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शुक्रवार, 29 सितंबर 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर का एकांकी ....अपराधी कौन



पात्र परिचय

धरती माता

वन देवी

जल देवी

पर्वत राज

गंगा देवी

मानव

प्रथम अंक

(प्रथम दृश्य) 

(खुले आसमान के नीचे,  एक बड़ी सी  पत्थर की शिला पर ,एक अति सुंदर स्त्री धरती माता, सर पर सुंदर मुकुट सजाए, सोच विचार की मुद्रा में बैठी है, उनके वस्त्र हरे  व नीले रंग के  हैं ।तभी   एक मानव दौड़ता हुआ उस ओर आता है,और उनके चरणों में  गिर पड़ता है।) 

मानव  ( रुंँआसा होकर) मुझे बचाओ!! मुझे बचाओ! हे धरती माता !मुझे बचा लो, मेरी रक्षा करो...!माँ रक्षा करो..! 

धरती माता : (चौंक कर सर ऊपर उठाती हैं, और खड़े होकर उस मानव को उठाती हैं) उठो पुत्र! उठो! तुम क्यों रो रहे हो? 

मानव : (हाथ जोड़कर बिलखते हुए) माँ . .!मेरा और मेरी समस्त प्रजाति का अस्तित्व बहुत  बड़े संकट में है ,मुझे आपकी सहायता चाहिए (अपना गला दोनों हाथों से पकड़ते हुए) मेरा दम घुटा जा रहा है माता, मुझे बचा लो !! 

धरती माता : ओह!! शांत हो जाओ पुत्र, सब ठीक होगा.

मानव: शीघ्रता करिये माता!! मैं मर रहा हूँ (खांसता है) न मेरे पास प्राणदायक आक्सीजन है और न ही शुद्ध जल बचा है.आपकी नदियाँ अपनी मर्यादा लांघकर  मेरे घर में घुसकर तबाही ला रही हैं माता...   और... और!! (खाँसता है)!!! 

धरती माता : और... और क्या वत्स?? (उसे एक पत्थर की शिला पर बैठाती हैं ) संभालो खुद को!! 

मानव : (तनिक संयत होते हुए, खड़ा हो जाता है, और हाथ जोड़कर कहता है ) और माता... आपके शक्तिशाली पुत्र महान पर्वतराज हमारे घरों को क्षति पहुँचा  रहे हैं, हमारे रास्ते रोक लिए हैं माता, और.....चारों ओर विनाश लीला कर रहे हैं ! 

धरती माता : (तनिक क्रोध में भरकर) अच्छा, मैं अभी सबको बारी बारी से बुलाकर पूछती हूँ (तीन बार ताली बजाकर)  वन देवी, जल देवी प्रकट हों!

(तभी हरे रंग के सुंदर वस्त्र व गले में फूलों का हार पहने, वन देवी और नीले रंग के वस्त्र  पहने, गले में मोतियों का हार पहने, जल देवी प्रकट हो जाती हैं, दोनों देवियां शीश झुकाकर धरती माता को समवेत स्वर में प्रणाम करती हैं।) 

जल देवी और वन देवी (समवेत स्वर में) : कहिए धरती माता , क्या आज्ञा है ? हमें आपने किसलिए याद किया है ? 

धरती माता : (क्रोधित होकर मानव की ओर तर्जनी से संकेत करते हुए) हे वन देवी ! यह मानव   प्राणशक्ति वायु न मिल पाने से अत्यधिक कष्ट में है. क्या तुमने इसे अपने वनों द्वारा प्रवाहित होने वाली शुद्ध वायु देना बंद कर दिया है?? यदि तुमने ऐसा किया है तो तुम्हे इसका दण्ड अवश्य मिलेगा!! 

वन देवी : क्षमा करें  धरती माता!  परंतु मैंने ऐसा कदापि नहीं किया है । अपितु  मेरे शरीर में जब तक एक भी हरा पत्ता जीवित है, मैं तब तक समस्त प्राणियों में शुद्ध वायु का संचार करती रहूँगी। 

धरती माता :  तब यह मानव कष्ट में क्यों है पुत्री? कारण स्पष्ट करो? इसका आरोप है कि तुमने इसे मरने के लिए छोड़ दिया है! 

वन देवी : (क्रोध में भरकर,, मानव की ओर लाल- लाल नेत्रों से देखते हुए)  इसका आरोप मिथ्या है  माता!..(क्रोध में काँपती है) इस दुष्ट ने स्वयं मेरे वनों को उजाड़ कर तथाकथित विकास नाम के पर्यावरण भक्षी जीव को जन्म दिया है!!  

धरती माता : (आश्चर्य से) अच्छा..! 

 वन देवी : इससे पूछिए माता... क्या इसने मेरी हरियाली को उजाड़ कर कंक्रीट का जंगल नहीं तैयार किया है ? क्या इसने वनों में रहने वाले लाखों जंगली जीवों को बेघर करके उन्हें मृत्यु के घाट नहीं उतारा है? क्या इसके द्वारा वनों के उजड़ने से वर्षा चक्र नहीं बिगड़ा!!! यह दुष्ट अपने दुष्कर्मों के कारण ही इस दुर्गति को प्राप्त हुआ है माता... ! 

धरती माता (क्रोध में भरकर मानव की ओर देखते हुए) ओहहह तो यह बात है..! 

( कुछ सोचते हुए जल देवी की ओर उन्मुख होती हैं, जो अब तक हाथ जोड़े शांत मुद्रा में सब वार्तालाप ध्यान पूर्वक सुन रही थीं ) 

धरती माता : और तुम जल देवी !! क्या तुमने अपने कर्तव्य से विमुख होकर धरती के जीवों को शुद्ध जल देना  बंद कर दिया है.. ..... ! और यह मैं क्या सुन रही हूँ !! तुम्हारी नदियाँ अपनी सीमा -रेखा लांँघकर मानवों के घरों में घुसकर विनाश लीला कर रही हैं... क्या यही व्यवस्था है तुम्हारी ? कदाचित तुम्हें हमारे दण्ड का भी भय नहीं..!(क्रोध से काँपती है)

जल देवी : नहीं ..नहीं माता ! ऐसा कदापि नहीं है मेरी नदियों ने कोई अतिक्रमण नहीं किया है.. !  अपितु इस स्वार्थी मनुष्य ने ही मेरी नदियों के आंँगन में अपने अवैध घर बना लिए हैं और अब यह दुष्ट उन नदियों पर ही बाढ़ का आरोप लगाकर  उन्हें कलंकित करने का प्रयास कर रहा  है. अब आप ही बताइये माता, मेरी असंख्य नदियाँ कहाँ जाएँ?? उनके रास्ते और आंँगन  इस मानव ने बंद कर दिए हैं.... 

धरती माता : ( बीच में ही रोककर ) अच्छा तो क्या तुम यह कहना चाहती हो जल देवी, कि मानव विकास न करे..... ! अपने घर न बनाये...!!! 

जल देवी :जी नहीं, धरती माता ! मेरा ऐसा तात्पर्य कदापि नहीं है, परंतु विकास का अर्थ यह तो नहीं कि मानव उस पर्यावरण को ही क्षति पहुचाएँ, जिसके कारण वह जीवित है...! 

धरती  माता :अर्थात...!! स्पष्ट कहो पुत्री... ! क्या कहना चाहती हो..! 

जल देवी  : माता इस मानव की दुष्टता  महान  पर्वत राज से अधिक और कौन जान सकता है? और जहाँ तक शुद्ध जल की बात है माता ...,तो पर्वतराज की बड़ी पुत्री और हम सबकी लाडली पतित- पावनी ,गंगा देवी  इस तथ्य पर और अधिक स्पष्टता से प्रकाश डाल सकती हैं . माता ! (दोनों हाथ जोड़कर, विनय पूर्वक)आप उन्हें बुलाकर स्वयं ही पूछ लीजिये! 

धरती माता : उचित है जल देवी..!हम अभी पर्वतराज और गंगा देवी को भी यहाँ बुला लेते हैं (तीन बार ताली बजाकर) पर्वत राज  और पावन गंगा देवी शीघ्र ही प्रकट हों ...! 

(तभी पर्दे के पीछे से कत्थई  व श्वेत रंग के चमकीले वस्त्र पहने पर्वतराज आते हैं, उनके गले में हरे पत्तों का हार है,  साथ ही अत्यंत गौरवर्ण और धवल वेशधारी गंगा देवी आकर धरती माता को शीश झुकाकर, दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं) 

पर्वतराज और गंगा माता : (समवेत स्वर में) कहिए धरती माता ..! क्या आज्ञा है ?  आपने हमें किस लिए याद किया है ?

 धरती माता : पुत्र पर्वत राज हिमालय! पुत्री गंगा !!  इस मानव का आरोप यह है...कि तुम सबके कारण उसका जीवन खतरे में पड़ गया है..!! 

पर्वतराज : (मानव की ओर क्रोध से देखकर गर्जना करते हुए) अरे यह दुष्ट अभी तक जीवित है!! मैं अभी इसे अपने मुष्ठि प्रहार से चकनाचूर कर दूंगा ..! (अपने बांये हाथ  की हथेली पर दांये हाथ से घूंसा मारते हुए, आगे बढ़ते हैं) 

(तभी धरती माता पर्वतराज के मार्ग में आ जाती हैं और दोनों हाथों को दोनों ओर फैला कर रोकती हैं। ) 

धरती माता :( लगभग चीखते हुए ) रुक जाओ पर्वतराज!! तुम इस प्रकार प्रकृति के विरुद्ध जाकर मनमानी नहीं कर सकते ..! 

पर्वत राज : क्षमा करें माता , मेरी तो प्रवृत्ति ही धीर- गंभीर है, परंतु यह दुष्ट मानव अपनी प्रजनन- दर कीट पतंगों की भाँति  बढ़ाते हुए, कुकरमुत्तों की भांति दुर्गम पर्वतों पर भी उग आया है और वहां जाकर अतिक्रमण कर दिया है। 

धरती माता : कैसा अतिक्रमण पुत्र ? स्पष्ट कहो! 

पर्वतराज : माता यह मानव हजारों - लाखों की संख्या में अब पर्वतों पर पर्यटन के बहाने समूहों में  आने लगा है। इस दुष्ट मानव ने अपने स्वार्थवश मेरे शरीर को जगह- जगह से तोड़- फोड़ कर मेरे पैरों को शक्तिहीन बना दिया है, जिस कारण मैं ठीक से अपने स्थान पर खड़ा भी नहीं हो पा रहा हूँ ..माता! 

धरती माता : (आश्चर्य से )तुम्हारे पैर कैसे शक्तिहीन हो सकते हैं पुत्र? वह तो हज़ारों मील तक फैले हुए हैं..! 

पर्वतराज:  पूछिए माता इस दुष्ट से! यह मुझतक पहुँचने के लिए , मार्गों को चौड़ा करने हेतु, प्रतिदिन बड़ी -बड़ी मशीनो की सहायता से मेरी शिलाओं को नीचे से काटता जा रहा है, जिस कारण मैं शक्तिहीन होकर गिर रहा हूँ.. माता! 

धरती माता (चिंतित स्वर में )ओहहहहह!! यह तो वास्तव में बड़ी चिंता का विषय है ..! 

धरती माता :(गंगा देवी की ओर उन्मुख होते हुए, स्नेहिल भाव से ) हे महान देवी !आप इस विषय पर मौन क्यों हैं? आप भी अपने विचार रखिए.. ! 

गंगा देवी : हे वसुंधरा देवी ! इस मानव प्रजाति की मूर्खता के कारण इसे पोषित करने वाला,मेरा पावन जल, मलीन होने लगा है, यह मुझमें और मेरी सहायक  नदियों के जल में प्रतिदिन लाखों टन कचरा और प्रदूषित पदार्थ डाल रहा है... मैं जीवनदायिनी गंगा, धीरे- धीरे मर रही हूँ ! यदि मैं ही नहीं रहीं,तब यह मानव भी समाप्त हो जायेगा ! (एक गहरी साँस भरती हैं ) 

धरती माता : बोलो मानव तुम अपने पक्ष में कुछ कहना चाहते हो ? क्या तुम प्रकृति के इन तत्वों के बिना जीवित रह सकते हो ? क्या तुम्हारे पास जीवित रहने का कोई अन्य विकल्प है? असली अपराधी कौन है? ये प्राकृतिक तत्व या तुम...??? 

(मानव बिलखता हुआ धरती माता के चरणों में गिर जाता है।) 

धरती माता :( उसे उठाती हैं )मुझे तुम्हारे आंसू नहीं उत्तर चाहिए, यदि तुम यही विनाश लीला करते रहे तो एक दिन मैं भी समाप्त हो जाऊंगी और तुम भी ..! 

मानव : क्षमा करें माता ..!क्षमा करें ..!मैं ही असली अपराधी हूँ..! मैं स्वयं अपने विनाश  का कारण हूँ, परंतु...मैं वचन देता हूँ माता..आज से मैं अपनी धरती माता को स्वर्ग से भी सुंदर बनाने के लिए हर संभव प्रयास करूँगा। अपनी प्रजाति की प्रजनन दर संसाधनो के अनुपात में रखूंगा, जल के अमूल्य खजाने को भी स्वच्छ व सुरक्षित रखूंगा तथा किसी भी प्रकार का अतिक्रमण नहीं करुंगा ... ! आपका आँचल पुनः हरा -भरा कर दूँगा माता..! 

धरती माता: ( प्रसन्नता पूर्वक) उचित है पुत्र..! प्रातः का भूला संध्या को अपने घर आये तो वह भूला नहीं कहलाता...! जाइए आप सब लोग अब अपने -अपने कर्तव्य पालन में फिर से लग जाइए..! (अपना सीधा हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में उठाती हैं।) 

( मानव, वन देवी, जल देवी, पर्वतराज  व गंगा देवी सहित सभी धरती माता को प्रणाम कर समवेत स्वर में  :धरती माता की जय ....धरती माता की जय ...! कहते हुए प्रस्थान कर जाते हैं।) 

(परदा गिरता है) 

✍️ मीनाक्षी ठाकुर

मिलन विहार

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

बुधवार, 16 अगस्त 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर का एकांकी ....शहादत


पात्र-परिचय

बारिंद्र घोष

अरबिंद घोष

प्रफुल्ल कुमार चाकी उर्फ दिनेश चंद्र राय

खुदीराम बोस 

(सभी क्रांतिकारी) 

जार्ज किंग्सफोर्ड (सैशन जज) 

हाकिंस:अंग्रेज़ आधिकारी

कुछ अंग्रेज़ सैनिक।

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(अंक 1)

स्थान मिदनापुर युगांतर संस्था का गुप्त कार्यालय।

प. बंगाल ,  अप्रैल 1908

(दृश्य एक) -

(एक छोटे से कक्ष में मद्धम जलती लालटेन की रोशनी में एक बड़ी सी मेज के चारों ओर कुर्सियों पर बैठे, क्रांति कारियों के चेहरों पर ओज मिश्रित रोष झलक रहा है। कक्ष के एक कोने में एक छोटे स्टूल पर पानी से भरा घड़ा और उसके समीप ही एक गिलास रखा है तथा मेज पर कुछ महत्वपूर्ण कागज़ और पत्र पत्रिकाएं भी रखी हैं)।

बारिंद्र घोष (मेज पर से एक समाचार पत्र उठाकर, रोषपूर्ण स्वर में) : आज का अख़बार देखा?अंग्रेजो ने उस दुष्ट जज किंग्सफोर्ड को क्रांतिकारियों के कोप से बचाने के लिए मुजफ्फरपुर भेज दिया है सैशन जज बनाकर।

अरबिंद घोष (रोषपूर्ण स्वर में) : वो अत्याचारी जज कहीं भी चला जाये पर हमसे नहीं बच पायेगा। निर्दोष क्रांतिकारियों पर किये अत्याचारों का बदला हम उससे लेकर रहेंगे।

सभी क्रांतिकारी एक स्वर में : हाँ-हाँ, लेकर रहेंगे। ब्रिटिश साम्राज्य मुर्दाबाद . ..मुर्दाबाद...!! हिंदुस्तान ज़िंदाबाद.ज़िंदाबाद!! 

बारिंद्र घोष : तो ठीक है, सारी योजना आज ही बना ली जाये, ताकि समय रहते उस किंग्सफोर्ड को उसकी करनी का फल मिल जाये। (कुछ सोचते हुए) ... मगर इस काम मे बहुत खतरा है। जान की बाज़ी लगानी है। कौन उपयुक्त रहेगा ? तुम बताओ अरबिंदो.... ? 

(बात पूरी होने से पहले ही खुदीराम बोस सीना तानकर खड़े हो जाते हैं) 

खुदीराम बोस (जोश भरे स्वर में ) : मैं जाऊँगा मुजफ्फरपुर, उस पापी का अंत करने!!

अरबिंदो: मगर अभी तुम बहुत छोटे हो खुदीराम, हमारे पास और भी क्रांतिकारी हैं इस पावन कार्य हेतु ! ! 

खुदीराम बोस:छोटा हूँ तो क्या हुआ, मेरे सीने में आक्रोश की जो ज्वाला धधक रही है उसमें उस पापी को भस्म करने की पर्याप्त क्षमता है

बारिंद्र घोष : लेकिन अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है बच्चे..! ! मात्र अट्ठारह वर्ष... ! नहीं नहीं..!!. यह कदापि उचित न होगा। और फिर अगर तुम्ह कुछ हो गया तो तुम्हारी दीदी को क्या जवाब देंगे हम?? 

खुदीराम (ओजपूर्ण स्वर में) : मेरी दीदी तो हिंदुस्तान की वो बहादुर बेटी है जिसने स्वयं मुझे आज़ादी के इस पावन यज्ञ में आहूति के लिए सहर्ष भेजा है.... 

अरबिंदो : परंतु...?? 

खुदीराम ( हाथ जोड़कर ) : किंतु परंतु कुछ न कीजिये बड़े भाई, मैं फैसला कर चुका हूँ। उस पापी का अंत मेरे हाथों ही होगा। 

बारिंद्र घोष : ठीक है तो...। परंतु तुम अकेले नहीं जाओगे, प्रफुल्ल तुम्हारे साथ जायेगा। क्या कहते हो प्रफुल्ल?? 

प्रफुल्ल कुमार चाकी (गर्व से गाते हैं ) : बांधा कफ़न है सर से हमने वतन की खातिर, माँ भारती ने देखो हमको है फिर पुकारा  (हँसते हैं) नेकी और पूछ पूछ। सौ जन्म कुर्बान ऐ हिंद तुझ पर   ... ! ! 

बारिंद्र (लम्बी सांस छोड़ते हुए) : ठीक है साथियों ! तो तय हुआ प्रफुल्ल और खुदीराम इस काम को अंजाम देंगें। कल इसी वक़्त, इसी जगह  पुन:मिलते हैं नारा लगाते हैं..( वंदेमातरम्)

क्रांतिकारियों का समवेत स्वर गूंजता है - वंदेमातरम् वंदेमातरम... ।

(दृश्य 2 - समय दोपहर)

स्थान - मिदनापुर, युगांतर संस्था का कार्यालय

(सभी क्रांतिकारी कक्ष में मेज के चारों ओर बैठकर विचार विमर्श कर रहे हैं। तभी अरबिंदो घोष तेजी से कक्ष में प्रवेश करते हैं, उनके हाथ में दो काले रंग का थैले हैं)

अरबिंदो (थैले में से  दो पिस्तौल निकालते हैं) : ये लो प्रफुल्ल और खुदीराम हथियार!!! (फिर थैला खुदीराम को सौंपते हैं) यह लो खुदीराम। इसमें बम है, जो तुम्हें उस दुष्ट की गाड़ी पर फेंकना है। यह बम तभी सक्रिय होगा जब तुम इसका इस्तेमाल करना चाहोगे।

खुदीराम और प्रफुल्ल चाकी आगे बढ़कर हथियार थाम लेते हैं और समवेत स्वर में नारा लगाते हैं : वंदेमातरम् वंदेमातरम्.....।    

 खुदीराम : ज़िंदा रहे तो जल्द ही मिलेंगे। (आगे बढ़कर सबके गले मिलते हैं)।

(अंक दो - दृश्य एक)

1908, अप्रैल, समय दिन का। 

स्थान - मुजफ्फरपुर जार्ज किंग्स फोर्ड का बंगला। खुदीराम व प्रफुल्ल कुमार बंगले के बाहर, पेड़ो के पीछे छुपकर बंगले की गतिविधियों पर नज़र रखते हुए, किंग्स फोर्ड के बाहर आने का इंतज़ार कर रहे हैं। कुछ ही पलों में वह सफेद कपड़े पहने बाहर निकलता है)

खुदीराम बोस : लगता है यही जॉर्ज किंग्स फोर्ड है।

प्रफुल्ल कुमार : हाँ, यही है वह दुष्ट। चलो देखते हैं, कौन सी बग्गी से बैठेगा यह किंग्स फोर्ड।

(जल्दी-जल्दी सफेद घोड़े की बग्गी पर बैठता है और बग्गी चल पड़ती है।)

खुदीराम ::तो  कल का दिन तय हुआ। आओ चलें।

प्रफुल्ल : जी तो करता है कि इस पापी का अभी काम तमाम कर दूँ।

खुदीराम (प्रफुल्ल का हाथ अपने दोनो हाथों से थामते हुए) : जब इतना सब्र किया तो आज और कर लेते हैं। कल इसकी ज़िन्दगी का आखिरी दिन होगा। 

(दोनों अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान करते हैं।)

(दृश्य 2 ,)

(स्थान: मुजफ्फरनगर 30 अप्रैल उन्नीस सौ आठ। समय 8.00 बजे। घुप्प अंधेरे में मुजफ्फरपुर क्लब के बाहर प्रफुल्ल और बोस दोनो छुपकर किंग्स फोर्ड के बाहर आने का इंतज़ार कर रहे हैं)1

प्रफुल्ल (बड़बड़ाते हुए) : कब निकलेगा दुष्ट बाहर।

बोस : कोई घड़ी जा रही है। बस, बाहर आने ही वाला है। पिछले चार दिन से देख रहे हैं कि वह इसी समय बाहर निकलता है।

(तभी सफेद कपड़ों में दो साये क्लब से बाहर निकलते हैं और तेजी से चलते हुए सफेद घोड़े की बग्घी में बैठ जाते हैं।) 

प्रफुल्ल (तेजी से फुसफुसाते हुए) : लगता है आ गया। बोस !!  जल्दी करो, बचने न पाये वो।

(दोनों  पेड़ से कूदकर बग्घी के पीछे नंगे पाँव ही दौड़ पड़ते हैं और बग्घी को निशाना बनाते हुए बम फेंक देते हैं। ज़ोर के धमाके के साथ बग्घी के परखच्चे उड़ जाते हैं। दोनों कुछ पल रुककर जली हुई बग्घी के पास जाकर देखते हैं तो चौंक जाते हैं। ) 

प्रफुल्ल : हे भगवान! गजब हो गया। ये तो कोई और लोग हैं।

खुदीराम (निराशाजनक तरीके से सर को हिलाते हैं) : वह दुष्ट बच गया, पर कब तक बचेगा। इस बम की गूंज लंदन तक जायेगी। हिंदुस्तान का हर बच्चा प्रफुल्ल, चाकी और खुदीराम बन जायेगा तुझे मारने के लिए दुष्ट किंग्स फोर्ड! (दांत पीसते हुए)

(तभी बहुत से पद चापों की आवाज़ सुनकर दोनो क्रांतिकारी भागते हुए नारा लगाते हैं) : वंदेमातरम् वंदेमातरम्।

(चारों ओर से फायरिंग की आवाज़ आने लगती है लेकिन दोनों अंग्रेज़ सिपाहियों को मात देते हुए अंधेरे में लुप्त हो जाते हैं।) 

दृश्य 3 - 

बोकामा रेलवे स्टेशन (बिहार)।

1 मई, 1908 सुबह के चार बजे 

(रेलवे स्टेशन पर कम लोग ही हैं। प्रफुल्ल चाकी भागते हुए रेलवे स्टेशन पर आते हैं, चेहरा गमछे से आधा ढका है। खुदीराम  दूसरे रास्ते से पीछे आ रहे हैं। चार-पाँच अंग्रेज़ सिपाही सतर्कता से रेलवे स्टेशन पर मुसाफिरों पर नज़र बनाये हुए हैं।)

प्रफुल्ल (एक वेंडर से हाफंते हुए) : भाई रुको ज़रा...! यहाँ कहीं पानी मिलेगा क्या??? 

वेंडर(धीरे से बुदबुदाता है) :  मेरा नाम त्रिगुणायत है और बारिंद्र ने आप लोगों की सहायता के लिए मुझे आपके पीछे यहाँ भेजा था। यह लो  कलकत्ता का टिकट, ट्रेन आती होगी। (फिर अपनी टोकरी में छुपा कर रखे बरतन से पानी पिलाता है। इतने में ही दोनो अंग्रेज़ सिपाही दौड़ते हुए आते हैं, उन्हें देख प्रफुल्ल पानी पीना छोड़ तेज कदमों से आगे बढ़ने लगते हैं) 

पहला सिपाही : ऐ, रुको ज़रा।

(प्रफुल्ल अपनी चाल और भी तेज कर देते हैं, मगर बाकी सिपाही दौड़ कर प्रफुल्ल को चारों ओर से घेर लेते हैं। स्वयं को चारों ओर से घिरा देख प्रफुल्ल अपनी  कमर से पिस्तौल निकाल कर सिपाहियों पर फायरिंग कर देते हैं, तीन सिपाहियों घायल होकर नीचे गिर जाते हैं, अब पिस्तौल में आखिरी गोली बची है)।

प्रफुल्ल(कनपटी से रिवाल्वर सटाकर) : तुम जैसे पापियों के हाथों मरने से अच्छा मैं स्वयं ही मृत्यु का वरण कर लूँ। वंदेमातरम्......, वंदेमातरम्...... (कहकर ट्रिगर दबा देते हैं और धाँय की आवाज़ के साथ ही वह शेर  धरती पर गिर जाता है।) 

दृश्य - 4 : 

स्थान मुज़फ़्फ़र पुर जेल11अगस्त 1908

(खुदीराम को हथकड़ी लगाकर फांसी के तख्ते की ओर ले जाया जा रहा है, चेहरे पर अपूर्व तेज है, सफेद धोती कुरते पहने और हाथ में भगवद्गीता लिए कुछ गुनगुनाते हुए आगे बढ़ रहें हैं।) 

 हाकिंस: ये इंडिया का लोग भी अजीब होता है। छोटा बच्चा भी मरने के लिए कितना खुश हो रहा है। तुमको  डर नहीं लगता खुदीराम ? 

खुदीराम : डर ? (ज़ोर से हंसता है) डर कैसा? यह तो मेरा सौभाग्य है कि अपनी मातृभूमि पर अपने शीश का पुष्प चढ़ाने का अवसर मुझे इतनी जल्दी मिल गया। मैं धन्य हो गया। माँ भारती......( बेतहाशा हँसता है) 

हाकिंस (थोड़ा भयभीत होकर सकपका जाता है) : बस-बस। फाँसी का समय निकला जा रहा है। (थूक गटकता है) तुम्हारी कोई अंतिम  इच्छा ?

खुदीराम: हाँ है। 

 हाकिंस : क्या?

खुदीराम: जब भी जन्म लूँ, हिंदुस्तान की गोद मिले। (ऊपर की ओर देखते हुए) आता हूँ प्रफुल्ल! जेल के बाहर देख रहो हो न। कितने खुदीराम और प्रफुल्ल खड़े हैं। यह शोर सुनो चाकी, हमारी  शहादत व्यर्थ न होगी। देखो, देखो, बम की गूंज कितनी दूर तक गयी है, हा  हा हा !वंदेमातरम्.. ..वंदेमातरम्  !हिंदुस्तान ज़िंदाबाद..!! 

(फांसी का फंदा चूमकर अपने गले में डाल लेते हैं। ) 

हाकिंस (आश्चर्य मिश्रित भाव से) : सचमुच भारत का हर बच्चा शेर है।

(नेपथ्य में खुदीराम अमर रहे, प्रफुल्ल चाकी अमर रहे... वंदेमातरम् की आवाज़ गूंजती है। परदा गिरता है।)


✍️ मीनाक्षी ठाकुर

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत




 

शनिवार, 21 जनवरी 2023

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का एकांकी ....रामपुर के राजा रामसिंह


काल : लगभग अठारह सौ ईसवी

पात्र परिचय 

पंडित रामस्वरूप जी : आयु लगभग साठ वर्ष

भगवती : पंडित रामस्वरूप जी की पत्नी, आयु लगभग 60 वर्ष

सुलोचना : पंडित रामस्वरूप जी एवं भगवती की पुत्री, आयु लगभग तेरह वर्ष

स्थान : रामपुर रियासत

पर्दा खुलता है।


पंडित रामस्वरूप गीता पढ़ रहे हैं:

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सव:

मामका: पांडवाश्चैव किमकुर्वत संजय

धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में, रण की इच्छा पाल

क्या करते संजय कहो, पांडव मेरे लाल

सुलोचना : पिताजी ! आपने संस्कृत गीता का हिंदी दोहा किस पुस्तक से पढ़ा है ?

पंडित रामस्वरूप जी : बेटी तुम तो जानती हो, मुझे भूत और भविष्य सब अक्सर दिखाई पड़ते हैं । यह उन्हीं में से कोई एक रचना है ।

सुलोचना : पिताजी ! आप इतने विद्वान हैं, लेकिन हमारे राधा-कृष्ण और उनकी गीता इस घर की परिधि में छुपकर ही हम क्यों पढ़ते हैं ? घर के बाहर जो बड़ा-सा चौराहा है और जहॉं बहुत सुंदर वृक्ष स्थापित है, उसके नीचे हम राधा-कृष्ण की मूर्ति स्थापित करके वहॉं गीता क्यों नहीं पढ़ते? कई बार मैं आपसे कह चुकी हूॅं।

पंडित रामस्वरूप जी : बेटी ! हर बार मैंने तुम्हें समझाया है कि हमें ऐसी स्वतंत्रता रामपुर रियासत में रहते हुए प्राप्त नहीं है ।

सुलोचना : आज तो मैं अपने राधा-कृष्ण की मूर्ति ले जाकर पेड़ के नीचे रखकर वही गीता पढ़ूंगी।

भगवती देवी (अपने पति पंडित रामस्वरूप जी से):अरे भाग्यवान! सुलोचना तो बच्ची है। वह तो कुछ भी कह सकती है। लेकिन आप तो समझदार हो। उसे क्यों नहीं रोकते ? अर्थ का अनर्थ क्यों करने जा रहे हो ? घर पर बैठकर भी तो गीता पढ़ी जा सकती है ।

सुलोचना : मॉं ! तुम हर बार हमें रोक देती हो और बीच में पड़कर हमें सार्वजनिक रूप से राधा-कृष्ण की उपासना करने से मना कर देती हो ।

पंडित रामस्वरूप जी : बेटी ! समझने की कोशिश करो। तुम्हारी भलाई के लिए ही मॉं ऐसा कह रही हैं ।

(सुलोचना एकाएक राधा-कृष्ण की मूर्ति और गीता हाथ में उठाकर चौराहे पर पेड़ की तरफ दौड़ पड़ती है। भौंचक्के हुए पंडित रामस्वरूप जी और उनकी पत्नी भगवती सुलोचना …सुलोचना पुकारते हुए उस बच्ची के पीछे दौड़ने लगे । पेड़ के पास जाकर सुलोचना रुक गई । उसने राधा-कृष्ण की मूर्ति पेड़ के नीचे रख दी । गीता हाथ में लेकर बैठ गई और पढ़ने ही वाली थी कि दोनों माता-पिता पीछे-पीछे आ गए । पंडित रामस्वरूप जी सुलोचना के हाथ से गीता छीनते हुए तथा राधा कृष्ण की मूर्ति पर अपने कंधे पर पड़ा हुआ अंगोछा डाल कर रखते हुए कहने लगे )

पंडित रामस्वरूप जी: सुलोचना ! अभी यह समय नहीं आया है।

सुलोचना : कब आएगा समय ? आप तो भूत-भविष्य सब जानते हैं, फिर बताइए ?

पंडित रामस्वरूप जी :  बेटी ! अभी लंबा समय बीतेगा । मेरा और तुम्हारा दोनों के जीवन का जब अंत हो जाएगा, तब एक उदार, धर्मनिरपेक्ष शासक रामपुर रियासत में राजसिंहासन पर आसीन होंगे । उनका नाम नवाब कल्बे अली खॉं होगा । उसी समय पंडित दत्त राम नामक एक अलौकिक शक्तियों से संपन्न सत्पुरुष अपनी प्रेरणा से नवाब कल्बे अली खां को रामपुर रियासत में सर्वप्रथम सार्वजनिक मंदिर बनवाने के लिए उत्साहित करेंगे और तब नवाब साहब द्वारा आधारशिला रखकर रामपुर के पहले शिवालय का निर्माण संभव हो सकेगा ।

सुलोचना : इस कार्य में तो पचास साल से भी ज्यादा लग जाएंगे ।तो क्या तब तक हम अपने राधा-कृष्ण की मूर्ति को घर के अंदर ही पूजने के लिए अभिशप्त होंगे ?

पंडित रामस्वरूप जी : हां, जब तक पंडित दत्त राम और नवाब कल्बे अली खॉं का युग नहीं आ जाता, स्थिति आज के समान ही अंधकारमय रहेगी । सत्पुरुष तो प्रायः एक सदी बाद ही होते हैं।

सुलोचना (दुखी होकर): ऐसा कैसा रामपुर है, जहॉं राम और कृष्ण के नाम लेने के लिए सौ साल बाद नवाब कल्बे अली खां की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी ! फिर इसका नाम रामपुर क्यों है ?

(इतना कहकर सुलोचना अपने पिता के हाथ से गीता और राधा-कृष्ण छीन लेती है तथा उन्हें अपने सीने से चिपका कर घर की तरफ दौड़ जाती है । पीछे-पीछे माता-पिता भी घर पर आ जाते हैं। घर पर सुलोचना उदास और निढाल होकर खटिया पर लेट जाती है । माता-पिता उसके पास जाते हैं और उसके बालों को सहलाते हैं । सुलोचना सुबक उठती है।)

सुलोचना : पिताजी! आप तो भूत और भविष्य दोनों जानते हैं। आपने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया कि यह स्थान रामपुर क्यों कहलाता है ?

पंडित रामस्वरूप जी : बेटी ! यह शताब्दियों पुरानी कहानी है, जो राजा राम सिंह के अतुलनीय पौरुष, बल और वीरता से भरी हुई है । राजा राम सिंह का राज्य रामपुर, मुरादाबाद और ठाकुरद्वारा इन तीनों क्षेत्रों तक फैला हुआ था । तब यह स्थान “कठेर खंड” कहलाता था।

सुलोचना : कठेर-खंड का क्या तात्पर्य है पिताजी ? आखिर किसे कहते हैं ?

पंडित रामस्वरूप जी : बेटी ! मैं इतिहास में बहुत दूर तक तो नहीं देख पा रहा हूं, लेकिन अंतर्दृष्टि से मुझे एक ऋषि का भी दर्शन हो रहा है । इसका संबंध वेद और उपनिषद के ज्ञान से भी जान पड़ता है । लेकिन इतने पुराने इतिहास के बारे में देखते समय मेरी दृष्टि धुंधला जाती है।

सुलोचना : तो फिर जरा निकट का ही इतिहास आप देखकर हमें बताइए ?

पंडित रामस्वरूप जी : (उत्साहित होकर) हां, वह तो स्पष्ट दिख रहा है । कोई राजा रामसिंह थे,जिनका शासन महान राजाओं में सर्वश्रेष्ठ था । वह प्रजा पालक, वात्सल्य से भरे हुए तथा न्याय और नीति के मार्ग पर चलने वाले महान शासक थे । उनके राज्य में पूजा-अर्चना और हवन की सुगंध चारों ओर फैलती थी ।

सुलोचना : (हर्षित होकर) तो क्या रामपुर रियासत में भी राजा राम सिंह के यज्ञों की सुगंध प्रवाहित होती थी ?

पंडित रामस्वरूप जी : भूतकाल को देखने पर मुझे तो कुछ-कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है ।

सुलोचना : कुछ और बताइए पिताजी ! इतने महान शासक के बारे में कुछ और जानने की इच्छा है ।

पंडित रामस्वरूप जी : बेटी ! अधिक तो प्रतीत नहीं हो रहा । मैं देखने का प्रयत्न करता हूं , लेकिन पटल पर धुंध और धूल छा जाती है । बस इतना दिख पाता है कि किसी ने धोखे से एक महा प्रतापी राजा रामसिंह के जीवन का अंत कर दिया था । उसी के साथ सनातन जीवन मूल्यों से जुड़े आचार-विचार की क्षति इस कठेर-खंड में चारों तरफ छा गई।

सुलोचना : फिर मुरादाबाद का क्या हुआ पिताजी ?

पंडित रामस्वरूप जी : वह तो अभी हाल का ही इतिहास है । उस पर मुगलों का शासन स्थापित हो गया । बस रामपुर वाला हिस्सा बचा । उसका नाम रामपुर रख दिया गया ।

सुलोचना : रामपुर का नामकरण रामपुर कैसे पड़ा ? यह किसके नाम पर है ?

पंडित रामस्वरूप जी : राम का नाम तो सर्वविदित है । हजारों-लाखों वर्षों से यही तो परमेश्वर का सत्य स्वरूप है । इस नाम का संबंध उस परम ब्रह्म परमात्मा से अवश्य ही बनता है। लेकिन हां, जब तुम कठेर-खंड के पतन के बाद निर्मित रामपुर रियासत के बारे में पूछ रही हो, तो इसका अभिप्राय राजा रामसिंह से है । राजा रामसिंह की मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों ने इस बचे-खुचे कठेर-खंड का नाम राजा राम सिंह के नाम पर रामपुर रखना अधिक उचित समझा।

सुलोचना : रामपुर कितना धन्य है, जिसका नामकरण भगवान राम और उनके भक्त राजा रामसिंह के नाम पर अनुयायियों द्वारा किया गया है । अब हम उस समय की प्रतीक्षा करेंगे, जब फिर से इस क्षेत्र में उदार विचारों की प्रधानता होगी और सबको अपने मन के अनुरूप पूजा-अर्चना का अधिकार और अवसर मिल सकेगा ।

पंडित रामस्वरूप जी : हां बेटी ! मैं भविष्य के पटल पर और भी बहुत कुछ देख रहा हूॅं। न केवल नवाब कल्बे अली खां और पंडित दत्त राम के परस्पर सहयोग और उदार विचारों के फलस्वरुप रियासत में एक मंदिर की स्थापना के महान कार्य को इतिहास के पृष्ठों पर अंकित होते हुए मुझे दिखाई पड़ रहा है, बल्कि यह भी दिख रहा है कि राजे-रजवाड़े अतीत का हिस्सा बन जाएंगे। समूचे भारत में जनता का शासन होगा । लोकतंत्र स्थापित हो जाएगा तथा फिर शोषण, उत्पीड़न, अत्याचार और शासक वर्ग की स्वेच्छाचारिता इतिहास का भूला-बिसरा अध्याय बन जाएगी ।

(सुलोचना अपने पिता के मुॅंह से यह सुनकर तालियॉं बजाने लगती है । उसकी मॉं की ऑंखों से भी ऑंसू निकल आते हैं । वह भी बेटी के साथ मिलकर तालियॉं बजाती हैं। पार्श्व में स्वर गूंजता है कि हमारी एकता अमर रहे ….हम सब भारतवासी आपस में भाई-बहन हैं..)

इसके बाद पर्दा गिर जाता है।

✍️ रवि प्रकाश

बाजार सर्राफा, 

रामपुर

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल 99976 15451

रविवार, 9 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष पंडित बलदेव प्रसाद मिश्र (विद्यावारिधि पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र के अनुज) की दुर्लभ कृति... नन्द विदा नाटक । यह कृति वर्ष 1906 में लक्ष्मीनारायण यंत्रालय मुरादाबाद से प्रकाशित हुई है। हिन्दी साहित्य का इतिहास संबंधी अनेक ग्रंथों व कोशों में इस कृति का उल्लेख मिलता है।


 क्लिक कीजिए और पढ़िए पूरी कृति 

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::::::::::प्रस्तुति::::::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत 

मोबाइल फोन नंबर 9456687822 



शनिवार, 8 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष पंडित बलदेव प्रसाद मिश्र (विद्यावारिधि पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र के अनुज) की दुर्लभ कृति... लल्ला बाबू प्रहसन । यह कृति वर्ष 1900 में श्री वेंकटेश्वर यंत्रालय मुंबई से प्रकाशित हुई है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने ग्रंथ हिन्दी साहित्य का इतिहास में इस कृति का उल्लेख किया है।



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:::::::::प्रस्तुति:::;::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत 

मोबाइल फोन नंबर 9456687822



गुरुवार, 25 अगस्त 2022

मुरादाबाद मंडल के अफजलगढ़ (जनपद बिजनौर ) निवासी साहित्यकार डॉ अशोक रस्तोगी का एकांकी ...शठे शाठ्यम समाचरेत्


पृष्ठभूमिसिंहावर्त नामक सघन वृक्षों वाला रमणीक महावन…ऊंची-ऊंची पर्वत श्रंखलाओं, नदियों, स्वच्छ पानी वाले जलाशयों और सुंदर सुगंधित पुष्पों लताओं से परिपूर्ण…हर ओर मनमोहक हरियाली…विशालकाय पत्थर, गुफाओं और सुरंगों की बहुलता।

पात्र परिचय :

तानिया बिल्ली     –   वनमाता

मनशेरा शेर          –   कठपुतली राजा

कुटिलरुप भेड़िया   –  निकटवर्ती राज्य कूटिस्तान का शासक

बाघेन्द्र बाघ        –     वनखण्ड प्रभारी

  :   परिदृश्य एक   :

उद्घोषककिसी समय सिंहावर्त नामक महावन में जीवा नामक बिलाव शासन करता था। किन्तु उसकी नीतियों से असंतुष्ट कुछ उग्र व हिंसक जन्तुओं ने उसकी हत्या कर दी थी। तब उसके चाटुकारों ने उसकी राजकाज में अनुभवहीन पत्नी तानिया नामक बिल्ली को सिंहासनासीन करने की भरसक चेष्टा की। किन्तु तानिया ने वनहित में त्याग का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए मनशेरा नामक एक ऐसे बूढ़े शेर को सत्तासीन कर दिया जो वंश से तो शेर था किन्तु स्वभाव व प्रवृत्ति से किसी मूषक की भांति कातर और मूकबधिर जैसा था। शायद तानिया ने उसे इसीलिए कठपुतली के रूप में राजा बनाया था। और वह त्याग की प्रतिमूर्ति बन परदे के पीछे से महावन पर अपना शासन चलाने लगी…

     एक दिन मनशेरा वनमाता तानिया के तमाम सुख साधनों से भरपूर भव्य राजगुफा में पहुंचता है…और

मनशेरा (करबद्ध अभिवादन की मुद्रा में नतमस्तक) – वनमाता की सदा ही जय हो!

वनमाता (आशीर्वचन की मुद्रा में दायां हाथ ऊपर उठाते हुए)-- हां बोलो मनशेरा! क्यों इतने घबराये हुए हो?

मनशेरा – वनमाता! कूटिस्तान के राजा कुटिलरूप ने हमारे महावन में बहुत उत्पात मचा रखा है।

वनमाता (चौंकते हुए) – कौन कुटिलरूप? कौन कूटिस्तान?... पहले तो तुमने कभी ये नाम लिये नहीं?

मनशेरा – वनमाता! यह वह वन है जो कभी हमारे ही महावन का एक भाग हुआ करता था , किंतु अब वह अलग स्वतन्त्र वन कूटिस्तान बन गया है उसी का राजा है कुटिलरूप भेड़िया।

वनमाता – किस मूर्ख ने किया उसे हमारे महावन से अलग? क्या कोई सजा दी गई उसे?

मनशेरा – वनमाता! उसे तो कोई सजा नहीं दी गई, किन्तु उसके किए की सजा हमारा महावन अवश्य भुगत रहा है।

वनमाता – आखिर किसके दिमाग में वह कीड़ा कुलबुलाया था जो इस महावन से एक खण्ड काटकर इसे छोटा कर दिया गया? कौन बुद्धिहीन था वह?

मनशेरा (तनिक झिझकते हुए)– अतीत की बड़ी लम्बी और शर्मनाक कहानी है वनमाता!...सुनाते हुए संकोच भी होता है और भय भी लगता है कि कहीं आप कुपित न हो जाएं।

वनमाता – बिल्कुल मत डरो मनशेरा! और संकोच भी मत करो! सब कुछ साफ़ साफ़ बताओ!

मनशेरा (भयाक्रांत स्वर)-- वनमाता! किसी समय में यह सिंहावर्त नामक महावन क्षेत्रफल व समृद्धि की दृष्टि से अत्यधिक विशाल था। किन्तु आपके पति जीवा के एक सदाशय पूर्वज ने अपने किसी स्वार्थ के वशीभूत होकर अपने मित्र किसी भेड़िए को इस महावन का एक छोटा सा खण्ड उपहार स्वरूप प्रदान कर दिया था।तब से अब तक वहां भेड़िए ही शासन करते आ रहे हैं। आजकल वहां कुटिलरूप नामक एक निकृष्ट स्वभावी भेड़िया अधिपत्य जमाए हुए है। उसकी लोलुप दृष्टि हमारे महावन पर लगी हुई है।उसका दिवास्वप्न है कि वह हमारे सिंहावर्त व अपने कूटिस्तान को मिलाकर अपना साम्राज्य स्थापित करे। इसीलिए वह हमारे सिंहावर्त में अपने भेड़ियों द्वारा विध्वंस व उत्पात मचाता रहता है।

वनमाता – तो उससे हमें क्या हानि है?

मनशेरा (किंचित्आवेश में)-- वनमाता! वह हमारे वनवासियों का बहुत प्रकार से उत्पीड़न कर रहा है। हमारे तमाम जीवजंतु मारे जा रहे हैं। वनसम्पदा नष्ट की जा रही है।नदी नालों का पानी रक्त से लाल व दूषित किया जा रहा है।

वनमाता – तो उसके कुकृत्यों से हमें क्या हानि है?... हमारी समझ में यह बात नहीं आ पा रही?... वह हमारी प्रजा का ही तो शोषण कर रहा है हमारा तो नहीं।…बस इतना ध्यान तुम्हें अवश्य रखना है कि उसके कारण हमारे सुखोपभोग में कोई कमी न आने पाए।

मनशेरा – इतनी व्यवस्था तो हमने पहले ही कर रखी है। हमने चीते,हाथी, जिराफ़ व ऊंट को महावन की सीमाओं पर नियुक्त कर रखा है। परंतु वनमाता!कुटिलरूप भेड़िया इतना कुटिल है कि उसने साही के द्वारा महावन व कूटिस्तान के मध्य आर पार सुरंगें बनवा ली हैं। और विभाजन के समय जो भेड़िए यहां रह गये थे उनका आश्रय लेकर विध्वंस मचाता रहता है। तथा उन्हें यह कहकर उत्साहित करता रहता है कि अभियान जारी रखो! वह दिन दूर नहीं जब महावन सिंहावर्त में भी एक छत्र भेड़ियों का साम्राज्य स्थापित होगा।

वनमाता (आंखें विस्फारित करते हुए)-- ओह ऐसा हुआ?... यह तो बहुत ग़लत है…फिर तुमने क्या किया उसका अभियान रोकने के लिए?

मनशेरा – हमने उसे कठोर चेतावनी दी है कि कुटिलरूप जी! हमारे धैर्य की परीक्षा मत लीजिए! हम आपसे डरने वाले नहीं हैं,अपना विध्वंसक अभियान तत्काल रोक दीजिए! वरना हम आपकी ईंट से ईंट बजा देंगे।

वनमाता – तो उस पर क्या प्रतिक्रिया हुई तुम्हारी धमकियों की? क्या उसका अभियान रुक पाया?

मनशेरा – नहीं वनमाता!उसका तो दु:साहस निरंतर बढ़ता जा रहा है। उसने तो हमें ही ललकार दिया कि अरे जा-जा कठपुतली राजा! उस बिल्ली की गोद में बैठकर गीदड़भभकी देने वाले तुझ जैसे भीरू राजा से डरकर हम कभी पीछे हटने वाले नहीं।

वनमाता – पता नहीं क्यों मनशेरा! हमें इन भेड़ियों से कुछ विशेष प्रेम है, उनके अनिष्ट से हमारा हृदय रोता है। जबकि खरगोश,हिरण,सांभर, नीलगाय जैसे निरीह जन्तुओं से हमें नफरत है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे ये हमारे महावन पर बोझ हैं। और ये यहां से निकलकर किसी और वन में चले जाएं…

     …खैर तुम अपनी गुफा में जाकर विश्राम करो!हम अपने परामर्शदाताओं से विचार विमर्श कर कोई ऐसी राह निकालेंगे कि इन भेड़ियों को भी कोई क्षति न पहुंचे और हमारे सुखोपभोग में भी कोई बाधा न पड़े।

    ( मनशेरा वनमाता के चरणों में तीन बार शीश झुकाकर किसी पंखकटे पक्षी की तरह छटपटाता हुआ रुआंसे मन से वापस लौट जाता है)


उद्घोषक : फिर एक रात्रि को कुटिलरूप ने बहुत सारे भेड़ियों के साथ सीमा पर बनाई गई सुरंगों से घुसकर सिंहावर्त पर आक्रमण कर दिया। वीभत्स जन्तु संहार करते हुए उसने बहुत भीतर तक प्रवेश कर लिया। मनशेरा को सूचना मिली तो  वह अपने कातर स्वभावानुसार कुटिलरूप की अभ्यर्थना करने जा पहुंचा…

मनशेरा (कुटिलरूप की ओर मैत्री भरा हाथ बढ़ाते हुए) – सिंहावर्त की सुसमृद्ध धरती पर आपका अभिनन्दन है माननीय महोदय! 'अतिथि देवो भव:' हमारी परंपरा रही है। एक अतिथि के रूप में आप जब तक चाहें तब तक यहां रहें! परंतु हमारे जंतुओं को कोई हानि न पहुंचाएं! वे हमसे शिकायत करने आ जाते हैं तो हमारी शासकीय क्षमता पर प्रश्न चिन्ह उठ खड़े होते हैं। बात वनमाता के कानों तक जा पहुंचती है तो हमें उनका कोपभाजन बनना पड़ता है।

कुटिलरूप (अपने सेनापति के कानों में फुसफुसाते हुए)-- इस शेर की बुद्धिहीनता का भी कोई जवाब नहीं। शत्रु का भी कैसा भावभीना सत्कार कर रहा है। बेवकूफ कहीं का।

मनशेरा – सम्माननीय महोदय! धीरे-धीरे क्या कह रहे हैं आप? कुछ हमें भी तो पता चले?

कुटिलरूप – तुम्हारी सादगी और प्यार भरे आतिथ्य तथा इस महावन की सुंदरता ने हमारा मन मोह लिया है। मन करता है कि इस महावन को भी हम अपने कूटिस्तान में ही मिला लें। तुम भी वहीं चलकर रह लेना!... इस प्रस्ताव के संदर्भ में क्या कहते हो तुम?

मनशेरा (मंद-मंद मुस्कराते हुए)-- परिहास बहुत अच्छा कर लेते हैं आप। हंसी मजाक हमें भी बहुत पसंद है।

कुटिलरूप  (अपने सेनापति से धीमें स्वर में)--  जहां का राजा नीति निपुण न हो , जिसे शत्रु मित्र की लेशमात्र भी पहचान न हो, जो शत्रु से भी प्रेमपगा व्यवहार करता हो– ऐसे राजा के राज्य पर अधिपत्य जमा लेने में लेशमात्र भी बाधा नहीं आ सकती।

उद्घोषक  : और कुछ ही समय में देखते ही देखते सिंहावर्त महावन में कूटिस्तान के भेड़ियों ने उत्पात मचा दिया। वहां के मूल निवासी सांभर, नीलगाय, चीतल, चिंकारा, खरगोश,ज्ञ हिरण आदि निरीह जन्तुओं का सफाया किया जाने लगा। सम्पूर्ण महावन में करुण क्रंदन और चीत्कार के स्वर…जिधर भी देखो उधर हिंसा का भयावह ताण्डव…आतंक का नग्न नर्तन।

     परंतु सिंहावर्त का कठपुतली राजा मूक,मौन और बधिर था…शायद उसे वनमाता के किसी आदेश की प्रतीक्षा थी।

                    ( परदा गिरता है )

                : परिदृश्य क्रमांक दो   :

उद्घोषक : सिंहावर्त के एक लघुखण्ड का प्रभारी बाघेंद्र नामक बाघ बहुत शक्तिशाली, स्वाभिमानी और वीर था…खण्ड के जंतुओं की रक्षा के लिए सदैव सतर्क और सन्नद्ध…कूटिस्तान के भेड़िए जब उपद्रव मचाते हुए उसके खण्ड तक जा पहुंचे तो वह रौद्रमुखी बन गया…अन्य हिंसक जन्तुओं के सहयोग से उसने उन्हें तत्काल मार भगाया। और अगले ही दिन उसने अपने सेनापति व अन्य परामर्शदाता जंतुओं की एक सभा की…

बाघेंद्र (परामर्शदाताओं से)-- यह सोचकर मेरे मस्तक पर चिंता के साये लहराने लगे हैं कि पड़ोसी वन के जन्तुओं का हमारी सीमा में घुस आने का दु:साहस कैसे हुआ? क्या हमारे महावन का राजा इतना भीरू,कायर और ओजविहीन है कि अपने राज्य में घुस आए शत्रुओं का प्रतिकार नहीं कर सकता?

चीता– ऐसे डरपोक और शक्तिहीन राजा को राज करने का कोई अधिकार नहीं।उसे तो एक पल भी सिंहासनारूढ़़ नहीं रहने देना चाहिए।

बाघेंद्र (क्रांति का बिगुल बजाते हुए)-- जिस राजा को अपनी प्रजा के हितों की चिंता न हो,जो शत्रुओं से अपनी प्रजा की रक्षा करने में सक्षम न हो– उसे शासन करने का कोई अधिकार नहीं।…तो आइए मेरे साथ…सत्ता परिवर्तन के लिए क्रांति की मशाल लेकर सब साथ-साथ चलें!

चीता, तेंदुआ,भालू,गुलदार (उत्साहित समवेत स्वर)-- बाघेंद्र जी संघर्ष करो!हम तुम्हारे साथ हैं।

बाघेंद्र– साथियों! हम शठे शाठ्यम समाचरेत् युद्ध नीति के अनुसार अपने महावन में अवैध रूप से घुस आए भेड़ियों को चुन-चुनकर मारेंगे और सारे वनद्रोही व धूर्त जंतुओं का भी सफाया करेंगे। तत्पश्चात पर्वतों पर अनधिकृत रूप से वास कर रहे कूटिस्तान के गुप्तचर सियार, लोमड़ी,साही, ऊदबिलाव आदि को चीर फाड़ डाला जाएगा।

चीता तेंदुआ – परंतु अपने महावन के राजा मनशेरा और वनमाता से मुक्ति कैसे मिलेगी? जिन्होंने अपनी स्वार्थांधता और कातरता से इस महावन के गौरवशाली इतिहास को कलंकित कर दिया।

बाघेंद्र– मैंने सिंहावर्त महावन के सर्वविधि संरक्षण और सर्वांगीण उन्नति की शपथ ली है तो मैं अपने इस संकल्प को अवश्य पूर्ण करके रहूंगा। बस आप सब मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते रहिए!आज से *सबका साथ सबका विकास* मेरा लक्ष्य है।

      (बाघेंद्र महाराज की जय हो!... बाघेंद्र महाराज की जय हो!! – उद्घोष से आकाश गुंजाते हुए सारे जीव जंतु तत्क्षण उठ खड़े होते हैं और बाघेंद्र के पीछे पीछे चल पड़ते हैं )

उद्घोषकमहावन के जीव जन्तु मनशेरा के मौन व अकर्मण्यता से रुष्ट व क्षुब्ध तो थे ही, अतएव बाघेंद्र के नेतृत्व में सिंहावर्त में एक नई क्रांति का सूत्रपात करने एकजुट होकर निकल पड़ते हैं। और मनशेरा की राजगुफा पर धावा बोल उसे सत्ताच्युत कर बाघेंद्र को राजा घोषित कर देते हैं।

 ✍️ डॉ अशोक रस्तोगी

अफजलगढ़ ,बिजनौर

मो. 8077945148/9411012039

गुरुवार, 4 अगस्त 2022

मुरादाबाद मंडल के अफजलगढ़ (जनपद बिजनौर) के साहित्यकार डॉ अशोक रस्तोगी की लघु नाटिका ..एक गुमनाम क्रांतिकारी । यह लघु नाटिका ’साहित्यिक मुरादाबाद’ द्वारा आयोजित लघु नाटिका / एकांकी प्रतियोगिता के वरिष्ठ वर्ग में प्रथम स्थान पर रही ।


पृष्ठभूमि
  :  अण्डमान द्वीप समूह के एक द्वीप माउंट हैरियट  के होपटाउन जैट्टी में एक सरकारी बोर्ड लगा है। जिस पर अंकित है---

    यह वही स्थान है जहां 8फरवरी 1872के सायं 7बजे वायसराय लॉर्ड मेयो , एक सजायाफ्ता कैदी शेर अली खान के हमले के शिकार हुए। इस हमले में उनकी मृत्यु हो गई। शेर अली खान को 11मार्च 1872को वाइपर आइलैंड में फांसी दे दी गई।

          पार्श्व स्वर  : एक गुमनाम क्रांतिकारी... जिसके बलिदान की कहीं कोई चर्चा नहीं हुई।न देश ने उसे याद रखा और न ही स्वाधीनता समर का इतिहास लिखने वालों के दृष्टिपथ में वह आ सका। वायसराय लॉर्ड मेयो से जुड़ी अनेकों निशानियां कई शहरों में अब भी मिल जाएंगी। अकेले प्रयागराज में ही उसके नाम पर मेयो रोड, मेयो हाल, मेयो होस्टल जैसे कई स्थान हैं। किंतु इस शहीद के स्मृति चिन्ह मात्र अण्डमान में ही मिलेंगे, वह भी खण्डहरों के रुप में…

पात्र परिचय 

     मनोहर लाल : 30 वर्ष  , क्रांतिकारी

     मांगेराम   : 35  ,,     ,  ,  ,

     हीरा सिंह :  25 ,,    ,  ,   ,

     शेर अली खान : 29,,     ,,    ,,     खैबर दर्रे के जमरूद गांव का निवासी... पंजाब माउंटेड पुलिस का पठान सिपाही                                                    अण्डमान जेल का कैदी न.15557

लार्ड मेयो : ब्रितानिया शासन का चतुर्थ वायसराय

 जनरल स्टुवर्ड :  सुपरिटेंडेंट अण्डमान

  इडेन  : ब्रितानिया अधिकारी

रणविजय सिंह: ठाकुर

कमलनयन देवी: रणविजय सिंह की पुत्र वधु

परिदृश्य क्रमांक 1  : 

अमृतसर में मुख्य मार्ग से कुछ हटकर एक बहुत लंबी व संकरी गली के अंतिम छोर पर बनी एक विशालाकार हवेली में एक छोटा सा कक्ष... जिसमें खाद्य सामग्री सहित कुछ पात्र अल्मारी में रखे हैं।दीवार पर सीसे के आवरण में कैद भारत माता का चित्र लगा है। उस पर ताजे पुष्पों की माला टंगी है। एक तख्त बिछा है। तख्त पर अधलेटा एक क्रांतिकारी मनोहर लाल 'दि पायोनियर' नामक समाचार पत्र पढ़ रहा है। तभी बंद कपाटों को खोलकर एक दूसरा क्रांतिकारी जिसकी आंखें क्रोधाधिकता में दहक रही हैं, हड़बड़ाया हुआ सा उस कक्ष में प्रविष्ट होता है…


मांगेराम-- जय भारत माता भाई!

मनोहर लाल-- जय भारत माता भाई! पर तुम इतना हड़बड़ा क्यों रहे हो? और तुम्हारी सांस भी फूल रही है? आखिर हुआ क्या है?

मांगेराम-- ये मुसलमान भी ना...कभी देशभक्त नहीं हो सकते। जिस धरती का अन्न जल ग्रहण कर ये सांसें लेते हैं उसी धरती माता को गाली देते इन्हें शर्म नहीं आती?

मनोहर लाल-- ये पहेलियां सी क्यों बुझा रहे हो? साफ - साफ क्यों नहीं बताते कि हुआ क्या है?

मांगेराम-- आज मैं और हीरा सिंह छद्मवेश में थाने की गतिविधियों की टोह ले रहे थे। क्योंकि अन्य दिनों की अपेक्षा आज थाने में सरगर्मियां कुछ अधिक थीं। शायद कोई अधिकारी थाने का निरीक्षण करने आ रहा था। थाने के आसपास सड़कों को स्वच्छ कर पानी का छिड़काव किया गया था, मुख्य द्वार को पुष्प श्रृंखलाओं से सज्जित किया गया था और भीतर अनेक सिपाही सावधान की मुद्रा में खड़े थे…

मनोहर लाल-- फिर क्या हुआ? शीघ्र बताओ न? उत्सुकता क्यों बढ़ा रहे हो?

मांगेराम-- जरा सांस तो ले लूं... थोड़ा धैर्य रखिए, सब बताता हूं।

मनोहर लाल-- चलो- चलो बहुत रख लिया धैर्य...अब जल्दी से पुनः शुरू हो जाइए!

मांगेराम-- हमारे देखते ही देखते वहां कई चमचमाती गाड़ियों का काफिला आकर रुका। जल्दी ही हमें पता चल गया कि हमारे देश में कार्यरत ब्रिटिश इक्कीस वायसराय में से चतुर्थ श्रेणी का वायसराय लॉर्ड मेयो थाने का निरीक्षण करने आया है। थाने का सारा अमला उसके चारों ओर नाचने लगा था।

मनोहर लाल-- तो इसमें नयी कौन सी बात हुई? ऐसा तो अक्सर होता ही है कि जब भी कहीं कोई अधिकारी दौरे पर पहुंचता है तो अधीनस्थ लोग उसकी जी हुजूरी में उसके चारों ओर नाचने लगते हैं

मांगेराम-- भाई थोड़ा धैर्य तो रखिए, ऐसी नयी बात बताऊंगा कि तुम चौंक पड़ोगे।

मनोहर लाल-- ऐसा क्या हुआ? पहेलियां ही बुझाते रहोगे या कुछ आगे भी बताओगे?

मांगेराम-- मैंने अक्सर देखा है कि ये स्साले ब्रिटिश अधिकारी न तो अंग्रेज सिपाहियों को कुछ कहते हैैं और न ही मुसलमान कर्मचारियों को डांट- फटकार लगाते हैं। लेकिन मैंने उस थाने में अजीब ही मंजर देखा... एक मुस्लिम दीवान व अंग्रेज दारोगा ने एक पठान सिपाही को इंगित करते हुए न जाने वायसराय के कानों में धीरे से क्या कहा कि वह उस पठान सिपाही पर बरस पड़ा...सबके सामने उस बेचारे को ब्लडी फूल कहकर बुरी तरह अपमानित किया और बुरी तरह फटकारा भी जबकि वह बेचारा भीगी बिल्ली की तरह सब कुछ चुपचाप सहता रहा।

मनोहर लाल-- ये लोग हैं भी इसी दुत्कार फटकार के लायक। इन लोगों के रक्त में देशप्रेम की धारा तो बिल्कुल भी नहीं बहती। अंग्रेजों के पिट्ठू बने रहते हैं और हिंदुओं को अपना दुश्मन समझते हैं। आज हम भारतीयों की इन अंग्रेजों और मुसलमानों के कारण ऐसी दुर्दशा हो रही है कि देख- देखकर भी रोना आता है और ये अंग्रेज तो जैसा उत्पीड़न भारतीयों का करते हैं कि मन करता है इन सबको गोलियों से भून दिया जाए न तो हमारा धन -माल सुरक्षित है और न ही घरों में बहू बेटियों का मान सम्मान सुरक्षित रह गया है। हम हिन्दू दिन रात खून के आंसू रोया करते हैं, परंतु इन मुसलमानों के चेहरों पर लेशमात्र भी शिकन नहीं दिखाई देती... जैसे यह देश उनका हो ही न, जैसे इस मातृभूमि के प्रति उनका कोई कर्तव्य हो ही न। तुमने देखा है कभी किसी मुसलमान को इस धरती माता को शीश झुकाते?... जिसकी सोंधी मिट्टी में पल्लवित पोषित होकर वे निरंतर फल-फूल रहे हैं, जिस देश की पावन वायु में वे श्वासें ले रहे हैं क्या उसके प्रति वे कोई उपकार प्रकट करते हैं? जिस धरती माता का अन्न -जल ग्रहण कर वे अपने जीवन का अस्तित्व बनाए हुए हैं क्या उस धरती माता के प्रति उनका कोई कर्तव्य नहीं? 

     (बोलते -बोलते उसका चेहरा तमतमाने लगता है, होंठ सूखने से लगते हैं। मांगेराम उसके सामने पानी का गिलास कर देता है)

मांगेराम-- लो भाई थोड़ा पानी पी लो ! तुम्हारा गला सूख रहा है।

मनोहर लाल (पानी पीकर गिलास एक ओर रखते हुए)-- हां तो आगे बताओ फिर क्या हुआ?

मांगेराम-- आगे के वृत्तांत के लिए मैं हीरा सिंह को वहीं छोड़ आया हूं। वह पता लगाकर ही आएगा कि वायसराय उस पठान पर क्यों आग बबूला हो रहा था? आखिर हमारा लक्ष्य भी तो तभी सिद्ध होगा जब हमें थाने के भीतर की गतिविधियों का पता चलेगा।

मनोहर लाल-- कौन सा लक्ष्य भाई?

    ( मांगेराम मुंह पर अंगुली रखकर धीरे बोलने का संकेत करता है)

मांगेराम-- धीरे बोलिए भाई! दीवारों के भी कान होते हैं। हीरा सिंह के आते ही लक्ष्य का भी पता चल जाएगा। संक्षेप में यह समझ लीजिए कि हमें अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को सुचारू रखने के लिए हथियारों की भी आवश्यकता होगी और धन-माल की भी।

मनोहर लाल-- समझ गया...सब कुछ समझ गया।

     (फिर दोनों उसी तख्त पर लेट जाते हैं और धीमें -धीमें न जाने क्या फुसफुसाते रहते हैं?)


परिदृश्य क्रमांक 2  :

      रात्रि का झुरमुटा घिरने लगा है। कक्ष में मिट्टी के तेल की डिबिया जला दी गई है। और एक शुद्ध घृत के दीपक से मनोहर लाल व मांगेराम दोनों भारत माता के चित्र के सामने खड़े होकर आरती गा रहे हैं…

               जय भारत माता...तेरी जय भारत माता !!

               कोटि-कोटि पुत्रों की जननी , सुख समृद्धि की दाता !

               जो  भी  तेरा अर्चन  करता , अमृत का वर्षण  पाता !

               जय भारत माता...तेरी जय भारत माता !!

     (तभी हीरा सिंह के साथ एक लम्बे -चौड़े व्यक्तित्व व लम्बी दाढ़ी वाला सलवार कमीज पहने पठान जैसा व्यक्ति वहां प्रवेश करता है)

हीरा सिंह-- जय भारत माता की भाइयों!

मांगेराम व मनोहर लाल-- जय भारत माता की!

     (दोनों अनजान पठान व्यक्ति को देखकर चौंक पड़ते हैं। पठान उनसे दृष्टि विनिमय होते ही अभिवादन की मुद्रा में दायां हाथ माथे से लगा लेता है)

हीरा सिंह (पठान का परिचय कराते हुए)-- भाई का नाम शेर अली खान है भाइयों! पंजाब माउंटेड पुलिस का सिपाही है। देशप्रेम की ज्वाला रगों में हिलोरे मार रही है। इसीलिए भारत माता को कोई अपशब्द कहे तो इससे सहन नहीं हो पाता।इसकी आंखों में क्रोधाग्नि धधकने लगती है और यह मरने मारने पर उतारू हो जाता है। इसकी इसी मानसिकता के कारण थाने के अन्य मुसलमान सिपाही इससे ईर्ष्या रखते हैं और अधिकारियों से इसकी चुगली करते रहते हैं।आज भी इस बेचारे को वायसराय ने जमकर लताड़ लगाई।

मनोहर लाल (विस्मय से उसे निहारते हुए)-- एक मुसलमान होकर भी... देशभक्ति?

शेर अली खान-- सारे ही मुसलमान एक जैसे नहीं होते भाईजान! कुछ फरेबी , मक्कार और दगाबाज होते हैं तो कुछ निहायत ही ईमानदार व भरोसेमंद भी होते हैं। सबको एक ही तराजू पर तोलना या फिर शक की निगाहों से देखना सरासर ग़लत है।

मनोहर लाल-- खैर छोड़ो इन बातों को ! यह बताओ कि आज थाने में क्या हुआ था?

शेर अली खान-- थाने के खास हाल में विक्टोरिया महारानी की एक बड़ी सी तस्वीर लगी है। सारे फसाद की जड़ वही है। अफसरों की ओर से फरमान जारी किया गया है कि हर किसी को उसके सामने सिर झुकाना जरूरी है। यूं समझिए कि थाने के कायदे-कानून का वह एक जरूरी हिस्सा है जबकि मैंने उसे मानने से इंकार करते हुए साफ-साफ कह दिया कि मेरा सिर या तो अल्लाह पाक के सामने झुकता है या फिर अपनी मादरे वतन के सामने। और सच बात तो यह है कि एक दिन मुझसे विक्टोरिया की शान के खिलाफ गुस्ताखी भी हो गई थी। मेरे अपने एक मुसलमान दोस्त दीवान दिलबाग के सामने मेरी जुबान से विक्टोरिया के लिए गाली निकल गई थी …

    ( एकाएक चुप होकर कुछ सोचने लगता है कि इन लोगों के सामने सब कुछ सच-सच बताना चाहिए अथवा नहीं?)

मनोहर लाल-- फिर क्या हुआ जल्दी से बताइए न? क्यों अधीरता बढ़ा रहे हो खान भाई?

शेर अली खान-- होना क्या था... दिलबाग ने मेरी चुगली कोतवाल अल्बर्ट से कर दी। कोतवाल ने पहले तो खुद ही मुझे डांट-फटकार लगाई... मुझे भी गालियां दीं और मेरी भारत माता को भी नहीं बख्शा... भारत माता को भी गाली दे दी। और जब आज वायसराय दौरे पर थाने में आया तो उस हरामजादे कोतवाल ने उसके भी कान भर दिये। उसने मुझसे सबके सामने बेइज्जत करते हुए पूछा--टुम ओनरेबिल विक्टोरिया क्वीन को अपना हैड क्यों नहीं झुकाटा? जबकि यह सब फुलिश के रुल्स एंड रैगुलेशन का एक नैसेसरी पार्ट है।

     मैने जवाब दिया-- मी लार्ड ! मैं भारत माता का सच्चा सपूत हूं।मेरा सिर या तो अल्लाह पाक के सामने झुकता है या फिर अपनी मादरे वतन के आगे। रही नौकरी की बात तो जितनी तनख्वाह पाता हूं उतना काम भी करता हूं। फिर मैं किसी और के सामने क्यों झुकूं?

     गुस्से में लार्ड मेयो बहुत जोर से चिल्लाया-- साइलैंट इंडियन बिच के बास्टर्ड...यू ब्लडी फूल...योर इंडियन मदर की तो… 

     मैं भी उसकी आंखों में आंखें डालकर गुर्राया-- सर आप मुझे चाहे जितनी गाली दे लीजिए ! पर मेरी भारत माता को कोई गंदा लफ्ज़ जुबान से मत निकालिए!

     उसकी भूरी आंखों से चिंगारियां झरने लगीं-- क्या कर लेगा टू इंडियन डर्टी बिच के डर्टी पप्पी? हम बार-बार कहेगा योर इंडियन मदर इज लाइक डर्टी बिच।

     मेरा गुस्सा काबू से बाहर होने लगा-- मी लार्ड! यदि आपने आगे कुछ कहा तो मुझसे आपकी शान में गुस्ताख़ी हो जाएगी। आपके मुंह से जुबान खींच लूंगा मैं।

     'ओ ब्लडी फूल टेरी इटनी हिम्मट?' वह बहुत जोर से गरजा। फिर वह कोतवाल की ओर घूम गया-- सस्पेंड करो इसे! वरडी उतार लो और जेल में बंद कर डो ! स्साले इंडियन , नमकहराम, हमारा ही नमक खाटा और हम पर ही गुर्राटा।

     (बोलते-बोलते आवेश में थरथराने लगता है शेर अली खान , और प्रतिक्रिया जानने के लिए मनोहर लाल और मांगेराम के चेहरों को निहारने लगता है कि वे उसकी बात को ध्यान से सुन भी रहे हैं अथवा नहीं?)

मनोहर लाल व मांगेराम (एक साथ)-- फिर …? फिर क्या हुआ ? कैसे बचाव किया तुमने अपना ?

शेर अली खान-- कोतवाल व  कुछ सिपाही मेरी ओर बढ़े तो मैंने अपनी बंदूक चारों ओर घुमाकर उन्हें पीछे हटने को मजबूर कर दिया और अपनी बंदूक उनके ऊपर फेंककर थाने की चहारदीवारी लांघकर फरार हो गया।

मनोहर लाल-- बहुत हिम्मती हो तुम तो! किसी ने पीछा नहीं किया तुम्हारा? पुलिस की वर्दी में तो बहुत आसानी से पहचानने में आ रहे होंगे तुम?

शेर अली खान-- बहुत दूर तक पीछा किया गया मेरा , परंतु मैं एक संकरी गली में घुसा तो यह हीरा सिंह फरिश्ता बनकर मेरे सामने चला आया। इसने अपने सिर पर लपेटी चादर मुझे उढ़ाई और फिर तंग गलियों की भूल-भुलैया में अंग्रेज़ सिपाहियों को चकमा देकर एक गुप्त स्थान पर पहुंचने में कामयाब रहे। वहां से कपड़े बदल कर आपके पास चले आए।

मनोहर लाल-- तो यहां क्यों चले आए तुम? पुलिस तुम्हारा पीछा करती हुई यहां तक पंहुच गई तो?

शेर अली खान-- मैं खुद यहां नहीं आया भाईजान बल्कि आपके साथी हीरा सिंह द्वारा यहां लाया गया हूं। हीरा सिंह ने मुझसे कहा है कि हमारे संगठन में शामिल होकर हमारे साथ काम करो तुम।हम भी तुम्हारा सहयोग करेंगे।

मनोहर लाल-- हमसे क्या सहयोग चाहते हो तुम?

शेर अली खान-- पनाह... अंग्रेज सिपाहियों से बचाव... मंजिल तक पहुंचने में मदद।

मनोहर लाल-- क्या है तुम्हारी मंजिल?

शेर अली खान-- इन्तकाम...बदला... जिन्होंने मेरी भारत माता को गाली दी है उनसे इन्तकाम…

मनोहर लाल-- तुम्हारा विश्वास कैसे किया जाए कि तुम हमारे साथ छल-प्रपंच नहीं करोगे?

शेर अली खान-- एक सच्चा पठान कभी झूठ नहीं बोलता। फिर भी आप जैसे भरोसा करना चाहें वैसे कर सकते हैं। कोई भी इम्तिहान जैसे चाहे वैसे ले सकते हैं

मनोहर लाल-- तो फिर खाओ कसम इस दीपक की लौ पर हथेली रखकर कि आज से अपना हर कदम भारत माता की रक्षा के लिए उठाओगे! भारत माता की लाज बचाने के लिए प्राण भी न्योछावर करने पड़ें तो पीछे नहीं हटोगे!

    ( शेर अली खान दीपक की लौ पर अपनी हथेली रखकर संकल्प दोहराता है। यहां तक कि उसकी हथेली जलने लगती है तब भी वह हाथ पीछे नहीं हटाता)

मनोहर लाल (चीखते हुए)-- बस बस हो गया विश्वास। हथेली हटा लो वरना जल जाएगी।

     (शेर अली खान हथेली हटा लेता है। हथेली का एक भाग जलकर काला पड़ने लगा है जिसमें भयंकर टीस व जलन मचने लगी है। शेर अली दांत भींचकर पीड़ा सहन करने की कोशिश कर रहा है।)

     कुछ देर सबके मध्य एक सन्नाटा सा पसर जाता है, जैसे वहां कोई उपस्थित ही न हो। फिर…

मनोहर लाल-- अच्छा शेर अली यह बताओ कि अपना प्रतिशोध पूर्ण करने के लिए तुम्हारे पास क्या योजना है?

शेर अली खान-- हर महीने की अंतिम तारीख को पूरे थाने की तनख्वाह के लिए लोहे के एक ताला लगे संदूक में जिला कोषागार से धन लाया जाता है । जो कि चार सिपाहियों व कोतवाल की सुरक्षा में आता है। उस मार्ग में घना जंगल भी पड़ता है।

मनोहर लाल-- क्या उनके हाथों में अच्छी तरह के हथियार होते हैं?

शेर अली खान-- बहुत अच्छी किस्म के भाई!... बहुत दूर तक मार करने वाली बंदूकें…

मनोहर लाल-- तो फिर खान भाई! मिलाओ हाथ से हाथ... कोतवाल तुम्हारा और हथियार हमारे... हथियारों की बहुत सख्त जरूरत है हमें।

मांगेराम और हीरा सिंह (खुशी से उछलते हुए)-- और वो लोहे का संदूक हमारा... धन-माल की भी तो बहुत जरूरत है हमें।

     (चारों परस्पर मिलकर मन्त्रणा करने लगते हैं… )

     फिर वे रातों रात उस स्थान का परित्याग कर देते हैं। क्योंकि पुलिस शेर अली को बहुत सरगर्मी से तलाश करती फिर रही है।


परिदृश्य क्रमांक 3  :

     घनघोर जंगल के मध्य एक ऊंची समतल पहाड़ी पर चार डंडों को खड़ा कर ऊपर फूस का छप्पर डालकर एक झोंपड़ी बनाई गई है। झोंपड़ी में चटाइयां बिछी हैं तथा ओढ़ने की चादरें रखीं हैं। जग में पानी तथा एक गिलास भी रखा है। चारों ओर चार साधु बैठे हैं। उनके मध्य धूनी रमी हुई है। दूर से देखने पर प्रतीत होता है कि वे कोई पूजा पाठ कर रहे हैं। जबकि वास्तव में वे पूजा पाठ न कर किसी विषय पर विचार मंथन कर रहे हैं।उनकी चौंकन्नी निगाहें बार-बार अपने चारों ओर की टोह लेने लगती हैं। विशेषतया उनकी निगाह उस सड़क पर जाकर स्थिर हो जाती है जो इस पहाड़ी से नीचे बलखाती नागिन की तरह लहराती हुई कभी इधर कभी उधर, कभी नीचे कभी ऊपर घूमती चली गई है।

     तभी उनमें से एक लम्बे-चौड़े डील डौल व लम्बी दाढ़ी वाला साधु पहाड़ी से नीचे उतरकर घने जंगल में कहीं गुम हो जाता है। अन्य तीनों साधु शंकित निगाहों से बड़ी अधीरता से उसकी प्रतीक्षा करने लगते हैं।

उन तीनों में से एक साधु-- कहीं यह हमें फंसाने का कोई षड्यंत्र तो नहीं कर रहा?

दूसरा साधु-- लगता तो मुझे भी ऐसा ही है। वरना यह हमें बताए बिना बार-बार कहां जाता है? और फिर लौटता भी बहुत -बहुत देर बाद है।पूछो तो कुछ भी बताता नहीं।

तीसरा साधु-- भई देखो! मुझे तो मुसलमानों पर बिल्कुल भी भरोसा है नहीं। ये लोग चाहे कितनी ही कसमें-धरमें खाएं,कितने ही वादे करें, कितना भी विश्वास दिलाएं ...पर मुझे तो इन पर लेशमात्र भी यकीन नहीं होता।

पहला साधु-- हां भाई! अब तो मेरा विश्वास भी डगमगाने लगा है। कई दिन हो गए नगर बस्ती से दूर इस घने जंगल में डेरा डाले हुए। कभी बेर खाकर पेट भरना पड़ता है तो कभी बिस्कुटों से ही काम चलाना पड़ता है। और कभी-कभी तो पानी पर ही संतोष करना पड़ रहा है। हरपल निगाहें टकटकी बांधे उस सड़क को निहारती रहती हैं जिस पर शिकार के गुजरने की आशंका है... पर अभी तो शिकार का कुछ पता ठिकाना है नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि कहीं यह अपने शिकार की ओट में हमारा ही शिकार करने की चाल चल रहा हो?

दूसरा-- इसकी तो ऐसी की तैसी। आने तो दो जरा इसे। इसकी लंबी दाढ़ी खींचकर पेट का सारा भेद न उगलवा लिया तो मेरा भी नाम मांगेराम नहीं।

तीसरा-- और यदि इसके विश्वासघात पर मैंने इसे इसी मिट्टी में दफन न कर दिया तो मेरा भी नाम हीरा सिंह नहीं। तुम दोनों पर तो मैं रत्तीभर भी आंच आने नहीं दे सकता। आखिर तुम्हारे पास उसे लेकर भी तो मैं ही आया था। वरना क्या तो वह तुम दोनों को पहचानता और क्या तुम दोनों उसे जान पाते?

     (तीनों हृदय पटल पर उमड़ -घुमड़ रहे आशंकाओं के बादलों के बीच इधर से उधर डोल ही रहे थे कि उस पहाड़ी से नीचे दूर कहीं लंबे-लंबे डग भरता हुआ वह लंबी दाढ़ी वाला पठान आता हुआ दिखाई देने लगा।)

मांगेराम-- आ तो रहा है... शायद इस बार कोई सूचना लाए ?

हीरा सिंह-- मैं तो साफ-साफ बता रहा हूं कि यदि इस बार उसने अपने शिकार की कोई खैर-खबर नहीं दी तो मैं वापस लौट जाऊंगा।जिसे मेरे साथ चलना हो चले, वरना मैं अकेला ही चला जाऊंगा। यहां इस बियाबान जंगल में भूखे प्यासे रहकर उस शिकार की प्रतीक्षा में वक्त बरबाद करना बेवकूफी है जिसका न तो कोई अता-पता है और न ही कोई ओर-छोर।

मनोहर लाल-- धैर्य भाइयों धैर्य... मातृभूमि की रक्षा का संकल्प लिया है तो धैर्य रखना ही होगा। ज्यादा अधीर बनोगे तो किसी निष्कर्ष पर नहीं पंहुच सकोगे। खुद तो डूबोगे ही मुझे भी साथ लेकर डूबोगे। हड़बड़ी में उठाया गया कोई भी कदम कभी सार्थक परिणाम नहीं दे सकता।

     (तभी हांफता हुआ पठान उनके समीप आ पंहुचता है)

शेर अली खान (हड़बड़ाया हुआ स्वर)-- भाइयों इंतजार के लम्हे खत्म हुए। शिकार नजर आ गया है।

मनोहर लाल-- कहां? कहां ? ... कैसे?... कहां नजर आ गया शिकार? हमें तो कहीं दिखाई नहीं दे रहा?

शेर अली खान-- भाईजान! यहां से दाईं ओर कुछ नीचे उतरने पर एक पतली सी पगडंडी के पार काफी नीचे वह नदिया दिखाई दे जाती है जिसके किनारे बनी सड़क से गुजरकर वह मोटर हमारी ओर धीरे-धीरे बढ़ती चली आ रही है जिसमें हमारा शिकार है।

मनोहर लाल-- फिर कैसे उसका शिकार करना है? जल्दी बताओ कहीं शिकार हाथ से निकल न जाए?

शेर अली खान-- भाईजान! बौखलाइए मत! अभी हमारे शिकार को हमारे जाल तक पहुंचने में एक घंटे से ज्यादा लगेगा। क्योंकि टेढ़े-मेढ़े, ऊंचे-नीचे पहाड़ी रास्तों पर चलने में काफी वक्त लगता है।

मनोहर लाल-- फिर भी यह योजना तो बना ही लीजिए कि हममें से किसे क्या- क्या करना है? ताकि समय पर कोई चूक न होने पाए।

शेर अली खान-- यहां से नीचे उतरकर उस सड़क का वह मोड़ दिखाई देने लगता है जहां से हमारे शिकार की मोटर गुजरेगी। बस उसी मोड़ पर हमारा जाल तैयार रहेगा...हम उस मोड़ पर बड़े-बड़े पत्थर रख देंगे जिससे वह मोटर रुकने को मजबूर हो जाए। हम सब इधर - उधर छिप जाएंगे। मोटर के रुकते ही हम सब फूर्ति से उन पर हमला कर देंगे। ध्यान रहे गोरा कोतवाल मेरा शिकार है... केवल मेरा शिकार। उसने सबके सामने मेरी भारत माता को गाली देकर मुझे भी बेइज्जत किया है और मेरी भारत मां को भी लांछित किया है, इसलिए उससे इन्तकाम मैं लूंगा। और चारों सिपाहियों व धन-माल के बक्से पर आपका हक...आप जैसे चाहें वैसे करें!

     (शेर अली एक बार फिर अपनी जेब में छिपाए सब्जी काटने वाले चाकू की धार पत्थर पर घिसकर पैनी करता है)

शेर अली खान-- देखो भाईजान! अब तो यह हथियार हमें धोखा नहीं देगा न ?

मनोहर लाल-- नहीं-नहीं ... बस वार अचूक होना चाहिए!...और हीरा सिंह तुम?

     (हीरा सिंह को चारों ओर खोजते हुए)

    अरे यह हीरा सिंह कहां गया?

मांगेराम-- नीचे सड़क की टोह लेने गया था, वह देखो!... आ रहा है।

हीरा सिंह-- (नीचे से ही)-- भाइयों जल्दी करो! समय ज्यादा नहीं है। शिकार आने वाला है।

     (सभी जल्दी- जल्दी नीचे उतर कर सड़क के मोड़ पर बड़े-बड़े पत्थर रखकर रास्ता अवरूद्ध कर देते हैं। और स्वयं वृक्षों व झाड़ियों की ओट में छिप जाते हैं।)

    ( कुछ देर बाद गोरे कोतवाल की मोटर गाड़ी वहां आती है। और रास्ता अवरूद्ध देख रुक जाती है।)

गोरा कोतवाल-- सोल्जर्स डेखो ! रास्टा बिग स्टोन्स से बन्ड है। जल्डी से हटाओ !...बी क्विक !

     (चारों सिपाही बंदूकें गाड़ी में रखकर पत्थर हटाने में जुट जाते हैं। कोतवाल गाड़ी में अकेला रह जाता है। तभी विद्युत्गति से शेर अली उछलकर उसके सामने आ खड़ा होता है और तेज धार वाला चाकू उसके वक्ष में घोंप देता है। मनोहर लाल व मांगेराम सिपाहियों की बंदूकें उठाकर उन्हीं पर आक्रमण कर देते हैं। दो सिपाही तत्काल धराशायी हो जाते हैं तथा दो खाई में कूदकर भाग जाते हैं।

     हीरा सिंह धन-माल का संदूक सिर पर रखकर भाग लेता है। जबकि मनोहर लाल व मांगेराम बंदूकें संभालकर घने जंगल में कहीं गुम हो जाते हैं। शेर अली अकेला रह जाता है।     

     कुछ देर बाद शेर अली सड़क-सड़क, जंगल-जंगल दौड़ता -भागता नीचे बह रही नदी तक आता है। तथा नदी पार कर ब्रितानिया पुलिस की पकड़ से बहुत दूर निकल जाता है।)


परिदृश्य क्रमांक 4    :

     ठाकुर रण विजय सिंह की विशालाकार हवेली... सूर्योदय की स्वर्णिम रश्मियां हवेली के भीतर प्रविष्ट होना ही चाहती हैं... हवेली में जागरण प्रारंभ हो चुका है... हवेली के बाहर हवेली से सटा इष्ट महादेव का बहुत सुंदर देवालय है। देवालय की स्वच्छता तथा अन्य व्यवस्थाओं का दायित्व ठाकुर साहब की पच्चीस वर्षीय विधवा पुत्रवधू कमलनयन देवी का है। निद्रा देवी के आगोश से बाहर निकलते ही सर्वप्रथम वह अपने इष्टदेव के दायित्व ही निपटाती है।     

     आज भी अन्य दिनों की भांति वह हवेली से निकलकर देवालय में प्रविष्ट हुई तो यह देखकर चौंक पड़ती है कि प्रांगण में एक गेरुआ किंतु मैले-कुचैले से वस्त्र पहने व्यक्ति सोया पड़ा है।

कमलनयन देवी-- आप कौन हैं भाई? और यहां कैसे?

व्यक्ति (अलसाई और उनींदी आंखें मसलते हुए)-- देवी! मैं एक राह भटका हुआ साधु हूं। चलते-चलते थक गया था। मंदिर दिखाई पड़ा तो दीवार फांदकर यहीं आ गया और यहीं लेट रहा। सोचा... यह तो भगवान का मंदिर है यहां तो हर किसी को पनाह मिलती है… यदि मैंने गलत सोचकर गलत किया तो चला जाता हूं, कहीं और आसरा ढूंढ़ लूंगा।

कमलनयन देवी-- नहीं-नहीं भाई! ऐसी बात नहीं है। यह भगवान का घर है यहां हर किसी को आश्रय मिलता है। आप भी जब तक जी चाहे तब तक रहिए! किंतु अपना नाम तो बता दीजिए?

व्यक्ति-- साधु का कोई नाम नहीं होता देवी ! फिर भी आप मुझे साधु सिंह कहकर बुला सकती हैं।

कमलनयन देवी-- कहां के रहने वाले हैं आप?

साधु सिंह-- साधु का कोई एक स्थान नहीं होता , कल कहीं और था ,आज यहां हूं, कल का क्या पता कहां जाना पड़े? वैसे यदि आप अनुमति दें तो इस मंदिर की व्यवस्था का दायित्व मैं स्वयं संभाल सकता हूं। आपको भी कुछ राहत मिल जाएगी। इतनी सुबह-सुबह इतना सारा कार्य करना पड़ता है आपको।... और मुझे भी कुछ समय के लिए सुरक्षित ठिकाना मिल जाएगा।

कमलनयन देवी (निगाह झुकाए पैर के अंगूठे से फर्श कुरेदते हुए)-- यह अनुमति तो ठाकुर साहब अर्थात मेरे ससुर जी ही दे सकते हैं। वैसे मैं उन्हें बता दूंगी आपकी नेकनीयत के बारे में।

     (कहकर हवेली के भीतर चली जाती है। और कुछ देर बाद लौटती है तो ठाकुर साहब के साथ)

ठाकुर साहब (बिज्जू जैसी चमकीली आंखों से साधु को घूरते हुए)-- साधु! ठाकुर रणविजय सिंह नाम है हमारा। इलाके के बड़े-बड़े लोग हमारे नाम से कांपते हैं। अंग्रेज अधिकारी तक हमारी हवेली में बिना हमारी परमिशन के प्रवेश की हिम्मत नहीं कर सकते। इसलिए ध्यान रहे हमारे साथ कोई छल न हो, कोई प्रपंच न हो, कोई धोखा न हो। सब कुछ सच-सच बताना। कोई गड़बड़ी हुई तो हम सफाई का अवसर नहीं देंगे, सीधे तुम्हारी खाल उधेड़कर भुस भर देंगे।

     (साधु सिंह कृतज्ञ भाव से सिर झुकाए हाथ जोड़ लेता है)

साधु सिंह-- मुझ पर भरोसा रखें ठाकुर साहब।

ठाकुर साहब-- ठीक है जब तक जी चाहे मंदिर की सेवा करो! और जब जाना चाहो तो हमें बता देना, हम जाने की व्यवस्था कर देंगे। और तब तक का जो भी वेतन बनता होगा एक साथ दे देंगे।

     साधु सिंह बड़ी श्रद्धा, बड़ी लगन, बड़ी निष्ठा से देव स्थान की सेवा करने लगता है। उसके माथे पर चंदन का मोटा सा लेप पुता रहता है। और नासिका के अग्रभाग से मस्तक के ऊपर तक रक्तिम रोली का लंबा सा तिलक खिंचा रहता है। एक भगवा चादर से वह अपनी देह तथा चेहरे को ढके रहता है। वह बहुत कम किंतु बहुत मधुर बोलता है। अधिकांश प्रत्युत्तर तो वह हाथ के संकेतों से ही निपटाता है। दूर-दूरस्थ क्षेत्रों से लोग पूजा पाठ करने आते हैं तो वह सभी को प्रसाद स्वरूप कुछ न कुछ भेंटकर ही वापस भेजता है।

     खाली समय में वह नेत्र मूंदे साधना की मुद्रा में सिद्धासन में बैठा रहता है। अंधभक्त लोग उसे अपनी हस्तरेखाएं दिखाकर अपना भविष्य पूछ्ते हैं तो वह पहले तो हस्तरेखाएं परखता है फिर मस्तक को पढ़ने का अभिनय करता है और आंखें बन्द कर कुछ भी बता देता है।

     अब इसे ईश्वरीय संयोग माना जाए या कुछ और कि उसकी अधिकांश भविष्य वाणियां सत्य सी ही प्रतीत होती हैं।

     अतएव उसकी सिद्धि व मधुराचरण की चर्चा दूर -दूर तक फैलने लगी है। पता नहीं कहां -कहां से लोग उसकी शरण में आते रहते हैं। और मोटी दक्षिणा से उसकी झोली भरते रहते हैं।

     कुछ दिन बाद शिवरात्रि का पर्व आता है तो देवालय में जलार्चन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है। साधु सिंह बड़ी श्रद्धा व उल्लास से उन्हें जलाभिषेक कराने में व्यस्त है कि उसी भीड़ में एक श्रद्धालु का फुसफुसाहट भरा स्वर सुनकर चौंक पड़ता है-- साधु सिंह तुम्हारा वास्तविक नाम क्या है?

     साधु सिंह कनखियों से उसे पहचानते ही बौखला जाता है। उसके माथे पर स्वेदबिंदु झिलमिलाने लगते हैं। किंतु शीघ्र ही संभलकर वह अपना चेहरा चादर से ढक लेता है।

साधु सिंह (अत्यधिक धीमें किंतु तिलमिलाहट भरे स्वर में)-- आपको नाम से क्या लेना-देना? जिस कार्य के लिए आए हैं शीघ्र कीजिए और जाइए! और भी बहुत सारे लोग आपके पीछे खड़े हैं।

     (और वह फिर से जलाभिषेक का संकल्प कराने में व्यस्त हो जाता है)

पार्श्व स्वर   :

     अगले दिन की सुबह भानु महाराज की सुनहरी रश्मियां उस इष्ट महादेव के देवालय में उतरीं तो अपने साथ एक भूकम्प भी लेती आईं... तमाम लोगों के हाथों में पायनियर समाचार पत्र की अनेक प्रतियां लहरा रही थीं। और उनमें एक प्रमुख समाचार सभी को झकझोर रहा था--

     ठाकुर रणविजय सिंह के मंदिर में कई माह से पुजारी के रूप में नियुक्त साधु सिंह निकला कोतवाल अल्बर्ट सहित दो सिपाहियों का हत्यारा पंजाब माउंटेड पुलिस का पठान सिपाही 'शेर अली खान' … मंदिर से रात्रि में किया गया गिरफ्तार... उसके ही थाने के एक मुस्लिम दीवान दिलबाग ने दिया सुराग…


परिदृश्य क्रमांक 5   :

     मई  1871… चतुर्थ वायसराय लॉर्ड मेयो का कलकत्ता स्थित कार्यालय  :

लार्ड मेयो (एक विशेष अधिकारी जनरल स्टुवर्ड के कन्धे पर हाथ रखकर)-- माई डीयर आफिसर स्टुवर्ड! यू आर माई वैरी बिलिवेबिल एंड इंटेलिजेंट आफिसर।आई एम वैरी हैप्पी बाइ योर वर्क कैपेसिटी।सो आई वांट टू गिव ए वैरी इंपोर्टेंट चार्ज ओफ अंडमान जेल।

जनरल स्टुवर्ड (सैल्यूट की मुद्रा में)-- एज योर आर्डर सर!

लार्ड मेयो-- नाउ यू आर दि सुपरिटेंडेंट ओफ अंडमान!

जनरल स्टुवर्ड-- ओ के सर ! माई प्लीजर सर!

लार्ड मेयो-- मैं चाहटा हूं कि अंडमान में खटरनाक राजनीटिक अपराढियों को कैड करने के उड्डेश्य से पारंपरिक जेल जैसी व्यवस्थाएं बनाई जाएं। टाकि इन इंडियन कैडियों को भयानक से भयानक पनिशमेंट डिया जा सके... ऐसा भयानक पनिशमेंट कि ये जिंडा वापस न लौट सकें... ऐसा पनिशमेंट कि वे ब्रिटिश अढिकारियों का विरोढ करने का विचार भी मन में न ला सकें... ऐसा कठोर पनिशमेंट कि ये इंडियन क्रांटिकारी हमारे विरोढ में सिर उठाना भूल जाएं। विरोढ में उठते ही इनके सिर कुचल दिए जाने चाहिए।

जनरल स्टुवर्ड-- ओ के सर! ऐसा ही होगा। मैं आपकी उम्मीडों पर खरा उटरने का प्रयास करुंगा।

लार्ड मेयो-- एक बाट और जनरल स्टुवर्ड! वहां एक खटरनाक कैडी शेर अली खान भी है। वह हमारे एक आफिसर कोटवाल अल्बर्ट तथा डो कांस्टेबल्स का काटिल है। इसी जुर्म में वह उमर कैड की सजा काट रहा है। उसे बिल्कुल छूट न डी जाए! उस पर बहुट ज्याडा सख्टी बरटी जाए! ओ के?

जनरल स्टुवर्ड-- ओ के सर !...सर! ओनली वन रिक्वेस्ट?

लार्ड मेयो-- वाट जनरल? जल्डी बोलो ?

जनरल स्टुवर्ड-- सर एक बार आप भी वहां आकर अंडमान की भयावह कंडीशंस का इंस्पेक्शन जरुर करें!

लार्ड मेयो-- ओ के जनरल! बहुट जल्डी मैं भी वहां का इंस्पेक्शन करुंगा।

जनरल स्टुवर्ड-- थैंक यू सर!

     सैल्यूट कर अण्डमान के लिए प्रस्थान कर देता है…


परिदृश्य क्रमांक 6   :

     अण्डमान द्वीप समूह में शेर अली खान ने स्वयं को जेल अधिकारियों की दृष्टि में एक शान्त,सरल व व्यवहार कुशल कैदी के रूप में स्थापित कर लिया है। अपने मृदुल आचरण व विनोदी स्वभाव से वह सबको हंसा-हंसा कर लोट-पोट करता रहता है। खुश होकर जेल प्रशासन ने उसे नाई अर्थात बाल काटने व दाढ़ी बनाने का कार्य सौंप दिया है। जिससे वह अण्डमान द्वीप समूह के किसी भी द्वीप पर सरलता से आ जा सकता है।

24जनवरी 1872   :

     वायसराय लॉर्ड मेयो के दो स्टीमर 'ग्लासगो' व 'ढाका' कोलकाता बंदरगाह से रंगून प्रस्थान करते हैं। वापसी में 8फरवरी 1872 को सुबह 9.30बजे जैसे ही दोनों स्टीमर पोर्ट ब्लेयर बंदरगाह पर लगते हैं तो शाही बिगुल बज उठता है। और तोपों की सलामी दी जाती है।

     यह आवाज समीपवर्ती टापू 'होपटाउन' पर शेर अली खान के कानों में भी पड़ती है। अनायास उसके मुंह से निकल पड़ता है-- आ गया मेरा शिकार! मेरी भारत माता को गाली देने वाले कुत्ते तुझसे इंतकाम लेने का वक्त आ गया है।

     वह सब्जी काटने वाला चाकू जेब से निकालता है और पत्थर पर घिसकर उसकी धार तेज करने लगता है।

     उधर हथियारबंद पुलिस दस्तों से घिरा लार्ड मेयो पैदल ही रौश, वाइपर और चैथम द्वीपों का दौरा करता है।

     और फिर सायं काल 5 बजे--

लार्ड मेयो-- जनरल स्टुवर्ड! अभी टो केवल फाइव पी एम हुए हैं। कम से कम एक घंटा डिन बाकी है। क्यों न होपटाउन ड्वीप स्थित माउंट हैरियट पहाड़ी पर चढ़कर सन सैट (सूर्यास्त) का आनंद उठाया जाए।

जनरल स्टुवर्ड-- किंतु सर! सुरक्षा कारणों से मैं आपको इस समय वहां ले जाना उचित नहीं समझटा।

लार्ड मेयो-- कोई बाट नहीं, मैं नहीं समझटा कि सुरक्षा टुकड़ियों के होटे हुए मुझे वहां कोई खटरा होगा।

जनरल स्टुवर्ड-- ओ के सर! एज योर विश सर! आपके लिए खच्चर की व्यवस्था की जा रही है।

और फिर सुरक्षा टुकड़ियों से घिरा लार्ड मेयो खच्चर की पीठ पर बैठकर माउंट हैरियट पहाड़ी की चोटी पर पहुंच जाता है। और सूर्यास्त के नयनाभिराम दृश्य का बड़ी तन्मयता से अवलोकन करने लगता है। आनंदातिरेक में बार बार उसके मुंह से अनायास निकल पड़ता है-- ओह माई गॉड!किटना सुंडर,किटना मनमोहक, किटना अड्भुट नजारा नेचर का!

     पहाड़ी की चोटी से नीचे उतरने तक 7बज चुके हैं। और अंधकार का स्याह झुरमुटा भी पहाड़ियों को अपनी चादर में लपेट चुका है। जनरल स्टुवर्ड सुरक्षा टुकड़ियों के साथ तीव्र गति से आगे बढ़कर समुद्र में खड़ी लांच की व्यवस्था देखने लगता है।उसकी कोशिश लार्ड मेयो को शीघ्रतातिशीघ्र वहां से सुरक्षित निकाल ले जाने की है। इसी कसमकस में लार्ड मेयो पीछे रह जाता है।

     तभी अंधकार का आश्रय लेकर कोई साया विद्युत्स्फूर्ति से उसके समीप पहुंचता है और तीव्र गति से चाकू का अचूक वार उसके वक्ष पर करके गायब हो जाता है।

     लार्ड मेयो नीचे गिर जाता है और जोर से चिल्लाता है--

लार्ड मेयो-- डेखो! डेखो! किसी ने मुझ पर नाइफ का वार किया है। लेकिन कोई चिन्टा की बाट नहीं, ज्याडा चोट नहीं है। सिंपल ड्रेसिंग से ठीक हो जाएगी।

जनरल स्टुवर्ड (भागकर आते हुए)-- हम आपको कुछ नहीं होने डेंगे सर! हमारे डाक्टर अभी आपको ट्रीटमेंट डेंगे।

लार्ड मेयो-- मेरा सिर घूम रहा है और आंखों के आगे अन्ढेरा छाटा जा रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे मेरी आंखें कोई जबरडस्टी बन्ड किए दे रहा हो।

      लार्ड मेयो को तत्काल स्टीम लांच पर लाकर लिटा दिया जाता है। डाक्टर्स निरीक्षण परीक्षण करते हैं। और मृत घोषित कर देते हैं।

     उधर सुरक्षा अधिकारी स्फूर्ति से हत्यारे को पकड़ लेते हैं। और पहचानते ही चौंक पड़ते हैं... क्योंकि वह सीधा सादा और सच्चा दिखाई देने वाला पठान शेर अली खान है।

9फरवरी 1872   :

     लार्ड मेयो के शव को उसके स्टीमर 'ग्लासगो' पर लाया जाता है। वहीं रस्सियों से बंधे शेर अली खान को भी लाया जाता है। और वहीं ब्रिटिश मजिस्ट्रेट इडेन उस पर मुकदमे की कार्यवाही करता है--

ब्रिटिश मजिस्ट्रेट इडेन-- शेर अली खान! टुमने हमारे वायसराय की हट्या क्यों की?

शेर अली खान-- क्योंकि इसने मेरी भारत माता को गाली दी थी।

इडेन-- कब डी ठी गाली?

शेर अली-- तीन साल पहले जब मैं अमृतसर के थाने में सिपाही था, यह वहां मुआयने के लिए आया था। तब कोतवाल ने भी गाली दी थी मुझे। उसे तो मैंने तभी कुछ दिन बाद ही निपटा दिया था। तभी इसने भी मेरी भारत माता को बेइज्जत किया था। मैंने तभी कसम खाई थी कि मौका मिलते ही इसे भी मार डालूंगा।

इडेन-- क्या टुम्हें ओनरेबिल वायसराय का मर्डर करटे डर नहीं लगा?

शेर अली-- अल्लाह का नेक बन्दा नेक काम करते हुए कभी किसी से नहीं डरता।

इडेन-- इस अपराढ का पनिशमेंट जानटे हो?

शेर अली-- जानता हूं... फांसी से अधिक कुछ नहीं।

इडेन-- कोई अन्टिम इच्छा?

शेर अली-- मैंने भारतीयों के दुश्मन को मार डाला...तो मुझे इसी दुश्मन लार्ड मेयो के हत्यारे के रूप में अखबारों में जगह मिले।

इडेन-- मैं इस खटरनाक अपराढी शेर अली खान को फांसी की सजा मुकर्रर करटा हूं।

जनरल स्टुवर्ड-- और मैं इस सजा का अनुमोडन करटा हूं कि जल्डी से जल्डी इस खटरनाक मुजरिम शेर अली खान को फांसी पर लटका दिया जाए!

    और फिर 11मार्च 1872 को शेर अली खान को वाइपर द्वीप पर फांसी के फंदे पर लटका दिया गया।

पार्श्व स्वर--

     अण्डमान द्वीप समूह के 'वाइपर द्वीप' पर वह जर्जर भवन आज भी खण्डहर के रूप में स्थित है जहां इस गुमनाम क्रांतिकारी शेर अली खान को चतुर्थ वायसराय लॉर्ड मेयो की हत्या के आरोप में उसी दिन हत्या का मुकदमा चलाकर सायंकाल तक फांसी का दंड निर्धारित कर दिया गया। और फिर हत्या अभियोग के एक माह उपरांत ही उसे फांसी पर लटका दिया गया।

     लेकिन उस भवन में जहां उसे फांसी पर लटकाया गया था, भीतर तक पहुंचना अत्यधिक दुष्कर है। क्योंकि गोबर, कीचड़, जालों और चमगादड़ों ने उसमें अपना बसेरा कर लिया ।

🙏 डा.अशोक रस्तोगी

अफजलगढ़ बिजनौर

उत्तर प्रदेश, भारत