मंगलवार, 30 अप्रैल 2024

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष माहेश्वर तिवारी जी से लिया गया यह साक्षात्कार बरेली से प्रकाशित दैनिक अमर उजाला के 24 मई 1987 के रविवासरीय परिशिष्ट में प्रकाशित हुआ था । उस समय मैं एम ए का विद्यार्थी था । 37 वर्ष पूर्व लिया गया यह साक्षात्कार आज भी प्रासंगिक है ––

लोक से ही मिलते हैं कविता के संस्कार


■■ आपने किस आयु से लिखना प्रारंभ किया तथा लेखन की प्रेरणा किससे मिली?

□□ बारह वर्ष की आयु से। पहला छन्द एक समस्या पूर्ति के रूप में था। प्रेरणा के बारे में कई बातें हैं। पहली--मेरे चाचाजी को गीत-गोविन्द आदि के पद कंठस्थ थे। वे जब उन्हें सस्वर गाया करते थे तब मैं भी उनके साथ बैठ जाया करता था जिसके कारण संस्कार मेरे वहीं से पड़ गये।

     उसके बाद जब मैं जूनियर हाईस्कूल में पढ़ने गया तो वहां रामदेव सिंह कलाधर नामक के एक अध्यापक थे जो स्वयं सनेही जी के मण्डल के समर्थ रचनाकारों में से एक थे। चूंकि वहां उस समय कोई विशिष्ट श्रोता नहीं थे अतः उनके छात्र ही उनकी रचनाओं के प्रथम श्रोता होते थे। उसी दौरान में हिन्दी साहित्य सम्मेलन की प्रथमा की परीक्षा में बैठा और रामचन्द्र शुक्ल 'सरस' का खण्ड काव्य को जो 'अभिमन्यु' से संबंधित था, पढ़ा। उसे  पढ़ते समय मुझे अचानक लगा मैं भी कुछ  लिख सकता हूं। संयोग है कि पहला छन्द जो मैंने लिखा वह अभिमन्यु से ही संबंधित था। इस बारे में जैसे ही श्री कलाधर जी को मेरे बारे में जानकारी मिली तो उन्होंने न केवल मुझे प्रोत्साहित किया बल्कि छन्द शास्त्र की अलग से शिक्षा भी देनी प्रारंभ कर दी। इसलिये प्रेरक या काव्य गुरु अगर मैं किसी को कह सकता हूं तो श्री रामदेव सिंह कलाधर जी को ही। हालांकि प्राथमिक संस्कार मुझे परिवार से ही मिले।

■■ आपने अधिकतर नवगीत ही लिखे हैं। क्या सोच-समझकर या लिखने के बाद आपको लगा कि यह नवगीत हो गये हैं?

□□ दरअसल नवगीत के साथ मैं सन् 1969 से जुड़ा। उससे पहले छायावाद उत्तर गाथा से ही जुड़ा हुआ था। लिखने के साथ-साथ पढ़ने की रुचि मुझमें शुरू से थी उस समय मैं प्रकाशित रचनाओं को सिर्फ पढ़ता ही नहीं था, उन पर सोचता भी था और इस सोचने के क्रम में मुझे ऐसा लगा यदि हिन्दी गीत को अपने समय के साथ साँस लेनी है तो उसे उपस्थित चुनौतियों से जूझना पड़ेगा और उस समय हिन्दी गीत के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी--'नयी कविता' यदि हिन्दी गीत उस समय नयी कविता के अभिव्यक्ति कौशल को और समकालीन रचना के मुहावरों को नहीं पकड़ता तो इसके अप्रासंगिक हो जाने की पूरी-पूरी संभावनाएं थीं। दूसरी चुनौती थी मंच से पढ़े जाने वाले गीतों में निरन्तर रचनात्मकता का ह्रास होना। प्रमुख रूप से इन दो चुनौतियों ने मुझे नवगीत से जोड़ दिया। इसके अलावा मुझे वातावरण भी कुछ ऐसा मिला। देवेन्द्र कुमार, डा. परमानन्द श्रीवास्तव, ब्रजराज तिवारी, रामसेवक श्रीवास्तव, भगवान सिह आदि युवा रचनाकार मेरे महाविद्यालय के सहपाठी थे।

 ■■ गीत से नवगीत की पृथकता की पहचान के लिये आप किन-किन आधारों को स्वीकार करेंगे?

□□ देखिये, नवगीत ने आधुनिक बोध को ग्रहण किया है जबकि परम्परावादी गीत में आधुनिक बोध नहीं है। नवगीत में संभवतः पहली बार रागात्मकता को दाम्पत्य तथा पारिवारिकता से जोड़ा गया है जबकि परम्परावादी गीतों में आध्यात्म तथा प्रेम का ही बखान प्रमुख रूप से हुआ है। नवगीत ने छन्द में आवश्यक परिवर्तन किये हैं और छोटा किया है जबकि परम्परावादी गीत लम्बे-लम्बे लिखे जाते रहे हैं। नवगीत ने नये प्रतीकों और बिम्बों के माध्यम से अपनी रचनात्मकता को सुधारा है।

दूसरी बात--नवगीत ने शब्दों के  संभावित अर्थों को साथ-साथ अपनाया है। इसके अलावा लोक से ही कविता को आदिशक्ति और संस्कार मिलते रहे हैं। नवगीत अपनी तलाश में उसी ओर लौटा जबकि परम्परावादी गीतों में यह लोक चेतना या लोक संस्कृति, लोक भाषा अथवा लोकलय अनुपस्थित रही।

■■ आपकी दृष्टि में श्रेष्ठ कविता के लिये किन-किन गुणों का समावेश होना जरूरी है?

□□ सबसे पहली चीज है, रचना की विषय वस्तु। दरअसल जब तक रचना से यह स्पष्ट न हो कि वह आपके निजत्व को तोड़कर उसे कितना सामाजिक बनाती है तथा अपने समय के साथ अपनी प्रांसगिकता को सिद्ध करती है तब तक रचना शिल्प की दृष्टि से कितनी ही प्रौढ़ और परिपक्व क्यों न हो वह एक कमजोर रचना ही मानी जायेगी। शिल्पगत निखार उसका एक उपकरण है लेकिन वह सबसे ज्यादा जरूरी और सबसे बड़ा उपकरण नहीं है। प्रमाण देना यदि किसी रचना की श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिये शिल्पगत आग्रह ही प्रमुख होते तो कबीर को या तो कवि ही नहीं माना जाता और यदि माना जाता तो एक घटिये दर्जे का।

      मात्राएं गिनकर हम सिर्फ कविता का ढाँचा खड़ा कर सकते हैं उससे कविता नहीं खड़ी कर सकते। हिन्दी साहित्य की सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि उसके तमाम रचनाकार शब्द और अर्थ की लय को भूलकर मात्राओं के तानपुरे में ज्यादा उलझे रहते हैं। इसीलिये आज के बहुत से गीतों में सिर्फ साज बजते हैं, गीत नहीं सुनाई देता।

■■ क्या कोई विचारधारा अथवा सिद्धान्त आपके विचारों को बल देता है और क्या उसका उपयोग आप अपने लेखन में करते हैं ?

□□ हाँ, सन् 1970 तक कलावादियों की तरह सिर्फ कलागत आग्रह ही मेरी रचनाओं के मूलबिन्दु थे। कोई भी विचारधारा अलग से स्पष्ट नहीं थी। 1970 के बाद प्रगतिशील विचारधारा से समता के कारण यह स्पष्ट हो गया कि रचना की सबसे बड़ी और केन्द्रीय चुनौती और चिन्ता उसके सामाजिक चुनौती और चिन्ता उसके सामाजिक सरोकारों से जुड़कर प्रासंगिकता ग्रहण करती है। उसका परिणाम यह हुआ कि मैं अपने लेखन में सामाजिक चिन्ताओं को ही अभिव्यक्ति देने लगा।

■■ आदरणीय तिवारी जी, क्या आप मानते हैं कि कविता से सामाजिक क्रान्ति संभव है?

□□ कविता से सामाजिक बदलाव दूसरी प्रक्रियाओं की अपेक्षा ठोस किन्तु धीमी होती है। रचना अपने आप में पूर्ण होती है और अपने समय के मनुष्य के मन और मस्तिष्क को तैयार करती है और इसके लिये उसे व्यक्ति के मन में बैठे पूर्व संस्कारों से जूझना पड़ता है।

■■ आप कवि सम्मेलनों से भी बहुत जुड़े हुए हैं। क्या आप आज के कवि सम्मेलनों के स्वरूप से सन्तुष्ट हैं?

□□ मैं नितान्त असन्तुष्ट हूं। सबसे पहले तो घटिया रचनाकारों की मंच से छंटाई होनी  चाहिये और दूसरे घटिया कवियों ने जिन श्रोताओं और पाठकों के मन बिगाड़ दिये हैं उनको संस्कारित करने के लिये बड़ी गोष्ठियां आयोजित की जायें।

■■ चलते-चलते, एक प्रश्न नवोदित रचनाकारों की ओर से कि आप उन्हें क्या सुझाव देना चाहेंगे?

□□ नवोदित रचनाकारों को मेरा सुझाव है - कि वे जिस भी विधा में लिख रहे हों उस विधा के पुराने से लेकर नये तक के साहित्य को गंभीरता से पढ़ें और उस पर चिन्तन करें। 



सोमवार, 29 अप्रैल 2024

मुरादाबाद मंडल के नजीबाबाद ( जनपद बिजनौर) से अमन कुमार के संपादन में प्रकाशित राष्ट्रीय साप्ताहिक समाचार पत्र ओपन डोर का संयुक्तांक (वर्ष चार अंक 10– 11) 21 एवं 28 अप्रैल 2024 नवगीतकार माहेश्वर तिवारी को भावभीनी श्रद्धांजलि अंक के रूप में प्रकाशित हुआ है । 36 पेज के इस महत्वपूर्ण एवं संग्रहणीय अंक में हैं –– राजेंद्र गौतम, डॉ मक्खन मुरादाबादी, राजीव प्रखर, अर्चना उपाध्याय, डॉ अशोक रस्तोगी, सोनरूपा विशाल, प्रदीप गुप्ता, बाल सुंदरी तिवारी, जिया जमीर, श्रीकृष्ण शुक्ल, ओंकार सिंह ओंकार, डॉ शंकर लाल शर्मा क्षेम, प्रो ममता सिंह, डॉ अनिल शर्मा अनिल, ए टी ज़ाकिर, डॉ रीता सिंह, योगेंद्र वर्मा व्योम, दयानंद पांडेय, राशिद हुसैन, डॉ राहुल अवस्थी, डॉ मनोज रस्तोगी, डॉ मोहम्मद जावेद और अशोक विश्नोई के श्रद्धांजलि आलेख, मीनाक्षी ठाकुर, योगेंद्र वर्मा व्योम, ओम निश्चल, डॉ अजय अनुपम, बुद्धि नाथ मिश्र, यश मालवीय और जय कृष्ण राय तुषार के श्रद्धांजलि गीत, डॉ कृष्ण कुमार नाज और डॉ मनोज रस्तोगी द्वारा माहेश्वर तिवारी से लिए गए साक्षात्कार, मुरादाबाद में हुई श्रद्धांजलि सभा का समाचार। इसके अतिरिक्त स्मृति शेष माहेश्वर तिवारी का साहित्यिक परिचय, 26 दोहे ,12 ग़ज़लें और 10 नवगीत..... साथ में है दुर्लभ चित्र तथा अंतिम विदाई के दुखद पल .....


 पूरा अंक पढ़ने के लिए क्लिक कीजिए 

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:::::::प्रस्तुति:::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

संस्थापक

साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति की ओर से साहित्यकार स्मृतिशेष आनंद कुमार 'गौरव' की स्मृति में 28 अप्रैल 2024 को श्रद्धांजलि सभा का आयोजन


"फिर से कोई गीत लिखूॅं मन कहता है, फिर तुमको मनमीत लिखूॅं मन कहता है।"
अपने ऐसे ही अनेक हृदयस्पर्शी गीतों में अमर हो चुके सुप्रसिद्ध गीतकार आनंद कुमार 'गौरव' की पावन स्मृति सभी की  ऑंखें नम कर गई। उनका मधुर स्वर, सभी से मैत्रीपूर्ण व्यवहार एवं मोहक मुस्कान, सभी कुछ उनके गीतों के माध्यम से उनके अनगिनत प्रशंसकों की स्मृतियों में बस चुके हैं। कीर्तिशेष गौरव जी के ही शब्दों में - "मेरे सपनों का भारत, मानवता का रखवाला है। सभ्य सुसंस्कृत सद् व्यवहारी, हर हिंदी मतवाला है।" 

     राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, मुरादाबाद की ओर से रविवार 28 अप्रैल 2024 को कीर्तिशेष आनंद कुमार 'गौरव' की स्मृति में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन लाइनपार स्थित विश्नोई धर्मशाला में किया गया, जिसमें महानगर के  अनेक साहित्यकारों ने उन्हें अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके निधन पर अपनी संवेदनाएं व्यक्त कीं।  कीर्तिशेष आनंद कुमार 'गौरव' के साहित्यिक अवदान का स्मरण करते हुए वरिष्ठ शायर ओंकार सिंह ओंकार ने कहा - "गौरव जी के जाने से मनमोहक हृदयस्पर्शी गीतों का एक सुनहरा युग समाप्त हुआ है। वह एक उच्च कोटि के रचनाकार होने के साथ-साथ सभी का हृदय जीतने वाले एक प्यारे इंसान भी थे।"

   सुप्रसिद्ध नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने  गौरव जी के साथ अपनी स्मृतियों को साझा करते हुए कहा -"समर्पण एवं जीवट के धनी गौरव जी के योगदान को शब्दों में व्यक्त करना अत्यंत कठिन है। अपनी साहित्यिक यात्रा में उन्होंने एक रचनाकार एवं सेवक दोनों रूपों में कुशलता पूर्वक अपनी भूमिका का निर्वहन किया।" 

महानगर के रचनाकार राजीव प्रखर ने अपनी भावनात्मक अभिव्यक्ति में कहा -"वरिष्ठ एवं कनिष्ठ सभी को समान रूप से स्नेह बांटना एवं उनके रचनाकर्म पर पैनी दृष्टि रखना गौरव जी की विशेषता थी।" 

वरिष्ठ रचनाकार डॉ. मनोज रस्तोगी का कहना था -"गौरव जी के व्यक्तित्व में विद्यमान सरलता व सौम्यता उनकी रचनाओं में भी स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है।" 

युवा कवि दुष्यंत बाबा के अनुसार -"कुछ अवसरों पर गौरव जी से हुई भेंट जीवन भर मुझे स्मरण रहेगी। उनका उत्कृष्ट व्यक्तित्व एवं कृतित्व सभी के लिए प्रेरक है।" 

संस्था के अध्यक्ष राम सिंह निशंक ने कहा -"विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य व सौम्यता को बनाए रखते हुए कार्य करना गौरव जी की विशेषता रही।" 

लोकप्रिय शायर ज़िया ज़मीर ने अपने संस्मरण साझा करते हुए कहा - "गौरव जी का जाना साहित्य एवं मानवता दोनों की एक अपूर्णीय क्षति है।" 

वरिष्ठ पत्रकार हरि प्रकाश शर्मा के अनुसार -"कीर्तिशेष आनंद गौरव जी जीवन भर साहित्य एवं समाज की सेवा में रत रहे। उनके भीतर का एक अच्छा इंसान उनकी रचनाओं में स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। उनका प्रत्येक गीत श्रोताओं एवं पाठकों को झंकृत कर डालने की क्षमता से ओत-प्रोत है।"        

वरिष्ठ शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज़ के अनुसार - "इतने वर्षों तक साथ निभाने के पश्चात् गौरव जी के इस तरह चले जाने से ऐसा प्रतीत होता है मानो हृदयस्पर्शी गीतों का आंगन सूना हो गया हो।"         

     वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने गौरव जी का स्मरण करते हुए कहा - "आनंद गौरव जी अपने अद्भुत सृजन में अमर हो चुके हैं। उनके हृदयस्पर्शी गीत उनकी उपस्थिति का भान कराते रहेंगे।" 

      सभी के नेत्र नम कर देने वाले इस अवसर पर कीर्तिशेष आनंद 'गौरव' जी की पत्नी ऊषा 'गौरव', अनुज अशोक कुमार सिंह, अनुज वधू रेनू सिंह, पुत्री  प्रेरणा 'गौरव', धेवती हर्षिता सिंह तथा पुत्रगण विक्रांत गौरव एवं विकास गौरव भी उपस्थित रहे। 

   इनके अतिरिक्त विवेक निर्मल, वंशी लाल दिवाकर, रघुराज सिंह निश्चल, डॉ. राकेश चक्र, नकुल त्यागी, रवि चतुर्वेदी, निर्मल शर्मा, समीर तिवारी आदि ने भी कीर्तिशेष आनंद कुमार 'गौरव' को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। दिवंगत आत्मा की शांति हेतु दो मिनट का मौन रखने के पश्चात् सभा विसर्जित हुई।