मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' के तत्वावधान में गौड़ ग्रीशियस सोसाइटी, काँठ रोड, मुरादाबाद स्थित 'हरसिंगार' भवन में गाजियाबाद के नवगीतकार जगदीश पंकज के मुरादाबाद आगमन पर 30 जुलाई, 2023 रविवार को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया जिसमें श्री जगदीश पंकज जी को अंगवस्त्र, प्रतीक चिन्ह, मानपत्र तथा श्रीफल भेंटकर "हस्ताक्षर नवगीत साधक सम्मान"से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात नवगीतकार यशभारती माहेश्वर तिवारी ने की। मुख्य अतिथि विख्यात व्यंग्य कवि डॉ.मक्खन मुरादाबादी तथा विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय अनुपम रहे। काव्य गोष्ठी का शुभारंभ चर्चित दोहाकार श्री राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ। यश भारती से सम्मानित सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने गीत पढ़ा-
"नापती आकाश सारा पंख फैलाए,
किन्तु धरती से अलग उड़कर कहाँ जाए,
सोचकर यह घोंसले में लौट आती है।
एक चिड़िया, धड़कनों में चहचहाती है।"
विख्यात कवि डॉ.मक्खन मुरादाबादी ने गीत प्रस्तुत किया-
"नए सृजन पर असमंजस में,
तुलसी सूर कबीरा।
गान आज का गाने में सुन,
दुखी हो उठी मीरा।
देख निराला भी कह उठते,
नव की नई शकल हो।
कोशिश है खरपतवारों की,
मटियामेट फ़सल हो।"
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय अनुपम ने सुनाया-
"भाव से मन को लुभाता है,
दुसह पीड़ाएं जगाता है।
विरह की देता व्यथा फिर भी,
प्यार सुख का जन्मदाता है।"
सम्मानित नवगीतकार के जगदीश पंकज ने सुनाया-
"हंँसो स्वयं पर हंँसो कि हम सब जिंदा है।
अपने-अपने सच को सभी संभाल रहे।"
कवयित्री विशाखा तिवारी ने रचना प्रस्तुत की-
"आज व्याकुल धरती ने
पुकारा बादलों को।
मेरी शिराओं की तरह
बहती नदियाँ जलहीन पड़ी हैं।"
कवि डॉ.मनोज रस्तोगी ने रचना प्रस्तुत की-
"बीत गए कितने ही वर्ष ,
हाथों में लिए डिग्रियां,
कितनी ही बार जलीं
आशाओं की अर्थियां,
आवेदन पत्र अब
लगते तेज कटारों से।"
कवि योगेन्द्र वर्मा व्योम ने दोहे प्रस्तुत किये-
"शहरों के हर स्वप्न पर, कैसे करें यक़ीन।
उम्मीदों के गाँव हैं, जब तक सुविधाहीन।
चलो मिटाने के लिए, अवसादों के सत्र।
फिर से मिलजुल कर पढ़ें, मुस्कानों के पत्र।"
शायर ज़िया ज़मीरने ग़ज़ल पेश की-
"घर के बाहर तो बस ताले लग जाते हैं,
घर में लेकिन कितने जाले लग जाते हैं।
उस चेहरे को छू लेता हूं रात में जब भी,
हाथों में दिन भर के उजाले लग जाते हैं।"
राजीव 'प्रखर' ने दोहे प्रस्तुत किए-
"नीम तुम्हारी छांव में, आकर बरसों बाद।
फिर से ताज़ा हो उठी, बाबूजी की याद।
जलते-जलते आस के, देकर रंग अनेक।
दीपक-माला कर गई, रजनी का अभिषेक।"
कवि राहुल शर्मा ने मुक्तक सुनाया-
"चंद लम्हों की मुलाकात बुरी होती है।
गर जियादा हो तो बरसात बुरी होती है।
हर किसी को ये समझ लेते है अपने जैसा।
अच्छे लोगों में यही बात बुरी होती है।"
युवा कवि प्रत्यक्ष देव त्यागी ने सुनाया-
"परवान चढ़ेगी मोहब्बत, चार दिन के लिए।
पूरी होगी ज़रूरत, चार दिन के लिए।
हाथ पकड़कर बैठना, आंखों में आंखे डाल कर।
फिर नाराज़ होगी किस्मत, चार दिन के लिए।"
प्राप्ति गुप्ता ने भी एक कविता सुनाई। डॉ जगदीप भटनागर, शिखा रस्तोगी, माधुरी सिंह एवं अक्षरा ने विचार प्रस्तुत किये। कार्यक्रम का संचालन योगेन्द्र वर्मा व्योम ने किया। समीर तिवारी द्वारा आभार अभिव्यक्त किया गया ।
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' के तत्वावधान में गौड़ ग्रीशियस काँठ रोड, मुरादाबाद स्थित 'हरसिंगार' भवन में साहित्यकार माहेश्वर तिवारी के जन्मदिन एवं उनकी रचनाधर्मिता के सात दशक पूर्ण होने के अवसर पर पावस-गोष्ठी, संगीत संध्या एवं सम्मान समारोह का आयोजन किया गया जिसमें वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय अनुपमको अंगवस्त्र, प्रतीक चिन्ह, मानपत्र, श्रीफल तथा सम्मान राशि भेंटकर "माहेश्वर तिवारी साहित्य सृजन सम्मान" से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता देहरादून निवासी देश के सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र ने की। मुख्य अतिथि विख्यात व्यंग्यकवि डॉ.मक्खन मुरादाबादी रहे। कार्यक्रम का संचालन योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने किया।
कार्यक्रम का शुभारंभ सुप्रसिद्ध संगीतज्ञा बालसुंदरी तिवारी एवं उनकी संगीत छात्राओं- लिपिका सक्सेना, संस्कृति, प्राप्ति गुप्ता, सिमरन, आदया एवं तबला वादक लकी वर्मा द्वारा प्रस्तुत संगीतबद्ध सरस्वती वंदना से हुआ। इसके पश्चात उनके द्वारा सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी के गीतों की संगीतमय प्रस्तुति हुई- "बादल मेरे साथ चले हैं परछाई जैसे/सारा का सारा घर लगता अंगनाई जैसे।" और- "याद तुम्हारी जैसे कोई कंचन कलश भरे/जैसे कोई किरन अकेली पर्वत पार करे।"
पावस गोष्ठी में यश भारती से सम्मानित सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने गीत पढ़ा-
"आज गीत गाने का मन है,
अपने को पाने का मन है।
अपनी चर्चा है फूलों में,
जीना चाह रहा शूलों में,
मौसम पर छाने का मन है।"
सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र ने गीत प्रस्तुत किया-
"प्यास हरे कोई घन बरसे,
तुम बरसो या सावन बरसे,
एक सहज विश्वास संजोकर,
चातक ने व्रत ठान लिया है,
अब चाहे नभ से स्वाती की,
बूँद गिरे या पाहन बरसे।"
विख्यात कवि डॉ.मक्खन मुरादाबादी ने गीत प्रस्तुत किया-
"उन गीतों में मिला महकता,
इस माटी का चंदन,
जिनका अपना ध्येय रहा है,
सौंधी गंधों का वंदन।"
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय 'अनुपम' ने सुनाया-
"राह कांँटों भरी थी सहल हो गई,
चाह मेरी कुटी से महल हो गई,
मैं झिझकता रहा बात कैसे करूं,
आज उनकी तरफ़ से पहल हो गई।"
मशहूर शायर डॉ कृष्ण कुमार नाजने ग़ज़ल पेश की-
"ज़िंदगी तेरे अगर क़र्ज़ चुकाने पड़ जाएं,
अच्छे-अच्छों को यहां होश गंवाने पड़ जाएं,
साफ़गोई है किसी अच्छे तअल्लुक़ की शर्त,
वादे ऐसे भी न हों जो कि पुराने पड़ जाएं।"
कवयित्री विशाखा तिवारी ने रचना प्रस्तुत की-
"आज व्याकुल धरती ने
पुकारा बादलों को।
मेरी शिराओं की तरह
बहती नदियाँ जलहीन पड़ी हैं।"
वरिष्ठ ग़ज़लकार ओंकार सिंह 'ओंकार' ने सुनाया-
"बारिश में सड़कें हुई हैं गड्ढों से युक्त।
जाम लग रहे हर जगह वाहन सरकें सुस्त।
हरियाली फैला रही चहुंदिसि ही आनंद।
बूँदों से हर खेत में, महक उठे है छंद।
कवि वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी ने गीत सुनाया-
"मुँह पर गिरकर बूँदों ने बतलाया है,
देखो कैसे सावन घिरकर आया है।
बौछारों से तन-मन ठंडा करने को,
डाल-डाल झूलों का मौसम आया है।"
कवयित्री डॉ पूनम बंसल ने सुनाया-
"कभी गरजते कभी बरसते,
रंग जमाते हैं बादल।
सदियों से इस तृषित धरा का,
द्वार सजाते हैं बादल।"
कवि समीर तिवारी ने सुनाया-
"बदल गया है गगन सारा,सितारों ने कहा।
बदल गया है चमन हमसे बहारों ने कहा।
वैसे मुर्दे है वही सिर्फ अर्थियां बदली।
फ़क़ीर ने पास में आकर इशारों से कहा।"
कवि डॉ.मनोज रस्तोगी ने रचना प्रस्तुत की-
"नहीं गूंजते हैं घरों में अब,
सावन के गीत
खत्म हो गई है अब,
झूलों पर पेंग बढ़ाने की रीत
नहीं होता अब हास परिहास,
दिखता नहीं कहीं सावन का उल्लास।"
कवि योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने पावस दोहे प्रस्तुत किये-
"भौचक धरती को हुआ, बिल्कुल नहीं यक़ीन।
अधिवेशन बरसात का, बूँदें मंचासीन।
पल भर बारिश से मिली, शहरों को सौगात।
चोक नालियां कर रहीं, सड़कों पर उत्पात।"
" शायर ज़िया ज़मीर ने ग़ज़ल पेश की-
"हमारे शहर में बादल घिरे हैं, तुम्हारे शहर में क्या हो रहा है।
वो आंखें ऐसी भी प्यारी नहीं हैं,न जाने यह हमें क्या हो रहा है।"
दोहाकार राजीव 'प्रखर' ने दोहे प्रस्तुत किए-
"मीठी कजरी-भोजली, बल खाती बौछार।
तीनों मिलकर कर रहीं, सावन का शृंगार।
मानुष मन है अश्व सा, इच्छा एक लगाम।
जिसने पकड़ी ठीक से, जीत लिया संग्राम।"
कवि मनोज मनु ने गीत सुनाया-
"रिमझिम बरखा आई, झूम रे मन मतवाले,
काले काले बदरा घिर-घिर के आते हैं,
अंजुरी में भर-भर के बूंद-बूंद लाते हैं,
बूंद -बूंद भर देती खाली मन के प्याले, "
प्रो ममता सिंह ने सुनाया-
"मोरे जियरा में आग लगाय गयी रे, सावन की बदरिया।
मोहिं सजना की याद दिलाय गयी रे, सावन की बदरिया।
जब जब मौसम ले अंगडाई और चले बैरिनि पुरवाई।
मोरी धानी चुनरिया उड़ाय गयी रे सावन की बदरिया।"
हेमा तिवारी भट्ट ने सुनाया-
"बोया था रवि बीज मैंने,
रात्रि की कोमल मृदा में,
तम गहन ऊर्जा में ढलकर,
अंकुरा देखो दिवस बन।"
काशीपुर निवासी डॉ ऋचा पाठक ने सुनाया-
"एक बदरिया आँखों में ही सूख गयी ज्यों न दिया।
पकी फ़सल कैसे ढोये, अब सोचे हारा हरिया।
बामन ने ये साल तो पर कै भला बताये रे।"
मयंक शर्मा ने सुनाया-
"प्रिय ने कुंतल में बँधी खोली ऐसे डोर।
मानो सावन की घटा घिर आई चहुँओर।
बूँदों के तो घर गई एक रंग की धूप।
लेकर निकली द्वार से इंद्रधनुष का रूप।"
संतोष रानी गुप्ता, माधुरी सिंह, डी पी सिंह एवं इं० उमाकांत गुप्त ने पावस के संदर्भ में अपने विचार प्रस्तुत किये। कार्यक्रम संयोजक आशा तिवारी एवं समीर तिवारी द्वारा आभार-अभिव्यक्ति प्रस्तुत की गई।
शायद वर्ष 1972 था या 1973, उन दिनों मैं मुजफ्फरनगर से स्टेट बैंक की अपनी नौकरी छोड़ के मुरादाबाद लौट चुका था और शायद "साईको" उपन्यास के अनुवाद की तैयारी में व्यस्त था। परंतु , साहित्यिक गोष्ठियों व सम्मेलनों में गाहे-बगाहे जाता रहता था। एक शाम हमारे साहित्यिक मित्र और मेरे वरिष्ठ कवि डा विनोद गुप्त जी के निवास, सब्जी मंडी पर एक काव्य गोष्ठी का आयोजन था। मैं भी आमंत्रित था। वहीं लम्बे चौड़े गोरे से चश्मा लगाये एक नवीन साहित्यकार से मेरा परिचय हुआ। उन्होंने अपना नाम प्रकाश चन्द्र सक्सेना ’दिग्गज’ बतलाया। वे सफेद पाजामें– कुर्ते में बड़े प्रभावशाली लग रहे थे, और काफी हंसमुख भी थे।
बोले, "अरे, जाकिर साहब, मैंने आपका बहुत नाम सुन रखा है। आज आपसे मिल कर तबियत खुश हो गयी, मेरी।"
मैं हंसा, " श्रीमन तबियत तो मेरी भी खुश क्या डबल खुश हो गयी आपसे मिल के !"
वे बोले, "मतलब, डबल खुश कैसे ? " मैंने समझाया, " सादर प्रणाम ! श्रीमन मेरे श्वसुर महोदय का भी यही नाम है, श्री प्रकाश चन्द्र सक्सेना ! उपस्थित सभी लोग हँसने लगे।
यही थी मेरी 'दिग्गज जी' से पहली मुलाकात की बानगी !
उन्होंने बड़े ऊंचे स्तर की उर्दू नज़्में में सुनाई ।
बस, उस शाम के बाद उनका बारादरी स्थित मेरे निवास पर आना-जाना होने लगा और हम अक्सर मिलने लगे।
जब मिलते थे, तो सुनना-सुनाना भी हो जाता था। पर उस समय तक वो शायर
" दिग्गज' थे, "दिग्गज मुरादाबादी 'नहीं! और सिर्फ उर्दू में कलम चलाया करते थे। एक शाम को अपने साथ एक अन्य वरिष्ठ साहित्यकार को मेरे घर ले आये, परिचय कराया श्री बहोरन सिंह वर्मा 'प्रवासी'! प्रवासी जी उच्च कोटि के कवि थे और तहसीली स्कूल में अध्यापन कार्य करते थे। वह" मैढ़ बालक" नामक एक बाल पत्रिका का संचालन भी करते थे।
अब हमारी काव्य गोष्ठियों में दिग्गज जी प्रवासी जी के साथ ही आने लगे। दिग्गज जी बहुत उच्च कोटि को नज़्मकार थे और मंच को जीत लेने वाली अनेक नज़्में कह चुके थे। मुझे उनका कलाम बहुत पसंद आता था और हम दोनों एक दूसरे का बहुत सम्मान करते थे। उन्ही दिनों मुझे पता चला कि दिग्गज जी, मुरादाबाद कचहरी में अर्जी नवीस का काम करते थे।
शायद, एक बार मैं किसी काम से कचहरी के पोस्ट आफिस गया तो, कचहरी में जाकर उनके बस्ते पर बैठ कर एक प्याला चाय भी पी आया। वहीं बातचीत में उनसे पता चला कि वे कटघर में पचपेड़ा नामक स्थान पर रहते थे। इसके बाद तो साहित्यक गोष्ठियों में वे हुल्लड़ मुरादाबादी, ललित मोहन भारद्वाज, पुष्पेन्द्र वर्णवाल, डा० विनोद गुप्ता, ओम प्रकाश गुप्ता, प्रवासी जी, कौशल शलभ और मक्खन जी के साथ मुझे मिल ही जाते थे। वैसे, उन्होंने बहुत कुछ कहा था, कहते ही रहते थे मगर उनकी एक नज़्म "झांसे वाली रानी" बहुत प्रसिद्ध हुई थी, मुझे भी पसंद थी। उसकी प्रारंभ की कुछ पंक्तियां मुझे आज 52-53 वर्षों के बाद भी याद है?
सरल,सौम्य आकृति, मगर कुछ थोड़ी सी अभिमानी है ,
है प्रयाग से प्यार, कि जिससे इसकी जुड़ी कहानी है।
सब लोगों,कुल अखबारों में खबर यही छपवानी है,
कि एक थी झांसी वाली,पर यह झांसे वाली रानी है।
सैकुलर नारों की सारी शेखी चकनाचूर हुयी,
बाईस वर्षों में भी तुमसे नहीं गरीबी दूर हुयी।
कुछ भी तुमसे हो न सका, पर इतनी बात ज़रूर हुयी,
कि भूखी-नंगी भारत माता दूर-दूर मशहूर हुयी ।
इस पर भी तू अपने मन में फूली नहीं समानी है।
एक थी झाँसी वाली पर ये झांसे वाली रानी है ।(रचना काल 1969)
इसी प्रकार उनकी एक और नज़्म थी.. " मेहतर की बेटी ", उसे भी वो बड़े चाव से पढ़ते थे।
असल में उन दिनों कविता ' लुहार की लली' काफ़ी प्रसिद्धि पा रही थी, उसी से प्रभावित होकर दिग्गज जी ने यह कविता या नज़्म जो कुछ भी यह थी उसे लिखा।
प्रोफेसर एन० एल० मोयात्रा के घर पर होने वाली मासिक हिन्दी-उर्दू की गंगा-जमनी काव्य गोष्ठी " बज़्मे मसीह" में दिग्गज जी हमेशा भाग लेते थे और खूब सराहे जाते थे।
परन्तु, इस सारे समय में वे जो डायरी अपने साथ लाते थे, उसमें जो कुछ भी उनकी हस्तलिपि में होता था, वो सब उर्दू में ही होता था।
इन कुछ महीनों के साथ के बाद मेरा उनसे ही क्या मुरादाबाद से ही साथ छूट गया, जब मैं मुरादाबाद से प्रस्थान कर गया। पर उन्हें और उनके साहित्य और अपनत्व को मैं कभी भूल नहीं पाऊंगा । इसी लिये चाहता हूं, वो एक बार फिर हमारे बीच लौट आएं और अपने क़लाम से हमें नवाज़ें !
मुख्य धारा के प्रसिद्ध कवि डा० हरिवंश राय बच्चन ने लिखा है कि अच्छा बाल साहित्य वह रच सकेगा जो बच्चा बन सके यानी बाल मन में प्रविष्ट हो सके। बाल साहित्य की इस कसौटी पर जो बाल कवि खरे उतरते है वे हैं 'दिग्गज' मुरादाबादी ।
'दिग्गज' जी को न केवल बाल मनोविज्ञान की गहरी समझ है बल्कि उनके मनोजगत या कल्पना जगत में भी गहरी पैठ है। वयस्क होने के बावजूद स्वयं 'दिग्गज' जी के भीतर बालपन अभी विद्यमान है।उनके भीतर का यह बालपन या बालक जब सक्रिय होता है तभी किसी अन्त: प्रेरणा के वशीभूत हो उनका बाल कवि वाला व्यक्तित्व भी सक्रिय हो जाता है। दरअसल, 'दिग्गज' मुरादाबादी स्वयं को बालकवि सिद्ध करने के लिए नहीं बल्कि बच्चों के कल्पना जगत में झांकने की कौतूहलता के कारण बालगीत या कविताएं रचने के लिए विवश होते हैं।
5 जनवरी सन् 1930 को जिला बुलन्दशहर की तहसील अनूपशहर में जन्मे 'दिग्गज' मुरादाबादी का वास्तविक नाम प्रकाशचन्द्र सक्सेना है। उनके पिता मुन्शी रामचन्द्र सहाय सक्सेना एक रियासत के दीवान थे। 'दिग्गज' जी ने काव्य शास्त्र का ज्ञान अपने समय के प्रसिद्ध शायर अब्र हसन गुन्नौरी से प्राप्त किया। 'दिग्गज' जी की उर्दू साहित्य पर भी गहरी पकड़ है और उन्होंने बाल कविताओं के अलावा बहुत से गीत, नज्म और गज़लें भी लिखी है। आध्यात्मिक रूझान के कारण दिग्गज जी ने 'सीता का अन्तर्द्वन्द' और 'करवा चौथ' शीर्षक से काव्य प्रबन्धों की रचना भी की है।
बाल कविताएं रचने की प्रेरणा 'दिग्गज' जी को प्रसिद्ध बाल कवि निरंकार देव 'सेवक' से प्राप्त हुई। यद्यपि सेवक जी से साक्षात्कार होने के पहले ही 'दिग्गज' जी बाल काव्य के क्षेत्र में निष्णात हो चुके थे तथा एक बाल कवि के रूप में ख्याति अर्जित कर चुके थे। तथापि 'सेवक' जी का सान्निध्य प्राप्त होने पर 'दिग्गज' जी को उनसे बाल काव्य की अनेक बारीकियां समझने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। सरसता, प्रवाहमयता और विलक्षण शब्द चयन के कारण 'दिग्गज' जी अपने समकालीन बाल कवियों से ही नहीं बल्कि अपने पूर्ववर्ती कवियों से भी श्रेष्ठतर जान पड़ते है तथापि वे विनम्रता पूर्वक अपने को निरंकार देव 'सेवक' का शिष्य स्वीकार करते है।
निरंकार 'देव' सेवक ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ 'बालगीत साहित्य' (इतिहास एवं समीक्षा) में 'दिग्गज' मुरादाबादी का उल्लेख बड़े आदर के साथ किया है 'सेवक' जी का यह ग्रन्थ आज बालगीत साहित्य के प्रामाणिक शोध ग्रन्थ के रूप में समादृत है और ऐसे ग्रन्थ में उल्लेख मात्र भी सचमुच किसी बाल कवि के लिए गौरव का विषय है। 'सेवक' जी ने 'दिग्गज' जी की बाल कविता 'दीवाली' का उल्लेख विशेष रूप से अपनी पुस्तक में किया है।
"लो फिर से दीवाली आई,
साथ अनेकों खुशियां लाई ।
खीलें और बताशे लाई,
बढ़िया खेल तमाशे लाई ।
छूट रही हैं आतिशबाजी,
सब प्रसन्न है सब है राजी ।
घर बाहर की हुई सफाई,
कहीं रंगाई कहीं पुताई ।
हर घर में पकवान बनें हैं,
बड़े बड़े सामान बने है ।
आज कहीं भी नही अंधेरा,
हुआ रात में दिन का फेरा ।
दीवाली की रात सुहानी,
है सारी रातों की रानी ।
'दिग्गज' जी की शब्दों और छंद पर गहरी पकड़ होने के कारण ही 'सेवक' जी ने यह टिप्पणी की है कि 'दिग्गज' जी को छंद में कहने की आदत सी बन गयी है। 'दिग्गज' जी की निर्विवाद काव्य प्रतिभा को सिद्ध करने के लिए यह टिप्पणी पर्याप्त है। सरल और छंदबद्ध होने के कारण उनकी बाल कविताओं / गीतों में अद्भुत गेयता है और बच्चे उन्हें सहज ही गुनगुना सकते है।
"दिग्गज' जी की बाल कविताएं बाल मनोभावों और संवेदना की अभिव्यक्ति साथ-साथ चित्रात्मकता की दृष्टि से भी अद्भुत है। दरअसल 'दिग्गज' जी बच्चों के मनोजगत से एक ऐसा अन्तवैयक्तिक तादात्म्य स्थापित करने में सफल रहते है कि उनकी बाल कविताएं / बालगीत, भाषा एवं शिल्प के स्तर पर भी अनोखे जान पड़ते है। 'दिग्गज' जी की बाल कविताओं में भाषा विषय के अनुरूप स्वयं को गढ़ती हुई चलती है। बालपन से उनका यह विलक्षण तादात्म्य या विशिष्ट भाषा शैली ही उन्हें समकालीन बाल कवियों से पृथक एक पहचान प्रदान करती है। विज्ञापन शैली में लिखी उनकी लोकप्रिय और लम्बी बालकविता "सरकस' की निम्न पंक्तियाँ दृष्टव्य है
ये तो थे जलथल के प्राणी,
आगे है इस तरह कहानी।
दस हाथी, बाईस घोड़े हैं।
सत्रह बाघों के जोड़े है।
पन्द्रह ऊँट, रीछ है ग्यारह,
बबर शेर हैं पूरे बारह ।
शुतरमुर्ग है अफ्रीका का
अड़ियल गैडा अमरीका का ।
कंगारू, जिराफ, जेबरा ।
मगरमच्छ, घड़ियाल कोबरा ।
'दिग्गज' जी ने बाल कवियों के परम्परागत और प्रिय विषयों के अलावा सोच के स्तर पर मौलिक एवं आधुनिक विषयों पर केन्द्रित बाल
कविताओं की रचना भी की है। उनकी कविता 'तारे' सचमुच बालकवि 'दिग्गज' के आधुनिक दृष्टिकोण का परिचय हमें कराती है।
ये असंख्य टिमटिमा रहे जो ।
तारे नभमण्डल में ।
ये धरती से भी विशाल हैं।
निज स्वरूप निज बल में।
किन्तु आज तक की खोजों में।
जीवन कहीं न पाया।
यह सुख यह अनुभव केवल ।
अपने हिस्से में आया।
'दिग्गज' जी ने छोटी बड़ी दो सौ से भी अधिक बाल कविताओं / बालगीतों की रचना की है। इनमें से अनेक का प्रकाशन बच्चों की प्रसिद्ध 'नंदन', 'बाल भारती' 'पराग' और 'सुमन सौरभ' सरीखी पत्रिकाओं में हो चुका है। बाल साहित्य में उनका स्थान हेंस क्रिश्चियन एंडरसन, इनिड ब्लाइटन या आर्कादी गाइदार जैसा भले ही न हो लेकिन वे हिन्दी के अप्रतिम बाल कवि तो है ही।
✍️ राजीव सक्सेना
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद की संस्था कलाभारती की ओर से रविवार 16 जुलाई 2023 को आयोजित साहित्य समागम कार्यक्रम में वरिष्ठ कवयित्री डॉ. प्रेमवती उपाध्याय को कलाश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। उपरोक्त सम्मान समारोह एवं काव्य-गोष्ठी का आयोजन मिलन विहार स्थित आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कॉलेज में हुआ। हेमा तिवारी भट्ट द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता बाबा संजीव आकांक्षी ने की। मुख्य अतिथि रामदत्त द्विवेदी एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में श्रीकृष्ण शुक्ल एवं डॉ. बृजपाल सिंह यादव उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन मयंक शर्मा ने किया।
सम्मानित साहित्यकार डॉ. प्रेमवती उपाध्याय का जीवन परिचय राजीव प्रखर तथा अर्पित मान-पत्र का वाचन डॉ. मनोज रस्तोगी ने किया। संयोजन राजीव प्रखर, ईशांत शर्मा ईशु एवं आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ का रहा। सम्मान स्वरूप डॉ. प्रेमवती उपाध्याय को अंग-वस्त्र, मान-पत्र एवं प्रतीक चिह्न अर्पित किए गये।
रचना-पाठ करते हुए डॉ. प्रेमवती उपाध्याय ने कहा -
"सुधा सिंधु से विष निकलेगा,
था हमको अनुमान नहीं।
वृथा जन्म यह होगा अपना,
यह हमको था भान नहीं।"
इसके अतिरिक्त रामदत्त द्विवेदी,श्रीकृष्ण शुक्ल, योगेन्द्र वर्मा व्योम, डॉ.मनोज रस्तोगी, रघुराज सिंह निश्चल, अशोक विद्रोही, मनोज मनु, हेमा तिवारी भट्ट, मयंक शर्मा, राजीव 'प्रखर', इंजी. राशिद हुसैन, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, अंनत मनु आदि ने भी काव्य पाठ किया | राजीव प्रखर द्वारा आभार अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा।