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मंगलवार, 25 मार्च 2025

साहित्यिक मुरादाबाद और विजयश्री वेलफेयर सोसाइटी की ओर से पं सुरेन्द्र मोहन मिश्र की पुण्यतिथि 22 मार्च 2025 को आयोजित सम्मान समारोह व काव्य गोष्ठी में अमरोहा के इतिहासकार सुरेश चंद्र शर्मा को सुरेन्द्र मोहन मिश्र स्मृति सम्मान से किया गया सम्मानित







मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार, इतिहासकार एवं पुरातत्ववेत्ता स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र की पुण्यतिथि शनिवार 22 मार्च 2025 को  मुरादाबाद मंडल के साहित्य के प्रसार एवं संरक्षण को पूर्ण रूप से समर्पित संस्था साहित्यिक मुरादाबाद और विजयश्री वेलफेयर सोसाइटी की ओर से आयोजित समारोह में अमरोहा के वरिष्ठ इतिहासकार (वर्तमान में गाजियाबाद निवासी) सुरेश चंद्र शर्मा को पं सुरेन्द्र मोहन मिश्र स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया। सम्मान स्वरूप उन्हें मान पत्र, श्रीफल,अंग वस्त्र और सम्मान राशि प्रदान की गई। समारोह की अध्यक्षता साहित्यकार एवं पुरातत्ववेत्ता अतुल मिश्र ने की तथा संचालन डॉ मनोज रस्तोगी एवं विवेक निर्मल ने किया। 

     नवीननगर स्थित मानसरोवर कन्या इंटर कॉलेज में मनोज वर्मा मनु द्वारा प्रस्तुत मां सरस्वती वंदना से आरंभ समारोह के प्रथम चरण में साहित्यकारों ने स्मृतिशेष पं सुरेन्द्र मोहन मिश्र तथा सम्मानित इतिहासकार सुरेश चंद्र शर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला। साहित्यिक मुरादाबाद के संस्थापक डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा 22 मई 1932 को चंदौसी में जन्में पंडित सुरेंद्र मोहन मिश्र ने न केवल साहित्यकार के रूप में ख्याति प्राप्त की बल्कि इतिहासकार और पुरातत्ववेत्ता के रूप में भी विख्यात हुए। उन्होंने अतीत में दबे साहित्य को खोज कर उजागर किया। आपकी मधुगान, कल्पना कामिनी, कविता नियोजन, कवयित्री सम्मेलन, बदायूं के रणबांकुरे राजपूत, इतिहास के झरोखे से संभल,शहीद मोती सिंह, पवित्र पंवासा, मुरादाबाद जनपद का स्वतन्त्रता संग्राम,  मुरादाबाद और अमरोहा के स्वतन्त्रता सेनानी ,मीरापुर के नवोपलब्ध कवि तथा आजादी से पहले की दुर्लभ हास्य कविताएं का प्रकाशन हो चुका है तथा अनेक पुस्तकें अप्रकाशित हैं। आपका देहावसान 22 मार्च 2008 को हुआ।

    सह संयोजक आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ ने कहा कि 22 दिसंबर 1941 को अमरोहा में जन्में सुरेश चन्द्र शर्मा का जनपदीय इतिहास लेखन के क्षेत्र में सुरेशचन्द्र शर्मा का उल्लेखनीय योगदान रहा है। हिन्दू धर्मग्रंथों का सारतत्व कोश, अमरोहा नगर का प्राचीन इतिहास, मातृस्वरूपा सरस्वती और सारस्वत समाज, सनातन धर्म ग्रंथों में गया श्राद्ध माहात्म्य, सम्भल नगर का प्राचीन इतिहास और सनातन धर्म विषयक शब्द नाम परिचय  आपकी उल्लेखनीय पुस्तकें हैं। इसके अतिरिक्त महाभारत का संख्यावाची कोश पुस्तक अप्रकाशित है।

    सम्मानित इतिहासकार सुरेश चंद्र शर्मा ने जनपदीय इतिहास के पुनर्लेखन और प्रकाशन की आवश्यकता पर बल दिया। 

    कार्यक्रम में स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र की रचनाओं का पाठ भी हुआ। उनके सुपुत्र अतुल मिश्र ने उनके गीत का सस्वर पाठ करते हुए कहा....

जीवन भर ये खारे आंसू ही बेचे हैं

 सपन मोल लेने को

कनक कन गला बेचे, मिट्टी के, पत्थर के

रतन मोल लेने को 

नये पथ बनाने में सुनो, वंशधर मेरे

 कुटिया का तृण-तृण बिक जाये, 

तो क्षमा करना !!

    कार्यक्रम के दूसरे चरण में आयोजित काव्य गोष्ठी में योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कहा ....

चलो करें मिलकर सखे, नूतन एक उपाय। 

पुनः लिखें सौहार्द की, खुशबू का अध्याय।।

दुष्यंत 'बाबा' ने कहा ...

देखा  मैंने   गर्त  में,  जाता  हुआ   समाज।

सबका  नायक  बन  गया, तस्कर  पुष्पा राज।।

श्री कृष्ण शुक्ल का कहना था ...

इन जगमग करती सड़कों के पीछे,

कुछ अंधियारी बस्ती भी पसरी हैं,

उस अंधकार में जलते दीपों का,

कोटि-कोटि अभिनंदन करता हूॅं।

नित्य होम श्वासों का करता हूॅं,

नित्य ही जीता, नित्य ही मरता हूॅं

सरिता लाल का कहना था ....

आस्मां छूने की तमन्ना है गर 

कुछ फासले तय करने ही होंगें,

जिन्दगी का कोई जुनून  है गर 

हौंसले तो बुलन्द  करने ही होंगें,

गर ख्वाहिश  है समुन्दर से

सीपियों को खोज लाने की,

तो उस खुदा की इबादत के साथ

गहरे में गोते तो लगाने ही होंगें...

सत्येंद्र धारीवाल ने कहा ....

मैं सदियों से सदियां जी आया, 

सदियां जी लूं सदियों तक।

धरती पर लोगों की सोच चली बस,  

अपने घर से नदियों तक।

हरि प्रकाश शर्मा ने कहा ...

कवि की लेखनी में, 

विद्रोही, कंटीले,जंगल है, 

कहाँ से शब्द चुराने है, 

बस यही उसका चिंतन है

डॉ राकेश चक्र ने कहा ....

सदा स्वस्थ रहना है तो फिर ,

नियमित रह पुरुषार्थ करो।

लो आहार संतुलित नित-दिन,

भाव-कर्म परमार्थ करो।।

श्रम से ही मिलती है मंजिल,

सदा आलसी रोते रहते।

आत्ममुग्धता अतिशय घातक,

दुख जीवन में बोते रहते।।

पूजा राणा ने कहा ....

तुम हो मेरे मन प्राण प्रिय 

 एक बार मिलन को आ जाओ

 बनकर मेरा मधुर गीत

 इस अधर प्रांत पर छा जाओ

डॉ मीरा कश्यप ने कहा

पीत पात पेड़ों के झर रहें हैं डाल से 

सरसराते पत्तों सा झर रहा बसंत है।

फूल सरसों के नये नये फूलों संग 

नई-नई कोपलों में दिख रहा बसंत है ।

डॉ कृष्ण कुमार नाज ने कहा ....

कोई तो है, जो बुराई से लड़ना चाहता है

मिज़ाज शहर का जब भी बिगड़ना चाहता है

हवाओ! तुम ही निकालो कोई नई तरकीब

कि ज़र्द पत्ता शजर से बिछड़ना चाहता है 

राहुल शर्मा ने कहा ....

अगर लिखोगे वसीयत अपनी 

तो जान पाओगे ये हकीकत

तुम्हारी अपनी ही मिल्कियत में 

तुम्हारा हिस्सा कहीं नहीं है

ओंकार सिंह ओंकार ने कहा ...                       

भूल जा तू  तूल देना, दोस्तों की भूल को।

 दोस्तों से हाथ अपना, और भी बढ़कर मिला 

 डॉ पुनीत कुमार ने कहा ....

कोई फेसबुक,कोई व्हाट्सएप,

कोई व्यस्त है गेम में

बच्चे बूढ़े सब पागल हैं

मोबाइल के प्रेम में

अलग अलग सबके कमरे हैं

पड़ोसियों से रहते हैं

दिखती है एक साथ फैमिली

केवल फोटोफ्रेम में

कमल शर्मा ने कहा ....

ना कोई पहले मेरे

ना किसी के बाद हूं मैं

आती जाती हर घड़ी में

शाद हूं , आबाद हूं मैं

नाम पीतल का मगर सोना हूं मैं

देख लो मुझको , मुरादाबाद हूं मैं

अशोक विश्नोई ने कहा...

मन में सुंदर स्वप्न सजाएं

हर असमंजस दूर भगाएं

घोर निराशा के तम में सब

आओ ! आशा के दीप जलाएं।

   इनके अतिरिक्त डॉ प्रेमवती उपाध्याय, राजीव सक्सेना, प्रत्यक्ष देव त्यागी, डॉ धनंजय सिंह, रवि चतुर्वेदी, मूलचंद राजू ,इशांत शर्मा इशू , मनोज कुमार मनु, राशिद मुरादाबादी, संजीव आकांक्षी, डॉ ममता सिंह, डॉ अर्चना गुप्ता, राशिद हुसैन, मयंक शर्मा, प्रीति अग्रवाल आदि ने भी काव्य पाठ किया। आभार आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ ने व्यक्त किया ।