सुमन साहित्यिक परी नजीबाबाद लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
सुमन साहित्यिक परी नजीबाबाद लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 11 दिसंबर 2022

मुरादाबाद मंडल के नजीबाबाद (जनपद बिजनौर) की संस्था सुमन साहित्यिक परी मंच द्वारा फेसबुक पटल पर शुक्रवार 9 दिसंबर 2022 को आयोजित ऑनलाइन लाइव कार्यक्रम अमृत काव्य धारा....

 मुरादाबाद मंडल के नजीबाबाद (जनपद बिजनौर) की संस्था सुमन साहित्यिक परी मंच द्वारा फेसबुक पटल पर शुक्रवार 9 दिसंबर 2022 को ऑनलाइन लाइव कार्यक्रम अमृत काव्य धारा का आयोजन किया गया जिसमें संपूर्ण देश के 12 प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया । कार्यक्रम का शुभारंभ मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत मां वीणापाणि की वंदना से हुआ।

 मंच की अध्यक्ष डॉ दीपिका माहेश्वरी सुमन अहंकारा ने अपने मधुर स्वर से रचना पाठ करके सभी को सम्मोहित कर दिया .....

 ले श्यामा सुर साज़, पर्वत-पर्वत डोलती।

मुस्काते वनराज, मधुर-मधुर स्वर  घोलती॥

मधुर-मधुर स्वर घोल, मस्तानी रुत आ गयी।

मीठे मीठे बोल, अधर-अधर पर गूँजते॥

     कार्यक्रम में मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल  ने अपनी सुंदर रचनाओं से समां बांध दिया ....

"एक से सब दिन न होंगे, एक सी नहीं रात होगी

उजाले यदि साथ देंगे, अँधेरों में घात होगी,

तुम सतत चलते रहे तो जीत भी आसान होगी,

राह अपनी खुद बनाना, जिन्दगी आसान होगी I"

   मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी ने अपनी रचना " तमाशा जन्मदिन का " प्रस्तुत करते हुए कहा ...

   बच्चा टुकुर टुकुर देखता रहा 

   मम्मी डैडी को

   लिफाफों को

   और लोगों की अर्थ भरी मुस्कुराहटों को 

मुरादाबाद की कवयित्री डॉ रीता सिंह जी ने सुंदर मुक्तक से मंच का मान बढ़ाया.....

" पीर परायी आँसू मेरे ,कुछ ऐसे अहसास चाहिये ,

महके सौरभ रेत कणों में ,हरी भरी इक आस चाहिये ।। 

चमक दिखाती इस दुनिया में ,नहीं झूठी कोई शान चाहिये ,

मुझको तो सबके चेहरे पर ,इक सच्ची मुस्कान चाहिये ।।

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर ने मंच को इस प्रकार अपनी वाणी से सम्मानित किया_

"शब्द पिरोने का यह सपना, इन नैनों में पलने दो।

मैं राही हूॅं लेखन-पथ का, मुझे इसी पर चलने दो।

कल-कल करती जीवनधारा, पता नहीं कब थम जाए,

मेरे अन्तस के भावों को, कविता में ही ढलने दो।" 

लखनऊ के वरिष्ठ साहित्यकार चंद्र देव दीक्षित 'शास्त्री'  ने मंच को सुंदर गजल से सुशोभित किया....

"अब ज़माने का चलन न्यारा मुझे लगने लगा,

 दर्द ही न जाने क्यों प्यारा मुझे लगने लगा।।" 

    जबलपुर के लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार बसंत कुमार शर्मा  ने सुंदर पंक्तियों से मंच को सजाया....

" जिसमें दिखती हो सच्चाई वह तस्वीर बने. 

किसमें इतनी हिम्मत है जो आज कबीर बने. "

प्रयागराज के वरिष्ठ साहित्यकार अशोक श्रीवास्तव ने नारी सशक्तिकरण पर रचनाएं सुनाई ....

"करते कन्या भोज, गर्भ पर चलती आरी, 

पूजी जाती मूर्ति, छली जाती है नारी." 

मध्य प्रदेश जबलपुर के वरिष्ठ साहित्यकार आचार्य संजीव वर्मा सलिल ने व्यंगात्मक रचनाओं से समाज को दिशा दिखाते हुए अपनी बात कही....

"बाप की दो बात सह नहीं पाते।

अफसरों की लात भी प्रसाद है।।

*

पत्थर से हर शहर में मिलते मकां हजारों

मैं ढूँढ ढूँढ हारा घर एक नहीं मिलता।।"

*

अयोध्या से डॉ स्वदेश मल्होत्रा रश्मि" जी ने सुंदर ग़ज़ल से मंच को सुशोभित किया

लाख ओढ़े हिजाब होता है

चेहरा सबका किताब होता है

रोज चढ़ता है जो स्लीबों पर 

शख्स वो ही गुलाब होता है

इसके अतिरिक्त नरेंद्र भूषण, गोविंद रस्तोगी, श्याम सुंदर तिवारी, सुरेश चौधरी तथा सुधीर देशपांडे  ने कार्यक्रम में प्रतिभाग कर अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं। कार्यक्रम की संचालिका दीपिका माहेश्वरी ने आभार व्यक्त किया। 










:::::::प्रस्तुति::::::

डॉ दीपिका महेश्वरी 'सुमन' (अहंकारा)

 संस्थापिका 

 सुमन साहित्यिक परी 

 नजीबाबाद, बिजनौर 

 उत्तर प्रदेश, भारत

 मोबाइल फोन नंबर 7060714750

सोमवार, 27 सितंबर 2021

मुरादाबाद मंडल के नजीबाबाद(जनपद बिजनौर) के साहित्यिक समूह 'सुमन साहित्यिक परी' की ओर से रविवार 26 सितंबर 2021 को स्ट्रीम यार्ड पर आयोजित ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी

       मुरादाबाद मंडल के नजीबाबाद (जनपद बिजनौर) के साहित्यिक समूह 'सुमन साहित्यिक परी'  की ओर से रविवार 26 सितंबर 2021 को स्ट्रीम यार्ड पर, विभिन्न काव्य विधाओं पर आधारित " उन्मुक्त काव्यधारा" नामक कार्यक्रम के अंतर्गत एक  ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसका प्रसारण समूह के पेज दीपिका महेश्वरी 'सुमन'  पर लाइव किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ  मुरादाबाद के प्रतिष्ठित साहित्यकार राजीव प्रखर जी द्वारा  माँ सरस्वती की वंदना से किया गया।  

 कार्यक्रम में मुरादाबाद से वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कोरोना काल के संदर्भ में मुक्तक प्रस्तुत करते हुए कहा -

"सुन  रहे यह साल  आदमखोर है। 

हर तरफ  चीख, दहशत, शोर है ॥

मत कहो वायरस जहरीला बहुत। 

 इंसान ही आजकल कमजोर है॥"

मुरादाबाद से चर्चित रचनाकार राजीव प्रखर ने अपने मुक्तकों की प्रस्तुति से मंच को इस प्रकार सुशोभित किया-

"दूरियों का इक बवंडर, जब कहानी गढ़ गया ।

मैं अकेला मुश्किलों पर, तान सीना चढ़ गया ।

हाल मेरा जानने को, फ़ोन जब तुमने किया,

सच कहूँ तो ख़ून मेरा, और ज़्यादा बढ़ गया ।" 

मुरादाबाद से युवा साहित्यकार अरविंद कुमार शर्मा 'आनंद' ने अपनी सुंदर ग़ज़ल से दर्शकों को भावविभोर किया-

"वही मंज़िलें हैं, वही रास्ते हैं।

वही हौसले हैं, वही हादसे हैं॥"

मुरादाबाद से उपस्थित कवयित्री डाॅ. रीता सिंह की अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार थी ----- 

"सूरज प्राची से जब झांके , धरती पर मुस्काता कौन ।

खग समूह में पर फैलाये , कलरव गीत सुनाता कौन ।"

नजीबाबाद की कवयित्री दीपिका माहेश्वरी 'सुमन' (अहंकारा) ने ग़ज़ल के माध्यम से विश्वकर्मा जी को नमन वंदन किया----

" विश्वकर्मा जी हो जाए जगह धन्य जहां आकर रुकें। 

बन जाए प्यारा आशियाना जहां आकर रुकें ॥" 

काव्य-पाठ करते हुए प्रयागराज के वरिष्ठ ग़ज़ल कार अशोक श्रीवास्तव ने अपनी सुंदर गजल से मंच को इस प्रकार से शोभित किया-

"किसी के हाथ पीले हो रहे हैं, 

किसी के नैन गीले हो रहे हैं |" 

लखनऊ से व्यंग्य कवि मनमोहन बाराकोटी 'तमाचा लखनवी' ने मुक्तकों से मंच की शोभा बढ़ाई-

"संघर्ष की हर राह, कांटों की सेज होती है।

प्रतिभा विहीनों की चमक निस्तेज होती है।।

बनके यथार्थ चिन्तक, पैनी नजर जरूरी,

कलम की धार, तलवार से भी तेज होती है।।" 

कोलकाता से उपस्थित हुए वरिष्ठ कवि कृष्ण कुमार दुबे ने मनमोहक ग़ज़ल से मंच को सुशोभित किया-

"ले गया मंज़िल तलक जो रहगुज़र अच्छा लगा।

साथ जिसने है निभाया राहबर अच्छा लगा।"

कानपुर से साहित्यकार विद्याशंकर अवस्थी पथिक  ने कविता में चक्रव्यूह युद्ध नीति का वर्णन किया-

"चक्रव्यूह का नाम सुना तो धर्माचार्य भी घबड़ाये। 

रणभूमि में कल क्या होगा सोंच सोच कर चकराये। "

जबलपुर से सुप्रसिद्ध साहित्यकार बसंत कुमार शर्मा ने मंच को ग़ज़ल से सुशोभित किया-

" कुछ और नहीं यूँ ही सताने के लिए आ 

हक़ है मेरे दिल पर ये जताने के लिए आ

लखनऊ से ही प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ कुलदीप नारायण सक्सेना ने मंच को इस अंदाज़ में सुशोभित किया -

 " स्वप्न संजोना व्यर्थ नहीं है

बाधाओं का तर्क यही है

गिरना फिर साहस कर उठना

जीवन का बस अर्थ यही है

मेरठ से वयोवृद्ध साहित्यकार गोविंद रस्तोगी ने गीत विधा में मंच को इस प्रकाश शोभित किया-

" धरती के कण कण में राधे

मन में मन दर्पण में राधे।"

लखनऊ से वरिष्ठ कवि  मनोज कुमार श्रीवास्तव ने अपनी कविताओं से मंच को सुशोभित किया-

" मैं राष्ट्र धर्म मैं पुण्यकर्म

जो बलिदानों के गीत लिखे"

लखनऊ से सुप्रसिद्ध गीतकार राममूर्ति सिंह अधीर ने सुमधुर गीत से मंच को सुशोभित किया-----

"ये बादल क्यों आ जाते हैं,

क्यों मनमीत नहीं आते हैं?" 

खंडवा मध्य प्रदेश से प्रसिद्ध नाटककार सुधीर देशपांडे ने अपनी कविता से मंच को इस प्रकार सुशोभित किया-----

"बच्चों की चाहत

होती है

कंधों पर चढकर

आसमान को छूने की" 

 अशोक चौधरी  लखनऊ, आलोक रावत  लखनऊ, मिथिलेश बडगैयाजबलपुर, अनिल शर्मा अनिल  धामपुर,डॉ संगम लाल त्रिपाठी भंवर जी प्रतापगढ़, अशोक गिरि कोटद्वार, अमर चंद जैन फरीदाबाद आदि साहित्यकारों  ने समीक्षा चरण में भाग लिया

समूह-संस्थापिका तथा कार्यक्रम-संचालिका दीपिका महेश्वरी 'सुमन' द्वारा आभार-अभिव्यक्त किया गया।











 :::::::: प्रस्तुति ::::::

 दीपिका महेश्वरी सुमन

 संस्थापिका'

 सुमन साहित्यिक परी' समूह

 नजीबाबाद, जनपद बिजनौर

 उत्तर प्रदेश, भारत

मंगलवार, 31 अगस्त 2021

मुरादाबाद मंडल के नजीबाबाद (जनपद बिजनौर) के फेसबुक पर संचालित समूह सुमन साहित्यिक परी की ओर से रविवार 29 अगस्त2021 को आयोजित ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी


मुरादाबाद मंडल के नजीबाबाद (जनपद बिजनौर) के फेसबुक पर संचालित समूह सुमन साहित्यिक परी की ओर से रविवार 29 अगस्त 2021 को  स्ट्रीम यार्ड पर, गीत और नवगीत विधाओं पर आधारित "रसभरे  व अलबेले गीत-नवगीत" शीर्षक से ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसका प्रसारण समूह के पेज दीपिका माहेश्वरी 'सुमन'  पर लाइव किया गया। मुरादाबाद के युवा रचनाकार राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत माँ सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए  कार्यक्रम में विभिन्न रचनाकारों ने अपने गीतों/ नवगीतों के माध्यम से अलबेली छटा बिखेरी। संचालन दीपिका माहेश्वरी 'सुमन' ने किया।

काव्य पाठ करते हुए मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मनोज रस्तोगी ने व्यंग्य के पैने तीर छोड़ते हुए कहा--- 

"स्वाभिमान भी गिरवीं 

रख नागों के हाथ। 

भेड़ियों के सम्मुख

टिका दिया माथ। 

इस तरह होता रहा 

अपना चीरहरण।" 

मुरादाबाद के युवा रचनाकार राजीव प्रखर ने पारिवारिक मूल्यों का स्मरण करते हुए कहा - 

"वही पुरानापन आपस का, 

वापस लायें। 

चौके में पहले सी पाटी, 

चलो बिछायें।" 

नजीबाबाद की कवयित्री तथा समूह संस्थापिका दीपिका माहेश्वरी 'सुमन' (अहंकारा) ने अपने गीत को विरह का रंग दिया - 

"अश्रुधारा क्यों है भरी,

इन आंखों में बोलो प्यारी। 

पीड़ा कहो कुछ हम से

अब पद्मन के खोलो प्यारी ॥"

लखनऊ के उदय भान पाण्डेय 'भान' की प्रस्तुति इस प्रकार रही -  

"मीत, तुझे  कैसे  समझाऊँ...

मैं हूँ इक आवारा बादल,

तेरे ढिग  कैसे  मैं  आऊँ।। 

मीत, तुझे कैसे समझाऊँ... । 

खण्डवा (म. प्र.) के सुप्रसिद्ध नवगीतकार श्याम सुंदर तिवारी ने आयोजन की रंगत बढ़ाते हुए कहा  - 

"आँच है अब भी अलावों में। 

रहेंगे कब तक अभावों में।। 

पूस के घर रात ठहरी है। 

रोशनी अंधी है बहरी है।

बन्द हैं सपने तनावों में।।" 

कोलकाता से उपस्थित हुए वरिष्ठ कवि कृष्ण कुमार दुबे ने गीत प्रस्तुत किया-

"प्यार जब से मिला है तुम्हारा प्रिये, 

सूने मन को हमारे सदाएँ मिलीं। 

दो दिलों का परस्पर मिलन हो गया, 

बंध अनुबंधी नूतन कथाएँ मिलीं।" 

जबलपुर से उपस्थित हुए वरिष्ठ साहित्यकार आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने कार्यक्रम को और भी ऊँचाई पर ले जाते हुए नवगीत से कुछ इस प्रकार मंच को सुशोभित किया-

"मानव !क्यों हो जाते, 

जीवन संध्या में एकाकी?" 

कानपुर के रचनाकार विद्याशंकर अवस्थी पथिक ने गीत में देशभक्ति का रंग उड़ेला-

"आज मैं प्यारे भारत की एक गौरव गाथा गाता हूं। अमर शहीद उन वीरों की तुमको कथा सुनाता हूं॥"

जयपुर  से सुप्रसिद्ध साहित्यकार गोप कुमार मिश्र दद्दू ने अपने गीत का रंग कुछ इस प्रकार घोला- 

"अश्रुधार की मुस्कानों में,

बचपन लिखता गजब कहानी। 

जज्ब हुए जज्बात बन गये, 

ढुलक गया वो बहता पानी।।" 

जबलपुर से सुप्रसिद्ध रचनाकार बसंत कुमार शर्मा की सुंदर अभिव्यक्ति इस प्रकार रही -

"सूरज से की जल की चाहत, 

कैसी हमसे भूल हो गई। 

आशाओं की दूब झुलसकर, 

धरती की पग धूल हो गई." 

जबलपुर से ही उपस्थित साहित्यकार  मिथिलेश बडगैया ने सुंदर गीत से समां बांधा -

"मैं संध्या का वंदन हूंँ , 

मैं प्रत्यूषा का स्वागत हूंँ। 

नदियों के कल-कल निनाद से,  

झंकृत हूंँ, मैं भारत हूंँ।" 

लखनऊ से सुप्रसिद्ध साहित्यकार नरेन्द्र भूषण ने कहा -

 "सुनते नहीं और की बस अपनी ही बात सुनाते लोग।। 

अर्थों के भी अर्थ पुनः उसके भी अर्थ लगाते लोग।।" 

लखनऊ से ही प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. कुलदीप नारायण सक्सेना  ने गांव की याद दिलाते हुए गीत मैं गांव की मिट्टी का रंग उड़ेला- 

"खेल रहा था यहीं कहीं पर 

खोजो, मेरा गांव खो गया। " 

लखनऊ से वयोवृद्ध साहित्यकार देवकीनंदन शांत ने सुरमय गीत की छटा कुछ इस प्रकार बिखेरी - 

"फूल अपना जवाब माँगे है! 

अपनी खुशबू गुलाब माँगे है !!" 

समूह संस्थापिका तथा कार्यक्रम-संचालिका दीपिका माहेश्वरी 'सुमन' ने आभार-अभिव्यक्त किया।