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रविवार, 12 मार्च 2023

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य सदन के तत्वावधान में 11 मार्च 2023 को डॉ अजय अनुपम मुक्तक-कृति 'अविराम' का लोकार्पण

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ. अजय अनुपम के मुक्तक-संग्रह ‘अविराम' का लोकार्पण साहित्यिक संस्था - हिंदी साहित्य सदन के तत्वावधान में श्रीराम विहार कालोनी मुरादाबाद स्थित विश्रांति भवन में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने की, मुख्य अतिथि के रूप में व्यंग्य कवि डा मक्खन मुरादाबादी तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में पर्यावरण मित्र समिति के संयोजक के. के. गुप्ता उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन योगेंद्र वर्मा व्योम द्वारा किया गया। 

       कवयित्री डा. पूनम बंसल द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से आरम्भ हुए कार्यक्रम में लोकार्पित कृति- ‘अविराम' से रचनापाठ करते हुए डॉ अजय अनुपम ने मुक्तक सुनाये- 

"ड्योढ़ी पर सांकल की आहट नहीं रही

घूंघट उतर गया, शरमाहट नहीं रही/

हाय-हलो पर सिमट गई दुनियादारी/

रिश्तों के भीतर गर्माहट नहीं रही।" 

उन्होंने एक और मुक्तक सुनाया -

 "पीड़ा या भार नहीं होती/

वह जय या हार नहीं होती/

दुनिया में सब कुछ होती है/

मांँ रिश्तेदार नहीं होती।"  

"दर्द दूर करना चाहो तो, सच कहना होगा

गति पाने के लिये, धार के संग बहना होगा

इतिहासों में शब्द बदलकर घटित नहीं मिटता

सुख को परिभाषित करने में, दुख सहना होगा।"

    कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध नवगीतकार यश भारती माहेश्वर तिवारी ने कहा- "डा. अनुपम के मुक्तक संभावना से सार्थकता तक की यात्रा के साक्षी हैं, उनकी रचनाधर्मिता लोक मंगल के लिए समर्पित है। संग्रह के मुक्तक कविता की व्याख्या से परे की अभिव्यक्ति है। निश्चित रूप से वह मुक्तकों के रूप में साहित्य की भावी पीढ़ी को एक रास्ता दिखा रहे हैं।" 

          मुख्य अतिथि के रूप में विख्यात व्यंग्य कवि डा मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि "अनुपम जी के मुक्तक जीवन की धुकर-पुकर के मुक्तक हैं,जिन्हें उन्होंने पिया भी है और जिया भी है। इनमें उनका वह मन भी खुलकर खुला है जो अन्यत्र कहीं नहीं खुला। इनमें अनुपम जी की वह मुस्कानें भी हैं जो शायद और कहीं नहीं मुस्काईं। इनमें संस्कारों भरी वह शरारतें भी मौजूद हैं जिनका फलक बहुत बड़ा है।" 

   योगेंद्र वर्मा व्योम ने अपने आलेख का वाचन करते हुए कहा कि ‘'अविराम' पुस्तक के सभी मुक्तक पृथक-पृथक विस्तृत व्याख्या की अपेक्षा रखते हैं। यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि इक्कीसवीं सदी के वर्तमान कालखंड का यह सौभाग्य है कि उसके पास एक सशक्त, समृद्ध और विलक्षण मुक्तककार के रूप में डॉ. अजय अनुपम हैं जिनकी लेखनी से सृजित मुक्तक भावी पीढ़ी के लिए प्रकाशपुंज के रूप में पर्याप्त मार्गदर्शन करेंगे।" 

      शायर ज़िया जमीर ने कहा-"डॉ अजय अनुपम जी का यह दूसरा मुक्तक संकलन देर तक याद रखा जाएगा क्योंकि इसमें मौजूद जज़्बात और एहसासात सिर्फ़ काग़ज़ रंगने  या काव्य कौशल की संतुष्टि भर नहीं हैं, बल्कि भोगे हुए हैं। तभी शब्दों के पुल से होते हुए मन के भीतर उतरने और ठहरे रहने की ताक़त रखते हैं।"  

        लोकार्पित मुक्तक-संग्रह पर आयोजित चर्चा में कवि राजीव प्रखर ने पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा- ‘जीवन के विभिन्न रंगों को सुंदरता से समेटे डॉ अजय अनुपम के इस मुक्तक-संग्रह के विषय में यह नि:संकोच कहा जा सकता है कि यह मात्र एक उत्कृष्ट मुक्तक-संग्रह ही नहीं अपितु, रचनाकार की लेखनी से होकर पाठकों व श्रोताओं के सम्मुख साकार हुआ जीवन का सार एवं उसकी मनोहारी काव्यात्मक अभिव्यक्ति भी है।’ 

       शायर डॉ आसिफ हुसैन ने कहा कि "अनुपम जी ने अपने मुक्तक संग्रह अविराम में अपने रचना कौशल से साधारण शब्दों को असाधारण रूप देकर समाज को दर्पण दिखाने की जो कामयाब कोशिश की है, उसके लिए वह बधाई के पात्र हैं" 

     कवयित्री डॉ पूनम बंसल, डॉ अंजना दास, राजन राज, ज्योतिर्विद विजय दिव्य, सुशील शर्मा आदि ने भी डॉ अजय अनुपम को बधाई दी। आभार अभिव्यक्ति डॉ कौशल कुमारी ने प्रस्तुत की।













::::प्रस्तुति::::::::

योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल- 9412805981

रविवार, 11 सितंबर 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य सदन की ओर से शनिवार 10 सितंबर 2022 को आयोजित कार्यक्रम में मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ अजय अनुपम के गीत-संग्रह ‘दर्द अभी सोये हैं’ का लोकार्पण

      मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ अजय अनुपम के  गीत-संग्रह ‘दर्द अभी सोये हैं’ का लोकार्पण शनिवार 10 सितंबर 2022 को साहित्यिक संस्था  हिंदी साहित्य सदन के तत्वावधान में श्रीराम विहार कालोनी मुरादाबाद स्थित विश्रांति भवन में आयोजित कार्यक्रम में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने की, मुख्य अतिथि के रूप में दिव्य सरस्वती इंटर कालेज के प्रधानाचार्य अनिल शर्मा तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में पर्यावरण मित्र समिति के संयोजक के. के. गुप्ता उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम द्वारा किया गया।

      इस अवसर पर लोकार्पित कृति- ‘दर्द अभी सोये हैं’ से रचनापाठ करते हुए डॉ अजय अनुपम ने गीत सुनाये-

 "दर्द क्या है दंश का

यह बोलती हैं चुप्पियाँ

कौन इस चेतन घृणा के

पाप का दोषी कहो

ज़ख़्म, सिसकी, मौत या फिर

एक खामोशी कहो

नर्म कलियाँ खोजती हैं

तेल वाली कुप्पियाँ"

 उन्होंने एक और गीत सुनाया -

 "अब हम खुद बाबा दादी हैं

कल आदेश दिया करते थे

आज हो गए फरियादी हैं

भीषण कोलाहल के भीतर

असमय सोना असमय खाना

मोबाइल से कान लगाए

यहाँ खड़े हो वहाँ बताना

अपने को ही भ्रम में रखना

सच को हौले से धकियाना

छोटे बड़े सभी की इसमें

देख रहे हम बर्बादी हैं।"

 कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध नवगीतकार यश भारती माहेश्वर तिवारी ने कहा- "अजय अनुपम ने अपने गीतों में जहाँ एक ओर सामाजिक विसंगतियों पर अपनी टिप्पणी की है और आज के समय के सच को बयान किया है वहीं दूसरी ओर समाज के अलिखित संदर्भों पर अपनी तीखी अभिव्यक्ति भी दी है। कवि ने अपने गीत संग्रह के माध्यम से अपने समय की पड़ताल भी की है।"

      वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. मनोज रस्तोगी ने इस अवसर पर अपने आलेख का वाचन किया- ‘इस संग्रह के अधिकांश गीतों में जहां समाज की पीड़ा का स्वर मुखरित हुआ है वहीं राजनीतिक विद्रूपताओं को भी उजागर किया गया है। जिंदगी की भाग दौड़ में व्यस्तता के बीच रिश्तों में आ रही टूटन, बिखराव, स्वार्थ लोलुपता  और भूमंडलीकरण के मकड़जाल में उलझती जा रही नई पीढ़ी की मानसिकता को भी उन्होंने अपने गीतों में बखूबी व्यक्त किया है।"

  कवि राजीव प्रखर ने पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा- ‘डॉ अजय अनुपम के 109 गीतों को संजोए हुए यह गीत संग्रह यह दर्शाता है कि रचनाकार विद्रूपताओं एवं विसंगतियों से भले ही व्यथित हो किंतु उसने सकारात्मकता एवं आशा का दामन नहीं छोड़ा है। यह सभी गीत पाठक के अंतस को गहरे स्पर्श करने की अद्भुत क्षमता लिए हुए हैं।’ 

    कवयित्री डॉ पूनम बंसल, के पी सरल, ज्योतिर्विद विजय दिव्य, सुशील कुमार शर्मा आदि ने भी डॉ अजय अनुपम को बधाई दी। आभार-अभिव्यक्ति डॉ कौशल कुमारी ने प्रस्तुत की।













शनिवार, 13 अगस्त 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था “हिन्दी साहित्य सदन “ के तत्वावधान में आज़ादी के अमृत महोत्सव पर 13 अगस्त 2022 को "अमृत स्वर"(कवि गोष्ठी) का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था “हिन्दी साहित्य सदन “ के तत्वावधान में आज़ादी के अमृत महोत्सव पर शनिवार 13 अगस्त 2022 को  "अमृत स्वर"(कवि गोष्ठी) का आयोजन श्रीराम विहार कालोनी, कचहरी परिसर स्थित डॉ. अजय अनुपम जी के आवास पर किया गया जिसकी अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पर्यावरणविद के.के. गुप्ता ने कहा कि हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। पूरी दुनिया में भारत शक्तिशाली और समृद्ध देश के रूप में उदय हुआ है यह हमारे लिए गर्व की बात है। सरस्वती वंदना कवि राजीव प्रखर ने प्रस्तुत की तथा संचालन योगेन्द्र वर्मा व्योम ने किया।

मुख्य अतिथि के रूप में  डॉ. कृष्ण कुमार नाज़  ने गजल सुनाई-

 एक मछली जो मर्तबान में है

कोई दरिया भी उसके ध्यान में है

बादलों ने लिखी है नज़्म कोई

यह जो तस्वीर आसमान में है

विशिष्ट अतिथि के रूप में कवयित्री निवेदिता सक्सेना ने रचना सुनाई- 

विजय है तुम्हारी विजय है

जो कर्तव्य पथ पर चले पग संभल कर

सफलता निःसंदेह तय है

विजय है तुम्हारी विजय है

वरिष्ठ कवि डॉ. अजय अनुपम ने मुक्तक सुनाया- 

हमारी चाह में जिसकी लगन है/

हमारे देश में जिसकी अगन है/

अमृत मन से मनाते हैं महोत्सव/

हृदय से इस तिरंगे को नमन है

 नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने मुक्तक सुनाया-

 व्यर्थ आपस में क्यों हम हमेशा लड़ें

भेंट षडयंत्र की क्यों सदा हम चढ़ें

छोड़कर नफ़रतें प्यार की राह पर

दो क़दम तुम बढ़ो, दो क़दम हम बढ़ें

 कवि राजीव प्रखर ने पढ़ा-

 पंछी दड़बे में पड़ा, होकर बस हैरान

भीतर से ही सुन रहा, आजादी का गान

आयोजक डॉ कौशल कुमारी ने आभार अभिव्यक्त किया।









:::::::प्रस्तुति::::::

डॉ अजय अनुपम

 प्रबंधक-'हिन्दी साहित्य सदन'

मोबाइल- 9761302577

शनिवार, 15 जनवरी 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य सदन की ओर से साहित्यकार एवं इतिहासकार डॉ अजय अनुपम की कृति 'भारत के इतिहास में मुरादाबाद का स्थान' का सार्वजनिक लोकार्पण एवं परिचर्चा का आयोजन

मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार एवं इतिहासकार डॉ अजय अनुपम की कृति 'भारत के इतिहास में मुरादाबाद का स्थान' का सार्वजनिक लोकार्पण एवं परिचर्चा का आयोजन शुक्रवार 14 जनवरी 2022 को किया गया। हिंदी साहित्य सदन की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में वक्ताओं ने पुस्तक की महत्ता और प्रामाणिकता पर साधुवाद देते हुए कहा कि मुरादाबाद के इतिहास में अब तक कोई ऐसी कोई पुस्तक सामने नहीं आई है। 

      कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि 18 वीं शताब्दी में ठाकुरद्वारा राज्य की स्थापना को उजागर करते हुए बीसवीं शताब्दी में ब्रिटिश शासन द्वारा देसी रजवाड़ों के योजनाबद्ध विनाश का महत्वपूर्ण विवरण इस ऐतिहासिक कृति में प्रस्तुत किया गया है। पर्यावरण मित्र समिति के महासचिव केके गुप्ता ने कहा कि मुरादाबाद के कालापानी कहे जाने वाले ठाकुरद्वारा नगर की भौगोलिक महत्ता इस पुस्तक में प्रस्तुत की गई है।

       कार्यक्रम का संचालन करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि डॉ अजय अनुपम ने इस कृति के माध्यम से  मुरादाबाद क्षेत्र के अनेक अज्ञात साहित्यकारों का महत्वपूर्ण विवरण दिया है, जिन पर शोध करने की आवश्यकता है । 

ज्योतिर्विद विजय कुमार दिव्य ने कहा यह कृति मुरादाबाद की प्राचीन शिक्षा पद्धति और जनजीवन की भावना को जानने के लिए  उपयोगी सिद्ध होगी।  अवकाश प्राप्त एबीएसए घनश्याम सिंह ने कहा इस पुस्तक में क्षेत्र के प्राचीन रीति-रिवाजों और उच्च मध्यम वर्ग की महिलाओं के घरेलू तथा सामाजिक स्तर का बखूबी मूल्यांकन किया गया है।

       आयोजन में गोकुलदास हिंदू कन्या महाविद्यालय की पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर संस्कृत डॉ कौशल कुमारी, इंजीनियर स्वाति सिंघल आदि उपस्थित थे। आभार अभिव्यक्ति सुगम अग्रवाल ने की।










बुधवार, 11 अगस्त 2021

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हिन्दी साहित्य सदन' के तत्वावधान में डा. अजय अनुपम एवं डा. आसिफ़ हुसैन द्वारा संयुक्त रूप से संपादित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और ग़ज़लकार स्मृति शेष भगवत सरन 'मुम्ताज़' की ग़ज़ल-कृति "जज़्बाते-मुम्ताज़" का लोकार्पण

मुरादाबाद की प्राचीन साहित्यिक संस्था 'हिन्दी साहित्य सदन' के तत्वावधान में श्रीराम बिहार कालोनी स्थित 'विश्रांति' भवन में 75वें स्वतंत्रता दिवस के संदर्भ में आयोजित समारोह में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और ग़ज़लकार  स्मृति शेष भगवत सरन 'मुम्ताज़' की ग़ज़ल-कृति "जज़्बाते-मुम्ताज़" का लोकार्पण किया गया। हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित इन कृतियों का संपादन वरिष्ठ साहित्यकार डा. अजय अनुपम एवं डा. आसिफ़ हुसैन द्वारा संयुक्त रूप से  किया गया है ।

      कार्यक्रम का शुभारंभ सरस्वती वंदना से हुआ। वरिष्ठ ग़ज़लकार डा. कृष्ण कुमार नाज़ ने लोकार्पित कृति के विषय में बताया कि लोकार्पित  कृतियां हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाओं में गुंजन प्रकाशन से प्रकाशित हुई है। उनकी एक देशभक्ति की ग़ज़ल का शेर है-
वतन अपना है अपनी सरज़मीं है
हमें जीना यहाँ मरना यहीं है
वतन की राह में कुर्बान होना
यही मुम्ताज़ फ़र्ज़े अव्वलीं है

      कृति के संपादक वरिष्ठ साहित्यकार डा. अजय अनुपम ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में मुरादाबाद की धरती का अतुलनीय योगदान रहा है। अनेक लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था , इन्हीं लोगों में भगवत सरन अग्रवाल भी थे जो कई बार जेल भी गये।
    सह संपादक डा. आसिफ़ हुसैन ने कहा कि सन 1900 में जन्मे भगवत सरन अग्रवाल 'मुम्ताज़' ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ग़ज़लें और देशभक्ति की नज़्में लिखीं जो कहीं प्रकाशित नहीं हो पाईं। उनके भतीजे वीरेन्द्र अग्रवाल भट्टे वालों से उनकी डायरी प्राप्त हुई, फिर उन रचनाओं को हिन्दी और उर्दू में प्रकाशित कराया गया है। यकीनन "जज़्बाते-मुम्ताज़" किताब मुरादाबाद के साहित्य की अमूल्य धरोहर है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ. मक्खन 'मुरादाबादी' ने की। मुख्य अतिथि वरिष्ठ समाजसेवी जगन्नाथ प्रसाद अग्रवाल रहे। संचालन योगेन्द्र वर्मा व्योम ने किया। कार्यक्रम में के.के.गुप्ता, सुशील कुमार शर्मा, अशोक अग्रवाल आदि उपस्थित रहे। डा. कौशल कुमारी ने आभार व्यक्त किया।






:::::::: प्रस्तुति::::::::

डा. अजय अनुपम
प्रबंधक- 'हिन्दी साहित्य सदन'
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल-9761302577

रविवार, 12 जनवरी 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डा. मक्खन मुरादाबादी की व्यंग्यकाव्य-कृति 'कड़वाहट मीठी सी' का 11 जनवरी 2020 को लोकार्पण- समारोह एवं कृति चर्चा का आयोजन .....

साहित्यिक संस्था 'अक्षरा', 'सवेरा', 'अंतरा' एवं 'हिन्दी साहित्य सदन' के संयुक्त तत्वावधान में  शनिवार 11 जनवरी 2020 को नवीन नगर मुरादाबाद स्थित डा. मक्खन मुरादाबादी के आवास पर लोकार्पण समारोह एवं कृति चर्चा का कार्यक्रम संपन्न हुआ, जिसमें हिन्दी व्यंग्यकविता के महत्वपूर्ण तथा विख्यात हस्ताक्षर डा. मक्खन मुरादाबादी की काव्य-कृति 'कड़वाहट मीठी सी' का लोकार्पण किया गया। 

कवयित्री डॉ. प्रेमवती उपाध्याय द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से आरम्भ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध नवगीतकार  माहेश्वर तिवारी ने कहा, "मक्खन मुरादाबादी रूढ़ अर्थों में छांदस कवि नहीं हैं लेकिन वह अपनी ध्वन्यात्मकता का प्रयोग करते हुए अपनी कविता का वितान मुक्त छंद में बुनते हैं।उनकी कविताएँ सामाजिक विसंगतियों पर करारी चोट करती हैं।मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. आर. सी. शुक्ला ने अपने उद्बोधन में कहा, "पुस्तक 'कड़वाहट मीठी सी' की कविताओं में व्यंग्य को विसंगति के विरुद्ध शस्त्र की तरह इस्तेमाल नहीं किया गया है, बल्कि मक्खन जी की कविताओं में व्यंग्य स्वयं शस्त्र बन जाता है। उनकी कविताओं के कथ्य में व्यंग्य की ऐसी अंतर्धारा प्रवाहित होती है जो बाह्य प्रदर्शन से परे है।"

विशिष्ट अतिथि श्री मंसूर 'उस्मानी' ने कहा, "मक्खन जी 1970 से कवि सम्मेलन के मंचों पर अपनी कविताओं के माध्यम से लोकप्रिय हैं। 50 वर्ष की कविता साधना के बाद आई उनकी कृति हिन्दी साहित्य में निश्चित रूप से अपना अलग स्थान बनाएगी और सराही जाएगी।" कार्यक्रम का संचालन कर रहे संस्था-अक्षरा के संयोजक योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने कहा, ''मक्खनजी की कविताओं में समाज और देश में व्याप्त अव्यवस्थाओं, विद्रूपताओं, विषमताओं के विरुद्ध एक तिलमिलाहट, एक कटाक्ष, एक चेतावनी दिखाई देती है, यही कारण है कि उनकी कविताओं में विषयों, संदर्भों का वैविध्य पाठक को पुस्तक के आरंभ से अंत तक जोड़े रखता है। नि:संदेह इस कृति की कविताएं संग्रहणीय हैं।" डॉ. अजय 'अनुपम' ने इस अवसर पर कहा, "मक्खन जी की कविताएँ समाज में, देश में व्याप्त विसंगतियों पर कटाक्ष करते हुए बिसंगतियों के लिए जिम्मेदार चेहरों को बेनकाब भी करती हैं और आईना भी दिखाती हैं।" श्री गगन भारती ने कहा, "मक्खन जी की कविताएं व्यंग्य की श्रेष्ठ कविताएं हैं जो उनके व्यक्तित्व की तरह सहज व सरल भाषा में कही गई हैं और पाठक के मन को छूती हैं।" इसके अतिरिक्त डॉ. आसिफ हुसैन, शायर ज़िया ज़मीर, डॉ. मनोज रस्तोगी, डॉ. महेश दिवाकर, विशाखा तिवारी, डॉ.प्रेमवती उपाध्याय, अशोक विश्नोई, डॉ. अर्चना गुप्ता, कशिश वारसी, भोलाशंकर शर्मा, फक्कड़ मुरादाबादी, अक्षिमा त्यागी, अखिलेश शर्मा, आदि ने भी कृति के संदर्भ में विस्तारपूर्वक विचार व्यक्त किए तथा सर्वश्री काव्यसौरभ रस्तोगी, मयंक शर्मा, राजीव 'प्रखर', कौशल शलभ, धन सिंह, प्रशांत मिश्र, एम. पी. बादल जायसी, शैलेश भारतीय, खुशबू त्यागी आदि उपस्थित रहे। अंत में कृति के कवि डॉ. मक्खन मुरादाबादी ने एकल कविता-पाठ भी किया।