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मंगलवार, 13 फ़रवरी 2024

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रत्यक्ष देव त्यागी की ग़ज़ल ....मेरी ग़ज़ल को गढ़ना खुद में


 इतना भी क्या डरना खुद में,

जीते जी क्यों मरना खुद में ।।


प्यास बुझेगी मिलकर मुझसे,

छोड़ो खुद से लड़ना खुद में ।


तरसो जब मिलने को मुझसे,

मेरी ग़ज़ल को गढ़ना खुद में ।


जिसको चाहे पार लगा दो,

एक बार जो ठाना खुद में ।


प्यार कभी झूठा मत करना,

टूट है जाता इंसां खुद में ।


हर चेहरे में रब दिखता है,

गौर से झाँक के देखना खुद में ।


एक बार तो मिलना होगा,

और नहीं है जलना खुद में ।


रूह फ़ाख्ता हुई है मेरी,

मुझको होगा मारना खुद में।


कोई ये घर के शीशे तोड़ो,

मैं छोडूं उसे देखना खुद में ।


ताबीज़ बनाकर बांधें सारे,

फिर भी पड़ा ढूंढना खुद में ।


पत्थर की भी पूजा की है,

जब से पत्थर बना वो खुद में ।


जब हो उसमें गहरा डूबना,

पानी भरा मानना खुद में ।


तुमसे तो तन्हाई अच्छी,

इसे पड़ता नहीं मिलाना खुद में ।


हाथ किनारे लग जाएंगे,

थोड़ा गहरा डूबना खुद में।


✍️ प्रत्यक्ष देव त्यागी 

झ-28, नवीन नगर

काँठ रोड, मुरादाबाद -244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल:9319086769

शनिवार, 2 अक्तूबर 2021