डॉ ममता सिंह लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
डॉ ममता सिंह लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 24 अगस्त 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार प्रो ममता सिंह की कुंडलिया...मेरा हिंदुस्तान, नये आयाम गढ़ेगा



झूमें नाचें गर्व से, बढ़ा देश का मान।

गया उतर ध्रुव दक्षिणी, मेरा हिंदुस्तान।।

मेरा हिंदुस्तान, नये आयाम गढ़ेगा।।

लिए तिरंगा हाथ, प्रगति की राह बढ़ेगा।

आगे भी हर लक्ष्य, सफलता से हम चूमें।

मिलजुल कर सब साथ, खुशी से नाचें झूमें।।


✍️ प्रो ममता सिंह

 मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


रविवार, 15 जनवरी 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार प्रो ममता सिंह को राष्ट्रीय संस्था आगमन ने शान-ए-अदब खिताब से नवाजा

 मुरादाबाद की साहित्यकार  प्रो ममता सिंह को राष्ट्रीय संस्था आगमन - एक खूबसूरत शुरुआत द्वारा शान-ए-अदब खिताब से  सम्मानित किया गया। उन्हें यह सम्मान दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी के अमीर खुसरो सभागार में रविवार 15 जनवरी 2023 को आयोजित "जश्न ए ग़ज़ल" कार्यक्रम में दिया गया। संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष और संस्थापक पवन जैन ने उन्हें सम्मान स्वरूप  प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिन्ह प्रदान किया।

     आयोजन में देश के विभिन्न हिस्सों से आए शायरों ने अपने कलाम पेश किए। अतिथियों के रूप में वरिष्ठ शायर लक्ष्मी शंकर बाजपेई जी, ममता किरण जी, कमला सिंह ज़ीनत , देव साध, ओमप्रकाश यति उपस्थित रहे।







मंगलवार, 10 जनवरी 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार प्रो ममता सिंह के विश्व हिन्दी दिवस पर चार दोहे ....


हर दिन हर पल पा रही, जग भर में विस्तार। 

कोना कोना कर रहा, अब हिंदी से प्यार।। 1।।


माँ की बोली सी लगे, छू ले मन के तार, 

खुले हृदय से सब करें, हिंदी को स्वीकार।। 2।।


हिंदी हिन्दुस्तान की, आन बान अरु शान। 

पूर्ण राष्ट्र भाषा बने, लो इसका संज्ञान।। 3।।


भारत का प्रतिबिम्ब है, जीवन का आधार। 

आओ सब मिलकर करें, हिंदी की जयकार।।4।।


✍️ प्रो.ममता सिंह

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

सोमवार, 1 अगस्त 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार प्रो. ममता सिंह का नवगीत ...….सोचें क्यों अन्जाम


हम वासी आज़ाद वतन के। 

सोचें क्यों अन्जाम।। 


नियम ताक पर रख कर सारे, 

वाहन तेज भगाएं। 

टकराने वाले हमसे फिर, 

अपनी खैर मनायें ।

सही राह दिखलाने की हर, 

कोशिश है नाकाम। 


चोला ओढ़े सच्चाई का, 

साथ झूठ का देते। 

गुपचुप अपनी बंजर जेबें, 

हरी-भरी कर लेते। 

हर मुद्दे का कुछ ही पल में, 

करते काम तमाम। 


सुर्खी में ही लिपटे रहना, 

हमको हरदम भाता। 

भूल गए मेहनत से भी है, 

अपना कोई नाता। 

जिसकी लाठी भैंस उसी की, 

जपते सुबहो-शाम।


✍️ प्रो ममता सिंह 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 30 जुलाई 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार प्रो ममता सिंह का नवगीत -----कठिन बहुत तुरपाई


उलझ न पाएं 'मैं' या 'तुम' में 

सम्बन्धों के तार।।


अपनेपन की चादर ताने,

बैठे कुछ अनजाने।

ऐसे में मुश्किल है कैसे

उनको फिर पहचाने।

बैठ बगल में छुप‌ कर करते,

जो मौके से वार।।


उधड़े रिश्तों की होती है,

कठिन बहुत तुरपाई।

जिसको अब तक समझा अपना

सनम वही हरजाई।

चंदन में लिपटे विषधर से

संभव कैसे प्यार।।


जिस माली ने पाला पोसा

उसने ही है तोड़ा।

साथ सदा देने वालों ने

बीच भंवर में छोड़ा।

ऐसे में निश्चित है अपनी

अपनों से ही हार।।


✍️ प्रो ममता सिंह

मुरादाबाद 

उत्तर प्रदेश, भारत


मंगलवार, 26 जुलाई 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार प्रो. ममता सिंह की पांच बाल कविताएं । इन्हीं कविताओं पर उन्हें साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से 16 जुलाई 2022 को आयोजित भव्य समारोह में बाल साहित्यकार सम्मान 2022 प्रदान किया गया था


(1) सूट बूट में बंदर मामा 

सूट बूट में बंदर मामा, 

फूले नहीं समाते हैं। 

देख देख कर शीशा फिर वह, 

खुद से ही शर्माते हैं।। 


काला चश्मा रखे नाक पर, 

देखो जी इतराते हैं। 

समझ रहे  वह खुद को हीरो, 

खों-खों कर के गाते हैं।। 


सेण्ट लगाकर खुशबू वाला, 

रोज घूमने जाते हैं। 

बंदरिया की ओर निहारें,

मन ही मन मुस्काते हैं।।


फिट रहने वाले ही उनको, 

बच्चों मेरे भाते हैं। 

इसीलिए तो बंदर मामा, 

केला चना चबाते हैं।। 


(2)  चिड़िया रानी 

दाना चुगने चिड़िया रानी, 

फुदक फुदक जब आती है। 

मेरी प्यारी छोटी गुड़िया, 

फूली नहीं समाती है।। 


थोड़ा सा ही दाना चुग कर, 

झट से वह उड़ जाती है।

फिट रखती है सदा स्वयं को, 

दवा कहाँ वह खाती है।। 


पढ़ने जाती कहीं नहीं है, 

फिर भी जल्दी उठती है। 

सर्दी बारिश या हो गर्मी, 

श्रम से कभी न ड़रती है।। 


तिनका तिनका जोड़ जोड़ कर, 

घर वह एक बनाती है। 

छोटी सी है पर बच्चों को, 

जीना ख़ूब सिखाती है।। 


(3)   मेरी पतंग ---

रंग बिरंगा काग़ज लाकर, 

एक पतंग बनाऊँगी। 

हिंदुस्तानी माँझे से माँ, 

उसको आज उड़ाऊँगी। 


तेज हवा के झोंके भी फिर, 

उसको रोक न पायेंगे। 

देख उड़ान गगन से ऊँची, 

दंग सभी रह जायेंगे।


धरती से पतंग अम्बर तक,

मेरी अब लहरायेगी। 

बात करेगी आसमान से, 

बार-बार इठलायेगी।


छू कर नील गगन को जब वह, 

लौट जमीं पर आयेगी  

उठना-गिरना ही जीवन है, 

सबक यही दे जायेगी। 


 ( 4)  तितली रानी - 

तितली रानी ज़रा बताओ, 

कौन देश से आती हो। 

रस पी कर फूलों का सारा, 

भला कहाँ छिप जाती हो। 


इधर उधर उड़ती रहती तुम, 

मन को बड़ा लुभाती हो। 

अपने सुन्दर पंखों पर तुम, 

लगता है इठलाती हो। 


सब फूलों पर बैठ बैठ कर,

अपनी कला दिखाती हो। 

पास मगर आने में सबके, 

तुम थोड़ा सकुचाती हो। 


पीले काले लाल बैंगनी, 

कितने रंग सजाती हो। 

मुझको तो लगता है ऐसा, 

होली रोज़ मनाती हो। 


(5)  बचपन की याद 

कहाँ खो गया प्यारा बचपन, 

मिल जाए यदि कहीं बताना। 

भूले बैठे हैं जो इसको, 

फिर से उनको याद दिलाना। 


गुड़िया गुड्ड़ों की शादी में, 

माँ का वह पकवान बनाना। 

और दोस्तों के संग मिल कर, 

सबका दावत खूब उड़ाना। 


बारिश के मौसम में अक्सर, 

कागज़ वाली नाव चलाना। 

सर्दी ज्वर हो जाने पर फिर, 

पापा जी का डाँट लगाना। 


कन्धों पर पापा के अपने, 

चढ़कर रोज सैर को जाना ।

नींद नहीं आने पर माँ का, 

लोरी फिर इक मीठी गाना। 


छोटी छोटी बातों पर भी, 

गुस्सा अपना बहुत दिखाना। 

बहुत प्यार से माँ का मेरी, 

आ कर फिर वह मुझे मनाना। 


रहीं नहीं पर अब वह बातें, 

देखो आया नया ज़माना। 

पर कितना मुश्किल है ’ममता’,

उस बचपन की याद भुलाना। 


✍️ प्रो. ममता सिंह 

गौर ग्रेशियस

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल नम्बर - 9759636060, 7818968577

रविवार, 24 जुलाई 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार प्रो ममता सिंह का गीत ....आभासी दुनिया ने बदला, जीने का ही सार


आज रंग में भौतिकता के,

डूब रहा संसार ।


सम्बन्धों में गरमाहट अब,

नज़र नहीं है आती 

आने वालो की छाया भी 

बहुत नहीं है भाती।

चटक रही दीवार प्रेम की, 

गिरने को तैयार।


होता खालीपन का सब कुछ, 

होकर भी आभास।

लगे एक ही छत के नीचे,

कोई नहीं है पास। 

आभासी दुनिया ने बदला,

जीने का ही सार ।


खुले आम सड़कों पर देखो, 

मौत कुलाचें भरती। 

बटुये की कै़दी मानवता, 

कहाँ उफ़्फ भी करती।

खड़ी सियासत सीना ताने,

बनकर पहरेदार। 


प्रो ममता सिंह

मुरादाबाद

गुरुवार, 17 मार्च 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ ममता सिंह के फागुनी दोहे ----चली हवा जब फागुनी, मोहक, मादक, मन्द। गोरी भी लिखने लगी, प्यार भरे फिर छन्द।।


चली हवा जब फागुनी, मोहक, मादक, मन्द। 

गोरी भी लिखने लगी, प्यार भरे फिर छन्द।।

जब बासन्ती रंग से, धरा करे श्रृंगार। 

भौंरें फिर करने लगे ,कलियों पर गुंजार ।।

मस्ती के त्यौहार पर, चढ़ जाये जब भंग। 

लगें नाचने झूम के , तब होली के रंग।।

होली का त्यौहार ये, मन में भरे उमंग। 

रोम रोम हर्षित करे, फागुन का ये संग।।

रंगों के इस पर्व पर, बाँटो जग में प्यार। 

खुशियों से झोली भरे, होली का त्यौहार।।

✍️ डाॅ ममता सिंह 

मुरादाबाद

शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ ममता सिंह का गीत ----मुन्नी जब तक भीतर अपने, डेरा कपट जमायेगा, तब तक सच है दंभी रावण, कहाँ भला मर पायेगा।


आज दशहरे पर मुन्नी ने, 

माँ से पूछा इक सवाल। 

पुतला रावण का क्यूँ हम सब, 

ये जलाते हैं हर साल। 


बड़े प्यार से माँ ने उस को, 

अपने क़रीब बैठाया। 

रावण एक प्रतीक मात्र है, 

मुन्नी को यह समझाया। 


मुन्नी जब तक भीतर अपने, 

डेरा कपट जमायेगा।

तब तक सच है दंभी रावण, 

कहाँ भला मर पायेगा।


तो आओ पहले मिल कर हम,  

मन को अपने साफ़ करें। 

और सच की तूलिका से फिर, 

अच्छाई के रंग भरे। 

✍️ डाॅ ममता सिंह 

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ ममता सिंह का गीत ----नये साल का आओ मिलकर, हम अभिनन्दन करते हैं


नये साल का आओ मिलकर, हम अभिनन्दन करते हैं। 

रोली, केसर, तिलक लगा कर, इसका वन्दन करते हैं।। 


सच्ची, मीठी वाणी बोले, नहीं किसी का बुरा करें। 

हर मुश्किल का करें सामना, अन्यायी से नहीं डरें। 

वैर भाव सब आज मिटा कर, मन को चन्दन करते हैं। 

रोली, केसर , तिलक लगा कर, इसका वन्दन करते हैं।। 


ऊँच -नीच सब भेदभाव का, आओ अब हम अन्त करें। 

सतरंगी कुछ फूल खिलाकर, आशाओं के रंग भरें। 

 बिखरा कर के छटा निराली , मन को उपवन करते हैं। 

रोली, केसर, तिलक लगा कर, इसका वन्दन करते हैं।। 


देखे हमने जो भी सपने, अब उनको साकार करें। 

देश प्रेम की अलख जगा कर, हर मन में विश्वास भरें। 

करे प्रगति ये देश हमारा, ऐसा चिन्तन करते हैं। 

रोली, केसर, तिलक लगा कर, इसका वन्दन करते हैं। 


नये साल का मिल कर आओ, हम अभिनन्दन करते हैं। 

रोली, केसर, तिलक लगा कर, इसका वन्दन करते हैं।। 


✍️ डाॅ ममता सिंह, मुरादाबाद

 

मंगलवार, 15 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ ममता सिंह की हिन्दी दिवस पर गजल ---हिन्दी भारत का गौरव और श्रृंगार है ....


ग़ज़ल -----

हिन्दी भारत का गौरव और श्रृंगार है।
पा रही जग में अब तो ये विस्तार है।।

रस अलंकार छन्दों से है ये सजी,
ये तो रसखान की मीठी रसधार है।।

पीर मीरा की इसमें समाई हुयी,
ये सुभद्रा औ' दिनकर की हुंकार है।।

जोड़ती है सभी के दिलों को तो ये,
हिन्दी भाषा नहीं प्राण आधार है।।

गर्व *ममता* हैं करते बहुत इस पे हम,
छू गई हिन्दी मन के सभी तार है।।

🎤✍️  डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद

शनिवार, 12 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ ममता सिंह की ग़ज़ल ----फिर हक़ीमों की उसको ज़रूरत कहाँ , हाल जो पूछ लें आप बीमार से ।


जूझ जाएंगे हम आज संसार से ।
प्यार के बोल दो ,बोल दो प्यार से॥

ज़िन्दगी आपकी जान भी आपकी ,
माँग लें आप चाहे जो अधिकार से॥

फिर हक़ीमों की उसको ज़रूरत कहाँ ,
हाल जो पूछ लें आप बीमार से ॥

फिर हमारे लिए ये भँवर कुछ नहीं ,
एक आवाज दें आप उस पार  से ॥

साथ "ममता " तो कैसी खुशी और ग़म ,
फ़र्क पड़ता है क्या जीत औ हार से॥

✍️ डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद

मंगलवार, 31 मार्च 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ ममता सिंह की गजल -- घर के अंदर ही रहो, निकलो कहीं न आप। बार बार ये कह रही, लोगों से सरकार।।



 मचा हुआ चहुँ ओर है , भीषण हाहाकार।
 झेल रहा सारा जगत , कोरोना की मार।।

घर के अंदर ही रहो, निकलो कहीं न आप।
बार बार ये कह रही, लोगों से सरकार।।

बाहर जाओ गर कभी, रखना खुद का ध्यान।
कहीं संक्रमण से नहीं , हो जाना बीमार।।

पालन दिल से हम करें, निर्देशों का रोज।
हो जायेगी कुंद तब , कोरोना की धार ।।

संकट की है ये घड़ी, मत खोना तुम होश।
दृढ़ निश्चय को धार कर, देना  इसको हार।।

कोरोना के कीट ने, जीना किया मुहाल।
चौपट इसने कर दिये, सारे कारोबार।।

इक दूजे से दूर से, ममता करनी बात ।
जीवन से बढ़ कर नहीं, कोई भी उपहार।।

डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 21 मार्च 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ ममता सिंह के कोरोना पर कुछ दोहे


अपने भी बचने लगे, आने से अब पास।
कोरोना से हो रहा, दूरी का आभास।।

कोरोना है ला रहा, यह कैसा बदलाव।
जीवन में आने लगा, देखो अब ठहराव।।

नित्य संक्रमण बढ़ रहा, कैसे हो पहचान।
कठिनाई में  डाल दी, कोरोना ने जान।।

घर बाहर है हर तरफ, कोरोना की बात।
अपनायें सब स्वच्छता, सम्भव तभी निजात।।

मिटा रहा है ज़िन्दगी, कोरोना का कोढ़।
मिल जुल कर ढूंढे सभी ,इसका कोई तोड़।।

डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

बुधवार, 18 मार्च 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ ममता सिंह की बाल कविता -- बचपन की यादें


कहाँ खो गया प्यारा बचपन,
मिल जाए यदि कहीं बताना।
भूले बैठे हैं जो इसको,
फिर से उनको याद दिलाना।

गुड़िया गुड्ड़ों की शादी में,
माँ का वह पकवान बनाना।
और दोस्तों के संग मिल कर,
सबका दावत खूब उड़ाना।

बारिश के मौसम में अक्सर,
कागज़ वाली नाव चलाना।
सर्दी ज्वर हो जाने पर फिर,
पापा जी का डाँट लगाना।

कन्धों पर पापा के अपने,
चढ़कर रोज सैर को जाना ।
नींद नहीं आने पर माँ का,
लोरी फिर इक मीठी गाना।

छोटी छोटी बातों पर भी,
गुस्सा अपना बहुत दिखाना।
बहुत प्यार से माँ का मेरी,
आ कर फिर वो मुझे मनाना।

रहीं नहीं पर अब वह बातें,
यह आया है नया ज़माना।
पर कितना मुश्किल है ममता,
उस बचपन की याद भुलाना।

डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत