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गुरुवार, 6 अप्रैल 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ......सच


संस्था के मुखिया के साथ दुर्व्यवहार होता रहा और किसी को पता तक नहीं कैसे गैर जिम्मेदार लोग हो ....... देखा नहीं तो सुना तो होगा कान तो खुले होंगे ......। "जांच अधिकारी ने सवाल किया ...."।                                                    मैं भी औरों की तरह  मुंह लटकाए गूंगा बहरा बना रहा क्योंकि सच बोलना उस समय किसी गुनाह से कम न था ।                                                                               मन करता है साले सबको सस्पैंड करूं ........ताकि लापरवाही करना भूल जाएं।अधिकारी बड़बड़ाते हुए चला गया और सच अब भी कही दबा पड़ा था ।


✍️ डॉ प्रीति  हुंकार 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

शुक्रवार, 11 नवंबर 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉक्टर प्रीति हुंकार की लघु कथा ..... आखिर वह क्या करे....



"ये बच्चे तुम्हारे भी तो हैं अमन,मैं नौकरी न कर रही होती तो भी तो तुम इन बच्चों की जिम्मेदारी उठाते कि नहीं ।"बच्चों की पढ़ाई ,मकान लोन दवाई गोली ,अतिथि सत्कार घर की छोटी से छोटी जरूरत तुम मेरे जिम्मे करके स्वयं चिंता मुक्त हो ,कभी तो सोचो कि मैं अकेले कैसे मैनेज करती हूं कहते कहते अवनि के नेत्रों से अश्रु धारा वह निकली......।"अगर मुझे जिम्मेदारी उठानी होती तो तेरी जैसी काली कल्लो से शादी क्यों कर लेता । खैर कर ,की भगवान ने तुझे नौकरी दी है वरना तेरी जैसी बदसूरत औरत से रिश्ता करने की क्या पड़ी थी मुझे । हर लड़के ने नापसंद किया था तुझे बस मैं ही अभागा था जो तू मेरे ......अमन ने  अवनि की आवाज़ दबाते हुए गुर्राते हुए व्यंग्य किया । 

जीवन के बीस वर्षों में जब भी अवनि ने अपने नौकरीपेशा पति अमन को उसकी जिम्मेदारी बतानी चाही ,कभी वह मोबाइल में शेयर देखने लगता, कभी उससे अलग हो जाने की कहता कभी चरित्र पर ऊंगली उठाता और कभी बदसूरती की दोहाई देता ,पर अपने समस्त कर्त्तव्यों का सम्यक निर्वहन करके भी अवनि स्वयं से प्रश्न करती  रह जाती कि आखिर वह क्या करे ..........? पर उत्तर शायद ही उसे मिल पाता।


✍️ डॉ प्रीति हुंकार

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 2 अप्रैल 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की रचना --चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा की, सबको है शत बार बधाई


 नव संवत की बेला आई 

वसुधा ने पाई  तरुणाई


वीथि वीथि मंन्त्रों का गुंजन

मन मंदिर में माँ का वंदन 

प्रतिपल प्रकृति पुलकित मुखरित

महक उठा खुशियों का चंदन ।

पुण्य धरा पर आर्यवर्त की 

गूँज उठी पावन शहनाई ।

नव संवत की बेला आई ।


गेहूं और सरसों की फसलें 

घर आँगन में पटी हुईं है ।

खेत और खलिहान महकते 

जन की भीड़ें डटी हुई है ।

आम्रमंजरी झुकी धरा पर 

आलिंगन करने को आई ।

नव संवत की बेला आई ।.

मंद सुगंधित अनिल बही है 

भौरों का दल आया है ।

कुसुमाकर ने निज प्रभाव से 

मन सबका बहकाया है । 

चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा की 

सबको है शत बार बधाई ।

नव संवत की बेला आई ।

✍️ डॉक्टर प्रीति हुंकार 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


गुरुवार, 2 सितंबर 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ----जोंक

"अब तो हमीं नजर आयेंगे इनको बिटवा ......।एक समय जब हमरी कौनू औकात  ना थी इनकी नजर में , सब तरफ  जोंकें ही चिपकी रहतीं थी ....अब शरीर में चूसने को कुछ बचा ही नही तो जोंकें भी नहीं दिखतीं .....।  एक हाथ में पानी का गिलास  पकडे और दूसरे  से पंखा झलती हुई अम्मा अन्योक्ति में कहे जा रहीं थीं ...।।

✍️ डॉ प्रीति हुंकार, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश ,भारत

गुरुवार, 26 अगस्त 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ---काफिर ही सही


रुखसार ने फोन कॉल रिसीव की तो एक जानी पहचानी आवाज एक लम्बे अरसे बाद सुनकर उसकी हृदय गति तेज हो गई ........। अब्दुल गफ्फार! जी ...आज ...अचानक.. "रुखसार सिसकते हुए कहने लगी" ।

    हाँ मैं ....हाँ मैं ,तुम्हारा अब्दुल जो कभी तुम्हें और इस वतन की मिट्टी को मनहूस कहकर  हमेशा के लिए छोड़ गया था आज मुझे मेरी करनी का फल मिल गया है । मेरी दूसरी पत्नी व तीन बच्चे तालिबान सैनिकों ने बंधक बना लिए हैं ।सारी सम्पत्ति जब्त कर ली है । किसी तरह जान बचाकर तुम्हें फोन किया है ,बस तुम ही कुछ कर सकती हो .... कहते कहते फफक पडा़ वह । 

      यह क्या अब्दुल ने नौ साल बाद फोन किया ...वह भी अपने स्वार्थ के लिए । हाय किस्मत , मैं तो कुछ और समझ बैठी... पर हाँ कुछ तो करना होगा मुझे तुम्हारे लिए ...तुम्हारे बच्चों के लिए।तुमने सही कहा था कभी कि काफिर हूँ मैं ..तो काफिर ही सही । 

✍️ डॉ प्रीति हुंकार, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 19 जून 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा --वचनौषधि

 


छोटे से अस्पताल के उस डाक्टर की कोई खास पहचान नहीं थी पर मरीजों के इलाज करने का उसका अनोखा अन्दाज मेरे दिल को छू गया ।ससुर की तबीयत जब काफी बिगड़ने लगी तो मैं अपने मोहल्ले के अस्पताल में दिखाने ले गई ।डर भी था कुछ पर जो भी जाँच की गई उसे डॉक्टर साहब ने सामान्य ही बताया ।ससुर जी को खाँसी थी ।मैं उन्हें खाँसने को मना कर रही थी तो डॉक्टर साहब ने मुझे रोका ।वे बोले घबराने की जरूरत नहीं आप सही जगह हैं ।ससुर जी को एक सप्ताह के लिये एडमिट कर लिया गया ।कम अनुभव और मन्द स्मित वाले उस डॉक्टर की सकारात्मक बातें और मशखरी ससुर जी को नवीन ऊर्जा से भर देती।दूसरे बड़े अस्पतालों में जो लाभ बीस दिन में न मिला उससे अधिक दो दिन में मिला ।प्रत्येक मरीज से यही कहते थे ,बहुत सुधार है अब बस कल तुम्हें घर भेज देंगें ।छठे दिन ससुर जी घर ले चलने की जिद करने लगे ।घर पर सब यही कहते थे कि बडे़ अस्पतालों ने मना कर दिया और दवाई लगी तो मोहल्ले के डॉक्टर की ।उधर ससुर जी अखबार में नजर गड़ाए बुदबुदा रहे थे ,....."अरे वचनौषधि लग गई ,दवाई किसने खाई " ।मैं मन ही मन उनका समर्थन कर रही थी ।  

✍️ डॉ प्रीति हुंकार ,मुरादाबाद

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा --बदचलन-

 


अस्पताल के प्राइवेट वार्ड में पुत्र को सन्तान रूप में पाकर अवनि फूली नही समा रही थी कि अचानक उसके पति ने उसको आँखें दिखाते हुए कहा , " अरे बदचलन ! यह बच्चा नौ माह से पहले कैसे पैदा हो गया ? "क्षण भर में अवनि की सारी खुशियों को ग्रहण लग गया ।

✍️ डॉ प्रीति हुंकार ,मुरादाबाद

बुधवार, 20 जनवरी 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ............ कटाक्ष

     


"कितनी शर्म की बात है कि कोई शादीशुदा महिला किराए के मकान में पति से अलग रहे ,,शर्मा जी ने त्योरी चढ़ा कर पड़ोसी गुप्ता जी पर व्यंग्य किया।"हाँ,लेकिन किसी पढ़ीलिखी वर्किंग   महिला को रात के एक बजे लातों घूसों से पिटने की आवाज सुनके जब लोग अपने को सम्मानित समझते हैं ,तब उनकी नाक क्यों नहीं कटती ?"वालकनी में खड़ी गुप्ता जी की पुत्रवधू ने कटाक्ष करते हुए जबाव दिया ।

✍️ डॉ प्रीति हुंकार, मुरादाबाद

बुधवार, 18 नवंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा -----हार्न

 


सडक़ पर जाती लड़कियों के समूह पर फब्तियों की बौछार करनेवाले कुछ मजनुओं की मंडली को तितर -बितर करने के लिए राहुल ने फुल आवाज में बिना आवश्यकता के हार्न बजाया । सुरक्षा को महसूस करती वे सब आगे बढ़ गयीं ।उनकी मंद मुस्कान में मुझे अपनी  बेटी का चेहरा दिखने लगा ।

✍️डॉ प्रीति हुँकार, मुरादाबाद

गुरुवार, 5 नवंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा-----वृत्तं यत्नेन संरक्षेत्


कितना सुन्दर होगा तुम्हारा साथ प्रियतम !हम बहुत दूर चले जायेंगे ।

कहीं भी,जहाँ हमारे प्रेम को किसी की नजर न लगे ।विवाह के एक दिन पूर्व मेहंदी से रंगी हथेलियों वाली उर्मि अपने मनभावन लड़के के साथ घर से भागने की योजना बना रही थी । घर वाले उसके पसंद के लड़के से विवाह के विरुद्ध थे ।यौवनावस्था और धनसम्पन्नता ,उस पर अप्रतिम सौन्दर्य !तीनों एक साथ ।बुद्धि का नाश  तो स्वाभाविक था । प्रेमी की योजना के अनुसार कुछ रुपये पैसे के साथ उसको चुपचाप निकलना था । विवाह के घर में व्यस्तताओं में उलझे ,उसका मोबाइल अचानक कहाँ गया ?किससे पूछे ?अब वह उसे कैसे सूचना देगी ? अरे !डायरी में भी लिखा है उसका मोबाइल नंबर कहीं।पहला पन्ना पलटा ,फिर दूसरा ,और फिर क्रम से.......कई.....।अरे ....मिल गया ..लेकिन.... ऊपर ... सबसे ऊपर..लिखा था.." वृत्तं यत्नेन संरक्षेत्।....अक्षीणो वित्ततः,क्षीणो वृतस्तु हतो हतः ।

कक्षाओं में शिक्षकों ने यही तो कहा था,फिर क्यों ?उर्मि काँप उठी। मानो कोई दुस्वप्न देखा हो ।उस आदर्श वाक्य को बार-बार पढा़ और पढा़ ....फिर उसके मन से वह कुत्सित योजना ओझल होती गई सदा के लिए।एक आदर्श वाक्य की शक्ति थी यह ....कि एक चरित्र की रक्षा हुई।

✍️डॉ प्रीति हुँकार, मुरादाबाद

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ---सिसकती सड़क


आज पहली बार अवसर मिला था  अवनि को अपने मंगेतर के साथ घूमने फिरने का।दो महीने शेष हैं शादी में । अमनदीप  आधुनिक विचारों का अठ्ठाईस वर्ष का युवक जो अवनि को अपने कल्पना लोक में लेकर विचरण करता है ।आज अवनि उसके आग्रह को टाल न सकी ।मन के किसी कोने में दबी हुई उसकी भी इच्छा साकार रूप लेने लगी । वह न जाने क्यों आज इतनी ढीठ हो रही थी ।मां और पिता जी को भी उसने समझा दिया कि वह एक घंटे में वापस आयगी । बाइक पर प्रेमिका के साथ लम्बी ड्राइव पर जाने का सपना आज साकार होता देख अमनदीप खुशी से पागल था । दो प्रेमी ,इतनी नजदीकी में बाबले हो गये ।तेज रफ्तार में उनके दिलों की धडकने तेज हो उठीं।कहाँ जाना है ,इसका  विस्मरण ही हो गया । अचानक अमनदीप को तेज झटका लगा ।अवनि की बाहों का पाश अचानक ढीला हो गया ।सन्ध्या के धुंधले कुहरे में अवनि चीख पड़ी ।बाइक फिसल कर सड़क के किनारे पर चली गई ।अमनदीप के माथे से लहु वह निकला ।अवनि की रुह काँप उठी ।मेरे मनभावन, यह कहकर वह रोती हुई अमनदीप से लिपट गई ।

दुपट्टे को माथे पर बाँधकर उसके सिर को अपनी गोद में रख लिया।

किसी तरह घर पर फोन लगाया और मां को सब बात बताई ।भाई और पिता गाड़ी लेकर पहुंच गये ।अस्पताल में अमनदीप के सिरहाने बैठी अवनि मन ही मन अपनी अनुशासन हीनता और नासमझी के लिये स्वयं को दोषी मानने लगी । काश!कि उसने अमनदीप को समझाया होता। ईश्वर आपको धन्यवाद।आपने मेरी लाज बचा ली । अपनी सिसकियों के बीच आज अवनि। सड़कों की मनहूसियत में मनुष्यों के कृत्यों का विश्लेषण करने लगी ।सिसकती  सड़क ,मानो अभी भी उससे क्षमा याचना कर रही थी ।

✍️ डॉ प्रीति हुंकार, मुरादाबाद

बुधवार, 21 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा -----अनुचित निर्णय


"तुम्हारा कहा माना ।सबने मनाई।मैंने नहीं माना ।मन के एक कोने में तुम्हारा चित्र आज भी साफ सुथरा सुशोभित है । तुम कहते थे कि अधिकारी बनकर सब ठीक हो जाएगा ।मैं इन्तज़ार में क्या से क्या हो गई ।उम्र पक गई पर तुम नहीं लौटे।पाँच बहनों ने अपने घर बसा लिए ।माँ बाबू जी चल बसे।

आज भी बाबला मन तुमको पूजता है जबकि उसे पता है कि तुम अपनी दुनिया में मुझे बहुत पीछे छोड़ चुके हो ।काश कि तुम ........। "सिसकियों के साथ अवनि ने अपने द्वारा लिए गये निर्णय की भर्त्सना की ।बीस साल पूर्व लिए गये उसके अनुचित निर्णय ने उसको जीवन के पथ पर बिल्कुल अकेला कर दिया ।काश कि समय रहते वो भी .......।

✍️डॉ प्रीति हुँकार, मुरादाबाद

बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा -----प्रेम की भेंट


अवनि ने सखियों के मुँह सुना था कि विवाह की पहली रात पति प्रेम की भेंट पत्नी को देता है ।नई दुल्हन अवनि अपने सपनों के राजकुमार अपने पति की उस भेंट के सपने गढ़ रही थी कि पति ने कमरे में प्रवेश किया। "सुना था कि तुम शादी नहीं करना चाहती थी । " जहाँ नौकरी करती है वहीं किसी से चक्कर है का?"अमन ने अपनी नव विवाहिता को घूरते हुए कहा, 

यही तो वह भेंट थी जिसकी आकांक्षा में उसने अपने सारे सम्बन्धी पराये कर दिये ।अपनी आंखों निकले खारे जल मुख से पी लिया और मुख से जिन शब्दों को बाहर आना था वे पुनः पानी से गटक लिए ।

✍️डॉ प्रीति हुँकार, मुरादाबाद