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बुधवार, 29 मई 2024
मंगलवार, 13 फ़रवरी 2024
मंगलवार, 18 जुलाई 2023
मंगलवार, 20 जून 2023
सोमवार, 29 अगस्त 2022
मुरादाबाद की संस्था "योमीना फाउंडेशन" द्वारा शनिवार 27 अगस्त 2022 को मुरादाबाद के पंचायत भवन में आयोजित कार्यक्रम 'जश्न-ए-जुबाँ' में मुरादाबाद के साहित्यकार मयंक शर्मा द्वारा प्रस्तुत मां सरस्वती वंदना तथा गीत ...एक दीपक तुम बनो तो एक दीपक मैं बनूं ....
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::::::प्रस्तुति::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822
शुक्रवार, 18 मार्च 2022
शुक्रवार, 7 जनवरी 2022
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ विश्व अवतार जैमिनी का गीत- उठो जवानों जिसे प्रस्तुत कर रहे हैं मयंक शर्मा
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सोमवार, 18 अक्टूबर 2021
रविवार, 12 सितंबर 2021
मुरादाबाद की संस्था आदर्श कला संगम ने रविवार 12 सितम्बर को किया कवि मयंक शर्मा को पंडित वाचस्पति शर्मा स्मृति सम्मान से सम्मानित, आयोजित हुई काव्य गोष्ठी
मुरादाबाद की सांस्कृतिक एवं साहित्यिक संस्था आदर्श कला संगम की ओर से हिन्दी पखवाड़े पर एक काव्य-गोष्ठी एवं सम्मान समारोह का आयोजन दिव्य सरस्वती इंटर कॉलेज के सभागार में किया गया। वरिष्ठ कवयित्री डाॅ. प्रेमवती उपाध्याय द्वारा प्रस्तुत माँ शारदे की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने की। मुख्य अतिथि डाॅ. के. के. मिश्रा एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में सुप्रसिद्ध रंगकर्मी श्री राजेश रस्तोगी व डाॅ. प्रदीप शर्मा मंचासीन रहे। संचालन सुप्रसिद्ध नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने किया। कार्यक्रम में महानगर के उभरते हुए रचनाकार मयंक शर्मा को पंडित वाचस्पति शर्मा स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया। सम्मान समारोह के पश्चात् एक शानदार काव्य-संध्या का भी आयोजन किया गया जिसमें महानगर के रचनाकारों ने अपनी-अपनी प्रस्तुति दी।
यश भारती माहेश्वर तिवारी की अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार थी -कभी-कभी मेरे भीतर,
जंगल उग आता है।
खरगोशों-सा मन,
घासों के संग बतियाता है।
सहसा नायक बन जाते हम,
परी कथाओं के।
सपनों के संग जुगनू
उड़ते हैं संग हवाओं के।
सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कुछ इस प्रकार अन्तस को झिंझोड़ा -
वह सबको खुश रखती थी
खुश ही रहती थी,
एक नदी, बहती थी,
अब नहीं बहती।
वीरेन्द्र ब्रजवासी ने गीत की तान इस प्रकार छेड़ी -
तन वैरागी मन वैरागी, जीवन का हर क्षण वैरागी।
डाॅ. प्रेमवती उपाध्याय ने गीत की मिठास में इस प्रकार सभी को डुबोया -
भरा हुआ घर बार मगर अंतरघट रीता है।।
डाॅ. मनोज रस्तोगी के पैने व्यंग्य इस प्रकार थे -
सुन रहे यह साल आदमखोर है।
हर तरफ चीख, दहशत, शोर है।
मत कहो यह वायरस ज़हरीला बहुत, आदमी ही आजकल कमज़ोर है।
योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने आम व्यक्ति की वेदना को इस प्रकार साकार किया -
बता रही थी हाल।
पतली-सी रस्सी पर
नट के करतब दिखा रही
पीठ-पेट को ज्यों रोटी का मतलब सिखा रही।
हैं उसकी आँखों में लेकिन,
ज़िन्दा कई सवाल।
राजीव 'प्रखर' ने हिन्दी को नमन करते हुए कहा -
चाहे जो भी धर्म हो, चाहे जो परिवेश।
हिन्दी से ही एक है, अपना भारत देश।।
जब हिन्दी में लिख दिया, मैंने अपना नाम।।
मनोज वर्मा 'मनु' की अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार रही -
हिन्दी के हित के लिये, पखवाड़ा पर्याप्त।
फिर दिन साढ़े तीन सौ, घुट अंधियारा व्याप्त।।
युवा कवि मयंक शर्मा ने गीत सुनाया-
कार्यक्रम में डॉ. प्रदीप शर्मा, अनिल कुमार शर्मा, सतीश कुमार, राजदीप शर्मा, सुशील शर्मा, सुमित श्रीवास्तव, संजय स्वामी श्रीराम शर्मा, घनश्यामदास, अनिल शर्मा आदि उपस्थित रहे ।
डॉ. प्रदीप शर्मा
सचिव, आदर्श कला संगम
मुरादाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत
रविवार, 20 जून 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार मयंक शर्मा की ग़ज़ल --- जीवन संघर्षों को लेकर हम जब भी कमज़ोर पड़ें, ताक़त बनकर साथ हमारे रहते चारों ओर पिता
मां है नदिया की गहराई तो नदिया का छोर पिता,
कभी न रुकने वाले जैसे सागर का हैं शोर पिता।
सबके अपने-अपने मन हैं सबके अपने सपने हैं,
घर की हर ज़िम्मेदारी को रखते अपनी ओर पिता।
माँ के मुख की रौनक तन का हर आभूषण उनसे है,
ईंगुर, बिंदी, काजल वाली आंखों की हैं कोर पिता।
आँसू के इक क़तरे को भी आने का अधिकार न था
पर जब विदा हुई बहना तो बरसे थे घनघोर पिता।
अपनेपन की ख़ुशबू पाकर महक रही उस माला में,
रिश्तों को फूलों सा गूँथे रखने वाली डोर पिता।
ज़ख्म मिले जीवनपथ में जो ख़ुद में उनको दफ़्न किया,
मुश्किल से मुश्किल पल में भी नहीं दिखे कमज़ोर पिता।
संकट की काली अँधियारी छाया जब भी छा जाती,
एक नई स्वर्णिम आभा की लेकर आते भोर पिता।
जीवन संघर्षों को लेकर हम जब भी कमज़ोर पड़ें,
ताक़त बनकर साथ हमारे रहते चारों ओर पिता।
✍️मयंक शर्मा, मुरादाबाद
सोमवार, 8 मार्च 2021
मंगलवार, 18 अगस्त 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार मयंक शर्मा केे दस गीतों पर "मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" द्वारा ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा-------
(1)
जन्म सार्थक हो धरा पर स्वप्न हर साकार हो,
हम चलें कर्तव्य पथ पर और जय जयकार हो।।
कंटकों के बीच में भी हैं सुमन रहते खिले,
हो पवन जाती सुगंधित जब कभी इनसे मिले।
अन्न उपजाती स्वयं का वक्ष धरती चीरकर,
तृप्त होता मन सदा बहती नदी के तीर पर।
काज परहित के करें अपना यही व्यवहार हो।
हम चलें कर्तव्य पथ पर........
दीर्घजीवन भी निरा किस काम का बिन मान के,
हम चले जाएं बिना अपनी किसी पहचान के।
कामना प्रभु से भले दो अल्प जीवन सीढ़ियां,
त्याग ऐसे कर चलें हम याद रख लें पीढ़ियां।
हों विदा संसार से तो आँसुओं की धार हो।
हम चलें कर्तव्य पथ पर........
बेल पर संघर्ष की खिलता सदा ही फूल है,
कुछ पलों का कष्ट मानो ठोकरों की धूल है।
इस समर में सामना है द्वेष, छल, मद, स्वार्थ से,
जीतना होगा हमें यह युद्ध निज पुरुषार्थ से।
लक्ष्य का संकल्प अपनी जीत का आधार हो।
हम चलें कर्तव्य पथ पर........
(2)
राम तुम्हें आना होगा इस धरा पर अबकी बार भी,
करना होगा धर्मशस्त्र से, दुःखियों का उद्धार भी।
काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह ने सबको ऐसा घेरा है,
राह नहीं आसान जगत पर तम ने किया बसेरा है।
प्रेम, त्याग, पुरुषार्थ, शौर्य से गुण के तुम थे अवतारी,
राम नहीं कोई तुम जैसा रावण सब पर है भारी।
जीवन पथ आलोकित करके हरो घोर अंधियार भी,
करना होगा धर्मशस्त्र से....
मानव होकर हमने अपनी मानवता को मार दिया,
देव समझ बैठे थे ख़ुद को असुरों सा व्यवहार किया।
पथ में बिखरे शूल हमारे, अगणित अनचाहे डर हैं,
जीवन और मरण के जाने कैसे दोराहे पर हैं।
डोल रही जीवन नौका की थाम लो तुम पतवार भी,
करना होगा धर्मशस्त्र से....
(3)
मन ले चल अपने गाँव हमें शहर हुआ बेगाना,
दुख का क्या है दुख से अपना पहले का याराना।
इनकी पगडण्डी से लेकर हमने महल बनाये,
पर अपने सिर के ऊपर इक छत भी डाल न पाए।। अब रातें सदियों सी लगतीं दिन सालों से भारी, चलना है दुश्वार मगर चलने की ज़िम्मेदारी।
कुछ दिन रहना एक जगह फिर पंछी बन उड़ जाना। मन ले चल...
लगता है अब ख़ुद पर ख़ुद का ही अधिकार नहीं है, अपने मन वाले सपनों का ये संसार नहीं है। मज़दूरी तो मजबूरी का नाम हुआ करती है, तन से निकले खारे जल का दाम हुआ करती है। याद रहेगा सपनों का आँसू बनकर बह जाना। मन ले चल...
सोचा कब था इसी तरह हर दर्द छुपाना होगा! अब तक जो पाया है उसका कर्ज़ चुकाना होगा। ऐसे मुश्किल पल ने हमको सबक यही सिखलाया, माटी में ही मिल जाएगा इस माटी का जाया।। बिखर गया इस संकट में जीवन का ताना बाना, मन ले चल...
(4)
स्वर्ग फिर स्वर्ग बनकर रहेगा
खून सड़कों पे अब न बहेगा।
रंग से हो सजी तस्वीर,
भारती अब हुआ कश्मीर।
जो गवारा न थी एक धारा वही,
दुश्मनों के लिये वो सहारा रही।
थे उगलते ज़हर होंठ सब सिल गए,
दूर थे जो कभी अब गले मिल गए।
तोड़ डाली हरिक ज़ंजीर।
भारती अब हुआ....
है न आतंक में न कोई जंग में,
पत्थरों में नहीं न ये बदरंग में।
केसरी गंध में पुष्प मकरंद में,
है रचा औ बसा डोंगरी छंद में।
प्यार इसकी अजब तासीर।
भारती अब हुआ....
दो कदम तुम चलो दो कदम हम चलें,
वादियों में वही ख़्वाब फिर से पलें।
हों अमन के निशाँ ख़ूबसूरत समाँ,
कान में घंटियाँ गूँजती हो अजाँ।
हाथ से फेंक दें शमशीर।
भारती अब हुआ...
(5)
बोल मजूरे ज़ोर लगाकर बोल मजूरे हल्ला, मांगें हम ख़ैरात कोई न चाहें सस्ता गल्ला।
अपनी ताक़त के दम से हैं दुनिया की तामीरें।
हम हीरे, चाँदी, सोना हैं हमसे हैं जागीरें।
ठोकर पर क्यूँ रक्खो सर का ताज बनाकर रखना। रूठेंगे तो टूटेगा हर एक तुम्हारा सपना। हम सच के हामी हैं सच बोलेंगे खुल्लम खुल्ला। बोल मजूरे ....
हम मज़दूर भले हों पर मजबूर नहीं हो सकते, खून पसीने के हक़ से अब दूर नहीं हो सकते। पाप तुम्हारे ज़ुल्मों का जब सर चढ़कर बोलेगा। इंक़लाब की बोली तब बच्चा-बच्चा बोलेगा।
अंगारे हम मत समझो तुम, पानी का बुलबुल्ला। बोल मजूरे हल्ला बोल.....
(6)
साँझ ढले हो घना अँधेरा छत पर आ जइयो, श्वेत चाँदनी की चादर चहुँ ओर बिछा जइयो। चाँद आ जइयो...
तेरी एक झलक में परियों जैसा सम्मोहन है, पूनम वाले दीप्त चाँद की छवि ही मनमोहन है।
धीरे-धीरे मुख से तेरा आँचल को सरकाना, अँधियारी काली रातों का रौशन होते जाना।
तारों की बारात साथ में लेकर आ जइयो।
चाँद आ जइयो...
तेरा मादक बिम्ब नदी के जल में जब उतराता,
गोरी का यौवन भी उसके सम्मुख शरमा जाता।
नभ से आने वाली किरणें इस जग को चमकाएं,
मोहक मुखड़े को मिलती हैं तेरी ही उपमाएं।
आकर्षक ये रूप हमें हर शाम दिखा जइयो।
चाँद आ जइयो...
आज अँधेरा औ तुझमें कल चाँदी की बरसातें
ऐसे ही होते हैं दुख-सुख ईश्वर की सौगातें।
विपदाओं से डरना जैसे तेरा काम नहीं है, चलते रहना है जीवन रुकने का नाम नहीं है।
हमको भी जीवन का तुम ये सार बता जइयो।
चाँद आ जइयो...
(7)
देखकर अपनी उड़ानें और सुख से प्रीत, लाँघकर भी रेख को हम थे नहीं भयभीत।
अंध मद में दौड़ते थे त्याग कर सब धीर, सामने था, न दिखा प्रकृति के नयन का नीर। वेदना होती मुखर तो गूँजता है नाद, संकटों में हैं घिरे तब कर्म आये याद।
हार में भी मानते थे हम स्वयं की जीत।
लाँघकर भी रेख को....
स्वच्छ नभ में हो रही अब लालिमा सी प्रात, हैं विचरते मग्न होकर जीव औ जलजात। पुष्प के अधरों पर खिली मंद सी मुस्कान, और भ्रमरा छेड़ता अब प्रीत की रसतान। स्वस्थ हो जाए धरा गूंजे मधुर संगीत।
लाँघकर भी रेख को....
(8)
लाल हुई केसर घाटी गूँजा अलगावी नारा, कायर गीदड़ ने धोखे से फिर शेरों को मारा। ज़ार-ज़ार रोकर कहता है भारत देश ये सारा, अबकी व्यर्थ न जाने देंगे हम बलिदान तुम्हारा।
चूड़ी, बिछिया, ईंगुर, बिंदिया कुछ भी लौट न पाया, हँसी-ख़ुशी जीवन का सपना, सपना ही रह पाया। किसके सिर को छाती पर रक्खेगी माँ तुम बोलो! बेटे की अर्थी का बोझा तोल सको तो तोलो। बिन बेटे फीकी हैं ख़ुशियाँ सूना है जग सारा।
अबकी व्यर्थ....
अनुबंधों में संबंधों में आग लगा दो सब में, हैं पिशाच वो, ढूँढ रहे नर, हम हैं किस ग़फ़लत में। काग नहीं समझें भाषा, मीठी कोयल की बोली, हैं दिखावटी गले मिलन वो खेलें ख़ून की होली। ऑंखों में भर लें शोले औ दिल में हम अंगारा।
अबकी व्यर्थ....
बरसों की ग़लती पर हम तो आज भी हैं शर्मिंदा, नर्क बनाया स्वर्ग को जिसने वो वहशी है ज़िंदा। छप्पन इंची सीना भी सिकुड़ा-सिकुड़ा सा जाए, पत्थर को भी भस्म बना दे इक विधवा की हाए। बिलख रही केसर की धरती कोई नहीं सहारा।
अबकी व्यर्थ....
(9)
रंगों के रंग में रंग जाएं खेलें मिलकर होली,
मुँह से कुछ मीठा सा बोलें भूलके कड़वी बोली।
ओढ़ बसंती चूनर फिर से इठलाई है धरती,
छोड़ पुरातन परिधानों को सजती और सँवरती
रंगों का है अर्थ हमारे जीवन में खुशहाली,
नव कोपल से पेड़ लदे हैं झूमे डाली-डाली।
प्रेम लुटाकर सब पर हम खुशियों से भर लें झोली।
मुँह से कुछ मीठा...
शिकवे और शिकायत सारी भस्म यहीं हो जाएं,
तन से तन का मेल नहीं बस मन से मन मिल जाएं।
रंगों का ये पर्व अनोखा है सबसे ही न्यारा,
ख़त्म हुआ जो हर रिश्ता जीवन लेता दोबारा।
संबंधों के फूल खिलाकर बन जाएं हमजोली।
मुँह से कुछ मीठा...
हर फागुन में सोए दिल की आग भड़क जाती है,
लाल गुलाबी चेहरे में जब सामने वो आती है।
उसके चंचल नयन सदा ही करते हैं मनमानी,
इतराती यौवन पर अपने लगती है अभिमानी।
पिचकारी से दागे है मानो वो बम की गोली।
मुँह से कुछ मीठा...
(10)
मृत्तिका की सर्जना में तेल बाती सा जलूँ,
एक दीपक तुम बनो तो एक दीपक मैं बनूँ।
एक दीपक प्रेम का हो एक हो विश्वास का,
शुष्क रेतीली धरा पर बारिशों की आस का।
एक दीपक तुम कि जो निर्मल करे अंतःकरण,
एक मैं वह दीप जिससे ज्ञान का हो जागरण।
एक दीपक में जले हर दोष बोले मिथ्य का,
एक दीपक जो जले हर द्वार पर आतिथ्य का।
दूर तुमसे हो तिमिर तब मैं भला तम क्यों जनूँ!
एक दीपक तुम बनो....
एक दीपक से प्रकाशित धर्म का हो आचरण,
आचरण की शुद्धता व्यभिचार का कर दे क्षरण।
मैं जलाकर राख कर दूँ पापियों के पाप को,
तुम हरो करुणा, दया से दीन के संताप को।
एक दीपक मैं बनूँ संघर्ष जिसकी सम्पदा,
एक तुम जो आँधियों में भी रहे जलता सदा।
हो जहाँ तक भी अँधेरा रौशनी को ले चलूँ,
एक दीपक तुम बनो....
कर गए बलिदान ख़ुद को चाँदनी की चाह में,
दीप जगमग हों सदा उन प्रहरियों की राह में।
स्वप्न स्वर्णिम रश्मियों के वे हमें देकर गए,
है समय अब आ गया निर्माण का भारत नए।
एक दीपक भारती के पुण्य वैभव गान का,
जन्म पावन इस धरा पर ईश्वरी वरदान का।
कामना है हर जनम में दीप बनकर ही जलूँ।
एक दीपक तुम बनो....
इन गीतों पर चर्चा शुरू करते हुए मशहूर शायर मंसूर उस्मानी ने कहा कि मयंक जी को मैंने जितना सुना था उससे ज्यादा लिटरेरी क्लब के पटल पर पढ़ा। मुझे कहने दिया जाये कि उनके गीतों में जिंदगी का जो हौसला अहसास की जो सच्चाई अपनी संस्कृति का जो सम्मान मौजूद है, वह उनके शानदार साहित्यिक भविष्य का अंदाजा लगाने के लिए बहुत काफी है।
वरिष्ठ कवि शचीन्द्र भटनागर ने कहा कि गेयता हो तो गीतात्मकता में माधुर्य और प्रभाव में वृद्धि हो जाती है। मयंक के प्रस्तुत गीतों में अध्यात्म है। परमार्थ पूर्ण जीवन की प्रेरणा है। मानव होकर मानवता विहीन होने का दु:ख है। श्रम जीवियों का अपना दर्द है। कश्मीर से संबंधित गीतों के माध्यम से देशभक्ति का भाव उमड़ा है। सीमा के जांबाज प्रहरियों पर भरोसा है और विधेयात्मक भविष्य पर विश्वास है। संबंधों में आत्मीयता की प्रेरणा है दीपक बनकर सृजन की आकांक्षा है।
विख्यात व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि मयंक के गीतों में यद्यपि समाज की अन्य चिंताएं भी हैं पर उनका मूल स्वर राष्ट्रीय चेतना से जन्मा राष्ट्रप्रेम है। वर्तमान में कविताएं इस धारा से कटी हुई है क्योंकि यह मुश्किल है।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि बहती हुई धारा जैसी गति और बोलचाल के शब्दों में उमड़ते मन के भावों को गीत के रूप में पिरोने काम आसान नहीं होता, लेकिन मयंक इसमें समर्थ हैं। सामयिक घटनाओं से,जीवन के और नैसर्गिक सौंदर्य के प्रति भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति और सामाजिक संदेश सब इन रचनाओं में उपस्थित है।
वरिष्ठ कवि आनंद कुमार गौरव ने उनके प्रस्तुत गीतों पर चर्चा करते हुए कहा कि मयंक जी से गीत काव्य को और पर्याप्त समृद्धि की बलवती सम्भावनाएँ हैं। उन्होंने मुरादाबाद लिटरेरी
क्लब द्वारा इस प्रकार के आयोजनों की सराहना की
मशहूर शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज़ ने कहा कि मयंक शर्मा जी का जहां लाजवाब तरन्नुम श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर लेता है वहीं उनके गीतों के उत्कृष्ट भाव लोगों के दिलों में उतरते चले जाते हैं क्योंकि वहां कल्पना की अतिशयता नहीं है।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि मुरादाबाद के साहित्यिक पटल पर पिछले पांच-छह साल में जो नाम तेजी से उभरे हैं उनमें एक नाम है मयंक शर्मा का। उनके गीतों की स्वर लहरियां कभी तन मन में जोश भर देती हैं तो कभी करुणा का भाव भी जगा देती हैं। उनके गीत जहां भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत हैं वहीं वह सामाजिक विकृतियों, विद्रूपताओं को भी बखूबी उजागर करते हैं। वह जहां एक ओर शिकवे शिकायतें भुलाकर सम्बन्धों के फूल खिलाने, प्रेम और विश्वास का दीप जलाने का आह्वान करते हैं।
प्रसिद्ध कवियत्री डॉ पूनम बंसल ने कहा कि प्रिय मयंक गीतकार के रूप में उभरता हुआ नाम हैं। उनके गीत सहज सरल और सारगर्भित हैं जिसमें सामाजिक सरोकार भी है और राष्ट्र प्रेम भी कई गीत मंच पर सुनने का अवसर मिला गीत जब वो गाते है तो मानो सबको सम्मोहित कर लेते है और वो गीत हृदय को भीतर तक झंकृत करते हैं। मयंक को स्नेहिल शुभकामनाएं उनकी वाणी, स्वर कलम पर माँ शारदे की कृपा यूँ ही बनी रहे और वो अपनी रचनाधर्मिता से नगर को गौर्वान्वित करें।
प्रसिद्ध नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि मुरादाबाद के बेहद संभावनाशील युवा कवि मयंक शर्मा के गीतों को अनेक बार सुना है विभिन्न कार्यक्रमों में, अपने मीठे स्वर में जब वह अपने गीत प्रस्तुत करते हैं तो उपस्थित सारे श्रोता मंत्रमुग्ध हो उठते हैं। माँ सरस्वती जी की उन पर विशेष कृपा है।
प्रसिद्ध समीक्षक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि मयंक शर्मा जी के गीत पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ तो उन्हें स्वत: ही गुनगुनाने लगा। मैंने यह उनके गीतों में तासीर देखी। अच्छा लगा कि उनसे मिलने से पहले उनकी अंतरात्मा की आवाज़ सुनने का सुअवसर प्राप्त हो गया। तो यक़ीन हो गया कि वह एक आदर्शवादी व्यक्तित्व के धनी हैं। एक आदर्शवादी व्यक्ति जब मर्यादाओं का हनन होते हुए और काम,क्रोध,मद लोभ और मोह का साया हर तरफ़ मंडराते हुए देखता है तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को पुकारना स्वभाविक ही प्रतीत होता है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि आने वाले समय में एक कामयाब और सशक्त गीतकार हो कर उभरेंगे उनमें सृजनशीलता खूब भरी हुई है वह अपनी जड़ों से जुड़े हुए आसमान छूने की सलाहियत रखते हैं।
युवा शायर राहुल शर्मा ने कहा कि मयंक उस सुरीली परम्परा के गीतकार हैं जिसकी शुरुआत बच्चन जी से हुई। आदरणीय भारत भूषण जी और स्मृतिशेष किशन सरोज जी ने जिसे पुष्पित पल्लवित किया और श्री कुँवर बेचैन तथा विष्णु सक्सेना आज भी जिसका परचम लहराए हुए हैं। मयंक जाग्रत चेतना के कवि हैं। उनकी रचनाओं में जागृति और आह्वान प्रचुरता से देखने को मिलता है।
समीक्षक डॉ रबाब अंजुम ने कहा कि मयंक जी का काव्य पढ़ा। उनके गीत बहुत कुछ कह गए। अपने सुरताल के साथ मयंक जी का होली के रंगों से शुरू हुआ गीत उर्दू के अवामी शायर नज़ीर की याद दिला गया।
युवा शायर मनोज मनु ने कहा कि मयंक जी के रचना पाठ में जो रस अनुभूति होती है उसमें लगता है कि संगीत भी साथ साथ बह रहा हो। मयंक जी की रचनाओं में संस्कृति, स्वाभिमान, सामाजिकता, देश भक्ति ,संबंधों के प्रति यथा योग्य स्नेह व सम्मान आदि मुख्यतया पाया जाता है। शृंगारिक रचना कर्म कर्म भी शालीनता को प्रमुखता से लिया गया है।
युवा शायर फ़रहत अली ख़ान ने कहा कि भक्ति है, श्रृंगार है, वीरता है, करुणा है, फ़लसफ़ा है यानी इन गीतों में कवि मयंक शर्मा जी के कई रंग देखने को मिले। दी गयी कविताओं के हवाले से वीर रस का प्रतिनिधित्व हालाँकि इन सब में से ज़्यादा है। वीर रस के अच्छे कवि ढूँढने पर भी नहीं मिलते, यानी वीर रस के ऐसे कवि जिन की कविताएँ विशेष काल-खंड की दीवारों को पार कर जाएँ और हर दौर में प्रासंगिक बनी रहें। मयंक शर्मा जी इस लिहाज़ से एक रौशन मुस्तक़बिल की उम्मीद जगाते हैं।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि मयंक जी सर्जन करते ही नहीं अपितु उसे जीते भी हैं। मानवता को अपनाने का सार्थक व प्रेरक आह्वान, पापों से त्रस्त होकर प्रभु से प्रार्थना, शहरों के बनावटी जीवन से उपजी वेदना, विभिन्न विसंगतियों से त्रस्त धरा, स्वाभिमानी श्रमिक के हृदयोउद्गार, मनोहारी प्राकृतिक वर्णन, शत्रु पर विजय का शंखनाद, सामाजिक समरसता आदि अनेक पहलुओं को कुशलता पूर्वक छूती उनकी लेखनी इसका स्पष्ट प्रमाण है।
कवि श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा कि मयंक शर्मा एक उभरते हुए गीतकार हैं। सरल भाषा व संवाद शैली में छंदबद्ध किये हुए अपने गीत जब वह अपने सुमधुर स्वर में गाते हैं तब श्रोताओ को मानो सम्मोहित कर लेते हैं। उनके गीतों का जादू सुनने वाले के मन पर गहरी छाप अंकित करता है।
युवा कवियत्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि मुरादाबाद के साहित्यपटल पर उर्जावान व अपनी सुरीली आवाज़ से मंत्रमुग्ध करते हुए युवा गीतकार व गायक के रूप में तेजी से उभरे हैं। मैं और मेरा पूरा परिवार मयंक भाई का बहुत बड़ा प्रशंसक है।मैं तो अक्सर उनके गीतों की पंक्तियां गुनगुनाती हूँ।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि नौजवान गीतकार मयंक शर्मा के गीतों को पढ़कर मेरा पहला ता'सुर यही है कि ये गीत ख़ामोशी से पढ़ने वाले गीत नहीं है। इनको थोड़ी सी बुलंद आवाज़ में आप पढ़ेंगे तो आपको ज़्यादा मज़ा आएगा और आप इन गीतों के अधिक क़रीब पहुंचेंगे। इन गीतों में भरपूर ऊर्जा है, जो हमारे तन और मन को ऊर्जावान तो बनाती ही है, हमारे अन्दर सकारात्मकता भी भर देती है।
:::::::::प्रस्तुति::::::
ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
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