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गुरुवार, 29 जून 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ......ओह बाबा !

   


पिछले 3 दिन से घर में चूल्हा नहीं जला था जलता भी कैसे  घर में अन्न का एक भी दाना नहीं था....!

       .......... किसी ने कुछ भी नहीं खाया था परंतु अब सहन नहीं होता ! हे भगवान आगे कैसे चलेगा.. कुछ तो मदद करो...! कहीं से तो आओ ?.... क्या मेरे बच्चे यूं ही भूखे मर जाएंगे?.... प्रभु कुछ तो चमत्कार दिखाओ .....! घर के पूजा गृह में माथा टेकते हुए  संगीता बुदबुदाई !

    पति का एक्सीडेंट क्या हुआ संगीता  की तो दुनिया ही  उजड़ गई ..... एक्सीडेंट होने के बाद वह बिस्तर पर आ गए और फिर धीरे-धीरे घर की सारी जमा पूंजी की एक-एक पाई समाप्त हो गयी...! 

.......?और फिर अचानक एक दिन राधेश्याम  स्वर्ग सिधार गया। और छोड़ गया अपने पीछे एक बूढ़ी मां, पत्नी और दो बेटियों को.... बेसहारा परिवार में कमाने वाला कोई भी नहीं..... जहां कहीं से मदद ली जा सकती थी ली जा चुकी थी......।

.. अब दुकानदार ने भी उधार देना बन्द कर दिया था । ऐसा लगता था कि पूरा परिवार ही भूख से  दम तोड़ देगा.....!

......... शाम के 8:00 बजे  दरवाजे पर एकाएक दस्तक हुई.....  दरवाजा संगीता ने ही खोला.... क्या बात है ? कौन है ?क्या है?

.......... ".... कुछ खाने का सामान ,राशन, घी ,तेल और कुछ फल व सब्जियां हैं"..... "कहां रखना है?" लंबे डील-डोल वाले व्यक्ति ने जवाब देते हुए प्रश्न किया !

.....संगीता ने पूछा  "किसने भेजा है ? "

.....".हमें डॉ जोशी ने भेजा है. .!."

... पता गलत हो सकता है ! हमारी तो कोई जान पहचान भी डॉक्टर जोशी से नहीं है !

......."नहीं यही पता है नरोत्तम सिन्हा का यही मकान है न ?"

....... "हां मेरे दादाजी का नाम ही नरोत्तम सिन्हा था " नन्दू ने  कहा......"रास्ते में पूछा था तो पता तो सही है ही"!.... और साथ में लिफाफा भी है ....!"

      सभी घरवाले यह देखकर चकित थे कि ये  चमत्कार कैसे हो गया.....  ऐसा कौन डॉ जोशी है ? जो संकट की इस घड़ी में भगवान बन कर हमारे सम्मुख उपस्थित हो गया है।...... हम तो किसी डॉक्टर जोशी को नहीं जानते .....?हमारा उस से क्या संबंध ?

.... खैर जो भी हो यह सब सोचने समझने का समय अब नहीं था....... भूख से सभी के प्राण निकले जा रहे थे .....खाने में कुछ ब्रेड थीं ड्राई फ्रूट्स थे; नमकीन, बिस्कुट थे.......

 सभी खाने पर झपट पड़े,.....! पानी पिया दूध से चाय बनाई गई !

  ....... लिफाफा खोला तो उसमें 500  के नोटों की गड्डी थी गिनती करने पर पता लगा कि ₹20000 थे ! सोचा सामान खत्म हो जाएगा तो कोई बात नहीं और सामान लाया जाएगा ।

    .....डॉ जोशी ने ये  सामान क्यों भेजा ? कुछ दिन बीते धीरे-धीरे सारा सामान खत्म होने लगा परंतु यह क्या महीना भर बाद फिर वही समान वही लिफाफा....घर में आ गया अब तो बहुत मुश्किल थी .. यह जानना भी जरूरी था आखिर ये डॉक्टर जोशी है कौन ?

   ......जो संकट की घड़ी में अनजाने लोगों की यों मदद कर रहा है ।

 .......डॉक्टर जोशी रामनगर में कहीं रहते थे अम्मा जैसे तैसे पता लगा कर रामनगर पहुंचीं  तो वहां देखा कि बहुत भीड़ लगी है जानने की कोशिश की कि क्या हुआ है?.... तो पता लगा डॉक्टर जोशी की एक्सीडेंट में मौत हो चुकी थी..... उम्र यही कोई 45 साल.... लोग कहते जा रहे थे डॉक्टर साहब बहुत भले आदमी थे ....!

      हार कर अम्मा वापस आ गई पता लगाने की कोशिश बेकार गयी .......!.......

.....महीना भर बाद फिर वही गाड़ी आई और समान और लिफाफा छोड़ गयी.....अब तो डॉक्टर जोशी भी जिंदा नहीं थे....... ।

...... कुछ दिन बाद अम्मा को बाबा का संदूक खोलने पर एक डायरी मिली उस डायरी  में अंदर जो लिखा था उसे देख कर अम्मा  चकित रह गई .....!

.......एक पन्ने पर सारा हिसाब लिखा था  जिसका अर्थ  निकलता था कि हर महीने बाबा ₹1000 किसी अनाथ बच्चे जोशी को देहरादून भेजते थे ...जिससे जोशी का पूरा पढ़ाई का खर्च हॉस्टल की फीस जमा होती थी  ।..... बाबा अक्सर देहरादून जाते रहते थे ....वे जब तक जिंदा रहे तब तक पैसा भेजते रहे.... और वही बालक आज एक सफल डॉ सर्जन बन गया..था...!

        कुछ दिन बाद डॉक्टर जोशी के अकाउंटेंट इस परिवार का हाल जानने आए तो उन्होंने बताया कि डॉक्टर जोशी अत्यधिक बिजी रहते थे .....बहुत  धर्म कर्म वाले थे जैसे ही डॉक्टर जोशी को पता लगा कि नरोत्तम सिन्हा के  इकलौते बेटे की भी एक दुर्घटना में मौत हो गई तो उन्होंने इस परिवार के लिए एक बड़ा फंड बैंक में जमा किया जिससे प्रति माह इस परिवार का खर्च चल सके ! 

........जानकर नन्दू के मुंह से अनायास ही निकल गया *ओह बाबा !*और दो आंसू उसके गालों पर ढुलक पड़े !!

.........डॉक्टर जोशी उस दिन इसी परिवार से मिलने आ रहे थे कि रास्ते में उनका एक्सीडेंट हो गया और उनकी मृत्यु हो गई.......!

✍️ अशोक विद्रोही 

 412 प्रकाश नगर

  मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 6 मई 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी.....अपराजिता


..... जल्दी करो डॉक्टर!.....खून बहुत बह गया है....ये आईपीएस अधिकारी बिजेत्री हैं इनको पांच गोलियां लगी हैं ....20 लाख के इनामी दुर्दांत डाकू गुलाब सिंह के पूरे गिरोह का सफाया कर दिया इन्होंने   ..... 15 लोग मारे गये एक दरोगा और सिपाही की भी मौत हो चुकी है.......! 

.........आंखें खुली..चेतना शून्य कौमा में पहुँच चुकी हैं....... बचने की बहुत कम संभावना है.....! परन्तु आई पी एस विजेत्री की चेतना अवचेतन मस्तिष्क में कुछ और ही दौर से गुजर रही थी......! 

..... मैं विजेत्री ! मेरी कहानी तो मेरे जन्म से पहले ही शुरू हो चुकी थी जब मैं 4 महीने के भ्रूण अवस्था में थी तभी मेरे दादा दादी ने मां को हुक्म सुनाया.."तैयार हो जाओ तुम्हें हमारे साथ नर्सिंग होम चलना है, पता लगाना है लड़का है या लड़की!....हमें लड़का ही चाहिए कोई लड़की नहीं चाहिए! "    "समाज में   कोई बेइज्जती नहीं चाहिए" ....उनकी बातें सुनकर मेरा दिल दहल गया क्योंकि मुझे तो पता था कि मैं लड़की हूं जबकि मेरे पापा ने मां से कह रखा था "पहला बच्चा है  हमें न तो भ्रूण परीक्षण कराना है और न एवोर्शन!लड़की हो या लड़का......लड़की भी हमारे लिए  उतनी ही प्रिय होगी जितना कि लड़का इसलिए अम्मा बापू के कहने में मतआजाना!.........मेरी छुट्टी खत्म हो रही हैं मैं जा रहा हूँ........!"

     परन्तु मम्मी ठहरी गाँव की भीरू स्त्री.... बड़ों का कहना सिर झुका कर स्वीकार करना उनकी नियति बन चुका था...मन मार कर उन्हें दादा दादी के साथ नर्सिंग होम जाना ही पड़ा !

    वैसे मां खूब तंदुरुस्त थीं ....प्रेगनेंसी में लड़का मोटा तगड़ा हो उनके घर की एक लाठी जो तैयार होने जा रही थी...इसलिए माँ की खुराक बढ़ा दी गयी थी विशेष आवभगत की जाती थी.......! 

    अल्ट्रासाउंड हुआ और मेरे अस्तित्व की पोल खुल गई ..... दादा दादी पुराने खयालात के लोग थे तुरंत मेरे कत्ल का आदेश जारी हो गया .....हमें लड़की नहीं चाहिए......डाक्टर ! तुरंत अवोर्शन कर दीजिये!..........मैं स्तब्ध भय से थर थर कांप रही थी.....माँ भी बहुत डर रही थी..... ! 

       4 महीने का भ्रूण नन्ही सी जान.......बड़े-बड़े औजार मुझे खत्म करने के लिए आगे बढ़े परन्तु मै शुरू से चालाक थी  बिल्कुल दीवारों से चिपक गई और उनके हथियारों  के हाथ नहीं आई डॉक्टर बहुत हैरान थी  डॉक्टर ने कहा अगले हफ्ते आना सब ठीक से हो जाएगा मैं उस रात बिल्कुल नहीं सोई....आतंक से थरथर कांप रही थी लगातार रोये जा रही थी ....मन में कह रही थी पापा जल्दी आ जाओ अपनी बिटिया को बचा लो!....पापा आपके घर के एक कोने में पड़ी रहूंगी!....किसी चीज की जिद नहीं करूंगी सब कुछ भैया को दे देना..... मै रूखा सूखा खा कर रह लूंगी .....अच्छे कपड़ों की जिद भी नहीं करूंगी.....चाहे मुझे स्कूल भी मत भेजना.,.पापा आपके घर भैया तो आ जायेगा पर जरा सोचो उसकी कलाई पर राखी कौन बांधेगा ?...भैया दूज कौन करेगा.?..भैया जब दूल्हा बनेगा देहली घेर कर हक कौन मांगेगा.?...बहन वाली शादी की रस्में कौन पूरी करेगा.? फिर सोचो कहते हैं कन्या दान के बिना मुक्ति नही मिलती...!....लौट आओ पापा !.....आप कहाँ हो यहाँ आपकी अजन्मी बेटी की हत्या की योजना बन रही है .....! मेरे मन की बात शायद भगवान ने पापा तक पहुंचा दी  पापा को खबर लगी वे लौट आए....घर में बहुत हंगामा हुआ......मै सुबक पडी़......मेरे प्यारे पापा! मुझे बचा लेंगे !....

.............दादा दादी से गरज कर बोले "ऐसा कुछ भी नहीं होगा!" दादा दादी से उनकी बोलचाल भी बंद हो गई ....बहुत कहासुनी हुई....डाक्टर को जेल कराने की धमकी दे कर पापा वापस चले गये..... सो डॉक्टर ने दादी से साफ मना कर दिया........ गर्भ पात अपराध है.... ! 

   अब अचानक माँ के खान पान पर ध्यान देना बन्द कर दिया गया

इधर माँ को सफेद मिट्टी खाने की प्रबल इच्छा होने लगी वे मिट्टी खाने लगीं....! उस सबका मेरे स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ा जैसे तैसे मुझे दुनिया में लाया गया परंतु कमजोर होने के कारण माँ को बचाना भारी पड गया आपरेशन से इंफेक्शन हटाने में गर्भाशय ही निकालना पडा़ वे अब पुनः और बच्चे को जन्म नहीं दे सकती थी...कमजोरी की वजह से मुझे भी विशेष निगरानी में अलग मशीनों में रखा गया जैसे तैसे मैं बड़ी हुई और मैंने अपने कार्यों से लोगों को चमत्कृत करना शुरू कर दिया हर जगह हर काम में मैं प्रथम रहती....दादा दादी की मानसिकता में परिवर्तन हो इसलिए मैंने लड़को जैसे बाल, लड़कों के खेलों में भाग लेना शुरू किया धीरे-धीरे मैं बड़ी हो गई और मेरा सलेक्शन आईपीएस में हो गया मेरे पिता मुझसे बहुत खुश रहा करते  थे परंतु दादा दादी का दिल मैं कभी नहीं जीत सकी ! बोले...".भला अब इस लड़की से शादी कौन करेगा"....? 

.....इन दिनों मुझे एक गंभीर मिशन  सौंपा गया....खूंखार डाकू गुलाबसिंह का गिरोह सहित खात्मा!.....जो न जाने कितने कत्ल और डकैतियां कर चुका था....लंबी  7 फुट ऊंची चौडी़ कद काठी....,चौडी़ छाती  बड़ी-बड़ी जलती हुई आंखें लम्बी मूछें मेरा सामना मानो नर पिशाच से हुआ था उसका गिरोह उस समय का सबसे खतरनाक गिरोह था एक पुराना खंडहर इस गिरोह का ठिकाना था  रात को मुंह पर  नकाब लगाकर गांव में निकल पड़ता था जनता और पुलिस सभी इससे आतंकित थे......मैंने भी ठान लिया था इसके गिरोह का सफाया मेरे ही हाथ से होगा......रात में जैसे ही मैं उसके गढ़ में पहुंची है वहाँ गोलियों की बौछार होने लगी एनकाउंटर शुरू हो गया थोडी़ ही देर में एक सब इंसपेक्टर और एक सिपाही को गोली लगी....यह देख कर मेरे सभी साथी छोड़ भागे पर मैंने साहस नहीं छोड़ा और एक-एक कर 15 डाकुओं को मौत के घाट उतार दिया अंत में बचा खुद गुलाब सिंह उसमें बहुत बल था लात घूँसों  से उसने मुझे अधमरा कर दिया.....मेरे शरीर के अंदर पांच गोलियां लगी थीं फिर भी मैंने अंतिम क्षण तक साहस नहीं छोड़ा मैंने छुपे हुए खंजर से उसके सीने पर बार किया उसने हाथ से बड़ी मजबूती से मेरा गला पकड़ रखा था जिसका दबाव लगातार मेरे गले पर बढ़ता जा रहा था ,  मेरी सांस उखड़ रही थी जिंदगी और मौत के बीच एक बारीक सी लाइन बची थी....फिर मैंने खंजर से कई बार उसके ऊपर किये...अज्ञात शक्ति मेरा साथ दे रही थी ....मरने से पहले  मैंने एक गोली उसके सर पर दागी जिससे उसके हाथ का दबाव मेरे गले पर अचानक कम हुआ और गुलाब सिंह जमीन पर गिर कर ढेर हो गया, मेरी चेतना मुझसे कह रही थी जब मैं पहले न  मरी तो अब क्या मरूंगी.........

    ......प्रशासन की ओर से मुझे देखने वालों का तांता लग गया, सभी लोग मेरे जीवन की सलामती की दुआ कर रहे थे परंतु कुछ लोग ऐसे भी थे जो कि सोच रहे थे  अब  बचेगी नहीं ...जाने कितने सीनियर अफसर मन ही मन खुश हो रहे थे क्योंकि उनकी महत्वाकांक्षा यह बर्दाश्त नहीं कर सकती थी कि किसी महिला  आईपीएस को इतना मान सम्मान मिले देखिए क्या होता है,. ....मैं, अब होश खोती जा रही हूं ईश्वर मेरी रक्षा करें...... 

* 3 दिन बाद*

 ......कई बार सर्जरी हुई एक एक करके पांच गोलियां निकाली गयीं... ...  मेरे  घाव काफी भर चुके थे... 

...एक बड़े समारोह में पुलिस की ओर से मुझे बीस लाख का इनाम और मेडल मिलने वाला था....

मैं मंच से अपने दादाजी  सुल्तान सिंह को पुकारती हूँ मेरे दादाजी कृपया मंच पर आएं ..मैं उनके हाथ से ही ये सम्मान लेना चाहती हूं.......!

. ...... दादा दादी आज बहुत भावुक हो रहे थे.....अश्रुधारा कब से झुर्रियों को भिगोये जा रही थी.....किंकर्तव्यविमूढ़ से बस एक टक मुझे ही देखे जा रहे थे परन्तु आज ये आंसू पश्चाताप और खुशी के थे मानो कह रहे हों बेटी विजेत्री तूने हमारे सारे सपने साकार कर दिये......हमें इस बुढ़ापे में गौरव के पल देकर निहाल कर दिया ......

.....तेरे जैसी बिटिया पर  कितने ही बेटे कुर्बान!.....

  ... ...उन्हें पकड़ कर मंच पर लाया गया दादा जी ने कांपते हाथों से माइक पकड़ा बोलना शुरू किया बेटी विजेत्री! बेटी बिजेत्री! हमने कभी तुम्हारी कद्र नहीं की....!अरे हम तो तुझसे जीने का अधिकार ही छीने ले रहे थे भगवान हमें क्षमा करें..... ्..

.....आज तूने साबित कर दिया.हम गलत थे....... और हम गलत साबित होकर  बहुत खुश हैं... 

........बेटी विजेत्री हमें तुम पर गर्व है भगवान सब को तुम्हारे जैसी बेटी दे लोगों को बेटियों की रक्षा करनी चाहिए ,, बेटे बेटी में बिल्कुल भेद नहीं करना चाहिए......आज विजेत्री न होती तो क्या हमें यह गौरव प्राप्त हो सकता था....... ?... 

✍️ अशोक विद्रोही 

412, प्रकाश नगर

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 8218825541

गुरुवार, 20 अप्रैल 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की लघुकथा..... सौतेली बेटी

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....पिता को लेकर रागनी अपने घर पहुंची .....रागिनी के कानों में अभी तक अपनी सौतेली मां के शब्द "अगर ज्यादा परेशानी है तो अपने बाप को अपने साथ ले जाओ हमसे सेवा नहीं होती."गूंज रहे थे.......

......आसाराम ने अपनी सारी जमीन जायदाद  दूसरी पत्नी से जन्मे अपने दोनों बेटों के नाम कर दी थी उनकी दूसरी पत्नी व बेटों ने पति को बाहर के एक कमरे में बदहाल हालत में छोड़ दिया था रागिनी उनकी पहली पत्नी की संतान थी जो शहर में अपने पति के साथ रहती थी उसकी शादी में सौतेली मां ने कुछ भी नहीं दिया था यहां तक की रागनी के लिए उसकी मां द्वारा छोड़े गए गहने तक न देकर अपनी दोनों बहुओं को चढ़ा दिए थे...और उससे नाता तोड़ लिया था...परंतु जैसे ही रागनी को पता लगा पिता की  हालत बीमारी के कारण बहुत खराब है मां बीमारी में दवा एवं खाना भी ठीक से नहीं दे रही है तो उससे न रहा गया वह उन्हें देखने गांव पहुंची  मां ने झट कह दिया" ज्यादा लाड़ है तो इन्हें अपने साथ ले जाओ हमसे नहीं होती इनकी सेवा....! "

....आशाराम को बड़े चैन का अनुभव हो रहा था परंतु उसकी आखों में पश्चाताप एवं विवशता  के आंसू थे...... ! 

✍️ अशोक विद्रोही

412 प्रकाश नगर

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

 मो 82 188 25 541

गुरुवार, 23 मार्च 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी .....खुतरी नाशपाती

 


   "..... आप सब लोगों ने  अगर यह देख लिया है तो मैं अब ब्लैक बोर्ड साफ कर दूं?"डाॅ लवानिया सर ने पूछा.

   "हा हा हा हा हा हा" पूरी क्लास हंसी के ठहाकों से गूंज गई....कुछ लोगों ने कहा "हां सर पढ़ लिया है बिगाड़ दीजिए! "

       "तो आओ अब पढ़ाई शुरू करें! " और बाॅटनी की पढ़ाई शुरू हूई बीच-बीच में शरारती लड़के हमेशा की तरह व्यवधान उत्पन्न करते रहे.... परंतु डाॅ लवानिया सर पूरे मनोयोग से पढ़ाने में लगे रहे ..... 

     ....डाॅ लवानिया सर देखने में सांवले खुदरा चेहरा परन्तु आत्मविश्वास से भरे हुए एकदम सरल स्वभाव वाले थे परंतु पढ़ाते बहुत अच्छा थे! गोल्ड मेडलिस्ट थे तो जो पढ़ने वाले बच्चे थे उन्हें बहुत पसंद करते थे और जो आवारागर्दी करने आते थे वे एक गढढों वाली नाशपाती का चेहरा बनाते और उस पर डाॅ यू सी लवानिया लिख देते ऐसा करके वह प्रोफ़ेसर का उपहास करते थे.....! खुराफात करने में सतीश त्यागी और रामप्रसाद मुख्य थे ये दोनों शरारत और गुंडागर्दी करते ही रहते थे दूसरे प्रोफ़ेसर तो प्रिंसिपल से शिकायत कर देते थे घरवालों तक को लेटर लिखवा देते थे यहां तक कि नाम भी कटवा देते थे परंतु डाॅ यूसी लवानिया उनमें से नहीं थे! 

.......एक दिन किसी केस के सिलसिले में सतीश त्यागी और रामप्रसाद को तलाशती हुई पुलिस क्लास में आ पहुँची तब डाॅ यूसी लवानिया क्लास ले रहे थे  परमिशन लेकर पुलिस वाले अंदर आए और पूछा सतीश त्यागी और रामप्रसाद  किस तरह के लड़के हैं गुंडागर्दी करने वाले हैं या शरीफ..!यह बात उन्होंने क्लास में सबके सामने पूछी...... 

सभी सोच रहे थे कि डाॅ यूसी लवानिया आज अपने मन की भड़ास निकाल कर ही दम लेगें..और इन दोनों को फंसा  ही दम लेंगे उन दोनों के चेहरे भी पूरी तरह उतर गए थे कि आज बचने वाले नहीं जेल जाना ही पड़ेगा परंतु ये क्या?....ऐसा नहीं हुआ डाॅ यूसी लवानिया ने कहा " ये दोनों बच्चे मेरी क्लास के सबसे शरीफ छात्र हैं अपना काम हमेशा मन लगाकर करते हैं यह सुनकर पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट लगाई रिपोर्ट लगाई और लौट गई अगले दिनों में कई दिनों तक सतीश त्यागी और रामप्रसाद क्लास में नहीं आए....परंतु इस बीच ऐसा हुआ की डाॅ यूसी लवानिया को जापान की किसी यूनिवर्सिटी ने अपने यहां सलेक्ट कर लिया और उनके जाने की खबर पूरे कॉलेज में फैल गई अंतिम दिन डाॅ यूसी लवानिया क्लास में आए रोज की तरह ही क्लास ली और अंत में उन्होंने स्टूडेंट्स से विदा लेते हुए कहा आप लोगो के साथ बहुत सुन्दर समय गुजरा,अब मेरी जाॅब  विदेश में लग गयी है बच्चों मेरा पूरा प्रयास रहा कि मैं अपने प्रत्येक छात्र को ठीक से पढ़ा सकूं परंतु पढ़ाते समय शिक्षक को थोड़ा  सख्त भी होना पड़ता है इस लिए पढाने के दौरान मुझसे जो भी गलती हुई हो उसे क्षमा करना! और आगे भी अपनी पढाई ऐसे ही मन लगा करना....!और जीवन में अपने साथ ही अपने माता पिता का नाम ऊंचा करना! 

    उनका ये कहना था कि सतीश त्यागी एवं राम प्रसाद उनके चरण छूकर फूट फूट कर रो पड़े कक्षा में सभी की आंखे भीगी थीं..... 

✍️ अशोक विद्रोही 

412 प्रकाश नगर

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 8218825542

बुधवार, 1 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की लघुकथा ....महंगाई


महंगाई के दौर में डीजल ,पैट्रोल, खाद्य सामग्री सभी कुछ गरीब जनता,अल्प वेतन भोगियों से दूर होता जा रहा है जिसके चलते कई दिनों से रामलीला मैदान में बहुत बड़ा धरना प्रदर्शन चल रहा था!        

          मुख्यमंत्री जी ने स्वयं  धरना स्थल पर उपस्थित होकर देश की अर्थ व्यवस्था पिछली  सरकार द्वारा खराब करने का हवाला देते हुए कार्यवाही करने में असमर्थता जताई परन्तु  भविष्य में इस पर कार्यवाही करने का पूर्ण आश्वासन देते हुए किसी प्रकार धरना समाप्त करवाया! 

    विधानसभा में कार्य के दौरान टेबल पर विधायकों का 20,000 रुपए वेतन बढा़ने से सम्बन्धित फाइल जैसे ही टेबल पर आयी, मुख्यमंत्री महोदय ने सारी फाइल हटाते हुए सबसे पहले उस पर यह कहते हुए साइन किए......कि वास्तव में महंगाई बहुत बढ़ गई है    इसलिए    यह बहुत जरूरी है!........ 

✍️ अशोक विद्रोही विश्नोई 

412 प्रकाश नगर

 मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 82 188 2 5 541

रविवार, 9 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही का गीत ...अन्याय नहीं मन सह पाता, विद्रोही गीत सुनाता हूं

 क्लिक कीजिए और सुनिए 

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न्याय 

 कैसे पुरवाई के झौंके!

और कैसी सावन की फुहार।

न भाये मुझको आलिंगन,

न मन  चाहे सोलह  श्रृंगार ।

जन जन के मन की पीड़ा को 

मैं अपने गीत बनाता हूं।

अन्याय नहीं मन सह पाता

विद्रोही गीत सुनाता हूं।


जो थाम तिरंगा गलन भरे,

हिम शिखरों के ऊपर चलते।

सीना ताने सीमा पर जो,

पल-पल निशदिन तिल तिल गलते।

उन सब के घोर पराक्रम को ,

दर्पन बन कर दिखलाता हूं। 

अन्याय नहीं मन सह पाता

विद्रोही गीत सुनाता हूं।


भारत माता का आर्तनाद !

जब सहन नहीं कर पाता हूं!  

मन आक्रोशित हो जाता है, 

शब्दों के बाण चलाता हूं ।

वीणापाणी से मिला प्यार मैं ,

कागज कलम उठाता हूं।

अन्याय नहीं मन सह पाता

विद्रोही गीत सुनाता हूं।


कितने ही बिषधर आस्तीन,

में सदा सदा यहां पलते हैं!

अन्न जल खाकर भारत मां का,

नित इससे ही छल करते हैं।

उनके चेहरों पर फ़ैल रही,

स्याही का रंग दिखाता हूं!

अन्याय नहीं मन सह पाता,

विद्रोही गीत सुनाता हूं! 


जाति, भाषा और वर्ग भेद,

में जो समाज को बांट रहे।

हम एक बनें और नेक बनें,

के मूल मंत्र को काट रहे।

"भारत मां के बेटों जागो !"

की घर घर अलख जगाता हूं।

अन्याय नहीं मन सह पाता,

विद्रोही गीत सुनाता हूं! 


दीवाने थे भारत मां के ,

कुछ अलवेले मस्ताने थे।

फांसी के फंदे चूम चूम ,

गूंजे जो अमर तराने थे। 

उन अमर शहीदों की गाथा,

के केसरिया लहराता हूं !

अन्याय नहीं मन सह पाता,

विद्रोही गीत सुनाता हूं! 


इस सोने की चिड़िया के पर,

आक्रांताओं ने नौचे थे।

सारी दुनिया अब जान चुकी,

वे चोर लुटेरे ओछे थे!

छू न पाये फिर इसे कोई ,

नित अंगारे दहकाता हूं। 

अन्याय नहीं मन सह पाता,

विद्रोही गीत सुनाता हूं! 

✍️ अशोक  विद्रोही

 

गुरुवार, 28 जुलाई 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही का एकांकी .... शहीदे आजम भगत सिंह । यह एकांकी ’साहित्यिक मुरादाबाद’ द्वारा आयोजित लघु नाटिका / एकांकी प्रतियोगिता के वरिष्ठ वर्ग में द्वितीय स्थान पर रहा ।


पात्र परिचय


1.भगतसिंह -स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, उम्र  23 वर्ष

2.सुखदेव -स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, उम्र 24 वर्ष

3.राजगुरु -स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, उम्र 23 वर्ष

4.जेलर

5.अंग्रेज अफसर

6.छतरसिंह-कारिंदा

7.सरदार किशन सिंह-भगत सिंह के पिता

8.विद्यावती कौर-भगत सिंह की मां

9.कुलतार-भगत सिंह का छोटा भाई

सूत्रधार - सांडर्स की हत्या एवं असेंबली में बम विस्फोट के अपराध में दफा 121,दफा 302 के तहत फांसी की सजा! सजायाफ्ता कैदी भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु लाहौर की जेल में बंद हैं । पूरे देश में इन को दी जाने वाली फांसी की सज़ा के विरोध में कोहराम मचा हुआ है जिससे अंग्रेजों की नींद उड़ी हुई है।

             दृश्य-1-

(लाहौर जेल का गेट जहां पर भगत सिंह के माता-पिता और छोटा भाई मिलाई करने आते हैं)

कुलतार सिंह- सतश्रीअकाल! प्राह जी

(भगत सिंह कुलतार सिंह के सर पर हाथ फेरता है)

भगत सिंह- बाबूजी आपकी बहुत याद आ रही थी!

सरदार किशन सिंह- क्यों? क्या हुआ पुत्तर?

भगत सिंह-मैंने जो ढेर सारी चिट्टियां आपको लिखीं उनमें से कुछ ने आपका दिल दुखाया होगा!मुझे माफ़ कर देना!

सरदार किशन सिंह- ओए ऐसा मत कह पुत्तर तेरे जाने के बाद वो चिट्ठियां तो मेरे पास कीमती खजाने की तरह हैं तेरे जाने के बाद उन्हीं के सहारे तो जिऊंगा मैं ।

(यह सुनकर छोटा भाई कुलतार रोने लगता है!)

भगत सिंह- ओए कुलतार तू रो रहा है देख मैं तो बेटे का  फर्ज निभा नहीं पाया ,मेरे जाने के बाद तूने ही तो बेटे का फर्ज निभाना है मां बाबूजी की सेवा करनी है तुझे हौसला रखना है। मुसीबतों से घबराना मत!

कुलतार सिंह- जी प्राह जी।

भगत सिंह- मां नहीं आई?

सरदार किशन सिंह- वह बाहर खड़ी है मैं जाऊंगा तो आएगी पर अभी तो मेरा ही मन नहीं भरा...

(दोनों चले जाते हैं मां मिलाई करने आती है)

विद्यावती कौर -क्या हुआ बेटा ?आज तू बड़ा उदास लग रहा है ?.

भगत सिंह- कुलतार की आंखों में आसूं देख कर बड़ा दुख हुआ मां एक कसक रह गयी!

विद्यावती कौर -छोटा है समझता नहीं कि उसका वीर जी कितने ऊंचे मकसद के लिए कुर्बानी दे रहा है!(निस्वास छोड़कर )बेटा मरना तो एक दिन हम सबको ही है लेकिन मौत ऐसी हो जिसे सब याद  रखें!

भगत सिंह- लेकिन मां, एक कसक रह गयी! दिल में जो जज्वात थे उसका हजारवां हिस्सा भी मैं देश और इंसानियत के लिए पूरा नहीं कर पाया!

विद्यावती कौर -सब कह रहें कि ये हमारी आखिरी मुलाकात है, ...पर आज तो ३ मार्चं ही है अभी तो बहुत दिन पड़े हैं।....आज के बाद मैं तुझे कभी नहीं देखूंगी?

भगत सिंह- मैं दुबारा जनम लूंगा मां! अंग्रेजों के बाद जो उनकी कुर्सियों पर बैठेंगे वह भी  हमारे मुल्क को बहुत तकलीफ़ पहुंचायेंगे मैं दुबारा जन्म लूंगा  मां ! मैं वापस आऊंगा! 

विद्यावती कौर- लेकिन, मैं तुझे  पहचांनुगी कैसे?

भगत सिंह- तेरे बेटे के गले पर एक निशान होगा मां तू पहचान लेगी!

विद्यावती कौर -जाने से पहले मैं कुछ सुनना चाहती हूं! ... भगत सिंह : इंकलाब जिंदाबाद! इंकलाब जिंदाबाद!!... इंकलाब जिंदाबाद!!!

(भगतसिंह की मां चली जाती है

             दृश्य-2

     (लाहौर जेल की  कालकोठरी, जहां भगत सिंह,सुखदेव, और राजगुरु एक साथ बैठे हुए हैं।)

राजगुरु-यार भगत ! मां मिलकर गई थी बहुत रो रही थी मैंने कहा शहीद की मां को रोना नहीं चाहिए पर मां का कलेजा कब मानता है!....

भगत सिंह-

दीदार करने को,

 ये दिल बेकरार है"

"ऐ मौत जल्दी आ! ,

हमें तेरा इन्तजार है।

हमारा निर्णय सही है हमें अंग्रजों से फांसी से माफी नहीं चाहिए हमारा देश तभी  जागेगा जब हम हंसते हंसते फांसी पर झूल जाएंगे!

सुखदेव--सही कहा भाई फांसी से स्वतंत्रता के लिए देश में बड़ा संग्राम छिड़ जाएगा और इस प्रकार हमारी भारत माता को इन फिरंगियों  से आजादी मिल जाएगी।

(तीनों मिलकर गाते हैं--)

"वक्त आने दे बता देंगे ,

तुझे ए आसमां ! 

हम अभी से क्या बताएं 

क्या हमारे दिल में है! 

सरफ़रोशी की तमन्ना ,

अब हमारे दिल में है।......"

दृश्य 3

 23 मार्च शाम का समय

(तभी छतर सिंह आता है और गीता का गुटका भगत सिंह को देता है )

छतर सिंह--लो सरदार जी इसे पढ़ लो! परमात्मा को याद करो!

भगत सिंह---अरे छतरसिंह जी परमात्मा तो हमारे दिल में है अब इसे लेकर क्या करेंगे  जब वह हमारे अंदर है तो उसे क्या याद करना"? "आज क्या तारीख है?"

छतर सिंह--"23 मार्च!"

भगत सिंह--"कल क्या तारीख है?"

छतर सिंह-"अरे बेटा ! कल तो  बहुत दूर है,पर तू घबरा मत सब ठीक हो जायेगा,।

भगत सिंह -फिर छतर सिंह जी आप तो इतने सालों से जेल में हो आपने तो न जाने कितने लोगों को फांसी चढ़ते हुए देखा है, आप क्यों घबरा रहे हो ? आपके सामने मेरे जैसे जाने कितने आए कितने गए?

छतर सिंह - "नहीं बेटा ! तेरे जैसा न कोई आया न कोई आएगा !"

(तभी जेल में अंग्रेज ऑफिसर का प्रवेश होता है...)

अंग्रेज अफसर -(जेलर से) "भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव की आज ही फांसी होनी है। फांसी की तैयारी करो! अंग्रेजी सरकार का हुक्म है!"

जेलर--"मगर सर फांसी तो कल 24 मार्च को होनी थी ऐसा क्यों किया जा रहा है?"

अंग्रेज अफसर-"आज पूरे देश के लोग रात को सोएंगे नहीं सुबह होते होते जेल के फाटक के बाहर इकट्ठे हो जाएंगे आन्दोलन करेंगे और भगत सिंह ,राजगुरु, सुखदेव की अर्थी के साथ जुलूस निकालेंगे  अंग्रेजी गोरमेंट इस बात के लिए तैयार नहीं है! इससे सिक्योरिटी को बहुत बड़ा खतरा हो सकता है! इसलिए फांसी आज ही दी जानी है!"

जेलर-"सर क्या मतलब ? भगत सिंह मरने के बाद भी सिक्योरिटी के लिए खतरा हो सकता है!परंतु यह तो सरासर अन्याय है सर! ऐसा नहीं होना चाहिए सर यह तो गैरकानूनी होगा..! हिस्ट्री में कभी ऐसा नहीं हुआ!"

 आपको पता है गांधी जी और लार्ड इरविन के बीच हुए समझौते के अनुसार तो भगत सिंह को रिहा कर देना चाहिए था परंतु ऐसा हुआ नहीं..... यह अन्याय है आप लोगों ने कभी चाहा ही नहीं कि भगत सिंह को रिहा कर दिया जाए नहीं तो आप लोग भगत सिंह ,सुखदेव, राजगुरु को बचा सकते थे!

अंग्रेज अफसर- "यह हमारा कानून है जब चाहे तोड़ मरोड़ सकते हैं तुम कौन होते हो? तुम अंग्रेजी सरकार के नौकर हो जो कहा जाए वही करो!"

जेलर- "बिल्कुल सही कहा सर आपने ठीक है सर  मैं नौकर हूं!" "छतर सिंह ! भगत सिंह ,राजगुरु, सुखदेव के अंतिम स्नान की तैयारी करो! उनको आज ही फांसी होनी है!"

छतर सिंह- "अरे सरकार क्या? क्या कह रहे हो? फांसी 24 मार्च की शाम को दी जानी थी !एक दिन पहले 23 मार्च को ही आखरी दिन तो मां-बाप का दिन होता रिश्तेदारों के मिलने दिन होता है!"

..... मिलने के लिए, कल वो लोग मिलने आएंगे तो क्या अपने अपने लोगों को आखिरी बार देख भी नहीं सकेंगे? क्या लाशों से मिलेंगे? ऐसा मत करो सरकार यह अन्याय है ऊपर वाले से डरो!.."..

अंग्रेज अफसर -"अरेस्ट हिम!"

(पुलिस वाले उसे पकड़ने लगते हैं)

छतरसिंह- (चीखता है... चिल्लाता है..... गालियां बकता है) तुम अंग्रेजो का सत्यानाश हो!.... फिरंगी गोरों तुम्हें बहुत भारी पड़ेगा !.... सालो तुमने बहुत अन्याय किया है कमीनों तुम्हें हमारा भारत छोड़कर जाना होगा!.... कहीं ऐसा होता है जैसा तुमने किया?

(पुलिस वाले छतर सिंह को घसीटते हुए ले जाते हैं।)

जेलर- ( भगत सिंह से)- "तैयार हो जाओ फांसी का हुक्म हो गया है !"

भगत सिंह-(किताब के पन्ने पलटते हुए) एक क्रांतिकारी को दूसरे क्रांतिकारी से मिल तो लेने दो! वह लेनिन की पुस्तक पढ़ रहे थे.... दो पन्ने शेष रह गए हैं पढ़ लूं...अच्छा चलो ! छोड़ो फिर कभी सही!...."

(भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव तैयार होकर निकलते हैं !

 फांसी के लिए गीत गाते झूमते हुए चलते हैं---)

अर्थी जब उठेगी शहीदों की ....ओ.....ओ

ऐ वतन वालों तुम सब्र खोना नहीं....

हंसते हंसते विदा हमको कर देना

आंसुओ से आंखें भिगोना नहीं....!

इतना वादा करो जब आजादी मिले

उस समय तुम हमें भूल जाना नहीं...

पार्श्व में रुदन का संगीत गूंजने लगता है...

नाचते गाते हुए फांसी के फंदे तक चले जाते हैं

" मेरा रंग दे बसंती चोला माय ए रंग दे बसंती चोला.... आगे बढ़ते हैं !...

आजादी को चली बिहाने,

हम मस्तों  की टोलियां!....

( पुलिस वाले उनको आगे ले जाते हैं फांसी के फंदे तक जाते हुए गाने गाते चले जाते हैं अंत में गाते हैं सर सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है!....)

जेलर- "भगत सिंह कोई आखिरी ख्वाहिश?"

भगत सिंह-  "हमारी आखिरी ख्वाहिश तो आप पूरी कर नहीं सकते हमारे हाथ खोल दीजिए जिससे हम आपस में एक दूसरे से आखरी बार मिल सकें! फिर जाने कब मिलना हो!"

जेलर- "इनके हाथ खोल दो"!

(तीनों के हाथ खोल दिए जाते हैं, तीनों एक-दूसरे से गले मिलकर खूब लिपट लिपट चिपट कर मिलते हैं और जोर-जोर से नारे लगाते हैं....)

 "इंकलाब जिंदाबाद!"

 "इंकलाब जिंदाबाद!!" 

  "इंकलाब जिंदाबाद !!!"

"भारत माता की जय !"

"वंदे मातरम!"

 (फिर उनको पकड़ कर पुलिस वाले बलपूर्वक अलग कर देते हैं। तीनों फांसी से पहले  फांसी के फंदे  को चूमते हैं।सभी के मुंह पर काला नकाब चढ़ा दिया जाता है ,वे ज़ोर ज़ोर से चिल्लाते हैं)

 "इंकलाब जिंदाबाद !"

" इंकलाब जिंदाबाद !! "

( तीनों को फांसी का फंदा लगा दिया जाता है और जेलर के आदेश पर जल्लाद फांसी के तख्ते का खटका खींच देता है 7 बज कर 33 मिनट पर फांसी दे दी जाती है। तीनों की गर्दनें लटक जाती हैं।

नेपथ्य के पीछे से लोगों के चीखने, चिल्लाने रोने की आवाज़ें आने लगती हैं। रुदन का संगीत गूंजने लगता है.... उनका यह बलिदान पूरे देश में हाहाकार बनकर जन-जन को आंदोलित कर देता है।)

विद्यावती कौर:  मेरा भगत चला गया... पर तुम ही में से मेरा भगत है कोई ? कौन है ? वह कौन है ? कौन है ?

✍️ अशोक विद्रोही

412, प्रकाश नगर

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 82 18825 541

गुरुवार, 23 जून 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी -----------बिन बुलाए मेहमान



   .... "कितनी देर से डोर बेल बज रही है देखते क्यों नहीं कौन आया है?"

     "अरे भटनागर साहब आइए" !

'"भाभी जी बिटिया की शादी है यह रहा कार्ड राही गेस्ट हाउस में आप सभी का बहुत-बहुत आशीर्वाद चाहिए कुछ भी हो जाय समय से आ जाना" !!

      " बिल्कुल भाई साहब बिटिया की शादी हो और हम ना पहुंचे ? भला हो सकता है यह?"

 "अंकल जी नमस्ते!,, खाना खाते हुए ही  विकल ने मुझे नमस्ते की ।

,,नमस्ते बेटा,,,! और कौन-कौन आया है? मैंने भी विकल की नमस्ते का जवाब देते हुए पूछा ।,, अंकल सभी आए हैं मम्मी पापा भैया !!

       ......और बताओ कैसे हो? आपस में बातें करते करते सब लोग खाना खाने लगे वैसे तो सभी जगह शादियों में खाना अच्छा ही होता है परंतु यहां और भी ज्यादा उच्च कोटि के व्यंजन दिखाई पड़ रहे थे सभी लोग रुचि अनुसार भोजन का रसास्वादन कर भोजन कर रहे थे ।

       अंत में आइसक्रीम पार्लर से आइसक्रीम ले खाने को संपूर्णता प्रदान कर सभी पड़ोसी लिफाफा देने के लिए भटनागर साहब को खोजने लगे परन्तु भटनागर साहब का कहीं पता नहीं था।अब महिलाएं श्रीमती भटनागर को ढूंढने लगी परन्तु वह  भी कहीं दिखाई नहीं पड़ीं ।

    ....जहां दोनों पक्ष मिलकर एक ही जगह  भोज का आयोजन करते हैं वहां अक्सर इस प्रकार की समस्या आती ही है ... सामने एक टेबल पर सभी के लिफाफे लिए जा रहे थे सभी लोगों ने अपने लिफाफे वहीं दे दिए  .... 

.....लिफाफे गिनने पर बैठा व्यक्ति एक दूसरे संभ्रांत व्यक्ति के कान में फुसफुसा रहा था 

"कार्ड तो एक हजार ही बांटे थे अब तक ढाई हजार लिफाफे आ चुके हैं !" 

.."सचमुच किसी ने सही कहा है शादियों में कन्याओं का भाग काम करता है ..... वरना भला ऐसा कहीं हुआ है की 1000 कार्ड बांटने पर ढाई हजार से ज्यादा लिफाफे आ जाएं "

....तभी वहीं चीफ कैटर( जिसको कैटरिंग का ठेका दिया था) आया और उन्ही दोनों लोगों से धीरे धीरे परन्तु आक्रोश में कह रहा था

      "यह बात बहुत गलत है  ! साहब जी ! मुझे 12 सौ लोगों का भोजन प्रबंध करने के लिए कहा गया था आपके यहां ढाई हजार से ज्यादा लोग अब तक भोजन कर चुके हैं सारा खाना समाप्त हो गया है अब मेरे बस का प्रबंध करना नहीं है मैंने खुद खूब बढ़ाकर इंतजाम किया था परंतु इतना अंतर थोड़ी होता है 100 -50 आदमी बढ़ जाएं चलता है"

" .... मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं है अब..... आप स्वयं जानें..."!

....... रात्रि के 11:00 बज चुके थे घर भी जाना था सब ने अपनी अपनी गाड़ियां निकालीं और घर की ओर चलने लगे.......

.... जब बाहर निकल रहे थे तभी अचानक दूल्हे पर नजर पड़ी दूल्हा गोरा चिट्टा शानदार वेशभूषा में तलवार लगाएं घर वाले भी सभी राजसी पोशाकें पहने जम रहे थे जैसे किसी राजघराने की शादी हो.... सभी लोग आपस में बात करते हुए जा रहे थे "कुछ भी हो भटनागर साहब ने घराना  तो बहुत अच्छा ढूंढा."..... "हां भाई साहब बहुत शानदार शादी हो रही है"!!

   ..... निकलते निकलते मन हुआ द्वार पूजा तो देख लें परन्तु गाड़ियां धीरे धीरे बाहर निकल रहीं थीं..... चलते चलते उड़ती नज़र लड़की के पिता के स्थान पर मौजूद व्यक्ति पर पड़ी तो लगा वह भटनागर साहब नहीं थे.........फिर सोचा हमें कहीं धोखा लगा होगा....

...... परंतु राही होटल से निकलने के बाद कुछ आगे चलकर एक और होटल पड़ा उसका नाम भी राही ही लिखा  हुआ था...... यह देखकर माथा कुछ ठनका सोचते सोचते घर पहुंच गए सभी पड़ोसी लोग  आपस में बातें कर रहे थे कि भटनागर साहब क्यों नहीं मिले ?ऐसा कहीं होता है कि मेहमानों से मिलो ही नहीं ! यह बात किसी को भी अच्छी नहीं लग रही थी.....

........अगले दिन भटनागर साहब गुस्से में सबसे शिकायत कर रहे थे कि "आप लोगों में से कोई भी नहीं पहुंचा.!!!.... भला यह भी कोई बात हुई  सारा खाना बर्बाद हुआ..!!!.... सभी पड़ोसी लोग एक दूसरे का मुंह देख कर मामले को समझने का प्रयत्न कर रहे थे...... आखिर सब लोग किसकी  दावत में शामिल हो गए और व्यवहार के लिफाफे किनको।   थमा कर चले आये......

      ‌.... चौंकने का समय तो अब आया जब अखबार में पढ़ा "राही होटल में शादी में खाना कम पड़ जाने के कारण बरातियों ने हंगामा काटा !! प्लेटें फेंकी .....नाराज़ होकर दूल्हे सहित बरात बिना  शादी किए लौटी !!! ...सभी पड़ोसी स्तब्ध थे.......


✍️ अशोक विद्रोही

 412 प्रकाश नगर मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

सोमवार, 10 जनवरी 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की रचना --हिन्दी अपनाओ ! बंद सारे झगड़े हों


 हिन्दी के हों दोहरे ,छद, बंध, श्रृंगार,

चौपाई और गीत में ,रस की पड़े फुहार।।

रस की पड़े फुहार ,भाव के घन उमड़े हों,

हिन्दी अपनाओ !बंद सारे झगड़े हों ।।

विद्रोही ,मां के माथे ज्यों सजती बिन्दी,

भारत माता के  माथे, यूं सजती हिन्दी।।


✍️अशोक विद्रोही 

412 प्रकाश नगर,मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन 82 188 25 541


शनिवार, 1 जनवरी 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही का कहना है ---बदल गया है आज कलैंडर पर पंचांग नहीं बदला । कैसे कहूं नव वर्ष इसे , अपना अंदाज नहीं बदला।।



बदल गया है आज कलैंडर

पर  पंचांग नहीं बदला ।

कैसे कहूं नव वर्ष इसे ,

अपना अंदाज नहीं बदला।।


ठंड जकड़ती पल-पल सबको

क्रियाशीलता शिथिल  हुई । 

अंग्रेजी  नवबर्ष आ गया,

आजादी गुम कहां हुई ।। 


शीत लहर चल रही ठिठुरती

और सिकुड़ती नियती नटी।

निविण निशा की बढ़ी कालिमा

दिनकर की रश्मियां घटीं।।


कांप रही है धरा ठंड से

कोहरे की चादर ओढे,।

धूल जमी पत्ती पत्ती पर।

कैसे ऑक्सीजन  छोड़ें।।


नहीं परिंदों का कलरव है ,

गुमसुम सारे वृक्ष खड़े ।

न इसमें कुछ भी नवीन है,

बस दावे हैं बड़े बड़े।।


नव बर्ष नयापन कुछ तो  हो,

कुछ दिन थोड़ा बस धैर्य धरो।

अब नकल छोड़ औअक्ल लगा,

प्रतीक्षा बस उस दिन की करो।


जब प्रकृति के आंगन में 

हर रंग उभर कर आएगा,

दिन बहुत सुहाने आएंगे,

कोहरा सब गुम हो जाएगा


धरती पर होगा नव बसंत,

हर भंवरा गीत सुनाएगा ।

जब चैत्र प्रतिपदा शुक्ल पक्ष

नव वर्ष  हमारा आयेगा।


है आर्यवर्त का यह गौरव,

युक्ति संगत प्रमाण सिद्ध।

सबसे उत्तम गणना युगाब्ध,

नव वर्ष हमारा है प्रसिद्ध।।


फागुन के रंग बिखरने दो!

धरती को जरा संवरने दो!

हरियाली फैले चहूं ओर,

पुष्पों को जरा महकने दो!


खुश हाली घर घर आएगी,

सब गीत खुशी के गाएंगे ।

अनमोल विरासत है अपनी,

मिलजुल नव वर्ष मनाएंगें।


  अब चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा,

  हर दिल उल्लास  जगाना  है

  और छोड़ अंग्रेजी नया साल

  हिंदी नववर्ष मनाना है ।।


✍️ अशोक विद्रोही 

412, प्रकाशनगर, मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

सोमवार, 18 अक्तूबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की लघुकथा --- मृत्यु प्रमाणपत्र

     "सचमुच बहुत ही दुख हुआ बहन जी जानकर कि आप का इकलौता बेटा दुर्घटना में स्वर्ग सिधार गया"

नगर पालिका के कई चक्कर काट चुकी रोती हुई महिला को ढांढस बन्धाते हुए नगरपालिका के बड़े बाबू ने कहा "मृत्यु प्रमाण पत्र एक हफ्ते में मिल जाएगा हमारा पूरा स्टाफ आपके साथ है फिक्र करने की कोई बात नहीं "।

महिला-"ठीक है भैया अब आप ही लोगों का सहारा है!"

  बड़े बाबू- " बस बहन जी हजार रुपए दे जाइएगा...!"

   महिला अवाक बड़े बाबू को देखती रह गयी...!


✍️अशोक विद्रोही

412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश,भारत

मोबाइल फोन 82 188 25 541

बुधवार, 15 सितंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ----धरती का स्वर्ग


        डल झील में शिकारे की सैर सचमुच एक आलौकिक आनंद का अनुभव कराती है दूर-दूर तक फैली हुई झील ...पानी में तैरते हुए अनेकों शिकारे ...झील में ही तैरती हुई अनेक दुकानें, कुछ फूलों से लगी हुई नावें और दूर-दूर बड़े ही भव्य दिखाई देने वाले पानी की सतह पर तैरते हुए हाउसबोट जैसे वास्तव में धरती पर स्वर्ग उतर आया हो... राहुल का परिवार दो शिकारों में

सैर कर रहा था एक में राहुल उसकी पत्नी  अनीताऔर पौत्र यश, दूसरे में भूमिका पीयूष उसके बेटी , दामाद और... उनके बच्चे ऋषि,अपाला ! यह पल बड़े अनमोल और अविस्मरणीय थे ।

झील के बीच में टापू पर पार्क की भी सैर की  ... नियत समय पर वापस आकर शिकारे फिर से पकड़ लिये ..... जब ड्राई फ्रूट्स की दुकान वाली नाव पास से गुजरी उससे अखरोट बादाम पिस्ता की खरीदारी की गई ।

..... अब निश्चय किया गया कि रात किसी हाउसवोट में गुजारी जाए ....!  हाउसवोट में नहीं ठहरे तो   कश्मीर घूमने का क्या आनंद...? शानदार हाउसबोट किराए पर लिया और अलग-अलग कमरों में चले गए हाउसबोट पर सभी कुछ था 3 बैडरूम ,एक ड्राइंग रूम, किचन, बालकनी , लेट्रिन बाथरूम अटैच, थोड़ी देर में सभी के लिए कॉफी आई फिर खाना खाया फिर सब मिलकर बातें करने लगे......

    ....सोने के लिए जाने ही वाले थे कि अचानक गोली चलने की आवाज आई...!! सभी लोग डर गए .....यह तो ध्यान ही नहीं रहा था!! यहां आए दिन आतंकवादी गतिविधियां होती रहती हैं...! "अब रात के 12:00 बजे भागकर भी कहां जा सकते हैं.."....हाउसबोट जहां पर खड़ा था वहां 80 फीट गहरा पानी था और चारों ओर पानी ही पानी.... पर्यटकों की यह टोली बुरी तरह आतंकित और घबराई हुई थी ....हाउसवोट में जो सर्विस स्टाफ था उन्होंने आश्वस्त किया "डरने की कोई बात नहीं....! यहां पर यह सब होता रहता है!! परंतु पर्यटकों को कोई कुछ नहीं कहता.... क्योंकि उन्हीं से यहां वालों की  रोजी-रोटी चलती है....!!!!"" यह सुनकर भी राहुल और पीयूष का मन नहीं माना.... भूमिका और अनीता दोनों ही बहुत ज्यादा डर गई थी तीनों बच्चे सहम गए थे.....!!इसलिए सोने के लिए कमरों में जाने के बाद भी किसी को नींद नहीं आई ....!! हर आहट पर डरावने ख्याल डरा रहे थे ...... बाहर झील पर चांदनी तो बिखरी ही थी...... बिल्डिंग और हाउस फोटो की लाइटिंग भी जल में प्रतिबिंबित होकर अद्भुत दृश्य प्रस्तुत कर रही थीं....... निश्चय ही यह यात्रा इन लोगों के लिए रहस्य ,रोमांच और आतंक कि भावों को समेटे हुए थी !! जहां आने वाले हर पल मैं अनहोनी आशंकाओं का भय व्याप्त था ...!!   

        सुबह होते ही इन लोगों ने हाउसबोट छोड़ दिया  आज पहाड़ी पर शंकराचार्य के मंदिर जाना था  बिना समय गंवाए यह लोग एक गाड़ी बुक कर शंकराचार्य मठ शिवजी के मंदिर पहुंचेऔर फिर शुरू हुई 85 सीढ़ियों की दुर्गम चढ़ाई ....अच्छी खासी भीड़ थी वहां पर शिव जी के भक्तों की ...इन्होंने भी दर्शन किए परंतु दिल को चैन नहीं था ....बहुत प्रयास करने के बाद बहुत घूम-घूम कर ढूंढने पर एक सरदार जी का ढाबा मिला जिसमें खाना खाया .... अब और रुकने का मन नहीं था परंतु तत्काल लौट पाना भी संभव नहीं था आज सारे रास्ते बंद थे.... नेहरू टनल पर आतंकवादियों ने मिलिट्री के कुछ ऑफिसर की हत्या कर दी थी ....पूरे शहर में कर्फ्यू जैसी स्थिति हो गई थी !!

कहने को श्रीनगर बहुत सुंदर है ... परंतु आतंकवादियों ने इस स्वर्ग को नर्क में बदल दिया था ....इन लोगों ने तब गुलमर्ग की राह पकड़ी पहले टैक्सी फिर काफी रास्ता घुड़सवारी से तय किया वहां स्नोफॉल होने लगा नजारे बहुत खूबसूरत थे....

परंतु दिल तो श्रीनगर की घटना से दहल रहा था ..... सड़क मार्ग बिल्कुल बंद कर दिया गया था..... अब एक ही रास्ता बचा था कि दिल्ली के लिए फ्लाइट  पकड़ें कड़ी मशक्कत और कोशिशों के बाद अगले दिन की फ्लाइट मिली बीच में एक रात अभी बाकी थी.... ! इन्हे चिंता हो रही थी किस होटल में रात गुजारी जाए क्योंकि श्रीनगर में  एक भी हिंदू होटल नहीं.. ... जहां सुकून मिल सके !! 

.....कश्मीरी पंडितों के साथ जो कुछ हुआ वह दिल दहला देने वाला था ही  दहशत के मारे इन लोगों का बुरा हाल था फिर भी रात तो  गुजारनी ही थी एक अच्छा सा होटल देखकर दो कमरे लिए गए और यह लोग एक मुस्लिम होटल में स्टे को विवश हो गए

रात में फिर से गोलियां चलने की आवाज आती रही वैसे भी श्रीनगर में सड़कों पर जगह-जगह मिलिट्री की पोस्टें बनी हुईं थीं जैसे कि युद्ध का मोर्चा लेने के लिए बनाई गईं हों.... शहर में कर्फ्यू जैसी स्थिति थी राहुल और पीयूष एक टैक्सी लेकर परिवार के साथ समय से पहले ही हवाई अड्डे निकल गए और काफी समय उनको एयरपोर्ट पर फ्लाइट की प्रतीक्षा  करनी पड़ी!!

    अंततः हवाई जहाज ने इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर लैंड किया ...... सभी को लगा जैसे अपने स्वर्ग में लौट आयें हों ..!!

   राहुल ने चैन की सांस लेते हुए कहा  हमारा असली स्वर्ग तो वास्तव में कश्मीर नहीं ......यही है !!!

✍️ अशोक विद्रोही

412, प्रकाश नगर, मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

शुक्रवार, 27 अगस्त 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ----प्यारी बहना

   


कोरोना की विभीषिका में कितने ही घर उजड़ गए ....राहुल का दोस्त सुबोध अच्छा भला सॉफ्टवेयर इंजीनियर था, जिस पर घर की सारी जिम्मेदारी थी, असमय ही काल गाल में चला गया । राहुल ने ही इस त्रासदी में उसके परिवार को संभाला मां और बहन सारिका को ढांढस बंधाया ! 

     वह सुबोध की कमी को तो पूरी नहीं कर सकता था परन्तु सारिका की शादी धूम धाम से तय तारीख पर ही सम्पन्न कराई.....।

 ******* 

.........रक्षाबंधन की रौनक बाजारों में हर ओर दिखाई दे रही थी। दुकानों पर जगह-जगह राखियां लगी थीं.....हर ओर रक्षाबंधन के गीत गूंज रहे थे....."ये राखी बंधन है ऐसा..."

..... आज रक्षाबंधन है सभी बहनें सज धज कर भाइयों को राखी बांधने जा रहीं हैं सब ओर बड़ी चहल पहल है तभी राहुल का ध्यान अपनी सूनी कलाई की ओर गया वह ख्यालों में डूबता चला गया और..... पांच साल पहले हुई घटना का एक-एक दृश्य सजीव होकर सामने आने लगा.....

***

...... "दीदी दो माह हो गए जमीन की रजिस्ट्री किए हुए हैं बाकी के तीन लाख रुपए अभी तक नहीं मिले अच्छा होता आप  हरिओम से कह कर  रुपए हमें भिजवा देतीं........

.. चेक बाउंस होने से पांच सौ रुपए की चपत अलग से और लग गयी....!"राहुल ने फोन पर याद दिलाते हुए मुन्नी दीदी से कहा ।

प्रत्युत्तर में राहुल ने जो कुछ सुना उसकी उसे सपने में भी उम्मीद नहीं थी....."तुम्हारी जमीन ही कम थी! कैसे पैसे ! भूल जाओ! और भविष्य में फिर कभी इस विषय पर कोई बात मत करना "!

   "अरे दीदी आपके कहने पर मैंने पहले ही तीन लाख रुपया छोड़ दिया था,, ऐसा नहीं कहो मुझे अपना लोन भी तो चुकाना है!"

परंतु उत्तर में उसे पैसे तो नहीं मिले बल्कि और भी अधिक बुरी-भली, जली-कटी सुनने को मिलीं......आपस में दूरियां बढ़ती ही चली गईं.....

   राहुल ने हमेशा ही अपनी दीदी के बच्चों की तन मन धन से मदद की थी उसने सपने में भी नहीं सोचा था उसकी सगी दीदी व भांजा उससे ऐसा सलूक करेंगे ! और यह जमीन का सौदा इतना महंगा पड़ने वाला है। ज्यादा कहने सुनने से रिश्ते में और अधिक खटास बढ़ती गई यहां तक कि लड़ाई झगड़ा भी राहुल के साथ हो गया.... आज पांच साल हो गए..... हाथ पर बहन की राखी तक  भी नहीं बंधी! सोचते सोचते राहुल की रुलाई फूट पड़ी....!

    ......तभी घंटी बजी सारिका ने अपने  छोटे बच्चे के साथ भैया... भैया! कहते हुए घर में प्रवेश किया.... हाथ में राखी का थाल था और काजू वाली बर्फी भी... छोटा युग मामा!...मामा!! कहते हुए राहुल से लिपट गया .... 

........"क्या हुआ मेरे प्यारे राहुल भैया को ?" सारिका भावुक होते हुए बोली....

राहुल का कंठ अवरुद्ध हो गया एक बारगी स्वर नहीं फूटे..... फिर आंखें पौछीं और राखी के लिए अपनी कलाई आगे करते हुए  अनायास ही मुंह से निकल पड़ा..........

...... प्यारी बहना!!

✍️ अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत, मोबाइल फोन नम्बर - 82 188 25 541

   

मंगलवार, 27 जुलाई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी --मेरे अपने

 


........"एक महीना हो गया इस आदमी को.... जब से मरा कोरोना फैला है ....किसी की फिक्र है इसे.... ? "

"... न मेरी......! न बच्चों की !सुबह 6:00 बजे निकल जाता है! और रात को 11:00 बजे पहुंचता है वापस घर।

..... घर में ! क्या सामान है ......  क्या नहीं ? राशन महीने में एक बार ही लाता है!..... फिर बीच में दो बार सब्जी..... बस हो गया ! मेरा तो मन भर गया इस आदमी से.!.... आखिर  मेरा भी तो मन है.....कि ये  मेरे साथ भी समय गुजारे...... !" मेरे मन की बात सुने अपने बच्चों के बीच में दो घड़ी बैठे बतियाये..!".... कभी साथ में  पिक्चर देखे!..". 

...."कभी कहीं अकेले नहीं जाना चाहता घूमने मेरे साथ ! प्रोग्राम भी बनाओ तो एक दो को चिपका ही लेता है !अपने साथ......!" तंग आ गई मैं  तो इस आदमी से ! 

"अरे यही सब करना था तो शादी क्यों... की ?".......भगवान दुश्मन को भी ऐसा पति न दे.... फूट गयी मेरी किस्मत !...... दिन भर घर से गायब रहता है रात को खाना खाने चला  आता है बेशर्म.....!"

"  हमेशा समाज सेवा! समाज सेवा ! ! समाज सेवा!!! समाज सेवा न हुई मरी गुलामी हो गयी..!.... भूत सवार है इसके  सर पर कभी अपने घर को देखता ही नहीं.....!... मैं तो तंग आ चुकी हूं !इसकी आवारागर्दी से... अगर इसे कौरोना हो गया तो कौन देखेगा ? बस सुघड़ भलाई से मतलब है !!

.....आज सुबह से ही किसी अनहोनी की कल्पना से बेचैन....... अनीता बड़बड़ाये जा रही थी। ...... मूड बिल्कुल खराब  हो रहा था।

"..........मरे कोरोना में संघ वालों के साथ  खाने के किट बांटते फिर रहे हैं न तन का होश है न  वदन का !" 

.....अगर इन्हें कोरोना हो गया तो हम लोग तो कहीं के ना रहेंगे"....? यह सोचते सोचते अनीता अपने कामों में लग गयी ।

 ......नगर में महामारी ने विकराल रूप ले लिया था...... .विशाल पूरे दिन कोरोना मरीजों को अस्पताल पहुंचाने ,सहायता पहुंचाने उनके घर वालों को भोजन किट पहुंचाने में ही व्यस्त रहने लगा था ......जो घर लौटा तो उसको गले में दर्द था .....अंदर से !..... बुखार सा भी था...... शाम से रात होते-होते तकलीफ बढ़ने लगी रात के 12:00 बजे तक गला बन्द... खांसी, जुकाम ,बुखार से बुरा हाल हो गया..... उसकी सूंघने व स्वाद  ग्रहण करने की शक्ति भी खत्म हो गई थी!

..... जांच कराने के लिए कोरोना सेंटर पर ले गए ।कोरोना पाज़िटिव रिपोर्ट आयी !

 .....अनीता क्रोध शोक से आपा खो बैठी ! ...."पड़ गयी ठंडक !"..होगयी समाज सेवा!!..... बहुत आखरी काट रखी थी....अरे मैं तो पहले ही कहती थी...मेरी सुनता कौन है? ...अब  मरो बे मौत !" 

....आखिर दुखों का पहाड़ जो टूट पड़ा था उस पर !

....... अनीता ने अपने मैके में भाइयों व ससुराल में देवर , जेठों  सभी से बात की "भैया हमारी मदद करो ! हम मुसीबत में हैं !" परन्तु कोरोना की सुन कर सभी ने वहाने बाजी कर किनारा कर लिया ।..... अब क्या करे ....तीन तीन बच्चों को लेकर कहां जाये ? किससे मदद मांगे ?

......परन्तु  ये क्या ! विशाल के मित्रों की टोली जैसे ही घर पहुंची ! खबर आग की तरह पूरे शहर में फ़ैल गयी......विशाल को  कोरोना हुआ है !........फिर क्या था उसके घर पर सामान पहुंचाने वालों का तांता लग गया !

"हम हैं न!..भाभी जी !"

 "चिन्ता मत करो !... "

"सब ठीक हो जाएगा"..!

..क्या क्या चाहिए ?.... सब हाजिर होने लगा ....क्या करना है  ? रुपए पैसे से लेकर बिना मांगे ही लोग सहयोग में जुट गए!

.... विशाल भैया  को कोई तकलीफ न हो  सब अच्छे से अच्छे इंतजाम होने लगे ....अच्छे अस्पताल में भर्ती कराया गया.... हालत ज्यादा बिगड़ने पर  तीर्थंकर से उसको मेरठ रेफर कर दिया गया...... रातों रात विशाल भैया को मेरठ में आंनद हास्पिटल में भर्ती कराया गया.....लोग रात दिन उसके बच्चों का ध्यान रख रहे थे । हर संभव परिवार की  देखभाल कर रहे थे।

......अनीता को अपने उलाहनो पर आज पश्चाताप और मलाल  हो रहा था ....और बहुत आश्चर्य भी ! ..... कि आज मुसीबत की घड़ी में जब सब अपनों ने उसका साथ छोड़ दिया था तब उसे सहायता पहुंचाने वाले .... इतने लोग....!

     अपनो की कमी तो चुभ रही थी.... पर .... अपने लोगों की कोई कमी नहीं थी ।

.....उधर अस्पताल में प्लाज्मा देने वालों की लाइन लगी हुई थी.....

 .....धीरे धीरे विशाल  स्वस्थ होकर घर आया ......घर पर मिलने वालो की भीड़ लगी थी........तिल रखने की घर में जगह नहीं थी.....!

.......... अनीता को मानो... विशाल के व्यक्तित्व के  विराट रूप का दर्शन हो रहा था..... वह व्यक्ति जो हजार ताने उलाहने सुन कर भी हमेशा जोर से हंस दिया करता था! जिसे अनीता ने हमेशा निकम्मा, संवेदन हीन, तुच्छ समझा कभी सम्मान की दृष्टि से भी नहीं देखा.....उसके इतने चाहने वाले !...

भीड़ को देख कर उसकी आंखों में आंसू थे.....शायद इसलिए कि उसका मन कह रहा था......!

........यही सब तो हैं मेरे अपने!

✍️ अशोक विद्रोही , 412,प्रकाशनगर, मुरादाबाद, मोबाइल फोन नम्बर 8218825541

बुधवार, 21 जुलाई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष शचीन्द्र भटनागर के नवगीत संग्रह 'त्रिवर्णी' की अशोक विद्रोही द्वारा की गई समीक्षा --- मन मोह लेने वाली अनमोल धरोहर है त्रिवर्णी

 त्रिवर्णी, शचींद्र भटनागर जी द्वारा रचित अनमोल कृति है। प्रस्तुत पुस्तक में 1960 से 1970 के मध्य लिखी गई पुस्तक "खंड खंड चांदनी से 18 गीत,उसके बाद 1970 से 1995 के मध्य लिखी गई पुस्तक" हिरना लौट चलें " से 20 गीत "ढाई अक्षर प्रेम के" से 16 गीत संकलित हैं सभी नवगीतों में अंतर्मन की जीवन अनुभूतियों का बहुत ही सुंदर चित्रण है रचनाएं छंदबद्ध है काव्य सौंदर्य की अनुभूति प्रत्येक गीत से फूटती प्रतीत होती है। जीवन संघर्ष एवं जिजीविषा के आत्मसात प्रतिबिंब ,मिथक, संकेत स्पष्ट होते हैं । सामाजिक विद्रूपताओं विसंगतियों का पर्दाफाश करती हुई मन: स्थितियों को गीतों में पिरोया गया है जिन तीन पुस्तकों से गीत संकलित किए गए हैं ,खंड खंड चांदनी, ,हिरना लौट चलें, और ,ढाई आखर प्रेम के, वह एक लंबे कालखंड में बदलती परिस्थितियों का समय रहा है जिसको बड़े ही सुंदर ढंग से कवि ने  उत्कृष्ट शब्द चयन लेखन में प्रस्तुत किया है

खंड खंड चांदनी से उद्धरित जनसंख्या नियंत्रण को दर्शाता गीत देखिए 

आओ हम रोपें दो पौधे फुलवारी में 

इतने ही काफी हैं 

छोटी सी क्यारी में 

हर पौधे की अपने सपनों की बस्ती हो अपनी कुछ धरती हो

 अपनी कुछ हस्ती हो 

हर पौधे के द्वारे गर्वीली गंध रुके 

बासंती यानों पर उड़ता आनंद रुके 

भटनागर जी ने  जनसंख्या विस्फोट पर  इसी गीत के उत्तरार्ध  में लिखा है --

भीड़ भरी बस्ती में लूट हुआ करती है

 सब कुछ कर सकने की 

छूट हुआ करती है

कोई व्यक्तित्व वहां उभर नहीं पाता है 

संवर नहीं पाता है 

उभर नहीं पाता है

 धूप नहीं मिलती है ,वायु नहीं मिलती है उपवन के उपवन को आयु नहीं मिलती है सारे पौधे 

सूखे सूखे रह जाते हैं

 प्यासे रह जाते हैं 

भूखे रह जाते हैं

जो बदलाव समाज में होते हैं उनको परिलक्षित  करते हुए वह लिखते है -----

हर दिशा से

आज कुछ ऐसी हवाएं चल रही है 

आदमी का आचरण बदला हुआ है 

इस तरह छाया हुआ भय और संशय है परस्पर 

बात मन से

 मन नहीं करता यहां पर

हर लहर में उच्चता की होड़ इतनी है 

कि जिसको देखकर

सागर स्वयं डरता यहां पर 

कल्पना विध्वंस की करता यहां पर

दिन ठहर गया  गीत में वह कहते हैं---

अभी-अभी इमली के पीछे 

दिन ठहर गया 

रोक दिया वाक्य 

जो विराम ने

 पत्तों के पीछे से 

झांक लिया लंगड़ाते धाम ने

जैसे मुड़कर देखा हो 

सजल प्रणाम ने

लंबाए पेड़ 

पात शाखाएं

 छायाएं दिशा दिशा नापतीं

एक सलेटी साड़ी पर


एक और गीत देखिए ------

अंधकार उतरा

पिघल गया सूर्यमुखी रूप 

बिल्लोरी जल में 

एक लहर सोना मढी

एक लहर मूंगे जड़ी 

एक लहर मोथरी छुरी 

जैसे हो सान पर चढ़ी 

शाम के लुहार ने 

तपा हुआ लोहखंड 

अग्नि से निकाला

पल भर में बुझा हुआ दिवस पड़ा काला

कितना सुंदर प्रकृति चित्रण इस गीत में किया है 

मनोभावों को गीत  में उतारते हुए वह लिखते हैं-----

 पूस की रात

कांप रही कोने में रात पूस की 

धवलाई किरणों को 

कुतर गई सांझ

 गोधूली ओढ़

 मौन पीछे दीवार सिटी सीढ़ी से 

उतर गई सांझ 

और किसी वृद्धा सी दुबक गई 

डरी डरी 

रीढ़ झुकी कटिया भी पूस की 

कांप रही कोने में रात पूस की


कवि जो देखता है उसके मन की व्यथा गीतों में अनायास ही फूट पड़ती है ----

मेरा दर्द कि मैं न गांव ही रह पाया 

न शहर बन पाया 

लुप्त हुई

कालीनों जैसी

खेत खेत फैली हरियाली

बीच-बीच में पगडंडी की शोभा वह

मन हरने वाली

अब न फूलती सरसों 

डालों पर मदमाते बौर नहीं हैं

तन मन की जो थकन मिटा दे 

वह शीतल से ठौर नहीं हैं

सबको छांह बांटने वाला 

मैं न सघन पाकर बन पाया

और गांव से शहर की ओर होने वाले पहले पलायन पर कवि ने लिखा

गांव सारा चल दिया 

जाने किधर 

हम निमंत्रण को तरसते रह गए

रुक गई वे दुध मुंही किलकारियां 

मौन भाषा चिट्ठियों की खो गई

थम गईं

रिमझिम फुहारें सांवनी 

गंध सोंधी मिट्टियों की खो गई

 --------------------------

कल तक जलजात जहां गंध थे बिखेरते

उग  आया वहीं पर 

सिवारों का जंगल 

इस कदर अंधेरा है 

विष भरी हवाएं हैं 

पार पहुंच पाना भी लगता है मुश्किल 

हम इतनी दूर 

चले आए हैं बिन सोचे 

आज लौट जाना भी लगता है मुश्किल 

सोचा था पाएंगे हम बयार चंदनी 

किंतु मिला कृत्रिम 

व्यवहारों का जंगल

संवेदनशील देखिएगा.... कवि कहता है-

औरों के क्रूर आचरण

कई बार कर लिए सहन 

अपनों का अनजानापन 

मीत सहा नहीं जाता 

सूरज को 

छूने की होड़ लिए वृक्षों से 

 कहीं नहीं मिलतीं 

मनचाही छायाऐं 

ऊंचे उठने की लघु ललक लिए बिटपों की 

बौनी रह जाती हैं 

अनगिनत भुजाएं

एक गीत और देखिएगा-

गंध का छोर मिलेगा

 हिरना लौट चलें 

अभिनंदन करती 

आवाजों के शोर बीच 

भाव मुखर एक भी नहीं 

सभी यंत्र चालित हैं 

बोलते खिलौने हैं

जीवित स्वर ही एक भी नहीं 

इन ऊंचे शिखरों पर 

बहुत याद आता है 

बादल बन बन बगियों में घिरना 

लौट चलें

अंत में कुछ गीत "ढाई आखर प्रेम के" से देखिएगा--

एक आकर्षण 

अगरु की गंध में 

भीगे नहाए क्षण

 मलय की छांव छूकर

लौट आए प्रण 

फिर भी मौन हूं मै

वह तरल निर्वाधिनी गति 

रुक गई 

एक ऊंचाई 

थरा तक झुक गई 

और मेरी दृष्टि 

हो आई गगन के पार 

गंधिल निर्जनो में 

विमल चंदन वनों में

एक आकर्षण 

अतल गहराइयों तक 

डूब आया मन 

खिंचावों में घिरा 

मेरा अकेलापन

फिर भी मौन हूं मैं

और देखिए कवि की संवेदना----

कोलाहल जाग गया 

सांसों के गांव में 

निमिष निमिष भीग गया 

रसभीने भाव में 

ऊंघ रहा है इस क्षण

उनमन सा एक सुमन एक कली जागी 

ऐसी कुछ बात हुई 

बनकर ज्यों छुईमुई

सोई है एक डगर एक गली जागी

अंत में एक गीत और --

जाने फिर मिले 

या न मिले खुला गगन कहीं 

यह नीला नीला आकाश सरल मन सा

आओ कुछ देर यहां बैठे हम ठहरें

     यदि शचीन्द्र भटनागर जी को, उनकी संवेदनाओं को जानना है तो यह पुस्तक एक बार अवश्य पढ़नी चाहिए।



कृति : त्रिवर्णी (नवगीत संग्रह)

रचनाकार  : शचीन्द्र भटनागर

प्रकाशक : हिंदी साहित्य निकेतन, 16 साहित्य विहार, बिजनौर, उत्तर प्रदेश, भारत

संस्करण  :  प्रथम 2015

मूल्य : ₹300 


समीक्षक
: अशोक विद्रोही , 412 प्रकाश नगर,  मुरादाबाद, 8218825541