मैं आजकल जो कुछ लिख रहा हूं, उसमें आदरणीय पंडित मदन मोहन व्यास जी का महत्वपूर्ण योगदान है। मैंने कक्षा 6 से 12 तक की शिक्षा, पार्कर इंटरमीडिएट कॉलेज में प्राप्त की। आदरणीय व्यासजी वहां हिंदी पढ़ाया करते थे। यह मेरा परम सौभाग्य था, कि कक्षा 9 और 10 में मुझे आदरणीय व्यासजी से हिंदी पढ़ने और समझने का अवसर मिला। मैं उस समय तक छोटी मोटी तुकबंदियां करने लगा था। लेकिन संकोची स्वभाव के कारण,अपने तक ही सीमित था।इसमें तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं है कि मेरे अंतस में उमड़ रही काव्य घटाओं को, आदरणीय व्यासजी के मार्ग दर्शन और प्रेरणा से ही बरसने का मौका मिला।
पार्कर कॉलेज में उन दिनों,हर वर्ष,फर्स्ट डिविजनर्स डे मनाया जाता था,जिसमे ईसाई समुदाय के, बरेली मंडल के प्रमुख,जिनको बिशप कहा जाता था, मुख्य अतिथि होते थे। कई दिन पहले से इस कार्यक्रम की तैयारी की जाती थी। यह शायद 1972 या 73 की घटना है। बिशप महोदय के स्वागत में,एक स्वागत गीत,आदरणीय व्यासजी के निर्देशन में,तैयार किया जा रहा था। यह गीत लिखा भी आदरणीय व्यास जी ने था । उसके मुख्य बोल थे --- " खुश है धरती गगन ,आपके स्वागत में"
मैंने उस गीत की एक पैरोडी बना डाली,जिसकी
दो पंक्तियां मुझे आज भी याद हैं
"स्कूल का पुता भवन,आपके स्वागत में
पढ़ना ,लिखना दफन,आपके स्वागत में"
आस पास बैठे साथियों को इसका पता चल गया और उन्होंने आदरणीय व्यासजी तक,ये बात पहुंचा दी।अगले दिन उन्होंने,मुझे स्टाफ रूम में बुलाया। मैं डरते डरते उनके पास गया।," ये तुमने लिखा है" उन्होंने कड़क आवाज में पूछा। मैंने कांपते हुए, स्वीकृति में सिर हिलाया।" लिखते हो तो डरते क्यों हो .... जो चाहते हो,उसे हिम्मत के साथ करोगे, तभी आगे बढ़ पाओगे।" इतना कह कर उन्होंने, मेरी पीठ थपथपाई। मेरी आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े।आज, लगभग 50 साल बाद भी,जब परिस्थितिजन्य व्यथाओं से मन विचलित होता है,उनके ये शब्द, मुझे संतुलन प्रदान करते हैं।
✍️ डॉ पुनीत कुमार
T 2/505 आकाश रेजीडेंसी
आदर्श कॉलोनी रोड
मुरादाबाद 244001 मोबाइल फोन नम्बर 9837189600
मुरादाबाद का व्यास परिवार अपनी संगीत और साहित्य साधना के लिये प्रसिद्ध रहा है । हिन्दी के सुप्रसिद्ध पत्रकार, आलोचक, कहानीकार , उपन्यास लेखक एवं चलचित्र-कथा लेखक पं० नरोत्तम व्यास से कौन अपरिचित है । कवि और संगीतकार पं० पुरुषोत्तम व्यास को कौन नहीं जानता ? उसी 'विटप पर पनप कर सुमन बन गया है जो वह है सुप्रसिद्ध कवि मदन मोहन व्यास ।
'भाव तेरे शब्द मेरे' शीर्षक से व्यास की कविताओं का एक सुन्दर-संग्रह प्रकाशित हुआ है। इसके
अतिरिक्त 'लव कुश' 'माखन चोर' (अप्रकाशित खण्ड काव्य) अनेक गीत, नाटक और लेखों की निधि उनके पास सुरक्षित है ।
सिर पर रखे बोझ के रहने पर यदि कंठ में स्वर भी आजायें तो वोझ हल्का हो जाता है। व्यास जी का जीवन गार्हस्थ-संघर्षों से बोझिल है।
'पन्थ बीहड़ अंग जर्जर
पाँव थककर चूर प्रियतम ।'
अपने कर्म के बीहड़ पन्थ को आनन्द से आद्र करने के लिए वे निरन्तर गाते हैं - इस प्रशान्त जीवन में सुख सन्तोष यही है
तुम मिल जातो हो तो जी बहला लेता हूँ।
तुम मिल जातीं छन्दों के बन्धन खुल जाते
मुक्त पवन में मेरे कवि के स्वर लहराते
मैं चलता हूँ क्योंकि घड़ी पल क्षण भर में ही
तुमसे अपने मन की कुछ कहला लेता हूँ।'
व्यास जी के गीतों को स्थूल रूप से दो वर्गों में विभक्त कर सकते हैं। एक आत्मपरक और दूसरे प्रकृति वर्णन सम्बन्धी । उनके आत्मपरक गीतों में अनुभूति और अभिव्यक्ति आवेग की उत्कृष्टतम अवस्था में हैं। कवि का हृदय निरन्तर जीवन की झंझाओं से टकरा-टकराकर कटुता को अपने में समाहित करने में समर्थ हो गया है । उसके अंग-प्रत्यंग में दुख, दैन्य, पीड़ा, टीस, वेदना और व्यथा ने स्थायी रूप से निवास कर लिया है। यही कारण कि प्रेम की संयोग अवस्था में भी उनकी दृष्टि वेदनाओं के अन्वेषण में लगी रहती है। रिमझिम बरसात, सागर की लहरों की क्रीडाएँ, दूर्वादल पर सुप्त ओस कण, सरिता का कलरव गान और श्रंगों के रजत हास आदि प्रकृति के सौंदर्य स्थलों में कवि के व्याकुल हृदय को किसी व्यथित के अश्रुओं का प्रवाह, किसी गम्भीर पुरुष की भावनाओं का अन्तर्द्वन्द, किसी पीड़ित के अन्तःकरण के उच्छवास, आदि का ही आभास होता है। चन्द्रमा की धवल तारिकाएँ एवं सुरभित समीर उसके हर्ष का आलम्बन नहीं बन सकती क्योंकि उसका हृदय शोकाकुल विरह विदग्धों की आहों से परिपूर्ण है चाँदनी रात खिलखिलाती रही:
पर न कोक कोकी ने पाया
मिलने का अधिकार रे
बसा किसी का सद्म किसी का
उजड़ रहा संसार रे
मिला कुमदिनी को सुहाग, पर कमल कोर कुम्हला गई ।
चांद गगन में आया तो चांदनी धरा पर छा गई ।
परिव्याप्त-वेदनाओं से यह नहीं समझना चाहिए कि कवि निराशावादी है । वह अदम्य उत्साही है। उसकी शरीर में जीवन झंझाओं को बरदास्त करने के लिए पवनपुत्र जैसी शक्ति भी अन्तर्हित है-
मैं खड़ा हूँ इस किनारे तुम खड़े प्रिय उस किनारे
बीच में बैठी सलिल-सुरसा भयंकर मार पसारे
पर न है चिन्ता मुझे कुछ वायु-सुत की शक्ति मुझ में पार कर उत्तम लहरें पास पहुंचूंगा तुम्हारे
नयन इंगित ! यान दो लो लांघ-जल अगाध लूं मैं ।
व्यास जी का समस्त श्रङ्गार आस्थावादी है। उनका श्रृंगार भक्तिपरक है। प्रेम का आलम्बन अज्ञात शक्ति है, जो उन्हें सदैव प्रोत्साहित करती है।
तुम मुझे प्रणिधान दो तो अश्म को आराध लूं मैं'
व्यास जी प्रकृति की आलम्बनात्मक कविताओं में अपूर्व चित्रमयता आलंकारिकता एवं संगीतात्मकता प्राप्त होती है। 'स्वप्न' 'मधुमास', 'तितली', 'फूल' आदि कविताओं के माध्यम से एक ओर दार्शनिक अभिमतों की सरस विवेचना तथा जीवन की क्षणभंगुरता, असारता की अभिव्यञ्जना की गई है साथ ही प्रकृति के मनोरम क्रोड़ का बिम्वग्रहण भी है।
कवि के रूप में श्री व्यास जी एक अनुपम स्वर साधक और महान शब्द शिल्पी है। अपनी प्रत्येक रचना में एक एक अक्षर, शब्द प्रौर शब्द चिन्ह के प्रति वे अत्यन्त सावधान है। उनका शब्द-चयन भाव अनुकूल ध्वनि प्रस्फुटित करने में सदैव समर्थ है । अतुकांत रचनाओं में शब्दों का यह संयोग बहुत ही विचित्र गति लय और थिरकन उत्पन्न करता है। अतुकान्त रचनाओं में जो स्थान निराला को प्राप्त है यही व्यास जी को मिलेगा इसमें सन्देह नहीं है।
यह मेरे नगर की विडम्बना रही है कि इसमें जितने भी साहित्यकारों को जन्म दिया। वे उनमें से अधिकांश उपेक्षित रह गये हैं या फिर विस्मृति के गर्त में डूब गये है। यूं उनके अपवाद भी हैं जैसे जिगर मुरादाबादी एवं हुल्लड़ मुरादाबादी। किन्तु इन अपवादों को छोड़कर शेष की नियति उपेक्षा, निराशा और अपवंचना ही रही है। मुरादाबाद के विस्मृत साहित्यकारों में से एक हैं- स्व० मदन मोहन व्यास। यद्यपि एक समय था जब हर किसी की जुबान पर एक नाम चढ़ा था व्यास जी का, लेकिन अब स्थिति विपरीत है। युवा पीढ़ी में से बहुतेरे तो यह भी नहीं जानते होंगे कि उनके नगर में मदन मोहन व्यास नामक कोई सरस्वती पुत्र भी हुआ था। दरअसल, यह केवल युवा पीढ़ी का दोष नहीं, बल्कि वे कथित साहित्यकार भी दोषी हैं जो अपने आप को व्यास जी के बहुत निकट होने का दम भरते हैं। इन कथित साहित्यकारों ने कभी युवा पीढ़ी को व्यास जी के बारे में या उनके कृतित्व से परिचित कराने की आवश्यकता ही न समझी।
व्यास जी, जैसा कि सर्वविदित है, मुरादाबाद के प्रसिद्ध व्यास घराने के सदस्य थे। यह परिवार अपनी साहित्य और संगीत साधना के लिए बड़ा प्रसिद्ध रहा है। कई प्रतिभाशाली लोगों ने इस परिवार में जन्म लिया है जिनमें प्रमुख हैं प्रसिद्ध फिल्मकार व रामकथा के विद्वान श्री नरोत्तम व्यास एवं स्वयं श्री मदन मोहन व्यास। व्यास जी एक उच्च कोटि के कवि और विद्वान अध्यापक थे। साहित्य के अलावा वे संगीत के क्षेत्र में भी दखल रखते थे। एक कवि के तौर पर भी व्यास जी का पदार्पण लगभग उस समय हुआ जब हिन्दी काव्य में छायावादी काव्य रचा जा रहा था। स्पष्ट है कि व्यास जी पर भी छायावाद का प्रभाव पड़ा। फलस्वरूप उन्होंने जो गीत व कविताएं लिखी उनमें स्वत: ही छायावाद के तत्वों का समावेश हो गया । उनकी कविता में प्रकृति के प्रति अनुराग और रहस्यवाद को स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है।
यूँ तो व्यास जी के काव्य में बहुत से गुण और बहुत से तत्व खोजे जा सकते हैं। किन्तु एक तत्व उनकी कविताओं में प्रमुख तौर पर दृष्टि गोचर होता है जो उन्हें अन्य कवियों की अपेक्षा विशिष्टता प्रदान करता है। व्यास जी एक संगीतकार भी थे, अत: उनका संगीतकार व्यक्तित्व उनके कवि व्यक्तित्व को भी प्रभावित करता था। उनका संगीत स्वत: उनकी कविताओं व गीतों में समाविष्ट हो जाता था। यही कारण है कि उनके सम्पूर्ण काव्य में संगीत तत्व की प्रधानता है जो संगीतात्मकता और गेयता उनकी रचनाओं में है वह अब दुर्लभ है। मैं समझता हूँ कि व्यास जी काव्यात्मक संगीत के मामले में अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवियों शैली और स्विनबर्न के समकक्ष थे।
व्यास जी से अपनी वार्तालापों के जरिये मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि वे काव्य में छन्दबद्धता के हिमायती थे। वे कहते थे कि काव्य सृजन का असली आनन्द व कवि का प्रयास छन्द में ही निहित है। यद्यपि वे छन्द व काव्य के पक्षधर थे, तथापि अकविता के प्रति भी उनकी अरुचि न थी। जब व्यास जी की जीवन संध्या निकट थी मुझे एक-दो बार उनके श्रीमुख से कुछेक यथार्थवादी कविताएं सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
कविता के बारे में व्यास जी के विचार बड़े स्पष्ट थे। उनकी मान्यता थी कि काव्य आदमी के अन्दर एक प्रकार का सौंदर्यबोध (एस्थेटिक सेंस) जाग्रत करता है। उनका कहना था कि काव्य में आनन्द लेना और आनन्द के लिए काव्य रचना प्रत्येक सुसंस्कृत व्यक्ति के क्रिया-कलाप का साधारण अंग होना चाहिए। वे कहते थे कि काव्य का प्राथमिक उद्देश्य आनन्द की सृष्टि या मनोरंजन प्रदान करना है, शेष सारे उद्देश्य गौण हैं।
काम्पटन रिकेट ने एक जगह लिखा है - 'जो शब्दों की दुनिया में प्रविष्ट होता है उसे आजीवन गरीब रहने की प्रतिज्ञा करनी होती है।' अन्य साहित्यकारों की भांति व्यास जी को भी आजीवन संघर्षरत रहना पड़ा। वे संघर्ष करते ही रहे-कभी अपने मूल्यों के लिए तो कभी व्यक्ति और समाज के लिए, जब तक वे स्वयं टूट नहीं गये लेकिन संघर्षमय जीवन को गाकर, हंसी-खुशी काटने में विश्वास रखते थे। प्रसिद्ध कवि बच्चन के अनुसार व्यास जी की मान्यता थी- 'संघर्ष में जुटे हुए, चिंताकुल घड़ियों के भार को हलका करने के लिए, थकान मिटाने के लिए, आगे कार्य करने की प्रेरणा पाने के लिए कुछ गा लिया जाए तो बुरा क्या है। यहीं, इसी तरह से गाना ठीक है। जिन को गाने के सिवा कोई काम नहीं वे मुझे बीमार लगते हैं।
वे मुझे बीमार लगते हैं निकुंजों
में पड़े जो गीत अपना मिनमिनाते
गीत लिखने के लिए जो जी रहे हैं
काश, जीने के लिए वे गीत गाते ।
व्यास जी की अपने समकालीन समाज पर तो गहरी पकड़ थी ही वे एक स्वप्नद्रष्टा और दूरदृष्टि सम्पन्न कवि भी थे। जो दलित विमर्श और नारी विमर्श आधुनिक हिन्दी साहित्य का प्रमुख स्वर है व्यास जी ने दशकों पहले अपनी कृति 'हमारी घर' में 'हृदय से दो सब को सम्मान' शीर्षक में उसे अभिव्यक्ति दी है।
दान दो नहीं चाहिए भीख
सभी को जीने का अधिकार ।
तुम्हारा यह पवित्र कर्तव्य
न समझो इसको तुम उपकार ।
हृदय के सौदे की यह बात
हृदय से दो सब को सम्मान ।
करो श्रम-धन-धरती का दान ।
यह बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि व्यास जी एक सिद्धहस्त बालगीतकार भी थे। उन्होंने रमा शंकर जैटली 'विश्व' के बाद मुरादाबाद से प्रकाशित होने वाले बाल मासिक 'बाल विनोद' का सम्पादन किया था। व्यास जी ने बच्चों के लिए कई सरस बाल गीतों की रचना की थी जो आज भी बालकों को कण्ठस्थ हैं। व्यास जी के गीत प्रवाहमयता और छन्द की दृष्टि से उत्कृष्ट है इसलिए बच्चों को सहज ही याद हो जाते हैं। यद्यपि व्यास जी द्वारा रचित बाल साहित्य आज प्रायः उपलब्ध नहीं हैं किन्तु कतिपय संकलनों में आज भी उनके बाल गीत उपलब्ध हैं।
व्यास जी के बाल साहित्य के प्रति रुझान और उनके योगदान को प्रसिद्ध बाल साहित्यकार निरंकार देव 'सेवक' ने भी स्वीकार किया था और अपने प्रसिद्ध ग्रंथ 'बाल गीत साहित्यः इतिहास एवं समीक्षा' में उनका सम्मान सहित उल्लेख भी किया था। व्यास जी का एक प्रसिद्ध बाल गीत दृष्टव्य है।
"इस मिट्टी के बेटे हम,
इस मिट्टी पर लेटे हम,
इस मिट्टी पर बड़े हुए,
लोटपोट कर खड़े हुए,
इसकी आन निभायेंगे,
इस पर जान गवांयेंगे,
इसकी सीमाओं के रक्षक,
वीर जवान जिन्दाबाद।
हिन्दुस्तान जिन्दाबाद ।"
व्यास जी के दो ही काव्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं- 'भाव तेरे शब्द मेरे' और 'हमारा घर'। *अब आवश्यकता इस बात की है कि उनकी सभी अप्रकाशित रचनाओं को संकलित कर प्रकाशित किया जाए ताकि युवा पीढ़ी उनसे परिचित हो सके और साहित्य में उन्हें स्थान दिलाया जा सके।
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष पंडित मदन मोहन व्यास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर वाट्सएप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से 9 व 10 अप्रैल 2021 को दो दिवसीय ऑन लाइन आयोजन किया गया। कार्यक्रम में उनकी रचनाएं, चित्र तथा उनसे सम्बंधित सामग्री प्रस्तुत की गई। उल्लेखनीय है मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तंभ के तहत प्रत्येक माह के द्वितीय शुक्रवार - शनिवार को यह आयोजन किया जाता है। फरवरी में दुर्गादत्त त्रिपाठी जी और मार्च में कैलाश चन्द्र अग्रवाल पर यह आयोजन हो चुका है ।
कार्यक्रम में संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने पंडित मदन मोहन व्यास के जीवन एवं रचना संसार पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मुरादाबाद के मोहल्ला जीलाल के प्रतिष्ठित व्यास परिवार में 5 दिसंबर 1919 को जन्में पंडित मदन मोहन व्यास को साहित्य और संगीत विरासत में मिला था ।उनकी मात्र दो काव्य कृतियां ही प्रकाशित हो सकीं। प्रथम काव्य कृति 'भाव तेरे शब्द मेरे' सन 1959 में प्रकाशित हुई जबकि 'हमारा घर' का प्रकाशन सन् 1978 में हुआ। आपके चार काव्य ग्रंथ 'त्रेता के अंतिम वीर', 'तुम्हारे गीत तुम्हीं को', मुक्त छन्दा, कुंडलिया शतक और निबंध संग्रह समेत अनेक रचनाएं अप्रकाशित हैं। वह मुरादाबाद की विभिन्न साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्थाओं के संस्थापक सदस्य रहे हैं ।आप का निधन 23 मई 1983 को हुआ। उनसे सम्बंधित एक संस्मरण भी उन्होंने प्रस्तुत किया -----
जब दादा प्रोफ़ेसर महेंद्र प्रताप फफक फफक कर रो पड़े ........
लगभग 32 साल से ज्यादा समय गुजर गया । बात सन 1988 की है। उस समय मैंने 'तरुण शिखा' नाम से संस्था बना रखी थी। इसके माध्यम से मैं साहित्यकारों की जन्मतिथि और पुण्यतिथि पर विचार गोष्ठी का आयोजन करता था । 5 दिसंबर को मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार, संगीतज्ञ, कलाप्रेमी पंडित मदन मोहन व्यास जी की जयंती होती है। व्यास जी के निधन के बाद पांच साल तक किसी भी संस्था ने कोई आयोजन करने की जरूरत नहीं महसूस की थी। विचार आया कि इस दिन कोई आयोजन किया जाए। इसे विजय आलम जी के साथ साझा किया । युगबन्धु के सम्पादक कमलेश कुमार जी, रंगकर्मी धन सिंह धनेंद्र जी से विचार -विमर्श हुआ और तरुण शिखा, चेतना केंद्र और प्रयास नाट्य संस्था के संयुक्त तत्वावधान में संगीत, विचार व काव्य गोष्ठी का आयोजन निर्धारित हो गया। यह आयोजन हिंदू महाविद्यालय के अर्थशास्त्र व्याख्यान कक्ष में हुआ। आयोजन में स्मृतिशेष व्यास जी के लगभग सभी परिजन, अनेक मित्र, साहित्यकार, संगीतज्ञ और रंगकर्मी उपस्थित थे। दादा प्रो महेंद्र प्रताप जी कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे और विशिष्ट अतिथि आदरणीय माहेश्वर तिवारी थे। संचालन का दायित्व मेरे कंधों पर था । आयोजन उन्हीं की लोकप्रिय मां सरस्वती वंदना से आरंभ हुआ। उनके गीतों - भजनों की संगीत बद्ध प्रस्तुतियां हुईं। स्मृति शेष व्यास जी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर विचार व्यक्त किए गए और रचनाकारों ने काव्य पाठ भी किया । कार्यक्रम के अंत में अध्यक्ष दादा प्रो महेंद्र प्रताप जी का नाम उद्बोधन के लिए पुकारा गया । बोलने के लिए खड़े होते ही वह फफक फफक कर रोने लगे , आंखों से अश्रुधारा बहने लगी । यह देख कर उपस्थित सभी लोग भाव विह्वल हो गए और उनकी भी आंखे नम हो गई। काफी देर बाद स्थिति सामान्य हुई। भर्राए कण्ठ से दादा अधिक नहीं बोल सके। आज भी जब इस आयोजन का स्मरण होता है तो मेरी आंखें भी नम हो जाती हैं और मन विचलित । मेरा तो उनसे संपर्क /संबंध महज औपचारिक ही रहा । राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति और साहित्यकारों के आवास पर होने वाली कवि गोष्ठियों में ही उन्हें देखा और सुना था। अंतिम बार उन्हें 14 सितंबर 1982 को राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति के तत्वावधान में आयोजित राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन जन्मशती समारोह में हुए कवि सम्मेलन में अध्यक्ष के रूप में सुना था। अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए उन्होंने रचना सुनाई थी -----
हूं अपेक्षित पर उपेक्षित ही रहूंगा
परिचितों से भी अपरिचित ही रहूंगा
कौन से अति पुण्य का फल यह मिला
उपकृतों से भी अनुपकृत ही रहूंगा
खेल ये कैसा ! जिसे मैं -
जीत कर भी हाय! हारा !!
उनके धेवते अभय शर्मा ( सुपुत्र शशिबाला शर्मा ) ने पंडित मदन मोहन व्यास द्वारा रचित सरस्वती वंदना उन्हीं की हस्तलिपि में प्रस्तुत की ------
उनके पुत्र मनोज व्यास ने यही सरस्वती वंदना अपने स्वर में प्रस्तुत की -----
उनके अनुज बृज गोपाल व्यास ने उनकी कंठस्थ रचनाएं और कुंडलियां प्रस्तुत कीं -----
उनके प्रपौत्र कार्तिकेय व्यास (पुत्र मुकुल व्यास पुत्र रमाकांत व्यास) ने पंडित मदन मोहन व्यास की रचनाएं प्रस्तुत कीं -----
प्रख्यात साहित्यकार यशभारती माहेश्वर तिवारी ने कहा कि मुरादाबाद के साहित्यिक जगत की अल्पज्ञात या विस्मृत प्रतिभाओं की सूची बहुत बड़ी है ।फिर वे पंडित दुर्गादत्त त्रिपाठी हों ,बहोरीलाल लाल शर्मा हों या प्रवासी जैसे कई अन्य लोग स्मृति शेष पंडित मदन मोहन व्यास एक ऐसे ही गीत -गंधर्व रहे हैं जो अपने समय में साहित्य तथा काव्य मंच के क्षितिज पर चमकते नक्षत्र रहे ।निजी जीवन के संघर्ष ने उनके रचनाकार को कुछ ऊर्जा दी तो तोड़ने ,हताश और लगभग पराजय की हद तक खींच कर ले जाने की कोशिश भी की ।समकालीन हिंदी के विश्रुत कवि /गीतकार वीरेंद्र मिश्र ने अपनी एक रचना में लिखा है -जब जब कंठावरोध होता है /और अधिक सृजन बोध होता है ,यह बीजमंत्र व्यास जी का भी था और इससे प्रेरित लेखन के फलस्वरूप अपने समकालीनों में ,देवराज दिनेश ,मधुर शास्त्री ,क्षेमचंद सुमन आदि की आत्मीय अंतरंगता के सदस्य भी रहे ।इसकी जानकारी मुझे स्वयं दिनेश जी ने दी।लेकिन संकोची स्वभाव के कारण अपने ही रचे नंदन कानन के वे सीज़र बन गये और स्थानीय ब्रूटसों की साजिश के शिकार हो गये।उनकी अतिशय विनम्रता ने भी उनकी प्रतिभा को दबोचे रखा ।।अब भोलेपन और विनम्रता का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है कि अपने ही अभिनंदन समारोह के लिए चंदा दिलवाने के लिए अति उत्साही युवकों के आग्रह पर वे रात के दस बजे चौमुखा पुल पर मुझे मिले और मेरे हठपूर्ण आग्रह पर वहाँ युवकों को छोड़कर कटघर पचपेड़ा के लिए वापस गए । एक सफल अध्यापक, अभिनेता , संगीतज्ञ , संपादक,व्यासजी की प्रतिभा श्रद्धेय दुर्गा दत्त त्रिपाठी जी को छोड़कर अन्य अपने किसी समकालीन से कम नहीं थी लेकिन जितना लिख सकते थे उतना लिख नहीं पाये और जितना लिखा वह सब प्रकाशित नहीं हो पाया। स्थानीयता की सीमा में ही संतुष्ट रह जाने के कारण भी उनकी प्रतिभा को पूर्णतः प्रस्फुटन का अवसर नहीं मिल पाया फिर भी जितना कुछ उपलब्ध है उसका ईमानदार मूल्यांकन हो सके तो उनकी प्रतिभा और कृतित्व को एक सार्थक पहचान मिल सकेगी ।
केजीके महाविद्यालय की हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ मीरा कश्यप ने कहा कि कवि व्यास जी का कोमल हृदय जीवन के झंझावातों से टकराता है तो उसके हृदय में दुःख ,पीड़ा ,टीस ,वेदना भावाभिव्यक्ति के रूप में कविता बनकर स्वतः ही फूट पड़ती हैं ,वह भाव कहीं प्रकृति के सुकुमार रूप में दिखाई देती है तो कहीं व्यथित समाज के प्रति संवेदनशील रूप धर कविता में अवतरित होती है ।
मथुरा के प्रभारी सहायक निदेशक (बचत) एवं प्रख्यात साहित्यकार डॉ राजीव सक्सेना ने कहा कि उनका संगीतकार व्यक्तित्व उनके कवि व्यक्तित्व को भी प्रभावित करता था। उनका संगीत स्वत: उनकी कविताओं व गीतों में समाविष्ट हो जाता था। यही कारण है कि उनके सम्पूर्ण काव्य में संगीत तत्व की प्रधानता है जो संगीतात्मकता और गेयता उनकी रचनाओं में है वह अब दुर्लभ है।
ग्रेटर नोएडा के साहित्यकार मदन लाल वर्मा क्रांत ने कहा कि व्यास जी छन्द शस्त्र, भाषा शास्त्र, दर्शन आदि अनेकानेक साहित्यिक अंगो उपांगों के मर्मज्ञ कवि के साथ-साथ भारतीय-संगीत के ज्ञाता हार- मोनियम, तबला, सितार, मृदंग आदि न जाने कितने ही वाद्य यन्त्रों में दक्ष थे । यही नहीं वह कुशल अभिनेता भी थे । उन्होंने व्यास जी से अंतिम भेंट और उनकी अंतिम रचना भी प्रस्तुत की ।
साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार ने कहा कि व्यासजी में अभिनय क्षमता भी जबरदस्त थी। करुणा और वात्सल्य भी उनमें कूट कूट कर भरा था। मेरे अंतस में उमड़ रही काव्य घटाओं को, व्यासजी के मार्ग दर्शन और प्रेरणा से ही बरसने का मौका मिला।एक संस्मरण सुनाते हुए उन्होंने कहा ----पार्कर कॉलेज में उन दिनों,हर वर्ष,फर्स्ट डिविजनर्स डे मनाया जाता था,जिसमे ईसाई समुदाय के, बरेली मंडल के प्रमुख,जिनको बिशप कहा जाता था, मुख्य अतिथि होते थे। कई दिन पहले से इस कार्यक्रम की तैयारी की जाती थी। यह शायद 1972 या 73 की घटना है।बिशप महोदय के स्वागत में,एक स्वागत गीत,आदरणीय व्यासजी के निर्देशन में,तैयार किया जा रहा था। उसके मुख्य बोल थे " खुश है धरती गगन ,आपके स्वागत में" मैंने उस गीत की एक पैरोडी बना डाली,जिसकी दो पंक्तियां मुझे आज भी याद हैं "स्कूल का पुता भवन,आपके स्वागत में, पढ़ना ,लिखना दफन,आपके स्वागत में" आस पास बैठे साथियों को इसका पता चल गया और उन्होंने आदरणीय व्यासजी तक,ये बात पहुंचा दी।अगले दिन उन्होंने,मुझे स्टाफ रूम में बुलाया। मैं डरते डरते उनके पास गया।," ये तुमने लिखा है"उन्होंने कड़क आवाज में पूछा।मैंने कांपते हुए,स्वीकृति में सिर हिलाया।"लिखते हो तो डरते क्यों हो।जो चाहते हो,उसे हिम्मत के साथ करोगे,तभी आगे बढ़ पाओगे।"इतना कहकर उन्होंने,मेरी पीठ थपथपाई।मेरी आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े।आज,लगभग 50 साल बाद भी,जब परिस्थिति जन्य व्यथाओं से मन विचलित होता है,उनके ये शब्द,मुझे संतुलन प्रदान करते हैं।
रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा कि व्यास जी में हास्य का रस बिखेरने की प्रभावशाली क्षमता थी ।श्रोताओं और पाठकों को मनोविनोद के साथ-साथ कुछ चुभती हुई सीख दे जाना यह आपकी कुंडलियों की विशेषता रही। सामाजिक विसंगतियों पर उनकी कलम बहुत अच्छी तरह से चली है।
वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा प्रेम के सहज पुजारी के रूप में उनके गीत उनका बिम्ब खीचते हैं। अध्यात्म के स्वर सामयिक बिडम्बनाओं को भी उद्घोषित करते गीत अपनी सांस्कृतिक आस्थाओं के स्वरूप का मोहक चित्र उकेरती परिलक्षित होते हैं।
वरिष्ठ साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा कीर्तिशेष पंडित मदन मोहन व्यास मानवीय संवेदनाओं को स्वर देने वाले कवि व संगीतज्ञ थे। उनकी विभिन्न रचनाओं को पढ़कर यही कहा जा सकता है कि उन्हें साहित्यिक जगत में वह पहचान नहीं मिल पाई जिसके वह अधिकारी थे।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय अनुपम ने कहा मदन मोहन व्यास कला, संगीत, साहित्य के अद्भुत मर्मज्ञ, अपूर्व अध्यापक,अपने जीवन काल में साहित्यिक समाज और समारोहों के अनिवार्य अतिथि थे। यही नहीं वे मुरादाबाद में संगीत , साहित्य एवं शिक्षा-संस्कृति की प्रभावशाली परम्प
राओं के संस्थापकों में एक थे ।
जनवादी रचनाकार शिशुपाल सिंह मधुकर ने कहा कि उनकी हर कविता में सामाजिक विद्रूपताओं , समस्याओं और अपसंस्कृति के प्रति चिंता के दर्शन होते हैं। समाज में फैले भृष्टाचार के प्रति भी व्यास जी खासे चिंतित दिखाई देते हैं । उन्होंने हास्य के माध्यम से भी अपने विचारों को अभिव्यक्त किया है परंतु वहाँ भी समाज की किसी न किसी समस्या को उकेरा है।
दिल्ली के साहित्यकार आमोद कुमार ने कहा कि मुरादाबाद के कटघर पचपेड़ा निवासी स्मृतिशेष पं मदन मोहन व्यास विलक्षण प्रतिभाशाली गीतकार थे। साधारण कुर्ता धोती धारण कर साईकिल पर चलने वाले सरल और हँसमुख व्यक्तित्व के स्वामी पं मदन मोहन व्यास स्थानीय पारकर इंटर कालेज मे शिक्षक थे। कालेज से लौटते समय घर जाने से पहले वह प्रायः अमरोहा गेट पर स्थित गोविन्द जी की चाय की दुकान पर कुछ देर के लिए रुकते थे जहाँ उनका सानिध्य प्राप्त करने का अवसर हमें मिलता था।उनके कालजयी मधुर अलंकृत गीत हिन्दी साहित्य की अनमोल धरोहर हैं, उनके प्रसिद्ध गीत " भाव तेरे, शब्द मेरे ,गीत बनते जा रहे हैं ' को सुनकर सुप्रसिद्ध कवि गोपालदास नीरज ने उसकी भूरि भूरि प्रशंसा की थी, मैने ये गीत व्यास जी के श्रीमुख से प्रथम बार जी.जी हिन्दु इंटर कालेज के हाल मे हुए एक कवि सम्मेलन में सुना था। व्यास जी का एक अन्य गीत काव्य शिल्प का सुन्दरतम उदाहरण है जिसे वह अक्सर सुनाया करते थे, जिसकी प्रथम पंक्ति है--- खिले रसभरे नीरजों को "निरख कर मधुप झूम झुक उठ रहे,मिल रहे हैं"।नए शब्दों को गढ़ना और समान्य बोलचाल के शब्दों मे हास्य भर देना उनके हँसमुख स्वभाव का परिचायक था। कीर्तिशेष दादा प्रो. महेन्द्र प्रताप ब्यास जी को शब्द शिल्पी कहते थे। पं मदन मोहन ब्यास जी के संगीतमय मधुर गीत और उनके पढ़ने के अंदाज़ की याद आते ही उनका चेहरा सामने आ जाता है, मुरादाबाद मे मेरे निवास पर हुई काव्य गोष्ठी मे उनकी उपस्थिति की यादें भी ताज़ा हो जातु हैं, हिन्दी साहित्य आकाश मे मुरादाबाद के गौरव पं मदन मोहन ब्यास सदैव दीप्तिमान नक्षत्र सम अपनी अप्रतिम छटा बिखेरते रहेंगे।
कवयित्री डॉ इंदिरा रानी ने कहा कि स्मृतियों के झरोखे से जब मैं अतीत में झाँकती हूँ तब आदरणीय व्यास जी से संबंधित अनेक प्रसंग चलचित्र की भाँति मेरे चक्षु पटल के समक्ष साकार हो उठते हैं. मेरे अग्रज आदरणीय आमोद कुमार जी साहित्य जगत से जुड़े रहे हैं. उनके प्रयासों से हमारे निवास पर अनेक कवि गोष्ठियां, संगीत गोष्ठियां आयोजित होती रहती थीं. व्यास जी को सुनने का अवसर मिला. हमारा परिवार व्यास जी से बहुत प्रभावित हुआ. व्यास जी का शुभ आगमन चौमुखl पुल स्थित हमारे निवास पर अनेक बार हुआ. जब भी व्यास जी आते, हम सब उनके श्रीमुख से मधुर गीत सुनते. भाव तेरे शब्द मेरे, खिले रस भरे नीरज, नर को तकती नर्तकी आदि अनेक गीत और कुंडलियां हमें कंठस्थ हो गई थीं, जिनका प्रयोग हम अंत्याक्षरी प्रतियोगिता में करते थे और पुरस्कृत होते थे. महाकवि निराला द्वारा रचित सरस्वती वंदना 'वर दे वीणा वादिनी वर दे' और महा कवि जय शंकर प्रसाद के गीत 'बीती विभावरी जाग री' बहुत ही मधुर कंठ से व्यास जी सुनाते थे. कालान्तर में अंतरा में व्यास जी को सुनने का अवसर मिलता रहा. सन 1980 या 81 में जब मेरे पति डी. ए. वी. कॉलेज, अमृतसर में चित्रकला विभाग में प्रवक्ता थे, एक दिन अचानक व्यास जी हमारे घर आए. उन दिनों फोन की सुविधा नहीं थी. व्यास जी को अमृतसर में कोई काम था. उनका आना एक सुखद आश्चर्य था. उन्होंने सुझाव दिया कि व्यास जी के अप्रकाशित साहित्य को प्रकाशित कराया जाय. साहित्य प्रेमियों को उनका साहित्य पढ़ने का अवसर मिलेगा. शोधार्थी उन पर शोध कर सकेंगे।
चर्चित साहित्यकार डॉ कृष्ण कुमार नाज ने कहा श्रद्धेय पंडित मदनमोहन व्यास जी से मेरी भेंट तो नहीं है, क्योंकि मैं उस समय गांव में रहता था। आज साहित्यिक मुरादाबाद पर उनका साहित्य पढ़ा तो बहुत अच्छा लगा। व्यास जी ने जहां सुंदर बाल रचनाएं लिखी हैं, वहीं उनकी रचनाओं में देशप्रेम, समाजप्रेम और प्रेम की संवेदनशील वैयक्तिकता, इन सभी पहलुओं के दर्शन होते हैं। सामाजिक सरोकार पग-पग पर उनकी रचनाओं में दृष्टिगोचर होते हैं।उनकी रचनाएं युवा साहित्यकारों के लिए मार्गदर्शक की भूमिका में नज़र आती हैं।
युवा रचनाकार राजीव प्रखर ने कहा कीर्तिशेष मदनमोहन व्यास जी आम व्यक्ति की वेदना को शिष्ट, सौम्य व गंभीर व्यंग्य के माध्यम से साकार करने में सफल रहे हैं। उनके व्यंग्य में विद्यमान यह शालीनता, सौम्यता व गंभीरता वर्तमान समय के तथाकथित मंचों पर परोसे जा रहे तथाकथित व्यंग्य को सही दिशा दिखाने में पूर्णतया सक्षम है।
उनके पुत्र रमाकान्त व्यास ने कहा कि पंडित मदन मोहन व्यास के गीत एवं कविताएं मुरादाबाद तक ही सीमित नहीं थीं, वह भारत के श्रेष्ठ और प्रतिष्ठित कवियों में गिने जाते थे। भारत के प्रसिद्ध गीतकार कवि उनका आदर करते थे ।
धामपुर के साहित्यकार डॉ अनिल शर्मा अनिल ने कहा व्यास जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से बाल साहित्य में भी अपूर्व योगदान दिया है ।
हरि प्रकाश शर्मा ने कहा कि उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। साहित्य के प्रति,उत्साहित और प्रेरित करने वाले उन जैसे व्यक्तित्व बहुत मुश्किल से मिल पाते है।
वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई ने कहा स्मृति शेष मदन मोहन व्यास जी एक उच्च स्तरीय कवि थे,उनके गीत आज भी तरोताजा हैंं। संस्मरण प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा ---बात सन 1967 की है मैं एक मासिक पत्रिका" ह्रदय उदगार" का प्रकाशन करने जा रहा था, जिसका सम्पादक मैं स्वयं था।तब मैंने पत्रिका के संरक्षक हेतु स्मृति शेष मदन मोहन व्यास जी से आग्रह किया , मुझे यह कहने में कोई दुराव नहीं कि एक बार कहने पर ही उन्होंने सहर्ष मेरा निवेदन स्वीकार कर लिया वह कितने विनम्र थे यह इस बात से ज्ञात हो जाता है।मैं धन्य हो गया।और वह मेरे निवास स्थान पर कार्यालय के उद्घाटन में बरसात होने के बाद भी मेरे यहाँ पधारे और पत्रिका की रुप रेखा पर चर्चा की।वह अनमोल क्षण मेरे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण थे मैं आज भी उन क्षणों को याद करता हूं तो आनंद की अनुभूति होती है।
कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा इस कार्यक्रम में प्रस्तुत स्मृतिशेष पण्डित मदन मोहन व्यास जी और उनके अन्य परिवारीजनों की भी वीडियो व अन्य प्रस्तुतियों को देखकर यह आभास हो रहा है कि संगीत और साहित्य की प्रतिभा व्यास परिवार को आनुवांशिक प्राप्त है और इस आनुवांशिक प्रतिभा को सबने अपने पुरूषार्थ और अभ्यास से और पोषित किया है।पण्डित मदन मोहन व्यास जी को समर्पित इस आयोजन के माध्यम से हम ऐसे व्यास परिवार के बारे में जान पाये,जो विलक्षण प्रतिभाओं से युक्त है।हमने एक ऐसे साहित्यकार की रचनाओं की यात्रा की जिसने हास्य, व्यंग्य, विमर्श के ताने बाने में विभिन्न विषयों पर छंद और शब्द चातुर्य के साथ लिखा,लेकिन केवल लिखने के लिए नहीं लिखा बल्कि जीने के लिए लिखा।काश आज की फेसबुकी नयी पीढ़ी स्मृति शेष श्री व्यास जी के इस संदेश को आत्मसात कर पाये और जीवन के लिए गीत गाने के पथ पर आगे बढ़े।
वयोवृद्ध संगीतज्ञ रामावतार रस्तोगी ने भावुक होकर उनसे सम्बंधित संस्मरण सुनाए ----
युवा रचनाकार दुष्यन्त बाबा ने उनके पुत्र मनोज व्यास द्वारा सुनाए संस्मरण प्रस्तुत किये।तत्कालीन समय में मुरादाबाद स्थित पार्कर कॉलेज शिक्षा के क्षेत्र में बहुत अग्रणी नाम हुआ करता था। जिले के लगभग समस्त वरिष्ठ अधिकारियों के बच्चे अक्सर इसी विद्यालय में पढ़ते थे। उस समय में अनुशासन के लिए विद्यार्थियों की पिटाई एक स्वाभाविक प्रक्रिया थी। श्रद्धेय व्यास जी ने एक बच्चे को (जिसके पिता मुरादाबाद के जिलाधिकारी थे) पीट दिया। इससे क्रुद्ध होकर जिलाधिकारी महोदय सीधे विद्यालय में आ गए। सारा वृतांत प्राचार्य को सुनाया। प्राचार्य जी ने व्यास जी को अपने कक्ष में बुलाया। और पूछा कि "आपने इनके बेटे को मारा...ये यहां के जिलाधिकारी हैं" व्यास जी मे आत्मबल से भरपूर जबाब दिया। कि " मैंने इनके बेटे को नही मारा..विद्यालय के सभी विद्यार्थी मेरे बेटे है। और यदि ये इनका बेटा है तो विद्यालय से ले जाएं"। ऐसा प्रतिउत्तर पाकर जिलाधिकारी महोदय बहुत लज्जित हुए और उन्होंने स्वयं की गलती के लिए खेद प्रकट किया। ऐसे थे! परम् श्रद्धेय मदन मोहन व्यास जी।
पंडित मदन मोहन व्यास की बहन साहित्यकार एवं संगीतज्ञ बाल सुंदरी व्यास (विशाखा तिवारी) ने कहा मैं सबसे छोटी और भाई सबसे बड़े थे बहुत दुलार करते थे शिक्षक बहुत अच्छे थे। मैं बारहवीं कक्षा में थी तब मैंने भाई से संस्कृत पढी ,जो भी उनसे एक बार पढ़ लेता उसे तुरंत याद हो जाता था। उनके पढ़ाये हुए बच्चे बहुत आगे ....बहुत आगे बढ़े। वह मुझे बहुत प्यार करते थे, गोदी में चढ़ाते थे मुझे। हम दोनों मिलकर खूब कीर्तन किया करते थे। बहुत सुरीले कंठ वाले थे । "पूजा का सामान संजोले सखी, प्रिय घर आने वाले हैं "बहुत सुंदर गीत था उनका। मुझे बहुत पसंद था । साहित्यिक रचनाओं के द्वारा भाई को याद करके बहुत अच्छा लगता है ।
साहित्यकार सीमा वर्मा ने कहा कि मेरा विवाह स्वर्गीय श्री पूरन लाल वर्मा जी के सबसे बड़े सुपुत्र आशीष कुमार के साथ सन 1996 में हुआ था । परिवार का वातावरण संगीतमय व साहित्यिक था और अपने पितातुल्य ससुर जी के साथ जो भी सुअवसर मुझे प्राप्त होता था वह अपने जीवन से जुड़े संगीत प्रेमियों के विषय में मुझे बताते थे । व्यास परिवार के साथ हमारे परिवार का संबंध बेहद गहरा है यह बात विवाह के अगले दिन ही मुझे पता चल गई थी । कटघर वाले ताऊजी का जिक्र पिताजी उठते बैठते करते थे । हम फरीदाबाद में रहते हैं पर जब भी मुरादाबाद जाते तो पिताजी फौरन कटघर फोन करके ताऊ जी को बताते कि आशीष और उसकी बहू आए हैं और कभी-कभी ताऊ जी से मिलने का अवसर भी मुझे प्राप्त होता । मुंबई वाले ताऊ जी के यहाँ भी अपने सास ससुर के साथ मैंने प्रवास किया । पिताजी की अपनी कोई बहन नहीं थी । इस क्षति की पूर्ति परम श्रद्धेय बुआजी ( बालसुंदरी तिवारी ) ने की । वे मेरे श्वसुरजी को राखी बाँधती रहीं हैं । इस प्रकार मेरे पिताजी ( श्वसुरजी ) स्वर्गीय पूरनलाल वर्मा जी व्यास परिवार में सदैव सबसे छोटे भाई के रूप में प्रतिष्ठित रहे और स्नेह पाते रहे । समूह में मदन मोहन व्यास जी के विषय में जब मैंने पढ़ना शुरू किया तो मन एक सुखद अनुभूति से भर गया कि इस महान व्यक्तित्व के साथ तो मेरा परिवार भी जुड़ा हुआ है ।
साहित्यकार मुजाहिद चौधरी ने कहा कि स्वर्गीय पंडित मदन मोहन व्यास जी के व्यक्तित्व की जानकारी,उनके जीवन परिचय और कृतियों पर सुंदर लेखों को पढ़ कर मुझे भी गौरवपूर्ण एहसास हुआ । इस सब के लिए निश्चित तौर पर साहित्यिक मुरादाबाद और उसके सभी सम्मानित साहित्यकार/सदस्य बधाई के पात्र हैं ।
दयानन्द आर्य कन्या महाविद्यालय के प्रबंधक उमाकांत गुप्ता ने कहा कि मेरी याद बार बार मुझे झकझोर रही है। श्री मदनमोहन व्यास जी आठवें दशक में दयानंद आर्य कन्या डिग्री कालेज मुरादाबाद के प्रांगण में वार्षिक कार्यक्रम का संगीत का कार्य क्रम का निर्देशन किया था। मुरादाबाद के ही नहीं वे पूरे जनपद व प्रदेश के रत्न थे। उन्हे मेरा श्रद्धापूर्वक नमन ।
गजरौला से रेखा रानी ने कहा कि श्रद्धेय व्यास जी से मेरा कोई व्यक्तिगत परिचय नहीं रहा इस सम्मनित मंच पर आदरणीय मनोज रस्तौगी जी द्वारा सांझा की गई सामग्री के माध्यम से वास्तव में बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त हुई हैं । अति सुन्दर वन्दना पढ़ी, ज्यों रवि की प्रथम किरण अद्भुत रचना आजा तुझसे होली खेलूं , वास्तव में सराहनीय हैं ।
कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा आयोजन में शामिल सभी साहित्यकारों के विचार पढ़कर बहुत जानकारी मिली ।साहित्यिक मुरादाबाद बधाई का पात्र हैं जिसके माध्यम से हम लोगों को भी प्राचीन धरोहरों के दिव्य दर्शन होते हैं।
कवयित्री डॉ शोभना कौशिक ने कहा कि व्यास जी की रचनाओं में देश प्रेम , तत्कालीन समाज का यथार्थ,और प्रेम की संवेदनशीलता के दर्शन मििलता है ।
जनपद बिजनौर की साहित्यकार चंद्र कला भागीरथी ने कहा साहित्यिक मुरादाबाद में प्रस्तुत उनके सन्दर्भ में बहुत कुछ जानकारी मिली । इसके लिए मैं साहित्यिक मुरादाबाद की आभारी हूँ । उनकी रचनायें मानवीय संवेदनशीलता से ओतप्रोत हैं।
अंत में आभार व्यक्त करते हुए पंडित मदन मोहन व्यास के सुपुत्र मनोज व्यास ने कहा कि मुरादाबाद समूह द्वारा पिताश्री स्मृतिशेष श्री मदन मोहन व्यास द्वारा रचित कृतियों भाव तेरे शब्द मेरे , हमारा घर तथा अप्रकाशित रचनाओं तथा दुर्लभ चित्र प्रस्तुत करके उनका पुनः स्मरण कराया गया साथ ही व्यास जी के साहित्य और संगीत के क्षेत्र में योगदान पर साहित्य जगत और उनके संपर्क में आए महान विभूतियों के द्वारा उनके साथ बिताए पल और उनके साहित्य पर चर्चा करके जो प्रकाशित होने से रह गया है वह प्रकाशित होकर सबके बीच में पहुंचे ऐसा कार्य करने की प्रेरणा मिली है। अति शीघ्र समस्त साहित्य आपके बीच मैं लाने का प्रयास करूंगा ।
कार्यक्रम में डॉ प्रीति हुंकार, प्रदीप गुप्ता (मुम्बई), अटल मुरादाबादी(नोएडा), कंचन खन्ना, अतुल कुमार शर्मा, श्रुति शर्मा, सीमा रानी, ने भी हिस्सा लिया।