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बुधवार, 19 अप्रैल 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेंद्र की लघुकथा..... ' मुक्ति '

   


वह भागती -दौडती, चीखती-चिल्लाती पुलिस स्टेशन के गेट तक पहुंची ही थी, कि मोटर साईकिल से पीछा करते गुण्डे ने आकर उसकी कमर और कनपटी पर दो फायर झोंक दिये और फरार हो गया।वह वहीं पर औंधे मुंह गिर पडी । उसके एक हाथ में दरख्वास्त थी। खून से लथ-पथ उसका शरीर निढ़ाल पडा था। भीड इकट्ठा हो गई । भीड से आवाज आई । बेचारी कई दिन से थाने के चक्कर काट रही थी।कोई सुनने वाला ही नहीं था। 

       चलो अब ईश्वर ने उसकी सुन ली। उसे इस नरक के जंजाल से अपने पास बुला लिया। गुण्डों से मानो वह भी डरता हो। इसलिए ,उनका कुछ न बिगाड़ पाया। उस निर्दोष महिला को मुक्ति दे दी।

 ✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र'

चन्द्र नगर, मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

गुरुवार, 6 अप्रैल 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेंद्र की लघु कथा .....परीक्षाफल

       


आज प्रियांश का परीक्षाफल मिलना है। निधि  बन-संवर कर अपने पति के साथ स्कूल पहुंच गई। प्रियांश ने शुरु से एल०के०जी० और यू०के०जी० में अपनी क्लास में सर्वोच्च स्थान प्रप्त किया था। इस बार भी उसे पूर्ण विश्वास था कि  उसका प्रियांश ही क्लास में सर्वोच्च स्थान पर  होगा।

         स्कूल के खुले मंच पर पर मैडल व रिजल्ट देने के लिए प्रधानाचार्या ने जब प्रियांश की जगह किसी और बच्चे का नाम पुकारा तो निधि का चेहरा उतर  गया । तालियों की गडगडाहट उसके कानों को चुभ रही थी। इस बार स्कूल की एक अध्यापिका के बेटे ने सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया था।  उसने सोचा उसका प्रियांश दूसरे नम्बर पर रह गया। लेकिन जब न तो दूसरे और न ही तीसरे नम्बर पर  प्रियांश का नाम लिया गया तब निधि ब्याकुल हो गई और रोने लगी। वह स्कूल की प्रिंसपल और क्लास टीचर को खूब भला-बुरा कहती रही। उसने पक्षपात का आरोप लगाते हुए खूब शौर मचाया। पति ने उसे किसी तरह सम्हाला। स्कूल की छुट्टी हो चुकी थी। अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को लेकर जा चुके थे। निधि अभी भी कुर्सी में निढ़़ाल पडी थी। वह निराशा के सदमे से उभर नहीं पाई। उसका पति भी कम उदास और परेशान नहीं  था लेकिन उन दोनों का लाडला प्रियांश स्कूल में लगे झूले पर ऊंची-ऊंची पेंगे लगाने में मस्त था । 

✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र'

श्रीकृष्ण कालोनी, चन्द्र नगर

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

गुरुवार, 30 मार्च 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेंद्र की लघुकथा ...…झटका

         


रजत सरकारी विभाग में सामान्य लिपिक के पद पर था। उसने अपने वेतन से कभी कुछ नहीं निकाला।  उसकी ऊपर की कमाई बे-हिसाब थी। उसी से उसका घर-बाहर का सारा खर्चा चलता था। उसके शौक महंगे थे। रजत की पत्नी कामिनी भी कहीं कम नहीं थी। अपनी पसंद के पहनावे से लेकर ज्वैलरी और मेक-अप आदि पर खुल कर खर्च करती। उसके पास एक से बढ़ कर एक ब्राडेड कंपनी का सामान रहता। वह तीन-तीन किटी पार्टिंयों की सदस्य भी थी।  

         महिला डाक्टर ने कामिनी को अगले माह के आखिर में शिशु पैदा होने की संभावित तिथि दी थी। डिलीवरी के लिए उसने शहर के सबसे बडे और मँहगे अस्पताल का चयन कर एडवांस धन जमा कर दिया और नियमित डाक्टरी सलाह ले रही थी। शिशु के जन्म पर दोनों पति-पत्नी जन्मोत्सव मनाने के अभी से ऊंचे-ऊंचे स्वप्न संजोने में लगे थे। उसको बाहर घूमने-फिरने के लिए सख्ती से मना किया गया था लेकिन आज तो अपने भाई के 'वैवाहिक सालगिरह' के समारोह में  उसको हर हाल में जाना था। उसने इसकी  पहले से सब तैयारी कर रखी थी। उसे क्या पहनना है? रजत क्या पहनेगा? इस बारे में वह बडी उत्सुक थी । भाई के लिए महंगे से महंगे उपहार भी खरीद लिये  थे। बिना मेहनत की कमाई हुई धन-दौलत से खुशियां खरीदने का जब कोई अभ्यस्त हो जाता हैं तब उसका ज्ञान व विवेक मर जाता है। कामिनी भी अपने मायके में अपनी शान-शौकत का दिखावा करने हेतु अति उत्साहित थी।

         रजत को आफिस से आने में देर होती जा रही थी। घडी़ की सुई के साथ-साथ कामिनी का पारा भी बढ़ता जा रहा था। उसके चेहरे पर  क्रोध व चिंता के लक्षण एक साथ दिखने लगे थे।  वह कितनी बार रजत को फोन कर चुकी थी लेकिन फोन मिल कर ही नहीं दे रहा था। कुछ देर बाद फोन भी बंद जाने लगा। अब तो कामिनी की परेशानी और अधिक बढ़ गई। वह कुछ समझ नहीं पा रही थी कि क्या किया जाय।

         वह बार-बार दरवाजे और खिडकिंयों में झांकती कभी बैठ कर फोन लगाने की कोशिश करती । अचानक उसके मोबाइल की घंटी बजी। उसने तेज कदमों से जाकर डाइनिंग टेबिल पर रखा अपना फोन उठाया। 

... हेलो। दूसरी तरफ से एक कड़कदार आवाज आई।

....आप रजत की पत्नी बोल रहीं है क्या? वह लडखडाती हुए बोली ... हां..आप कौन? ....देखिये मैं पुलिस आफीसर बोल रहा हूं। हमने अभी-अभी आपके पति रजत को 50000 रुपये रिश्वत लेते रंगे हाथों  गिरफ्तार किया है...... यह सुनते ही उसके हाथ से मोबाइल छूट कर गिर पडा।एक झटके में कामिनी औंधे मुंह फर्श पर आ गई-

                     

✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र '

श्रीकृष्ण कालोनी, चन्द्र नगर,

मुरादाबाद244001

उत्तर प्रदेश, भारत

गुरुवार, 23 मार्च 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेंद्र की कहानी ..... 'मेरी भी एक माँ थी'


सुनिधि हमेशा अपनी कक्षा के बच्चों को बहुत प्यार करती थी तथा बडे़ मनोयोग से पढा़ती थी। बच्चों के अभिभावक हमेशा उसकी प्रशंसा करते थे। उसका दुर्भाग्य था कि हिंदी और इतिहास विषय से प्रथम श्रेणी की स्नातकोत्तर होने और बीएड होने के बाबजूद वह एक निजी पब्लिक स्कूल में अल्प वेतन भोगी अध्यापिका थी।

       सुनिधि को आज उसकी सेवा समाप्ति के लिए  नोटिस मिला था। इसका उत्तर एक सप्ताह में उसे प्रधानाचार्या को देने के लिए निर्देशित किया गया था । वह हतप्रभ थी कि एकदम से उसके विरुद्ध इतना सख्त निर्णय कैसे लिया जा सकता है?  उसने जो काम किया था उसका वह परिणाम भुगतने को तैयार थी। अधिक से अधिक उससे क्लास छीनी जा सकती थी लेकिन उसकी सेवा समाप्त हो जायेगी यह तो उसके दिमाग में कभी आया ही नहीं था।

        सुनिधि की कक्षा में एक छात्रा पलक थी जो पढ़ने-लिखने में बहुत तेज थी। उसकी माँ का जबसे 'कोरोना' से अचानक निधन हुआ वह बहुत शांत हो चली थी। सुनिधि उसको बहुत प्यार से समझाती और पढा़ई लिखाई में मन लगाने पर जोर देती । उसका काम पूरा नहीं हो पाता तब वह किसी न किसी तरह पलक का काम पूरा कराती रहती थी। पेरेन्टस डे में पहले माँ आया करती थी अब उसके पापा कभी आ जाते तो हाथ बांधे खडे़ सुनते रहते थे। माँ की मृत्यु के बाद पलक को सब काम अपने आप ही करना पड़ता था। पिता का पर्याप्त समय न दे पाना उनकी भी मजबूरी थी।

         पलक की हिंदी की परीक्षा में उसे अपने "सर्वप्रिय व्यक्ति" पर निबंध लिखना था। उसने पहली लाइन लिखी- 

      "मेरी भी एक माँ थी जो दुनिया भर में मुझे सबसे प्यारी थी... "

       उसकी आंखों से आंसुओं की झडी लग गई। आंसू टप-टप उस की कापी में गिरते गए। उसने जो कुछ लिखा था और जो वह आगे लिखने का प्रयास कर रही थी वह सब आंसूओं से गीला होकर खराब होता जा रहा था। उससे लिखा नहीं जा रहा था। जैसे तैसे उसने अपनी परीक्षा दी।  पलक की कापी जब सुनिधि के पास जांचने को आई तो वह पलक की कापी देख कर विचलित हो उठी। कापी में सुनिधि पलक की मनोदशा को अच्छे से पड पा रही थी। 'मां' के विषय में कापी पर कुछ भी स्पष्ट नहीं लिखा होने पर सुनिधि ने जैसे मानो पूरा निबंध पढ़ लिया था। आखिर उसे पलक से विशेष लगाव था। उसकी आंखें नम हो चलीं थीं। उसने पलक को 10 में 10 नम्बर देकर कापी बंद कर दी।

      यही एक दुस्साहस उसने किया था। यह उसका खाली पीरियड था। काफी परेशान सी क्लास में अकेली सुनिधि अपनी ऊंगलियां चटखाती। कभी अपने बालों पर हाथ फेरती। कभी उठ कर इधर-उधर चहल कदमी करती। उसे निर्णय करने में अधिक समय नहीं लगा। एक झटके से अपने पर्स  से  कागज और पेन निकाला और अपना त्यागपत्र लिख कर चपरासी के द्वारा प्रिंसपल को भेज कर वह सीधे अपने घर चली आई।

✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र '

श्रीकृष्ण कालोनी, चन्द्र नगर, 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

रविवार, 22 जनवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेंद्र की लघुकथा ...डरी सिमटी व्यथा .


कमरे मे बेटे के आने की आहट होते ही उसके पिता ने अपने बिस्तर पर उघडी़ चादर को अपने शरीर में पूरा ढक लिया और चुपचाप एक तरफ करवट लेकर सिकुड़ कर मुंह ढक कर लेट गया। जब बेटा कमरे से चला गया ,गठरी बने बूढ़े पिता ने चादर हटाई और अपने सिरहाने से अपनी दिवंगत पत्नी की छोटी सी कागज में लिपटी फोटो निकाली, उसे निहारता रहा जैसे अपनी व्यथा कहना चाह रहा हो। उसके आंसू टप-टप गिरने लगे-

   "    तुमने भी खाना कैसै खाया होगा शांति , रात के 11 बज चुके हैं मुझे अभी तक किसी ने यहां खाना नहीं दिया है। मांगूंगा तो ...... (मुंह बंद कर फूट-फूट कर रो पड़ा)" 

✍️ धन सिंह धनेंद्र 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत 



गुरुवार, 5 जनवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेंद्र की लघु कथा - "मस्ती और नशा"

   


वह दूर दूर तक बिखरी अपनी मटर, आलू ,प्याज साग, सब्जियां बटोर रहा था। काफी सब्जियां तो आने जाने वाली कारों गाड़ियों के पहियों से कुचल चुकी थीं। बीच में वह बार-बार अपने आंसू भी पोंछता जा रहा था। एक तरफ उसका ठेला टूटा और उल्टा पडा़ था। उसके हाथ और चेहरे पर आई चोटें भी साफ दिखाई दे रही थी, जिसमें से खून रिस रहा था। कुछ लोग उसकी वीडियो बनाने में लगे थे। घुमंतु यू -ट्यूबलर भी आ पहुंचे जबरदस्ती उसका इंटरव्यू लेने और वीडियो बनाने लगे । एक दो राहगीर उसकी मदद करने को आगे आये,सब्जी बटोरने में मदद करने लगे। 

   धीरे-धीरे खाली सड़क पर तमाशा देखने वालों की भीड़ बढ़ने लगी थी। कहने को कुछ भी नहीं हुआ था। नये साल की मस्ती और नशे में डूबे रईसज़ादों की औलादों की तेज रफ्तार महंगी कार के सामने सब्जी वाला अपना ठेला लेकर आ धमका था।

     लड़के तो नये साल की अपनी मस्ती और नशे में थे, गलती तो गरीब परिवार के इकलौते सब्जी बेचने वाले की थी।

✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र'

चन्द्र नगर, मुरादाबाद 

उत्तर प्रदेश, भारत


गुरुवार, 8 दिसंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेंद्र की लघुकथा....भ्रष्टाचार की एक रात


पत्रकारिता मेरा ज़नून था। अपने छात्र जीवन से ही मैं पत्रकारिता की तरफ उन्मुख हो चुका था। एक दिन मध्य रात्रि को मेरे पास फोन आया कि सरकारी जिला अस्पताल में प्रसव पीडा़ से एक नवविवाहिता तड़प रही है। उसका तुरंत आपरेशन होना है। लेडी डाक्टर आपरेशन करने के लिए दस हजार रुपये मांग रही है। मैं स्टोरी कवर करने सीधा अस्पताल पहुंच गया। डाक्टर व अस्पताल के कर्मचारी मुझे पहचानते थे। इसलिए मैने महिला के पति की कमीज की जेब में आवाज रिकार्डिंग की डिवाईस रख कर एक बार फिर उन्हें बात करने भेज दिया। डाक्टर की रिश्वत मांगने और डांटने डपटने की सारी रिकार्डिंग हो चुकी थी। मैने घटना स्थल के दो चार चित्र लिये और फिर डाक्टर के पास पहुंचा। मुझे देख कर वह सन्न रह गई। पत्रकार का इतनी रात्रि में अस्पताल में आना।उन्होंने तुरंत मुझे अपने चेम्बर में बैठाया और बोली- शरद जी आप कैसे इतनी रात में? मैं बोला डाक्टर साहब- "यह जो महिला पेशेन्ट है। इसके बारे में बात करनी है।" बस इतना कहना था कि उसने मुझसे बडी आत्मीयता से बात की और महिला का कल सुबह आपरेशन करने को कहा। मैं बोला - "यह बहुत गरीब है। दर्द से तड़प रही है। आप इनसे दस हजार रुपए की रिश्वत मांग रहीं हैं यह उचित नहीं है। आप इनका आपरेशन करिये आपको जो भी चाहिए मैं दूंगा।" इतना सुनते ही वह भड़क कर कहने लगी - " कौन रिश्वत मांग रहा है? जिसके मन की बात पूरी न करो वह डाक्टरो पर रिश्वत मांगने का आरोप लगा डालता है और आप भी ऐसे लोगों की तरफदारी कर रहें हैं।"

           मैंने उन्हें पूरी रिकार्डिंग सुना डाली और यह कह कर चला आया। आपका जो मन हो वह करें। मुझे कल के लिए समाचार का मसाला मिल गया है। वह मुझे रोकती रही और मैं वापस घर आ गया। मेरे पीछे-पीछे कुछ देर बाद वह मेरे घर आ पहुंची। उनके हाथ में एक लिफाफा था। मेरी मेज पर रख कर बोली - "मैं बहुत तनाव में हूं और अभी जाकर मुझे उस युवती का आपरेशन करना है। मैं आपके हाथ जोड़ती हूं।अब इस बात को आगे मत बढा़ओ।"  वह रुंआंसी हो उठी थी। गलती की माफी चाहती हूं। इतना कह कर बिना मेरी कुछ सुने वह तेजी के साथ वापस चली गई। मैंने लिफाफा देखा तो उसमें पच्चीस हजार रुपये रखे थे। मैं बहुत परेशान हो गया। कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करुं? मैने निर्णय लिया कि यह रुपये डाक्टर को वापस कर दूंगा और मैंने डाक्टर को तुरंत फोन कर इस निर्णय की जानकारी भी दे दी। इस खबर को मैंने अखबार में छपने को नहीं दी और चादर तान कर सो गया।

          अगले दिन किसी अन्य पत्रकार ने अपने अखबार में सुर्खियों में खबर छापी 'अंधेरे में टार्च की रोशनी में लेडी डाक्टर ने दर्द से छटपटाती गरीब महिला का सफल आपरेशन किया। जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ हैं। डाक्टर के इस कार्य की चारों ओर खूब प्रशंसा हो रही है।'

       उस घनी अंधेरी रात में सब सो रहे थे। मगर भ्रष्टाचार का गंदा खेल चल रहा था। इस खेल में दर्द, छटपटाहट, आंसू, रुपया-पैसा, स्वार्थ,शोषण एवं लालच सबकी अपनी-अपनी भूमिका थी। परन्तु सदाचार, मानवता और संवेदना वहां से गायब थी।

✍️धन सिंह 'धनेन्द्र'

श्री कृष्ण कालोनी, चन्द्र नगर

मुरादाबाद  पिन -244001

उत्तर प्रदेश, भारत

गुरुवार, 6 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेंद्र की कहानी .....अधूरा डाक्टर

   


 रोजी मैडम प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद अपनी नई कोठी में आराम से जीवन ब्यतीत कर रहीं थीं। समय काटने के लिए उन्होंने बी०एस०सी०/एम०एस०सी० के छात्र- छात्राओं को 'फिजिक्स' विषय की कोचिंग पढ़ाना शुरु कर दिया था। उनके पास अनेक छात्र और छात्राएं पढ़ने आतीं थीं । उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी थी।

           उन्हें वैसे तो सभी छात्र-छात्राओं से बहुत लगाव था परन्तु सचिन को वह बहुत अधिक पसंद करतीं थीं। सचिन की मेहनत-लगन और व्यवहार से वह बहुत प्रभावित थीं। दिनों-दिन सचिन के प्रति उनका लगाव बडता गया। सचिन ने प्रथम श्रेणी में बी०एस०सी० पास किया था। उसे एम०एस०सी० में यूनिवर्सिटी में सर्वोच्च स्थान प्राप्त हुआ था। अब तो उन्होंने ठान लिया था कि सचिन के नाम के आगे 'डाक्टर' लगवाना है।

           रोजी मैडम अपनी कोठी में अकेली रहतीं थीं। वह अभी तक अविवाहित थीं। यद्यपि उनके पास घर के काम के लिए नौकर-चाकर थे। फिर भी वह प्राय: अपने निजी कार्य सचिन से ही करातीं थी। धीरे-धीरे वह सचिन के साथ उसकी मोटर साईकिल पर पीछे बैठ कर अपने बैंक के कार्य व बाजार के कार्य के लिए भी जाने लगीं। उन्हें सचिन के साथ समय बिताना बहुत अच्छा लगता। लोगों को उनका साथ घूमना अखरने लगा था। सब अपनी-अपनी तरह से बातें बनाने लगे थे। बातें होने लगीं और दूर तक फैलती गई। अचानक एक दिन बिना पूर्व सूचना के रोजी मैडम के बडे भाई व भाभी उनके घर पर आ धमके। काफी दिनों तक उनके मध्य वाद-विवाद चला। उन्होंने सचिन के रोजी मैडम के घर आने-जाने पर प्रतिबंध लगा दिया। इतना ही नहीं उन्होंने  सचिन को आरोपित करते हुए पुलिस से लिखित में शिकायत भी कर डाली। सचिन बहुत डर चुका था।आखिर विवादों से बचने के लिए  भारी मन से सचिन हमेशा के लिए शहर छोड़ कर चला गया।

              इस बात को काफी वर्ष बीत चुके थे। सचिन ने अकेले ही अपने आप को सम्हाला। अपना संघर्ष जारी रखा।अब उसने अपना छोटा सा परिवार बसा लिया था जिसमें उसकी 'लेक्चरर' पत्नी व एक 15 वर्षीय बेटी जहान्वी थी। सचिन सरकारी विभाग में 'साइंटिस्ट' के पद पर बडा अधिकारी बन चुका था।उसने रोजी मैडम के सपने को साकार करने के लिए नौकरी के साथ-साथ अपनी 'डाक्टरेट' भी पूरी कर ली थी। एक दिन वह अपने परिवार के साथ घूमने जा रहा था। रास्ते में उसे अपना पुराना शहर दिखा तो उससे रहा न गया। उसे अपनी 'रोजी मैडम' के साथ बिताये एक-एक पल याद आने लगे।वह उन्हें कभी नहीं भूला था और न ही कभी भूल पायेगा। सचिन ने अपनी गाडी़ शहर के अंदर रोजी मैडम की कोठी की तरफ मोड़ ली। सचिन आश्चर्य से बोल उठा -"अरे यह क्या, यहां तो सब कुछ बदल चुका है, कोठी की जगह आलीशान तीन मंजिला भवन ! " वह भोंचक सा भवन को एकटक देखता रहा। अगले ही पल वह सब कुछ समझ चुका था। भवन में बडे-बडे अक्षरों में लिखा था-              

"सचिन एण्ड रोजी इंस्टीट्यूट आफ साईन्सेज" 

    सचिन ने स्टेयरिंग पर माथा टिकाया और आंसुओं की झडी़ लगा दी। सचिन की पत्नी और बेटी जहान्वी कभी एक-दूसरे को देखते कभी सचिन को।                        

✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र'

चन्द्र नगर, 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

गुरुवार, 25 अगस्त 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेंद्र की बाल कहानी......पश्चाताप


 बस्ती में सेठ जी का एक छोटा सा प्लाट था। उसमें आस-पास के  बच्चे क्रिकेट खेलते थे। प्लाट से सटी हुई सेठ जी की आलीशान कोठी थी। उन्होंने एक कुत्ता पाला हुआ था जिसे पूरा परिवार बहुत प्यार करता था। उसे परिवार के सदस्य की तरह ही मानता था। बच्चों के प्रति सेठ का हमेशा रूखा व्यवहार रहता। उनकी गेंद अगर कोठी में चली जाती तो मांगने पर कभी भी वापस नहीं देते थे। उन्होंने आखिर अपने प्रभाव का प्रयोग कर पुलिस से  अपने प्लाट पर बच्चों का क्रिकेट खेलना बंद करा दिया। बच्चे अब 3 कि० मी० दूर एक मैदान में खेलने जाने लगे। 

      एक दिन सेठ जी का कुत्ता कोठी के बाहर निकल गया। कोई उसे पकड कर अपने घर ले गया। बहुत ढूंढने के बाद भी कुत्ता नहीं मिल पाया। पुलिस में रिपोर्ट करने के बाद भी जब कुत्ता नहीं मिला तो उन्होंने 5000 रु० का ईनाम भी घोषित कर दिया। कुत्ते के खो जाने से पूरे घर में मातम छाया हुआ था। एक दिन बच्चों ने देखा कि खेल के मैदान के पास एक आदमी कुत्ता घुमा रहा है। बच्चों ने उस कुत्ते को पहचान लिया। यह तो सेठ जी का कुत्ता है। सारे बच्चे उस आदमी का छिपते- छिपाते पीछा करने लगे । थोडी देर बाद वह कुत्ता लेकर अपने घर में घुस गया। बच्चों ने उस घर की अच्छी तरह पहचान कर ली । सब बच्चे एक साथ सेठ जी की कोठी में पहुंच गये। बच्चों ने जब कुत्ते के बारे में बताया तो उनकी तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने उसी समय सभी बच्चों को आग्रहपूर्वक नाश्ता व मिठाई खिलायी।अगले दिन वह पुलिस को साथ लेकर अपना कुत्ता ले आये। सेठ जी ने बच्चों से पूर्व में अपने द्बारा किये गये दुर्व्यवहार के लिए पश्चाताप किया। उन्होंने सभी बच्चों को अपने प्लाट में खेलने की अनुमति तो दी ही साथ में घोषित ईनाम रु० 5000 भी दिये। सेठ जी बोले यह ईनाम की धनराशि है। इसे आपस में बांट लेना। सेठ जी ने सभी बच्चों को अपना मित्र बना लिया। उस दिन से सेठ जी के व्यवहार में बच्चो के प्रति अभूतपूर्व परिवर्तन आ चुका था। 

✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र'

चन्द्र नगर

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

गुरुवार, 28 जुलाई 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेंद्र की कहानी ....एक रात की कहानी

     


 कभी नहीं सोचा था कि मैं कुछ लिखुंगा। एक दिन मुझे अपनी मौसी के घर रुकना पडा। वहां मुझे बिल्कुल भी नींद नहीं आ रही थी। बेहतरीन सुसज्जित कमरा । साफ सुथरा बिस्तर। अर्दली, काम करने वाले सरकारी और निजि नौकर -चाकर। मौसा जी पुलिस में सी०ओ०थे । सब सुविधाऐं थीं। लेकिन मुझे एक दिन - एक रात काटने में ही परेशानी हो रही थी।

      नहाने-धोने व खाने-पीने से लेकर पूरा दिन औपचारिकता में बीता । मौसा-मौसी से थोडी बात ड्राईंग रुम में बैठ कर और थोडा खाने की टेबिल पर हुई। मौसी खुद तो किसी काम में ब्यस्त नहीं थी प्ररन्तु पूरा दिन नौकरों को काम बताने ,उनसे मन-माफिक काम कराने में लगीं रहतीं।घर की चमचमाती साफ सफाई से ही लग रहा था कि वह साफ-सफाई के प्रति कितनी गंभीर व चिंतित रहती हैं। यह सब देख मेरी मनोदशा ही बदल गई। यहां तो चुपचाप पडे रहना ही बेहतर है। पानी का गिलास ,चाय का कप आदि उठाने से लेकर मुंह लगाने और फिर सम्हाल कर रखने तक बडे सलीके व जिम्मेदारी का निर्वाह करना पड रहा था। 

      एक तो पुलिस वालों का घर फिर तेजतर्रार मौसी जी बस यह समझो कि उस कोठी की दीवालें,छतें,फर्श,आंगन व गार्डन के फूल-पौधे, घास आदि सब सख्त अनुशासन में थे। अगर थोड़ा बहुत अनुशासनहीन कोई था तो वह 'डिबलू' था। 'डिबलू' मौसा मौसी का प्यारा डोगी था।आदतन भोंकना,लिपटना,चिपटना उसका जन्म सिद्ध अधिकार था। मौसी शाकाहारी थी प्ररन्तु डिबलू के लिए हर दूसरे दिन नान वेज दिया जाता था।  

      

     रात बहुत हो गई थी। अर्ध रात्री में मौसा जी की गाड़ी आती है। मौसा जी घर में प्रवेश करते ही अभी उन्होंने अपनी बर्दी उतारी ही थी कि बाहर से सिपाही  हेण्ड सेट लेकर आता है और मौसा जी की बात कराता है। किसी थाने के इंस्पेक्टर का संदेश था । कार और बस में आमने सामने टक्कर में कार सवार सभी चार सवारियों की मृत्यु हो चुकी थी। बस क्या था फिर तो तुरंत उतरी हुई वर्दी मौसा जी के बदन पर आ गई और आनन-फानन में गाडी में बैठ चले गये।

      पुलिस के लिए आकस्मिक दुर्घटनाऐं ही उनकी सेवा काल की परीक्षा होती है। अपनी सरकारी सेवा की जिम्मेदारियों को निभाने मैं अपनी दिन-रात की नींद,आराम व चैन को तिलांजली दे देना, यह सब मेंने आज अपनी आंखों से देखा है। भला ऐसे में किसी को नींद कैसे आ सकती है । मैं पहले ही बिस्तर पर पडे पडे  करवटें ले रहा था । अब नींद भी  गायब हो चुकी थी । मैं अब मेज कुर्सी पर आ धमका था । इस घर में मुझे अनायास मिली बैचेनी व मानसिक उथल पुथल के चलते  कागज व पैन लेकर लिखने लगा था। करीब तीन घंटे बाद प्रात: लगभग 3 बजे मौसा जी आ गये। मौसी ने बाहर ही मौसा जी कोअग्नि छूने को दी और उन पर गंगाजल की छींटें डाली  क्यों कि वह मृतकों के शवों के पास से आये थे। उन्हें सीधे बाथरुम में नहाने भेज दिया था। नहा-धोकर वह अपने कमरे में लेट गये। 

      आज अपने एक दिन के प्रवास में अनुशासन और जिम्मेदारियों के बीच पारिवारिक व धार्मिक परम्परा के निर्वाह ने मुझे झकझोर कर रख दिया।

     मैं इस एक रात में टुकडों में जिया। किसी के लिये सो रहा था। अपने लिये जाग रहा था। मैं पूरी रात जाग कर  यहां ' एक रात की कहानी ' पूरी कर चुका था।

     

 ✍️ धनसिंह  'धनेन्द्र'

   चन्द्र नगर 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


शुक्रवार, 18 मार्च 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेन्द्र का गीत --खेल़ूं ऐसी होली सजन, मुख से छूटे कभी न रंग

     


      मनेगा फाग  हमारे संग,

       तुम घर आना बन ठन।

       करेंगे तुम्हें नहीं हम तंग,

       पीयेंगे बस थोड़ी भंग।।

       मनेगा फाग हमारे........

        सखियाँ आऐं घर-आंगन,

        भर-भर हाथों अपने रंग।

         मंजीरा बजता ढ़ोल मृदंग,

         मस्त हो नाचेंगे सब संग।।

          मनेगा फाग हमारे .......

         आज भीगें सब तन मन,

         प्रेम में होगा ना हुड़दंग।

         खेल़ूं ऐसी होली सजन,

         मुख से छूटे कभी न रंग।।

         मनेगा फाग हमारे.........     

         गले मिले सब प्रियजन,

         एक हुए बिखरे संबध।

         गुजिया भुजिया के संग 

          रंग-बिरंगी मंद सुगंध।।

           मनेगा फाग हमारे.......

         ✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र'

          म०नं० - 05 , लेन नं० -01  

          श्रीकृष्ण कालौनी,

           चन्द्रनगर , मुरादाबाद पिन-244001

           उत्तर प्रदेश, भारत

            मो०- 9412138808

                                 




सोमवार, 7 फ़रवरी 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार एवं रंगकर्मी धन सिंह धनेन्द्र की लता मंगेशकर को भावभीनी श्रद्धांजलि ---मेरी आवाज ही पहचान है ..



आवाज गूंजेगी, मैं रहूं न रहूं ,

स्वर कुछ छोड़ ,अब मैं चलूं।

'मेरी आवाज  ही पहचान हैंं' 

गुनगुनाओ मुझे मैं सुन सकूं ।


 'ऐ मेरे वतन के लोगों' गाओ

  तुम लेकर  आंख में आंसू ।

   लता तुम्हारी लीन अनंत में,

    कुम्हला गये,पुष्प-स्वर बांटूं


समय रोता,संगीत तड़पता,

स्वर- सम्राज्ञी  को खोकर ।

स्वरों का 'साया साथ होगा',

दूर बहुत,पास हमारे होकर।


✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र 

श्रीकृष्ण कालोनी ,चन्द्र नगर

 मुरादाबाद 244001

 उत्तर प्रदेश, भारत

सोमवार, 31 जनवरी 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार एवं रंगकर्मी धन सिंह धनेन्द्र का एकांकी --टोपियां


(मंच सज्जा - मंच पर एक मेज लगी है। दो कुर्सियां भी बेतरतीब रखीं हैं उन पर गीले सूखे कपड़े रखें हैं। मेज पर कई रंग के पेंट, ब्रुश, बाल्टी व हैंगर रखे है । रंग-बिरंगी टोपियां रस्सी पर लटकी सूख रहीं हैं)

पीतम- अरी सुन रही है। यह टोपियां आज ही देनी हैं। मौसम का मिज़ाज समझ नहीं आ रहा है। टोपियां कमबख्त सूखने का नाम ही नहीं ले रहीं हैं। जरा प्रेस से गरम करके सुखा दे इनको । मुझे अभी बहुत सारी टोपियां रंगनी है।

कमला - आप भी अजीब बात करते हो । भला प्रेस से मैं कब तक सुखाती रहुंगी, और भी कितने काम पडे़ हैं मुझे।

पीतम - मौसम है कमाने का। दल-बदलुओं का कुछ नहीं पता। रात को एक दल में तो सुबह दूसरे दल में होते हैं। आजकल यह धंधा खूब जोर पकड़ रहा है। (एक छुटभैया नेता हाथ में कुछ सफेद टोपियों के साथ प्रवेश करता है)

नेता- किसके धंधे की बात कर रहे हो पीतम ?

पीतम- नेताजी, चुनाव का मौसम है। सभी के धंधे की बात है। अब देखो न आप भी अब अपने धंधे में कितने ब्यस्त रहते है.

नेता- भई मैं तो मौहल्ले का एक छोटा अदना सा नेता हूं। मेरा धंधा बहुत छोटा है और रिस्की भी, जिस पार्टी ने अच्छा दाना डाला उसी की टोपी ओढ़ ली। अब अगले हफ्ते 20 तारीख में एक पार्टी की रैली में मुझे एक बस भर कर आदमी ले जाने हैं, मगर 200 रु में कोई जाने को तैयार नहीं। लोग 500रु से कम में राजी नहीं। रोटी पूडी़ दारु अलग से।

पीतम- महंगाई भी तो बढ़ गई है अब

नेता- अच्छा यह बताओ, मेरी टोपियां हो गई सब।

पीतम- आपकी नीले रंग वाली 100 टोपियों का आर्डर था, 50 हो चुकी हैं, बाकी 50 अभी सूख रहीं हैं। अगर मौसम सही हो गया तो कल ले जाना।

नेता- अरे अब इन्हें रहने दो, इनकी कोई पूछ नहीं। अब मुझे लाल रंग की 500 टोपियां चाहिए शाम तक, कल पहनानी हैं।

पीतम- पहले इन नीली टोपियों से तो काम चलाओ।

नेता- पीतम दद्दा तुम समझते नहीं। अब इन नीली टोपी का पत्ता साफ हो चुका है। कल लाल टोपियों की सख्त जरुरत है। एक बड़े नेता पार्टी बदल रहें हैं।

पीतम -फिर यह जो टोपियां तैयार हो गई अब इनका क्या होगा?

नेता- इन टोपियों की फिलहाल कोई जरुरत नहीं रही, जो बन गई उनके भी कुछ पैसे दे दूंगा। बाद में कभी काम आयेंगी सम्हाल कर रखना।

पीतम- मौसम कितना बदल गया है। टोपियां सूख नहीं पायेंगी।

नेता- मौसम सभी के लिए बदल चुका पीतम दद्दा। आजकल नेताओं ने भी बे-मौसम चाल बदलनी शुरू कर दी है। अब आदमी से ज्यादा टोपियों की डिमांड बढ़ गई है।

 कमला- (रस्सी पर लाल सफेद टोपिया लटकाते हुए) सही कह रहे है नेता जी, हमारे इलाके में भी अब रंग-बिरंगी टोपियों बदल-बदल कर पहनने का फैशन चल पड़ा है।

पीतम- अरे चुप कर, बहुत बोलती है। यह नीली टोपियां हटा यहां से। यहां लाल टोपियां सुखानी हैं। कल ही नेता जी को देनी है।

कमला- कभी नीली, कभी लाल फालतू काम क्यों फैला रहे हो जी?

पीतम- यह खडे़ हैं नेता जी, इन्हीं से पूछ ले।

नेता- हर आदमी अपने धंधे को पहले देखता है। हमारे नेता भी जहां धंधा मद्दा हुआ तुरंत पार्टी बदल रहें हैं। आखिर उनको भी खाना कमाना है और बिना सत्ता के नेताजी मूंगफली थोडे ही छीलेंगे। सत्ता में रहने वाली पार्टी से दूर होकर नेता आगे कैसे जी पायेंगे? इसीलिए तो कल गांधी मैदान में एक बड़े नेता पार्टी बदलेंगे। गांधीजी की शपथ लेकर पहले टोपी का रंग बदलेगा तभी न पार्टी बदलेगी।

(बाहर शोर शराबे की आवाज जोर-जोर से होती है। तभी तेज आवाज के साथ एक मोटा दरोगा और 4-5 सिपाहियों के साथ घर में प्रवेश करता है )

पीतम- क्या हो गया साहब।

दरोगा - तो यहां हो रहा है यह लाल-पीला काला धंधा। गिरफ्तार कर लो इसे।

(नेता चुपचाप खिसकने लगता है। दरोगा नेता को पकड़ता है और कडक आवाज़ में पूछता है)

दरोगा- क्यों, कौन सी पार्टी के हो नेता जी ?

नेता- सर, हम किसी पार्टी के नेता नहीं हम तो छोटे कार्यकर्ता है।

दरोगा- यहां क्या कर रहे हो। भागो यहां से। (पीतम से) क्यों बे तू यहां टोपियां बदलने का धंधा करता है। जानता नहीं आचार संहिता लगी हुई है। टोपियां का रंग बदल कर दल-बदल को बढ़ावा देता है। पार्टियां बदलने का धंधा फैला रहा है। ले चलो इसे थाने। यह इस शहर की शांति भंग कर रहा है। इसकी सारी लाल, पीली काली नीली टोपियां जब्त कर लो। केवल एक टोपी छोड़ दो।

पीतम- हम गरीब आदमी है सरकार। हमारा धंधा चौपट हो जायेगा।

कमला- हजूर इनका कोई कसूर नहीं हम तो केवल टोपियों का रंग बदलें हैं। इस काम में भी बहुत टाईम लगता है, मेहनत लगती है। लोग तो रातों-रात अपना दल बदल रहें हैं। अपना ईमान- धर्म बदल ले रहें हैं। हम टोपियां सिलाई-रंगाई का काम करके बमुश्किल गुजारा करते हैं।

दरोगा - ऐ । बहुत ज्यादा बोलती है। नेतानी बनती है। जानती नहीं चुनाव आचार संहिता लगी है। अभी मिनटों में बंद कर दूंगा। जमानत भी नहीं होगी।

पीतम- दरोगा जी, इस पागल की बातों पर ध्यान मत दो। मौसम बदलने के साथ इसे भी एलर्जी हो जाती है।

दरोगा- ऐसा है तो इसका ईलाज क्यों नहीं कराता। पुलिस से कैसे बात की जाती है इसे सिखा दे वरना जेल में सडे़गी।

कमला- (हाथ जोड़ कर विनम्रता से कहती है) देखो दरोगा जी, हम अभी मंत्री जी के घर जाकर यह टोपियां फेंक आतें हैं। बोल देंगे- हमें जेल नहीं जाना। अपनी टोपियां जहां चाहे वहां सिलवा लो- रंगवा लो।

दरोगा- (आश्चर्य में) मंत्रीजी से टोपियों का क्या मतलब ?

पीतम - यह सब उन्ही का आर्डर है। दो- एक दिन बाद एक बड़े कद्दावर नेता उनकी पार्टी को ज्वाइन कर रहें हैं। उनके और उनके कार्यकर्ताओं के लिए ही तैयार हो रहीं हैं यह टोपियां उन सबको ही पहनाई जायेंगी।

दरोगा - (तुरंत चेहरे का रंग बदलता है) अरे। यह बात है, तो पहले क्यों नहीं बताया। आप सब तो बड़ा नेक काम कर रहे हो । कड़ी मेहनत से टोपियों के रंग बदलो लेकिन टोपियों पर ज्यादा पक्का रंग मत चढ़ाना। पता नहीं कब कौन सा रंग बदलना पड जाय। हो सकता है पुलिस की नौकरी छोड़ कर जनता की सेवा करने के लिए मुझे भी यह टोपियां पहननी पडे.. और हां, इस नेक काम में अगर कोई परेशानी हो या अड़चन हो तो तुरंत बताना। चलो सिपाहियों ।

(दरोगा और सिपाही सब मंच से निकल जाते हैं।)


✍️ धन सिंह 'धनेन्द्र'

म.नं. 05 , लेन नं -01

श्रीकृष्ण कालोनी,

चन्द्रनगर , मुरादाबाद-244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मो०- 9412138808