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रविवार, 19 दिसंबर 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर के कहानी संग्रह 'क्योंकि- द सिनफुल बिकॉज़' का कार्तिकेय की ओर से आयोजित समारोह में विमोचन

मुरादाबाद की  साहित्यकार इला सागर के कहानी संग्रह 'क्योंकि- द सिनफुल बिकॉज़' का विमोचन सामाजिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक संस्था कार्तिकेय की ओर से रविवार 19 दिसम्बर 2021 को आयोजित समारोह में किया गया।

 मुरादाबाद के स्वतंत्रता सेनानी भवन में हुए समारोह का शुभारंभ मुख्य अतिथि अपर जिलाधिकारी नगर आलोक कुमार वर्मा तथा विशिष्ट अतिथि दीपक बाबू सीए द्वारा दीप प्रज्ज्वलन से हुआ।  मां सरस्वती वंदना दीपिका अग्रवाल और संतोष गुप्ता  ने प्रस्तुत की। संचालन करते हुए वरिष्ठ रंगकर्मी व राम लीला निर्देशक डॉ पंकज दर्पण अग्रवाल ने इला सागर की पुस्तक के सन्दर्भ में जानकारी दी। विशिष्ट अतिथि और कार्तिकेय संस्था के अध्यक्ष दीपक बाबू ने कहा कि कार्तिकेय संस्था का उद्देश्य  नवोदित प्रतिभाओं को आगे लाने का है। मुख्य अतिथि अपर जिलाधिकारी नगर आलोक कुमार वर्मा ने कहा कि साहित्य ही समाज का दर्पण होता है। साहित्य के द्वारा ही समाज मे अनेक प्रकार के सकारात्मक बदलाव सम्भव हैं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता महाराजा हरिश्चंद्र महाविद्यालय के प्रबंधक डॉ काव्य सौरभ रस्तोगी ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में मुम्बई से पधारे वरिष्ठ हिंदी सेवी एम एल गुप्ता, दयानन्द कॉलेज की प्राचार्या डॉ जौली गर्ग और गाज़ियाबाद में तैनात क्षेत्रीय वैज्ञानिक अधिकारी एस सी शर्मा ने भी सम्बोधित किया।

इस अवसर पर रश्मि प्रभाकर, मीनाक्षी ठाकुर, डॉ रीता सिंह, डॉ संगीता महेश, मयंक शर्मा, श्री कृष्ण शुक्ल आदि  ने काव्य पाठ किया।

समारोह में गोपाल हरि गुप्ता, अभय पाण्डेय, डॉ नीलू सिंह, सागर रस्तोगी, डॉ महेश दिवाकर, शिशुपाल सिंह मधुकर, डॉ शशि त्यागी, आवरण अग्रवाल, ईशांत शर्मा, राजीव प्रखर, शालिनी भारद्वाज , दुष्यंत बाबा, डॉ मनोज रस्तोगी, धवल दीक्षित, अम्बरीष गर्ग, अंजू अग्रवाल, शिव ओम वर्मा, संगीता महेश, स्वदेश कुमारी, रति रस्तौगी  आदि विशेष रूप से उपस्थित रहे। इला सागर ने आभार व्यक्त किया।




























::::::प्रस्तुति:::::::

डॉ पंकज दर्पण अग्रवाल

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

गुरुवार, 3 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर रस्तोगी की लघुकथा ----- मानवता


"गुडमार्निग$$$$........ टीचर$$$.........." क्लास फर्स्ट के छोटे छोटे बच्चे एक मधुर संगीत की तरह गुडमार्निग गाते हुए बोले।
"गुडमार्निग बच्चों सिट डाउन। मैं जिन जिन बच्चो का नाम ले रही हूँ वो खड़े हो जाए। आशि, अर्नव, रुद्धव, राघव, सारिका, मिष्टी और मेधावी आप सभी की दो महीने की फीस पैडिंग हैं। एक तो इतने टाइम बाद स्कूल खुले हैं उसपर आपलोग ने पूरे दो महीने से फीस नहीं जमा करी। अब जबतक फीस जमा नहीं होगी आप हर पीरियड में कान पकड़कर क्लास के बाहर खड़े रहेंगे।" सभी बच्चे कान पकड़कर क्लास के बाहर खड़े रहे।
आशि रोते रोते घर पहुंची। वहां उसने देखा कि उसका छोटा भाई सफेद चादर में लिपटा जमीन पर लेटा हुआ था और माँ पापा का रो रोकर बुरा हाल था।
पड़ोस की एक आंटी दूसरी आंटी को बता रही थी "पैसे नहीं बचे इसीलिए टायफॉयड का इलाज नहीं करा सके और .......अपने नन्हे से बच्चे को खो दिया।"
अगले दिन आशि को छोड़ सभी बच्चों की फीस जमा हो गई। क्लासटीचर क्लास में आयी और फीस न जमा होने की वजह से फिर से आशि को पूरे टाइम क्लास के बाहर कान पकड़कर खड़े रहने को कहा।
आशि की नन्ही आखों से बहते आँसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उधर टीचर ने चैप्टर फाइव जिसका टाइटिल था "मानवता", बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया।

✍️ इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद

शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर रस्तोगी की लघुकथा ----असंतुलन


"इतना क्यों दुखी होती हो भाभी इतना क्यों रो रही हो?" ध्वनि ने भाभी को सांत्वना देते हुए चुप कराने की कोशिश करते हुए कहा।
भाभी ने सिसकियां भरते हुए उत्तर दिया "ध्वनि अब मैं थक गयी हूँ यह सब करते अब और नहीं किया जाता। महीने भर उन अच्छे दिनों का इंतजार फिर कोशिश करने के बाद वजन मत उठाओ, ज्यादा दौड़ो मत, गर्म चीजें मत खाओ, क्या पता इस बार ईश्वर सुन ही ले और फिर टैस्ट किट का प्रयोग और फिर नेगेटिव रिजल्ट फिर भी यही उम्मीद होती है कि शायद किट गलत हो या फलाना हार्मोन अभी अच्छी मात्रा में बने नहीं और फिर उन दिनों का आ जाना और अंत में मेरा बिलखते रोना, किस्मत को कोसना और फिर शुरू होती है एक नई साइकिल। पिछले दस साल से यही तो कर रही हूँ ध्वनि मैं पर अब थक गई । कितना कहा मैने इनसे कि बस अब मुझसे डॉक्टरों के चक्कर नहीं लगाए जाते पर ये भी मजबूर हैं। बच्चा तो चाहिए ही न।"
ध्वनि ने भाभी को गिलास से पानी पिलाते हुए कहा "दुखी मत हो भाभी ईश्वर के घर देर है अन्धेर नहीं। लो आप टीवी देखो मन बदलेगा।"
चैनल लगाते समय ध्वनि ने गलती से न्यूज चैनल लगा दिया। उसपर आती एक खबर ने दोनों का ध्यान आकर्षित किया। खबर में दिखा रहे थे कि किस प्रकार किसी नृशंस मानव ने नवजात जुड़वा बच्चियों को कूड़े के डिब्बे में मरने के लिए डाल दिया।
ध्वनि समझ नहीं पा रही थी कि इस खबर को देखने के बाद अपनी रोती हुई भाभी को वह अब क्या सांत्वना दे चुप कराए।

✍️ इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद

शनिवार, 15 अगस्त 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर रस्तोगी की कहानी--------गरीब क्या मनुष्य नहीं?


चौराहे के पास वो लड़की अकेले बैठी भीख मांग रही थी। उसके पास रखे कटोरे में जो आता वो कुछ न कुछ रेजगारी डाल देता था। लेकिन हाँ वो कुछ बोलती नहीं चुपचाप बैठी भीख मांगती रहती थी। शायद मानसिक रूप से विकलांग थी, ज्यादा बोल भी नहीं पाती थी जितना बोलती उसमें भी हकलाती, इसीलिए साथ वाले भिखारी उसे बावली कहते थे। रीना भी अक्सर उस चौराहे से गुजरती तो कुछ न कुछ उसके कटोरे में रख देती थी।
लेकिन एक महीने से रीना को वो तथाकथित बावली कहीं दिखाई नहीं दी। रीना की नजरें उसके बैठने के ठिकाने पे ही रहती थी।
तीन महीने हो गए तो भी वो दिखाई नहीं दी, रीना ने सोचा शायद अब उसका ठिकाना बदल गया हो।
कुछ समय बाद अचानक अखबार में एक खबर देख रीना अवाक रह गई। अखबार में छपा था कि भीख मांगने वाली एक मंदबुद्धि लड़की के साथ जानवरों से भी बदतर रूप से बलात्कार किया गया। जिस अस्पताल में उसे भर्ती किया गया वहां के किसी स्टाफ ने रात में सुनसान होने का फायदा उठा पुनः उसका बालात्कार कर उसका ऑक्सीजन पाइप हटा दिया जिस कारण उसकी मृत्यु हो गयी। साथ में छपी तथाकथित बावली की फोटो देख रीना की आँखों से आंसुओं की कुछ बूंदें लुढ़क पढ़ी।
रीना को उन मनुष्य रूपी हैवानों की नृशंसता पर क्रोध भी आ रहा था तथा उम्मीद भी थी कि उसके गुनहगारों को सजा जरूर मिलेगी।
लेकिन पन्द्रह दिन बाद फिर अखबार में खबर छपी कि गवाह न होने के कारण केस बन्द कर दिया गया।
रीना इस उम्मीद में रोज नियमानुसार अखबार खंगालती कि शायद कोई समाजसेवी संगठन या कोई कैंडिल मार्च बावली के दबे केस को फिर से उजागर करेगा लेकिन अब धीरे धीरे रीना की उम्मीद टूटने लगी।
अभी इस वाकये को कुछ समय ही बीता होगा कि एक दिन रीना अखबार में छपी एक खबर देखकर फिर अचंभित हो गई। उसमें लिखा था कि एक हाई प्रोफाइल ड्रग एडिक्ट लड़की के बालात्कारी को सजा दिलाने के लिए कई समाजसेवी संठगन आगे आए तो कई जगह कैंडिल मार्च निकाली गई।

इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद

बुधवार, 1 जुलाई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर रस्तोगी की लघुकथा ------नियुक्ति

 
        बेटे अरविन्द को सरकारी नौकरी नहीं मिल पाने के कारण मोहन बहुत परेशान था। वह सोचता कि स्वयं सरकारी ऑफिस में बाबू होने पर भी अपने बेटे के लिए कुछ नहीं कर पाता। करता भी कैसे जनरल क्लास का जो ठहरा और पगार भी इतनी नहीं थी कि रिश्वत दे सके व न ही अरविन्द इतनी तीक्ष्णबुद्धि का था कि सर्वोत्तम अंक ला सके। वह अरविन्द को दुकान खुलवाने की सोचने लगा परन्तु सरकारी नौकरी के बिना न मान सम्मान मिलेगा न ही अच्छे घर की लड़की वह यह भी भलीभांति जानता था। यही सब सोचते हुए वह अखबार के पन्ने पलट रहा था कि तभी उसकी नजर एक खबर पर पड़ी। "पिता की मृत्यु हो जाने के कारण बेटे को पिता के पद पर नियुक्त किया गया।"
कुर्सी से उठ वह सीधा रेलवे ट्रैक की ओर गया, तेजी से उसकी ओर आती ट्रेन का जोरदार हॉर्न भी उसका इरादा नहीं बदल सका। उसकी आँखें आंसुओं से भीगी थी पर उम्मीद की एक किरण जगमगा रही थी।

 ✍️इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद

बुधवार, 24 जून 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर रस्तोगी की लघुकथा ------संवेदना


"आह आज क्या शानदार खुशबू आ रही ही जरूर कुछ स्वादिष्ट बना है।" खाने की मेज पर बैठते मुकेश ने पत्नी मीना से पूछा।
मीना ने उत्तर दिया "हाँ जी, आज बटर चिकन बनाया है।"
मुकेश ने कहा "बहुत बढ़िया। अच्छा जरा समाचार खोल दो और प्लेट लगा दो।"
इस दौरान टीवी पर खबर दिखाई जा रही थी कि कैसे एक गर्भवती हथिनी को गांव के कुछ लोगों ने बारूद से भरा अन्नास खिला दिया। जिससे वह हथिनी दर्द से तड़पते हुए मृत्यु को प्राप्त हुई।
थाली मे रखे बटर चिकन को निपटाकर और बटर चिकन मांगते हुए मुकेश ने कहा "कितने निर्दयी एवं स्वार्थी लोग हैं। बेवजह ही एक मासूम जानवर की जान ले ली। मारा भी तो कितने निर्दयी तरीके से। छी है ऐसे लोगों पर ये मनुष्य नहीं दानव हैं दानव।"

✍️ इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद

बुधवार, 17 जून 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर रस्तोगी की लघुकथा ----अर्ध सत्य


          "सर समझ नहीं आ रहा कि लगातार बढ़ने कोरोनावायरस से ग्रसित हुए पॉजिटिव केसों को कैसे घटाया जा सकता है?" अश्विन ने अपने सीनियर प्रशासनिक अफसर से पूछा।
राघव ने उत्तर दिया "देखिए यदि बाल अधिक टूट रहे हो और कंघी करने से बाल और अधिक टूटकर कंघी में आ जाते हो इसका सबसे सरल उपाय है कि कंघी करना ही कम कर दिए जाए अर्थात दो-तीन दिन में एक बार ही कंघी करें तो इससे बालों का टूटना अपने आप ही कम परिलक्षित होगा। जिस प्रकार लोग होटल, सिनेमाहॉल और स्कूल खुलने की जल्दी में है उसके अनुसार तो यह बीमारी एक दम से कम होने वाली नहीं यह तो केवल ऐसे ही कम हो सकती है कि इससे संबंधित परीक्षण ही कम कर दिया जाए, परीक्षण कम होंगे तो कम पॉजिटिव केस ही सामने आएंगे।"
        उत्तर सुनकर सब अवाक रह गए
       
 ✍️ इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद 244001

बुधवार, 10 जून 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर रस्तोगी की कहानी ------- पिता की परवरिश


"मिस्टर मुकेश आपका बेटा अंश सभी बच्चों से लड़ता है उन्हें बुरी तरह से मारता पीटता है। यह देखिए इस बच्चे के हाथ में कितनी चोट आई है...." मैडम इशिता ने घायल बच्चे का हाथ दिखाते हुए कहा।
मुकेश ने बच्चे के चोट देखते हुए कहा "वाकई में मैडम घाव तो गहरा है लेकिन विश्वास कीजिए अंश जानबूझकर कभी ऐसा नहीं करेगा। अवश्य ही किसी बात पर दोनों बच्चों में झगड़ा हुआ होगा वरना अंश ऐसे किसी को कभी भी चोट नहीं पहुंचा सकता ।"
मैडम ने झुंझलाते हुए उत्तर दिया "जब आपसे अपना बच्चा संभाला नहीं जाता तो आप इसे हॉस्टल में क्यों नहीं छोड़ देते। वहां रहेगा तो कम से कम कुछ तो सीखेगा। केवल पढ़ाई में अव्वल अंक लाना ही सबकुछ नहीं होता डिसिपिलीन भी अत्यधिक आवश्यक है। आपसे अपना बच्चा नहीं संभाला जा रहा और आप दूसरे बच्चों पर झगड़ा करने का आरोप लगा रहे हैं। बिना माँ के पलने वाले बच्चे ऐसे ही होते है उनमें न भावनाएं होती हैं व न ही संस्कार। "
मुकेश ने मैडम की आखों से आंखें मिलाकर कहा "मैडम मेरा बच्चा मेरे लिए मेरा जीवन है, मैं इसे बोर्डिग स्कूल कभी नहीं भेजूंगा। इसकी माँ के जाने के बाद मैंने ढेरों रिश्ते आने पर भी दोबारा शादी नहीं करी क्योंकि मैं इसे कभी दुखी नहीं देख सकता। मैने इसकी परवरिश स्वयं की है और मुझे पूर्ण विश्वास है कि बिना किसी कारण के मेरा अंश किसी को चोट नहीं पहुंचा सकता।
और आप यह देखिए अंश के गले में नाखून के जो निशान हैं क्या मैं आपसे उसका कारण जान सकता हूं?"
इस बात पर मैडम थोड़ा घबरा गई।
तभी मेज पर रखा फोन रिंग किया। दूसरी तरफ से प्रिंसिपल ऑफिस से चपरासी बोल रहा था। उसने इशिता मैडम, मुकेश एवं दोनों बच्चों को ऑफिस में बुलाया। सभी प्रिंसिपल ऑफिस में पहुंचे।
प्रिंसिपल मिस्टर द्विवेदी ने मैडम इशिता से कहा "आपके और मिस्टर मुकेश के मध्य हुआ वार्तालाप मैने कैमरे पर सुना तथा मुझे बहुत दुख हुआ कि आपने पेरेंट से इतने रुखे तरीके से बात करी यह सरासर डिसिपिलीन के खिलाफ है।"
मिस्टर मुकेश से क्षमायाचना करते हुए प्रिंसिपल सर ने कहा "मैं अपने स्टाफ के इस रुखे रवैये के लिए आपसे क्षमा याचना करता हूं। मैं समझ सकता हूं कि कोई भी बच्चा बिना कारण कभी कुछ गलत नहीं करता। और अंश तो हमारे स्कूल का सबसे होनहार एवं समझदार स्टूडेंट है मुझे लगता है कि हमें अंश से ही इस घटना का कारण पूछना चाहिए।"
जब प्रिंसिपल ने अंश से इस घटना का कारण पूछा तो पहले वह घबरा गया लेकिन फिर हिम्मत करके उत्तर दिया "आक्रोश और उसके दोस्तों ने मिलकर मुझे बोला कि मैं और मेरे पापा बहुत बुरे हैं इसीलिए मेरी मम्मी हमसे परेशान होकर हमें छोड़कर चली गई। मैंने कहा भी कि नहीं, मेरे पापा बहुत अच्छे है, मम्मी को बहुत सारे काम थे वो इसीलिए गईं। इतना कहते ही सभी ने मुझे घेर लिया और बोला कि मेरी मम्मी भगौड़ी है और मेरे पापा राक्षस हैं। मैंने मना भी किया कि न बोलें तो आक्रोश ने मेरा गला दबाया। मैं चिल्लाया तो बाकी सब बच्चे भाग गए। लेकिन आक्रोश रुका नहीं इसीलिए मैंने खुद को छुडाने के लिए उसे धक्का दिया और वो पीछे खड़ी मोटरबाइक से टकरा गया। बाइक उसपे गिर गई और उसका साइलेन्सर बहुत गर्म था । जब आक्रोश को चोट लगी और वो जोरों से रोने लगा तो मैं दौड़कर टीचर को बुला लाया।"
अंश की आखों से आंसुओं की धारा बह निकली और वो पापा से बोला "पापा मैंने कुछ नहीं किया मैंने किसी को चोट नहीं पहुंचाई। पापा मम्मी से कह दो न कि वापस आ जाए देखो सब मुझे कितना परेशान करते हैं। पापा मेरी चोट नहीं दिखी मैम को और उन्होंने मुझे पूरी क्लास के सामने डांटा और बहुत बहुत बुरा बोला किसी ने भी आक्रोश से कुछ नहीं कहा, किसी ने मेरी चोट पर दवाई भी नहीं लगाई बहुत दर्द हो रहा है पापा आक्रोश ने बहुत जोर से नाखून मारे हैं। पापा देखो कितना खून बह रहा है। पापा मम्मी को बुला लाओ न अगर वो साथ होती तो कोई ऐसा नहीं बोलता। पापा मैं इतना ही बुरा हूँ कि मम्मी मुझे छोड़कर चली गई। उनसे कह दो कि वापस आ जाए मैं कभी उन्हें परेशान नहीं करूंगा।"
अंश की बात सुनते सुनते ऑफिस में उपस्थित सभी लोगों की आंखें आंसुओं से भर गई। प्रिंसिपल सर ने इशिता मैडम की ओर प्रश्नसूचक नजरों से देखा। मैडम की आँखें तो खुद अपनी इस भारी भूल पर शर्म से झुक चुकी थी।
प्रिंसिपल सर ने दराज से फर्स्ट एड बॉक्स निकालकर अंश के चोट की मरहमपट्टी करते हुए कहा "नहीं बेटा तुम बहुत अच्छे और समझदार। और एक बात बताओ जब तुम्हारा दिल इतना अच्छा है और तुम्हारे पास इतने अच्छे पापा है तो तुम मम्मी को क्यों याद करते हो? तुम इतने प्यारे हो कि तुम्हारी मम्मी ने तुम्हें छोड़कर जाकर बहुत बड़ी गलती की है। लेकिन तुम अपने सर को प्रॉमिस करो कि हमेशा ऐसे ही अच्छे बच्चे बनकर रहोगे, बहुत अच्छे नंबर भी लाओगे और लड़ाई भी नहीं करोगे।"
अंश ने उत्तर दिया "लेकिन सर मैं तो यह प्रॉमिस पहले ही पापा से कर चुका हूं कि मैं कभी भी लड़ाई नहीं करूंगा और हमेशा अच्छा बच्चा बन कर रहूंगा। आप कह रहे हो तो आपसे भी कर देता हूं।"
प्रिंसिपल सर ने अंश की पीठ थपथपाते हुए कहा "वेरी गुड बेटा तुम बहुत समझदार हो........." और उसे एक बड़ी सी चॉकलेट दी।
प्रिंसिपल सर ने मुकेश से टीचर के बेरुखी बर्ताव के लिए फिर से माफी मांगी और आश्वासन दिया आगे से ऐसा नहीं होगा। साथ ही हिम्मत बढ़ाते हुए यह भी कहा "आपका बच्चा पढ़ाई में बहुत अच्छा है साथ ही व्यवहारकुशल एवं समझदार भी है। आपने अपने बच्चे में बहुत अच्छे संस्कार गढ़े हैं। यह अवश्य ही एक दिन आपका नाम रोशन करेगा।"
प्रिंसिपल सर के मुंह से आश्वासनभरे शब्द सुन मुकेश को गर्व महसूस हुआ। उसके मन में ये विचार पनपने शुरू हो गए थे कि उसकी पत्नी मीना ने उसे तलाक दे अपने दोस्त अविनाश से पुर्नविवाह किया इसमें भी शायद उसी की गलती होगी। शायद उसी ने अपनी पत्नी का ध्यान ढ़ग से नही रखा होगा तभी वो अपने दूसरे बच्चे का अबारशन करा, ढ़ाई साल के अंश को और उसे दोनों को ही अकेला छोड़ गई। लेकिन अंश के द्वारा अपना पक्ष रखने तथा प्रिंसिपल सर द्वारा प्रशंसा एवं हौसलाअफजाई से उसे महसूस हुआ कि वो गलत नही है, जो वास्तविक रूप से गलत थी वो केवल मीना थी।

✍️ इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद

सोमवार, 11 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर रस्तोगी की कविता------ ईश्वर का वरदान है मां


ममता और वात्सल्य की
पवित्र दिव्य मूरत
अपनी संतान के लिए
माँ है सबसे खूबसूरत ।
प्रेम, स्नेह से परिपूर्ण,
ईश्वर की कृत सर्वश्रेष्ठ रचना
सर्वप्रथम गुरुकुल,
सर्वप्रथम गुरु,
माँ है हर कार्य में निपुण।
माँ सा समर्पण संभव नहीं
संतान के लिए ही जीती माँ
त्याग माँ के समान
कोई कर सकता नहीं।
सर्वशक्तिशाली माँ खड़ी विरुद्ध
ढ़ाल बन संतान की ओर
आती हर मुश्किलों के ।
माँ तो है वो पावन धरा
जो खुद होकर बंजर
करती सर्वश्रेष्ठ पोषण
प्रत्येक संतान का।
मार्गदर्शन करती संतान का
एक सफल जीवन की ओर ।
कच्ची मिट्टी सी संतान को
देती रूप एक भले मानव का ।
माँ की व्याख्या कर सके
ताकत नहीं किसी कलम में ।
जीवन की तपिश में
अपनी शीतल छाया देती माँ।
मेरे सर्वस्व की पहचान है माँ
ईश्वर का वरदान है माँ।

 ✍️  इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश

गुरुवार, 7 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर रस्तोगी की कहानी ------ अनुचित शर्त


"क्या कह रही हो मम्मी आप अजय के घरवाले चाहते है कि मैं कौमार्य परीक्षण कराऊं.........." अंकिता भर्राती आवाज में बोली।
अंकिता की माँ मीना ने समझाते हुए कहा "करा ले न बिटिया क्या जाता है इसमें तेरा। देख हम तो जानते ही हैं कि तू पवित्र है पर अजय के घरवालों का भी तो विश्वास करना आवश्यक है।"
अंकिता ने मां की ओर उम्मीदभरी नजरों से देखते हुए पूछा "क्या अजय भी.........?"
 मां ने उत्तर दिया "हाँ बिटिया, अजय भी यही चाहता है।"
अंकिता ने अगला प्रश्न किया "लेकिन हर संभव जगह से तो उन्होंने मेरी इन्क्वायरी निकलवाई ही ली, चाहें आफिस हो या घर या पीजी, फिर भी विश्वास नहीं हुआ।"
तभी अंकिता के पिताजी आनंद कमरे में प्रवेश करते हुए बोले "बिटिया मुझे भी बुरा लगा सुनकर और मेरा मन किया कि मैं उन्हें रिश्ते से ही मना कर दूं परंतु यदि अगला और उसके अगला रिश्ता भी यह शर्त रखेंगे तो......?"
मीना बोली "बिटिया यह समाज ही ऐसा है जहां सती सी सीता को भी न जाने कितनी ही परीक्षायें देनी पड़ी थी जबतक वो पृथ्वी की गोद में न समा गईं। तू तो फिर भी बस एक मानव है.......कहते कहते मीना दुखी हो उठी।"
अंकिता ने उत्तर दिया "ठीक है मम्मी पापा मैं तैयार हूं।"
कौमार्य परीक्षण का परिणाम आशानुसार सही आया। धूमधाम से अंकिता और अजय का विवाह भी हो गया। परंतु अब अंकिता को नौकरी जारी रखने की आज्ञा नहीं थी।
विवाह के फोटोज़ देखते हुए अजय अपनी महिला मित्रों का इन्ट्रोडक्शन बता रहा था। तब अंकिता ने भी अपने महिला एवं पुरुष सहकर्मियों का इन्ट्रोडक्शन कराया तो अजय क्रोध से लाल होता बोला "बड़े शहर में अकेले रहकर नौकरी करती थी, घर से अलग पीजी में रहती थी, ऑफिस में न जाने कितने ही पुरुष सहकर्मी थे और कहती हो तुम पवित्र हो। वो तो मैंने शादी कर ली वरना तुम जैसी आवारा लङकी से कौन शादी करता।"
और अब अंकिता को अपनी हर छोटी बड़ी गलती पर यह ताना अवश्य ही सुनने को मिलता था।
एक वर्ष पश्चात अजय की छोटी बहन अनीता के रिश्ते की बात शुरू हो गई। वह दिल्ली शहर में रहकर नौकरी करती थी। जिसके साथ वो लिव-इन रिलेशन में पाँच वर्षों से थी उसने शादी का प्रस्ताव ठुकरा दिया था।
एक बहुत अच्छे एवं सम्भ्रान्त घर के लङके वालों ने उसे पसन्द कर लिया परन्तु कौमार्य परीक्षण की शर्त रख दी गई थी। सभी जानते थे कि अनीता तो इस परीक्षण में अवश्य ही फेल हो जाएगी अतः उन्होंने इस परीक्षण को
अत्याचारपूर्ण अनुचित शर्त की संज्ञा दे दी।
अजय बोला "मेरी बहन कोई सीता नहीं है जो उसे बार-बार परीक्षाओं से गुजरना पड़े। हमें उस पर पूरा विश्वास है और आपकी यह शर्त हमें बिल्कुल मंजूर नहीं है। आप रहने दीजिए मैं अपनी बहन के लिए दूसरा और अच्छा वर ढूंंढ लूंगा।"
वह दृष्टांत समक्ष घटते देखकर अंकिता सोच रही थी कि क्या यह वही अजय है जिसने स्वयं उसके लिए कौमार्य परीक्षण की शर्त रखी थी।


✍️  इला सागर रस्तोगी
 मुरादाबाद 244001
 मोबाइल फोन नंबर -- 7417925477

गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर की कहानी ----- गांव कोर


      शालिनी ने स्तब्ध होकर पूछा "क्या गांवकोर जैसी कुप्रथा आज के समय में भी चलन में है?"
महिमा ने उत्तर दिया "हां शालिनी, कम से कम हमारे गांव में तो यह चलन में है। तुम तो बचपन में ही पढ़ने लिखने के लिए शहर चली गई और एक वकील बन गई, लेकिन हम सबकी ऐसी किस्मत कहाँ ? हम सब तुम्हें बहुत याद करते थे, काकी काका तो तुमसे शहर मिलने आ जाते थे लेकिन हम तो पहली बार मिल रहे हैं। तुमने तो वास्तव में तरक्की कर ली सोच में भी और शिक्षा में भी लेकिन इस गांव के लोगों ने जरा भी तरक्की नहीं करी, सब ज्यों के त्यों ही है। पुरानी कुप्रथाओं से इस प्रकार बंधे हुए हैं जैसे कि छूटना ही नहीं चाहते हो।"
शालिनी ने पूछा "महिमा तुम मुझे ले जा सकती हो गांवकोर पर? मैंने नाम तो सुना है लेकिन कभी देखा नहीं है।"
महिमा शालिनी को अपने साथ गांवकोर की तरफ ले गई।
गांव के आखिरी छोर पर एकदम सुनसान एवं वीराने में एक छोटी सी झोपड़ी थी। दोनों ने अंदर प्रवेश करा तो वह खाली थी। तभी बास के डंडों से बने बाथरूम पर जिस पर पर्दा ढका हुआ था, उसे हटाकर एक लड़की कराहते हुए बाहर निकली।
उसने शालिनी को देखते ही पहचान लिया और बोली "अरे शालिनी तू यहां कैसे? तू तो बिल्कुल वैसी ही लग रही है जैसे बचपन में लगती थी, बस थोड़ी लंबी हो गई तुझे क्या महावारी हो रही है जो तू इस झोपड़ी में आई है?"
शालिनी ने उत्तर दिया "नहीं महावारी तो नहीं हो रही निलीमा बस मैं किसी काम से यहां पास में आई थी तो मांबाबा और सबसे मिलने आ गई।"
उसने आगे पूछा "लेकिन तुम यहां क्या कर रही हो?
नीलिमा ने उत्तर दिया "मेरा मासिक धर्म चल रहा है इसलिए हर महीने पांच दिन मैं यही रहती हूं। वरना कभी-कभी इसके धब्बे कपड़े में से रिसकर फैल जाते हैं फिर साफ भी नहीं हो पाते और बदबू भी बहुत हो जाती है।"
शालिनी ने पूछा "तुम कपड़ा इस्तेमाल करती हो लेकिन कपड़े से इन्फेक्शन होने का खतरा रहता है, जिससे सर्वाइकल कैंसर का डर बना रहता है। तुम लोग यहां इतने सुनसान में रहती हो, तुम्हें जंगली जानवरों, सांप, बिच्छू का डर नहीं लगता? यहां तो मुझे बिस्तर भी नहीं दिखाई दे रहा, तुम जमीन पर सो कैसे लेती हो वह भी इस अवस्था में। तुम्हारे खाने पानी का इंतजाम कैसे होता है? बरहाल तुम इस अवस्था में रहती ही क्यों हो मना क्यों नहीं करती?
महिमा ने बोला "दरअसल इसका उत्तर यह नहीं दे पाएगी मैं देती हूं। क्योंकि यह इस गांव का रिवाज है कि मासिक धर्म के दौरान लड़की को चाहे वह कुंवारी हो या फिर
शादीशुदा गांवकोर में ही रहना पड़ता है। घर से उबला हुआ खाना, पानी के साथ आ जाता है तो वही खाना होता है और आजकल के जमाने में जहां इंसान शैतान बन चुका है वहां जानवर से क्या डरना? अभी कुछ दिन पहले सांप के काटने के कारण एक लड़की की मृत्यु हो गई लेकिन यह इतना भयावह नहीं था जितना कि कुछ माह पहले एक लड़की को माहवारी के दौरान बलात्कार करके मार दिया गया और उसके तन पर कपड़ा भी नहीं ढका।"
शालिनी ने कहा "मतलब इतना सब होने पर भी तुम लोग को गांवकोर में रहने आ जाते हो। गांव से इतना दूर सुनसान में गांवकोर बनाने की जरूरत ही क्या है?
महिमा ने आगे कहा "चलो शालिनी, इन सब चीजों में तुम मत पड़ो तुम शहर की हो वहां का आनंद लो हम गांव में ऐसे ही ठीक है, अब चलो बहुत देर हो रही है काका काकी घर पर इंतजार कर रहे होंगे।"
शालिनी घर तो वापस आ गई लेकिन उस गांवकोर का दृश्य उसके मस्तिष्क में लगातार घूम रहा था। वो बस यह कारण जानने को उत्सुक थी कि आखिर क्यों इतनी मुश्किलों के बावजूद एक स्त्री गावकोर में रहने को मजबूर है।
यह प्रश्न शालिनी को लगातार परेशान किए जा रहा था। अंततः वो अपनी दादी के पास प्रश्न के उत्तर की तलाश में गई। दादी कमरे में शालिनी की मां ममता के साथ बैठकर गेहूं बीन रही थीं। शालिनी ने कमरे में प्रवेश किया और चुपचाप कुर्सी पर बैठ गई। बैठे बैठे वह गहरी सोच में डूब गई और सोच में डूबे डूबे वो गेहूं को एकटक निहार रही थीं। उसे इस प्रकार ख्यालों में खोया देख दादी तो समझ गई थी कि वो किसी गहन चिन्तन में है।
उन्होंने शालिनी को झकझोरते हुए मजाकिया तंज मे पूछा "क्या बात शालू तूने कभी गेहूं नहीं देखे जो इन्हें ऐसे घूरे जा रही है?"
दादी की बात पर शालिनी का ध्यान भंग हुआ तो वो बोली "वो दादी..... दरअसल..... कुछ पूछना था।"
दादी बोली "हाँ तो पूछ न बिटिया क्या पूछना है ? "
शालिनी ने प्रश्न किया "दादी दरअसल मैं गांवकोर के बारे में पूछना चाहती हूँ ? आखिर आज के समय में गांवकोर की क्या आवश्यकता है? इतनी मुश्किले झेलते हुए भी लड़कियां व महिलाए वहां जाने को क्यों मजबूर हैं?" दादी ने शालिनी की बात का उत्तर देते हुए कहा "शालू जो प्रश्न तू आज उठा रही है यह मैं काफी बार उठा चुकी हूं और मैंने बदलाव लाने की कोशिश भी करी लेकिन असफल रही। और इसका कारण हैं कि समाज बदलाव लाना ही नहीं चाहता। लोग गांवकोर की स्थिति को सुधार तो देते हैं लेकिन खत्म नहीं करते। तेरी मौसेरी दादी के गांववाले हमारे यहां से ज्यादा स्वतंत्र विचारों के हैं परन्तु वहां भी इस कुप्रथा का खत्म करने के स्थान पर गांवकोर की स्थिति सुधार दी गई। अब वहां गांवकोर की झोपड़ी की जगह ईंट की दीवारों से बना कमरा है जहां सोने के लिए बिस्तर है तो दरवाजे भी हैं।"
शालिनी ने कुछ सोचते हुए कहा "मतलब गांवकोर कुप्रथा तब तक रहेगी जबतक यह समाज के मस्तिष्क में रहेगी".....कहते कहते शालिनी सोचने लगी कि मासिक धर्म तो इस संसार को चलाने के लिए सबसे ज्यादा आवश्यक है। यदि मासिक धर्म ही नहीं होगा तो स्त्री बच्चे कैसे पैदा कर सकेगी? मासिक धर्म ही तो उसे काबिलियत देता है बच्चे पैदा करके इस संसार को चला सकने की और उसी के लिए इस तरह से बर्ताव किया जा रहा है। मंदिर में प्रवेश ना करना, रसोई घर में प्रवेश न करना, घर में अलग कमरे में रहना तो शहरों में भी सुनने को आ जाता है लेकिन गांवकोर जैसी कुप्रथा अब भी चलन में है यह बात तो बहुत ही गलत है।
शालिनी ने निश्चय करा कि वह पूरे एक हफ्ते जब तक इस गांव में है तब तक गांवकोर की प्रथा को मिटाने के खिलाफ अपनी कोशिशें जारी रखेगी।

✍️ इला सागर
मुरादाबाद 244001