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गुरुवार, 26 अगस्त 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ईश्वर चन्द्र गुप्त ईश पर केंद्रित राजीव सक्सेना का आलेख ---- लोकाचार के कवि --ईश्वर चन्द्र गुप्त ईश । यह आलेख उनकी कृति समय की रेत पर ( साहित्यकारों के व्यक्तित्व- कृतित्व पर एक दृष्टि ) में संगृहीत है। यह कृति वर्ष 2006 में श्री अशोक विश्नोई ने अपने सागर तरंग प्रकाशन मुरादाबाद द्वारा प्रकाशित की थी।


 आज जबकि अधिकांश शब्दकार निजी प्रचार, धन और यश अर्जित करने की कामना के साथ साहित्य सृजन कर रहे हैं। साथ ही स्वयं की 'अर्ध-देवता' (डेमी गाड) सरीखी छवियाँ निर्मित कर रहें और समाज पर अपनी कुण्ठाएं, हताशाएं, अतार्किक और अवैज्ञानिक विचार आरोपित कर रहे हैं। ईश्वर चन्द्र गुप्त 'ईश' जी एक ऐसे शब्द शिल्पी हैं जो पूर्णतया निस्पृह, निष्पक्ष और समर्पण भाव के साथ मौन रहकर अपनी शब्द यात्रा जारी रखे हुए हैं। अस्सी वर्ष की आयु में भी 'ईश' जी जिस उत्साह और आशावादिता के साथ सृजनरत हैं वह निश्चित ही साहित्य और समाज के लिए ही नहीं बल्कि स्वयं व्यक्ति के लिए भी एक स्वस्थ सकारात्मक संदेश है। 'ईश' जी धन और यश की कामना से नहीं बल्कि समाज को लगातार बेहतर बनाने और मानव जाति का परिष्कार करने की दृष्टि से सृजनरत हैं।

      मुझे पहली बार उनसे साक्षात्कार का सुयोग अग्रज पुष्पेन्द्र वर्णवाल के निवास पर दो-तीन वर्ष पहले आयोजित एक कवि गोष्ठी में प्राप्त हुआ जिसमें नगर के लगभग सभी वरिष्ठ रचनाकार उपस्थित थे। इसमें मैंने 'ईश' जी की कविता को ध्यान पूर्वक सुना। जनकल्याण की भावना से प्रेरित स्वांत: सुखाय लिखी गयी यह कविता अतीत और वर्तमान का जीता जागता चलचित्र था। प्रकम्पित कण्ठ से पढ़ी गयी कविता उपस्थित कवि समुदाय पर कितना प्रभाव छोड़ सकी यह तो मैं नहीं जानता किन्तु खादी के साधारण वस्त्र और गांधी टोपी धारण किये इस कवि के सरल व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना मैं न रह सका। उनका यह ऋजुरेखीय व्यक्तित्व ठीक उनके साहित्य में भी प्रतिबिंबित होता है ।

      उनकी रचनाओं में साहित्यिक कलाबाजियाँ अधिक दिखायी नहीं पड़ती। भाषा और शिल्प भी सहज-सरल और एक साधारण पाठक के लिए ग्राह्य है। अपने साहित्य में वैचारिक स्तर पर वे हिन्दी के वरिष्ठ कथाकार विष्णु प्रभाकर या फिर पत्रकार लेखक बनारसी दास चतुर्वेदी या कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर' सरीखे नजर आते है। दरअसल, वे उस पीढ़ी के हैं भी जिसके मानस या अवचेतन पर गांधी जैसे युग पुरुष के व्यक्तित्व और विचारों की गहरी छाप है। 'ईश' जी के साहित्य में गांधी वादी विचारों के सूत्र ढूँढ पाना किसी भी सुधि पाठक के लिए बेहद सरल है। किन्तु 'ईश' जी निरे गांधीवादी भी नहीं हैं। साहित्यकार के तौर पर वे टामस मोर के 'यूटोपिया' के काफी करीब नजर आते हैं और समाज की विसंगतियों पर ड्राइडेन और पोप की तरह पैने व्यंग्य करते रहते हैं। दरअसल, एक 'यूटोपिया' उन्हें बराबर 'हांट' करता रहता है। यूटोपिया से आक्रांत होने के कारण उनका समूचा सृजन समाज सुधार की भावना से ओतप्रोत है।

यद्यपि 'ईश' जी का रचनाकाल सुदीर्घ है तथापि उनकी बहुत अधिक कृतियां प्रकाशित नहीं हुई हैं। उनकी अब तक पांच-छः कृतियां प्रकाशित हुई हैं। जिनमें 'ईश गीति ग्रामर' और 'चा का प्याला' मुख्य हैं। 'चा का प्याला' सर्वाधिक उल्लेखनीय कृति है। 'चा का प्याला आधुनिक लोकाचार की सब से प्रमाणिक कृति भी है जो लोकप्रिय कवि बच्चन की 'मधुशाला' की तर्ज पर रची गयी है। यदि बच्चन जी की 'मधुशाला' हालावाद पर आधारित है तो 'चा का प्याला' प्यालावाद से प्रेरित है। इस दृष्टि से ईश जी हालावाद के समानान्तर प्यालावाद के प्रवर्तक कहे जा सकते हैं। आधुनिक जीवन में लोकाचार और काफी सीमा तक शिष्टाचार का पर्याय बन चुकी चाय के महत्व पर काव्य कृति का सृजन कर ईश जी ने सचमुच एक नया और विलक्षण प्रयोग किया है। 'चा का प्याला' के बहाने 'ईश' जी ने समकालीन समय की नब्ज को पकड़ने का प्रयास तो किया ही है कथित सभ्य समाज और आधुनिक जीवन की विसंगतियों और विद्रूपों पर भी खुलकर कठोर प्रहार किये है। 'चा का प्याला' का मुख्य स्वर व्यंग्य है और यह अलेक्जेंडर पोप के 'रेप ऑव द लाक' की तरह काव्य, विशेषकर छन्द में रचा गया व्यंग्य महाकाव्य (माक एपिक) है जिस तरह अर्वाचीन इंग्लैण्ड में कॉफी को बेदखल कर चाय बुद्धिजीवियों और राज परिवार सहित कथित कुलीन वर्ग का पसन्दीदा पेय बनती जा रही थी और महलों में आयोजित होने वाली चाय दावतों की पोप ने जमकर भर्त्सना की थी उसी शैली में 'ईश' जी ने चाय के लोकाचार, शिष्टाचार और भ्रष्टाचार का अंग बनने और भारतीयों के इसके प्रति रुझान का जमकर उपहास किया है। बस अन्तर यही है कि जहाँ पोप की व्यंग्योक्तियाँ कटु और अधिक तीखी हो गयी है वहीं 'ईश' जी ने कहीं सभ्यता और शिष्टता का दामन नहीं छोड़ा है। उनका व्यंग्य अभिव्यक्ति के मामले में बिल्कुल 'मृदु', संयत और शालीन है। व्यंग्यात्मक अभिव्यक्ति की मृदुता, शिष्टता और शालीनता आधुनिक व्यंग्य काव्य में दुर्लभ है। साथ ही, श्रमसाध्य भी। इस दृष्टि से ईश जी एक बड़े और समर्थ रचनाकार नजर आते हैं। जब 'ईश' जी लिखते हैं,

" आदत पड़ जाने पर तो यह ! 

तन-मन तक बेकल करती। 

शकल मुहर्रम बन जाए पर,

 इसके बिना न कल पड़ती।।

रक्खा क्या संध्या नमाज में, 

इसका चुम्बन कर डाला। 

उन्हें 'ईश' खुद ही मिल जाते,

 मिलता जब चा का प्याला

तब वे केवल चाय जैसे लोकाचार की सार्वभौमिकता को ही स्वीकार नहीं कर रहे होते बल्कि परोक्ष रूप से एक सहज मानवीय वृत्ति का भी उद्घाटन कर रहे होते हैं। 'चा का प्याला' साहित्य का एक ऐसा स्पेक्ट्रम है जिसमें जीवन का हर रंग अपने मनोहारी रूप में प्रतिबिम्बित होता है।

     'चा का प्याला' की भूमिका में विद्वान समीक्षक ने ठीक ही लिखा है "चा के प्याले के माध्यम से समूचे परिप्रेक्ष्य की मुकम्मल तस्वीर प्रस्तुत करने में कवि का शिल्प विधान अपूर्व रूप से सहायक हुआ है। अनुभूति में रागात्मकता, शब्दों में कोमलता, विचारों में सम्प्रेषणीयता, अभिव्यक्ति में ऋजुता तथा व्यंग्योक्तियों में मर्मस्पर्शिता कवि के रूप सज्जा और शिल्प विधान की उल्लेखनीय खूबियां हैं। कवि ने परम्परागत शब्दावली से निकलकर ऐसी शब्दावली का वरण किया है जिसमें सामान्य विषयों से सम्बद्ध गहन अनुभूतियों की अपूर्व क्षमता है।

     'चा का प्याला' कवि 'ईश' जी का आधुनिक समय, समाज और भारतीय संस्कृति के सम्बन्ध में दिया गया साहित्यिक वक्तव्य ही नहीं है बल्कि लोकाचार की शोकांतिका भी है। इसके निहितार्थ व्यापक है। और समीक्षकों के लिए भी इसे ठीक व्याख्यायित- परिभाषित कर पाना कठिन है। एक कवि रूप में अभी 'ईश' जी का समुचित आकलन नहीं हुआ है। यदि किसी ने ऐसा किया तो निश्चित ही कवि 'ईश' के व्यक्तित्व और कृतित्व के कुछ अनछुए आयाम उद्घाटित होंगें ।

(यह आलेख उस समय प्रकाशित हुआ था जब श्री ईश जी साहित्य साधना कर रहे थे )


✍️ राजीव सक्सेना 

प्रभारी सहायक निदेशक (बचत) 

 मथुरा

रविवार, 15 अगस्त 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ईश्वर चन्द्र गुप्त ईश के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर वाट्स एप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तंभ के तहत 13 एवं 14 अगस्त 2021 को दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन



 
   वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ईश्वर चन्द्र गुप्त ईश के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर 13 एवं 14 अगस्त को दो दिवसीय ऑन लाइन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। साहित्यकारों ने कहा कि सादगी और सरलता की प्रतिमूर्ति ईश्वर चन्द्र गुप्त ईश ने अपनी कविताओं के माध्यम से अध्यात्म की गंगा बहाई वहीं उनकी पैनी दृष्टि समाज के प्रत्येक वर्ग की पीड़ा और उसकी कसक तक गई है।
मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ
की सातवीं कड़ी के तहत आयोजित इस कार्यक्रम में संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने उनका जीवन परिचय प्रस्तुत करते हुए कहा कि सात दिसंबर 1925 को मुरादाबाद में जन्में ईश्वर चन्द्र गुप्त ईश की साहित्य के प्रति रुचि किशोरावस्था से ही थी। वर्ष 1991 में उनकी पहली काव्य कृति 'ईश गीति ग्रामर' प्रकाशित हुई। इसके पश्चात उनकी  'चा का प्याला', 'ईश दोहावली', 'ईश अर्चना',  'ईश अंजलि', 'हिंदी के गौरव' और 'चिंतन मनन' काव्य कृतियां प्रकाशित हुईं। उनकी रचनाएं विभिन्न साझा काव्य संकलनों  उन्मादिनी (संपादक शिवनारायण भटनागर साकी ), समय के रंग (संपादक अशोक विश्नोई व डॉ प्रेमवती उपाध्याय), उपासना (संपादक अशोक विश्नोई ), 31 अक्टूबर के नाम( संपादक अशोक विश्नोई ) आदि में भी प्रकाशित हुईं। उनका निधन 26 दिसम्बर 2011 को हुआ ।
स्मृतिशेष ईश्वर चन्द्र गुप्त ईश जी के सुपुत्र उपदेश चन्द्र अग्रवाल ने कहा श्री ईश्वर चन्द्र गुप्त 'ईश' एक आदर्श शिक्षक, साधक, कवि और सुहृदय व्यक्ति थे। कवि का भाव संप्रक्त मन जब अपने चिन्तक रूप में चिन्तन-वन्दन करते हुए समकालीन विसंगतियों को देखता है तब सर्वशक्तिमान परमात्मा के समक्ष समर्पित भाव से शान्ति-आनन्द और सुख के प्रति अपनी युवा पीढ़ी के लिये प्रार्थना करता है। ऐसे ही अनुभूति पूर्ण क्षणों में  उन्होंने काव्य लेखन किया । वह विकृति पर चोट करते हैं और नई पीढ़ी को दिशा भी देते हैं । उनकी रचनाओं में सरसता है, लय है, संगीतात्मकता है । आपकी कवितायें राष्ट्रीय चेतना से सम्पन्न हैं। उन्होंने उनकी रचना का पाठ भी किया । 

 
उनके कृतित्व पर विचार व्यक्त करते हुए अम्बिका प्रसाद इंटर कालिज के सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य एवं वयोवृद्ध साहित्यकार सुरेश दत्त शर्मा पथिक ने कहा कि श्री ईश ने वर्तमान समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, अत्याचार तथा कदाचार जैसे विषयों को अपनी काव्य कृति 'चा का प्याला' में छन्दोबद्ध करके कर्णप्रिय बनाने का महत्वपूर्ण कार्य किया है । उनकी पैनी दृष्टि समाज के प्रत्येक वर्ग की पीड़ा और उसकी कसक तक गई है। दुखी जनता की आहों के प्रति श्री ईश को सच्ची सहानुभूति है। वह बचपन से ही आस्तिक तथा राष्ट्रवादी विचारधारा के थे जो उनकी रचनाओं में स्पष्ट दिखाई पड़ता है । 
   
महाराजा हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य एवं पूर्व प्रबंधक साहित्यकार डॉ विश्व अवतार जैमिनी ने कहा कि बच्चन जी के हालावाद की तर्ज पर कवि ईश ने प्याला वाद का प्रवर्तन किया है। चा के प्याले को प्रतीक मानकर उन्होंने आज के सुविधा भोगी समाज, भ्रष्टाचार में लिप्त शासनतंत्र तथा भौतिकतालीन परिवेश पर अनेक व्यंग और कटुक्तियों का प्रयोग किया है।चाय का प्याला सभ्यता का आला है । कला की अंगड़ाहट है। मस्ती की महक है। प्राण शक्ति प्रदायक सस्ता टॉनिक है। कलयुग की संजीवनी बूटी है। एकता की कुंजी है। अखण्डता की माला है। श्रम हारिणी शक्ति है। अमृत की धारा है। पुण्यों का स्थान है। भक्त वत्सला है। दुःखभंजिका है । मरुथल का नीर है। मन के ताले की कुँजी है । भावों का सिन्धु है। श्रद्धा और निष्ठा को बखेरने वाला चा का प्याला धन्य है। कवि की न जाने कितनी नवोन्मेष कल्पनायें चाय के प्याले में समाई हुई हैं। एक पदार्थ का अनेक विध सार्थक उल्लेख कवि की अद्भुत प्रतिभा और काव्य सर्जना शक्ति का अनुपम परिचायक है।
   
दयानन्द आर्य कन्या महाविद्यालय के प्रबंधक उमाकांत गुप्ता ने कहा कि स्मृति शेष श्री ईश्वर चन्द्र गुप्ता की विभिन्न रचनाएं पढ़कर हृदय भाव विभोर हो गया। उनसे मेरा व्यक्तिगत परिचय नही रहा पर अब ऐसा लगता है कि मेरा तो परिचय है।बहुत ही सादगी पूर्ण व्यक्तित्व के स्वामी और उतनी ही सादगी पूर्ण सुन्दर रचनायें!! "हिन्दी के गौरव " में हिन्दी के लब्ध प्रतिष्ठित कवियों का परिचय, यूँ जैसे उन कवियों का पूरा व्यक्तित्व व उनकी शैली साक्षात सामने हो । श्री ईश्वर चन्द्र गुप्ता जी -सुयोग्य गुरु व सरस्वती पुत्र को नमन ।
दयानन्द आर्य कन्या महाविद्यालय की पूर्व प्राचार्या डॉ स्वीटी तलवाड़ ने कहा कि उनकी 'अज्ञात शहीद' कविता ने उद्वेलित कर दिया। हिंदी साहित्य की विभिन्न विभूतियों का काव्यात्मक परिचय श्लाघनीय है। 'ईश दोहावली' के दोहे चाहे नीतिपरक हों या धर्माचरण सम्बन्धी, श्रृंगार हो या हास्य-व्यंग्य सम्बन्धी और श्लोकनुवाद सभी एक से बढ़ कर एक हैं। 'चा का प्याला' पढ़ कर तो मेरी कैलाश मानसरोवर की यात्रा व दार्जलिंग की यात्रा की स्मृतियाँ जागृत हो गईं।
       
के.जी.के.महाविद्यालय मुरादाबाद में हिंदी विभाग की अध्यक्ष डॉ मीरा कश्यप ने कहा कि ईश्वर चन्द्र गुप्त जी मुरादाबाद के लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकारों में अपना मूर्धन्य स्थान बना पाते हैं तो यह उनके जीवन की सादगी और सरलतम रूप के कारण ही सम्भव हुआ है ,समसामयिक विषयों पर उनकी रचनात्मकता का प्रखर रूप उनकी कृतियों को कालजयी बनाती हैं । उनकी रचनाओं में ,वंदना नीति परक विचारों के साथ ही, धार्मिक आचार  -विचार ,स्वास्थ्य व श्रृंगार परक कवितायें देखने को मिलती हैं, उनकी कुछ कवितायें मानस को उद्वेलित भी करती हैं ,मानो कवि का निश्छल रूप उन कविताओं में तिरता रहता हो। अध्यात्म की प्रखरता ही उनकी कविता का प्रतिपाद्य रही है ,जीवन को सात्विक रूप में जीने वाले निरभिमानी ईश जी शुद्ध अंतःकरण से राष्ट्र और समाज उद्धार की चिंता करते हुए सुसंस्कृत मनोभावों से रचे बसे शालीन व्यक्तित्व रखते थे । उनकी कवितायें कोरा शब्द मात्र नहीं हैं, वरन भावों व सम्वेदनाओं का पूर्ण संगुम्फन हैं ।  गाँधी जी के विचारों का उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर पूरा प्रभाव दिखायी पड़ता है । 
       
मथुरा के प्रभारी सहायक निदेशक (बचत) राजीव सक्सेना ने कहा कि 'चा का प्याला' के बहाने 'ईश' जी ने समकालीन समय की नब्ज को पकड़ने का प्रयास तो किया ही है कथित सभ्य समाज और आधुनिक जीवन की विसंगतियों और विद्रूपों पर भी खुलकर कठोर प्रहार किये है। 'चा का प्याला' का मुख्य स्वर व्यंग्य है और यह अलेक्जेंडर पोप के 'रेप ऑव द लाक' की तरह काव्य, विशेषकर छन्द में रचा गया व्यंग्य महाकाव्य (माक एपिक) है जिस तरह अर्वाचीन इंग्लैण्ड में कॉफी को बेदखल कर चाय बुद्धिजीवियों और राज परिवार सहित कथित कुलीन वर्ग का पसन्दीदा पेय बनती जा रही थी और महलों में आयोजित होने वाली चाय दावतों की पोप ने जमकर भर्त्सना की थी उसी शैली में 'ईश' जी ने चाय के लोकाचार, शिष्टाचार और भ्रष्टाचार का अंग बनने और भारतीयों के इसके प्रति रुझान का जमकर उपहास किया है।
स्मृतिशेष ईश जी की पुत्रवधु श्रीमती मीतु गुप्ता
(मेरठ) ने कहा कि कार्यक्रम से हम सभी अतीत की स्मृतियों में खो गए । उन्होंने उनका रचित भजन भी प्रस्तुत किया -------- 

       
वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई ने कहा कि ईश्वर चन्द्र गुप्त ईश जी सादगी, विनम्रता की प्रतिमूर्ति थे। मैंने सन 1984 में " इक्कतीस अक्टूबर के नाम " संकलन में " ईश " जी की रचना प्रकाशित की थी । इसके लोकार्पण समारोह में भी ईश जी उपस्थित थे परन्तु मेरा उनसे कोई विशेष परिचय नहीं था।सात वर्ष पश्चात सन 1991 की बात है। कुर्ता पजामा सर पर सफेद टोपी और हाथ में छतरी लिए हुए मेरी प्रेस के मुख्य द्वार पर खड़े होकर वह इधर उधर देख रहे थे, तभी मेरा ध्यान उनकी ओर आकर्षित हुआ।मैं बाहर आया और अभिवादन के उपरांत उनको अन्दर ऑफिस में ले गया । बात चीत के बीच में भी वहीं सादगी झलक रही थी जो उनके पहनावे को देखकर झलक रही थी। परिचय के पश्चात उन्होंने कहा कि मैं एक पुस्तक प्रिंट करवाना चाहता हूँ। मैनें पुस्तक पढ़ी तो उनके लेखन से एक सफल रचनाकार का परिचय प्राप्त हुआ। पुस्तक का नाम था " ईश गीति ग्रामर" यह उनकी प्रथम कृति थी। यहां से ही " ईश " जी की कृतियों का प्रकाशन प्रारंभ हुआ यह सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। बस यहीं से प्रतिदिन मिलना जुलना होता रहा। कई गोष्ठियों में उनके साथ रचना पाठ करने का अवसर मिला।उनकी रचनाओं से आप सभी परिचित हो चुके हैं ,जो पटल पर हैं।अनेक बार उनके घर पर आना जाना लगा रहा, मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि वह इतने सीधे साधे ,विनम्र कद के बड़े रचनाकारों में से एक थे ऐसा व्यकितत्व आज के युग में कम ही देखने को मिलते हैं।
       
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय अनुपम ने कहा कि भाषा पढ़ाते समय आने वाली कठिनाइयों को ध्यान में रखकर ही उन्होंने विद्यार्थियों के लाभ के लिए ही पुस्तकों का सृजन आरम्भ किया था। चा का प्याला के माध्यम से उन्होंने सामाजिक विसंगतियों की ओर ध्यान आकृष्ट किया है। वह नैतिक मूल्यों की रक्षा और राष्ट्रीय चेतना के विकास के लिए मार्गदर्शन की धारा के रचनाकार थे। सिर पर गांधी टोपी,शरीर पर कमीज़, पायजामा, पांवों में सादा चप्पल/जूता, बारिश के मौसम में हाथ में काला छाता निकिल कलर काहैन्डिल, आंखों पर चश्मा और मुख मण्डल पर सदा मुस्कान,यही उनकी पहचान थी। 
       
प्रख्यात व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि  वह एक आदर्श शिक्षक, शैक्षिक प्रशासक और अत्यंत भले मानवीय मूल्यों को जीकर उन्हें आगे ले जाने वाले व्यक्तियों में से थे।सादा जीवन उच्च विचार के पोषक ईश जी ने शिक्षा, समाज और साहित्य को जो दिया वह अपने आप में अनुकरणीय है। मैं ईश जी के व्यक्तित्व को ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के व्यक्तित्व में देखना चाहूंगा। विद्यासागर जी आदर्श शिक्षक और समाज के बदलावों की सत्यनिष्ठ प्रतिमूर्ति थे। ईश्वर उनका नाम भी था और आदरणीय गुप्त जी का भी। ईश्वर और ईश समानार्थी होकर भी कुछ अलग हैं। ईश्वर तो स्वामी है और है ईश भी स्वामी ही पर ईश का सामान्य अर्थ होता है,भला। आदरणीय ईश जी भलेपन की आदर्श प्रतिमूर्ति थे। ईश्वर भलेपन की पराकाष्ठा है। ईश्वर और मनुष्य के इस अंतर को इन शब्दों में ही देखना होगा। मेरा भी आदरणीय से परिचय रहा है और उनका आशीष तथा सराहना भी मेरे हिस्से में आई है।मेरा सौभाग्य है। साहित्य होता आया है और साहित्य होता रहेगा।किसी का नाम होगा और किसी का काम होगा।वह काम के व्यक्ति थे।वह जो कर सके, उन्होंने किया और समाज को अपने सात्विक विचार की लोककल्याणी रचनाएं दीं। यही साहित्य का सत्कार्य है। वह हिन्दी व्याकरण के मर्मज्ञ थे।इसे उन्होंने काव्यात्मक भाषा में समझाया।कई कवियों पर अपनी छोटी कविताओं से उन्होंने उन कवियों का सार तत्व सबके सामने रख दिया। कविता ने कई परंपराओं को जिया है।यह भी एक परंपरा थी कि कवि की संपूर्णता में कुछ कह दिया जाय।यह कार्य उन्होंने कर दिखाया। उन्हें पढ़ लो,कवि को पूरा समझ जाओगे।यह लेखन की बड़ी कला है। उनकी छुटपुट कविताएं इस समाज को चेताने और राष्ट्र दायित्व निभाने के लिए जगाने को पर्याप्त हैं। उनके भीतर रची-बसी राष्ट्रीय संवेदना यह सिखाने के लिए भी पर्याप्त है कि राष्ट्र सर्वोपरि है। ईश जी प्रो.महेन्द्र प्रताप जी के घर अंतरा की गोष्ठियों में भी आते रहे हैं। वहां उपस्थित व्यक्तियों को उनकी निष्पक्ष वाणी से पर्याप्त शिक्षाएं मिली हैं।वह आदर्श शिक्षक थे, इसीलिए उन्होंने अपने लेखन से शिक्षाएं ही दी हैं। 
     
वरिष्ठ साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी ने कहा कि यह आवश्यक नहीं कि हर किसी से हमारा व्यक्तिगत परिचय ही हो।हम उनके साथ रहकर ही उनके जीवन की विशेषताओं को समझ सकें। जो लोग समाज हित,देश हित को ही अपने जीवन का एक-एक क्षण खर्च करके  रोते  हुए चेहरों पर मुस्कान लाने को ही सर्वोत्तम लक्ष्य मान लेते  हैं ऐसे व्यक्ति किसी  परिचय के मोहताज नहीं होते।ऐसी ही महान शख्सियतों में से एक,स्मृति शेष श्री ईश्वर चंद्र गुप्ता "ईश"भी हैं। चा का प्याला तो ईश जी की यादगार कृति है।जिसमें अंग्रेजों की देन (चाय संस्कृति)के सर्वव्यापी विस्तार  को बहुत ही सरल,सरस,और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है।आपकी प्रत्येक कृति सभी सुधी पाठकों को प्रेरित करने के साथ-साथ साहित्य सृजन के लिए प्रेरणा स्रोत एवं मार्ग दर्शक की भूमिका निभाती रहेंगी।
       
वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा कि कीर्तिशेष प्रभु सत्ता में विलीन कवि ,साहित्यकार ईश्वर गुप्त ईश जी की रचना धर्मिता अपने आप में अनूठी थी । उनके द्वारा ,चाय का प्याला बीते दशकों में अत्यधिक प्रसिद्ध को प्राप्त हुई ।व्यंग  हास्य की अभिव्यंजना के साथ शिक्षात्मक भी है । ईश दोहावली में उनके नीतिपूर्ण अनुशासन  की राह दर्शाते दोहे है ।संसार के उन सभी मुख्य घटकों पर रचना का शानदार उद्घोष किया है ख़ुशी ,गम मृत्युजन्म की अनोखी मिलन वियोग आपाधापी जीवन की अनेकानेक विषमताओं का दृश्य उकेरा है ।
वरिष्ठ साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा कि
 विवाह के अवसर पर सेहरा, पुत्र के विवाह में कृतज्ञता ज्ञापन करते हुए आशु कविता का सृजन करना, विवाहोपरांत पुत्र को भावी जीवन हेतु शिक्षा देना, श्रद्धांजलि सभा में काव्यात्मक श्रद्धांजलि प्रस्तुति आदि तमाम उदाहरण ऐसे हैं जो उनकी सहज रचनाधर्मिता के गुण को दर्शाती हैं।फरवरी 1994 में प्रकाशित उनकी काव्यकृति 'चा का प्याला 'अपने में नितांत अनूठी कृति है, जिसमें उन्होंने चाय की संस्कृति, (जो हमारे देश में अंग्रेजों की देन रही), के सर्वव्यापी स्वरूप का कहीं व्यंगात्मक, तो कहीं गंभीर चित्रण किया है।  जिस तरह बच्चन जी ने मधुशाला के माध्यम से विभिन्न सामाजिक, व्यावहारिक परिस्थितियों पर मधुशाला के प्रभाव का चित्रण किया है, ठीक वैसे ही ईश्वर चंद्र जी ने उसी छंद विधान में विभिन्न सामाजिक, व्यावहारिक परिस्थितियों में चाय के प्याले के प्रभाव  को चित्रित किया है। वर्ष 2000 में प्रकाशित उनकी कृति 'हिन्दी के गौरव' भी स्वयं में अनूठी विशिष्टता रखती है। उनकी रचना 'अज्ञात शहीद' स्वतंत्रता के बाद की परिस्थितियों पर उपजे सहज आक्रोश को चित्रित करती है। उनका काव्य संसार अत्यंत सहज है, उनकी रचनाओं में आध्यात्म, ईश्वर की भक्ति और समर्पण का चिंतन प्रमुखता से मिलता है। उनकी तमाम अप्रकाशित रचनाएं भी हैं जो विभिन्न सामाजिक, पारिवारिक तथा व्यावहारिक अवसरों पर लिखी गयीं हैं, इन रचनाओं को पढ़ने पर स्पष्टत: पता चलता है कि काव्य सृजन उनके सामान्य संवाद का हिस्सा था, तभी वह सहजता में सामान्य बोलचाल की भाषा में प्रत्येक अवसर पर कविता का सृजन कर लेते थे। ये सभी कविताएं अत्यंत उत्कृष्ट और शिक्षाप्रद हैं । इतने सरल, सहज व्यक्तित्व के स्वामी, सहज रचनाकार श्री ईश्वर चंद्र गुप्त जी के संदर्भ में जानकर मैं स्वयं को भाग्यशाली समझ रहा हूँ। 
रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश  ने कहा कि ईश्वर चन्द्र गुप्त ईश की रचनाओं में गहरी भगवत भक्ति ,ईश्वर के प्रति समर्पण भाव ,राष्ट्र और समाज के उद्धार की चिंता देखने को मिलती है । आप के काव्य में अध्यात्म का स्वर प्रमुख और प्रखर रूप से उपस्थित हो रहा है। परमात्मा की भक्ति आपका प्रमुख लक्ष्य है ।जीवन को सात्विक विचारों से भरकर एक सुंदर सृष्टि की रचना आपका ध्येय है। व्यक्तिगत रूप से आप के काव्य की संरचना इस प्रकार है कि जिसमें निरभिमानता का भाव है तथा सब प्रकार के दोषों को दूर करके प्रभु के चरणों में स्वयं को अर्पित करने की मनोकामना निवेदित है।
     

मुम्बई के साहित्यकार प्रदीप गुप्ता ने कहा भाई मनोज आप को आभार,  जो आपने मुरादाबाद के साहित्यिक इतिहास के एक सुनहरे पृष्ठ से परिचित करा दिया , अच्छे साहित्यकार के साथ ही एक अच्छा इंसान भी होना ज़रूरी है। ईश जी वास्तव में एक अच्छे इंसान थे। उनके परिवार ने जिस तरह से उनकी यादों को संजो रखा है उसके लिए भी बधाई।
       
दिल्ली के साहित्यकार आमोद कुमार अग्रवाल ने कहा स्मृति शेष स्व.ईश्वर चन्द्र " ईश" के विषय मे पटल पर प्रस्तुत विद्बानो के उदगार, "ईश" जी के परिवार जनो,पुत्र-पुत्रियों, पौत्रियों द्बारा व्यक्त आत्मीय भाव एवं उनकी रचनाओं को पढ़ कर मै भावुक हो गया हूँ। सरलता, सादगी,स्नेह, वात्सल्य,भक्ति, आदर्श शिक्षक एवं आस्था जनित व्याकुलता का संगम था उनका व्यक्तित्व। 
       
कोटा(राजस्थान) की साहित्यकार इंदु सेठ ने कहा ईश-अँजली काव्य-संग्रह ईश्वर चंद्र गुप्त की समसामयिक, सामाजिक, व्यक्तिगत, राष्ट्रीय-प्रेम आदि भावनाओं से गूँथित काव्य पुष्पमाला है जिनकी सुगन्धि जब तक सहृदय पाठक हैं तब तक मलिन नहीं हो सकती। भावपक्ष के साथ व्यंग्य, चित्रात्मकता, मानवीकरण एवं उपमा, रूपक, भ्रान्ति, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास,उदाहरण,अतिश्योक्ति,...
,संदेह, पुनरुक्ति आदि अंलंकारों की नैसर्गिक-छटा से कविताएँ श्रृंगारित स्वमेव ही हो गयीं है।
     
साहित्यकार अशोक विद्रोही ने कहा कि अलौकिक व्यक्तित्व के स्वामी स्मृति शेष मनीषी श्री ईश्वर चन्द्र ईश जी से साक्षात्कार होने का मुझे भी सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ परन्तु उनकी साहित्यिक सर्जना को पढ़ आत्मसात करते हुए मुझे बिल्कुल वही अनुभूति हो रही है जैसे उनसे मेरा यह परिचय नया नहीं है। "चा का प्याला " मुझे हरिवंशराय बच्चन जी की मधुशाला का क्लोन सी लगी उसमें बड़े मनोयोग से बड़े ही मनोरंजक ढंग से कवि विभिन्न व्यक्तित्वों की विवेचना चाय के प्याले के साथ साथ करता है ।चाय की विवेचना इतनी विस्तृत हो  सकती है शायद ही इससे पहले किसी ने सोचा हो विश्वासघात और वैमनस्य तक को चाय के प्याले के साथ दिखाया जाना कितना अद्भुत है।
     
रामपुर के साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक ने कहा कि  साहित्यकार स्मृतिशेष श्रद्धेय ईश्वरचंद्र गुप्त "ईश" जी के बारे में कुछ कहना सूर्य को दीपक दिखाने के समान ही होगा। वह एक आदर्श शिक्षक,प्रखर वक्ता तथा सामाजिक विसंगतियों एवं सामयिक विषयों पर पैनी दृष्टि रखने वाले मूर्धन्य साहित्यकार थे।उन्होंने अपनी साहित्य साधना के माध्यम से "चा का प्याला",  "ईश गीति ग्रामर" और "चिंतन-वंदन" जैसी अनेक श्रेष्ठ कृतियाँ भारतीय समाज को प्रदान कीं।व्याकरण जैसे नीरस विषय  को भी काव्य के रूप में ढालकर साहित्यकारों को सुलभ कराना आदरणीय ईश जैसे प्रतिबद्धत  रचनाकार के बस की ही बात थी। मुझे पटल पर उपलब्ध सामग्री से उनकी कुछ रचनाएँ पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।उनका सृजन कथ्य,भाव और शिल्प के प्रति असाधारण प्रतिबद्धता दर्शाता है।हर छोटी-बड़ी बात को उन्होंने बहुत ही सरल और सहज भाषा में काव्य के रूप में  ढालकर आम जन तक पहुँचाया है।उनकी यही ख़ूबी उन्हें एक विशिष्ट साहित्यकार का दर्जा प्रदान करती है। हिंदी साहित्य में उनका योगदान सदैव स्मरणीय रहेगा।
         
हसनपुर (जनपद अमरोहा) के साहित्यकार मुजाहिद चौधरी ने कहा कि समूह में आयोजित कार्यक्रम में स्मृति शेष ईश्वर चंद्र गुप्त जी ईश के साहित्यिक योगदान को पढ़कर बहुत अच्छा लगा । यह कार्यक्रम निश्चित तौर पर उन साहित्यकारों के लिए वास्तविक सम्मान है जो हमें छोड़ कर जा चुके हैं और हमारे लिए अभिमान है कि हम उनके वंशज हैं, उन्हीं के आशीर्वाद और प्रेरणा से हम उनकी विरासत को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं । 
     
युवा साहित्यकार राजीव प्रखर ने कहा कि कीर्तिशेष ईश्वर जी का रचनाकर्म जीवन की सादगी व सरलता में गुँथा हुआ है।  बिना किसी तड़क-भड़क और लाग-लपेट के जीवन को ऊँचाईयों की ओर ले जाने वाली अत्यंत उपयोगी बातों को जिस प्रकार उन्होंने सरल व सुबोध भाषा में पाठकों के सम्मुख रखा, वह निश्चित रूप से वंदनीय है। व्यक्तिगत रूप से मुझे यह भी अनुभव हुआ कि ईश्वर जी के रचनाकर्म का अधिकांश हिस्सा अध्यात्मिक व दैनिक जीवन पर ही केन्द्रित रहा होगा। एक आदर्श जीवन के सिद्धांतों को ईश्वर जी ने बहुत ही सरल व सात्विक रूप से अपनी रचनाओं में पिरोया।
       
युवा साहित्यकार फरहत अली खान ने कहा कि माँ से कविता का पहला सबक़ सीखने वाले ईश जी की रचनाओं में समाज को बेहतरी की तरफ़ लाने की एक कोशिश और फ़िक्र झलकती है। इस हवाले से इन के दोहों का ज़िक्र किया जा सकता है। 'चाय' की तारीफ़ में इतना कुछ लिखा जा सकता है, कमाल की बात है। ये नज़ीर अकबराबादी की रिवायत है। इस लिहाज़ से 'चा का प्याला' एक ख़ास किताब है, जिस में हास्य के रंग जगह-जगह मिलते हैं।
   
अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा ने कहा कि सन्1992 में संस्कार भारती द्वारा प्रकाशित शीर्षक अज्ञात शहीद नामक शीर्षक से उद्धृत कविता---
शौर्य से रण शंख ध्वनि में ,गूंज गर्जन की जगा दो 
रक्त से लोहित मचलती ,बेड़ियों की झनन गा दो
 सामयिक रूप से शहीदों के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करती है ,शहीदों की स्मृति में एक शौर्य का शंखनाद ही है यह । उनके पूरे परिवार के लिए ही नहीं हम सभी के लिए निश्चय ही ये गौरव के क्षण हैं कि इस पटल के माध्यम से आदरणीय श्री ईश जी की साहित्यिक स्मृतियाँ सहेजी जा रहीं हैं और मुझ जैसी अनभिज्ञ किन्तु साहित्य प्रेमी को उनके व्यक्तित्व के बारे में जानने का अवसर प्राप्त हो रहा है । धन्यवाद डॉ मनोज रस्तौगी जी जिनकी कठिन साधना से माध्यम से हम मुरादाबाद की पावन काव्य गंगा में डुबकी लगा रहें है।
     
कवयित्री डॉ शोभना कौशिक ने कहा कि स्मृति शेष श्री ईश्वर  चन्द्र गुप्त जी साहित्य जगत के चिर स्मरणीय विभूति हैं। वे कितने सादगी भरे व्यक्तित्व के स्वामी थे वह उनकी रचनाओँ में स्पष्ट रूप से झलकता है उनकी " चा " का प्याला एक अत्यंत लोकप्रिय व सबको सम्मोहित करने वाली रचना है । उन्होंने अपनी रचनाओं में समाज का प्रत्येक पहलू का साक्षात्कार कराया। यह कहना अनुचित न होगा कि उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से " गागर में सागर " भरने जैसा कार्य किया। 
     
फरीदाबाद की साहित्यकार सीमा वर्मा ने कहा कि  मनोज जी द्वारा किए जाने वाले साहित्य मंथन से नित प्रतिदिन प्रकट हो रहे अमृत का रसास्वादन साहित्य प्रेमियों के लिए अप्राप्य भोग को प्राप्त करने जैसा है । स्मृति शेष श्री ईश्वर चन्द्र गुप्त जी के जीवनकाल की घटनाओं को ,  रचनाओं  को  ,  चित्रों को  व परिवार जनों के उद्गारों को ग्रुप में प्रस्तुत करके एक बार पुनः आपने साहित्य प्रेमियों की क्षुधा को शांत किया है । स्मृति शेष श्री ईश्वर चन्द्र गुप्त जी की जितनी भी रचनाएँ  पढ़ पाई सभी पढ़ीं ..... अभिभूत हो गई....... बेहद सादा शब्दावली , कृत्रिम प्रसाधनों से दूर दिल में उतर जाने वाले प्रासंगिक भाव ,  प्रेमपगे पत्र से लगे ।  और उनकी प्रत्येक रचना रचनाकार के स्वयं के संयमित होने, सादा होने, निश्छल होने और मानवमात्र के प्रेमी होने का परिचय देती दिखीं । अहोभाग्य कि इस जीवन में ऐसे सुन्दर भावों की रचना करने वाले व्यक्तित्व को जान पाए  ।
     
युवा कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट   ने कहा कि चा का प्याला और अज्ञात शहीद रचनाओं ने मुझे अत्यधिक प्रभावित किया।शब्द कौशल हो अथवा भावों की गहनता और सार्वभौमिकता,आप इन रचनाओं में इन दोनों ही पक्षों  के भावविभोर कर देने वाले दर्शन पाते हैं और कवि के प्रति श्रद्धावनत हो जाते हैं। बहुत बहुत धन्यवाद ग्रुप एडमिन रस्तोगी जी,ईश जी के सभी परिवारी जन,सभी वरिष्ठ समकालीन साहित्यकार जिनके द्वारा चित्र,डायरी अंश,संस्मरण,समीक्षा,प्रेरक प्रसंग,अपने अनुभव आदि साझा किये गए और  हम स्मृति शेष श्री ईश्वर चंद्र ईश जी की प्रतिभा से साक्षात्कार कर पाये।
 
सम्भल के साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा  ने कहा कि साहित्यकार का परम धर्म है कि वह समाज में व्याप्त अव्यवस्थाओं पर लिखने के लिए, अपनी कलम को धार दे, ऐसा ही कुछ किया ,प्रसिद्ध कलमकार श्री ईश्वर चंद्र गुप्त जी ने अपने जीवन में । उन्होंने समाज को नई दिशा देने का काम किया ।समाज में बेलगाम राजशाही एवं केवल कुछ चीजों पर ही बेहद खर्च करने की व्यवस्था एवं परम्पराओं और राजनीति में झूठे वादों पर अपनी रोजी-रोटी पकाने वाले,आधुनिक नेताओं पर उन्होंने पैने व्यंग्य किये हैं वहीं अपनी रचनाओं के माध्यम से संस्कारों की जंजीर को और अधिक मजबूत करने, व्यवहारिक ज्ञान को आगे बढ़ाकर,जीवन में हर समय प्रसन्न रहने का मंत्र भी दिया है।
जकार्ता(इंडोनेशिया) की साहित्यकार वैशाली रस्तोगी ने कहा कि मेरा परम सौभाग्य है कि मुझे मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार कीर्तिशेष ईश्वर चन्द्र गुप्ता "ईश" जी की कृतियां पढ़ने व उन्हें जानने का सुअवसर मिला। उनकी रचनाएं पढ़ते हुए ऐसा लगा जैसे विभिन्नता में एकता हो। इतने सरल शब्दों में आकाश की ऊंचाइयों तक वाली बात कह जाना, हृदय को गहराइयों तक छू गया। "चिंतन वंदन" कृति की "व्याकुल मन" रचना बहुत अच्छी लगी,जिसमें "ईश" जी ने बड़ी सरलता से अध्यात्म से जुड़ी सच्चाई को, भाव विभोर हो जाने वाले शब्दों में कहा है----
"एकाग्र-मनन-चिंतन मन से;
मन ही मन में, मन का होगा।
तो "ईश" लगन वंदन से ही;
मन-मंदिर में दर्शन होगा।।"
यही अध्यात्म का सार है, यही मोक्ष है, यही मुक्ति है।
साक्षात प्रभु का दर्शन मन मंदिर में ही है।
इसके अतिरिक्त " सूना है पापी भी तार देते हैं", वेद व "गीता के दस प्रेरक सूत्र" आदि कृतियां मेरे मन में अमिट छाप छोड़ गईं।
कवयित्री डॉ इंदिरा रानी ने कहा कि स्मृति शेष श्रद्धेय श्री ईश्वर चंद्र गुप्ता जी के विषय में पटल पर विद्वानों के उद्गार पढ़ कर मैं अविभूत हूँ. मुझे उनके दर्शन का सौभाग्य प्राप्त नहीं हो सका. पटल के माध्यम से उनके असाधारण व्यक्तित्व और कृतित्व से परिचय हुआ। डॉ मनोज रस्तोगी जी को बहुत बहुत बधाई और साधुवाद! रस्तोगी जी ने मुरादाबाद के साहित्य रूपी सागर में गहरे पैठ कर नायाब हीरों से हमें परिचित कराया, जिनकी दिव्य कांति हमारा मार्ग दर्शन करती रहेगी. गुप्त जी की पावन स्मृति को शत शत नमन!

स्मृतिशेष ईश जी की पौत्री पारुल(लखनऊ) ने कहा कि  मुझे गर्व है कि मैं हिन्दी के महान साहित्यकार श्री ईश्वर चंद्र गुप्त ‘ईश’ जी की पौत्री हूँ। मेरे बाबा ने अपने जीवन में बड़ा कठिन श्रम किया तथा हमें सदा अनुशासन में रहते हुए निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। मैं बचपन में खेल-खेल में ही उनके साथ उनकी रचनाओं को कंठस्थ कर अपने स्कूल में  यथासंभव लिखती/ सुनाती थी। जिसके लिए मुझे हमेशा मेरे स्कूल में मेरे अध्यापकों द्वारा सराहा जाता था। मैं यह कह सकती हूँ कि उनकी पुस्तकों जैसे “ईश गीति ग्रामर” तथा “हिन्दी के गौरव” की रचनाओं को स्कूल में बच्चों को सिखाना या सुनाना चाहिये। जिससे बच्चों को व्याकरण और हिन्दी के कवियों की जीवनी न केवल सरल लगेगी बल्कि वे उन्हें लम्बे समय तक याद भी रख पाएँगे। उनकी सभी रचनायें बहुत खूबसूरत हैं।
 
स्मृतिशेष ईश जी के सुपौत्र सुलभ अग्रवाल ने कहा श्री मनोज जी का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ , उनके द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम और उनके सतत प्रयासों के कारण, हमारे पूरे परिवार का आज का दिन, बाबा जी की स्मृति में  व्यतीत हुआ, जो हृदय को आनंदित कर गया, भगवान से प्रार्थना हैं कि उनको स्मरण करते हुए हम जीवन व्यतीत करे एवं उनके बताये सन्मार्ग पर चलते रहे । सजल नेत्रों से उनके लिए चार पंक्तियां ---
मधुर स्वभाव मधुर वाणी से,
यह हृदय पुष्प अर्पित करते हैं !
नयनो की इस ज्ञान रश्मि की,
ज्योति को वंदन करते हैं  !!
ईश जी की सुपौत्री मेघा अग्रवाल ने कहा कि उनके दादा ईश जी एक  सत्यवादी, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, आदर्शवादी, सुहृदय,  सिंद्धान्तवादी, अनुशासनप्रिय शिक्षक, कवि थे। उन्होंने कभी भी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। उन्होंने मुझे भेजी एक कविता में लिखा था---
नाना-नानी, बाबा अम्मा, बड़े भाग्य से ही मिलते हैं।
उनके आशीर्वाद वचन से ; जीवन-फूल महक उठते हैं । वास्तव में यह हम सब पौत्र-पौत्रियों का भाग्य ही कहा जायेगा जो हमें उनका प्यार-दुलार और आशीष मिला । उन्होंने उनका लिखा पत्र और कविता भी प्रस्तुत की ।
युवा साहित्यकार दुष्यन्त बाबा ने कहा कि  उनकी रचना 'चा का प्याला' एक अद्वितीय रचना है। बेशक इसको हालावाद की रचना 'मधुशाला' के समान ख्याति न मिल (शायद! गद्य और पद्य की वजह से) सकी हो परन्तु मुझे इस रचना ने व्यक्तिगत रूप से बहुत प्रभावित किया है।  मैं यही कहूँगा कि ईश जी एक ख्याति प्राप्त शिक्षाविद होने के साथ-साथ कुशल आलोचक, समीक्षक और हिंदी विषय के गूढ़ जानकार थे। उनके कृतित्व और व्यक्तित्व को शब्दों में बांध पाना तो सम्भव नही है।
       "यूं तो हिंदी ने पाए  कितने, लेखक और  कवीश् भी।
मुरादाबाद के एक अद्वितीय, सरस् कवि थे 'ईश' जी।।"
गजरौला की साहित्यकार रेखा रानी  ने कहा कि मंच को सादर नमन इसके पश्चात मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार कीर्ति शेष आदरणीय श्री ईश्वर चंद्र गुप्ता "ईश जी की की रचना धर्मिता को गहराई से अध्ययन करने का सुअवसर प्राप्त हुआ जिसके लिए आदरणीय डॉक्टर मनोज रस्तौगी जी को बहुत बहुत शुभकामनाएं एवम साधुवाद ज्ञापित करती हूं। व्यस्तता के कारण बहुत अधिक नहीं पढ़ पाई हूं लेकिन जितना मैंने पढ़ा उस सबसे ऐसा लगा कि आदरणीय ईश जी मुझ जैसी नव रचनाकर के लिए  मार्ग दर्शक की भूमिका में होंगे।  इनकी रचनाओं में सरल सहज रूप के दर्शन होते हैं।
कवयित्री सुदेश आर्य ने कहा कि साहित्यिक मुरादाबाद के माध्यम से एडमिन मनोज जी द्वारा,साहित्यिक महानुभावों के विषय में, जानकारियां प्राप्त कर- नये अनुभवों से अवगत होने का सुअवसर मिल रहा है। इसके लिये बहुत बहुत बधाई ।
         
कवयित्री नजीब जहां  ने कहा कि आदरणीय मनोज रस्तोगी जी के द्वारा किए जाने वाले साहित्य मंथन से हम नवांकुर रचनाकार मुरादाबाद की इतनी महान - महान हस्तियों के बारे में जानकारी प्राप्त कर रहे हैं। इसके लिए वह बधाई के पात्र हैं। स्मृति शेष श्री ईश्वर चन्द्र गुप्त जी को भी शत् - शत् नमन।
 
ईश जी की सुपौत्री नेहा अग्रवाल ने कहा कि  
मेरे दादा जी की कविता पाठ करते समय की छवि आज मेरे मनस पटल पर जीवंत हो गयी है। इतने प्रतिभाशाली व्यक्ति की पोती होने के गर्व से भाव विभोर हो उठी हूं।आज बाबा की स्मृति के धागे में पिरोकर आपने समस्त परिवार को अनुपम आनंद दिया है।मेरा यह दुर्भाग्य रहा कि मैं  दादा जी के साथ ज्यादा नहीं रह पायी क्यों कि मेरे पापा डॉ आदेश अग्रवाल का ट्रान्सफरेबल जाॅब था।
ईश जी के सुपौत्र सुयश अग्रवाल ने कहा कि मैं अपने को बहुत भाग्यशाली मानता हूँ कि मैंने पौत्र के रूप में श्री ईश्वर चन्द्र गुप्त "ईश " जी के घर में जन्म लिया,  एवं  हृदय से उन सभी महानुभावो का आभार प्रकट करता हूँ , जिन्होंने मेरे श्री बाबा जी के बारे में बहुत सी नयी जानकारियाँ दी, जिनसे मैं अभी तक अनभिज्ञ था,क्योंकि  मैं अपने माता जी-पिता जी के साथ बाहर रहा हूँ , इतना मुझे याद हैं कि वह मुझे बहुत प्यार करते थे और पत्र द्वारा हमें सन्मार्ग पर चलने के लिए बराबर प्रेरित करते रहते थे।
ईश जी की सुपुत्री अमिता गर्ग (सहारनपुर) ने कहा कि इस अनूठे कार्यक्रम में हमारी पीढ़ी के लिए दुर्लभ और अमूल्य सामग्री जुटाकर सुंदर प्रस्तुतीकरण के माध्यम से हमारे पिता श्री को बहुत सम्मान प्रदान किया जिससे हमारा पूरा परिवार बहुत गौरवान्वित महसूस कर रहा है। उनकी सुंदर ज्ञानवर्धक रचनाएं व हस्तलिखित रचनाओं का पुनः अवलोकन करते हुए आज हम बहुत भाव विभोर हो रहे हैं।आदरणीय डॉ मनोज रस्तोगी जी को इस भव्य कार्यक्रम की बधाई और आभार  ।
स्मृतिशेष ईश्वर चन्द्र गुप्त के सुपुत्र सर्वेश चन्द्र गुप्ता(मेरठ) ने कहा कि श्री मनोज जी का मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने  हमारे पूज्य पिताजी श्री ईश जी का इस तरह स्मरण कराया जो हमने कभी सोचा नहीं था और कल्पना भी नहीं की थी , पुनः उनकी सारी स्मृतियाँ मानस पटल पर उभर कर आ गयी जो काम पुत्र हो कर सोच भी नहीं पाए वो आपने कर दिखाया ! मैं व मेरा परिवार आपका हृदय से आभार व्यक्त करते हैं , आज पुनः हम उनकी यादों मैं खो गए ।
उनके सुपुत्र डॉ आदेश चन्द्र अग्रवाल( रामनगर) ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि उक्त आयोजन हमारी कल्पना से परे था ।  आयोजन में उनका जीवन परिचय, रचनाओं और यादगार चित्रों की प्रस्तुति निश्चित रूप से श्रमसाध्य और सराहनीय कार्य है । उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विभिन्न साहित्यकारों के विचार और आलेख पढ़कर हम सभी अविभूत हैं। साहित्यिक मुरादाबाद की सराहना के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। इसके लिए मैं, मेरी पत्नी नीरू और हमारा सम्पूर्ण परिवार आपका और सभी साहित्यकारों का हृदय से आभार व्यक्त करता है । 

::::::::::प्रस्तुति:::::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822