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शुक्रवार, 21 जनवरी 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक का नवगीत ---राजनीति के कुशल मछेरे, फेंक रहे हैं जाल


राजनीति के कुशल मछेरे,

फेंक रहे हैं जाल।


जिस घर में थी रखी बिछाकर,

वर्षों अपनी खाट।

उस घर से अब नेता जी का,

मन हो गया उचाट।

देखो यह चुनाव का मौसम,

क्या-क्या करे कमाल।                   


घूम रहे हैं गली-गली में,

करते वे आखेट।

लेकिन सबसे कहते सुन लो,

देंगे हम भरपेट।

काश!समझ ले भोली जनता,

उनकी गहरी चाल।


कुछ लोगों के मन में कितना,

भरा हुआ है खोट।

धर्म-जाति का नशा सुँघाकर,     

माँग रहे हैं वोट।

ऊँचा कैसे रहे बताओ,

लोकतंत्र का भाल।


नैतिक मूल्यों, आदर्शों को,

कौन पूछता आज,

जोड़-तोड़ वालों के सिर ही,

सजता देखा ताज।

जाने कब अच्छे दिन आएँ,

कब सुधरे यह हाल।

   ✍️ ओंकार सिंह विवेक

रामपुर, उत्तर प्रदेश, भारत



शुक्रवार, 19 नवंबर 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक के कार्तिक पूर्णिमा गंगा स्नान पर्व पर आठ दोहे ----



💥

जटा   खोलकर  रुद्र   ने , छोड़ी  जिसकी  धार,

नमन   करें   उस   गंग   को ,  आओ   बारंबार।

💥

भूप   सगर   के   पुत्र   सब , दिए  अंत में   तार,

कैसे   भूलें   हम  भला ,  सुरसरि  का  उपकार।

💥

यों  तो  नदियों  का  यहाँ ,  बिछा  हुआ है जाल,

पर  गंगा  माँ - सी  हमें , मिलती  नहीं  मिसाल।

💥

मातु - सदृश   भी   पूजता , मैली   करता  धार,

गंगा - सॅंग   तेरा   मनुज , यह  कैसा  व्यवहार।

💥

दिन-प्रतिदिन  दूषित  करे , मानव  उसकी  धार,

फिर   भी  यह  आशा   रखे  , गंगा   देगी  तार।

💥

आज   धरा   पर    देखकर , गंगा   का  संत्रास,

शिव जी  भी  कैलाश  पर , होंगे  बहुत  उदास।

💥

सच्चे  मन   से   प्रण  करें ,  हम   सब  बारंबार,

नहीं   करेंगे   अब  मलिन ,  देवनदी  की  धार।

💥

चला-चलाकर  नित्यप्रति, अधुनातन  अभियान,

स्वच्छ   करेंगे  गंग को , मन  में  लें  अब ठान।


 🙏 ओंकार सिंह विवेक, ,रामपुर, उत्तर प्रदेश, भारत


सोमवार, 18 अक्तूबर 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक की ग़ज़ल ---घोर अँधियारों में से ही फूटती है रौशनी, आप क्यों नाकामियों से अपनी घबराने लगे।


 झूठ  को  जो  हम  हमेशा  झूठ  बतलाने  लगे,

इसलिए  सबके  निशाने  पर  यहाँ  आने लगे।


घोर  अँधियारों   में   से   ही  फूटती  है  रौशनी,

आप  क्यों  नाकामियों से अपनी घबराने लगे।


दे  दिया फूलों ने क़ुर्बानी का दुनिया को सबक़,

जिसने  भी मसला उसी के हाथ महकाने लगे।


जिसकी मंज़िल का पता है और न कोई रास्ता,

जाने  क्यों  ऐसे  सफ़र  पे  आदमी  जाने  लगे।


जो  कहा करते थे ख़ुद को साफ़गोई का मुरीद,

चापलूसों   से   घिरे  हमको  नज़र  आने  लगे।


गुफ़्तगू  औरों  से करना ख़ुद जिन्हें आया नहीं,

गुफ़्तगू  के सबको  वो आदाब सिखलाने लगे।

 

✍️  ओंकार सिंह विवेक, रामपुर, उत्तर प्रदेश, मोबाइल--9897214710

रविवार, 20 जून 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक के दो मुक्तक और एक ग़ज़ल ----ये आपकी ही सीख का है मुझ पे असर,जो- विपदा से नहीं मानता मैं हार पिता जी



दो मुक्तक

मेरी  नींदों  की ख़ातिर ख़ुद जागा   करते हैं,

सहकर धूप हमेशा मुझ पर साया करते हैं।

करते  रहते  हैं  हर पल मेरे दुख की चिंता,

पापा अपना कोई दुख कब साझा   करते हैं।

भले  ही  रंज  का  दिल  में बड़ा   तूफ़ान रखते हैं,

मगर  लब  पर  सदा मासूम सी मुस्कान रखते हैं।

कभी  होती  नहीं  घर  में किसी को कुछ परेशानी,

पिता जी इस तरह हर आदमी का ध्यान रखते हैं

 ग़ज़ल

मेरी  सभी  ख़ुशियों  का  हैं आधार पिता जी,

और माँ के भी जीवन का हैं शृंगार पिता जी।


सप्ताह  में   हैं  सातों  दिवस  काम  पे  जाते,

जानें   नहीं  क्या  होता  है  इतवार पिता जी।


हालाँकि ज़ियादा  नहीं कुछ आय के साधन,

फिर  भी  चला ही लेते हैं परिवार पिता जी।


ख़ैरात   किसी   की  भी  गवारा  नहीं  करते,

है   फ़ख़्र   मुझे , हैं   बड़े  ख़ुद्दार   पिता  जी।


दुख  अपना  बताते  नहीं ,पर सबका हमेशा,

ग़म   बाँटने   को  रहते  हैं  तैयार  पिता  जी।


दुनिया बड़ी ज़ालिम है,सजग हर घड़ी रहना,

समझाते  हैं  मुझको  यही हर बार पिता जी।


ये  आपकी  ही सीख का है मुझ पे असर,जो-

विपदा  से   नहीं  मानता   मैं  हार  पिता  जी।


पीटो   मुझे   या   चाहे   कभी   कान  मरोड़ो,

हर  बात  का है आपको अधिकार पिता जी।


सर  से  न   उठे  मेरे  कभी  आप  का  साया,

मिलता  रहे  बस  यूँ ही सदा  प्यार पिता जी।

 ✍️ ओंकार सिंह विवेक,रामपुर 

रविवार, 6 जून 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक के दोहे ------बार-बार विनती करें,बरगद-शीशम-आम, मानव हमको काट मत, हम आएँगे काम


माना आवश्यक हुआ , सड़कों का विस्तार,

किंतु न हो इसके लिए, पेड़ों  पर नित  वार।       


बार-बार  विनती  करें,बरगद-शीशम-आम,

मानव  हमको काट  मत, हम आएँगे  काम


देते   हैं  हम   पेड़  तो ,  प्राणवायु  का  दान,

फिर  क्यों  लेता है मनुज, बता हमारी जान।

    

देते  हैं  ये   पेड़  ही   , घनी  छाँव, फल-फूल,

इन्हें काटने की मनुज,मत कर प्रतिपल भूल।


पेड़ो  की  लेकर  सतत ,  निर्ममता  से  जान,

मत कर अपनी मौत का, मानव  तू सामान।


सबसे   है    मेरी    यही  ,  विनती   बारंबार,

पेड़  लगाकर   कीजिए , धरती  का  शृंगार।


 ✍️ ओंकार सिंह विवेक, रामपुर

शनिवार, 2 जनवरी 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक की रचना ------गए साल जैसा नहीं हाल होगा, है उम्मीद अच्छा नया साल होगा



गए    साल   जैसा    नहीं   हाल   होगा,

है   उम्मीद  अच्छा   नया  साल   होगा।


बढ़ेगी   न   केवल  अमीरों  की  दौलत,

ग़रीबों  के  हिस्से  भी कुछ माल होगा।


रहेगा   सजा    आशियाँ    रौशनी   का,

घरौंदा    अँधेरे    का    पामाल    होगा।


जगत  में  सभी   और   देशों  से  ऊँचा,

सखे!हिंद  का   ही  सदा  भाल  होगा।


न   होगा  फ़क़त  फाइलों-काग़ज़ों  में,

हक़ीक़त में भी मुल्क ख़ुशहाल होगा।


 ✍️ ओंकार सिंह विवेक, रामपुर

मंगलवार, 8 दिसंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक के ग़ज़ल संग्रह --"दर्द का अहसास " की नवीन कुमार पांडेय द्वारा की गई समीक्षा ----

          ओंकार सिंह विवेक के  ग़ज़ल संग्रह "दर्द का अहसास" मेरे सामने है। इस ग़ज़ल संग्रह को जब पढ़ते हैं तो पाते है कि ग़ज़लकार ने जिस पैनी नजर से ज़िन्दगी को देखा और संघर्षों से मिलने वाले दर्द को महसूस किया है, उसे शब्दों में साफगोई से बयां कर दिया है। अपनी और अपने आस पास के लोगों की ज़िन्दगी में चल रही जद्दोजहद हो या फिर समाज का बदलता रूप, दोस्ती, रिश्ते-नाते आदि जीवन के तमाम पहलुओं को बड़े ही आसान तरीके से अपने अशआरों में रख दिया है। जब आप इनके शेरों को देखेंगे तो पायेंगे  कि बड़ी से बड़ी बात को आम बोलचाल के लब्जों में पिरो दिया है, मुझे लगता है कि यही ग़ज़लकार का खास हुनर है। 

इसकी बानगी देखिये कि ----                         

 दर्द दिल में रहा बनके तूफ़ान-सा,                        

 फिर भी मैं मुस्कुराता रहा जिंदगी।                                                                                           

 एक और शेर देखिये----

जब घिरा छल फरेबों के तूफ़ान में,
मैंने रक्खा यकीं अपने ईमान में।           
                      

उनका यह नसीहत देता हुआ शेर देखिये-

जीवन में ग़म आने पर जो घबरा जाते हैं,

उनको हासिल खुशियों की सौग़ात नहीं होती।                  

दूसरा शेर है ----
  वक़्त के साँचे में ढल, मत कर गिला सदमात से
  ज़िन्दगी प्यारी है तो लड़ गर्दिशे-हालात से ।
   बेसबब ही आपकी तारीफ़ जो करने लगें,
   फासला रक्खा करें कुछ, आप उन हज़रात से।   
         

 इनका यह शेर भी आपको खूब पसंद आएगा--

अभी तीरगी के निशान और भी हैं,
उजाले तेरे इम्तिहान और भी हैं।। 
हुआ ख़त्म मेरा सफ़र कैसे कह दूं,.
सितारों के आगे जहाँ और भी हैं।।

 इस ग़ज़ल के आखिरी शेर में सीख भी दी है कि----
अभी से मियाँ हौसला हार बैठे,
अभी राह में सख्तियाँ और भी हैं।।   
                            

  एक ग़ज़ल में उनका शेर देखिये कि----
आ गये हैं वो ही सब अफ़सोस करने, 
साजिशों से जिनकी यह बस्ती जली है।।       
                

 मौजूदा हालात के ये शेर देखिये कि------ 

लो वक़्त पे उसने भी किया मुझसे किनारा, 
मैं खुश था कि उससे मेरी पहचान बहुत है।।
भरोसा जिन पे करता जा रहा हूँ,
मुसलसल उनसे धोखा खा रहा हूँ।।     
                        

 इस शेर को भी आप पसंद करेंगे कि-----
असल कुछ है, कुछ बताया जा रहा है, 
आँकड़ों में सच छुपाया जा रहा है।।       
                                                                                    
एक और शेर देखिये जिसमें कर्म पर जोर दिया गया है------
जब भरोसा मुझको अपने बाजुओं पर हो गया,
साथ मेरे फिर खड़ा मेरा मुकद्दर हो गया।           
          

इस क़िताब में कुल 58 ग़ज़लें हैं। आशा है कि विवेक जी ने जिस अंदाज से अपनी ग़ज़लों का आगाज़ किया है, आगे हमें और भी बेहतर अशआर पढ़ने को मिलेंगे ।





कृति : दर्द का अहसास ( ग़ज़ल संग्रह)
कवि : ओंकार सिंह विवेक
प्रकाशक: गुंजन प्रकाशन, मुरादाबाद
मूल्य : 150₹

समीक्षक : नवीन कुमार पाण्डेय, 93, एल आई जी पुरानी आवास विकास कॉलोनी, सिविल लाइंस, रामपुर,उत्तर प्रदेश
मोबाइल फोन नंबर : 9411647489
मेल  : navin9rmp@gmail.com





सोमवार, 23 नवंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक की ग़ज़ल --------लगें हैं ढेर हरिक सिम्त नंगी लाशों के, लहू ग़रीब का सस्ता है क्या किया जाए

वो  मक्रो-झूठ  का  शैदा  है  क्या  किया जाए,

 हमारा  सत्य   से  रिश्ता  है  क्या  किया  जाए।


 यकीं   है    मंज़िले - मक़सूद   पाँव   छू    लेती,

 कड़े  सफ़र  से  वो  डरता  है  क्या किया जाए।


 जो गुलसिताँ  की हिफ़ाज़त की बात करता है,

  उसी  का आग  से  रिश्ता  है क्या किया जाए।


 यकीं  है   ईद  का  होली  से   मेल  हो   जाता,

दिलों  में  ख़ौफ़-सा बैठा  है क्या किया जाए।


सदैव  रहता  है  जो  शख़्स  मेरी  ऑंखों   में,

वो  मेरे  नाम  से जलता है  क्या किया जाए।


लगें   हैं  ढेर  हरिक   सिम्त   नंगी  लाशों  के,

लहू  ग़रीब  का  सस्ता  है  क्या  किया जाए ।

✍️ ओंकार सिंह विवेक, रामपुर 

शनिवार, 3 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक की ग़ज़ल ----वे ही आ पहुँचे हैं जंगल में आरी लेकर, जो अक्सर कहते थे उनको छाँव बचानी है।


पंछी  नभ  में  उड़ता  था  यह  बात  पुरानी है,

अब  तो  बस  पिंजरा  है ,उसमें दाना-पानी है।


वे   ही  आ   पहुँचे  हैं  जंगल  में  आरी  लेकर,

जो  अक्सर  कहते  थे  उनको छाँव बचानी है।


आज  सफलता चूम रही है जो इन  क़दमों को,

इसके   पीछे   संघर्षों    की   एक  कहानी  है।


मुस्काते  हैं   असली  भाव  छुपाकर  चहरे   के,

कुछ   लोगों  का   हँसना-मुस्काना  बेमानी  है।


बाँध लिया जब अपना बिस्तर बरखा की रुत ने,

जान   गए   सब   आने   वाली   सर्दी  रानी  है।


क्यों  होता  है  जग  में  लोगों  का आना-जाना,

आज  तलक  भी बात भला ये किसने जानी है।


✍️ओंकार सिंह विवेक ,रामपुर

मोबाइल 9897214710

शुक्रवार, 18 सितंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक का गीत ----- दुनिया में भारत के गौरव,मान और सम्मान की, आओ बात करें हम अपनी, हिंदी के यशगान की।

दुनिया में  भारत  के  गौरव,मान और सम्मान की,

आओ बात करें हम अपनी, हिंदी के यशगान की।

जय अपनी हिंदी,जय प्यारी हिंदी------------2


राष्ट्र संघ  से  बड़े  मंच  पर,अपना सीना तानकर,

हिंदी  में भाषण  देना  है ,यह ही मन में ठानकर।

रक्षा  अटल बिहारी  जी  ने, की हिंदी के मान की

आओ बात करें---------------

जय अपनी हिंदी,जय प्यारी हिंदी-----------2


परिचित  होने  को अलबेले, अनुपम हिंदुस्तान से,

आज  विदेशी  भी  हिंदी को,सीख रहे हैं शान से।

सचमुच है यह बात हमारे, लिए बड़े अभिमान की

आओ बात करें-----------------

जय अपनी हिंदी,जय प्यारी हिंदी-----------2


आज  नहीं  हिंदी का उनको , मूलभूत भी ज्ञान है,

अँगरेज़ी की शिक्षा पर ही ,बस बच्चों का ध्यान है।

क्या यह बात नहीं है अपनी,भाषा के अपमान की

आओ बात करें-------------------

जय अपनी हिंदी,जय प्यारी हिंदी------------2


अपने  ही  घर  में  हिंदी यों, कभी  नहीं  लाचार हो,

इसको अँगरेज़ी पर शासन, करने का अधिकार हो।

बच  पाएगी  तभी  विरासत, सूर  और रसखान की

आओ बात करें---------------------

जय अपनी हिंदी,जय प्यारी हिंदी---- ------2

✍️  ओंकार सिंह विवेक, रामपुर

मंगलवार, 24 मार्च 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक के दोहे --- भीड़ रोकने में करें , शासन का सहयोग। वरना बढ़ता ही यहाँ , जायेगा यह रोग। --


संकट  के इस काल में ,  माने   यह  दस्तूर।
हाथ  मिलाने  से  हमें , रहना  है  अब दूर।।

मेलजोल  में इन दिनों , संयम  से  लें  काम।
'कोरोना' पर लग सके,जिससे शीघ्र विराम।।

भीड़  रोकने  में  करें , शासन  का  सहयोग।
वरना  बढ़ता  ही   यहाँ , जायेगा  यह  रोग।।

साफ़ सफ़ाई कीजिए,रखिए खुद को क्लीन।
डर   जायेगा  आपसे  ,  'कोविड नाइन्टीन'।।

साहस रख  संघर्ष को,रहते जो   तैयार।
 हर  विपदा -बाधा सदा ,माने उनसे   हार ।।

सावधान  रहकर  सतत , इस संकट में आप।
अपने  अपने  इष्ट  का , करते  रहिए  जाप।।
     

***ओंकार सिंह विवेक
       रामपुर-उ0प्र0
      मोबाइल फोन नंबर 9897214710