शिव अवतार रस्तोगी सरस लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
शिव अवतार रस्तोगी सरस लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 20 सितंबर 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष आनंद स्वरूप मिश्रा का कहानी संग्रह ..."टूटती कड़ियां" वर्ष 1993 में सागर तरंग प्रकाशन मुरादाबाद से प्रकाशित हुआ था। प्रस्तुत है मुरादाबाद के बाल साहित्यकार शिव अवतार सरस जी द्वारा लिखी गई इस संग्रह की भूमिका

कथा साहित्य को भाव-संप्रेषण का एक सशक्त माध्यम कहा जाता है । इसका इतिहास भी मानव सभ्यता के इतिहास जितना ही पुराना है जिसके प्रमाण हैं अजन्ता और ऐलोरा आदि गुफाओं के वे भित्तीचित्र जो आज भी उस समय की शिकार- गाथाओं का सम्यक संप्रेषण कर रहे हैं। साहित्य की इस सर्वाधिक चर्चित विधा को विश्व की सभी भाषाओं ने उन्मुक्त भाव से अपनाया है। कारण स्पष्ट है क्योंकि समय की दृष्टि से एक कहानी स्वल्प समय में ही सहृदय पाठक के अन्तस्तल को झकझोर कर एक नयी दिशा में सोचने के लिये विवश कर देती है। कहानी में विद्यमान जिज्ञासा का भाव रसग्राही पाठक को आस-पास के वातावरण से दूर ले जाता है। कहानी में प्रयुक्त अन्तर्द्वन्द्व उसे अपने जीवन से जोड़ने का प्रयास करते हैं और पात्रों का मनो- वैज्ञानिक चित्रण उसे अपने निकटस्थ प्रिय एवं अप्रिय लोगों की याद दिलाता है । इस दृष्टि से एक कहानी साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा मानव-मन के अधिक निकट प्रतीत होती है।

'टूटती कड़ियाँ' शीर्षक संकलन के रचनाकार श्री आनन्द स्वरूप मिश्रा स्वातन्त्र्योत्तर कथाकारों में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। जीवन के यथार्थ से सम्पृक्त चरित्र एवं घटनायें लेकर श्री मिश्र ने कथा और उपन्यास साहित्य में जो लेखनी अपने विद्यार्थी जीवन में चलाई थी वह आज ३५-४० वर्षों के उपरान्त भी अवाध गति से चल रही है। इस ग्रंथ में मिश्र जी की उन बारह कहानियों का संकलन है जो विगत ३२ वर्षों के अन्तराल में अरुण, साथी, हरिश्चन्द्र बन्धु एवं विभिन्न वार्षिक पत्र-पत्रिकाओं आदि में स्थान प्राप्त कर चुकी हैं। ये सभी कहानियाँ प्रभावोत्पादकता की दृष्टि से अत्यन्त सशक्त मार्मिक एवं हृदय-ग्राह्य हैं। श्रेष्ठ कहानी के लिये आवश्यक तत्व जिज्ञासा की भावना इन सभी कहानियों में पूर्णरूप से विद्यमान है । कहानी कला के सभी तत्वों का इनमें पूर्णरूपेण निर्वाह हुआ है तथा आदि और अन्त की दृष्टि भी ये सभी कहानियाँ स्वयं में पूर्ण एवं प्रभावोत्पादक हैं। इन सभी कहानियों के सभी पात्र पारिवारिक एवं अपने आस-पास के ही हैं । कहानियों का कथानक सरल, संक्षिप्त, सुगम, मार्मिक एवं प्रभविष्णुता हैं ।

    श्री मिश्र जी की प्रायः सभी कहानियाँ समय की धारा के अनुसार प्रेम एवं रोमांस पर आधारित हैं। अध्ययनकाल के चंचल मन का प्रेम जब यथार्थ की कठोर भूमि पर उतरता है तो हथेली से गिरे पारद (पारे) की भाँति क्षणभर में छिन्न-भिन्न हो जाता है। त्रिकोणात्मक संघर्ष पर आधारित इस संकलन की अधिकांश कहानियों में कहीं प्रेमी को तो कहीं प्रेमिका को अपने अमर प्रेम का बलिदान करना पड़ता है। यदि संकलन की प्रथम कहानी 'टूटती कड़ियां' को लें तो ज्ञात होता है कि उद्यमी अध्यवसायी एवं महत्वाकांक्षी डा अविनाश का डा आरती के प्रति अविचल प्रेम, अवसर मिलने पर भी फलीभूत नहीं हो पाता और अन्त में उसी के आंसुओं के मूल्य पर उसे सलिला के साथ विवाह करना पड़ता है। यथार्थ की मरुभूमि पर जब आदशों के स्वप्निल बादल सूख जाते हैं तब अविनाश जैसे प्रेमियों को यही कहना पड़ता है- "आरती तुम सब कुछ खोकर भी रानी हो और मैं सब कुछ पाकर भी आज भिखारी हूँ ।"

    संकलन की दूसरी कहानी 'सुख की सीमा' की परिणति भी नारी के त्याग पर आधारित है। पति प्रमोद की बगिया हरी भरी रहे इस ध्येय से अध्ययन-काल की सहपाठिनी और बाद में धर्म-पत्नी के पद पर अभिषिक्त जिस रागिनी से स्वयं उमा को सपत्नी के रूप में चुना था उसी उमा के उपेक्षित व्यवहार एवं  एकाधिकार से क्षुब्ध होकर रागिनी को पुनः उसी पैतृक परिवेश  में लौट जाना पड़ता है जहाँ उसके इन साहसिक कृत्यों का कदम- कदम पर विरोध हुआ था ।

    'त्रिभुज का नया विन्दु' शीर्षक कहानी निश्चय ही एक  अप्रत्याशित अन्त लेकर प्रस्फुटित हुई है। कहानी का नायक डा अविरल अपनी चचेरी बहन की शादी में सोलह वर्षीया मानू से मिलता है और उसकी बाल-सुलभ चपलताओं को भुला नहीं पाता है। इधर दिल्ली विश्वविद्यालय में विज्ञान का प्रोफेसर बनकर वह अन्तिम वर्ष की छात्रा सुवासिनी के चक्कर में फँस जाता है। सुवासिनी होस्टल के वार्डन की पुत्री अनुपमा से मित्रता करके अविरल तक पहुंचने का मार्ग बना लेती है। उधर अविरल के माता-पिता चाहते हैं कि ऊँचे घराने की सुन्दर सुशील कन्या उनके घर वधू के रूप में पदार्पण करे। मगर सीनियर प्राध्यापकों की दृष्टि में सीधा-सादा, पढ़ाकू, दब्बू और लज्जालु अविरल इस त्रिभुज के मध्य एक नया विन्दु खोज लेता है और एम० एस-सी (प्रथम वर्ष) की एक हरिजन छात्रा 'ऋतु राकेश' के साथ प्रेम- विवाह कर सब को हतप्रभ कर देता है ।

    इसी संकलन में संकलित 'कोई नहीं समझा' शीर्षक कहानो बाल मनोविज्ञान पर आधारित है जो इस तथ्य पर चोट करती है कि प्रति वर्ष प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण विद्यार्थी ही महापुरुष बन सकता है । नायक शोतल बाबू का अनुज सुरेश हाई स्कूल में लगातार ५ बार फल होकर घर से भाग जाता हैं और फिर एक चुनौती भरा पत्र लिखकर भेजता है कि "मैं हाईस्कूल में पाँच साल फेल होकर भी बड़ा बनकर दिखलाऊँगा ।"

संकलन की एक कहानी 'उम्मीद के सितारे के तीनों पात्र- किशन, प्रमोद और मालती भी एक त्रिभुज के तीन कोण हैं जो भारत सेवक समाज के एक शिविर में एक ही मंच पर उपस्थित होकर परिणाम को एक अप्रत्याशित मोड़ दे देते है । एक पत्रिका के उपसम्पादक के रूप में मध्य प्रदेश चले जाने के कारण प्रेमी किशन और प्रेमिका मालती के मध्य दूरियां बढ़ जाती हैं और मालती हताश होकर समाज सेविका बन जाती है। इधर इसी समाज में प्रमोद नाम का एक भारत सेवक भी है जो स्वयं प्रेम का भूखा है। भावसाम्य के कारण प्रमोद और मालतो में परस्पर मित्रता हो जाती है और प्रमोद उसके साथ शादी कर के भविष्य की योजनायें बनाने लगता है। मगर शिविर की गतिविधियों की रिपोर्टिंग के लिये जब किशन इन दोनों के मध्य आता है तो इस कामना से चुप-चाप भाग जाना चाहता है कि भारत सेवक और समाज सेविका की जोड़ी खूब जंचेगी। मगर वेश बदलने पर भी जब वह मालती की निगाह से बच नहीं पाता है तो उसे मालती का प्रस्ताव स्वीकार कर लेना पड़ता है ।"

संकलन की अन्य कहानी 'कालिख' में डा० सत्येन्द्र का हृदय परिवर्तन कर कथासार ने एक आदर्श प्रस्तुत किया है। इसके साथ ही इस कहानी में उन दुर्दान्त प्रबन्धकों के मुख पर लगी उस कालिख को भो उजागर किया गया है जो भोली-भाली कन्याओं की विवशता का लाभ उठाकर उनका देह शोषण करते हैं और फिर समाज में हत्या और आत्म-हत्या जैसे अपराधों को बढ़ावा देते हैं । इस मार्मिक कहानी का अन्त पूर्णतः अप्रत्याशित है । डा सत्येन्द्र ने यह स्वप्न में भी न सोचा होगा कि जिस मालवी के भाई अभय को गुनाह से बचाने के लिये उन्होंने मालती के एवारशन की व्यवस्था की थी वही मालती उनकी पुत्र वधू बनकर उनके घर आ जायेगी। मगर नई विचार धारा का उनका पुत्र रवि जब मालती को अपनी सहधर्मिणी बना लेता है तो वह चाहते हुए भी उसका विरोध नहीं कर पाते हैं ।

   श्री आनन्द स्वरूप मिश्र की सभी कहानियाँ पाठकों के अन्तस्तल को झकझोर देने में पूर्णरूपेण समर्थ है। आशा-निराशा, उत्थान-पतन, आदर्श और यथार्थ के हिण्डोले में झूलते हुए इन कहानियों के सभी पात्र अपने ही निकट और अपने ही बीच के प्रतीत होते हैं। विद्वान कथाकार ने पात्रानुकूल और बोल-चाल की प्रचलित भाषा का प्रयोग करके इन कहानियों को यथार्थ के निकट खड़ा कर दिया है। वाक्य विन्यास इतना सरल और स्पष्ट है कि कहीं भी कोई अवरोध नहीं आ पाता - यथा 'यह सुवासिनी भी बड़ी तोप चीज है। आती है तो मानो तूफान आ जाता है । बोलती है तो जैसे पहाड़ हिल जाते हैं और जाती है तो सोचने को छोड़ जाती है ढेर सारा ।'( त्रिभुज का नया बिन्दु ) 

वातावरण के निर्माण में भी कथाकार को पूर्ण सफलता प्राप्त हुई है । यथा "बाहर दृष्टि दौड़ी-चारों ओर खेत ही खेत दिखाई देते थे । गेहूँ के नवल पत्ते सकुचाते हुए से अपना शरीर इधर उधर हिला रहे थे। कोमल कलियाँ अपनी वय: सन्धि की अवस्था में अँखुड़ियों के वस्त्रों से तन ढकती हुई अपने ही में सिमिट रही थी "...." (उम्मीद के सितारे)


श्री मिश्र ने अपने कथा शिल्प में अन्तर्द्वन्द के साथ फ्लैशबैक का भी पर्याप्त सहारा लिया है। इसी कारण आपकी कहानियों में जिज्ञासा को पर्याप्त स्थान मिला है। शैली की दृष्टि से वर्णनात्मकता के साथ इन कहानियों में संवाद शैली का भी यथेष्ठ उपयोग हुआ है। कुछ संवाद तो इतने सरल, सरस और सटीक है कि सूक्ति वाक्य ही बन गये हैं यथा - "एक आदर्श पति

तो बनाया जा सकता है पर आदर्श प्रेमी नहीं ।"

"नारी बिना सहारे के जीवित नहीं रह सकती ।" "एक नारी क्या कभी पराजित हुई है पुरुष के आगे ?"( शाप का अन्त)


श्री मिश्र एक सिद्ध हस्त लेखक हैं। अलग-अलग राहें, प्रीत की रीत, अंधेरे उजाले , कर्मयोगिनी शीर्षक उपन्यासों के प्रकाशन के उपरान्त आपका यह प्रथम कहानी संग्रह पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत है । आशा है कि जिस प्रकार हिन्दी जगत ने आपके उपन्यासों को सराहा और सम्मान दिया है उसी प्रकार यह कहानी संग्रह भी समादर और सम्मान प्राप्त करेगा ।



✍️ शिव अवतार 'सरस' 

मालती नगर

मुरादाबाद


::::::::प्रस्तुति::::::

, डॉ मनोज रस्तोगी

रविवार, 15 जनवरी 2023

वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ की बाइसवीं कड़ी के तहत 12, 13 और 14 जनवरी 2023 को प्रख्यात बाल साहित्यकार स्मृतिशेष शिव अवतार रस्तोगी सरस के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर तीन दिवसीय ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन







मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार स्मृतिशेष शिव अवतार रस्तोगी सरस के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से वाट्स एप पर तीन दिवसीय ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन 12, 13 और 14 जनवरी 2023 को किया गया । 

    

मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ की बाइसवीं कड़ी के तहत आयोजित कार्यक्रम के संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि 4 जनवरी 1939 को संभल के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में जन्में शिव अवतार रस्तोगी सरस की काव्य कृति अभिनव मधुशाला के अनेक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं । इसके अतिरिक्त उनकी प्रकाशित कृतियों में पंकज पराग, हमारे कवि और लेखक, नोकझोंक, सरस संवादिकाएं , पर्यावरण पचीसी, मैं और मेरे उत्प्रेरक और सरस बालबूझ पहेलियां उल्लेखनीय हैं।  गुदड़ी के लाल, राजर्षि महिमा, सरस-संवादिका शतक ,मकरंद मोदी,सरस बाल गीत आपकी अप्रकाशित काव्य कृतियां हैं । उनका निधन 2 फरवरी 2021 को हुआ।
     
उनके सुपुत्र पुनीत रस्तोगी ने कहा कि बाल साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें डा मैमूना खातून बाल साहित्य सम्मान' (चन्द्रपुर, महाराष्ट्र),भूपनारायण दीक्षित बाल साहित्य- सम्मान' (हरदोई) मिला। इसके अतिरिक्त
उन्हें रंभा ज्योति, हिंदी प्रकाश मंच, सागर तरंग प्रकाशन, संस्कार भारती, राष्ट्रभाषा विकास सम्मेलन, बाल-प्रहरी, अभिव्यंजना, ज्ञान-मंदिर पुस्तकालय, तथा अखिल भारतीय साहित्य कला मंच आदि संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है।
     
 राजीव सक्सेना ने कहा सरस जी की बाल कविताएं केवल बाल मनोभावों का सूक्ष्म चित्रण ही नहीं हैं, अपितु वे हमारे बचपन का 'टोटल रिकॉल' हैं। उनकी बाल कविताएं बच्चों से सीधा संवाद करती हैं, बतियाती हैं और बचपन को आधुनिक बाल परिवेश में रचती हैं। अपने बाल काव्य के माध्यम से वे अत्यंत सहजता के साथ बच्चों को संस्कारित भी करती हैं ।
     
अफजलगढ़ (जनपद बिजनौर) के साहित्यकार डॉ अशोक रस्तोगी ने कहा श्री सरस ने अपनी कालजयी कृति 'अभिनव-मधुशाला' में समाज और देश के भूत, वर्तमान और भविष्य के मदिरामयी विकृत व वीभत्स रूप का चित्र खींचते हुए ऐतिहासिक संदर्भों का भी उल्लेख किया है। मदिरापान से उपजे दुर्व्यसनों व दुष्परिणामों पर भी समुचित प्रकाश डाला  है। उनकी यह कृति समाज सुधार की दिशा में एक क्रांतिकारी साहित्यिक आंदोलन है। इसके अतिरिक्त संवाद शैली में रची उनकी बाल कविताएं बच्चों के जीवन को नैतिकता, मानवीयता व आदर्शवाद से भरपूर बनाती हैं।
        
शिव अवतार सरस की आत्मकथा मैं और मेरे उत्प्रेरक के संपादक बृजेंद्र वत्स ने कहा उनके बाल साहित्य में बच्चों की कोमल भावनाओं, संवेदनाओं व मन:स्थिति का दर्शन होता है। अभिनव मधुशाला उनकी कालजई काव्य कृति है ।
     
रंगकर्मी धन सिंह धनेंद्र ने कहा बाल रंगमंच के क्षेत्र में उनकी कविताएं उपयोगी है। उनका सहजता के साथ मंचन किया जा सकता है। मैंने स्प्रिंग फील्ड कालेज , देहली रोड के वार्षिकोत्सव में उनकी 'सास-बहू', 'कौआ-कोयल' और 2 अन्य संवादिकाओं का मंचन छोटे-छोटे बच्चों से कराया । स्वंय 'सरस' जी अपनी धर्म पत्नी के साथ अपनी  बाल-कविताओं का मंचन देखने कालेज की प्रधानाचार्या महोदया के निमंत्रण पर कार्यक्रम में पहुंचे थे। मंचन की हर तरफ प्रशंसा हो रही थी। स्कूल प्रबंधन, शिक्षिकाओं और अभिभावकों को इन नाटकों के मंचन ने बडा प्रभावित किया। छात्रों का उत्साह तो देखते ही बनता था। 'सरस' जी छात्रों के उस मंचन को यू देख कर गदगद् हो गए थे।
कुरकावली (जनपद संभल) के साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम ने कहा अद्भुत  व्यक्तित्व ,कर्मठ, अत्यंत सौम्य, बालक जैसे मन के साथ-साथ,समाज को पूर्णत: समर्पित थे कीर्तिशेष श्री शिव अवतार "सरस" जी। उनकी बाल पहेलियां मन को गुदगुदाती हैं। आपकी बाल रचनाएं  नया सवेरा, मेरी गुड़िया, मेरा घोड़ा, झरना, खजूर का पेड़ आदि पढ़ी। ये सभी  सुंदर सरल,सरस होने के साथ साथ,बच्चों का ज्ञानवर्धन करती बाल रचनाएं हैं। 
       
डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा सरस जी की काव्य प्रतिभा की जितनी प्रशंसा की जाए यह कम ही है ।वे जितने उच्च कोटि के कवि थे उतने ही मानवीय गुणों की खान थे।सहजता, सरलता समरसता उनके व्यक्तित्व में रची बसी थी।उनकी अनेक कृतियां शिक्षा जगत के लिए अमूल्य है । उनका साहित्य नैतिकता चारित्रिक उदारता व मानवीय संवेदना से परिपूर्ण है और भारतीय संस्कृति से साक्षात्कार कराता है।
      
अशोक विश्नोई ने कहा स्मृतिशेष शिव औतार रस्तोगी " सरस " जी बाल रचनाओं के  सशक्त हस्ताक्षरों में से एक थे,उनकी अधिकतर बाल रचनायें मंचीय हैं।कई रचनाओं का विद्यालयों में बच्चों द्वारा सफलतापूर्वक मंचन हो चुका है । उनकी रचनाओं में बाल पन झलकता है यह तभी संभव है जब रचनाकार बच्चों जैसा मन रखता हो यह विशेषता सरस जी में थी। वह बहुमुखी व्यक्तित्व के बहुत ही सरल ,विनम्र स्वभाव के रचनाकार थे। उनकी रचनाएं सामाजिक,राजनीतिक व प्राकृतिक विसंगतियों पर प्रहार भी करती है।
    
रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा अनेक साहित्यकारों के संदेशों, पत्रों तथा लेखों से भरी हुई उनकी पुस्तक “मैं और मेरे उत्प्रेरक”, उनके जीवन और कृतित्व के विविध आयामों को उद्घाटित करती है । अपनी इस पुस्तक में सरस जी ने बहुत सादगी से भरी भाषा और शैली में अपने जीवन का चित्रण किया है। 
    
श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा वे सरल, सहज, सरस  और सौम्य व्यक्तित्व के स्वामी थे। साहित्यिक मुरादाबाद पटल पर वह मेरी रचनाओं पर नियमित प्रतिक्रिया करते थे, जहाँ आवश्यकता होती सुझाव भी देते थे । उनका समस्त लेखन सहज और साधारण बोलचाल की भाषा में  है और उनका लेखन शिक्षाप्रद और समाज को सही दिशा दिखाने वाला है।
        
डॉ पुनीत कुमार ने कहा सरलता, सहजता, सौम्यता, शालीनता और विनम्रता,सरस जी में कूट कूट कर भरी थी। उनकी कालजयी कृति,"अभिनव मधुशाला" सबको बहुत प्रभावित करती थी । हम सब उसको मन से सुना करते थे। उनकी बाल रचनाओं में सरसता भी है,और संप्रेषणीयता भी।मनोरंजन के साथ साथ शिक्षा भी और संदेश भी।
       
अशोक विद्रोही ने कहा कि उनकी कृति अभिनव मधुशाला समाज को एक नई दिशा प्रदान करती है। उनकी बाल कविताओं की भाषा शैली सरल, सहज, सुबोध, सरस होने के कारण बच्चों के मन को छू जाती है।

       

अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा ने कहा सरस जी की लब्धप्रतिष्ठ रचनाएं -पर्यावरण पचीसी ,सरस बालबूझ पहेलियाँ ,उनकी बाल कविताएं 'मेरा घोड़ा ''मेरी गुड़िया''प्यारी चिड़िया'और 'नया बसेरा ' पढ़ने को मिलीं उनकी कविताओं में बालसुलभ जिज्ञासा और उसका समाधान दोनों ही बड़ी कोमलता से  परिलक्षित होतें हैं  कवि बच्चों के मन से बतियाते वह खुद बच्चे बन जाते हैं यह विशेषता उनके निर्मल मन को चिन्हित करती है

   

 धामपुर के साहित्यकार डॉ. अनिल शर्मा 'अनिल' ने कहा वह शिक्षक के रूप में बच्चों के मनोविज्ञान को बखूबी जानते थे और उसी के अनुसार प्रभावशाली बाल साहित्य की रचना करते थे।कोरी उपदेशात्मक रचना न करके किसी रोचक कविता, कहानी के माध्यम से वह सीख दे देते थे। अपने नाम के अनुरूप ही सरस जी ने सरस  साहित्य  ही रचा,जो पाठक/श्रोता के मन को सीधा प्रभावित करता है। वह सरस के साथ ही साथ सहज और सरल भी थे।
         
 साहित्यपीडिया की संस्थापक डॉ अर्चना गुप्ता ने कहा श्री सरस जी को मेरी बाल रचनाएं भी बहुत अच्छी लगती थी । उन्होंने मुझे बहुत प्रोत्साहित भी  किया बाल लेखन की तरफ। उनकी पहेलियां और  कविताएं फेस बुक और साहित्यिक मुरादाबाद में  पर पढती और प्रभावित होती रहती थी। फोन पर भी उनसे इस संदर्भ में  कई बार वार्तालाप हुये और उनका आशीष  मिलता रहा।
         
 रामपुर के साहित्यकार राम किशोर वर्मा ने कहा स्मृति शेष श्री शिव अवतार रस्तोगी 'सरस' जी ने साहित्य जगत में अपने जन्म स्थान सम्भल का नाम अमर कर दिया । सम्भल को उन जैसा रत्न मिला । वह केवल साहित्य तक ही सीमित न रहकर एक सामाजिक व्यक्ति भी थे जो सभी से प्रेमभाव भी रखते थे। मिलनसार थे ।
       
राजीव प्रखर ने कहा कि स्मृतिशेष गुरुवर श्रद्धेय सरस जी के सान्निध्य में मैंने काफी समय बिताया। मेरे राजीव कुमार सक्सेना से राजीव 'प्रखर' बनने तक की यात्रा में उनकी  अप्रत्यक्ष रूप से बहुत बड़ी भूमिका भी रही। उनकी कृति हमारी कवि और लेखक विद्यार्थियों में अत्यंत लोकप्रिय हुई इसमें साहित्यकारों का संपूर्ण परिचय कुंडलियों के रूप में था जो सरलता से याद हो जाता था।
       
हेमा तिवारी भट्ट ने कविता के माध्यम से श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा..
        सरस संवादिकाएं भाये,
        कवि और लेखक पथ दिखाए,
        नोकझोंक कायदा चाहिए,
        हमें सरस संपदा चाहिए। 

   डॉ प्रीति हुंकार ने कहा  श्री सरस जी मेरी बाल कविताओं के पहले समीक्षक थे। उन्होंने  मेरी प्रारम्भिक बाल कविताओं में सुधार किया । "नोक झोंक " नामक बाल कविता संग्रह भी उन्होंने मुझे आशीर्वाद स्वरूप दिया । उनके व्यक्तित्व में एक बालक की सी सौम्यता के दर्शन होते है 
        
मयंक शर्मा ने कहा साहित्यकार होने के साथ-साथ वे हिंदी के कुशल अध्यापक के रूप में भी विद्यार्थियों के प्रेरणा स्रोत रहे। मेरा सौभाग्य रहा कि महाराज अग्रसेन इण्टर कॉलेज में कक्षा 11 और 12 में उनके अध्यापन में हिंदी सीखने का अवसर मिला। वह इतने सरल और रोचक ढंग से हिंदी पढ़ाते थे कि 40 मिनट का पीरियड कब निकल जाता था, पता ही नहीं चलता था।  उनके मार्गदर्शन का ही प्रताप था कि विज्ञान का मैं विद्यार्थी बोर्ड परीक्षा में हिंदी में ही सबसे अधिक अंक ला पाया। मेरे प्रति उनका विशेष स्नेह था। विद्यालय स्तर पर होने वालीं वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में विद्यालय का प्रतिनिधित्व करने के लिए वह सदा मुझे ही चुनते थे।
       

जकार्ता, इंडोनेशिया की साहित्यकार वैशाली रस्तोगी ने कहा स्मृतिशेष शिव अवतार "सरस" जी विराट व्यक्तित्व के धनी थे। बहुत सारी स्मृतियां हैं जो हमारे ह्रदय में बसी हुई है। अनेक कविताएं आपके मुख से सुनी। आपने हमेशा लिखने  और सही सोच के साथ आगे बढ़ने का बढ़ावा दिया।
     
 ठाकुरद्वारा के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर ने कहा साहित्यिक मुरादाबाद के पटल पर "सरस" जी की जितनी भी रचनाओं को प्रस्तुत किया गया उन्हें पढ़कर सिद्ध होता है कि सरस जी  उच्च कोटि के साहित्यकार थे। विशेषकर बाल साहित्य की उनकी रचनाएं तो स्वयं में शोधशाला ही प्रतीत होती हैं।
         
  कंचन खन्ना ने कहा सरसजी का स्नेहपूर्ण आशीर्वाद मुझे उनके जीवन काल में प्राप्त होता रहा है। अनेक बार वह मेरे घर आये व मुझे उत्साहपूर्ण ऊर्जा प्रदान कर कुछ नवीन करने हेतु प्रेरित किया। उनकी रचनाएँ भी पढ़ीं व सुनीं। वह मुझे ऊर्जावान बेटी मानते थे और उनकी हार्दिक इच्छा जो उन्होंने एक बार फोन पर बताई कि वह मेरे जीवन पर एक पुस्तक अथवा लेख अपनी लेखनी द्वारा लिखना चाहते थे, जिससे कि समाज में अवसाद से घिरे लोग प्रेरित हो सकें।
   
नकुल त्यागी ने कहा साहित्यिक पटल मुरादाबाद पर स्मृति शेष शिव अवतार रस्तोगी सरस जी के बारे में चल रहे कार्यक्रम में पटल पर प्रस्तुत सामग्री पढ़कर हमें मुरादाबाद साहित्य की बड़ी  जानकारी प्राप्त हुई I स्मृति शेष श्री शिव अवतार रस्तोगी जी को मैंने अनेक बार साहित्यिक कार्यक्रमों में  सुना था I पटल पर विभिन्न साहित्यकारों के द्वारा प्रस्तुत विवरण को पढ़ने के बाद इतना अवश्य कहा जा सकता है कि वह एक उत्तम साहित्यकार और उत्तम शिक्षक के साथ-साथ एक उत्तम मानव भी थे I
       
स्मृतिशेष सरस जी की पुत्रवधु लीना रस्तोगी ने कहा मुझे हमेशा यह सोचकर सुखद अनुभूति होती है कि मैं ऐसे सरल, सौम्य व्यक्तित्व के विलक्षण साहित्यकार परम आदरणीय श्रद्धैय सरस जी के परिवार में बहू बनकर आई। सरस जी जो कार्य हाथ में लेते थे बड़ी ईमानदारी और निष्ठा से उस कार्य को करते थे। वह अपने उपनाम के अनुरूप ही हमेशा सरस रहे , यही कारण है कि कर्म क्षेत्र में आने के बाद वह खोया पाया के झंझट से मुक्त रहकर मात्र कर्म ही करते रहे। सेवा भाव उनके व्यक्तित्व कीविशेषता है, जिससे वे यथाशीघ्र किसी से भी सामंजस्य बना लेते थे।
     
स्मृतिशेष सरस जी की सुपौत्री शुभांगी रस्तोगी ने कहा  बाबाजी (सरस जी) के बारे में आप सबके लेख पढ़कर मैं शुभांगी अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रही हूं। बचपन से ही बाबा जी की बातें और बाल कविताएं सुनकर हम बड़े हुए हैं, आज आप सब ने उनके बारे में लिखकर हमारी यादें ताजा कर दी हैं। आदरणीय बाबा जी की यादें आज भी हमारे साथ हैं, यह मेरा सौभाग्य है कि मेरी बेटी  को भी उनका आशीर्वाद मिला।
     
स्मृतिशेष सरस जी की सुपुत्री ऋचा रस्तोगी ने कहा हमारे पिता जी (सरस जी) ने स्वयं के पुरुषार्थ  एवं स्वाध्याय के द्वारा अर्जित आजीविका से अपने बच्चों को बड़ा किया है। उनके बारे में आप सभी के लेख पढ़कर मैं बहुत भावुक हो रही हूं और अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रही हूं कि आज भी वह हम सब की यादों में जीवित हैं। बचपन से अब तक की यादें आप सब के माध्यम से ताजा हो रही हैं। आप सब का बहुत-बहुत धन्यवाद।
          कार्यक्रम में  आमोद कुमार अग्रवाल (दिल्ली), सूर्यकांत द्विवेदी (मेरठ), राजेश अग्रवाल, प्रदीप गुप्ता (मुंबई), रश्मि रस्तोगी, धैर्य शील आदि ने भी विचार रखे।
           
स्मृतिशेष सरस जी के सुपुत्र पुनीत कुमार रस्तोगी ने आभार व्यक्त करते हुए कहा श्रद्धेय पिताजी श्री शिव अवतार रस्तोगी सरस जी के साहित्य पर आयोजित गोष्ठी में सम्माननीय लेखक गण जिन्होंने उनके बारे में अपने विचार व्यक्त किए एवं दुर्लभ फोटोग्राफ डाले ,उन सभी का बहुत-बहुत आभार। इस गोष्ठी को आयोजित करके पिताश्री सरस जी को जीवंत रखने के लिए डॉ मनोज रस्तोगी जी का विशेष आभार ।

:::::: प्रस्तुति:::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर
9456687822
dr.rastogimanoj@gmail.com

शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष शिव अवतार रस्तोगी सरस की बाल कविताओं पर केंद्रित राजीव सक्सेना का आलेख .....बच्चों से बतियाती कविताएं । उनका यह आलेख "मैं और मेरे उत्प्रेरक" (श्री शिव अवतार सरस जी की जीवन यात्रा ) ग्रंथ में प्रकाशित हुआ है ।

 


कुछ कवि केवल बच्चों के कवि होते हैं और कुछ बच्चों के साथ-साथ बड़ों के भी। शिव अवतार रस्तोगी 'सरस' जी ऐसे ही बाल कवि हैं, जिनकी रचनाएं बच्चों के साथ ही बड़ों के लिए भी उपयोगी होती हैं। उनकी बाल-कविताएं बच्चों के अन्तर्मन को तो छूती ही हैं, बड़ों के भीतर किसी कोने में बैठे बालक को भी सहज ही गुदगुदाती रहती हैं। 'सरस' जी की कविताओं में बच्चों, बड़ों सभी को समान रूप से रसानुभूति होती है और यही उनकी बाल कविताओं की सबसे बड़ी शक्ति है। सरस जी की बाल कविताएं केवल बाल मनोभावों का सूक्ष्म चित्रण ही नहीं हैं, अपितु वे हमारे बचपन का 'टोटल रिकॉल' हैं क्योंकि इनमें बचपन की वापसी होती दिखायी पड़ती है या फिर हम बार-बार बचपन की ओर लौटते हैं।

      अपने काव्य-संग्रह में सरस जी ने ऐसी ढेरों कविताएं प्रस्तुत की हैं, जो बालकों के अन्तर्जगत की मन मोहक छवियों को तो निर्मित करती ही हैं, वह घरातल भी प्रदान करती हैं जिनमें बचपन पल्लवित होता है। सरस जी की बाल कविताओं का रचना आकाश भी बड़ा व्यापक है और बचपन, उनमें कल्पना की ऊँची उड़ानें भरता हुआ ही नहीं, बल्कि सतरंगे सपने बुनता हुआ भी दिखायी पड़ता है। सरस जी की बाल कविताओं में बचपन के लगभग सभी शेड उपस्थित हैं। इस दृष्टि से देखा जाए तो उनका सम्पूर्ण संकलन बचपन का एक सम्मोहक आभा दर्पण है ।

     इस संकलन की ख़ास बात यह है कि इसमें कवि ने बच्चों के इर्द-गिर्द मौजूद सूरज, चन्दा, बादल, झरना, पेड़ जैसे प्राकृतिक उपादानों के ऊपर कई रोचक और मोहक कविताएं रची हैं। इन कविताओं में प्रकृति के प्रति एक सहज लगाव या जुड़ाव तो परिलक्षित होता ही है, प्रकृति के प्रति संवेदना और उसे बचाये रखने के लिए एक आग्रह भी स्पष्ट तौर पर लक्ष्य किया जा सकता है। प्रकृति के बिना बचपन बेमानी है, इस तथ्य को यदि मौजूदा दौर में किसी बाल-कवि ने सर्वाधिक प्रमाणिक ढंग से स्थापित किया है, तो वे बस सरस जी ही हैं। ऐसे समय में, जबकि प्रकृति बाल-काव्य तो क्या, स्वयं मुख्य धारा की हिन्दी कविता से भी लगातार बेदखल और काफी हद तक अदृश्य होती जा रही है, प्रकृति के प्रति सरस जी का यह रचनात्मक कदम सचमुच श्लाघनीय है। दरअसल, उनकी बाल कविताएं प्रकृति की बाल-काव्य की वापसी तो हैं ही, वे एक ऐसा प्रस्थान-बिन्दु भी उपस्थित करती हैं जिनमें भविष्य के बाल-कवि भी अपनी राह खोज सकते हैं।

       अगर बाल कविताओं के बहाने प्रकृति सरस जी की चिन्ता का केन्द्र-बिन्दु है, तो बालकों के आस-पास मौजूद जीव-जगत भी उन्हें एक व्यापक चेतना से जोड़ता है। शायद यूँ ही बया और बन्दर, शेर और चूहा, कौआ, मुर्गा, खरगोश, बिल्ली और गौरैया सहित अनेक जीवों एवं प्राणियों को भी अपनी चिन्ता के केन्द्र में रखते हुए मौलिक कविताएं रचकर अपनी रचना-धर्मिता के संग बाल-कविता को भी नये आयाम प्रदान किए हैं। सरस जी की इन कविताओं की खूबी यह भी है कि ये बेहद रोचक शैली में और पय-कथाओं के रूप में रची गयी हैं और बच्चों के साथ-साथ बड़ों को भी खासा गुदगुदाती हैं। 'चूहे चाचा, चुहिया चाची',  शीर्षक की ये पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं -

"बिल्ली मौसी पानी लाने, को सरिता तक जब निकली ।

सरिता में काई ज्यादा थी काई में बिल्ली फिसली।

मौका पाकर चूहे चाचा, चाची को लेकर भागे ।

चाची दौड़ रही थीं पीछे - चाचा थे आगे-आगे” 

सरस जी की बाल-कविताओं में यह हास्य अक्सर उपस्थित होता है, लेकिन उनकी बाल-कविताओं का हास्य शिष्ट है, उनमें भद्दापन बिल्कुल नहीं है और यही विशेषता उन्हें समकालीन हिन्दी बाल-कवियों के मध्य एक अभिजात्यता के साथ-साथ रचनात्मक वैशिष्ट्य भी प्रदान करती है। इन बाल कविताओं में ग़ज़ब की गेयता है, उन्हें किसी के द्वारा भी सहज ही गाया-गुनगुनाया जा सकता है। शायद इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि सरस जी की कविताएं छन्द, यति-गति की दृष्टि से 'परफेक्ट' हैं। उनका शब्द चयन भी विलक्षण है और प्रसिद्ध बालकवि 'दिग्गज मुरादाबादी' जैसा सटीक है। एक ऐसे दौर में, जबकि कविता, विशेषकर बाल-कविता, छन्द से दूर होती जा रही है और बाल-काव्य के नाम पर प्रभूत मात्रा में फूहड़ बाल-कविताओं का सृजन हो रहा है, सरस जी बाल-काव्य में 'छान्दसिकता के नये प्रतिमान' रच रहे हैं। सरस जी की बालोपयोगी कविताएं बालकाव्य में छन्द की वापसी का जीवंत प्रमाण हैं। उनकी बाल कविताओं के बारे में इस तथ्य का उल्लेख भी समीचीन होगा कि उनमें केवल गेयता ही नहीं, बल्कि अभिनेयता का तत्व भी विद्यमान है। इसके बरबस यह भी उल्लेखनीय है कि सरस जी की बाल कविताएं नाटक का कोई एकालाप (ब्रामेटिक नहीं हैं, बल्कि बच्चों से संवाद करती, बतियाती या खेल-खेल में कुछ सिखाती कविताएं हैं। सरस जी ने बाल काव्य के प्रतिमानों के अनुरूप और बाल साहित्य के अपरिहार्य तत्वों का समावेश करते हुए बालकों को कोई भी सीधा संदेश, उपदेश या प्रवचन देने से प्रायः परहेज किया है और वे शिक्षक की मुद्रा धारण करते हुए कभी बालकों पर तर्जनी उठाते दिखायी नहीं पड़ते, बल्कि स्वयं एक बच्चा बनकर बाल-मानस या बालकों की भीतरी दुनिया में प्रवेश कर उसके अनूठ बिम्ब प्रस्तुत करने का विनम्र प्रयास अवश्य करते हैं। शायद यूँ ही प्रस्तुत संग्रह की कविताएं बाल-मानस या बच्चों की दुनिया की एक सच्ची और काफी हद तक यथार्थ परक झाँकी प्रस्तुत करती हैं। वे अपनी बाल-कविताओं के ज़रिये बालकों के लिए आदर्श-परक किन्तु अव्यवहारिक किस्म की परिस्थितियाँ नहीं रचते हैं, न ही कोई 'यूटोपिया' प्रस्तुत करते हैं, बल्कि बच्चों की व्यावहारिक दुनिया को प्रतिबिम्बित करते हैं, जिसमें बालक सामान्य तौर पर निवास करते हैं। अपनी इसी खूबी के कारण सरस जी की बाल-कविताएं बच्चों के ही नहीं, बल्कि स्वयं बचपन के भी काफी करीब हैं। इसके अतिरिक्त कवि सरस जी इन कविताओं में बचपन को आधुनिक बाल-परिवेश और नये सन्दर्भों में भी रचने गढ़ने में सफल रहे हैं। लगातार लुप्त होते पक्षी गौरैया के प्रति कवि सरस जी की यह चिन्ता आधुनिक बाल-परिवेश और नये सन्दर्भों के प्रति उनकी रुचि और जुड़ाव को ही दर्शाती है

      भारतीय समाज में यह उक्ति बहुत प्रचलित है कि बच्चे हमारा भविष्य हैं, किन्तु वे भविष्य से कहीं ज्यादा हमारा वर्तमान भी हैं। दरअसल, भविष्य भी वर्तमान की नींव पर ही टिका होता है। अगर हम बच्चों का वर्तमान सँवारेंगे, तभी भविष्य सँवरेगा। सरस जी की कविताओं में इसी वर्तमान के प्रति एक आग्रह स्पष्ट तौर पर परिलक्षित होता है और वे बच्चों को बड़े सलीके या तरीके से संस्कारों की शिक्षा देते हुए उन्हें भविष्य के योग्य नागरिकों के रूप में रचना-गढ़ने की चेष्टा करते हैं। वे बाल काव्य के ज़रिये न तो स्वयं के लिए और न ही बच्चों के लिए कोई वायवी या बहुत दूर के लक्ष्य निर्धारित करते हैं। समग्र रूप में सरस जी की बाल कविताएं एक ऐसा सम्मोहक माया दर्पण हैं, जिसमें बच्चे तो अपना अक्स ढूँढ ही सकते हैं, स्वयं बचपन के भी ढेरों विम्ब पूरी भव्यता के साथ उपस्थित हैं। बाल कविता के इस माया दर्पण के दुर्निवार आकर्षण से बच्चों का तो क्या, बड़ों का भी बच पाना मुश्किल है। 


✍️ राजीव सक्सेना

डिप्टी गंज

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष शिव अवतार रस्तोगी "सरस" की ग्यारह बाल कविताएं उन्हीं की हस्तलिपि में ....