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गुरुवार, 27 अप्रैल 2023

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की रचना....मत का प्रयोग जरूर करो


लोकतंत्र के महापर्व में, 

हम आज तैयार खड़े हैं।

 'वोट हमें दो'-'वोट हमें दो' ,

इसी बात पर सभी अड़े हैं।।

लेकिन आज वक्त हमारा है,

आओ मिलकर विचार करें।

जो भी ठीक लगे हमको,

उसका फिर प्रचार करें।।

जाकर स्थल मतदान के,

हाजिरी जरूर लगाना तुम।

जो भी करीब दिल के हो,

उस पर मुहर लगाना तुम।।

वरना होगा पछतावा तुमको,

मताधिकार प्रयोग न करने का।

होगा पछतावा पांच वर्ष तक,

एक गलत काम को करने का।।

मानो मेरी नेक सलाह तुम,

मत का प्रयोग जरूर करो।

मित्र-मंडली को समझाकर,

मत देने को मजबूर करो।।


✍️ अतुल कुमार शर्मा 

सम्भल

उत्तर प्रदेश, भारत

रविवार, 26 मार्च 2023

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा का यात्रा वृतांत.... यादगार रहा नेपाल-भारत साहित्य महोत्सव

नेपाल जाते समय अपने घर से निकलने पर मुझे ऐसे लग रहा था जैसे कोई परीक्षा देने जाना है दिमाग में यही चल रहा था कि कोई जरूरी सामान छूट न जाए। दूर जगह और दूसरा देश। अपने देश की तस्वीर दूसरे देश में प्रस्तुत जो करनी थी चाहे कविता के रूप में, चाहे पहनावे के रूप में या फिर सभ्यता के रूप में। रास्ते में ही पता चला कि हमारा मुख्य हथियार यानि 'कलम' हमसे घर पर ही छूट चुका था, हालांकि यह कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी, कोई भी पैन पांच-दस रूपए का कहीं से भी खरीद सकता था लेकिन पता नहीं क्यों ,मन में निश्चय कर लिया कि यह पूरी यात्रा बिना कलम के ही करूंगा। 

हमें अलीगढ़ से जोगबनी तक ट्रेन से जाना था और ट्रेन जाने का समय सुबह 9:30 था ,हम कहीं लेट न हो जाएं इसलिए रामपुर के वरिष्ठ गीतकार श्रद्धेय शिवकुमार चंदन जी को अपने घर पर रात्रि में ही बुला लिया था। 16मार्च की सुबह 6:00 बजे से पहले ही,हम लोगों ने बहजोई के ख्याति प्राप्त साहित्यकार श्री दीपक गोस्वामी चिराग जी का दरवाजा खटखटाया। हो सकता है उनकी श्रीमती जी ने कहा भी हो कि यह लोग न खुद सोएंगे, न हमें सोने देंगे, क्योंकि सुबह की नींद का तो आनन्द ही कुछ और होता है।

 कुछ ही देर में साहित्य के हम तीनों सिपाही अलीगढ़ की बस में सवार हुए और समय से पहले स्टेशन पहुंच गए। 'भारतीय रेलवे लेटलतीफी व्यवस्था' का सम्मान करते हुए, ट्रेन निर्धारित समय से मात्र 20 मिनट लेट थी। रेंगती हुई ट्रेन में हम लोग सवार हो गए और ट्रेन झूंमती-झांमती जोगबनी को रवाना हुई। कहीं अंगड़ाई लेती नजर आती तो कहीं स्पीड पकड़ लेती और जहां उसे याद आ जाता कि उसका नाम एक्सप्रेस भी है तो अपने नाम का सम्मान करते हुए थोड़ा और तेज चल जाती। प्रयागराज ,पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन , मीरजापुर आदि होती हुई ट्रेन 25 घंटे की यात्रा पूरी करके जोगबनी स्टेशन पहुंच गई ।बॉर्डर पर ऊंचा तिरंगा देखकर हमारा सीना फूलता महसूस हुआ और फिर शीघ्र ही हमने नेपाल देश की सीमा में कदम रखा, रिक्शे से विराटनगर (महानगरपालिका) शहर पहुंचे।

हमें नेपाल भारत साहित्य महोत्सव में प्रतिभाग करना था, सीधे कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे। श्री रामजानकी मंदिर के पास होटल में कमरा नंबर 13 में, हमारे ठहरने की व्यवस्था थी। तरोताजा होने के बाद हम लोग, श्री रामजानकी मन्दिर में दर्शन करने के उपरान्त, कार्यक्रम में पहुंचे। प्रोफ़ेसर देवी पन्थी जी अपना उद्बोधन दे रहे थे, देखते ही हमारे नाम पुकारे और रुद्राक्ष माला पहना कर व तिलक लगाकर हम सबका स्वागत किया। इस उद्घाटन सत्र में "हिन्दी और नेपाली भाषा का जुड़ाव" विषय पर चर्चा चल रही थी, वक्ताओं ने अपने-अपने सारगर्भित विचार रखे। भारत के सिक्किम, मिजोरम, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, असम, मध्य प्रदेश आदि राज्यों के अतिरिक्त नेपाल के दूरदराज क्षेत्रों से भी साहित्यकार इस महोत्सव में पहुंचे हुए थे। वक्ताओं में कुछ जमकर नेपाली भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे और भारतीय वक्ता अपने-अपने क्षेत्रों के इतिहास से जोड़कर, हिन्दी भाषा में धाराप्रवाह बोल रहे थे। हाॅल में सूनापन बिल्कुल नहीं था, क्योंकि जब नेपाली बोलते तो नेपाली भाषा के चहेते चहकने लगते, और जब कोई हिन्दी भाषी बोलते तो हिन्दी प्रेमी लोग तालियां बजाते। कुछ ऐसे भी थे जो दोनों भाषाओं पर अधिकार और ज्ञान रखते, तो वे करतल ध्वनि से दोनों ही भाषाओं का सम्मान बढ़ा देते।

प्रथम दिवस में ही काफी कलमकारों ने अपनी रचनाएं पढ़ीं, अनूठा माहौल बना हुआ था, इतने में ही संचालक महोदय ने मेरे नाम को बोलते हुए, मंच पर अपना स्थान लेने की बात कही, लेकिन हमें अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था क्योंकि पूरा हॉल उच्च स्तर के वरिष्ठ कलमकारों से भरा हुआ था,न जाने किस दृष्टिकोण से उन्होंने मुझे मंचस्थ करने का फैसला लिया होगा? खैर हम मंच की ओर बढ़ चले और अपनी जगह ले ली। इतने में ही काठमांडू से आए त्रिभुवन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एवं वरिष्ठ गज़लकार डॉ घनश्याम परिश्रमी जी को मंच पर आमंत्रित किया गया, मैं उनसे पूर्व परिचित था, वे मेरे पास ही सटकर बैठ गए। अब उस सत्र में अपनी प्रस्तुति देने वालों को सम्मानित करने का जिम्मा, मंच पर मौजूद लोगों का ही था। अंत में मंच के लोगों के बोलने का क्रम शुरू हुआ, जिसमें हमने भी अपने कुछ मुक्तक और छोटी सी रचना प्रस्तुत की ,जिसमें भारतीय संस्कृति को पटल पर रखने की पूरी कोशिश की गई थी। सदन का भरपूर स्नेह मिला और फिर नेपाल-भारत साहित्य महोत्सव के आयोजक मंडल ने अंगवस्त्र ,प्रमाण पत्र व स्मृति चिन्ह भेंट किए। तमाम वरिष्ठ साहित्यकारों ने अपने गीत,गजल ,हास्य-व्यंग्य आदि पेश किए ,कुछ युवा कलमकार भी थे, ऐसे खुशनुमा माहौल में साहित्य की लहलहाती फसल देखकर, मेरा मन बहुत प्रफुल्लित था।

दूसरे दिन नाश्ते के बाद कार्यक्रम विधिवत प्रारंभ हुआ जिसमें बहजोई के वरिष्ठ साहित्यकार श्री दीपक गोस्वामी चिराग और रामपुर के जाने-माने गीतकार श्री शिवकुमार चंदन जी को पूरे मान-सम्मान से मंचस्थ किया गया था,मुझे लगा कि नेपाल में पहुंचकर मेरा भारत सिंहासन पर विराजमान है। चारु विधा के जनक प्रोफेसर देवी पन्थी जी संचालन कर रहे थे ,नेपाल और भारत के विभिन्न राज्यों से कुछ अतिथि साहित्यकारों को भी मंचित किया गया और फिर सुनने-सुनाने का क्रम चलता रहा, खूबसूरत माहौल का आनंद लेने के बाद दूसरे दिन के कार्यक्रम को संपन्न किया गया।

शाम को बाजार घूमने निकल पड़े क्योंकि मेरा एकादशी का व्रत था,ऊर्जा हेतु कुछ फल या मिठाई खरीदने थे। बाजार में हर जगह भारतीय और नेपाली मुद्रा के लिए दिमाग लगाना पड़ता और फिर वहां महंगाई सिर चढ़कर बोल रही थी, फलों के भाव सुनकर भूख अपने आप विदा हो गई फिर भी कुछ संतरे ,अंगूर और मिठाई खाकर व्रत पूर्ण किया। मैंने महसूस किया कि स्थानीय लोगों में कठोरता बिल्कुल नहीं थी और न ही कोई चालाकी। कई सरल-हृदय लोगों से संपर्क हुआ उनमें हमारे प्रति सम्मान की भावना झलकती, यानि वहां के अधिकांश लोग दिल के धनी थे। एक जगह जरूर ऐसा मौका आया,  जहां रिक्शेवाले ने हमें बाहरी समझते हुए, चार सौ की जगह एक हजार रूपये भाड़ा मांगा, वहां हमने भी स्वयं को विदेशी स्वीकार करने में देर नहीं लगाई।

हिन्दी भाषा के चलन को लेकर वाकई नेपाल देश की भूरि-भूरि प्रशंसा करनी होगी कि वहां पर आज भी मुद्रा पर हिन्दी अंकों का चलन है और वाहनों पर लगी नंबर प्लेट पर नम्बरों को, देवनागरी लिपि में ही लिखा जाता है,इस विषय पर मैं कहूंगा कि भारत सरकार को भी यह शिक्षा लेनी चाहिए ताकि हिन्दी को बढ़ावा दिया जा सके।

तीसरे दिवस नाश्ते में पतली-पतली करारी जलेबी और चने की दाल के साथ कचौड़ी का लुफ्त लेने के बाद कार्यक्रम हॉल में पहुंचे, आज समापन-सत्र था और हम "क्या खोया-क्या पाया" जैसे विषय पर , मन-मन ही मंथन कर रहे थे। देखा तो क्रान्तिकारी साहित्य अकादमी के संस्थापक व कार्यक्रम संयोजक डॉ विजय पंडित आज का संचालन कर रहे थे। सदन में, नेपाली और हिंदी भाषा में लिखी पुस्तकों का, एक-दूसरी भाषा में अनुवाद को लेकर चर्चा जारी थी। प्रश्नोत्तर चल रहे थे, समस्याओं के समाधान हेतु मंच पर डॉ घनश्याम परिश्रमी जी के साथ ही हिन्दी और नेपाली भाषा के विशेषज्ञ मौजूद थे। धीरे-धीरे कार्यक्रम समापन की ओर बढ़ता चल रहा था,अंत में सभी एक दूसरे को विदा करने और मोबाइल नंबर का आदान-प्रदान करने में व्यस्त दिखाई पड़े।

 हमने कार्यक्रम के उपरान्त शहर के निकट, राजा विराट के महल के भग्नावशेष देखने का निश्चय किया, जो उस स्थान से 8 किलोमीटर की दूरी पर, यादव जाति बाहुल्य गांव भेड़ियारी में था। गांव पहुंचने पर देखा कि चारदीवारी में खंडहरनुमा अस्त-व्यस्त टीला और पड़ोस में माता भुवनेश्वरी का मंदिर और विराटेश्वर महादेव का मंदिर बना था। इस स्थान के संरक्षक श्री कमल किशोर यादव जी से मुलाकात हुई जिन्होंने निजी स्तर पर कुछ पुराने अवशेष एकत्रित कर रखे थे, जैसे - नापतोल के बाट, प्राचीन शिलालेख, सिलौटा, मूर्तियां, हाथी दांत का पासा, तांबे व अन्य धातु के सिक्के, मूंगा रत्न आदि। सरकार की उदासीनता पर यादव जी खासे नाराज दिखे हालांकि कुछ समय पहले ही प्रशासन ने राजा विराट के नाम पर संग्रहालय और उसके सामने चौक में राजा विराट की प्रतिमा स्थापित की है।

बताया जाता है कि जोगबनी का प्राचीन नाम सुंदरवन था जिसमें ऋषियों के तपस्या करने के कारण इसका नाम बाद में योगमुनि, तत्पश्चात जोगबनी पड़ा। यहीं पर प्राचीन काल में एक शमी का वृक्ष था जिस पर पांडवों ने अपने अस्त्र-शस्त्र छुपा दिए थे और दुर्योधन से छुपते हुए, मत्स्य देश के राजा विराट के महल में नाम परिवर्तन कर, अज्ञातवास का समय व्यतीत किया था जिसमें युधिष्ठिर ने अपना नाम कंक रखा और एक ब्राह्मण सलाहकार एवं मंत्री की भूमिका में रहे, भीम ने अपना नाम बल्लभ रखकर रसोई का कार्य संभाला, अर्जुन ने बृहन्नला नाम रखकर राजा के यहां संगीत-नृत्य सिखाया, नकुल ने अपना नाम ग्रन्थीक रखते हुए अश्वसेवक के रूप में कार्य किया, सहदेव ने तंत्रिपाल नाम से चरवाहा बनकर गायों की जिम्मेदारी ली और द्रौपदी ने सैरन्द्री नाम रखकर रानी के श्रृंगार करने का काम किया।

इस तरह पांडवों ने एक वर्ष तक अपने को छुपाए रखा, वहीं के लोगों ने बताया कि भारत-नेपाल सीमा क्षेत्र पर ही कीचक वध पोखर है जो कि आज भी अस्तित्व में है, जिनके संरक्षण हेतु प्रयासों की बहुत कमी है। खैर! इतिहास सहेजे रखने के लिए, ऐसे स्थलों को सुरक्षित रखना चाहिए।

अब हमारी ट्रेन का समय हो चला था हम लोग तुरन्त होटल पहुंचे और फिर "अलविदा नेपाल" कहने का समय आ गया। जैसे ही नेपाल बॉर्डर से निकलकर भारत की सीमा पर कदम रखे, दिल में कुछ अलग-सी खुशी और हलचल होने लगी। रात्रि में लहराता ऊंचा तिरंगा देखकर सीना चौड़ा हो गया और मन में अविस्मरणीय उत्साह। गाड़ी ठीक समय पर चल पड़ी, हम लोग पूरी रात और दिनभर सफर करने के बाद रात में एक बजे, इस यात्रा के परम सहयोगी कवि दीपक गोस्वामी जी के घर पहुंचकर, रात्रि विश्राम किया और सुबह दही-पराठे खाकर अपने घर को निकल पड़े।

घर पहुंचते-पहुंचते मैं भरपूर थक चुका था, हल्की झपकीं में भी रेलगाड़ी के झोंकें पीछा नहीं छोड़ रहे थे, फिर भी इतना अवश्य चाहुंगा कि साहित्य सेवा के लिए मैं कभी थकूं नहीं, रुकूं नहीं, और सतत् मेहनत करता रहूं, ऐसे पावन मौके मेरे जीवन में बार-बार आते रहें, ईश्वर से यही प्रार्थना है‌।























✍️ अतुल कुमार शर्मा

सम्भल

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल-8273011742

सोमवार, 23 जनवरी 2023

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद संभल ) के साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग की कृति बाल रामायण की अतुल कुमार शर्मा द्वारा की गई समीक्षा ...रामरस में जलते दीपक की अलौकिक आभा.

आज हम ऐसे युग में जीवन व्यतीत कर रहे हैं, जहां हम अपने आप को ही समय नहीं दे पाते। सुबह से शाम तक मशीन की तरह काम करते हुए भी, मन में चैन नहीं, आत्मा को शांति नहीं, हृदय में संतोष नहीं। जिसके पास जितनी अधिक दौलत है ,उसको उतना अधिक मानसिक असंतोष भी है क्योंकि हमारी इच्छाएं कभी पूर्ण होने का नाम नहीं लेतीं और न ही हम लालच के चलते थकान मानने को तैयार होते हैं। इस भागदौड़ में अपने रिश्ते को निभाना भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं है। पारिवारिक रिश्तों को बांधे रखना और सास-बहू, पिता-पुत्र, मां-बेटा, भाई-भाई के प्रति कर्तव्यों का निर्वहन करना, आज के समय में तो लगभग असम्भव ही प्रतीत होता है ।ऐसे विकृत समाज को, किस तरह सुसंगठित, सुसंस्कृत एवं सुसभ्य बनाया जाए? यह एक कठिन प्रश्न है। साहित्य की भूमिका ऐसे जटिल समय में और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। गीता, रामायण और रामचरितमानस भारतीय संस्कृति के आधार हैं ,आध्यात्मिक जगत एवं मन की दृढ़ता हेतु इनका अध्ययन आवश्यक है लेकिन व्यक्ति के पास समय का अभाव है। ऐसे में कवि दीपक गोस्वामी चिराग ने, अपने शब्दों को एक ऊंची मशाल की भांति, "बाल रामायण" के रूप में प्रस्तुत किया है जिसको बच्चे  आसानी से समझ सकेंगे तथा संक्षेप में रामायण और रामचरित्र की समझ, अपने अंदर विकसित कर सकेंगे। आकर्षक तरीके से कवि ने पद्य रूप में, रामायण के प्रमुख प्रसंगों तथा सनातनी परंपराओं का उल्लेख किया है, यहां तक कि श्री राम स्तुति को भी अपने ढंग से प्रस्तुत कर, भगवान राम का गुणगान किया है। चारों भाइयों एवं उनकी पत्नियों का परिचय चार लाइनों में समेट कर, कवि ने अपनी योग्यता का परिचय दिया है-

"सिया-राम की मिल गई जोड़ी ,गया अवध को भी संदेश ।

भरत शत्रुघ्न साथ लिए फिर, दशरथ आए मिथिला देश।

लखन लाल ने पाई उर्मिला, और मांडवी भरत के साथ।

छोटे भ्राता शत्रु-दमन ने,श्रुतिकीरत का थामा हाथ।"

कई-कई प्रसंगों का विवरण कुछ ही पंक्तियों में भरना और फिर उसके दृश्यों को भी स्पष्ट कर देना, यह कठिन कार्य है। राम रावण युद्ध की मुख्य कारण बनी सूपर्नखा का, रावण के दरबार में जाकर किए गए विलाप का दृश्य देखिए-

"राम-लखन हैं वे दो भ्राता, दोनों अवधी राजकुमार।

साथ लिए इक नारी सीता,जो सुंदर है अपरंपार।

बदला मेरा ले लो भ्राता,हुआ निशाचर कुल पर वार।

छाती मेरी तब ठंडी हो,हर लाओ तुम उनकी नार।"

अरण्यकांड में हम पढ़ते हैं कि माता सीता का हरण होने पर जटायु, रावण पर हमला बोल देता है, बलशाली रावण के सामने पूरे साहस से लड़ता है, लेकिन विवश हो जाता है और भगवान राम को यह राज बताने के बाद, कि 'सीता का हरण रावण ने किया है' वह प्राणों को त्याग देता है। धर्म की राह पर न्योछावर होने वाले जटायु ने भी भगवान राम की मदद की , इससे सिद्ध होता है कि पशु-पक्षियों में भी, श्रीराम के प्रति प्रेम भरा था।इस दृश्य को दीपक जी इस प्रकार प्रस्तुत करते हैं-

"वन-वन,उपवन खोजैं राघव, नहीं मिली सीता की थाह।

पढ़ा अधमरा मिला जटायू, देख रहा रघुवर की राह।

दसकंधर ने हर ली सीता, किया गीध ने यही बयान।

ज्यौं रघुवर ने गले लगाया, छोड़ दिए फिर उसने प्रान।"

शक्ति और धन का घमण्ड, उस व्यक्ति को स्वयं को ही तोड़ देता है, क्योंकि वास्तविकता को अधिक समय तक नहीं दबाया जा सकता । एक तरफ रामा दल में भाई-भाई के प्रति अपार स्नेह दिखता है, दूसरी तरफ रावण अपने भाई विभीषण को लात मारकर अपने राज्य से निकाल देता है। इसी से रुष्ट होकर, विभीषण भाई रावण की मृत्यु का कारण बन जाता है, उधर शत्रु-दल का होने के बाद भी ,श्रीराम विभीषण को स्नेह प्रदान करते हैं । इस प्रसंग पर कवि ने लिखा है -

"भक्त विभीषण ने समझाया, रावण नहीं रहा था मान।

दसों दिशाओं का था ज्ञाता, आड़े आता था अभिमान।

ठोकर मार विभीषण को जब, दिया राज्य से उसे निकाल।

राम-भक्त था संत विभीषण, पहुंचा रामा दल तत्काल।

उत्तरकांड में राम राज्य का बहुत सुंदर दृश्य देखने में आता है, जहां धर्म है, नीति है, प्रेम है, संयम है, न्याय है, मर्यादाएं हैं, कर्तव्यनिष्ठा का भाव है, भाईचारा है। ऐसे रामराज्य की कल्पना करना जितना सुखद है, उसे स्थापित करना आज के समय में उतना ही मुश्किल भी है। रचियता ने रामराज्य का एक चित्र खींचा है-

"सिंहासन पर बैठे रघुवर,हो गए हर्षित तीनों लोक।

चहुँदिशि बरस रही थीं खुशियां,नहीं दिखे था किंचित शोक।

मालदार हो या हो निर्धन, नहीं न्याय में लगती देर।

एक घाट सब पानी पीते,या हो बकरी या हो शेर।"

"बाल रामायण" की रचना करके दीपक जी ने आज के जहरीले परिवेश में, भक्ति रस की धारा को प्रवाहमान करके, न केवल सुंदर कार्य किया है, बल्कि एक धार्मिक अनुष्ठान किया है, 108 कुंडलीय यज्ञ किया है, नई पीढ़ी को संस्कार देने की कोशिश की है, गृहस्थजनों को अपने परिवारों को संगठित रखने की अपील की है,बच्चों में माता-पिता के प्रति पवित्र भाव रखने की सीख दी है, जन-जन को धर्म के मार्ग पर चलने को प्रेरित किया है। अर्थात कुल मिलाकर संपूर्ण समाज की बिगड़ती आकृति को, सुडौलता प्रदान करने की भरपूर कोशिश की है।


कृति : "बाल रामायण" (काव्य)

रचयिता : दीपक गोस्वामी "चिराग"

प्रथम संस्करण : 2022, मूल्य: 160 ₹

प्रकाशक : सस्ता साहित्य मण्डल प्रकाशन,न‌ई दिल्ली


समीक्षक
: अतुल कुमार शर्मा

सम्भल

उत्तर प्रदेश, भारत

मो०-8273011742



रविवार, 23 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की रचना ....एक दीपक मन में जला लो


एक दीपक मन में जला लो।

परम ज्योति उससे जगा लो।।

जो अंधज्ञान को मिटा दे,

ईर्ष्या का तम घटा दे,

जो दूसरों को प्रकाश दे,

निराशा को भी आस दे,

पाप की गगरी को चटका दे,

निशा का पथ भी भटका दे,

मन को पुण्य की राह चला लो,

एक दीपक मन में जला लो।‌।

माना आज सूरज भी शरमा जाए,

शरद मौसम भी दीपों से गर्मा जाए,

घना अंधेरा कहीं छिप न पाए,

परछाईं भी न परछाईं बनाए,

यह पर्व सदा जग रोशन कर जाए,

हममें भरपूर ज्ञान भर जाए,

रीति एक प्रीत की,ऐसी चला लो,

एक दीपक मन में जला लो।।

जो बुराई का दहन कर सके,

मन,सत्य को सहन कर सके,

जो धोखेबाजी का दफन कर सके,

कुनीति का कफन बन सके,

दया-धर्म का वक्ष बन सके,

अद्भुत प्रेम की ज्योति जला लो,

एक दीपक मन में जला लो।।

माना यह दीपक जलाए तुमने,

गली-मोहल्ले जगमगाए तुमने,

सोचो क्या नया किया तुमने?

क्या गिरते को सहारा दिया तुमने?

क्या गरीब की कुटिया को निहारा तुमने ?

क्या फैलाया उसमें उजियारा तुमने ?

आज कर किसी का भला लो,

एक दीपक मन में जला लो।

परम ज्योति उससे जगा लो।।


✍️ अतुल कुमार शर्मा

 सम्भल 

उत्तर प्रदेश, भारत



रविवार, 18 सितंबर 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा का संस्मरण ...नंगेपन की दौड़

 


मैं छोटा था ,मेरा गांव भी छोटा था ,लेकिन जैसे-जैसे मैं बड़ा होता गया , वैसे-वैसे कुछ और चीजें भी विस्तार लेती चली गईं, जैसे- गांव का आकार, मतदाताओं की सूची, विभिन्न कृषि यंत्र, रोजगार के लिए पलायन ,लेकिन इसके साथ ही कुछ चीजें घटी भी, जैसे- खेती की जमीन, लोगों के दिलों का प्रेम, चौपालों पर जमा होने वाले लोगों की संख्या। खैर! जोड़-घटा-नफा-नुकसान ,यह सब जिंदगी के हिस्से ही हैं ,लेकिन आज भी वे दिन याद आते जरूर हैं, जिसमें जरूरतें कम थीं, समय खूब था। रिश्तेदारियों में रुकने और मेहमाननवाजी के लिए खूब वक्त था। पढ़ाई का बोझा भी ,ना के बराबर । बिना सिनेमा हॉल के ही भरपूर मनोरंजन और खाने-पीने की शुद्ध चीजों की भरमार ,खेत में उगने वाली सब्जियों का तो, आनंद ही कुछ और था। हमारे खेतों में जामुन, आम, शहतूत ,बेल और अमरूद के पेड़ ,जिसके फल कभी-कभार ,ही हमें मिल पाते थे क्योंकि रखवाली करने वाला कोई था नहीं ।गांव के आवारा किस्म के बच्चे और बंदर ही,उन फलों से हिसाब चुकता करते थे , कच्चे फल तोड़ने से हालांकि उनको कोई लाभ तो नहीं होता था ,मगर हमारा नुकसान जरूर कर देते थे ।

इन्हीं पेड़ों पर,सावन के महीने में झूले पड़ जाते, जो लगभग पूरे महीने चलते, भले ही त्योहार केवल एक दिन का होता ,यानिकि हरियाली तीज के दिन मनाया जाने वाला, महिलाओं का विशेष पर्व।

उधर जब कभी खेतों की जुताई होती और पटेला लगने की बारी आती तो ताऊ जी के पैरों के बीच बैठकर पटेला की सवारी ,हमारी खुशियों को कई गुना बढ़ा देती। ताऊ के लिए खेत पर पहुंची ताई के हाथ की पनपथी रोटी में कभी-कभी हम ताऊ का हिस्सा चट कर जाते, इस तरह ताई की रोटी और ताऊ के प्यार के बीच बीता बचपन, पूरी जिंदगी के लिए किसी प्रशिक्षण से कम नहीं था। मेरी सरलता और कम बोलने का गुण, शायद मुझे सबका प्यार दिलाने में सहायक होता।संयुक्त परिवार में होने के कारण ही, मैं सबका प्यारा था लेकिन फोकट में मिलने वाले उस प्यार का ,मैंने कभी गलत फायदा नहीं उठाया। तीन बड़ी बहनों द्वारा चिढ़ाना,कभी दुलारना, कभी मेरे पीछे उनकी दौड़ या कभी उनके पीछे मेरा दौड़ना,योगा जैसी पूर्ति तो आसानी से कर ही देता था। घर से खेत की दूरी अधिक न होने के कारण ,दिन में कई चक्कर लग जाते,जो कि मॉर्निंग वॉक और ईवनिंग वॉक की सारी कमी दूर कर देता।

खेत के रास्ते में एक मोड़ पर, इकलौता सुनार परिवार रहता, जिसके घर में बड़ा-सा नीम का पेड़ था। जिसका नामकरण, शायद गांव वालों ने ही किया होगा,नाम था- "सुनारों वाला नीम" । लेकिन समय बीतने पर एक दिन वह किसी बेदर्द तूफान का कोपभाजन बन गया, जो बहुत बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन की आपूर्ति जरूर करता रहा होगा, लेकिन यह ज्ञान हमें उस समय तो बिल्कुल था ही नहीं।उसके खत्म होने से हमें केवल इतना दुख था कि गर्मियों में पेड़ के नीचे खड़े होने वाले तरबूज-खरबूज के ठेले, आइसक्रीम-कुल्फी वाला या फिर सांपों और रीछ का खेल दिखाने वाले ,अब वहां नहीं ठहर पाएंगे और हम इन सुविधाओं से वंचित रह जाएंगे ,हालांकि बड़े होकर ऐसी सुख-सुविधाओं से हम स्वतः ही दूर होते चले गए।

 आखिर हम भी पढ़ाई के लिए शहर में बसे तो जरूर, लेकिन मन आज भी गांव में बसता है, क्योंकि आज भी गांव में प्रेम ,सहानुभूति, सम्मान, सहयोग और परस्पर रिश्तों की पवित्रता का कोई तोड़ नहीं है, बल्कि शहर का आदमी, गांववासियों की अपेक्षा अधिक जोड़-तोड़,प्रतिस्पर्धा ,फैशन के नाम पर नंगेपन की होड़ में, दिशाविहीन होकर, अनियंत्रित स्थिति में, निरंतर दौड़ रहा है ,और पैसे की चाहत में भटकते हुए, इन्सान इंसानियत को छोड़ रहा है।


✍️ अतुल कुमार शर्मा

 सम्भल 

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल:8273011742

रविवार, 31 जुलाई 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा के पांच दोहे ....


श्रावण शुक्ला तीज को, देख अनोखे रंग।

झूलें झूला झूम के, सब सखियन के संग।।


सज-धज कर तैयार हो,चलीं मायके बाग।

हर शाखा झूला पड़े, गावें न‌ए-न‌ए राग।।


गौरी का पूजन किया, और पकाई खीर।

मन खुश इतना तीज पर, बची कोई न पीर।


महावर एड़ी धरी, पहनीं चूड़ी हाथ।

मेला देखन वो चली, बटुआ लेकर साथ।।


हर हाथ मेंहदी रची, खा मीठे पकवान।

और खुशी से झूमते, बड़े-बड़े धनवान।।


✍️ अतुल कुमार शर्मा

सम्भल

उत्तर प्रदेश, भारत


सोमवार, 21 मार्च 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की रचना---कविता कभी नहीं मरती


धरने पर बैठे किसानों के तंबुओं की तरह,

नहीं होती हैं कविताएं,

कि सरकार की सख्ती और हठधर्मिता के सामने,

यूं ही उखड़ जाएं।

या फिर तूफानों में उजड़ जाएं,

जंगलों की तरह,

या जल जाएं,

घास-फूस के छप्परों सी,

घुल जाएं जहरीली हवा में,

या दब जाएं ऑफिस की फाइलों सी।

मिल जाए जैसे दूध में पानी,

और कोहरे में छिप जाए,

सूरज की तरह,

कविता कविता है,

जो कभी नहीं मरती,

दिलों पर करती है राज,

एक रानी की तरह।

कविता की कीमत, 

कीमती आदमी ही जानता है,

उस की आन-बान-शान को पहचानता है,

संस्कृति से इसका अटूट नाता है,

कविता किसी सभ्य समाज की निर्माता है।

कविता को विचारों का भूखंड चाहिए,

भाव रूपी ईटों की मजबूती चाहिए,

हो समस्या की सरियों का जाल,

कुंठा को तोड़ने वाली,

ऐसी रेती चाहिए।

फिर लगाकर सहानुभूति का सीमेंट,

मिटाया जाता है,

खुरदुरेपन का एहसास,

डाल दी जाती है, संस्कारों की छत,

और पहना दिया जाता है प्यारा-सा लिबास।

करके दुनिया का श्रंगार फिर,

दीनता का समाधान बन जाती है कविता,

और पहन संस्कृति का परिधान,

हर समस्या का निदान बन जाती है कविता।


✍️ अतुल कुमार शर्मा

 सम्भल

उत्तर प्रदेश, भारत

 मोबाइल-8273011742

बुधवार, 19 जनवरी 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा का व्यंग्य ---एक स्वामीभक्त का पत्र


साहब जी ,

आपके गरिमामयी गमन के बाद ,यहां आपकी कर्मशाला रूपी कार्यालय में सब कुछ अस्त-व्यस्त हो गया और मैं जबरदस्त आर्थिक रूप से त्रस्त हो गया हूं। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आप अपने नए जिले में पहुंचकर पद पर आसीन हो चुके होंगे, क्योंकि आपके अंदर जो गुणों की खान है वह अद्वितीय है ,जिससे मैंने भी कुछ ग्रहण करने की कोशिश की थी। उन्हीं गुणों से मेरा गुजारा भी ठीक-ठाक चल रहा था लेकिन समय को कुछ और ही मंजूर था।

 जब से आप गए हैं, तब से ऑफिस वाले दूसरे बाबुओं ने, मेरा जीना दुश्वार कर दिया है ,नए साहब की सेटिंग, मोटे चश्मे वाले बाबू से बन गई है क्योंकि दोनों ही हर शाम कांच की प्यालियों का स्वाद लेते हैं और आजकल सारी फाइलों पर उसी का कब्जा चल रहा है ।खैर मैं भी आपका चेला रहा हूं, निकाल लूंगा कोई बीच का रास्ता ,जिससे मेरा भी दाना पानी चलता रहे। वरना तो मेरी लक्जरी गाड़ी, मुझे मुंह चिढ़ाएंगी ,बच्चों के हॉस्टल वाले, मेरी राह ताकेंगे और घर में काम करने वाले दोनों नौकर, अपनी-अपनी पगार को तरस जायेंगे। छोटी-सी तनख्वाह में तो दाल-रोटी के सिवाय क्या खा पाऊंगा, साहब जी? आपकी छत्रछाया में तो मेरा सब-कुछ अच्छा चल रहा था, आप बहुत ही ईमानदारी से ,मेरी बाबूगिरी की कद्र करते हुए,जजिया कर के रूप में, निर्विवाद तरीके से, दस परसेंट कमीशन थमा देते थे और मैंने भी आपको कई मामलों में तो ,पूरा-पूरा हिस्सा ही दिलवाया था ।

आपकी कुर्सी की कसम, मैंने आप से छुपा कर कोई रिश्वत नहीं ली । आप ही बताओ कि आपाधापी भरे इस कलियुग में, मुझ जैसा निष्ठावान स्वामीभक्त मिल सकता हैं क्या?

 और हां ! इसी बात पर याद आया कि हमारे पड़ोसी वर्मा जी ,अपने झबरीले कुत्ते की स्वामीभक्ति का बहुत रौब झाड़ते थे ,एक दिन बंदर ने उन पर हमला बोल दिया तो उनका शहंशाह कुत्ता अंदर वाले कमरे में ,खाट के नीचे घुस गया और जब तक नहीं निकला ,जब तक कि वर्मा जी को इंजेक्शन लगवाने का इंतजाम पूरा न हो गया। बहुत  क्या कहना?  स्वामीभक्ति का दूसरा उदाहरण मुझ जैसा आपको नहीं मिलेगा। आपको याद होगा कि  आपके ट्रांसफर से चार दिन पहले ही, नियुक्ति प्रकरण में,ऑफिस में आकर नेताजी, कितनी बुरी तरह आपको डांट रहे थे और आप सर को नीचे झुका कर सुन रहे थे उनकी फटकार ।

 फिर मैंने ही आपका पक्ष लिया था और नेता जी को पलक झपकते ही शांत करके, पांच परसेंट पर पटा लिया था ।

फिर भी साहब जी , मैंने तो एक बात गांठ बांध रखी है कि बेईमानी का पैसा, जितनी ईमानदारी से और जितनी जल्दी, प्रत्येक पटल पर पहुंच जाता है उसका हिसाब उतना ही साफ-सुथरा रहता है ।

और तो और ,आॅडिटर भी फाइल से पहले नामा देखता है जिस कोटि के नामा होते हैं, उतनी ही पवित्र भावना से ,उस फाइल का लेखा-जोखा देखता है।

 खैर !आपसे क्या रोना, अपने मन की भड़ास  निकालने के लिए आपको पाती लिखी है, क्योंकि आपका फोन उसी दिन से बंद था और सरकारी नंबर को रिसीव न करने की, आपकी पुरानी आदत जो ठहरी ।

फिर भी मुझे यह अपेक्षा रहेगी कि आप मुझसे फोन जरुर करेंगे।अब तो अपनी सांठ-गांठ में और गांठ लगने की गुंजाइश भी नहीं बची। आपको वहां भी काफी बकरे मिल जाएंगे और मैं भी अपना खर्चा चलाने को,तलाश करने में जुटूंगा -"छोटे-छोटे मुर्गे"।

अपने-अपने कद और पद के अनुसार शिकार ढूंढेंगे, आखिर पूरी करनी है जिंदगी,और काटना है यह मनहूस जीवन,इन्हीं मुर्गे और बकरों के साथ।


आपका अपना

"परेशान आत्मा"


✍️अतुल कुमार शर्मा 

सम्भल, उत्तर प्रदेश, भारत

शुक्रवार, 17 दिसंबर 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल के प्रख्यात गीतकार स्मृतिशेष रामावतार त्यागी की जन्मभूमि कुरकावली में अमृत महोत्सव आयोजन समिति की ओर से गुरुवार 16 दिसम्बर 2021 को राष्ट्रवादी कविसम्मेलन का आयोजन

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल की अमृत महोत्सव आयोजन समिति के अध्यक्ष एडवोकेट राहुल दीक्षित एवं भू केंद्र शर्मा के निर्देशन और प्रख्यात साहित्यकार त्यागी अशोक कृष्णम के संयोजन में  प्रख्यात गीतकार स्मृतिशेष रामावतार त्यागी की जन्मभूमि कुरकावली में स्वाधीनता का अमृत महोत्सव कार्यक्रम श्रंखला के अंतर्गत राष्ट्रवादी कविसम्मेलन का आयोजन गुरुवार 16 दिसम्बर 2021  को किया गया।  कार्यक्रम की अध्यक्षता ए के रिसॉर्ट के स्वामी अमित त्यागी ने की। मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिला प्रचारक आशुतोष जी थे। 

कार्यक्रम का शुभारंभ भारतमाता के चित्र पर माल्यार्पण एवं सिकन्दराराऊ हाथरस से पधारीं कवयित्री उन्नति भारद्वाज द्वारा प्रस्तुत मां सरस्वती वंदना से हुआ । इसके पश्चात उन्होंने राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत रचनाएं प्रस्तुत कर सभी का मन मोह लिया । सम्भल की पावन धरा को नमन करते हुए उन्होंने कहा ---

पृथ्वीराज की राजधानी का गुणगान करती हूं,

शंकर जी की इस पावन धरा का मान करती हूं,

श्रीमद् भागवत में है कल्कि अवतार का वर्णन ,

प्रकट होंगे जहां विष्णु उनका यशगान  करती हूं।

  कवि सम्मेलन का संचालन करते हुए प्रख्यात व्यंग्य कवि त्यागी अशोक कृष्णम का कहना था ---

 भारत माता की रखी वीरों ने ही लाज 

 प्राण निछावर कर दिए देश धर्म के काज

 वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कोरोना के संदर्भ में रचना प्रस्तुत की ---

 मत कहो वायरस जहरीला बहुत

 इंसान ही आजकल कमजोर है

 आगरा के चर्चित कवि दीपक दिव्यांशु ने तालियों की गड़गड़ाहट के बीच रचना प्रस्तुत की ---

 भारती के चीर पर जब भी नजर गंदी पड़ी।

हुक्मरानी हस्तियों की आंख जब उस पर गढ़ी।

तो ढाल बनकर मौत की संगीन लेकर निज करों में।

जिंदगी का दान देकर जंग हमने है लड़ी।

      युवा साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा ने अपनी सँस्कृति और परंपराओं से जुड़ने का आह्वान करते हुए कहा ---

 सूर्य अर्घ्य और गाय की पहली रोटी ,हमें अच्छे से याद है।

 तुलसी पूजा और  चौपालों का सत्संग भी याद है।

 सुजातपुर के कवि प्रदीप कुमार का स्वर था ---

 मिला है नीर गंगा का शहीदों के लहू के संग।

है चंदन से भी पावन मेरे हिंदुस्तान की मिट्टी।

इस अवसर पर स्मृतिशेष रामावतार त्यागी जी के भतीजे राहुल त्यागी ने शेरजंग गर्ग द्वारा संपादित कृति " हमारे लोकप्रिय गीतकार - रामावतार त्यागी " सभी कवियों को भेंट की । आयोजकों द्वारा सभी कवियों को अंगवस्त्र ,सम्मान पत्र व सम्मान राशि प्रदान कर सम्मानित भी किया गया । कार्यक्रम में मुख्य रूप से पूर्व एमएलसी भारत सिंह यादव, लोकतंत्र सेनानी चौधरी महिपाल सिंह, चौधरी नरेंद्र सिंह, योगेंद्र त्यागी, प्रदीप कुमार त्यागी, प्रेमराज त्यागी, खिलेंद्र सिंह, सुभाष चन्द्र शर्मा आदि उपस्थित रहे ।






























:::::::प्रस्तुति:::::

त्यागी अशोक कृष्णम 

कुरकावली, जनपद सम्भल

उत्तर प्रदेश, भारत