मंगलवार, 29 मार्च 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता ---उग्रवाद से फरियाद-


माई डियर उग्रवाद

बहुत करा चुके दंगे फसाद

मुझ गरीब की भी

सुन लो छोटी सी फरियाद

बेकारी,भुखमरी,गरीबी

सब समस्याओं से उबार दो

मेरे भी सीने में

एक गोली उतार दो

मेरी कई पीढ़ियों का

भविष्य सुधर जायेगा

और तुम्हारा जुनून भी

कुछ पल को उतर जायेगा

मैं मरना चाहता हूं

तुम मारना चाहते हो

फिर किस बात की देर है

समाज से मैं उपेक्षित हूं

क्या तुम्हारे यहां भी अंधेर है

तुम उग्रवाद हो

ईमानदारी से अपना धर्म निभाओ

मेरी बात मान लो

अपनी पहचान मत मिटाओ


उग्रवाद बोला

छोटा मुंह और बड़ी बात

कभी देखी है

अपनी हैसियत और औकात

जमीन पर रहते हो

और ख्वाब आसमान का

कुछ तो ख्याल करो

हमारे मान सम्मान का


मैने कहा

मुझे मार कर तो देखो

मेरी भी हैसियत बन जायेगी

कल सभी अखबारों में

मेरी फोटो आयेगी

पूरी सरकारी मशीनरी

मेरे लिए आंसू बहाएगी

मेरे परिवार के लिए

राहत पैकेज की

घोषणा की जायेगी

मेरी हत्या पर

सांसद में लंबी बहस छिड़ेगी

पूरे सत्र लगातार चलेगी

विपक्ष इस मुद्दे को लेकर

सड़क पर उतर आएगा

सरकार के द्वारा

एक आयोग

गठित कर दिया जाएगा

आयोग की रिपोर्ट

जब तक आएगी

तब तक सरकार बदल जाएगी

इसलिए मिस्टर उग्रवाद

चुप मत बैठो

कुछ बवाल करो

मेरा ना सही

नेताओं की

रोजी रोटी का तो ख्याल करो।

✍️ डॉ.पुनीत कुमार

टी 2/505 आकाश रेजीडेंसी

आदर्श कॉलोनी रोड

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मो 9837189600

शनिवार, 26 मार्च 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कविता ----'यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते'

 


मुझे गर्व है भारत की संस्कृति पर

'यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते' की धरती पर

मेरी संस्कृति सिखाती है.... 

सम्मान माँ का......

फिर......

क्यों मूर्ति रूप में ही पूजी जाती है माँ केवल?

क्यों जन्मदायिनी माँ उपेक्षित है....

और एक वय के बाद.....

मूर्तिवत बैठे रहने को अभिशप्त भी।

मेरी धरती पर...

प्रत्येक षड्मास में....

नौ दिन नौ रात होते हैं,

स्त्री के विभिन्न रूपों की उपासना के|

परन्तु यही उपासक..... 

तदुपरान्त क्यों भूल जाते हैं स्त्री की महत्ता?

पूज्य स्त्री.....

क्यों बन जाती है......

कभी दया,कभी उपहास का पात्र?

मेरी इस संस्कृतिशीला धरती पर

नवरात्र का पारायण 

कन्या पूजन से होता है|

बड़े ही भाव विवह्ल होकर

कन्या पूजी जाती है,

जिंवायी जाती है,

आमंत्रित की जाती है, 

देवी के समान

लेकिन फिर....

नैसर्गिक अवतरण भी उनका

होता है बाधित।

मिलते हैं उन्हें उम्र भर

ताने,उलाहने और बंदिशे....

और एक बोझ की तरह.....

ढोते हैं अभिभावक उन्हें|

मेरी संस्कृतिशीला धरती पर 

मुझे गर्व है और.....

अफसोस भी कि...

यहाँ मातृपूजन, देवीपूजन अथवा

कन्यापूजन के दिवस षड्मास में केवल नौ ही क्यों हैं?

क्यों.....? 

आखिर क्यों नहीं मिलता.....

इन दिवसों को.....

वर्ष पर्यन्त का सीमा विस्तार......


हेमा तिवारी भट्ट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

बुधवार, 23 मार्च 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ओर से आज बुधवार 23 मार्च 2022 को वाट्स एप पर 'शहीदों को नमन' काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी की अध्यक्षता अशोक विश्नोई ने की। मुख्य अतिथि - डॉ. प्रेमवती उपाध्याय और विशिष्ट अतिथि वीरेन्द्र सिंह 'ब्रजवासी' रहे । प्रस्तुत हैं गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों अशोक विश्नोई, डॉ. प्रेमवती उपाध्याय,वीरेन्द्र सिंह 'ब्रजवासी', योगेन्द्र वर्मा 'व्योम', डॉ. अर्चना गुप्ता, राजीव 'प्रखर', हेमा तिवारी भट्ट, मोनिका शर्मा 'मासूम', डॉ. ममता सिंह, मीनाक्षी ठाकुर, निवेदिता सक्सेना, डॉ. रीता सिंह और प्रशांत मिश्र की रचनाएं ----


जग बदलूँ संकल्प धरा है

वीरों  ने बलिदान  वरा  है

इस माटी की गन्ध बताती

सच सोने की तरह खरा है।

✍️ अशोक विश्नोई

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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राष्ट्र हित शीश बलिदान जो कर गए

उनको मेरा नमन और शत-शत नमन ।।

हँसते-हँसते लगाया गले मौत को, 

वीर बलिदानियों तुमको शत-शत नमन।।


स्वप्न आजाद भारत का मन में पला

चल पड़ा काफिला न रुका सिलसिला 

वर्ष पर वर्ष बीते शताब्दी गई 

मिटने वालों का बढ़ता गया होंसला

आततायियों के खट्टे किये दांत थे,

वीर महाराणा-सांगा को शत-शत नमन।।


कितनी वीरांगनाएं समर में लड़ी,

भाल ऊँचा किए आन पर थी अड़ी।

लक्ष्मीबाई का बलिदान भी याद है

पुत्र को बांध कटि में समर में लड़ी

आज आजाद-विस्मिल-भगतसिंह को, 

पंच प्यारों को करते हैं शत-शत नमन।।

तुमको है शत-शत नमन ।

✍️ डॉ प्रेमवती उपाध्याय

 मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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देकर  अपनी   सांस,  हमारे

जीवन  को  महकाया  तुमने

सकल गुलामी  के  बंधन  से

सबको  मुक्त  कराया  तुमने।


 तोड़ा  सब घमंड  गोरों  का

आज़ादी   के    दीवानों    ने

भरी  सभा  में करा  धमाका

भारत  माँ   की   संतानों  ने।


कफन बांधकर निकले सर पे,

प्राणों  की परवाह  नहीं   की,

आज़ादी   के   इन   वीरों   ने,

सुख वैभव की चाह नहीं की।


घोर  यातनाएं  सह  कर  भी,

भारत माता  की  जय  बोली,

टससे मस न कर सके उनको,

गोरों  के   हंटर   औ    गोली।


चूमा  फांसी   के   फंदों   को,   

राजगुरु,  सुखदेव,  भगत  ने,

वीरों  के साहस को  झुककर,

नमन किया  संपूर्ण  जगत ने।


आओ मिलकर सीस झुकाएं,

माँ  के  बलिदानी   बेटों   को,

मातृभूमि  से  दूर   रखें   सब,

गद्दारों,  किस्मत    हेटों   को।


मंत्र फूंककर  देश  भक्ति का,

दुनियां   को   चेताया   तुमने,

बड़ा   न   कोई  आजादी  से,

जन-जन को समझाया तुमने।

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत        

9719275453

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अमर शहीदों के लिए, सुबह-दोपहर-शाम

नतमस्तक इस देश का, हर पल उन्हें प्रणाम

ऋणी रहेगा उम्रभर, उनका हिन्दुस्तान

किया जिन्होंने देश पर, प्राणों को बलिदान

✍️ योगेन्द्र वर्मा व्योम

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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हँसते हँसते जान भी, अपनी की कुर्बान 

राजगुरु, सुखदेव, भगत, थे वो वीर महान

थे वो वीर महान, देश था उनको प्यारा

जिस दिन हुए शहीद, रो पड़ा था जग सारा 

कहे 'अर्चना' बात, नमन हम उनको करते

फाँसी ली थी चूम, जिन्होंने हँसते हँसते 

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आज़ादी के दीवानों को, भूल नहीं हम पाते हैं।

सोच सोच कर उस मंजर को,भर- भर आँसू आते हैं।

हँसते हँसते जानजिन्होंने,  भारत माँ पर कर डाली,

उन वीरों को श्रद्धा से हम,अपने शीश नवाते हैं।

✍️ डॉ अर्चना गुप्ता

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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दुनियां के हर सुख से बढ़कर,

मुझको प्यारे तुम पापा ।

मेरे असली चंदा-सूरज,

और सितारे तुम पापा ।

ओढ़ तिरंगा घर लौटे हो,

बहुत गर्व से कहता हूॅं।

मिटे वतन पर सीना ताने,

मगर न हारे तुम पापा।।

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लिये गीत कुछ चल पड़े, बाॅंके वीर जवान।

हॅंसते-हॅंसते कर गए, प्राणों का बलिदान।।

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लगा रही है आज भी, माटी यही पुकार।

खड़ी न होने दीजिये, नफ़रत की दीवार।।

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चाहे गूंजे आरती, चाहे लगे अज़ान।

मिलकर बोलो प्यार से, हम हैं हिन्दुस्तान।।

✍️ राजीव प्रखर

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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फिर से भगत सिंह आओ तुम।

सोते है युवा जगाओ तुम।


अंग्रेजी ज्यों शासन डोला

बारूदी फिर फैंको गोला

अलसाये सिंह उठाओ तुम।

फिर से भगत सिंह आओ तुम।


सेवा को वय मुहताज़ नहीं

बिन त्याग सफल सुकाज नहीं

मक्कारों को समझाओ तुम।

फिर से भगत सिंह आओ तुम।


जब रंगा बसंती चोला था

कपटी सिंहासन डोला था

वो इंकलाब दोहराओ तुम।

फिर से भगत सिंह आओ तुम।


दुश्मन अब नक्कारी का है

विषबेली मक्कारी का है

कैसे भी इसे हटाओ तुम।

फिर से भगत सिंह आओ तुम।


शहादत व्यर्थ न जा पाये

रग रग में खून खौल जाये

हर दिल में भगत जगाओ तुम।

फिर से भगत सिंह आओ तुम।

हेमा तिवारी भट्ट

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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राजगुरु सुखदेव भगत सिंह

आजादी  के  दीवाने  थे ,

हँसते हँसते गए फँदे पर

वे बलिदानी मसताने थे ।


इंकलाब का नारा देकर

वो नयी चेतना लाये थे

देश प्रेम की ज्योत जलाकर

सरदार वही कहलाये थे ।


नाम शिवराम हरि राजगुरू  

वेदों और ग्रन्थों के ज्ञाता ,

छापामार युद्ध शैली से

था उनका नजदीकी नाता ।


सुखदेव थापर भगत सिँह ने

संग संग दीक्षा पायी थी ,

लाजपत की हत्या के बदले

साण्डर्स की बलि चढ़ायी थी ।


साहस का पर्याय थे तीनों 

भारत माँ न भूल पाएगी

ऐसे शहीदों की कुर्बानी 

युग युग तक गायी जाएगी ।

✍️ डॉ रीता सिंह

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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नमन उस मां की ममता को जो बेटा देखकर रोई

बहन बेटी के जज़्बे को नमन जिसने खुशी खोई

कि उस पत्नी के धीरज को नमन साष्टांग है मेरा

कलाई छोड़कर जिसकी शहादत बर्फ में सोई


घाटी से संसद तक पसरा मातम है , हंगामा है 

आतंकी कातरता का फिर साक्ष बना पुलवामा है

 जिसके शब्द -शब्द को पढ़कर दहक उठे ज्वाला मन में

वीरों ने यूं खून से अपने लिखा शहादत- नामा है

✍️ मोनिका मासूम

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वतन की आन पे तो जान भी क़ुर्बान है यारो। 

क़फन गर हो तिरंगे का तो बढता मान है यारो।।


न आने देंगे इसकी शान पर हम आँच कोई भी, 

वतन के नाम से ही तो मिली पहचान है यारो।। 


रहे ऊँचा जगत में नाम मेरे देश का  हर पल, 

मिटा दूँ ज़िन्दगी इस पे यही अरमान है यारो।। 


नहीं कर पायेगा दुश्मन हमारा बाल भी बाँका, 

खुला उसको हमारा आज ये ऐलान है यारो।। 


मिटा दे इसकी हस्ती को भला किसमें है दम *ममता* ,

वतन गीता वतन मेरे लिए कुरआन है यारो।।

✍️ डाॅ ममता सिंह 

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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जय हिंद दोस्तो है ,अपना तो एक नारा,

ये देश है उसी का ,जो देश पर है वारा।


ग़म की अँधेरी बदली, छायेगी अब न फिर से,

पाया है जान देकर ,आज़ादी का नज़ारा


जीते हैं हम  वतन पर, मरते है हम वतन पर

भारत सदा रहेगा प्राणो से हमको प्यारा


दुश्मन खड़ा है हर सू, ललकारता है हमको

माँ भारती ने देखो ,हमको है फिर पुकारा


बाँधा कफन है सर से ,हमने वतन की खातिर,

देकर लहू  जिगर का,हमने इसे  सँवारा।


मरता है हिंद पर ही ,भारत का हर निवासी,

सदियो तलक रहेगा बस दौर ही हमारा।


है आरज़ू ये मेरी, तेरी ज़मी ही पाऊँ,

सातो जनम ही चाहे, आना पड़े दुबारा।

✍️ मीनाक्षी ठाकुर

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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विजय है तुम्हारी विजय है ।

 जो कर्तव्य पथ पर चलें पग संभल कर 

सफलता निसंदेह तय है ।।

विजय है तुम्हारी विजय है।।

नहीं रोक पाए नहीं तुम्हें

 प्रात और रात 

बरसात हिमपात भारी ।।           

 अलखनाद जब

 हो गया मन के भीतर,

  उठा मन में उत्पात भारी ।।

पुकारा हिमालय  शिवालय ने तुमको 

कहां कोई त्यौहार देखा ,

न देखा सिसकता हुआ 

 मां का आंचल 

न राखी भरा प्यार देखा,

 चले कंटको को 

  पुआला समझकर 

न मुड़ करके 

फिर द्वार देखा ।।

तड़पती रही खनखनाने को चूड़ी न

 भार्या का श्रृंगार देखा 

 अटल हो गई जीत की लालसा जब 

  वही दुश्मनों की प्रलय है 

विजय है तुम्हारी विजय है।।

विजय है तुम्हारी विजय है।

✍️ निवेदिता सक्सेना

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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भगत सिंह की गर्जना से 

अंग्रेजों  का सिंहासन डोला था,

जब हिन्द के वीर सपूतों ने 

 भारत माँ की जय बोला था।


लाला लाजपत का लहू देख

 खून सुखदेव का भी खौला था,

जॉन सॉन्डर्स को धूल चटाने 

निर्भीक, बहादुर ने धावा बोला था।


जश्न शहादत चुनी  बाँकुरों ने 

न ओढ़ा माफ़ी का चौला था 

राजगुरु बाइस में लाहौर सेंट्रल जेल

दोनों संग हँसकर फांसी पर झूला था। 

✍️ प्रशान्त मिश्र

राम गंगा विहार, मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत


मुरादाबाद के साहित्यकार शिशुपाल मधुकर की कविता --- भगत सिंह


ऐ, भगत सिंह

लोग कहते हैं कि

तुम्हें अंग्रेजों ने

फांसी पर चढ़ाया था

क्या यह सही है

मैं नहीं मानता

अंग्रेजों की हिम्मत ही नहीं थी कि

तुम्हें फांसी पर चढ़ा देते

वे तो तुम्हारे नाम से ही

थर -थर कांपते थे

वे तो तुम्हें छू भी नहीं सकते थे

अच्छा तुम्हीं बताओ

जब तुमने बहरे हुए अंग्रेजों के

कान खोलने के लिये

असेंबली में बम फेंका

तो क्या तुम्हें पकड़ने वाले 

अंग्रेज़ थे 

नहीं न

वे तो इसी देश के वासिन्दे थे

तुम यह भी अच्छी तरह जानते हो

कि तुम पर कोड़े बरसाने वाले

पुलिस वाले कौन थे

वे भी अंग्रेज़ नहीं थे, यहीं के

इसी देश के रहने वाले थे

तुम्हें जेल में यातना देने वाले 

कौन थे, कहाँ के थे वे, क्या नाम था उनका

इसका भी तुम्हें अच्छी तरह पता है

क्या वे अंग्रेज़ थे

नहीं न

तुम्हारे खिलाफ़ मुकदमा लड़ने वाला

वकील, इंग्लैंड से तो नहीं आया था

बताओ भगत सिंह

वह भी इसी  देश की मिट्टी का था ना

जिस देश की मिट्टी को आज़ाद कराने की

तुमने कसम खायी थी

और तुम्हें फांसी का हुक्म सुनाने वाला जज

जिसने सारे नियमों को तोड़ कर फांसी देने का षड्यंत्र रचा

कहाँ का था वह

इसी देश का था ना

जिसकी गुलामी की जंज़ीर तोड़ने के लिए

तुमने सारी सुख सुविधाओं का त्याग 

किया था

और वो जल्लाद

जिसने फांसी का लीवर खींच कर

तुम्हें मृत देह में बदल दिया था

क्या वह कहीं बाहर का था

ये वही लोग थे जिनके स्वाभिमान के लिए 

तुमने फांसी का फंदा चूमा था

पर ये लोग गुलामी की दलदल में

सुविधाओं के कमल से लिपटे हुए थे

ये वही लोग थे जो तुम्हारे सपनों के पंखों को 

नोचने के लिए अपना ज़मीर गिरवी रख चुके थे

अगर दुनिया तुम्हें महान देश भक्त कहती है तो

तुम्हारे खिलाफ़ साज़िश रचने वाले कौन हो सकते हैं

 क्या उन्हें गद्दार कहना उचित नहीं है

उन्हें जयचंद भी बुला सकते हैं

अंग्रेजों को दोष देने से ऐसे लोग 

दोषारोपण से साफ बच निकलते हैं

ये ही लोग सम्मानित और भद्र बनकर

तुम्हारे सपने को कुचलने में लिप्त थे

और उनके उत्तराधिकारी

तुम्हारी स्मृतियों को भुलाने की 

पुरजोर कोशिश में लगे हैं

उन्हें लगता है कहीं तुम 

वापिस न आ जाओ 

क्योंकि इस बार तुम वापिस आये 

तो ये बख्शे नहीं जायेंगे

यही डर उन्हें सताता रहता है

             

✍️ शिशुपाल "मधुकर "

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश

भारत

मंगलवार, 22 मार्च 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार एवं केजीके महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य स्मृतिशेष दादा प्रो.महेंद्र प्रताप जी द्वारा लिखित ललित मोहन भारद्वाज जी के मुक्तक संग्रह 'प्रतिबिम्ब' की भूमिका का अंश


'प्रतिबिम्ब' मुक्तक काव्य स्फूर्तियों का संकलन है। मुक्तक काव्य रचना का परम स्वाभाविक और प्राचीन रूप है और संसार के सभी साहित्यों में उस की सुदीर्घ और महत्वपूर्ण परम्परा मिलती है। भारतीय वाङ् मय में तो मुक्तक रचनाओं को और भी अधिक मान्यता और प्रतिष्ठा प्रदान की गई है। हमारे बहुसंख्यक वेदमन्त्र अत्यन्त सुन्दर काव्य मुक्तकों के उदाहरण हैं। संस्कृत में अष्टकों, शतकों और सप्तशतियों के रूप में ऐसे गौरवपूर्ण काव्य मुक्तकों के कितने ही संकलन पाये जाते हैं जिनकी महिमा प्रसिद्ध महाकाव्यों के समान ही मानी जाती है। लोक-प्रचलन और लोकप्रियता में तो वे किसी सीमा तक महाकाव्यों और नाटकों से भी आगे थे। 'प्राकृत सतसई', अमरुक का 'अमरु शतक', भर्तृहरि के 'शृंगार शतक', 'नीति शतक' तथा 'वैराग्य शतक तथा गोवर्द्धनाचार्य की 'आर्या सप्तशती' आदि ऐसी मुक्तक-कृतियां है जिन्हें अपने समकालीन काव्य रसिकों से भी मान मिला और जिन्हें आज भी पूरे आदर और निष्ठा के साथ स्मरण किया जाता है। हिन्दी का अधिकांश भक्ति और रीतिकालीन काव्य मुक्तकों के रूप में ही रचा गया है। कबीर, दादू, तुलसी, केशव, रहीम, बिहारी, देव, घनानन्द, आलम, बोधा, वृंद आदि कवियों की रचनाओं में प्रमुखता मुक्तकों की ही है। आधुनिक काल में भी मुक्तक के माध्यम से भारतेन्दु, रत्नाकर और हरिऔध जैसे महाकवियों ने अपार कीर्ति अर्जित की है।

     कुछ लोग कबीर, तुलसी और भारतेन्दु जैसे कवियों की पदशैली वाली काव्य रचनाओं को, प्रसाद, निराला, महादेवी आदि की आधुनिक प्रगीति रचनाओं को अंग्रेजी के शैली, कीट्स जैसे कवियों की ओडों और सानेटों को, तथा उर्दू की ग़ज़लों और गीतों को भी मुक्तकों की कोटि में ही गिनना चाहते हैं, किन्तु मेरे विचार से ऐसा करना ठीक नहीं है। बाहरी रचना की दृष्टि से मुक्तक का एक आवश्यक लक्षण यह है कि वह एक ही छन्द का होता है, चार चरणों वाले एक ही छन्द का। इस लक्षण का उल्लंघन होते ही रचना प्रकृत रूप में मुक्तक नहीं रह जाती। पद, गीत, गजल, सॉनेट आदि बहुछन्दीय रचनायें होती हैं। उन्हें शुद्ध मुक्तकों की कोटि में स्थान देने का आग्रह नहीं होना चाहिए। ऐसा करने से मुक्तक के एकछन्दीय होने का  कालातीत रूप में स्थिर लक्षण खण्डित और धूमिल हो जाता है।

      मशीनी मुद्रण के प्रचलन से पूर्व काव्य का प्रसार और आस्वादन मौखिक पाठ के माध्यम से हुआ करता था। स्मरण कर लेने और अवसर के अनुसार उद्धृत करने में सुविधा की दृष्टि से उस काल में मुक्तकों का महत्व बहुत अधिक था। पर मुक्तकों के इस गुण का महत्व आज भी किसी सीमा तक बना ही हुआ है।

    हिन्दी में मुक्तक रचना की शैली अभी कुछ समय पूर्व तक भक्ति और रीतियुगीन भाव-भूमि और शिल्प से जुड़ी हुई थी, जिसके चलते दोहाबलियों और सवैया तथा कवित्त छन्दों में लिखे मुक्तकों का प्रचलन था। पर इधर हाल में हिन्दी मुक्तकों ने उर्दू के 'कतों' का ढर्रा अपनाया है। ग़ज़ल अथवा नज्म सुनाने से पहले उर्दू के शायर 'कतों' के रूप में एकछन्दीय-मुक्तक सुनाया करते हैं। सुनने वालों पर इन 'कतों' का गहरा प्रभाव पड़ता देखा जाता है और अक्सर उर्दू के शायर इन 'कतों' के सहारे श्रोताओं में उस भावात्मकता को जाग्रत कर लेते हैं जो उनकी गजल अथवा नज्म के परिपूर्ण आस्वाद के लिये आवश्यक होती है। इन 'कतों' में अनुभूति और अभिव्यक्ति दोनों का ही निखार चरम रूप में लाने का प्रयत्न किया जाता है और इस कारण ये 'कते' बहुत ही मनोरम होते हैं।

    उर्दू की इस मुक्तक परम्परा का अनुसरण करते हुए हिन्दी में मुक्तक रचना का जो एक नया उल्लास सामने आया है, थोड़ी अवधि में ही उसकी उपलब्धियाँ बहुत विशिष्ट हो गई हैं। काव्य में रसात्मकता और संगीतात्मकता के हामी अधिकांश हिन्दी कवियों ने मुक्तक रचना के इस नये अभियान में अपना-अपना योगदान किया है। स्वीकार करना होगा कि इस नई शैली की मुक्तक रचना के शुभारम्भ और प्रचार में कवि श्री 'नीरज' के प्रयासों का विशेष महत्व है। यह जरूर है कि उर्दू भाषा और उर्दू शायरी के माहौल से बहुत अधिक प्रभावित होने के कारण श्री नीरज अपने मुक्तकों को वह रूप नहीं दे पाये जिसे उर्दू के मुक्तकों से अलग हिन्दी के मुक्तकों का अपना रूप कहा जा सकता। किन्तु हिन्दी में मुक्तक रचना को नई प्रेरणा और आयाम देने की दृष्टि से नीरज का योगदान बहुत विशिष्ट है, इसे स्वीकार करना ही होगा |

      इस नई मुक्तक रचना की कुछ अपनी विशेषताएं हैं। इन मुक्तकों में सौन्दर्य प्रेम और गहन जीवनानुभवों की मार्मिक अभिव्यक्ति होती है और उसे प्रभावशाली बनाने के लिये भाषा को लय, गति तथा छन्द का विशिष्ट सौन्दर्य प्रदान किया जाता है। मुक्तक रचना में अभिव्यंजना-सौन्दर्य पर इतना अधिक बल दिया जाता है कि कभी-कभी अनुभूति सम्बन्धी कोई विशेषता न होने पर भी मात्र अभिव्यञ्जना के सौन्दर्य के कारण ही कुछ मुक्तक सार्थक और सफल माने जाते हैं।

   'प्रतिबिम्ब' में संकलित श्री ललित भारद्वाज के ये मुक्तक हिन्दी की इसी नई मुक्तक परम्परा को आगे बढ़ाते है और उसे चिन्तन, अनुभूति तथा अभिव्यञ्जना को नई समृद्धि से मंडित करते हैं। श्री ललित की काव्य दृष्टि परम्परा प्राप्त काव्य-दृष्टि से जुड़ी हुई है और रसानुभूति तथा संगीतात्मक अभिव्यञ्जना का साथ कभी नहीं छोड़ती। मैं इसे ललित के व्यक्तित्व के स्वस्थ विकास का परिचायक मानता हूं। आस्तिकता, आध्यात्मिकता, दार्शनिकता तथा जीवन-निष्ठा के जो तत्त्व श्री ललित के इन मुक्तकों की पंक्ति-पंक्ति में अनुस्यूत हैं वे मेरे विचार से आज के विक्षुब्ध मानव की सबसे बड़ी आवश्यकताएँ हैं

रोम रोम परस करें तुझको अभिराम, 

प्राण पुलक बरस पड़े नित्य पूर्ण काम, 

मैं खड़ा रहूँ तमाम उम्र, एक पाँव, 

जो तेरे दरस मिले रोज सुबह शाम । 


साधना हूं, सिद्धि हूं, साधक स्वयं ही साध्य भी, 

नित्य आराधक रहा हूं, साथ ही आराध्य भी, 

स्वयं कृति हूं, अलंकृति हूं, विकृति भी, संस्कार भी,

 निरा बन्धनहीन हूं, लेकिन कहीं पर बाध्य भी।


नव गीतों की नव स्वर लहरी पर संचार करें, 

आगत के स्वागत द्वारा सपने साकार करें, 

हुआ अतीत व्यतीत, विसंगतियों को विजय करें, 

छोड़ो कथ्य अकथ्य पुराने, आओ प्यार करें ।


माना कि आज के जीवन में अनेक प्रकार की विषमताएँ, असंगतियाँ तथा विक्षोभकारी दबाव है किन्तु इनसे प्रभावित होकर दिव्य मानव-चेतना के वाहक और प्रकाशक कवि और कलाकार भी संत्रस्त, विक्षुब्ध और दिग्भ्रांत हो जायें इसे न मैं आवश्यक ही मानता है और न उचित ही। मुझे इस बात की गहरी खुशी है कि वर्तमान युग के अवसाद ने श्री ललित को जहां-तहां छुआ तो ज़रूर है लेकिन जीवन की मंगलमयता में उनके विश्वास को उसने कहीं भी धूमिल अथवा दुर्बल नहीं बनाया है-----

जुल्म जमाने भर के हम तुम साथ सहे तो कैसा हो ? 

अपनी अपनी राम कहानी साथ कहें तो कैसा हो ? 

लाख असंगतियाँ जीवन में एक साथ जब रह लेती

 हम यायावर तुम यायावर, साथ रहें तो कैसा हो ?


वे कभी-कभी ऐसा अनुभव जरूर करते हैं कि---


दरवाजों पर अपशकुनों के भटक रहे हैं साये 

 मुस्काने पर मजबूरी ने पहरे लाख लगाये

 जकड़ा है संत्रासित सांसों में सारा सम्वेदन, 

 भटक रहे हैं प्रतिबिंबों में बिम्ब बहुत बौराये।

किन्तु इस तरह को मानसिकता उनकी स्थिर मानसिकता नहीं  है । उनका विश्वास है कि----

जीवन अरमान मधुर, जीवन मुस्कान है,

जीवन तो जीवन का  सुमधुर सहगान है, 

जीवट से जीना ही जीवन को काम्य है, 

जीवन परमेश्वर का प्यारा वरदान है।

श्री ललित अपनी संवेदनाओं में अपने तक ही सीमित नहीं हैं, सम्भोग की तुलना में सहभोग में उनकी आस्था अधिक है। वे कहते हैं------

उपवन  का मधुसार न केवल मेरा है, 

सौरभ पर अधिकार न  केवल मेरा है,

 आओ मिलजुल कर रस पान करें हम सब,

 धरती का श्रृंगार न केवल मेरा है। 

और

अपने ही द्वार तक न फेंको उजियारा, 

दूर दूर तक देखो ढूंढो अंधियारा,

 जिस तिस की चौखट रह जाये न अंधेरी, 

 क्या जाने कोई भटका हो बनजारा ।


'प्रतिबिम्ब' में जीवन की दृष्टि से जन-जन के सहयोग और पारस्परिक सहभोग की यह स्वस्थ भावना बार-बार सामने आती है और मैं इसे ही इस रचना की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि मानता हूँ। अन्य कारणों के अतिरिक्त एक स्वस्थ जीवन-निष्ठा के सम्पर्क में आने की दृष्टि से 'प्रतिबिम्ब' के मुक्तक बारम्बार पठनीय हैं। दुरूह और दुर्गम अभिव्यञ्जना काव्य का सबसे बड़ा दुर्गुण है और श्री ललित का काव्य इस दुर्गुण से सर्वथा मुक्त है, यह मेरे लिये बड़े सन्तोष की बात है -


निखर गया आतप लो बिखर गया सोना, 

फैल गया धीरे से हर ठिठुरा कोना, 

मिट चली सवेरे की सिहरती कंपकंपी, 

जाड़े की धूप है कि गुनगुना बिछौना ।


तन खुल जाता है सो लेने के बाद, 

कुछ मिल जाता है खो देने के बाद, 

जैसे धरती का  दर्पन सावन में चमके,

मन धुल जाता है रो लेने के बाद ।


बात तो तब है कि इंगित मात्र हो सन्देश, 

बात तो तब है न मन में हो अहम् का लेश, 

बदल जाता आदमी परिवेश के अनुरूप, 

बात तो तब है बदल दे आदमी परिवेश ।


श्री ललित की सौन्दर्यानुभूति की अभिव्यक्ति में भावावेग, कल्पना और पदलालित्य का समन्वित विन्यास दर्शनीय है


तुम चितवन से नहला दो, मैं धुल जाऊँ, 

प्रिय रोम रोम, रग रग में मैं घुल जाऊँ 

अभिव्यक्ति अनुरुक्ति, भक्ति सब तुम से है, 

तुम मुझे बाँध लो प्राण ! कि मैं खुल जाऊँ ।


श्वेत श्याम अरुणिम छवि दृग में भर लाई होगी, 

अलस गात मधु स्नात, कष्ट में मुस्काई होगी, 

बद्धाञ्जलि पूजन करती तुमको देखा होगा, 

तभी कमल की रचना विधि के मन आई होगी।


धुल धुल कर  निखरा है खेतों का रूप,

बरखा में गदराए गाँवों  के कूप, 

पनघट से चिपक गई भीगी चुनरी, 

अभी अभी चुपके से नहा गई धूप


कविता के विवाद-रहित निर्मल और शाश्वत रूप में श्री ललित की अडिग निष्ठा है। वे अपने बारे में स्वयं घोषित करते हैं---

मैं न घिरा हूं कविता और अकविता के परिवेश में, 

मैं न फिरा हूँ वाद और प्रतिवादों के आवेश में

 भूखे अपने राम सहज रस-गति-सुर-गुंजित भाव के,

  शब्द-शब्द अक्षर अक्षर पावन गीतों के वेश में।


श्री ललित के काव्य में जो बात मुझे सबसे ज्यादा रुचती है वह है उन की स्वस्थ जीवन-निष्ठा और अभिव्यंजना के क्षेत्र में प्रसाद गुण-युक्त शैली को निर्मल संगीतात्मकता---


पीड़ा से परिणय स्वीकार करो तो जानें, 

अंजलियाँ भर भर विषपान करो तो जानें. 

फूलों को देख देख  हाथ सब बढ़ाते हैं,

कांटों पर पाँव रखो मुस्काओ तो जानें ।


आँखों ही आँखों में सबकुछ पी लूं

खुशियों की गोट लगा कथरी सी लूं

 एक यही अभिलाषा मन में बाकी

 मरने से पहले जी  भर  कर जी लूं ।


तुमको अर्पित सारे बसन्त मनुहारों के, 

तुम मुस्का दो फिर देखो रंग बहारों के,

 यह लो मैं आसमान को और झुकाता हूं, 

 दोनों हाथों से फूल चुनो तुम तारों के ।


दर्द भुला कर मुस्कानों से होठ सिये कोई, 

रह कर नित अनाम अमृत के घूंट,

 प्रतिभा यदि साधना पगी है तो सब सम्भव है, 

 यश मिलता है तब जब यश के हित न जिये कोई।





✍️ महेंद्र प्रताप 




सोमवार, 21 मार्च 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की रचना---कविता कभी नहीं मरती


धरने पर बैठे किसानों के तंबुओं की तरह,

नहीं होती हैं कविताएं,

कि सरकार की सख्ती और हठधर्मिता के सामने,

यूं ही उखड़ जाएं।

या फिर तूफानों में उजड़ जाएं,

जंगलों की तरह,

या जल जाएं,

घास-फूस के छप्परों सी,

घुल जाएं जहरीली हवा में,

या दब जाएं ऑफिस की फाइलों सी।

मिल जाए जैसे दूध में पानी,

और कोहरे में छिप जाए,

सूरज की तरह,

कविता कविता है,

जो कभी नहीं मरती,

दिलों पर करती है राज,

एक रानी की तरह।

कविता की कीमत, 

कीमती आदमी ही जानता है,

उस की आन-बान-शान को पहचानता है,

संस्कृति से इसका अटूट नाता है,

कविता किसी सभ्य समाज की निर्माता है।

कविता को विचारों का भूखंड चाहिए,

भाव रूपी ईटों की मजबूती चाहिए,

हो समस्या की सरियों का जाल,

कुंठा को तोड़ने वाली,

ऐसी रेती चाहिए।

फिर लगाकर सहानुभूति का सीमेंट,

मिटाया जाता है,

खुरदुरेपन का एहसास,

डाल दी जाती है, संस्कारों की छत,

और पहना दिया जाता है प्यारा-सा लिबास।

करके दुनिया का श्रंगार फिर,

दीनता का समाधान बन जाती है कविता,

और पहन संस्कृति का परिधान,

हर समस्या का निदान बन जाती है कविता।


✍️ अतुल कुमार शर्मा

 सम्भल

उत्तर प्रदेश, भारत

 मोबाइल-8273011742

शनिवार, 19 मार्च 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार के पी सिंह सरल का गीत ----रंगों की बौछार होली खेलो रे ! -------


आई फाग बहार होली  खेलो रे !                                  रंगों का त्योहार , होली खेलो रे !!                  

रंग गुलाल हाथ में ले कर  ! 

साथी सभी साथ में ले कर  !! 

ले पिचकारी चल हुरियारे  ! 

कुछ भर लाओ रंग गुब्बारे  !! 

रंग पिचकारी रखो कमर पर ! 

चली है टोली गाँव डगर पर !! 

रंगों की बौछार होली खेलो रे ! -------       

इक दूजे को रंग लगाये  ! 

कोई घर पर भंग पिलाये !! 

गली गली में धूम मची है ! 

धरती मां भी खूब रची है !! 

हवा सुरमयी फिजा रॅगमयी ! 

हरियाली फसलों पर छा गयी !!

रंगीला संसार होली खेलो रे ! -----

दिल के सारे मैल हटा कर ! 

दुश्मन को भी गले लगा कर !! 

रंग लगाओ बैर भुलाओ ! 

सब को अपने गले लगाओ !! 

हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई ! 

सब बन जाओ. भाई भाई  !! 

मिले प्यार को प्यार होली खेलो रे !

रंगों का त्यौहार होली खेलो रे !!

✍️ के पी सिंह 'सरल'

मिलन विहार

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत




गोरे गालों को किया , जब देवर ने लाल ....तो क्या हुआ बता रहे हैं मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (सम्भल) के साहित्यकार त्यागी अशोक कृष्णम्


 

मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में जकार्ता इंडोनेशिया ) निवासी वैशाली रस्तोगी के दोहे ----


 

शुक्रवार, 18 मार्च 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ ममता सिंह का गीत --- होली खेलें नन्द के लाल


 

देवर-भाभी, जीजा-साली के मंसूबे....बता रहे हैं मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज कुमार मनु


 

मुरादाबाद जनपद के बिलारी निवासी साहित्यकार नवल किशोर शर्मा नवल का गीत ---होली का त्योहार


 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की रचना ---होली आई ...होली आई


 

मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेन्द्र का गीत --खेल़ूं ऐसी होली सजन, मुख से छूटे कभी न रंग

     


      मनेगा फाग  हमारे संग,

       तुम घर आना बन ठन।

       करेंगे तुम्हें नहीं हम तंग,

       पीयेंगे बस थोड़ी भंग।।

       मनेगा फाग हमारे........

        सखियाँ आऐं घर-आंगन,

        भर-भर हाथों अपने रंग।

         मंजीरा बजता ढ़ोल मृदंग,

         मस्त हो नाचेंगे सब संग।।

          मनेगा फाग हमारे .......

         आज भीगें सब तन मन,

         प्रेम में होगा ना हुड़दंग।

         खेल़ूं ऐसी होली सजन,

         मुख से छूटे कभी न रंग।।

         मनेगा फाग हमारे.........     

         गले मिले सब प्रियजन,

         एक हुए बिखरे संबध।

         गुजिया भुजिया के संग 

          रंग-बिरंगी मंद सुगंध।।

           मनेगा फाग हमारे.......

         ✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र'

          म०नं० - 05 , लेन नं० -01  

          श्रीकृष्ण कालौनी,

           चन्द्रनगर , मुरादाबाद पिन-244001

           उत्तर प्रदेश, भारत

            मो०- 9412138808

                                 




गोरी तेरे गले लगेंगे.... कह रही हैं मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर




 

जीन्स टॉप में कौन है कैसे हो पहचान..मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल


 

ऐसा रंग चढ़ा गयो कान्हा चढ़कर जो न उतरे ...सुनिए मुरादाबाद के साहित्यकार मयंक शर्मा को


 

सजन को रंग से पूरा भिगोना आज होली है ... कह रहे हैं मुरादाबाद के साहित्यकार अखिलेश वर्मा


 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता का गीत ----खेल रहे आंखों आंखों में होली सजनी से साजन ....


 

गुरुवार, 17 मार्च 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट कह रही हैं--रंग गुलाबी साजना,हम पर दीन्हा डाल। हाय शरम से और भी, हुए गुलाबी गाल


सा रा रा रा आ गया,होली का त्योहार।

रूठे स्वजन मनाइए, जीवन है दिन चार।।

लाल रंग लेकर खड़ी,भावज घर के द्वार।

वाट्सएप पे देवरा,भेजे रंग फुहार।।

रंग वसंती तन सजा,चली छबीली नार।

हृदय सभी बस में किए,जैसे जादू डार।।

रंग गुलाबी साजना,हम पर दीन्हा डाल।

हाय शरम से और भी, हुए गुलाबी गाल।।

नीले रंग की देख के,रंगत औ' चमकार।

बच्चा-बच्चा झूमता,करे हर्ष किलकार।।

रंग बैंगनी ले लिया,जीजा ने है हाथ।

साली मुश्किल सा लगे,बचना तेरा आज।।

पीत रंग ले थाल से,अम्मा मलती भाल।

बोली सुखी रहो सदा,जुग जुग जीवो लाल।।

सतरंगी यह होलिका,रखनी हमें सँभाल।

कुत्सित मन फैंके कहीं,कालिख भीगे जाल।।

मन यदि  उजले रंग का,ग्राहक सब संसार।

हँसी -खुशी दुनिया रँगो, चोखा यह व्यापार।।


✍️हेमा तिवारी भट्ट

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार जिया जमीर का कहना है ---प्यार का रंग उसी रंग को कहते है ज़िया, रंग राधा के जो कान्हा ने लगाया हुआ है ....


 

बिल्ली कुत्ते से पट गयी लिये नौलखा हार, चुहिया हाथी से कहे मैं तुमको करती प्यार.... सुनिए होली की तरंग में क्या कह रहे हैं मुरादाबाद के साहित्यकार दुष्यन्त बाबा ...


 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ ममता सिंह के फागुनी दोहे ----चली हवा जब फागुनी, मोहक, मादक, मन्द। गोरी भी लिखने लगी, प्यार भरे फिर छन्द।।


चली हवा जब फागुनी, मोहक, मादक, मन्द। 

गोरी भी लिखने लगी, प्यार भरे फिर छन्द।।

जब बासन्ती रंग से, धरा करे श्रृंगार। 

भौंरें फिर करने लगे ,कलियों पर गुंजार ।।

मस्ती के त्यौहार पर, चढ़ जाये जब भंग। 

लगें नाचने झूम के , तब होली के रंग।।

होली का त्यौहार ये, मन में भरे उमंग। 

रोम रोम हर्षित करे, फागुन का ये संग।।

रंगों के इस पर्व पर, बाँटो जग में प्यार। 

खुशियों से झोली भरे, होली का त्यौहार।।

✍️ डाॅ ममता सिंह 

मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार योगेन्द्र वर्मा व्योम दो नवगीत --- इंद्रधनुष से रंग ... और..... होली का अनुवाद


 

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी के होली के रंगों में रंगे दोहे ---होली की ये मस्तियां, अद्भुत इनके सीन। मीठी-मीठी भाभियां,दीख रहीं रंगीन।।



होली मन से खेल ली,खिलकर आया खेल।

ऊपर हैं सकुचाहटें , भीतर चलती रेल।


तन मन होली खेलते, निकले इतनी दूर।

वापस मन लौटा नहीं, कोशिश की भरपूर।।


मठरी बर्फ़ी सेब की,रही न तब औकात।

गुझिया जब करने लगी,मथे दही से बात।।


उसने उसके रंग दिए, रंग में सारे गात।

तुम पर पत्थर फिर पड़े,दिन से बोली रात।।


हाथों के सौभाग्य ने, मसले रंग गुलाल।

अधर फड़कते रह गए,लगी न उनकी ताल।।


होली है त्योहार भी,जीने का भी मंत्र।

बचे नहीं यदि प्रेम तो,भटके सारा तंत्र।।


होली की ये मस्तियां, अद्भुत इनके सीन।

मीठी-मीठी भाभियां,दीख रहीं रंगीन।।


भाभी के हों भाव या, फिर देवर के राग।

होली रंग पवित्र हैं, नहीं छोड़ते दाग।।


रंग चढ़ों के सामने,फीके सब पकवान।

रिश्तों की सब गालियां, होली का मिष्ठान।।

✍️ डॉ मक्खन मुरादाबादी

झ-28, नवीन नगर
कांठ रोड, मुरादाबाद
पिनकोड: 244001
मोबाइल: 9319086769
ईमेल: makkhan.moradabadi@gmail.com

आज धरती से गगन तक है रँगा ....कह रहे हैं मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार

 


आज धरती से  गगन  तक है रँगा ,

वस्त्र क्या तन  और मन तक है रँगा !


रात रंगों की हुई बरसात है ,

और रंगों से रँगा हर गात है ,

रंग का उत्सव मनाने के लिए

रात ने अंतिम चरण तक है रँगा !!


पीत सरसों ने बजाई दुंद्वभी ,

खिल उठे हैं विविध रँग के फूल भी 

विविध रंगों से सकल बसुधा सजी

देखिए वातावरण तक है रँगा !!


प्रेम जीवन में सभी के हम भरें ,

प्रेममय संपूर्ण मानवता करें,

प्रेममय जग को बनाने के लिए

इस धरा ने आचरण तक है रँगा !!


✍️ ओंकार सिंह 'ओंकार'

1-बी-241 बुद्धि विहार , मझोला ,

मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश ) 244103

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का मुक्तक , कुंडलियां और चुनावी दोहे


हर तरफ मस्ती भरा हर वृद्ध हो हर बाल हो

रंग से पीला-गुलाबी हर स्वजन का गाल हो

रह न जाए कोई भी माधुर्य के मधु - भाव से

हाथ में पिचकारियाँ हों , रंग और गुलाल हो

---------------------------------------------------

(1)

पिचकारी  जितनी  भरी ,उतनी छोड़े रंग

धार किसी की दूर तक ,रह जाते सब दंग

रह जाते  सब  दंग , किसी  ने गाढ़ा पोता

रहता  रंग अनूप , न हल्का किंचित होता

कहते रवि कविराय ,खेल लो होली प्यारी

दो दिन का त्यौहार ,रंग दो दिन पिचकारी

(2)

राधा  जी   हैं   खेलतीं ,  होली  कान्हा  संग 

दिव्य अलौकिक दृश्य यह ,यह परिदृश्य अनंग

यह  परिदृश्य  अनंग , रंग पिचकारी वाला

दिखता पीत गुलाल ,न जाने किसने डाला

कहते रवि कविराय, हटी युग-युग की बाधा

मिले  प्राण  से प्राण , श्याम से मिलतीं राधा 

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(1)

योगी-मोदी का जमा ,ऐसा बढ़िया रंग

सभी विपक्षी रह गए ,देख-देख कर दंग

(2)

बुलडोजर बाबा हुए ,बाइस के अवतार

अगले अब सौ साल तक ,इनकी ही सरकार

 (3)

राहुल बाबा हो गए ,पूरे अंतर्ध्यान 

कांग्रेस का ढूँढ़ते ,सब जन नाम-निशान 

 (4)

हुई प्रियंका वाड्रा ,ऐसे बंटाधार 

दो की संख्या रह गई ,छोटा शुभ परिवार

 (5)

मायावती प्रसन्न हैं ,आया तो है एक 

यूपी में अच्छी मिली ,यह भी मुश्किल टेक 

  (6)

ठुकराया तुष्टीकरण ,समझो श्री अखिलेश

समझ अपर्णा ने लिया ,सही-सही परिवेश

(7)

झाड़ू है पंजाब में , नायक हैं श्री मान 

दिल्ली में अब क्या लिखा ,किसे भाग्य का ज्ञान 

(8)

जीते यूपी चल दिए , मोदी जी गुजरात

इनकी किस्मत में लिखा ,भाषण बस दिन-रात 


✍️ रवि प्रकाश 

बाजार सर्राफा

रामपुर (उत्तर प्रदेश)

 *मोबाइल 99976 15451*

मुरादाबाद के साहित्यकार चन्द्रहास कुमार हर्ष की रचना ----अवीर गुलाल मैंने , गोरे गोरी को लगाया ,



आओ चले लौट चलें , जवानी की ओर ।

स्वस्थ रहें मस्त रहें  चलो खूब करे शोर ।।

नित नित जीवन मे ,  नई नई उमंग हो ,

खुशियों के पन्ने पर ,  नए नए रंग हो ।

चंचल है मन मेरा , देख चांदनी चकोर ,

स्वस्थ रहें मस्त रहें ,   चलो खूब करे शोर ।।

फागुन के मास में , मस्ती का रंग चढ़ा ,

साथ ले ले साजना , मेरी और हाथ बढ़ा ।

पीतांबरी अवनी पर , नाचे वासंती मोर ।।

स्वस्थ रहें मस्त रहें , चलो खूब करे शोर ।।

अवीर गुलाल मैंने , गोरे गोरी को लगाया ,

सब कुछ भूल गया, अपने को जाने कहां पाया।

मैं तो सारा हो गया , रंग से सराबोर ,

स्वस्थ रहें मस्त रहें , चलो खूब करे शोर ।।

धूमधाम से सदा , मनाओ अपनी होली ,

कड़वी ना बात करो , बोलो मीठी मीठी बोली ।

शुभ हो बधाई "हर्ष" , खुशी फैले चहुओर ,

स्वस्थ रहें मस्त रहें ,चलो खूब करे शोर ।।

           

 ✍️  चन्द्रहास कुमार "हर्ष"

       मुरादाबाद ,उ. प्र.भारत

कोई कवयित्री तुम्हारे गले नहीं पड़ेगी... सुना रहे हैं मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल


 

रस्ता तेरा देख रही है जाने कब से....सुनिए मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर को ....


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का हास्य-व्यंग्य -- अपमान समारोह


महोदय

होली के उपलक्ष्य में एक अपमान – समारोह का आयोजन किया जा रहा है , जिसमें आप अपमान सहित आमंत्रित हैं । समारोह निर्धारित समय के कम से कम दो घंटे बाद शुरू होगा । लेकिन आपको अगर अपमानित होना है ,तो समय से कम से कम पंद्रह मिनट पहले आकर स्टूल पर बैठना पड़ेगा । जब आपका नंबर आएगा ,तब आप लाइन में लगिए और मंच पर जाकर अपना अपमान – पत्र ग्रहण कर लीजिए । अगर आने में आपने देर की या लाइन में ढंग से नहीं लगे ,तो फिर उसी समय आपका नाम अपमानित होने वाले व्यक्तियों की सूची से काट दिया जाएगा ।

फूलों की माला कम बजट के कारण छोटी रखी गई है । अगर आपके गले में आ जाए तो पहन लेना वरना ज्यादा नखरे दिखाने की जरूरत नहीं है । हाथ में लेकर काम चला लेना ।

शाल मँहगा है। चालीस रुपए में आजकल नहीं मिल रहा है। वैसे भी आपने अपमानित होने के लिए जो सुविधा- शुल्क दिया है ,वह इतना कम है कि उसमें शाल तो छोड़िए, रुमाल भी कहाँ से खरीद कर लाया जा सकता है !

आपका कोई प्रशस्ति पत्र पढ़कर नहीं सुनाया जाएगा ,क्योंकि आपके जीवन में ऐसा कुछ है ही नहीं, जिसे समाज के सामने प्रेरणा के तौर पर रखा जा सके या आपकी तारीफ की जा सके।आपको भी यह बात पता ही है तथा आप जानते हैं कि आपको अपमानित केवल जुगाड़बाजी के आधार पर किया जा रहा है ।अपमान- पत्र के साथ आपको चार सौ बीस रुपए का चेक भेंट किया जाएगा । यह चेक उसी दशा में दिया जाएगा ,जब आप आयोजकों को पहले से रुपए नगद पेमेंट कर देंगे ।

नोट : अगर मोटी धनराशि का सुविधा शुल्क देने के लिए कोई तैयार हो और पहले से पेमेंट करे तो हाथों-हाथ उसका भी अपमान- समारोह में अपमान कर दिया जाएगा।

निवेदक : अपमान समारोह समिति 

✍️ रवि प्रकाश 

बाजार सर्राफा

रामपुर (उत्तर प्रदेश), भारत

*मोबाइल 999 7615 451*


सोमवार, 14 मार्च 2022

मुरादाबाद की संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति द्वारा 14 मार्च 2022 को काव्य गोष्ठी का आयोजन

राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति मुरादाबाद द्वारा मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन जंभेश्वर धर्मशाला मुरादाबाद में सोमवार 14 मार्च 2022 को संरक्षक योगेंद्र पाल सिंह विश्नोई के संयोजन में संपन्न हुआ।

 गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने कहा --

किसी ने पाती लिख दी मौसम के नाम

 मतवारे टेसू ने घोला कैसा मतवारा रंग 

 लग रहा सारा उपवन सुलग उठा अंग अंग 

 मुख्य अतिथि वीरेंद्र सिंह ब्रजवासी ने कहा ---

 दानवता की भोर हो गई मानवता की शाम हो गई।

मन को अधिक रुलाने वाली, मानव की पहचान हो गई।

विशिष्ट अतिथि डॉ महेश दिवाकर ने कहा ----

राजनीति का विषय काल है 

नेताओं का इंद्रजाल है। 

आजादी अब सिसक रही है 

भारत मां का झुका भाल है।

विशिष्ट अतिथि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा ---

होली के पावन पर्व पर 

आओ सब मिल गीत गाये

भेदभाव और छुआछूत भूल 

एक सूत्र में सब बंध जाए।

संचालन करते हुए अशोक विद्रोही ने कहा----

होली तो है देश के, त्योहारों की जान

रंग डालो एक रंग में, पूरा हिंदुस्तान।

कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा ---

पतझड़ का पीलापन सोखें,

हरियाली की शाख बढ़ाएँ।

 दिन के उजलेपन में शामिल,

 स्याह रात के दाग़ मिटाएँ। 

 रखे रहें न केवल कर में,

 मन के तन पर रच बस जाएँ।

  रंग जो जल से कभी धुले न,

  आओ ऐसे रंग लगाएँ।

रामसिंह निशंक ने कहा --

आई है होली आई है होली

युवकों को मस्ती छाई है। 

बच्चों को होली भाई है।

बूढ़े मस्ती में नाच उठे, 

भंग की पीकर ठंडाई है।

राजीव प्रखर ने कहा -----

आहत बरसों से पड़ा, रंगों में अनुराग।

आओ टेसू लौट कर, बुला रहा है फाग।।

रघुराज सिंह निश्चल ने कहा -

बसंती वातावरण, है हर ओर हुलास। 

होली का त्यौहार है, रहना नहीं उदास।।

योगेन्द्र पाल सिंह विश्नोई ने कहा ---

सादगी से सोचिए,हल बहुत आसान है।

जीवन हजारों जन्म के पुण्य का वरदान है।।

इन्दु  रानी ने कहा ---

होली में लिख डारे मन ने गीत नए हैं साथिया, 

आस मिलन की जगी है मन में रीत नए हैं साथिया।

गोष्ठी में रमेश चंद गुप्त भी उपस्थित रहे।
















:::::::प्रस्तुति :;;::;;

अशोक विद्रोही 

उपाध्यक्ष

राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति

 मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत