(1) आम के आम गुठलियों के दाम
एक गांव में आया सेठ।
दिखने में लगता था ठेठ ।।
बीच गांव में रहने आया।
सुंदर सा एक सदन बनाया।।
नाम सेठ का था घनश्याम।
उसको अच्छे लगते आम ।।
काश आम के बाग लगाऊं।
मीठे मीठे आम उगाऊं।।
सेठानी को बात बताई।
सेठानी ने जुगत लगाई।
उत्तम आमों को मंगवाओ।
आप सहित सबको खिलवाओ।।
फिर सबसे बढ़िया आमों की।
गुठली ले लो कुछ दामों की।।
उन गुठली से पेड़ लगाओ।
सदन के चारों ओर सजाओ।।
युक्ति भली थी सेठ सुहाई।
सेठानी भी थी मुस्काई।।
दूर-दूर से आम मंगाए ।
मीठी खुशबू मन को भाए।।
जर्दालू वनराज मंगाया।
केशर किशन भोग भी आया।।
लंगड़ा चौसा फ़जली देखो ।
दशहरी भी असली देखो ।।
बैगनपल्ली नीलम लाए।
हिमसागर की खुशबू भाए।।
भांति भांति के आम मंगाए ।
गांव वासी सभी बुलाए ।।
सब खाएंगे बारी-बारी।
आमों की थी किस्में सारी ।।
जिसके जितने मीठे आम ।
उसे मिलेंगे उतने दाम ।।
सही आम की गुठली देना।
रजत मुहर मुंशी से लेना।।
जी भर के आमों को खाया।
गुठली का भी पैसा पाया।।
तब से चली कहावत आम।
आम के आम, गुठली के दाम।।
(2) सौ सुनार की एक लुहार की
(3) जागो गुड़िया रानी
देखो आई, भोर सुहानी।
जागो मेरी, गुड़िया रानी।।
चीं चीं करती, चिड़िया आई।
मीठा गाना, दिया सुनाई।।
कहती है अब, उठो सयानी।
जागो मेरी, गुड़िया रानी।
नभ में लाली, प्यारी छाई।
पवन ले रही, है अँगड़ाई।।
बहती कहती, सुन लो बानी।
जागो मेरी ,गुड़िया रानी।
मुख पर मीठी, सी स्मित छाई।
देती मुझको, खूब दिखाई।
उठकर पी लो, कोसा* पानी।
जागो मेरी, गुड़िया रानी।।
सोती जल्दी, मेरी गुड़िया।
अच्छी प्यारी, मेरी गुड़िया।
जल्दी उठकर, बनो सयानी।
जागो मेरी, गुड़िया रानी।।
*कोसा= गुनगुना
(4) जाड़ा आया
ठंडा ठंडा मौसम आया।
कम्बल गर्म रजाई लाया।।
सुख भरता है जम कर सोना।
नर्म नर्म सा मिले बिछौना।।
गाजर खोया पापा लाये
मम्मी से हलुवा बनवाये।।
बबलू गुड्डू मिलने आये।
तिल, मेवों के लड्डू लाये।।
हमने लड्डू जम कर खाये।
बबलू गुड्डू हलवा पाए।।
मूंगफली दादा जी देते।
दादी से हम गज्जक लेते।।
स्वेटर मफलर टोपी मोजा।
नानी के घर जाऊँ रोजा।।
बाजरे के लड्डू खाऊँ।
पापड़ी बेसन की पाऊँ।।
सब बच्चों सँग धूम मचाऊँ।
छुट्टी में मस्ती कर गाऊँ।।
लूडो कैरम जी भर खेलूँ।
भैया की भी बाजी ले लूँ।।
(5) किसकी कैसी बोली
म्याऊं म्याऊं बिल्ली की बोली,
कुत्ता बोले भौं भौं भौं।
कांव-कांव कहता है कौआ,
चिड़िया चीं चीं चूं चूं चौं।
ऊँट करे है बलबल बलबल,
ढेंचू ढेंचू गधा करे।
टर्र टर्र मेढ़क की बोली,
बंदर बोले खौं खौं खौं।
मैं मैं मैं मैं करती बकरी,
क्वैंक क्वैंक बत्तख बोले।
कुहू कुहू कोयल की बोली,
भैंस बोलती जैसे औं।
टें टें टें टें तोता बोले,
लेकिन हम सब उआं उआं ।
पूछ रही गुड़िया दादी से
हम बचपन में रोते क्यों?
✍ सपना सक्सेना दत्ता 'सुहासिनी'
सी ८०४ , अजनारा डैफोडिल सेक्टर १३७,
नोएडा २०१३०५
उत्तर प्रदेश,भारत