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मंगलवार, 6 फ़रवरी 2024

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष बहोरन सिंह प्रवासी की अप्रकाशित काव्य कृति ...मुक्तक शतक । इस कृति का रचनाकाल वर्ष 1965 है। साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय को यह उपलब्ध कराई है उनके अनुज सोहरन सिंह वर्मा के सुपौत्र राहुल वर्मा जी ने ।




क्लिक कीजिए और पढ़िए पूरी कृति 

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:::::::प्रस्तुति:::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मंगलवार, 22 जून 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी पर केंद्रित डॉ राजीव सक्सेना का आलेख ---- प्रेम और पीड़ा के कवि - स्व प्रवासी जी । यह आलेख उनकी कृति समय की रेत पर ( साहित्यकारों के व्यक्तित्व- कृतित्व पर एक दृष्टि ) में संगृहीत है। यह कृति वर्ष 2006 में श्री अशोक विश्नोई ने अपने सागर तरंग प्रकाशन मुरादाबाद द्वारा प्रकाशित की थी। श्री सक्सेना वर्तमान में प्रभारी सहायक निदेशक (बचत) , मथुरा हैं ।

 


नगर के दो प्रमुख साहित्यकारों का निधन हो गया था और उनकी स्मृति में श्री शिव अवतार 'सरस' के निवास पर शोक सभा थी। दिवंगत साहित्यकार थे श्री शंकर दत्त पाण्डे और श्री बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी।इनमें से पांडे जी से तो मेरा व्यक्तिगत परिचय था किन्तु 'प्रवासी' जी से साक्षात्कार का सौभाग्य मुझे कभी प्राप्त नहीं हुआ।यद्यपि मैं उनके रचनाकर्म से भली-भांति अवगत था। प्रवासी जी के व्यकितगत जीवन के बारे में  कुछ न जानते भी मैं उनके प्रति एक अदृश्य आकर्षण अनुभव कर रहा था। तभी 'सीपज' मेरे हाथ आयी। आद्योपान्त पढ़ गया और यह इच्छा बलवती हुई कि काश प्रवासी जी की कुछ और पुस्तकें पढ़ने को मिली होती। यह कवि 'प्रवासी' जी से मेरा मानसिक साक्षात्कार था।

      फिर तो प्रवासी जी के बारे में जानने की उत्कण्ठा तीव्र हो गयी। उनके व्यक्तित्व के कई आयाम उद्घाटित होने लगे और उनके प्रति मेरा आदरभाव गहरा हो गया। पतला दुबला लम्बा शरीर, स्वर्णिम काया, तेजोद्दीप्त नेत्रों पर मोटे फ्रेम का चश्मा, कुर्ता-पाजामा और चप्पलें कुल मिलाकर 'प्रवासी' जी की आकृति बड़ी भव्य थी। वे दूर से देखने पर पूरे गांधीवादी दिखायी पड़ते थे। स्वभाव से अत्यन्त विनम्र किन्तु पूरे सिद्धान्तवादी । अनुचित को कभी सहन नहीं किया और अन्याय के प्रति अपनी वाणी से ही नहीं कलम से भी आजीवन संघर्षरत रहे। एक विचित्र किस्म का अक्खड़पन भी उनमें था ठीक वैसा ही जैसा धूमिल में था। व्यवस्था की विसंगतियों से भिड़ने को सदैव तत्पर। नगर के लोग जो 'प्रवासी' जी को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं वे उनके बारे में ऊँची राय रखते हैं।

किन्तु मैं तो उनके साहित्यकार व्यक्तित्व से ही परिचित हो सका हूँ। जहाँ तक उनके साहित्यिक व्यक्तित्व की बात है वे निश्चित ही ऊँचे दर्जे के साहित्यकार, विशेषकर कवि थे। यद्यपि उनका लेखन स्वांतः सुखाय ही था किन्तु वे ऐसे साहित्य को निरर्थक मानते थे जो जनकल्याण की भावना से प्रेरित होकर न रचा गया हो। शायद यूँ ही उन्होंने एक जगह यह बात कही है

हो न कल्याण भावना जिसमें 

काव्य ऐसा असार होता है ।

 निज दृगों में पराश्रु भरने से

  हर्ष मन में अपार होता है ।


वस्तुतः 'प्रवासी' जी अपने जीवनकाल में गांधी जी से काफी प्रभावित थे। गांधी दर्शन का प्रभाव केवल उनके आचार-व्यवहार पर ही नहीं बल्कि साहित्य पर भी परिलक्षित होता है। दरअसल, 'प्रवासी' जी उस पीढ़ी के साहित्यकार थे जिसने स्वाधीनता के संघर्ष में स्वयं भाग लिया था बल्कि राष्ट्र के लिए साम्प्रदायिक सद्भाव की आवश्यकता को भी अनुभव कर लिया था। तभी उन्होंने अपनी एक लम्बी कविता में लिखा है

यहाँ मन्दिरों में चलता है नित अर्जन पूजन

यहाँ मस्जिदों में अजान का होता मृदु गुंजन ।। गुरुद्वारों-गिरजाओं से नित मधुरम ध्वनि आती। 

सुन जिसको सानन्द प्रकृति, निजमन में हर्षाती।। आते यहीं विश्वपति धर तन, शत शत नमन करो।

 यह धरती सुरपुर सी पावन, शत-शत नमन करो ।।


'सीपज' 'प्रवासी' जी का चर्चित काव्य संग्रह है। यूँ उनकी 'प्रवासी सतसई', 'हिन्दी शब्द विनोद', 'बच्चों की फुलवारी' और 'मंगला' शीर्षक पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी है। किन्तु 'सीपज' अद्वितीय है। यह उनकी हिन्दी-उर्दू गज़लों का संग्रह है। 'सीपज' के जरिये प्रवासी जी ने हिन्दी कविता में एक विलक्षण प्रयोग किया है जो उनसे पहले शायद किसी ने नहीं किया है। 'सीपज' में 'प्रवासी' जी ने पूरी हिन्दी शब्दावली या हिन्दी वाक्यों का उपयोग करते हुए विशुद्ध हिन्दी गज़लें लिखी है। यूँ हिन्दी में गजल लिखने की परम्परा भी दशकों पुरानी हो चली है और गोपाल दास 'नीरज' जैसे गीतकार 'गीतिका' नाम से गज़ले कहते रहे हैं। स्वयं महेन्द्र प्रताप जी भी गीत-गजल के नाम से एक मिश्रित विधा का

उपयोग काव्य सृजन के लिए करते रहे हैं। अन्य हिन्दी कवियों ने भी विपुल मात्रा में गज़लें लिखी हैं। लेकिन दूसरे कवियों में जहाँ गजल के नाम पर उर्दू गजल की भोंडी नकल की है और उर्दू शब्दों का जमकर उपयोग किया है वही 'प्रवासी' जी की हिन्दी गज़लों में उर्दू के शब्द न केवल दुर्लभ हैं बल्कि छन्दशास्त्र की दृष्टि से भी वे एकदम 'परफेक्ट' है। जहाँ हिन्दी के कवियों ने गजल लिखते समय उर्दू के गज़लकारों की तरह इश्क, आशिक या महबूब जैसे परम्परागत प्रतीकों को अपनी आधार वस्तु बनाया है वहीं प्रवासी जी की हिन्दी गज़लें इन सबसे काफी दूर जान पड़ती हैं और वे सामान्य तौर पर हिन्दी गजलों में पाये जाने वाले दोषों से मुक्त है। यद्यपि "सीपज' में प्रवासी जी की उर्दू गजलें भी संग्रहीत हैं किन्तु हिन्दी गज़लों की दृष्टि से प्रवासी जी हिन्दी के कथित गज़लकारों के लिए न केवल एक मानक हैं बल्कि उनके आदर्श भी सिद्ध हो सकते हैं। अपनी एक गज़ल में प्रवासी जी ने लिखा है


'काव्य कहलाता वही जो गेय है,

छंद, यति गति हीन, रचना हेय है।

 निज प्रगति तो जीव सब ही चाहते। 

 किन्तु जग उन्नति मनुज का ध्येय है ।।


ऐसी बात गज़ल के जरिये और वह भी विशुद्ध हिन्दी शब्दावली में कहने की सामर्थ्य 'प्रवासी' जी में ही हो सकती है। यदि संक्षेप में 'प्रवासी जी के साहित्य को रेखांकित करना हो तो इसे सहज ही 'प्रेम, पीड़ा और आँसुओं का साहित्य' कहा जा सकता है। निज मन की पीड़ा उनके काव्य विशेषकर गज़लों का मुख्य स्वर रहा है। जैसे मोती सीपी से जन्म लेता है उसी तरह 'सीपज' 'प्रवासी' जी के उर की घनीभूत पीड़ा के परिणाम स्वरूप दृग-सीपियों से जन्मा है। जीवन के अभावों और विश्वासघातों ने कवि को शायद इतनी पीड़ा दी है कि दुख या अवसाद उनका स्थायी 'मूड' बन गया है। महान अंग्रेज कवि शैली की तरह 'मैलानकोली' सदैव उनके अवचेतन और सम्पूर्ण व्यक्तित्व पर हावी रहा है। शायद यूँ ही जीवन संध्या पर शैली द्वारा रची गयी प्रसिद्ध कविता 'स्टेन्जास रिटेन इन डिजेक्शन नियर नेपल्स' की तर्ज पर प्रवासी जी लिखते हैं 

पीर बढ़ती जा रही है क्या करें।

सुधि कभी की आ रही है, क्या करें ।।

स्वर हुये नीलाम, वीणा बिक गयी। 

गीत पुरवा गा रही, क्या करें ।। 

आज जन का विषमयी स्वर पान कर।

 ' साँस घुटती जा रही है, क्या करें।


महीयसी महादेवी वर्मा की 'मै नीर भरी दुख की बदली' की तरह 'प्रवासी' जी के काव्य में भी पीड़ा और अश्रुओं की बार-बार अभिव्यक्ति हुई है और हृदय की वेदना 'वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान' की तर्ज पर कविता के रूप में निःसृत हुई है। " सांत्वना दे दे हृदय को बींध जाता कौन है। विष बुझे स्वर्णिम चषक से मधु पिलाता कौन है।" इस दृष्टि से मन की पीर प्रवासी जी के लिए वरदान भी सिद्ध हुई है, क्योंकि अगर मन में पीड़ा न होती तो वे इतने समर्थ कवि कैसे बन पाते ?

'प्रवासी' जी ने बच्चों के लिए भी बहुत सी रचनाएं लिखीं। 'प्रवासी सतसई', 'बच्चों की फुलवारी' और 'बाल गीत मंजरी' (अप्रकाशित) उनकी प्रसिद्ध बाल कृतियां हैं, किन्तु 'प्रवासी' जी की बाल साहित्यकार के रूप में पहचान नहीं है। न ही बाल साहित्य के दृष्टिकोण से उनका मूल्यांकन किया गया है। यदि उनकी बाल रचनाओं का सम्यक मूल्यांकन किया जा सके तो कवि रूप में हम उनके एक और नये आयाम से परिचित हो सकेंगे।

 


✍️ राजीव सक्सेना

डिप्टी गंज

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

शुक्रवार, 21 मई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी जी के ग़ज़ल संग्रह "सीपज" की सुरेश दत्त शर्मा पथिक द्वारा लिखी गई भूमिका ।




छरहरा शरीर, लम्बा बदन, गौर वर्ण, सरस नेत्र, सिर पर गाँधी टोपी, आँखों पर बिना फैशन का चश्मा, पूरी बाँहों की कमीज, सादा सा पाजामा, पैरों में स्वर न करने वाले चप्पल, एक हाथ में छड़ी दूसरे हाथ में किताब, कापियों तथा कविताओं की नोटबुकों से आधा भरा थैला, धीमी धीमी चाल से चलता हुआ ऐसा व्यक्ति यदि आप को सड़क पर दिखाई दे जाए तो आप समझ लें कि यही हैं कविवर श्रीयुत बहोरन सिंह जी वर्मा 'प्रवासी'।

 सन् १९४९-५० में इनसे परिचय हुआ। नगर के अच्छे अध्यापकों में श्री प्रवासी जी की गणना होती है। 'शिक्षक संघ' के माध्यम से इन्होंने शिक्षकों की न्यायोचित माँगों को तीव्र स्वर दिया है तथा उनकी समस्या के समाधान हेतु शिक्षाधिकारियों को विवश किया है। अपने कर्त्तव्य के प्रति सदैव सजग रहे हैं तथा छात्रों के सर्वागीण विकास को पूजा से कम महत्व प्रदान नहीं किया है। इनकी दिनचर्या में अध्ययन और अध्यापन का प्रमुख स्थान है। माँ सरस्वती की सतत आराधना करके उनसे वरदान प्राप्त किया।

     साहित्यिक संस्था 'अन्तरा' तथा अन्य कवि गोष्ठियों में प्रवासी जी से कवितायें सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। 'तरन्नुम' के साथ तथा डूबकर कविता पढ़ते हैं। सुनने में अच्छा लगता है। सरल शब्दों में गहरी बात कहने में श्री प्रवासी जी सिद्धहस्त हैं। डा. अजय कुमार अग्रवाल 'अनुपम' प्रबन्धक, हिन्दी साहित्य सदन, मुरादाबाद, प्रायः मेरे पास रहते हैं। अभी कुछ दिन पूर्व उन्होंने श्रीयुत प्रवासी जी के गजल संग्रह 'सीपज के विषय में दो शब्द लिखने को कहा। उनके इस प्रस्ताव से मैं द्विविधा में पड़ गया। वास्तव में में इस गुरुतर कार्य के लिये अपने को अयोग्य मानता हूं। मैंने यह बात श्रीयुत अनुपम जी से कई बार कही। उन्होंने मेरी एक नहीं सुनी। विवश होकर उनके अनुरोध को स्वीकार करना पड़ा, क्योंकि श्रीयुत अनुपम जी से सम्बन्ध ही इस प्रकार का है। 'दो शब्द' जैसे हैं प्रस्तुत हैं।
        प्रस्तुत ग़ज़ल संग्रह 'सीपज' को आद्योपान्त पढ़ा। अच्छा लगा। अस्सी ग़ज़ल रूपी मोतियों को पिरोकर एक ऐसी सुघड़ माला बनायी गयी है जिसका प्रत्येक मोती अपनी अलग ही छवि बिखेर रहा है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि गीत एक ऐसा गुलदस्ता होता है जिसका प्रत्येक फूल अलग अलग रंग का होते हुए भी उसके सभी फूलों की गंध एक सी होती है जबकि ग़जल के सभी फूलों के रंग और गंध अलग भी हो सकते हैं। पूरे गीत का मूल भाव एक ही रहता है जबकि गजल के प्रत्येक शेर का भाव अलग होता है।
      श्रीयुत प्रवासी जी भावुक तथा गहरी परख वाले कवि हैं। उन्होंने समाज को गहराई से देखा है और उसकी अच्छाई बुराई को भली भाँति भोगा है। समाज की विसंगतियों को ध्यान पूर्वक देखा है। उनके सीपज का कथ्य उनके द्वारा भोगा हुआ सत्य है। प्रत्येक क्षेत्र में अन्याय को देखकर कवि के हृदय में एक टीस उठती है:
      'भव्यता कैसे रहेगी विश्व की,
      हर तरफ दुर्गन्ध ही दुर्गन्ध है। (गजल१)

चारों ओर अशान्ति का साम्राज्य देखकर कवि ने कहा है:
'शान्ति, जन को अब कहाँ से प्राप्त हो,
  शान्ति मंदिर ही हुआ जब ध्वस्त है
  भय प्रवासी को न शूलों का रहा होगा,
  यह हुआ उनका बहुत रहा, अभ्यस्त है। (गजल ९)

इसी भाव को अपनी ५६वीं ग़ज़ल में इस प्रकार कहा है..
'नुकीले बिछे पगपग डगर में,
नहीं ज्ञात कैसे पथिक चल रहा है।

जगत में सुख शान्ति लाने के जितने प्रयास हो रहे है, उतनी ही अशान्ति बढ़ रही है। 'मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों ज्यों दवा की इसको देखकर कवि निराशा भरे स्वर में कह उठता है:
मचा विश्व में आर्त्त क्रन्दन 'प्रवासी',
हुआ है व्यथा का शमन अब असंभव (गजल ४६)

निरीह भोली भाली जनता की दुर्दशा तथा उसको ठगकर ऐश्वर्य का जीवन जीने वाले नेताओं को देखकर कवि अत्यधिक दुःखी स्वर में कहता है:
कुछ समझ में नहीं आ रही है,
इस नियति चक्र की गति तनिक भी,
नीर को जो तरसते  कभी थे,
क्षीर को पी रहे हैं जगों से,
स्वप्न में भी यह आशा नहीं थी
जो मनुज की दशा हो गई अब,
लाज हिम के सदृश गल रही है,
नीर सा ढल गया है दृगों से। (गजल ७१)

वे आगे कहते हैं:
आज जन का विषमयी स्वर पान कर,
साँस घुटती जा रही है क्या करें ।' (ग़ज़ल७३)
हर ओर आज स्वार्थ की लहरा रही ध्वजा,
निःस्वार्थ कौन कर रहा उपकार आज कल
शुचि स्नेह, मान, नम्रता कब के विदा हुए
विद्रूप हो गया बहुत व्यवहार आजकल (गजल ७६
)

साहित्य शब्द में हित निहित है अतः जो साहित्य
समाज के हित हेतु न लिखा गया हो वह चाहे जो हो साहित्य नाम को सार्थक नहीं करता। श्रीयुत प्रवासी जी की मान्यता भी यही है। साथ ही वे काव्य में यति, गति छन्द तथा गेयता के पोषक हैं। वे कहते हैं:
हो न कल्याण-भावना जिसमें काव्य ऐसा असार होता है ।
न कल्याण हो जिस गिरा से किसी का
कहो शब्द विन्यास वाणी नहीं है। (गजल २८)

काव्य कहलाता छन्द, यति, वही जो गेय है।
छंद, यति, गति हीन रचना हेय है। (गजल ३९) ।

श्री प्रवासी जी धन, विद्या, काव्य तथा भक्ति के साधको को सिद्धि का मूल मंत्र बताते हुए कहते हैं:
लगन के बिना साधना है अधूरी,
सतत साधना सिद्धि मन्दाकिनी है।

पसीने की कमाई की प्रशंसा तथा कफन खसोट कर एवं दूसरों को सताकर कमाए धन को विष के समान बताते हुए कवि ने कहा है:

मिले जो सहज, श्रेष्ठ जानो उसे ही,
अलभ वस्तु पर दृष्टि अपनी धरो मत।
गरल बूँद, मधुक्षीर को विष बनाती,
कुधन से कभी कोष अपना भरो मत।
सुपथ से मिला अल्प धन ही बहुत है,
कुपथ से कभी द्रव्य अर्जन न करना।

  श्री प्रवासी जी ने श्रृंगार रस के बहुत से गीत तथा दोहे लिखे हैं। सीपज में भी श्रृंगार रस अछूता नहीं रहा है। कुछ शेरों को उदधृत करना पर्याप्त होगा:

हो गया दूर बालपन उनका,
अब बदलने लगा चलन उनका। गजल २

सृष्टि उस काल हो गई बेसुध
जिस समय वे सहज सँवर बैठे
प्राण की रूप माधुरी लखकर
क्या करें बातचीत भूल गए।

  उर्दू ग़ज़ल के अन्दाज में श्री प्रवासी जी कहते हैं: हटाओ नहीं चन्द्र मुख से अलक घन
मचल जायेंगे लख हटीले रसिक मन ।(गजल १२
)

परहित सरिस धरम नहिं भाई परपीड़ा सम नहिं अधमाई। गोस्वामी तुलसी दास जी के इसी भाव को श्री प्रवासी जी ने इस प्रकार व्यक्त किया है:

मनुजता की विमल व्याख्या यही है,
नयन गीले सुखाते जाइएगा । (ग़ज़ल २१)

मातृभूमि की सेवा करने की प्रेरणा देते हुए श्री प्रवासी जी कहते हैं:
एक दिन हर वस्तु होनी है विलय,
श्रेष्ठ कर्मों हो नहीं का सुयश अविलेय है।
सकता मनुज कोई उऋण
मातृभू का ऋण सभी पर देय है ।

मनुज की अशान्ति का कारण उसका लोभ और मोह है। कभी पूरी न होने वाली लालसाओं के चक्कर में पड़कर उसका सुख चैन गूलर का फूल हो गया है सन्तोष तथा त्याग ही शान्ति का आधार है, श्री प्रवासी जी कहते हैं:
लालसाएँ हैं कॅटीले जाल सी,
सर्व सुखदाता विषय का त्याग है।

कविवर रहीम जी ने एक दोहा लिखा है:
रहिमन अपने पेट सौं, बहुत कह्यों समझाय।
जो तू अन खायो रहै, तो सौ को अनखाय

इसी भाव को श्री प्रवासी जी ने अपने शब्दों में इस प्रकार कहा है:
सभी व्यक्ति होते सुजन इस धरा के,
व्यथित यदि न करती क्षुधानल उदर की।

दुःखालय संसार से संताप पाकर तथा विवश होकर प्राणी करुणालय एवं दीनबन्धु भगवान की शरण में जाता है। उन्हों की शरण में वह सुख शान्ति का अमृतपान करता है। श्री प्रवासी जी का कथन है:
तुम्हारे दर्श का प्यासा, तुम्हारे द्वार आया है।
कृपा की दृष्टि हो जाए बहुत जग ने सताया है ।।
कृपा जिस ओर हो  जाए तुम्हारी,
सुधा उसके लिए होता गरल है ।

अन्त में कहा जा सकता है कि कविवर भाई श्रीयुत प्रवासी जी ने सीधी सादी सरल भाषा रुपी धागे में मधुर भावों के रंग बिरंगे सीपजों को यत्नपूर्वक पिरोकर जो माला प्रस्तुत की है वह श्रोता तथा पाठकों के मन को मोहित किये बिना नहीं रह सकती। कला तथा भाव दोनों ही दृष्टियों से सीपज' एक अच्छी रचना है। श्रीयुत प्रवासी जी ने जनता की समस्याओं को तथा सुहृदयों के भावों को सीपज का कथ्य बनाया है। इसीलिये सीपज सभी पाठकों का मनोरंजन करते हुए आदर प्राप्त करेगी ऐसा विश्वास है। इस सुप्रयास के लिए भाई प्रवासी जी प्रशंसा के पात्र हैं। और इस संस्कृति को आप तक पहुंचाने के लिए हिन्दी साहित्य सदन मुरादाबाद तथा उसके प्रबन्धक डा. अजय अनुपम साधुवाद के अधिकारी हैं।

✍️ सुरेश दत्त शर्मा 'पथिक',मुरादाबाद

रविवार, 16 मई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी के व्यक्तित्व एवं कृतित्त्व पर साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से दो दिवसीय ऑनलाइन चर्चा


वाट्स एप पर संचालित समूह  'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार स्मृतिशेष बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर 14 व 15 मई 2021 को दो दिवसीय ऑन लाइन आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में श्री प्रवासी जी की प्रकाशित - अप्रकाशित अनेक रचनाएं, उनसे सम्बंधित चित्र प्रस्तुत किये गए।


मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ
के तहत आयोजित इस कार्यक्रम में संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी के जीवन एवं रचना संसार पर प्रकाश डालते हुए कहा कि  सम्भल के कस्बे सिरसी में आश्विन शुक्ल नवमी सम्वत 1979 को   जन्मे प्रवासी जी की काव्य रचनाओं में न केवल अध्यात्म व श्रृंगार रस का पुट है वरन देश में व्याप्त सामाजिक विद्रूपताओं, विषमताओं, शोषण तथा वर्तमान समस्याओं आदि का भी पुट मिलता है। 'प्रवासी पंच सई', 'मंगला' और 'सीपज' उनकी उल्लेखनीय काव्य कृतियाँ हैं। आपका निधन वर्ष 2004 में दीपावली के दिन 12 नवम्बर को हुआ   

प्रख्यात साहित्यकार यशभारती माहेश्वर तिवारी ने कहा  कि कविश्रेष्ठ बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी जी ने विभिन्न छंदों ,रूपों में लेखन किया है । अपने बेटे के निधन के बाद उन्होंने कुछ गीत लिखे जो वेदना नामक संग्रह में हैं ।इस दृष्टि से उन्हें मुरादाबाद के शोकांतिका लेखन का प्रथम रचनाकार होने का गौरव दिया जा सकता है । वे जिस पीढ़ी के थे उस कालखंड को देखते हुए कहा जा सकता है कि उनके कृतित्व का सही मूल्यांकन होना अभी शेष है  । मनोज रस्तोगी ने उन्हें विस्मृति के गर्भग्रह से बाहर निकाला है इसके लिए उन्हें साधुवाद। अब शोध अध्ययन में लगे लोगों का दायित्व है कि उनके सम्यक विश्लेषण से अपना दायित्वपूर्ण कर्तव्य का निर्वहन करें ।    

केजीके महाविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ मीरा कश्यप ने कहा कि बहोरन सिंह वर्मा 'प्रवासी ' ने मानवीय जीवन की विभिन्न सम्वेदनाओं को सहज -सरल रूप में जन - जन तक अपनी कविताओं के माध्यम से पहुंचाने का प्रयास किया है ।श्रृंगार की अनूठी अभिव्यंजना ,राष्ट्र के प्रति समर्पित क्रांतिकारी विचारधारा एवं पारिवारिक मूल्यों के साथ ही परम्पराओं को सहेजने का सफल प्रयास उनकी रचनाओं में दृष्टिगत होता है । तत्कालीन मूल्यों को बचाये रखने के साथ ही कवि अपने समय के साथ तमाम वैचारिक क्रांति को अपने साहित्य में समाहित करके चलते दिखते हैं

वयोवृद्ध साहित्यकार सुरेश दत्त शर्मा पथिक ने कहा प्रवासी जी ने सीधी सादी सरल भाषा रुपी धागे में मधुर भावों के रंग बिरंगे सीपजों को यत्नपूर्वक पिरोकर जो माला प्रस्तुत की है वह श्रोता तथा पाठकों के मन को मोहित किये बिना नहीं रह सकती।
वरिष्ठ साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा कि  श्री बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी जन जन के कवि थे ।उन्होंने विभिन्न सामाजिक विसंगतियों, असमानता, मानवीय मूल्यों के क्षरण, देशभक्ति के साथ साथ जीवन दर्शन और अध्यात्म पर भी अपनी कलम चलायी । इसके अतिरिक्त उन्होंने कहीं कहीं अपनी गज़लों में प्रेम को भी अत्यंत सहजता से परिभाषित किया।
    
वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा कि प्रवासी जी सम्वेदना, सरलता, सादगी की प्रतिमूर्ति थे। उनका साहित्य अध्यात्म के मर्म से भरा पड़ा है । उनका लेखन पीड़ा के अथाह सागर तरंगों जैसा है कहीं वियोग के दर्शन होते है तो कही मिलन की तीव्र आकांक्षा ।
बाल साहित्यकार राजीव सक्सेना ने कहा कि जीवन के अभावों और विश्वासघातों ने कवि को शायद इतनी पीड़ा दी है कि दुख या अवसाद उनका स्थायी 'मूड' बन गया है।
     
जनवादी रचनाकार शिशुपाल सिंह मधुकर ने कहा कि प्रवासी जी ने अपनी रचनाओं में समाज में गिरते मानवीय व सांस्कृतिक मूल्यों,घटती जाती भाईचारे की भावना, मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण, विभिन्न तरह की विसंगतियों तथा भ्र्ष्टाचार को उजागर किया है।   वरिष्ठ साहित्यकार डॉ कृष्ण कुमार नाज  ने कहा कि प्रवासी जी ने हास्य-व्यंग्य को छोड़कर लगभग सभी विधाओं पर लेखनी चलायी है। उन्होंने गीत भी लिखे हैं और नवगीत भी, बाल-कविताएँ भी लिखी हैं और भक्तिपूर्ण कविताएँ भी। लेकिन वह सोच के धरातल पर कभी डगमगाये नहीं। उनकी रचनाएँ शिष्ट भी हैं और विशिष्ट भी। समाज में फैली विसंगतियों और भ्रष्टाचार को भी उन्होंने निशाना बनाया है।         

रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा यह वर्ष उनका जन्म शताब्दी वर्ष (संवत 1979 - 2079) है। उनका मूल स्वर वेदना से भरा हुआ है ।  उनकी वेदना निजी नहीं थी ,वह सहस्त्रों हृदयों की भावनाएं थीं।  ऐसे कवि कम ही होते हैं जो संसार के राग और लोभों के प्रति अनासक्त रहकर लगातार ऐसी काव्य रचना कर सकें , जिसमें एक सन्यासी की भांति समय आगे बढ़ता जा रहा है और कवि उस यात्रा को ही मंगलमय मानते हुए प्रसन्नता से बढ़ता चला जा रहा है । श्री बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी एक ऐसी ही अमृत से भरी मुस्कान के धनी कवि हैं। 

फ़िल्म निर्देशक,निर्माता एवं साहित्यकार अशोक विश्नोई ने कहा कि प्रवासी" जी हिन्दी साहित्य जगत के अनमोल रत्न थे। उन्होंने हिन्दी गज़ल को एक नया मुकाम दिया। उनके साहित्य में समाज के विभिन्न रूपों के दर्शन हो जाते हैं।
         
युवा साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि प्रवासी जी का प्रकाशित साहित्य भले ही विपुल मात्रा में न हो,पर उसका स्तर मानक व प्रेरक है।उन्होंने राष्ट्रप्रेम,नीति,श्रृंगार,भक्ति आदि विविध विषयों पर अपनी लेखनी चलायी है।उनका मुख्य स्वर प्रेम का ही है।उन्होंने श्रृंगार के संयोग और वियोग दोनों ही पक्षों को अपनी कला से अलंकृत किया है। रीतिकालीन कवियों की भांति उनके श्रृंगारिक (संयोग) दोहे भी खासे ध्यानाकर्षित करते हैं।रूपक,उपमा और विशेषतः उत्प्रेक्षा अलंकार से सजे ये श्रृंगारिक दोहे नायिका का अद्भुत चित्रण करते हैं और सर्वथा हटकर बिम्ब प्रस्तुत करते हैं।
युवा साहित्यकार राजीव प्रखर ने कहा कीर्तिशेष बहोरन सिंह वर्मा 'प्रवासी' जी  मानवीय जीवन की विभिन्न संवेदनाओं को सरल व सहज रूप में पाठकों तक पहुँचाने में वह सफल रहे हैं। प्रकृति को आधार बनाते हुए श्रृंगार की अनूठी अभिव्यक्ति, राष्ट्र के प्रति समर्पित रहने का क्रांतिकारी आह्वान अथवा पारिवारिक मूल्यों को सफलता के साथ उभारने व उनके प्रति सचेत करने की उनकी मनोहारी ललक, सभी कुछ उनके एक महान रचनाकार होने का स्पष्ट समर्थन करता है।  
      
युवा साहित्यकार फरहत अली खान ने कहा कि उन की रचनाओं में श्रृंगार, भक्ति और कुछ हद तक वीर रस के साफ़ निशानात मौजूद हैं। विषयों की विविधता के पैमाने पर प्रवासी जी ग़ज़लकार से ज़्यादा दोहाकार और गीतकार थे।
 

रामपुर के साहित्यकार शिवकुमार चंदन ने कहा कि स्मृति  शेष  श्रद्धेय कवि श्रेष्ठ श्री  बहोरन सिंह  वर्मा  प्रवासी, आदरणीय  साहित्य पुरोधा कवि श्री पुष्पेन्द्र वर्णवाल सहित  अनेक  साहित्यिक क्षेत्रों के  मूर्धन्य साहित्यकार रामपुर के  साहित्यिक आयोजन में  आया करते थे और मुझे भी ऐसे  महान व्यक्तित्व के  धनी  कवि  साहित्यिक  व्याख्यान सुनने  एवं  उनके  सामीप्य का  लाभ  प्राप्त हुआ था ।
 
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय अनुपम  ने उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा - एक सरल व्यक्तित्व। कमीज़ पायजामा ,सिरपर सफेद टोपी, आंखों पर चश्मा,हाथ में बेंत,और कपड़े का एक थैला,पांव में चप्पल/जूता।एक श्रेष्ठ कवि, सशक्त हिन्दी ग़ज़ल कार। इस सम्पूर्ण छवि का नाम था बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी।
     
वरिष्ठ साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी ने उनसे सम्बंधित संस्मरण प्रस्तुत किये।  उन्होंने कहा कि राष्ट्र भाषा हिंदी प्रचार समिति की ओर से हिंदी दिवस(14 सितंबर) को लाइनपार स्थित प्रज्ञा पीठ मंदिर में उनका सम्मान किया गया था। कार्यक्रम समयानुसार प्रारंभ हुआ।शहर के गणमान्य साहित्यकारों की उपस्थिति ने कार्यक्रम को और भी भव्यता प्रदान की।सम्मान प्रदान करने का शुभ समय आया।मैंने और आदरणीय दया शंकर पांडे के साथ-साथ श्री अनजाना जी,ने शॉल ओढ़ाकर तथा श्री अशोक विश्नोई ,डॉ प्रेमवती उपाध्याय जी ने श्री फल देकर बहुत हर्ष व्यक्त किया।आपके जीवन परिचय पढ़ने का कार्य आदरणीय व्योम जी द्वारा सम्पन्न किया गया।
     
गजरौला की साहित्यकार रेखा रानी ने कहा कि  प्रवासी जी का व्यक्तित्व नए रचनाकारों के लिए एक आदर्श है। उनके गीत ग़ज़ल सभी से एक बात परिलक्षित होती है कि वह प्रतिपलवेदना में डूबे हुए  ही प्रतीत होते हैं।साहित्य जगत के जगमगाते सूरज,  एकदम सरल व्यक्तित्व के धनी" सादा जीवन उच्च विचार" उक्ति को चरितार्थ करते शत शत नमन ।
अंत में प्रवासी जी के पौत्र राहुल वर्मा ने  कहा कि साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से डॉ मनोज रस्तोगी के संयोजन में आयोजित इस कार्यक्रम से हम सभी परिजन प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं । उन्होंने कार्यक्रम में शामिल सभी साहित्यकारों का आभार व्यक्त किया।
   
   

रविवार, 2 मई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी की काव्य कृति - प्रवासी - पंच सई । उनकी यह कृति अशोक प्रकाशन मुरादाबाद द्वारा वर्ष 1981 में प्रकाशित हुई थी। इसकी भूमिका लिखी है डॉ जयनाथ नलिन ने । इस कृति में उनके 504 दोहे संगृहीत हैं .....


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डॉ मनोज रस्तोगी

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मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

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शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी की कृति ---मंगला । यह कृति वर्ष 1999 में अशोक विश्नोई ने सागर तरंग प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की थी । इस कृति में उनके 57 भक्तिपद संगृहीत हैं। इसकी भूमिका लिखी है -- उमेश पाल वर्णवाल 'पुष्पेंद्र' ने ।


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गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी का गीत ---- उनका यह गीत लगभग 54 साल पहले प्रकाशित गीत संकलन 'उन्मादिनी' में प्रकाशित हुआ था। यह संग्रह कल्पना प्रकाशन , कानूनगोयान मुरादाबाद द्वारा सन 1967 में शिवनारायण भटनागर साकी के संपादन में प्रकाशित हुआ था। इस संग्रह में देशभर के 97 साहित्यकारों के श्रृंगारिक गीत संग्रहीत हैं। इसकी भूमिका लिखी है डॉ राममूर्ति शर्मा ने


 

कैसे तेरी छवि मद का स्वागत करूं 


किसने छेड़े तार हृदय की बीन के ।

किसने छेड़ी आज प्रणय की रागिनी ।।

कैसे बाँधू मुक्त केश - घन पाश में, 

कैसे तेरे नयनों की मदिरा  पियूँ। 

कैसे वारूँ उर अलि तब मुख कंज पर, 

कैसे तब अधरामृत पी युग-युग जियूँ।।

कैसे तेरी स्नेह वृष्टि स्वीकृत करूँ।

 मेरा उपवन ताक रही है दामिनी ।। किसने......


मेरा नन्दन आज विभा से रिक्त है, 

शूल मयी हैं सब सुमनों की क्यारियाँ, 

नहीं सुरभि के मादक झोंके हैं कहीं, 

उड़ती हैं केवल विषमय चिंगारियाँ ।। 

कैसे वारूँ सुमन मराली चाल पर, 

फिरती है उन्मुक्त विषमता नागिनी ।। किसने......


वैशाली की माँग अभी सूनी पड़ी, 

मिले धूल में रो-रो पटना के भवन । 

पुलिनों के दृग पंथ किसी का देखते, 

सूखे अब तक नहीं वीचियों के नयन | 

कैस तेरी छवि-मद का स्वागत करूँ ।

विधुरा है सम्प्रति सुरसरि उन्मादिनी ।। किसने .....


✍️ बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी


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सोमवार, 19 अप्रैल 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी की कृति ---सीपज । यह कृति साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य सदन द्वारा वर्ष 2000 में प्रकाशित हुई थी । इस कृति में उनकी 80 हिन्दी ग़ज़लें और 30 उर्दू ग़ज़लें संगृहीत हैं। इसकी भूमिका लिखी है --सुरेश दत्त शर्मा पथिक और डॉ आरिफ हसन खान ने ।

 


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