राशिद हुसैन लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
राशिद हुसैन लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 6 जुलाई 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार राशिद हुसैन की कहानी ......किट्टू

 


आज घर में खाना नहीं बना था। घर के सभी लोग उदास थे, खामोश थे। सब एक दूसरे का चेहरा देख रहे थे। कोई कुछ बोलता तो सिर्फ किट्टू का ही ज़िक्र करता उसी की बातें करता। आज हमारा किट्टू दूर बहुत दूर चला गया था। वह कम समय में ही परिवार का सदस्य बन गया था। सभी के साथ खेलता और सभी उससे प्यार करते थे। आज घर में सन्नाटा सा छाया हुआ था। कोई परिचित या संबंधी सांत्वना देने भी नहीं आया।

 मैं कभी घर में कोई भी पालतू जानवर या पक्षी पालने के पक्ष में नहीं रहा। एक दिन बच्चे अपनी बुआ के घर से एक बिल्ली का बच्चा जो मात्र डेढ़ माह का था, ले आए। उसका नाम किट्टू रखा गया मुझे उस समय काफी बुरा लगा लेकिन बच्चों की मोहब्बत के आगे मैं कुछ कह न सका। धीरे-धीरे वक्त गुजरने लगा। बच्चे किट्टू के साथ बहुत खुश रहते और किट्टू उनके साथ उछल–कूद करता रहता। मैं किट्टू से थोड़ा अलग- थलग ही रहता। मैं जब सुबह ऑफिस के लिए घर से निकलता तो किट्टू मेरे पीछे -पीछे छोटे -छोटे कदमों से दरवाजे तक आता जब मैं घर से बाहर निकल जाता तो वह लौट जाता। शाम को जब मैं ऑफिस से घर लौटता तो किट्टू मुझे बड़ी मासूम नज़रों से देखता, जब घर में टहलता तो वह घर की लॉबी के कोने में जहां उसके सोने बैठने के लिए एक छोटे गद्दे का इंतजाम किया गया था और टेडी बियर बॉल और कुछ खिलौने दे दिए गए थे उनसे  खेलता रहता था। वहां बैठकर मुझे गर्दन घुमा कर देखता रहता। यह सिलसिला यूं ही चलता रहा। एक दिन जब शाम को मैं ऑफिस से घर लौटा तो किट्टू मेरे पैरों में आकर लिपट गया इससे पहले कि मैं छुड़ाने की कोशिश करता वह प्यार करने लगा । मैं हतप्रभ  उसे देखता रहा और कुछ न कह सका फिर थोड़ी देर बाद उसने मुझे छोड़ा और अपनी जगह जाकर बैठ गया। बच्चों को तो जैसे खिलौना मिल गया था वह उसके साथ खूब खेलते उसे गोद में उठाए_ उठाए फिरते सुबह  जब स्कूल जाते तो उससे खेल कर जाते जब स्कूल से आते तो फिर उस में लगे रहते मैं इस बात से संतुष्ट था थी चलो बच्चों को मोबाइल देखने की लत से छुटकारा मिला। बच्चों को पढ़ाई के बाद जितना भी समय मिलता वह किट्टू के साथ गुजारते। किट्टू अब बड़ा होने लगा था और पूरे घर में उछल कूद करता रहता उसकी शरारतें अब दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थी।

    एक दिन देर रात को बहुत तेज आंधी बारिश होने लगी और बिजली चमकने लगी सभी लोग सोए हुए थे तब ही बादलों की तेज गरज से मेरी आंख खुल गई मैं उठा और अपने कमरे से बाहर आकर  देखा तो किट्टू लॉबी के एक कोने में डरा सहमा हुआ बैठा था वह मुझे देखकर म्याऊं- म्याऊं करने लगा। मुझे लगा कि वह डर गया है और मुझसे कुछ कहना चाह रहा है। मैंने उसको उठाया और अपने कमरे में ले गया जहां वह बारिश रुक जाने और बादलों की गरज बिजली की गड़गड़ाहट समाप्त हो जाने तक वहीं रहा उसके बाद बाहर आकर अपनी जगह लेट कर सो गया।

घर की लॉबी के एक कोने में जहां किट्टू का बिस्तर खिलौने रखे थे वहीं पर उसके खाने के लिए एक प्लेट और दूध पीने के लिए कटोरी और पानी पीने के लिए एक छोटा लोटा रख दिया गया था। घर में सुबह सबसे पहले जो उठता किट्टू उसको देखकर म्याऊं- म्याऊं करने लगता और अपने खाने-पीने के बर्तनों की तरफ इशारा करता। हम समझ जाते उसको भूख लगी है और खाने को दे देते उसके लिए फिक्र से कैट फूड बाजार से लाकर रखे जाते वह अपना खाना खाकर शांत हो जाता।

एक दिन रात को मैं अपने बिस्तर पर लेटा सोने की कोशिश कर रहा था और नींद का कहीं अता पता नहीं था। मैं करवटें बदल रहा था उस दिन मां की बहुत याद आ रही थी। उनकी कभी ना पूरी होने वाली कमी का बहुत एहसास हो रहा था अचानक मुझे ख्याल आया कि जब मेरी मां इस दुनिया ए फानी से रुखसत हुई थी तब मेरी उम्र पैंतीस साल थी। मुझे एकदम ध्यान आया अरे हमारा किट्टू तो मात्र डेढ़ माह का ही था जब वह अपनी मां से जुदा हुआ। यह सोच कर मेरा दिल भर आया और उसके लिए मन में प्यार उमड़ने लगा और सोचने लगा अब तो हमारा परिवार ही उसका परिवार है। उसका ख्याल हमें ही रखना है ।उसको प्यार की जरूरत है। मैं जो उस से हटा बचा रहता था अब मेरे मन में उसके लिए प्रेम उमड़ आया अब मैं ऑफिस जाते और आते समय उसको देखता बातें करता यहां तक की ऑफिस से घर को फोन करके किट्टू की खैरियत लेता रहता। रात घर आने पर अब किट्टू मेरी गोद में आकर काफी देर तक बैठ जाता।

वक्त गुजर रहा था और यह सिलसिला यूं ही चलता रहा। किट्टू भी अब बड़ा हो गया था। अब उसकी इच्छा बाहर इधर-उधर घूमने की होती तो वह अक्सर छत पर चला जाता वहां छत से होते हुए पड़ोसियों के घर भी चला जाता। सभी पड़ोसी जान गए थे की वह हमारे घर का किट्टू है। किट्टू घर में रहे बाहर सड़क पर न निकले इसके लिए हमेशा घर का मुख्य द्वार बंद रखते लेकिन एक दिन बे ध्यानी से घर का मुख्य द्वार खुला रह गया और किट्टू घर से बाहर चला गया इसी बीच गली के कुत्तों ने उस पर हमला कर दिया । उसकी आवाज सुन मैं बाहर निकला, कुत्तों से उसे छुड़ाया तब तक वह किट्टू को काफी जख्मी कर चुके थे। किट्टू लहूलुहान था वह मेरे पैरों पर आया, सिर रखा और हल्की आवाज से एक बार म्याऊं की आवाज निकाली और हमेशा के लिए सो गया। मैंने उसे उठाया फिर एक कपड़े में रखकर नदी के किनारे ले गया जहां गड्ढा खोदकर उसे दबा दिया। जब मैं उसे दबा कर लौट रहा था तब मेरी आंखों में आंसू थे। घर आकर सबसे पहले मैंने बहुत सख्त लहजे में ताकीद की अब  इस घर में कोई किट्टू नहीं लाया जाएगा क्योंकि जब कोई किट्टू हमेशा के लिए चला जाता है तब उसके जाने का गम भी इंसानों के जाने के गम के बराबर ही होता है।

✍️ इंजीनियर राशिद हुसैन

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मंगलवार, 20 जून 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ. कृष्णकुमार ’नाज़’ के ग़ज़ल संग्रह ’दिये से दिया जलाते हुए’ की इंजी. राशिद हुसैन द्वारा की गई समीक्षा .…..समाज को आईना दिखाती ग़ज़लें

      सरज़मीने-लखनऊ में जन्मे मशहूर व मारूफ़ शायर जनाब कृष्णबिहारी ’नूर’ जिनको अदब की दुनिया में इज्ज़तदाराना मुक़ाम हासिल है। वो जब किसी मुशायरे में मंचासीन होते, तो ऐसा लगता था, मानो पूरा लखनऊ मंच पर बैठा हो।उन्होंने अपने जीवनकाल में कई शिष्य बनाए या यूं कहें कि उनका शिष्य बनकर युवा शायर खु़द पर फ़ख्र महसूस करता था। नूर साहब की एक बहुत ही मशहूर ग़ज़ल है, जिसमें उन्होंने पूरी ज़िंदगी का फ़लसफ़ा बयान कर दिया है, उसका एक शेर यूं है-

ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं

और क्या जुर्म है पता ही नहीं

यह शेर सीधे दिल पर दस्तक देता है। सामाजिक परिवेश को बड़ी खू़बसूरती से अपने शेरों में कह देने का हुनर रखने वाले जनाब कृष्णबिहारी ’नूर’ की अदब की रोशनी की किरण जब मुरादाबाद पर पड़ी, तो एक नाम सामने आया- डॉ. कृष्णकुमार ’नाज़’ जिनकी लेखनी पर नाज़ किया जा सकता है। कृष्णकुमार ’नाज’ का जन्म मुरादाबाद से चंद मील दूर कुरी रवाना गांव में हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा वहीं हुई। उसके बाद उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए जब वह शहर आए तो यहीं के होकर रह गए। जीविका की खोज में कब साहित्य से प्रेम हुआ, पता ही नहीं चला और उसमें रमते चले गए। उनकी साहित्यिक  यात्रा आज भी बदस्तूर जारी है। यूं तो नाज़ साहब की कई किताबें मंजरे-आम पर आ चुकी हैं और वह अपनी लेखनी का लोहा मनवा चुके हैं। अभी हाल ही में उनका ताज़ा ग़ज़ल-संग्रह ’दिये से दिया जलाते हुए’ का विमोचन हुआ, जिसका मैं भी साक्षी बना।

      आइए बात करते हैं नाज़ साहब के नये ग़ज़ल-संग्रह ’दिये से दिया जलाते हुए’ की। नाम ही पूरे संग्रह का सार है, क्योंकि नूर साहब के शागिर्द हैं तो नाज़ साहब ने भी अपने शेरों के ज़रिए समाज को आईना दिखाया है। नाज़ साहब परिपक्व ग़ज़लकार हैं। वैसे तो उन्होंने भी अपनी ग़ज़लों में इश्क़ और मुहब्बत की बात की है, लेकिन उनकी शायरी में समाज में फैली विसंगतियों पर चिंतन ज़्यादा नज़र आता है। बचपन से लेकर जवानी और बुढ़ापे तक का जीवन दर्शन भी उनकी ग़ज़लों में मिलता है। जैसा कि किताब का शीर्षक ’दिये से दिया जलाते हुए’ अपने आप में बहुत कुछ कह जाता है।

आइए शुरूआत बचपन से करते हैं, जब वो किसी बच्चे को हंसता हुआ देखते हैं, तो शेर यूं कहते हैं-

बच्चा है ख़ुश कि तितली ने रक्खा है उसका ध्यान

तितली भी ख़ुश कि नन्हीं हथेली है मेज़बान

फिर वो बचपन को याद करते हुए अपनी चाहत का इज़हार कुछ यूं करते हैं-

ज़हन का हुक्म है मुझको कि मैं दुनिया हो जाऊं

और दिल चाह रहा है कोई बच्चा हो जाऊं

नाज़ साहब ने जब बचपन की बात की, तो मां की ममता का ज़िक्र भी बड़ी ईमानदारी से अपनी ग़ज़ल में कर दिया। उन्हें मां की ममता कुछ इस तरह से बयां की है कि पढ़ने-सुनने वाले का दिल भर आए-

कलियां, फूल, सितारे, शबनम, जाने क्या-क्या चूम लिया

जब मैंने बांहों में भरकर उसका माथा चूम लिया

दुनिया के रिश्ते-नातों की नज़रें थी धन दौलत पर

लेकिन मां ने बढ़कर अपना राजदुलारा चूम लिया

कोई शायर इश्क़-मुहब्बत और हुस्न की बात न करे, ये हो नहीं सकता। नाज़ साहब ने भी अपनी ग़ज़लों में इश्क़ में डूबे आशिक़ के दिल के जज़्बात को बड़ी ख़ूबसूरती से कह दिया है-

जबसे देखा है तेरे हुस्न की रानाई को

जी रही हैं मेरी आंखें तेरी अंगड़ाई को

+   +

आंखों से उनकी जाम पिए जा रहा हूं मैं

क्या ख़ूब ज़िंदगी है जिए जा रहा हूं मैं

उन्होंने आज के नौजवानों की हक़ीक़त को दिखाता क्या ख़ूब शेर कहा है-

हमने यूं भी वक़्त गुज़ारा मस्ती में याराने में

जब जी चाहा घर से निकले बैठ गए मयखाने में

जब मुहब्बत होती है तो बेवफ़ाई भी होती है, जुदाई भी होती है और यादें भी होती हैं, तनहाई भी होती है। प्यार में चोट खाए इंसान के दिल के दर्द को बड़े सलीके़ से अपनी शायराना अंदाज में कहते हैं-

बुझा-बुझा रहता है अक्सर 

चिड़ियों की चहकार भी अब तो

शोर शराबा सी लगती है 

जाने दिल की क्या मर्जी है।

+   +

दूर है मुझसे बहुत दूर है वो शख्स मगर

बावजूद इसके कभी आंख से ओझल न हुआ

+   +

ख्वाब मेरा जो कभी आपको छू आया था

अब उसी ख्वाब की तस्वीर बनाने दीजे

एक पिता मुफ़लिसी के दौर में अपने बच्चों का किस तरह लालन-पालन करता है, इस शेर को देखें-

एक बूढ़े बाप के कांधों पे सारे घर का बोझ

किस क़दर मजबूर है ये मुफ़लिसी की ज़िंदगी

और फिर वही बच्चे बड़े होकर नाफ़रमान हो जाते हैं। तब मां-बाप की बेबसी यूं बयां होती है-

बेटों ने तो हथिया लिए घर के सभी कमरे

मां-बाप को टूटा हुआ दालान मिला है

आज के समय में जब रिश्तों में मुहब्बत की कमी हो गई है, तब नाज़ साहब ने रिश्ते निभाने के लिए समर्पण को अहमियत दी है। वो कहते हैं-

सिमट जाते हैं मेरे पांव ख़ुद ही

मैं जब रिश्तों की चादर तानता हूं

+   +

उससे हार के ख़ुद को बेहतर पाता हूं

लेकिन जीत के शर्मिंदा हो जाता हूं

आज इक्कीसवीं सदी में थोड़ा-सा पैसा किसी के पास आ जाए तो उसके पैर ज़मीन पर नहीं पड़ते। ऐसे मग़रूर के लिए लिखते हैं-

सरफिरी आंधी का थोड़ा-सा सहारा क्या मिला

धूल को इंसान के सर तक उछलना आ गया

शायर आने वाले वक़्त में हालात और क्या हो सकते हैं, उसकी फ़िक्र करते हुए लिखते हैं-

कभी अंधेरे, कभी रोशनी में आते हुए

में चल रहा हूं वजूद अपना आज़माते हुए

कौन करेगा हिफ़ाज़त अब इनकी मेरे बाद

ये सोचता हूं दिये से दिया जलाते हुए

इसी संग्रह की एक ग़ज़ल जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया, उसके लिए क्या लिखूं, मेरे पास शब्द नहीं हैं। बस एक बात समझ आई कि नाज़ साहब ने यह साबित कर दिया कि वो ही नूर साहब के सच्चे और पक्के शागिर्द हैं। उस ग़ज़ल के ये दो शेर प्रस्तुत हैं-

पेड़ जो खोखले पुराने हैं

अब परिंदों के आशियाने हैं

जिंदगी तेरे पास क्या है बता

मौत के पास तो बहाने हैं

नाज़ साहब का यह ग़ज़ल-संग्रह पूरा जहान समेटे हुए है। यह समाज के हर पहलू को बड़ी ख़ूबसूरती से उकेरते हुए एक मुकम्मल किताब लगती है।  इसको पढ़कर ऐसा महसूस होता है कि इसे बार-बार पढ़ा जाए।





कृति : दिये से दिया जलाते हुए (ग़ज़ल संग्रह)

ग़ज़लकार : डॉ. कृष्णकुमार ’नाज़’

प्रकाशक : गुंजन प्रकाशन, मुरादाबाद

मूल्य : 200 रुपये पृष्ठ : 104 हार्ड बाउंड

संस्करण : वर्ष 2023


समीक्षक
: इंजी. राशिद हुसैन

मकान नंबर 4, ढाल वाली गली,मुहल्ला बाग गुलाब राय, नागफनी,मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत 

रविवार, 22 अगस्त 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार राशिद हुसैन की रचना ----हां मैं इंसान हूं....

 


हां मैं इंसान हूं,  मैं परेशान हूं।

जिंदगी तुझे देखकर हैरान हूं।।


वो जो कहते हैं जी मुस्कुराया करो।

अपने दिल को न यूं तुम सताया करो।।

कैसे कह दूं कि मन से मैं वीरान हूं।

खुशियों से अभी मैं अनजान हूं।।

                   हां मैं इंसान हूं.....


रोज़ी रोटी की है हरदम जुस्तजू यहां।

तन पे कपड़ा भी रखना है बेशक सफा।।

घर में बर्तन हैं खाली और मेहमान हैं।

ये सब जानकर भी मैं अनजान हूं।।

                   हां मैं इंसान हूं.....


उम्र कट रही है ऐसे सिसकते हुए।

बंद मुट्ठी से रेत जैसे फिसलते हुए।।

मेरे मालिक तू ही मेरा निगहबान है।

तेरा बंदा हूं और साहिबे ईमान हूं।।

                 हां मैं इंसान हूं.....

✍️ राशिद हुसैन, मुरादाबाद

गुरुवार, 15 जुलाई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार राशिद हुसैन की कहानी ---वो कौन थी

जाड़ों की सर्द हवाएं चल रही थी रात के लगभग दो  बज चुके थे थोड़ी-थोड़ी देर बाद कुत्तों के भौंकने की आवाजें सन्नाटे को चीर रही थी अरुण जो अभी ऐसे बैठा था जैसे अभी शाम ही हुई हो। उसकी टेबल पर कुछ कोरे कागज बिखरे पड़े थे। साथ ही शराब से आधा भरा गिलास रखा था अरुण अपनी उंगलियों में दबे पेन से सर को खुजा रहा था बीच-बीच में गिलास उठा कर घूंट भर लेता लेकिन बहुत कोशिश करने के बाद भी वह आज कुछ लिख नहीं पा रहा था। इसी बीच अरुण के नौकर बहादुर जिसे वह अपने साथ पहाड़ों से लेकर आया था और अब उसी के साथ रहता था दबी आवाज मे कहा साहब खाना लग गया है। अरुण ने उसकी तरफ ऐसे देखा जैसे अभी-अभी वह कहीं बाहर से आया हो और अभी रुकने का इशारा किया इस पर बहादुर विनर्म मुद्रा में साहब चार बार खाना गर्म कर चुका हूं अगर आप नहीं खाएंगे फिर ठंडा हो जाएगा इस पर  अरुण चुप रहा और ये कहकर बहादुर वहां से चला गया।

फरवरी माह की आज वही तारीख जिस दिन नीलिमा अरुण से पहली बार मिली थी बहुत कोशिश करने के बाद भी वो उसको भुला नहीं पा रहा था और बीती जिंदगी के ख्यालों में खोता चला गया।

बचपन से प्राकृतिक सौंदर्य का प्रेमी को जब पहली नौकरी का सौभाग्य प्राप्त हुआ तो वह बहुत खुश था। लेकिन जब पहली पोस्टिंग ही उत्तराखंड के पहाड़ों में बसा सुंदर शहर अल्मोड़ा में मिली तब उसकी खुशी का ठिकाना ही ना रहा। अरुण ने जल्द ही अपनी पैकिंग की और कंक्रीट के जंगल एवं भागदौड़ से भरी जिंदगी से भरे शहर दिल्ली को अलविदा कहकर अल्मोड़ा चला गया।

अरुण ने अल्मोड़ा में नौकरी ज्वाइन करने के साथ ही पहाड़ों की सुंदरता को निहारने की अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए समय निकालना शुरू कर दिया वह छुट्टी के दिन अक्सर कभी रानीखेत कभी बिनसर कभी कौसानी तो कभी बागेश्वर घूमने चला जाता। कार्य दिवस में भी वह साइट और ऑफिस के काम निपटा कर अल्मोड़ा में ही दूर एक सुनसान पहाड़ की चोटी पर जाकर बैठ जाता और वहां से खूबसूरत शहर को निहारता रहता।

फरवरी की नर्म धूप में एक दिन अरुण उसी चोटी पर बैठा था दोपहर हो चुकी थी तभी पीछे से किसी की आहट हुई और कुछ ही देर में एक परछाई उस पर पड़ी वह कुछ घबरा गया उसके दिल की धड़कनें तेज हो गई तब एक सुरीली आवाज ने कुछ इत्मीनान दिया जब तक उसके सामने पहाड़ी वेशभूषा में एक खूबसूरत लड़की आ चुकी थी। शहर में आप  अभी नए आए हैं साहब जी अरुण हकला गया हां ___क्या नाम है आपका जी जी _____अरुण और आपका और उन्हें खुद को संयम करते हुए पूछा नीलिमा_ नीलिमा रावत ओह बहुत सुंदर नाम है आपकी तरह वह मुस्कुरा कर चली गई। अरुण उसकी सुंदरता को देखता ही रह गया। और साप्ताहिक छुट्टी का इंतजार करने लगा की एक बार फिर मुलाकात हो जाए और सप्ताह भर बाद फिर उसकी मुलाकात हो ही गई फिर यह सिलसिला चलता रहा। दोनों के दिल में कब प्यार के अंकुर फूट गए पता ही नहीं चला। एक दिन नीलिमा रोती हुई अरुण से मिली और परिवार में झगड़े की बात कहते हुए सीधे शादी की बात कर डाली

 अरुण को जैसे इस दिन का बेसब्री से इंतजार था। प्यार में पागल अरुण ने ना ही नीलिमा के परिवार के बारे में जाना और ना ही अपने माता पिता से इजाजत लेना मुनासिब समझा। ऑफिस में काम करने वाले बुजुर्ग रहमान भाई जिनकी सभी इज्ज़त करते थे और अरुण भी अपनी हर बात उनसे साझा करता था उनके लाख समझाने के बावजूद भी अरुण ने मंदिर में जाकर नीलिमा से शादी रचा ली।

समय बीतता गया अरुण और नीलिमा का उस दिन खुशी का कोई ठिकाना ना रहा जिस दिन उनके घर मे औलाद के रूप में पुत्र का जन्म हुआ। अब उनके आंगन में भी बेटे की किलकारियां गूंजने लगी थी और उनका जीवन पहले से भी ज्यादा खुशगवार हो गया था। दोनों का जीवन सुकून से गुज़र  रहा था।

अल्मोड़ा में अरुण के अब कई यार दोस्त भी बन गए थे। एक दिन शाम को अरुण अपने मित्रों के साथ बैठा गपशप कर रहा था दारू के  गिलास छलकाए जा रहे थे। सभी मित्र अपनी_ अपनी गुजरी बातें कर रहे थे। माहौल रंगीन था। एक ने कहा रात देर से घर  पहुंचने पर खाना नहीं मिला तो दूसरा बोला रात पत्नी ने दरवाजा ही नहीं खोला तब रात संजय के घर बितानी पड़ी तब तीसरे ने कहा यार यह बातें तो रोज होती रहती हैं तीनों की बातें सुनकर अरुण मुस्कुराया और बोला मेरी शादी को दो 2 साल हो गए हैं लेकिन मैं जब भी घर पहुंचता हूं पहली ही नॉक पर दरवाजा खुल जाता है और खाना भी ऐसा गर्म मिलता है जैसे अभी_ अभी ताजा बना हो। सभी यार दोस्त ताज्जुब से अरुण की ओर देखने लगे और कहा एक बार भी ऐसा नहीं हुआ हम नहीं मानते हां_ हां यही सच है सभी मित्र अचंभित फिर उनमें से एक ने कहा आज रात तुम दरवाजा खटखटा कर खिड़की से झांकना फिर देखना यह सब क्या है ? अरुण ने उस रात न चाहते हुए भी मित्रों की बात मानी और देर रात घर गया। ठंड का मौसम था उसने देखा कि नीलिमा सामने कमरे में जो लगभग मेन गेट से बीस 20 फुट की दूरी पर था बेड पर लेटी बेटे को थपकी देकर  सुला रही थी जैसे ही अरुण ने नॉक किया नीलिमा ने वहीं से हाथ बढ़ाया और दरवाजा खोल दिया इतने किवाड़ खुलते वह अंदर आया तो वह किचन में थी जब अरुण हाथ धोकर बेडरूम में पहुंचा तो गर्म खाना लगा था जबकि हाथ धोने में मुश्किल से एक 1 मिनट भी नहीं लगा होगा! यह सब देख वह थोड़ा घबरा गया फिर हिम्मत जुटाते हुए अरुण ने नीलिमा से पूछ ही लिया कौन हो तुम.? वह बोली आपकी पत्नी वह तो मैं भी जानता हूं मगर तुम हो कौन? नीलिमा भी अब समझ चुकी थी कि मेरा राज़ फाश हो चुका है। नीलिमा ने आंखों से छलकते अपने आंसुओं को रोक कर खुद को संभालते हुए कहा आपकी तरह हम भी भगवान की बनाई इस कायनात का हिस्सा हैं। अरुण ने फिर कहा लेकिन तुम हो कौन? नीलिमा के चेहरे पर अब कठोर भाव थे मैं बताना जरूरी नहीं समझती आप बस इतना जान लो कि कोई है दुनिया में जो तुमसे प्यार करता है और हमेशा करता रहेगा । इतना कहकर वह हमारे बेटे को गोद में लेकर चल पड़ी अरुण चाहते हुए भी उसको रोक नहीं पाया। आधी रात के अंधेरे में धीरे _धीरे वह घूम होती चली गई। इस बात को को गुजरे हुए बीस 20 साल हो चुके हैं मगर उसकी पायल की छम _छम की आवाज आज भी अरुण के कानों में गूंजती हैं।

अरुण का अल्मोड़ा में रहना अब मुश्किल हो चुका था।

अब अरुण अमर प्रेम की निशानी के रूप में दुनिया भर में मशहूर ताज नगरी यानी आगरा में आकर बस गया। वह यहां रहते हुए आज भी अक्सर ताजमहल का दीदार  करते हुए नीलिमा के अक्स को तलाशने की नाकाम कोशिश करता है।  चिड़ियों की चहचहाहट से अरुण खयालों की खुमारी से जब बेदार हुआ और खिड़की से झांक कर देखने लगा सुबह हो चुकी थी। फिर उसने अपने घर में चारों तरफ नगर घुमाई नौकर बहादुर ड्राइंग रूम के सोफे से लगकर फर्श पर बैठा खर्राटे भर रहा था ।अरुण की  आंखों में भी नींद की खुमारी छा चुकी थी वह चुपचाप अपने बेड पर लेट कर सो गया।

✍️  इंजीनियर राशिद हुसैन, मुरादाबाद


गुरुवार, 1 अप्रैल 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार राशिद हुसैन की कहानी ---- भिखारी की बेटी


अक्सर मैं शाम को अपने घर के बाहर सड़क किनारे परचून की दुकान पर खड़ा हो जाता था रोज ही एक आंखों से माज़ूर भिखारी  एक दस साल की लड़की के कांधे पर हाथ धरे भीख मांगता वहां से गुजरता। वह कभी-कभी सामने की ओर सड़क किनारे थोड़ी देर के लिए बैठ भी जाया करता और  फिर कुछ देर के बाद वहां से चला जाता। मैं यह मंजर लगभग हर  रोज ही देखता ।एक दिन जब वह बैठने के लिए झुक रहा था तब उसके साथ रहती छोटी लड़की ने हल्की हंसी के साथ कुछ कहा जिसे सुनकर भिखारी काफी ज़ोर से खिलखिला उठा और फिर  कुछ कहते हुए बैठ गया। यह माजरा देखकर मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि ऐसी कौन सी खुशी की बात थी जिसे सुनकर गिड़गिड़ा कर भीख मांगने वाले से बिना हंसे रहा नहीं गया। कहीं, यह हंसी व्यंगात्मक तो नहीं ?

 समीना ओ समीना भिखारी अपनी दस साल की मासूम बेटी को आवाज देते हुए बड़बड़ाया।  शाम हो गई है, इसका अभी तक पता नहींं? हर वक़्त जाने कहां  खेलती फिरती है ? भिखारी हाथ मेंं डंडा लेकर चारपाई से उठा और झोली ढूंढने की कोशिश करने लगा तब ही उलझे हुए बाल जिनमेंं छोटी-छोटी दो चोटियां बंधी थी। मैला सिलवटे पड़ा सलवार और बड़ा सा कुर्ता पहने दौड़ती हुई समीना आ गई ।आने के बाद समीना ने घिसी हुई रबड़ की दो पट्टियों वाली चप्पल चारपाई के नीचे से निकाल कर पहन ली। दिन ढल चुका था। हल्की ठंड होने लगी थी। ठंड से बचने के लिए उसने एक मैली से शॉल जो कई जगह से फटी थी। सर से इस तरह से ओढ़े कि उसका आधा शरीर ढक गया। बेटी के आने की आहट से अंधा भिखारी नाराज़ होते हुए फिर बड़बड़ाया। तुझे पता नहींं है शाम हो गई है अब हमें सवाल करने जाना होता है तू जानती है मैं देख नही सकता इसलिए तुझे साथ रखता हूँ सहमती हुई समीना ने खूंटी पर टंगी झोली उतारी और भिखारी के कंधे पर डाल दी फिर उसकी लाठी पकड़ आगे-आगे चलने लगी। भिखारी अल्लाह के नाम पर मोहताज को देते चलो बाबा ...कहता आगे बढ़ने लगा। कुछ दूर निकलने के बाद तू चुप क्यों है बेटी ? कुछ नहींं अब्बा जी समीना ने हल्के से कहा। लगता है तुझे गुस्सा आ गया मैं तो बस यूं ही कह रहा था एक तो बेटी तेरे सिवा मेरा इस दुनिया मेंं है ही कौन इसलिए मुझे हर वक़्त तेरी फिक्र लगी रहती है ।और अब रात और सुबह के खाने का इंतज़ाम भी तो करना है तुझे पता है बेटी मेरे सीने मैं कई दिनों से बड़ा दर्द है । मैं सोच रहा था कुछ पैसे इकट्ठे हो जाएं तो किसी अच्छे डॉक्टर को दिखा कर दवाई ले लूं । दर्द की बात सुनकर समीना से रहा नहींं गया वो बोल उठी अब्बा हम कल ही डॉक्टर को दिखाएंगे मैं जो पैसे गुड़िया खरीदने के लिए जोड़ रही हूं उन्ही पैसों से आपकी दवाई लेंगे समीना की बात सुनकर भिखारी का दिल भर आया और भर्राई आवाज़ से नहींं-नहींं बेटी इतना दर्द नहींं जो सहन न कर पाऊं कुछ दिन में पैसे जमा कर दवाई ले लेंगे।

कुछ देर की खामोशी के बाद भिखारी ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा अच्छा समीना तू आजकल कई दिनों से कहां खेलने चली जाती है?जो मेरे आवाज़ देने के बाद भी देर से आती है।जब समीना ने अपने अब्बा को साधारण होते हुए देखा तो वो चहकते हुए बोली सीमा आंटी के घर चली जाती हूँ वहां ,क्यों?  वो मालदार लोग है बेटी, वहां मत जाया करो ।भिखारी ने नसीहत करते हुए कहा फिर कुछ देर के लिए दोनों खामोश हो गए । अच्छा चल बता वंहा तू क्यों जाती है ? अब्बा उनकी लड़की मेरे बराबर की है न उसके पापा इसी हफ्ते दुबई से आये हैं। वो उसके लिए एक बहुत खूबसूरत सेलो वाली गुड़िया लाये हैं, जो हंसती भी है और रोती भी है । मैं उसके साथ उस गुड़िया से खेलती रहती हूं। सेलो वाली गुड़िया ये कैसी होती है ? भिखारी ने अचरज से पूछा समीना फिर जल्दी-जल्दी गुड़िया के बारे में बताती चली गई और जब रुकी तो अरमान भारी नज़रो से अपने अब्बा को देखते हुए ऐसी ही गुड़िया खरीदने की ख्वाहिश भी ज़ाहिर कर दी । बेटी की फरमाइश सुनकर भिखारी ने ठंडी सांस ली और कहा बेटी वो तो बहुत महंगी होगी हम कैसे खरीदेंगे ? यह सुनकर समीना फिर बोली तीन सौ रुपये की है। यंहा बाजार मे भी मिल जाएगी सीमा आंटी बात रही थीं। ये तो बहुत पैसे हैं कैसे इकट्ठा होंगे भिखारी ने असमर्थता जताते हुए कहा तभी समीना कह उठी अब्बा मेरी मिट्टी की गुल्लक मैं बहुत पैसे हैं उसे तोड़ कर देखेंगे जितने काम होंगे आप दे देना ।यह सुनकर भिखारी अपनी बेबसी पर लरज़ गया और सोचने लगा काश वह अपनी बच्ची को वो गुड़िया दिला पाता वो सोचने लगा उसको क्या मालूम उसकी गुल्लक मैं कितने पैसे हैं ? और फिर जितना मिलता है उससे तो दो वक़्त की रूखी-सूखी रोटी का ही इंतेज़ाम हो पाता है । अल्लाह के नाम पर भीख मांगने वाले किसी से खिलोने की ख्वाहिश भी तो ज़ाहिर नही कर सकते और ना ही झूठ बोलकर भीख मांग सकता। ये सब बातें वो काफी देर तक सोचता रहा। कुछ ही देर मैं उसके चेहरे पर चमक लौटी और कहा ठीक है हम थोड़े-थोड़े पैसे बचाकर कुछ दिनों मै गुड़िया ज़रूर खरीद लेंगे। यह बात सुनकर समीना खुश हो गई कई हफ़्तों की जद्दोजहद के बाद वो दिन आ गया जब भिखारी ने कुछ रुपयों का इंतज़ाम कर लिया लेकिन अभी भी कई रुपये की कमी थी जो पैसे पूरे करने के लिए समीना ने अपनी दो साल पुरानी गुल्लक तोड़ दी। 

गुड़िया खरीद कर समीना बहुत खुश थी लेकिन भिखारी की खुशी के साथ उसके सीने का दर्द भी बढ़ता जा रहा था किसी अनहोनी के डर से वह बेचैन था फिर भी वह खुश था । समीना अब हर वक़्त गुड़िया से खेलती रहती। रात को भी वह उसे अपने पास रखकर सोती ।समीना को उस बेजान खिलौने से इतना प्यार हो गया था कि वह उसका अपने से ज़्यादा ख्याल रखती।

जिसको पाने की तमन्ना मैं समीना दिन रात लगी रहती वो चीज़ पाने के बाद उसकी खुशी का कोई ठिकाना नही था। लेकिन अफसोस वो खुशी आज काफूर हो गई थी समीना की आंखों से बहते आँसू किसी के भी दिल को पिघलाने के लिए काफ़ी थे अन्धे भिखारी के कानों में सुनाई पड़ रही समीना की सिसकियाँ भिखारी के दिल पर नस्तर की तरह चुभ रही थीं और वह बेबस ज़ख्मी परिन्दे की मानिंद तड़प रहा था क्योंकि आज भिखारी की कोठरी की कच्ची दीवार में बने ताख से अचानक गुड़िया गिरकर टूट गई ।आज समीना बहुत रोई थी। मैं आज भी अक्सर वहीं सड़क किनारे खड़ा हो जाता हूँ लेकिन उसके बाद वह भिखारी कभी दिखाई नहींं दिया।

✍️ राशिद हुसैन, मोहल्ला बाग गुलाब राय, ढाल वाली गली झारखंडी मंदिर के पास थाना नागफनी, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, मोबाइल फोन नंबर- 9105355786




शनिवार, 26 दिसंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार राशिद हुसैन की कहानी----------मुरझा गया कमल

     


मैं नैनीताल हूं मेरी भुजाएं हरे भरे वृक्षों लदे पहाड हैं। मेरे सीने पर एक बड़ी सुंदर झील है मेरे मौसम की खुशगवारी पूरी दुनिया में मशहूर है। उत्तराखंड के पहाड़ों पर बसा हूं मैं। मेरा हुस्न देखने हर साल लाखों सैलानी आते हैं ।झील में तैरती बत्तखों की काफ काफ करती आवाज़ और  पानी पर तैरती छोटी छोटी किस्तियाँ मेरी ख़ूबसूरती में चार चांद लगा देती हैं। जो भी सैलानी मुझे देखने आता है वह आनंदित होकर मेरी तारीफ करके चला जाता है पर आज तक मेरे दर्द को  कोई भी नहीं जान पाया क्योंकि हर इंसान उसे देख कर भी अनदेखा कर देता है।

जाड़ा लग कर चढ़ रहे तेज़ बुखार से कंपकपाते कमल को उसकी माँ राजवती फटे कम्बल से ढके उसके सर को अपनी गोद मे रख कर दबा रही थी पर कमल की करराहट लगातार बढ़ती जा रही थी एक तो तेज़ बुखार ऊपर से पेट में भूख की आग ने कमल की तड़प और बढ़ा दी थी।राजवती के पेट में भी पिछले दो दिन से अन्न का दाना नहीं गया था लेकिन कमल की तकलीफ ने राजवती की भूख की शिद्दत को कम कर दिया था। उसके आंसू बेटे के दर्द और कर्रआहट को बर्दाश्त नही कर पा रहे थे।मजबूर राजो अपनी झोपड़ी से बाहर निकलने को सरकारी हुक्म का इंतज़ार कर रही थी। एक- एक पल राजो को महीनों से लग रहा था। काफी देर के बाद कमल को अब हल्की बेहोशी छाने लगी थी पर राजवती की बेचैनी और बढ़ रही थी। वह सोच रही थी कि पति की मौत के बाद कमल ही एकमात्र उस का सहारा है अगर उसे कुछ हो गया तो क्या होगा ? कैसे कटेगी जिंदगी मुझे तो कई -कई दिन गुजर जाते हैं मजदूरी नहीं मिलती किसी दिन मजदूरी मिल जाए तो दो-तीन दिन की रोटी का इंतजाम हो जाता है । मेरा कमल तो रोज ही झील किनारे गांव के कई और बच्चों की तरह चाय के ठेले पर काम करके और दूर दराज से  नैनीताल घूमने आए  लोगों के इर्द- गिर्द  घूमकर अपने और मेरे खाने, कपड़े का इंतजाम कर लेता है । फिर सोचने लगी अगर वह असमय काल के गाल मैं न समाते हम दोनों अपने कमल को खूब पढ़ाते और फ़ौज मैं भेजते मगर नियति को यही मंज़ूर था।एक दिन पहाड़ की कटाई का काम करते हुए उनके ऊपर एक बड़ा पत्थर आ गिरा और वो हमेशा के लिए----- हड़बड़ा उठी राजो उसने फिर कमल को देखा जो अभी भी तेज बुखार मैं तप रहा था। राजो फिर भगवान से प्रार्थना करने लगी हे भगवान अगर मेरे कमल को कुछ हो गया तो मै ये ग़म बर्दाश्त नही कर पाउंगी तू मुझे भी उठा लेना।

दिन ढल चुका था रात गहराने लगी थी राजो फिर सोचने लगी कल भी हमे अपने घरों मैं ही कैद रहना होगा क्योंकि कल ही तो आ रहे हैं राजा जी अब मै क्या करूँ? मेरा कमल यही सोचते हुए झटके से उठ खड़ी हुई राजो और पड़ोस की झोपड़ी में इस इरादे से गई शायद वँहा कुछ खाने को मिल जाये लेकिन वँहा भी कुछ नही मिला।वापस आकर फिर कमल को गोर से देखने लगी उसके चेहरे पर अब सख्त भाव उभरने लगे थे। राजो ने निष्चय किया सुबह होते ही वह कमल को सरकारी अस्पताल ज़रूर ले जायगी चाहे पुलिस पकड़ कर उसे जेल मे ही क्यों न डाल दे।

राजो ओ राजो ले एक भुट्टा बोरी मैं पड़ा मिल गया परसो बिकने से रह गया था अपने कमल को खिला दे पेट मे कुछ जाएगा तो अच्छा रहेगा राजो के पास आते हुए पड़ोसी विमला ने कहा फिर दोनों आपस मे बातें करने लगी तुझे पता है राजो पूरी झील की सफाई हुई है राजो ने विमला की तरफ देखा और चुप रही विमला फिर बोलने लगी पूरे पन्द्रह दिन हो गए हैं तैयारियां चलते हुए बड़े बड़े अफसर यंहा डेरा डाले है। एक एक होटल की चेकिंग की जा रही है घर- घर जाकर रिस्तेदारी में आये मेहमानों को भी चेक किया जा रहा है उनकी पूरी जांच पड़ताल हो रही है। किस्तियाँ चलाने वाले निजी आदमियों को हटा दिया गया है सब पर सरकारी मुलाज़िम बैठेंगे पूरे  नैनीताल का  ट्रैफिक बंद रहेगा शहर को आने जाने वाले सारे रास्तों पर पुलिस रहेगी आज से परसों तक के लिए कोई भी सेलानी नैनीताल में प्रवेश नहीं करेगा और सुना है पेड़ों पर खुफ़िया कैमरे भी लगे हैं सादी वर्दी मैं पुलिस वाले पूरे शहर मे घूम रहे हैं। हर दुकान और स्टाल पर सादी वर्दी मैं पुलिस लगी है हम तो गरीब मजदूर है हमें तीन दिन पहले ही घरों में कैद कर दिया बताओ हम भला क्या किसी को मारेंगे? हम क्या किसी को नुकसान पहुंचाएंगे ? विमला ने एक लंबी सांस ली और फिर बोलने लगी जैसा सरकार का हुकुम अरे राजो मैं बोले जा रही हूं तुझे बोलने का मौका ही नहीं दिया तू सुबह को कमल को अस्पताल कैसे लेकर जाएगी ?हम यहां ऊपर पहाड़ों के गांव में रहते हैं और अस्पताल तो नीचे शहर के बीच में बना है अपने गांव में तो कोई वैध जी भी नहीं है बहुत देर बाद राजो की चुप्पी टूटी आखिर आ क्यों रहे हैं? ऐसे मेहमान राजा जो हम गरीबो के घर से निकलने पर भी पाबंदी लगा दी गयी है । चाहे कोई किसी हाल में हो विमला जवाब देते हुए बोली तुझे पता है कोन आ रहे हैं? राजो ने प्रश्नचिन्ह नज़रो से विमला की तरफ देखा जो बोले जा रही थी दुनिया की सबसे बड़ी ताकत वाले देश के राजा हैं क्या मतलब? राजो ने कहा हां अमेरिका के राष्ट्रपति है हिन्दुस्तान आये हुए हैं दौरे पर जाने क्या सूझी नैनीताल घूमने का इरादा बना लिया सुना है उन्हें यंहा के मौसम और  प्राकृतिक सुंदरता के बारे में यहां के एक आदमी  जो अमेरिका में व्हाइट हाउस में नौकरी करते हैं उन्होंने बता रखा है तभी तो उनकी इच्छा यहां आने की हुई है बस दो घंटे रहेंगे नैनीताल फिर चले जायेंगे सिर्फ दो घंटों के लिए इतनी तैयारियां अचंभित होते हुए राजो ने कहा विमला ने उत्तर दिया अरे पगली अमेरिका बहुत पैसे वाला देश है वहां के राष्ट्रपति जी का तो खूब आदर सत्कार करना ही पड़ेगा क्या पता खूश होकर हमारे मुल्क के साथ कोनसा सौदा कर जाएं जो भविष्य मे देश के लिए हितकर हो इस बार राजो गुस्से से तमतमा गई और बोली क्या गरीबी मिट सकती है हमारी ? ये तो भगवान ही जाने विमला ने कहा कुछ देर खामोश रही दोनो फिर चुप्पी तोड़ती हुई विमला बोली अच्छा राजो रात बहुत हो गई है ठंड भी बढ़ने लगी है मैं चलती हूं हां जब कमल की आँख खुले तो ये भुट्टा ज़रूर खिला देना अच्छा रहेगा ये कहते हुए विमला चली गयी।

राजो उठी और कमल के पास जाकर उसे देखा जो अभी भी बेहोशी की हालत मैं था ।राजो ने उसका सर अपनी गोद मे रखा और दीवार से पीठ लगा कर बैठ गयी और सुबह होने का इंतज़ार करने लगी । जैसे जैसे रात गहराती जा रही थी वैसे वैसे उसकी बेचेनी बढ़ रही थी । राजो देर तक इस कशमकश मैं थी कि सुबह होने पर वह कमल को अस्पताल कैसे लेकर जाएगी ? तभी कमल ने कपकपाती आवाज़ से पानी- पानी पुकारा राजो ने पास मैं रखे गिलास को उठाया और गोद मे लेटे कमल पिलाने लगी अब उसने निश्चय कर लिया कि वह सुबह होते ही कमल को अस्पताल लेकर ज़रूर जाएगी ।

काफी रात बीत चुकी थी बैठे बैठे राजो की आँखों में भी हल्की नींद की ख़ुमारी छा गई जो सहर मैं मुर्गे की पहली बान के साथ हठी । राजो ने हड़बड़ा कर इधर उधर देखा फिर अपने कमल को देखने लगी कुछ देर पहले जो शरीर तेज़ बुखार के कारण तप रहा था वह अब ठंडा पड़ा था कमल अब कभी न जागने वाली गहरी नींद सो चुका था राजो ने कई बार अपने जिगर के टुकड़े को पुकारा उठ जा कमल उठ जा कमल लेकिन कमल नही उठा क्योंकि अब वो इस दुनिया में नही था। कल तक खूबसूरत फूल की तरह खिला कमल सूरज की पहली किरण पड़ने से पहले ही मुरझा गया था।

✍️ राशिद हुसैन 

मोहल्ला बाग गुलाब राय,ढाल वाली गली झारखंडी मंदिर के पास थाना नागफनी, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश,भारत

मोबाइल फोन नंबर-9105355786