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रविवार, 11 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अरविंद शर्मा आनन्द की गजल ----मोड़ पर थी जो उजड़ी हुई झोपड़ी। उसपे ठंडी हवा ने भी ढाया कहर।।

 

कुछ दिये टिमटिमाते रहे रातभर।

जुगनुओं की तरह से वो आए नज़र।।


रौशनी खो गयी है सियह रात में।

और वीरान है हर नगर, हर डगर।।


मोड़ पर थी जो उजड़ी हुई झोपड़ी।

उसपे ठंडी हवा ने भी ढाया कहर।।


चांदनी भी हुई अब बड़ी बेवफ़ा।

चाँद निकला मगर वो न आयी नज़र।।


जो मुहाफ़िज़ रहे हर क़दम पर मिरे।

मैं हूँ मुश्किल में और वो हैं सब बेख़बर।।


कुछ दिनों को ज़रा क्या मैं ग़ुम सा रहा।

लोग समझे कि 'आनंद' है बेख़बर।।


✍️अरविंद शर्मा "आनंद"

मुरादाबाद, उ०प्र०

 मोबाइल फोन नम्बर- 8218136908

बुधवार, 22 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अरविन्द कुमार शर्मा आनन्द की लघुकथा- साहित्य के चौर्य


आज सुबह जब आँख खुली, तो मौसम का मिज़ाज़ देख कर दिल खुश हो गया। बड़ा सुहाना मौसम था, साथ में ताज़गी से सराबोर कर देने वाली ठंडी हवा।
एक अनदेखी सी खुशी महसूस हो रही थी। अब एक शायर होते हुए ऐसे खुशनुमा मौसम की खूबसूरती को पन्नों पर न लिखूँ, ऐसा हो ही नही सकता।
मैंने कुछ लिखने को जैसे ही कलम हाथ में ली तो ख्याल आया कि पहले क्यों न अखबार के मेरे पसन्दीदा पृष्ठ 'साहित्यिक समाचार' को चाय की चुस्कियाँ लेते हुए पढ़ लिया जाये। उसके बाद ही कुछ लिखता हूँ।
जैसे ही उस पृष्ठ पर मेरी नज़र पड़ी तो!
"अरे यह क्या?" मैं उस ग़ज़ल को देखकर अवाक रह गया।
इतनी मशहूर ग़ज़ल के लेखक का नाम!!!???
"आखिर यह कैसे?" मेरे अंदर सवालों का एक समुद्र हिलोरें मारने लगा था,  "क्या आज तक मैंने जो ज्ञान प्राप्त किया था, या मुझे जो जानकारी थी, वह गलत थी? या जो मैं देख रहा हूँ वो गलत है?", मैंने खोजबीन शुरू की तो जिस नतीजे पर पहुँचा वह चौंकाने वाला था, "आखिर कोई व्यक्ति, जो कि अपने आपको साहित्य की महान पृष्ठभूमि से जुड़ा हुआ कहता है। वह इतनी नीच हरकत कैसे कर सकता है? आखिर इतनी ओछी मानसिकता कैसे रख सकता है?  जिनके दम से साहित्य जगत को एक नयी बुलंदी और पहचान मिली हो वह उन जैसी महान हस्ती का अपमान करने की कैसे सोच सकता है?"
मुझे यह सब देखकर बड़ा दुख हुआ। मैंने उस अखबार और उसमें छपी ग़ज़ल के बनावटी शायर की निंदा की।
मुझे अंदर से एक बात की संतुष्टि थी कि "मैं अपनी शायरी के हर शब्द को स्वयं लिखता हूँ। कुछ लोगों की तरह चोरी-डकैती या दूसरे शायरों की ग़ज़ल अपने नाम से पेश नही करता। आज एक नई सीख मिली थी कि मुझे अपनी ग़ज़लों को बचा कर रखना होगा। अन्यथा यहाँ चोरों की कमी नही है।"

अरविंद कुमार शर्मा "आनंद"
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)
8979216691

गुरुवार, 7 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अरविंद कुमार शर्मा आनन्द की लघुकथा ----- महामारी एक साजिश


वक्त जैसे थम सा गया था। पूरी दुनिया में हाहाकार मचा हुआ था। एक महामारी, एक साज़िश…! हाँ दोस्तों साज़िश!  इसलिए क्योंकि बहुत से सबूत उसी ओर संकेत करते हैं।
जिस जगह से इसका जन्म हुआ, या कहूँ जहाँ से इस महामारी की शुरुआत हुई थी। हर परिवार, हर व्यक्ति, हर मोहल्ला, हर गली और वो सभी सड़कें जो कभी लोगों से खचाखच भरी रहती थीं,  जिनमें लोगों का शोरगुल होता था। वह सब आज सन्नाटों की गोद में कहीं खो गया था। वो सन्नाटा जाने क्या कहता था, ये कोई समझ नहीं पा रहा था। उसको भी बस यही समझ आ रहा था कि इन सुनसान रास्तों से एक मौत की अदृश्य शक्ति अपना तांडव करते हुए गुजर रही है, और जो भी उसके रास्ते में आयेगा, वो सीधे परलोक जाने की सीढ़ियों पर अपना पहला कदम रखेगा।
 ऐसी ही भयावह संकट की घड़ी में ईश्वर ने उसकी भी परीक्षा लेने की ठान ली। या यूँ कहूँ आज से उसकी भी उस मौत के अदृश्य राक्षस से जीवन और मृत्यु की एक जंग शुरू हो चुकी थी।
आज 19 दिन बाद उसको घर से निकलना पड़ा क्योंकि उसके पिता एक गंभीर बीमारी से ग्रसित हो गए थे। कहीं  कोई व्यवस्था नहीं, कोई साधन नहीं, वह बहुत ही परेशान, निराश और क्रोधित हो रहा था। आखिर देश में, ये सब क्या हो रहा है?
जैसे-तैसे वह और उसका छोटा भाई दोनों अपने पिता को अस्पताल लेकर पहुँचे, जहाँ से डॉक्टरों ने उन्हें दूसरे अस्पताल में भर्ती करने को कहा।
 इतना सुनते ही वह अब ज्यादा डर चुका था, क्योंकि इस वक्त देश के जैसे हालात थे, उसमें एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल और ऊपर से उस भयंकर महामारी का प्रकोप! सोचकर ही मन दहल जाता था। इस भयंकर परिस्थिति में। उसको सोच समझकर बहुत ही महत्वपूर्ण निर्णय लेना था और उसने निर्णय ले लिया, क्योंकि उसके पास कोई और रास्ता भी न था।
अगर वह दूसरे अस्पताल नहीं जाता है तो भी उसके पिता की जान को खतरा है और जाता है तब भी खतरा है।
आखिरकार वह अपने मन को मजबूत करके अपने पिता के लिए उस क्रूर, अदृश्य, राक्षस से जंग लड़ने को तैयार हो गया।
दिन बीत रहे थे परन्तु एक चिंता की लकीर उसके माथे से हटने का नाम नहीं ले रही थी। एक तरफ उसके पिता अपनी बीमारी से जंग लड़ रहे थे तो इधर वह इस महामारी से बचने को। आज 20वां दिन हो गया। वह अपने पिता को बीमारी से ठीक कराकर घर ले आया है और वह भी उस महामारी से जंग जीत कर अपने घर आ गया।
उसका विश्वास जीत गया, उसकी सावधानियां उसकी रक्षा-कवच बनीं।

  ✍️ अरविन्द कुमार शर्मा 'आनंद'*
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन 8979216691