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गुरुवार, 1 फ़रवरी 2024

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद संभल ) के साहित्यकार स्मृतिशेष रामावतार त्यागी का गीत संग्रह ....गुलाब और बबूल वन । यह उनकी तीसरी कृति है जो वर्ष 1973 में आत्माराम एंड संस दिल्ली ने प्रकाशित की है। इस कृति में उनके 64 गीत हैं ।




 क्लिक कीजिए और पढ़िए पूरी कृति

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:::::::प्रस्तुति::::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

संस्थापक

साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत 

मोबाइल फोन नंबर 9456687822

शुक्रवार, 20 मई 2022

मुरादाबाद मंडल के नजीबाबाद (जनपद बिजनौर) से अमन कुमार त्यागी के संपादन में प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका शोधादर्श का मार्च- मई 2022 अंक प्रख्यात साहित्यकार रामावतार त्यागी विशेषांक के रूप में प्रकाशित हुआ है। इस अंक के विशेष संपादक प्रो ऋषभ देव शर्मा और अतिथि संपादक डॉ कारेंद्र देव त्यागी मक्खन मुरादाबादी हैं। इस अंक में स्मृतिशेष रामावतार त्यागी की चर्चित रचनाओं के साथ-साथ उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर सर्वश्री बालस्वरूप राही, क्षेमचंद्र सुमन, रामधारी सिंह दिनकर, शेरजंग गर्ग, रमेश गौड़, डॉ मक्खन मुरादाबादी, अमन कुमार त्यागी,महेंद्र अश्क, डॉ अनिल शर्मा अनिल, त्यागी अशोका कृष्णम, डॉ डीएन शर्मा, डॉ अजय अनुपम, डॉ विनय, डॉ वीणा गौतम, प्रोफेसर निर्मला एस मौर्य, डॉ शंकर लाल क्षेम, प्रोफेसर आनंद कुमार त्यागी, के एस तूफान, गिरीश पंकज, डॉ गुर्रकोंडा नीरजा, डॉ सुशील कुमार त्यागी, डॉ अरविंद कुमार सिंह, अरविंद जय तिलक, डॉ चंदन कुमारी, स्नेह लता, डॉ निरंकार सिंह त्यागी, रश्मि अग्रवाल, डॉ डॉली, डॉ शैलजा सक्सेना, विजय प्रकाश भारद्वाज, डॉ मृदुला त्यागी, डॉ मंजू रुस्तगी, डॉ अरुण कुमार त्यागी, आचार्य संजीव कुमार त्यागी के महत्वपूर्ण आलेख प्रकाशित हुए हैं। इसके अतिरिक्त डॉ मनोज रस्तोगी द्वारा साहित्यिक मुरादाबाद के तत्वावधान में अप्रैल 2022 में स्मृतिशेष रामावतार त्यागी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केंद्रित तीन दिवसीय आयोजन की विस्तृत रिपोर्ट भी प्रकाशित हुई है ।


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बुधवार, 20 अप्रैल 2022

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम का आलेख --- गीतों के सम्राट रामावतार त्यागी मानवता के संवाहक


नाम : रामावतार त्यागी, जन्म1935, स्थान : कुरकावली, तहसील संभल, जिला तत्कालीन मुरादाबाद, देहावसान : 12 अप्रैल 1985 नई दिल्ली, शिक्षा: स्नातकोत्तर हिंदी ,दिल्ली विश्वविद्यालय

    नया खून, मैं दिल्ली हूं, आठवां स्वर, गुलाब और बबूल वन, महाकवि कालिदास रचित मेघदूत का काव्य अनुवाद करने वाले, समाधान, चरित्रहीन के पत्र , दिल्ली जो एक शहर था, राम झरोखा ,व्यंग्य स्तंभ और गद्य रचनाएं रचने वाले, समाज, समाज  कल्याण, साप्ताहिक हिंदुस्तान, नवभारत टाइम्स में संपादन कार्य करने वाले, अनेक विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में उनकी रचनाएँ पढ़ाई जाने वाले, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ,हरिवंश राय बच्चन, गोपाल सिंह नेपाली, नरेंद्र शर्मा, शिवमंगल सिंह सुमन, बलवीर सिंह, देवराज दिनेश, वीरेंद्र मिश्र की कवि कुल पीढ़ी के ज्वालयमान नक्षत्र।

खड़ी है बांह फैलाए हुए हर और चट्टानें / गुजरती बिजलियां अपनी कमानें हाथ में ताने/ गजब का एक सन्नाटा कहीं पत्ता नहीं हिलता / किसी कमजोर तिनके का समर्थन तक नहीं मिलता । हो, या जिंदगी और बता तेरा इरादा क्या है अथवा विचारक है ना पंडित हैं ना हम धर्मात्मा कोई, बड़ा कमजोर जो होता वही बस आदमी हैं हम। जैसे सैकड़ों अमर गीतों के रचयिता गीत कवि रामावतार त्यागी के साहित्यिक अवदान के बारे में तो पूरा काव्य जगत मुझसे कहीं बहुत अधिक....बहुत अधिक ही जानता है, पहचानता है और मानता है। संपूर्ण हिंदी साहित्य जगत ने उनके गीतों की विशेष रूप से सराहना करते हुए उनकी प्रतिभा का लोहा भी माना है, किंतु रामावतार त्यागी के भीतर एक दूसरा संसार 'मानवता का संसार' भी रचा बसा हुआ था, जिसमें प्रेम, करुणा, दया ,आंसू से लवरेज जिंदगी के दर्शन होते हैं। उनके भीतर जिंदगी की अठखेलियां भी खूब रची- बसी थी ,जो बच्चों में भी बसती हैं और बड़ों में भी रहती हैं। वह बच्चों में भी खूब रमते थे और बड़ों में भी जमकर जमते थे। बच्चों जैसे उनके मन में उछलते हिरण दौड़ लगाते थे तो कभी रूठ कर बैठ जाते और मान भी जाते थे, जो उनके रूठने का अपना अलग अंदाज था और मानने का तो कोई जवाब ही नहीं। रामावतार त्यागी में ना जाने क्या-क्या तलाशने में लगे रहे काव्य जगत से जुड़े लोग उनके व्यापक और विराट व्यक्तित्व के बारे में शायद दो चार पायदान ही चल पाए हो।

     मैं जो उसी कुल गांव और गोत्र और कुरकावली के उसी खानदान में जन्मा जिसमें  रामावतार त्यागी (ताऊ जी) का अवतरण हुआ। मेरी आयु लगभग 9-10 वर्ष की रही होगी। सन 70 और 80 के दशक में तब ताऊ जी का किसी शादी - विवाह के अवसर पर गांव में आना-जाना हुआ करता था अथवा वह किसी साहित्यिक यात्रा पर जब इधर से निकलते थे चाहे वह मुरादाबाद हो, बदायूं हो, चंदौसी हो,  बरेली या शाहजहांपुर जाते थे तो निश्चित रूप से कुरकावली अवश्य आया करते थे। उनको अपनी जन्मभूमि किसी तीर्थ स्थान की तरह लगती थी। उनके समय के अनेक ख्याति प्राप्त सुकवि उनके साथ कुरकावली आकर दालान पर रात्रि प्रवास कर चुके थे । जाने कितने छपने और छापने वाले महान संपादक और कवि उनके घर की बनी बाजरे की रोटी, देसी घी पड़े साग से खाकर धन्य हो गए । पता नहीं, क्यों मुझे बचपन से ही उनके कवि होने से बेहद लगाव था। उनके अस्तित्व से मैं कुछ ज्यादा ही प्रभावित था । वह जब गांव आकर उठने बैठते, मेरे दादाजी बाबूराम त्यागी जो उन्हीं की उम्र के थे उनके पास आया करते थे तब उनके सभी खानदानी भाई चारों ओर खाटें बिछा कर बैठ जाया करते थे। उनको देखा करते और सुना करते थे। मैं जो बहुत अधिक गाने- बजाने में रुचि रखता था, पिताजी से डरकर किसी कोने में खड़ा होकर उनकी बातें सुना करता था। मुझे याद है कि उस समय 'जिंदगी और तूफान', महावीर अधिकारी जी के उपन्यास पर आधारित फिल्म आ  चुकी थी और उसमें उनके गीत का तहलका पूरे विश्व में मच चुका था तब गांव आने पर उन्होंने सभी को अपने अन्य गीत सुनाने के बाद 'जिंदगी और बता तेरा इरादा क्या है' बहुत मन के साथ सुनाया था। मेरी स्मृतियों में सुरक्षित है जब बहन शारदा की बारात हापुड़ के चमरी गांव से आई थी तो विदाई के समय बारातियों के विशेष अनुरोध पर उन्होंने यूं ही खड़े होकर अपने कुछ गीत सुनाए थे , जिसके बोल कुछ इस प्रकार थे----

 किसी गुमनाम से गांव में पैदा हुए थे हम

 नहीं है याद पर कोई अशुभ शाही महीना था 

रजाई की जगह ओढी पुआलो की भवक हमने

 विरासत में मिला जो कुछ हमारा ही पसीना था

 रामावतार त्यागी जी का व्यक्तित्व छल, प्रपंच, झूठ, पाखंड, हानि- लाभ, जीवन- मरण, यश- अपयश के बंधनों से बहुत दूर था । उन्होंने अपने आप को सभ्य, सुसंस्कृत, सुशील, शालीन, संस्कारित, सच्चरित्र दिखाने के लिए कभी मिथ्या आडंबर और चिकने चुपडे़, गंदे आवरण को अपने व्यक्तित्व पर कभी नहीं ओढ़ा। उनका जीवन एक खुली किताब की तरह था। एकदम सरलता से परिपूर्ण और कुटिलताओं से कोसों कोसों दूर। यह उनके चरित्र की एक बहुत वडी विशेषता थी । उन्होंने जो कुछ भोगा वही लिखा, जो कुछ लिखा वही कहा और सीना चौड़ा कर चीख चीख कर कहा। बेहद स्वाभिमानी व्यक्तित्व के धनी थे।

  रामावतार त्यागी के खरेरे खरे और खुरदरी व्यक्तित्व में यदि सच और कृतज्ञ भाव न होता तो वह एक अहंकारी व्यक्ति के रूप में जाने और पहचाने जाते । उनका अकड़पन उनका खरेरा पन ही उनके व्यक्तित्व को अनेक लोगों से कोसों दूर.... बहुत दूर ऊपर की ओर ले जाता है। मुझे भली-भांति याद है कि जब कभी भी उनका गांव आना होता था तो वह गांव के अपने सभी पुराने यार- दोस्तों से बिल्कुल गंवई अंदाज में मिलाजुला करते थे। कोई बनावट नहीं, कोई बड़प्पन का दिखावा भी नहीं। तहमद अर्थात लुंगी बांधे हुए गांव के बीचो-बीच कुंए की  मन पर बैठकर घंटों हास परिहास करना वह भी ठेठ ग्रामीण भाषा और शैली में  मजाक करना, जस्सू बाबा  की चौपाल पर  बैठकर घंटों हुक्का ताजी करवा कर पीने वाला व्यक्ति गणमान्य होते हुए कितना सामान्य है। यह आंखों पर मोटा चश्मा लगाए और हवाई चप्पल पहने हुए हाफ शर्ट पहने हुए गांव की शैली में हंसने हंसाने और प्यार में  गरियाने वाला व्यक्ति देश का जाना माना  स्थापित गीतों का शहंशाह रामावतार त्यागी है ।

यह था उनका विराट व्यक्तित्व जिसमें गांव जीवन उफान मारता था । भले ही देश की राजधानी के विशाल सभागारों और ऊंची ऊंची अट्टालिकाओं  में उनके गीत गूंजते थे लेकिन उनके भीतर पूरा एक गांव  जिंदा था जिसमें खेत थे, खलिहान थे, बाग थे, दालान थे, कहकहो का एक पूरा संसार था तभी तो प्यार, तकरार, झूठ , मनुहार वाले उनके तेवर थे। तभी तो वह कह भी दिया करते थे  

 मैं तो छोड़ मोह के बंधन अपने गांव चला जाऊंगा 

तुम प्यारे मेरे गीतों का गुंजन करते रह जाओगे 

उनकी हठ में प्रेम था और प्रेम में हठ... इस हद तक कि वह जिसको अपने जीवन में सर्वाधिक प्रेम करते थे उसी से संबंध विच्छेद कर देने में उन्हें तनिक भी संकोच नहीं हुआ लेकिन पश्चाताप में उन्होंने ऐसे हृदय विदारक विच्छेदनों को किसी उपासना से कम, किसी तीर्थ से कम अपने जीवनपर्यंत नहीं माना लोगों ने रामावतार त्यागी  के दूसरे विवाह के बारे में तो सुना ही होगा और साथ में उनसे जुड़ी अथवा जोड़ी गई बहुत सी बातें भी सुनी होंगी पर यह कम ही लोग जानते हैं कि उन्होंने अपने प्रथम विवाह का सम्मान जीवन पर्यंत पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ किया। मेरा आशय उनकी पहली पत्नी और हमारी ताई जी कांति त्यागी से है, जब तक वह जीवित रही रामावतार त्यागी जी ने कुरकावली के अपने घर ,जमीन, गांव एवं उनसे जुड़े रिश्तो के ऐश्वर्य से कभी भी छेड़छाड़ नहीं की। घर की संपूर्ण संपत्ति, यश और कीर्ति पर क्रांति ताई जी का ही हक जीवन पर्यंत  रहा। 

  रामावतार त्यागी बहुत संकोची एवं शर्मीले व्यक्ति भी थे। उस समय घर की आर्थिक परिस्थितियां उच्च शिक्षा के पक्ष में नहीं थी। जमीदार परिवार में जन्म लेने के बाद भी घर के हालात बहुत अच्छे नहीं थे किंतु वह पढ़ना चाहते थे। पिताजी का अध्यादेश यह था कि अब घर का अपने हिस्से का काम रामावतार तुझे भी करना है, इसका वह स्वयं विरोध नहीं कर पाए किंतु अपने चाचा जी भीमसेन त्यागी जी के द्वारा रोने धोने का कारण पूछने पर उनको ही अपनी व्यथा कथा सुनाई। चाचा जी भीमसेन जी के द्वारा पिताजी के समक्ष यह आश्वासन देने के उपरांत ही कि रामावतार के हिस्से का काम मैं कर लूंगा, के उपरांत ही गीतों की सुपरफास्ट राजधानी एक्सप्रेस को आगे बढ़ने की हरी झंडी मिल पाई । वह रिश्तो में बहुत ईमानदार और वफादार थे। बात उन दिनों की है जब उनका मुंबई आना- जाना हुआ करता था। वह मुंबई में थे अपने गीतों के सिलसिले में और चाचा भीमसेन जी का कुरकावली में घोड़े तांगे से गिरकर एक्सीडेंट हो गया था। दिल्ली सफदरजंग हॉस्पिटल में छोटे चचेरे भाई ओमवीर के हाथों में चाचा जी ने अपनी अंतिम सांस ले ली थी और ओमबीर सिंह को पिताजी का शव अस्पताल प्रशासन ने किसी कारण से देने से मना कर दिया था तब वह जैसे ही दिल्ली पहुंचे  अपना आपा खो बैठे।  इससे पहले शायद किसी ने उनका यह रूप पहले नहीं देखा था। उन्होंने अस्पताल के प्रशासन को जमकर लताड़ लगाई और वहीं जमीन पर बैठ गए और तब तक नहीं उठे जब तक तत्कालीन केंद्रीय मंत्री एचकेएल भगत, जगदीश टाइटलर, ललित माकन आदि जैसे लगभग आधा दर्जन कैबिनेट  मंत्री मौके पर नहीं आ गए । प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार विशेष सम्मान के साथ उनके चाचा जी की अंत्येष्टि संपन्न हुई और उसमें पूरे समय तक सभी उपस्थित रहे मंत्रीगण । ऐसे अड़ियल व्यक्तित्व के स्वामी भी थे रामावतार त्यागी। 

  रामावतार त्यागी को विसंगतियों  और विरोधाभासो  से युक्त व्यक्तित्व यूं ही नहीं कहा क्षेमचंद सुमन जी ने। उसके पीछे एक बहुत बड़ा और मजबूत आधार है। एक ओर जहां साहित्य जगत में उनके अकड़पन तुनक मिजाजी और अड़ियल रवैए को लेकर जीवन पर्यंत विवादों और चर्चाओं का बाजार गर्म रहा वहीं दूसरी ओर उनके भीतर बैठा एक प्रेम करने वाला  गीतकार अपने गीत रचता दिखाई देता रहा। कुछ इस प्रकार----

आंख दो टकरा गई हो 

जब किसी के लोचनो से 

हो गया हो मुग्ध जो भी

रूप के कुछ कम्पन्नो से

मौन जीवन वाटिका में प्यार के तर्वर तले

 मिल गए हो प्राण जिसको राह में आते वनों से

 उन मिलन के दोस्तों का नाम केवल जिंदगी 

रात की तड़पनो का नाम केवल जिंदगी


 इसी के साथ प्रेम की प्रेम की प्राणघातक पीड़ा जिस  हृदय मे अपना विजय ध्वज शान से फैला रही हो उसी ह्रदय के  रोशनदानो से आम जनों शोषितो वंचितों के लिए कितना गहरा दर्द था-----

 सौगंध हिमालय की तुमको

 योग का इतिहास बदल दो

यह भूखे कंगाल सिकुड़ते रातों में

दिया गया नूतन विधान जिनके हाथों में

 इससे तो पतझड़ अच्छा 

ऐसा मधुमास बदल दो 

सौगंध हिमालय की तुमको

 युग का इतिहास बदल दो

   ..कहने को और भी बहुत कुछ कहा जा सकता है, सुना जा सकता है, लिखा जा सकता है, पढ़ा जा सकता है  रामावतार त्यागी के विराट और अद्भुत विलक्षण व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में । मैं उन जैसे महान रचनाकार के बारे में क्या कह सकता हूं केवल बालस्वरूप राही के शब्दों के साथ अपने विचारों को विराम देना ही उचित समझता हूं। उन्होंने शायद ठीक ही कहा था कि आधुनिक गीत साहित्य का इतिहास उनके गीतों की विस्तार पूर्वक चर्चा किए बिना लिखा ही नहीं जा सकता ।

✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्

 कुरकावली ,जनपद  संभल

 उत्तर प्रदेश, भारत

रविवार, 17 अप्रैल 2022

वाट्स एप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से स्मृतिशेष रामावतार त्यागी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर 14 अप्रैल 2022 को तीन दिवसीय ऑन लाइन कार्यक्रम का आयोजन






मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल) के प्रख्यात साहित्यकार स्मृतिशेष रामावतार त्यागी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर वाट्स एप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से 14,15 व 16 अप्रैल 2022 को तीन दिवसीय ऑन लाइन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। चर्चा में शामिल साहित्यकारों ने कहा कि रामावतार त्यागी पीड़ा के अमर गायक थे । उनके गीत 'मन समर्पित, तन  समर्पित और यह जीवन समर्पित' तथा 'ज़िन्दगी और बता तेरा इरादा क्या है'  पूरे देश में लोकप्रिय हैं। यही नहीं उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने  राजीव गांधी व संजय गांधी की हिन्दी स्पीकिंग क्लास के लिए निजी शिक्षक भी नियुक्त किया था । 

   

मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ  की  पन्द्रहवीं कड़ी के तहत आयोजित इस कार्यक्रम में संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने रामावतार त्यागी के शुरुआती जीवन, उनके जीवन संघर्षों और साहित्यिक योगदान के बारे में विस्तार से बताया और उनकी प्रतिनिधि रचनाएं पटल पर रखीं। बताया कि 8 जुलाई 1925 को जनपद सम्भल के कुरकावली नामक ग्राम के त्यागी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका पहला काव्य संग्रह वर्ष 1953 में 'नया खून' नाम से प्रकाशित हुआ। उसके पश्चात 'आठवां स्वर' , 'मैं दिल्ली हूं', 'सपने महक उठे', 'गुलाब और बबूल', ' गाता हुआ दर्द', ' लहू के चंद कतरे', 'गीत बोलते हैं' काव्य संग्रह  और  उपन्यास 'समाधान' प्रकाशित हुआ। इसके अतिरिक्त 1957 में  उनकी कृति 'चरित्रहीन के पत्र'  पाठकों के समक्ष आई । उनका निधन 12 अप्रैल 1985 को हुआ। स्मृतिशेष त्यागी जी के सुपुत्र सन्देश पवन त्यागी (मुम्बई) ने उनके दुर्लभ चित्र प्रस्तुत किए।

       

प्रख्यात हास्य व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि रामावतार त्यागी  पीड़ा के अमर गायक थे । वह उस उदधि के जैसे हैं जिसकी लहर-लहर में पीड़ा ही पीड़ा व्याप्त है।इन पीड़ाओं के ताप से समुद्र वाष्पीकृत होकर बादल बनके जब बरसता है तो पीड़ाओं की बाढ़ ले आता है। पीड़ाओं की इस बाढ़ से उन्होंने दो-दो हाथ  भी किये हैं। उनका गीत संसार पीड़ाओं की मूसलधार बरसात से कमाई गई खेती है।   

सम्भल के वरिष्ठ साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम ने कहा कि रामावतार त्यागी के भीतर एक दूसरा संसार 'मानवता का संसार' भी रचा बसा हुआ था, जिसमें प्रेम, करुणा, दया ,आंसू से लवरेज जिंदगी के दर्शन होते हैं। उनके भीतर जिंदगी की अठखेलियां भी खूब रची- बसी थी ,जो बच्चों में भी बसती हैं और बड़ों में भी रहती हैं। वह बच्चों में भी खूब रमते थे और बड़ों में भी जमकर जमते थे। बच्चों जैसे उनके मन में उछलते हिरण दौड़ लगाते थे तो कभी रूठ कर बैठ जाते और मान भी जाते थे, जो उनके रूठने का अपना अलग अंदाज था और मानने का तो कोई जवाब ही नहीं। रामावतार त्यागी जी का व्यक्तित्व छल, प्रपंच, झूठ, पाखंड, हानि- लाभ, जीवन- मरण, यश- अपयश के बंधनों से बहुत दूर था । उन्होंने अपने आप को सभ्य, सुसंस्कृत, सुशील, शालीन, संस्कारित, सच्चरित्र दिखाने के लिए कभी मिथ्या आडंबर और चिकने चुपडे़, गंदे आवरण को अपने व्यक्तित्व पर कभी नहीं ओढ़ा। उनका जीवन एक खुली किताब की तरह था। एकदम सरलता से परिपूर्ण और कुटिलताओं से कोसों कोसों दूर। यह उनके चरित्र की एक बहुत वडी विशेषता थी । उन्होंने जो कुछ भोगा वही लिखा, जो कुछ लिखा वही कहा और सीना चौड़ा कर चीख चीख कर कहा। बेहद स्वाभिमानी व्यक्तित्व के धनी थे।

       

वरिष्ठ साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा -उनकी रचनाओं को पढ़कर  आभास हो जाता है कि वह सामाजिक परिदृश्य, जिंदगी की विषमताओं, व्यवस्था की विसंगतियों, सामाजिक ताने बाने  और मानवीय स्वभाव पर बड़ी पैनी नजर रखते थे, और अपनी रचनाओं में बड़ी बेबाकी से इन्हें उजागर करते थे I उनकी रचनाओं में उनकी खुद्दारी और स्वाभिमान की स्पष्ट झलक मिलती है, स्वाभिमान के आगे व्यवस्था से समझौता करना उन्का स्वभाव नहीं है, और उनके स्वभाव की यही विशेषता उनकी रचनाधर्मिता में मिलती है I साथ ही एक खुद्दार आदमी की अहमियत जताते हुए वह व्यवस्था को आइना भी दिखाते हैं। उनकी रचनाओं में विरोध के साथ साथ दर्द और पीड़ा को भी बड़ी सहजता से व्यक्त किया गया है।
 वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय  ने कहा जो स्वयं गीत बन गए ,निर्झर की भांति अनवरत बहते रहे , साहित्यिक परम्परा में आज भी अपनी उपस्थित का भान करा रहे स्मृति शेष रामावतार त्यागी वास्तव में एक अवतार थे , राम की तरह कंटकों में असहज जीवन को सहज जिया और हमें दे गए  अमूल्य निधि अपने गीतो की एक बृहत, बोध ,समर्पण भरी जीवन को जीने की विधा। उनके गीत वेदनाग्रस्त ह्र्दय को साहस से लबालब करने की सामर्थ्य प्रदान करते है । 

     

रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा कि  रामावतार त्यागी ने जो गीत लिखे ,वह उनकी जुझारू फौलादी मानसिकता को प्रकट करने वाले हैं। प्रत्येक गीत में विपरीत परिस्थितियों से जूझने का आवाहन है और टूटते रहने के बाद भी न टूटने का संकल्प है ।  आत्मबल से भरपूर तथा अकेलेपन के बाद भी संसार को परिवर्तित कर सकने की दृढ़ इच्छाशक्ति उनकी रचनाओं में मुखरित हुई है ।  

मुम्बई के साहित्यकार प्रदीप गुप्ता ने कहा- आज मेरी जो कुछ लिखने पढ़ने में रुचि है उसका बड़ा कारण रामावतार त्यागी के लिखे शब्दों का तिलिस्म था । एक बार उन्हें संभवतः 1976 में एक कवि सम्मेलन में सुनने का अवसर मिला . उन्होंने जैसे ही कोई कविता पढ़नी शुरू की श्रोताओं की ओर से ज़बरदस्त शोर हुआ “एक हसरत थी “। यह वो गाना था जो उन्होंने फ़िल्म ज़िंदगी और तूफ़ान के लिए लिखा था और उन दिनों रेडियो पर काफ़ी बज रहा था । उन्होंने गाना फ़िल्मी तरीक़े नहीं अपने अन्दाज़ में पढ़ा।

     

अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा ने कहा - "मनुष्य से मनुष्यत्व तक की यात्रा के यायावर श्री रामावतार त्यागी जी  कवि का जिद्दी और बेबाक  मन , रूढ़िवादिता को तोड़ देने का विद्रोह, मनमाना स्वभाव उनकी रचनाओं के विभिन्न परिवेश ही हैं ।विविध आयामों में विचरण करती उनकी कविताएँ  कभी अपने अस्तित्व के झंडे गाड़ती हैं तो कभी सामाजिक सरोकारों में झूलती नज़र आती है। उनके तेवर दुष्यंत कुमार और श्री सहादत हसन मंटो के तेवर लगते हैं और अपने समय के सर्वाधिक मुखर ,बीमार,जीर्णशीर्ण  रूढ़िगत परम्पराओं का विरोध करते हुए एक नयी पंक्ति खींच कर अपने आप को नई उर्जा से सींचते हुए ,नई ठसक के साथ अपने आप को सिद्ध करते  हुए दृष्टिगोचर होतें हैं। 

 कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट  ने कहा - श्री त्यागी जी ने अपने गीतों में जिस तरह से दर्द को जिया है और वह जिस तरह से दर्द को पालते हैं,पुचकारते हैं,साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं।क्योंकि जो व्यक्ति अपनी 'तप की सफलता के परिणाम में चुभन की कामना' करे,वह साधारण हो भी नहीं सकता। उनका अंतर ज्योतिमान था,इसीलिए बाहर का घना तम भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाया।उनकी जवाबदेही स्वयं के प्रति रही,उनकी लड़ाई स्वयं से रही।इसी कारण बाहर का लोभ, दुःख,भय और रुकावटें उनका मार्ग अवरुद्ध ही नहीं कर पाये और स्वयं से उन्होंने हर समर सावधानी पूर्वक लड़ा,क्योंकि वह जानते थे स्वयं से हारे हुए को ईश्वर भी संबल नहीं दे सकता। वह आत्मजयी थे, अतः वह हर नकारात्मकता में भी सकारात्मकता खोजने में सफल होते और इस सकारात्मकता को कमजोर,संकटग्रस्त और दु:खी मानव समाज को अपने गीतों के माध्यम से अग्रसारित करते। उन्होंने स्मृति शेष रामावतार त्यागी जी को अर्पित करते हुए कहा --

पंक्ति पंक्ति चरितार्थ हुई सी, शब्द शब्द में कौशल बोले।

अर्थ निहित ज्यों अक्षर अक्षर,उच्च भाव हृदय के खोले।

घटना घटना पैनी दृष्टि,रखकर कलम चलाने वाले,

अभिनंदन है कठिन आपका,हमने सारे शब्द टटोले।

   

युवा साहित्यकार राजीव प्रखर ने कहा कि स्मृति शेष रामावतार त्यागी जी का महान रचनाकर्म आपाधापी से भरे इस युग में भी मनुष्य को निरंतर जीवन के सत्य का भान कराता रहता है। चाहे वह समाज में व्याप्त विद्रूपताओं की ओर संकेत करते हुए उनका हल हो अथवा मानवीय संवेदना को झिंझोड़ते हुए उसे उत्कर्ष की ओर ले जाने का अभियान, प्रत्येक स्तर पर उनका रचनाकर्म जहाॅं जीवन के सत्य को ही पाठकों के सम्मुख रखता है यही कारण है कि आज भी उनकी रचनाएं प्रासंगिकता के मानकों पर पूर्णतया खरी सिद्ध हुई हैं।      

कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा - "ज़िन्दगी और बता तेरा इरादा क्या है"जैसै कालजयी गीत की रचना करने  वाले निश्चय ही  अपने गीतों के माध्यम से साहस की नयी परिभाषा गढ़कर अमर हो गये..ज़िंदगी से दो टूक प्रश्न पूछकर आगे बढ़ो का सिद्धांत बनाना और नित आगे बढ़ते चले जाना, यह विरले ही देखने को मिलता है.. जीवन के दार्शनिक रूप को सहज भावों में ढालना कवि की बड़ी चुनौती और उपलब्धि दोनो होती है और कीर्ति शेष रामावतार त्यागी जी ने इस तथ्य को  बड़ी ही कुशलता से अपने गीत ग़ज़लों में ढाला है.. व्यंग्यात्मक शैली में प्रश्न और जवाब दोनो उनके गीतों में मिलते हैं.. और पाठकों को लाजवाब कर देते हैं। उनकी रचनाओं में विद्रोही तेवर,राष्ट्रवाद की भावना, जनजागरण, दार्शनिकता व कहीं कहीं कल्पनाओं का समावेश भी मिलता है।वह पूर्वाग्रहों की बेड़ियों को भी तोड़ते नज़र आते हैं।दर्द से रिश्ता  निभाती उनकी रचनाएँ बहुत ही खूबसूरत बन पड़ी हैं।

   

सम्भल के साहित्यकार राजीव कुमार भृगु ने कहा -उनकी रचनाएं आज भी लोगों के मन पर उतना ही प्रभाव छोड़ती है जितना उनके समय में छोड़ती थी। उन्हें  पीड़ा का गायक माना जाता है लेकिन देशभक्ति की भावना उनके मन में हमेशा रही। उनके कुछ गीत मुझे बहुत प्रभावित करते हैं। उन्होंने गजलें और गद्य लेखन भी किया लेकिन उनका मनपसंद लेखन केवल गीत ही रहा ।     

 रामपुर के साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक ने कहा किउनके गीतों में शिल्प और भाव की जो श्रेष्ठता विद्यमान है वैसा ही मेयार बह्र ,तग़ज़्ज़ुल् और कहन के स्तर पर मुझे उनकी ग़ज़लों में भी दिखाई दिया।उनकी एक ग़ज़ल, जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया, के कुछ अशआर का  ख़ास तौर से उल्लेख करना चाहूँगा--

 आँखों का काम कान से लेने लगे हैं लोग,

  फिर पूरे इत्मिनान से लेने लगे हैं लोग।

       

 रामपुर के साहित्यकार शिव कुमार चंदन ने कहा - जीवन के अनेक संघर्षों को सहते हुए श्री त्यागी जी ने अपनी रचनाओं में प्रकृति चित्रण ,मानवीय सम्वेदनाएँ ,जन सरोकारों  एवं राष्ट्र भक्ति के भाव पिरोए हैं ।  अनेक काव्य मंचों ,अनेक कवि सम्मेलनों  पर मनोहारी काव्य पाठ की प्रस्तुति के प्रभाव से  काव्य साहित्य के सर्वोच्च शिखर पर आसीन हो कर  साहित्य जगत  में अविस्मरणीय  हो गये । 

 गजरौला की कवयित्री रेखा रानी  ने कहा - रामावतार त्यागी गीत की दुनिया का चमकते हुए  सितारे थे। एक एक कर क्रमशः इतने विरले व्यक्तित्व  की गूढ़ रहस्य जानकारियां इस महान पटल से प्राप्त होती हैं इसके लिए हृदय से आभार व्यक्त करती हूं आदरणीय डॉ मनोज कुमार रस्तोगी जी का। उनकी यह पंक्तियां बार बार गुनगुनाने का दिल चाहता है -

मुझको भी प्यार मिला दो दिन

कोमल भुज हार मिला दो दिन

उन आंखों में रहने का भी

मुझको अधिकार मिला दो दिन।

     

 कवयित्री डॉ शोभना कौशिक ने कहा-- त्यागी जी का हिंदी साहित्य जगत युगों - युगों तक ऋणी रहेगा ।उन्होंने अपनी रचनाओं द्वारा देश के गांवों से लेकर महानगरों तक का सजीव चित्रण इस प्रकार चित्रित किया है ,कि उसको पढ़ते हुए मन अनायास ही यथार्थ के धरातल पर उतर जाता है ।उनके गीत और कविताएं मन मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़ती हैं । उनका व्यक्तित्व एक खुली किताब की तरह था ,जो सरलता से परिपूर्ण और कुटिलताओं से कोसों दूर था ,जो उनके चरित्र की एक बहुत बड़ी विशेषता थी ।

 सम्भल के युवा साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा  ने कहा - उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से कई प्रकार के रंग-रूपों से साहित्य का श्रंगार किया है। उनकी एक-एक पंक्ति के गंभीर अर्थ को समझने हेतु,मनन-चिन्तन करने की आवश्यकता होती है। त्यागी जी के संपूर्ण जीवन में, सुख से कम और परेशानियों से ज्यादा नाता रहा है, उनका यह दर्द उनकी रचनाओं  में उभरता भी है ।

       

साहित्यकार नकुल त्यागी ने कहा --देश के महान गीतकार स्मृति शेष श्री रामावतार त्यागी मुख्य रूप से  पीड़ा और देश प्रेम की कविताओं के लिए जाने जाते हैं। वे मंच पर कवि सम्मेलनों में बहुत बड़े-बड़े कवि श्री धर्मवीर भारती, श्री शेरजंग गर्ग, डॉ हरिवंश राय बच्चन, श्री श्याम नारायण पांडे, श्री कमलेश्वर आदि के समकालीन हैं। उन्होंने उनसे भेंट का संस्मरण भी प्रस्तुत किया ।  

 जकार्ता (इंडोनेशिया) की साहित्यकार वैशाली रस्तोगी  ने कहा कि त्यागी जी के गीत पूरे भारत में ही नहीं,विश्व भर में भारतीयों द्वारा गुनगुनाएं जातें है। उनके गीत की ये दो पंक्तियां ही बहुत कुछ कह जाती हैं----

 " एक घटना से नही बनती कहानी 

    हर कहानी में कई इतिहास होते हैं" 

 कार्यक्रम में स्मृतिशेष त्यागी के अनुज रामनिवास त्यागी के सुपुत्र राहुल त्यागी,  शोधादर्श पत्रिका के सम्पादक अमन कुमार त्यागीशशि त्यागी ने भी हिस्सा लिया ।

 अंत में आभार व्यक्त करते हुए स्मृतिशेष रामावतार त्यागी के सुपुत्र सन्देश पवन त्यागी (मुम्बई) ने कहा -जैसे कि एक सफेद चादर पर कोई एक रंग दूर से ही नजर आता है और अपनी ओर ध्यान आकर्षित कर लेता है, उसी प्रकार समाज में कवि होते है| ऐसा मेरा मानना है| मैं आप सब का प्यार अपनी पिताश्री के लिए पाकर धन्य महसूस करता हूँ। डॉक्टर मनोज रस्तोगी को दिल से सादर प्रणाम करता हूं। आपने मुझे अपना समय दिया, और मुझे लगता है, कि आप सभी का सबसे मूल्यवान उपहार है। आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद।


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डॉ मनोज रस्तोगी

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मुरादाबाद 244001

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मोबाइल फोन नम्बर 9456687822



 

                                   


गुरुवार, 7 अप्रैल 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल के गांव कुरकावली निवासी साहित्यकार स्मृति शेष रामावतार त्यागी का परिचय और 45 गीत ।ये गीत संकलित हैं क्षेमचंद सुमन द्वारा संपादित कृति 'रामावतार त्यागी परिचय एवं प्रतिनिधि कविताएं ' में। इस कृति का प्रकाशन वर्ष 1961 में राजपाल एंड संस दिल्ली ने किया था।


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बुधवार, 6 अप्रैल 2022

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल)निवासी साहित्यकार स्मृतिशेष रामावतार त्यागी की काव्य कृति - आठवां स्वर । इसका प्रकाशन 1958 में फ्रैंक ब्रदर्स एन्ड कम्पनी दिल्ली द्वारा किया गया था । इस कृति में उनके 58 गीत हैं ।भूमिका लिखी है प्रख्यात साहित्यकार रामधारी सिंह दिनकर ने ।



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मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल)निवासी साहित्यकार स्मृतिशेष रामावतार त्यागी की काव्य कृति - गीत बोलते हैं । इसका प्रकाशन 1986 में आत्माराम एन्ड सन ,कश्मीरी गेट, दिल्ली द्वारा किया गया था ।


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बुधवार, 1 सितंबर 2021

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल) के साहित्यकार स्मृतिशेष रामावतार त्यागी के पाँच गीत ------


(1)

आदमी का आकाश 

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भूमि के विस्तार में बेशक कमी आई नहीं है

आदमी का आजकल आकाश छोटा हो गया है।


हो गए सम्बन्ध सीमित डाक से आए ख़तों तक

और सीमाएं सिकुड़ कर आ गईं घर की छतों तक

प्यार करने का तरीक़ा तो वही युग–युग पुराना

आज लेकिन व्यक्ति का विश्वास छोटा हो गया है।

आदमी का आजकल आकाश छोटा हो गया है।


आदमी के शोर से आवाज़ नापी जा रही है

घंटियों से वक़्त की परवाज़ नापी जा रही है

देश के भूगोल में कोई बदल आया नहीं है

हाँ हृदय का आजकल इतिहास छोटा हो गया है।

आदमी का आजकल आकाश छोटा हो गया है।


यह मुझे समझा दिया है उस महाजन की बही ने

साल में होते नहीं हैं आजकल बारह महीने

और ऋतुओं के समय में बाल भर अंतर न आया

पर न जाने किस तरह मधुमास छोटा हो गया है।

आदमी का आजकल आकाश छोटा हो गया है।

(2)

रोशनी मुझसे मिलेगी

________________


इस सदन में मैं अकेला ही दिया हूँ;

मत बुझाओ!

जब मिलेगी, रोशनी मुझसे मिलेगी!


पाँव तो मेरे थकन ने छील डाले

अब विचारों के सहारे चल रहा हूँ

आँसूओं से जन्म दे-देकर हँसी को

एक मंदिर के दिए-सा जल रहा हूँ;

मैं जहाँ धर दूँ कदम वह राजपथ है;

मत मिटाओ!

पाँव मेरे, देखकर दुनिया चलेगी!


बेबसी मेरे अधर इतने न खोलो

जो कि अपना मोल बतलाता फिरूँ मैं

इस कदर नफ़रत न बरसाओ नयन से

प्यार को हर गाँव दफनाता फिरूँ मैं

एक अंगारा गरम मैं ही बचा हूँ

मत बुझाओ!

जब जलेगी, आरती मुझसे जलेगी!


जी रहे हो किस कला का नाम लेकर

कुछ पता भी है कि वह कैसे बची है,

सभ्यता की जिस अटारी पर खड़े हो

वह हमीं बदनाम लोगों ने रची है;

मैं बहारों का अकेला वंशधर हूँ

मत सुखाओ!

मैं खिलूँगा, तब नई बगिया खिलेगी!


शाम ने सबके मुखों पर आग मल दी

मैं जला हूँ, तो सुबह लाकर बुझुँगा

ज़िन्दगी सारी गुनाहों में बिताकर

जब मरूँगा देवता बनकर पुजुँगा;

आँसूओं को देखकर मेरी हंसी तुम

मत उड़ाओ!

मैं न रोऊँ, तो शिला कैसे गलेगी!

(3)

आँचल बुनते रह जाओगे 

--------------------------------


मैं तो तोड़ मोड़ के बंधन 

अपने गाँव चला जाऊँगा 

तुम आकर्षक सम्बन्धों का,

आँचल बुनते रह जाओगे.


मेला काफी दर्शनीय है 

पर मुझको कुछ जमा नहीं है 

इन मोहक कागजी खिलौनों में 

मेरा मन रमा नहीं है.

मैं तो रंगमंच से अपने 

अनुभव गाकर उठ जाऊँगा 

लेकिन, तुम बैठे गीतों का 

गुँजन सुनते रह जाओगे.


आँसू नहीं फला करते हैं 

रोने वाले क्यों रोता है?

जीवन से पहले पीड़ा का 

शायद अंत नहीं होता है.

मैं तो किसी सर्द मौसम की 

बाँहों में मुरझा जाऊँगा 

तुम केवल मेरे फूलों को 

गुमसुम चुनते रह जाओगे.


मुझको मोह जोड़ना होगा 

केवल जलती चिंगारी से 

मुझसे संधि नहीं हो पाती 

जीवन की हर लाचारी से. 

मैं तो किसी भँवर के कंधे

चढकर पार उतर जाऊँगा,

तट पर बैठे इसी तरह से 

तुम सिर धुनते रह जाओगे.

(4)

चाँदी की उर्वशी न कर दे~

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चाँदी की उर्वशी न कर दे युग के तप संयम को खंडित

भर कर आग अंक में मुझको सारी रात जागना होगा ।


मैं मर जाता अगर रात भी मिलती नहीं सुबह को खोकर

जीवन का जीना भी क्या है, गीतों का शरणागत होकर,

मन है राजरोग का रोगी, आशा है शव की परिणीता

डूब न जाये वंश प्यास का पनघट मुझे त्यागना होगा ॥


सपनों का अपराध नहीं है, मन को ही भा गयी उदासी

ज्यादा देर किसी नगरी में रुकते नहीं संत सन्यासी,

जो कुछ भी माँगोगे दूँगा ये सपने तो परमहंस हैं

मुझको नंगे पाँव धार पर आँखें मूँद भागना होगा ॥


गागर क्या है - कंठ लगाकर जल को रोक लिया माटी ने

जीवन क्या है - जैसे स्वर को वापिस भेज दिया घाटी ने,

गीतों का दर्पण छोटा है जीवन का आकार बड़ा है

जीवन की खातिर गीतों को अब विस्तार माँगना होगा ॥


चुनना है बस दर्द सुदामा लड़ना है अन्याय कंस से

जीवन मरणासन्न पड़ा है, लालच के विष भरे दंश से,

गीता में जो सत्य लिखा है, वह भी पूरा सत्य नहीं है

चिन्तन की लछ्मन रेखा को थोड़ा आज लाँघना होगा ॥

(5)

सबसे अधिक तुम्हीं रोओगे 

----------------------------------


आने पर मेरे बिजली-सी कौंधी सिर्फ तुम्हारे दृग में

लगता है जाने पर मेरे सबसे अधिक तुम्हीं रोओगे !

 

मैं आया तो चारण-जैसा

गाने लगा तुम्हारा आंगन;

हंसता द्वार, चहकती ड्योढ़ी

तुम चुपचाप खड़े किस कारण ?

मुझको द्वारे तक पहुंचाने सब तो आये, तुम्हीं न आए,

लगता है एकाकी पथ पर मेरे साथ तुम्हीं होओगे!


मौन तुम्हारा प्रश्न चिन्ह है, 

पूछ रहे शायद कैसा हूं 

कुछ-कुछ चातक से मिलता हूँ

कुछ कुछ बादल के जैसा हूं; 

मेरा गीत सुन सब जागे, तुमको जैसे नींद आ गई, 

लगता मौन प्रतीक्षा में तुम सारी रात नहीं सोओगे! 


तुमने मुझे अदेखा कर के

संबंधों की बात खोल दी;

सुख के सूरज की आंखों में 

काली काली रात घोल दी;

कल को गर मेरे आंसू की मंदिर में पड़ गई ज़रूरत 

लगता है आंचल को अपने सबसे अधिक तुम ही धोओगे!


परिचय से पहले ही, बोलो, 

उलझे किस ताने बाने में ?

तुम शायद पथ देख रहे थे, 

मुझको देर हुई आने में;

जगभर ने आशीष पठाए, तुमने कोई शब्द न भेजा,

लगता है मन की बगिया में गीतों का बिरवा बोओगे!

✍️  रामावतार त्यागी

रविवार, 25 जुलाई 2021

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल)निवासी साहित्यकार स्मृतिशेष रामावतार त्यागी की काव्य कृति - गाता हुआ दर्द । इस कृति में उनके 101 गीत संग्रहीत हैं । इसका प्रकाशन 1982 में कन्दर्प प्रकाशन नई दिल्ली-2 द्वारा किया गया था । इस कृति की पीडीएफ हमें उपलब्ध कराई है श्री मनोज जैन जी, भोपाल (मध्य प्रदेश) ने।


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मंगलवार, 20 जुलाई 2021

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल)निवासी साहित्यकार स्मृतिशेष रामावतार त्यागी की काव्य कृति - मैं दिल्ली हूं । इस कृति में दिल्ली के इतिहास को पद्यात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है । इसका प्रकाशन अक्टूबर 1959 में रघुवीर शरण बंसल, संचालक साहित्य संस्थान दिल्ली द्वारा किया गया था ।


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सोमवार, 27 जुलाई 2020

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार स्मृतिशेष रामावतार त्यागी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर एटा की साहित्यिक संस्था "प्रगति मंगला" ने ऑन लाइन साहित्यिक परिचर्चा का आयोजन किया .....


प्रगति मंगला साहित्यिक संस्था एटा के तत्वावधान में कुरकावली जनपद संभल के यशस्वी गीतकार रामावतार त्यागी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर ऑन लाइन परिचर्चा हुई। इस ऑनलाइन साहित्यिक समारोह की अध्यक्षता आचार्य  डा. प्रेमीराम मिश्र पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष  जे. एल.एन. कालेज एटा ने की। मुख्य अतिथि  मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डा. मनोज रस्तोगी  रहे।  संयोजक उमाशंकर राही ने संचालन किया। संस्थापक बलराम सरस ने कार्यक्रम की रूपरेखा पर प्रकाश डाला ।

आचार्य डा. प्रेमी राम मिश्र ने कहा कि रामावतार त्यागी  उस पीढ़ी के श्रेष्ठ कवि हैं जिसे हम रामधारी सिंह दिनकर, हरिवंश राय बच्चन, गोपाल सिंह नेपाली, नरेंद्र शर्मा, डॉ शिवमंगल सिंह सुमन ,देवराज दिनेश, वीरेंद्र मिश्र आदि के रूप में स्मरण करते हैं ।वह अपने समय के सर्वाधिक मुखर कवि के रूप में विख्यात रहे। उनका योगदान गीत के ही क्षेत्र में नहीं गद्य लेखन और पत्रकारिता में भी रहा है ।
मुख्य प्रस्तोता के रूप में मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार डा. मनोज रस्तोगी ने  रामावतार त्यागी के व्यक्तित्व और कृतित्व से अवगत कराया तथा  उनके बहुचर्चित गीत प्रस्तुत किये। उन्होंने बताया कि रामावतार त्यागी का जन्म 8जुलाई 1925 को कुकरावली जनपद संभल में एक जमींदार घराने में हुआ था। वह बचपन से ही कविता के तुके मिलाया करते थे।1950 से उनकी रचनाएं नवभारत,नवयुवक जैसे पत्रों में छपने लगीं थीं। आपने शिक्षण कार्य भी किया बाद में कई सम्मानित पत्रों के सम्पादक भी रहे। 1950 में नया खून काव्यसंग्रह, 1958में आठवां स्वर,1959 मैं दिल्ली हूं,1965 गुलाब और बबूल'( 1973), ' गाता हुआ दर्द'( 1982), ' लहू के चंद कतरे'( 1984), 'गीत बोलते हैं'(1986) काव्य संग्रह प्रकाशित हुए। वर्ष 1954 में उनका उपन्यास 'समाधान' प्रकाशित हुआ। इसके अतिरिक्त 1957 में  उनकी कृति 'चरित्रहीन के पत्र'  पाठकों के समक्ष आई ।
हास्य व्यंग्य कवि त्यागी अशोका कृष्णम् कुरकावली संभल ने उनके संस्मरण सुनाते हुए बताया कि रामावतार त्यागी का जीवन एक खुली किताब था। वह सरलता से परिपूर्ण और कुटिलताओं से कोसों दूर थे। उन्होंने जो भोगा वही लिखा। आधुनिक गीत साहित्य का इतिहास उनके गीतों की विस्तार पूर्वक चर्चा किए बिना लिखा ही नहीं जा सकता
प्रख्यात नवगीतकार यश भारती माहेश्वर तिवारी मुरादाबाद ने कहा कि रामावतार त्यागी  हिंदी खड़ीबोली के ऐसे रचनाकार हैं जो काव्यत्व के धरातल पर अपने समकालीन बहुत से लोक विश्रुत कवियों से बहूत आगे थे । जमींदराना ठसक और विद्रोह का स्वर उनके निजी व्यक्तित्व के साथ साथ उनकी कविता में भी देखी जा सकती है । इसे हिंदी गीत का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता हैकि उनकी अपेक्षा मौलिकता और कम काव्यात्मक पूँजी वाले कई लोग महफ़िल लूटते रहे और त्यागी जी जिस मूल्यांकन के हकदार थे वह उन्हें अभीतक नहीं मिला है ।
प्रख्यात हास्य व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि रामावतार त्यागी  पीड़ा के अमर गायक थे । वह उस उदधि के जैसे हैं जिसकी लहर-लहर में पीड़ा ही पीड़ा व्याप्त है।इन पीड़ाओं के ताप से समुद्र वाष्पीकृत होकर बादल बनके जब बरसता है तो पीड़ाओं की बाढ़ ले आता है। पीड़ाओं की इस बाढ़ से दो-दो हाथ करने नाम है, रामावतार त्यागी।उनका गीत संसारपीड़ाओं की मूसलाधार बरसात से कमाई गई खेती है।
मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट  ने विचार रखते हुए कहा- श्री त्यागी जी ने अपने गीतों में जिस तरह से दर्द को जिया है और वह जिस तरह से दर्द को पालते और पुचकारते हैं,साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं क्योंकि जो व्यक्ति अपनी तप की सफलता के परिणाम में चुभन की कामना करे वह साधारण हो भी नहीं सकता।
   मुरादाबाद के ही साहित्यकार डॉ अजय अनुपम ने कहा- रामावतार त्यागी कवि नहीं भारतीय सांस्कृतिक विरासत की चेतना के सोये हुए भावों में पुनर्जागरण का शंख फूंकने वाले मनीषी हैं।
संयोजक उमाशंकर राही वृन्दावन ने बताया कि रामावतार त्यागी ने फिल्मों के लिए भी कई गीत लिखे जिनमें फिल्म 'जिन्दगी और तूफान' 1975 के गीत- एक हसरत थी कि आंचल का मुझे प्यार मिले' काफी लोकप्रिय हुआ।
  कवि बलराम सरस एटा ने कहा कि रामावतार त्यागी की सभी रचनाएं कालजयी हैं। वह अपनी रचनाधर्मिता से सदैव प्रासांगिक रहेंगे।उनका गीत --
"मन समर्पित तन समर्पित, और यह जीवन समर्पित। चाहता हूँ मातृ-भू तुझको अभी कुछ और भी दूँ " पाठ्य पुस्तकों में भी शामिल हुआ है ।
 संस्था की प्रशासक और साहित्यकार श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ ने विचार व्यक्त करने के बाद रामावतार त्यागी जी तन समर्पित को अपना स्वर प्रदान किया।
वरिष्ठ कवि जयराम जय कानपुर ने भी रामावतार त्यागी के गीत संसार पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि उनके गीत हिंदी गीत साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं ।
गुड़गांव की डॉ गुंजन शुक्ला ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि स्मृतिशेष रामावतार त्यागी जी का हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान है । उन्होंने उनके एक गीत का अंश भी प्रस्तुत किया ।
गाजियाबाद की कवियत्री सोनम यादव ने भी स्मृतिशेष रामावतार त्यागी के गीतों पर चर्चा करते हुए कहा कि उनके गीत मन में वेदना भर देते हैं । इसतरह के आयोजनों से नई पीढ़ी को महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
इस संगोष्ठी में मध्य प्रदेश की साहित्यकार डा. परवीन महमूद ने कहा कि देश के प्रख्यात दिवंगत साहित्यकारों पर साहित्यिक परिचर्चा का आयोजन करके प्रगति मंगला संस्था एक सराहनीय कार्य कर रही है।

::::::प्रस्तुति:::::
बलराम सरस
संस्थापक
प्रगति मंगला
एटा ,उत्तर प्रदेश