लघुकथा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
लघुकथा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 29 जून 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा .... सही निर्णय


 सुधा के पति के देहांत को आज दस दिन पूरे हो गए ।उसकी दोनों बेटियां मोनिका और मीनू  घर को व्यवस्थित करने में लगी थी। तभी सुधा ने आकर कहा," मीनू ,अपने चाचा से कहो कि वह अपने लिए घर देख ले।" सुनकर दोनों बेटियां अचंभित हो गई क्योंकि बचपन से ही चाचा हर्ष उनके साथ रह रहे थे ।उनके बचपन का बहुत सारा सुन्दर समय उन्होंने चाचा के साथ व्यतीत किया था । पिता ने सदैव भाई को पुत्र की तरह रखा। 

      मां की बात सुनकर मोनिका बोली," मां ,अब इस उम्र में चाचा कहां जाएंगे ?आप सोचो पापा ने हमेशा चाचा को अपने साथ रखा"। इस पर सुधा ने तटस्थ रहकर उत्तर दिया," अब वो चले गये। लेकिन मुझे घर खाली चाहिए और कोई आमदनी का जरिया नहीं है किराए पर मकान दूंगी जिससे मुझे किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा"। सुनकर बेटियां ही नहीं दरवाजे पर खड़े उसके देवर हर्ष भी आश्चर्य चकित थे। बेटियों ने बहुत समझाने की कोशिश की मगर वो अपने निर्णय पर अडिग रही।हमेशा से आज्ञा कारी रहे हर्ष ने इसे भी स्वीकार कर लिया।रात में घर से बाहर सामान लेकर जाते हुए चाचा को देखकर सबका दिल जार जार  जोर रहा था।सुधा भी तटस्थ खड़ी थी ।उसके कानों में मामी चाची के कई शब्द गूंज रहे थे," एक  दो दिन मे बेटियां अपने घर चली जाएंगी तो अकेले मर्द के साथ घर में रहेगी । पीछे पता नहीं क्या क्या होगा"।अब किसी को कुछ कहने का अवसर नहीं मिलेगा समाज के कारण अपने मन पर पत्थर रखकर वह सब देख रही थी।                

✍️ डॉ श्वेता पूठिया 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

बुधवार, 26 अप्रैल 2023

मुरादाबाद जनपद के ठाकुरद्वारा निवासी साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की लघुकथा ....अपना बनता है

   


"यार एक डबल बैड बनवाना था, तुम्हारी कोई जानपहचान वाला हो तो बताओ जो ठीक-ठीक लगा ले और अच्छी चीज दे।" सुरेंद्र ने अपने दोस्त असद से कहा।

 "हाँ-हाँ क्यों नहीं, चलो मेरे साथ आज ही बात करवा देता हूँ।" असद ने अपनेपन से कहा और बाइक स्टार्ट कर ली।

 "देखो ये दुकान अपनी ही समझो, बहुत अच्छी चीज देगा और दाम बिल्कुल बाजिब लगाएगा।" असद ने एक दुकान के बाहर बाइक रोकते हुए कहा।

 "ठीक है यार चलो फिर देख लेते हैं कोई अच्छा सा बैड।" सुरेंद्र ने कहा।

  "तुम जाकर देखो मुझे जरा आगे कुछ काम है, मैं अभी दुकानदार से कह देता हूँ।" असद ने बिना बाइक बन्द किये कहा और तेज़ आवाज में दुकानदार से कहा, "अरे भाई क्या हाल हैं? जरा इन्हें एक अच्छा सा बेड दिखाओ और ठीक-ठीक लगा लेना अपना बन्दा है।"

  सुरेंद्र ने डबलबेड पसन्द कर लिया सौदा भी हो गया और बेड घर आ गया।

 कुछ दिन बाद उनका एक दोस्त दानिश उनसे मिलने आया और पूछने लगा, "अरे सुरेंद्र भाई ये बेड कितने का लाये?

 "बारह हजार का लिया यार, दुकानदार तो पन्द्रह से नीचे नहीं आ रहा था वो तो असद भाई ने उससे कहा कि अपना बन्दा है तब उसने बारह लिए।

 सुरेंद्र की बात सुनकर दानिश जोर-जोर से हँसने लगा।

 "क्या हुआ दानिश! तुम ऐसे हँस क्यों रहे हो?" सुरेंद्र ने हैरान होते हुए पूछा।

 "अपना बन्दा नहीं अपना बनता है बोला होगा असद ने, वह तो कमीशन एजेंट है बोले तो दलाल। यही बेड कल ही मैंने दस हज़ार का अपने भाई को दिलाया है। तुमसे दुकानदार ने दो हजार असद के ले लिए।

 क्या करें उसका बनता है यार...!" दानिश ने कहा और फिर और तेज़ हँसने लगा।


  ✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"

  ठाकुरद्वारा 

मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

गुरुवार, 20 अप्रैल 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की लघुकथा..... सौतेली बेटी

.


....पिता को लेकर रागनी अपने घर पहुंची .....रागिनी के कानों में अभी तक अपनी सौतेली मां के शब्द "अगर ज्यादा परेशानी है तो अपने बाप को अपने साथ ले जाओ हमसे सेवा नहीं होती."गूंज रहे थे.......

......आसाराम ने अपनी सारी जमीन जायदाद  दूसरी पत्नी से जन्मे अपने दोनों बेटों के नाम कर दी थी उनकी दूसरी पत्नी व बेटों ने पति को बाहर के एक कमरे में बदहाल हालत में छोड़ दिया था रागिनी उनकी पहली पत्नी की संतान थी जो शहर में अपने पति के साथ रहती थी उसकी शादी में सौतेली मां ने कुछ भी नहीं दिया था यहां तक की रागनी के लिए उसकी मां द्वारा छोड़े गए गहने तक न देकर अपनी दोनों बहुओं को चढ़ा दिए थे...और उससे नाता तोड़ लिया था...परंतु जैसे ही रागनी को पता लगा पिता की  हालत बीमारी के कारण बहुत खराब है मां बीमारी में दवा एवं खाना भी ठीक से नहीं दे रही है तो उससे न रहा गया वह उन्हें देखने गांव पहुंची  मां ने झट कह दिया" ज्यादा लाड़ है तो इन्हें अपने साथ ले जाओ हमसे नहीं होती इनकी सेवा....! "

....आशाराम को बड़े चैन का अनुभव हो रहा था परंतु उसकी आखों में पश्चाताप एवं विवशता  के आंसू थे...... ! 

✍️ अशोक विद्रोही

412 प्रकाश नगर

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

 मो 82 188 25 541

बुधवार, 19 अप्रैल 2023

मुरादाबाद जनपद के ठाकुरद्वारा की साहित्यकार चक्षिमा भारद्वाज ’ खुशी’ की लघु कथा ...... टूटे टुकड़े



 "अरे रामरती तेरी बहु ने ये नई गगरी फोड़ दी तूने उसे कुछ कहा क्यों नहीं?" हिरादेई ने कुएँ पर मटकी टूटने के बाद बहु के नई मटकी लेने जाते ही पीछे से कहा।

 "क्या मटकी के ये टुकड़े जुड़ सकते हैं हिरा?" रामरती ने उल्टा हिरादेई से सवाल कर दिया।

 "नहीं तो! टूटी हुई चीजें भी भला कभी जुड़ती हैं।" हिरादेई ने मुँह बनाकर कहा।

 "तो फिर इस मिट्टी की मटकी के टूट जाने पर मैं अपनी बहू को खरी-खोटी सुनकर उससे अपने रिश्ते क्यों तोड़ लूँ? जब इस मटकी को नहीं जोड़ा जा सकता तो क्या हमारे रिश्ते में आई दरार को जोड़ा जा सकेगा? और फिर मेरी बहु का पैर यहाँ की कीचड़ पर फिसल गया था जिसके कारण मटकी फूटी। मेरी बहू ने इसे जानबूझकर तो तोड़ा नहीं...।" रामरती ने कहा और हिरादेई को अनदेखा करके आगे बढ़ गयी।


✍️ चक्षिमा भारद्वाज "खुशी"

ठाकुरद्वारा, मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेंद्र की लघुकथा..... ' मुक्ति '

   


वह भागती -दौडती, चीखती-चिल्लाती पुलिस स्टेशन के गेट तक पहुंची ही थी, कि मोटर साईकिल से पीछा करते गुण्डे ने आकर उसकी कमर और कनपटी पर दो फायर झोंक दिये और फरार हो गया।वह वहीं पर औंधे मुंह गिर पडी । उसके एक हाथ में दरख्वास्त थी। खून से लथ-पथ उसका शरीर निढ़ाल पडा था। भीड इकट्ठा हो गई । भीड से आवाज आई । बेचारी कई दिन से थाने के चक्कर काट रही थी।कोई सुनने वाला ही नहीं था। 

       चलो अब ईश्वर ने उसकी सुन ली। उसे इस नरक के जंजाल से अपने पास बुला लिया। गुण्डों से मानो वह भी डरता हो। इसलिए ,उनका कुछ न बिगाड़ पाया। उस निर्दोष महिला को मुक्ति दे दी।

 ✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र'

चन्द्र नगर, मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा....'संस्कारी बेटा '


"ट्रीन ...ट्रीन ...ट्रीन ...!"

"अरे जगत फोन उठा बेटा ...।"माँ रसोई में से बोलीं 

"हां ...हेल्लो ...अच्छा शुभि ..हाँ लायब्रेरी से ले लेना ...ठीक है ...ठीक है ।"

"किसका फोन है बेटा ?"

"माँ वो शुभि का था ...पूँछ रही थी कौन कौन सी बुक्स ले लूँ ?"जगत ने मोबाइल टेबल पर रखते हुए कहा ।

"भैया कह रही होगी !"निकिता जगत की बहिन ने व्यंगात्मक लहजे में कहा ।

"हाँ तो क्या हुआ ?"जगत ने उसके पास बैठते हुए कहा ।

"जगत अगर तुम यूँ ही हर लड़की के भाई बनते गए न तो देख लेना तुम्हारी तो शादी होने से रही ।

"चुप कर निकिता क्या बोलती रहती है ?"माँ ने निकिता को डाँटा ।

"बोलने दो माँ इसको ।"जगत ने हँसकर कहा ।

"तुमको बुरा नहीं लगता ...कॉलेज में 'अड़ोस पड़ोस में रिश्तेदारी में सब लड़कियाँ तुमको भैया भैया कहकर पुकारती हैं ।"निकिता ने फिर मुँह बनाया ।

"मैं उनकी हेल्प करता हूँ कह देती हैं मुझे अच्छा लगता है ।"जगत ने चाय का घूँट भरते हुए कहा ।

माँ रसोई में खड़ी मुस्करा रहीं थीं ।

"तो तुमतो क्वारे ही रहोगे ।"निकिता ने जगत को फिर चिढ़ाया ।

"ठीक है ।"जगत ने मुस्कराते हुए कहा ।

"क्या ठीक है ...अरे डाँट दिया करो लड़कियों को जब तुमसे भैया कहें ।"

"तुझे डांटता हूँ क्या बता ?सब में मुझे तू ही दिखती है । रही शादी की बात तो शादी तो एक लड़की से होगी और प्यार भी एक से ही फिर सब पर ट्राई मारकर खुद की आत्मा को मैला क्यों करूं ?"जगत ने निकिता से कहा तो निकिता को अपने भाई और माँ को अपने बेटे को दिए संस्कारों पर गर्व हो उठा ।

✍️ राशि सिंह 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश , भारत


गुरुवार, 6 अप्रैल 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ......सच


संस्था के मुखिया के साथ दुर्व्यवहार होता रहा और किसी को पता तक नहीं कैसे गैर जिम्मेदार लोग हो ....... देखा नहीं तो सुना तो होगा कान तो खुले होंगे ......। "जांच अधिकारी ने सवाल किया ...."।                                                    मैं भी औरों की तरह  मुंह लटकाए गूंगा बहरा बना रहा क्योंकि सच बोलना उस समय किसी गुनाह से कम न था ।                                                                               मन करता है साले सबको सस्पैंड करूं ........ताकि लापरवाही करना भूल जाएं।अधिकारी बड़बड़ाते हुए चला गया और सच अब भी कही दबा पड़ा था ।


✍️ डॉ प्रीति  हुंकार 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा.....सफाई


 गंगा  के स्वच्छता अभियान के सफलतापूर्वक पूर्ण होने के उपलक्ष्य में एक भव्य आयोजन चल रहा था।

"सबसे पहले सफाई अभियान की पूरी टीम को बहुत बहुत बधाई। अब ये हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम गंगा को स्वच्छ बनाए रखें।"नेताजी ने इन शब्दों के साथ अपना भाषण समाप्त किया और गंगा में स्नान करने की इच्छा जताई। 

 उनकी इस इच्छा को जानकर,सफाई टीम में खुसर फुसर शुरू हो गई । "बड़ी मुश्किल से तो गंगा साफ हुई है ......."


✍️डॉ पुनीत कुमार

T 2/505 आकाश रेजीडेंसी

आदर्श कॉलोनी रोड

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा --मौसी का घर


  " अरे आप आ गये सरला ने अपने पति की ओर इशारा करके कहा," आपके साथ रानी भी आई है।

 रानी ने नमस्ते मौसी कह कर सम्बोधित किया।

---ठीक है ठीक है चलो आपने यह अच्छा किया, मैं काम करते - करते थक जाती हूँ यह चौक्का बर्तन कर दिया करेगी मेरा भी काम हल्का हो जायेगा," क्यों बेटी ?"

अब रानी क्या कहे वह मौसी को टेढ़ी निगाह से निहारती रही------।।

        

✍️ अशोक विश्नोई

  

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की लघुकथा .... प्रायश्चित


एक सप्ताह से डॉ जगदीश प्रजापति घर नहीं लौटे थे। उनकी पत्नी शकुंतला को उनकी बहुत चिंता हो रही थी। 

 "न जाने यह सरकार क्या करके छोड़ेगी, लोग बीमारियों से मर रहे हैं और सरकार ने सारे डॉक्टरों को नसबंदी के काम में लगा रखा है। ऊपर से टार्गेट भी फिक्स कर दिए हैं, अब या तो टारगेट जितनी नसबंदी करो या फिर कार्रवाई के लिए तैयार रहो। न जाने क्या होने वाला है, मेरा मन बहुत घबरा रहा है।" शकुंतला परेशानी में खुद से ही बातें कर रही थी तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।

 "कौन ??" शकुंतला ने दरवाजा खोलते हुए पूछा।

 दरवाजा खोलते ही जैसे उसकी साँस ही अटक गयीं। बाहर अस्पताल के दो कर्मचारी डॉ जगदीश को सहारा देकर खड़े थे। 

 "क्या हुआ उन्हें?? है ईश्वर दया करना।" शकुंतला ने अपने पति को ऐसे देखकर हाथ जोड़ते हुए कहा और उनके आने के लिए जगह छोड़कर खड़ी हो गयी।

 "क्या हुआ जी आपको? आप ऐसे कैसे आये हो, इन लोगों का सहारा लेकर?" जब अस्पताल वाले चले गए तो शकुंतला ने अपने पति के पास बैठते हुए पूछा।

 "शकुंतला! उस दिन नसबंदी के टारगेट में एक की कमी थी तो...", जगदीश जी ने धीरे से कहा।

 "हे भगवान! तो क्या आपने खुद की...? अभी तो हमारे कोई संतान भी नहीं हुई है और आपने अभी से...?" शकुंतला किसी अनहोनी की आशंका से लगभग बेहोश सी हो गयी थी।

 "संभालो खुद को शकुंतला, हमारे जैसे लाखों नौजवान हैं जिनकी संताने नहीं हैं, कितनों के तो विवाह तक भी नहीं हुए हैं और इस नसबंदी की आँधी उन्हें उजाड़ चुकी है। कितने तो मेरे ही हाथों..., बस उसी का प्रायश्चित करने के लिए मैं भी... अब मुझे इसी बहाने कुछ दिन की छुट्टी भी मिल जाएगी शकुंतला, मैं और पाप करने से बच जाऊँगा।" जगदीश जी ने कहा और दोनों की आंखों से आँसू बहने लगे।

✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"

 ठाकुरद्वारा 

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेंद्र की लघु कथा .....परीक्षाफल

       


आज प्रियांश का परीक्षाफल मिलना है। निधि  बन-संवर कर अपने पति के साथ स्कूल पहुंच गई। प्रियांश ने शुरु से एल०के०जी० और यू०के०जी० में अपनी क्लास में सर्वोच्च स्थान प्रप्त किया था। इस बार भी उसे पूर्ण विश्वास था कि  उसका प्रियांश ही क्लास में सर्वोच्च स्थान पर  होगा।

         स्कूल के खुले मंच पर पर मैडल व रिजल्ट देने के लिए प्रधानाचार्या ने जब प्रियांश की जगह किसी और बच्चे का नाम पुकारा तो निधि का चेहरा उतर  गया । तालियों की गडगडाहट उसके कानों को चुभ रही थी। इस बार स्कूल की एक अध्यापिका के बेटे ने सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया था।  उसने सोचा उसका प्रियांश दूसरे नम्बर पर रह गया। लेकिन जब न तो दूसरे और न ही तीसरे नम्बर पर  प्रियांश का नाम लिया गया तब निधि ब्याकुल हो गई और रोने लगी। वह स्कूल की प्रिंसपल और क्लास टीचर को खूब भला-बुरा कहती रही। उसने पक्षपात का आरोप लगाते हुए खूब शौर मचाया। पति ने उसे किसी तरह सम्हाला। स्कूल की छुट्टी हो चुकी थी। अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को लेकर जा चुके थे। निधि अभी भी कुर्सी में निढ़़ाल पडी थी। वह निराशा के सदमे से उभर नहीं पाई। उसका पति भी कम उदास और परेशान नहीं  था लेकिन उन दोनों का लाडला प्रियांश स्कूल में लगे झूले पर ऊंची-ऊंची पेंगे लगाने में मस्त था । 

✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र'

श्रीकृष्ण कालोनी, चन्द्र नगर

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघु कथा ... 'सच्चा सुकून '



पूरा स्कूल का हॉल विद्यार्थियों और पैरेंट्स से भरा हुआ था । बच्चे चहक रहे थे । जब रिजल्ट की घोषणा हुई तो सिया आश्चर्यचकित रह गयी अपनी बेटी दिव्या की प्रथम श्रेणी देखकर एल के जी में देखकर ।

जब सिया रिजल्ट लेने गयी तो प्रधानाचार्य ने एक माँ के रूप में उसकी बहुत प्रशंसा की । सुनकर भाव विभोर हो गयी और अतीत में खो गयी ।

"मम्मी ...मम्मी |"छोटी सी दिव्या ने तोतली जुबान से सिया की साड़ी का पल्ला पकड़कर कहा ।

"हाँ ..क्या चाहिए मेरी विटटो को ?"सिया ने दिव्या को प्रेम से गोदी में उठाकर सीने से लगाते हुए कहा ।

"जब आप ऑफिस जाती हो न ..!"

"हाँ ..हाँ बोलो क्या हुआ ?"

"तब मुझे न ....मुझे न ...आपकी बहुत याद आती है ।"नन्ही सी दिव्या ने आँखों में आँसू भरते हुए कहा ।

"बेटा आप भी तो स्कूल जाते हो न ...फिर दादी कितना प्यार करती हैं ?"सिया ने दिव्या का गाल पर ममत्व से हाथ फेरते हुए कहा ।

"पर मैं तो जल्दी आ जाती हूँ न ...फिर मैं आपका इंतजार करती रहती हूँ ।"

"दादी तो कह रहीं थीं कि आप बहुत खेलती हो मेरे जाने के बाद ।"

"खेलती तो हूँ ,मगर आपकी याद आती है । आप ऑफिस मत जाया करो प्लीज ।"नन्ही दिव्या ने मम्मी के दोनो गालों को अपनी छोटी -छोटी हथेलिओं से पकड़ते हुए कहा ।

सिया ने दिव्या को सीने से चिपका लिया और प्रण किया कि जब तक दिव्या थोड़ी बड़ी नहीं हो जाती वह ऑफिस नहीं जायेगी । सारा वक्त बेटी के साथ बिताएगी अपनी आत्मिक संतुष्टि और बेटी के विकास के लिए ।

"मम्मी घर चलो न ।"दिव्या ने माँ का हाथ हिलाया 

सिया बेटी की  ट्रॉफी  पाकर आज बहुत ही अच्छा महसूस कर रही थी । ऐसी खुशी उसको कभी महसूस नहीं हुई ।

✍️राशि सिंह 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


गुरुवार, 30 मार्च 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेंद्र की लघुकथा ...…झटका

         


रजत सरकारी विभाग में सामान्य लिपिक के पद पर था। उसने अपने वेतन से कभी कुछ नहीं निकाला।  उसकी ऊपर की कमाई बे-हिसाब थी। उसी से उसका घर-बाहर का सारा खर्चा चलता था। उसके शौक महंगे थे। रजत की पत्नी कामिनी भी कहीं कम नहीं थी। अपनी पसंद के पहनावे से लेकर ज्वैलरी और मेक-अप आदि पर खुल कर खर्च करती। उसके पास एक से बढ़ कर एक ब्राडेड कंपनी का सामान रहता। वह तीन-तीन किटी पार्टिंयों की सदस्य भी थी।  

         महिला डाक्टर ने कामिनी को अगले माह के आखिर में शिशु पैदा होने की संभावित तिथि दी थी। डिलीवरी के लिए उसने शहर के सबसे बडे और मँहगे अस्पताल का चयन कर एडवांस धन जमा कर दिया और नियमित डाक्टरी सलाह ले रही थी। शिशु के जन्म पर दोनों पति-पत्नी जन्मोत्सव मनाने के अभी से ऊंचे-ऊंचे स्वप्न संजोने में लगे थे। उसको बाहर घूमने-फिरने के लिए सख्ती से मना किया गया था लेकिन आज तो अपने भाई के 'वैवाहिक सालगिरह' के समारोह में  उसको हर हाल में जाना था। उसने इसकी  पहले से सब तैयारी कर रखी थी। उसे क्या पहनना है? रजत क्या पहनेगा? इस बारे में वह बडी उत्सुक थी । भाई के लिए महंगे से महंगे उपहार भी खरीद लिये  थे। बिना मेहनत की कमाई हुई धन-दौलत से खुशियां खरीदने का जब कोई अभ्यस्त हो जाता हैं तब उसका ज्ञान व विवेक मर जाता है। कामिनी भी अपने मायके में अपनी शान-शौकत का दिखावा करने हेतु अति उत्साहित थी।

         रजत को आफिस से आने में देर होती जा रही थी। घडी़ की सुई के साथ-साथ कामिनी का पारा भी बढ़ता जा रहा था। उसके चेहरे पर  क्रोध व चिंता के लक्षण एक साथ दिखने लगे थे।  वह कितनी बार रजत को फोन कर चुकी थी लेकिन फोन मिल कर ही नहीं दे रहा था। कुछ देर बाद फोन भी बंद जाने लगा। अब तो कामिनी की परेशानी और अधिक बढ़ गई। वह कुछ समझ नहीं पा रही थी कि क्या किया जाय।

         वह बार-बार दरवाजे और खिडकिंयों में झांकती कभी बैठ कर फोन लगाने की कोशिश करती । अचानक उसके मोबाइल की घंटी बजी। उसने तेज कदमों से जाकर डाइनिंग टेबिल पर रखा अपना फोन उठाया। 

... हेलो। दूसरी तरफ से एक कड़कदार आवाज आई।

....आप रजत की पत्नी बोल रहीं है क्या? वह लडखडाती हुए बोली ... हां..आप कौन? ....देखिये मैं पुलिस आफीसर बोल रहा हूं। हमने अभी-अभी आपके पति रजत को 50000 रुपये रिश्वत लेते रंगे हाथों  गिरफ्तार किया है...... यह सुनते ही उसके हाथ से मोबाइल छूट कर गिर पडा।एक झटके में कामिनी औंधे मुंह फर्श पर आ गई-

                     

✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र '

श्रीकृष्ण कालोनी, चन्द्र नगर,

मुरादाबाद244001

उत्तर प्रदेश, भारत

बुधवार, 1 मार्च 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ..'इतना आसान कहाँ ' ​


शुभि ने जल्दी जल्दी सारा घर का काम निपटाया और तैयार होकर सोफे पर बैठकर छोटे बेटे कुणाल की स्कूल शर्ट का बटन टाँकने लगी, साथ ही मन में कल की घटना भी उसको रह रह कर याद आ रही थी ।

​सोचने लगी "आजकल के बच्चे भी न ....पता नहीं क्या होता जा रहा है ?"

​कल उसकी बेटी सान्या का बर्थडे था , बस बच्चों को तो मौका मिल जाए गिफ्ट का , फिर भले ही उसकी जरूरत हो या न हो ।

​"मॉम मुझे इस बार कुछ नया गिफ्ट  चाहिए ....जो मेरी किसी फिरेण्ड के पास नहीं हो । "बेटी ने ठुनकते हुए कहा ।

​"मगर बेटा ...किसी की होड़ थोड़े ही करते हैं ...जिसकी जरूरत हो ....l"

​"मॉम प्लीज यह जरूरत वाली बात मुझे अच्छी नहीं लगती ....डैड देखो न मम्मा ...l"

​"ठीक तो कह रही है तुम्हारी मम्मी l"सूरज ने भी डरती हुई आवाज में कहा l

​"बस रहने ही दो मुझे नहीं जाना आपके साथ मार्केट ...l"चिढ़ते हुए सान्या ने कहा और पैर पटकते हुए अपने कमरे में भाग गई l

"​सान्या.........l"दोनों आवाज देते रह गए l

​"क्या जरूरत थी उसको ज्ञान देने की ?"सूरज का भी मूड खराब हो गया l

​"आप भी न ....चढ़ा लो इस लड़की को सिर पर ...क्या समझाना बुरी बात है ?"शुभि ने चिढ़कर कहा l

​"नहीं ...मगर अब कुछ माँग रही है तो देना ही होगा l"

​"और क्या देना ही होगा ...डिमांड तो रोज बढ़ती ही जा रहीं हैं दोनों की ...सुर भी तो कुछ कम नहीं l"

​"अभी तो दोनों आठवीं और दसवीं कक्षा में हैं ...पता नहीं आगे क्या होगा ?"शुभि ने संदेह व्यक्त करते हुए कहा l

​"शुभि तुम क्यों परेशान हो ....आजकल पेरेंट्स होना कोई इतना आसान नहीं ...हमारे तुम्हारे जैसा जिनके लिए माँ बाप की बात मानना भगवान की बात से भी ज्यादा आवश्य था l"

​तभी दरवाजे की घंटी बजती है वह उठकर दरवाजा खोलती है l

​"अरे आप तो तैयार हैं ....मैँ अभी रेडी होकर आती हूँ l"

​सान्या ने बैग सोफे पर पटकते हुए कहा l

​अपनी जीत पर सान्या बहुत खुश जो थी आखिर पेरेंट्स को हरा जो दिया था l

​रात खाना इसने तभी खाया  था जब यह तय कर लिया कि जो मांगेगी  वही  दिलाना पड़ेगा l

​✍️ राशि सिंह 

​मुरादाबाद 244001 

उत्तर प्रदेश , भारत


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ....हार या जीत


दौरे के बाद राधा अभी अभी आफिस आकर बैठी ही थी कि फोन आया मैडम आप तुरंत घर आइये दुर्घटना हो गयी। इससे पहले वह कुछ पूछती, फोन कट गया।ड्राइवर से गाडी़ निकलवा कर वह घर पहुंची। बाहर पुलिस की और लोगो की भीड़ जमा थी।घबराहट के साथ नीचे उतरी एस एस पी साहब वहीं थे । आगे आकर बोले,"आपके पति ने आत्महत्या कर ली है"।वह सन्न रह गयी। रितेश से कितनी बार कहा कि वह अब अच्छी नौकरी पर है।उसे नौकरी छोड़ देना चाहिए।तभी सास ससुर भी आ गये।सास रोते रोते बोली,"मेरे बेटे ने तुझे पढा़या लिखाया, इस लायक बनाया और तूने ही उसको मरने पर मजबूर कर दिया"।वह स्तम्भित  थी।एक पल में उसकी दुनिया उजड़ गयी।

      सच था कि जब उसकी शादी हुई ,उसने 12वीं पास की थी। पति सरकारी विभाग में चपरासी थे ।परिवार ने शादी कर दी ।मगर जब उसने रितेश से आगे पढ़ने की इच्छा जताई तो वह खुशी खुशी तैयार हो गया।दो बच्चों के जन्म और परिवार की जिम्मेदारी के साथ वह पढ़ती रही।और प्रतियोगी परीक्षा उत्तीर्ण कर अधिकारी बन गयी।मगर उस पर बिजली तब गिरी जब उसकी पोस्टिंग उसी कार्यालय में हुई जहाँ उसके पति चपरासी थे। बडी विषम स्थिति थी।उसने कहा कि वह नौकरी छोड़ दे।मगर रितेश न माना।उसने उनका स्थानांतरण दूसरे आफिस में करवा दिया। मगर उसके साब जब मैडम से मिलने आते तो बड़ी विषम परिस्थिति हो जाती। रितेश उन्हें देखकर खडा़ हो जाता।अपने चपरासी को मैडम के पति होने के नाते नमस्कार करना उन्हें बडा नागवार गुजरता था। घर का वातावरण भी कभी कभी बडा़ बोझिल हो जाता।वह बहुत प्रयास करती मगर स्थिति मे संतुलन लाना कठिन था।फिर भी वह रितेश के सामने पत्नी ही रहने की कोशिश करती।

     किंतु नये साल की पार्टी में अग्रिम पक्ति मे बैठे रितेश को नशे मे धुत अधिकारी द्वारा अपमानित करने पर वह पार्टी छोड़कर आ गयी।रितेश ने दो दिन की छुट्टी ले ली थी।वह उसे नौकरी छोड़कर व्यापार करने को मना रही थी।मगर रितेश ये कदम उठा लेगा उसे यकीन नहीं हो रहा था।

     रितेश का यूं जाना ,उसकी सबसे बड़ी हार थी।जब नौकरी लगी थी तब उसे लगा कि वह जीत गयीं।आज वह समझ नहीं पा रही थी कि वह हार गयी या जीत गयीं।

✍️ डॉ श्वेता पूठिया

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा.....'सराय'


"बहु आज पिताजी आ रहे हैं मेरे । दो-चार दिन ठहरेंगे यहाँ । सुबह को जरा जल्दी उठ जाया करना। उनको पसंद नहीं बहु बेटियों का देर तक सोना । "सास लक्ष्मी देवी ने पूजा के लोटे में जल भरते हुए कहा ।

"जी, माँ जी जल्दी ही तो उठती हूँ शीरु स्कूल जाता है न .......।"

"बस बहुओं से तो जुबान लड़वा लो । "सास ने पूजा की घंटी बजाते हुए कहा । "दो चार दिन ही की तो बात है चले जाएंगे फिर ....।"

"ट्रीन....ट्रीन!"

"हेल्लो ...हाँ पापा ...नमस्ते ...क्या ससुर जी से बात कराऊँ ....हाँ अभी कराती हूँ ।"कहकर बहु ने फोन अखबार पढ़ रहे ससुर जी को थमा दिया और खुद रसोई में चली गयी ।

"अजी सुनो लक्ष्मी ..!"

"पूजा भी नहीं करने दोगे क्या ?"

"अरे समधी जी का फोन था |"

"कौन से समधी ?"

बहु के पापा का ।"

"हाँ तो क्या करूँ ?"

"आ रहे हैं कल को यहाँ अपनी छोटी बेटी के लिए लड़का देखने ।"

"तो मैं क्या बधाई गाऊँ ...घर न सराय हो गया। जब मन करता है चले आते हैं मुँह उठाये । "लक्ष्मी देवी ने सूर्यनारायण को जल का अर्ध्य देते हुए गुस्से में कहा ।

बहु के हाथ से दूध का बर्तन छूटते-छूटते बचा ।


✍️ राशि सिंह 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत 

बुधवार, 22 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ....सरकारी मीटिंग


आज सुबह ग्यारह बजे से मीटिंग थी इसलिए रवि सुबह से  फाईल दो बार पढ़ चुका था। अभी छह माह पूर्व ही उसे समाज कल्याण विभाग में अधिकारी की नियुक्ति मिली थी। नया जोश था। बहुत कुछ बदलने की इच्छा भी थी और वह इसके लिए प्रयास भी करता था। अपने कार्यालय में कई बाबुओं को वह नोटिस भी जारी कर चुका था। 

         डीएम साहब ने आज उसे मीटिंग के लिए बुलाया था। वह तैयार हो कर डीएम साहब के कार्यालय पहुंचा। पता चला साहब राउंड पर निकले हैं लगभग एक घंटे में वापसी होगी। उसे मजबूरन बैठकर इंतजार करना पड़ा।डीएम साहब ने आते ही गर्मजोशी से हाथ मिलाया और बोले,"रवि बढ़िया कर रहे हो। सब काम दुरस्त होना अच्छी बात है।"

      वह गदगद हो गया और बोला ,"सब आपका आशीर्वाद ..... मार्गदर्शन है"।

      डीएम बोले, "नियम पालन करवाओ मगर भाई, सुरेश ! अरे, वही जो प्रधान लिपिक है , मेरे गांव के नाते साला लगता है, पर जरा हल्का हाथ रखना। अब उसे कोई नोटिस जारी मत करना वरना मुझे घर में सुनने को मिलेगा" कहकर हँस दिये।वह बोला ,"जी सर "। बाहर आकर गाड़ी में फाईल पटक दी। सारी तैयारियां धरी रह गयीं। व्यक्तिगत काम को सरकारी मीटिंग में बदलना अब उसे समझ में आ रहा था। वह भारी मन से अपने आफिस की ओर चल दिया।

✍️ डॉ.श्वेता पूठिया

मुरादाबाद

रविवार, 19 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा....आज्ञाकारी बेटा

 


प्रिया का मन आज बहुत उदास था उसका विश्वास चूर  चूर हो चुका था ।असहाय बिस्तर पर पड़ी वह आंसू बहा रही थी । उसे आज मां के कहे शब्द'" बेटा रिश्तों का नाम होना भी बहुत जरूरी है । यह नाम ही आधार होते हैं जो रिश्तों को बनाए रखते हैं इसलिए बेनाम रिश्ते सदैव दर्द देते हैं।  मगर आधुनिकता की दौड़ में दौड़ती हुई प्रिया के पास इन शब्दों पर ध्यान देने का वक्त न था। 

      तीन साल से वह विशाल के साथ लिव-इन में रह रही थी। उसे पूरा भरोसा था कि विशाल उसके अतिरिक्त किसी और से शादी नहीं करेगा। मगर आज विशाल ने फोन पर उसे अपनी शादी की सूचना दी तो वह बिखर कर रह गई विशाल से कहा ,"तुमने तो मेरे साथ रहने का वादा किया था फिर यह क्यों"? विशाल ने कहा 'रहूंगा ना , इस शहर में तुम्हारे साथ रहूंगा और घर में पत्नी के साथ रहूंगा "।इतना सुनकर वह रो पड़ी। उसका रोना सुनकर विशाल बोला मैंने इस रिश्ते में तुम्हें जबरदस्ती नहीं बांधा था। तुम अपनी मर्जी से आई थी मेरे साथ रहने के लिए। अब मां चाहती हैं कि मैं शादी करके घर बसाऊं तो मैं उनकी बात नहीं टाल सकता आखिरकार वह मेरी मां है और एक बेटे का अधिकार है कि वह वह अपनी मां की आज्ञा माने उसे सुख दे। अब मैं मां की पसंद की लड़की से शादी करके उनका मान रखूंगा और देख लो तुम्हें क्या करना है वैसे भी तुम्हारे मेरे रिश्ते का कोई आधार नहीं है। 

     उसने पूछा कि जब उसने प्यार किया था तब मां से क्यों नहीं पूछा ? विशाल ने उत्तर दिया," प्यार करना साथ रहना मेरी मर्जी थी लेकिन जिंदगी में रिश्तों से बड़ी पूंजी कोई और नहीं होती यह बात तुम जितनी जल्दी समझ जाओ उतना ही अच्छा है"। विशाल के यह शब्द उसके कानों में हथौड़ी की तरह लगे मगर इस आधुनिकता की दौड़ ने उसके तन और मन दोनों को ही  बुरी तरीके से घायल करके छोड़ दिया था ।आज उसे मां बहुत याद आ रही थी......


✍️ डॉ. श्वेता पूठिया 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत



बुधवार, 1 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की लघुकथा ....महंगाई


महंगाई के दौर में डीजल ,पैट्रोल, खाद्य सामग्री सभी कुछ गरीब जनता,अल्प वेतन भोगियों से दूर होता जा रहा है जिसके चलते कई दिनों से रामलीला मैदान में बहुत बड़ा धरना प्रदर्शन चल रहा था!        

          मुख्यमंत्री जी ने स्वयं  धरना स्थल पर उपस्थित होकर देश की अर्थ व्यवस्था पिछली  सरकार द्वारा खराब करने का हवाला देते हुए कार्यवाही करने में असमर्थता जताई परन्तु  भविष्य में इस पर कार्यवाही करने का पूर्ण आश्वासन देते हुए किसी प्रकार धरना समाप्त करवाया! 

    विधानसभा में कार्य के दौरान टेबल पर विधायकों का 20,000 रुपए वेतन बढा़ने से सम्बन्धित फाइल जैसे ही टेबल पर आयी, मुख्यमंत्री महोदय ने सारी फाइल हटाते हुए सबसे पहले उस पर यह कहते हुए साइन किए......कि वास्तव में महंगाई बहुत बढ़ गई है    इसलिए    यह बहुत जरूरी है!........ 

✍️ अशोक विद्रोही विश्नोई 

412 प्रकाश नगर

 मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 82 188 2 5 541

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की लघुकथा .....प्रेम


"क्या आप अब मुझे बिल्कुल प्रेम नहीं करते बाबू? कितने दिन से आपने मुझे एक भी गिफ्ट नहीं दिया है।" लड़की ने अदा से इठलाते हुए लड़के की आँखों में देखते हुए पूछा।

 "प्रेम!!! मुझे लगता है मैं इतना महंगा प्रेम अफोर्ड करने की  हैसियत ही नहीं रखता बेबी। अगर हमेशा महंगे गिफ्ट देना ही प्रेम है तो सच में मैं तुमसे प्रेम नहीं करता क्योंकि मैं व्यापारी नहीं हूँ।" लड़के ने लड़की को खुद से अलग करते हुए कहा और सिर उठाकर मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गया।

✍️नृपेंद्र शर्मा "सागर"

ठाकुरद्वारा

उत्तर प्रदेश, भारत