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रविवार, 8 मई 2022

मुरादाबाद जनपद के बिलारी निवासी साहित्यकार विवेक आहूजा की रचना ---मां


सबसे पहला दोस्त ,सबसे पहला गुरु होती हैं "माँ" 

बच्चे दुखी हो तो ,उनसे पहले रोती है "माँ" 


धनवान है वो, जिसके नसीब में होती है "माँ"

पूरी कायनात को हिला देती है, जब रोती है "माँ" 


पूरी दुनिया ने माना है , जमीं पर जन्नत होती हैं  "माँ" 

उनसे पूछो कीमत इसकी , जिनके नहीं होती हैं "माँ" 


✍️ विवेक आहूजा 

बिलारी 

जिला मुरादाबाद 

@9410416986

vivekahuja288@gmail.com 



मंगलवार, 27 जुलाई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी----अंत भला तो सब भला


जय , सुनील और संदीप की गिनती मौहल्ले के सबसे शैतान बच्चों में होती थी । तीनों आए दिन कोई न कोई शैतानी करते ही रहते थे , मोहल्ले वालों के साथ साथ उनके घर वाले भी उनकी इन शैतानों की वजह से बहुत परेशान रहते थे। क्योंकि वह पढ़ाई में लगातार पिछड़ते जा रहे थे , घर वालों की चिंता भी लगातार बढ़ रही थी । मगर खास बात यह थी कि तीनों की दोस्ती देखते ही बनती थी । जहां भी जाते तीनों संग संग ही जाते थे , चाहे कोई खुराफात हो घूमने जाना हो उनका संग हमेशा रहता था ।

                  एक दिन तो हद ही हो गई जब उन्होंने मंदिर के सामने बहुत सारे पटाखे छोड़ दिए आजिज होकर मोहल्ले वाले उनके घर शिकायत लेकर पहुंचे ।  शिकायत सुन घर वालों का पारा हाई हो गया , उन्होंने तीनों की जमकर लताड़ लगाई और आदेश पारित कर दिया कि अगर आइंदा ऐसा हुआ तो वह घर में ना घुसे । जय सुनील और संदीप को घर में पड़ी लताड़ इतनी बुरी लगी की उन्होंने घर छोड़ने का फैसला कर लिया और रात वाली ट्रेन से ही घर से भाग गए । जब सुबह उठकर घरवालों ने देखा तो जय , सुनील और संदीप घर पर नहीं थे । पूरे मोहल्ले में शोर हो गया कि तीनों बदमाश लड़के घर से भाग गए हैं , पूरे मोहल्ले ने राहत की सांस ली..... चलो कुछ दिन तो शांति रहेगी ।  लेकिन घरवाले बुरी तरह परेशान हो गए उन्होंने जगह-जगह उनकी तलाश करी पर उनका कहीं अता पता नहीं चला , हार कर वह भी टिक कर घर पर बैठ गए और मन ही मन सोचने लगे कि जब पैसे खत्म हो जाएंगे तो घर वापस आ जाएंगे ।                          

                   जय , सुनील व संदीप घर से भागकर ट्रेन में तो बैठ गए थे पर उन्हें पता नहीं था ट्रेन कहां जा रही है ।  पूरी रात का सफर कर ट्रेन सुबह शिमला के स्टेशन पर पहुंच गई शिमला के स्टेशन पर जय , सुनील व संदीप तीनों बहुत प्रसन्नता पूर्वक उतरे पर उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि शिमला के किसी महंगे होटल में रह सके , अतः शिमला के नजदीक ही एक गांव में एक किसान के घर पर रुक गए , गांव में उन्होंने सभी को यही बताया कि वे शिमला घूमने आए हैं । तीनों की घर पर इतनी बेइजती हुई थी कि अब उन्होंने पक्का फैसला कर लिया था कि घर वापस नहीं जाना है और बाहर रहकर ही खूब पैसा कमाएंगे । लेकिन दो-चार दिनों में ही उनके हौसले पस्त हो गए शिमला जैसे महंगे शहर में गुजारा करना उनके लिए मुश्किल हो गया उनके पैसे भी अब खत्म होने लगे थे , तीनों ने विचार किया चलो दिल्ली चलते हैं , वहां उन्हें जरूर काम मिलेगा यही सोच वह अपना बोरिया बिस्तरा उठा दिल्ली आ गए ।

                   दिल्ली पहुंचकर कई दिनों की भागदौड़ के पश्चात जय व सुनील को एक ढाबे पर वेटर की नौकरी मिल गई व संदीप एक मोटर मैकेनिक के पास लग गया । तीनो का अपनी नौकरी से प्राप्त धनराशि से मुश्किल से ही गुजारा हो पाता था । इस तरह 6 माह का समय गुजर गया इधर उनके  घर वाले भी उनके घर ना आने की वजह से बहुत परेशान थे और जगह-जगह जाकर उनकी तलाश कर रहे थे । अब तीनों को अच्छे से समझ आ चुका था कि बगैर शिक्षा पूर्ण करें वह कभी कामयाब नहीं हो सकते और उनकी की गई कारगुजारीओं के कारण उनके घर वालों को कितना दुख हुआ होगा । अंततः उन्होंने वापस घर जाने का फैसला कर लिया 1 दिन तीनों ने अपना सारा सामान बांधा और वापस अपने शहर आ गए । तीनों को वापस घर पर पाकर घर वाले बहुत प्रसन्न हुए तीनों ने अपने घरवालों से माफी मांगी , वह आगे से पढ़ाई में पूरा ध्यान देने व किसी भी प्रकार की कोई शैतानी ना करने का वादा किया । घर वाले भी तीनों के स्वभाव में इस परिवर्तन को देख अति प्रसन्न थे , उनको पता था यह परिवर्तन जीवन में किए गए अथक संघर्ष के कारण हुआ है , क्योंकि उन्हें इसका अनुभव था । उन्होंने अपने बच्चों में आए इस परिवर्तन के लिए परम पिता का शुक्रिया अदा किया व मन ही मन प्रसन्न होते हुए कहा "अंत भला तो सब भला"

✍️ विवेक आहूजा , बिलारी, जिला मुरादाबाद 

@9410416986

@8923831037




रविवार, 20 जून 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की रचना --भूखे पेट सोकर , हालातों से लड़कर ,जो हार न मानें, वो होता है पिता


धूप में झुलस कर , नंगे पाँव रहकर ।

भूखे पेट सोकर , हालातों से लड़कर ।

जो हार न मानें,  वो होता है पिता ।।


जीवन भर कमा कर , पैसो को बचाकर ।

हसरतो को मारकर , बच्चों की खुशी पर ।

जो पल में खर्च कर दे , वो होता है पिता ।।


आँसू को छुपा कर , नकली हसी दिखा कर ।

घर मे मौजूद रह कर , परिवार में सब कुछ सहकर ।

जो सब न्यौछावर कर दे , वो होता है पिता ।।


यदि किसी औलाद पर , पिता का साया नहीं ।

चाहे पा ले वो , दुनिया में सब कुछ ।

पर असलियत में , उसने कुछ पाया नहीं ।।

✍️ विवेक आहूजा, बिलारी , जिला मुरादाबाद 

@9410416986

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की लघुकथा --अबकी तुम्हारी बारी है

  


मंच पर सोहराब सिंह की विधायकी के इलेक्शन का भाषण चल रहा था । इस बार सोहराब  सिंह के कारनामों के कारण उसकी स्थिति अच्छी नहीं थी , जनसभा में अपेक्षा के अनुरूप भीड़ भी नहीं थी । सोहराब  सिंह का खासम खास एलची  उनके पास आया और बोला जनसभा में लोग आपको बहुत गाली दे रहे हैं और कह रहे हैं सोहराब  सिंह तो बहुत भ्रष्ट है, चोर है पैसा खाता है आदि  आदि.......यह  सुन सोहराब  सिंह चुप रहा और यकायक मंच पर भाषण देने के लिए खड़ा हो गया ।  

       सोहराब  सिंह ने कहा ..............आप लोगों ने जो मुझे तीन बार विधायक बनाया है , मैं इसका शुक्रगुजार हूं । सोहराब सिंह ने आगे कहा.......  पहली बार मैं जब विधायक बना तो मेरी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी लिहाजा पहली बार की विधायकी में मैंने खूब धन कमाया ताकि मैं आगे भी इलेक्शन लड़ सकूं और मुझे पैसे की कोई कमी ना रहे । दूसरी बार जब मैं विधायक बना तो मेरे रिश्तेदार जो मेरे बिल्कुल करीबी थे उनको मैंने खूब पैसा कमाया ताकि रिश्तेदारी में वह मुझे कोई उलाहना ना दे सके तीसरी बार जब मैं विधायक बना तो मैंने अपने कार्यकर्ताओं को जो मेरे साथ दिन रात एक कर के लगे रहते हैं उनको खूब धन कमवाया  ताकि वह मेरे किसी भी इलेक्शन में कोई कोताही ना बरतें । यह मेरा चौथा इलेक्शन है इस इलेक्शन में मैंने यह विचार किया है की जनता जनार्दन "अबकी तुम्हारी बारी है" इस बार मैं विधायक बनके पूर्ण रूप से जनता को समर्पित रहूंगा । लिहाजा आप स्वयं फैसला करें कि आपको क्या करना है। 

 आज इलेक्शन के परिणाम के पश्चात सोहराब  सिंह अपने मुख्य ऐलची के साथ शपथ ग्रहण समारोह में जाने की तैयारी कर रहे हैं ।

✍ विवेक आहूजा, बिलारी , जिला मुरादाबाद

शनिवार, 13 मार्च 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी ---- "रेट वेट और क्वालिटी"-


 सुधा आज पहली बार दिल्ली अपनी छोटी बहन सुमन के घर आई थी । घर पर आते ही सुधा ने सुमन की क्लास लगानी शुरू कर दी , जैसे यह समान कहां से लाती है घर खर्च कैसे करती हो फिजूलखर्ची तो नहीं करती हो ।सीधी साधी सुमन अपनी बड़ी बहन सुधा से काफी छोटी थी और उसकी शादी को अभी 3 वर्ष ही हुए थे । सुमन, सुधा की सारी बातों को बड़े गौर से सुन रही थी व बराबर उनके सवालों के जवाब दे रही थी । बातों बातों में सामान की खरीदारी का जिक्र चल पड़ा , सुधा ने सुमन से पूछा तू घर पर किराने और सब्जी कहां से लाती है , तो सुमन ने कहा दीदी मैं यही अपार्टमेंट के नीचे मार्केट से सामान ले लेती हूँ । सुधा ने पूछा जरा बता आलू कितने रुपए किलो है और प्याज कितने रुपए किलो तो सुमन ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया यहां आलू ₹50 किलो और प्याज ₹100 किलो है । सुधा ने रेट सुनते ही सर पकड़ लिया और बोली हे राम ! हमारे यहां तो आलू ₹30 और प्याज ₹60 किलो है । इतनी महंगाई ......डांटते हुए सुधा ने सुमन से कहा ....तुझे कुछ नहीं आता कल मैं सामान लेने खुद जाऊंगी , फिर देखती हूं कैसे महंगा मिलता

है ........

अगले दिन सुधा थैला उठाकर खुद ही सुमन के घर के लिए सामान लेने चली गई , सुधा ने अपार्टमेंट के नीचे मार्केट से सामान ना लेकर पास की एक छोटी सी बस्ती में वहां से सामान खरीदा , तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि सारा सामान उसके गांव के रेट के बराबर ही मिल रहा था । उसने फटाफट सामान खरीदा और तुरंत घर आकर सुमन से शेखी मारते हुए बोली..... "देखो बहना .....मैं शहर में भी गांव के बराबर रेट पर समान ले आई हूं" सुमन को भी बड़ा आश्चर्य हुआ , कुछ देर पश्चात जब सुमन ने अपने घरेलू बाट से सभी सब्जियों का तोल करा तो पता चला सभी सामान 250 से 300 ग्राम प्रति किलो कम है यह देख सुधा भी काफी शर्मिंदा हुई कि बस्ती के दुकानदार ने उसे ठग लिया है और उसे पूरा माल नहीं दिया ।

सुधा व सुमन आपस में समान की खरीदारी को लेकर चर्चा करने लगी कि अपार्टमेंट के नीचे बाजार में सामान का वेट और क्वालिटी तो बहुत अच्छी है परंतु रेट बहुत ज्यादा और बस्ती में रेट और क्वालिटी तो अच्छा है परंतु वेट में गड़बड़ी है । अब यदि किसी व्यक्ति को रेट , वेट और क्वालिटी तीनों ही सही चाहिए तो कहां जाए काफी जद्दोजहद के बाद दोनों ने यह फैसला किया की बड़ी मंडी में शायद यह तीनों चीजें ठीक से मिल जाए । यही सोच के साथ अगले दिन सुधा और सुमन दोनों बड़ी मंडी पहुंच गई और वहां पहुंच कर उन्होंने सभी चीजों के रेट ट्राई करें तो उन्हें यह देख बड़ी प्रसन्नता हुई कि यहां पर रेट , वेट और क्वालिटी तीनों ही शानदार है यह सोच सुमन ने थैला निकाला और दुकानदार को देते हुए बोली....... सारी सब्जी 1/ 1 किलो दे दो सुमन की बात सुनकर दुकानदार उनका मुंह देखने लगा और बोला "बहन जी क्यों मजाक करती हो , यहां आपको रेट ,वेट ,क्वालिटी तीनों तभी मिलेंगे जब आप सभी समान 5/ 5 किलो खरीदोगे"

यह सुन सुधा और सुमन दुकानदार पर बिगड़ गई । आसपास के दुकानदार भी वहां इकट्ठा हो गए , उन्होंने सुमन और सुधा को समझाया कि यहां आपको अच्छा सामान कम कीमत पर तभी मिलेगा जब आप कवॅन्टिटी में खरीदेंगे । यह सुन दोनों ने कान पकड़े और वापस अपने अपार्टमेंट आ गई , सुमन को अच्छे से समझ आ चुका था कि रेट , वेट और क्वालिटी तीनो आपको तभी मिल सकते हैं जब आप क्वांटिटी में सामान लेते हैं ।? यही सोचते सोचते वह अपार्टमेंट के नीचे दुकान से सामान लेने चली गई ।

✍️ विवेक आहूजा, बिलारी 

गुरुवार, 19 नवंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी -------सलाह न मानने की सज़ा


गर्मी के दिन चल रहे थे , डॉक्टर तिलक अपने अस्पताल पर आज जल्दी आ गए , क्योंकि आज नगर का साप्ताहिक बाजार का दिन था ।  डॉक्टर साहब का अस्पताल बाजार के बिल्कुल मध्य में स्थित था, इस कारण वहां काफी लोग ऐसे ही मिलने भी आ जाया करते थे ।सुबह 10:00 बजे डॉक्टर साहब के मित्र मांगीलाल अपने छोटे भाई को बैलगाड़ी में लेकर आए और डॉक्टर साहब से बोले "डॉक्टर साहब जल्दी से मेरे भाई को देखो इसके सीने में बहुत तेज  दर्द हो रहा है और इसे पसीना भी आ रहा है" डॉक्टर साहब ने अपने बाकी के मरीजों को छोड़कर इमरजेंसी मरीज को जल्दी से भाग कर देखा डॉक्टर साहब को समझते देर न लगी कि मांगीलाल के भाई को हार्ट अटैक आया है । मांगीलाल  डॉक्टर साहब का परम मित्र था डॉक्टर साहब ने उसे समझाया यह बहुत गंभीर बीमारी है और इसमें रिस्क भी बहुत ज्यादा होता है, यदि आप कहें तो मैं इसका इलाज कर सकता हूं ।मांगीलाल का डॉक्टर साहब में परम विश्वास था अतः मांगीलाल ने डॉक्टर साहब को इलाज की स्वीकृति दे दी ।

                       डॉक्टर साहब ने मरीज का इलाज शुरू कर दिया व मरीज के घर वालों को सख्त हिदायत दी कि दो-तीन घंटे तक सीधे होकर ही लेटना है और यह बिल्कुल भी ना हिले ,असल में गांव देहात की यह परंपरा रही है कि जब भी कोई गाड़ी ठेला आदि गांव से शहर की ओर आता है तो वह घरेलू सामान लाने के लिए पूरी लिस्ट बना लेते हैं ताकि एक ही बार में सब सामान आ जाए क्योंकि बार-बार गांव से शहर आना संभव नहीं हो पाता है ।यही सोच के साथ मांगीलाल अपने भाई को डॉक्टर साहब के अस्पताल पर छोड़ बाजार सामान लेने चला गया । मांगीलाल अपने परिवार के सदस्यों को मरीज के साथ मिजाज पुर्सी के लिए छोड़ गया ,डॉक्टर साहब भी जब मांगीलाल के भाई को थोड़ा आराम आया तो अपने मरीज में व्यस्त हो गए । 

                       दोपहर के 1:00 बजे होंगे तभी मंदिर के पुजारी सुमति बाबा भागे भागे डॉक्टर साहब के पास आए और बोले "डॉक्टर साहब जल्दी चलिए मंदिर में एक भक्त की अचानक बहुत तबियत खराब हो गई है

और वह चक्कर खाकर गिर गया है" डॉक्टर साहब ने तुरंत अपनी दवा की पेटी उठाई और सुमति बाबा के साथ मंदिर की ओर चल दिए रास्ते में डॉक्टर साहब ने समिति बाबा से पूछा बाबा मरीज को क्या परेशानी है, सुमति ने जवाब दिया डॉक्टर साहब यह व्यक्ति अभी-अभी स्कूटर से मंदिर आया था और अचानक इसके सीने में दर्द होने लगा और इसे पसीना भी आया और एकदम से यह चक्कर खाकर गिर गया । डॉक्टर साहब ने मंदिर पहुंचकर मरीज को देखा तो उन्हें बड़ी हैरानी हुई क्योंकि यह भी हार्टअटैक का ही मामला था डॉक्टर साहब ने इलाज शुरू किया कुछ देर में मरीज को होश आ गया , उसने बताया "मेरा नाम मिस्टर कपूर है और मैं शुगर मिल में काम करता हूं, हार्ट की बीमारी से पीड़ित हूं" यह सुन डाक्टर साहब ने मिस्टर कपूर को कहा "अगर आपका हार्ट का इलाज चल रहा है तो आपको स्कूटर चला कर ऐसे नहीं आना चाहिए था, इससे हार्ट पर जोर पड़ता है" मिस्टर कपूर ने अपनी गलती को माना और जल्द ही ठीक करने की डॉक्टर साहब से विनती की ,डॉक्टर साहब ने कहा यदि आपको ठीक होना है तो दो-तीन घंटे तक शवासन में लेटे रहे बिल्कुल भी नहीं हिले । मिस्टर कपूर ने डॉक्टर साहब की सलाह पर सीधे होकर मंदिर में ही एक चारपाई पर लेट गए । मिस्टर कपूर को थोड़ा आराम मिलने पर डॉक्टर साहब दो-तीन घंटे बाद दोबारा देखने को कहकर वापस अपने अस्पताल आ गए । 

                      जैसे ही डॉक्टर साहब अपने अस्पताल पर आए तो उन्होंने देखा कि मांगीलाल का भाई जिसे वह अपने अस्पताल पर आराम करता छोड़ गए थे ,वह अस्पताल से नदारद है उन्होंने तुरंत कंपाउंडर को बुलाया और पूछा "मैं उस मरीज को आराम करने को कह गया था फिर वह कहां चला गया" कंपाउंडर ने डरते डरते कहा, वह मरीज हमारी नजर से बचकर कहीं चला गया है ।डॉक्टर साहब अपने मरीजों में व्यस्त हो गए तभी कुछ देर पश्चात उन्होंने देखा कि मांगीलाल का भाई बाजार से थैला उठाए आ रहा है । उसने अस्पताल में थैला रखा और अस्पताल के सामने सड़क पार कर पेशाब करने बैठ गया यह देख डॉक्टर साहब बहुत नाराज़ हुए और उन्होंने तुरंत मांगीलाल को बुलवाया और उससे कहा "मैंने जब मना किया था तो आपका भाई चारपाई से उठा कैसे" मांगीलाल चुप रहा इतनी देर में मांगीलाल का भाई भी आ गया, डॉक्टर साहब ने उससे पूछा "आप कहां उठकर चले गए थे जब आपकी इतनी तबीयत खराब थी" तो मांगीलाल के भाई ने उत्तर दिया "अब मैं बिल्कुल ठीक हूं मैं जरा बाजार से गुड़ लेने चला गया था" इतना कहना ही था कि मांगीलाल के भाई के सीने में फिर जोर से दर्द होने लगा, उसे पसीना भी आने लगा ,यह देख डॉक्टर साहब ने उन्हें फौरन अपने मरीज को लिटाने को कहा और बताया "यह बहुत तीव्र हृदय आघात है ,अब मैं भी कुछ नहीं कर सकता" कुछ ही पलों में मरीज के प्राण पखेरू उड़ गए । पूरे बाजार में शोर मच गया कि डॉक्टर साहब की दुकान पर एक मरीज की मृत्यु हो गई है। मांगीलाल समझ चुका था कि उसके भाई की गलती है और उसे बगैर सलाह के ऐसे बाजार में नहीं जाना चाहिए था । 

                           अब डॉक्टर साहब को मंदिर वाले मरीज मिस्टर कपूर का ख्याल आया , क्योंकि उन्हें भी हृदयाघात हुआ था और डॉक्टर साहब भागे भागे मंदिर पहुंचे तो देखा मिस्टर कपूर चारपाई पर विश्राम कर रहे हैं ।यह देख डॉक्टर साहब की जान में जान आई और मिस्टर कपूर से उनका हाल पूछा मिस्टर कपूर ने बताया "मैं बिल्कुल ठीक हूं और आपकी सलाह के अनुसार बिल्कुल सीधे होकर लेटा हुआ हूँ, अब जब आप कहेंगे तभी मैं घर की ओर प्रस्थान करूंगा" मिस्टर कपूर की स्थिति देख डॉक्टर साहब ने राहत की सांस ली और पुजारी जी से कहा "बाबा आप स्वयं रिक्शे पर बिठाकर मिस्टर कपूर को उनके घर छोड़कर आए" और इस प्रकार मिस्टर कपूर ने डॉक्टर साहब की सलाह पर चलकर अपने जीवन को बचा लिया और मांगीलाल के भाई ने डॉक्टर साहब की सलाह पर कोई ध्यान नहीं दिया व डॉक्टर साहब की "सलाह ना मानने की सजा" उसे अपनी जान देकर चुकानी पड़ी ।

आज के परिवेश में पूरे विश्व में कोरोना का प्रकोप है इस महामारी से रोज लाखों की तादाद में लोग मर रहे हैं सरकार , डब्ल्यूएचओ , स्वास्थ्य विभाग सभी जनता को समझाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं ।परंतु लोग सड़कों पर भीड़ लगाकर घूम रहे हैं और स्वास्थ्य कर्मियों की सलाह को दरकिनार कर नियमों की अवहेलना कर रहे हैं, मैं तो बस इतना ही कहूंगा कहीं डॉक्टर की सलाह ना मानना जनता को भारी न पड़ जाए ।

✍️ विवेक आहूजा, बिलारी, जिला मुरादाबाद

Vivekahuja288@gmail.com 

गुरुवार, 29 अक्टूबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी ---बदलते रिश्ते


विनय अपने परिवार के साथ गोवा जाने का प्रोग्राम बना रहा था । गर्मी की छुट्टियां भी नजदीक थी ,विनय ने दिल्ली से गोवा की फ्लाइट की 4 टिकट बुक करवा ली । गोवा की फ्लाइट दिल्ली से सुबह 4:00 बजे थी ,सो विनय ने सोचा की राजन जो उसका फुफेरा भाई है के घर गाड़ी खड़ी कर देंगे वही राञि आराम करके सुबह 4:00 बजे की फ्लाइट पकड़ लेंगे ।क्योंकि राजन का घर एयरपोर्ट के नजदीकी था अतः विनय ने इसी प्रोग्राम को फाइनल कर दिया और राजन को फोन द्वारा सूचना दे दी कि हम निर्धारित तिथि पर उसके घर पहुंचेंगे। निर्धारित तिथि पर विनय अपने परिवार के साथ राजन के घर पहुंच गए। गाड़ी से लंबा सफर होने की वजह से वह काफी थक चुके थेऔर रात भी काफी हो चुकी थी। राजन ने विनय का काफी स्वागत किया, दिल्ली में राजन का काफी बड़ा फ्लैट था जिसमें एक कमरे में राजन और उसकी पत्नी दूसरे में उसका बेटा व पालतू कुत्ता और तीसरा गेस्ट रूम बनाया हुआ था । राजन का घर काफी आलीशान था अपने बेटे के कमरे में उसने काफी फैंसी डबल बेड रखा हुआ था जो काफी कीमती था । राजन ने विनय के लिए गेस्ट रूम निर्धारित किया गेस्ट रूम में सिर्फ एक डबल बेड था , यह देख विनय को बड़ा अटपटा लगा कि उसके परिवार के चार सदस्य एक डबल बेड पर कैसे रात कटेंगे । विनय राजन के पास गया और बोला मेरा बेटा तुम्हारे बेटे के साथ उसके कमरे में सो जाएगा और हम तीनों गेस्ट रूम में डबल बेड पर जैसे-जैसे रात काट लेंगे । यह सुन राजन ने बीच में ही बात काटते हुए विनय से कहा मेरा बेटा अभी बीमार हो कर चुका है और डॉक्टर ने उसे एहतियात बरतने को कहा है इसे कहीं इंफेक्शन ना हो जाए अतः आप चारो गेस्ट रूम में ही विश्राम करें । सुबह 4:00 बजे तो आपकी फ्लाइट ही है मैं ओला कैब बुक करा देता हूं जो आपको 2:00 बजे यहां से ले जाएगी यह सुन विनय निरुत्तर हो गए और वापस गेस्ट रूम में जैसे तैसे एक डबल बेड पर परिवार के चारों सदस्यों ने रात्रि काटी रात्रि 2:00 बजे ओला कैब वाला आ गया और विनय परिवार सहित एयरपोर्ट पहुंच गए। विनय अपनी गाड़ी राजन के पास ही छोड़ आए थे और वापसी पर उसे उठाने का कह दिया था। इस प्रकार विनय परिवार सहित गोवा भ्रमण कर जब वापसी कर रहे थे तो रास्ते में उन्होंने राजन से संपर्क करना उचित समझा क्योंकि उन्हें राजन के घर जाना था । विनय ने जब राजन से संपर्क किया तो राजन बोला "मैं जरूरी काम से अपने परिवार सहित नोयडा जा रहा हूं , आप अपनी गाड़ी सोसाइटी की पार्किंग से उठा लेना, मैंने गाड़ी की चाबी गार्ड को दे दी है" यह सुन विनय अचरज में पड़ गया की राजन उसके साथ ऐसा कैसे कर सकता है ।जबकि उसे तो हमारा सारा प्रोग्राम पता था और उसने हमें सूचित करना भी जरूरी नहीं समझा ।विनय ने चुपचाप हामी भरी व दिल्ली पहुंच कर गार्ड से गाड़ी की चाबी ली और परिवार सहित अपने घर की ओर चल पड़ा। विनय मन ही मन सोच रहा था कि रिश्तो की गर्माहट कहां चली गई है पता ही नहीं चल रहा ।उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह वही राजन है जिसके परिवार सहित घर आने पर विनय और उसकी पत्नी अपना बेड छोड़ खुद जमीन पर सो जाया करते थे , दिल्ली की ट्रेन में बैठाने के लिए कई किलोमीटर दूर अपनी गाड़ी से स्टेशन खुद छोड़ने आया करते थे। क्या धन की वृद्धि  से रिश्ते इतने बदल जाते है , यह साक्षात देखने को मिल रहा था

✍️विवेक आहूजा

बिलारी, जिला मुरादाबाद

Vivekahuja288@gmail.com

मोबाइल फोन नम्बर 9410416986

बुधवार, 21 अक्टूबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी -----रैगिंग


आज विनय का मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल में पहला दिन था । विनय बहुत खुश था और हो भी क्यों ना उसकी वर्षों की मेहनत रंग लाई थी ,  कठिन परिश्रम के पश्चात मेडिकल कॉलेज में वह सरकारी सीट लेने में सफल रहा था । हॉस्टल में प्रवेश संबंधी सारी प्रक्रिया पूर्ण होने के पश्चात विनय को रूम नंबर 10 अलॉट हुआ , इस रूम में दो लोगों के रहने की व्यवस्था थी । उसके अतिरिक्त सुनील नाम का छात्र भी उसी कमरे में उसके साथ रह रहा था । सुनील का भी एमबीबीएस प्रथम वर्ष में प्रवेश हुआ था ।कुछ ही देर में सुनील व विनय आपस में काफी घुल मिल गए ,अब उन्हें 5 वर्षों तक एक साथ रहना था , इसलिए दोनों एक दूसरे के बारे में अधिक से अधिक जानने की कोशिश कर रहे थे । अभी उनकी बात चल ही रही थी कि कुछ सीनियर छात्र उनके कमरे में आ धमके और उनसे शाम को कॉमन रूम में आने के लिए कह गए व बता गए कि आज एमबीबीएस फर्स्ट ईयर के छात्रों का परिचय होगा । सुनील और विनय चुप रहे उन्हें अच्छी तरह से पता था के एमबीबीएस फर्स्ट ईयर के छात्रों के साथ परिचय के नाम पर खूब रैगिंग होती है । सीनियर छात्रों के जाने के पश्चात विनय ने सुनील से कहा "शाम को हम कहीं नहीं जाएंगे ,हम यहां पढ़ने आए हैं ,   रैगिंग करवाने के लिए नहीं" सुनील ने विनय  को बहुत समझाने की कोशिश की पर वह नहीं माना । इस प्रकार शाम को वह कॉमन रूम नहीं गये , अगले दिन कॉलेज में उनका पहला दिन था विनय व सुनील बहुत रोमांचित थे , क्योंकि पढ़ाई में वे दोनों ही होशियार थे   लिहाजा वह जल्दी से जल्दी एमबीबीएस की क्लास में जाना चाहते थे और जानना चाहते थे की एमबीबीएस फर्स्ट ईयर में कौन-कौन से सब्जेक्ट पढ़ाये जाएंगे । कक्षा में प्रवेश के पश्चात एक प्रोफेसर ने कक्षा में प्रवेश किया सभी बच्चों को एमबीबीएस में एडमिशन की बधाई दी और आगे भी सख्त मेहनत करने को कहा ।  प्रोफेसर साहब ने कुछ सवाल छात्रों से पूछे तो विनय ने फटाफट सभी सवालों का जवाब दे दिया । उसके जवाब सुन प्रोफेसर साहब बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने विनय से कहा इसी प्रकार पढ़ाई में अपनी लय को बनाए रखना । 

                     दो पीरीयडो  के बाद ब्रेक में छात्र कैंटीन में एकत्र हुए विनय और सुनील भी कैंटीन पहुंच गए, वहां उनकी मुलाकात सीनियर छात्र रवि  से हो गई रवि ने वहां  उनसे रात को कॉमन रूम में नहीं आने पर उनकी बहुत डांट लगाई और उनसे कहा अगर एमबीबीएस करना है तो सीनियर्स की बात माननी ही होगी । विनय और सुनील चुपचाप रहे रवि के जाने के पश्चात सुनील ने विनय से कहा मैंने तुम्हें कल भी कहा था , इन से पंगा लेना ठीक नहीं आज चुपचाप कॉमन रूम चलेंगे । लेकिन विनय अपनी बात पर अड़ा रहा वह परिचय के लिए सीनियर्स के पास जाने को तैयार नहीं था , मजबूरी वश  सुनील को विनय का साथ देना पड़ा  । शाम हो गई थी ,  सुनील ने एक बार फिर विनय को समझाया हमें 5 वर्ष  यही रहना है और इन्हीं लोगों के बीच में रहना है । मगर विनय ने साफ कह दिया "अगर तुम्हें जाना है तो तुम जा सकते हो ,मैं बिल्कुल भी नहीं जाऊंगा"  अभी उनके बीच बहस हो ही रही थी कि अचानक जोर से दरवाजा खटखटाने की आवाज आई बाहर सीनियर एकञ  थे और शोर मचा रहे थे "सालों आज देखते हैं ,  तुम्हें कौन बचाता है"  दरवाजा खटखटाने की आवाज सुन सुनील और विनय दोनों बहुत घबरा गए उन्होंने दरवाजे के आगे चारपाई लगा दी और दरवाजे को कस के बंद कर लिया लेकिन सीनियर छात्र तो  आज जैसे तय कर कर ही आए थे । 

                   धड़ाम की आवाज के साथ दरवाजा टूट गया व करीब 10/12 सीनियर छात्र धडधडाते  हुए कमरे में घुस गए , 3/4 रैपट विनय और 3/4 रैपट सुनील के जड़ दिए और बोले "सालो तुम्हें सीनियर्स की इज्जत करनी नहीं आती , आज तुम्हें सब सिखा देंगे"  यह कहते हुए , वह  कॉलर पकड़ कर  सुनील और विनय को कॉमन रूम ले आये,  इतनी बेइज्जती  से सुनील और विनय दोनों रूआंसू हो गए सुनील ने रोते हुए कहा "मैंने विनय को बहुत समझाया था पर वह नहीं माना ,  इसमें मेरी क्या गलती है"  यह सुन सीनियर ने 2रैपट विनय      को  और जोड़ दिए और बोले "साले हीरो बनता है ,आज तेरी हीरोगिरी निकाल कर रहेगे" 

 विनय ने रोते हुए कहा "आप लोग हमारे साथ ऐसा नहीं कर सकते यह गैरकानूनी है ,  सरकार भी इसकी इजाजत नहीं देती"

 विनय की मुहजोरी देख सीनियर्स और बिगड़ गए । सुनील से तो थोड़ी बहुत औपचारिक परिचय कर उन्होंने विनय को सबक सिखाने का मन बना लिया ,  उन्होंने जबरदस्ती विनय के सारे कपड़े  उतरवा दिए और पूरे हॉस्टल में घुमाया विनय अपनी इतनी बेइज्जती  से बिल्कुल टूट गया  और सीनियर से माफी मांगने लगा तब मुश्किल से सीनियरो ने उसे छोड़ा ।  अगले दिन फिर आने को कहा , विनय की इतनी बेइज्जती  हुई थी कि हॉस्टल में छात्र उसका मजाक उड़ाने लगे,  इन सब बातों को का विनय के मस्तिष्क पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा । 

                        रात को इतनी तगड़ी रैगिंग  के पश्चात सुनील और विनय बहुत परेशान हो गए , विनय ने सोचा इतनी मुश्किल से यहां पर एडमिशन हुआ है अगर मैं अपने मां बाप को यह सब बातें बताऊंगा तो वह परेशान हो जाएंगे यह सोच वह चुप रहा और मन ही मन घुटता रहा । भारी मन के साथ विनय कॉलेज कक्षा में पहुंचा तो छात्रों ने उसका खूब मजाक उड़ाया , पूरी कक्षा में उसकी रात वाली रैगिंग की बात फैल चुकी थी और वह हंसी का पात्र बन चुका था । वह जहां भी जाता छात्र उसका मजाक उड़ाते हैं इसी बीच सुनील ने भी उससे किनारा कर लिया ,  उसने सोचा अगर वह विनय के साथ अधिक घूमेगा तो सीनियर उसकी भी रैगिंग करेंगे । विनय बिल्कुल अकेला पड़ चुका था और पढ़ाई भी नहीं कर पा रहा था धीरे धीरे उसका यह हाल हो गया कि प्रोफेसर जब उससे कुछ पूछते तो वह किसी भी सवाल का उत्तर नहीं दे पाता था ।  

           सीनियर्स रोज रोज उसके कमरे में आते और विनय को कॉमन रूम ले जाते हैं और विनय की खूब रैगिंग करते कभी उसे नग्न कर कभी लड़कियों के कपड़े पहना हॉस्टल में घूमाते थे । विनय को मानसिक रूप से तोड़ा जा रहा था और वह मानसिक रूप से पूरी तरह टूट गया  । इसका परिणाम यह हुआ कि वह पढ़ाई में पिछडता  चला गया टर्म के पेपरों में वह दो सब्जेक्ट में फेल हो गया और एक सब्जेक्ट में बहुत ही कम नंबरों के साथ पास हो पाया । उसके इस परिणाम की किसी को उम्मीद ना थी सुनील ने उसे बहुत समझाया कॉलेज में यह सब चलता है तुम पढ़ाई पर ध्यान दो पर पर विनय को अपनी बेइज्जती  का मानसिक रूप से बहुत आघात लगा था । उसका पढ़ाई में बिल्कुल भी मन नहीं लग रहा था , मानसिक परेशानी के चलते हैं उसने सिगरेट और शराब का सेवन भी शुरू कर दिया , पढ़ाई में लगातार पिछड़ने की वजह से और भी ज्यादा परेशान रहने लगा । यह देख सुनील ने उसे साइको ट्रीटमेंट की सलाह दी और एक  दिन शहर के सबसे मशहूर साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर मित्रा के पास ले गया ।। 

           वहां पहुंचकर सुनील ने डॉक्टर मित्रा  को शुरू से लेकर अब तक की सारी बात बताई । डॉक्टर मित्रा ने विनय को कहा  "यह मानसिक स्वास्थ संबंधी समस्या है तुम जल्दी ही ठीक हो जाओगे"  एक  दिन विनय  जब शाम को विनय डॉक्टर मित्रा के पास इलाज के लिए जा रहा था तो  सीनियर छात्र  रवि ने उसे देख लिया । डॉक्टर मित्रा के अस्पताल जाकर रवि ने  विनय से संबंधित सारी जानकारी ली , तो उसे पता चला कि वह मानसिक स्वास्थ संबंधी समस्या के इलाज हेतु आता है । यह सुन रवि को बहुत आत्मग्लानि हुई  कि  उसे अपना इलाज कराना पड़ रहा है । रवि ने सारी बात सीनियर विंग में जाकर बता दी कि उनकी वजह से विनय की कितनी बुरी हालत हो गई है । विनय के बारे में सुन सभी सीनियर छात्रों ने फैसला किया की विनय की हालत के हम लोग सब जिम्मेवार हैं , इसलिए विनय को ठीक करने के लिए हम हर संभव मदद करेंगे । 

                 विनय के पढ़ाई में लगातार पिछड़ने  की वजह से कालेज वाले उसे एमबीबीएस फर्स्ट ईयर की प्राफ  एग्जाम में बैठने की इजाजत नहीं दे रहे थे ।  उन्होंने विनय के घर एक पत्र भेज दिया कि इस वर्ष विनय एमबीबीएस फर्स्ट ईयर के एग्जाम में नहीं बैठ पाएगा । पत्र को पढ़कर घर में कोहराम मच गया रामलाल और इमरती को अपने सपनों का संसार बिखरता नजर आने लगा और उन्होंने तुरंत विनय के पास मेडिकल कॉलेज जाने का फैसला किया ।

                             रामलाल और इमरती पहली बार अपने गांव से बाहर निकले थे।  शहर की चकाचौंध से वह वाकिफ नहीं थे , जब विनय के मेडिकल कॉलेज से होते हुए वह हॉस्टल पहुंचे  ,सबसे पहले वह प्रिंसिपल साहब से मिलने गए तो प्रिंसिपल साहब ने रामलाल से कहा "आप कितनी मेहनत करते हैं जो आपने विनय को यहां तक पहुंचाया लेकिन आपका बेटा यहां पर सिगरेट और शराब पी रहा है ,हॉस्टल में नग्न होकर घूमता है , सारा दिन हॉस्पिटल में पड़ा रहता है , इसके अलावा वह टर्म के 2 एग्जाम में फेल भी हो गया है ,  हमें अपना रिजल्ट खराब नहीं करना"

                       प्रिंसिपल साहब की बात सुन रामलाल और इमरती को बहुत गुस्सा आया और वह सीधे विनय के कमरे में पहुंच गए । विनय रोज की तरह बेसुध पड़ा था । रामलाल ने विनय को बहुत डांटा और कहा  "उसकी वजह से प्रिंसिपल साहब ने हमें कितना सुनाया है" विनय को कुछ कहते नहीं बन रहा था कि अपने घर वालों को बताए भी तो क्या बताएं ,रामलाल और इमरती तो यही समझ रहे थे , शहर से इतने बड़े कॉलेज में एडमिशन से उनके लल्ला का दिमाग खराब हो गया है । सुनील ने विनय के माता-पिता को समझाने की बहुत कोशिश की यह कोई पागलपन नहीं बल्कि  एक मानसिक स्वास्थ संबंधी समस्या है और हम इसका इलाज करा रहे हैं , जल्दी ही विनय ठीक हो जाएगा । 

                 इलाज की बात सुन विनय के माता-पिता सुनील पर विफर गए के "अब पागलों के डॉक्टर से इलाज भी हो रहा है और हमें पता तक नहीं"  बहुत देर समझाने के पश्चात विनय के माता-पिता  शांत हुए और बोले हम भी डॉक्टर के पास जाएंगे । शाम को सुनील , रामलाल  , इमरती और विनय डॉक्टर के पास गए वहां उनकी मुलाकात सीनियर छात्र रवि से हुई जिसकी वजह से विनय की हालत हुई थी , रामलाल ने रवि को बहुत डांटा और कहा "हमारा लल्ला पूरी तहसील का सबसे होनहार  छात्र था ,  तुमने उसका क्या हाल कर दिया है"    

                           रवि ने विनय के माता-पिता से हाथ जोड़कर माफी मांगी और उनसे वादा किया कि विनय की हालत का जिम्मेदार मैं हूं और मैं ही इसे ठीक करने में रात दिन एक कर दूंगा आप निश्चिंत होकर घर जाये । विनय के माता-पिता को रवि की बातों पर यकीन हो गया  और वह घर चले गए । रवि विनय को साइको डिपार्टमेंट के एच ओ डी के पास ले गया और विस्तार से उन्हें सारी बात बताई एचओडी ने जल्द ही विनय के ठीक होने का आश्वासन दिया , करीब एक  माह के इलाज के पश्चात विनय के  मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होने लगा उसका पढ़ाई में भी मन लगने लगा बुरी आदतों का सेवन भी उसने काफी कम कर दिया , धीरे-धीरे विनय अब बिल्कुल ठीक हो गया था । 

     आज विनय के ठीक होने के पश्चात कक्षा में काफी अच्छा माहौल था सभी छात्रों ने मिलकर प्रिंसिपल से विनय को परीक्षा में बैठने की सिफारिश की जिसे प्रिंसिपल ने तुरंत मान लिया और एमबीबीएस फर्स्ट ईयर में विनय अच्छे नंबरों से पास हो गया  । विनय एमबीबीएस सेकंड ईयर में आ गया था विनय अपनी कक्षा का हेड हो चुका था आज जूनियर विंग का प्रतिनिधित्व  कर रहा था और सीनियर विंग का प्रतिनिधि रवि  था । रवि और विनय दोनों ने मिलकर मानसिक स्वास्थ संबंधी एक कैंप का आयोजन मेडिकल कॉलेज में किया था जिसमें मानसिक स्वास्थ संबंधी जानकारी उपलब्ध कराई जा रही थी सभी छात्र

 उन्हे  बडे़ ध्यान से सुन रहे थे क्योंकि वह जानते थे इनसे बेहतर इस विषय में कोई नहीं बता सकता ।

✍️ विवेक आहूजा 

बिलारी ,जिला मुरादाबाद 

@9410416986

Vivekahuja288@gmail.com

बुधवार, 14 अक्टूबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी ----अदिति

 


आज दिसम्बर की बीस तारीख सन् 2014 है को मैं और मेरी पत्नी डा सोनिया आहूजा (बी0ए0एम0एस0) ठिठुरते हुये दिल्ली के आनन्द बिहार बस स्टेण्ड पर एसी बस से उतरे। वहां हमने जस्ट डायल कम्पनी के माध्यम से पता किया कि आनन्द बिहार बस स्टैण्ड के निकट मेडिकल कोचिंग इस्टीट्यूट की कौन सी शाखा है। जस्ट डायल कम्पनी से हमें यह पता चला कि प्रीत बिहार में यहां से सबसे निकट मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की शाखा है। हमने बिना समय गवांये फौरन वहां के लिये आटो किया व जल्द ही कोचिग की ब्रांच पहुंच गये।

असल में मैं और मेरी पत्नी  मेरे बीमार चाचा जी की मिजाज पुर्शी के लिये दिल्ली आये थे, साथ ही हमारे जहन में अपनी बेटी अदिती अहूजा के लिये भविष्य में अच्छी कोचिंग, जोकि उसे मेडिकल प्रवेश परीक्षा में सहायक हो सके, का भी पता करने का था। ज्यादातर अपने मित्रगणों से सलाह के पश्चात मैं और मेरी पत्नि इस नतीजे पर पहुंचे कि यह इंस्टीट्यूट मेडिकल कोचिंग के लिये बेहतर विकल्प है।

हम मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की प्रीत विहार की शाखा में पंहुचकर वहां के अधिकारी से मिले तब हमें उन्होंने यह बताया कि मेडिकल प्रवेश परीक्षा की कोचिंग वह दसवीं क्लास के बाद करवाते हैं तथा दसवीं क्लास के दौरान वह एक स्कालरशिप परीक्षा का आयोजन करते हैं, जिसका नाम एन्थे हैं। उन्होंने हमसे सितम्बर माह में सम्पर्क करने को कहा जब अदिती दसवीं में हो तब। यह जानकारी हासिल कर हम लारेंस रोड स्थित अपने चाचा जी के आवास पर उनका हाल जानने पहुंच गये। इस बात को करीब एक वर्ष बीतने को था अदिती दसवीं में आ चुकी थी। हमें मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की एन्थे परीक्षा की बात ध्यान थी। परीक्षा का फार्म कैसे प्राप्त हो, यह बड़ी समस्या थी, तब हमारी बहन आरती डोगरा पत्नि श्री राजेश डोगरा निवासी चण्डीगढ़ ने वहां स्थित कोचिंग इंस्टीट्यूट की शाखा से ऐन्थे का फार्म प्राप्त किया व स्पीड पोस्ट से हमें भेज दिया। अब ऐन्थे का फार्म भर कर हमें जमा करना था इसके लिये हमने कोचिंग इंस्टीट्यूट की मुख्य शाखा में फोन पर जानकारी हासिल की तो पता चला कि फार्म आप किसी भी मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की शाखा में जमा करवा सकते हैं। हमारे निकटतम मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की शाखा मेरठ में थी अतः हमने फार्म मेरठ स्थित अपने मौसेरे भाई श्री राजेश अरोरा जी को स्पीड पोस्ट कर दिया, श्री अरोरा जी ने स्वंय कोचिंग इंस्टीट्यूट के ऑफिस जाकर ऐन्थे का फार्म जमा किया।

दिसम्बर 2015 में ऐन्थे की परीक्षा हुई जिसका परीक्षा केन्द्र मेरठ ही था, मैं और मेरे मौसेरे भाई श्री राजेश जी अदिती को लेकर परीक्षा केन्द्र पहुंचे व 3 घण्टे परीक्षा के दौरान वही बाहर खड़े होकर उसका इंतजार करने लगे। परीक्षा के उपरान्त अदिती ने बताया कि परीक्षा अच्छी हुई है। तत्पश्चात मैं और अदिती बिलारी बापस आ गये व अदिती अपनी दसवीं की बोर्ड परीक्षा की तैयारी में जुट गई।

जनवरी 10 या 15 2016 की बात थी मैं मोबाइल में नेट चला रहा था दिमाग में आया चलो अदिती ने जो एन्थे की परीक्षा दी थी उसे जांच लेते हैं कि परीक्षा फल कब आयेगा। मैंने मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की साइट चैक करी तो पता चला कि एन्थे का परीक्षाफल तो आ चुका है, मैं फौरन भागा-भागा अपने कमरे में आया व अदिती का प्रवेश पत्र निकाल कर उसका रोल नम्बर देखा व फिर दोबारा से मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की बेवसाइट चेक करी तो एन्थे का रिजल्ट मेरे सामने था, मैं पैनी नजरों से अदिती का रोल नम्बर ढूढ रहा था, मैंने पहले 50% , 60% , 70% , 80% स्कालरशिप कॉलमों में अदिती का रोल नं0 देखा परन्तु मुझे उसका  रोल नम्बर कही नहीं मिला। काफी खोजबीन करने पर मुझे ज्ञात हुआ कि रोल नं0 डालकर भी सीधा परीक्षाफल प्राप्त किया जा सकता है। मैंने अदिती का रोल नम्बर इन्स्टीट्यूट की साइट में डाला तो उसका परीक्षाफल देखकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। अदिती को 100% स्कालरशिप मिला था व उसकी ऑल इण्डिया रैक ढेड लाख बच्चों में से 121रैंक  थी। इन्स्टीट्यूट में 100% स्कालरशिप का अर्थ करीब 3.50 लाख रूपये की छूट थी। घर में खुशी का माहौल था जैसे हमने आधा मैदान मार लिया  था। मैने मेडिकल कोचिंग के मुख्य शाखा दिल्ली में फोन कर अदिती का परीक्षाफल कन्फर्म किया तब उन्होंने मुझे बताया कि अदिती को 100% स्कालरशिप मिला है व अदिती को इस्टीट्यूट में एक रूपया भी नहीं देना है । बल्कि वह 11वी व 12वी में  दो वर्षों तक अदिती को मेडिकल प्रवेश परीक्षा की कोचिंग करवायेगा। इसके साथ ही उन्होनें हमें पूरे भारत वर्ष में कोचिंग की किसी भी शाखा में फ्री (निशुल्क) कोचिंग का ऑफर दिया। मैंने उनसे सोचने के लिये कुछ वक्त मांगा कि कोचिंग कहा करवानी है, उन्होंने हमें 15-20 दिनों का वक्त दिया और कहा आप हमें सोच समझकर बता दें8। घर के सभी लोग अदिती के स्कूल से घर लौटने का इंतजार करने लगे ताकि उसे उसकी उपलब्धी से अवगत करा सके। अदिती के स्कूल से आते ही दादा, दादी, मम्मी, भाई पार्थ सबने उसे गले से लगा लिया व 100%  स्कालरशिप व पूरे भारत में कहीं भी मेडिकल कोचिंग की बात बताई। अदिती ने अपने चिर परिचित  अंदाज में कह दिया पापा वह पहले 10 की बोर्ड परीक्षा की तैयारी करेगी, 

 परीक्षा के बाद ही मेडिकल कोचिंग का सोचेगी। अब घर में मंथन शुरू हुआ कि अदिती कोचिंग कहा करेगी। सबसे बड़ी मुश्किल यह थी कि अदिती 10th डी०पी०एस०, मुरादाबाद से कर रही थी व हमारा 12वी भी वहीं से कराने का इरादा था। पता यह चला कि कोचिंग का समय सुबह 8 बजे से दोपहर 2.30 बजे तक है, तो अदिती अपनी 11/12वी की पढ़ाई कैसे करेगी। कुछ मित्रो ने सलाह दी कि डमी एडमीशन कराकर कोचिंग करा सकते हैं। किन्तु इसके लिये मन नहीं माना। अपनी दुविधा मैंने इन्स्टीट्यूट की मुख्य शाखा दिल्ली में फोन करके बताई कि हमारा परिवार अदिती को दिल्ली की साउथ एक्स शाखा में कोचिंग कराना चाहता है, किन्तु डी0पी0एस0 मुरादाबाद में भी एडमीशन बरकरार रखकर 11°/12 वी करवाना चाहते हैं, यह कैसे सम्भव होगा। हमारी दुविधा को इंस्टीट्यूट वालो ने समझा व हमें यह सलाह दी कि वह वीकेन्ड  क्लास भी कोचिंग कराते है। उन्होने हमसे कहा कि आप डी0पी0एस0 मुरादाबाद में 11वी प्रवेश करा के सोमवार से शुक्रवार तक अदिती को पढ़ाकर शनिवार व रविवार को वीकेंड क्लासेस साउथ एक्स, दिल्ली शाखा में ज्वाइन करा सकते हैं। साथ ही उन्होनें यह भी कहा यह काम मुश्किल जरूर है लेकिन असम्भव नहीं है। मुझे उनकी वीकेंड क्लास वाली बात पसन्द आई व परिवार, मित्रों, अदिती को यकीन दिलाकर कि यही हमारे लिये सही है ,मैंने  जनवरी 2016 के अन्तिम सप्ताह स्वंय जाकर इन्स्टीट्यूट की साउथ एक्स शाखा में अदिती का रजिस्ट्रेशन करा दिया। उन्होनें हमें मार्च 2016 की अन्तिम सप्ताह से वीकेंड क्लास शुरू होने की बात कहीं व समय से आने का निर्देश दिया।

मार्च 2016 से अन्तिम सप्ताह में अदिती की वीकेंड क्लासेस शुरू हो गई, मैं और अदिती प्रत्येक शुक्रवार शाम 4.30 बजे बिलारी से बस से निकलते 5.15 पर कोहिनूर चौराहा, मुरादाबाद पहुंचकर 5.30 बजे एसी0 बस दिल्ली जाने वाली पकड़ लेते थे, एसी0 बस ठीक रात्री 9 बजे कौशम्बी (दिल्ली) बस स्डेण्ड पहुंच जाती थी, वहां से साउथ एक्स, दिल्ली का आटो पकड़कर आर0के0 लौज पंहुच जाते थे। शनिवार सुबह 8 बजे अदिती कोचिंग क्लास चली जाती थी और मैं सुबह 9.30 बजे तैयार होकर चांदनी चौक, भागीरथ पैलेस सर्जीकल मार्केट चला जाता था। दोपहर 2.30 बजे अदिती की क्लास छूटती थी मैं भी 2.30 बजे तक सर्जिकल मार्केट से लौट आ जाता था। इसके बाद हम फोन पर बंगाली स्वीट को आडर देकर खाना मंगवाकर खाते थे। शाम 4.30 बजे तक आराम कर अदिती अपनी पढ़ाई में लग जाती , मैं भी कुछ किताब पड़ने या लिखने में लग जाता। रात्री 9.30 बजे मैं मैकडोनाल्ड से अदिती के लिये बर्गर आदि लाकर देता व कुछ हल्का फुल्का खुद खाकर 10 बजे तक सो जाता था। अदिती 12 या 1 बजे तक पढ़ती  रहती थी। व रविवार सुबह 8 बजे उठकर कोचिंग क्लास चली जाती। रविवार के दिन में सुबह 11 बजे तक तैयार होकर कमरा खाली कर देता था व सारा सामान आर0के0 लौज के रिस्पशन पर रखकर, सर्जिकल सामान की सप्लाई के लिये निकट के मार्केट जैसे, कोटला, लाजपतनगर, आईएनए आदि चला जाता था। करीब 2.15 बजे दोपहर तक मार्केट से वापस आकर लौज से सारा सामान उठाकर मैं इस्टीट्यूट के बाहर अदिती के आने का इंतजार करता व ठीक दोपहर 2.30 बजे जब उसकी छुट्टी होती तो हम आटो से कौशम्बी बस स्टेण्ड आ जाते, वहां हम 3.30 या 4 बजे शाम वाली एसी बस से मुरादाबाद आ जाते, फिर मुरादाबाद से बिलारी की बस पकड़ कर रात्रि करीब 9 या 10 बजे तक बिलारी पहुंचते थे। ऐसा रूटीन था हमारा शुक्रवार से रविवार के मध्य और ऐसा रूटीन अप्रेल 2016 से सितम्बर 2016 तक लगातार चला। हमारे कई मित्र जब इस रूटीन को सुनते तो ताजुब्ब करते थे और कहते थे कि आपने बहुत मुश्किल राह चुन ली है, मगर मुझे गीता की उस श्लोक का स्मरण था जिसका अर्थ है "कर्म कर फल की चिन्ता मत कर" सितम्बर 2016 तक हम हर सप्ताह दिल्ली आते रहे व अदिती की पढ़ाई भी अच्छी चल रही थी। इस्टीट्यूट में होने वाले टेस्टों में अदिती अच्छा प्रदर्शन कर रही थी यह देखकर मेरी भी हिम्मत बढ़ती रही।

अचानक एक दिन सितम्बर 2016 के अन्तिम सप्ताह की बात है, अदिती घर में एक कमरे में लाइट बंद करके बैठी हुई थी। मैंने लाइट खोली तो देखा अदिती रो रही थी, मैंने अपनी पत्निी डा0 सोनिया आहूजा व माता जी को बुलाया व अदिती से रोने का कारण पूछां, अदिती ने रोते हुये कहा-पापा मैं बहुत थक जाती हूं व 11वी की पढ़ाई भी मैं ढंग से नहीं कर पा रही हूं। अदिती की बात सुनकर घर के सभी लोग स्तम्भ रह गये, लेकिन हमें अदिती की भावनओं को भी समझना था अतः हमने अदिती का पक्ष लेते हुये उसे समझाया कि हम सब उसके साथ वह अपनी पढ़ाई सम्बन्धी निर्णय लेने के लिये स्वतन्त्र हैं।इसके बाद सितम्बर 2016 से हमनें दिल्ली कोचिंग  की शाखा में जाना बन्द कर दिया। इधर अदिती भी अपनी 11वी की पढ़ाई में व्यस्त हो गई, दो तीन सप्ताह इस्टीट्यूट न जाने की बजह से हमें वहा से बार-बार फोन आने लगे कि आप क्यों नहीं आ रहे है। अदिती को एक माह लगातार 11वी  की पढ़ाई मुरादाबाद करने के बाद अपनी भूल का अहसास हुआ व एक दिन वो मेरे व सोनिया के पास आकर बोली पापा मैं कोचिंग पुनः शुरू करना चाहती हूं। हमारी खुशी का ठिकाना न था, क्योंकि अदिती ने स्वंय कोचिंग करने को उसी शक्रवार से कोचिंग शुरू करने को कहा, हमने  उससे पूछा कि पिछले एक माह में जो कोचिंग का नुकसान हुआ है उसे वह किस प्रकार पूरा करेगी। अदिती ने कहा मैं दिल्ली से मुरादाबाद जाने वाली बस में चार घण्टे मोबाइल पर यूट्यूब क्लास ले लेगी व रात को भी देर तक पढ़कर अपने एक माह के नुकसान की भरपाई कर लेगी। हमें अदिती पर पूर्ण विश्वास था और हमने उसकी कोचिंग पुनः चालू करवा दी। उसके बाद चाहे एक दिन के लिये भी क्लास लगी अदिती ने कभी छुट्टी नहीं की।

इस प्रकार हम अक्टूबर 2017 तक प्रत्येक शुक्रवार को दिल्ली आते रहे कभी अदिती की मम्मी व कभी दादी भी समय-समय पर उत्साहवर्धन के लिये उसके साथ दिल्ली आती रही।

अक्टूबर 2017 तक अदिती ने अपनी कोचिंग क्लास मे  कक्षा  11 व 12* का पूरा कोर्स कर लिया उसके बाद मेडिकल कोचिंग इस्टीट्यूट की यह नियम था कि वह 11th का कोर्स दोबारा शुरू कर देते थे। अदिती ने हमसे कहा कि उसने 11 व 12* का कार्स अच्छे से कर लिया है। फिर 11th का कोर्स दोबारा करने के लिये वीकेंड पर आना जरूरी नहीं "मैं अच्छे से घर पर ही तैयारी कर पाउगीं।" हमने इस बार भी अदिती के निर्णय को प्रथमिकता दी व अक्टूबर 2017 से वीकेंड क्लास में आना बंद कर दिया।

अब अदिती ने घर पर ही तैयारी शुरू कर दी व अक्टूबर 2017 से दिसम्बर 2017 तक पूरी 11वी का कोर्स तैयार कर लिया। इसी बीच अदिती ने हमें बताया कि दिल्ली कोचिंग की भागदौड़ में वह 12th बोर्ड की परीक्षा की इंग्लिश की तैयारी नहीं कर पाई है। अदिती ने पहले यूट्यूब से इग्लिश की क्लास ली पर यूट्यूब में उसे काफी समय लग रहा था और बोर्ड परीक्षा काफी नजदीक थी। तब हमने मुरादाबाद एक अंग्रेजी की अध्यापिका जोकि काफी प्रतिष्ठित स्कूल में कार्यरत हैं उनसे मिलकर अपनी समस्या बताई। अदिती से मिलकर वो काफी प्रभावित हुई व उन्होनें अदिती को अंग्रेजी पढ़ाने का वादा किया। लेकिन उन्होने कहा कि वह कभी-कभी ही पढ़ा सकती है, हमने उनकी सभी शर्ते स्वीकर कर अदिती को वहां ट्यूशन शुरू कर दिया। अंग्रेजी की अध्यापिका ने 5 या 6 बार बुलाकर 3-3 घण्टे पढ़ाकर अंग्रेजी का 12 का कोर्स करा दिया परिणाम स्वरूप अदिती के 12 बोर्ड परीक्षा में पूरे स्कूल में अधिकतम नम्बर आये जो 96.4% थे। इसके अतिरिक्त अदिती ने पूरे जिले में चौथा स्थान प्राप्त किया।

अदिती 12वी की परीक्षा हो चुकी थी और वीकेंड क्लास जिसमें हम पिछले दो वर्षों से जा रहे थे उसकी मुख्य परीक्षा नीट 2018 भी होने वाली थी, चूंकि अदिती ने अक्टूबर 2017 से कोचिंग सेन्टर जाना बंद कर दिया था, अतः हमने परीक्षा के बीच करीब एक माह के समय में अदिती क्रेश कोर्स कर ले ताकि उसने जो भी दो वर्षों में तैयारी की है उसका रिविजन हो जाये। इसके लिये अदिती ने क्रेश कोर्स र्हेतु फिर स्कालरशिप की परीक्षा दी जिसमें उसे 80% स्कालरशिप मिली, हमने बाकी की 20% फीस देकर अदिती का क्रेश कोर्स में रजिस्ट्रेशन करा दिया।

चूंकि क्रेश कोर्स प्रतिदिन होना था, अतः हमने यह निर्णय लिया कि 12th की बोर्ड परीक्षा के तुरन्त बाद मैं अदिती के साथ दिल्ली में एक माह रहकर क्रेश कोर्स पूर्ण

करवाऊगां। जब क्रेश कोर्स से पूर्व हम दिल्ली पहुंचे तो हमें इन्स्टीट्यूट की शाखा से पता चला कि इस्टीट्यूट की तरफ से जो हमने दो वर्षों तक वीकेन्ड क्लास की थी उस पूरे कोर्स के 12 टेस्ट नीट 2018 से पहले लिये जायेगें। हम फिर दुविधा में फंस गये कि क्रेश कोर्स करे या 12 टेस्ट दें। हमने अदिती से उसकी राय पूछी तो उसने कहा कि हम जो कोर्स करने दिल्ली आये थे, उसे ही पूरा करेगें व उससे सम्बन्धित 12 पेपर देगें। अगर समय बचा तो क्रेश कोर्स के अन्त में मुख्य टेस्ट दे देगें। हमने एक बार अदिती के निर्णय को प्राथमिकता दी व नीट 2018 से पूर्व 12 टेस्ट दिये।

अंत में नीट 2018 के पेपर का दिन भी आ गया, उस पेपर का केन्द्र हमने दिल्ली ही रखा था ताकि अन्तिम समय में हमें इधर-उधर न भागना पड़े। पेपर से ठीक एक दिन पहले अदिती की मम्मी भी दिल्ली पहुंच गई ताकि अदिती का उत्साह वर्धन हो सके। अदिती का पेपर बंसत बिहार स्थित  हरकिशन पब्लिक स्कूल में हुआ पेपर सुबह 10 से दोपहर 1 बजे तक था, मैं और सोनिया बाहर कड़कती धूप में इंतजार करते रहे, ठीक 1 बजे अदिती का पेपर खत्म हुआ बाहर आकर उसने हमसे कहा कि पेपर ठीक हो गया है। हमने ईश्वर का धन्यवाद दिया व चैन की सांस ली। उसके बाद हम आर0के0 लौज पहुंचे व अपना सारा सामान समेटकर बस द्वारा बिलारी की ओर रवाना हो गये व रात्रि 10 बजे तक बिलारी पहुंच गये।

अगले दिन अपने दो वर्षों की थकान मिटाकर सुबह सब तैयार बैठे थे, सभी ने परम पिता परमेश्वर से आर्शीवाद लेने का निर्णय किया व अदिती को लेकर हम मन्दिर पौड़ा खेड़ा पहुंचे व शिवलिंग पर जल चढ़ाकर ईश्वर से आर्शीवाद प्राप्त किया। मन्दिर से लौटकर मैंने अदिती को नेट से नीट 2018 की उत्तर कुंजी निकाल कर दी व उससे बिल्कुल सटीक नम्बर गिनने को कहा। अदिती ने तुरन्त ही उत्तर कुंजी से नम्बर गिनने शुरू किये व इस निष्कर्ष पर पहुंची थी उसके 581 से 590 नम्बर बीच नीट 2018 में आ जायेगें। यह सुन हमारा पूरा परिवार संतुष्ट हो गया कि अदिती अब डॉक्टर बनने के करीब है बस नीट 2018 के रिजल्ट आना बाकी है। अब वो दिन भी आ चुका था जब नीट 2018 का रिजल्ट आना था, असल में नीट ने पहले 5 जून 2018 रिजल्ट को कहा था, मैंने अनायास ही 4 जून 2018 को इन्स्टीट्यूट की शाखा दिल्ली में फोन कर लिया व पूछा कि नीट का रिजल्ट कब आयेगा, तब उन्होनें मुझे बताया कि

नीट 2018 का परीणाम आज ही आने वाला है। मैंने तुरन्त अदिती को तैयार होकर परम पिता से आर्शीवाद लेने को कहा, तत्पश्चात मैं व अदिती अपने घर के समीप गुल प्रिंटर्स पर रिजल्ट देखने पहुंचे, वहां पता चला कि रिजल्ट आ चुका है ।अदिती का रोल नम्बर व सेन्टर नं0 उन्हें बताया तब उन्होनें जैसे ही अदिती का रोल नम्बर व सेन्टर नं0 कम्प्यूटर में डाला तो रिजल्ट स्क्रीन पर था अदिती के 581 नम्बर आये थे और उसकी ऑल इण्डिया रैंक 2988 थी अब वह डॉक्टर बन चुकी थी। मेरे व अदिती की आंखो से आंसू निरन्तर बह रहे थे, हमारी दो वर्षों की मेहनत सफल हो चुकी थी।  वहां खड़े सभी लोगों ने हमें ढेरो शुभकामनायें दी, हम नीट 2018 के रिजल्ट का प्रिंट आउट लेकर घर आ गये और ये खुश खबरी पूरे परिवार को बता दी। इसके बाद दोपहर एक 1 बजे से रात्रि 10 बजे तक फोन पर व व्यक्तिगत रूप से पूरे बिलारी के हमारे सभी मित्रों ने बधाई दी। पूरे परिवार में सभी हंस खुशी के पल में आंसू भी बहा रहे थे, ये खुशी के आंसू थे क्योंकि यह सफलता 2 वर्षों के अथक प्रयासों के बाद अर्जित हुई थी।

नीट 2018 के रिजल्ट के बाद काउंसलिंग का दौर शुरू हुआ जो करीब दो माह तक चला जिसमें अदिती को स्टेट काउंसिलिंग के माध्यम से कानपुर मेडिकल कालेज जी0एस0वी0एम0 में दाखिला मिला, चूंकि अदिती की स्टेट रैंक 263 व ऑल इण्डिया रैंक 2988 रही इस कारण अदिती अपनी पंसद का कॉलेज चुनने में भी सफल रही। आज अदिती जी०एस०वी०एम० मेडिकल कालेज, कानपुर में एम0बी0बी0एस की पढ़ाई कर रही है और अपना भविष्य संवारने के लिये प्रयासरत है, मैं उसके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं। लेकिन जंग अभी जारी हैं........

इस प्रेरणा दायक कहानी लिखने का मेरा मकसद कोई सहानूभति लेना नहीं है, मैं बस इतना चाहता हूं कि इसे पढ़कर यदि एक छात्र भी प्रेरित होकर अपना भविष्य संवार पाये तो मेरा प्रयास सफल होगा।

✍️विवेक आहूजा, बिलारी ,जिला मुरादाबाद 

@9410416986

Vivekahuja288@gmail.com

बुधवार, 7 अक्टूबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी ------सबक

 


अपने परिवार के बारे में बड़ी-बड़ी बातें बखान करने में रविंद्र का कोई सानी नहीं था ।  मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल में रविंदर आए दिन अपने परिवार के बड़प्पन के किस्से सुनाया करता था , कि उसके पास सैकड़ों बीघा जमीन है दसियो नौकर हैं ,गाड़ियां हैं ,आदि आदि ..... एक दिन एक मैले कुचेले कपड़ों में सुबह सुबह एक  व्यक्ति मेडिकल कॉलेज के गेट पर पहुंचा और गार्ड से पूछा "भाई डॉक्टर रविंद्र का कमरा कौन सा है,  मैं उसका पिता हूं" गार्ड ने उन्हें गेट पर ही इंतजार करने को कहा और रविंद्र को बुलाने के लिए उसके कमरे पर चला गया , क्योंकि रविंद्र का कमरा गेट के ठीक सामने था उसने गार्ड से कहा आप उन्हें मेरे कमरे में ही भेज दें । रविंद्र के यार दोस्त भी उस समय कमरे में मौजूद थे, उन्होंने   रविंद्र से पूछा डॉक्टर साहब आपसे कौन मिलने आया है   । रविंद्र ने थोड़ा हिचकते हुए अपने मित्रों से कहा पिताजी ने किसी नौकर को भेजा है , मेरी फीस जमा कराने के लिए । 

वृद्ध व्यक्ति के कमरे में प्रवेश करते ही रविंद्र के यार दोस्त कमरे से चले गए । वृद्ध ने रविंद्र से कहा बेटा मेरे चाय नाश्ते का इंतजाम करो , जब तक मैं तैयार होता हूं ,फिर तुम्हारे कॉलेज जाकर फीस जमा कर देंगे । रविंद्र अपने पिताजी के लिए चाय नाश्ते का इंतजाम करने चला गया   । रविंद्र के सभी यार दोस्त कमरे की खिड़की से झांक रहे थे तो रविंद्र के पिताजी ने उन्हें कमरे में बुला लिया । रविंद्र के पिताजी ने उनसे पूछा क्या बात हो रही है , तो उन्होंने बताया की रविंद्र ने उनसे कहा है कि उसके पिताजी ने किसी नौकर को भेजा है,  उसकी फीस जमा करवाने के लिए ।  यह सुन रविंद्र के पिताजी का चेहरा गुस्से से लाल हो गया ,  लेकिन उन्होंने रविंद्र के मित्रों के सामने कुछ भी जाहिर नहीं किया । कुछ देर में रविंद्र भी चाय नाश्ता लेकर कमरे में आ गया यार दोस्तों को वहां पर देख वह घबरा गया कि कहीं उन्होंने उसके पिताजी से कुछ कहा तो नहीं है । रविंदर को देख जब उसके मित्र कमरे से जाने लगे तो उसके पिताजी ने मित्रों को रोक दिया और कहा "आपके दोस्त ,डॉ रविंद्र कुमार जी ने जो मेरा परिचय दिया है वह अधूरा है मैं उसे पूरा करना चाहता हूं" वह आगे बोले ..."मेरी हैसियत इनके घर में एक नौकर की ही है , पर मैं इनका नौकर नहीं हूँ,  मैं तो इनकी माँ का नौकर हूं" 

यह सुन रविंदर अपने दोस्तों के समक्ष शर्म से पानी पानी हो गया । इसके पश्चात रविंद्र के पिताजी ने तैयार होकर कॉलेज में रविंद्र की फीस जमा करवाई ,व दोपहर वाली गाड़ी से गांव वापस चले गए ।

✍️विवेक आहूजा 

बिलारी , जिला मुरादाबाद 

@9410416986

Vivekahuja288@gmail.com

गुरुवार, 1 अक्टूबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी ----उपहार


आज अचानक बैसाखी लाल के दरवाजे की घंटी बजी तो ,बैसाखी लाल ने अपनी छोटी बेटी रजनी को आवाज लगाई..... "बेटा देखो दरवाजे पर कौन है" रजनी ने दरवाजा खोला तो सामने डाक बाबू खड़े थे,   उन्होंने कहा .....बेटा जाओ पापा को बुला लाओ उनका अमेरिका से एक पार्सल आया है । 

 अमेरिका का नाम सुनकर रजनी उछल पड़ी व भागकर अपने पापा के पास आई और बोली "पापा देखो रमेश भैया का पार्सल आया है ,डाक बाबू आपको बुला रहे हैं" बैसाखी लाल दौड़कर गेट पर पहुंचे और डाक बाबू से पार्सल रिसीव किया । 

बैसाखी लाल , उनकी पत्नी व बेटी रजनी बड़ी उत्सुकता से पार्सल को देख रहे थे ।  रजनी बोली "पापा इसे जल्दी से खोलो ,  देखो भैया ने इसमें क्या भेजा है"  बैसाखी लाल ने ड्राइंग रूम में आकर पार्सल खोला ,  तो सारे परिवार के लोग उसे देख हैरान रह गए,  रमेश ने पूरे परिवार के लिए बहुत से उपहार भेजे थे , साथ ही उसमें कुछ कागज भी रखे थे ।  बैसाखी लाल ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे अतः उन्होंने अपनी बेटी राखी और दामाद सुनील , जो कि उनके घर के पास ही रहते थे , उन्हें अपने घर बुलवा लिया । 

बैसाखी लाल ने सुनील से कहा "बेटा देखो यह कैसे कागज हैं, मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा कि मेरे भतीजे डॉ रमेश ने इसमें क्या भेजा है"  सुनील ने सारे कागजों का गहराई से अध्ययन किया तो चेहरे पर मुस्कान लाते हुए बोला "पापा जी आपके भतीजे ने आपको तोहफे में अमेरिका से कार भेजी है" "फोर्ड कार" यह अमेरिका की सबसे महंगी गाड़ियों में से एक है , फोर्ड कार का नाम सुनते ही बैसाखी लाल धम से सोफे पर बैठ गए , उनकी आंखों से अश्रु की धार बह निकली ।  सुनील बैसाखी लाल के पास आया व  बोला .....पापा जी यह तो खुशी की बात है कि आपका भतीजा आपको कितनी इज्जत देता है और उसने आपको अमेरिका से गाड़ी भेजी है । आप खुश होने की बजाय रो रहे हैं क्या बात है । बैसाखी  लाल चुप रहे और अपना मुंह छुपा कर सोफे पर बैठ गये । सुनील बैसाखी  लाल के पैरों के पास आकर बैठ गया और भावुक होते हुए बोला "मैं आपका दामाद हूं ,लेकिन मैंने आपको हमेशा अपना पिता का ही दर्जा दिया है, अगर आप मुझे अपना बेटा समझते हैं तो मुझे सच सच बताएं क्या बात है"  बैसाखी लाल ने सुनील को पैरों के पास से उठाया और बोले मैं तुम्हें सब कुछ बताऊंगा कि मुझसे कितना बड़ा पाप हुआ है बैसाखी लाल ने कहना शुरू किया ....

हम लोग लुधियाना के पास एक गांव में रहते थे ,मेरे पिताजी रेलवे में एक फोर्थ क्लास कर्मचारी थे । पिताजी की अचानक मृत्यु के पश्चात रमेश के पिताजी ने मुझे अपने बेटे की तरह पाला और पिताजी की जगह मुझे रेलवे में फोर्थ क्लास नौकरी पर लगवा दिया । रेलवे में नौकरी करते करते , मैं दिल्ली आकर बस गया और आर्थिक रूप से भी संपन्न हो गया । लेकिन इसके विपरीत मेरे बड़े भाई साहब की गांव में एक छोटी सी हलवाई की दुकान थी ,जो ना के बराबर चलती थी उनकी आर्थिक स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही थी । लेकिन इस सबके बावजूद रमेश ने बहुत मेहनत की और दिल्ली के आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेने में सफल रहा । 

बैसाखी  लाल ने आगे बताना शुरू किया , भाई साहब रमेश को मेरे पास छोड़ गए क्योंकि वह हॉस्टल का खर्च वहन करने की स्थिति में नहीं थे ।  रमेश का कॉलेज हमारे घर से 3 किलोमीटर की दूरी पर था रहन-सहन के मामले में रमेश बिल्कुल सादा सुधा व्यक्तित्व वाला छात्र था । उसके पास सिर्फ दो ही जोड़े थे ,वह एक जोड़ा पहनता और एक धोता था । उधर बैसाखी  लाल का रहन सहन शाही था ,लेकिन उसने कभी रमेश की मदद करने का मन नहीं बनाया । एक दिन रमेश ने हिम्मत करके अपने चाचा बैसाखी लाल से कहा मेरा कॉलेज आपके घर से 3 किलोमीटर की दूरी पर है और मुझे रोज पैदल जाना होता है । आपके घर साइकिल ऐसे ही पड़ी रहती है , अगर आप इजाजत दें तो मैं आपकी साइकिल ले जाया करू, चाचा जी ने बड़ी बेरुखी से रमेश को साइकिल के लिए मना कर दिया और कह दिया "मैं अपनी साइकिल किसी को नहीं देता" यह बात जब रमेश के दोस्तों को कॉलेज में पता चली तो सभी ने संयुक्त रूप से मदद कर रमेश का हॉस्टल में प्रवेश करा दिया । उसके पश्चात रमेश कॉलेज के हॉस्टल में ही रहने लगा और अपने चाचा जी से कभी कभार ही मिलने आया करता था।  5 वर्ष का कोर्स करने के पश्चात रमेश ने एक केरल की नर्स के साथ शादी कर ली और बाद में उसकी पत्नी की अमेरिका में नौकरी लग गई । अमेरिका में एक वर्षीय  कोर्स करने के पश्चात रमेश भी वहां पर नौकरी करने लगा । आज करीब आठ 10 वर्षों के पश्चात रमेश का यह "उपहार" हमें प्राप्त हुआ है । बैसाखी लाल अपनी बात को विराम देकर चुप हो गए । 

सभी लोग उनकी बातों को बड़े ध्यान से सुन रहे थे । माहौल एकदम शांत था ,  तभी फोन की घंटी बजी तो बैसाखी लाल ने फोन उठाया दूसरी ओर से आवाज आई "हेलो,  मैं रमेश बोल रहा हूं चाचा जी" रमेश की आवाज सुन बैसाखी लाल भावुक हो गए और उन्होंने रमेश से कहा "बेटा ,मैंने तेरे साथ बहुत बुरा किया है, फिर भी तूने मुझे याद रखा, मुझे माफ कर दे" 

रमेश ने चाचा जी से कहा "नहीं चाचा जी ,आप पुरानी बातों को दिल से ना लगाएं आप हमारे बड़े हैं , मैं आपको पिताजी के बराबर ही सम्मान देता हूं" कृपया करके मेरे द्वारा भेजा गया "उपहार" स्वीकार करें । यह कह रमेश ने फोन रख दिया ।  भतीजे रमेश से फोन पर बात करके  बैसाखी  लाल का मन हल्का हो गया, उन्होंने सुनील से कहा ......"बेटा चलो , एयरपोर्ट गाड़ी की डिलीवरी लेने चलना है" और वह दोनों एयरपोर्ट पर "उपहार" में आई फोर्ड गाड़ी की डिलीवरी लेने चले गए ।

✍️विवेक आहूजा, बिलारी, जिला मुरादाबाद 

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बुधवार, 23 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी----पासा

   एक दिन रमेश के पास उसके बड़े भाई अजय का फोन आया,  हालचाल जानने के पश्चात अजय ने रमेश से कहा "तुम तो गांव में रहते हो वहां पढ़ाई के लिए कोई अच्छा स्कूल भी नहीं है , लिहाजा अपनी बेटी रमा को मेरे पास पढ़ने के लिए भेज दो , मेरी भी कोई बेटी नहीं है मुझे भी बेटी का सुख मिल जाएगा" यह सुन रमेश अति प्रसन्न हुआ कि उसके बड़े भाई उसका कितना ख्याल रखते हैं । घर में पत्नी से मंत्रणा कर रमेश ने अपने बेटे विनय  के साथ रमा को अजय के घर छोड़ने के लिए भेज दिया , घर पहुंचते ही ताई जी ने विनय से पूछा कैसे आना हुआ सब खैरियत तो है । यह सुन विनय को बड़ा  अचरज हुआ कि अजय ताऊ जी ने घर पर कुछ नहीं बताया था । लेकिन फिर भी विनय ने ताई जी से कहा मैं रमा को आपके घर छोड़ने के लिए आया हूं ,ताकि यह शहर में पढ़ाई कर सकें । ताई जी विनय की बात सुन , चुप हो गई । चाय पानी के पश्चात ताई जी विनय से बोली चलो थोड़ा सैर कर आते  हैं सेहत के लिए अच्छी होती है । विनय ने हामी भर दी और उनके साथ सैर करने  चला गया । रास्ते में ताई जी ने विनय से कहा तुम्हारे ताऊजी की तुम्हारे पापा से क्या बात हुई मुझे नहीं पता , रमा यहां पर रहे मुझे इस पर कोई एतराज नहीं है , मगर मैं तो बस इतना कहना चाहती हूं कि लड़की जात है अगर कोई ऊंच-नीच हो गई तो मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी । ताई जी अपना "पासा" फेंक चुकी थी, विनय भी काफी समझदार था वह उनका मतलब अच्छे से समझ गया था । वह चुप रहा और घर आकर रमा से बोला चलो वापस घर चलते हैं ,  इस वर्ष स्कूलों में सभी सीटें फुल हो गई हैं अगले वर्ष एडमिशन की पुनः कोशिश करेंगे ।

✍️विवेक आहूजा 

बिलारी 

जिला मुरादाबाद 

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गुरुवार, 17 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी ---- सेटिंग


आज इलेक्शन का रिजल्ट आने वाला था ,दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं को पूर्ण यकीन था कि जीत हमारी ही होगी । पूरे वातावरण में नारेबाजी हो रही थी ,आखिर वह पल भी आ गया जब रिजल्ट की घोषणा हुई ,रमेश कुमार को निरंजन सिंह ने बहुत कम अंतर से हरा दिया था । निरंजन सिंह के कार्यकर्ताओं में जीत का उत्साह देखते ही बन रहा था ,वही रमेश कुमार के कार्यकर्ता हार से मायूस होकर घर की ओर प्रस्थान कर रहे थे । रमेश कुमार ने अपने कार्यकर्ताओं को ढांढस बधाते हुए कहा मायूस ना हो हम फिर जीतेंगे । सरकार भी बदल चुकी थी अब तो निरंजन सिंह को सरकार के विधायक का दर्जा प्राप्त  था ।
रमेश कुमार ने अपने कार्यकर्ताओं की एक मीटिंग अपने घर पर बुलाई और बोले "अब हमारी सरकार नहीं रही लिहाजा सोच समझ कर चले और कोई भी गड़बड़ की तो मुझसे कोई उम्मीद ना रखें"  निरंजन सिंह का स्वागत पूरे शहर में हो रहा था । आज गांधी मैदान में बहुत बड़ा जलसा होना था , जिसमें व्यापारी वर्ग विधायक निरंजन सिंह का स्वागत करने वाले थे ,समारोह शुरू हुआ विधायक जी को भाषण देने के लिए बुलाया गया , निरंजन सिंह बोले "यह जो रमेश कुमार है जो पहले आपका विधायक रहा था यह चोर है , लुटेरा है और अवैध तरीके से पैसा कमाता था मैं उसे जेल भिजवा कर रहूंगा"  "हमारी सरकार चल रही है" समारोह में बहुत से रमेश कुमार के समर्थक भी बैठे थे ,यह सुन वह सब  घबरा गए , यह तो हमारे नेता को भी नहीं छोड़ेगा जेल डलवाने की बात कर रहा है, हमारी तो औकात ही क्या है ।
 कुछ दिन पश्चात रमेश कुमार के घर एक प्रोग्राम का आयोजन हुआ रमेश कुमार के कार्यकर्ताओं को भी नहीं पता था की आयोजन का मुख्य उद्देश्य क्या है । कुछ ही देर में नीली बत्ती गाड़ी के साथ निरंजन सिंह विधायक जी ने रमेश कुमार के घर प्रवेश किया , कार्यक्रम शुरू हुआ , रमेश कुमार के कार्यकर्ता यह देख भौचक्का  रह गए की रमेश कुमार जी निरंजन सिंह विधायक के गले में माला डाल उनका स्वागत कर रहे थे । एक कार्यकर्ता ने रमेश कुमार के खासम खास ऐलची से पूछा "माजरा क्या है" ऐलची ने जवाब दिया ,अब आपको घबराने की कोई जरूरत नहीं है, हमारी विधायक जी से "सेटिंग" हो गई है। कार्यकर्ता ने ठंडी सांस ली और कार्यक्रम का आनंद लेने लगा ।

✍️ विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
9410416986
Vivekahuja288@gmail.com

मंगलवार, 8 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की लघुकथा ------ कमीशन


  डॉक्टर साहब खाली टाइम में बैठे अपने दोनो कंपाउंडर से बात कर रहे थे ।डॉक्टर साहब का नया अस्पताल बन रहा था और वह कंपाउंडरो को समझा रहे थे कि किस प्रकार से व्यवस्था को संभालना है । डॉक्टर साहब ने अपने कंपाउंडर सुशील से कहा मैं तो दुखी हो गया हूं, इनमें मिस्त्रीयों से और लकड़ी के काम करने वालों से जहां देखो कमीशन का माहौल बना रखा है।  जो भी सामान खरीदने जाता हूं , इन लोगों का कमीशन वहां पर सेट होता है इस हिसाब से तो मुझे नए अस्पताल में बहुत पैसा खर्च करना पड़ेगा । अभी यह बात चल ही रही थी कि अचानक डॉक्टर साहब के पास एक जनाना मरीज आ गया । डॉक्टर साहब ने फौरन अपनी वाइफ को बुलाया और उन्हें मरीज को लेबर रूम में शिफ्ट कर दिया । डॉक्टर साहब की वाइफ जो कि एक महिला डाक्टर थी,   मरीज को देखने लगी, कुछ ही देर में डॉक्टर साहब के केबिन में एक बैग टांगे आशा वर्कर का प्रवेश हुआ आशा के आते ही डॉक्टर साहब ने कहा आओ शीला बैठो तुम्हारे मरीज को क्या परेशानी है  बताओ । आशा वर्कर ने कहा इसका डिलीवरी का टाइम है और मैं भाभी जी से इसका प्रसव कराने के लिए लाई हूं । कुछ देर पश्चात आशा वर्कर ने अपनी ड्यूटी का हवाला देते हुए डाक्टर  साहब से जाने की इजाजत मांगी और जाते-जाते डॉक्टर साहब से बोली डॉक्टर साहब मेरे कमीशन का ध्यान रखना अब तो मैं लगातार आपके पास केस लेकर आती हूं । कंपाउंडर सुशील के सामने इस तरह के शब्द सुनकर डॉक्टर साहब कुछ असहज से हुए । यह कह आशा वर्कर तो चली गई लेकिन कंपाउंडर सुशील डॉक्टर साहब को नजरें गड़ाए देख रहा था। डाक्टर साहब भी कंपाउंडर सुशील से नजर बचाते हुए अपने काम में व्यस्त हो गए ।


✍️ विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
Vivekahuja288@gmail.com

बुधवार, 2 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी...... दरकते रिश्ते


       आज विनय काफी खुश था क्योंकि आज वह अपनी बेटी को  मेडिकल की कोचिंग दिलाने दिल्ली लेकर जा रहा था। विनय की बेटी को मेडिकल की कोचिंग हेतु सौ परसेंट का स्कॉलरशिप जो मिला था और वह दो वर्षीय  वीकेंड क्लासेस के लिए प्रत्येक शनिवार और इतवार को दिल्ली में कोचिंग करने के लिए जा रही थी । विनय रास्ते में सोच रहा था कि दिल्ली में तो उसकी कितनी सारी रिश्तेदारी है अगर वह सबसे एक या दो बार भी मिलेगा तो 2 वर्ष किस तरह बीत  जाएंगे पता ही नहीं चलेगा। विनय ने अपने रहने की व्यवस्था पहले ही कोचिंग क्लास के निकट एक लॉज में कर ली थी। चूंकि  वह उसका प्रथम दिन था उसने सोचा इस बार चलो चाचा जी से मिल लेते हैं क्योंकि चाचा जी कई बार उन्हें दिल्ली नहीं आने का उलाहना दे चुके थे । विनय अपनी बेटी के साथ अपने  चाचा जी के पंजाबी बाग स्थित मकान पर उनसे मिलने पहुंच गया विनय व उसकी बेटी को देखकर चाचा जी बहुत प्रसन्न हुए और उनसे कुछ देर विश्राम करने को कहा और स्वयं सामान लेने बाजार चले गए । बाजार से लौटकर जब चाचा जी घर आए तो चाची ने उन्हें बाहर दरवाजे पर ही रोक लिया, विनय को कमरे में नींद नहीं आ रही थी और वह खिड़की के पास ही खड़ा था । चाची जी ,चाचा जी से कह रही थी कि अपने भतीजे और पोती की इतनी सेवा सत्कार मत करना कि वह प्रत्येक सप्ताह यहीं पर आ धमके  यह सुन विनय के पैरों तले जमीन खिसक गई और वह मन में सोचने लगा कि वह तो अपनी रिश्तेदारी पर गर्व कर रहा था की दिल्ली जाकर उसे किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होगी परंतु रिश्तेदारी का यह चेहरा उसने पहली बार देखा था ।चाचा जी ने मकान में प्रवेश किया तो विनय अपने चाचा जी को बताया की उसने कोचिंग के समीप ही रहने की व्यवस्था कर ली है वह तो बस उनका हालचाल जानने के लिए मिलने चला आया , विनय ने अपनी बेटी को तैयार होने को कहा और कोचिंग के समीप लॉज में प्रस्थान किया । रास्ते में जाते वक्त विनय यह सोच रहा था की आज के दौर में रिश्ते इतने दरक चुके हैं कि वह अपनी सगी रिश्तेदारी का  बोझ एक दिन भी सहन नहीं कर सकते उसके पश्चात विनय हर सप्ताह अपनी बेटी को लेकर दिल्ली आता रहा और उसने किसी रिश्तेदार के यहां जाना मुनासिब नहीं समझा।

 ✍️विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
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मंगलवार, 25 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी -–- दरकते रिश्ते


       आज विनय काफी खुश था क्योंकि आज वह अपनी बेटी को  मेडिकल की कोचिंग दिलाने दिल्ली लेकर जा रहा था। विनय की बेटी को मेडिकल की कोचिंग हेतु सौ परसेंट का स्कॉलरशिप जो मिला था और वह दो वर्षीय  वीकेंड क्लासेस के लिए प्रत्येक शनिवार और इतवार को दिल्ली में कोचिंग करने के लिए जा रही थी ।
     विनय रास्ते में सोच रहा था कि दिल्ली में तो उसकी कितनी सारी रिश्तेदारी है अगर वह सबसे एक या दो बार भी मिलेगा तो 2 वर्ष किस तरह बीत  जाएंगे पता ही नहीं चलेगा। विनय ने अपने रहने की व्यवस्था पहले ही कोचिंग क्लास के निकट एक लॉज में कर ली थी। चूंकि  वह उसका प्रथम दिन था उसने सोचा इस बार चलो चाचा जी से मिल लेते हैं क्योंकि चाचा जी कई बार उन्हें दिल्ली नहीं आने का उलाहना दे चुके थे ।
       विनय अपनी बेटी के साथ अपने  चाचा जी के पंजाबी बाग स्थित मकान पर उनसे मिलने पहुंच गया विनय व उसकी बेटी को देखकर चाचा जी बहुत प्रसन्न हुए और उनसे कुछ देर विश्राम करने को कहा और स्वयं सामान लेने बाजार चले गए । बाजार से लौटकर जब चाचा जी घर आए तो चाची ने उन्हें बाहर दरवाजे पर ही रोक लिया, विनय को कमरे में नींद नहीं आ रही थी और वह खिड़की के पास ही खड़ा था । चाची जी ,चाचा जी से कह रही थी कि अपने भतीजे और पोती की इतनी सेवा सत्कार मत करना कि वह प्रत्येक सप्ताह यहीं पर आ धमके  यह सुन विनय के पैरों तले जमीन खिसक गई और वह मन में सोचने लगा कि वह तो अपनी रिश्तेदारी पर गर्व कर रहा था कि दिल्ली जाकर उसे किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होगी परंतु रिश्तेदारी का यह चेहरा उसने पहली बार देखा था ।
        चाचा जी ने मकान में प्रवेश किया तो विनय अपने चाचा जी को बताया कि उसने कोचिंग के समीप ही रहने की व्यवस्था कर ली है वह तो बस उनका हालचाल जानने के लिए मिलने चला आया , विनय ने अपनी बेटी को तैयार होने को कहा और कोचिंग के समीप लॉज में प्रस्थान किया ।
        रास्ते में जाते वक्त विनय यह सोच रहा था की आज के दौर में रिश्ते इतने दरक चुके हैं कि वह अपनी सगी रिश्तेदारी का  बोझ एक दिन भी सहन नहीं कर सकते उसके पश्चात विनय हर सप्ताह अपनी बेटी को लेकर दिल्ली आता रहा और उसने किसी रिश्तेदार के यहां जाना मुनासिब नहीं समझा।

✍️  विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
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