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मंगलवार, 6 सितंबर 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की पांच बाल कविताएं .....


1 गीतिका
 

 सब मिल हम सखियाँ बचपन की

 चल करते बतियाँ बचपन की

    

 बागों में चलकर फिर खाते

 वो खट्टी अमियाँ बचपन की

 

 छत पर उन तारों को  गिनकर

 बीते फिर रतियाँ बचपन की


  शादी हम जिसकी करवाते

  चल ढूँढे  गुड़िया बचपन की

 

  कच्चे उस आगंन में अब भी

  फुदके हैं चिड़ियाँ बचपन की


   नव जीवन के सपने देखें 

   चमके हैं अँखियाँ बचपन की


 2 दोहा गीतिका

 बच्चे हम माँ शारदे , करते तेरा ध्यान ।

जीवन- पथ पर तुम हमें  ,देती रहना ज्ञान ।।


 माँगें हम यह भारती, हो भारत का नाम ।

 फहरे झण्डा विश्व में, भारत की बन शान ।।


सभी रंग के फूल से , महके हर उद्यान ।

यही हमारी कामना , सब हो एक समान   ।।          

       

 रुके नहीं चलते चलें  , करें नहीं आराम ।

 धात्री के सम्मान का , रखना हमको मान ।।

      

   स्वप्न यही है ' प्रीति 'का, बेटी बनें महान ।

   उनसे ही तो है बढ़े , इस भारत की शान ।।


 3 गीतिका                                             

सैर इस आसमाँ की कराओ परी 

चाँद के पास जाकर सुलाओ परी ।।1।।


 है वहीं माँ , बतायें मुझे सब यही

 अब चलो आज माँ से मिलाओ परी ।।2।।


  तुम सुनाकर कहानी मुझे गोद में 

  नींद भी नैन में अब बुलाओ परी  ।।3।।

   

  झिलमिलाते सितारे कहें  हैं  मुझे

  ज़िंदगी में नया गीत गाओ परी ।।4।।


 सीख अब मैं गयी बात यह काम की

 फूल से तुम सदा मुस्कुराओ परी ।। 5।।


4 गुल्लक  

    बचपन की वह प्यारी गुल्लक 

    मिट्टी की थी न्यारी गुल्लक 


   चवन्नी अठन्नी जोड़ी जिसमें 

    मिलती नहीं हमारी गुल्लक


  चकाचौंध  की भेंट  चढ़  गईं,

   मेरी  और  तुम्हारी   गुल्लक।


  नहीं दिखतीं घर में किसी के

  कहाँ गईं  वह  सारी  गुल्लक।

    

5 मेरी माँ

कभी कड़वी कभी मीठी गोली सी मेरी माँ

प्यार अंदर भरा हुआ पर दिखती सख़्त है मेरी माँ

ममता की छांव में उसकी बड़े हुए हम

हम भाई बहनो का अभिमान है मेरी माँ

कभी.........

कड़ी धूप में चलना सिखाया

कठिनाइयों से लड़ना सिखाया

बात ग़लत पर चपत लगाती 

राह सच्ची पर चलना सिखाती है मेरी माँ

कभी........

उच्च शिक्षा प्राप्त किए वो 

पर अहंकार से बहुत दूर वो

हर पल चुनौतियों का सामना कर

आत्मविश्वास से भरी दिखती है मेरी माँ

कभी..........

न कभी सजते सँवरते देखा

न व्यर्थ बातों में समय व्यतीत करते देखा 

सादगी से भरी ममता की मूरत 

पूरे दिन हमारी फ़िक्र में

दिन रात मेहनत करती दिखती है मेरी माँ

कभी.....

कभी डाँट कर हमें वो अच्छा बुरा समझाती है

ये जीवन अमूल्य है

हर रोज़ यह बताती है

पथ पर क़दम न डगमगाए कभी

हर राह पर मेरे साथ खड़ी दिखती है मेरी माँ

कभी......

कभी गुरु बन वह मुझे मेरा रास्ता सुझाती है

कभी सखी बन मेरी हर बात बिन कहे समझ जाती है

कभी ईश्वर का रूप धर हर दुविधा में रास्ता बन जाती है

साहस अंदर भरा हुआ

हर विपदा से दूर मुझे कर देती है मेरी माँ

कभी.......

✍️ प्रीति चौधरी 

गजरौला, अमरोहा 

उत्तर प्रदेश, भारत 


शुक्रवार, 19 अगस्त 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी के छह दोहे


मीरा अंतस बावरा, करे कृष्ण गुणगान।

उसी सलोने रूप में, बसते उसके प्रान।। 1।।


डूबी मोहन प्रेम में, गयी जगत को भूल।

सुविधाएँ सब राजसी, लगतीं उसको धूल।। 2।।


राह देखतीं गोपियाँ, सुनें वही फिर तान l

कान्हा की ही बाँसुरी, बसते उनके प्रान ll 3।।


तेरे द्वार उपासना, करती हूँ गोपाल l

नैया पार उतारना, नन्द यशोदा लाल ।। 4।।


सुन लो मेरी प्रार्थना, जग के पालन हार।

भव बाधा से मुक्त हो, अपना यह संसार।। 5 ।।             


बजी बाँसुरी श्याम की, जब-जब यमुना तीर।

तब-तब बृजवासी सभी, भूले अपनी पीर।। 6।।

                                            

✍️ प्रीति चौधरी 

गजरौला,अमरोहा

शनिवार, 30 जुलाई 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी के पांच दोहे .....


देखो ये धरती-गगन, मना रहे हैं तीज।

 बढ़ा रहे हैं प्रीति को , इस सावन में भीज।।

   

  झूला झूलें सब सखी , गायें सावन गीत ।

   बदरा अपने संग तू  ,   ले आ मेरा मीत ।।


  खनके चूडी हाथ में , हिना हुई है लाल।

  मिल जायेंगे मीत भी ,  सखी मुझे इस साल ।।


   कूके कोयल आम पर , गाये मीठे गान।

   झूले अब दिखते नहीं , नयी सदी की आन ।।


  बिन्दी ,काजल ,चूडियांँ , लाओ सब सिंगार ।

  दर्पण झाँकूँ मैं सजूँ ,तीजों के रविवार ।।


✍️  प्रीति चौधरी

  गजरौला,अमरोहा

 उत्तर प्रदेश, भारत



मंगलवार, 21 जून 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की दोहा गीतिका


चाहो यदि संसार से, दूर हटें सब रोग।

सुबह-सुबह मिलकर करें, आओ हम सब योग।।  


नित्य नियम से जो करे, हर दिन  प्राणायाम।

त्याग देह-आलस्य को, पाये जीवन  भोग।।

                                        

जब हों  विचलित  इन्द्रियाँ,  बने ध्यान से काम।

इस मन को जो बाँधता , वही परम है जोग ।।


इस कोरोना -मार से, कैसा हुआ कमाल।

सेहत ही पूँजी बड़ी , समझ गये हैं लोग।।


प्रीति  यहाँ जब लोग सब, मन में लेंगे ठान।

नवभारत की शान तब, बन पायेगा योग।।

✍️प्रीति चौधरी

हसनपुर, अमरोहा

उत्तर प्रदेश, भारत



सोमवार, 10 जनवरी 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की रचना --अपनी प्यारी भाषा हिन्दी, अपना गौरव-गान है ----


करे पूर्ण व्यक्तित्व हमारा,

भारत की पहचान है।

अपनी प्यारी भाषा हिन्दी,

अपना गौरव-गान है।

जय हिन्दी..... जय हिन्दी....।


अपनाती है बड़े प्रेम से,

अन्य सभी भाषाओं को।

पूरी भी करती है देखो,

कितनी ही आशाओं को।

ज़ात-पात से ऊपर उठकर,

एक सभी का मान है।

अपनी प्यारी भाषा हिन्दी,

अपना गौरव-गान है।

जय हिन्दी...... जय हिन्दी......।


इसकी महिमा-गरिमा को अब, 

जग भर में पहुँचाना है।

राष्ट्रसंघ की सूची में भी,

लेकर इसको जाना है।

माँ वाणी से मित्रो हमको,

मिला महा वरदान है।

अपनी प्यारी भाषा हिन्दी,

अपना गौरव-गान है।

जय हिन्दी...... जय हिन्दी......।

               

✍️ प्रीति चौधरी

गजरौला, अमरोहा

उत्तर प्रदेश, भारत

सोमवार, 1 नवंबर 2021

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा ) की साहित्यकार प्रीति चौधरी की ग़ज़ल -- .....दिये को हवा में जलाने लगा है


 ये क्या सिरफिरा आजमाने लगा है

 दिये को हवा में जलाने लगा है


 बताऊँ तुम्हें बात दिल की सुनों तो

 सफ़र ये नया यार भाने लगा है

   

चमन में खिले फूल को देखकर वह 

मुहब्बत वही  गुनगुनाने लगा है

   

 हँसा है बहुत वो बिना बात के ही

 लगे कुछ पुराना  भुलाने  लगा है


बचा लो उसे 'प्रीति' तुम इस जहां से 

नहीं जानता क्या  मिटाने लगा है

 ✍️ प्रीति चौधरी, गजरौला, अमरोहा

उत्तर प्रदेश, भारत 

सोमवार, 18 अक्तूबर 2021

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा )की साहित्यकार प्रीति चौधरी की ग़ज़ल ---करें मदहोश जो मुझको, हिरन जैसी विचल आँखें


 सज़ल आँखें कमल आँखें 

 लगे उसकी गज़ल आँखें 


  करें मदहोश जो मुझको

  हिरन जैसी विचल आँखें 


  नहीं उम्मीद जब कोई

  तलाशें क्या विरल आँखें 

 

 उमंगों से भरी देखों 

 चमकती अब सफल आँखें 


नहीं करना भरोसा तुम

करें हैं प्रीति  छल आँखें 

 

✍️ प्रीति चौधरी

गजरौला, अमरोहा

उत्तर प्रदेश, भारत

रविवार, 20 जून 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की कुण्डलिया ----


पापा गुडिया आपको  , करे बहुत ही  याद ।

  जग सूना लगता मुझे , एक आपके  बाद।।

  एक आपके बाद,  हुई मैं आज अकेली ।

  उलझाती हैं रोज़, ज़िंदगी हुई पहेली।

  सबल वृक्ष की छाँव, गया कब उसको मापा ।

  वह मजबूती-साथ ,कहाँ से लाऊँ, पापा !!                                   

✍️ प्रीति चौधरी गजरौला,अमरोहा