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गुरुवार, 13 अगस्त 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मंगलेश लता यादव की कहानी ----- भिखारी



गाडी़ जैसे ही गंगा के किनारे रोकी कि अचानक पीछे से गिड़गिड़ाने की आवाज आई--  ऐ अम्मा कुछ तो देदो गंगा मैया तुम्हारी आस औलाद को सुखी रखे ।पलट कर देखा तो एक लम्बा सा नौजवान हाथ मे कटोरा लिए खड़ा था देखने मे उतना दीन नही लग रहा था, लेकिन चेहरा तो  मुरझाया हुआ था । मैने अपनी आदत के मुताबिक पर्स में हाथ डाला ही था कि हमेशा की तरह पतिदेव ने टोक दिया " तुम इनकी आदत नही जानती ये नकली भिखारी है हट्टा कट्टा आदमी है मत दो पैसे " ।  पर गंगा किनारे किसी को मांगने पर न दूं ये मेरी आस्था के खिलाफ था और पतिदेव की बात की अवहेलना भी नही कर सकती थी सो जल्दी से बोल दिया " चलो चाय पीना है और कुछ खाना हो तो खालो पैसे नही मिलेगें " इतना सुनना था कि वो भिखारी युवक एकदम खुश हो गया " हाँ ठीक  है अम्मा कुछ खिला दो" । हमने एक दुकान पर चाय और छोले भटूरे का ओर्डर दिया और दुकान वाले को बोला भैया एक चाय और छोले भटूरे इसको भी देदो ।  चाय वाले ने ठीक है साहब कहकर फटाफट हमारे लिए चाय और भटूरे लगा दिए इतने में ही और ग्राहक आ गए तो वह उनकाे चाय देने लगा मैने कहा भैया पहले इसे देदो ये भूखा है, मैने पास ही कुर्सी पर बैठे भिखारी युवक की तरफ इशारा करके कहा जो बड़ी तसल्ली से बैठा हमारी तरफ देख रहा था। " अरे बहनजी ये आराम से अपने तरीके से खायेगा आप तो पैमैंट कर दो" पतिदेव ने मुझे घूर कर देखा और कहा " वो चाय या भटूरे नही खायेगा पैसे खायेगा " मैने जल्दी से चाय वाले से पैसे पूछे कि पतिदेव और लम्बी बात न बढा दे उससे पहले हम यहाँ से निकल ले, मुझे उनकी बात अच्छी नही लग रही थी मन में सोच रही थी, क्या हो गया अगर भूखे को खाना खिला दिया तो । चाय वाले ने तीन चाय और भटूरे के एक सौ बीस रु मांगे मैने जल्दी से दे दिए और गाड़ी मे बैठ गई परन्तु ध्यान अभी भी भिखारी पर था जिसने अभी भी कुछ खाया नही था । पतिदेव अपने फोन मे व्यस्त थे मगर मै कनखियों से उस भिखारी और चायवाले को ही देख रही थी कि उसने हमसे चालीस रू लेकर अभी तक उसे क्यूँ नही खिलाया। इस बीच मै मैने चायवाले को देखा उसने धीरे जेब मे हाथ डाला और भिखारी को बीस रू पकडा दिऐ जबकि हमसे उसने चालीस रु लिए थे,मै जब तक कुछ समझ पाती वो भिखारी दूसरी गाड़ी की तरफ बढ़ गया " अम्मा कुछ खाने को देदो बहुत भूखा हूँ"।  मै आश्चर्य से कभी भिखारी को तो कभी चायवाले को देख रही थी कि भिखारियों की ये कैसी मिलीभगत है जो ईंसानियत की मजाक उड़ा रही है । मुझे आज पतिदेव की बात ही सही लगी और  कभी भिखारियों की मदद न करने का मन ही मन फैसला कर लिया ।

मंगलेश लता
जिला पंचायत मुरादाबाद
9412840699

गुरुवार, 14 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मंगलेश लता यादव की कहानी....... कुंडली

                   
  आज अचानक जब मोनिका को फेसबुक पर हंसते मुस्कुराते हुए अपने नातियों के साथ देखा। तो मन बहुत खुश हो गया ।
    जीवन में कभी कभी ऐसे पल आते है जब किसी दूसरे के जीवन की झांकी हमें बहुत कुछ सिखा जाती है। मोनिका की जीवन की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी,याद आए वो दिन जब हम दोनों स्कूल से लेकर कालेज की पढ़ाई तक एक दूसरे की सच्ची दोस्ती निभाने में कौई कसर नहीं छोड़ते थेैं। बचपन से साथ खेल कर जवानी की दहलीज पर कदम रखा और दोनों के घरों में तैयारियां होने लगीं थीं कि अब इन्हें पराए घर जाना है । मोनिका ब्रह्ममण परिवार की चार भाई बहनों में सबसे बड़ी संतान थी, खूबसूरत भी थी , पैसे की भी कमी न थी तो घर और वर दोनों सुयोग्य मिलने में कौई  परेशानी तो होनी ही नहीं थी। सुयोग्य वर ढूंढने में रिश्तेदारों ने भी कौई कसर न छोड़ी , लेकिन सब कुछ अच्छा होने के बावजूद बात नहीं बन पाती थी , क्योंकि वर  और कन्या की कुण्डली में पंडित जी कौई न कौई कमी निकाल ही देते थे।इस बीच मेरी शादी माता पिता ने अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा के अनुसार बिना कुंडली मिलान के कर दी।‌लेकिन मोनिका की कुंडली उसके घरवाले और रिश्तेदारों के कारण नहीं मिल पा रही थी । उम्र निकलती जा रही थी मोनिका अब अपना ध्यान पढ़ाई पर लगाने लगी थी और उसकी पी एच डी भी पूरी हो गयी थी।
   एक दिन एक रिश्ता ऐसा भी आया कि लड़के वालों को उसकी छोटी बहन पसंद आ गयी और उसकी कुंडली भी लड़के से मिलान कर गयी। परिवार वालों ने मोनिका के भाग्य को कोसना शुरू कर दिया था, अब मोनिका की सहनशक्ति जवाब दे गयी थी और फिर उसने वो फैसला लिया जो परिवार वालों के खिलाफ, था ,, पहुंच गयी थी एक दिन सिध्दार्थ के घर जो उन दिनों छुट्टी में घर आया हुआ था,।हम सब के साथ उसने स्कूल से लेकर कालेज तक की पढ़ाई की थी और कभी कभी मजाक में कह देता था , मोनिका क्या मुझसे शादी करोगी?और मोनिका जिसे अपने परिवार और खूबसूरती पर नाज था मुंह बना कर कह देती थी ,इतने काले लड़के से कौन करेगा शादी ,मेरी तुम्हारी कुंडली तो यहीं मिलान नहीं करती,आगे तो भगवान ही मालिक होगा और वो अपना सा मुंह लेकर चुप हो जाता था । पढ़ने में और अन्य क्रियाकलापों में होशियार था ग्रेजुएशन करने के तुरंत बाद उसका चयन आर्मी में सेकंड लेफ़्टिनेंट के पद पर हो गया था,पर अब तक शादी नहीं की थी पूछने पर हंस कर कहता किसी से कुंडली मिलती नहीं जब मिल जाएगी तो कर लूंगा।               अचानक मोनिका को सामने देख कर वो भी अपने घरपर, भौचक रह गया था , मोनिका ने बिना किसी औपचारिकता के सीधा सवाल किया था"सिध्दार्थ क्या मुझसे शादी करोगे?? सिध्दार्थ को समझ नहीं आया कि वो सपना है या हकीकत, अचकचा गया और बोला ....वो.. कुंडली....का मिलान.....बात पूरी से पहले ही मोनिका ने उसका हाथ पकड़ कर कहा "वो मैं मिला लूंगी बस तुम्हारी हां की जरुरत है।"सिध्दार्थ के मुंह से हां निकलते ही मोनिका ने घरवालों से पूछा शादी आप लोग करेंगे या मैं कोर्ट में कर लूं और फिर घरवालों ने अपनी बदनामी के डर से न चाहते हुए भी साधारण तरीके से शादी कर दी थी। अाज वहीं मोनिका अपनी छोटी बहन से भी ज्यादा सम्पन्न और सुखी थी क्योंकि उसने अपनी कुंडली खुद मिलायी थी।                                                                         
✍️ मंगलेश लता यादव
जिला पंचायत कोर्ट रोड
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नंबर 9412840699

गुरुवार, 7 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मंगलेश लता यादव की कहानी ----- कोरोना वारियर


अनिका का आज स्कूल मेंं मन नहींं लग रहा था। उसे अपनी तबियत ठीक नहींं लग रही थी जैसे जैसे स्कूल का टाइम पूरा हुआ तो पापा को बाहर खड़ा देखकर दौड़ते लगा दी ।
घर पहुँच कर उसने सबसे पहले अपना मास्क उतारा और फिर बाशवेशिन पर हाथों को साबुन से धोने लगी लेकिन उसका सिर इतना भारी हो रहा था कि नहाने और खाना खाने का तो मन ही नही कर रहा था लेकिन मम्मी के आगे उसकी एक न चली मनमार  कर सब किया और सोने चली गई।
बिस्तर पर लेटते ही उसे लगा कि उसका सर फट जायेगा उसके कान और नाक बहुत गरम हो रहै थे आंखों से पानी निकल रहा था, उसने कानोंं को हाथ लगाया तो लगा जैसे करेंट लग गया उसके आगे बड़ी बड़ी दो आकृति आकर खडी़ हो गई " खबरदार जो हाथ लगाया मुझे परेशान हो चुका हूँ मै तुम सबकी फरमाइश पूरी करते करते " अभी उसकी बात पूरी भी नही हुई थी कि एक मिमियाती आवाज आई" तुम्हींं अकेले नहींं हो हम भी तुम्हारा बराबर का साथ दे रहै हैंं लेकिन उसकी पतली आवाज दबा दी गई " क्या साथ दे रहे हो बस जरा सा सहारा लगा दिया बाकी पूरा का पूरा  बोझ मुझे ही ढोना पड़ता है सारे दिन। किसी पल चैन नही जब देखो तब मेरा ही काम चाहे पढना हो चाहे मनोरंजन करना हो चाहे बाहर जाना होऔर अब तो एक और नया काम जब देखो तब अपने ऊपर डोरियां चढाये रहो दर्द होता है मुझे भी सबकुछ मेरे ही ऊपर बस बहुत हो गया मै कल से हड़ताल कर दूंगा" । तभी एक नई आवाज आई " भैया तुम मत हड़ताल करना देखो तुम तो कोरोना वारियर हो आजकल तुम्हारे बिना हम सब अनाथ हो जायेंगे तुम ही तो हम सब की रक्षा करते हो माना कि आजकल तुम्हे काम ज्यादा करना पड़ता है लेकिन क्या करे समय ही ऐसा है मुझे देखो घंटो मोबाइल और कम्प्यूटर के आगे बैठे बैठे पसीना निकलने लगता दुखन होती है लेकिन क्या करे अगर हम साथ नही देगे तो अनिका का क्या होगा " तभी लम्बी लम्बी पतली आकृतियों ने आकर बोलना शुरू किया हमसे पूछो पूरे दिन हम साबुन और पानी के साथ लड़ाई करते है फिर ऊपर से तौलिया महाराज की रगड़ भी सहते है लेकिन हम हड़ताल नहीं कर सकते अगर हम मेसे किसी एक ने भी हड़ताल करदी तो हमारा सबका अस्तित्व ही खतम हो जायगा " ।  चारो तरफ शोर मचने लगा तरह तरह की आकृतियों ने अनिका को घेर लिया हमें आराम चाहिए नही तो हम हड़ताल कर देंगे...... शोर जब अधिक होने लगा तो एक मीठी सी आवाज आई " अरे मेरे प्यारे बच्चों तुम सब की इस समय अनिका को जरूरत है और इस समय हम हड़ताल नही कर सकते हमसब को मिलकर काम करना है तभी हम प्यारी अनिका को सुरक्षित रख पायेंगे। मै तुम्हारी माँ हूँ जैसा आदेश दूंगी करना पडेगा..इस सब शोर के बीच अनिका घबरा कर उठ गई वो पसीने से नहा गई थी उसने आंख खोल कर देखा सिर पर मां का हाथ था वो पूछने लगी क्या हुआ बेटा तब से कहे जा रही ह   हड़ताल ....हडताल
 बहुत देर सै तुम पता नहीं क्या क्या बोल रही हो तबीयत ठीक है तुम्हारी " अनिका ने देखा और फिर सब कुछ समझ मे आ गया, आज उसके सारे अंग उससे अपनी अपनी व्यथा सुना रहे थे  और उसे सब कुछ समझ मे आ गया कि किसने क्या क्या बोला । वह धीरे से मुस्कराई और बोली कुछ नहीं मम्मी मुझे अबसे अपने कोरोना वारियर्स का ध्यान रखना पडेगा अगर इन्होंने हड़ताल कर दी तो क्या होगा अब से मै ज्यादा देर  लेपटॉप और मोबाइल पर नही काम करुंगी और बाहर भी ज्यादा नहीं जाऊंगी बस स्कूल टाइम मे और भी बहुत सारी बातें ध्यान रखूंगी । माँ अब भी नही समझ पाई बस प्यार से चूम कर दूध लेने चली गयी । अनिका ने मां के जाते ही कमरा बंद किया और आयने के सामने खडे होकर अपनी आंखो कानो नाक और हाथों को प्यार से बहलाया और शीशे को सेल्यूट करके बोली " बाह मेरे कोरोना वारियर्स तुम्हारी भी ड्यूटी बढ गई है तुम्हारे बिना हमारी सुरक्षा कैसे हो सकती है आज से मै तुम्हारा पूरा ध्यान रखूंगी तुमने मेरे सपने मै आकर मेरी आंखे खोल दी है।

कोरोना.... समाज....... डाक्टर.... पुलिस..... सफाई कर्मी...... लाकडाउन....... हड़ताल.......????????
   
 ✍️  मंगलेश लता यादव
जिला पंचायत कंपाउंड
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नंबर 9412840699,  9045031789

गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मंगलेश लता यादव की कहानी ----- वो दूसरा


     अभी आंख पूरी तरह से खुली भी नहीं थी कि कानों में जोर जोर से रोने की आवाजें आने लगी । हड़बड़ा कर उठी और ध्यान  से सुना तो हवेली के पीछे मंजा चाची के रोने का स्वर था । जल्दी जल्दी नीचे उतर कर आईऔर दीदी से पूछा ये चाची के रोने की आवाज क्यूं आ रही क्या हुआ? जिठानी ने रुंधे गले से बताया ,चाचा नहीं रहे ,सुन कर क्षण भर को धक्का लगा और चाची का चेहरा आंखों के सामने आ गया। "चलो जल्दी से चाय बना लो सबको पहुंंचानी है "जिठानी की आवाज सुन कर यंत्रवत रसोईघर की तरफ कदम बढ़ा दिए।
चाय का पानी खौल रहा था और मेरा मन मंजा चाची के जीवन की झांकी में झांक रहा था....अपनी शादी से बीस बरस से चाची का हर रोज आना और मांजी से उनका अपनापन और दोस्ताना देखती आ  रही हूं।चाची के बिना घर का कौई काम सम्पन्न नहीं होता था ।हर रोज आकर अपनी रोजमर्रा की कामों की गिनती कराती और बहू बेटों ,नाती पोतों की बातें करती और फिर मांजी की सलाहें मशवरे और ना जाने क्या क्या बातें होती । मैं उनके आने पर बस उनके पैर छूकर बैठने के लिए पीढ़ा डाल कर अपने काम में लगी रहती,पर कान अक्सर उनकी बातों पर होते थे।
अक्सर सुनाई देता था कि दूसरा आज खाना खाने नहीं आया ,दूसरे को आज पानी भर के रख आई,आज दूसरे के कपड़े धोए और न जाने क्या क्या कामों की गिनती और बातें पर नाम दूसरा,,।की बरस बीत गए पर किसी से पूछने की हिम्मत न हुई कि ये दूसरा कौन है??
आखिर एक दिन मांजी का सही मिजाज देख कर पूंछ ही लिया "ये चाची दूसरा किसको कहती हैं और उसका बहुत ख्याल रखती है उसके सारे काम करती हैं ,कौन है ये ??मांजी  ने सपाट स्वर मैं जबाव दिया चाची से ही पूंछ लेना कभी।

    .परमीशन मिल चुकी थी सो अगले दिन चाची का बेसब्री से इंतजार करती रही और उस दिन चाची रोज की अपेक्षा देर से आतीं।,पैर छूकर पीढ़ा डाल दिया और मांजी के कपड़े तह बनाने का बहाना करके पास ही बैठ गयी ईधर उधर की बातों के बाद आखिर मुद्दे की बात ही गयी,चाची बोली,"आज चाय ना बनायी"।मैंने पूछा क्यों।चाची बोलीं दूसरा न था सो अपने अकेले के लिए क्या बनाती।बस मुझे तो जैसे इसी का इंतजार था पूंछ बैठी चाची दूसरा कौन है?? चाची हड़बड़ा गयी उन्है मुझसे ये उम्मीद न थी।अचकचा कर बोली कौन न बेटा ।ऐसा ही है एक। मैंने मांजी की तरफ देखा वो समझ गयी , हंस कर बोली बता दो आज ये बहुत दिनों से परेशान हैं दूसरे के बारे में जानने को। चाची कुछ सकुचाई फिर बोली कल बताऊंगी।   

     रात बहुत मुश्किल से कटी क्यूंकि कल का इंतजार था और चाची के 'दूसरे 'का परिचय पाना था ।खैर जैसे तैसे शाम आई और चाची का आगमन हुआ देखा झोली में कुछ बांध कर लाईं है आते ही बोली'ले बहू आज तेरे लिए बाग से अमरुद लाईं हूं एकदम मीठे और गद्दर है'।मांजी ने बता रखा था मुझे कुच्चे अमरूद पसंद है । मैं चहक गयी 'अरे चाची आज तो मेरे मन का काम हो गया ,पर अब अपना कल का वादा पूरा करो आज मुझे बताना पड़ेगा कि दूसरा कौन है '। चाची को लग गया था आज रिश्वत काम ना आयेगी।
     
     चाची ने कुछ गम्भीर मुद्रा बनायी और सोचते हुए बोली' बेटातुम नऐ जमाने की पढ़ी लिखी लड़की हो हमारी बात तुम्हारी समझ में न आ्वेगी'। मैंने मनुहार करते हुए कहा''चाची तुम्हारी ये बात सच हो सकती है लेकिन तुम मेरी इस बात पर यकीन कर सकती हो कि मुझे पुराने जमाने की बातें और अपने बड़ों की बातें सुनना अच्छा लगता है'।चाची इस बात को नकार नहीं सकी क्योंकि इतने बरसों से वह मेरा व्यवहार देखती आ रही थी। थोड़ी देर चुप रही फिर इधर उधर देखा ,आश्वस्त हुई कि उनकी बातों को सुनने वाला मेरे सिवाय आसपास कौई और नहीं था।मेरे कन्धों पर दोनों हाथों को रख कर बोली 'बेटा मेरी जिंदगी में मेरे मन के इतने करीब आने बाली तुम दूसरी इंसान हो ,जो मेरे मन की गहराइयों में उतर रही हो'। और ऐसा लगा कि वो कहीं दूर यादों की वादियों में खो रही है। मैं शांत चित्त होकर उनके चेहरे पर आऐ भावों को पढ़ने की कोशिश करती रही और अब चाची की आंतरिक वेदना शब्द बन कर मेरे कानों में पड़ने लगी ,

'बेटा औरत का मन एक कोरे कागज सा होवे है ।दस बरस की थी जब घर में मेरे ब्याह की बातें होने लगी,और एक दिन वो भी आया कि बापू ने अम्मा को बताया कि चार गांव छोड़ कर मेरे लिए एक अच्छा रिश्ता मिल गया है और वो मेरे रिश्ते की बात पक्की कर आए हैं। लड़का पहलवानी करता है और घुड़सवारी का भी शौक है,क्यो न होताआखिर वो दद्दा (मेरे ससुर जी जो समय के जमींदार थे उनको वो दद्दा कहती थी)के संग जो रहते थे।अम्मा बहुत खुश थी और मै...मेरे तो सपनों में पंख लग गऐ थे।दिन रात सपनों में उनकी ही कल्पना करती रहती , घोड़े पर सवार सजीला नौजवान, मेरे मन के कोरे कागज पर उनका नाम लिख गया था जो अमिट था।
सपने और समय दोनों पंख लगा कर उड़ते रहे ,और वो दिन भी आ गया जब मेहमानों की गहमागहमी और सहेलियों की हंसी ठिठोली के बीच मैंने  उसके नाम की हल्दी और मैहंदी रचाई।शाम को बारात के आने का इंतजार था ,  लेकिन बारातियों की भीड़ न थी ,केवल दद्दा थे और चार लोग साथ में , गहमा-गहमी कानाफूसी में बदल गयी मुझे तो कुछ समझ न आया क्या हुआ और क्या होने जा रहा था कुछ पता न चला, दो चार घंटे बाद पंडित जी ने ब्याह की रस्में शुरू कर दी और मैं मोटी चादर के घूंघट में मंत्रो और अग्नि को साक्षी मानकर सात जन्मों के बंधन में बंध गयी।रोते बिलखते सबसे गले मिल विदाई हुई और मुझे मां ने पल्लू में चावल के साथ संस्कार और सीख लेकर विदा किया कि अब ससुराल ही तुम्हारा घर है  वहीं जीना है वहीं मरना है।सजी हुई बैलगाड़ी से जब ससुराल की देहरी पर उतरी तो माहौल में कहीं खुशियों का एहसास न हुआ ,मुझे उपर के कमरे में बिठा दिया गया, थोड़ी देर में बड़ी ननद ने आकर पानी पिलाया तो नादान थी पूंछ बैठी'जिजी घर में बड़ी शांति है सब मेहमान चले ग्ऐ क्या?'सुन कर उन्होंने एक पल मुझे देखा और जोर जोर से रोने लगी और जो उन्हौने बताया उसने मेरे सपनों की दुनिया को आसमान से लाकर जमीन पर पटक दिया था 'कल सबेरे नरेश (मेरे पति जिनसे मेरी शादी तय हुई थी)को खेत पर सांप ने डस लिया था और एक घंटे में ही उनकी मौत हो गयी  ब्याह के घर में मातम छा गया अम्मा तो तब से होश में ही नहीं है अब घर के इकलौते वारिस महेश ही बचे थे तो हवेली वाले दद्दा ने सुझाया कि बारात न रोकी जाए महेश से तुम्हारे फेरे पड़वा कर बहू घर ले आओ तो अम्मा की जान भी बच जायेगी और धीरे धीरे सब ठीक हो जायेगा' ।।मुझे आगे कुछ सुनाई नहीं दिया  सब तरफ अंधेरा ही अंधेरा दिखने लगा था  ,लगा इससे तो अच्छा होता वही सांप मुझे भी आकर डस लेता ।पर ऐसा कुछ नहीं हुआ मेरे मन हजारों टुकड़े जरुर हुए और उसमें हर तरफ मुझे मेरा घुड़सवार पहलवान ही नजर आया ।कोरे कागज पर लिखा नाम मिटता ही नहीं था ,पर मेरे मन की पीर समझने वाला कोई नहीं था,और दिल का कौई कोना किसी और को जगह देने को तैयार नहीं था, लेकिन मैं कुछ कर भी नहीं सकती थी बस दिल से निकला 'ये वो नहीं है ये तो "दूसरा"है। फिर सब कुछ बदल गया लेकिन आज भी वो  पहलवान दिल से निकल कर नहीं गया।  इतना सब कुछ सुनाने के बाद चाची एकदम शांत नदी की तरह चुप हो गयी थी। फिर ठंडी सांस लेकर बोली थी 'आज सब कुछ तुम्हारे सामने है बहू चार बेटे दो बेटियां और उनके बच्चे  पर आज भी ढंग से तुम्हारे चाचा का चेहरा नहीं देखा वो ही नजर आता है इसलिए मुंह से उनके लिए "दूसरा"ही निकलता है। आज भी अम्मा के वो पल्लू में बांधे गए चावल और संस्कार याद रहते हैं सो सब कुछ निभा रही हूं।चलती हूं उसकी रजाई पर खोल चढ़ाना है देर हो गयी ।'और चाची चली गयी थी ।
मेरे लिए नारी मन की अंतरव्यथा को समझने के लिए अनगिनत प्रश्न जिनको आज भी नहीं सुलझा पाई।'
"अरे तुम्है चाय बनाने को कहा था कि रबड़ी घोंटने को" जेठानी की आवाज ने मेरी तंद्राको भंग किया और  और चाय भी उबल कर पक चुकी थी शायद चाची की जिंदगी की तरह ।चाय छानते हुए चाची का करुण रूदन सुनाई पड़ा "अरे मैं विरहा अब कैसे  जिऊंगी"??
   
   ✍️ मंगलेश लता यादव
जिला पंचायत कम्पाउंड कोर्ट रोड
 मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9412840699
            

गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मंगलेश लता यादव की कहानी -- एक चिट्ठी बच्चों के नाम


प्यारे बच्चों,
              बहुत बहुत प्यार
अत्र कुशलं तत्रास्तु । आशा ही नही वरन् पूरी उम्मीद करती हूँ कि आप भी अपने माता पिता भाई बहन सभी के साथ सकुशल होगे,  आगे समाचार यह है आप लोगो से मुलाकात हुई काफी लम्बा समय हो गया और आपकी कौई खैर खबर भी नही मिल रही तो सोचा क्यों न आपको पत्र लिखूँ  ।    जैसा कि आप सभी इस समय समाचार पत्रों एवं टीवी पर देख रहे कि  आजकल पूरे विश्व मे मानवजाति पर कितना गहरा संकट छाया हुआ है कोरोना वायरस ने हम सब के जीवन को खतरे मे डाल दिया है ।
हम सब की जिंदगी बहुत मजे मे व्यतीत हो रही थी । कुछ की परीक्षा समाप्त होकर परिणाम का इंतजार था तो कौई आगामी परीक्षा की तैयारी मे था हम भी तो  आपके परीक्षाफल को बड़े मनोयोग से बना रहै थे, लेकिन अचानक सब कुछ बदल गया और हम घरो मै केद होन को मजबूर हो गऐ  अब आपस मे हमारा कौई सम्पर्क नही हो रहा  है अत  आपको पत्र द्वारा कुछ बातें बताना चाहती हूँ ध्यान से पढें।हम सब आपके अभिभावक, माता- पिता हैं एवं हम सबसे बड़ा आपका कोई शुभचिंतक नहीं हो सकता है। आप अवगत हैं कि कोरोना वायरस के संक्रमण से पूरे देश को मिलकर लड़ाई लडनी है। मा. प्रधानमंत्री जी ने स्वयं सभी का आह्वान किया है और जनता कर्फ्यु में सहयोग मांगा है।अत: हम सब आपसे अपील करते हैं कि कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए सभी बच्चे अपने- अपने घरों,हास्टल अथवा जहाँ भी हैं, वहीं रहें। रेल,बस,हवाई जहाज से या किसी भी तरह के भीड़_भाड़ बाले वाहनों/ सार्वजनिक साधनों से यात्रा न करें। इस प्रकार के साधनों से यात्रा करने पर भी संक्रमण व्यापक रूप से फैलता है। पुनः अपील है कि प्यारे बच्चों घर, हास्टल या जहाँ हैं,वहीं पर सुरक्षित रहें एवं देश की इस लड़ाई में सहयोग करें।आप अपने हाथ साबुन से एक नियमित अन्तराल पर अच्छी तरह से धोयें।
      और हाँ हम सब फिरसे जल्दी ही मिलेंगे और पुनः अपने उन पुराने दिनो में  लौटेंगे। जब तक लाकडाउन  है तब तक आप मे से कौई बाहर ना निकले । इन छुट्टियों का सदुपयोग करना अपनी प्रोजेक्ट फाईल तैयार करना जिसमे कोरोना के बारे मे विस्तार से लिखना चित्र सहित वर्णन करना है । अपने माता पिता और छोटे भाई बहनों का विशेष ध्यान रखना  । अपनी मां के साथ घरेलू कामो मे हाथ बटाना । पत्र ज्यादा लम्बा हो गया है शेष अगले पत्र मे लिखूंगी। अपनी कुशलता का समाचार शीघ्र देना । अपने माता पिता को मेरा नमस्कार कहना और छोटे बच्चों को प्यार ।
                   आपकी प्यारी मैडम
                     मंगलेश लता यादव
                             मुरादाबाद