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वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में वर्ष 2016 से प्रत्येक रविवार को हस्त लिपि वाट्स एप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन निरंतर चल रहा है। इस आयोजन में रचनाकार कागज पर अपनी हस्तलिपि में रचना लिखते हैं, अपने हस्ताक्षर करते हैं, नाम , पता और मोबाइल फोन नंबर लिखकर एक कोने में अपना चित्र चिपकाकर उसका चित्र समूह में साझा करते हैं । रविवार 25 सितम्बर 2016 को हमने 12 वां आयोजन किया था । इस आयोजन में 19 साहित्यकारों सर्वश्री राजीव प्रखर जी, योगेन्द्र वर्मा व्योम जी, डॉ मीना नकवी जी, जिया जमीर जी, डॉ रीता सिंह जी , मनीषा चड्डा जी, मनोज मनु जी, अनवर कैफ़ी जी, मंगलेश लता यादव जी, डॉ एस पी सागर जी वीरेंद्र सिंह बृजवासी जी, डॉ ममता सिंह जी, प्रदीप शर्मा जी, डॉ अर्चना गुप्ता जी,हेमा तिवारी भट्ट जी, संयम वत्स जी, डॉ वंदना पाण्डेय जी, मृडीक व्रतेश जी और मैंने डॉ मनोज रस्तोगी ने अपनी हस्तलिपि में रचनाएं साझा की थीं ।प्रस्तुत हैं साझा की गईं रचनाएं उन्हीं की हस्तलिपि में ..... ।
:::::प्रस्तुति:::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822
पंडित हरप्रसाद पाठक साहित्य पुरस्कार समिति के रजत जयंती समारोह तथा तुलसी साहित्य अकादमी मथुरा के संयुक्त तत्वावधान में हुए एक भव्य साहित्यिक कार्यक्रम में लखनऊ से पधारी लेखिका एवं कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि माननीय स्नेह लता जी ने विमला रस्तोगी को " हिन्दी रत्न " सम्मान से सम्मानित किया ।
मूल रूप से संभल निवासी विमला रस्तोगी की बाल साहित्य की बारह पुस्तकें आई है। अनेकानेक बाल कहानियां और नाटक संग्रहों मे संग्रहित है। आकाशवाणी दिल्लीसे अनेकानेक कहानियां व नाटक प्रसारित हुए है। उ. प्र. हिन्दी संस्थान, लखनऊ, से सुभद्रा कुमारी बाल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित विमला रस्तोगी अन्य अनेक सम्मानों से सम्मानित है।
मथुरा के इस कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. अनिल वाजपेयी ( प्रधानाचार्य, अमरनाथ डिग्री कालेज, मथुरा ) मुख्य अतिथि पद्मश्री प्रो. रवीन्द्र कुमार, मेरठ, विशिष्ट अतिथि भगवती प्रसाद द्विवेदी, पटना, स्नेह लता जी, लखनऊ थे।
समिति के सचिव डॉ. दिनेश पाठक शशि " तथा अकादमी के अध्यक्ष आचार्य नीरज शास्त्री ने आभार व्यक्त किया।
कथा साहित्य को भाव-संप्रेषण का एक सशक्त माध्यम कहा जाता है । इसका इतिहास भी मानव सभ्यता के इतिहास जितना ही पुराना है जिसके प्रमाण हैं अजन्ता और ऐलोरा आदि गुफाओं के वे भित्तीचित्र जो आज भी उस समय की शिकार- गाथाओं का सम्यक संप्रेषण कर रहे हैं। साहित्य की इस सर्वाधिक चर्चित विधा को विश्व की सभी भाषाओं ने उन्मुक्त भाव से अपनाया है। कारण स्पष्ट है क्योंकि समय की दृष्टि से एक कहानी स्वल्प समय में ही सहृदय पाठक के अन्तस्तल को झकझोर कर एक नयी दिशा में सोचने के लिये विवश कर देती है। कहानी में विद्यमान जिज्ञासा का भाव रसग्राही पाठक को आस-पास के वातावरण से दूर ले जाता है। कहानी में प्रयुक्त अन्तर्द्वन्द्व उसे अपने जीवन से जोड़ने का प्रयास करते हैं और पात्रों का मनो- वैज्ञानिक चित्रण उसे अपने निकटस्थ प्रिय एवं अप्रिय लोगों की याद दिलाता है । इस दृष्टि से एक कहानी साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा मानव-मन के अधिक निकट प्रतीत होती है।
'टूटती कड़ियाँ' शीर्षक संकलन के रचनाकार श्री आनन्द स्वरूप मिश्रा स्वातन्त्र्योत्तर कथाकारों में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। जीवन के यथार्थ से सम्पृक्त चरित्र एवं घटनायें लेकर श्री मिश्र ने कथा और उपन्यास साहित्य में जो लेखनी अपने विद्यार्थी जीवन में चलाई थी वह आज ३५-४० वर्षों के उपरान्त भी अवाध गति से चल रही है। इस ग्रंथ में मिश्र जी की उन बारह कहानियों का संकलन है जो विगत ३२ वर्षों के अन्तराल में अरुण, साथी, हरिश्चन्द्र बन्धु एवं विभिन्न वार्षिक पत्र-पत्रिकाओं आदि में स्थान प्राप्त कर चुकी हैं। ये सभी कहानियाँ प्रभावोत्पादकता की दृष्टि से अत्यन्त सशक्त मार्मिक एवं हृदय-ग्राह्य हैं। श्रेष्ठ कहानी के लिये आवश्यक तत्व जिज्ञासा की भावना इन सभी कहानियों में पूर्णरूप से विद्यमान है । कहानी कला के सभी तत्वों का इनमें पूर्णरूपेण निर्वाह हुआ है तथा आदि और अन्त की दृष्टि भी ये सभी कहानियाँ स्वयं में पूर्ण एवं प्रभावोत्पादक हैं। इन सभी कहानियों के सभी पात्र पारिवारिक एवं अपने आस-पास के ही हैं । कहानियों का कथानक सरल, संक्षिप्त, सुगम, मार्मिक एवं प्रभविष्णुता हैं ।
श्री मिश्र जी की प्रायः सभी कहानियाँ समय की धारा के अनुसार प्रेम एवं रोमांस पर आधारित हैं। अध्ययनकाल के चंचल मन का प्रेम जब यथार्थ की कठोर भूमि पर उतरता है तो हथेली से गिरे पारद (पारे) की भाँति क्षणभर में छिन्न-भिन्न हो जाता है। त्रिकोणात्मक संघर्ष पर आधारित इस संकलन की अधिकांश कहानियों में कहीं प्रेमी को तो कहीं प्रेमिका को अपने अमर प्रेम का बलिदान करना पड़ता है। यदि संकलन की प्रथम कहानी 'टूटती कड़ियां' को लें तो ज्ञात होता है कि उद्यमी अध्यवसायी एवं महत्वाकांक्षी डा अविनाश का डा आरती के प्रति अविचल प्रेम, अवसर मिलने पर भी फलीभूत नहीं हो पाता और अन्त में उसी के आंसुओं के मूल्य पर उसे सलिला के साथ विवाह करना पड़ता है। यथार्थ की मरुभूमि पर जब आदशों के स्वप्निल बादल सूख जाते हैं तब अविनाश जैसे प्रेमियों को यही कहना पड़ता है- "आरती तुम सब कुछ खोकर भी रानी हो और मैं सब कुछ पाकर भी आज भिखारी हूँ ।"
संकलन की दूसरी कहानी 'सुख की सीमा' की परिणति भी नारी के त्याग पर आधारित है। पति प्रमोद की बगिया हरी भरी रहे इस ध्येय से अध्ययन-काल की सहपाठिनी और बाद में धर्म-पत्नी के पद पर अभिषिक्त जिस रागिनी से स्वयं उमा को सपत्नी के रूप में चुना था उसी उमा के उपेक्षित व्यवहार एवं एकाधिकार से क्षुब्ध होकर रागिनी को पुनः उसी पैतृक परिवेश में लौट जाना पड़ता है जहाँ उसके इन साहसिक कृत्यों का कदम- कदम पर विरोध हुआ था ।
'त्रिभुज का नया विन्दु' शीर्षक कहानी निश्चय ही एक अप्रत्याशित अन्त लेकर प्रस्फुटित हुई है। कहानी का नायक डा अविरल अपनी चचेरी बहन की शादी में सोलह वर्षीया मानू से मिलता है और उसकी बाल-सुलभ चपलताओं को भुला नहीं पाता है। इधर दिल्ली विश्वविद्यालय में विज्ञान का प्रोफेसर बनकर वह अन्तिम वर्ष की छात्रा सुवासिनी के चक्कर में फँस जाता है। सुवासिनी होस्टल के वार्डन की पुत्री अनुपमा से मित्रता करके अविरल तक पहुंचने का मार्ग बना लेती है। उधर अविरल के माता-पिता चाहते हैं कि ऊँचे घराने की सुन्दर सुशील कन्या उनके घर वधू के रूप में पदार्पण करे। मगर सीनियर प्राध्यापकों की दृष्टि में सीधा-सादा, पढ़ाकू, दब्बू और लज्जालु अविरल इस त्रिभुज के मध्य एक नया विन्दु खोज लेता है और एम० एस-सी (प्रथम वर्ष) की एक हरिजन छात्रा 'ऋतु राकेश' के साथ प्रेम- विवाह कर सब को हतप्रभ कर देता है ।
इसी संकलन में संकलित 'कोई नहीं समझा' शीर्षक कहानो बाल मनोविज्ञान पर आधारित है जो इस तथ्य पर चोट करती है कि प्रति वर्ष प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण विद्यार्थी ही महापुरुष बन सकता है । नायक शोतल बाबू का अनुज सुरेश हाई स्कूल में लगातार ५ बार फल होकर घर से भाग जाता हैं और फिर एक चुनौती भरा पत्र लिखकर भेजता है कि "मैं हाईस्कूल में पाँच साल फेल होकर भी बड़ा बनकर दिखलाऊँगा ।"
संकलन की एक कहानी 'उम्मीद के सितारे के तीनों पात्र- किशन, प्रमोद और मालती भी एक त्रिभुज के तीन कोण हैं जो भारत सेवक समाज के एक शिविर में एक ही मंच पर उपस्थित होकर परिणाम को एक अप्रत्याशित मोड़ दे देते है । एक पत्रिका के उपसम्पादक के रूप में मध्य प्रदेश चले जाने के कारण प्रेमी किशन और प्रेमिका मालती के मध्य दूरियां बढ़ जाती हैं और मालती हताश होकर समाज सेविका बन जाती है। इधर इसी समाज में प्रमोद नाम का एक भारत सेवक भी है जो स्वयं प्रेम का भूखा है। भावसाम्य के कारण प्रमोद और मालतो में परस्पर मित्रता हो जाती है और प्रमोद उसके साथ शादी कर के भविष्य की योजनायें बनाने लगता है। मगर शिविर की गतिविधियों की रिपोर्टिंग के लिये जब किशन इन दोनों के मध्य आता है तो इस कामना से चुप-चाप भाग जाना चाहता है कि भारत सेवक और समाज सेविका की जोड़ी खूब जंचेगी। मगर वेश बदलने पर भी जब वह मालती की निगाह से बच नहीं पाता है तो उसे मालती का प्रस्ताव स्वीकार कर लेना पड़ता है ।"
संकलन की अन्य कहानी 'कालिख' में डा० सत्येन्द्र का हृदय परिवर्तन कर कथासार ने एक आदर्श प्रस्तुत किया है। इसके साथ ही इस कहानी में उन दुर्दान्त प्रबन्धकों के मुख पर लगी उस कालिख को भो उजागर किया गया है जो भोली-भाली कन्याओं की विवशता का लाभ उठाकर उनका देह शोषण करते हैं और फिर समाज में हत्या और आत्म-हत्या जैसे अपराधों को बढ़ावा देते हैं । इस मार्मिक कहानी का अन्त पूर्णतः अप्रत्याशित है । डा सत्येन्द्र ने यह स्वप्न में भी न सोचा होगा कि जिस मालवी के भाई अभय को गुनाह से बचाने के लिये उन्होंने मालती के एवारशन की व्यवस्था की थी वही मालती उनकी पुत्र वधू बनकर उनके घर आ जायेगी। मगर नई विचार धारा का उनका पुत्र रवि जब मालती को अपनी सहधर्मिणी बना लेता है तो वह चाहते हुए भी उसका विरोध नहीं कर पाते हैं ।
श्री आनन्द स्वरूप मिश्र की सभी कहानियाँ पाठकों के अन्तस्तल को झकझोर देने में पूर्णरूपेण समर्थ है। आशा-निराशा, उत्थान-पतन, आदर्श और यथार्थ के हिण्डोले में झूलते हुए इन कहानियों के सभी पात्र अपने ही निकट और अपने ही बीच के प्रतीत होते हैं। विद्वान कथाकार ने पात्रानुकूल और बोल-चाल की प्रचलित भाषा का प्रयोग करके इन कहानियों को यथार्थ के निकट खड़ा कर दिया है। वाक्य विन्यास इतना सरल और स्पष्ट है कि कहीं भी कोई अवरोध नहीं आ पाता - यथा 'यह सुवासिनी भी बड़ी तोप चीज है। आती है तो मानो तूफान आ जाता है । बोलती है तो जैसे पहाड़ हिल जाते हैं और जाती है तो सोचने को छोड़ जाती है ढेर सारा ।'( त्रिभुज का नया बिन्दु )
वातावरण के निर्माण में भी कथाकार को पूर्ण सफलता प्राप्त हुई है । यथा "बाहर दृष्टि दौड़ी-चारों ओर खेत ही खेत दिखाई देते थे । गेहूँ के नवल पत्ते सकुचाते हुए से अपना शरीर इधर उधर हिला रहे थे। कोमल कलियाँ अपनी वय: सन्धि की अवस्था में अँखुड़ियों के वस्त्रों से तन ढकती हुई अपने ही में सिमिट रही थी "...." (उम्मीद के सितारे)
श्री मिश्र ने अपने कथा शिल्प में अन्तर्द्वन्द के साथ फ्लैशबैक का भी पर्याप्त सहारा लिया है। इसी कारण आपकी कहानियों में जिज्ञासा को पर्याप्त स्थान मिला है। शैली की दृष्टि से वर्णनात्मकता के साथ इन कहानियों में संवाद शैली का भी यथेष्ठ उपयोग हुआ है। कुछ संवाद तो इतने सरल, सरस और सटीक है कि सूक्ति वाक्य ही बन गये हैं यथा - "एक आदर्श पति
तो बनाया जा सकता है पर आदर्श प्रेमी नहीं ।"
"नारी बिना सहारे के जीवित नहीं रह सकती ।" "एक नारी क्या कभी पराजित हुई है पुरुष के आगे ?"( शाप का अन्त)
श्री मिश्र एक सिद्ध हस्त लेखक हैं। अलग-अलग राहें, प्रीत की रीत, अंधेरे उजाले , कर्मयोगिनी शीर्षक उपन्यासों के प्रकाशन के उपरान्त आपका यह प्रथम कहानी संग्रह पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत है । आशा है कि जिस प्रकार हिन्दी जगत ने आपके उपन्यासों को सराहा और सम्मान दिया है उसी प्रकार यह कहानी संग्रह भी समादर और सम्मान प्राप्त करेगा ।
मालती नगर
मुरादाबाद
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, डॉ मनोज रस्तोगी
मुरादाबाद की कला एवं साहित्यिक संस्था कला भारती (साहित्य समागम) की ओर से रविवार 17 सितंबर 2023 को आयोजित कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार एवं व्यंग्यकार हरिप्रकाश शर्मा को आज हुए एक समारोह में कलाश्री सम्मान से अलंकृत किया गया। संस्था की ओर से उपरोक्त सम्मान समारोह एवं काव्य-गोष्ठी का आयोजन मिलन विहार स्थित आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कॉलेज में हुआ। राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता रामदत्त द्विवेदी ने की। मुख्य अतिथि ओंकार सिंह ओंकार एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में बाबा संजीव आकांक्षी उपस्थित रहे। संचालन राजीव प्रखर एवं आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ द्वारा संयुक्त रूप से किया गया।
सम्मानित व्यक्तित्व हरिप्रकाश शर्मा पर आधारित आलेख का वाचन राजीव प्रखर जबकि अर्पित मान-पत्र का वाचन योगेन्द्र वर्मा व्योम द्वारा किया गया। सम्मान स्वरूप श्री शर्मा को अंग-वस्त्र, प्रतीक चिह्न, मानपत्र एवं श्रीफल भेंट किए गये। श्री हरिप्रकाश शर्मा ने पत्रकार एवं रचनाकार दोनों रूपों में उल्लेखनीय कार्य किया है।
सम्मान समारोह के पश्चात् एक काव्य-गोष्ठी का भी आयोजन किया गया जिसमें रचना पाठ करते हुए सम्मानित व्यक्तित्व हरिप्रकाश शर्मा ने कहा -
मैं अतीत में
ममता के समुद्र के मध्य
रेत के टीले पर खड़ा
एक सुनहरा महल था।
कुछ स्वार्थ से सनी तूफ़ानी लहरें
उसका भी काट गई थीं किनारा
अफ़सोस अब महल का खण्डहर भी
मेरी मात्र स्मृतियों की
अस्थियों का पिटारा है
रामदत्त द्विवेदी का कहना था -
हिमगिरी की चोटी पर पहुंचा अपना कोई आज है। ईश्वर ने कर कृपा बनाया, ऐसा उत्तम काज है।
ओंकार सिंह ओंकार के उद्गार थे -
हम नई राहें बनाने का जतन करते चलें।
जो भी वीराने मिलें, उनको चमन करते चलें।
रात भर जलकर स्वयं जो रोशनी करते रहे।
उन दियों की साधनाओं को नमन करते चलें।
योगेन्द्र वर्मा व्योम ने अपने मनोभाव व्यक्त करते हुए कहा -
धन-पद-बल की हो अगर, भीतर कुछ तासीर।
जीकर देखो एक दिन, वृद्धाश्रम की पीर।।
जिनसे बदले रोज़ ही, जीवन का भूगोल।
साँसों से कुछ कम नहीं, संघर्षों का मोल।।
बाबा संजीव आकांक्षी ने कहा -
बड़े अमीर से अच्छी खासी यारी है।
उसे ये मुगालता बहुत भारी है।
दोस्त दुश्मन में भी फर्क़ करना छोड़ दिया,
ज़हन-ओ-दिल में सियासत इस कदर उतारी है।
राजीव प्रखर ने अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्ति में कहा -
बहुत है दूर यह माना, तुम्हारी प्रीत की नगरी।
तुम्हारे ध्यान में मोहन, सदा भायी यही डगरी।
उड़ेगा प्राण-पंछी जब, मुझे भव-पार कर दोगे।
इसी विश्वास से मैंने, सजाई शीश पर गगरी।
आवरण अग्रवाल ने आह्वान किया -
हिन्दू न मुसलमान की हिंदी भाषा है हिंदुस्तान की।
नकुल त्यागी ने कहा -
मुख से निकले शीतल वाणी,
जिसको सुन हर्षित हो प्राणी।
आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ द्वारा आभार-अभिव्यक्त किया गया।
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से हिन्दी दिवस सम्मान समारोह आकांक्षा विद्यापीठ मिलन विहार पर आयोजित हुआ। हिन्दी दिवस की पूर्व संध्या बुधवार 13 सितंबर 2023 को आयोजित इस सम्मान समारोह में महानगर की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर को, हिन्दी भाषा के प्रति उनके समर्पण एवं साहित्यिक सक्रियता के लिए हिन्दी साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया। मयंक शर्मा द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. अजय अनुपम ने की। मुख्य अतिथि डॉ. मक्खन मुरादाबादी और विशिष्ट अतिथि के रूप में ओंकार सिंह ओंकार मंचासीन रहे। कार्यक्रम का संयुक्त संचालन राजीव प्रखर एवं प्रशांत मिश्र ने किया।
सम्मान स्वरूप मीनाक्षी ठाकुर को अंग वस्त्र, मान पत्र, प्रतीक चिह्न एवं श्रीफल अर्पित किए गए। सम्मानित रचनाकार मीनाक्षी ठाकुर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित आलेख का वाचन राजीव प्रखर एवं अर्पित मान-पत्र का वाचन जितेन्द्र जौली ने किया। उल्लेखनीय है कि मुरादाबाद के लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार कीर्तिशेष राजेंद्र मोहन शर्मा शृंग द्वारा स्थापित इस संस्था की ओर से प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस पर, हिन्दी के लिए उल्लेखनीय योगदान करने वाले वरिष्ठ/कनिष्ठ रचनाकारों को सम्मानित किया जाता रहा है। इस अवसर पर उपस्थित विभिन्न साहित्यकारों/ रचनाकारों ने अपनी शुभकामनाएं एवं बधाइयां प्रेषित करते हुए कहा कि कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने अल्प समय में मुरादाबाद एवं मुरादाबाद से बाहर अपनी एक विशेष साहित्यिक पहचान बनाई है जो अन्य उभरते हुए रचनाकारों के लिए भी प्रेरणा बनेगी।
साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय के संस्थापक डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा मीनाक्षी ठाकुर बहुआयामी साहित्यकार हैं। काव्य की विभिन्न विधाओं के साथ साथ उन्होंने साहित्य की अन्य विधाओं एकांकी, लघुकथा, कहानी, बाल साहित्य, रेखा चित्र, समीक्षा में लेखन कार्य किया है। उन्होंने भी शोधालय की ओर से मुरादाबाद के साहित्यकार माहेश्वर तिवारी और डॉ सरोजिनी अग्रवाल की कृतियां सम्मान स्वरूप प्रदान कीं।
इस अवसर पर सम्मानित साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर ने कहा उनके रचनाकर्म में साहित्यिक मुरादाबाद पटल का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने रचना पाठ करते हुए कहा.....
हिन्दी की बिंदी अब चमचम चमकेगी।
भारती के गीत सब हिन्दी मे ही गाइये।
हिन्दी हिन्दुस्तानी रंग, ओढ़ हिन्दी अंग अंग,
हिन्दी से ही प्रीत कर, गले से लगाइए।
इसके अतिरिक्त अन्य उपस्थित रचनाकारों में डॉ. महेश 'दिवाकर', डॉ. अर्चना गुप्ता, हेमा तिवारी, अंकित गुप्ता अंक, योगेन्द्र वर्मा व्योम, दुष्यंत बाबा, अशोक विद्रोही, अशोक विश्नोई, डॉ. कृष्ण कुमार नाज़, राहुल शर्मा, कमल सक्सेना, अनुराग सुरूर, सुनील ठाकुर, डॉ सोनम पुंडीर, श्रीकृष्ण शुक्ल, योगेन्द्र पाल विश्नोई, नकुल त्यागी, रामेश्वर वशिष्ठ, रघुराज सिंह निश्चल, मनोज मनु, रामगोपाल, प्रदीप विरल, रमेश गुप्त, अतुल जौहरी, रिशिपाल आदि ने भी अपनी-अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्ति के माध्यम से हिन्दी की महिमा एवं महत्व तथा जीवन की विभिन्न अनुभूतियों को रेखांकित करने के साथ मीनाक्षी ठाकुर को अपनी शुभकामनाएं प्रेषित कीं। संस्था अध्यक्ष श्री रामदत्त द्विवेदी द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा।