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बुधवार, 29 मई 2024
बुधवार, 22 मई 2024
मुरादाबाद के प्रख्यात इतिहासकार,पुरातत्ववेत्ता और साहित्यकार स्मृतिशेष पंडित सुरेन्द्र मोहन मिश्र जी की जयंती 22 मई 2024 को उन पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का विशेष आलेख जो मुरादाबाद से प्रकाशित दैनिक परिवर्तन का दौर , दैनिक उत्तर केसरी, संभल से प्रकाशित दैनिक राष्ट्रीय सिद्धांत, लखनऊ से प्रकाशित दैनिक जनसंदेश और अमरोहा से प्रकाशित दैनिक आर्यावर्त केसरी में प्रकाशित हुआ है ......
सोमवार, 20 मई 2024
मुरादाबाद की संस्था कला भारती की ओर से आयोजित काव्य गोष्ठी में रविवार 19 मई 2024 को वरिष्ठ गीतकार वीरेन्द्र 'ब्रजवासी' को कलाश्री सम्मान
महानगर मुरादाबाद के वरिष्ठ गीतकार वीरेन्द्र सिंह 'ब्रजवासी' को उनकी साहित्यिक साधना के लिए कला भारती साहित्य समागम, मुरादाबाद की ओर से रविवार 19 मई 2024 को आयोजित समारोह में कलाश्री सम्मान से अलंकृत किया गया। उपरोक्त सामान-समारोह एवं काव्य-गोष्ठी का आयोजन मिलन विहार स्थित आकांक्षा इंटर कॉलेज में हुआ। राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता बाबा संजीव आकांक्षी ने की। मुख्य अतिथि डॉ. प्रेमवती उपाध्याय एवं विशिष्ट अतिथियों के रूप में डॉ. बृजपाल सिंह यादव एवं रामदत्त द्विवेदी मंचासीन हुए। कार्यक्रम का संचालन आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ ने किया।
सम्मान स्वरूप वीरेन्द्र 'ब्रजवासी' को अंग-वस्त्र, मानपत्र एवं प्रतीक चिह्न अर्पित किए गए। उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित आलेख का वाचन राजीव प्रखर एवं अर्पित मान-पत्र का वाचन योगेन्द्र वर्मा व्योम द्वारा किया गया।
सम्मानित साहित्यकार वीरेन्द्र 'ब्रजवासी' की साहित्यिक यात्रा पर अपने विचार रखते हुए कार्यक्रम अध्यक्ष बाबा संजीव आकांक्षी ने कहा - "श्री ब्रजवासी सामाजिक जीवन से जुड़े हुए एक ऐसे संवेदनशील रचनाकार हैं जिनकी रचनाएं काव्य से जुड़े प्रत्येक पाठक अथवा श्रोता के हृदय को गहराई तक स्पर्श कर जाती हैं।"
श्री ब्रजवासी की रचनाधर्मिता पर विशिष्ट अतिथि डाॅ. प्रेमवती उपाध्याय का कहना था - "अपनी पावन भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति से जुड़े रहकर, समाज के प्रत्येक वर्ग तक अपनी गहरी पैठ बनाना श्री ब्रजवासी जी के रचनाकर्म की विशेषता रही है।"
विशिष्ट अतिथि डॉ. बृजपाल सिंह यादव ने कहा - "उनका रचनाकर्म जहाॅं एक ओर ब्रज की महान परम्परा के दर्शन कराता है वहीं दैनिक जीवन से जुड़े अनेक महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी उनकी पैनी दृष्टि रहती है। वह समस्याओं की बात ही नहीं करते अपितु उनके यथासंभव हल भी प्रस्तुत करते हैं।" उपरोक्त सम्मान समारोह में वीरेन्द्र 'ब्रजवासी' के सम्मान में एक काव्य-गोष्ठी का भी आयोजन हुआ। काव्य-पाठ करते हुए सम्मानित साहित्यकार वीरेन्द्र ब्रजवासी ने कहा -
माॅं का दिल कितना होता है,
चिड़िया के जितना होता है।
खुशियों में जितना खुश होता,
दुख में उतना ही रोता है।
भूख-प्यास को माॅं बच्चे की,
किलकारी से पढ़ लेती है।
ऑंचल से ढक कर बच्चे का,
उदर दूध से भर देती है।
काला टीका लगा नज़र की,
चिंता से डरना होता है।"
इसके अतिरिक्त अन्य उपस्थित रचनाकारों दुष्यंत बाबा, राजीव प्रखर, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, योगेन्द्र वर्मा व्योम, डॉ. मनोज रस्तोगी, मनोज मनु, ओंकार सिंह ओंकार, नकुल त्यागी, योगेन्द्र पाल सिंह विश्नोई, रमेश गुप्त, अभिनव चौहान, रामदत्त द्विवेदी, डॉ. प्रेमवती उपाध्याय, बाबा संजीव आकांक्षी, रघुराज सिंह निश्चल आदि ने भी विभिन्न सामाजिक मुद्दों को अपनी-अपनी रचनाओं के माध्यम से उठाया। मनोज मनु द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा।
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था अंकन नवोदित साहित्यकार मंच की ओर से 19 मई 2024 को साहित्यकार कृष्णदयाल शर्मा का सम्मान
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था अंकन नवोदित साहित्यकार मंच के बैनर तले रविवार 19 मई 2024 को प्रताप सिंह हिन्दू गर्ल्स इंटर कॉलेज की प्रधानाचार्य सीमा शर्मा के लाजपतनगर स्थित आवास पर आयोजित कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार कृष्ण दयाल शर्मा को सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता रानी शर्मा ने की। वरिष्ठ बाल साहित्यकार राकेश चक्र विशिष्ट अतिथि रहे तथा डॉ. सीमा शर्मा, डॉ प्रीति हुँकार, इन्दु रानी और शुभम कश्यप अतिथि मंडल में रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन के बाद शुभम कश्यप द्वारा प्रस्तुत मां सरस्वती वंदना से हुआ।कार्यक्रम का संचालन राजीव प्रखर ने किया । इस अवसर पर सभी ने काव्य पाठ भी किया ।
शनिवार, 18 मई 2024
रविवार, 12 मई 2024
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' ने मातृ-दिवस की पूर्व संध्या पर 11 मई 2024 को आयोजित की काव्य-गोष्ठी
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ओर से मातृ-दिवस की पूर्व संध्या पर 11 मई 2024 को काव्य-गोष्ठी का आयोजन स्वतंत्रता सेनानी भवन पर हुआ।
कवयित्री आकृति सिन्हा द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रामदत्त द्विवेदी ने कहा ....
माॅं ! तुम हो आंगन की तुलसी,
सबके मन को हर्षाती हो।
मुख्य अतिथि धवल दीक्षित ने कहा मां पर प्रस्तुत सभी रचनाओं की प्रस्तुति उत्कृष्ट रही।
विशिष्ट अतिथि डॉ. पूनम बंसल के अनुसार -
जीवन के तपते मरुथल में मां गंगा की धार है।
अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर मां गीता का सार है।
उसकी खुशबू हर कोने में मां घर का श्रृंगार है।।
विशिष्ट अतिथि श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा -
लगता है तुम यहीं कहीं हो, छिपी हमारे पास।
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।
विशिष्ट अतिथि फक्कड़ 'मुरादाबादी' की अभिव्यक्ति थी -
ममता ने आंचल फैलाया,
दामन ने जग से दुबकाया।
उठी लहर दर्द की जब भी,
उसका चेहरा सामने आया।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए राजीव प्रखर ने अपनी पंक्तियों से सभी को भाव विभोर करते हुए कहा -
क्या तीरथ की कामना, कैसी धन की आस।
जब बैठी हो प्रेम से, अम्मा मेरे पास।।
चीं-चीं करके भोर में, चिड़िया रही पुकार।
अम्मा से कुछ कम नहीं, यह सुन्दर क़िरदार।।
वरिष्ठ कवि वीरेन्द्र बृजवासी ने कहा -
मुझपे तुमपे या सारी दुनियाँ पे
मां भरोसा कभी नहीं करती,
तीर, तलवार हों या संगीनें,
इनसे तो माँ कभी नहीं डरती।
सरिता लाल के भाव थे -
जीवन के कुछ अधखुले पन्ने, जो एकाएक खुल जाते है़ं।
उसके कुछ अनछुए आयाम, जो उसके पहलू से लिपट जाते हैं।
डॉ. मनोज रस्तोगी के अनुसार -
जीवन में पग-पग पर याद आती है माॅं।
मन के आंगन को महका जाती है माॅं।
योगेन्द्र वर्मा व्योम की इन पंक्तियों ने भी सभी के हृदय को भीतर तक स्पर्श किया -
माँ का होना, मतलब दुनिया भर का होना है।
तकलीफें सहकर भी सारे फर्ज निभाती है।
उफ तक करती नहीं हमेशा ही मुस्काती है।
उसका मकसद घर-आँगन में खुशबू बोना है।
प्रो. ममता सिंह की अभिव्यक्ति थी -
मेरी प्यारी मांँ ने मुझको
जीवन का उपहार दिया।
जाग जाग कर रात रात भर ,
ममता और दुलार दिया ।।
विवेक निर्मल ने कहा -
हो गया बूढ़ा मगर अब भी दुलारती है
ओ लला कह कर मुझे अब भी पुकारती है।
सुप्रसिद्ध शायर डॉ. मुजाहिद फ़राज़ का कहना था -
ख़ुद भी आग़ोश में बचपन की वो जाती होंगी,
माएँ जब लोरियां बच्चों को सुनाती होंगी।
महबूब हो , बीवी हो,बहन हो कि हो बेटी,
माँ जैसा मुहब्बत का समंदर नही देखा।
शायर ज़िया ज़मीर ने अपनी इस प्रस्तुति से सभी को भाव विभोर कर दिया -
बांधना घर को इक धागे में कितना भारी है।
इसमें तुम्हारी सिर्फ तुम्हारी ही हुशियारी है।
तुमको है मालूम पिरोना कैसा होता है,
मां हो तुम और मां होना ऐसा होता है।
कवि राशिद हुसैन के अनुसार -
माॅं के आंचल की जब हम दुआ हो गए।
सर बुलंदी से हम आशना हो गए।
जब कभी माॅं की गोदी में सर रख दिया,
गम मुकद्दर से अपने हवा हो गए।
रचना पाठ करते हुए कमल शर्मा ने कहा -
बचपन में रोते बच्चे पर आंचल सी बन जाती माॅं।
सीने से हरदम चिपकाए, कितने लाड़ लड़ाती माॅं।
कवयित्री आकृति सिन्हा के भाव इस प्रकार थे -
जिसने जीवन दिया मुझे
जो दुनियां में लायी मुझे।
जिसकी दुआ से मिला सबकुछ मुझे,
उस मातृ शक्ति को प्रणाम मेरा दे आशीर्वाद मुझे।
कवि अमर सक्सेना के भाव थे -
तिरंगे में लिपटा आऊंगा मैं,
वीर बहादुर कहलाऊंगा मैं,
वतन से मुहब्बत है मुझे,
वतन के लिए मर जाऊंगा मैं
योगेन्द्र वर्मा व्योम द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा।