अपने धर्म और कर्म का सांमजस्य स्थापित किया यह हमारे लिए प्रेरणा की बात है । सच्चे अर्थो में वह एक अनमोल रत्न थे ।हरि प्रकाश शर्मा ने कहा कि डॉ जोशी जी जितने योग्य थे उतना ही मृदुभाषी व्यक्तित्व था उनका ।कई बार कवि गोष्ठियों और उनके आवास पर उनसे मुझे कुछ प्राप्त करने का स्नेही सानिध्य प्राप्त हुआ । निसंदेह महान व्यक्तित्व के साहित्यिक कृतित्व को नमन ।गजरौला की साहित्यकार रेखा रानी ने कहा कि दिव्य ज्योति डॉक्टर भूपति शर्मा जी एक साहित्यिक स्तंभ थे। वह साहित्य रूपी भवन का नींव का वह पत्थर हैं जिस पर आज़ इमारत बुलंद टिकी है।सुदेश आर्य ने कहा कि मेरे लिए गौरव की बात है कि हम काफी समय गांधीनगर मुरादाबाद रहे वहां कुछ दूरी पर उनका घर था।पार्क में प्रायः वह बैठकर पूजा अर्चना भी करते थे।कलोनी की बहू होने के नाते आमने सामने होने पर पैर छूने पर अशीर्वाद भी कई बार प्राप्त किया।
रीना मित्तल ने कहा आदरणीय डॉ भूपति शर्मा जोशी सर मेरे grandfather समान हैं । मेरा बचपन आपकी अनेक अच्छी बातें सीखते हुए बीता क्यूँकि मेरा आपके पड़ोस में रहने का सौभाग्य रहा ।अंत में उनके सुपुत्र उमेश शर्मा ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि सभी विद्वानों ने अपनी स्मृति को कुरेद कर जो विचार हमारे देवतुल्य पिताजी के कृतित्व पर प्रकट किए उनसे हम भाई बहिन और परिवारी जन अभिभूत हैं । बीते क्षण वापिस तो नहीं आते परंतु उनके जाने के उपरांत उत्पन्न शून्य को कुछ समय के लिए भरने का जो भागीरथ प्रयास मित्र मनोज ने किया और उसमें पिताजी के सम्माननीय मित्रों का सहयोग दिया वह सदैव स्मरणीय पिताजी के लिए श्रद्धांजलि पुष्प के रूप में अर्पित है । उनका लिखा काव्य आज अमर हुआ । स्वर्ग से उनका आशीर्वाद हमें मिलता रहे क्योंकि पूज्य पिताजी आशीर्वाद देने में क़तई भी कृपण नहीं थे । एक बार पुन: सभी सम्मानित विद्वत जनों को ह्रदय से नमन ।
गुरुवार, 8 जुलाई 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ भूपति शर्मा जोशी की 24 अप्रकाशित गीतिकाएं उन्हीं की हस्तलिपि में । ये हमें उनकी डायरी से उपलब्ध कराई हैं उनके सुपुत्र उमेश शर्मा ने ....
:::::::प्रस्तुति::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822




























































