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सोमवार, 28 फ़रवरी 2022
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ललित भारद्वाज की रचना ... उनकी यह रचना उनके द्वारा संपादित मासिक पत्रिका 'प्रभायन' के जनवरी 1974 के अंक में सम्पादकीय के रूप में प्रकाशित हुई है ।
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शनिवार, 26 फ़रवरी 2022
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष शिव नारायण भटनागर साकी की कविता ---दीप शिखा जलती रहती है ....।उनकी यह रचना प्रकाशित हुई है साप्ताहिक मुरादाबाद वाणी के मंगलवार 4 नवम्बर 1969 के अंक में।मुरादाबाद से प्रकाशित होने वाले इस पत्र के प्रधान संपादक धर्मात्मा सरन और सम्पादक वैद्य विष्णुकांत जैन थे ।-
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष बहोरी लाल शर्मा की कविता ---अरुणिम आभा लेकर उतर रहा भू पर गांधी....।उनकी यह रचना प्रकाशित हुई है साप्ताहिक मुरादाबाद वाणी के मंगलवार 7 अक्टूबर 1969 के अंक में।मुरादाबाद से प्रकाशित होने वाले इस पत्र के प्रधान संपादक धर्मात्मा सरन और सम्पादक वैद्य विष्णुकांत जैन थे ।-
::::::::प्रस्तुति:::::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश , भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822
शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2022
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ज्वाला प्रसाद मिश्र ने रुद्राष्टाध्यायी का हिन्दी अनुवाद किया था जिसे वैंकटेश्वर प्रेस मुम्बई ने प्रकाशित किया । प्रस्तुत है इस संदर्भ में मुरादाबाद के पत्रकार डॉ माधव शर्मा का आलेख जो दैनिक हिंदुस्तान के 15 फरवरी 2018 के अंक में प्रकाशित हुआ था साथ में प्रस्तुत है पूरी कृति----–
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:::::::::प्रस्तुति::::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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बुधवार, 23 फ़रवरी 2022
मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में मेरठ निवासी ) के साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी का गीत --मौन पड़े जब शब्द यहां तो, क्या होगा कहने से
क्या होगा लिखने से भैया, क्या होगा छपने से
मौन पड़े जब शब्द यहां तो, क्या होगा कहने से
रखते थे किताब में हम, मोरपंख भी यादों में
रहे चूमते विद्या रानी, खाते कस्में बातों में
दही बताशा खा-खा कर, देते रहे परीक्षा जी
जाने कैसा स्वाद था वो, अम्मा की उस दीक्षा में
भूल गए हैं सब परम्परा, क्या होगा रटने से
मौन पड़े जब शब्द यहां तो, क्या होगा कहने से
बंद-बंद हैं सभी किताबें, खुली नहीं बरसों से
यूं रखने का चाव सभी को, पैशन है अरसों से
नहीं पता है हमको साथी, क्या लिखना क्या गाना
हम तो ठहरे उस पीढ़ी के, जिसका मधुर तराना
कह रहा है सूरज अब तो, क्या होगा रोने से
मौन पड़े जब शब्द यहां तो, क्या होगा कहने से।।
✍️ सूर्यकांत द्विवेदी
मेरठ, उत्तर प्रदेश, भारत
सोमवार, 21 फ़रवरी 2022
मुरादाबाद की संस्था कला भारती की ओर से रविवार 20 फरवरी 2022 को साहित्य समागम ऑन लाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया । आयोजन की अध्यक्षता अशोक विश्नोई की तथा मुख्य अतिथि डॉ पूनम बंसल रहीं। विशिष्ट अतिथि डॉ मनोज रस्तोगी एवं योगेन्द्र वर्मा व्योम थे। संचालन राजीव प्रखर ने किया। प्रस्तुत हैं कवि गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों अशोक विश्नोई, डॉ पूनम बंसल, डॉ मनोज रस्तोगी, योगेन्द्र वर्मा 'व्योम', डॉ अर्चना गुप्ता, शशि त्यागी, बाबा संजीव आकांक्षी, राजीव 'प्रखर', मनोज वर्मा 'मनु', हेमा तिवारी भट्ट, डाॅ ममता सिंह , डॉ. रीता सिंह, कादम्बिनी वर्मा, निवेदिता सक्सेना, प्रशान्त मिश्र, ईशान्त शर्मा "ईशु", शुभम कश्यप 'शुभम' और आवरण अग्रवाल 'श्रेष्ठ' की रचनाएं -----
अरे
तुम फिर आ गये
गये नहीं अभी तक
मैं,
कहाँ जाऊँगा मालिक ?
मैं यहीं जन्मा हूँ
यहीं पला हूँज
यहीं आपकी छत्रछाया में
बड़ा हुआ हूँ।
तभी से यहीं खड़ा हुआ हूँ।।
मैं तो,
नीचे से, उपर से
दायें से, बायें से
हर दिशाओं से
हर परिस्थितियों में
उपस्थित रहता हूँ मालिक
आपके आशीष से
समय पर काम करता हूँ
मैं कहाँ जाऊँगा ?
यहीं जन्मा
यहीं मर जाऊँगा,
फिर
मेरी औलाद काम करेगी।
जन्मों जन्मों तक
आपकी सेवा करेगी।।
मैं तो
आपके आस - पास
ही रहता हूँ।
सत्य को भी
झूँठ में बदलता हूँ।।
आप चाहें या न चाहें
मैं,
हर पल सेवा करुंगा।
जब पुकारोगे
हाज़िर रहूँगा।
मैं,
हर आदेश का पालन
करता हूँ।
यही तो मेरा श्रेष्ठ शिष्टाचार है ।
मेरा नाम भ्रष्टाचार है ।।
✍️ अशोक विश्नोई, मुरादाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत
======================
जिधर देखो यही चर्चा चुनावी पर्व आया है।
लिए ढपली खड़े नेता पुराना राग गाया है।।
बरस जब पांच हैं बीते तभी वो नींद से जागे ।
दुहाई दे रहे हैं अब बंधाते प्रेम के धागे ।
समझती है यहां जनता सभी ने तो बनाया है।।
नए वादे नई कसमें चले हैं जीत पाने को ।
खड़े हैं हाथ अब जोड़े यहां वोटर मनाने को ।
किया वादा कभी था जो नहीं वो तो निभाया है।।
कहीं रैली कहीं उत्सव विपक्षी को करें राजी ।
मिलेगी अब किसे कुर्सी लगी है जीत की बाजी ।
नियम इनपर नहीं कोई करोना का न साया है।।
✍️ डॉ पूनम बंसल, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
=======================
इज्जत हो रही तार-तार देश में
हो रहे हैं रोज बलात्कार देश में
खुद ही कीजिएगा हिफाजत अपनी
गहरी नींद में है पहरेदार देश में
बढ़ रही है हैवानियत किस तरह
इंसानियत हो रही शर्मसार देश में
'एक्शन' के साबुन से हो जाएगी ये साफ
वर्दी जो हो गई है दागदार देश में
चीखने का कोई होगा नहीं असर
हो गई है बहरी अब सरकार देश में
टीआरपी चैनलों की बढ़ रही 'मनोज'
जमकर बिक रहे अखबार देश में
✍️ डॉ मनोज रस्तोगी, मुरादाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत
=====================
काश पुनः वापस आ जाये
स्वर्णिम वही अतीत
कभी अपरिचित से रस्ते में
राम-राम करना
और चचा-ताऊ कह मन में
अपनापन भरना
ज़िन्दा थी जो रग-रग में, फिर
बहे पुरानी प्रीत
मुखिया से ही हर घर की
पहचान बनी होना
उलट गया अब जैसे कोई
सपनों का दोना
पुनः दर्ज़ हो घर के नंबर पर
नामों की जीत
वही मुहल्लेदारी, बतियाना
मिलना-जुलना
एक दूसरे से आपस में
हर सुख-दुख खुलना
जीवित हों फिर से जीवन के
वो संबंध पुनीत
✍️योगेन्द्र वर्मा 'व्योम', मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
=======================
यहाँ सच बात कहने से कभी भी तुम नहीं डरना।
जिसे स्वीकार ले ये दिल वही बस बात तुम करना।
कभी इंसानियत के पाठ को ही भूल मत जाना
वतन के ही लिये जीना, वतन के ही लिये मरना
-------–---------
हमेशा वक़्त के सांचे में ढलना चाहिये हमको।
नहीं दो नाव में रख पाँव चलना चाहिये हम को।
उड़ाने कितनी हो ऊँची, चलें भी तेज हम कितना,
अगर ठोकर मिले कोई सँभलना चाहिए हमको।
✍️डॉ अर्चना गुप्ता, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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सो जा मेरे लाल , अंधेरा भागेगा,
नई किरण के साथ, उजाला जागेगा।
तुझे सुनाऊँ आज कथा रणवीरों की,
होती थी वर्षा जहाँ शमशीरों की।
हुए न वे भयभीत कदापि शत्रु से
सीने पर खाई गोली संगीनों की।
उन्हें याद कर देश सदा गुण गाएगा
लेकर माँ से रक्त सूर्य फिर आएगा।
सो जा मेरे लाल अंधेरा जागेगा
नई किरण के साथ उजाला जागेगा।
राफेल और ब्रह्मोस अग्नि बरसाएंगे,
अब भारत राष्ट्र को विश्वगुरु बनाएंगे।
अग्नि से विमान कमाल दिखाएंगे,
अग्नि पुरुष भी देख -देख हर्षाएंगे।
अब न कोई लाल मेरा यूं जाएगा
मानव रहित विमान ही लड़ने जाएगा।
सो जा मेरे लाल अंधेरा भागेगा,
नई किरण के साथ उजाला जागेगा।
✍️शशि त्यागी, अमरोहा, उत्तर प्रदेश, भारत
=====================
बहुत चला चलकर थका तो बस ये कर लिया।
जहाँ रुके कदम उसी मंज़िल को घर किया।।
बर्दाश्त न हो रहीं हैं उनसे मेरी ऊँचाइयाँ।
उड़ान के लिए हाथों को मैंने जो पर (पंख) किया।।
यकीकन कुछ अपने पराये ज़रूर होंगे।
बेबसी में तकलीफों का ज़िक्र मैंने गर किया।।
कैसे बढ़ेंगे कदम शक है, कशमकश भी है।
उनकी आंखों के अंधेरों से जो मैं डर लिया।।
बड़ी मुश्किल से सम्हाल पाता हूँ दो-दो रिश्तों को।
एक कि खुशियों को जबसे अपना कर लिया।।
यकीनन बुलंदियां सियासत में भी हासिल होंगी।
कुचल जमीर को कदम जो आगे कर लिया।।
✍️ बाबा संजीव आकांक्षी, मुरादाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत
=======================
फिर विटप से गीत कोई अब सुनाओ कोकिला।
आस जीने की जगाकर कूक जाओ कोकिला।
हों तुम्हारे शब्द कितने ही भले हमसे अलग,
पर हमारे भी सुरों में सुर मिलाओ कोकिला।
**
दोहे
-----
बैर-भाव-विद्वेष का, कर भी डालो अंत।
पीली चुनरी ओढ़ कर, कहता यही वसंत।।
**
रचने बैठा गीत मैं, लेकर नव उल्लास।
कोकिल आकर घोल दो, इसमें और मिठास।।
**
छेड़े सम्मुख माघ के, कोकिल मीठी तान।
सरसों भी कुछ कम नहीं, फेंक रही मुस्कान।।
***
प्रश्न पुराना कर रही, झोपड़पट्टी आज।
आते मुझ तक क्यों नहीं, आकर भी ऋतुराज।।
**
दफ़्तर अपना धूप ने, पुनः दिया जब खोल।
चंट कुहासा हो गया, आँख बचाकर गोल।।
**
चाहे हम हों ऐ सनम, चाहे राजा आम।
बौराना मधुमास में, दोनों का ही काम।।
✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
==============
खा रहा सबको यही मुंह का निवाला आजकल,
हम पतंगे हर तरफ़ झूठा उजाला आजकल,,
हैं बड़ी खुश फ़हमियां मेहरूमियों के बीच भी,
किस क़दर अंदाज़ है अपना निराला आजकल,,
कौन कहता है हंसी अब लापता हो जाएगी,
कौन रोता है बजाहिर.. बात वाला आजकल,,
हादसों में जिंदगी घुटनों तलक तो आ गई ,
और इन मजबूरियों ने मार डाला आजकल,,
झूठ बिक जाता है हाथों हाथ अच्छे दाम में ,
और सच्चाई का मुंह होता ये काला आजकल,,
हाँ मुझे अहसास होता है कि तू नज़दीक है,
दें रही हैं खुशबुएँ तेरा हवाला आजकल,,
✍️ मनोज वर्मा 'मनु', मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
=================
सहजता पर हावी हैं,
औपचारिकताएं
पता नहीं क्यों
सहजता
सहज नहीं हैं अब
और औपचारिकताओं का
सहजता से
कब रहा है तालमेल
है दुनिया के मंच पर
कैसा ये घालमेल
सूरज....
रोज निकलता है
सहजता से
कोई औपचारिकता नहीं।
चांद और तारे
सहजता से
संभालते हैं
अपनी नाइट शिफ्ट
कोई टकराव नहीं
दंभ का
अहम का
वहम का
मंचासीन है
गुलाब भी
गुड़हल भी
बसंत की सभा में
अपनी अपनी खुशबुओं को
बिखेरते हुए
बिना मुंँह फुलाये
पर मनुष्यों में
औपचारिकताएं
चढ़ती जा रही हैं
और मुँह फुलाने की
घटनाएँ
बढ़ती जा रही हैं।
✍️ हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
===================
रही पहले सी उनमें चाहत कहाँ है।
करें बात हम से जो फ़ुर्सत कहाँ है।।
हुये पास होकर भी हम दूर उनसे,
न जाने ख़ुदा की इनायात कहाँ है।।
सुने दिल की धडकन वो नज़दीक आकर,
मिली हम को ऐसी भी क़िस्मत कहाँ है।।
करे प्यार कोई दिलो जाँ लुटा कर,
ज़माने में मिलती वो दौलत कहाँ है।।
दिलों में मुहब्बत जहाँ बस हो ममता,
कोई तो बताये वो जन्नत कहाँ है।।
✍️ डाॅ ममता सिंह , मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
=====================
कोयल कूक रही है डाली
भोर बनी उसकी है आली
नींद विदा अब तुम हो जाओ
बीत गयी रैना है काली ।
सूरज झाँक रहा पेड़ों से
पत्ते खेल रहे किरणों से
देख घड़ी यह बड़ी सुहानी
पंछी निकल पड़े नीड़ों से ।
नील गगन में छायी लाली
ठंडी हवा चली मतवाली
समय सुनहरा बीत न जाये
उठ जाओ अब मेरी लाली ।
✍️ डॉ. रीता सिंह, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
=======================
"जैसा कि
शब्द मानसते हैं।
कि
हम पूर्ण हो गए
अक्षर -मात्राओं को पाकर।
वैसे ही
महसूस होने लगा है
अक्षरों को,
कि
वे भी सक्षम हैं
सब कुछ कर पाने में....
पर
भूलने लगे हैं अक्षर
कि
नही है
उनका कोई अस्तित्व..
कोई पहचान ..
कोई विस्तार ..
शब्दों से जुड़े बिना......
ठीक ऐसे ही तो
शब्द भी
दे पाते हैं
अपना महत्व
वाक्य में जुड़कर ही......
तभी..
जोड़कर रखना होगा
वर्तमान में...
अक्षर,शब्द,वाक्य,
सभी को..
बनाकर भाषा,
प्रीत की.....
जिससे बना रहे सामञ्जस्य..
पीढ़ी-दर-पीढ़ी.......
✍️ कादम्बिनी वर्मा, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
======================
आखरी सांस लव पे ठहरी है ,तुमसे मिलना बहुत जरूरी है ।
इसी वहम ने उम्र काटी है, तुमसे बस दो कदम की दूरी है ।
तुमसे मिलना बहुत जरूरी है ।
हमने सूरज से यह हुनर सीखा डूबते वक्त भी सिंदूरी है ।
तुमसे मिलना बहुत जरूरी है ।
तेरे आने के लिए वादाशिकन ।
शाम होना बहुत जरूरी है।
तुमसे मिलना बहुत जरूरी है।
चलते रहना समय की फितरत है।
साथ चलना भी तो मज़बूरी है
तुमसे मिलने बहुत ज़रूरी है
आख़िरी सांस लव पे ठहरी है
तुमसे मिलना ,,,,,,,
✍️ निवेदिता सक्सेना, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
======================
पांच साल की कुर्सी को
सुनों! कुछ दिन लगा दो जोर,
फिर मैं नेता कहलाऊंगा
और तुम बन जाना चोर,
मेरे सारे वादे पक्के हैं
हम ईमान के सच्चे हैं,
सड़क नाली बनवाऊंगा
घर-घर पैसा पहुँचाउंगा
यही मचे... अब शोर...
पांच साल की सत्ता को
दोस्तों! कुछ दिन लगा दो जोर
गाड़ी होगी, पैसा होगा
तुम जो चाहो वैसा होगा
अपनी धूम मचेगी चारों ओर...
पांच साल की गद्दी को
भाइयों! कुछ दिन लगा दो जोर
घर घर जा कर वोट निकालों
फिर मेरी कुर्सी सम्भालों
मैं विधायक बन जाउँगा...
तुम बनोंगे मेरे घर के ढोर
पांच साल के ठाठ को
मित्रों! कुछ दिन लगा दो जोर,
✍️ प्रशान्त मिश्र, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
==========================
केवल पा लेना ही प्रेम नहीं
किसी को बिना पाए भी,
उसी का होकर रहना
प्रेम है
जो समझाया ना जा सके,
वो प्रेम है जो महसूस हो बस,
रुह की गहराईयों तक
वो प्रेम है
शब्दों से परे बंद आँखों से जो
महसूस हो,
वो सबसे सुन्दर अहसास
प्रेम है
हर आहट में जिसके आने का विश्वास शामिल हो,
वो हर पल का इंतजार
प्रेम है,
✍️ ईशान्त शर्मा "ईशु", मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
========================
आपस में नफ़रतें है फज़ा में तनाव है ।
फिर से हमारे मुल्क में आया चुनाव है।
शतरंज बिछ रही है सियासत की चार सू,
लोगों मे ख्वाहिशों का सुलगता अलाव है ।
ज़िल्लत है ठोकरें हैं मसाईल हैं किस कदर,
दुनिया के चक्रव्यूह में अजब सा घुमाव है ।
दुनिया सफर है दोस्तो मंज़िल नही है ये,
दो दिन की ज़िंदगी से हमे क्यो लगाव है ।
कैसा सिला मिला है ये चाहत के खेल में,
माथे पे उसके हाथ के पत्थर का घाव है ।
अशआर कह रहे हो 'शुभम' नाप तौल के,
शेरों में आपके तभी इतना कसाव है।
✍️ शुभम कश्यप 'शुभम', मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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देश जला है जलने दो
रोग पला है पलने दो
हम रोगों को पालेंगे
देश जला हम डालेंगे
हम गांधी के बंदर है
सबसे बड़े सिकंदर है।
देश लुटा है लूटने दो
देश बटा है बटने दो
हम देशो को बाटेंगे
अपनो को ही डांटेंगे
हम ही बड़े कलंदर है
सबसे बड़े सिकंदर है
सत्य घटा है घटने दो
झूठ डटा है डटने दो
जो खाई को पाटेंगे
तलवो को भी चाटेंगे
वो ही बड़े धुरंदर है
सबसे बड़े सिकन्दर हैं।
✍️आवरण अग्रवाल 'श्रेष्ठ', मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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रविवार, 20 फ़रवरी 2022
शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2022
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की सजल --राजा जी ने ली अंगड़ाई, हुए भेड़िए मस्त, शीश झुकाकर राजा जी का, किया बहुत सत्कार
रूप बदलकर क्रूर भेड़िए, घुस आए दरबार,
घात लगाकर बैठ गए कुछ, राजमहल के द्वार ।
राजा जी ने ली अंगड़ाई, हुए भेड़िए मस्त,
शीश झुकाकर राजा जी का, किया बहुत सत्कार।
चाटुकारिता रच देती है, एक नया अध्याय,
औचक ही आ जाता घर में, खुशियों का अंबार ।
गद्दारों की मक्कारी भी, होती बड़ी अचूक,
पलभर में होता पुलवामा, दुख का पारावार ।
दीवाली के दीप जलाकर, रचेंं दुष्ट षडयंत्र,
देशद्रोह की चिंगारी को, सुलगाते गद्दार ।
भ्रष्टाचारी कहां मानते, कोई भी प्रतिबंध,
राजनीति के राक्षस करते, इनका भी उपकार ।
छिड़ा देश में शीत युद्ध है, उमड़ रहा आतंक,
दानवता महिमा मंडित है, पा श्रद्धा उपहार ।
सज्जनता का राजनीति भी, करे कहां सम्मान,
जातिवाद का अवसरवादी, फल पाते मक्कार ।
✍️ डा. महेश 'दिवाकर '
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
रविवार, 13 फ़रवरी 2022
वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ की तेरहवीं कड़ी के अंतर्गत स्मृतिशेष ब्रजभूषण सिंह गौतम के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर तीन दिवसीय ऑनलाइन कार्यक्रम का आयोजन
मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार स्मृतिशेष ब्रजभूषण सिंह गौतम 'अनुराग' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर वाट्स एप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से 10 -11 व 12 फरवरी 2022 को तीन दिवसीय ऑनलाइन आयोजन किया गया। चर्चा में शामिल साहित्यकारों ने कहा कि ब्रजभूषण सिंह गौतम 'अनुराग' प्रकृति के अद्भुत चितेरे होने के साथ-साथ मानवीय सरोकारों के कवि थे। उनका सम्पूर्ण साहित्य पाठकों से सीधा संवाद करता हुआ सामाजिक विसंगतियों को भी उजागर करता है।
मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ की तेरहवीं कड़ी के तहत आयोजित इस कार्यक्रम में संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि 30 जून 1933 को जन्मे ब्रजभूषण सिंह गौतम 'अनुराग' की प्रथम काव्य कृति 'आंसू' वर्ष 1951 में प्रकाशित हुई। उसके बाद लोक महाकाव्य 'दर्पण मेरे गांव का',महाकाव्य 'चांदनी', ग़ज़ल संग्रह 'धूप आती नहीं', गीत संग्रह 'सोनजुही की गंध', 'अपने अपने सूरज ', 'सांसों की समाधि', कहानी संग्रह 'एक टुकड़ा आसमान', नवगीत संग्रह 'चंदन वन सँवरे' प्रकाशित हुआ। वर्ष 2018 में (उनके निधन के उपरांत) काव्य कृति 'सुख से तो परिचय न हुआ' का प्रकाशन हुआ। इसके अतिरिक्त वर्ष 2009 में डॉ महेश दिवाकर एवं डॉ हर महेंद्र सिंह बेदी के संपादन में अमृत महोत्सव अभिनंदन ग्रंथ तथा वर्ष 2013 में मधुकर अस्थाना के संपादन व अशोक विश्नोई व जितेंद्र जौहर के संयुक्त संपादन में अभिनंदन ग्रंथ 'आंगन से आकाश तक' प्रकाशित हो चुके हैं।आप की कृतियों पर तीन लघु शोध प्रबंध तथा एक शोध प्रबंध भी हो चुका है । वर्ष 2007-08 में गुरु नानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर में एम फिल हिंदी चतुर्थ सेमेस्टर की छात्रा रितिका ने डॉ महेंद्र सिंह बेदी के निर्देशन में 'कवि बृजभूषण सिंह गौतम अनुराग कृत दर्पण मेरा गांव का महाकाव्य का लोक सांस्कृतिक अध्ययन शीर्षक से लघु शोध प्रबंध पूर्ण किया। वर्ष 2008-09 में इसी विश्वविद्यालय की छात्रा हरप्रीत कौर ने भी डॉ बेदी के निर्देशन में 'चांदनी महाकाव्य का सांस्कृतिक अध्ययन ' शीर्षक से लघु शोध प्रबंध पूर्ण किया। वर्ष 2012-13 में इसी विश्वविद्यालय की छात्रा सविता कुमारी ने डॉ सुनीता शर्मा के निर्देशन में 'सांसों की समाधि - काव्य एवं भाषागत वैशिष्ट्य' शीर्षक से लघु शोध प्रबंध पूर्ण किया। वर्ष 2021 में पानीपत की ऋतु चौधरी को 'महाकवि अनुराग गौतम का जीवन, साहित्य, साधना, संवेदना और शिल्प उपलब्धि एवं मूल्यांकन ' शीर्षक पर डॉ महेश दिवाकर के निर्देशन में शोध कार्य पूर्ण करने पर श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय गजरौला(अमरोहा) द्वारा शोध उपाधि प्रदान की गई।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर ने उनकी अप्रकाशित रचनाओं के प्रकाशन की दिशा में प्रयास करने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि हरी दूब का दर्द, फूल चांदनी के, गुनगुनाते चीड़ वन, कच्ची धूप खिली, सम्बन्धों के हरसिंगार, चीखों के जंगल, नदिया भर आंसू, एक नदी भीतर से उछली, हरसिंगार खिलेगा, मनुहार, कवि क्रंदन, पक्षी, वेदना, पद्मावती, जिंदगी, अनुराग दोहावली तथा मुक्तक संग्रह उनकी अप्रकाशित कृतियां हैं ।
वरिष्ठ साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार ने कहा कि स्मृतिशेष ब्रजभूषण सिंह गौतम 'अनुराग' की ग़ज़लों में ग़ज़लों की प्रवृति का निर्वाह बखूबी हुआ है। गज़लों में परिपक्व खुशगवारी तथा गहरा रूहानी एहसास है। उनमें वैयक्तित अनुभूतियाँ हैं। उनमें मिलन का उल्लास, मनुहार, विछोह, राष्ट्रीयता, जनपक्षधरता सभी बिन्दु दिखते हैं। उन्होंने श्रंगार, प्राकृतिक सौन्दर्य तथा विभिन्न सामाजिक विषयों पर बहुत ही अच्छे तथा प्रेरणा दायक शेर कहे हैं। उन्होंने समाज की हर तरह की पीड़ाओं और विसंगतियों को अपनी शायरी का विषय बनाया है। उन्होंने लोगों के दिलों में देश भक्ति का जज्वा पैदा करने तथा साम्प्रदायिक सौहार्द बनाने और देश से गरीबी मिटाकर नवनिर्माण करने के लिए प्रेरणादायक शेर भी लिखे हैं।
प्रख्यात शायर मंसूर उस्मानी ने कहा स्मृतिशेष श्री अनुराग गीत के साथ साथ ग़ज़ल के भी सिद्ध कवि थे, उनकी यादों और रचना धर्मिता को सलाम, मनोज जी को धन्यवाद कि वक़्त की गर्द में धुंधलाये हीरे उनके प्रयास से चमक रहे हैं
रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा कि उनके काव्य संग्रह 'आंसू' में जहाँ एक ओर वेदना की छटपटाहट है ,वहीं दूसरी ओर एक जीवन-दर्शन भी प्रकट होता है और बताता है कि यह संसार क्षणभंगुर है तथा यहां शरीर की नश्वरता एक कटु सत्य है। संग्रह में आपका एक गीत इसी दार्शनिक चेतना का वाहक है । वास्तव में तो गीता में जिस शरीर की नश्वरता और आत्मा की अमरता का गान किया गया है, वह आपके इस गीत से भलीभांति स्पष्ट हो रही है।
वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई ने कहा कि स्मृति शेष ब्रजभूषण सिंह गौतम " अनुराग " एक उच्चकोटि के रचनाकार थे । उनके गीत,गज़ल, नवगीत मानस पटल पर एक अमिट छाप छोड़ हैं।गौतम जी अपने जीवन काल में जितना लिखा वह वास्तव में एक मील का पत्थर है ।" दर्पण मेरी गाँव का" व " चांदनी " महाकाव्य रचकर उन्होंने यह प्रमाणित कर दिया कि उनका फ़लक कितना बड़ा है।यही कारण है कि उनका स्थान विश्व कवि की श्रेणी में आता है।
वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा स्मृति शेष गौतम अद्भुत विलक्षण प्रतिभा , अदृश्य साधना के धनी ,दिखने में कठोर ,कोमल अंतःकरण वाले साधक थे।जब उन्होंने श्रंगार पर लिखा तो दर्पण मेरे गाँव का ,महाकाव्य में वर्णित काव्य सौष्ठव की पराकाष्ठा का स्वरूप परिलक्षित होता है ।वह भी ग्रामीण परिवेश की सादगी सुकोमलता के आदर्शों से ओतप्रोत नारी सौंदर्य का मर्यादित भावों से पूर्ण प्रेम और श्रंगार का चित्रांकन घनाक्षरी छंद में , जो कठिन साध्य है ।चाँदनी महाकाव्य लिखा तो ऐसा कि लगता है स्वम् चाँदनी बनकर सम्पूर्ण संसार क्या समस्त ब्रह्मांड का भृमण करने में अद्भुत क्षमता प्रतिभा का परम पुरुषार्थ का परिणाम का सुरस ही परोस दिया पाठकों को । मेंरी दोंनो पुस्तकों काब्य संग्रह ,की भूमिका उन्होंने लिखी है ,भाग्य भाग्यवश में उनके अनुसार कुछ कर नही पाई । गौतम जी एक नेक आदर्श चरित्रवान पुरुष थे । वे एक सरल सफल साहित्यकार थे श्रेष्ठ आचरण के भावप्रधान महामानव थे ।
वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विद्रोही ने कहा कि महाकवि ब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग के लोक काव्य 'दर्पण मेरे गांव का' में मजदूर ,किसान सर्वहारा वर्ग की अंतर पीड़ाओं उनसे जुड़ी विवशताओं का विशद वर्णन है तो महाकाव्य 'चांदनी' पूर्ण रूप से अध्यात्म पर आधारित है। जीवन में आए उतार-चढ़ाव उनके हृदय से निकली गीतों की अविरल धारा गजलों के रूप में भी प्रतिबिंबित होती हैं।
वरिष्ठ साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा कि वे अग्रिम पंक्ति के राष्ट्रीय कवि थे । उन्होंने गद्य तथा पद्य दोनों में ही समान अधिकार से लेखनी चलायी हैI कविता उनके मस्तिष्क में सहज ही प्रस्फुटित होती थीI उन्होंने एक ही दिन में पंद्रह गीतों की रचना भी की थीI उनके गीतों में वेदना भी है, छटपटाहट भी है, जीवन दर्शन भी है और आध्यात्मिकता भी हैI श्री अनुराग के संपूर्ण सृजन में इस जीवन दर्शन, तथा आध्यात्मिकता के दर्शन होते हैं, श्रंगार, प्रेम, वियोग तथा सामाजिक विषमताओं पर भी उनकी लेखनी खूब चली हैI
चर्चित नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा बहुमुखी प्रतिभा और बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी अनुरागजी द्वारा भिन्न-भिन्न विषयों, परिस्थितियों और परिवेशों पर सहस्त्राधिक गीत रचे हैं ।उनके भीतर गीत जन्म नहीं लेते थे वरन् गीत फूटते थे। वह गीतों को जीते थे, गीतों को ओढ़ते थे, गीतों को बिछाते थे, गीतों को आत्मसात करते थे। बल्कि यों कहें तो अधिक उचित होगा कि आज भी उनके गीत उजली रात में बिखरती उस चाँदनी की तरह से हैं जो निर्मल, निश्छल और शीतल तो है ही साथ ही मद्धम-मद्धम प्रकाश फैलाते हुए श्रोताओं को, पाठकों को मंत्रमुग्ध कर रही है। उनके गीत आत्मसात करते हुए श्रोताओं से, पाठकों से सीधा संवाद करते हैं। उनके गीत ज़मीन से जुड़कर तो बात करते ही हैं, साथ ही वर्तमान में विसंगतियों पर मर्यादित रूप से तीखा कटाक्ष भी करते हैं।
मुम्बई के साहित्यकार प्रदीप गुप्ता ने कहा कि जब मैं किशोर अवस्था में था तो जिस भी वाद विवाद प्रतियोगिताओं में जाता वहां स्टार डिबेटर ब्रज भूषण गौतम जी हुआ करते थे । उनकी भाषण शैली बड़ी आकर्षक थी , प्रतियोगी और श्रोता उन्हें मंत्र मुग्ध हो कर सुनते थे . एक रोचक बात यह भी थी कि अपनी इसी हाबी के कारण लम्बे समय तक कालेज में विभिन्न विषयों में पढ़ते रहे . कवि के रूप में भी उन्होंने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई ।
दिल्ली की साहित्यकार डॉ इंदिरा रानी ने कहा कि स्मृति शेष आदरणीय श्री गौतम जी के विषय में पटल पर विद्वानों के उल्लेखनीय विचार पढ़े। मुझे अनेक प्रसंग याद आ गये. प्रदीप गुप्ता जी ने उन्हें स्टार डिबेटर कहा जो सर्वथा उचित है।अनेक बार मैंने भी वाद विवाद गौतम प्रतियोगिताओं में उनके साथ प्रतिभाग किया। उनका धाराप्रवाह वक्तव्य बहुत प्रभावशाली होता था।
रामपुर के साहित्यकार शिव कुमार चंदन ने कहा कि ब्रजभूषण सिंह गौतम जी के सानिध्य का आँशिक अवसर रामपुर मे आयोजित साहित्यिक आयोजन मे ही हुआ । उनके सरस सुमधुर काव्य पाठ से मेरा मन अधिक प्रभावित हो गया , प्रकृति के सौन्दर्य में रची बसी काव्य पाठ की अद्भुत प्रस्तुति बासंती ऋतु की मनोहारी छटा का चित्रण ,मंत्र मुग्ध कर गया ।उनका बहुआयामी काव्य सृजन साहित्यक धरोहर अनुपम एवं अविस्मरणीय है
कवयित्री डॉ शोभना कौशिक ने कहा कि स्मृति शेष श्री भूषण सिंह गौतम अनुराग साहित्य के एक ऐसे दैदीप्यमान सितारे हैं जिनकी रचनाओं से साहित्यिक जगत सदैव आलोकित रहेगा। यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि वे अपनी रचनाओं के गागर में सागर भरने की कला के महारथी थे उनके सहित्य में छायावाद से लेकर हर युग की काव्य परंपरा के दर्शन होते हैं।
कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा हिंदी साहित्य संगम और राष्ट्र भाषा हिन्दी प्रचार समिति की गोष्ठियों में मैंने श्री गौतम जी के बारे में कई बार सुना था और तभी उन्हें जानने और मिलने की उत्सुकता हुई थी।यह मेरा दुर्भाग्य ही रहा कि मैंने उनके बारे में सुना तो बहुत पर उनसे कभी साक्षात मिलना नहीं हो पाया और इससे पहले कि उनसे मिलने का अवसर मिलता वह इस असार संसार को छोड़कर हम सब को विदा कह कर चले गए।परंतु उनके जाने के बाद उनकी कृति "सुख से तो परिचय न हुआ" के लोकार्पण समारोह में उनके परिवार,उनकी कृतियों,उनके व्यक्तित्व के बारे में विस्तार से जानने सुनने का अवसर मिला।उनकी कृति "सुख से तो परिचय न हुआ" को पढ़ने का अवसर भी मिला और उनके प्रति अपने उद्गार व्यक्त करने का भी।श्री गौतम जी के बारे में जितना पढ़ती जाती हूंँ उतना ही कौतूहल बढ़ता जाता है।उनकी लेखनी प्रचुरता से फलित हुई,उनका शब्दकोश अचंभित करता है,उनकी दृष्टि सूक्ष्म अवलोकन में सक्षम है,वह जीवन रूपी किताब के गम्भीर विश्लेषक व उत्साही पाठक रहे हैं,लेखन की उनकी समर्पणयुक्त अभिरुचि अनुकरणीय थी,वे विद्वान और प्रतिभा संपन्न रचनाकार थे जो लेखन को प्रतिस्पर्धा के स्तर तक ले जा सकते थे और विजेता होने का जज्बा रखते थे।उन्होंने लगभग हर छंद और हर विधा में अपने कौशल को सिद्ध किया है। युवा साहित्यकार राजीव प्रखर ने कहा कि प्रकृति में निहित तत्वों को अत्यंत सुंदरता, कुशलता व सहज रूप से बिम्बों के रूप में प्रस्तुत कर देना ब्रजभूषण गौतम के रचनाकर्म की मुख्य विशेषता रही। उनकी रचनाओं में अल्हड़पन व शरारत की सुंदर जुगलबंदी के साथ पूर्ण गाम्भीर्य का सुंदर संगम भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, चाहे वह सोने-सी बिखरी घरद्वारे धूप हो, वासंती मौसम से अठखेलियाँ करते मलयज के गीत, पीर छिपाकर प्रियतम तक पहुँचने की जिजीविषा, प्रेयसी का प्रकृति मिश्रित मनभावन स्वरूप चित्रण अथवा अन्य रचनाएँ, सभी कुछ एक मधुर व प्रवाहमयी सुर-लय-ताल के साथ हृदय को झंकृत कर देता है।
जकार्ता (इंडोनेशिया) की साहित्यकार वैशाली रस्तोगी ने कहा ब्रजभूषण सिंह गौतम "अनुराग" जी के साहित्य में प्रकृति के मनोरम रूपों का दर्शन होता है बहिन वह अपनी रचनाओं में बर्तमान सामाजिक विसंगतियों को भी उकेरते हैं । उनका साहित्य युगों - युगों तक याद किया जाएगा।
साहित्यकार डॉ अवनीश सिंह चौहान ने कहा कि साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से स्मृतिशेष साहित्यकार अनुराग जी की रचनाधर्मिता पर केंद्रित इस महत्वपूर्ण आयोजन के लिए साधुवाद। सभी साहित्यकारों के आलेख सराहनीय रहे। अनुराग जी की पावन स्मृतियों को नमन।
कुरकावली (जनपद सम्भल) के वरिष्ठ साहित्यकार त्यागी अशोक कृष्णम ने कहा मुरादाबाद के दिवंगत साहित्यकारों पर साहित्यिक मुरादाबाद द्वारा आयोजन किया जाना एक ऐतिहासिक कार्य है । इसकी जितनी सराहना की जाए कम है।
सम्भल के युवा साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा ने कहा यह एक श्रमसाध्य कार्य है। साहित्यिक मुरादाबाद नई पीढ़ी के रचनाकारों को अपनी साहित्यिक विरासत से जोड़ने का उल्लेखनीय कार्य कर रहा है।अंत में स्मृतिशेष ब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग की पत्नी राजदुलारी गौतम एवं सुपुत्र मनोज गौतम ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि तीन दिन तक चले इस आयोजन में आप सभी सम्मानित साहित्यकारों का कोटि कोटि धन्यवाद। हम डॉ मनोज रस्तोगी के विशेष रूप से आभारी हैं कि वे इतनी मेहनत से साहित्यिक मुरादाबाद के माध्यम से इस यात्रा को आगे बढ़ा रहे हैं ।
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डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822