शनिवार, 31 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी वर्मा की कविता ---- नर और नारी की जंग


 नर व नारी की जंग हो गई

 कौन है श्रेष्ठ बात दबंग हो गई

 नर ने अपनी बात रखी सारी

 नारी है कमजोर अबला बेचारी

 तूने ना जिंदगी नर के बिना गुजारी

 हर पल लेना पड़ा तुझे नर का ही सहारा

 हरदम है मिला तुझे नर का ही साया 

तेरी कहानी तुझ पर ही खत्म हो चली

 नारी फिर कैसे नर से श्रेष्ठ हो गई

 पूरा काल से अब तक 

ना तू अपने दम पर खड़ी हो सकी

 फिर क्यों कहती है तू नर से भी बड़ी हो चली

 मांग में सिंदूर जो हमारे नाम का सजा

 तभी तेरा अस्तित्व है कायम हुआ

 मां बनने का एहसास भी तुझे नर से ही मिला

 तभी तेरा जीवन है खुशियों से खिला

 अरे समाज में हर पहचान तुझे नर से है मिली

 नाम ही काफी है नर का फिर कैसे तू बड़ी हो चली

नारी ने उत्तर दिया जनाब का 

वेद पुराण गवाह है हर बात का

 नारी के हर दुख हर एहसास का

 जगत जननी मां दुर्गा के स्वरूप का

 आगे जिसके हाथ जोड़ देवता आए थे सभी 

कर दो देवी रक्षा द्वार तेरे देव खड़े सभी

 मां दुर्गा ने काली रूप में  संहार मचाया था 

देवताओं को भी पापी दैत्यों से बचाया था

 सभी देवों की शक्ति का रूप है नारी 

नहीं कोई कमजोर अबला बेचारी

 नर की कुंठित मानसिकता का शिकार है नारी 

नर है सर्वोपरि ऐसी अहंकारी प्रवृत्ति की मारी 

आज नर इस तरह गिर चुका है

 नारी को पल-पल कुचल रहा है

 अपना अस्तित्व बचाने को जैसे

 नारी से हर पल लड़ रहा है

 इसीलिए हर गली मोहल्ले में

 नारी की इज्जत का जैसे जनाजा निकल रहा है

नर क्या रक्षा करेगा नारी की अस्मिता की

 जिसको फिक्र है तो सिर्फ अपने अस्तित्व की 

नर होने पर गौरवान्वित हो जाता है 

फिर क्यों नारी की अस्मिता का तमाशा बनाता है

 अपने अहम की आग में स्वयं ही जल रहा है नर

 मैं हूं बड़ा कह कह कर नारी को डस रहा है नर

 नारी तो शब्द भी नर से बड़ा है

 पर इस पर भी नारी को गुमान कहां है 

कोख में नौ महीने रखती है बालक नारी

 नर को हो जाए जरा तकलीफ तो हिला दे दुनिया सारी

 नारी ना होती तो मां का आंचल पाते ही कैसे

 नारी ना होती तो गिर कर संभल पाते ही कैसे

 नारी ना होती तो जिंदगी को समझ पाते ही कैसे

 नारी ना होती तो नर कहलाते ही कैसे

 फिर कहती हूं है नर

 नारी नहीं कमजोर अबला बेचारी

 वह तो दया प्रेम ममता की मूरत है प्यारी 

दुनिया का बोझ उठाए पृथ्वी है नारी

 दुनिया को सुकून दे जाए वह हवा है प्यारी 

पर नर ना समझ पाएगा इसे 

वह स्वयं अपने अहम की आग में जले

 ऊंचा उठेगा उस दिन नर जरूर

 टूटेगा जिस दिन नर होने का गुरुर

 सीख लेगा जिस दिन नारी का करना सम्मान 

हे नर तू हो जाएगा उस ईश्वर से भी महान।


✍️ मीनाक्षी वर्मा, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश ।

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की रचना -----बिखरी शरद चाँदनी चहुँ ओर , झूमें राधा नंदकिशोर


बिखरी शरद चाँदनी चहुँ ओर

झूमें राधा नंदकिशोर

आनंदित है सकल ब्रजमंडल

रास रचायें सब चित्तचोर ।

गोपी ग्वाले रस रंग डूबें

धुन वंशी की करे विभोर 

सुर छिड़े हैं जब प्रेम राग के

नाचे सबके ही मन मोर ।

चन्द्र किरणें खेल जल थल में 

लुभा रही हैं वे बहु जोर 

श्वेत रूप में सजी वसुंधरा

मनहु चाँद से मिली चकोर ।

✍️ डॉ रीता सिंह, मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की कविता ----मैं पुलिस हूं । उनकी यह कविता आध्यात्मिक साहित्यिक काव्यधारा ई पत्रिका के प्रवेशांक 2020 में प्रकाशित हुई थी ।




 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की रचना -----


शरद 

पूर्णिमा रात 

अमृत बरसाता चाँद 

आती उनकी 

याद 


चाँद 

तूँ मेरा 

पहुँचा दें  संदेश 

पिया रहते 

परदेश 


रोती

विरह में 

सजनी उनकी,नीर 

नयनों से 

बहाती 

✍️ प्रीति चौधरी , गजरौला,अमरोहा

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार रेखा रानी का गीत----आज शरद की रात ओ प्रियतम आ जाना


आज शरद की रात ओ प्रियतम आ जाना ।

सूने मन के निधिवन में सजीले मोहन

श्याम तू रास रचा जाना।।

जाने कबसे ए मोहन नीरस सी पड़ी है वेणु,

गुमसुम सी हो गई है तेरी अब श्यामा धेनु।

वही कदंब,की डाल तू तान सुना जाना।

जाने कब से यह विरहन मिलने की बाट निहारे।

जन्मों जन्मोंं की प्यासी और मन पर प्रीत संवारे।

एक झलक बस एक बूंद नैनों से श्याम पिला जाना।

आज शरद की धवल चांदनी तेरी बाट निहारे।

नखत गगन के व्याकुल होकर लुका छिपी खेलें सारे।

श्याम निभाने रीत प्रीत की भोर से पहले आ जाना।c

मुझ जोगन ने तेरे प्यार में लोक लाज विसराई है।

तन मन तेरे प्यार में डूबा प्रीत अनोखी पाई है । ।

रेखा जोगन हुई स्याम की आज दरस दिखला जाना। आज.........

✍️रेखा रानी, गजरौला

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की चार लघुकथाएं ---गैंगरेप


1.

 'भैया जी,मिठाई खिलाइए,आपके लिए बहुत अच्छी खबर लाया हूं।" चंदू दौड़ते हुए आकर,वेदप्रकाश जी से बोला।

"कौन सी खबर,जल्दी बता।" वेदप्रकाश जी ने उत्सुकता से पूछा।

"बस्ती में एक दलित लड़की का गैंग रैप के बाद मर्डर हो गया है"चंदू ने हांफते हुए बताया।

    "अरे,ये तो मिठाई नहीं,दावत वाली खबर है गैंगरेप, हत्या, दलित लड़की,क्या कमाल का समीकरण है।तूने हमारी सारी चिन्ता दूर कर दी।अगला चुनाव अब इसी मुद्दे पर लड़ा जायेगा।" वेदप्रकाश जी हंसते हुए बोले और चंदू को गले से लगा लिया।

2.

सुरेश की बड़े बाजार में जनरल आइटम्स की दुकान थी।आज सुबह से चार ग्राहक मोमबत्ती खरीद कर ले जा चुके थे।जब पांचवे ग्राहक ने भी आकर मोमबत्ती मांगी,तो उसका माथा  ठनका। "दिवाली तो अभी तीन महीने बाद है, शहर में लाइट भी लगातार आ रही है,फिर " एक अनजान भय से उसका पूरा शरीर सिहर उठा।उसने घबरा कर घर फोन मिलाया। "बिटिया कहां है"

"अभी आई है स्कूल से,खाना खा रही है"

 उसने राहत की सांस ली और दुकानदारी में लग गया।

3.

समीर अपने सात साल के बेटे विभोर के साथ बाजार से घर आ रहा था।रास्ते में कुछ युवा हाथो में मोमबत्ती लेकर,गैंग रेप पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए शांतिपूर्वक जुलूस निकाल रहे थे।बेटा काफी देर तक उस जुलूस को देखता रहा,फिर बोला "पापा, ये मोमबत्ती वाला त्यौहार,क्या हम रोज़ नहीं मना सकते।" समीर समझ नहीं पा रहा था कि क्या जवाब दे।उसने शर्मिंदगी से अपनी नजरें झुका लीं।

4.

अख़बार पढ़ते ही,गुस्से से उसका चेहरा लाल हो गया।कल उसकी संस्था ने गैंगरेप पीड़िता को शीघ्र न्याय दिलाने की मांग को लेकर शहर में,शांतिपूर्वक कैंडल मार्च निकाला था। आज अख़बार में उसकी फोटो और रिपोर्ट छपी थी।लेकिन पूरी रिपोर्ट में ना तो उसका कहीं नाम था,ना ही फोटो।उसने फोन पर इसकी शिकायत संस्था के अध्यक्ष से की।

"चिन्ता मत करो,बहुत जल्दी ऐसा मौका फिर आयेगा,और हम तुमको ही हाईलाइट करेंगे।" संस्था अध्यक्ष ने उसको समझाते हुए कहा।

✍️डॉ पुनीत कुमार

T 2/505, आकाश रेजिडेंसी

मधुबनी पार्क के पीछे

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा --- अच्छी खबर


"उफ्फ... यह पेपर वाले भी न कोई ढंग की खबर छाप ही नहीं सकते ।" नेता जी ने पेपर को टेबल पर फेंकते हुए गुस्से से कहा ।

"सारी अच्छी ही तो खबर हैं साहब.... आज के पेपर में कोई भी बुरी खबर नहीं है ।" आदतन करीमन बाई ने पोछा निचोड़ते हुए कहा.

"इसे बोलने को कौन कहता है... चुप... नेताजी गुस्से से आग बबूला होते हुए अपनी धर्मपत्नी से बोले. अपनी डाट सुनकर करीमन चुप हो गई और जल्दी जल्दी पोछा लगाने लगी. सोचती जा रही थी कि आज सुबह जब उसने पेपर पढ़ा घर के बाहर से उठाते हुए तब तो कोई भी बुरी खबर नहीं थी. न किसी का अपहरण न चोरी डकैती, न खून और न ही धोखा धड़ी.... और कोई बलात्कार भी नहीं... छी l"

"टी. वी. ऑन तो कीजिए नेता जी देखिए... ।" बनवारी लाल छुटभैये ने खुशी से घर में घुसते ही चिल्लाते हुए कहा l

खबर देखकर नेता जी के  चेहरे पर रौनक ही छा गई.

बनवारी गाड़ी निकालो आज ही हमें इस गांव जाकर बलात्कार पीड़ित परिवार वालों को  सहानुभूति देकर अपने प्रतिद्वंदी को सत्ता से उतार कर कुर्सी छीननी ही है l

खुश होते हुए दोनों बाहर चले गए.

करीमन को अच्छी खबर की जानकारी आज हुई.

✍️राशि सिंह, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार धर्मेंद्र सिंह राजौरा की लघुकथा -----सत्ते पे अट्ठा

 


मध्यमवर्गीय परिवार के मुखिया शर्मा जी बाजार से घर का सामान लेकर लौटे तो देखा श्रीमती जी सास बहू सरीखा धारावाहिक देख रहीं थीं।

पति महोदय भड़क गये। "कूलर के साथ पंखा चल रहा है दिन में तीन तीन लाइट जल रहीं हैं, बिजली की बर्बादी हो रही है, इतना बिल भरना मेरे बस की बात नहीं।"

पत्नी , पति की बकवास बड़े शान्त भाव से सुनती रहीं।भड़ास निकाल कर शर्मा जी अपने कमरे में चले गए।

    करीब घण्टे भर बाद शर्मा जी उठे और सबमरसिबल चला कर अपनी बाईक धोने लगे। पानी थोड़ी देर चलकर बंद हो गया।तभी उनकी छ:वर्षीय पुत्री बाल्टी और जग लेकर आयी। शर्मा जी उसे आश्चर्य से देख रहे थे।उनकी नजर घूमी तो सामने दरवाजे पर पत्नी तनी खड़ी थी।

"पापा, ये आपके लिए। " बेटी एक कागज का पुर्जा उन्हें थमा कर चली गई। लिखा था---

"मिस्टर देवव्रत शर्मा जी

कितने लीटर पानी बरबाद करोगे? 

पर उपदेश कुशल बहुतेरे

अब उपदेश तुम्हारे न मेरेे"

           आपकी राधा

पढ़कर शर्मा जी ने बाल्टी जग उठाये और अपने काम पर लग गए।

✍️ धर्मेंद्र सिंह राजौरा, बहजोई

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी वर्मा की लघुकथा ----शांति


"एक  कप चाय बना देना जरा।" ऑफिस से दिन भर काम करके आए हुए शर्मा जी ने अपनी पत्नी की तरफ देख कर प्यार से  कहा।

 "हां ठीक है"  श्रीमती जी ने हामी भरी और कहा "आप जल्दी से यह सामान ला कर दो और देख लेना लिस्ट ठीक से चेक कर लेना कोई सामान रह ना जाए तुम तो हमेशा  कुछ ना कुछ भूल ही जाते हो" कहते हुए श्रीमती जी ने सामान की लिस्ट शर्मा जी के हाथ में पकड़ा दी।

 चाय पीने की इच्छा तो काफूर हो गई बेचारे सामान की लिस्ट लेकर बाहर निकल गए। सारा सामान लेकर शर्मा जी डेढ़ घंटे बाद पुनः घर में प्रवेश करते हैं। चीख-पुकार की आवाज आती है श्रीमती जी की "पूरे दिन बच्चे मेरा दिमाग खा जाते हैं। मैं तो थक जाती हूं परेशान हो जाती हूं और एक काम वाली है उसको भी बार बार बताना पड़ता है कि काम ठीक तरीके से किया कर लेकिन नहीं साहब यहॉं सभी लाट साहब बने हुए हैं। मैं हीं घर में पिसती हूं पूरा दिन बच्चे देखूं, काम देखूं, कपड़े देखूं, खाना देखूं और एक ये है कि इन्हें ऑफिस से आते ही चाय सूझने लगती है।" यह सब बोलते हुए श्रीमती जी बच्चों के ऊपर अच्छा खासा गुस्सा निकाल रही थी।  पर पता नहीं गुस्सा किस बात का था। यह तो उनका प्रतिदिन का नियम सा था  कि सब के ऊपर चीख चीखकर अपनी थकान जैसे मिटा रही हो।  

शर्मा जी चुपचाप सारा सामान किचन में रखकर अतिथि कक्ष में चुपचाप शांति की अपेक्षा में बैठ  जाते हैं । आंखें बंद करके अपने ही घर में एक ऐसा कोना ढूंढते हैं जहां उन्हें कुछ क्षण शांति के मिल सके पर अफसोस पुन:  श्रीमती जी की आवाज आती है कहां गए अभी इसे रोहन को संभालो तो मैं खाना बना दूं जल्दी से़़़़़़़़़़़।

✍️मीनाक्षी वर्मा, मुरादाबाद , उत्तर प्रदेश।

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक की लघुकथा ---रोटी का मोल


निधि की आँखों में आँसू थे ,वो यही सोच रही थी, कि क्या कभी की कही बातें सच हो जाती है।बचपन में रोटी छोडऩे पर माँ कहती, रोटी छोड़ा नही करते है।बहुत मेहनत से मिलती है, रोटी के लिए तो आदमी इधर से उधर मारा मारा फिरता है।आज इस कोरोना काल में माँ की यही आवाज निधि के कानों में गूंज रही थी।पति की नोकरी छूट चुकी थी, उसे खुद आधा वेतन मिल रहा था।जैसे तैसे तीन बच्चों के साथ घर का गुजारा हो रहा था।आज उसे सचमुच रोटी का मोल पता चल रहा था।

✍️डॉ शोभना कौशिक, मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर की साहित्यकार रागिनी गर्ग की लघुकथा -----एक पत्र मां के नाम


मेरी प्यारी माँ,

सादर प्रणाम, 

समझ नहीं  आ रहा क्या लिखूँ?आपके जीते जी मैंने आपको कभी खत नहीं  लिखा। आज यह पहला खत लिख रही हूँ। आप मुझे बुलाया करती थीं। लेकिन मैं कभी परिवार ,कभी बच्चों की पढा़ई,कभी सास की बीमारी में  ऐसी उलझी की आपसे मिलने बहुत कम आ पाती  थी। जब मैंअपनी मजबूरी बताती थी तब आप कहती थीं, "ठीक  है बेटा! मत आओ अपने परिवार में खूब खुश रहो" आज भी मुझे याद है भाई  दूज से पहले पड़वा का वो दिन  आपने फोन किया और कहा था, तुमसे मिलने को बहुत मन हो रहा है भाई- दूज पर आ जाओ। 

मैंने आपको कहा, "मम्मी मैं नहीं  आ पाऊँगी भाई दूज का टीका करने मेरी ननद आ रही हैं।" आपने गुस्से में यह कहकर कि मत आओ फोन कट कर दिया था। मेरे दोबारा  मिलाने पर भी नहीं उठाया था।अगले दिन में मेरे घर ननद-ननदोई के आ जाने की वजह से मैं  आपको फोन नहीं  मिला पायी।

तीज के दिन  सुबह चार बजे फोन की घन्टी घनघनाई और भाई ने बुरी खबर सुना दी, " 'चुनमुन'  मम्मी नहीं  रहीं" सच कहती हूँ मम्मी! मेरे पैरों तले जमीन खिसक गयी।मैंने भाई को बोला, "तुम झूठ क्यों बोल रहे हो।"

एक ही झटके में मेरी व्यस्तता समाप्त हो गयी और मैं  दौड़ पडी़ आपसे मिलने। मैंने आपको बहुत जगाया पर आप नहीं  जगीं।  आप ऐसी नाराज हुयीं कि आपने मुझसे फिर  कभी बात ही नहीं  की। सात साल हो गये आपको गए खुद को कसूरवार  मानती हूँ। काश! आपके बुलाने पर पहले ही दौड़ जाती तो आपसे बात  तो कर पाती। 

माँ! एक विशेष बात आपको बताना है, मैंने साहित्य  पथ चुन लिया है।साहित्य में नित नवीन उपलब्धियाँ हाँसिल करके आपकी 'चुनमुन' आपका नाम रोशन कर रही है।

 जब सब यह कहते हैं कि विमला की छोरी तो खूब नाम कमा रही है।मेरा सीना गर्व से फूल जाता है,और खुशी होती है मेरी मम्मी का नाम मेरे कारण आदर से लिया जा रहा है।मैंने किसी को आपको भुलाने नहीं  दिया।बस अफसोस इस बात  का है कि आपको अपने प्रतीक चिह्न  न दिखा सकी। यह सब आपके जाने के बाद  ही शुरू किया। लेकिन मैं जानती हूँ आप जहाँ  भी हो अपना आशीर्वाद मुझे  भेज रही हो, और मेरे लिए  खुश हो रही हो। आपके आशीष से ही मुझे सफलताएँ प्राप्त हो रही हैं। बस एक बार माँ! मेरे सपने मैं ही आकर मुझसे बात कर लो।"

        आपसे एक बार बात करने की इच्छा में 

           आपकी अपनी चुनमुन

✍️रागिनी गर्ग, रामपुर, यूपी

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा की लघुकथा ------काली आंखें

 


गंगा शरद् ॠतु में अपने शान्त स्वभाव में बहते हुए मन में शान्ति अनुभव करती प्रतीत हो रही थी ।जैसे निर्मल मन वाली कोई पवित्र आत्मा । गंगा भी हम जैसे मानवों के कलुष धोने के लिए धरती पर परोपकार करने के लिए ही प्रकट हुई है ।।गंगा के परोपकार की यात्रा अनवरत चल ही रही है लेकिन हमारे प्रयासों में आज तक कोई सच्चाई नही आई ।इंसानों की इतनी तामसिकता ही आपदाओं का बुलावा है ।तो... बात मैं, कर रही थी हमारी कुत्सित और कुंठित भावनाओं की और गंगा के तट पर बैठे -बैठे आज एकाएक मुझे अतीत की स्मृति हो आयी । पावन नदियों के किनारे स्त्री पुरुष बालक बालिकाएँ, किशोर किशोरियाँ आबाल वृद्ध ,अमीर गरीब सब एक तट पर ही समान्यतः स्नान करते रहें हैं और किस पुरुष की निगाहें क्या देख रही रहीं हैं वह उसके संस्कारों पर ही निर्भर है या दैव कृपा पर । गंगा माँ तो अपने सभी प्रकार के बच्चों को समान भाव से अभिसिक्त करती है तो आज तट पर बैठे हुए चारों तरफ वो काली निगाहें साथ चलने लगीं । मम्मी पापा के साथ फैमिली ट्रिप पर मैं गंगा स्नान के लिए आयी थी और साथ में पापा पड़ोसी के किसी रिश्तेदार को भी साथ में गंगा -स्नान कराने के लिए ले आए थे । ग्यारह -बारह साल की उम्र में किसी बालिका को इतनी तमीज नही होती कि वह किसी गलत बात का विरोध कर सके या किसी को वह बात बता सके लेकिन नाव में बैठे बैठे एकटक देखते रहना और नजर पडते ही ऐसे रियक्ट करना कि जैसे चोरी पकड़ी गई हो ।बड़ा अजीब लग रहा था लेकिन क्या कह सकते थे ।फिर गंगा स्नान के बाद जैसे ही कपड़े बदलने के लिए कुटिया में आयी तो लगा कुटिया की दीवार से कोई आंखें नजरें गड़ाए हुए हैं ।मेरी जान निकल रही थी कौन है वहाँ ? कौन है वहाँ ?? और जल्दी जल्दी चेंज कर के मम्मी के पास भागी । फिर अगले दिन वही डर । लेकिन मम्मी से कह नही पायी ।फिर पुनः वही काली आकृति । जोर से चीखी तब कुछ अश्लील से शब्द । घबराहट के मारे शीघ्रता से बाहर निकली तो देखा कि वही व्यक्ति जो हमारे साथ आया था वही तेजी से वहाँ निकला और भागा ।जाकर मम्मी को बताया तो मम्मी ने सान्त्वना दी सहलाया लेकिन उस समय कुछ कहा नही लेकिन उन आँखों की भयावहता आज भी सिहरन पैदा कर देती है और मन में एक ग्लानि का भाव ।आज तो बच्चों को हम अच्छे स्पर्श और गन्दे स्पर्श के बारे में समझातें हैं और उन्हें अलर्ट करतें हैं । इतनी हिम्मत हमारे समाज ने पैदा कर ली है और यह जरूरी भी है ।

✍️ मनोरमा शर्मा, अमरोहा ।

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ---सिसकती सड़क


आज पहली बार अवसर मिला था  अवनि को अपने मंगेतर के साथ घूमने फिरने का।दो महीने शेष हैं शादी में । अमनदीप  आधुनिक विचारों का अठ्ठाईस वर्ष का युवक जो अवनि को अपने कल्पना लोक में लेकर विचरण करता है ।आज अवनि उसके आग्रह को टाल न सकी ।मन के किसी कोने में दबी हुई उसकी भी इच्छा साकार रूप लेने लगी । वह न जाने क्यों आज इतनी ढीठ हो रही थी ।मां और पिता जी को भी उसने समझा दिया कि वह एक घंटे में वापस आयगी । बाइक पर प्रेमिका के साथ लम्बी ड्राइव पर जाने का सपना आज साकार होता देख अमनदीप खुशी से पागल था । दो प्रेमी ,इतनी नजदीकी में बाबले हो गये ।तेज रफ्तार में उनके दिलों की धडकने तेज हो उठीं।कहाँ जाना है ,इसका  विस्मरण ही हो गया । अचानक अमनदीप को तेज झटका लगा ।अवनि की बाहों का पाश अचानक ढीला हो गया ।सन्ध्या के धुंधले कुहरे में अवनि चीख पड़ी ।बाइक फिसल कर सड़क के किनारे पर चली गई ।अमनदीप के माथे से लहु वह निकला ।अवनि की रुह काँप उठी ।मेरे मनभावन, यह कहकर वह रोती हुई अमनदीप से लिपट गई ।

दुपट्टे को माथे पर बाँधकर उसके सिर को अपनी गोद में रख लिया।

किसी तरह घर पर फोन लगाया और मां को सब बात बताई ।भाई और पिता गाड़ी लेकर पहुंच गये ।अस्पताल में अमनदीप के सिरहाने बैठी अवनि मन ही मन अपनी अनुशासन हीनता और नासमझी के लिये स्वयं को दोषी मानने लगी । काश!कि उसने अमनदीप को समझाया होता। ईश्वर आपको धन्यवाद।आपने मेरी लाज बचा ली । अपनी सिसकियों के बीच आज अवनि। सड़कों की मनहूसियत में मनुष्यों के कृत्यों का विश्लेषण करने लगी ।सिसकती  सड़क ,मानो अभी भी उससे क्षमा याचना कर रही थी ।

✍️ डॉ प्रीति हुंकार, मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की लघुकथा -----बुढ़ापे का बचपन


शाम के आठ बजे गये थे। दीनानाथ की पत्नी ने रसोई से ही आवाज लगायी, खाना रख दिया है जल्दी आ जाओ। दीनानाथ तुरंत हाथ धोकर खाने की मेज पर आ गये। रोज की तरह पूछा;अम्मा को खाना खिला दिया। हाँ,  उन्हें खाना दे तो आयी हूं, कह रही थीं, भूख नहीं है।

अरे, ऐसे कैसे-भूख नहीं है, कहते हुए दीनानाथ उठे और अम्मा के कमरे में जाकर बोले, खाना खा लो अम्मा, खाना रखा है। 

ना लल्ला,  मुझे भूख नहीं लग रही, अम्मा तुरंत बोलीं।

अरे ऐसे कैसे भूख नहीं है। कुछ तो खाना पड़ेगा। 

नहीं बिल्कुल भूख नहीं है। 

अरे आपने अभी कुछ खाया थोड़े ही है, ऐसे तो कमजोरी आ जायेगी, बिस्तर से भी नहीं उठा पाओगी,  फिर बोतल चढ़वानी पड़ेगी।  थोड़ा थोड़ा खाओ,  भूख भी लगने लगेगी, कहते कहते दीनानाथ ने अम्मा को अपने हाथ से कौर दिया। बोतल चढ़ने के डर से अम्मा भी चुपचाप खाने लगीं।

उधर दीनानाथ अपने बचपन में पहुँच गया था, जब वह किसी न किसी बहाने खाना खाने से जी चुराता था, और अम्मा इसी तरह से बहला फुसला कर उसे खाना  खिलाती थीं। सोचते-सोचते वह बुदबुदा उठा, सच ही कहा है, बुढ़ापे में व्यक्ति फिर से बच्चा बन  जाता है।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल

MMIG-69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद ।

मोबाइल नंबर 9456641400

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा -तंग मानसिकता

 


'माँ जी,देखो गुड़िया दादी कहना सीख गयी ' रुचि ने उत्साहित  होकर सासुमाँ को बताया।

'ठीक है, ठीक है ...   तू ही सुन इसे।मुझे समय से पता चल जाता तो इसकी जगह  पोता खेलता। गर्भ के पहले ही महीने में उस गाय के दूध से गोली लेनी होती है जिसके नीचे बछड़ा हो ......बस। अब ये तीन साल की हो गयी है,जल्द ही खुशखबरी दो मुझे और हाँ इस बार मुझे पहले ही बता देना .......तीसरे महीने पर चेक भी करा लेगे लड़का  हुआ तो ठीक ,नही तो .......। दूसरी  पोती का मुंह  नहींं देखना मुझे।

अक्सर रुचि सासु माँ की यही बातें सुनती थी .........।

रुचि ने चुपके से गुडि़़या के कान में कहा,गुडि़़़या तेरे साथ खेलने के लिये 6 महीने बाद बहन या भाई  आने वाला है।

अपनी सासु माँ से आँख बचाकर रुचि अपने मुंह पर हाथ रख बाथरूम की तरफ भागी।

गुडिया अपनी दादी को देख मुस्कुरायी और आगंन में खेलने लगी ।

अब बाथरूम से आती आवाज उसकी दादी तक नही जा रही थी....    

 ✍️ प्रीति चौधरी, गजरौला, अमरोहा

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह वृजवासी की लघुकथा ---------बिना विचारे जो करे

 


शहर में मुनादी की गई भाइयो पानी की टंकी की सफाई होने के कारण दो दिन तक पानी नहीं आएगा।कृपया घर के खाली बर्तनों को भर कर रख लें,,,,,

      इतना सुनते ही लोगों में पानी भरने की होड़ सी लग गई।जिसे देखो वही अपने साथ खाली बर्तनों ,बाल्टियों,डिब्बों और न जाने क्या-क्या छोटे-मोटे सामान लेकर पानी की चाह लिए चला आ रहा है।

           दूर तक खाली बर्तनों की कतार लगाकर लोग अपनी-अपनी बारी का इंतज़ार करने लगे।तभी मुहल्ले के एक दबंग की पत्नी ने आकर लाइन की परवाह न करते हुए अपनी बाल्टी को सबसे आगे लगाने का प्रयास किया।लोगों के ऐतराज़ करने पर लड़ने -मरने पर उतारू हो गई।देखूं मुझसे पहले पानी कौन भरेगा।एक महिला जो सबसे पीछे खड़ी हुई थी आगे आई और दबंग स्त्री से बोली बहन जी सभी को पानी चाहिए थोड़ी देर सबेर में क्या हो जाएगा,आप आई भी तो सबके बाद में ही हो।लाइन में ही आ जाओ तो अच्छा रहेगा।जो लोग पहले से खड़े हैं मूर्ख थोड़ी हैं।

       दबंग स्त्री भला यह कैसे बर्दाश्त करती कि उसे कोई सलाह दे। यह तो हो ही नहीं सकता।उसने बर्तन एक तरफ रखा और समझाने आई महिला के बाल पकड़कर उससे ऐसे भिड़ गई जैसे बरसों की दुश्मनी हो।देखते ही देखते बालों के गुच्छों का चारों तरफ बिखरते नज़र आने लगे।लोगों ने लड़ाई शांत कराने का भरसक प्रयास किया,परंतु वे दोनों तो ऐसे चिपकी हुईं थीं जैसे ऐसे ही सर जोड़कर पैदा हुई हों।

        क्रोध तो क्रोध है सदा थोड़े ही रहता है,कभी न कभी स्वतः ही शांत हो जाता है परंतु अपने पीछे एक पछतावा छोड़ जाता है।वही हुआ। जब तक इन नादान स्त्रियों का क्रोध शांत हुआ तब तक सब कुछ खत्म हो चुका था।

     न एक बून्द पानी बचा न एक भी बर्तन वहाँ नज़र आया।सभी अपने-अपने बर्तन भरकर  ले गए इनके हाथ लगी केवल निराशा।

    तभी तो हमारे बुजुर्गों ने कहा है। "बिना विचारे जो  करे

      सो    पीछे   पछताए"     

 ✍️वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद

 मोबाइल फोन नम्बर -   9719275453

    

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का व्यंग्य --दो तरह के कुत्ते


कुत्ते दो प्रकार के होते हैं। एक पालतू ,दूसरे आवारा । पालतू कुत्ते दो प्रकार के होते हैं। एक वह जो फाइव स्टार घरों में रहते हैं । सोफे पर बैठते हैं, बिस्तर पर सोते हैं। मेम साहब जिन्हें गोद में लेकर चलती हैं। लाड़ प्यार में वह राजकुमार और राजकुमारियों को भी मात कर देते हैं । जिनको देखकर लगता है कि मानो न जाने कितने जन्मों के पुण्य फल -स्वरुप वह पालतू कुत्ता जीवन को प्राप्त हुए । दूसरे प्रकार के पालतू कुत्ते वह होते हैं ,जिनके जिम्मे घरों की चौकीदारी का काम सौंप दिया जाता है । एक प्रकार से दो समय के भोजन पर रखे गए यह दिहाड़ी के मजदूर होते हैं । इससे सस्ता चौकीदार क्योंकि मिल नहीं सकता अतः कुत्ते को आवश्यकता के अनुसार सम्मान तथा आदर भी मिलता है । लेकिन यहाँ मतलब से मतलब रखा जाता है ।

           आवारा कुत्ते भी दो प्रकार के होते हैं। एक वह जिनको छोटे बच्चों से लेकर बड़े तक कंकड़ - पत्थर मारते रहते हैं ,दुत्कारते रहते हैं और जो बेचारे हर समय डरे - डरे रहते हैं । जरा - सी किसी ने गुट्टी मारी तो बेचारे दुम दबा कर भागने लगते हैं । दूसरे प्रकार के आवारा कुत्ते एक प्रकार से गैंग बनाकर रहते हैं । इनको आदमी नहीं मारता बल्कि यह आदमी को दाँतो से काटते हैं। इनसे आदमी भयभीत रहता है । जिस गली में इस प्रकार के खूंखार 4 - 6 कुत्ते रहने लगते हैं ,उस गली में शाम होने के बाद कोई व्यक्ति जाने का साहस नहीं कर सकता । अगर कोई जाता है , तो यह उसके ऊपर भौंकते हैं और इनके भौंकने मात्र से ही आगंतुक सज्जन उल्टे पैरों वापस लौट जाते हैं । आवारा कटखने.कुत्तों के बल पर ही रेबीज के इंजेक्शनों का कारोबार चलता है। यह  हर महीने किसी न किसी को काटते रहते हैं और संसार को यह ज्ञात होता रहता है कि कुत्तों के काटने से रेबीज नामक रोग होता है ,जिससे बचने के लिए इंजेक्शन लगाए जाते हैं । देखा जाए तो गली के इन्हीं आवारा कुत्तों की वजह से कुत्ते बदनाम हैं।

                    इन खूंखार आवारा कुत्तों का इलाज कैसे किया जाए तथा भले इंसानों को इन कुत्तों से कैसे बचाया जाए ,इसके बारे में भी दो राय हैं। एक राय यह है कि इन कुत्तों को जान से मार दिया जाए । न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी। लेकिन यह रास्ता हिंसा का है अर्थात इन कुत्तों को मारने के लिए हिंसा का सहारा लेकर उनका अस्तित्व समाप्त कर दिया जाएगा । अतः सब लोग सहमत नहीं होते । दूसरा रास्ता यह है कि इन कुत्तों की नसबंदी कर दी जाए । इन्हें पकड़कर किसी स्थान पर बंद कर दिया जाए तथा जब तक थोड़े वर्ष यह जीवित रहें, इन्हें सम्मानजनक तरीके से रखकर भोजन आदि दिया जाता रहे । कुछ साल बाद यह स्वतः और स्वाभाविक मृत्यु को प्राप्त हो जाएँगे। मगर व्यवहारिक रूप से न इनको जान से मारा जाता है और न ही इनकी नसबंदी की जाती है। अतः यह खूंखार कुत्ते मनुष्यों को काट कर अपने भय का साम्राज्य बढ़ाते रहते हैं ।

           गली के आवारा कुत्ते अगर हिंसक नहीं हैं, मनुष्यों को काटते नहीं हैं, तब इनमें कोई बुराई नहीं है । कुत्ता चाहे गली का आवारा हो चाहे पालतू हो, वह इस बात को समझता है कि वह गली और घर का चौकीदार है। गली में रात को अगर कोई अनजान व्यक्ति आने की कोशिश करता है तथा कुत्ते को लगता है कि वह गलत आदमी है तब वह काटे भले ही नहीं ,लेकिन भौंकेगा जरूर । कुत्ते का भौंकना अपने आप में महत्वपूर्ण होता है ।

          कुत्ता दो प्रकार से भौंकता है । एक तो जब उसको ईंट मारो तब वह भौंकता है। उसके पैर पर स्कूटर, मोटरसाइकिल या कार चढ़ जाए तब वह भौंकता है।  इस भौंकने में वेदना होती है । लेकिन चोर को देखकर जब कुत्ता भौंकता है तो उसमें आपको उच्च कोटि की वफादारी और एहसानमंदी के महान व उदात्त गुणों का मिश्रण देखने में आता है ।

            कुत्ते के बारे में एक दिलचस्प घटना सुनिए । एक बार एक सज्जन किसी दूसरे सज्जन से मिलने के लिए उनकी कोठी पर गए । कोठी के मेन गेट से जैसे ही उन्होंने प्रवेश किया तथा अंदर वाले गेट तक पहुंचे तब उनके पीछे - पीछे सड़क का एक आवारा कुत्ता भी साथ में आ गया । जैसे ही वह सज्जन दरवाजे पर घंटी बजाने के लिए आगे बढ़े ,कुत्ता उनके सामने आकर खड़ा हो गया और  एकटक देखने लगा । उन सज्जन की तो चीख ही निकल गई । समझने लगे कि अब यह तो मुझे जरूर काट खाएगा ! मगर संयोगवश उनकी चीख सुनकर मकान के अंदर से मकान - मालिक निकल आए । उन्होंने कुत्ते को बाहर भगाया तथा मेन गेट बंद करके आगंतुक सज्जन को समझाने लगे कि यह कुत्ता अब तक न जाने कितने लोगों को काट चुका है । हमारा पालतू नहीं था लेकिन हम इसे रोटी खिला देते थे । इस कारण यह "अर्ध - पालतू" अवस्था में आ गया । उसके बाद यह हमारा वफादार बन गया और हमारे एहसान को चुकाने के लिए यह हमारे मकान की चौकीदारी स्वतः करने लगा । अब जो भी आता है, उसको काट खाता है । इसकी आदत से परेशान होकर हमने अब इसे रोटी खिलाना भी बंद कर दिया है मगर हमारे जो पिछले एहसान हैं ,यह उन एहसानों को आज तक नहीं भूला है तथा हमारी चौकीदारी हमारे मना करने के बाद भी करता रहता है । क्या किया जाए !

 ✍️रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)

 मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद की साहित्यकार स्वदेश सिंह की कहानी -- जिम्मेदारी


निशा बिना बाप की बेटी थी तथा बहुत गरीब थी।निशा पढ़ने में  होशियार  व देखने में बहुत सुंदर थी ।  एक अच्छे परिवार से  उसके लिए  एक रिश्ता आया । लड़का अमीर परिवार से था परन्तु शराबी व आवारा था।  उसकी माँ ने मजबूरी बस उसकी शादी राहुल  से कर दी। निशा को गरीबी के कारण अपने भाग्य से समझौता करना पड़ा।  शादी के बाद भी राहुल दिन -रात  शराब में डूबा रहता।जिससे उसके फेफड़े खराब हो गये। निशा की सास  को  वंश चलाने के लिए  एक पोते की  चाहत थी।  क्योंकि वह चाहती थी कि बेटा गलत संगत में पड़कर अपने आप को बर्बाद कर रहा है । निशा के द्वारा उसे वंश चलाने के लिए एक वारिस मिल जाएगा। निशा  ने भी अपने पति को समझाने की बहुत कोशिश की परंतु वह अपनी आदत से मजबूर था। वह आवारागर्दी, शराबखोरी में ही अपना पूरा दिन व्यतीत करता था। कुछ समय बाद ईश्वर की कृपा से निशा गर्भवती हो गई । निशा की सास उसका  हर वक्त  ख्याल रखती।  नौ महीने बाद  निशा ने एक सुंदर सी  कन्या को जन्म दिया ।... जिसे देख निशा के सास को अच्छा नहीं लगा ।...क्योंकि वह वंश चलाने के लिए  पोते को चाहती थी । अत्यधिक शराब  पीने के कारण  राहुल के फेफड़े खराब हो गये।... डॉक्टर ने ऑपरेशन के लिए कहा  ......  जब राहुल  हॉस्पिटल एडमिट होने जा रहा था उसकी छोटी सी बेटी ने  (जो छ: महीने की हो चुकी थी ) उसकी उंगली पकड़ ली।  निशा ने राहुल से कहा... यदि तुम शराब नहीं पीते तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता ...और यदि तुम्हें कुछ हो जाता है तो सोचो तुम्हारी बेटी का भविष्य क्या होगा ??....उसे भी मेरी तरह ही किसी शराबी ,आवारा लडके  से शादी करनी पड़ेगी  ..यह सुनकर राहुल को बहुत दुख हुआ... उसे लगा बेटी की जिंदगी बर्बाद कर रहा है ।...उसने मन ही मन निर्णय किया कि अब भविष्य में कभी भी शराब को हाथ नहीं लगायेगा । ऑपरेशन सफल हुआ ।  धीरे-धीरे राहुल ने  अपने बिजनेस पर ध्यान देना शुरू कर दिया । और अपने काम में बहुत व्यस्त रहने लगा। अपने लिए निर्णय के कारण उसने शराब पीना छोड़ दिया।... राहुल की  माँ को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उसका बेटा बदल चुका है ।और उसने उस छोटी सी गुड़िया को सीने  से लगा लिया।.... जिसके कारण उसका बेटा उसे वापस मिला।

✍️ स्वदेश सिंह, सिविल लाइन्स, मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी ---बदलते रिश्ते


विनय अपने परिवार के साथ गोवा जाने का प्रोग्राम बना रहा था । गर्मी की छुट्टियां भी नजदीक थी ,विनय ने दिल्ली से गोवा की फ्लाइट की 4 टिकट बुक करवा ली । गोवा की फ्लाइट दिल्ली से सुबह 4:00 बजे थी ,सो विनय ने सोचा की राजन जो उसका फुफेरा भाई है के घर गाड़ी खड़ी कर देंगे वही राञि आराम करके सुबह 4:00 बजे की फ्लाइट पकड़ लेंगे ।क्योंकि राजन का घर एयरपोर्ट के नजदीकी था अतः विनय ने इसी प्रोग्राम को फाइनल कर दिया और राजन को फोन द्वारा सूचना दे दी कि हम निर्धारित तिथि पर उसके घर पहुंचेंगे। निर्धारित तिथि पर विनय अपने परिवार के साथ राजन के घर पहुंच गए। गाड़ी से लंबा सफर होने की वजह से वह काफी थक चुके थेऔर रात भी काफी हो चुकी थी। राजन ने विनय का काफी स्वागत किया, दिल्ली में राजन का काफी बड़ा फ्लैट था जिसमें एक कमरे में राजन और उसकी पत्नी दूसरे में उसका बेटा व पालतू कुत्ता और तीसरा गेस्ट रूम बनाया हुआ था । राजन का घर काफी आलीशान था अपने बेटे के कमरे में उसने काफी फैंसी डबल बेड रखा हुआ था जो काफी कीमती था । राजन ने विनय के लिए गेस्ट रूम निर्धारित किया गेस्ट रूम में सिर्फ एक डबल बेड था , यह देख विनय को बड़ा अटपटा लगा कि उसके परिवार के चार सदस्य एक डबल बेड पर कैसे रात कटेंगे । विनय राजन के पास गया और बोला मेरा बेटा तुम्हारे बेटे के साथ उसके कमरे में सो जाएगा और हम तीनों गेस्ट रूम में डबल बेड पर जैसे-जैसे रात काट लेंगे । यह सुन राजन ने बीच में ही बात काटते हुए विनय से कहा मेरा बेटा अभी बीमार हो कर चुका है और डॉक्टर ने उसे एहतियात बरतने को कहा है इसे कहीं इंफेक्शन ना हो जाए अतः आप चारो गेस्ट रूम में ही विश्राम करें । सुबह 4:00 बजे तो आपकी फ्लाइट ही है मैं ओला कैब बुक करा देता हूं जो आपको 2:00 बजे यहां से ले जाएगी यह सुन विनय निरुत्तर हो गए और वापस गेस्ट रूम में जैसे तैसे एक डबल बेड पर परिवार के चारों सदस्यों ने रात्रि काटी रात्रि 2:00 बजे ओला कैब वाला आ गया और विनय परिवार सहित एयरपोर्ट पहुंच गए। विनय अपनी गाड़ी राजन के पास ही छोड़ आए थे और वापसी पर उसे उठाने का कह दिया था। इस प्रकार विनय परिवार सहित गोवा भ्रमण कर जब वापसी कर रहे थे तो रास्ते में उन्होंने राजन से संपर्क करना उचित समझा क्योंकि उन्हें राजन के घर जाना था । विनय ने जब राजन से संपर्क किया तो राजन बोला "मैं जरूरी काम से अपने परिवार सहित नोयडा जा रहा हूं , आप अपनी गाड़ी सोसाइटी की पार्किंग से उठा लेना, मैंने गाड़ी की चाबी गार्ड को दे दी है" यह सुन विनय अचरज में पड़ गया की राजन उसके साथ ऐसा कैसे कर सकता है ।जबकि उसे तो हमारा सारा प्रोग्राम पता था और उसने हमें सूचित करना भी जरूरी नहीं समझा ।विनय ने चुपचाप हामी भरी व दिल्ली पहुंच कर गार्ड से गाड़ी की चाबी ली और परिवार सहित अपने घर की ओर चल पड़ा। विनय मन ही मन सोच रहा था कि रिश्तो की गर्माहट कहां चली गई है पता ही नहीं चल रहा ।उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह वही राजन है जिसके परिवार सहित घर आने पर विनय और उसकी पत्नी अपना बेड छोड़ खुद जमीन पर सो जाया करते थे , दिल्ली की ट्रेन में बैठाने के लिए कई किलोमीटर दूर अपनी गाड़ी से स्टेशन खुद छोड़ने आया करते थे। क्या धन की वृद्धि  से रिश्ते इतने बदल जाते है , यह साक्षात देखने को मिल रहा था

✍️विवेक आहूजा

बिलारी, जिला मुरादाबाद

Vivekahuja288@gmail.com

मोबाइल फोन नम्बर 9410416986

बुधवार, 28 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कहानी ----लालच

 


"नदी का पानी कहीं से तो आ रहा है? "इसका पता लगाते लगाते पारस उस धारा के साथ साथ चलने लगा. सुबह से शाम हो गई लेकिन किनारा नहीं मिला. थककर एक जगह बैठ गया और थोड़ी देर बैठा ही रहा.

घर वापस जाने पर फिर से वीवी की वही फटकार खानी थी... "कैसे निकम्मे आदमी से विवाह कर दिया मेरे बापू ने... न कुछ कमाता न धमाता बस फक्कड़ सा रास्तों की खाक छानता है l" यह डायलॉग वह पिछले कई सालों से सुनता आ रहा था.

फिर उसने अपनी कलम निकाली और पेन से कुछ लिखने लगा.

उसको लिखने का बड़ा शौक था लेकिन अभी तक कुछ प्रकाशित तो हुआ नहीं था और हो भी जाता तो कहाँ उसका राजमहल बनने वाला था?

उसने एक गहरी साँस ली और कुछ लिखने लगा.

लेकिन यह क्या?

बार बार उसके हाथ से शब्द बनने की बजाय  एक पक्षी का चित्र बन जाता जोकी कभी उसने देखा ही नहीं था लेकिन मन में यह विचारकरके कि प्रभु की महिमा अनंत है वह उस चित्र को पूरा करने लगा.

"छी... इतना भयानक पक्षी.... एक हँसता हुआ पक्षी जिसके बड़े बड़े दाँत थे उसने बनाया नहीं अपने आप बन गया वह चित्र.

वह बहुत कोशिश करता रहा लेकिन ऎसा लग रहा था मानो कोई अदृश्य शक्ति उससे यह काम करा रही हो.

तभी यह क्या? वह पक्षी पेज से फड़फ़डाता हुआ निकला और उड़कर टीले पर बैठ गया. उसका आकार अजीब सा था.

उसकी कंचे सी उलसी लाल लाल खून टपकाती आंखें और लाल सुर्ख मांस के लोथड़े सी नाक.... और तितर बितर पंख जोकि बहुत ही गंदे से थे.

"यह चील, बाज या गिद्ध तो नहीं है l" उसने मन ही मन कहा.

"मैं तुमको इस धारा की गोद में जहां से इसकी उत्पत्ति हुई है ले जा सकता हूं l" वह पक्षी मानवीय किंतु कर्कश स्वर में बोला, सुनकर एक बार तो पारस भी भयभीत हो गया लेकिन उसने खुद को संयमित किया और पसीने को पोंछते हुए बोला...

"मुझे कुछ नहीं देखना l"

"अगर तुम मेरे साथ नहीं जाओगे तो मैं तुमको खा जाऊंगा l" वह पक्षी क्रोधित होते हुए बोला और उसके ऊपर मंडराने लगा एक बार तो इतनी तेज पंजा उसके सिर में मारा कि उसको चक्कर सा आ गया l"

"अब तो जाने में ही भलाई है l" सोचता हुआ वह बोला.. 

"रुको.. मैं चलता हूँ l"

"चलो.... l" 

फिर उस पक्षी ने अपना आकर बढ़ाया और पारस से पीठ पर बैठने को कहा. 

वह डरते हुए उसकी पीठ पर बैठ गया और उसने उड़ने के लिए अपने पंख खोल दिए. 

कुछ देर तक उड़ने के बाद वह एक खण्डर नुमा स्थान पर उतर गया जहां कि अजीब अजीब सी आवाजें आ रहीं थीं ऎसा लग रहा था मानो बहुत से दर्द से पीड़ित लोग एक साथ कराह रहे हों. 

वह पक्षी वहां से उड़ने लगा तो पारस ने पूछा यहां तो कोई नदी नहीं है परंतु वह बिना कोई उत्तर दिए उड़ गया. 

तभी अंधेरी कोठरी से कई कंकाल चलते हुए उसके पास आए और बोले.... 

"हम बहुत प्यासे हैं.... भला हो उस दयालु पक्षी का जो तुमको हमारे पास ले आया अब हम तुम्हारा रक्त पीकर अपनी प्यास बुझाएंगे l" और जोर जोर से अट्टहास करने लगे पारस भय से थरथराने लगा. 

सारे कंकाल आकर उससे लिपट गये और अपने नुकीले दाँत उसके शरीर में गड़ाने लगे. 

वह दर्द से कराह उठा और जोर जोर से रोने लगा. उसकी दर्द भरी चीख सुनकर सब कंकाल जोर से अट्टहास करने लगे. 

वह पक्षी जो गायब हो गया था उसको वहां लाकर वह भी अब वहीं आ गया और एक लड़की में परिवर्तित हो गया.जो बेहद खूबसूरत थी. 

वह उन कंकालों पर दहाड़ी... 

"रहने दो... छोड़ो इसे... ये मानव हैं ही ऎसे... अब इनका खून आपस में चूसने को छोड़ दो.... लालची मनुष्य l" कहते हुए उसने पारस में एक लात मारी और वह लुढ़कता हुआ उसी स्थान पर आ पहुंचा जहां से वह उस पक्षी के साथ गया था. वहां नहीं थी जो चीज तो वह थी नदी की धारा जिसकी खोज में वह लालच से वशीभूत हो उस जादुई पक्षी के साथ गया था. 

✍️ राशि सिंह , मुरादाबाद , उत्तर प्रदेश 


मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेन्द्र शर्मा सागर की कहानी ----सूखे सोत का भूत

 


बात कोई बीस साल पुरानी है मैं और मेरा मित्र अर्जुन सिंह मेरे मामा के घर जा रहे थे, मेरे माना का घर कालागढ़ के पहाड़ी की तलहटी में बसा एक छोटा सा गांव है।

गांव तक जाने के लिए बस से उतर कर लगभग तीन किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था और हमारे यहां से लगभग साठ किलोमीटर बस से जाना पड़ता था।

घर से हम चाहे कितनी भी सुबह चलें, तीन बसें बदलकर वहाँ पहुचने में दोपहर हो ही जाती थी।

हम दोनों ठीक 12 बजे बस से उतरे और चल दिये पैदल गांव की ओर।

क्यों ना लंबे रास्ते के बजाए सूखे सोत (पहाड़ से बरसात का पानी लाने वाली एक गहरी नदी जैसी संरचना) से चलें जहां से हमे गांव जाने के लिए आधी दूरी (यही कोई दो किलोमीटर) ही चलना पड़ेगा,किन्तु उस रास्ते में तो जंगली जानवर??? अर्जुन ने कहा।

जंगली जानवर सदा अकेले आदमी पर हमला करते हैं, मैने समझाया।

और चोर खले का छलाबा??,अर्जुन फिर डरते हुए बोला।

अरे यार उस जगह का तो नाम ही चोर खला है वहाँ भूत का छलाबा नहीं रहता बल्कि चोर रहते हैं जो लोगों को डराकर उन्हें लूट लेते हैं, मैंने उसे बताया।

और हम दोनों आधा किलोमीटर सड़क पर चलकर सोत में उतर गए ये सोत मुख्य सड़क से लगभग दस मीटर गहरा और बीस मीटर चौड़ा किसी नदी के जैसा ही था जिसमें सुखी सफेद रेत भरी रहती थी और उसके दोनों किनारों पर घनी झाड़ियां तथा ऊंचे पेड़ लगे थे।

जून की भरी दोपहरी में भी उसके अंदर छाया के कारण अच्छी ठंडक हो रही थी।

हम दोनों लोग मज़े में चले जा रहे हे तभी हमने देखा चोर खले के पास (लगभग दस मीटर दूर) एक सरदार अजीब सी हरकते कर रहा था।

मैंने इशारे से अर्जुनसिंग को चुप रहते हुए रुकने का इशारा किया और सामने देखने को कहा।

वह सरदार डर से कांप रहा था वह अचानक जोर से गिर गया, ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसे मार रहा है और वह अपने हाथ सामने करके बचने की कोशिश कर रहा है।

अचानक वह रेत में जोर से लुढका जैसे किसी ने उसे फेंका हो।

क्या है वहाँ?? अर्जुन ने पूछा ।

छलावा,, मैंने सामने देखते हुए कहा।

क्या ये सरदार छलावा है? अर्जुन ने फिर पूछा।

नहीं छलावा इसके सामने है।

फिर हमें क्यों नही दिख रहा? अर्जुन ने फिर पूछा।

तभी सरदार अपनी गर्दन अपने दोनों हाथों से पकड़ कर किसी से छुड़ाने के प्रयास में खुद ही दबाने लगा।

आओ अर्जुन, मैने अर्जुन का हाथ पकड़कर उधर दौड़ लगा दी और अपनी बोतल का पानी जोर से उसके मुंह पर फेंक दिया।

पानी पड़ते ही सरदार जैसे नींद से जगा हो, वह चोंकते हुए बोला , कहाँ गया भूत??

तुम लोग कौन हो?? 

हम हैं अर्जुन और पंडित,मैने हँसते हुए कहा।

आपको क्या हुआ था?? अर्जुन ने पूछा।

भ, ,, भूत था यहाँ, मैं जैसे ही यहां आया वह इस खले(पाइप लाइन दबाने के लिए बने बड़े गड्ढे) से निकलकर अचानक मेरे सामने आ खड़ा हुआ ओर हंसते हुए बोला आगे जाना है तो मुझे कुश्ती में हरा कर जाओ।

मैने उसके सामने हाथ जोड़ दिए कि वह मुझे जाने दे मैं उसके मुकाबले बहुत कमजोर हूँ।

लेकिन वह मुझे उठा उठा कर पटकने लगा, वह तो मुझे गला दबाकर मार ही डालता अगर तुम दोनों मुझे बचा नहीं लेते।

आपको भूत नहीं आपका डर मार रहा था, अगर आपने हिम्मत करके उससे कहा होता कि आजा लड़ ले फिर वह चुपचाप भाग गया होता मैंने हंसते हुए कहा ।

आपको कहाँ जाना है आइये चलिए हमारे साथ अर्जुन बोला और हम हँसते हुए अपनी मंज़िल की ओर चल दिए।

✍️ नृपेन्द्र शर्मा 'सागर', ठाकुरद्वारा


मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ राकेश चक्र की सोलह बाल कविताएं । ये उनके बालगीत संग्रह "कम्प्यूटर ने खेल दिखाया" से ली गई हैं। इसका प्रकाशन चार साल पहले वर्ष 2016 में हरे कृष्ण प्रकाशन द्वारा किया गया था ।


















 ✍️  डॉ राकेश चक्र
90 बी
शिवपुरी
मुरादाबाद 244001
उ.प्र . भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456201857
Rakeshchakra00@gmail.com

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2020

वाट्सएप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है । मंगलवार 29 सितंबर 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ ममता सिंह, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, दीपक गोस्वामी चिराग, मीनाक्षी ठाकुर, स्वदेश सिंह, रवि प्रकाश, राम किशोर वर्मा, अशोक विद्रोही, डॉ पुनीत कुमार, डॉ प्रीति हुंकार, मीनाक्षी वर्मा , श्री कृष्ण शुक्ल , डॉ राजेन्द्र सिंह विचित्र,विवेक आहूजा और शोभना कौशिक की बाल रचनाएं ------

सूट बूट में बंदर मामा, 

फूले नहीं समाते हैं। 

देख देख कर शीशा फिर वह,
खुद से ही शर्माते हैं।।

काला चश्मा रखे नाक पर,
देखो जी इतराते हैं।
समझ रहे  वह खुद को हीरो,
खों-खों कर के गाते हैं।।

सेण्ट लगाकर खुशबू वाला,
रोज घूमने जाते हैं।
बंदरिया की ओर निहारें,
मन ही मन मुस्काते हैं।।

फिट रहने वाले ही उनको,
बच्चों मेरे भाते हैं।
इसीलिए तो बंदर मामा,
केला चना चबाते हैं।।

✍️डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद 244001
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     रंग  बिरंगे  पंख  पसारे,
     नृत्य   कर   रहा    मोर,
     किंग कोबरा डरके मारे,
     कांप     रहा     घनघोर।
             ---------------
     भूल गया  सारी  फुंकारें,
      निकल  गई   सब   ऐंठ,
      खड़ा रहूँगा तो मयूरकी,
      चढ़     जाऊंगा      भेंट,
      धीरे-धीरे  लगा  सरकने,
      वह   झाड़ी   की   ओर।
      रंग बिरंगे---------------

     राह रोककर खड़ाहोगया,
     उसके     सम्मुख     मोर,
     मैं  चाहूँ  तो पल में  तोडूं,
     तेरी        जीवन      डोर,
     छोड़ रहाहूँ नाग मुझे मत,
     समझे       तू    कमज़ोर।
     रंग बिरंगे----------------

     सुन मयूर की बात सर्प ने,
     झुककर    किया   प्रणाम,
     होकर मुक्त महासंकट  से,
     मिला      बहुत     आराम,
     लगा सोचने  अगर  ऐंठता,
     देख     न     पाता     भोर।
     रंग बिरंगे-----------------

      बे मतलब गुस्सा करना तो,
      होता       बहुत      खराब,
      क्षमादान का होता निश्चित,
      जीवन      पर        प्रभाव,
      यहां सेर  को  सबासेर  भी,
      मिल    जाते     हर    ओर।
      रंग बिरंगे------------------
            
✍️वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
मो0-- 9719275453
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दया करना प्रभो हम पर, कि तेरा ही सहारा है।
हैं बालक भोले-भाले हम, पिता तू सब से न्यारा है।
ये दुनिया दुख का सागर है, नहीं दिखता किनारा है।
है नैया छोटी सी अपनी समय की तेज धारा है।

बचा लो झूठ से छल से, जमाने भर के पापों से।
बचा लो रोग,कष्टों से,छिपा लो शीत-तापों से।
चले हम सत्य के पथ पर, हमारा ध्येय हो सेवा।
न छूटे राह उन्नति की,कि विनती है यही  देवा।

बने हम राष्ट्र के सेवक,करें हम धर्म की रक्षा।
दया की दृष्टि दृष्टि जीवों पर, यही बस दो हमें भिक्षा।
हमारे मन समा जाओ,हमें अर्चन सिखा जाओ।
नहीं हिन्दू नहीं मोमिन, सिर्फ मानव बना जाओ।

✍️-दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिव बाबा सदन,कृष्णाकुंज
बहजोई(सम्भल) 244410 उ. प्र.
मो. 9548812618
ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com
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बंदर मामा हैट लगाकर,
चले घूमने दिल्ली,
मिली रेल में उन्हें घूमती
एक सयानी बिल्ली।

बंदर मामा ने बिल्ली से
पूछा उसका नाम,
बिल्ली बोली, "चुपकर बंदर।"
"क्या है तुझको काम?"

मैं महारानी बड़े गाँव की!
रख लूँ तुझको चाकर,
इतना सुनकर बंदर मामा,
भागे दुम दबाकर।

✍️मीनाक्षी ठाकुर,
मिलन विहार
मुरादाबाद 7
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माँ मेरा नाम लिखा दो
मैं भी स्कूल जाऊँगा

सुबह-सवेरे नहा-धोकर
जल्दी तैयार हो जाऊँगा

रंग- बिरंगी, सुन्दर-सुन्दर
किताबें बैग में सजाऊँगा

भरा गिलास दूध का पीकर
अपनी इम्यूनिटी बढ़ाऊँगा

अपना लंच दोस्तों के संग
खूब  मस्ती से खाऊँगा

अपना होमवर्क रोजाना
मैडम से चैक कराऊँगा

मेहनत से पढ़ -लिखकर
मैं भी अफसर बन जाऊँगा

माँ मेरा नाम लिखा दो
मैं भी स्कूल जाऊँगा

✍️स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद
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मामा  घर  रामू  गया , बिना  कहे  इस बार
घर  के  बाहर मिल गया ,कुत्ता  पर खूँखार
कुत्ता  पर  खूँखार ,जोर  से  भौंका  झपटा
भागा   रामू   दौड़ ,पैर  रह - रहकर   रपटा
कहते  रवि  कविराय , फटा  कुर्ता पाजामा
बोला  कर  दो माफ ,न फिर आऊँगा मामा

✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999761 5451
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मैं गुलाब सी कोमल गुड़िया, हर मन भाती हूंँ ।
कांँटों संँग गुलाब की डाली, यह बतलाती हूंँ ।।

आंँखों में हैं स्वप्न सुनहरे, यों मुस्काती हूंँ ।
टेडी बियर मुझे है भाता, साथ रखाती हूंँ ।।
फूलों की खुशबू सी मैं भी, महका चाहती हूंँ ।
बाल बनाकर; फूल लगाकर, मैं इठलाती हूंँ ।।
जग सारा मोहित कर सकती, वह गुण पाती हूंँ ।
कांँटों संँग गुलाब की डाली, यह बतलाती हूंँ ।।

साफ-सफाई बहु पसंद है, रोज़ नहाती हूंँ ।
फूलों वाले श्वेत वस्त्र में, परी कहाती हूंँ ।।
चढ़ पलंँग पर खड़ी होकर मैं, चित्र खिचाती हूंँ ।
खुश होते हैं देख मुझे सब, मैं खिल जाती हूंँ ।।
फ्राक पकड़ कर जब मैं चलती, सब मन भाती हूंँ ।
कांँटों संँग गुलाब की डाली, यह बतलाती हूंँ ।।
  
✍️ राम किशोर वर्मा
  रामपुर
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हम सब छोटे बच्चे कब से,
             पूछें  यही  सवाल !
मुक्ति मिले कब कोरोना से,
             बीता जाये  साल ?
अब तक कितने लाचारों को
              लील गई बीमारी ?
बैक्सीन तो बन न पाई
           सारी दुनिया हारी !!
कोरोना महामारी से तो
        हाल हुआ बेहाल !!
हम सब छोटे बच्चे कबसे
           पूछें यही सवाल !
मुक्ति मिले कब कोरोना से;
         बीता जाये साल ?
सेनेटाइज हाथ करो और
        मुंह पर मास्क लगाओ!
दो गज दूरी इक दूजे से;
         इसको सभी निभाओ !!
वरना तांडव मौत का होगा,
         और न मिटे जंजाल !!
हम सब छोटे बच्चे कबसे,
                 पूछे यही सवाल!
मुक्ति मिले कब कोरोना से,
            बीता जाये साल ??
बंद पड़े स्कूल हमारे;
            कैद हुए हम घर में ;
मोबाइल पर आंखें गाड़े ,
         पढ़ते हैं सब डर में !!
पढ़ना लिखना कैसा अब
     तो जीना हुआ मुहाल !!
हम सब छोटे बच्चे कबसे
            पूछें यही सवाल !
मुक्ति मिले कब कोरोना से,
          बीता जाये साल ??
ये कैसा यम है आंखों से,
         नज़र नहीं जो आता है ?
निशदिन बढ़ता ही जाये,
      और सदा मौत बरसाता है!
प्रभू बचाओ जग!, कोरोना-
            खत्म करो तत्काल!!
हम सब छोटे बच्चे कबसे,
             पूछें यही सवाल !
मुक्ति मिले कब कोरोना से,
            बीता जाते साल ??

✍️अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
मोबाइल फोन नम्बर 8218825541
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गुड़िया लेकर एक छड़ी
घर से अपने निकल पड़ी

लिए बिना ही वह कंडी
पहुंच गई सब्जी मंडी

जो भी दिखी सब्जी ले ली
मिली नहीं प्लास्टिक थैली

सब्जी बिना ही लौटी घर
ढूंढी कंडी  इधर उधर

कंडी के कई टुकड़े हुए
कुतर गए थे चूहे मुए

मन ही मन वो हुई दुखी
और सो गई  वो भूखी 

✍️डॉ पुनीत कुमार
T -2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
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सैर सपाटा ,खेल खिलौने,
ये बच्चों को बहुत लुभाये ।
धूँ धूँ जिसमें रावण जलता,
उस मेले की याद सताये।
भगवन फिर से खुशियाँ आयें
मिलकर बच्चे मेला जायें ।

लड्डू पेड़े चांट पकौड़ी,
देख के मुँह मे पानी आये।
दादी अम्मा चुपके चुपके,
बच्चों से रबड़ी मँगवाये।
घर में रहना अब न भाये,
कोई तो मेला लगवाये।

✍️डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद
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कितनी प्यारी कितनी अच्छी
मधुमक्खी मधुमक्खी

फूलों से रस को चुराती है
शहद उसका बनाती है
कितना मधुर कितना मीठा
रस चुनकर वो लाती है

कितनी प्यारी कितनी अच्छी
मधुमक्खी मधुमक्खी

कीट वर्ग का प्राणी मधुमक्खी
संघ बनाकर रहती है
  प्रतिपल मेहनत करती हैं
प्रत्येक संघ में रानी एक
कई सौ नर और शेष श्रमिक

कितनी प्यारी कितनी अच्छी
मधुमक्खी मधुमक्खी।

घोंसला मोम से बनाती हैं
मीठा शहद जमाती है
मिल कर  करते है यह सब काम
तब बनता शहद गुणवान

  कितनी प्यारी कितनी अच्छी
मधुमक्खी मधुमक्खी।

✍️मीनाक्षी वर्मा
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश
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छोटू चुप चुप रहता था।
बात न कुछ भी कहता था।
दादा जी ने गले लगाया।
गोदी में उसको बैठाया ।

तब जाकर के छोटू बोला।
राज स्वयं उसने खोला।
मम्मी पापा गंदे हैं।
मुझे परेशां करते हैं

मोबाइल से दूर रहो,
पहले तो चिल्लाते थे।
आँख वीक हो जायेंगी,
कस कर डाट लगाते थे।

अब खुद फोन थमाते हैं,
ऊपर से चिल्लाते हैं।
ऑनलाइन ही पढ़ना है
तुमको आगे बढ़ना है।
क्लास नहीं कोई छूटे,
सबसे अव्वल रहना है।

ये कैसा असमंजस है ।
मोबाइल तो वो ही है।
क्या अब खतरा नहीं रहा।
आँख हमारी वो ही है।

तब दादा जी ने समझाया ।
कोरोना का डर दिखलाया ।
घर में रहना मजबूरी है।
पढना किंतु जरूरी है।।

ऑनलाइन ही पढ़ना है।
आगे भी तो बढ़ना है।
गेम खेलना तुम छोड़ो।
मोबाइल पर खूब पढ़ो।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG 69,
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद ।
मोबाइल नंबर  9456641400
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मैंने बैठे हुए
एक चौकीदार को देखा।
हाथ में था दण्ड
मस्तक पर चिन्ता की रेखा।।
लगता था जैसे वह
हर किसी को रोक रहा था।
आने जाने वाले सभी
बच्चों को वह टोक रहा था।।
इतने में कक्षों से बाहर
बच्चों का भी झुण्ड आया।
यह देख चौकीदार ने
तब  अपना दण्ड उठाया।।
वह लगा दौड़ाने सब
बच्चों को इधर और उधर।
कुछ ही क्षण में कोई
बच्चा ना आया वहां नजर।।
तब सन्तोष ग्रहण कर
चौकीदार भी कुछ अलसाया।
देखकर यह सुअवसर
बच्चों ने भी फिर मौका पाया।।
तब धीरे-धीरे सब बच्चे
फिर निकले कक्ष से बाहर।
कोई गेट के नीचे था
और कोई था गेट के ऊपर।।
तब अलसायी निद्रा से
चौकीदार फिर बाहर आया।
उसकी आँखों के सामने
एक था अदभुत नजारा छाया।।
सारे ही बच्चे गेट से
वानर की  भांति कूद रहे थे।
कितनी जल्दी छूटें
यहां से सब यह सोच रहे थे।।
तब हाथ में लेकर दण्ड
चौकीदार भी खड़ा होता है।
कैंसे समझाऊं इनको
फिर वह भी यह सोचता है।।
मेरा मन भी बैठे हुए
दूर से ही यह सब देखता है।
लगता है कि अब यह
चौकीदार भी सोचकर हारता है।
छोटी सी है उम्र
और नादान हैं यह सब बच्चे।
लगते हैं वानरों की भांति
उछल कूद करते हुए  अच्छे।।

✍️ डॉ.राजेन्द्र सिंह 'विचित्र' रामपुर, उत्तर प्रदेश
असिस्टेंट प्रोफेसर, तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
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बचपन के दिन भूल ना जाना ,
रस्ते में वो चूरन खाना ,
छतों पे चढ़कर पतंग उड़ाना ,
रूठे यारों को वह मनाना ,बचपन के दिन भूल ना जाना ।
अपना था वो शाही जमाना ,
सिनेमा हॉल को भग जाना ,
दोस्तों की मंडली बनाना ,बचपन के दिन भूल न जाना ।
खेलने जाने का वो बहाना ,
पढ़ने से जी को चुराना ,
मास्टर जी से वो मार खाना, बचपन के दिन भूल ना जाना
हाथ में होते थे चार आना , ।
फितरत होती थी सेठाना ,
मुश्किल है यह याद  भुलाना, बचपन के दिन भूल ना
जाना ।।

✍️विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
9410416986
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बचपन
टूटता बचपन, सिसकता बचपन
बचपन को संभालो तुम
हैं ,नये भारत के कर्ण धार ये
इनको न गर्त में डालो तुम
जीवन के अनमोल रतन ये
इनको आगे बढ़ना है
परिवर्तन की हर कठोर डगर को
इनको वश में करना है
आशा अभिलाषाओं की बगिया को
इनको महकाने दो
अपने हिस्से की खुशियों से
जीवन स्वर्ग बनाने दो

✍️ शोभना कौशिक
बुद्धि विहार
मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार नूर उज़्ज़मां नूर की दस ग़ज़लों पर "मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" द्वारा आनलाइन साहित्यिक चर्चा


वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा  'एक दिन एक साहित्यकार' की श्रृंखला के अन्तर्गत 24 अक्टूबर 2020 को मुरादाबाद के साहित्यकार नूरउज़्ज़मां नूर की दस ग़ज़लों पर ऑन लाइन साहित्यिक चर्चा की गई। यह चर्चा तीन दिन चली। सबसे पहले नूरउज़्ज़मां नूर ने निम्न दस ग़ज़लें पटल पर प्रस्तुत कीं---

1)
शिकस्ते ज़ात की यह आखिरी निशानी थी
मिरे वुजूद से सैराब रायगानी थी

मुझे चराग़ बनाना था अपनी मिट्टी से
बदन जला के तुम्हें रोशनी दिखानी थी

पकड़ रहा था मैं आँखों से जुगनुओं के बदन
अंधेरी रात थी ,मशअल मुझे बनानी थी

उतर रहा था फ़लक मिट्टी के कटोरे में
ज़मीं सिमटती हुई खु़द में पानी पानी थी

पलक झपकने के इस खेल में पता क्या था
मुझे नज़र किसी तस्वीर से मिलानी थी

2)
रोज़े अव्वल से किस गुमान में हूँ
अपनी छोटी सी दास्तान में हूँ

खु़द ही इम्काँ  निकालता हूँ मैं
खु़द ही इम्काँ  के इम्तिहान में हूँ

एक  नुक़्ता भी जो नहीं भरपूर
अपनी हस्ती के उस निशान में हूँ

ढूंढने निकलूं तो कहीं भी नहीं
मैं जो मौजूद दो जहान में हूँ

बंद दरवाज़ों का भरम हूँ मैं
मुंह से चिपकी हुई ज़बान में हूँ

एक अरसे से यह भी ध्यान नहीं
एक अरसे से किसके ध्यान में हूँ

3)
तिरा गुमान ! उजालों का आसमाँ  है तू
मिरा यक़ीन ! अंधेरों के दरमियाँ  है तू

कोई सनद तो दे अपने कुशादा दामन की
मिरी नज़र मे तो छोटा सा आस्माँ है तू

निकलते ही नहीं ज़ेरो ज़बर के पेचो ख़म
यह किस ज़बान में तहरीर दास्ताँ है तू

मिरे मुरीद मैं सदक़े तिरी अक़ीदत के
तुझे बता दूँ, मिरी तरह रायगाँ  है तू

तिरा उरूज ही दरअसल है ज़वाल तेरा
है बूंद नूर की और ख़ाक मे रवाँ है तू

4)
ज़ात का पत्थर उगल कर आ गया
अपने अन्दर से निकल कर आ गया

हलचलें ठहरी रहीं दरयाऔं में
शोर पानी से उछल कर आ गया

तीरगी से तीरगी मिलती रही
दरमि्याँ  से मैं निकल कर आ गया

आज़माइश धूप की पुर ज़ोर थी
रोशनी का साया जल कर आ गया

आँख से तेज़ाब की बारिश हुई
हड्डियों में जिस्म गल कर आ गया

चेहरा चेहरा जुस्तुजू इक ख़्वाब की
कितनी आँखें मैं बदल कर आ गया

5)
नये फूल खिलते हुए देखता हूँ
मैं इक ज़र्द पत्ता हरी शाख़ का हूँ

बदन के मकाँ से जो घबरा रहा हूँ
न जाने कहाँ मैं पनह चाहता हूँ

मैं शौके जुनूँ मे उड़ाते हुए ख़ाक
सफ़र दर सफ़र ख़ाक में मिल रहा हूँ

मैं अपनी ही आँखों में  चुभने लगा था
सो अपने ही पैरों से कुचला गया हूँ

तो क्या मैं गया भी इसी शहर से था
मैं जिस शहर में लौट कर आ रहा हूँ

मुझे भीड़ मे उसको पहचानना है
जिसे सिर्फ आवाज़ से जानता हूँ

अभी उसके बारे मे दा'वा करूँ क्या
अभी उसके बारे मे क्या जानता हूँ

6)
बन्द है कारोबारे सुख़न इन दिनों
मुझ से नाराज़ है मेरा फ़न इन दिनों

एक बे सूद कश्ती मिरे नाम की
एक दरिया में है मोजज़न इन दिनों

दाद दी है किसी ने बदन पर मिरे
रुह में है उसी की छुअन इन दिनों

फूल किसने बिछाये मिरी क़ब्र पर
ख़ाक दर ख़ाक है एक चुभन इन दिनों

चार शानो पे यारों के जाते मगर
बंद है इस सफ़र का चलन इन दिनों

लोग आते हैं थैली में लिपटे हुए
और चले जाते हैं बे कफ़न इन दिनों

हाल ये हो गया है कि बाज़ार में
बिक रही है दिलो की कुढ़न इन दिनों

7)
धोका है निगाहों का,फ़लक है न ज़मीं है
मौजूद वही है जो कि मौजूद नहीं हैं

इम्काँ के मनाज़िल से ज़रा आगे निकल कर
क्या देखता हूँ मुझ में ,गुमाँ है न यकीं है

इस ख़ाक में मैंने ही बसाये थे कई घर
इस ख़ाक में अब कोई मकाँ है न मकीं है

फिर किसके लिए तूने, बनाई है ये दुनिया
मिट्टी को वह इंसाँ तो, कहीं था न कहीं है

सजदों के निशानात तो दोनों ही तरफ़ हैं
मंज़ूरे नज़र फिर भी,ज़मीं है न जबीं है

हम लोग हैं किरदार मजाज़ी,यह हक़ीक़त
मेरे ही तईं है ,न तुम्हारे ही तईं है

8)
तुझ से जितना मुकर रहा हूँ मैं
ख़ुद में उतना बिखर रहा हूँ मैं

क्या सितम है कि फ़र्ज़ करके उसे
तुझको बांहों में भर रहा हूँ मैं

तुझ को हासिल नहीं हूँ पूरी तरह
यह बताने से डर रहा हूँ मैं

पाप करते हुए सितम यह है
एक नदी मे उतर रहा हूँ मैं

कौन ईमान लाएगा मुझ पर
अपने बुत से मुकर रहा हूँ

मुझसे आगे हैं नक़्शे पा मेरे
यह कहाँ से गुज़र रहा हूँ मैं

9)
रौशन अपना भी कुछ इम्काँ होता ।
कारे  तख़्लीक़,  गर आसाँ  होता ॥

मैं कि आइने से होता न अयाँ  ?
अक्स मे अपने जो  पिंहाँ  होता ॥

उसने देखा ना मुझे ख़स्ता हाल।
देख लेता तो पशेमाँ होता ??

सिर्फ होती जो मिरी हद बंदी ।
यूँ ज़माना ये परेशाँ होता ??

दरो दीवार से होता जो घर  ।
क्या मकाँ मेरा बयाबाँ  होता ?

कब कि माँगी थी ख़ुदाई मैंने।
बस कि इक जिस्म का सामाँ  होता ॥

10)
दरे इम्कान खटखटाता है
एक उंगली से सर दबाता है

न बदल जाए रंग मट्टी का
पानियों को गले लगाता है

जिसके चेहरे पे कोई आँख नहीं
वह मुझे रोशनी दिखाता है

चाक करता है दिल ख़लाऔं का
अपने दिल का ख़ला मिटाता है

घूमता है बदन हवाऔं का
कोई बच्चा पतंग उड़ाता है


इन गजलों पर चर्चा शुरू करते हुए वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि ग़ज़ल में नयी कहन मुरादाबाद का नाम रौशन करेगी,यह बात बहुत ज़़ल्द सच साबित होगी। हिन्दुस्तानी फ़लसफ़े की खुली हवाओं में सांस लेती, हालात से रूबरू मुखातिब होने वाले भाई नूरुज्ज़मा को हार्दिक शुभकामनाएं।
मशहूर शायरा डॉ मीना नक़वी ने कहा कि शायर नूरुज़्ज़मां की दस ग़ज़लों ने उनकी शायरी के जहान से वाक़िफ़ कराया। पढ़ कर अच्छा लगा। जिस सलीक़े से उन्होने अपने एहसासात और तख़य्युलात का इज़हार किया है उस से उन की फ़िक्री उड़ान का अन्दाज़ा बख़ूबी हो जाता है। उनकी शायरी ग़ज़ल के एतबार से उनकी विशिष्ट शैली के  आहंग और उसलूब में जलवे बिखेरती नज़र आती है। ग़ज़लों में लय भी है सादगी भी है और शाइसतगी भी। रवाँ दवाँ और पैहम ज़िन्दगी के नित नये मसायल की तर्जुमानी में उम्दा तख़लीका़त अश्आर के रूप में ढली हैं।

मशहूर शायर डॉ मुजाहिद फराज़ ने कहा कि आज जब मुरादाबाद के लिटरेरी क्लब के पोर्टल पर नूर की दस ग़ज़लें पढीं तो बहुत दिनों से ख़याल के घर में सोए हुए पंछी फड़फड़ाने लगे। इसे नूर की शायरी की ताज़गी ही कहा जाएगा कि उसे पढ़ते हुए ज़हनो दिल थकन की चादर उतारकर मज़ीद कुछ पढ़ने का तकाज़ा करने लगे।
वरिष्ठ कवि आनन्द गौरव ने कहा कि  मुरादाबाद लिटरेरी क्लब के पटल पर प्रस्तुत नूर साहब की सभी ग़ज़लें सराहनीय हैं । बड़े अदब से नूर उज़्ज़मा साहब को उनकी अदबी फिक्र औऱ क़लाम के बावत दिली मुबारकबाद।

वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि नूर साहब की ग़ज़लों में उनके भीतर की बेचैनी, कसमसाहट और छटपटाहट स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। वह मशअल बनाने के लिए अपनी आंखों से जुगनुओं के बदन पकड़ते हैं और मिट्टी के कटोरे में फ़लक उतारते हैं। उनकी शायरी भीड़ में उसको पहचानने की कोशिश करती है जिसको वह सिर्फ आवाज से जानते हैं। बाजार में दिलों की कुढ़न बिकते हुए देखकर वह कह उठते हैं - ज़ात का पत्थर उगल कर आ गया, अपने अंदर से निकल कर आ गया और सवाल करते हैं तो क्या मैं गया भी इसी शहर से था, मैं जिस शहर में लौट के आ रहा हूं।यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि नूर साहब की शायरी  की छुअन देरतक रुह में रहती है
युवा शायर फ़रहत अली ख़ान ने कहा कि नूर भाई की शायरी की सब से बड़ी ख़ासियत है इन की फ़िक्र की वुसअत और फिर अल्फ़ाज़ से उस की बुनाई, इस तरह कि शायरी कहीं भी सपाट नहीं होने पाती। जदीदियत का रंग इन की शायरी का बुनियादी रंग है। जो सादगी इन के मिज़ाज में जगमगाती है, वही इन की शायरी को रौशन करती है। बिला-शुबह नूर भाई में एक बड़ा शायर मौजूद है। इन के पास वो टूल्स भी मौजूद हैं जिन से ये अपने फ़न के स्क्रू भली तरह कस सकते हैं।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि मुरादाबाद के  साहित्यिक पटल पर भाई नूर उज़्ज़मां जैसे उम्दा शायर का उभरना अर्थात् मुरादाबाद की गौरवशाली साहित्यिक परम्परा का एक और सुनहरा कदम आगे बढ़ाना।
युवा शायर मनोज मनु ने कहा कि  वाट्स एप.पर संचालित साहित्यिक समूूूह मुरादाबाद लिटरेरी क््लब पर मुरादाबाद के युवा शायर नूर साहब की सभी ग़ज़लें पढ़ी। बहुत अच्छा पढ़ने को मिल रहा है बहुत-बहुत मुबारकबाद आपको  नूर साहब। 

युवा शायरा मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि मुरादाबाद लिटरेरी क्लब द्वारा प्रस्तुत की गईं नूर उज़्ज़मां जी की सभी ग़ज़लें बेहद उम्द़ा व ग़ज़ल की कसौटी पर खरे सोने से चमकती हुई हैं। 


ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि अच्छी बात यह है कि यह शायरी जो कुछ सोचती है वो बयान करने में हिचकते नहीं है, यानी नूर साहसी शायर हैं जिनसे आने वाले वक़्त में हमें और बेहतर शायरी सुनने को मिलेगी। ऐसा मुझे पूरा यक़ीन है।

:::::::प्रस्तुति ::::::::::

ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
"मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" मुरादाबाद।
मो० 8755681225