गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की कहानी ------- गरीब


"अरे भई जल्दी करो..!कितनी देर और लगेगी खाना पैक होने में,?"सुभाष बाबू ने झुंझलाहट भरे स्वर में  राजू से पूछा।"हो गया साहब! पाँच पैकेट और बस...।" राजू ने उत्तर दिया।
आज पूरे सौ पैकेट गरीबों तक पहुँचाने थे।
सुभाष बाबू सामुदायिक रसोई का संचालन  कर रहे थे।सरकार ने लाक डाउन मे गरीबों तक बना बनाया  खाना पहुँचाने की व्यवस्था के तहत  शहर मे कई जगह  रसोई चलवाई  थी। शहर की इस पाश कालोनी में रहने वाले सुभाष बाबू को सामुदायिक रसोई के संचालन की ज़िम्मेदारी दी गयी थी।
       अचानक उनकी जेब में रखा मोबाइल बज उठा। स्क्रीन पर अपने मित्र रवि का नम्बर देखकर मुस्कुराते हुऐ सुभाष बाबू ने काल  रिसीव  की ,"हैल्लो...रवि.!.कैसा है यार?और बता.....कैसे  याद किया। "
"अजी मुबारकां जी, मुबारकां...,"उधर से आवाज़ आयी।
"किस बात की बधाई दे रहा है यार? हे.हे.हे हे हे....!!,सुभाष बाबू ने दाँत फाड़ते हुऐ कहा ।
"अरे भई रसोई चला रहा है ,शहर भर की,ये क्या कम बात है।कल तो फोटो भी छपी थी तेरी अखबार में, खाना बाँटते हुऐ।"रवि ने कहा।
"सो तो है....मगर बड़ा सरदर्दी वाला काम है यार....सुबह से काल पर काल आ रही हैं....पता नहीं कितने भुक्खड़ हैं शहर में!!"
" सरदर्दी कैसी ?....सुना है तुझे भी काफी फायदा हो रहा है इस सबमें...किराना स्टोर वाले गुप्ता जी बता रहे थे....।"रवि ने तंज कसते हुऐ कहा।

"अरे कहाँ यार फायदा वायदा!...ये मोहल्ले वाले  तो जलते हैं मुझसे..।"सुभाष बाबू ने खीसे निपोरीं",चल छोड़ ...तू बता क्या हाल हैं...भाभी जी कैसी हैं ?"

"सब ठीक हैं . ..तू बता...आज क्या क्या  बन रहा है खाने में...?"रवि ने पूछा।

"आज तो आलू की सब्जी और पूरी है।साथ में हरी मिर्च और अचार भी है ।"

"अच्छा...बस एक ही सब्ज़ी है क्या....?चल यार..एक  काम कर ....!आज श्रीमतीजी की तबियत कुछ खराब है,कामवाली भी नहीं आ पा रही है,तू ज़रा पाँच पैकेट खाने के भिजवा दे ...आज ज़रा तेरी रसोई का भी खाकर देखें कैसा है...?"उधर से रवि ने कहा।
"बिल्कुल.... अभी ले....अभी भिजवाता हूँ,..और भाभी जी से कहियो...जब तक तबियत खराब है...यहीं से खाना जायेगा,परेशान ना हों..।चल ठीक है फिर......बाद में बात करता हूँ...ओके..
बाय..।"
रवि  सुभाष बाबू के लंगोटिया यार व पड़ोसी था और अब दूसरी कालोनी में नयी कोठी बनायी थी,परिवार सहित वहीं  शिफ्ट हो गया था।

फोन जेब में रखकर सुभाष बाबू   मुँह खोलकर होठों के किनारे को  तर्जनी उँगली से खुजलाते हुऐ ,फिर से राजू की तरफ बढ़े ही थे कि फोन फिर से घनघना उठा था।"अब कौन मर गया....!!"
बड़बड़ाते हुऐ सुभाष   बाबू ने फोन रिसीव किया तो उधर से एक रिरियाती हुई महिला की आवाज़ आयी,"साब.. कल सुबह से हम सब  भूखे हैं.. वो...खाना ....खाना चाहिए ...?"
उसकी बात पूरी होने से पहले ही सुभाष बाबू ने  मानो महिला को पहचानते हुऐ, उपेक्षा से कहा,"देखो भई !और भी गरीब हैं यहाँ ....!!!तुम्हारे यहाँ  परसों तो  भिजवाया  ही था...!दूसरे गरीबों का भी  नम्बर आने दो..!"
" मगर साब..!साब!  ..मेरी बात तो ....."
उस गरीब औरत की बात पूरी होने से पहले ही सुभाष बाबू ने फोन काट दिया था।
"राजू !!"
"जी साहब"
"ज़रा ये एड्रेस नोट कर...सबसे पहले यही पर खाने की डिलीवरी करना।अर्जेंट है..।"कहकर सुभाष बाबू रवि का नम्बर राजू को  नोट कराने लगे थे ।

 ✍️ मीनाक्षी ठाकुर
 मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नं. 8218467932

मुरादाबाद की साहित्यकार स्वदेश सिंह की लघुकथा ----- आईना


दरवाजे की घंटी बजाने पर विशाल पर मकान मालकिन चिल्लाते हुए बोली कि तुम हमारा मकान खाली कर दो .......तुम कहीं भी रहो  ...बस मैं तुम्हें अपने यहां नहीं रख सकती ....अगर हमें यह बीमारी लग गई तो हम क्या करेंगे?...  हमारी देखभाल करने के लिए तो कोई भी नहीं है .... तुम जाओ यहां से, मैं तुम्हें घर में नहीं आने दूंगी।
यह सुनकर  विशाल का दिल बैठ गया और मिन्नतें करने लगा ....परंतु मकान मालकिन ने जैसे दरवाजा न खोलने की कसम खा रखी हो..और  बड़बड़ाती हुई अंदर चली गई ।
विशाल मेडिकल का स्टूडेंट है। इस समय देश में कोरोना महामारी फैलने के कारण उसकी ड्यूटी कोरोना मरीजों की देखभाल के लिए लगा दी गयी है जिसके कारण मकान मालकिन बेहद डर गयी है , उसे लग रहा है कि विशाल के द्वारा बीमारी उसके घर में प्रवेश कर जाएगी और वह भी संक्रमित हो जाएगी ।
थका -हारा ,भूखा -प्यासा  विशाल दरवाजे पर ही बैठ गया और उसकी आँखो से आंसू टपकने लगे  ... रोते -रोते उसे कब नींद आ गई पता ही ना चला ।...सुबह के 4:00 बजे जब दरवाजे की घंटी बजी तब उसकी आंख खुली तो देखा दरवाजे पर एक लड़का घंटी  बजा रहा है ...घंटी की आवाज सुनकर मकान मालकिन बड़बड़ाती हुई  दरवाजा खोलने आई और दरवाजा खोलते ही चिल्लाते हुए बोली ... तू गया नहीं अभी तक ... जा यहां से....उधर से आवाज आई मम्मी मैं हूं आपका बेटा रोहित...  आवाज सुनते ही उसकी आंखें  खुली की खुली रह गई उसने आश्चर्यचकित होकर पूछा बेटा रोहित ....तू यहां कैसे तू ...तो   लखनऊ के मेडिकल कॉलेज में .......पढ़ाई कर रहा था  ...दुखी होते हुए रोहित ने कहा - माँ , वहां  मैने डॉक्टरों के साथ मिलकर कोरोना वायरस से संक्रमित बीमारों की सेवा करनी शुरू कर दी थी। संक्रमण फैलने के डर से मकान मालिक ने मुझे अपने घर से निकाल दिया और मुझे घर आना पड़ा ।यह सुनकर उसके होश उड़ गए और वह  सोचने लगी कि मैं भी तो यही करने जा रही थी।

✍️ स्वदेश सिंह
 सिविल लाइन्स
 मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार अखिलेश वर्मा की लघुकथा ------- डॉ० साहब क्वारंटाइन में हैं


"हलो ! हलो !!"
"यस ! दिसलोक हॉस्पिटल हियर ।" रिशेप्सनिस्ट आलोक बोला ।
"मुझे डॉ शर्मा का नम्बर लगवाना है जो कॉर्डियोलोजिस्ट हैं ।" मरीज की आवाज़ आयी ।
"वो आपको पंद्रह दिन नहीं मिल सकते ।"
"पर उन्होंने मुझे दिल के आपरेशन की तारीख दे रखी है कल की । तो ऑपरेशन से पहले एडमिट करना होगा .. ज़रूरी टेस्ट वगैरह भी कराने होंगे ।" परेशान आवाज़ में मरीज़ बोला ।
"कहा ना ! वो पंद्रह दिन नहीं मिल सकते ।" आलोक सख्त आवाज़ में बोला ।
"क्या बात कह रहे हैं आप , अभी लॉकडॉउन से पहले ही तो उन्होंने कहा था कि मेरे दिल की नसों में नब्बे प्रतिशत ब्लॉकेज आई है तीन दिन में आपरेशन नहीं कराया तो कोई ताक़त नहीं बचा सकती ।" मरीज़ ने पूरी बात बताई ।
''मगर अब उन्होंने अपने सभी मरीजों के लिए कहा है कि पुराने पर्चे की दवा ही खाएँ पंद्रह दिन और ! " आलोक ने समझाते हुए कहा ।
"पर तब तक तो मैं उनके कहे अनुसार मर जाऊँगा भाई ! आप उनसे मेरी बात तो कराइये ।'' दुखी व रोष में मरीज़ बोला I
"सॉरी , डॉक्टर साहब क्वारंटाइन में हैं ।" कहकर रिसेप्शनिस्ट ने फोन पटक दिया ।

✍️ अखिलेश वर्मा
   मुरादाबाद


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ----तरीका


     अपने तीनो दोस्तों के साथ घूमते हुए राज ने आईस्क्रीम की दुकान देखकर कहा"चलो आईस्क्रीम खायी जाये"।"हमारे पास पैसे नहीं है"कहकर वे आगे चल दिये। अरे पैसा कौन माँगता है, खानी हो तो बोलो"।
अरे खाने को कौन मना करेगा चलो खिलाओ" कहकर सब आईस्क्रीम की दुकान की ओर चले।राज दुकान वाले के पास जाकर कुछ बात करने के बाद तेज आवाज मे बोला "पत्ते तीन और बनाओ केसर वाले मलाई के साथ"। दुकानदार ने तेजी के साथ चार प्लेट लगाकर बोला "लीजिए और बताइये कि कैसी है?"।अपने दोस्तों के साथ बोला "थोड़ी मलाई और लगाओ तो स्वाद बढ़ जायेगा"।आईस्क्रीम खाकर राज चलने लगा दोस्तों के साथ तभी दुकान वाला बोला"साब तारीख कब है ,कितने लोग होगें? कल आकर बताता हूँ।"राज उसने पैसै क्यों नहीं माँगे और कौन सी तारीख पूछ रहा था"?
अरे छोड़ो यार वो तो मैने उससे कहा हमारे यहां शादी है और तुम्हारी आईस्क्रीम की तारीफ सुनी है"।
तो कब है शादी "
"कौन सी शादी किसकी शादी। वो तो तुम सबको आइसक्रीम खिलानी थी" कहकर राज कुटिलता से मुस्कुरा दिया।

  ✍️ डॉ श्वेता पूठिया
मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रागिनी गर्ग की लघुकथा---- गलतफ़हमी


आज अर्णव,आॅफिस से देर से घर आया। काफी थका -थका , निढाल सा।
माधवी, पानी का गिलास लेकर आयी।फिर व्यंगात्मक -अंदाज में  बोली :-"क्या बात अर्णव! काफी थके हुये लग रहो हो?क्या आज अपनी बाॅस रिनी के साथ चाय नहीं पी , या उसने तुमसे काम ज्यादा करा लिया?"
अर्णव बोला,"तुम्हारे दिमाग में  रिनी जी को लेकर जो शक का कीडा़ रेंग रहा है उसे निकाल बाहर करो। यह हमारे बीच रोज की क्लेश अच्छी  नही । मेरे और उनके बीच में बाॅस और सेक्रेटरी के अलावा न कोई रिश्ता है,  और  न होगा।" मैं बताता हूँ , "आज क्या हुआ -----?"
वो माधवी को कुछ बता पाता, इससे पहले ही माधवी की नजर अर्णव की कमीज पर लगी लिपस्टिक की ओर चली गयी।
"यह क्या है अर्णव?  अब मुझे कुछ नहीं सुनना , झूठ बोलने की भी हद होती है। छीः! मुझे शर्म आती है तुम पर। मैं  तुम्हारे साथ अब एक पल भी नहीं रह सकती। इसी समय  मम्मी के घर जा रही हूँ।' इतना कहकर  वो अपना सामन बाँधने लगी।
तभी दरवाजे की घन्टी बजी।
अर्णव ने दरवाजा खोला।माधवी भी बाहर आ गयी।
60-65 साल के एक बुजुर्ग- दम्पत्ति हाथ में फूलों का गुलदस्ता लिये खडे़ थे।उन दोनों ने एक स्वर से पूछा, "क्या अर्णव जी आप हैं?"
"जी हाँ! मैं हीअर्णव हूँ। पर माफ कीजियेगा, मैंने आपको पहचाना नहीं।"
 दोनों बुजुर्ग अर्णव के पैरों की ओर झुक गये, बोले:- बेटा! आप हमारे लिये भगवान हो। हम उसी जवान -बच्ची के माँ -बाप हैं, जिसकी आपने आज जान बचायी है। ट्रक वाला तो उसे मारकर चला ही गया था, अगर आप उसको समय पर अस्पताल न पहुँचाते तो हम अपनी बच्ची को जिन्दा नहीं पाते।
हमें आपके घर का पता अस्पताल के उस फाॅर्म से मिला जो आपने मेरी बेटी का संरक्षक बनकर भरा था।
अर्णव बोला, "आप मेरे माता-पिता जैसे हैं , कृपया मेरे पैर न पकडे़ं यह तो मेरा फर्ज था।"
पास ही खडी़ माधवी शर्म से, धरती में गढी़ जा रही थी।उसकी आँखों में पश्चाताप के आँसू थे। एक छोटी सी बात को लेकर इतनी बडी़ गलतफहमी पालकर वो अपना घर तोड़ने जा रही थी।

  ✍️ रागिनी गर्ग
रामपुर


मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार सीमा रानी की लघुकथा ----"चार धाम यात्रा "


पैसा पैसा जोड़कर चार धाम की यात्रा करने का इंतजाम किया था सज्जन सिंह ने |घर की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी छोटी सी कृषि से ही बाल बच्चों की पढ़ाई व बाकी खर्च चलता था |पर मन में जीवन में एक बार चार धाम की यात्रा करने का सपना रह रहकर उभरता था तो अपनी छोटी सी आमदनी से यात्रा के खर्च का इंतजाम करने में कई वर्ष लग गये थे |
            यात्रा का खर्च पूरा हो जाने पर सज्जन सिंह बड़े प्रफुल्लित थे कि चलाे अब प्रभु दरबार के दर्शन आसानी से कर सकूंगा और फिर शांति से देह का त्याग भी कर सकूंगा |
             सज्जन सिंह खिड़की के पास खड़े होकर सड़क पर आते जाते लोगों को निहार रहे थे जाने जिंदगी किस धुन में दौड़ लगाती रहती है तभी बराबर वाले वर्मा जी ने आकर बताया कि रहीम भाई के बेटे की तबीयत बहुत खराब है डॉक्टर ने दाे लाख का खर्च ऑपरेशन के लिए बताया है यह सुनकर तो रहीम भाई की बोलती ही बंद हो गई |
वर्माजी की बातें सुनकर सज्जन सिंह अवाक थे क्याेंकि रहीम भाई के घर का इकलौता चिराग उनका बेटा ही था.... |
           अब सज्जन सिंह दुविधा में पड़ गए कि वर्मा जी से तो कह सकता हूं कि मैं उनकी कोई सहायता नहीं कर सकता परंतु खुद से कैसे कहूं कि..... ...?
और यदि ऐसे धर्म संकट में मैने मानव धर्म नहीं निभाया तो क्या मेरी चार धाम यात्रा कुबूल हाे पायेगी इसी द्वन्द में वे पूरी रात सो नहीं सके |
            सुबह सज्जन सिंह बहुत दृढ़ निश्चय व शांत मन से उठकर रहीम भाई के घर पहुँचे और रहीम भाई के कंधे पर हाथ रखकर बाेले घबराओ न रहीम भाई....... |ये लाे दाे लाख और बेटे का ऑपरेशन कराओ |रहीम भाई का गला रूंध गया मुँह से शब्द नही निकल पा रहा था बडी हिम्मत से बाेले सज्जन.... .....|
बस टकटकी लगाकर सज्जन सिंह काे निहारते रहे..... |

✍🏻✍🏻सीमा रानी
अमराेहा 

मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर की कहानी ----- गांव कोर


      शालिनी ने स्तब्ध होकर पूछा "क्या गांवकोर जैसी कुप्रथा आज के समय में भी चलन में है?"
महिमा ने उत्तर दिया "हां शालिनी, कम से कम हमारे गांव में तो यह चलन में है। तुम तो बचपन में ही पढ़ने लिखने के लिए शहर चली गई और एक वकील बन गई, लेकिन हम सबकी ऐसी किस्मत कहाँ ? हम सब तुम्हें बहुत याद करते थे, काकी काका तो तुमसे शहर मिलने आ जाते थे लेकिन हम तो पहली बार मिल रहे हैं। तुमने तो वास्तव में तरक्की कर ली सोच में भी और शिक्षा में भी लेकिन इस गांव के लोगों ने जरा भी तरक्की नहीं करी, सब ज्यों के त्यों ही है। पुरानी कुप्रथाओं से इस प्रकार बंधे हुए हैं जैसे कि छूटना ही नहीं चाहते हो।"
शालिनी ने पूछा "महिमा तुम मुझे ले जा सकती हो गांवकोर पर? मैंने नाम तो सुना है लेकिन कभी देखा नहीं है।"
महिमा शालिनी को अपने साथ गांवकोर की तरफ ले गई।
गांव के आखिरी छोर पर एकदम सुनसान एवं वीराने में एक छोटी सी झोपड़ी थी। दोनों ने अंदर प्रवेश करा तो वह खाली थी। तभी बास के डंडों से बने बाथरूम पर जिस पर पर्दा ढका हुआ था, उसे हटाकर एक लड़की कराहते हुए बाहर निकली।
उसने शालिनी को देखते ही पहचान लिया और बोली "अरे शालिनी तू यहां कैसे? तू तो बिल्कुल वैसी ही लग रही है जैसे बचपन में लगती थी, बस थोड़ी लंबी हो गई तुझे क्या महावारी हो रही है जो तू इस झोपड़ी में आई है?"
शालिनी ने उत्तर दिया "नहीं महावारी तो नहीं हो रही निलीमा बस मैं किसी काम से यहां पास में आई थी तो मांबाबा और सबसे मिलने आ गई।"
उसने आगे पूछा "लेकिन तुम यहां क्या कर रही हो?
नीलिमा ने उत्तर दिया "मेरा मासिक धर्म चल रहा है इसलिए हर महीने पांच दिन मैं यही रहती हूं। वरना कभी-कभी इसके धब्बे कपड़े में से रिसकर फैल जाते हैं फिर साफ भी नहीं हो पाते और बदबू भी बहुत हो जाती है।"
शालिनी ने पूछा "तुम कपड़ा इस्तेमाल करती हो लेकिन कपड़े से इन्फेक्शन होने का खतरा रहता है, जिससे सर्वाइकल कैंसर का डर बना रहता है। तुम लोग यहां इतने सुनसान में रहती हो, तुम्हें जंगली जानवरों, सांप, बिच्छू का डर नहीं लगता? यहां तो मुझे बिस्तर भी नहीं दिखाई दे रहा, तुम जमीन पर सो कैसे लेती हो वह भी इस अवस्था में। तुम्हारे खाने पानी का इंतजाम कैसे होता है? बरहाल तुम इस अवस्था में रहती ही क्यों हो मना क्यों नहीं करती?
महिमा ने बोला "दरअसल इसका उत्तर यह नहीं दे पाएगी मैं देती हूं। क्योंकि यह इस गांव का रिवाज है कि मासिक धर्म के दौरान लड़की को चाहे वह कुंवारी हो या फिर
शादीशुदा गांवकोर में ही रहना पड़ता है। घर से उबला हुआ खाना, पानी के साथ आ जाता है तो वही खाना होता है और आजकल के जमाने में जहां इंसान शैतान बन चुका है वहां जानवर से क्या डरना? अभी कुछ दिन पहले सांप के काटने के कारण एक लड़की की मृत्यु हो गई लेकिन यह इतना भयावह नहीं था जितना कि कुछ माह पहले एक लड़की को माहवारी के दौरान बलात्कार करके मार दिया गया और उसके तन पर कपड़ा भी नहीं ढका।"
शालिनी ने कहा "मतलब इतना सब होने पर भी तुम लोग को गांवकोर में रहने आ जाते हो। गांव से इतना दूर सुनसान में गांवकोर बनाने की जरूरत ही क्या है?
महिमा ने आगे कहा "चलो शालिनी, इन सब चीजों में तुम मत पड़ो तुम शहर की हो वहां का आनंद लो हम गांव में ऐसे ही ठीक है, अब चलो बहुत देर हो रही है काका काकी घर पर इंतजार कर रहे होंगे।"
शालिनी घर तो वापस आ गई लेकिन उस गांवकोर का दृश्य उसके मस्तिष्क में लगातार घूम रहा था। वो बस यह कारण जानने को उत्सुक थी कि आखिर क्यों इतनी मुश्किलों के बावजूद एक स्त्री गावकोर में रहने को मजबूर है।
यह प्रश्न शालिनी को लगातार परेशान किए जा रहा था। अंततः वो अपनी दादी के पास प्रश्न के उत्तर की तलाश में गई। दादी कमरे में शालिनी की मां ममता के साथ बैठकर गेहूं बीन रही थीं। शालिनी ने कमरे में प्रवेश किया और चुपचाप कुर्सी पर बैठ गई। बैठे बैठे वह गहरी सोच में डूब गई और सोच में डूबे डूबे वो गेहूं को एकटक निहार रही थीं। उसे इस प्रकार ख्यालों में खोया देख दादी तो समझ गई थी कि वो किसी गहन चिन्तन में है।
उन्होंने शालिनी को झकझोरते हुए मजाकिया तंज मे पूछा "क्या बात शालू तूने कभी गेहूं नहीं देखे जो इन्हें ऐसे घूरे जा रही है?"
दादी की बात पर शालिनी का ध्यान भंग हुआ तो वो बोली "वो दादी..... दरअसल..... कुछ पूछना था।"
दादी बोली "हाँ तो पूछ न बिटिया क्या पूछना है ? "
शालिनी ने प्रश्न किया "दादी दरअसल मैं गांवकोर के बारे में पूछना चाहती हूँ ? आखिर आज के समय में गांवकोर की क्या आवश्यकता है? इतनी मुश्किले झेलते हुए भी लड़कियां व महिलाए वहां जाने को क्यों मजबूर हैं?" दादी ने शालिनी की बात का उत्तर देते हुए कहा "शालू जो प्रश्न तू आज उठा रही है यह मैं काफी बार उठा चुकी हूं और मैंने बदलाव लाने की कोशिश भी करी लेकिन असफल रही। और इसका कारण हैं कि समाज बदलाव लाना ही नहीं चाहता। लोग गांवकोर की स्थिति को सुधार तो देते हैं लेकिन खत्म नहीं करते। तेरी मौसेरी दादी के गांववाले हमारे यहां से ज्यादा स्वतंत्र विचारों के हैं परन्तु वहां भी इस कुप्रथा का खत्म करने के स्थान पर गांवकोर की स्थिति सुधार दी गई। अब वहां गांवकोर की झोपड़ी की जगह ईंट की दीवारों से बना कमरा है जहां सोने के लिए बिस्तर है तो दरवाजे भी हैं।"
शालिनी ने कुछ सोचते हुए कहा "मतलब गांवकोर कुप्रथा तब तक रहेगी जबतक यह समाज के मस्तिष्क में रहेगी".....कहते कहते शालिनी सोचने लगी कि मासिक धर्म तो इस संसार को चलाने के लिए सबसे ज्यादा आवश्यक है। यदि मासिक धर्म ही नहीं होगा तो स्त्री बच्चे कैसे पैदा कर सकेगी? मासिक धर्म ही तो उसे काबिलियत देता है बच्चे पैदा करके इस संसार को चला सकने की और उसी के लिए इस तरह से बर्ताव किया जा रहा है। मंदिर में प्रवेश ना करना, रसोई घर में प्रवेश न करना, घर में अलग कमरे में रहना तो शहरों में भी सुनने को आ जाता है लेकिन गांवकोर जैसी कुप्रथा अब भी चलन में है यह बात तो बहुत ही गलत है।
शालिनी ने निश्चय करा कि वह पूरे एक हफ्ते जब तक इस गांव में है तब तक गांवकोर की प्रथा को मिटाने के खिलाफ अपनी कोशिशें जारी रखेगी।

✍️ इला सागर
मुरादाबाद 244001

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघु कथा ----- भूख


   मां ने तीनों बच्चों को अपने पास बैठाया उनके सर पर हाथ फेरकर कहा बच्चों आज
सेठ के लड़के का जन्म दिन था, वहां महमानों की भीड़ जमा थीं औऱ बेटा वहां कई तरह के पकवान, मिठाइयां भी बनी थी ।बच्चे बोले और माँ----! महमानों ने प्लेटों में खाना, मिठाइयाँ छोड़ दीं उन्हें  कुत्ते खा रहे थे। और-------!!'' तभी एक बच्चा बोला पर माँ तुम खाना क्यों नहीं लाई मुझे भूख लग रही है "।यही प्रश्न उन दोनों ने भी किया ।उनकी बातें सुनकर माँ की आंखों में आँसू आ गए ।आँसू देखकर बच्चे चुप हो गए और बोले '' माँ कल फिर सुनना ऐसी सुंदर कहानी ''।हमारा तो कहानी सुनकर ही पेट भर जाता हैं माँ--------!!और बच्चे उठकर सोने चले गए ।
         
           ✍️ अशोक विश्नोई
            मुरादाबाद 244001
        मोबाइल फोन नम्बर 9411809222

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की कहानी ----खजाने की गुप्त भाषा

 
                            दो सौ साल पुराने मकान को तोड़कर नया मकान बनाने की तैयारी चल रही थी । इसी क्रम में घर का सबसे पुराना कमरा टूट रहा था । दीवार को तोड़ते समय मजदूरों ने आवाज लगाई "बाबूजी ! यह छोटी सी संदूकची निकली है दीवार में। देखिए कुछ काम की तो नहीं है ?"
    मैं दौड़ा और तत्काल संदूकची को अपने कब्जे में ले लिया । पीतल की बहुत ही खूबसूरत काम की बनी हुई यह एक छोटी सी संदूकची थी । ऊँचाई 3 इंच ,चौड़ाई भी लगभग 3 इंच और लंबाई 6 इंच। संदूकची को उत्सुकता वश खोला तो देखा कि उसके अंदर एक कागज रखा हुआ है ।कागज को उठाकर देखा तो टेढ़े-मेढ़े कुछ अक्षर बने हुए थे ।लेकिन हाँ , थे एक सीध में । तीन चार लाइनों में यह सब लिखावट थी । समझ में कुछ नहीं आया कि यह सब क्या है ? मजदूरों से उस तरफ काम रोक देने के लिए कहा और उन्हें घर जाने की अनुमति दे दी।
       संदूकची और उसमें रखा हुआ कागज लेकर पिताजी के पास दौड़ा- दौड़ा पहुँचा । उन्हें संदूकची और उसमें रखा हुआ कागज दिखाया। सारी घटना बताई। कागज को देखकर वह भी सोच में पड़ गए । कहने लगे "जिस परिस्थिति में यह कागज और संदूकची मिली है ,तो इसमें कुछ न कुछ रहस्य तो होना चाहिए ।लेकिन इस कागज में जो लिखा हुआ है ,उसे पढ़ेगा कौन ? यह तो कोई गुप्त भाषा जान पड़ती है ।"
     सहसा पिताजी को कुछ याद आया। कहने लगे" हमारे दादा जी  अर्थात तुम्हारे परदादाजी  अपने जमाने के  बहुत धनवान व्यक्ति थे । मेरे पिताजी बताते थे  कि उन्होंने अपना कोई खजाना  कहीं छिपा दिया था  और फिर अंतिम समय में  उसके बारे में स्वयं ही भूल गए थे  । दरअसल अंत में उनकी याददाश्त  खो गई थी  । उन्हें  कुछ भी याद नहीं रहा  । हो सकता है  कि इसमें उसी खजाने का कोई रहस्य छिपा हुआ  हो।"
   मैंने खुशी से उछल कर कहा "तब तो यह  कागज बहुत कीमती है  और इसका पढ़ा जाना बहुत जरूरी है ।"
     इस पर पिताजी कहने लगे " एक पुराने मुनीमजी हैं। उनकी आयु 90 वर्ष की होगी । अगर उनसे जाकर पूछा जाए तो शायद इसे पढ़ लें। सुना है , पुराने जमाने में वह बहीखातों का काम करते थे ।"
     तत्काल मैं और पिताजी स्कूटर पर बैठे और जिन मुनीमजी का जिक्र हो रहा था, उनके घर पर पहुँच गए । और हाँ ! रास्ते में कुछ फल और मिठाइयाँ साथ में ले लीं। खाली हाथ जाना उचित नहीं था । मुनीमजी घर में खाली बैठे थे। उनके पुत्र से पूछा" क्या मुनीमजी हैं ? "
   वह कहने लगा "अभी तो जब तक ऊपर से बुलावा नहीं आया है ,हमारी छाती पर ही मूँग दल रहे हैं ।"
     सुनकर धक्का लगा । "बुजुर्गों के बारे में भला कोई ऐसा कहता है ? ऐसा नहीं कहना चाहिए आपको !"
      "क्यों नहीं कहना चाहिए ? अब जब यह किसी काम के नहीं हैं, सिवाय खाना और सोना ,इसके अलावा इनसे कोई काम आता नहीं ,तो इनकी उपयोगिता ही क्या है ? इनका मूल्य फूटी कौड़ी भी नहीं रह गया है।"
     पिताजी ने मुनीमजी के पुत्र से बहस करना उचित नहीं समझा। बस इतना कहा "आप हमें उनसे मिलवा दीजिए ।"
    लड़का बोला "आइए चलिए ! आप मिल लीजिए !क्या करेंगे मिलकर ?"
    पिताजी बोले "कुछ नहीं ,बस हाल-चाल पूछना था "
     लड़का मुनीमजी के पास ले गया। मुनीमजी चारपाई पर रोगी- सी अवस्था में थे ।उम्र की बात भी थी। पिताजी ने उनकी कुशल क्षेम पूछी । वह पहचान गए । पिताजी ने उन्हें फल और मिठाई सौंपी, जिसे उनका पुत्र तत्काल ले गया । कमरे में अब केवल मुनीमजी , मैं तथा पिताजी थे।
            पिताजी ने मुनीमजी से कहा "आपसे एक कागज पढ़वाना है । पढ़ देंगे?"
     मुनीमजी के रूखे चेहरे पर हल्की सी हँसी तैरी और कहने लगे "हाँ ! अभी आँखों से इतना तो दिख जाता है कि लिखा क्या है । लेकिन ऐसा क्या है जो सिर्फ मैं ही पढ़ सकता हूँ?"
     पिताजी ने कागज उनके आगे कर दिया। मुनीमजी ने कागज हाथ में लिया और दो मिनट तक उसे भीतर ही भीतर पढ़ते रहे। उनकी आँखों में गहरी चमक आ गई। धीरे से पिताजी के कान में बोले "इसमें खजाने का विवरण लिखा हुआ है । यह तुम्हें किसी दीवार में छुपाया हुआ तो नहीं मिला ?"
     पिताजी खुशी से काँपने लगे। बोले" हाँ ! ऐसा ही है ।"
    मुनीमजी ने धीरे से कहा "इसमें लिखा हुआ है कि जिस स्थान पर संदूकची में यह कागज़ रखा हुआ है, ठीक उसी स्थान पर नींव में सोने की अशरफियों का संदूक गड़ा हुआ है ।"
           फिर मुनीमजी ने धीरे से बताया "यह कागज मुंडी लिपि में लिखा हुआ है । एक जमाना था ,जब पाठशालाओं में भी मुंडी पढ़ाई जाती थी और दुकानों पर बहीखातों के सारे काम भी इसी मुंडी लिपि में हुआ करते थे । तुम्हारे दादा परदादा इसी मुंडी लिपि को लिखने की आदत रखते होंगे और इसीलिए उन्होंने सहज रूप से इसे मुंडी लिपि में लिख दिया । मुंडी लिपि में लिखने का एक कारण यह भी हो सकता है कि वह नहीं चाहते होंगे कि यह कागज किसी बिल्कुल अनजान आदमी के हाथ में पड़े ।"
     पिताजी सुन कर आश्चर्यचकित रह गए। सचमुच अगर उस मजदूर ने संदूकची खोलकर कागज निकाल भी लिया होता तो मुंडी में लिखा होने के कारण वह उसे नहीं पढ़ पाता।
      पिताजी और मैं खुशी से उछल रहे थे।अब पिताजी ने मुनीमजी के हाथ चूमे और कहा " मैं आपकी कुछ सेवा करना चाहता हूँ। दस हजार रुपए लाया हूँ।आपको दे दूँ।"
      बूढ़े मुनीमजी ने कहा "मुझे देकर क्या करोगे ? और मैं रूपयों का करूँगा भी क्या? बुझता हुआ चिराग हूँ। मेरे बेटे को दे दो। शायद वह इससे मेरी कुछ कद्र करने लगे ।"
   पिताजी ने ऐसा ही किया। बाहर आए और मुनीमजी के लड़के को दस हजार रुपए दे दिए। कहा "इनसे मुनीमजी की अच्छी तरह सेवा करते रहना ।"
       लड़के की समझ में कुछ नहीं आया। लेकिन उसने झटपट रुपए अपनी जेब में रख लिए । पिता जी घर आए । हम दोनों ने मिलकर हथौड़ी  से उस स्थान पर पहले दीवार हटाई और फिर नींव खोदना शुरू किया । जरा सा नीचे जाते ही एक संदूक में सोने की अशरफियाँ भरी हुई मिल गयीं। मुनीमजी ने मुंडी लिपि में लिखे हुए कागज को बिल्कुल ठीक पढ़ा था ।
        मैंने कहा " पिताजी ! अगर मुनीमजी जीवित नहीं होते तो क्या मुंडी लिपि पढ़ने वाला कोई और व्यक्ति शहर में था ?"
    पिताजी बोले "मुनीमजी आखिरी व्यक्ति हैं ,जो मुंडी लिपि जानते हैं। एक सज्जन और भी थे, मगर पिछले साल ही उनका भी लगभग 90 वर्ष की आयु में निधन हो गया था । वैसे मेरा अनुमान भी कुछ-कुछ मुंडी लिपि की तरफ ही जा रहा था । इसीलिए मैं तुम्हारे साथ मुनीमजी के पास ही सबसे पहले गया।"

✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर
उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99 97 61 5451

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की लघुकथा ----- साधु
















          मिस मालिनी को कला के क्षेत्र में उसके उल्लेखनीय योगदान के लिए शहर के प्रतिष्ठित सम्मान से आज सम्मानित किया जा रहा था।सम्मान ग्रहण करने और आभार अभिव्यक्ति के दो शब्द कहने के बाद जब वह अपने स्थान पर वापस लौटी तो गले में रुद्राक्ष माला धारण किये और गेरुए वस्त्रों से सुसज्जित संत गोपालदास जी ने आगे बढ़कर बड़ी गर्मजोशी से उसका स्वागत किया।संत ने उसकी कला की भूरि भूरि प्रशंसा की।कार्यक्रम की समाप्ति तक संत जी मालिनी के आसपास ही रहे और उसके परिवार व कार्य के बारे में प्रश्न कर उससे परिचय बढ़ाते रहे।
   "मैं गंगा मैया व कन्या उद्धार के सामाजिक कार्यों से जुड़ा हुआ हूँ।आप कलाकार हैं,अपनी कला के माध्यम से आप भी हमारी संस्था से जुड़कर समाज सेवा कर सकती हैं।"संत ने बड़ी आत्मीयता से कहा।
        मालिनी बहुत खुश थी कि शहर का एक वयोवृद्ध प्रतिष्ठित संत उससे इतनी आत्मीयता से पेश आ रहा है।वह सोच रही थी गोपालदास जी वाकई संत हैं जो स्वयं तो नेक कार्य कर ही रहे हैं,मुझ जैसे नवोदित कलाकार को भी प्रोत्साहित कर रहे हैं।वह इन्हीं ख्यालों में डूबी थी कि उसकी एक परिचिता शिक्षाविद श्रीमती शुक्ला ने उसे पीठ पर थपकी दी और इशारे से उसे एक ओर बुलाया।फिर वह बड़े प्यार से बोली,
"बेटा मालिनी एक बात कहूँ,मानोगी।"
"जी, क्यों नहीं।आप बताएं तो सही।"
"तो बेटा इस बुड्ढे गोपालदास से दूर ही रहना।"
मिस मालिनी चौंक कर बोली,
"पर मैम वे तो बड़े सज्जन और साधुवेशधारी संत हैं।"
श्रीमती शुक्ला तपाक से बोली,"हर साधुवेशधारी साधु नहीं होता,बेटा।पहनावे और दिखावे पर मत जाओ,अपनी अक्ल लगाओ।"
मालिनी अब किंकर्तव्यविमूढ़ थी।

✒हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद244001

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की कहानी -----सूझ-बूझ और साहस


जनवरी के महीना था कड़ाके की ठंड पड़ रही थी अभी सुबह के छः बज रहे थे सड़क पर अंधेरा फैला हुआ था।
सोनू रोज इसी समय ट्यूशन पढ़ने के लिए घर से दो किलोमीटर पैदल जाता है , सड़क पर इस समय इक्कादुक्का लोगो को छोड़कर लगभग सुनसान ही रहता है।

सोनू नोवीं कक्षा का होनहार और समझदार छात्र है,वह पढ़ने में जितना तेज़ है उतना ही समाजिक ।

सोनू किताबे बगल में दबाये, हाथों को पेंट की जेब में छिपाये तेज़ तेज़ चला जा रहा था, उसके दिमाग में आज पूछने बाले सवाल घूम रहे थे तभी एक आवाज से उसका ध्यान भंग हुआ।

ऐ लड़के!! अरे भाई थोड़ी मदद करना तो,,

उसने पलट कर देखा सामने साइड में एक आदमी एक वैन को धक्का लगाने की कोशिश कर रहा था जिसे कोहरे के कारण सोनू साफ नही देख पा रहा था।

सोनू सड़क का डिवाइडर पार करके दूसरी तरफ पहुंचा तो इसने देखा कि एक आदमी ड्राइविंग सीट पर बैठा है और एक आदमी वैन को धक्का लगाने का प्रयास कर रहा है।

भाई जरा हाथ लगबादो ठंड से गाड़ी बन्द पड़ गई , उस आदमी ने जोर लगाते हुए कहा।

सोनू ने भी गाड़ी में धक्का लगाना शुरू कर दिया लेकिन वह ये नही देख पाया कि वैन का पिछला दरवाजा खुला है और वह आदमी उसके पीछे था।
अचानक वैन स्टार्ट हो गई और जब तक सोनू कुछ समझ पाता वह आदमी सोनू को धक्का देकर वैन में बैठा कर खिड़की बन्द कर चुका था,,,
मतलब अपहरण,, को हो तुम लोग ??, सोनू ने चीखने की कोशिश की लेकिन तब तक उस आदमी ने सोनू की नाक पर रुमाल रख दिया और सोनू होश खो बैठा।
वह वैन सोनू को किडनैप करके कोहरे में गायब हो गयी और किसी को पता भी नहीं चला।

जब सोनू की आंख खुलीं तो उसने खुद को एक अंधेरी सीलन भरी कोठरी में पाया।
कोठरी में लगे एक मात्र रोशन दान से आती रोशनी से सोनू को अंदाज़ लगा कि शाम होने वाली है।
तभी उसे किसी के कराहने की आवाज सुनाई दी ,,
सोनू ने देखा एक कोने में एक ओर लड़का सोनू की ही उम्र जितना पड़ा है और उठने की कोशिश कर रहा है।
सोनू ने उसे सहारा देकर उठाया और इशारे से चीखने को मना कर दिया।

इन दोनों का अपहरण किया गया है अंधेरे में ये बात दोनो को समझ आ गई थी ।
अब क्या करें ?? दूसरे लड़के ने घबराते हुए धीरे से कहा।

सोनू कोठरी के दरवाजे पर कान लगा कर सुनने लगा,,,

दरवाजे के सामने दो लोग हैं कुछ दूर, सोनू बोला।

तो क्या ये लोग हमें मार देंगे ,, या हमसे भीख,,?? दूसरा लड़का रोने लगा।

चुप!, सोनू कुछ सोचते हुए बोला,, भाग पायेगा बिना आवाज किये? सोनू ने इस से पूछा।

हां भाग लूँगा। उसने धीरे से जबाब दिया।

देख ये रोशन दान दीवार में कुछ सरिया लगाकर बना है और कोठरी के पीछे है इसकी ऊंचाई तक हम उछल कर आराम से पहुंच सकते हैं।
मैं इसकी बाकी सरिया भी उखाड़ देता हूँ तब तक अंधेरा भी बढ़ जाएगा और हम पीछे की तरफ से निकल भागेंगे।

सोनू उछल कर खिड़की तक पहुंच गया, मेरे पैरों को सहारा दे में सरिया निकलता हूँ सोनू ने उसे इशारा किया और वह सोनू को अपने कंधों पर संभाले खड़ा हो गया।

थोड़े ही प्रयास में सोनू ने तीनों सरिया उखाड़ दीं और ऊपर चढ़ गया ।
सोनू ने एक पैर लटकाकर उसे भी चढ़ने के इशारा किया और थोड़ी सी सूझ बूझ से दोनो बिना आवाज किये बाहर आ गए।

सोनू ने उसे एक सरिया देकर कहा इसे साथ रख काम आएगी और दूसरी खुद ने हाथ में कस कर पकड़ ली।

कुछ दूर धीरे धीरे छिप कर चलने के बाद दोनों ने दौड़ लगा दी।
वह देख चलती हुई लाइटें यानी वहाँ रोड है चल दौड़,, सोनू उसका हाथ पकड़कर दौड़ने लगा।

कुछ देर सड़क पर दौड़ने के बाद इन्हें पुलिस की गश्ती गाड़ी मिल गयी ।
सोनू ने सारी बात पुलिसकर्मियों को बताई और पुलिस के छापे में कोठरी के बाहर के दोनों पहरेदार पकड़े गए जो शराब पीकर धुत्त थे।
अगले दिन उनके बताने पर पुलिस ने पूरा बच्चा चोर गिरोह पकड़ लिया।
सोनू को उसकी सूझ-बूझ और साहस के लिए इनाम दिया गया।

✍️ नृपेंद्र शर्मा “सागर”
होलिका मन्दिर, जमनवाला ठाकुरद्वारा
मुरादाबाद - 244601
उत्तरप्रदेश, भारत
मोबाइल 90545548008

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की लघुकथा---- पापा का बेटा रजनी


... भाई साहब बेटी को जल्दी  विदा कीजिए भीलवाड़ा .. बहुत दूर है.दूल्हे के पापा बेनीवालजी ने कहा
.. रजनी दुल्हन के जोड़े में बहुत ही सुंदर लग रही थी सभी की आंखें नम थीं... मदन पाल के जीवन में तो भूचाल ही आ गया था ...सब कुछ सहन करना बड़ा दुरूह हो रहा था.... कलेजे का टुकड़ा जैसे अलग हो रहा हो..... सभी संबंधी रो रहे थे आखिर रोते भी क्यों न ये लड़की थी ही ऐसी,, आगे बढ़कर लड़कों की जगह काम करती थी और मदन पाल की तीनों बेटियों में सबसे समझदार थी इसकी शादी की चिंता सभी को बहुत ज्यादा थी********
     रजनी के पुलिस में सलेक्शन के बाद सबको बस एक ही चिंता थी कि इसकी शादी कैसे होगी ...
ट्रेनिंग खत्म होने ही वाली थी कि एक दिन ऋतुराज जी (एस ओ साहब) ने कहा रजनी शाम को उनकी बेटी को देखने वाले आ रहे हैं तुम घर पर आ जाना रिश्तेदारों का स्वागत सत्कार  जो करना था ।
  देखना _भालना हो गया लड़के वालों की खूब खातिरदारी हुई रजनी ने खूब अच्छे से इंटरटेन किया खूब हंसी मजाक के बाद शाम को लड़के वालों से जवाब मांगा गया कि लड़की पसंद है
‌   परंतु यह क्या निर्मल ने साफ जवाब दे दिया मुझे संगीता नहीं रजनी पसंद है । सब हक्के बक्के रह गये ऋतुराज जी पछता रहे  थे मैंने इस लड़की को क्यों बुलाकर आफत मोल ली । निर्मल बहुत ही हैंडसम लड़का था जो  कि एयरफोर्स में उच्च पद पर  आसीन था ।
     रजनी ने कहा मेरी शादी के लिए आप लोगों को मेरे पिता से काशीपुर जाकर बात करनी होगी और राजस्थान से बारात उत्तराखंड में लानी होगी आज उसी बेटी की विदा थी जो अब दरोगा बन चुकी थी घर के सभी कामों में वह लड़कों से भी अच्छे निर्णय लेती थी पिता को कुछ सुझाई नहीं दे रहा था कि अब क्या होगा.... क्यों कि रजनी उनकी बेटी नहीं बेटा थी ..
            ✍️ अशोक विद्रोही
             412, प्रकाश नगर
             मुरादाबाद 244001
            मोबाइल फोन नम्बर 8218825541

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कहानी ----बहुत याद आते हैं '



​पूरे बाइस साल बाद आलोक आज अपने गाँव में पहुंचा उसके दोनों बेटे भी उससे लंबे निकल चुके थे , और पत्नी शुभि के चेहरा भी अब भर गया था कभी कांटे सी दिखने वाली शुभि थुलथुल तो नहीं मगर शरीर भर गया था .
​आलोक की फ्रेंच कट दाढ़ी भी उसकी मैचुअरटी  को दर्शा रही थी साथ ही आँखों पर चढ़ा चश्मा गंभीरता को बढ़ाने में सक्षम था .
​गाँव में घुसते ही उसको लगा जैसे वह किसी दूसरे कस्बे में घुस गया हो सब कुछ बदल चुका था .
​कभी गाँव की कच्ची सड़क और उसके किनारे दूर तक फैले खेत और बाग बगीचे थे अब बे सब शायद आबादी की भेंट चढ़ चुके थे l
​सड़क किनारे बहुत सारी दुकानें बन चुकीं थीं l
​जो लोग उसके विदेश जाने के समय अच्छी कद काठी के थे बूढ़े हो चुके थे l
​बड़ी मुश्किल से वह अपने घर तक पहुंचा वहाँ जीर्ण हुए घर पर ताला लटक रहा था जोकि पिछली बार यानि कहा जाए बाइस साल पहले पिताजी के निधन के वक्त लगाया गया था , हाथ लगाते ही लटक गया .
​घर के भीतर  बड़े बड़े पेड़ डेरा डाल चुके थे जामुन और बेरी के पेड़ अभी भी खड़े थे जोकि बड़े प्यार से पिताजी ने लगाए थे शायद इसलिए भी अभी हरे थे क्योंकि उनको ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं थी .
​पेड़ पर पक्षियों के घौसले थे जिनमें से उनके बोलने और फड़फड़ाने की आवाज आ रही थी .
​"डैड ...यह है आपका घर ?"बड़े बेटे ने मुंह बनाते हुए कहा l
​"बेटा ऐसे नहीं बोलते यह इनका ही नहीं हम सबका घर है l"शुभि ने बेटे को समझाया क्योंकि वह आलोक के चेहरे की दुख भरी उभरी लकीरों को पढ़ चुकी थी .
​"हाँ बेटा ...यही है हमारा घर जहाँ मेरा बचपन बीता और माँ बाबूजी का जीवन , आज भी ऐसा लग रहा है जैसे कि घर के हर कोने से माँ बाबूजी की आवाजें आ रही हों ।
​पड़ोसियों ने कई बार आलोक से बात की थी घर बेचने की मगर उसने मना कर दिया क्योंकि यह घर उसके माँ बाप के लिए बहुत अजीज था ।
​उसको याद है जब वह पहली दफा नौकरी के सिलसिले में विदेश गया तो माँ ने स्पष्ट लहजे में कहा था ,
​"बेटा चाहे कितने भी अमीर बन जाना मगर इस घर यानि अपनी जड़ का सौदा मत करना , इस घर में मेरी डोली आई है अर्थी तो निकलेगी ही मेरे मरने के बाद मेरी आत्मा भी इसी में बसेगी l
​तब आलोक हंस दिया था मगर अगले ही वर्ष माँ दुनियाँ को अलविदा कह गयीं , बाबूजी से बहुत कहा अपने पास आने को मगर वह नहीं आए , उसी घर के आंगन में कई पेड़ लगा लिए थे , और क्यारियों में फुलवारी । खाना खाने के बाद अपना ज्यादातर समय इन्ही की देखरेख में बिताते थे ।
​मगर दो साल बाद ही उनका भी निधन हो गया वह बहुत रोया मगर होनी को कौन टाल सकता है। वह क्रिया कर्म करने के बाद विदेश वापस चला गया और वहीं पर भारतीय मूल के परिवार की शुभि से विवाह कर लिया .
​सब कुछ भूल चुका था या यूँ कहिए कभी भूला ही नहीं बस दुनियाँ को कभी एहसास ही नहीं होने दिया कि आज भी उसके दिल में उसका वही घर बसता है कच्चा पक्का जहाँ माँ और पिताजी के साथ बचपन बीता , घर का कोना कोना उसके मन में पेंठ बनाए बैठा था l
​जब भी कहीं गाँव की बात चलती वह चहक उठता उसकी इस आदत को शुभि ने शिद्दत से महसूस किया था .
​"सुनो जी आज मिसेज भाटिया कह रहीं थीं कि वह अगले महीने पंजाब जाएंगी अपने गाँव l"शुभि ने प्यार से आलोक की आँखों में देखते हुए कहा चाय पीता हुआ अचानक शुभि की ओर देखने लगा उसके चेहरे पर कई भाव आकर चले गए .
​फिर दोनों बच्चों के साथ अपने गाँव आने की तैयारी शुरू कर दी .
​"सुनिए !"
​"कहिए !"
​"अब हम यहां जल्दी जल्दी आया करेंगे , पिताजी और माँ जी के लिए वही हमारी सच्ची सेवा होगी , और उनकी आत्मा के साथ हमारे मन को भी खुशी होगी l"शुभि ने आलोक का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा , और सभी फिर से मिलकर सफाई में लग गए , क्यारियों को फिर से ठीक किया गया और उनमें हरे हरे पौधे रौपे गए l
​जाते समय आलोक गाँव के माली से अपने छोटे से आंगन की क्यारियों की देखभाल करने को भी कह गया , क्योंकि अब ज्यादा दिनों तक वह अपनी मिट्टी से दूर रहने में असमर्थ जो हो गया था l


​ ✍️  राशि सिंह
​मुरादाबाद 244001
 उत्तर प्रदेश

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ------ प्रतिफल


अपने अति व्यस्त समय में मुझे जो भी वक्त मिलता था मैं घर के गमलों में लगे छोटे पौधों की देखभाल में लगाती रही हूं ।यद्यपि  इसके लिये कभी किसी विशेष साधन की आवश्यक्ता नही पड़ी ।जैसे अपने बच्चों का होम वर्क कराना किचिन में खाना बनाना मेरे अपरिहार्य कामों में शामिल है बैसे ही पेड़ पौधों को दुलारना ।कुछ दिन पहले ही मैंने योंही गमले में टमाटर धनिया पुदीना और मिर्च लगा दी थी ।तभी अचानक दो तीन बाद कोरोना त्रासदी के लॉक डाउन घोषित हो जाने से मुझे घर में ही रहना पड़ा ।अब मुझे पहले से अधिक समय इन पौधों की देखभाल के लिये मिला । बीस इकीस दिन की मेहनत के  बाद मेरे छत के ऊपर
नीचे गमलो में सब ओर जो प्रकृति का सौंदर्य बिखरा ,वह आज से पहले नही दिखा। निःस्वार्थ की गई मेरी सेवा का फल मुझे किसी जीते जागते संसार मे मुझे मिला हो ,मुझे मालूम नही ,लेकिन इन नन्हें चेतन जगत के कृतज्ञ जनो ने मुझे प्रति फल में बहुत कुछ बो दिया जो और लोगों को नही मिल रहा था ।
काश ,हमारे आसपास के हमारी सेवाओं को लेने वाले भी यों ही हमें प्रतिफलित होते .......। यह सोचते हुये मेरे कपोल गीले हो गए ।

✍️  डॉ प्रीति हुंकार
मुरादाबाद 244001
मो 8126614625

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की कहानी---- क्षत-विक्षत मैं धरती मां हूँ


जिस मोहल्ले में मैंने अपना मकान बनाया था,पहले यहां आंडू और पपीते के बाग हुआ करते थे।लहलहाते पालक और मूली के खेत,मुझे आज भी अच्छे से याद हैं,लेकिन खेत-स्वामी मुरारी ने,ऊंचा लाभ कमाने और शायद बड़ा आदमी बनने की कोशिश में,महंगे दामों में,इन भूमि खंडों को बेच दिया था।वह अपनी भूमि के टुकड़े-टुकड़े करके,लगभग बड़ा आदमी तो बन गया लेकिन वह भी एक छोटे से भूखंड में ही सिमट कर रह गया।अब उसका खेत न होकर,सौ गज जगह में ही एक मकान था हालांकि उसमें सारी सुख सुविधाएं थीं, टी०वी०, फ्रिज से लेकर ए०सी०,कूलर तक, और ऊपर से ऐसा जाल,कि कोई परिंदा भी पर न मार सके।खैर,इतना सब कुछ खोकर, उसने समाज में थोड़ा सम्मान जरूर प्राप्त किया था,ठेले पर सब्जी बेचने वाला भी,डोरबेल बजाकर पूछता कि कौन-कौन सी सब्जियां चाहिए साहब?
घर में ऊंचे कद का एक झबरीला कुत्ता भी दूध-ब्रेड खाता और पिंजरे में बैठकर एक तोता भी मिट्ठू-मिट्ठू चिल्लाता।अपने खेत के पेड़ों को काटने के प्रायश्चित में,उसने घर की छत पर गमलों में,मनीप्लांट,तुलसी,एलोवेरा,सदाबहार आदि के पौधे जरूर लगा लिए थे।लेकिन उसकी यह शानो-शौकत,ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाई,क्योंकि अपने खेतों को महंगे दामों में बेचकर,जो धन कमाया, वो शायद शाही खर्चों को झेल नहीं पाया।रोजगार या नौकरी में शर्म आती थी क्योंकि अब वह किसान न रहकर,मन से ही,एक पूंजीपति बन चुका था। खेती-किसानी की तो,उसके पूरे घर में,कोई निशानी भी न बची थी।
बुजुर्गों की कहावत याद आती है कि समय बहुत बलशाली होता है,पलक झपकते ही कुछ से कुछ कर जाता है। आखिर हुआ वही, जिसका अंदेशा था। उसके रहन-सहन का स्तर डगमगाने लगा,समय-समय पर अपनी खोई हुई भूमि को,याद करके,आंखें नम करने का समय आ गया जिससे उसे खाने लायक मिल जाता था और कम संसाधनों में उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहती थी।
उस मुरारी के दुख से दुखी होकर,भगवान को कोसता हुआ, मैं अपने उस मकान की छत को निहार रहा था,जिस मकान को मैंने भी,उन खेतों में बनाया था, जिन खेतों से,कुछ लोगों को फल और सब्जियां मिलती थीं।इस चिंतन-मनन में ही,न जाने कब निंदिया रानी ने,मुझे अपनी गिरफ्त में ले लिया?और फिर धरती मां ने मुझे अपने दर्शन दिए।मुझे लगा कि कुआं ही प्यासे के पास चल कर आ गया है,अब मैं सारे प्रश्नों को पूंछ कर,धरती मां को निरुत्तर करके मुरारी की समस्या का समाधान करा ही दूंगा।
   मैं तुरन्त,धरती मां पर धृष्टता से अकड़ पड़ा,कहा -'' तुम कैसी मां हो तुम्हारा एक पुत्र भुखमरी की कगार पर है उस पर तरस खाओ, उसका कल्याण करो।''
धरती मां बोलीं - '' शांत हो जाओ वत्स! मेरी करोड़ों-अरबों सन्तानें हैं,मैं तो सबका कल्याण ही चाहती हूँ,कभी मन में भी बदले की भावना नहीं लाती,लेकिन मेरी ही सन्तानें,मुझे सम्मान नहीं दे पातीं, और मैं क्षत-विक्षत होकर,निरंतर कष्टों से व्यथित हूं।मेरी नदियां प्रदूषण की मार झेल रहीं हैं,मेरे वक्ष पर सुसज्जित वृक्षों को काटा जा रहा है,मेरे वन्य जीव,घुट-घुटकर जीने को मजबूर हैं,अपनी संतानों को कष्टदायी दशा में देखकर,भला मैं कैसे प्रसन्न हो सकती हूं? मेरी सन्तानें,जिस दिन मुझे सम्मान देना सीख जाएंगी,ढेर सारे सुखों से लाभान्वित होने लगेंगी,और फिर मेरा जीवन भी कई गुना बढ़ जाएगा।''
इतने में ही,मुरारी ने मेरे घर पर आवाज लगाई - आओ!चलते हैं,पार्क में कुछ पौधे लगाते हैं,और फोटो तथा खबर,अखबारों में देते हैं, जो कई शहरों तक जाएगा।
मैंने चिल्लाकर कहा कि बिना पंखों के आकाश में उड़ोगे,तो औंधे मुंह गिरने के अलावा कोई चारा नहीं है।इसलिए अपनी धरा को पहचानो,धरती पर चलना सीखो,इतना सब कुछ पाकर, कुछ देना भी सीखो। आओ!पार्क में हम सभी मिलकर,ज्यादा से ज्यादा पौधे रोपते हैं, ताकि अपने और अपनी धरती माता के लिए कुछ अच्छा कर सकें।

✍️ अतुल कुमार शर्मा
निकट प्रेमशंकर वाटिका
सम्भल
उत्तर प्रदेश, भारत
मो०-9759285761,8273011742

मुरादाबाद की साहित्यकार मंगलेश लता यादव की कहानी ----- वो दूसरा


     अभी आंख पूरी तरह से खुली भी नहीं थी कि कानों में जोर जोर से रोने की आवाजें आने लगी । हड़बड़ा कर उठी और ध्यान  से सुना तो हवेली के पीछे मंजा चाची के रोने का स्वर था । जल्दी जल्दी नीचे उतर कर आईऔर दीदी से पूछा ये चाची के रोने की आवाज क्यूं आ रही क्या हुआ? जिठानी ने रुंधे गले से बताया ,चाचा नहीं रहे ,सुन कर क्षण भर को धक्का लगा और चाची का चेहरा आंखों के सामने आ गया। "चलो जल्दी से चाय बना लो सबको पहुंंचानी है "जिठानी की आवाज सुन कर यंत्रवत रसोईघर की तरफ कदम बढ़ा दिए।
चाय का पानी खौल रहा था और मेरा मन मंजा चाची के जीवन की झांकी में झांक रहा था....अपनी शादी से बीस बरस से चाची का हर रोज आना और मांजी से उनका अपनापन और दोस्ताना देखती आ  रही हूं।चाची के बिना घर का कौई काम सम्पन्न नहीं होता था ।हर रोज आकर अपनी रोजमर्रा की कामों की गिनती कराती और बहू बेटों ,नाती पोतों की बातें करती और फिर मांजी की सलाहें मशवरे और ना जाने क्या क्या बातें होती । मैं उनके आने पर बस उनके पैर छूकर बैठने के लिए पीढ़ा डाल कर अपने काम में लगी रहती,पर कान अक्सर उनकी बातों पर होते थे।
अक्सर सुनाई देता था कि दूसरा आज खाना खाने नहीं आया ,दूसरे को आज पानी भर के रख आई,आज दूसरे के कपड़े धोए और न जाने क्या क्या कामों की गिनती और बातें पर नाम दूसरा,,।की बरस बीत गए पर किसी से पूछने की हिम्मत न हुई कि ये दूसरा कौन है??
आखिर एक दिन मांजी का सही मिजाज देख कर पूंछ ही लिया "ये चाची दूसरा किसको कहती हैं और उसका बहुत ख्याल रखती है उसके सारे काम करती हैं ,कौन है ये ??मांजी  ने सपाट स्वर मैं जबाव दिया चाची से ही पूंछ लेना कभी।

    .परमीशन मिल चुकी थी सो अगले दिन चाची का बेसब्री से इंतजार करती रही और उस दिन चाची रोज की अपेक्षा देर से आतीं।,पैर छूकर पीढ़ा डाल दिया और मांजी के कपड़े तह बनाने का बहाना करके पास ही बैठ गयी ईधर उधर की बातों के बाद आखिर मुद्दे की बात ही गयी,चाची बोली,"आज चाय ना बनायी"।मैंने पूछा क्यों।चाची बोलीं दूसरा न था सो अपने अकेले के लिए क्या बनाती।बस मुझे तो जैसे इसी का इंतजार था पूंछ बैठी चाची दूसरा कौन है?? चाची हड़बड़ा गयी उन्है मुझसे ये उम्मीद न थी।अचकचा कर बोली कौन न बेटा ।ऐसा ही है एक। मैंने मांजी की तरफ देखा वो समझ गयी , हंस कर बोली बता दो आज ये बहुत दिनों से परेशान हैं दूसरे के बारे में जानने को। चाची कुछ सकुचाई फिर बोली कल बताऊंगी।   

     रात बहुत मुश्किल से कटी क्यूंकि कल का इंतजार था और चाची के 'दूसरे 'का परिचय पाना था ।खैर जैसे तैसे शाम आई और चाची का आगमन हुआ देखा झोली में कुछ बांध कर लाईं है आते ही बोली'ले बहू आज तेरे लिए बाग से अमरुद लाईं हूं एकदम मीठे और गद्दर है'।मांजी ने बता रखा था मुझे कुच्चे अमरूद पसंद है । मैं चहक गयी 'अरे चाची आज तो मेरे मन का काम हो गया ,पर अब अपना कल का वादा पूरा करो आज मुझे बताना पड़ेगा कि दूसरा कौन है '। चाची को लग गया था आज रिश्वत काम ना आयेगी।
     
     चाची ने कुछ गम्भीर मुद्रा बनायी और सोचते हुए बोली' बेटातुम नऐ जमाने की पढ़ी लिखी लड़की हो हमारी बात तुम्हारी समझ में न आ्वेगी'। मैंने मनुहार करते हुए कहा''चाची तुम्हारी ये बात सच हो सकती है लेकिन तुम मेरी इस बात पर यकीन कर सकती हो कि मुझे पुराने जमाने की बातें और अपने बड़ों की बातें सुनना अच्छा लगता है'।चाची इस बात को नकार नहीं सकी क्योंकि इतने बरसों से वह मेरा व्यवहार देखती आ रही थी। थोड़ी देर चुप रही फिर इधर उधर देखा ,आश्वस्त हुई कि उनकी बातों को सुनने वाला मेरे सिवाय आसपास कौई और नहीं था।मेरे कन्धों पर दोनों हाथों को रख कर बोली 'बेटा मेरी जिंदगी में मेरे मन के इतने करीब आने बाली तुम दूसरी इंसान हो ,जो मेरे मन की गहराइयों में उतर रही हो'। और ऐसा लगा कि वो कहीं दूर यादों की वादियों में खो रही है। मैं शांत चित्त होकर उनके चेहरे पर आऐ भावों को पढ़ने की कोशिश करती रही और अब चाची की आंतरिक वेदना शब्द बन कर मेरे कानों में पड़ने लगी ,

'बेटा औरत का मन एक कोरे कागज सा होवे है ।दस बरस की थी जब घर में मेरे ब्याह की बातें होने लगी,और एक दिन वो भी आया कि बापू ने अम्मा को बताया कि चार गांव छोड़ कर मेरे लिए एक अच्छा रिश्ता मिल गया है और वो मेरे रिश्ते की बात पक्की कर आए हैं। लड़का पहलवानी करता है और घुड़सवारी का भी शौक है,क्यो न होताआखिर वो दद्दा (मेरे ससुर जी जो समय के जमींदार थे उनको वो दद्दा कहती थी)के संग जो रहते थे।अम्मा बहुत खुश थी और मै...मेरे तो सपनों में पंख लग गऐ थे।दिन रात सपनों में उनकी ही कल्पना करती रहती , घोड़े पर सवार सजीला नौजवान, मेरे मन के कोरे कागज पर उनका नाम लिख गया था जो अमिट था।
सपने और समय दोनों पंख लगा कर उड़ते रहे ,और वो दिन भी आ गया जब मेहमानों की गहमागहमी और सहेलियों की हंसी ठिठोली के बीच मैंने  उसके नाम की हल्दी और मैहंदी रचाई।शाम को बारात के आने का इंतजार था ,  लेकिन बारातियों की भीड़ न थी ,केवल दद्दा थे और चार लोग साथ में , गहमा-गहमी कानाफूसी में बदल गयी मुझे तो कुछ समझ न आया क्या हुआ और क्या होने जा रहा था कुछ पता न चला, दो चार घंटे बाद पंडित जी ने ब्याह की रस्में शुरू कर दी और मैं मोटी चादर के घूंघट में मंत्रो और अग्नि को साक्षी मानकर सात जन्मों के बंधन में बंध गयी।रोते बिलखते सबसे गले मिल विदाई हुई और मुझे मां ने पल्लू में चावल के साथ संस्कार और सीख लेकर विदा किया कि अब ससुराल ही तुम्हारा घर है  वहीं जीना है वहीं मरना है।सजी हुई बैलगाड़ी से जब ससुराल की देहरी पर उतरी तो माहौल में कहीं खुशियों का एहसास न हुआ ,मुझे उपर के कमरे में बिठा दिया गया, थोड़ी देर में बड़ी ननद ने आकर पानी पिलाया तो नादान थी पूंछ बैठी'जिजी घर में बड़ी शांति है सब मेहमान चले ग्ऐ क्या?'सुन कर उन्होंने एक पल मुझे देखा और जोर जोर से रोने लगी और जो उन्हौने बताया उसने मेरे सपनों की दुनिया को आसमान से लाकर जमीन पर पटक दिया था 'कल सबेरे नरेश (मेरे पति जिनसे मेरी शादी तय हुई थी)को खेत पर सांप ने डस लिया था और एक घंटे में ही उनकी मौत हो गयी  ब्याह के घर में मातम छा गया अम्मा तो तब से होश में ही नहीं है अब घर के इकलौते वारिस महेश ही बचे थे तो हवेली वाले दद्दा ने सुझाया कि बारात न रोकी जाए महेश से तुम्हारे फेरे पड़वा कर बहू घर ले आओ तो अम्मा की जान भी बच जायेगी और धीरे धीरे सब ठीक हो जायेगा' ।।मुझे आगे कुछ सुनाई नहीं दिया  सब तरफ अंधेरा ही अंधेरा दिखने लगा था  ,लगा इससे तो अच्छा होता वही सांप मुझे भी आकर डस लेता ।पर ऐसा कुछ नहीं हुआ मेरे मन हजारों टुकड़े जरुर हुए और उसमें हर तरफ मुझे मेरा घुड़सवार पहलवान ही नजर आया ।कोरे कागज पर लिखा नाम मिटता ही नहीं था ,पर मेरे मन की पीर समझने वाला कोई नहीं था,और दिल का कौई कोना किसी और को जगह देने को तैयार नहीं था, लेकिन मैं कुछ कर भी नहीं सकती थी बस दिल से निकला 'ये वो नहीं है ये तो "दूसरा"है। फिर सब कुछ बदल गया लेकिन आज भी वो  पहलवान दिल से निकल कर नहीं गया।  इतना सब कुछ सुनाने के बाद चाची एकदम शांत नदी की तरह चुप हो गयी थी। फिर ठंडी सांस लेकर बोली थी 'आज सब कुछ तुम्हारे सामने है बहू चार बेटे दो बेटियां और उनके बच्चे  पर आज भी ढंग से तुम्हारे चाचा का चेहरा नहीं देखा वो ही नजर आता है इसलिए मुंह से उनके लिए "दूसरा"ही निकलता है। आज भी अम्मा के वो पल्लू में बांधे गए चावल और संस्कार याद रहते हैं सो सब कुछ निभा रही हूं।चलती हूं उसकी रजाई पर खोल चढ़ाना है देर हो गयी ।'और चाची चली गयी थी ।
मेरे लिए नारी मन की अंतरव्यथा को समझने के लिए अनगिनत प्रश्न जिनको आज भी नहीं सुलझा पाई।'
"अरे तुम्है चाय बनाने को कहा था कि रबड़ी घोंटने को" जेठानी की आवाज ने मेरी तंद्राको भंग किया और  और चाय भी उबल कर पक चुकी थी शायद चाची की जिंदगी की तरह ।चाय छानते हुए चाची का करुण रूदन सुनाई पड़ा "अरे मैं विरहा अब कैसे  जिऊंगी"??
   
   ✍️ मंगलेश लता यादव
जिला पंचायत कम्पाउंड कोर्ट रोड
 मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9412840699
            

बुधवार, 29 अप्रैल 2020

वाट्स एप पर संचालित समूह " साहित्यिक मुरादाबाद " में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। मंगलवार 28 अप्रैल 2020 को आयोजित बाल साहित्य गोष्ठी में अशोक विद्रोही , राजीव प्रखर , मीनाक्षी ठाकुर , डॉ प्रीति हुंकार , प्रीति चौधरी, जितेंद्र कमल आनंद , डॉ अर्चना गुप्ता, हेमा तिवारी भट्ट , अभिषेक रुहेला , डॉ पुनीत कुमार , सीमा रानी , मंगलेश लता यादव और अतुल कुमार शर्मा द्वारा प्रस्तुत रचनाएं ------


         मौत का सामान
         चीन के वुहान में 
मेरे भारत देश में
कोरोना के वेष में
    कौन शत्रु घुसआया है
    महाकाल का साया है
सीधे सादे सच्चे हैं
हम तो छोटे बच्चे हैं
    हम जो मन में ठाने है
    कर के ही फिर माने हैं
शेरों के जो दांत गिनें
हम उन की संताने है
      धूर्त चीन  मक्कार  देश
      बस अपने को  बचा रहा
महा विनाश का तांडव रच
सारे जग को नचा  रहा
     ये तो केवल झांकी है
     और सैकड़ों बाकी  हैं   
जानी दुश्मन पक्के हैं
जो वुहान में रक्खे हैं
     करने होंगे साफ इसे
     कभी न करना माफ इसे
मानव यदि बचाना होगा
वायरस नष्ट कराना होगा
     हम बच्चों की माने बात
     फिर बाज़ी हो अपने हाथ
 इसको सबक सिखाना है
  नाकों चने चबाना है
      कोई भी सामान नहीं
      अब चीनी घर में लाना है
 व्यापारिक राहों पर जल्दी
 इसका रथ रुक जाएगा
       भारत मां के चरणों में
        ड्रैगन का सर झुक जाएगा
   
 ✍️  अशोक विद्रोही
  412 प्रकाश नगर
 मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नंबर 8218825541
----------------------------------------------------------

देख शरारत से भरी, बच्चों की मुस्कान।
बूढ़े दद्दू भी हुए, थोड़े से शैतान।।

हम बच्चे इस दौर के, रचने को तैयार।
जल-थल-नभ तीनों जगह, एक नया संसार।।

✍️ राजीव 'प्रखर'
डिप्टी गंज, मुरादाबाद
मो० 8941912642
----------------------------------------------------------

आलू जी की चढ़ी बारात,
बैंगन नाचे सारी रात ।

भिंडी रानी बनी बावर्ची
ढोल बजाती शिमला मिर्ची।

नींबू ,खीरा, सरसों ,पालक
सजे धजे सब सुंदर बालक।

इठलाते से लाल टमाटर
मेकअप करती मूली ,गाजर।

दुल्हन रानी  हरी मटर जी,
करती कितनी चटर-पटर जी।

काशीफल पंडित जी आये,
तब जाकर फेरे पड़वाये ।

 ✍️ मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
मोबाइल नं. 8218467932
---------------------------------------------------------

एक बैल की जोड़ी लादो
मैं खेती करने जाऊंगा.
लकड़ी का एक हल बनवा दो
ढेरों  अन्न उगाऊंगा.
ना जाने क्यों गाँव छोड़ के
शहरों को प्रस्थान किया.
स्वर्ण सम्पदा देने वाली
भूमि का अपमान किया
हरी भरी यह छोड़ धरोहर
मैं नहीं शहर को जाऊंगा.
 लकड़ी का........
खुली हवा यह बाग बगीचे
मन को खूब लुभाते हैं.
दादा जी  खेतों में जाकर
रोज बहुत थक जाते हैं.
छोड़ प्रदूषित जीवनचर्या
मैं गांवों में रह जाऊंगा.
जन जन की अब भूख मिटाने
मैं ढेरों अन्न उगाऊंगा.
लकड़ी का....

 ✍️ डॉ प्रीति हुंकार
 मुरादाबाद 244001
--------------------------------------------- ------- ----

कभी कड़वी कभी मीठी गोली सी मेरी माँ
प्यार अंदर भरा हुआ पर दिखती सख़्त है मेरी माँ
ममता की छांव में उसकी बड़े हुए हम
हम भाई बहनो का अभिमान है मेरी माँ
कभी.........
कड़ी धूप में चलना सिखाया
कठिनाइयों से लड़ना सिखाया
बात ग़लत पर चपत लगाती
राह सच्ची पर चलना सिखाती है मेरी माँ
कभी........
उच्च शिक्षा प्राप्त किए वो
पर अहंकार से बहुत दूर वो
हर पल चुनौतियों का सामना कर
आत्मविश्वास से भरी दिखती है मेरी माँ
कभी..........
न कभी सजते सँवरते देखा
न व्यर्थ बातों में समय व्यतीत करते देखा
सादगी से भरी ममता की मूरत
पूरे दिन हमारी फ़िक्र में
दिन रात मेहनत करती दिखती है मेरी माँ
कभी.....
कभी डाँट कर हमें वो अच्छा बुरा समझाती है
ये जीवन अमूल्य है
हर रोज़ यह बताती है
पथ पर क़दम न डगमगाए कभी
हर राह पर मेरे साथ खड़ी दिखती है मेरी माँ
कभी......
कभी गुरु बन वह मुझे मेरा रास्ता सुझाती है
कभी सखी बन मेरी हर बात बिन कहे समझ जाती है
कभी ईश्वर का रूप धर हर दुविधा में रास्ता बन जाती है
साहस अंदर भरा हुआ
हर विपदा से दूर मुझे कर देती है मेरी माँ
कभी.......
                       ✍️   प्रीति चौधरी
                    ज़िला -अमरोहा
                   मोबाइल-9634395599
----------------------------------------------------------


बच्चे तो बच्चे होते हैं
भोले-भाले दिल के सच्चे
धमा-चौकडी खूब मचाते
जब हँसते हैं लगते अच्छे

खेल-खिलौने, छीना-झपटी
हो बेकार ,कार है रपटी ।
इसका हँसना,उसका रोना
रोज़ चिढ़ाये कहकर नकटी

गुड़िया बहुत अभी है छोटी
नहीं चिड़ाओ कहकर मोटी
बंद सभी को घर में रहना !
बंद करो अब नल की टोटी।।
✍ जितेन्द्र कमल आनंद
रामपुर
उ प्र, भारत
----------------------------------------------------------

लोकडाउन में कर दिया  , बच्चों ने हुड़दंग
करते बड़ी शरारतें, मम्मी पापा तंग

कोरोना ने कर दिया, सब बच्चों को पास
और  छुट्टियों से बढ़ा, है मन में  उल्लास

बच्चों के भी हाथ में, अब रहता है फोन
हुई पढ़ाई नेट से,अब टोकेगा कौन

मम्मी से बनवा रहे, रोज नये पकवान
पिज़्ज़ा आइसक्रीम की , घर में खुली दुकान

कैरम की बाजी कहीं, जमे ताश के रंग
बच्चे या बूढ़े सभी,  बैठ रहे हैं संग

रहो घरों में बन्द सब, है सबसे अनुरोध
बच्चे भी संदेश दे, करा रहे हैं बोध

नहीं  किसी भी  पार्क में, अब बच्चों की फौज
घर के अंदर वो उड़ा, रहे मौज ही मौज

बालकनी से झाँक कर,नीचे देखें बाल
देख बड़े हैरान हैं, सन्नाटे  का जाल

कोरोना में छत हुई, खुला हुआ मैदान
पहले रहती थीं बड़ी, कितनी ये सुनसान

बच्चों की फरमाइशें, नहीं रहीं अब आम
करने पड़ते अब उन्हें, घर के भी कुछ काम

✍️  डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
----------------------------------------------------------

"सुबह हुई भई सुबह हुई,
सूरज दादा आये द्वार।
छोड़ तुम्हें बढ़ जायेंगे,
मुन्ना देखो अबकी बार।"

मुन्ना बोला,"आया दादु!
पहले आँखें खोल तो लूँ।
प्यारी मम्मी व पापा को,
नमस्कार मैं बोल तो दूँ।"

फिर मंजन व शौच करूँगा,
चेहरा भी तो धोना है।
ठण्डे पानी से नहाना,
मेरे रोज का रोना है।

अच्छा दादु ये बतलाओ,
क्या रोज आप नहाते हो?
बिन नहाए सोने जैसी,
कहाँ से रंगत पाते हो?

पास आपके,है युक्ति जो,
मुझको भी वही बतलाना।
नित नहाने की झंझट से,
पिण्ड मेरा भी छुड़वाना।

✍️हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद 244001
----------------------------------------------------------


बात  पते   की   हमें  बताते,
सच्चाई   की    राह  दिखाते,
उनसे   ले  लो   थोड़ा  ज्ञान,
दादा    होते    बड़े   महान।

कन्धों  पर  वे   हमें   घुमाते,
आदर   औ  सद्भाव  सिखाते,
बन जा  तू  उनका  अभिमान,
दादा    होते    बड़े    महान।

आज राह  का  कांटा  मत बन,
तू ही कुछ तू सब कुछ मत बन,
गूगल   न   देता   सब   ज्ञान,
दादा    होते    बड़े    महान।।

 ✍️  अभिषेक रुहेला
फत्तेहपुर विश्नोई,
मुरादाबाद 244504
उ०प्र०, भारत
सम्पर्क- +919756937872
----------------------------------------------------------


सदा चहकती काली चिड़िया
सचमुच बड़ी निराली चिड़िया

राम के घर से तिनका लाती
रहीम के घर नीड़ बनाती

माइकल के घर खाती दाना
दाना खाकर गाती गाना

मंदिर मस्जिद गिरिजा एक
सब धर्मो में बाते नेक

✍️ डॉ पुनीत कुमार
मुरादाबाद 244001
----------------------------------------------------------

  दादी माँ तुम कहाँ गईं
  पास मेरे फिर आओ ना |
  अपने पास लिटा प्रेम से ,
  मीठी लाेरी सुनाओ ना |

  लाेरी सुनकर निंदिया रानी
  चुपके से आ जाती है |
  लेकर मुझे अपनी गाेद में,
  परीलोक  ले जाती है  |

 परीलाेक में घूम घूम कर
 अब जी मेरा ललचाता है |
 चाहूं निशिदिन वहीं पे रहना,
  पर क्यूंकर वापिस आता है |

 प्यारी प्यारी परियां आकर
 चुपके से उड़ जाती हैं |
  रंग बिरंगे सजे पंखाें से
  परीलाेक तक जाती हैं |

    ✍🏻सीमा रानी
         अमराेहा
----------------------------------------------------------


प्यारे  प्यारे    मुन्ना  मुन्नी
क्या  तुमको है इसका भान
जिस धरती पर हम रहते है
वो  है  प्यारा हिन्दुस्तान।

देखा होगा अभी आजकल
भेजा है हमने एक चन्द्रयान
वो चन्दा मामा के घर जाकर
देगा हमको उनके घर का ज्ञान।

अगर पढ़ोगे और लिखोगे
बनोगे एक दिन तुम विद्वान
भारत की तकदीर तुम्ही हो
कर्म करो और बनो महान।

देश हमारा विश्व गुरु हैं
चाहे धर्म हो या विज्ञान
आर्यभट्ट और रामकृष्ण ने
दिया विश्व को इतना ज्ञान।

मेरे प्यारे नन्हे मुन्ने बच्चों
रखना सदा देश की शान
हिम्मत करना आगे बढ़ना
कहना जय जवान जय किसान।

✍️  मंगलेश लता यादव
  जिला पंचायत
मुरादाबाद 244001
 मोबाइल फोन नंबर 9412840699.9045031789
---------------------------------------------------------


ना हो घर में,जब कुछ काम,
मास-पर्व के सीखो नाम।

प्रथम माह,जनवरी है आता,
संविधान की याद दिलाता।

छोटा सबसे फरवरी आये,
शीतलहर को तुरंत भगाये।

मार्च में है होली की मस्ती,
देखो कितनी खुश है बस्ती।

अप्रैल में बैसाखी आई,
रबी फसल की शुरू कटाई।

मास पांचवां मई कहलाये,
हर बच्चा नानी-घर जाये।

सबसे गरम महीना जून,
आओ चलें सब देहरादून।

जुलाई में खुल जाते स्कूल,
जून की छुट्टी जाओ भूल।

हर बच्चा हो जाता व्यस्त,
आता है जब माह अगस्त।

इंद्रधनुष    देखो   सतरंगा,
15 अगस्त फहराओ तिरंगा

अब आयेगा माह सितम्बर,
प्यारे लगते धरती-अम्बर।

लट्टू-फिरकी खूब नचाओ,
हिंदी-दिवस की धूम मचाओ।

अक्टूबर न भूलो भाई,
गांधी-जयंती,खाओ मिठाई।

फिर आयेगी दौज-दिवाली,
हर घर में होगी खुशहाली।

माह‌ न‌वम्बर रेलमपेल,
बाल-दिवस पर खेलो खेल।

अंतिम माह दिसम्बर आता,
पूरे वर्ष की याद दिलाता।

जाड़े की होती शुरुआत,
खुशी मनायें दिन और रात।

क्रिसमस भी इस माह में आये,
ईसा मसीह की याद दिलाये।

बारह मास रखो तुम याद,
खेलो-कूदो उसके बाद।

✍️ अतुल कुमार शर्मा
निकट प्रेमशंकर वाटिका
सम्भल(उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9759285761,8273011742

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल( वर्तमान में बदायूं निवासी) के साहित्यकार उज्ज्वल वशिष्ठ की ग़ज़ल ---- हमारे पीछे चलते थे कभी जो , अब उनके साथ में बैठे हुए हैं


तिरी ख़िदमात में बैठे हुए हैं
कि सब औकात में बैठे हुए हैं

छुपाना चाहते हैं अपने आँसू
सो‌ हम बरसात में बैठे हुये हैं

बहुत दुश्वार है घर से निकलना
उदू सब घात में बैठे हुए हैं

हमारे नाम में जितने हैं अक्षर
तिरी हर बात में बैठे हुए हैं

परिन्दों घोसलों में रहना अपने
शिकारी घात में बैठे हुए हैं

हमारे पीछे चलते थे कभी जो
अब उनके साथ में बैठे हुए हैं

तलाश-ए-आफ़ताब-ए-इश्क़ में सब
अँधेरी रात में बैठे हुए हैं।

  ✍️ उज्ज्वल वशिष्ठ
  मो सय्यद बाड़ा,
 बदायूँ
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9536209173

मुरादाबाद की संस्था हस्ताक्षर की ओर से मंगलवार 28 अप्रैल 2020 को ऑन लाइन दोहा-गोष्ठी का आयोजन किया गया । गोष्ठी की अध्यक्षता यशभारती माहेश्वर तिवारी ने की तथा संचालन राजीव प्रखर ने किया । मुख्य अतिथि मंसूर उस्मानी तथा विशिष्ट अतिथि डॉ० अजय 'अनुपम' और डॉ० मक्खन 'मुरादाबादी' रहे । गोष्ठी में मीनाक्षी ठाकुर, मयंक शर्मा , हेमा तिवारी भट्ट, मोनिका 'मासूम', राजीव 'प्रखर' , डॉअर्चना गुप्ता, अंकित गुप्ता 'अंक', मनोज 'मनु', श्रीकृष्ण शुक्ल, ओंकार सिंह 'विवेक', ज़िया जमीर, योगेन्द्र वर्मा 'व्योम', डॉ० मीना कौल, शिशुपाल 'मधुकर', वीरेन्द्र सिंह 'ब्रजवासी', डॉ० कृष्ण कुमार 'नाज़', ओंकार सिंह 'ओंकार', अशोक विश्नोई , डॉ० प्रेमवती उपाध्याय, डॉ मीना नक़वी, डॉ मक्खन 'मुरादाबादी' , डॉ अजय 'अनुपम', मंसूर उस्मानी और यशभारती माहेश्वर तिवारी जी द्वारा प्रस्तुत दोहे ----


मृत्युंजय का जाप भी,दूर करेगा रोग। 
 महाप्रतापी मंत्र है,प्रतिदिन करें प्रयोग ।।

रघुनंदन श्रीराम का, स्वागत बारंबार।
उर उमंग उल्लास भर,आया है त्योहार ।।

पावन भारतभूमि का,अभिनंदन अविराम।
सागर चरण पखारता,जिसका आठों याम ।।

मेरा देश अखंड है,बहती मंद समीर।
हिंद ध्वजा नभ चूमती,शान बढ़ावें वीर।

श्याम सलोना नभ हुआ,घटा करे बरसात।
पिया मिलन को मैं चली, करने मन की बात।।

पावस ऋतु मधुमास सम,उर में उठे हिलोर।
चातक कातर हो उठा,घन बरसो घनघोर।।

सावन बरसे झूम कर,करत पपीहा टेर।
नैना तरसे साँवरे,अबहुँ न करियो देर।।

नैना दोनो कर रहे,नैनौ ही में बात।
नैनौ ने ही कर दिया,हिय मेरे आघात।।

बरखा ने चौपट किये,खेत और खलिहान।
गेहूँ -सरसों बिछ गये,रोया खूब किसान।।

आहत मन पंछी हुआ,देख जगत की बात।
नारी का अपमान कर,पूजें कन्या जात ।।

  ✍️  मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नम्बर 8218467932
---------------------–----------------------------------

देख घिरी काली घटा, कृषक हुआ हैरान,
तन तो घर में क़ैद है, गेहूं में है जान।

चम चम चाँदी सा हुआ, माँ गंगा का नीर
बीमारी ने दूर की, दूषित जल की पीर।

बल पर इतराते रहे, इटली औ इंग्लैंड
छोटे से वायरस ने, बजा दिया है बैंड।

माह भरे से हो गए, ऊपर घर में खात
दिन बीते तो सांझ है, सांझ ढले तो रात।

घूमा पहिया वक़्त का, मुश्किल में है जान
बाहर पंछी घूमते, क़ैद हुआ इंसान।

✍️ मयंक शर्मा
मुरादाबाद 244001
----------------------------------------------------------

समय क्षुधातुर शेर सा,पल दिन साल शिकार।
ठगे हुए हम रह गये,बही उम्र द्रुत धार।।

निराला औ' दिनकर सी,ढूँढ़ कलम मत आज|
अंँगूठे से लिख रहा,ज्ञानी हुआ समाज।।

धरी योजनाएं कई, सरकारों के पास।
निगल करप्शन पर गया,सारा राष्ट्र विकास।।

कवि तो ऑनलाइन में,चुटकी से मिल जाय।
पर कविता किस ठौर है,कौन ढूँढ के लाय।।

भेड़ चाल सब चल रहे,हम देखें हैरान।
चिल्लाते गाते फिरें,काग ले गयो कान।।

दिखलाना जारी रखो,असल काम सब छोड़।
सम्मानित होते रहो,बातों के बम फोड़।।

अब करना है क्या सही,समय तराजू तोल।
होशियार होता नहीं,जोखिम ले जो मोल।।

निशदिन सूखे जा रही,मन धरती की आस
कैसे उर्वर हों भला,भाव कर्म विश्वास।।

सूरज यह देता दगा,नहीं अनोखी बात।
रहे साथ क़ंदील ही,जब भी आई रात।।

चिढ़ के मारे जो जला,उसके मन को भाय।
चुगली ठण्डी छाछ सी,शीतलता ले आय।।

खुशियाँ सस्ती हो रही,चल मनवा बाजार।
अहम,वहम को छोड़ के,बस पलड़े में धार।।

 ✍️ हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद 244001
----------------------------------------------------------

यह कोरोनावायरस, कोविड-नाइंटीन
इस जैविक हथियार का, उत्पादक है चीन

जब से आदम हो गया, घर में क्वॉरेंटाइन
मोबाइल विंडो बनी, तांक झांक अॅनलाइन

बाट निहारे चंद्रिका, भर नैनन में आस।
आन बुझा दे चंद्रमा,अब अधरन की प्यास।

मैला पूत-कपूत का ,ढोये अपने सीस ।
कलयुग में मां गंग की, गत देखो जगदीस।।

ज्योतिर्मय होकर ज़रा ,जलिए तो श्री मान।
एक दीप ने ही किया, चूर तिमिर अभिमान।।

ऊंचे कद का देखिये , ऐसा भी संजोग।
हद से नीचे गिर गये , रुतबे वाले लोग।।

हैश टैग मी टू हुआ , यों संक्रामक रोग।
दिन दिन पीडित बढ रहे , देख देख अभियोग।।

छूट गया जब पाँव से , इस धरती का छोर।
चल पंछी मासूम अब ,उङ  अंबर की ओर।।

पीर, प्रीत, अरु प्रेरणा, परहित को निज जान।
कवि हिरदै की वेदना, कविता करे बखान।।

✍️  मोनिका"मासूम"
मुरादाबाद 244001
----------------------------------------------------------

नयी पौध के दौर में, मर्यादा यों ढेर।
राह राम की तक रहे, फिर शबरी के बेर।।

प्यारी मुनिया को मिला, उसी जगत से त्रास।
जिसमें लोगों ने रखा, नौ दिन का उपवास।।

मिल-जुल कर ऐसे हरें, आपस के संताप।
कुछ उलझन कम हम करें, कुछ सुलझाएं आप।।

बढ़ते पंछी को हुआ, जब पंखों का भान।
सम्बन्धों के देखिये, बदल गये प्रतिमान।।

मत कर इतना चाँद तू, खुद पर आज गुमान।
फिर आयेगा जीतने, तुझको हिन्दुस्तान।।

मैं भी योद्धा देश का, भरता हूँ हुंकार।
हाथों में यह लेखनी, है मेरा हथियार।।

मन की आँखें खोल कर, देख सके तो देख।
कोई है जो लिख रहा, कर्मों के अभिलेख।।

तम के बदले हृदय में, भरने को उल्लास।
दीपक में ढल जल उठे, माटी-तेल-कपास।।

चन्दा बिन्दी भाल की, तारे नौलख हार।
रजनी करके आ गयी, फिर झिलमिल सिंगार।।

पंछी दरबे में पड़ा, हुआ बहुत हैरान।
भीतर से ही सुन रहा, आज़ादी का गान।।

✍️  राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद 244001
----------------------------------------------------------

लोकडाउन में किया हुआ, बच्चों ने हुड़दंग
करते बड़ी शरारतें, मम्मी पापा तंग

कोरोना ने कर दिया, सब बच्चों को पास
और  छुट्टियों से बढ़ा, है मन में  उल्लास

बच्चों के भी हाथ में, अब रहता है फोन
हुई पढ़ाई नेट से,अब टोकेगा कौन

मम्मी से बनवा रहे, रोज नये पकवान
पिज़्ज़ा आइसक्रीम की , घर में खुली दुकान

कैरम की बाजी कहीं, जमे ताश के रंग
बच्चे या बूढ़े सभी,  बैठ रहे हैं संग

रहो घरों में बन्द सब, है सबसे अनुरोध
बच्चे भी संदेश दे, करा रहे हैं बोध

नहीं  किसी भी  पार्क में, अब बच्चों की फौज
घर के अंदर वो उड़ा, रहे मौज ही मौज

बालकनी से झाँक कर,नीचे देखें बाल
देख बड़े हैरान हैं, सन्नाटे  का जाल

कोरोना में छत हुई, खुला हुआ मैदान
पहले रहती थीं बड़ी, कितनी ये सुनसान

बच्चों की फरमाइशें, नहीं रहीं अब आम
करने पड़ते अब उन्हें, घर के भी कुछ काम

 ✍️ डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
----------------------------------------------------------

सौदागर यूँ कर रहा, मौतों  का व्यापार
पहले बेचे सिसकियाँ, फिर बेचे उपचार

एक इमारत ने कहा, झोंपड़ियों से रात
इस ऊँचाई पर करूँ,  किससे मन की बात

आवाज़ों के दौर की, ये कैसी तारीख़
शहर-शहर में गूँजती, सन्नाटों की चीख़

मैंने पूछा ज़िन्दगी, क्या है बता फ़क़ीर
पानी पर तब खींच दी, उसने एक लकीर

संकट में सिखला गया, अवलोकन का दौर
पहले मैं कुछ और था, अब शायद कुछ और

चलते रहो,  न दो कभी; अवरोधों पर ध्यान
बहते पानी पर भला, पड़ता कभी निशान

झोंपड़ियों से पूछतीं, इमारतें दिन-रैन
तुममें हम-सा कुछ नहीं, फिर भी इतना चैन

कथनी-करनी में रहे, हरदम अगर दुराव
दिल से दिल की सोच का, रहता नहीं जुड़ाव

जब उरूज पर एक दिन, पहुँचा उसका नाम
बाज़ारों   में   लग   गए,  ऊँचे  -  ऊँचे   दाम

छल की बस्ती में खड़ा, सच का  एक मकान
शायद  उसमें भी कभी, रहते थे इंसान

जब से अपने गाँव का, होने लगा विकास
सन्नाटा ओढ़े पड़ीं, पगडंडियाँ उदास

  ✍️  अंकित गुप्ता 'अंक'
मुरादाबाद 244001
----------------------------------------------------

 करी प्रगति विज्ञान में, मानव ने चहुँ ओर।
यक्ष प्रश्न फिर भी रहा, जीवन का घनघोर।।

कल पुर्जे व यांत्रिकी, और चिकित्सा ज्ञान।
मानव के हित हेतु है, समदर्शी विज्ञान।।

औषधियां भी बहुत हैं, होते शोध हजार।
अनियंत्रित हो कर रहे, फिर भी रोग प्रहार।।

किन्तु समय के साथ भी, देखें हम यदि आज।
अब भी सौ बीमारियां,बाकी बिना इलाज।।

कर्म चिकित्सा से जुड़ा,होता ईष्ट समान।
लालच हेतु न छोड़िये, यह दुर्लभ सम्मान।।

 दुरुपयोग विज्ञान को ,बना रहा हथियार।
प्रभु का यद्यपि मनुज को,यह अनुपम उपहार।।

 दोतरफा हमला करें,  कोरोना  की मार।
सेहत पर भी आँच है,और बन्द व्यापार।।

 मिलना जुलना बैठना , ना मेला ना फाग,
अपनी डफली पीटना , अपना गाना राग,,

चौपाले तक हो गई,  सूनी सूनी देख,
यह भी अब लगने लगीं , इतिहासों के लेख,,

सिक्कों पर पलने लगे, आपस के प्यार,
 महज अमावस बन रही दिवाली हर बार,,
         
 ✍️  मनोज मनु
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नंबर  639 709 3523
----------------------------------  ----------------------

कोरोना के खौफ से, दुनिया है हल्कान।
सहम रही है लेखनी, कविकुल भी हैरान।।

कवि सम्मेलन बंद हैं, बंद मान सम्मान।
आयोजक गमगीन हैं, बंद पड़ी दूकान।

कवि गोष्ठी के नाम पर, होती थी तकरार।
बीबी भी खुश है बहुत, देख हमें लाचार।।

कवि को कविता पाठ बिन, आवे कैसे चैन।।
व्हाट्सएप पर हो रहे, आयोजन दिन रैन।

कवि पत्नी झाँके तुरत, जब भी कवि बतियाय।
किससे चैटिंग कर रहे, जल्दी देउ बताय।।

मेरे बस के हैं नहीं, घर के सारे काम।
झाड़ू पोंछा थामिए, बहुत हुआ आराम।।

घर घर में बनने लगे, नित्य नये पकवान।
हलवाई की देखिए, सूख रही है जान।।

धोबी, मोची, पार्लर, हलवाई हज्जाम।
तालाबंदी में हुआ सबका काम तमाम।

धन यश वैभव संपदा, सबके पुरसाहाल।
जीवन को बस चाहिए, केवल रोटी दाल।

आज प्रकृति ने देखिए, किया स्वतः श्रंगार।
छिद्र भरा ओजोन का, महिमा अपरम्पार।।

✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG 69, रामगंगा विहार
 मुरादाबाद244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल नं• 9456641400
----------------------------------------------------------

गर्मी   की   ये    धूप   है,  धूप   बहुत  माक़ूल।
शबनम  रुख़सत  ले रही, पत्ते    हुए   मलूल।।


इतनी  वहशत  इश्क़  में,   होती    है   ऐ  यार।
कच्ची   मिट्टी   के   घड़े, से  हो   दरिया  पार।।


उसकी आँखों में  दिखा, सात  झील का आब।
चेहरा पढ़ कर यह लगा, पढ़ ली एक किताब।।


खिड़की  में   इक  चाँद  है, रोशन   है   दीवार।
जो   गुज़रे   वो   ठहर   के, देखे  दो  दो  बार।।


उस  लहजे  की  चाशनी,  जैसे   शहद  ज़बान।
चखने  उस  आवाज़ को, तरस  रहे  हैं   कान।।


थोड़ी फुर्सत  जब  मिली, देखा  मन  की  ओर।
बाहर  था कुछ  भी  नहीं, अंदर  था  जो  शोर।।


जाने कब किस याद का,  करना  हो   नुक़सान।
जलता  रखता  हूं  सदा, दिल का आतिश दान।।


इश्क़   जलाया  रूह   में, जिस्म किया क़न्दील।
मंज़िल की ख़्वाहिश नहीं, राह  न  हो  तब्दील।।


मुझको कुछ शिकवा नहीं,  हूं  मैं  तुझ  से   दूर।
दरिया   कितनी   दूर   हो, सागर  मिले  ज़रूर।।


दिल   का  रौशन-दान  हैं,  ग़ालिब  मीर  कबीर।
इनकी  चौखट  पर  पड़ा, रहता  ज़िया  ज़मीर।।

✍️ जिया ज़मीर
मुरादाबाद 244001
--------------------------------------------------------

घर के भीतर बंद हम, सभी हुए मजबूर
हम तुम मन से पास हैं, बेशक तन से दूर

काम छिना रोटी छिनी, समय बड़ा ही क्रूर
संकट यह कैसे मिटे, सोच रहा मजदूर

कैसे सँभलें भूख के, बिगड़े सुर-लय-ताल
नई सदी के सामने, सबसे बड़ा सवाल

सपनों के बाज़ार में, ‘हरिया’ खड़ा उदास
भूखा-नंगा तन लिए, कैसे करे विकास

नष्ट सभी सपने हुए, ध्वस्त सभी अरमान
फसलें चौपट देखकर, मरते रोज़ किसान

देख-देखकर हैं दुखी, सारे बूढ़े पेड़
रोज़ तनों से टहनियाँ, करती हैं मुठभेड़

जब-जब भी मन ने किया, पीड़ा का सत्कार
सपनों ने तब-तब दिया, साहस को विस्तार

✍️- योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद 244001
----------------------------------------------------------


लिख रहे सुन्दर कथा, रचें दृश्य अभिराम ,
इन रचनाकारों को, बारम्बार प्रणाम।

डटे हुए सैनिक सजग,कलम अपनी ले  हाथ,
बने हुए सुरक्षा कवच, देते देश का साथ ।

इनके कर्म से बना,मेरा देश महान ,
विपदा दिनों में खड़ा, गर्व से सीना तान ।

बिखर गए हैं जब सभी, हम तब खड़े हैं साथ,
दूर दूर होकर भी, थामे परस्पर हाथ।

कण कण में भक्ति भरी , शक्ति अपरिमित अपार,
पड़ी नजर जिसकी बुरी,हुआ नजरों के पार।

कोरोना बैठा यहाँ, धूर्त लगाकर घात
विजय करें वरण सभी, देकर करारी मात।

✍️ डॉ मीना कौल
मुरादाबाद 244001
----------------------------------------------------------


तोप मिसाइल बम हुए सब के सब बेकार
झेल नहीं पाए सभी  कोरोना का वार

कोरोना से मच गया ऐसा इक तूफान
औंधें मुंह जाकर गिरे बड़े बड़े बलवान

कोरोना ने खोल दी बड़े बड़ों की पोल
जो अपनी समृद्धि का पीट रहे थे ढोल

जो पूरे संसार पर रहते रौब जमाय
कोरोना के सामने रहते पूंछ दबाय

मचा रहा संसार में यह भारी उत्पात
मिलकर ही दे पाएंगे कोरोना को मात

जहां कहीं अन्याय का होता निर्मम खेल
नित्य सूखती जाएगी वहां प्रगति की बेल

बस अपनी सुख कामना करते हैं जो लोग
तन - मन से पीड़ित रहें लगे हजारों रोग

राजनीति जो कर रहे नैतिक मूल्य विहीन
पद को दूषित कर रहे हैं जिस पर आसीन

इस पर, उस पर छोड़ते व्यंगो की बौछार
मन के दुर्बल लोग जब पाते कोई हार

जब उसकी सामर्थ्य पर उठने लगे सवाल
लोगों को उलझा दिया करके खड़े बवाल

                 ✍️  शिशुपाल "मधुकर"
             C-101,हनुमान नगर ,लाइनपार
                     मुरादाबाद 244001
              Mob -  9412237422
----------------------------------------------------------


सूनी गालियाँ  हो  गईं  सूने  मंदिर घाट
      जाने कब तक मिटेगा कोरोना आघात।

 दुनियाँ  में बढ़ने  लगा  पाप कर्म अन्याय
      एक झलक में ईश ने समझा दिया उपाय।

ताला बंदी में  हुई  सारी दुनियाँ कैद
      बड़े बड़ों की हो गई मनमानी नापैद।

 कोई कितना शाह  हो  चाहे कितना रंक
      नहीं छोड़ता किसी को कोरोना का डंक।

 नहीं बना टीका अभी नहीं दबा उपलब्ध
      बीमारी  की  मार  से  है  दुनियाँ  स्तब्ध।

 जिसने अपनी सी करी किया न उचित इलाज
      सोना,  चांदी,   रोकड़ा    निकले    धोखेबाज।

व्याधि महामारी हुई किया विकट विस्तार
      लाखों  जीवन  खो  गए  लाखो हैं बीमार।

 देखो  इसकी  क्रूरता  समझो इसकी मार
      दो गज की दूरी रखो मास्क लगाओ यार।

शांत  चित्त  होकर  रहो  घर के  अंदर बंद
      तभी कटेगा व्याधि से जन-मानस का फंद।

सदा नहीं रहती यहाँ व्याधि,साँस औ फांस
       इसी सत्य  के  साथ  ही कूदो  नौ नौ  बांस।

✍️  वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद 244001
 मोबाइल फोन नंबर 9719275453
----------------------------------------------------------


आपस में पैदा हुए, इतने वाद-विवाद
हम-तुम दोनों प्रेम के, भूल गए संवाद

कुछ अपनी, कुछ आपकी, कुछ दुनिया की बात
कहते-सुनते कट गए, जीवन के दिन-रात

तुममें था जैसे निहित, जीवन का सब सार
तुम क्या बिछुड़े, हो गया जीना ही दुश्वार

सपने हाथों में लिए, आए तीर कमान
प्रातः देखा तो मिलीं, आँखें लहूलुहान

धुँधला-धुँधला दिख रहा, यत्र-तत्र-सर्वत्र
भीगी आँखें किस तरह, पढ़ें तुम्हारा पत्र

चहल-पहल है इस तरह, जैसे हो त्योहार
सजा हुआ है दूर तक, यादों का संसार

हारे मन से किस तरह, जीतूँ मैं संसार
यार कभी चलती नहीं, नाव बिना पतवार

साथ चला था आपके, मन में लिए उमंग
बिछड़ा तो ऐसे हुआ, जैसे कटी पतंग

बैठी हैं घेरे हुए, यादें मन का घाव
जैसे हो चौपाल में, जलता हुआ अलाव

मुस्कानों के बीच मैं, बैठा रहा उदास
आँसू की जागीर थी केवल मेरे पास

✍️ डॉ कृष्णकुमार 'नाज़'
मुरादाबाद244001
----------------------------------------------------------


दिए कभी तो वक़्त ने,दिल को ज़ख़्म तमाम।
 और कभी इसने किया,मरहम का भी काम।।
   💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐ज़िद सागर  से मेल की , इसने  ली  है  ठान।
 खोकर  मानेगी नदी , अपनी  सब पहचान।।
   💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
  दौड़  धूप  तो  उम्र  भर ,  लगी  रहेगी  यार।
  बैठो  भी  तुम चैन से,दो पल कभी कभार।।
     💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
आप  शौक़ से  दीजिए , कोई  सख़्त बयान।
   पर  भाषा के  मान का,रखिए थोड़ा ध्यान।।
    💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
 काश! हमारा  भी  यहाँ, होता  कोई  ख़ास।
   जो कह देता प्यार से , मत हो सखे उदास।।
    💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
मिले तनिक ताज़ा हवा,और नीम की  छाँव।
   लौट चलें आओ सखे , फिर से अपने गाँव।।
   💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
फिर  जाएँ सब काम पर , खुलें हाट-बाज़ार।
  दुनिया पहले की  तरह , हो  जाये गुलज़ार।।
   💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
दुःख  भरे अति शीघ्र ही , दिन  जायेंगे  बीत।
  सब  गायेंगे  देखना , फिर ख़ुशियों के  गीत।।
   💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
'कोरोना'  ने  विश्व   का ,  बदला   ऐसा  सीन।
 अमरीका  भी माँगता , हम से 'क्लोरोक्वीन'।।
    💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐        'कोरोना'  के साथ  यह ,   जंग  नहीं आसान।
फिर भी जीतेगा  मगर ,   अपना हिंदुस्तान।।
   
 ✍️  ओंकार सिंह विवेक
रामपुर
----------------------------------------------------------

जो भी कठिन विपत्ति में ,होता नहीं  अधीर!
वही व्यक्ति  संसार में,  कहलाता है  वीर  !!

डरकर अपनी शक्ति  को, नहीं कीजिए नष्ट!
साहस- युक्त प्रयास से, मिट जाते हैं  कष्ट  !!

सबके सुख की कामना, करते हैं  जो लोग!
वे चिंता से मुक्त हो,      रहते सदा निरोग  !!

टिक पाती है  कब सदा, दुख की काली रात  !
अँधियारे को चीरकर , आता सुखद प्रभात. !!

मानव तू यह सोचकर, अपने मन को डॉट !
एक पेड़ को काट कर, रहा स्वयं को छॉट  !!

धूल अटे संबंध को, करो पोंछकर  साफ़  !
कहा-सुनी हो जाए तो , करो प्यार से माफ़!!

ज्ञान बने उतना प्रखर,  जितना हो संवाद!
हर मिसाल से दोस्तों , ज्ञान सदा अपवाद!!

बहुत खोजने पर मिला, जीवन का निष्कर्ष !
जहॉ नहीं  विश्राम  है , जीवन है   संघर्ष  !!

धीरज, क्षमा,उदारता  ,और राखिये नेह  !
अमन-चैन,सुख-शांति से, भरा रहेगा गेह!!

जिसकी गर्मी से जगत, रहता है गतिमान!
सब देवों का देवता, है  सूरज  भगवान !!
      ✍️   ओंकार सिंह 'ओंकार'
1-बी-241 बुद्धि विहार ,मझोला
         मुरादाबाद 244001
        मो. नं. 9997505734
-------- -------------------------------------------------

कोरोना दिखला रहा, सबको ऐसा रंग ,
बदल गए हैं देखलो, सबके अपने ढंग ।

कड़ी चुनौती सामने, हो जाओ तैयार ,
डट कर करो मुकाबला, होगा बेड़ा पार ।

मिलने वाले दूर से, पूछ रहे हैं हाल ,
कोरोना से देखिए, बदली सब की चाल ।

लॉकडाउन में अब नहीं, कटते हैं दिन रैन ,
सब धंधे चौपट हुए, छीना सबका चैन।

 पैर जमीं पर है नहीं, बनते हैं गुटबाज ,
मिटा रहे वे स्वयं, एक दूजे की खाज ।

✍️  अशोक विश्नोई
मुरादाबाद 244001
----------------------------------------------------------

रहे सर्वदा मुदित मन,
    संशय रहे   न कोय।।
    सन्तों ऐसे मनुज का,
    सिद्ध मनोरथ होय।।

 सगुण उपासक सुजन गण,
    समझाते हर बार।।
   जल भू दूषित मत करो,
    रोपो विटप हजार।।

"कोरोना", भगवान ने
भेजा अपना दूत।।
सुख से जीना चाहते,
 बदलो निज करतूत ।।

 स्वास्थ्य सुयश अक्षय रहे ,
    क्षय हों कलुषित भाव।।
  धन वैभव अरु धर्म का,
    रहे न कभी अभाव।।

 कोरोना से मत डरो ,
     डर है यम का द्वार।।
    अनुशासन पालन करो,
     हारेगा हर बार।।

मोदी के मुख से निकल,
     अक्षर बनते मन्त्र।।
    स्वागत होता सर्वदा,
      यत्र तत्र सर्वत्र।।

राम नाम में मन रमें,
   कहीं न इत उत जाए।।
जो मन भावे सो मिले,
    सांची देउ बताये।।

 कर्मों के फल त्याग का,
    यदि मानस बन जाये।।
अठारह अध्याय का,
    सार तत्व मिल जाए।।

 घोर अमावस की निशा,
     हुई बहुत हैरान।।
मिटा दिया तम का अहं,
    कर दीपक बलिदान।।

✍️ डॉ प्रेमवती उपाध्याय
मुरादाबाद 244001
----------------------------------------------------------


जाना पहचाना मिला रस्ते में अनजान।
मन में इक विश्वास था वो लेगा पहचान।।

प्रेम-सुधा है शून्य से अब तक अंगीकार।
बस सपनों मे ही मिला उस से मुझ को मान।।

मिले आप अपनत्व से, ये मन हुआ अधीर।
भावों के अतिरेक का आया इक तूफा़न।।

जन्म जन्म के मूर्ख हम, आशा से बे-आस।
हम ने गैंरो को दिया अपनों का सम्मान।।

कैसी घोर विडम्बना, कैसा ये उपहास।
मुझ को मुर्दा कर गया जिस को समझा जान।।

केवल 'मैं' के फे़र में,देता वह उपदेश।
समझा हम ने देर से ज्ञानी का अज्ञान।।

अनमिट अर्थों में लिखे भावों के प्रारूप।
अमर रखेगा विश्व में शब्दों का सोपान।।

नज़्म, गीतिका, गीत अरु कुण्डलिया सब ठीक।
लिखकर यह दोहा ग़ज़ल 'मीना' है हैरान।।

✍️ डा. मीना नक़वी
मुरादाबाद 244001
----------------------------------------------------------


 आॅनलाइन कवि गोष्ठी,
            देखा उसमें डूब ।
आना जाना धन बचा ,
      वाह! बहुत ही खूब।।१।।

सबक आज से लीजिए,
        देना सबको सीख ।
लेकर भिक्षुक रहेगा,
  आॅनलाइन अब भीख।।२।।

हम जैसों की छोड़िए,
         महाशक्तियां तात ।
खा बैठीं , बेहाल हैं ,
         कोरोना से मात ।।३।।

प्यासे!लाॅकडाउन में ,
        क्यों रहता मनमार।
पीने लायक हो चली,
     नदियों की जलधार।।४।।

हुए आपदा काल में,
          ऐसी फूंको आस।
कोरोना बनकर रहे,
    जन जीवन का दास।।५।।

अब तो आना चाहिए,
        जीवन में बदलाव ।
कोरोना की ओट में ,
   नये दिखे कुछ ख़्वाब।।६।।

भेदभाव किस काम के,
           कैसी है तकरार।
बंटे-बंटे जो अब लड़े,
           तो जायेंगे हार।।७।।

जाति-धर्म मजहब नहीं,
        कोरोना सब्जेक्ट।
मनुज जात को लीलना,
     उसका है आॅब्जेक्ट।।८।।

अपना सबकुछ भूलकर,
      जग की हालत देख।
कोरोना के भाल मिल,
    लिखें हार-अभिलेख।।९।।

अन्तिम दोहा देखिए,
      आप सभी के नाम।
तिल-तिल जलकर देश के,
    दुःख में आयें काम।।१०।


✍️डॉ.मक्खन मुरादाबादी
मुरादाबाद 244001
----------------------------------------------------------


संकट के सम्मुख अगर, बना रहे उत्साह।
कठिनाई के बीच भी, मिल जाती है राह।।

सम्बन्धों में जब चुभे, शंकाओं के शूल।
व्यक्ति और परिवार सब, होते नष्ट समूल।।

मात्र सहज विश्वास है, अपनेपन का अर्थ।
इसके बिना न हो सका, कोई कभी समर्थ।।

अपने हित जो तोड़ता, अनुशासन का छन्द।
उसे न मिल पाता कभी, जीवन में आनन्द।।

रहें उपेक्षित नारियां, जिस समाज में मित्र।
लोक जान लेता सहज, उसका पतित चरित्र।।

जिसने मन पर सह लिये, अपमानों के शूल।
समय बिछाता राह में, उसकी सुख के फूल।।

सत्संगति से लोक में, मिले सहज आनन्द।
सद्विचार परलोक में, देता परमानन्द।।

मर्यादा के गेह जब, कुमति लगाती आग।
जलते विद्युतपात सम, स्नेह, शील, अनुराग।।

कोरोना के काल में, अनायास ही लोग।
सभी तपस्वी हो गए, छूटे छप्पन भोग।।

दोहन जब अतिरिक्त हो, लिप्सा सीमा हीन।
एक घात में ही प्रकृति, करती जन को दीन।।

✍️ डॉ० अजय 'अनुपम'
मुरादाबाद 244001
----------------------------------------------------------


बच्चों को सिखलाइए, बूढ़ों का सम्मान।
हो जाएगी आपकी, हर मुश्किल आसान।।

ग़ालिब, तुलसी, मीर के, शब्दों की ताज़ीम।
करते मेरे दौर में, बेकल, निदा वसीम।।

हिंदी रानी देश की, उर्दू जिसका ताज।
खुसरो जी की शायरी, इन दोनों की लाज।।

तनहाई में रात की, भरता है 'मंसूर'।
सन्नाटो की माँग में, यादों का सिंदूर।।

ख़ुदा और भगवान में, नहीं ज़रा भी फ़र्क़।
जो माने वो पार है, ना माने तो ग़र्क़।।

जब थे पैसे जेब में, रिश्तों की थी फ़ौज।
बहा सभी को ले गयी, निर्धनता की मौज।।

मन में कुंठा पालकर, घूमे चारों धाम।
आये जब घर लौटकर, माया मिली न राम।।

दस्तक दी भगवान ने, खुले न मन के द्वार।
ऐसे लोगों का भला, कौन करे उद्धार।।

पुरखों की पहचान था, पुश्तैनी संदूक।
बेटा जिसको बेचकर, ले आया बंदूक।।

अपनी पलकों ले लिया, जब निर्धन का नीर।
मेरे आशिक़ हो गये, सारे संत-फ़क़ीर।।

✍️ मंसूर उस्मानी
मुरादाबाद 244001
–--------------------------------------------------------


सबको ही सहना पड़े, क्या राजा क्या रंक
जब जब बढ़कर फैलता, जंगल का आतंक

नई व्यवस्था में नये, उभरे कुछ मतभेद
कम लगने लग गए हैं, अब छलनी के छेद

कुछ मौसम प्रतिकूल था, कुछ था तेज बहाव मछुआरों ने खींच ली, तट पर अपनी नाव

मंदिर से मस्जिद कहे, तू भी इस पर सोच
तुझको लगती चोट तो, आती इधर खरोच

मंदिर मस्जिद से जुड़ी, है जब से पहचान
मजहब ऊँचे हो गए, छोटा हिन्दुस्तान

धीरे धीरे फैलता, जंगल का कानून
सत्ता सब सुख पा रही, जनता रोटी-नून

✍️ माहेश्वर तिवारी
मुरादाबाद 244001
----------------------------------------------------------
                 ::::::::::::प्रस्तुति::::::::::::
               
                 डॉ मनोज रस्तोगी
                 8, जीलाल स्ट्रीट
                मुरादाबाद 244001
                उत्तर प्रदेश, भारत
                मोबाइल फोन नंबर 9456687822