सोमवार, 29 नवंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ राकेश चक्र को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ द्वारा "बाल साहित्य भारती सम्मान"


 मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ राकेश चक्र को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ के यशपाल सभागार में रविवार 28 नवम्बर 2021 को  बाल साहित्य के  क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए बाल साहित्य भारती सम्मान प्रदान किया गया।

 डॉ चक्र को विधानसभा सभा अध्यक्ष लखनऊ  हृदय नारायण दीक्षित द्वारा शॉल ओढ़ाकर, प्रतीक चिन्ह व ढाई लाख की धनराशि का चैक देकर सम्मानित किया गया।

   इस अवसर पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के अध्यक्ष डॉ सदानंद गुप्त, निदेशक पवन कुमार, संस्थान की प्रधान संपादक डॉ अमिता दुबे, प्रमुख सचिव (भाषा) जितेंद्र कुमार एवं भारत भारती सम्मान से सम्मानित पांडेय शशिभूषण शीतांशु समेत सभी सम्मानित साहित्कार एवं अतिथिगण उपस्थित थे। 

    पुलिस विभाग से सेवानिवृत्त डा. राकेश चक्र की 100  से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्हें राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान उत्तर प्रदेश द्वारा सुमित्रानंदन पंत पुरस्कार 2007, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा बाबू श्याम सुंदर सर्जना पुरस्कार 2012, साहित्य मंडल श्रीनाथ द्वारा श्रीमती कंचनबाई राठी सम्मान 2018, बाल साहित्य श्री सम्मान उड़ीसा 2018 सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है।

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कविता -- फूल


फूल

बहुत प्यारा लगता है

मासूमियत उसकी

मोह लेती है

सबके हृदय

काँटों के बीच भी

वह है

एक सहज विजेता

ईश्वर प्रदत्त है

उसका यह सौन्दर्य

और भोलापन

किन्तु क्या

यह प्रदत्त ही है

उसकी समस्त पूंजी

उसकी जग विजय का

सम्पूर्ण मूल

कदापि नहीं

कभी ध्यान से देखना

फूल को

जानना फूल को

बारीकी से

तुम जानोगे

इसमें निहित है

उसका निस्वार्थ प्रेम

रूप, कुरूप सबके प्रति

हर याचक भाव को

सहज समर्पित

उसकी विनम्रता

भोर में

सूर्य के साथ

खिलना

सांझ में 

तारों की आगवानी में 

सिमट जाना

विपुल सौन्दर्य का धारक

और ये विनम्र अनुशासन

हाँ, ये ही अर्जित है

फूल का

बिल्कुल विपरीत गुण

उसके जन्मजात सौन्दर्य से

तो समझो

सुन्दरता नैसर्गिक हो सकती है

किन्तु उसका स्थायित्व

तुम्हें अर्जित करना पड़ता है

फूल यूँ ही फूल नहीं होता

उसे हर पल

फूल रहना पड़ता है


✍️ हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश ,भारत


रविवार, 28 नवंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार अखिलेश वर्मा की ग़ज़ल ---- देखता रहता है बस चक्कर लगाके ये जमीं....


 

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में दिल्ली निवासी ) आमोद कुमार की ग़ज़ल ----चापलूसी की पुरानी प्रथा के सहारे भवसागर तर गये बहुत से लोग माना कि मुश्किल है विपरीत चलना धार के संग बहने को मन नहीं करता


फरेब और स्वार्थ से भरे ये लोग

साथ इनके रहने को मन नहीं करता

बहुत जख्म खाये हैं सीने पे हमने

अब और दुःख सहने को मन नहीं करता


तेरी दुनिया तो बहुत खूबसूरत है लेकिन

आदमी को न जाने क्या हो गया है

दरख्तों-पहाड़ों से हैं हम बात करते

आदमी से कुछ कहने को मन नहीं करता


चापलूसी की पुरानी प्रथा के सहारे

भवसागर तर गये बहुत से लोग

माना कि मुश्किल है विपरीत चलना

धार के संग बहने को मन नहीं करता


झूठ, दौलत और ताकत का संगम

सदियों से ये साजिश कामयाब है

मानते हैं सच को दिल में सभी

ज़ुबाँ से पर कहने को मन नहीं करता


सुविधाओं के लिए ऐसी दौड़ भी क्या

रिश्ते नातों का प्यार ही न रहे.

हर कोई व्यस्त है घन के लिए

इसके सिवा कुछ कहने को मन नहीं करता


तुम दबाने की कोशिश चाहे जितना करो

लड़ते रहेंगे "आमोद" न्याय के वास्ते

कोई अमर तो नहीं हम भी मर जायेंगे

यूँ खड़े-खड़े ढहने को मन नहीं करता

✍️ आमोद कुमार, दिल्ली


मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल की ग़ज़ल ----ग़मज़दा कोई नहीं है, मौत पर भी आजकल, लोग जुड़ते हैं फक़त चेहरा दिखाने के लिये.....


रूठना भी है जरूरी, मान जाने के लिये।

कुछ बहाना ढूंढ लीजे मुस्कुराने के लिए ।।


जिन्दगी की जंग में उलझे हुए हैं इस कदर।

वक्त ही मिलता नहीं, हँसनै हँसाने के लिये।।


काम ऐसा कर चलें जो नाम सदियों तक रहे।

अन्यथा जीते सभी हैं सिर्फ खाने के लिये।।


ग़मज़दा कोई नहीं है, मौत पर भी आजकल।

लोग जुड़ते हैं फक़त चेहरा दिखाने के लिये।।


कृष्ण ये धरना यहाँ पर अनवरत चलता रहे।

माल म‌‌‌िलता है यहाँ भरपूर खाने के लिये।।


✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद ,उत्तर प्रदेश, भारत


शनिवार, 27 नवंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष प्रोफेसर महेंद्र प्रताप के चौदह मुक्तक ---- ये मुक्तक उनकी स्मृति में प्रकाशित पुस्तक 'महेंद्र मंजूषा' से लिए गए हैं । इस पुस्तक के प्रबंध संपादक के दायित्व का निर्वहन किया सुरेश दत्त शर्मा पथिक ने जबकि डॉ अजय अनुपम और आचार्य राजेश्वर प्रसाद गहोई ने संपादन किया। इस पुस्तक का प्रकाशन लगभग सन् 2006 में हिंदी साहित्य सदन द्वारा किया गया था।







 

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघु कहानी----- चाय वाली अम्मा!


भीड़-भाड़ वाली सड़क के किनारे छोटे से खोखे में बूढ़ी अम्मा चाय बनाने में इतनी व्यस्त रहती की उसे नहाने खाने का समय भी मुश्किल से मिलता।

   चाय के साथ-साथ मीठे-नमकीन बिस्कुट,फैन, रस्क,और दालमोठ इत्यादि को सुंदर शीशों के जार में बड़े करीने से सजाकर रखती।

   सभी ग्राहकों से बड़े प्यार से बातें करती और खुशी -खुशी चाय बनाकर पिलाती,तथा उनकी पसंद के बिस्कुट आदि देना नहीं भी भूलती। सभी लोग उसे चाय वाली अम्मा कहकर बुलाते। और बड़ी ईमानदारी से उसके पैसे भी चुकता करते।

    एक दिन एक छोटा बच्चा, जिसके जिस्म पर सही से कपड़े भी नहीं थे। उसने पैरों में भी चप्पल नहीं पहन रखे थे। उसने अम्मा के पास आकर जार में रखे बिस्कुट का दाम पूछा। तो माँ में बताया एक रुपए में दो मिलेंगे  बोल कितने दूँ। बच्चा कुछ नहीं बोला और उदास होकर  वापस चला गया।

     दूसरे दिन वही बच्चा फिर आया और दूर खड़ा होकर चाय पीने वालों को चाय में डुबो-डुबोकर बिस्कुट खाते देखकर बड़े ललचाए भाव से  उनके बिस्कुट खाने की गति को निहारते हुए, मन ही मन बिस्कुट की मिठास का वास्तविक आनंद अनुभव  करता रहा। और सोचता रहा किसी का कोई बिस्कुट टूटकर ज़मीन पर गिर जाए तो अच्छा हो। मैं बाद में उसे उठाकर खा लूँगा।

     भाग्यवश एक ग्राहक का आधा बिस्कुट टूटकर नीचे गिर गया। बच्चा यह देखकर बड़ा खुश हुआ। परंतु अगले ही पल उसकी खुशी का अंत एक देसी कुत्ते ने उसे खाकर कर दिया। बच्चे का मन अंदर तक टूट गया। 

    तभी चाय वाली अम्मा ने चाय बनाते-बनाते, उस बच्चे को दूर खड़ा देखकर अपने पास बुलाया। उसे देखते ही समझ गई कि, यह तो वही बच्चा है जो कल आकर बिस्कुट के पैसे पूछ रहा था।

     अम्मा बोली बेटा तू बड़ी देर से इस तरह चुपचाप क्यों खड़ा है। क्या चाहिए तुझे बता।,,,,,बच्चे ने डरते-डरते बिस्कुट से भरे जार की तरफ उंगली उठाते हुए बिस्कुट पाने की इच्छा मौन संकेतों में बता दी।

    माँ तो माँ ही होती है वह चाहे मेरी हो या किसी और की।,, उसने उसका नाम पूछा, तो बच्चे ने बताया मोहन है मेरा नाम। अम्मा ने पुनः प्रश्न किया तुम्हारे माता-पिता कहाँ हैं। तब बच्चे ने सुबुकते हुए बताया मेरे माता-पिता अब नहीं हैं। उन्हें सड़क पर चलते समय तेज़ गति से आते एक ट्रक ने कुचलकर मार दिया। अब तो मैं और मेरी छोटी बहन छुटकी सामने वाली उस पुलिया के नींचे रहते हैं।

    यह सुनते ही अम्मा का दिल भर आया। वह बोली ईश्वर ऐसा किसी के साथ मत करना। अम्मा ने बच्चे को पुचकारते हुए चाय बिस्कुट खिलाए। और उसकी छोटी बहन को बुलाकर लाने के लिए कहा।

      मोहन थोड़ी देर बाद अपनी छोटी बहन  को बुलाकर माँ के सामने ले आया। अम्मा ने छुटकी को देखा और बोली अरे,,,, यह तो बड़ी सुंदर है। भूखी-प्यासी फटे कपड़ीं में भी कितनी खुश लग रही है। क्या करे हालात की सताई है बेचारी।

     अम्मा ने चुटकी से पूछा बिस्कुट खाओगी बिटिया, उसने झट से हाँ कर दी। अम्मा ने बड़े प्यार से उसे बिस्कुट,नमकीन खाने को दिए। फिर उसको अपने हाथों से नहला-धुलाकर साफ कपड़े पहनने को दिए और कहा। तुम दोनों बहन-भाई आज से मेरे साथ रहकर, मेरे काम में हाथ बंटाया करो। पास में ही एक स्कूल है वहां जाकर पढ़ाई भी किया करो।

    दोनों बच्चे हंसी-खुशी अम्मा के काम में हाथ बंटाते। और समय से स्कूल भी जाते।

    अम्मा बड़ी व्याकुलता से उनके स्कूल से लौटने की राह देखती। बच्चे भी आकर अम्मा को प्रणाम करते और सबसे कहते देखा,, कितनी अच्छी है हमारी चाय वाली अम्मा।

✍️  वीरेन्द्र सिंह "बृजवासी", मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत, मोबाइल फोन नम्बर 9719275453

                  -----------

यादगार चित्र : मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई, स्मृतिशेष शंकर दत्त पांडे और स्मृतिशेष पुष्पेंद्र वर्णवाल । यह चित्र हमें उपलब्ध कराया है अशोक विश्नोई ने ।


 

शुक्रवार, 26 नवंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में नोएडा निवासी ) नरेंद्र स्वरूप विमल की तीन ग़ज़लें ----

 


 एक 

 अर्थ उत्तर के बदल पाते हैं

 प्रश्न आदम से चले आते हैं 

 

है वही प्यार,धड़कनें भी वही, 

गीत गा गा के दिल दुखाते हैं 


खोखले जो ह्रदय के होते हैं, 

दिल बहुत खोल कर दिखाते हैं 


आत्मा को जिन्होंने बेच दिया, 

धर्म धन यश वही कमाते हैं। 


पाप जिन के हृदय में रहता है, 

हाथ बढ़कर,विमल मिलाते हैं। 

 

दो

शिला हो गये,पर हृदय में जलन है, 

विरह ही विरह है ,मिलन ही मिलन है। 


 बहुत देर सोचा ,लिखा,फ़ाड़ डाला,

 उसे जोड़ कर पढ़ रहे,यह सृजन है। 


 कहा देर तक ,पर नहीं कह सके जब, 

नयन रो पड़े ,शब्द यह भी चयन है ।


 रुला कर हंसाना,हंसा कर रुलाना, 

प्रणय दो दिलों का दहकता हवन है ।


हृदय में हज़ारों हृदय फूट पड़ना, 

विमल प्यार विष का स्वयं आचमन है ।


 तीन

मौसम से बहारों ने अजब दर्द सहा है, 

फूलों ने हवाओं में ज़हर घोल दिया है। 


 इस पागलों की भीड़ में कोई नहीं पागल,

 हंसना तड़पते दिल को मनाने की अदा है।

 

खिलते हुये गुलाब पे ये ओस की बूंदें

ये जाम छलकते हैं,जवानी का नशा है। 


टकरा के उजालों से,अंधेरों में खो गये, 

पापों का भंवर दिल न लगाने की सजा है। 


अपने अहं में खुद बने श्मशान का दिया 

कहते हैं यह संसार बुरा ,बहुत बुरा है । ‌ 


अपने से दूर जायें तो जायें कहां जायें, 

बाहर भी विमल आग ,घुटन और धुआं है।


✍️ नरेंद्र स्वरूप विमल 

ए 220.से,122, नोएडा, उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9999031466 

बुधवार, 24 नवंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष शंकर दत्त पांडे पर केंद्रित राजीव सक्सेना का आलेख ---- "साहित्य के शंकर - स्व० शंकर दत्त पाण्डेय"। यह आलेख उनकी कृति समय की रेत पर ( साहित्यकारों के व्यक्तित्व- कृतित्व पर एक दृष्टि ) में संगृहीत है। यह कृति वर्ष 2006 में श्री अशोक विश्नोई ने अपने सागर तरंग प्रकाशन मुरादाबाद द्वारा प्रकाशित की थी। श्री सक्सेना वर्तमान में प्रभारी सहायक निदेशक (बचत) , मथुरा हैं ।


मनुष्य के रूप में हम जीवन भर एक सत्य की तलाश में रहते है। यह सत्य हमें कभी-कभी मिलता भी है किन्तु टुकड़ों में पूर्ण सत्य या यथार्थ से हमारा साक्षात्कार जरा कम ही होता है। एक लेखक या साहित्यकार भी जीवन भर सत्य की खोज में लगा रहता है। वह अपने समय के यथार्थ को साहित्य के माध्यम से खोजने का यत्न करता है। वह न केवल सत्य या यथार्थ के विदूपों और भंगिमाओं को चीन्हने की कोशिश करता है बल्कि उन्हें रेखांकित भी करता है और पाठकों को इसमें सहभागी भी बनाता है।

      साहित्य के माध्यम से यथार्थ को चीन्हने वाले एक ऐसे ही समर्थ रचनाकार थे स्व शंकर दत्त पांडे। पांडे जी ने न केवल अपने समय के यथार्थ को शब्दों के माध्यम से जीया था बल्कि इसको उद्घाटित करने के क्रम में एक विराट रचना संसार की सृष्टि भी की थी। पांडे जी के लेखन के विविध आयाम थे। वे समकालीन साहित्य के एक बड़े हस्ताक्षर थे। नयी कहानी आन्दोलन के एक प्रणेता निर्मल वर्मा की तरह बेहद विनम्र, मितभाषी बल्कि कहा जाए ज्यादातर खामोश रहने वाले एक प्रतिभाशाली रचनाकार। उनका आभामण्डल कुछ ऐसा था कि वे स्वयं ही चुप नहीं रहते थे बल्कि उनके आस-पास और कभी-कभी तो उनकी उपस्थिति मात्र से भी अनायास एक सन्नाटा बुन जाता था। किन्तु यह सन्नाटा ओढ़ा हुआ या कृत्रिम नहीं था। व्यक्तिगत जीवन में पांडे जी भले ही कम बोलते हो किन्तु अपने रचना जगत में वे उतने ही मुखर दिखायी पड़ते है। वे साहित्यिक सन्नाटे के बीच अक्सर अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज कराते थे। उनकी कृतियां इसका ज्वलन्त प्रमाण हैं। 

      बेहद धीमे बोलने वाले अक्सर अपनी ही दुनिया में खोये रहने वाले शंकर दत्त पांडे एक बहुआयामी सर्जक थे। एक कुशल चितेरे की भाँति उन्होंने एक बड़े कैनवस पर जीवन के लगभग सभी विम्ब उकेरे हैं और स्पेक्ट्रम के सभी रंग उनके सृजन में पूरी भव्यता के साथ उपस्थित हैं। उन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं के आगार पर्याप्त समृद्ध किये हैं। उन्होंने उपन्यास, कहानियां, कविताएं, गीत, नाटक, निबन्ध, हास्य-व्यंग्य, बाल साहित्य, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज सहित हिन्दी की लगभग सभी विधाओं में सृजन किया है। सही बात तो यह है कि शंकर दत्त पांडे ने जब भी लेखनी उठायी हिन्दी की जिस विधा में चाहा पूरे अधिकार के साथ सृजन किया। नगर में सम्भवतः दुर्गादत्त त्रिपाठी प्रभृति रचनाकार ने भी इतनी विधाओं में शायद साहित्य नहीं रचा है। दरअसल, पांडे जी बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न रचनाकार थे और यथानाम तथा गुण वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए साक्षात कलाओं के आदि स्वरूप नटराज के मानवीय प्रतिरूप थे। यही उनकी प्रतिभा का अंत नहीं था। उन्होंने अंग्रेजी भाषा में भी पर्याप्त साहित्य रचा था और मौलिक सृजन के अलावा कई चर्चित कृतियों और पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया था। उर्दू भाषा पर भी पांडे जी को गज़ब का अधिकार था। उन्होंने उर्दू में भी बहुत सी ग़ज़लें और नज्में लिखी थीं। सही बात तो यह है कि पांडे जी जैसी विलक्षण भाषाई या साहित्यिक प्रतिभा के धनी हिन्दी जगत में तो क्या विश्व साहित्य में भी बिरले ही हुए होंगे। हिन्दी में स० ही० वात्स्यायन अज्ञेय और जयशंकर प्रसाद शायद सर्वाधिक प्रतिभाशाली साहित्यकार कहे जा सकते है जिन्होंने गद्य और पद्य की लगभग समस्त विधाओं में पर्याप्त साहित्य सृजन किया था। किन्तु पाण्डेय जी सम्भवतः  इन दोनों कालजयी रचनाकारों से भी इसलिए आगे खड़े महसूस होते हैं कि बहुधा गौण या दोयम दर्जे का साहित्य समझे जाने वाले बाल साहित्य की भी उन्होंने रचना की थी। बाल साहित्य में भी पांडे जी ने एकाध पुस्तक की नहीं बल्कि करीब आधा दर्जन पुस्तकों की रचना की थी। 'लाल फूलों का देश', 'बारह राजकुमारियां', 'पीला देव', 'जादू की अंगूठी', 'रोम का शिशु नरेश' और 'जादू का किला' उनकी प्रसिद्ध बाल कृतियां है।

      जैसा कि उपरोक्त कृतियों के नाम से ही स्पष्ट है पांडे जी की अधिकांश बाल कथाएं जादू या फंतासी से ओतप्रोत है। अपनी बाल कृतियों में पांडे जी ने कल्पना को नये आयाम प्रदान किये है। कहानियों में रोचकता इतनी है कि पाठक मंत्रबद्ध और सम्मोहित हो आद्योपान्त इन्हें पढ़ने के लिए विवश हो जाते है। उनकी कहानियां फंतासी के मामले में पश्चिम के ख्यातिप्राप्त बाल साहित्यकारों हेंस क्रिश्चियन एंडरसन और इनिड ब्लाइटन से जरा भी कमतर नहीं है। सही बात तो यह है कि पांडे जी का बाल साहित्यकार के रूप में कभी समुचित आकलन नहीं हुआ। उनका बालसाहित्य समालोचकों की उपेक्षा का शिकार तो हुआ ही साथ ही वह मुख्य धारा के कथित झण्डाबरदारों की साजिश का भी शिकार हुआ। यदि पांडे जी के बाल साहित्य का सम्यक मूल्यांकन किया जाए तो न केवल उनके साहित्यकार व्यक्तित्व के नये आयाम उद्घाटित होंगे बल्कि बाल साहित्य भी संभवतया अपने एक यशस्वी रचनाकार का परिचय पा सकेगा।

   पांडे जी से मेरा परिचय बहुत प्रगाढ़ और पुराना नहीं था, यद्यपि मैं उनके नाम ओर काम दोनों से परिचित था। गाहे-बगाहे नगर की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने वाली रचनाओं से मैं उनके कृतित्व की झलक पाता रहा। कतिपय गोष्ठियों में उनके गीत या कविताएं सुनने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ, किन्तु सदैव उनके एक 'कोकून' में आवृत्त रहने के कारण और कतिपय स्वयं मेरे संकोच के कारण व्यक्तिगत संवाद की स्थितियां निर्मित न हो सकीं। बहुत बाद में उनके जीवन की सांध्य बेला में भाई 'पुष्पेन्द्र' वर्णवाल के जन्मदिन पर आयोजित एक निजी गोष्ठी में उनसे संवाद का सौभाग्य प्राप्त हुआ। शायद पुरानी और नयी पीढ़ी के बीच एक सेतु निर्मित करने का प्रयास था यह। पुष्पेन्द्र जी के निवास पर आयोजित गोष्ठी में पांडे जी ने प्रकम्पित कण्ठ से एक अत्यन्त भावप्रवण गीत सुनाया भरी स्मृति में कहीं टंक सा गया। मैं भीतर ही भीतर उनसे प्रभावित हो गया और मन सहसा विचारों से आलोड़ित हो गया। लगभग संझवाती तक चली यह गोष्ठी गंभीर वातावरण में समाप्त हुई और गोष्ठी में उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति को कुछ न कुछ दे गयी। यह पांडे जी से मेरे साक्षात्कार का अन्तिम अवसर था। फिर वे मेरी नजरों से प्रायः ओझल हो गये और अंतिम तिरोधान तक लगभग अदृश्य ही रहे। किन्तु उनके देहावसान के बाद आज तक मैं शंकर दत्त पांडे जी को दृश्यमान करने की कोशिश करता हूँ तो न केवल उनके महान सर्जक व्यक्तित्व से अभिभूत हो जाता हूँ बल्कि एक विराट शून्य या रिक्तता का भी तीव्रता से आभास होता है जिसे भर पाना असंभव नहीं तो मुश्किल अवश्य है। सही बात तो यह है कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए शायद यह विश्वास कर पाना भी कठिन होगा कि नगर मुरादाबाद में एक ऐसा विलक्षण साहित्यकार हुआ था जो हिन्दी की लगभग सभी विधाओं में समान गति से विचरण करता था।

      यहाँ उनके कुछ काव्य साहित्य की चर्चा करना समीचीन होगा। उनके काव्य में छायावादी प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। दरअसल, वे जिस पीढ़ी के रचनाकार थे उस पर छायावाद का स्वाभाविक रूप से गहरा प्रभाव था। तब प्रसाद, निराला, पंत और महादेवी वर्मा का चतुष्ट्य केवल साहित्य को ही प्रभावित नहीं कर रहा था बल्कि समकालीन युवा रचनाकारों की संवेदना के तारों को भी पर्याप्त झंकृत कर रहा था। पाण्डेय जी की रचना में भी दूसरे रचनाकारों की तरह प्रकृति वर्णन, शृंगारिकता रहस्यात्मकता और रोमानी अनुभवों के दर्शन होते हैं किन्तु उनकी रचनाओं में एक व्यापक दृष्टि और युगबोध के भी दर्शन होते हैं। उनके एक गीत की ये पंक्तियां दृष्टव्य है

"जब उस निष्ठुर का नाम कभी, 

आया इन होंठों के ऊपर । 

दुख की दर्दीली रेखायें,

उभरी मानस पट के ऊपर ।। 

मैं अवहेला की घड़ियों में, 

पलकें खारे जल से घोता, 

सोचा करता हूँ जीवन में 

उत्थान-पतन प्रतिपल होता ।"

       वास्तव में यही उनकी जीवन दृष्टि थी। जीवन में प्रतिपल आने वाले उतार चढ़ाव से निस्संग होकर पांडे जी आजीवन सृजनरत रहे। दरअसल, शंकर दत्त पांडे का सम्पूर्ण साहित्य मानवीयता की गाथा है जिसे वे अपनी स्वर्ण लेखनी के माध्यम से अंत तक कहते रहे।


✍️ राजीव सक्सेना, 

डिप्टी गंज, 

मुरादाबाद244001 ,उत्तर प्रदेश, भारत  

मंगलवार, 23 नवंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष प्रो.महेन्द्र प्रताप का गीत - गेय अगीत रहा ....यह गीत प्रकाशित हुआ है केजीके महाविद्यालय की वार्षिक पत्रिका 1962-63 में ।


 

मुरादाबाद के साहित्यकार, इतिहासकार और पुरातत्ववेत्ता स्मृतिशेष सुरेंद्र मोहन मिश्र की ऐतिहासिक कृति - 'बदायूं के रण-बांकुरे राजपूत' । उनकी यह कृति सौजन्या मिश्र, प्रतिमा प्रकाशन चंदौसी, उत्तर प्रदेश, भारत द्वारा वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई । इस कृति में श्री मिश्र ने कठेरिया, गहरवार, गौतम,गौर, चौहान, चंदेल, जंघारा, तोमर, भाटी, बड़गूजर, बाछिल,बैस, राष्ट्रकूट और मुस्लिम राजपूतों का संक्षिप्त इतिहास प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत कृति श्री मिश्र जी ने मुझे 4 जुलाई 1994 को भेंट की थी।


 क्लिक कीजिए और पढ़िए पूरी कृति

👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇

https://documentcloud.adobe.com/link/track?uri=urn:aaid:scds:US:cc74bfc9-847f-480e-af55-bb579f087d38 

::::::::प्रस्तुति::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

रविवार, 21 नवंबर 2021

मुरादाबाद की संस्था आदर्श कला संगम (पंजीकृत) की ओर से 21 नवम्बर को आयोजित समारोह में साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर समेत सात विभूतियां हुईं सम्मानित

 मुरादाबाद की संस्था आदर्श कला संगम (पंजीकृत)  की ओर से  दिव्य सरस्वती बालिका इंटर कालेज लाइनपार में रविवार 21 नवम्बर 2021 को सम्मान समारोह आयोजित किया गया। 

कार्यक्रम में प्रोफ़ेसर महेंद्र प्रताप स्मृति सम्मान डा. महेश दिवाकर को, मास्टर फिदा हुसैन नरसी स्मृति सम्मान से डा. विनीत गोस्वामी को, वाचस्पति शर्मा स्मृति सम्मान ज्योतिषाचार्य पंडित सुरेंद्र शर्मा, कमला शर्मा स्मृति सम्मान वीना सेमवाल को,  कमलेश कुमार स्मृति सम्मान निमित जायसवाल को, बलवीर पाठक स्मृति सम्मान इंद्रदेव त्रिवेदी, वीरेंद्र कुमार अरोरा स्मृति सम्मान कथावाचक आचार्य धीरशांत दास को दिया गया। सभी सम्मानित होने वाली विभूतियों को अभिनन्दन पत्र, शॉल व स्मृति चिन्ह भेंट किया गया।

      एमएलसी डा. जयपाल सिंह व्यस्त ने कहा कि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती। मेहनत और लगन के दम पर उसे मंजिल मिल जाती है। शिक्षा पाने का लक्ष्य केवल किसी कंपनी या सरकारी विभाग में उच्च पदों पर आसीन हो जाना नहीं है। एक श्रेष्ठ समाज की रचना में सक्रिय भूमिका निभाना उद्देश्य होना चाहिए।

     कोठीवाल डेंटल कालेज के डायरेक्टर डा. केके मिश्रा ने कहा कि सम्मान एक व्यक्ति या संस्था के लिए प्रशंसा की एक उत्साहजनक भावना है। यह दूसरों के प्रति एक व्यक्ति द्वारा दिखाए सम्मान और दया भावना को दिखाता है। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम एक दूसरे के सम्मान में समाज में सद्भाव लाने के लिए कार्य करें और हमेशा याद रखें कि सम्मान माँगा नहीं जाता बल्कि अर्जित किया जाता है और सम्मान हमारे महान कर्मों और कार्यों के माध्यम से अर्जित होता है।

      मानस कला मंच के निर्देशक व वरिष्ठ रंगकर्मी राजेश रस्तोगी ने कहा कि एक व्यक्ति जो अपने व्यवहार से कार्यालय, घर या समाज के लिए की गतिविधियों के माध्यम से संपत्ति कमाता है उसमें सम्मान सर्वप्रथम है।

     सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य डा. ब्रजपाल सिंह यादव ने कहा कि शब्द 'सम्मान' की कोई विशिष्ट परिभाषा नहीं है और न ही कोई ऐसा सूत्र है जो आपको दूसरों का सम्मान करने में सहायता करेगा। 

      कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ रंगकर्मी डा. प्रदीप शर्मा ने किया व आभार श्री रामलीला महासंघ के महामंत्री प्रमोद रस्तोगी ने व्यक्त किया।

कार्यक्रम में डॉ मनोज रस्तोगी, प्रमोद रस्तोगी, राजदीप शर्मा, शैलेंद्र अगवाल, कुमार देव, जीवन लता शर्मा, पूनम गुप्ता, श्रीराम शर्मा, आलोक राठौर, नरेंद्र कुमार, सुप्रीत गोपाल, सुमित श्रीवास्तव, राजेन्द्र मोहन शर्मा आदि उपस्थित रहे।














:   ::::प्रस्तुति:::::::
डॉ प्रदीप शर्मा, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई और उदय अस्त,रामपुर की साहित्यकार रागिनी गर्ग समेत पांच साहित्यकारों को रामपुर की आध्यात्मिक साहित्यिक संस्था काव्यधारा ने किया सम्मानित। यह आयोजन रामपुर में 21 नवम्बर 2021 को हुआ ।

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर की आध्यात्मिक साहित्यिक संस्था काव्यधारा के तत्वावधान में कवि सम्मेलन व सम्मान समारोह का आयोजन रविवार 21 नवम्बर 2021  को संस्था अध्यक्ष सुरेश अधीर की अध्यक्षता में आनंद कान्वेंट स्कूल ज्वाला नगर रामपुर में सम्पन्न हुआ।

  इस अवसर पर उत्कृष्ट साहित्यिक सेवाओं के लिए मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई एवं उदय प्रकाश सक्सेना अस्त, रामपुर की साहित्यकार रागिनी गर्ग, हल्द्वानी की साहित्यकार डा गीता मिश्र" गीत",  पीयूष प्रकाश सक्सेना जी, प्रबंधक आनंद कांवेंट स्कूल रामपुर को शाल ओढ़ाकर ,  अभिनन्दन पत्र,प्रतीक चिह्न प्रदान कर एवं मोती - माल्यार्पण कर काव्यधारा-साहित्य मनीषी" एवं काव्यधारा - गौरव" - सम्मान से सम्मानित किया गया।

  माँ सरस्वती वंदना राजीव प्रखर ने और गुरु वंदना अनमोल रागिनी ने प्रस्तुत की। सम्मानित साहित्यकारों के अतिरिक्त राम रतन यादव रतन, अनमोल रागिनी, शायर सुरेंद्र अश्क रामपुर, पुष्पा जोशी प्राकाम्य जी , राम किशोर वर्मा जी, विपिन शर्मा, डॉ ० अरविंद धवल, रवि प्रकाश, ओंकार सिंह विवेक, जितेन्द्र नंदा, राजवीर 'राज', महाराज किशोर सक्सेना आदि ने भी काव्य पाठ किया। इस अवसर पर श्रीमती ऊषा सक्सेना, श्रीमती कुसुम लता वर्मा, श्रीमती रवि प्रकाश, आनंद प्रकाश वर्मा एवं अतुल वर्मा उर्फ पीयूष वर्मा आदि उपस्थित रहे । संस्थापक महा सचिव जितेन्द्र कमल आनंद एवं अध्यक्ष सुरेश अधीर जी ने सभी का हार्दिक आभार व्यक्त किया। संचालन राम किशोर वर्मा जी ने किया।





























::::::प्रस्तुति:::::::

राम किशोर वर्मा

उपाध्यक्ष, आध्यात्मिक साहित्यिक संस्था काव्यधारा, रामपुर (उ०प्र०), भारत