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गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल की साहित्यकार डॉ अलका अग्रवाल की गजल -- जन्नत है घर में, तो घर से बाहर क्यों जायें ? जिंदगी है घर, तो मौत से मिलने क्यों जायें?


जन्नत है घर में, तो घर से बाहर क्यों जायें ?
जिंदगी है घर, तो मौत से मिलने क्यों जायें? 

हर चेहरे पर नकाब है, कहाँ छिपा हो कातिल
जहरीली हवा में सांसें गिनने क्यों जायें?

हक़ है तेरे प्यार पर, उनका भी जो जीते हैं संग
बेवजह अपनों के जीवन को दांव पर क्यों लगायें?

यूंही बीमारों से भर गई है दुनिया की महफ़िल
अब उसके कद्रदानों में नाम क्यों लिखायें?

लाखों शिकार कोरोना के, हम बना रहे चुटकुले
दुनिया बन रही शमशान, कुछ तो शर्म दिखायें!


✍️ डा. अलका अग्रवाल
एसोसिएट प्रोफेसर
अंग्रेजी विभाग
एन. के. बी. एम. जी. कालेज
चंदौसी , जिला सम्भल
उत्तर प्रदेश, भारत

मंगलवार, 10 मार्च 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अलका अग्रवाल कहती हैं -- मिलेगा मन से मन, तब मनेगी मेरी होली।



फूले टेसू कनेर, अवनी हुई लाल-गुलाबी।
आम भी बौराया है, बसंती पुरवैया शराबी।
मधु-मकरन्द मर्मर करते दिवानिश ठिठोली
मिलेगा मन से मन तब मनेगी मेरी होली।।

तन तानपूरा, बजाता रहा रागिनी अनगिन।
झंकृत ना कर सका पर, टूटा इकतारा मन।
परदेसी प्रिय की रिझाती,  मदभरी बोली
मिलेगा मन से मन, तब मनेगी मेरी होली।।

रंगो की बौछार में भीगी अंगिया-चदरिया।
मदिर नयन, उड़त गुलाल संग गावत रसिया।
भंग-तरंग की मस्ती, दिल की झोली खाली
मिलेगा मन से मन, तब मनेगी मेरी होली।।

कहने को तो हम एक हैं, विवाद अनेक हैं।
छोटी-छोटी बातों में भी मतभेद अनेक हैं।
ईद-दीवाली संग घूमेगी हिंदू-मुस्लिम टोली
मिलेगा मन से मन, तब मनेगी मेरी होली।।

✍️ डा. अलका अग्रवाल
एसोसिएट प्रोफेसर
अंग्रेजी विभाग
एन. के. बी. एम. जी. कालेज
चंदौसी , जिला सम्भल
उत्तर प्रदेश, भारत