मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता का बाल गीत ....जंगल की होली


लो आया मस्ती भरा, होली का त्यौहार
जंगल में होने लगी, रंगों की बौछार

भरी बाल्टी रंग से, लेकर बैठे शेर
छोडूंगा अब मैं नहीं,लगा रहे हैं टेर
हाथी दादा सूंड से, मारे जल की धार
लो आया मस्ती भरा, होली का त्यौहार

बंदर मामा कम नहीं, बहुत बड़े शैतान
बैठे ऊँचे पेड़ पर, ले पिचकारी तान
लाये थे बाज़ार से, वो कुछ रंग उधार
लो आया मस्ती भरा, होली का त्यौहार

छिपती छिपती फिर रहीं, बिल्ली मौसी आज
चूहों ने रँग डालकर, किया उन्हें नाराज़
पर कुछ कर सकती नहीं,बैठी खाये खार
लो आया मस्ती भरा, होली का त्यौहार

हिरनी ने गुझिया बना, सबको दी आवाज
सभी खा गयी लोमड़ी,ज़रा न आयी लाज़
और टपकती रह गयी, सबके मुँह से लार
लो आया मस्ती भरा, होली का त्यौहार

✍️ डॉ अर्चना गुप्ता

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

सोमवार, 27 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर की संस्था अखिल भारतीय काव्यधारा के तत्वावधान में 26 फरवरी 2023 को आयोजित समारोह में हिंदी की उत्कृष्ट सेवाओं के लिए ओंकार सिंह ओंकार (मुरादाबाद), अनमोल रागिनी गर्ग (रामपुर), रश्मि चौधरी 'दीक्षा' (रामपुर), डॉ नीरू कपूर (मुरादाबाद), सुरेन्द्र अश्क 'रामपुरी', शिव प्रकाश सक्सेना (रामपुर), अमित रामपुरी समेत अनेक साहित्यकारों को किया गया सम्मानित

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर की संस्था अखिल भारतीय काव्यधारा के तत्वावधान में रविवार 26 फरवरी 2023 को कवि सम्मेलन व सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। आनंद कॉन्वेंट स्कूल, ज्वाला नगर, रामपुर में आयोजित इस आयोजन की अध्यक्षता संस्था अध्यक्ष  जितेंद्र कमल आनंद ने की। मुख्य अतिथि बीसलपुर से पधारे दिनेश समाधिया और विशिष्ट अतिथि द्वय डॉ अब्दुल रऊफ (रामपुर) व मुरादाबाद से डॉ नीरू कपूर रहे। 

    राम किशोर वर्मा के संचालन में डॉ गीता मिश्रा गीत (हल्द्वानी) द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से आरंभ इस आयोजन में हिंदी की उत्कृष्ट सेवाओं के लिए ओंकार सिंह ओंकार (मुरादाबाद), डॉ गीता मिश्रा गीत, पुष्पा जोशी प्राकाम्य (शक्ति  फार्म सितार गंज), अनमोल रागिनी गर्ग (रामपुर), रश्मि चौधरी 'दीक्षा' (रामपुर), डॉ अब्दुल रऊफ, आनंद वर्धन शर्मा (अल्मोड़ा),  डॉ नीरू कपूर (मुरादाबाद), डॉ थम्मन लाल वर्मा 'विकल' (बीसलपुर- पीलीभीत), सुरेन्द्र अश्क 'रामपुरी', राजवीर सिंह 'राज' (बुलंदशहर), शिव प्रकाश सक्सेना (रामपुर), अमित रामपुरी, दिनेश समाधिया, सत्य पाल सिंह 'सजग'(लाल कुआँ) को सम्मानित किया गया। इन काव्यकारों को स्मृतिशेष प्रकाश चन्द्र सक्सेना "दिग्गज मुरादाबादी" स्मृति सम्मान, स्मृतिशेष शोभा आनंद स्मृति सम्मान, स्मृतिशेष हीरा लाल 'किरण' स्मृति सम्मान, काव्यधारा: काव्य श्री सम्मान, काव्य धारा: काव्य सृजन प्रवाह सम्मान विभूषित किया गया । इस अवसर पर काव्यामृत पत्रिका (चतुर्मासिक पत्रिका) प्रधान संपादक डॉ थम्मन लाल वर्मा 'विकल' का लोकार्पण अध्यक्ष और अतिथियों द्वारा किया गया ।

    आयोजन के दूसरे चरण में उपस्थित रचनाकारों ने काव्य पाठ भी किया। आयोजन में पीयुष प्रकाश सक्सेना (प्रबंधक आनंद कॉन्वेंट स्कूल व काव्य धारा के संरक्षक), कुसुम लता वर्मा, पीयूष वर्मा, श्रीमती रवि प्रकाश, श्रीमती मंजुल रानी, अरुण सक्सेना, अल्का सक्सेना, अमन सक्सेना व शन्नो आदि शामिल रहे। संचालन राष्ट्रीय महासचिव राम किशोर वर्मा ने किया।










































::::::प्रस्तुति::::::

राम किशोर वर्मा

महासचिव

अखिल भारतीय काव्यधारा

रामपुर , उत्तर प्रदेश, भारत

रविवार, 26 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद के शायर जिगर मुरादाबादी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर डॉ आसिफ हुसैन का सारगर्भित आलेख। यह आलेख उन्होंने मुरादाबाद की संस्था अल्फाज़ अपने फाउंडेशन की ओर से रविवार 26 फरवरी 2023 को आयोजित कार्यक्रम जिक्र ए जिगर में प्रस्तुत किया था ......

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मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल (वर्तमान में मेरठ निवासी)के साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी का गीत .....कायर हो गई भावना


जब से सीखी इन हाथों ने, करनी याचना 

सच मानो, तभी से कायर हो गईं भावना। 


दरवाज़े दस्तक को भूले, अतिथि मौन खड़े 

हम न जावें कोई न आवे विकट भाव  अड़े 

मृगतृष्णा जब हो चौखट, कौन कहे देवो 

उखड़ उखड़ कर ढूंढे सांसे कौन है मेरो 


जब से छोड़ी इन कानों ने, सुननी प्रार्थना 

सच मानो, तभी से कायर हो गई भावना 


अब तो आदत पड़ चुकी यहाँ, क़र्ज़ लेने की 

ख़्वाहिशों के घर बिस्तर, बस फ़र्ज़ निभाने की 

कांपे रूह देख देख कर, अपने रोशनदान 

काँच काँच बिखरा है भू पर, अक्स हिंदुस्तान 


जब से भूली इन आँखों ने, करनी साधना 

सच मानो, तभी से कायर हो गई भावना।। 


एक कटोरी चीनी-पत्ती,  घंटों फिर बातें 

ले आंखों  में चित्रहार, कट जाती थीं  रातें 

बुनें स्वेटर, डालें फंदे,   भूल गये धागे 

कैसी दौड़ इस जीवन की, सब के सब भागे 


जब से भोगी इस बस्ती ने, सहनी यातना

सच मानो, तभी से कायर, हो गई भावना


✍️ सूर्यकान्त द्विवेदी

मेरठ

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में देहरादून निवासी) नरेश वर्मा की कहानी ..... सुभद्रा विला । हमने यह कहानी ली है उनके वर्ष 2022 में प्रकाशित कहानी संग्रह " सदाबहार" से .....


सुभद्रा विला नाम है इस घर का । बाहर बरामदे में कुछ गमले रखे हैं जिनमें मौसमी फूलों के अतिरिक्त एक तुलसी का और एक एलोवेरा का पौधा भी है। उपर छत की रेलिंग पर बेगोनिया बेवस्टा की बेल बेतरतीबी से काफ़ी धनी होकर फैल आई है। घर में दो प्राणी रहते हैं, एक गृहस्वामी शिव नारायण सिंह चौहान, जिनकी उम्र 72 साल है और वे डीज़ल इंजन कारखाने से मैनेजर के पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं। दूसरी हैं पत्नी सुभद्रा चौहान, जिनकी उम्र 70 साल है। वह 50 साल से हाउस वाइफ़ के पद पर कार्य कर रही हैं। इस नौकरी में सेवानिवृत्ति की कोई उम्र सीमा नहीं होती है। जीवन से निवृत्त होने पर ही रिटायरमेंट मिलता है। आइए सुभद्रा विला में चलते हैं और देखते हैं कि अंदर क्या चल रहा है........

सुबह की चाय, दैनिक क्रिया आदि सब हो चुके हैं। दोनों बाहर बरामदे में बैठे हैं। सुबह का पेपर आ गया है।

"आज कौन सा वार है ?", चौहान जी ने पत्नी से पूछा, "अरे आपको इतना भी याद नहीं है कि आज रविवार है, आज रात को रवि का फ़ोन आयेगा।”, पत्नी ने उलाहना दी।

"भई जब तुम जैसी याद दिलाने वाली पी. ए. साथ हो तो मैं याद करके क्या करूँगा ? मैं तो सोचता हूँ कि यदि तुम न होती तो मेरी उम्र का बड़ा हिस्सा तो चश्मा ढूँढने में ही बीत जाता ।”

    पति की बात से मुस्करा कर सुभद्रा चाय के कप-प्लेट समेटकर अंदर 'चली गई। वह अपने पुत्र रवि के विषय में सोचने लगे। रवि उनका पुत्र, अमेरिका के कैसास सिटी में इन्जीनियर है, उसका फ़ोन प्रत्येक रविवार को रात के नौ बजे के आस-पास आता है। बेटे का फोन ही जीवन की एकरसता में "कुछ रस का संचार कर जाता है। इस फ़ोन पर किया गया वार्तालाप दोनों पति-पत्नी के बीच पूरे सप्ताह चर्चा का मनपसंद विषय रहता है।

        रविवार को सुभद्रा सारे काम जल्दी निपटाकर फ़ोन के पास बैठ जाती है। फ़ोन पर माँ-बेटे में लंबी वार्ता चलती है। सुबह नाश्ते में क्या बना है ? इस वीक-एन्ड का क्या प्रोग्राम है ? हेमंत (पौत्र) क्या कर रहा है ? छोटी-छोटी बातों का लंबा सिलसिला।

       उन्हें तो सुझता ही नहीं कि फ़ोन पर क्या बात करें। मौसम का हाल पूछ लेते हैं, सबकी कुशल पूछ लेते हैं, इसके बाद क्या...? और यदि कुछ पूछने का सोचा हुआ भी हो तो ठीक फ़ोन के टाइम पर भूल जायेंगे। 

            पिछले वर्ष बेटे के बहुत आग्रह पर दोनों पति-पत्नी,20-22 घंटे की थका देने वाली हवाई उड़ान के बाद समृद्धि के देश अमेरिका गए थे। बेटे ने वहाँ खूब सैर करवाई... नियाग्रा फॉल्स, लॉस वेगास, बड़े- बड़े मॉल्स, एक चकाचौंध वाली दुनिया। इन सब आकर्षणों के बीच दो महीनों के बाद ही उन्हें अपने सुभद्रा विला की याद सताने लगी थी। पता नहीं क्या आकर्षण होता है अपनी मिट्टी की ख़ुशबू में कि वह मन ही मन घर वापसी के दिन गिनने लगे थे।

        बेटे ने कितनी बार प्रस्ताव रखा था कि अब वह दोनों, बेटे के साथ अमेरिका में ही रहें किंतु बुढ़ापे में इस उम्र का क्या भरोसा। वह नहीं चाहते कि उनकी मिट्टी उस अनजाने पराये देश की मिट्टी में मिले। कहाँ हैं वहाँ गंगा के घाट ? कहाँ हैं वहाँ आम के बौर से आती भीनी ख़ुशबू ? कहाँ मिलेंगी वहाँ गायें जिनके लिए सुभद्रा रोज़ गाय की रोटी सेंकती है। सुभद्रा बिला की चहारदीवारी के बीच का सूनापन भी उनका अपना है। यहाँ की ईंट ईंट पर यादों के अनेक पल जुड़े हैं।

“आज नाश्ते में क्या बनाऊँ ?”, सुभद्रा की आवाज़ से उनकी तन्द्रा भंग हुई।

   "हज़म ही कहाँ होता है और सब, वही दलिया बना लो।”

सुभद्रा रसोई घर में चली गई थी। यादों का सिलसिला फिर चल निकला। कहाँ छूट गए वो पहले जैसे भरे-पूरे परिवार जिसमें दादी-नानी के क़िस्से होते थे, त्योहारों की धूम होती थी, ढोलक की थाप होती थी। अब तो जीवन की इस दूसरी पारी में होता है एक अंतहीन सूनापन। उन्हें याद आते हैं अपने बाबू जी और उनकी चिट्ठियों में झलकता उनका सूनापन। एक बार बाबू जी ने उन्हें चिट्ठी में लिखा था, "सामने बरामदे की बुर्जी में चिड़िया घोंसला बना रही है। तिनका-तिनका जोड़ रही है। घोंसले में अंडे देगी, फिर बच्चे बड़े होंगे, चोंच में दाना ला ला कर उन्हें खिलायेगी। बच्चे बड़े होंगे और जब उनके पर आ जायेंगे तो सब उड़ जायेंगे अपनी-अपनी दुनिया में।"

आज उम्र की इस दहलीज़ पर उन्हें अपने बाबू जी के पत्रों में झलकते उस सूनेपन का अहसास होता है। अब तो ऐसे मकान ही नहीं होते जहाँ गौरेया घुसकर घोंसला बना सके और न ही ऐसे खुले आँगन होते हैं, जहाँ अम्मा चिड़ियाँ को दाना डाला करती थी। कहाँ गए वे दिन ? अब जो दिन बीत रहे हैं वे बस पिछले दिनों की कार्बन कॉपी है।

       ऐसे ही एक दिन जब चौहान जी बरामदे में बैठे ताजे खिले पिटूनिया के फूलों को निहार रहे थे तो उन्होंने देखा कि किचन की बैक डोर से होकर सुभद्रा गैराज के पीछे बने स्टोर की तरफ़ कुछ लेकर तेज़-तेज़ जा रही है। इसके बाद वह पुनः किचन के रास्ते घर में गई और इस बार कोई पुरानी चादर लेकर गैरेज स्टोर की तरफ़ गई। बरामदे में बैठे हुए गैरेज से लगा स्टोर नज़र नहीं आता था। अत: वह कुछ भी नहीं देख पा रहे थे कि वहाँ क्या चल रहा

है। असमंजस की स्थिति में जब वह कुछ भी अनुमान नहीं लगा पा रहे थे, तो उसी क्षण उल्लासित सी सुभद्रा प्रगट हुई। इससे पहले कि वह कुछ पूछत सुभद्रा ने स्वयं मुस्कराते हुए कहा, “घर में कुछ नए मेहमान आए हैं।"

    "नये मेहमान ?" वह कुछ समझे नहीं।

"उठिए चलिए आपको मिलवाती हूं नये मेहमानों से", सुभद्रा ने चहकते हुए कहा। जिज्ञासा और कौतुहल से वह सुभद्रा के पीछे-पीछे चल दिए। स्टोर के पास पहुंचकर सुभद्रा ने स्टोर के फ़र्श की ओर इंगित करते हुए कहा, “लीजिए मिलिए नये मेहमानों से।” उन्होंने आश्चर्य से देखा कि स्टोर के फ़र्श पर एक सफ़ेद- भूरी बिल्ली अपने तीन नवजात बच्चों को जीभ से सहला रही है। रुई के फाहों की तरह नवजात कोमल बच्चे अपनी मिचमिचाती कन्जी आँखों से नये संसार से सामंजस्य बैठाने का प्रयास कर रहे थे।

“कितने प्यारे बच्चे हैं।”, सुभद्रा ने हुलसते हुए कहा। स्त्री के अंदर की माँ उसकी आँखों में तैर आई थी। बिल्ली के बच्चों के आगमन से सुभद्रा विला में म्यूंss...म्यूंss... की आवाज़ का संगीत गूंजने लगा था। बिल्ली और उसके नन्हे-नन्हे बच्चों के कारण सुभद्रा को जीने का एक सम्बल मिल गया था। सुबह-शाम बिल्ली परिवार को दूध और ब्रेड का लंच-डिनर कराया जा रहा था। बिल्ली भी सुभद्रा के आगे-पीछे मँडराती रहती थी। बच्चों की उछल-कूद एवं नई-नई शरारतों के कौतुक को देखकर सुभद्रा की हँसी छूट जाती थी। चौहान जी भी मुस्करा मुस्कराकर इस नये रिश्ते की मिठास का आनंद लेने लगे थे।

    सुभद्रा विला में प्रेम की सरिता बह निकली थी। जीवन में यदि प्रेम नहीं है तो जीवन उस वाटिका के समान है जिसमें न फूल हो और न चहचहाते पक्षियों और गुनगुनाते भँवरों का गुंजन । झुर्रियाँ हमारे चेहरे पर पड़ती हैं उन्हें ह्रदय में मत पड़ने दो।

    एक सुबह सुभद्रा परेशान और व्यग्रता में पूरे घर, बगीचा, गैराज के आस-पास कुछ ढूँढ रही थी। चौहान जी ने जब सुभद्रा की हताशा देखी तो पूछा, "सुबह-सुबह क्या खोज रही हो ?"

  एक बच्चा नहीं मिल रहा। रात तक तो तीनों उछल-कूद कर रहे थे किंतु आज वहाँ दो ही बच्चे हैं। एक पता नहीं कहाँ चला गया ?", सुभद्रा ने उत्तर दिया। खोजी अभियान में अब चौहान जी भी शामिल हो गए थे। घर का चप्पा-चप्पा ढूँढ मारा पर तीसरे बच्चे का कोई अता-पता नहीं था। सुभद्रा रुआँसी होकर हर उस कोने और झाड़ी में खोज रही थी जहाँ उसके होने की कोई संभावना नहीं बनती थी किंतु बच्चा नहीं मिला।

   सुभद्रा थक-हार कर बरामदे की कुर्सी पर निढाल होकर धप्प से बैठ गई। उन्हें कुर्सी के कोने में कुछ गुदगुदा सा लगा। उन्होंने कुर्सी की गद्दी सरकाई तो देखा गद्दी के नीचे छिपा तीसरा बच्चा शरारत से टुकुर-टुकुर देख रहा है।

   "हट बदमाश! मैंने, तुझे कहाँ कहाँ नहीं ढूंढा और तू यहाँ छिपा बैठा है।" सुभद्रा ने उल्लासित हो पति को सूचना देते हुए कहा, "सुनते हो जी, बग़ल में छोरा, नगर में ढिंढोरा। तीसरा शरारती मिल गया है।" यही है जीवन का फ़लसफ़ा - थोड़े ग़म-थोड़ी खुशियाँ। सुख और दुःख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक के अभाव में दूसरे का कोई अस्तित्व नहीं। सुख की पहचान, सुख के रूप में नहीं होती यदि दुःख न भोगा हो। इसी तरह दुःख भी अपनी • पीड़ा खो देगा यदि हमने सुख अनुभव न किया हो।

      आज रविवार है। रात के नौ बज रहे हैं। फ़ोन घनघना रहा है। अमेरिका से रवि का फ़ोन है। आज की फ़ोन वार्ता का मुख्य एपिसोड है सुभद्रा विला में बिल्ली और उसके बच्चों का आगमन। सुभद्रा ने बतलाया कि कैसे एक बच्चा गुम हो गया था। उनका तो दिल ही बैठ गया था पर शुक्र है भगवान का कि बच्चा मिल गया था। बच्चा मिलने की ख़ुशी में उन्होंने नाश्ते में हलुआ बनाया था जिसका रसास्वादन बिल्ली परिवार ने भी किया।

      उधर रवि ने लक्ष्य किया कि आज की वार्ता से शुगर, ब्लड प्रेशर आदि के विषय गायब थे। चर्चा का मुख्य केन्द्र बिन्दु बिल्ली उसके तीन बच्चे और उनके प्रति माँ का स्नेहिल उत्साह। जब बिल्ली-पुराण चर्चा को थोड़ा विराम लगा तो रवि ने फोन पर बताया, "मम्मी मेरे पास भी आपके लिए एक शुभ समाचार है।" “कैसा शुभ समाचार ?, सुभद्रा ने जिज्ञासा से पूछा।

      रवि ने कहा, "मैं जिस अमेरिकन कम्पनी में काम करता हूँ वो कम्पनी अपनी इंडियन ब्रांच में मुझे परिवार सहित एक साल के डेपुटेशन पर इंडिया भेज रही है, मैं जल्दी........ रवि की पूरी बात सुने बिना ही सुभद्रा ने प्रसन्नता से पति को पुकार कर कहा, “सुनते हो जी ! अपना रवि इंडिया आ रहा है.... मैं पहले ही जानती थी बिल्ली के बच्चों का आगमन शुभ है।" चश्में से ढकी अश्रुपूरित आँखों और भर आए गले से उन्होंने हाथ जोड़कर ईश्वर को नमन की मुद्रा में कहा, "आज बिल्ली का खोया बच्चा मिला और अब इतने वर्षों बाद अपना बच्चा घर आ रहा है।"

    उस दिन देर रात तक सुभद्रा विला की लाइटस् जलती रही थी। खिड़कियों से छनकर आते प्रकाश से लॉन में खिले पिटूनिया के पुष्प जैसे मुस्करा रहे थे।

✍️ नरेश वर्मा

 बी- 13,  रक्षापुरम, रायपुर रोड 

 देहरादून 248008 

 मोबाइल फोन नंबर 99978 79975



गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा.....'सराय'


"बहु आज पिताजी आ रहे हैं मेरे । दो-चार दिन ठहरेंगे यहाँ । सुबह को जरा जल्दी उठ जाया करना। उनको पसंद नहीं बहु बेटियों का देर तक सोना । "सास लक्ष्मी देवी ने पूजा के लोटे में जल भरते हुए कहा ।

"जी, माँ जी जल्दी ही तो उठती हूँ शीरु स्कूल जाता है न .......।"

"बस बहुओं से तो जुबान लड़वा लो । "सास ने पूजा की घंटी बजाते हुए कहा । "दो चार दिन ही की तो बात है चले जाएंगे फिर ....।"

"ट्रीन....ट्रीन!"

"हेल्लो ...हाँ पापा ...नमस्ते ...क्या ससुर जी से बात कराऊँ ....हाँ अभी कराती हूँ ।"कहकर बहु ने फोन अखबार पढ़ रहे ससुर जी को थमा दिया और खुद रसोई में चली गयी ।

"अजी सुनो लक्ष्मी ..!"

"पूजा भी नहीं करने दोगे क्या ?"

"अरे समधी जी का फोन था |"

"कौन से समधी ?"

बहु के पापा का ।"

"हाँ तो क्या करूँ ?"

"आ रहे हैं कल को यहाँ अपनी छोटी बेटी के लिए लड़का देखने ।"

"तो मैं क्या बधाई गाऊँ ...घर न सराय हो गया। जब मन करता है चले आते हैं मुँह उठाये । "लक्ष्मी देवी ने सूर्यनारायण को जल का अर्ध्य देते हुए गुस्से में कहा ।

बहु के हाथ से दूध का बर्तन छूटते-छूटते बचा ।


✍️ राशि सिंह 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत 

बुधवार, 22 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ....सरकारी मीटिंग


आज सुबह ग्यारह बजे से मीटिंग थी इसलिए रवि सुबह से  फाईल दो बार पढ़ चुका था। अभी छह माह पूर्व ही उसे समाज कल्याण विभाग में अधिकारी की नियुक्ति मिली थी। नया जोश था। बहुत कुछ बदलने की इच्छा भी थी और वह इसके लिए प्रयास भी करता था। अपने कार्यालय में कई बाबुओं को वह नोटिस भी जारी कर चुका था। 

         डीएम साहब ने आज उसे मीटिंग के लिए बुलाया था। वह तैयार हो कर डीएम साहब के कार्यालय पहुंचा। पता चला साहब राउंड पर निकले हैं लगभग एक घंटे में वापसी होगी। उसे मजबूरन बैठकर इंतजार करना पड़ा।डीएम साहब ने आते ही गर्मजोशी से हाथ मिलाया और बोले,"रवि बढ़िया कर रहे हो। सब काम दुरस्त होना अच्छी बात है।"

      वह गदगद हो गया और बोला ,"सब आपका आशीर्वाद ..... मार्गदर्शन है"।

      डीएम बोले, "नियम पालन करवाओ मगर भाई, सुरेश ! अरे, वही जो प्रधान लिपिक है , मेरे गांव के नाते साला लगता है, पर जरा हल्का हाथ रखना। अब उसे कोई नोटिस जारी मत करना वरना मुझे घर में सुनने को मिलेगा" कहकर हँस दिये।वह बोला ,"जी सर "। बाहर आकर गाड़ी में फाईल पटक दी। सारी तैयारियां धरी रह गयीं। व्यक्तिगत काम को सरकारी मीटिंग में बदलना अब उसे समझ में आ रहा था। वह भारी मन से अपने आफिस की ओर चल दिया।

✍️ डॉ.श्वेता पूठिया

मुरादाबाद

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद संभल) निवासी साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम् के छह दोहे


राम कृष्ण के देश में, रामायण कमजोर।

अपराधी चौपाइयां, चोर मचाएँ शोर।। 1।।


पहले ओछी बात पर,देते थे मुंहतोड़।

राजा अब डरने लगे, या है कुछ गठजोड़।।2।।


जाति-धर्म के नाम पर, जिन्हें चाहिए वोट।

सीधी सच्ची बात में, दिखता उनको खोट।।3।।


तुलसी बाबा की करें, जो जन नीची बात।

 जनमानस की आस्था, को देते आघात।।4।।


नेत्रहीन सत्ता हुई, दरबारी सब मौन।

मानस के अपमान का, बदला लेगा कौन।।5।।


कृष्णम् भारतवर्ष में, कैसा आया वक्त।

जलती मानस और चुप, रामचंद्र के भक्त।।6।।


✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्

कुरकावली, संभल

 उत्तर प्रदेश, भारत

सोमवार, 20 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद की साहित्यिक व साॅंस्कृतिक संस्था कला भारती द्वारा 18 फरवरी 2023 को साहित्यकार योगेन्द्र पाल सिंह विश्नोई को कलाश्री सम्मान से किया गया सम्मानित, काव्य-गोष्ठी का भी हुआ आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्था कला भारती की ओर से शनिवार 18 फरवरी को आयोजित साहित्य समागम में मुरादाबाद के वरिष्ठ रचनाकार  योगेन्द्र पाल सिंह विश्नोई को कलाश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। यह आयोजन मिलन विहार स्थित आकांक्षा विद्यापीठ पर हुआ। कवयित्री पूजा राणा द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना एवं आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ के संचालन से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता बाबा संजीव आकांक्षी ने की। मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. महेश 'दिवाकर' तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में सुप्रसिद्ध नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम मंचासीन हुए। कार्यक्रम का संयोजन आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ तथा राजीव प्रखर ने किया।         

         सम्मानित रचनाकार योगेन्द्र पाल विश्नोई के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित आलेख का वाचन  डॉ. मनोज रस्तोगी एवं अर्पित मान पत्र का वाचन राजीव प्रखर द्वारा किया गया। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मनोज रस्तोगी ने श्री विश्नोई के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 15 जुलाई 1935 को जन्में योगेन्द्र पाल सिंह विश्नोई का प्रथम काव्य संग्रह आकाश भर आनंद वर्ष 2000 में प्रकाशित हुआ। इसके पश्चात उनकी तीन काव्य कृतियां मौन संदेशा,  आत्म तृप्ति और संचेतना के फूल पाठकों के समक्ष आईं। उनका संपूर्ण काव्य सृजन सत्य और ज्ञान की साधना है। उनके गीतों में मानव जीवन का यथार्थवादी चित्रण और जीवन के सुख-दुख, हर्ष विषाद आशा निराशा की सहज अभिव्यक्ति है।

      श्री योगेन्द्र पाल विश्नोई के रचनाकर्म पर अपने विचार रखते हुए मुख्य अतिथि एवं सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. महेश दिवाकर ने कहा - योगेन्द्र पाल विश्नोई जी की साहित्य साधना एवं समर्पण सभी के लिए प्रेरणा का एक स्रोत है। विपरीत परिस्थितियों में भी साहित्य व समाज के प्रति उनकी अटूट लगन एवं साधना ने उन्हें आज इस ऊॅंचाई तक पहुॅंचाया है।" 

      कार्यक्रम के द्वितीय चरण में एक काव्य कीगोष्ठी का आयोजन किया गया। काव्य पाठ करते हुए सम्मानित रचनाकार योगेन्द्र पाल विश्नोई ने कहा - 

"प्यार की कल्पना ही करो मित्रवर, 

प्यार की गंध मौसम में घुल जाएगी। 

सारे जप-जोग जीवन के जग जायेंगे, 

ऋद्धियां सिद्धियां फूल बरसायेंगी।"

 इसके अतिरिक्त राजीव प्रखर, नकुल त्यागी, आवरण अग्रवाल, राजीव प्रखर, पूजा राणा, रामसिंह निशंक, अमर सक्सेना, अभिव्यक्ति सिन्हा, राघव गुप्ता, उत्कर्ष, पद्म सिंह, योगेन्द्र वर्मा व्योम, डॉ. मनोज रस्तोगी, वीरेन्द्र ब्रजवासी, डॉ. महेश 'दिवाकर'  आदि ने अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्ति की। राजीव प्रखर द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा।