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शनिवार, 5 सितंबर 2020
मंगलवार, 14 जुलाई 2020
मंगलवार, 14 अप्रैल 2020
रविवार, 29 मार्च 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार एवं संगीतज्ञ अमितोष शर्मा की गजल --सबको मालूम है बाहर की हवा है क़ातिल | यूँ ही क़ातिल से उलझने की ज़रूरत क्या है ||
पेश-ऐ-ख़िदमत है आप सब की पसंदीदा ग़ज़ल मिश्र किरवानी में composed
बुधवार, 25 मार्च 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार अमितोष शर्मा की गजल --बेवजह घर से निकलने की ज़रूरत क्या है | मौत से आंख मिलाने की ज़रूरत क्या है |।
बेवजह घर से निकलने की ज़रूरत क्या है |
मौत से आंख मिलाने की ज़रूरत क्या है |
सबको मालूम है बाहर की हवा है क़ातिल |
यूँ ही क़ातिल से उलझने की ज़रूरत क्या है ||
ज़िन्दगी एक नियामत, इसे सम्हाल के रख |
क़ब्रगाहों को सजाने की ज़रूरत क्या है ||
दिल बहलने के लिए घर मे वजह हैँ काफ़ी |
यूँ ही गलियों मे भटकने की ज़रूरत क्या है ||
मुस्कुराकर, आंख झुकना भी अदब होता है |
हाथ से हाथ मिलाने की ज़रूरत क्या है ||
लोग जब हाथ मिलाते हुए कतराते हों |
ऐसे रिश्तों को निभाने की ज़रूरत क्या है ||
अमितोष शर्मा ग़ज़ल
मौत से आंख मिलाने की ज़रूरत क्या है |
सबको मालूम है बाहर की हवा है क़ातिल |
यूँ ही क़ातिल से उलझने की ज़रूरत क्या है ||
ज़िन्दगी एक नियामत, इसे सम्हाल के रख |
क़ब्रगाहों को सजाने की ज़रूरत क्या है ||
दिल बहलने के लिए घर मे वजह हैँ काफ़ी |
यूँ ही गलियों मे भटकने की ज़रूरत क्या है ||
मुस्कुराकर, आंख झुकना भी अदब होता है |
हाथ से हाथ मिलाने की ज़रूरत क्या है ||
लोग जब हाथ मिलाते हुए कतराते हों |
ऐसे रिश्तों को निभाने की ज़रूरत क्या है ||
अमितोष शर्मा ग़ज़ल
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