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मंगलवार, 27 जुलाई 2021

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल) के साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की कहानी ------- "पछतावा"


"देखो जी, मेरी बात कान खोलकर सुन लो. बाबूजी को हम अपने साथ ही रखेंगे. आखिर इतने वर्षो से सचिन ही तो बाबूजी की पेंशन ले रहा है. बाबूजी की पेंशन पर आखिर हमारा भी तो हक़ है।" राजेश की पत्नी आशु ने पति के कान भरते हुए कहा। 

"ठीक है बाबा,मै बाबूजी से कहकर देखता हूं .वह माताजी से अलग रहना भी तो नही चाहते और तुम कहती हो कि माताजी को सचिन के पास ही रहने दो ।" राजेश ने आशु की बात का जवाब देते हुए कहा .

अगले दिन राजेश ने माताजी और बाबूजी से कहा कि वह बाबूजी को अब अपने साथ लेकर जाना चाहता है. कुछ वर्ष वह उसी के पास रहेंगे. वह उनका शहर में अच्छे से इलाज भी करा देगा. थोड़ा न नुकर के बाद आखिर बाबूजी राजेश के साथ जाने को तैयार हो ही गये। 

       राजेश उन्हें अपने साथ शहर ले आया हर माह वो ए टी एम के जरिये बाबूजी की पेंशन बैंक से ले आता था. बाबूजी का चंद माह में ही वहाँ से दिल उचाट होने लगा उन्हें फिर से अपना कस्बा याद आने लगा. वहाँ सब एक दूसरे से घुले मिले थे. यहाँ सब अनजान थे. कोई नमस्ते करना तो दूर नमस्ते का जवाब देना भी गवारा नही करता था। बाबूजी यहाँ पहले से और अधिक बीमार रहने लगे.  और एक रात हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई. घर मे कोहराम मच गया. आशु बाबूजी से ज्यादा यह सोचकर रो रही थी कि हर माह बाबूजी की पेंशन के अब चालीस हजार कहा से आएंगे. बाबूजी की मौत को सुनकर माताजी और सचिन भी परिवार सहित राजेश के यहां आये और अंतिम संस्कार के बाद वापस अपने कस्बे लौट गये               बाबूजी की पेंशन अब माताजी को मिलने लगी थी उधर माताजी के मायके में  उनका छोटा भाई अमेरिका में जा बसा और जाते जाते उसने गांव का घर व ज़मीन अपनी बहन यानी माताजी के नाम कर दी। यह सुनकर आशु व राजेश पछता रहे थे कि काश वह बाबूजी के साथ माताजी को भी अपने साथ ले आते।

✍️ कमाल ज़ैदी "वफ़ा", सिरसी (संभल), मोबाइल फोन नम्बर 9456031926

मंगलवार, 20 जुलाई 2021

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की कहानी ---हॉट फोटो


"रीनू ,देखो अब तो हमारी मंगनी हो गई है अब जल्द ही हम शादी के बंधन में बंध जाएंगे मुझे उन पलों का बेसब्री से इंतज़ार है जब तुम दुल्हन बनकर मेरे घर आओगी" अमन मोबाइल पर रीनू से बातें करते - करते आज ज्यादा ही रोमांटिक हुए जा रहा था रीनू को भी अमन से बातें करते हुए मज़ा आ रहा था आखिर साल भर से एक दूसरे के प्यार में डूबे रीनू और अमन के प्यार को मंजिल जो मिल गई थी दोनो कालेज टाइम से एक दूसरे को जानते थे लेकिन दोनों के दिल मे प्यार के अंकुर अमन के कज़िन की शादी में मिलने के बाद फूटे थे और अब दोनों के घर वालो की सहमति से मंगनी भी हो गई थी दोनो बहुत खुश  थे दोनो मोबाइल पर काफी- काफी देर तक बातें किया करते अमन बातों में काफी रोमांटिक हो जाता उसने कई बार रीनू से आग्रह किया कि वह उससे अकेले में मिले लेकिन रीनू उसे बड़े प्यार से समझाकर बहाना बना देती आखिर उसकी बड़ी बहन ने उसे समझा दिया था कि शादी से पहले अकेले में कभी किसी लड़के से नही मिलना चाहिये लेकिन मंगनी के बाद अमन की ज़िद बढ़ गई थी कि वह उससे अकेले में मिलना चाहता है उससे उसके बिना नही रहा जाता  लेकिन हर बार की तरह रीनू  बहाना बना देती लेकिन आज अमन ज्यादा ही रोमांटिक हुए जा रहा था  उसने रीनू से उसके हॉट फोटो की फरमाईश कर दी ' रीनू, तुम मुझसे मिल नही सकती तो कम से कम अपने ऐसे फोटो ही भेज दो जिसके सहारे मै समय बिता सकूँ।' रीनू ने उसे अपने नवीन फोटो भेज दिये लेकिन अमन उससे सन्तुष्ट नही हुआ उसने रीनू से हॉट फोटो की मांग की रीनू ने काफी न नुकर की लेकिन अंत मे रीनू को अमन की ज़िद के आगे झुकना पड़ा और उसने यह कहते हुए उसे अपने हॉट फोटो भेज दिये कि 'वह उन्हें देखकर डिलीट कर दे।'अमन ने उसे भरोसा दिलाया कि वह फोटो देखकर डिलीट कर देगा अमन अपने कमरे में रीनू के हॉट फोटो देखकर और रोमांटिक हो रहा था उससे रहा नही गया तो दिल बहलाने को वह कॉफी शॉप की ओर चल दिया कॉफी पीते हुए भी वह रीनू के ख्यालो में डूबा रहा कॉफी पीकर वह वापस घर आ गया इजी चेयर पर बैठकर उसने रीनू को फोन करने के लिये जेब मे हाथ डाला तो जैसे उसे करंट लग गया उसकी जेब से मोबाइल ग़ायब था उसे याद आया कि कॉफी पीते हुए उसने मोबाइल अपने पास टेबल पर रखा था और रीनू की याद में ऐसा खोया की मोबाइल उठाये बिना घर लौट आया अमन उलटे पावँ कॉफी शॉप की ओर चल दिया और हड़बड़ाता उस टेबिल पर पहुँचा जहाँ वह बैठकर कॉफी पी रहा था टेबिल खाली थी उसने कॉफी शॉप के मालिक से पूछा कि उसका मोबाइल यहाँ टेबिल पर छूट गया था शॉप मालिक ने अनभिज्ञता जता दी अमन ने शॉप पर काम करने वाले लड़कों से भी पूछा लेकिन सबने मना कर दिया अमन निराश घर लौट आया उसके चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थी वह सोच रहा था कि उससे कितनी बड़ी गलती हो गई उसने रीनू की हॉट फोटो देखकर डिलीट नही की थी अमन रात भर सही से सो नही सका सुबह उठा तो घर मे कोहराम मचा था उसका मोबाइल जिसने उठाया था उसने इंटरनेट पर रीनू के अर्धनग्न फोटो अपलोड कर दिए थे जो उसकी बहन ने उसकी मम्मी  को दिखा दिए थे और मम्मी घोषणा कर रही थी कि वह ऐसी लड़की को अपने घर की बहू नही बनाएंगी जो इतनी मार्डन हो कि जिसके अर्धनग्न फोटो इंटरनेट पर हो उन्होंने फोन उठाकर रीनू के घर वालो को अपना फैसला सुना दिया कि वह अपने बेटे से रीनू की शादी नही करेंगी कारण सुनते ही रीनू के घर भी कोहराम मच गया रीनू की स्थिति तो काटो तो खून नही जैसी थी वह लगातार रोये जा रही थी उधर उसकी मम्मी उसे खानदान की नाक कटवाने की बात कहते हुए कटाक्ष पर कटाक्ष कर रही थी बड़ी बहन के काफी देर तक पूछने के बाद उसने सारी बात बताते हुए अमन को फोटो भेजने की बात बताई बड़ी बहन मीनू ने अमन के घर फोन करके अमन से बात कराने की रिक्वेस्ट की लेकिन अमन की मम्मी ने मीनू की बात सुनकर भी रिश्ते से यह कहते हुए इनकार कर दिया चलो मान लो कि रीनू ने अमन को ही फोटो भेजे थे लेकिन वह ऐसी लड़की को अपनी बहू नही बनाएंगी जो शादी से पहले किसी को अपने अर्धनग्न फोटो भेजे क्योंकि निकाह से पहले लड़के लड़की एक दूसरे के लिये गैर ही होते है लड़के लड़कियों के कई कई रिश्ते आते जाते है क्या पता रीनू ने पहले भी------ कहते हुए अमन की मम्मी ने फोन काट दिया। 

✍️ कमाल ज़ैदी 'वफ़ा', सिरसी (सम्भल)


शनिवार, 19 जून 2021

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की कहानी ---नैतिकता


मार्निग वाक पर निकले मौहल्ले के प्रौढ़ पार्क में बैठे आपस मे बातें कर रहे थे. क्रिकेट खेलकर थक चुका रोहित सुस्ताने के लिये वहीं बैठा उनकी बातें सुन रहा था शर्मा जी बोले - "क्या जमाना आ गया है नैतिकता नाम की चीज ही नही रही".खान साहब ने उनकी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा -"बजा फ़रमाया अब जमाना बदल गया है " गुप्ता जी भी कहने लगे -"नई तांती में तो संस्कार नाम की चीज रही ही नही." " हाँ भाई ,पहले के लोगो मे बहुत ईमानदारी थी .अच्छा चलो, अब चलें." कहते हुए मिस्टर दास उठे तो सब उनके साथ उठकर अपने-अपने गंतव्यों की ओर चल दिये खान साहब सीधे मस्जिद पहुचे  उन्हें सूरज निकलने से पहले सुबह की नमाज अदा करनी थी मस्जिद के अंदर अंधेरा देखकर मुतवल्ली पर चिल्लाये अंधेरा क्यों है मुतवल्ली ने बताया कि बिल जमा न होने के कारण लाइन कट है खान साहब ने बांस का डंडा उठाया और कटिया बनाकर मस्जिद के पास से गुजर रही लाइन में डाल दिया फिर अंदर के दालान में जाकर अल्लाह हू अकबर कहते हुए सुबह की नमाज की नीयत बांध ली। शर्मा जी रास्ते मे पड़ने वाले बुक स्टाल पर रुके और  बुक स्टाल स्वामी से पूछे बिना अखबार उठाकर पढ़ने लगे बुक स्टाल मालिक मन ही मन कुढ़ता रहा पूरा अखबार पढ़कर बिना तह किये  वहीं अखबार रखकर शर्मा जी अपने घर की ओर चल दिये।गुप्ता जी घर से चाय नाश्ता कर  अपनी दुकान पहुँचे दुकान में बने छोटे से खूबसूरत मन्दिर के सामने हाथ जोड़कर श्रद्धा से सर झुकाया और दुकान के अंदर ही बने गोदाम में पहुचे और लहटे के तेल में चायना से आयातित पाम ऑयल का पीपा लौट दिया फिर निश्चिंत होकर थले पर आकर बैठ गये।मिस्टर दास घर पहुँचकर पत्नी से बोले - "अरे भई, जरा जल्दी नाश्ता लगा दो. मुझे जल्दी ऑफिस जाना है. दो दिन हो गये गये हुए. आफिस का बॉस हूं तो क्या, जाना तो है ही ।"  मिस्टर दास तैयार होकर अपने आफिस पहुच गये अभी तक कोई आफिस में नही आया था उन्होंने अलमारी खोलकर स्टाफ अटेंडेंस रजिस्टर निकाला और मुस्कराते हुए दो दिन से खाली पड़े कालम सहित आज के अपने कालम में  हस्ताक्षर करके रजिस्टर वापस अलमारी में रख दिया। दूसरे दिन सभी दोस्त फिर वहीं पार्क में इकट्ठे हुए और एक दूसरे को बीते कल की दिनचर्या सुनाते हुए अपनी सफलता पर ठहाके लगा रहे थे और यह सब सुनकर रोहित सोच रहा था दूसरों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले यह लोग सही है या आजकल के हम युवक जो गलती करने पर सॉरी बोल देते है।

✍️ कमाल ज़ैदी "वफ़ा", सिरसी (संभल) मोबाइल फोन नम्बर 9456031926

शुक्रवार, 20 नवंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की कहानी ------------अपना मौहल्ला


हर हर महादेव, जय बजरंग बली, नारये तकबीर, अल्लाह हो अकबर.चारो ओर से  अचानक रात में आई आवाज़ो से  बुजुर्ग रागिब मियां और उनकी बीवी  जमीला बानो घबराकर उठ बैठे मकान के नीचे के पोर्शन में रह रहे मकान मालिक राजेन्द्र बाबू ने उन्हें बताया कि -'शहर में दंगा हो गया है सब एक दूसरे के खून के प्यासे बने हुए है इंसानियत नाम की कोई चीज़ नही रह गई है लेकिन आप लोग बिल्कुल परेशान न हो हमारा घर बिल्कुल सेफ है हमारे पड़ोस में कोई शरारती नही है सभी अच्छे लोग है ।' राजेन्द्र बाबू अपने किरायेदार रागिब मियां और उनकी बीवी को तसल्ली देते हुए बोले -'हमारा मौहल्ला बहुत अच्छा है यहां सभी पढ़े लिखे समझदार लोग रहते है .हर चुनाव से पहले शहर में कुछ न कुछ होता है चाहे धर्म को लेकर हो या जाति को लेकर लेकिन उनके मौहल्ले में शांति रहती है।' 

'लेकिन मुझे तो बहुत डर लग रहा है ।, रागिब मियां की अहलिया   डर से कांपते हुए बोली रागिब मियां ने भी अहलिया जमीला बानो को तसल्ली देते हुए कहा- 'डर की क्या बात है राजेन्द्र बाबू है तो'

रागिब मियां और जमीला बानो कमरे की बालकनी से अंदर कमरे में आ गये लेकिन थोड़ी ही देर में उनके मोबाइल पर रिश्तेदारों के फोन आने लगे हरेक से फोन पर बात करने के बाद दोनों और अधिक डर जाते सभी रिश्तेदार उन्हें सलाह दे रहे थे की इस मौहल्ले से निकल कर मुसलमानों के मौहल्ले में पहुँच जायें  कुछेक ने उन्हें मौहल्ले सुझाते हुए कई नाम भी बताए कि उनके घर चले जायें उनका मकान खाली भी है दोनों ने डरते - डरते किसी तरह रात काटी सुबह हुई तो उन्होंने राजेन्द्र बाबू से मुस्लिम मौहल्ले में जाने की इच्छा जताई राजेन्द्र बाबू ने उन्हें बहुत समझाया कि उन्हें यहां कोई खतरा नही है वह उनकी पूरी रक्षा करेंगे उनके जीते जी कोई उनकी तरफ आंख उठाकर भी नही देख सकता लेकिन जमीला बानो की ज़िद के आगे रागिब मियां भी मजबूर हो गये राजेन्द्र बाबू ने अपने रसूख का इस्तेमाल करते हुए बोझल मन से एक सिपाही के द्वारा दोनों को उनके बताये हुए पते पर मुस्लिम मोहल्ले में पहुँचा दिया।   घर अकेला था मकान मालिक बराबर के मकान में रहते थे और उनके बच्चे अरब में नौकरी कर रहे थे मुस्लिम मोहल्ले में पहुचकर जमीला बानो ने चैन की सांस ली बोली- 'अब अपने मौहल्ले में आ गये।' लेकिन रागिब मियां को कुछ अच्छा नही लग रहा था। रात हुई तो नारो की आवाज़ें यहां भी सुनाई दीं जिससे  दोनों का चैन सुकून गायब हो गया  सुबह को शहर के हालात और खराब हो गये प्रशासन को हालात पर काबू पाने के लिये अनिश्चित कालीन कर्फ्यू की घोषणा करनी पड़ी रागिब मियां और जमीला बानो के पास दवाईयां खत्म हो गईं उनका राशन लाने वाला भी यहां कोई नही था क्योंकि मौहल्ले में किसी को नही पता था कि इस घर मे कोई रह रहा है यह घर कई महीने से खाली पड़ा था इस मकान के मालिक का मिजाज़ भी अलग तरह का था वो किरायेदार से किराया वसूलने के अलावा कोई मतलब नही रखते थे उनका सोचना था कि किरायेदारों से ज्यादा घुलने मिलने से किराया वसूली में देर होती है लोग अपनी मजबूरियां बताकर कई कई महीने किराया रोक लेते हैं जिसकी वजह से वह किरायेदारों से कोई वास्ता नही रखते थे राशन खत्म होने और दवाओं के अभाव में रागिब मियां और जमीला बानो की हालत बिगड़ गई दो एक रिश्तेदारों को उन्होंने फोन किया तो उन्होनें कर्फ्यू लगे होने की बात कहते हुए मजबूरी ज़ाहिर कर दी  जमीला बानो ने भूख और दवा न मिलने से पलंग पकड़ लिया रागिब मियां से भी भूख के कारण चला फिरा नही जाता था लरज़ते हाथों से उन्होंने राजेन्द्र बाबू का नम्बर लगाया और  कांपती लरज़ती आवाज से रोते हुए बोले -'रा जे न्द्र बा बू ह में म ऑफ क र ना ह म ने य हा आ कर ग ल ती की हमारे पास यहां  न दवाएं हैं न रा श न हम कई दिन से भूखे है.'इतना कहते ही मोबाइल उनके हाथ से छूटकर ज़मीन पर गिर पड़ा और मोबाइल के साथ दो दिन से भूखे रागिब मियां भी बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े रागिब मियां का फोन सुनते ही राजेन्द्र बाबू बेचैन हो गये उन्होंने सारी बात पत्नी सरिता को बताई तो वह भी दुखी हो गई राजेन्द्र बाबू  रागिब मिया के पास जाने की बात कहने लगे तो पत्नी सरिता ने  कहा -'कर्फ्यू के बीच वह उन्हें मुस्लिम मौहल्ले में नही जाने देगी।'लेकिन राजेन्द्र बाबू रागिब मियां के फोन के बाद से बेचैन थे आखिर अमेरिका में रह रहे रागिब मियां के बेटे नावेद ने बड़े भरोसे के साथ यह कहते हुए अपने माँ बाप को राजेन्द्र बाबू के मकान में छोड़ा था कि अंकल  आपसे अच्छा मकान मालिक मेरे माँ बाप को कोई दूसरा नही मिल सकता मैं दो एक साल में ही आकर अपने माँ बाप को साथ ले जाऊंगा नावेद और राजेंद्र बाबू का बेटा नवीन साथ साथ पढ़ते थे दोनों का एक दूसरे के घर आना जाना था अब दोनों साथ ही अमेरिका में जॉब कर रहे थे राजेन्द्र बाबू परेशान से कमरे में इधर उधर टहल रहे थे उनकी कुछ समझ मे नही आ रहा था पत्नी उन्हें जाने नही दे रही थी और रागिब मियां का फोन सुनकर वह बेहद परेशान थे आखिरकार उन्होंने फिर अपने रसूख का इस्तेमाल किया और पुलिस की गाड़ी से रागिब मियां के घर जा पहुचे देखा तो उनकी आंखों से आंसू बह निकले रागिब मियां जमीन पर और जमीला बानो पलंग पर पड़ी थी साथ आये थानेदार ने दोनों की नब्ज देखी तो सो सेड कहते हुए अफसोस ज़ाहिर किया अगले दिन अख़बारो के फ्रंट पेज पर बुजुर्ग दम्पत्ति के भूख से मरने की खबर सुर्खियां बनी हुई थी और राजेंद्र बाबू माथे पर हाथ रखे बुदबुदा रहे थे काश रागिब मियां ने जमीला बानो की बात न मानी होती।

✍️ कमाल ज़ैदी 'वफ़ा', सिरसी (सम्भल)

मोबाइल फोन 9456031926

शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल) के साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा----- ठांय- ठांय

 


ठांय, की आवाज़ के साथ तमंचे से गोली बाहर निकली और एक बुजुर्ग की छाती में उतर गई। गोली चलाने वाले ने अपने साथी की ओर देखा और विजयी मुस्कान के साथ विक्ट्री का चिन्ह बनाकर खुशी का  इजहार किया। दूसरी गोली साथी की पिस्तौल से निकली और उसने एक नवयुवक को ढेर कर दिया. अब खुश होने की बारी साथी की थी उसने भी विक्ट्री का चिन्ह बनाकर अपने विजयी होने का एलान करते हुए खुशी प्रकट की शहर में दंगा फैला हुआ था. दोनों साथी मोर्चा सम्भाले हुए दूसरे धर्म के लोगो को निशाना बना रहे थे अब तक वह दर्जन भर लोगो को मौत के घाट उतार चुके थे। अचानक  नारे बाज़ी करती भीड़ उनके सामने आई. दोनों ने अपने अपने पिस्तौल लोड किये और भीड़ की ओर निशाना लगाया. 'अरे! नहीं वह बच्चा है।'साथी ने बच्चे को मारने से मना करते हुए उसे रोकना चाहा ।'अरे बच्चा है तो क्या हुआ? है तो विधर्मियो की ही औलाद।' कहते- कहते उसने पिस्तौल का ट्राइगर दबा दिया. ठांय की आवाज के साथ गोली मासूम की पीठ में जा लगी. बच्चा वही गिर गया गिरते हुए बच्चे के मुख से निकली आवाज़ ने गोली चलाने वाले को हिलाकर रख दिया। गोली चलाने वाला बच्चे के शव पर बिलख- बिलख कर रो रहा था क्योंकि वह उसका अपना ही बच्चा था. जो दंगे में उसे खोजता हुआ यहाँ तक आ पहुंचा था।

✍️कमाल ज़ैदी' वफ़ा', सिरसी (सम्भल)

 मोबाइल फोन नम्बर 9456031926

बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के सिरसी(जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा ---------- गर्मी

 


"बेगम, फाजला अब बड़ी हो गई है. उससे कहो कि घर मे भी दुपटटा ओढे रहा करे। क्योंकि घर मे कोई न कोई आता रहता है।"

"ठीक है जी" कहते हुए शाकिर मियां की बेगम ने सर पर पड़ा दुपट्टा ठीक करते हुए स्वीकृति में सर हिलाया।

बराबर के कमरे में खड़ी 13 साल की फाजला माँ बाप की बातें सुन रही थी लाइट  चले जाने पर वह कमरे से बाहर आई तो " उफ बड़ी गर्मी है।" कहते हुए शाकिर मियां अपना कुर्ता  उतारकर  खूंटी पर टांग रहे थे थोड़ी ही देर में गर्मी बढ़ी तो उन्होंने अपना तहमद भी उतारकर अलग रख दिया अब वह अंडर वियर और बनियान में लेटे हाथ से पंखा झल रहे थे जबकि भीषण गर्मी में फाजला की  अम्मी सर से दुपटटा ओढे हुए घर के काम काज निपटाने में लगी हुई थी फाजला कभी बाप की ओर देखती तो कभी अम्मी की ओर देखकर अपने आप से सवाल कर रही थी  "क्या मर्दो को ही गर्मी लगती है ?"


कमाल ज़ैदी "वफ़ा", सिरसी( सम्भल)

 मोबाइल फोन नम्बर --- 9456031926

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल )निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा ---- लॉक डाउन

लॉक डाउन में चप्पे चप्पे पर पुलिस बल तैनात था कोरोना संक्रमण रोकने के लिये पुलिस सख्ती कर रही थी किसी को घर से बाहर नही निकलने दे रही थी चारो तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था चौराहे पर ड्यूटी दे रहे दरोगा जी समीप के एक घर मे घुस गये जाते ही उन्होंने एक खूबसूरत महिला को बाहों में भर लिया दरोगा जी की बाहों में कसमसाती महिला डरते हुए कहने लगी- 'छोड़ो जी, कोई आ जायेगा'   महिला को आश्वस्त करते हुए कुटिल मुस्कान के साथ दरोगा जी बोले -'डरो नही डार्लिंग, कोई नही आ सकता । बाहर लॉक डाउन लगा है ।' सुनकर महिला भी मुस्करा दी ।

✍️कमाल ज़ैदी 'वफ़ा' , सिरसी (सम्भल)   9456031926

गुरुवार, 24 सितंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल )निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा ----आईना


बार बार आईने में अपना सुंदर मुखड़ा देखकर अभिमान से फूली न समाने वाली शालिनी सड़क दुर्घटना में घायल हो गई उसके मुख पर काफी चोटे आयीं  अब वह आईने के सामने जाने से डरती है।

✍️कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'

प्रधानाचार्य, अम्बेडकर हाई स्कूल बरखेड़ा (मुरादाबाद)

सिरसी  (सम्भल)

9456031926

गुरुवार, 17 सितंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफा की कहानी ---- कर्बला का नन्हा शहीद


रोजाना की तरह बुधवार की शाम सायमा अपनी नानी से कहानी सुनने की जिद करने लगी. नानी कहने लगी कि -'बेटी आज मेरा दिल कहानी सुनाने का नही है यह गम के दिन है. मोहर्रम का महीना गम का होता है. खासकर मोहर्रम के दस दिन बहुत गम के होते है. इन दिनों में हम लोग मजलिस मातम कर कर्बला के शहीदों का गम मनाते है' नानी की बात सुनकर सायमा और जिज्ञासु हो गई कहने लगी - 'नानी  कर्बला में क्या हुआ था? मुझे भी बताओ न'| नानी ने दुपट्टा सर तक ओढ़ा और कहना शुरू किया- 'सायमा  हम जिस  नबी( स) की उम्मत में है. अब से चौदह सौ साल पहले उन्ही की उम्मत के  लोगो  ने नबी (स) के प्यारे नवासे हजरत इमाम हुसैन  और उनके 72 साथियों को  उस समय के क्रूर तानाशाह , और अत्याचारी बादशाह यजीद  के हुक्म पर बड़ी बेदर्दी से शहीद कर दिया था. उन शहीदों में इमाम हुसैन का छह माह का बेटा नन्हा सा मासूम अली असगर भी था.'  सायमा ने बड़ी हैरत से कहा-' नानी, इतने छोटे बच्चे को क्यों शहीद  किया गया? इतने छोटे बच्चे से तो कोई ख़ता भी नही हो सकती.'  'हाँ सायमा,  नन्हे अली असगर तो मासूम थे.  और तीन दिन के प्यासे थे. दुश्मन फ़ौज ने इमाम और उनके घराने पर  तीन दिन से खाना- पानी बंद कर दिया था. इमाम की तरफ के लोग भूखे प्यासे थे.  दुश्मन उनका पानी बंद करके उन्हें झुकाना चाहता था. लेकिन इमाम के साथी जालिम यजीद के सामने झुकने को तैयार नही थे. वह सच्चाई और हक पर थे. इमाम  नन्हे अली असगर को लेकर मैदाने जंग में गये और कहा के -'तुम लोग मुझसे दुश्मनी रखते हो लेकिन इस मासूम बच्चे ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?  यह तीन दिन का प्यासा है. इसे थोड़ा सा पानी पिला दो अगर तुम यह समझते हो कि इसके बहाने से मैं पानी पी लूंगा. तो लो, तुम खुद इसे पानी पिला दो.' यह कहते हुए इमाम ने नन्हे अली असगर को जमीन पर लिटा दिया. नन्हे अली असगर ने सूखी हुई ज़बान होंठो पर फिराई तो दुश्मन की  फ़ौज में भी एक इंकलाब आ गया.' फौजी कहने लगे कि  'हाँ, इस बच्चे ने तो किसी का कुछ नही बिगाड़ा.'  फ़ौज की हालत देखकर कमांडर ने एक निर्दयी सैनिक को हुक्म दिया के हुरमला  इमाम के कलाम को खत्म करदे इमाम ने नन्हे अली असगर को गोद मे उठा लिया लेकिन तभी जालिम हुरमला ने तीन फल का ऐसा तीर मारा के नन्हा बच्चा इमाम के हाथों में शहीद हो गया और तीर  नन्हे अली असगर की गर्दन में होता हुआ इमाम के बाजू में जा लगा जिससे खून का फव्वारा फूट पड़ा नन्हे अली असगर की शहादत का बयान सुनकर सायमा की आंखों से आंसू बहने लगे वो रोते हुए बोली 'नानी  वह कैसे जालिम थे जिन्होंने एक मासूम पर भी तरस नही खाया  मैं कभी उन्हें माफ नही कर सकती खुदा ऐसे लोगो को सख्त से सख्त सजा देगा '#
   
 ✍️ कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
      सिरसी , सम्भल
     9456031926

बुधवार, 16 सितंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल)निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा ----- पानी का घोटाला

         
       ऑफिस में चर्चा थी कि पांच वर्ष पूर्व महकमें में जिन बड़े साहब को पानी के घोटाले में निलंबित किया गया था उनकी हालत आजकल सीरियस चल रही है डॉक्टरों ने कहा है कि उनका डायरिया बिगड़ गया है शरीर मे पानी की कमी हो गई है ।

✍️  कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
प्रधानाचार्य, अम्बेडकर हाई स्कूल बरखेड़ा (मुरादाबाद)
सिरसी (सम्भल)9456031926

बुधवार, 9 सितंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा -------- फरमाबरदार बीवी


     कहना न मानने पर जमील मियां ने पहली बीवी को तलाक़ दे दिया था .अब वह चाहते थे कि उन्हें ऐसी बीवी मिले जो उनका हर हुक्म बजा लाये . जल्द ही उनकी यह ख्वाहिश पूरी हो गई उनकी रिश्ते की खाला नईमा ने अपने मौहल्ले की सीधी सादी लड़की रमशा से उनकी शादी करा दी.  रमशा जमील मियां का हर हुक्म बिना चूं चरा के बजा लाती थी . जमील मियां भी खुश थे कि उन्हें कितनी कहना मानने वाली बीवी मिली है. मौहल्ले में भी चर्चा थी कि जमील मियां की दूसरी बीवी बड़ी फरमाबरदार है. बुधवार को दफ्तर से घर आये जमील मियां कुछ झल्लाये हुए थे . उनके आने पर रोज़ाना की तरह शीशे के गिलास में पानी लेकर आई रमशा उनके पास आकर बोली -'लीजिये पानी ' 'रख दो ' झल्लाये जमील मियां ने जवाब दिया. 'कहाँ?'रमशा ने फिर सवाल दाग दिया. गुस्साए जमील मियां ने कहा -'मेरे सर पे दे मारो ' इतना सुनते ही फरमाबरदार  रमशा ने शीशे का गिलास जमील मियां के सर पर दे मारा।
 
✍️  कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
प्रधानाचार्य, अम्बेडकर हाई स्कूल बरखेड़ा
सिरसी (सम्भल)
9456031926

बुधवार, 2 सितंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा ------मिठाई

             
 लॉक डाउन के बाद सरकारी कार्यालय में खाली बैठे बाबूओं  में गप शप चल रही थी सब एक दूसरे का हाल चाल पूछ रहे थें बड़े बाबू अपनी डायबटीज के बारे में बताते हुए कहने  लगे कि कैसे उन्होंने घर पर रहकर शुगर को कंट्रोल किया  मीठी चीज़ो से पूरी तरह परहेज़ रखा अब तो उन्होंने कसम खा ली है कि मिठाई को हाथ भी नही लगाएंगे नई नियुक्ति पाकर कार्यालय में  आये शरत बाबू बड़े गौर से बड़े बाबू की बातें सुन रहे थे तभी परेशान  से लग रहे एक व्यक्ति ने कार्यालय में प्रवेश किया वह सीधा बड़े बाबू की टेबल के पास जाकर खड़ा हो गया और याचना पूर्वक उनसे अपनी फाइल पर
आदेश कराने के लिये कहने लगा बड़े बाबू उसकी ओर देखकर कहने लगे -"अरे भाई!हो जायेगा तुम्हारा काम भी हो जायेगा पहले हमारी मिठाई तो लाओ "।
बड़े बाबू की बात सुनकर शरत बाबू उन्हें हैरत से देखने लगे।

✍️  कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
सिरसी (सम्भल)
9456031926

शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा ------ दौलत

                  
'ज़रीना तुमने आज फिर प्लेट तोड़ दी  तुम रोज़ कुछ न कुछ नुक़सान कर देती हो मै तुमसे कितनी बार कह चुकी हूँ कि ध्यान से काम  किया करो लेकिन तुम हो कि एक कान से सुनती हो और दूसरे से निकाल देती हो' ।
ज़रीना ने मेम साहब की बात सुनकर फ़ौरन जवाब दिया - "हां- हां पूरा ध्यान रखती हूं अरे, अगर एक प्लेट टूट गई तो कौन सी ऐसी आफत आ गई"।
अगले दिन फिर किचिन से तड़ाक! के साथ किसी चीज के टूटने की आवाज आई मेम साहब किचिन में  गई तो वहा का नज़ारा देखकर हैरत व गुस्से से उनका चेहरा लाल हो गया अपने पर नियंत्रण न रख सकीं और ज़रीना पर उबल पड़ी - "अरे कमबख्त, तूने मेरा कितना क़ीमती सैट तोड़ दिया मेरी मामी ने मुझे यह लंदन से भेजा था"। ज़रीना ने पहले की तरह लापरवाही से जवाब दिया -"मेम साहब मैने यह जानकर तो नही तोड़ा "।जरीना का टका सा जवाब सुनकर मेम साहब का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया "खामोश, ज़बान लड़ाती है "
"इसमें ज़बान लड़ाने वाली कौन सी बात है "। ज़रीना ने तपाक से जवाब दिया ।अब मेम साहब से रहा नही गया  ज़रीना की ओर देखकर वह ज़ोर से चिल्लाई -"तुम गरीब लोगों में मैनर्स कहां, इसीलिये तुम गरीब हो और हम अमीरों से जलते हो जान बूझकर हमारा नुक़सान करते हो  इसीलिये दौलत तुमसे दूर भागती है "।  "बस- बस मेम साहब, दौलत का ज़्यादा घमंड मत दिखाओ जिस दौलत पर तुम इतना इतराती हो वह तुम्हे सुकून नही देती तुम्हारी यह दौलत तुम्हें अपनो से दूर करती है  यह दौलत दोस्त कम दुश्मन ज़्यादा बनाती है। अरे,  असली दौलत तो हमारे पास है प्यार की दौलत, मौहब्बत की दौलत,  मेरे पास मेरे बच्चो की, मेरे आदमी की ,मेरे माँ -बाप के प्यार की दौलत है। मैं यहां से थकी हारी जाती हूं तो घर पहुँचकर सबके प्यार की दौलत पाकर मुझे जो खुशी मिलती है वह तुम्हे कहां नसीब? "। कहती हुई ज़रीना मेम साहब के घर से निकल गई उसके जाने के बाद भी उसके कहे गये शब्द मेम साहब के कानों में गूंजते रहे वह सोचने लगीं कही जरीना सच तो नही कह रही ? दौलत कमाने के लिये उसके पति यू एस ए में है उसके दोनों बेटे दुबई में जॉब कर रहे है वो यहां अकेली है कभी कभी तो अकेलापन उसे बहुत कचोटता है यहां भी जो उसके अपने रिश्तेदार थे वह उसकी दौलत के घमंड में कही गई बातों से उससे दूर होते चले गये अब कोई उसके घर नही आता सोचते सोचते मेम साहब बुदबुदाने लगीं-" सच है, प्यार की दौलत सबसे बड़ी दौलत है "।

 ✍️ कमाल ज़ैदी "वफ़ा"
प्रधानाचार्य, अम्बेडकर हाई स्कूल बरखेड़ा
सिरसी (सम्भल)
9456031926

शनिवार, 15 अगस्त 2020

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल)निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की कहानी ------- प्रवचन


'अल्लाह के नाम पर देदे, अल्लाह तेरा भला करेगा'   प्रवचन सुनकर आ रहे मोहन बाबू के कान में जब यह आवाज़ पड़ी तो उन्होंने चौककर  आवाज़ की ओर देखा और आश्चर्य चकित होकर बुदबुदाए -'अरे!यह तो वही बाबा हैं जो रोज़ उनके मौहल्ले में आते है और भजन गाकर भिक्षा लेते है उनकी पत्नी भी बड़ी श्रद्धा के साथ बाबा को भिक्षा देती है भूखे होने पर भोजन भी कराती है।लेकिन यह तो मुसलमान है।'मोहन बाबू का चेहरा गुस्से से तमतमाने लगा सोचने लगे यह बाबा कितना बहरूपिया है अगर यह मुसलमान बनकर ही भिक्षा मांगता तब भी तो वह उसे भिक्षा देते दरवाज़े पर आये किसी भी मांगने वाले को वो खाली हाथ नही लौटाते मोहनबाबू ने तय कर लिया था कि कल जब वह बाबा उनके घर भिक्षा मांगने आयेगा तब वह उसे इस बात के लिये जरूर लताड़ लगाएंगे ।
दूसरे दिन अपने निश्चित समय पर  बाबा मौहल्ले में भजन गाते हुए आये  और घरों पर जाकर भिक्षा मांगने लगे मोहनबाबू के मन मे भजन सुनकर भी आज वह श्रद्धा के भाव नही आये जो रोज़ भजन सुनकर आते थे उन्हें आज बाबा के बहरूपिया पन को लेकर गुस्सा था उन्होनें तय कर रखा था कि जब उनके दरवाज़े पर बाबा भिक्षा मांगने आएंगे तब वह बाबा की इस हरकत के लिये उन्हें लताड़ेंगे कुछ देर बाद ही भजन गाते हुए बाबा मोहनबाबू के दरवाज़े पर आ गये और 'ला बच्चा,बाबा को भिक्षा देदे भगवान तेरा भला करेगा'. कहते हुए बाबा ने भिक्षा मांगी बाबा की  आवाज़ सुनकर गुस्से से आग बबूला मोहनबाबू बाहर आये और उन्होंने बाबा को बहरूपिया कहते हुए लताड़ना शुरू कर दिया गुस्से से तमतमाये मोहनबाबू बाबा की ओर देखकर बोले -'तुम जैसे लोगो ने ही विश्वास के साथ विश्वासघात किया है।तुम मुसलमान हो और इस मौहल्ले में हिन्दू बनकर भिक्षा मांगते हो? कल प्रवचन सुनकर आते हुए आबिद नगर में मैने स्वयं तुम्हे अल्लाह के नाम पर भीख मांगते हुए देखा है तुम मुसलमान हो, और यहां आकर हिन्दू बनकर भिक्षा मांगते हो ।' मोहनबाबू बिना रुके गुस्से से बाबा की ओर देखते हुए बोले जा रहे थे -'जाओ, ऐसे बहरूपिये को हम भिक्षा नही देंगे।तुम मुसलमान बनकर भी हमसे मांगते तो हम देते लेकिन  अब हम  तुम्हे भीख नही देंगे।' 'ठीक है बच्चा,तुम मुझे भिक्षा मत दो।' बाबा संयम से बोले -'लेकिन मैंने अल्लाह का नाम लेकर कुछ गलत नही किया है ईश्वर,अल्लाह, वाहे गुरु, गॉड सब एक ही परमात्मा के नाम है सब एक ही नाम के पर्यायवाची है। हिन्दू, मुस्लिम,सिख, ईसाई हम सबका मालिक तो एक ही है न? फिर हम उसे चाहे जिस नाम से पुकारें वह सबकी सुनता है उसके बनाये ज़मीन -आसमान,चांद- सूरज,हवा-पानी सबको बराबर फायदा पहुचाते है वह किसी से भेदभाव नही करते'। बाबा कुछ देर रुके और फिर बोले-'बेटा, यह हम मनुष्यो के वश में नही  था की हम कहाँ जन्म लें। यह उस एक परमात्मा ने अपने वश में रखा है कि किसका जन्म किसके घर होना है यदि ऐसा नही होता और यह मनुष्य की इच्छा पर होता तो धर्म मज़हब तो बाद कि चीज़ है सब अमीर घरों में ही जन्म लेना चाहते गरीब के घर कोई जन्म नही लेना चाहता'। बाबा के तर्कपूर्ण जवाब से मोहनबाबू का गुस्सा शांत हो गया था वो गौर से बाबा की बात सुन रहे थे बाबा ने फिर बोलना शुरू किया - 'सुन बच्चा,हम सबके घर भिक्षा मांगने जाते हैं क्योंकि हमें परमात्मा ने ऐसे ही घर मे पैदा किया और हम इसी में खुश हैं ।हम धर्म मजहब के आधार पर किसी से भेद नही करते हम हिन्दू मुसलमान बाद में पहले इंसान हैं यही हमारी सोच है इसीलिये हम किसी को अपना धर्म नही बताते और सबके दरवाज़े पर जाते है हम सबके है और सब हमारे है'। मोहनबाबू आश्चर्य से बाबा की बातें सुन रहे थे उन्हें बाबा की बातों में दम लग रहा था मोहनबाबू की ओर देखकर बाबा कहने लगे - 'बच्चा तू हमें इसलिये भिक्षा नही देना चाहता कि हम मुसलमान है और यहां हिन्दू बनकर भजन सुनाकर भिक्षा मांगते है। तो सुन ,हम हिन्दू भी है मुसलमान भी क्योंकि सबका मालिक एक है  वैसे मैने किसी मुस्लिम परिवार में जन्म नही लिया न ही मेरे माता पिता ने मुझे यह बताया कि हम हिन्दू हैं मेरा जन्म एक बेहद गरीबआदिवासी  परिवार में हुआ था मेरे माँ बाप ने मुझे कभी किसी धर्म के बारे में नही बताया सारे धर्मो के बारे में मैने अपने भृमण के दौरान जाना है हर धर्म अच्छाई के रास्ते पर चलने और बुराई से दूर रहने को कहता है बेटा मेरी यह बात गांठ बांध लेना कि सबसे बड़ा धर्म इंसानियत है और सबका मालिक एक है।'बाबा की बात सुनकर मोहनबाबू सोचने लगे वह कबसे प्रवचन सुनने जाते है लेकिन असली प्रवचन तो आज बाबा से सुना है   वाक़ई सबका मालिक एक है।

✍️  कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
सिरसी (सम्भल)
9456031926

बुधवार, 5 अगस्त 2020

मुरादाबाद मंडल के सिरसी ( जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा ----ज़मीर की आवाज़


राहत मियां इबादत के लिये जाने को हुए तो उनके अंदर से आवाज आई कि -"नही, यह सही नही है। दफ्तर का टाइम हो गया है" ।
तभी दूसरी आवाज़ ने कहा-"अरे!तुम कोई गलत काम थोड़े ही कर रहे हो, इबादत ही के लिये तो जा रहे हो, थोड़ी ही देर की तो बात है इतनी देर में क्या हो जायेगा"।
राहत मियां  पसोपेश(असमंजस ) में पड़ गये तभी पहले वाली आवाज ने फिर कहा-"इबादत बुराइयों से रोकती है। अगर तुम देर से दफ्तर  जाओगे तो यह गलत बात होगी  अल्लाह इससे खुश नही होगा  तुम  बाद में भी  इबादत कर सकते हो"।
और ज़मीर की इस आवाज़ पर राहत मियां के क़दम बिना इबादत किये  दफ्तर की ओर उठ गये।दफ्तर से आकर राहत मियां इबादत के लिये गये और वापस आये तो आज की इबादत में मिले सुकून और इत्मीनान की झलक उनके चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी।

कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
सिरसी  (सम्भल)
9456031926

बुधवार, 29 जुलाई 2020

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद संभल) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफा की कहानी --- महँगा बकरा


          ईदुलजुहा का त्योहार आने में अब चंद दिन बचे थे. कई दिन से  अखबारों में ऐसी  खबरें आ रही थी कि बरेली में बिका दो लाख का बकरा, शकील कुरेशी ने खरीदा एक लाख 60 हजार का कटरा , कुर्बानी के जानवरों के दाम बढ़े, बरबरा और  सफेद बकरों की डिमांड अधिक आदि- आदि खबरे रोज़ अखबारों की सुर्खियां बन रही थी। टी वी चैनलों पर भी इस टाइप की खबरे प्रमुखता से दिखाई जा रही थी।
   मोहल्ले के बच्चों में भी बकरों को लेकर प्रतिस्पर्धाये हो रही थींं। कोई कहता - ' मेरा बकरा सबसे तगड़ा है।'तो कोई कहता-'मेरा बकरा सबसे ऊंचा है।' तो कोई अपना बकरा महँगा होने की बात कहकर गर्व से अपना सीना फुलाता लेकिन यह सब बातें सुन सुनकर जाहिदा बेगम घुली जा रही थी गरीब जाहिदा ने अब से दो साल पहले अपने अब्बू  से बकरी का एक बच्चा लिया था  कि इसे पाल पोसकर बड़ा करेगी और साल दो साल बाद बकरीद पर अच्छे पैसों में बेचेगी  मगर अब बकरे को देख- देखकर  उसकी उम्मीद नाउम्मीदी में बदलने लगी थी। अपनी गरीबी के कारण वह बकरे की अच्छी तरह खिलाई- पिलाई नही कर सकी थी। जिससे उसका बकरा भी उसकी तरह हड्डियों का ढांचा नज़र आता था उसे यही चिन्ता खाये जा रही थी कि आखिर हड्डियों के इस ढांचे जैसे बकरे के कौन अच्छे पैसे देगा और अगर बकरा अच्छे पैसों का नही बिका तो वह बीमारी से जूझ रहे आदिल के अब्बू का इलाज कैसे कराएगी? एक साल  से अदा न कर सकी मकान का किराया कैसे अदा करेगी और आदिल  के स्कूल की फीस कैसे देगी  सब सोच सोचकर उसका कलेजा मुँह को आ रहा था।
      बुझे मन से उसने बकरे की रस्सी खोलकर आदिल को थमाते हुए कहा कि बेटा पड़ोस के गुलशन मियां साप्ताहिक पैठ बाज़ार जा रहे है तुम भी उनके साथ चले जाओ यह बकरीद से पहले का आखरी बाज़ार है जो भी पैसे मिले आज  इसे बेच ही आना क्योंकि आगे इसे पालने की हमारी हैसियत नही है बाज़ार में चारा बहुत महंगा है हम इसके लिये चारा कहाँ से ला पाएंगे? कहते हुए उसकी आंखें आंसुओ से गीली हो गई  गुलशन मियां के साथ आदिल बकरा लेकर पैठ बाजार पहुच गया।
          बाजार में एक से एक सजे धजे और मोटे ताजे बकरे नजर आ रहे थे ग्राहकों की भी भारी भीड़  थी जो कुर्बानी के लिये महंगे से महंगे दामों पर मोटे और लंबे चौड़े और ऊंचे बकरे खरीद रहे थे लेकिन उसके दुबले पतले बकरे की ओर तो लोग सिर्फ निगाह डालकर आगे निकल जाते कोई दाम तक नही पूछ रहा था। जैसे- जैसे समय बीत रहा था बाजार भी खाली होता जा रहा था आदिल का दिल बैठा जा रहा था कि बिना बकरा बेचे वह घर जाएगा तो माँ कितना दुखी होगी गुलशन मियां भी उससे घर चलने को कहने लगे थे लेकिन वह 'अंकल कुछ देर और, कुछ देर और' कहकर रोके हुए था तभी उसके पास सफेद शेरवानी पहने उसी के मोहल्ले के शिराज़ साहब आकर रुके और उसके हाथों पर नोटो की गड्डी थमाते हुए उससे बकरा उनके सुपुर्द करने को कहने लगे। हैरत से आदिल की आंखे फ़टी की फटी रह गयी उसे यकीन नही हो रहा था कि उसके दुबले पतले बकरे के कोई इतने अच्छे पैसे दे सकता है वह खुश होता हुआ घर आ गया बकरे के इतने अच्छे दाम देखकर  जाहिदा के चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी उसने दोनों हाथ आसमान की ओर  उठाकर खुदा का शुक्र अदा किया।
      उधर शिराज साहब बकरा लेकर घर पहुँचे तो बकरा देखकर सब घर वालो के मुंह बन गए सायमा बोली-' पापा आप यह कितना दुबला बकरा लाये है?' अमन का कहना था -'यह तो हड्डियों का ढांचा है।' अब बारी अमन की अम्मी की थी कहने लगी-' शायद तुम्हारे पापा को किसी ने फ्री में दे दिया होगा या हजार पांच सौ में ले आये होंगे यह तो त्यौहार पर भी कंजूसी करते है.  तभी तो बकरे के दाम भी नही बता रहे' चारो तरफ से ताने तिशने सुनने के बाद शिराज साहब से रहा नही गया चीखकर बोले-' हाँ मैं कंजूस हूं! तभी  तो यह बकरा दस हजार में खरीदकर लाया हूं।' ' दस हजार का ?।'सब के मुंह से एक साथ निकला  'दो हजार का बकरा दस हजार में?' सबने हैरतजदा होते हुए पूछा शिराज साहब ने फिर बोलना शुरू किया -'हाँ दस हजार में, जानते हो क्यों?इसलिये की यह बकरा अपने ही मोहल्ले की उन जाहिदा बेगम का है जिनके शौहर काफी दिनों से बीमार है। जाहिदा बेगम खुद्दार है वह किसी गैर से मदद मांगना अपनी शान के खिलाफ समझती है बकरीद पर अल्लाह की राह में कुर्बानी दी जाती है लेकिन कुर्बानी का मतलब दिखावा नही है, अल्लाह सबकी नियत से वाकिफ है। वह सब जानता है.  सिर्फ बकरा ज़िब्ह करके उसका गोश्त खा लेना या अपने यार दोस्तो रिश्तेदारों में बांट देना ही सच्ची कुर्बानी नही है, बल्कि भूखे- प्यासों, गरीब- मोहताजों की मदद करना उनके चेहरे पर खुशी लाना ही अल्लाह की राह में सच्ची कुर्बानी है. हम इस बकरे से भी कुर्बानी अदा कर सकते है और ज्यादा पैसे में खरीदकर मैने कोई दिखावा नही किया है. बल्कि एक जरूरतमंद की इस तरह से मदद की है।' शिराज साहब की बातें सब घर वाले दम बख़ुद होकर सुन रहे थे उनकी बातें सुनकर सभी के सीने शिराज साहब को प्यार भरी नजरों से देखकर चौड़े हो रहे थे।

कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
सिरसी , सम्भल
 9456031926

बुधवार, 22 जुलाई 2020

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद संभल) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा ------ नीयत

                                                                                      नावेद मियां जबसे जलसे में से आये थे। अपने माँ- बाप के प्रति उनमें खास बदलाव दिखाई देने लगा था। अपनी बीवी आसिया से वह कह रहे थे -"देखो आसिया, मेरे पीछे भी मेरे माँ- बाप को किसी तरह की परेशानी नही होनी चाहिये। उनकी हर बात का ख्याल रखना क्योंकि, वालिदैन (माँ -बाप) की खिदमत  से ही हमें जन्नत मिलेगी। मौलाना साहब जलसे में कह रहे थे कि -"अगर किसी ने माँ- बाप का दिल दुखाया तो वह जन्नत की खुशबू भी नही सूंघ सकता "।
नावेद मियां यूं तो पहले से ही माँ- बाप के फरमाबरदार थे लेकिन जलसे से आने के बाद  माँ- बाप काऔर अधिक ख्याल रखने लगे थे । जुमेरात की शाम नावेद मियां के यहां जलसे वाले मौलाना साहब की दावत थी।दावत के बाद मौलाना साहब कमरे में आराम फरमा रहे थे। नावेद मियां भी उनके सामने बैठे हुए थे।  गुफ्तगू शुरू हुई तो फिर वालिदैन के हक़ तक जा पहुँची नावेद मियां बड़े फख्र से मौलाना साहब को बताने लगे कि वह किस तरह अपने माँ- बाप का ख्याल रखते है उन्होंने मौलाना साहब से पूछा कि-" क्या वह अपने माँ बाप का हक़ अदा कर रहे है?"मौलाना ने जवाब दिया -"आप अपने वालिदैन की खिदमत कर अच्छा काम कर रहे है ,खुदा आपको इसका सिला (बदला)देगा लेकिन जहाँ तक हक़ अदा करने की बात है आप उनका हक अदा नही कर सकते"। 
"क्यों?"नावेद मियां ने हैरत से पूछा।मौलाना साहब फिर बोले-"नावेद मियां, अच्छाई- बुराई, अज़ाब- सवाब(  पाप -पुण्य) सब नियत पर होता है। खुदा बन्दे की नियत से ही उसके अमल (कृत्य)का बदला देता है। आप यह सोचकर अपने माँ- बाप की खिदमत कर रहे हैं कि आपको जन्नत में जाना है। लेकिन जब आप नन्हें से बच्चें थे तब आपके माँ- बाप ने आपकी खिदमत जन्नत (स्वर्ग)के लालच या दोज़ख (नरक)के ख़ौफ से नही की थी  बल्कि वह आपको बड़ा होता परवान चढ़ता हुआ देखकर खुश होते थे उनकी नीयत में कोई लोभ, लालच नही था। जबकि लोग अपने बूढ़े माँ- बाप की खिदमत जन्नत के लालच या दोजख में जाने के ख़ौफ से यह सोचकर करते है कि यह चंद सालों   के  ही तो मेहमान है।" बताईये," माँ- बाप का हक़ कौन?कैसे, अदा कर सकता है। माँ- बाप  की नीयत और औलाद की नीयत  में कितना फर्क है। " मौलाना का जवाब सुनकर नावेद मियां ने निदामत से सर झुका लिया और उनकी आंखें गीली हो गईं सोचने लगे, 'वाक़ई हम लोग माँ - बाप का हक़ अदा नही कर सकते।'  लेकिन  अगले ही पल यह सोचकर उनके चेहरे पर संतोष के भाव आ गये की हम वालिदैन की खिदमत तो कर ही सकते हैं।'

कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
सिरसी (सम्भल)
9456031926

शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघु कथा ------- मनचले

                               
  उन मनचलों का रोज़ का दस्तूर था कि शाम को सैर पर निकलते, तो आती जाती लड़कियों व महिलाओं पर फब्तियां कसते और खुश होते। जुमेरात को भी वो रोजाना की तरह सिगरेट के कश लगाते हुए फब्तियां कस रहे थे। तभी सामने से कुछ लड़कियां काले बुर्के पहने आती दिखाई दी। अपनी आदत के मुताबिक तीनो मनचलों ने उन पर फब्तियां कसनी शुरू कर दी। कोई उन्हें पास आने की दावत  दे रहा था। तो कोई चेहरा दिखाने की गुज़ारिश कर रहा था। तो कोई आहें भर रहा था। लेकिन यह क्या! वह बुर्कापोश लड़कियां तो उन्हीं की तरफ आने लगी। तीनो मनचले खुश होने लगे । लड़कियों ने  जब उनके पास आकर  नक़ाबे उल्टी तो मनचलों के  चेहरे फ़क़ पड़ गये । यह तो उनकी ही बहनें थीं जो दरगाह पर मन्नत मांगकर वापस घर जा रही थीं।

कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
सिरसी (सम्भल)
9456031926

शनिवार, 11 जुलाई 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की कहानी ------ सुकून की तलाश

   
                                                                    शाहिना, "मैं तुम्हारी रोज रोज की चख चख से तंग आ गया हूं। मै तुम्हे कितनी बार बता चुका हूं। कि मै बाहर नही जाऊंगा। अपने देश मे ही रहूंगा। फिर हमारा यहां भी अच्छे से गुजारा हो ही रहा है। खुदा ने हमे सब कुछ तो दिया है। अपना मकान है दोनों वक़्त चैन से खाना मिल रहा है।  हमारे अपने सब यहीं है। यह हमारा वतन है हम यहां से कही बाहर नही जाएंगे"। दानिश की बात खत्म हुई तो शाहिना ने फिर कहना शुरू कर दिया -"देखिये जी, यहां रहकर आपने अभी तक क्या कर लिया। अभी तक मकान पर प्लास्टर तक नही करा पाये। यहां दस हजार की मास्टरी में क्या कर लेंगे। फिर अपनी रूबी भी अब दस साल की हो गई है। आठ साल बाद उसकी भी शादी करनी है। पड़ोस की सफिया को देखिये बेटी की कैसी धूमधाम से शादी की है इतना दान दहेज दिया है। कि अभी तक मोहल्ले में चर्चा है। हर बाराती को भी पांच- पांच हजार के गिफ्ट दिए है ।उनकी पूरी फैमिली दस साल से अमेरिका में है। अगर आप भी कनाडा चले गये होते तो हमारे पास भी आज सब कुछ होता। मेरे भाई तो आपको बुला ही रहे थे अपने मोहल्ले की कितनी फैमलिया विदेश में है। कोई इंग्लैंड कोई दुबई कोई जर्मनी तो कोई फ्रांस में है सबके कैसे ठाट- बाट है साल दो साल में जब भी कोई फैमिली यहां आती है तो उनके ठाट- बाट के सामने मैं शर्मिंदगी महसूस करती हूं। कितनी कीमती और आधुनिक ड्रेस पहने होती है उनकी बीवियां और सोने से तो वह लधी हुई होती है । देखिये, मै अपने चचेरे भाई से बात करती हूं वह आपको अमेरिका का वीजा भेज देगा। आप इस बार अपने स्कूल के मैनेजर से साफ कह दीजिये की इस सेशन के बाद आप उनके यहां नही जाएंगे वो किसी और का इन्तज़ाम कर लें"। शाहिना की बाते सुनकर दानिश को उलझन होने के साथ गुस्सा भी आ रहा था। लेकिन वह घर को जहन्नुम नही बनने देना चाहता था इसी लिये सब सहन कर रहा था। लेकिन बार बार अपना फैसला शालीनता के साथ सुना देता था कि - "वो अपने मुल्क से बाहर नही जायेगा"। दानिश और शाहिना की बाते चल ही रही थीं कि डोर बैल बजी एक बारगी तो दोनों ने सुनकर अनसुना कर दिया लेकिन जब दो तीन बार बैल बजी तो दानिश गुस्से से कौन है भई! कहता हुआ पहुँच गया दरवाजे पर सूटबूट पहने आंखों पर कीमती चश्मा चढ़ाये अमेरिकन अटैची हाथों में लिये एक व्यक्ति खड़ा था ।दानिश ने हैरत से उसे देखा तो वह व्यक्ति बोल पड़ा- "अरे दानिश!  मुझे नही पहचाना? मैं, तेरा बचपन का दोस्त आबिद। अबे, हम दोनों साथ साथ पढ़ते थे। साथ साथ खेलते थे। बागों में कैसी मस्ती करते थे। लड़कियों को इम्प्रेस करने के लिये कैसे- कैसे हतकण्डे अपनाते थे।"  अबे आबिद? तू, कहते हुए दानिश ने उसे खुशी से गले लगा लिया। 'चल अंदर आ' कहते हुए वह उसे घर के अंदर ले आया शाहिना दोनों को हैरत से देख रही थी उसे हैरतजदा देखकर दानिश ने कहा- "शाहिना, यह मेरा बचपन का दोस्त आबिद है ।हम दोनों बरेली में साथ साथ पढ़ते थे। बाद में इसके मामा ने इसे इंग्लैंड बुला लिया और मै पापा के रिटायरमेंट के बाद यहां रामपुर आ गया।" आओ आबिद, थक गये होंगे फ्रेश हो लो। शाहिना, 'तुम फटाफट चाय बनाओ' आबिद फ्रेश होकर आया तो सबने साथ बैठकर चाय पी दानिश ने शाहिना से उसका परिचय कराते हुए कहा कि - "यह मेरी बीवी है शाहिना और यह मेरी बेटी रूबी और यह मेरा बेटा मूनिस"।  आबिद ने एक निगाह शाहिना पर डाली और उसकी खूबसूरती को देखता ही रह गया दानिश ने उससे मजाक करते हुए टोका "अबे नियत खराब मत करना मेरी एक ही बीवी है" आबिद ने हाऊ स्वीट! कहते हुए दानिश की ओर देखते हुए कहा- "यार तू बड़ा नसीब वर है कि तेरी इतनी खूबसूरत बीवी और बच्चे है"। शाहिना ने शरमाकर नज़रे नीची कर ली "अब तू बता तेरी बीवी कैसी है, कितने बच्चे है।" दानिश ने आबिद से पूछा आबिद ने गहरी सांस लेते हुए कहना शुरू किया - "यार, विदेश जाकर मैंने पैसा जरूर कमाया मगर फैमिली का सुकून मुझे नही मिला।  मामा ने मेरी शादी लखनऊ की एक फैमिली की लड़की  रेहाना से कराई थी पाश्चातय सभ्यता में ढली रेहाना शादी के बाद से ही मुझसे बात- बात पर झगड़ा करती मेरी कोई बात नही मानती थी। नाईट क्लबो में जाना उसका रोज का शगल बन गया था एक साल में ही उसने मुझे छोड़कर एक जर्मन से शादी करली। मैने दूसरी शादी सुरैय्या से की उससे मेरे एक बेटी हुई लुबना  मैं पैसा कमाने और बीवी की फरमाइशें पूरी करने में लगा रहा। लुबना की तरफ ध्यान ही नही दे पाया और उसने एक अंग्रेज से शादी कर ली मैंने सुरैय्या को इसका दोष दिया तो वह भी मुझसे लड़कर चली गई लुबना ने भी मुझे दकियानूसी सोच का बताते हुए मुझसे सम्बन्ध तोड़ लिया। मै कई वर्षों से वहाँ अकेला रह रहा था अकेला पन मुझे जब बहुत खलने लगा तो मै 'सुकून की तलाश' में अपने वतन लौट आया यहां लोगो मे प्यार है। अपनापन है। वहाँ जैसी खुदगर्ज़ी नही है। यहां मेरे बीवी बच्चे न सही रिश्तेदार तो है सच है यार, अपना देश अपना होता है यहां की मिट्टी की खुशबू में भी अपनेपन का एहसास होता है। तू बहुत खुशनसीब है यार, तेरी प्यारी सी फैमिली है।  काश! मुझे पहले यह बात समझ मे आ जाती की जिंदगी में पैसा ही सब कुछ नही होता।  तो आज मेरी भी फैमिली होती और मै भी सुकून की जिंदगी जी रहा होता।"  शाहिना हैरत से  आबिद की बातें सुन रही थी और उसके जाने के बाद शाहिना दानिश के कंधे पर सर रखे कह रही थी -'दानिश, तुम्हारे दोस्त ने मेरी आँखें खोल दी है। अब मै कभी तुमसे बाहर जाने को नही कहूंगी। हम यही रहकर अच्छे से अपने बच्चो की परवरिश करेंगे।'  दानिश ने प्यार से शाहिना के सर पर हाथ फेरा तो निदामत से उसकी आँखों से आंसू बह निकले।

कमाल ज़ैदी "वफ़ा"
सिरसी( सम्भल)
9456031926

बुधवार, 1 जुलाई 2020

मुरादाबाद के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की कहानी----- नहीं...नहीं....नहीं....


वह जब घर आती तो उसका चेहरा देखकर उसका भी दिल खिल उठता, जिस दिन वह नही आती उस दिन वह भी बुझा बुझा सा रहता ।वह आती तो उसकी ओर देखकर मुस्कराती उससे बातें करती उसे भी उससे बातें करना अच्छा लगता था। पिछले कई माह से यह सिलसिला चल रहा था ।दोनों में एक दूसरे के प्रति हमदर्दी थी । हर बात में दोनों एक दूसरे के समर्थक होते दोनों की पसंद न पसन्द भी मिलती जुलती थी । अरमान काफी दिन से अजीब कशमकश में था कि किस तरह शगुफ्ता से अपने प्यार का इज़हार करे और उसका जवाब ले । अरमान को उम्मीद थी कि शगुफ्ता की उसके प्रति जो हमदर्दी और लगाव है उसे देखते हुए वह अपने मकसद में कामयाब होगा ।
      बुधवार को  घर के सब लोग  अदनान चाचा के बेटे की सालगिरह में गये हुए थे । वो तबियत ठीक न होने का बहाना करके घर मे रुक गया था । शाम के पांच बजे वह घर मे बैचेनी से टहल रहा था । बार बार उसकी निगाह दरवाजे की ओर जाती और मायूस होकर लौट आती । उसके  दिल दिमाग  में विचारों की उथल पुथल चल रही थी लेकिन आज उसने पक्का इरादा कर लिया था कि शगुफ्ता से अपने सवाल का जवाब लेकर ही रहेगा कुछ ही देर बाद घर की बैल बजी उसने दौड़कर दरवाजा खोला । दरवाजे से हसती खिलखिलाती शगुफ्ता अंदर आई लेकिन घर मे सन्नाटा देखकर उसने अरमान पर सवालों की झड़ी लगा दी । रुखसाना कहाँ है, अंकल आंटी कहाँ है, अरमान ने हँसते हुए उसे बताया कि सब लोग अदनान चाचा के यहाँ सालगिरह में गये हुए है । सुनकर शगुफ्ता जाने लगी तो अरमान ने हाथ पकड़कर उसे रोक लिया बोला तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है । जरा बैठो, शगुफ्ता रुक गई सोफे पर बैठते हुए बोली कहिये क्या बात है ।अरमान ने हिम्मत करके बोलना शुरू किया शगुफ्ता मै तुमसे बहुत प्यार करता हूं तुमसे शादी करना चाहता हूं क्या तुम मुझसे शादी करोगी । सुनते ही शगुफ्ता का चेहरा जर्द पड़ गया अगले ही पल वह दोनों कानो पर हाथ रखकर जोर से चिल्लाई  'नहीं' 'नहीं' 'नहीं' । शगुफ्ता का जवाब सुनकर अरमान पर जैसे बिजली सी गिर गई हो लेकिन उसने अपने को संभालते हुए याचना के अंदाज़ में कहा -- शगुफ्ता मै तुम्हे बहुत चाहता हूं । तुम्हारे बिना जी नही सकूंगा प्लीज़ मान जाओ ।आखिर मुझमे क्या कमी है। अब शगुफ्ता के बोलने की बारी थी उसका जवाब सुनकर अरमान के पास कोई और सवाल करने  की हिम्मत नही थी शगुफ्ता रोते हुए कह रही थी मै भी आपसे बहुत प्यार करती हूं भाईजान आप मेरी सहेली रुखसाना के सगे भाई है लेकिन मै भी आपको सगे भाई से बढ़कर मानती हूं  इसीलिये आपसे हस बोल लेती हूं लेकिन मुझे क्या पता था कि ज्यादातर मर्द एक जैसे होते है किसी से हसने बोलने का मतलब वह कुछ और लगा लेते है क्या प्यार भाई या दोस्त से नही किया जाता एक एक्सीडेंट में मेरे एकलौते भाई नुरुल की मौत हो गई थी लेकिन रुखसाना से मुलाकात के बात जब आप मिले तो मुझे  लगा कि भाई के रूप में मुझे नुरुल मिल गया मुझे क्या पता था कि मेरे हसने बोलने से आपके दिमाग मे कुछ और चल रहा है शगुफ्ता की बात सुनकर निदामत से अरमान की आंखों से आंसू बह निकले दोनों हाथों से मुंह छिपाकर अरमान शगुफ्ता से कह रहा था शगुफ्ता बहन मुझे माफ़ करदो वाकई मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई है मैने तुम्हे गलत समझा प्यारी बहन आज से मेरे लिये तुम वैसी ही हो जैसी मेरी बहन रुखसाना ।

✍️  कमाल ज़ैदी ' वफ़ा'
 सिरसी (सम्भल)
9456031926