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✍️ डॉ प्रीति हुंकार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
"ये बच्चे तुम्हारे भी तो हैं अमन,मैं नौकरी न कर रही होती तो भी तो तुम इन बच्चों की जिम्मेदारी उठाते कि नहीं ।"बच्चों की पढ़ाई ,मकान लोन दवाई गोली ,अतिथि सत्कार घर की छोटी से छोटी जरूरत तुम मेरे जिम्मे करके स्वयं चिंता मुक्त हो ,कभी तो सोचो कि मैं अकेले कैसे मैनेज करती हूं कहते कहते अवनि के नेत्रों से अश्रु धारा वह निकली......।"अगर मुझे जिम्मेदारी उठानी होती तो तेरी जैसी काली कल्लो से शादी क्यों कर लेता । खैर कर ,की भगवान ने तुझे नौकरी दी है वरना तेरी जैसी बदसूरत औरत से रिश्ता करने की क्या पड़ी थी मुझे । हर लड़के ने नापसंद किया था तुझे बस मैं ही अभागा था जो तू मेरे ......अमन ने अवनि की आवाज़ दबाते हुए गुर्राते हुए व्यंग्य किया ।
जीवन के बीस वर्षों में जब भी अवनि ने अपने नौकरीपेशा पति अमन को उसकी जिम्मेदारी बतानी चाही ,कभी वह मोबाइल में शेयर देखने लगता, कभी उससे अलग हो जाने की कहता कभी चरित्र पर ऊंगली उठाता और कभी बदसूरती की दोहाई देता ,पर अपने समस्त कर्त्तव्यों का सम्यक निर्वहन करके भी अवनि स्वयं से प्रश्न करती रह जाती कि आखिर वह क्या करे ..........? पर उत्तर शायद ही उसे मिल पाता।
✍️ डॉ प्रीति हुंकार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
वसुधा ने पाई तरुणाई
वीथि वीथि मंन्त्रों का गुंजन
मन मंदिर में माँ का वंदन
प्रतिपल प्रकृति पुलकित मुखरित
महक उठा खुशियों का चंदन ।
पुण्य धरा पर आर्यवर्त की
गूँज उठी पावन शहनाई ।
नव संवत की बेला आई ।
गेहूं और सरसों की फसलें
घर आँगन में पटी हुईं है ।
खेत और खलिहान महकते
जन की भीड़ें डटी हुई है ।
आम्रमंजरी झुकी धरा पर
आलिंगन करने को आई ।
नव संवत की बेला आई ।.
मंद सुगंधित अनिल बही है
भौरों का दल आया है ।
कुसुमाकर ने निज प्रभाव से
मन सबका बहकाया है ।
चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा की
सबको है शत बार बधाई ।
नव संवत की बेला आई ।
✍️ डॉक्टर प्रीति हुंकार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
"अब तो हमीं नजर आयेंगे इनको बिटवा ......।एक समय जब हमरी कौनू औकात ना थी इनकी नजर में , सब तरफ जोंकें ही चिपकी रहतीं थी ....अब शरीर में चूसने को कुछ बचा ही नही तो जोंकें भी नहीं दिखतीं .....। एक हाथ में पानी का गिलास पकडे और दूसरे से पंखा झलती हुई अम्मा अन्योक्ति में कहे जा रहीं थीं ...।।
✍️ डॉ प्रीति हुंकार, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश ,भारत
हाँ मैं ....हाँ मैं ,तुम्हारा अब्दुल जो कभी तुम्हें और इस वतन की मिट्टी को मनहूस कहकर हमेशा के लिए छोड़ गया था आज मुझे मेरी करनी का फल मिल गया है । मेरी दूसरी पत्नी व तीन बच्चे तालिबान सैनिकों ने बंधक बना लिए हैं ।सारी सम्पत्ति जब्त कर ली है । किसी तरह जान बचाकर तुम्हें फोन किया है ,बस तुम ही कुछ कर सकती हो .... कहते कहते फफक पडा़ वह ।
यह क्या अब्दुल ने नौ साल बाद फोन किया ...वह भी अपने स्वार्थ के लिए । हाय किस्मत , मैं तो कुछ और समझ बैठी... पर हाँ कुछ तो करना होगा मुझे तुम्हारे लिए ...तुम्हारे बच्चों के लिए।तुमने सही कहा था कभी कि काफिर हूँ मैं ..तो काफिर ही सही ।
✍️ डॉ प्रीति हुंकार, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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✍️ डॉ प्रीति हुंकार ,मुरादाबाद
✍️ डॉ प्रीति हुंकार ,मुरादाबाद
✍️ डॉ प्रीति हुंकार, मुरादाबाद
✍️डॉ प्रीति हुँकार, मुरादाबाद
कहीं भी,जहाँ हमारे प्रेम को किसी की नजर न लगे ।विवाह के एक दिन पूर्व मेहंदी से रंगी हथेलियों वाली उर्मि अपने मनभावन लड़के के साथ घर से भागने की योजना बना रही थी । घर वाले उसके पसंद के लड़के से विवाह के विरुद्ध थे ।यौवनावस्था और धनसम्पन्नता ,उस पर अप्रतिम सौन्दर्य !तीनों एक साथ ।बुद्धि का नाश तो स्वाभाविक था । प्रेमी की योजना के अनुसार कुछ रुपये पैसे के साथ उसको चुपचाप निकलना था । विवाह के घर में व्यस्तताओं में उलझे ,उसका मोबाइल अचानक कहाँ गया ?किससे पूछे ?अब वह उसे कैसे सूचना देगी ? अरे !डायरी में भी लिखा है उसका मोबाइल नंबर कहीं।पहला पन्ना पलटा ,फिर दूसरा ,और फिर क्रम से.......कई.....।अरे ....मिल गया ..लेकिन.... ऊपर ... सबसे ऊपर..लिखा था.." वृत्तं यत्नेन संरक्षेत्।....अक्षीणो वित्ततः,क्षीणो वृतस्तु हतो हतः ।
कक्षाओं में शिक्षकों ने यही तो कहा था,फिर क्यों ?उर्मि काँप उठी। मानो कोई दुस्वप्न देखा हो ।उस आदर्श वाक्य को बार-बार पढा़ और पढा़ ....फिर उसके मन से वह कुत्सित योजना ओझल होती गई सदा के लिए।एक आदर्श वाक्य की शक्ति थी यह ....कि एक चरित्र की रक्षा हुई।
✍️डॉ प्रीति हुँकार, मुरादाबाद
दुपट्टे को माथे पर बाँधकर उसके सिर को अपनी गोद में रख लिया।
किसी तरह घर पर फोन लगाया और मां को सब बात बताई ।भाई और पिता गाड़ी लेकर पहुंच गये ।अस्पताल में अमनदीप के सिरहाने बैठी अवनि मन ही मन अपनी अनुशासन हीनता और नासमझी के लिये स्वयं को दोषी मानने लगी । काश!कि उसने अमनदीप को समझाया होता। ईश्वर आपको धन्यवाद।आपने मेरी लाज बचा ली । अपनी सिसकियों के बीच आज अवनि। सड़कों की मनहूसियत में मनुष्यों के कृत्यों का विश्लेषण करने लगी ।सिसकती सड़क ,मानो अभी भी उससे क्षमा याचना कर रही थी ।
✍️ डॉ प्रीति हुंकार, मुरादाबाद
आज भी बाबला मन तुमको पूजता है जबकि उसे पता है कि तुम अपनी दुनिया में मुझे बहुत पीछे छोड़ चुके हो ।काश कि तुम ........। "सिसकियों के साथ अवनि ने अपने द्वारा लिए गये निर्णय की भर्त्सना की ।बीस साल पूर्व लिए गये उसके अनुचित निर्णय ने उसको जीवन के पथ पर बिल्कुल अकेला कर दिया ।काश कि समय रहते वो भी .......।
✍️डॉ प्रीति हुँकार, मुरादाबाद
यही तो वह भेंट थी जिसकी आकांक्षा में उसने अपने सारे सम्बन्धी पराये कर दिये ।अपनी आंखों निकले खारे जल मुख से पी लिया और मुख से जिन शब्दों को बाहर आना था वे पुनः पानी से गटक लिए ।
✍️डॉ प्रीति हुँकार, मुरादाबाद