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सोमवार, 30 सितंबर 2024

मुरादाबाद की संस्था उर्दू साहित्य शोध केंद्र की ओर से 26 सितंबर 2024 को आयोजित मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन द्वारा संपादित पुस्तक दीवाने काफी का लोकार्पण समारोह

मुरादाबाद की संस्था उर्दू साहित्य शोध केंद्र की ओर से 26 सितंबर 2024 गुरुवार को हैविट मुस्लिम इंटर कॉलेज में आयोजित समारोह में मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन द्वारा संपादित पुस्तक दीवाने काफी का लोकार्पण किया गया। यह कृति 1857 के सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी किफ़ायत अली काफ़ी मुरादाबादी की नातों का संग्रह है जो प्रथम बार प्रकाशित हुआ है। इस अवसर पर राहत मौलाई मेमोरियल कमेटी की ओर से असद मौलाई ने डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन को सम्मानित भी किया गया। 

 फरहान राशिद द्वारा प्रस्तुत काफी मुरादाबादी की नात से शुरू हुए इस समारोह की अध्यक्षता करते हुए शायर मंसूर उस्मानी ने कहा कि मुरादाबाद के स्वतंत्रता सेनानियों के साहित्य को संरक्षित रखने के क्रम में यह डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन का दूसरा प्रयास है। इससे पूर्व वह भगवत शरण अग्रवाल मुमताज के ग़ज़ल संग्रह जज्बाते मुमताज़ संपादित कर चुके हैं।      मुख्य अतिथि पद्मश्री प्रोफेसर अख्तरुल वासे ने कहा कि डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन का यह प्रयास सराहनीय है, स्वतंत्रता सेनानियों के साहित्यिक कार्यों और उनसे जुड़ी चीजों को संरक्षित रखना हम सब की ज़िम्मेदारी है। 

     मासूम मुरादाबादी ने कहा कि किफायत अली काफी मुरादाबाद का एक बड़ा नाम है जिनके सम्बन्ध में अक्सर लोग जानना चाहते थे, डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन मुबारकबाद के पात्र हैं कि उन्होंने ऐसे व्यक्तित्व पर शोध कार्य किया। 

      जामिया मिल्लिया के पूर्व सब रजिस्टार अफ़ज़ालुर रहमान ने कहा कि खुशी की बात है कि  ताज़ा प्रकाशित होने वाले डिविज़नल गजेटियर में भी किफायत अली काफी मुरादाबादी का उल्लेख किया गया है। ऐसे प्रसिद्ध क्रांतिकारी की यादों को सुरक्षित रखना बहुत जरूरी था और यह काम डॉक्टर मोहम्मद आसिफ हुसैन ने बहुत अच्छी तरह अंजाम दिया है। 

     इंजीनियर हयात उल नबी खान ने कहा कि मुरादाबाद वासियों की स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका रही है, लेकिन आज उन सेनानियों की निशानियां भी मौजूद नहीं है। ऐसी स्थिति में ढूंढ ढूंढ कर उनकी निशानियां और कार्यों को नई पीढ़ी तक पहुंचाना हम सब की जिम्मेदारी है और यह काम डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन बड़ी दिलचस्पी के साथ कर रहे हैं। 

  डॉ अब्दुल रब उर्दू विभाग अध्यक्ष एम एच कॉलेज मुरादाबाद ने कहा कि काफी मुरादाबादी सिर्फ स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं बल्कि मुरादाबाद में गजल की परंपरा का एक स्तंभ भी हैं । 

      डॉ आबिद हैदरी उर्दू विभाग अध्यक्ष एमजीएम कॉलेज संभल ने कहा कि काफी मुरादाबाद के साथ-साथ उन लोगों पर भी शोध करने की आवश्यकता है जो स्वतंत्रता संग्राम में उनके साथ रहे। 

     अमरोहा से आए प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ मिस्बाह अहमद सिद्दीकी ने कहा कि इस नाव प्रकाशित पुस्तक को देखकर मालूम होता है कि डॉक्टर मोहम्मद आसिफ हुसैन उर्दू भाषा के साथ-साथ अरबी और फारसी भाषा का भी अच्छा ज्ञान रखते हैं।

    इंजीनियर फरहत अली खान ने लोकार्पित पुस्तक की विस्तृत समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा कि पुस्तक का प्रकाशन करके डॉ आसिफ ने एक महत्वपूर्ण और दस्तावेजी कार्य किया है।

    कार्यक्रम में  मुफ्ती मुइज़ आलम, मुफ्ती फैज आलम, मुफ्ती दानिश कादरी,  तनवीर जमाल उस्मानी, डॉ मुजाहिद फ़राज़, डॉ मनोज रस्तोगी, जिया जमीर आदि उपस्थित रहे। संचालन सैयद मोहम्मद हाशिम ने किया ।


























मंगलवार, 7 मई 2024

उर्दू साहित्य शोध केंद्र मुरादाबाद की ओर से रविवार 5 मई 2024 को यादें सतीश फिगार कार्यक्रम आयोजित



मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष सतीश कुमार गुप्ता फि़गार मुरादाबादी को याद करते हुए उर्दू साहित्य शोध केंद्र मुरादाबाद की ओर से रविवार 5 मई  2024 को आयोजित परिचर्चा में साहित्यकारों ने कहा सतीश फिगार का मुरादाबाद के उर्दू साहित्य में उल्लेखनीय योगदान रहा है।

 दीवान का बाजार में आयोजित कार्यक्रम यादें सतीश फिगार  का प्रारंभ उनके द्वारा लिखित हम्द (ईश वंदना) से मोहम्मद ज़हीन ने किया । कार्यक्रम संयोजक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने सतीश फिगार की शख्सियत और शायरी के हवाले से एक विस्तृत आलेख प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने फि़गार साहब की शायरी एवं उनकी रचना धर्मिता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि मुरादाबाद के साहित्यिक इतिहास में सतीश फ़िगार एकमात्र हिंदू शायर हैं जिनका नातिया काव्य संग्रह प्रकाशित हुआ। उनका निधन बीती 7 अप्रैल को हो गया था।

    प्रख्यात शायर मंसूर उस्मानी ने सतीश फ़िगार की शायरी पर बात करते हुए बताया कि कुछ शायरों के दरमियान किसी बिंदु पर चर्चा हो रही थी, फिगार साहब ने उस में भाग लेना चाहा तो उनसे कहा गया कि आप शायर नहीं है, इस चर्चा में भाग नहीं ले सकते हैं। फिगार साहब ने  उसी समय ठान लिया कि वह एक बड़ा शायर बनकर दिखाएंगे। अतः वह तत्कालीन प्रसिद्ध उस्ताद शायर शाहबाज अमरोही की खिदमत में पहुंच गए और उन्होंने उर्दू शायरी के छंद शास्त्र एवं व्याकरण में महारत हासिल की और मुरादाबाद के साहित्यिक पटल पर इस तरह छाए कि उन्होंने फिकरे जमील, ख्वाबे परेशान, अक्से जमाल, कौसर मिदहत और ख़लवत के अलावा देवनागरी में कसक और भीगे नयन जैसे संग्रहों से साहित्य को मालामाल किया।

     प्रसिद्ध नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा की फिगार साहब का जाना न सिर्फ उर्दू साहित्य की अपूरणीय क्षति है बल्कि हम लोगों का एक छायादार वृक्ष से वंचित हो जाना है। साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय के संस्थापक डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि हालांकि उम्र के आखिरी पड़ाव पर फि़गार साहब ने सजल जैसी नई विधा में भी कहने की कोशिश की और उनके दो सजल संग्रह भी प्रकाशित हुए लेकिन वास्तव में वह ग़ज़ल के ही शायर थे। मुरादाबाद में जब-जब ग़ज़ल की बात होगी तो फि़गार साहब को भुलाया नहीं जा सकता। रघुराज सिंह निश्चल जी ने कहा कि फ़िगार साहब मेरे बहुत करीबी मित्र थे उन्होंने अपनी सारी जिंदगी उर्दू साहित्य की सेवा में लगा दी। सैयद मोहम्मद हाशिम कुद्दूसी ने कहा कि फ़िगार साहब सादा मिज़ाज और साफ कहने वाले इंसान थे, तकल्लुफ, बनावट और दिखावा ना तो उनकी ज़िंदगी में था और ना ही उनकी ग़ज़लों में नजर आता है। वह जो कुछ कहते थे साफ-साफ कहते थे। असद मौलाई ने कहा कि फिगार साहब मेरे पिता राहत मौलाई साहब के पास आते और घंटों शेरो शायरी पर गुफ्तगू करते थे। उनके दुनिया से जाने पर निश्चित तौर पर मुरादाबाद के साहित्य में एक बड़ा स्थान रिक्त हो गया है। इस अवसर पर डॉ मुजाहिद फ़राज़, इंजीनियर फरहत अली खान और ज़िया ज़मीर एडवोकेट ने भी विचार व्यक्त किए । उर्दू साहित्य शोध केंद्र के संस्थापक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने सभी मेहमानों का धन्यवाद ज्ञापित किया। 





























:::::::::प्रस्तुति:::::::::

डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन

संयोजक 

उर्दू साहित्य शोध केंद्र मुरादाबाद 

8410544252

9457880988