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बुधवार, 15 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार नवल किशोर शर्मा नवल की लघुकथा - बड़बोलापन


     "मिंटू, तुम बड़े सुस्त और आलसी होते जा रहे हो। न तो नियमित रूप से स्कूल आ रहे हो और न ही  अपने होमवर्क को टाइम पर कंप्लीट कर रहे हो।... करते क्या हो ? आजकल कोई भी काम ढंग से नहीं कर रहे हो ? आखिर, तुम चाहते क्या हो ?
 मिंटू ने दबे स्वर में उत्तर दिया " सर, मैं तो केवल पढ़ना चाहता हूँ और अपना नाम कमाना चाहता हूं। बस और कुछ नहीं...। "
मास्टर जी बोले " अच्छा! तो अब जबान भी लड़ाने लगे हो! शर्म नहीं आती है तुम्हें बकवास करते हुए! टेस्ट तक में तो पास नहीं हो पा रहे हो क्या करोगे तुम...?"
मिंटू ने फिर मुंह लटकाये जवाब दिया "सर, आप चिंता न करें। मैं वार्षिक परीक्षा में अवश्य अच्छे नम्बर से पास होऊंगा।"
मास्टर जी तपाक से बोले "वो तो  लग रहा है तुम्हारे कारनामे देखकर! महीने में दस- दस दिन गैर हाजिर रहते हो। एक काम ढंग से नहीं होता! तुम्हारे जैसे को केवल डंडा ही सुधार सकता है  । तुम पर बातों का तो कोई असर होता ही नहीं है। अभी पिछले तीन महीने की फीस भी बकाया है। उसका क्या.....?
मिंटू पूरी क्लास के सामने खुद को शर्मिंदा महसूस कर रहा था लेकिन फिर भी उसने हिम्मत करते हुए कहा" सर! फीस भी चुका दूंगा। "
इस पर मास्टर जी लगभग आपा खोते हुए ऊंचे स्वर में बोले "अच्छा! जिस फीस को तुम्हारे पापा नहीं चुका पा रहे हैं उसे अब तुम चुकाओगे। डिफॉल्टर कहीं के...!"

यह बात मिंटू के हृदय को भेद गई और उसने कहा, " सर,मैं स्कूल की फीस आज ही जमा करूँगा। मेरे पापा गरीब जरूर हैं पर डिफाल्टर नहीं। वो इस समय बीमार चल रहे हैं घर पर पैसों की तंगी है इसीलिए मैंने स्कूल से गैर हाजिर रहकर मजदूरी करके अपने स्कूल की फीस के लिए पैसे कमाये हैं। इसीलिए इस महीने मैं पढ़ाई को लेकर थोड़ा अव्यवस्थित रहा हूँ।इसके लिए मुझे खेद है। "
  यह सुनते ही पूरी क्लास में सन्नाटा छा गया और मास्टर जी स्वयं को बौना महसूस करने लगे और  सॉरी कहते हुए उनका सिर झुक गया ।

नवल किशोर शर्मा 'नवल'

मंगलवार, 16 जून 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार नवल किशोर शर्मा नवल की तीन गजलें -----


बैर जग में नित बढ़ाकर क्या मिलेगा?
पाप की गठरी उठाकर क्या मिलेगा ?

झूठ का लेकर सहारा मत बढ़ो तुम,
झूठ को सिर पर चढ़ाकर क्या मिलेगा?

भावना मन में अगर दूषित रहे तो,
रोज गंगा में नहाकर क्या मिलेगा?

पीर गैरों की अगर चुभती न तुझको,
आंख से पानी बहाकर क्या मिलेगा?

जीत जाओगे जहां को प्यार से तुम,
नफरतों को दिल लगाकर क्या मिलेगा?

हार में भी है छिपी निज जीत तेरी,
जूझ तू मन को सताकर क्या मिलेगा?

रोज रिश्तों में भला तकरार क्यों है?
जो रहें अपने गिराकर क्या मिलेगा?

आग क्यों है लग रही हर एक घर में,
यूं चरागों को जलाकर क्या मिलेगा?

"नवल" जख्मों को कभी भी मत कुरेदो,
घाव को गहरा बनाकर क्या मिलेगा?

(2)

मिटाना चाहता है गर मिटा फिर क्यों नहीं देता।
सितमगर है अगर मेरा सजा फिर क्यों नहीं देता।

वफा मैंने निभाई है,सदा तन-मन लुटा करके
अगर तू बेवफा है तो,दगा फिर क्यों नहीं देता।

सताता भी नहीं मुझको,जताता भी नहीं मुझको,
ये कैसी बेकरारी है,बुझा फिर क्यों नहीं देता।

छिपाता इश्क़ क्यों मुझसे,दिवाना हूँ सदा तेरा,
छिपा है इश्क़ दिल में जो,जता फिर क्यों नहीं देता।

सदा हारा लड़ाई मैं,मुहब्बत की मिरे हमदम,
जरा दिल हारकर अपना,जिता फिर क्यों नहीं देता।

कहीं पाबंदियां तेरी,न करदें अब मुझे पागल,
लिपट कर के गले आंसू,बहा फिर क्यों नहीं देता।

'नवल' मासूमियत तेरी,बड़ी ही क़ातिलाना है,
नयन तेरे कटीले हैं,चुभा फिर क्यों नहीं देता।

(3)

प्यार में कब हुआ है नफ़ा देखिए।
प्यार में कब मिली है दवा देखिए।

प्यार सदियों से' जाता रहा है छला,
प्यार को छल रहे बेबफ़ा देखिए।

प्यार पाने की' हसरत सभी में मगर,
प्यार में जिंदगी को लुटा देखिए।

प्यार के नाम पर वासना ही दिखे,
प्यार पावन नदी है बहा देखिए।

चैन मिलता नहीं जिंदगी में अगर,
प्यार को रूह में भी बसा देखिए।

प्यार करना सरल पर निभाना कठिन,
चंद गिनती मिलें बाबफ़ा देखिए।

प्यार प्यारा लगे  रूह में जब बसे,
रूह से रूह को मत जुद़ा देखिए।

प्यार की डोर से बांध लो ये जहां,
प्यार से पत्थरों को हिला देखिए।

प्यार होता खुदा बंदगी तुम करो,
जिंदगी में 'नवल' फिर मज़ा देखिए।

 ✍️  नवल किशोर शर्मा 'नवल'
बिलारी, मुरादाबाद
मो नं - 9758280028