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शनिवार, 24 फ़रवरी 2024

शुक्रवार, 25 अगस्त 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत..... चंदा तेरी कला जानने भेजा हमने यान


 चंदा   तेरी   कला  जानने 

भेजा       हमने        यान

बता सकें दुनियाँ को सारा

तेरा         चंद्र       विधान।

          --------------

तीव्र  वेग  से  उड़ते - उड़ते

पहुंचे          तेरे         पास

तेरी  धरती   को   छूने  का

था         पूरा       विस्वास

आँखमिचौनी को विक्रम ने

चुना        क्षेत्र      सुनसान।

चंदा तेरी-------------------


पर तू ज्यादा खुश मत  होना

हम           फिर        आएंगे

अमर  तिरंगा  फहराकर   ही

वापस                     जाएंगे

हार, शब्द  से   सदा  दूर  ही

रहता          है         विज्ञान।

चंदा तेरी-------------------


इसरो  के   वैज्ञानिक   रखते

हैं         फौलादी         सोच

अथक  परिश्रम से भी करते

कभी        नहीं        संकोच

सूर्य,चंद्र,मंगल,शनि सब पर

भेज     रहे     नित      यान।

चंदा तेरी-------------------


असफलता की नहीं  सोचते

करते        बस         प्रयास

सकल ग्रहों पर पग  धरनेकी

करते        केवल       आस

कब दिन निकला रात होगई

हुआ    न      कोई      भान।

चंदा तेरी-------------------


सारा   भारतवर्ष   खड़ा   है

तन,   मन,   धन   से   साथ

सिर्फ  जीत  के लिए प्रार्थना

करता       है       दिन- रात

हिम्मत करने  वालों  के संग

रहता         है        भगवान।

चंदा तेरी-------------------


✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

                  

शनिवार, 8 जुलाई 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी के नौ दोहे .....

 


1. 

सत्ता मद  में डूबकर,करो न अत्याचार

सच्चाई के सामने, झूठ मानता हार।

2. 

निर्धन की संपत्ति पर, करो नहीं अधिकार

निर्बल के अभिशाप से, होता बंटाधार।

3. 

उसके घर माफ़ी नहीं,सुन ले साहूकार

तेरी करनी की सज़ा, देगा पालनहार।

4.

 दुर्गा माँ का रूप है, बेटी का अवतार

 अपने हाथों से करे, दुष्टों का संहार।

5. 

अहम् वहम में मत रहो, धनबल सुख का सार,

मिट्टी में मिल जाएगा, मायावी संसार।

6. 

बेटी की किलकारियाँ, ईश्वर का उपहार

जिस घर में बेटी नहीं,वह घर है बेकार।

7. 

आदर्शो की बेल पर, खिलें ख़ुशी के फूल

नहीं सताते राह में विपदाओं के शूल।

8. 

बेटों से कमतर नहीं,बेटी का किरदार

सुख-दुख में रहती सदा सेवा को तैयार।

9. 

कभी किसी से मत करो, कटुता का व्यवहार

सबके ही एहसान का, करो व्यक्त आभार।

          

✍️वीरेंद्र सिंह ब्रजवासी

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर   9719275453

                        .......

सोमवार, 23 जनवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत ....मैं संसद से उठ आया हूँ


मैं  संसद   से    उठ  आया   हूँ 

सबकी  आँख  खोल  आया  हूँ 

गुरुओं  का आशीष  पिता   की

सीख   स्वयं   देकर  आया   हूँ।

         ....................


बोली  माँ   मत   दूध   लजाना

सच का  केवल  साथ  निभाना

और  पिता   ने  यह   बतलाया

कभी  पराया  धन  मत  खाना

बचपन  से   सुनता  आया   हूँ।

मैं संसद से..............


झूठों   से   नफरत   कर   लेना

सच की  दौलत  तुम  भर  लेना

जिसे  न  पूरा  कर  पाओ  तुम 

ऐसा   वादा   कर    मत   लेना

जीवन   में   गुनता  आया   हूँ।

मैं संसद से..............


सब  धर्मों   का  आदर  करना

जात-पात  से  बचकर   रहना

कोई   कितना   भी   समझाए

मानवता   से    रिश्ता   रखना 

यही  भाव   बुनता  आया   हूँ।

मैं संसद से...............


खद्दर  की   पौषाक    पहनना 

वोटर  को  भगवान   समझना

वह  जो   काम  बताएं  तुमको 

उसको   पूरे  मन   से    करना 

ऐसा   ही   करता    आया   हूँ।

मैं संसद से.............


रोज़  व्यर्थ  का   रोना - धोना 

पाला   रोज़    बदलते   रहना 

घालमेल   की  इस   संसद में

चाहे जिसको  आका   कहना

भावों  को  चुनता  आया   हूँ।

मैं संसद से......

    

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

   मोबाइल फोन नंबर 9719275453

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गुरुवार, 27 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघु कथा....छटाँक भर जीरा!

 


लाला शुद्धबुद्धि अपनी किराने की दुकान पर बैठे-बैठे ग्राहकों के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। सोच रहे थे कि आधा दिन निकल गया परंतु किसी ग्राहक का अता-पता ही नहीं।

   तभी उन्हें एक ग्राहक दुकान की ओर आता दिखाई दिया। लाला शुद्धबुद्धि ने बढ़कर ग्राहक की इच्छा जानने हेतु पूछा,क्या चाहिए श्रीमान जी।

 ग्राहक कुछ बोलता इससे पहले तराजू के पास पड़े पाँच किलो,दस किलो,बीस किलो,तथा पचास किलो वज़्न के बाटों में यह बहस ज़ोर पकड़ गई कि दुकान पर पधारे ग्राहक महोदय कितने वज़्न का सौदा खरीदने का मन बना रहे हैं।

    सबसे पहले पांच किलो का बाट आगे आया और बोला आजकल महंगाई इतनी हो गई है कि ग्राहक को पांच किलो सौदा खरीदने के लिए भी सौ बार सोचना पड़ जाता है। ऐसे समय में केवल मैं ही तो ग्राहक की इच्छा पर खरा उतरता हूँ।

  तभी उसकी बात बीच में ही काटते हुए दस किलो का बाट अकड़ कर बोला। तू छोटा मुँह बड़ी बात मत किया कर। औकात में रहकर बोलना सीख ले समझा नहीं तो,,,,,आजकल कोई भी अपनी हैसियत को गिराकर खरीदारी करना उचित नहीं समझता। कम से कम ग्राहक का पहनावा देखकर ही अनुमान लगा लिया कर। घर के खर्चे के हिसाब से ही तो चीज़ ली जाती है। अब तू देखता रह भाई साहब मुझ पर ही अपना हाथ रखने वाले हैं।

  इतना सुनते ही दोनों बाटों को पीछे धकेलते हुए बीस किलो का बाट बोला हमारे ग्राहक महोदय, दुकान तक कोई पैदल या फटीचर साइकिल पर चढ़कर थोड़े आए हैं।कार से आए हैं कार से। कोई पांच या दस किलो सामान तुलवाकर घर ले जाएंगे क्या।,,,,,

   लेकिन ग्राहक महोदय शांत खड़े रहकर कुछ सोचने लगे तभी पचास किलो वज़्न का बाट सामने आया और सम्माननीय ग्राहक से बड़े ही विनम्र भाव से बोला, श्रीमान जी यह सारे के सारे बाट एकदम मूर्ख हैं मूर्ख। यह इतना भी नहीं समझ पा रहे हैं कि आप इतनी बड़ी गाड़ी में बैठकर इस दुकान पर आए हैं तो क्या दस या बीस किलो सौदे में लिए  ही इतना पेट्रोल  फूंकेंगे। मैंन इन्हें इतनी बार समझाया है कि ग्राहक देखकर ही अपना मुंह खोला करो। मगर ये हैं,कि समझने को तैयार ही नहीं।इनको तो बिना सोचे समझे बोलना सिद्ध,,,,,

    तभी ग्राहक ने दुकानदार शुद्धबुद्धि को मात्र एक छटाँक जीरा तौलने का आदेश दिया।

    इतना सुनते ही सभी बाटों के मुँह लटक गए। मन ही मन ग्राहक को भला-बुरा कहते हुए अपने स्थान पर निर्जीव पड़े रहकर अगले ग्राहक की प्रतीक्षा करने लगे।

    तभी छटाँक भर के बाट ने गर्व से सीना चौड़ा करते हुए कहा। कि छोटों की अहमियत  को कभी कम नहीं समझना चाहिए। सबने यह कहावत तो सुनी ही होगी।

     रहिमन देखि बड़ेन कौं

     लघु  न   दीजिए  डारि।।

  दुकानदार शुद्धबुद्धि ने ग्राहक को एक छटाँक जीरा तोलकर दे दिया।और कीमत लेकर बोरी के नीचे रखते हुए कहा। कृपया आते रहिएगा आप ही की दुकान है।

   दोनों एक दूसरे का  धन्यवाद करते हुए मुस्कुराने लगे।

 ✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी 

मुरादाबाद 244001 

उत्तर प्रदेश, भारत



      

                  

गुरुवार, 6 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह ब्रजवासी की लघु कहानी......मुल्ला उमर का वहम


मुल्ला उमर बहुत  ही वहमी किस्म का इंसान था। वैसे तो वह खूब हट्टा-कट्टा इकहरे बदन का गोरा चिट्टा इंसान होते हुए भी बीमारी का वहम पाले रहता। उसकी खुराक भी ऐसी कि नौजवानों को भी पीछे छोड़ दे। फिर भी उसके दिमाग में यही फितूर रहता कि हो न हो मेरा शरीर पूरी तरह  स्वस्थ नहीं है। बस इसी उधेड़ बुन में घरवालों से नई से नई चीजें बनवाकर खाता रहता। घर वालों के समझाने पर भी वह कुछ समझने को तैयार न होता। ज्यादा कुछ कहने पर घरवालों को ही उल्टा सीधा कहने लगता।

    एक दिन वह एक पहुंचे हुए दरवेश हनीफ मियां के पास पहुँचा। आदाब अर्ज़ के पश्चात उसने मियां जी से कहा कि हे दरवेश, मुझे हर वक्त ऐसा क्यों लगता रहता है कि मेरे भीतर कोई बड़ी बीमारी पल रही है। मैं जिससे भी पूछता हूँ वह यही कहकर 

टाल देता है कि तुम बिल्कुल ठीक हो। कहीं से भी बीमार नहीं लगते। यह तो केवल तुम्हारे मन का वहम है वहम, और वहम का इलाज तो हकीम लुकमान के पास भी नहीं।,,,,

    क्या आप भी ऐसा ही मानते हैं दरवेश जी। दरवेश जी मुस्कुराकर बोले। बेटा,, यदि तुम इस वहम से छुटकारा ही पाना चाहते हो तो, जैसा मैं कहूँ  वैसा करो। तुम्हारी शंका का समाधान तुम्हें अवश्य ही मिल जाएगा।

    उमर ने कहा मोहतरम आपका हुक्म सर आंखों पर।

आप जो कहेंगे मैं वैसा ही करूंगा। दरवेश ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा। बेटा, तुम अभी जाकर दुनियाँ के माने-जाने किसी अस्पताल में उसके मुख्य द्वार से प्रवेश करके वहाँ के सभी वार्डों में ज़ेरे इलाज मरीजों को ध्यान से देखते हुए अस्पताल के पिछले दरवाज़े से बाहर निकल जाना। तुम्हें तुम्हारी बीमारी का तुरंत समाधान मिल जाएगा।

    उमर ने वैसा ही किया और  एक जाने-माने अस्पताल के मुख्य द्वार से प्रवेश करके उसके भिन्न-भिन्न वार्डों से गुजरते हुए आगे बढ़ने लगा।

   सबसे पहले हड्डी वार्ड का नज़ारा देखकर उसका दिल ही बैठने लगा। उसने देखा कोई रो रहा है, कोई बेहोश पड़ा है। किसी की टांगें शिकंजे में कसी हुई हैं, तो किसी की टांगों को वजन लटकाकर ऊपर उठा रखा है।किसी का पूरा शरीर ही पट्टियों से बंधा हुआ है।

       थोड़ा और आगे बढ़ा तो उसने देखा डॉक्टर लोग एक मरीज के सीने को ज़ोर-ज़ोर से दबाकर उसे साँस दिलाने की कोशिश कर रहे हैं। उसने दिल पक्का करके एक डॉक्टर से पूछा आप ऐसा क्यों कर रहे हैं। तो डॉक्टर ने बताया भैया, इसका दिल कोई हरकत नहीं कर रहा है। दिल को चालू करने के लिए ऐसा करना पड़ता है। चल गया तो ठीक वर्ना,,,,,,,कह नहीं सकते। मुँह व नाक में कई नालियां देखकर उसने आगे बढ़ना ही ठीक समझा।

     इस तरह वह कभी आंखों,कभी दांतों, कभी टी.बी. वार्ड तो कभी चीर फाड़ कर रहे डॉक्टरों के शल्य चिकित्सा कक्ष में दूर से ही झांकते हुए अल्लाह- अल्लाह करता हुआ आगे बढ़ गया। रास्ते में हर एक डॉक्टर के पास मरीजों की लंबी-लंबी लाइनें देखकर जल्दी से बाहर निकलने का रास्ता खोजने लगा। पूछते-पाछते वह अस्पताल के बाहर आकर सोचने लगा कि पीर साहब ने ठीक ही कहा था। अब मुझे  पूरा यकीन हो गया है कि मुझे कोई बीमारी नहीं है ।

   मुल्ला उमर ने दरवेश जी के साथ-साथ सभी घरवालों को आदाब करते हुए अपने ऊपर परवरदिगार के रहमोकरम की सराहना करते हुए सभी से कहा कि बेवजह वहम करना बहुत बड़ी नासमझी है भाई।

 ✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत 

मोबाइल फोन नंबर  9719275453

                    

गुरुवार, 25 अगस्त 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघु कहानी.......आज भी,,,,

सर्वज्ञान विद्यालय के छात्र भीखू से स्वजातीय छात्रों ने पूछा अरे यार आज तो तुम एकदम सुस्त,थके-थके,मरियल से दिख रहे हो। तुम्हारा चेहरा भी बुझा बुझा और शरीर भी बेदम सा लग रहा है। तुम्हारे सूखे होंठों पर जमी पपड़ी भी तुम्हारी शारीरिक स्थिति को परिभाषित कर रही है। हो न हो कोई न कोई बीमारी अंदर ही अंदर पनप रही है। बोलो मित्र क्या बात है।

     भीखू की कक्षा के कुछ साथियों द्वारा उसकी सुस्ती का कारण जानने की हठ करने पर उसने कहा, भाइयो कई दिन से मैं तेज ज्वर व खाँसी से पीड़ित था। बुखार ऐसा कि कभी उतर जाता और फिर इतनी तेजी से चढ़ता की पूरे शरीर को ही जलाकर रख देता। कुछ भी खाने को मन न होता।

      आज कुछ कम होने पर विद्यालय आने की हिम्मत कर पाया। आज आजादी का  अमृत महोत्सव भी तो है। मैंने सोचा आप सभी से मिलकर मन खुश हो जाएगा।  और कुछ अधूरे कार्य भी आपके सहयोग से पूरे हो जाएंगे।

     भीखू के सभी मित्र यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और उसे पूर्ण सहयोग देने की बात कहते हुए कक्षा में  ले जाकर बैठा दिया। भीखू के सभी दोस्त जिनमें नथुआ, खचेड़ू, कलुआ, भैरों, हीरा ने भीखू से पूछा भैया, कुछ खाओगे। हमारे पास जो भी है मिल बांट कर खा लेंगे। भीखू ने कहा नहीं भैया मुझे बिल्कुल भूख नहीं है। आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद। यदि हो सके तो दो घूँट पानी पिला देना। बहुत प्यास लगी है। सारा हलक सूख रहा है। 

     इतना कहते ही भीखू अचेत होकर धरती पर गिर गया। उसके सभी साथी चीखते-चिल्लाते विद्यालय के प्रधानाचार्य भद्राचरण शुक्ला जी के कार्यालय में पहुंचे  और भीखू की अचेतावस्था से अवगत कराते हुए कहा सर, विद्यालय का नल खराब हो गया है। यदि आप अपने घड़े में से थोड़ा जल दे दें तो आपका बड़ा उपकार होगा। यह कहते हुए सभी ने पानी हेतु अपने गिलास आगे बढ़ा दिए।

    इतना सुनते ही प्रधानाचार्य ने सभी छात्रों को फटकार लगाते हुए अपने कक्ष से तुरंत  बाहर निकल जाने का आदेश देते हुए कहा। तुम्हारी इतनी हिम्मत कैसे हुई कि तुमने अपने गंदे पैर मेरे कक्ष में रखे। मेरा सारा कमरा ही अपवित्र कर दिया।

    मैं खूब समझता हूँ कि पढ़ने के नाम पर ऐसे नाटक करना तुम नींच जाति के छात्रों की पुरानी आदत है।

   नहीं-नहीं गुरुवर ऐसा नहीं है, भीखू वास्तव में ही बहुत बीमार है। उसे दो घूँट पानी न मिला तो उसके प्राण संकट में पड़ जाएंगे। नथुआ ने विनम्र भाव से पुनः जल देने की प्रार्थना करते हुए कहा। गुरुजी आप स्वयं चलकर देख लेते तो सत्य असत्य का पता चल जाता।

   प्रधानाचार्य ने क्रोधवश कहा कि मैं अपने घड़े से दो घूँट तो क्या, दो बून्द पानी भी उस अछूत को नहीं दे सकता। मुझे अपवित्र नहीं होना समझे और जहां तक चलकर देखने की बात है तो मैं अपनी परछाईं भी उसके समीप ले जाना पाप समझता हूँ।

    सवर्णों को छोड़कर उसके अन्य सहपाठी बड़े उदास मन से कक्षा में लौट आए। सभी ने मिलकर भीखू को उठाया और विद्यालय परिसर के बाहर बह रहे नाले के पानी को कपड़े से छानकर पिलाने को जैसे ही उसका मुँह ऊपर उठाया तो देखा कि उनका प्रिय मित्र भीखू उन्हें सदा-सदा के लिए छोड़कर जा चुका है।

    सारे के सारे मित्र दौड़े-दौड़े भीखू के गांव पहुंचे और उसके देहांत की दुखद सूचना देकर स्वयं भी दहाड़ें मार कर रोने लगे।

    देखते ही देखते सारा गाँव एकत्र होकर स्कूल में हो रहे भेद-भाव पर रोष प्रकट करने संबंधित पुलिस थाने पहुँचा। परंतु वहां भी ऊंच नीच के घृणित व्यवहार ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। सभी लोग अपना सा मुँह लेकर लौट आए और अपने नसीब को कोसते हुए भारी मन से भीखू का अंतिम संस्कार यह कहते हुए कर दिया कि, अब शांत बैठने से काम नहीं चलने वाला। हम सभी को एक साथ इस भेद-भाव की कुप्रथा से लड़ना ही पड़ेगा।और कहना होगा भाड़ में जाए ऐसी आजादी जिसमें दशकों बाद आज भी......


✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

 मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

 मोबाइल फोन नंबर 9719275453

               

शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की कहानी-----गुलाब जल!

 


आठ साल के बेटे मोहित ने अपनी माँ को बताया,अम्मा मेरी दोनों आँखों में हल्का-हल्का सा दर्द रहने लगा है।मुझे कोई चीज साफ साफ दिखायी भी नहीं देती।

    माँ ने जब यह सुना तो वह सन्न रह गई। तुरंत मोहित को अपने पास बुलाकर उसकी दोनों आंखों को गौर से देखा और बोली, बेटा वैसे तो तुम्हारी आंखें साफ दिखाई दे रही हैं। कहीं कोई गांठ-गुहेरी या लालामी नज़र नहीं आ रही है। फिर भी नेत्र चिकित्सक को दिखाना ही अच्छा रहेगा।

    चल चलके डॉ0 सुचक्षु विद्यार्थी को दिखा लेते हैं।शहर के बड़े ही फेमस आई सर्जन हैं।

    बिना समय गंवाए माँ मोहित को लेकर नेत्र विशेषज्ञ

के "अमर ज्योति"नेत्र चिकित्सालय पहुँच गयी। वहां पहुंचकर तुरंत 800/- का पर्चा बनवाकर बारी आने की प्रतीक्षा करने लगी और दोनों आंखें बंद करके माँ भगवती से बेटे के निरोगी होने की प्रार्थना करने लगी।

    तभी कंपाउंडर ने मोहित का नाम पुकारते हुए अंदर आने को कहा। माँ शीघ्र ही डॉक्टर साहब के चेम्बर में पहुंच गई।

  डॉक्टर ने बड़ी ही बारीकी से मोहित की आंखों का परीक्षण किया। और माँ को बताया कि बच्चे की आंखों में ऐसी कोई बड़ी समस्या तो दिखाई नहीं दे रही। फिर भी मैं आँखों मे डालने की और खाने की दवा दे रहा हूँ। एक हफ्ता खिलाकर बताएं। बच्चे के खाने-पीने का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है।

    हरी सब्ज़ियां,मौसमी फलों के साथ-साथ दूध,दही, घी,अंकुरित दालों की मात्रा बढ़ा दें तो अच्छा रहेगा। एक महत्वपूर्ण सलाह यह है कि ज्यादा टी.वी,मोबाइल और पढ़ाई का सही तरीके से न करना भी विशेष रूप से हानिकारक होगा।

    माँ बड़ी तल्लीनता से मोहित के इलाज को अंजाम देती।और उसके खाने-पीने में भी कोई कोताही न करती। रोज़ भगवान के मंदिर जाकर प्रसाद चढ़ाना भी न भूलती।

    कुछ ही दिनों में मोहित बिल्कुल भला चंगा हो गया। अथक प्रयास से वह आयकर अधिकारी बनकर देश सेवा करने लगा। माँ ने बड़े ही चाव से उसका विवाह उसी की पसंद से उसकी सहकर्मी वंदना से करा दिया।

     दोनों साथ-साथ ऑफिस जाते और एक साथ ही घर लौटकर अपने शयन कक्ष में चले जाते। दिन ढले उठने पर सैर-सपाटे को निकाल जाते।

 बेचारी माँ दो बातें करने को भी तरसती रह जाती।

     उनकी व्यस्तता को देखते हुए उनसे अपनी कोई इच्छा भी व्यक्त न कर पाती।

      एक दिन हिम्मत करके मोहित को पास बुलाकर कहा बेटा मेरी आँखों में कई दिन से बड़ी खुजली हो रही है। तेज जलन के साथ आंखों में सूजन भी आ रही है। शायद चश्मे का नंबर ही बदल गया हो। बेटा समय निकालकर किसी डॉक्टर को दिखा दे तो अच्छा रहेगा।

    अच्छा माँ कहकर मोहित  कमरे में चला गया।,,,, माँ कई दिन तक इसी इंतज़ार रही कि आज चले,आज चले। हारकर माँ ने अपनी पुत्र वधू वंदना को बुलाकर डॉक्टर को दिखाने की बात कही।

    वंदना ने बड़े ही रूखे स्वर में कहा ऐसी भी क्या जल्दी है करवा देंगे। आपको कौन सा दफ्तार जाना है। गुलाब जल रखा है उसे दिन में दो,तीन बार डाल लिया करो।

उम्र के साथ आंख,कान,दांत तो कमज़ोर हो ही जाते हैं।

    आपके साथ भी तो उम्र का तकाज़ा है। पचासी साल की उम्र में आंखे नयी तो हो ही नहीं जाएंगी।

    माँ खून का सा घूँट पीकर रह गयी और ऐसे जीने से तो मौत भली कहकर चुपचाप बरांडे में पड़ी कुर्सी पर जाकर बैठ गयी।

   तभी मोहित हाथ में गुलाब जल की शीशी लेकर माँ के पास आया और बोला देखो माँ वंदना तुम्हारा कितना खयाल रखती है। उसने तुम्हारे लिए यह गुलाब जल भेजा है। इसकी एक-एक बून्द दोनों आंखों में डालती रहो यही काफी है तम्हारे लिए।

    माँ ने शीशी हाथ लेते हुए कहा जीते रहो बेटा।

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

  मोबाइल फोन नंबर  9719275453

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सोमवार, 30 मई 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी के लघु कहानी संग्रह 'अनोखा ताबीज़' का अखिल भारतीय साहित्य परिषद मुरादाबाद की ओर से रविवार 29 मई 2022 को आयोजित समारोह में लोकार्पण

मुरादाबाद के  साहित्यकार  वीरेन्द्र सिंह 'ब्रजवासी' के लघु कहानी संग्रह 'अनोखा ताबीज़' का  लोकार्पण 29 मई 2022 ,रविवार को अखिल भारतीय साहित्य परिषद मुरादाबाद के तत्वावधान में एम. आई. टी. सभागार में हुआ। इस अवसर पर वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी को उनकी साहित्य साधना के लिए, अखिल भारतीय साहित्य परिषद, मुरादाबाद की ओर से साहित्य मनीषी सम्मान से अलंकृत भी किया गया। सम्मान स्वरूप उन्हें अंग-वस्त्र, मानपत्र एवं प्रतीक चिन्ह अर्पित किए गए।

 मयंक शर्मा द्वारा प्रस्तुत माॅं शारदे की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सुधीर गुप्ता एडवोकेट (वरिष्ठ अधिवक्ता एवं चेयरमैन-एम.आई.टी.) ने कहा कि अपने इस उत्कृष्ट कहानी संग्रह के माध्यम से श्री ब्रजवासी जी समाज के सभी वर्गों तक अपनी पहुॅंच बनाने में सफल होंगे, ऐसा मुझे विश्वास है‌।

     लोकार्पित लघु कहानी संग्रह के विषय में अपने विचार व्यक्त करते हुए सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा - "ब्रजवासी जी हिंदी के समर्पित साधक हैं। उन्होंने सृजन के विभिन्न स्वरूपों, यथा गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, लोकगीत आदि में अपने लेखकीय व्यक्तित्व का विकास किया है। यही नहीं, गद्य में भी उनकी अच्छी गति है और सद्य प्रकाशित लघु कहानियों का संग्रह अनोखा ताबीज़ इस गौरवशाली यात्रा में एक नया पड़ाव कहा जा सकता है। भविष्य में उनसे ऐसी ही उत्कृष्ट कृतियों की अपेक्षा की जाए तो यह स्वाभाविक ही होगा।

विशिष्ट अतिथि एवं मेरठ से उपस्थित हुए गीतकार डॉ. रामगोपाल भारतीय के उद्गार थे - "गीतकार तथा कहानीकार वीरेन्द्र ब्रजवासी ने अपने लघु कथा संग्रह अनोखा ताबीज़ में भारतीय  परिवेश में समाज के रिश्तों को परिभाषित किया है। वह गीतकार तो हैं ही एक अच्छे कहानी कार भी हैं।"

  विशिष्ट अतिथि  साहित्यकार डॉ. महेश 'दिवाकर' ने  कहा - "मुझे विश्वास है कि श्री ब्रजवासी जी की यह कृति भी सभी के हृदयों को स्पर्श करते हुए समाज की महत्वपूर्ण कृतियों में अपना स्थान बनायेगी।"

    विशिष्ट अतिथि डॉ. विशेष गुप्ता का कहना था - "वीरेन्द्र ब्रजवासी जी द्वारा लिखित कहानी संग्रह अनोखा ताबीज़ में अतीत, वर्तमान तथा भविष्य के पात्रों के माध्यम से समाज को सांस्कृतिक मूल्यों से परिपूर्ण सार्थक संदेश मिला है।"

     विशिष्ट अतिथि  अनिल शमी ने कहा - "श्री ब्रजवासी जी का यह सारस्वत प्रयास साहित्यकारों की नयी पीढ़ी को भी निश्चित रूप से प्रेरित करेगा।" 

     कृति के संबंध में विचार रखते हुए राजीव प्रखर का कहना था - "समाज में व्याप्त विभिन्न विद्रूपताओं को सशक्त रूप में सामने रखना व उनके हल प्रस्तुत करना इस कृति की विशेषता है। लेखन संबंधी कुछ समस्याओं के बावजूद श्री ब्रजवासी अपनी बात समाज के आम जनमानस तक पहुॅंचाने में सफल रहे हैं।"

      डाॅ. आर सी शुक्ला, दुष्यंत बाबा, हेमा तिवारी, विवेक निर्मल, हिमानी सागर, श्रीकृष्ण शुक्ल, रश्मि प्रभाकर, राघवेन्द्र मणि, योगेन्द्र पाल विश्नोई, रघुराज सिंह निश्चल,  पूजा राणा, उदय अस्त उदय, के. पी. सरल, ज़िया ज़मीर, डॉ. कृष्ण कुमार नाज़, मनोज मनु, जितेन्द्र'जौली', नजीब सुल्ताना, नकुल त्यागी, वीरेंद्र सिंह, शलभ गुप्ता, रवि चतुर्वेदी, काले सिंह साल्टा, ओंकार सिंह ओंकार, शिशुपाल मधुकर, लीलावती, आदि ने भी कृति के विषय में अपने विचार व्यक्त किए। अर्पित मान पत्र का वाचन अशोक विद्रोही ने किया। 

  कार्यक्रम का संचालन संयुक्त रूप से वरिष्ठ व्यंग्यकार अशोक विश्नोई एवं वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार डॉ. मनोज रस्तोगी तथा संयोजन राजीव प्रखर ने किया।डॉ. प्रेमवती उपाध्याय ने आभार-अभिव्यक्त किया।

































शनिवार, 1 जनवरी 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का कहना है- ---नया वर्ष लाए खुशियों के, अनगिन भरे पिटारे, शुभ संदेश मिलें रोजाना, चमकें भाग्य सितारे


नया वर्ष  लाए खुशियों के,

अनगिन     भरे      पिटारे,

शुभ संदेश  मिलें  रोजाना,

चमकें     भाग्य     सितारे।


रूठी खुशियां वापस लौटें,

लौटें        सभी      सहारे,

बीती बातें भूल  दिलों  के,

खोलें       नूतन        द्वारे।


हरपल हीआशीष बड़ों का,

आकर      तुम्हें       दुलारे,

रिद्धि,सिद्धि,समृद्धि सर्वदा,

होवे         साथ      तुम्हारे।

 

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी", मुरादाबाद, उ.प्र.

मोबाइल फोन नम्बर 9719275453

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शनिवार, 27 नवंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघु कहानी----- चाय वाली अम्मा!


भीड़-भाड़ वाली सड़क के किनारे छोटे से खोखे में बूढ़ी अम्मा चाय बनाने में इतनी व्यस्त रहती की उसे नहाने खाने का समय भी मुश्किल से मिलता।

   चाय के साथ-साथ मीठे-नमकीन बिस्कुट,फैन, रस्क,और दालमोठ इत्यादि को सुंदर शीशों के जार में बड़े करीने से सजाकर रखती।

   सभी ग्राहकों से बड़े प्यार से बातें करती और खुशी -खुशी चाय बनाकर पिलाती,तथा उनकी पसंद के बिस्कुट आदि देना नहीं भी भूलती। सभी लोग उसे चाय वाली अम्मा कहकर बुलाते। और बड़ी ईमानदारी से उसके पैसे भी चुकता करते।

    एक दिन एक छोटा बच्चा, जिसके जिस्म पर सही से कपड़े भी नहीं थे। उसने पैरों में भी चप्पल नहीं पहन रखे थे। उसने अम्मा के पास आकर जार में रखे बिस्कुट का दाम पूछा। तो माँ में बताया एक रुपए में दो मिलेंगे  बोल कितने दूँ। बच्चा कुछ नहीं बोला और उदास होकर  वापस चला गया।

     दूसरे दिन वही बच्चा फिर आया और दूर खड़ा होकर चाय पीने वालों को चाय में डुबो-डुबोकर बिस्कुट खाते देखकर बड़े ललचाए भाव से  उनके बिस्कुट खाने की गति को निहारते हुए, मन ही मन बिस्कुट की मिठास का वास्तविक आनंद अनुभव  करता रहा। और सोचता रहा किसी का कोई बिस्कुट टूटकर ज़मीन पर गिर जाए तो अच्छा हो। मैं बाद में उसे उठाकर खा लूँगा।

     भाग्यवश एक ग्राहक का आधा बिस्कुट टूटकर नीचे गिर गया। बच्चा यह देखकर बड़ा खुश हुआ। परंतु अगले ही पल उसकी खुशी का अंत एक देसी कुत्ते ने उसे खाकर कर दिया। बच्चे का मन अंदर तक टूट गया। 

    तभी चाय वाली अम्मा ने चाय बनाते-बनाते, उस बच्चे को दूर खड़ा देखकर अपने पास बुलाया। उसे देखते ही समझ गई कि, यह तो वही बच्चा है जो कल आकर बिस्कुट के पैसे पूछ रहा था।

     अम्मा बोली बेटा तू बड़ी देर से इस तरह चुपचाप क्यों खड़ा है। क्या चाहिए तुझे बता।,,,,,बच्चे ने डरते-डरते बिस्कुट से भरे जार की तरफ उंगली उठाते हुए बिस्कुट पाने की इच्छा मौन संकेतों में बता दी।

    माँ तो माँ ही होती है वह चाहे मेरी हो या किसी और की।,, उसने उसका नाम पूछा, तो बच्चे ने बताया मोहन है मेरा नाम। अम्मा ने पुनः प्रश्न किया तुम्हारे माता-पिता कहाँ हैं। तब बच्चे ने सुबुकते हुए बताया मेरे माता-पिता अब नहीं हैं। उन्हें सड़क पर चलते समय तेज़ गति से आते एक ट्रक ने कुचलकर मार दिया। अब तो मैं और मेरी छोटी बहन छुटकी सामने वाली उस पुलिया के नींचे रहते हैं।

    यह सुनते ही अम्मा का दिल भर आया। वह बोली ईश्वर ऐसा किसी के साथ मत करना। अम्मा ने बच्चे को पुचकारते हुए चाय बिस्कुट खिलाए। और उसकी छोटी बहन को बुलाकर लाने के लिए कहा।

      मोहन थोड़ी देर बाद अपनी छोटी बहन  को बुलाकर माँ के सामने ले आया। अम्मा ने छुटकी को देखा और बोली अरे,,,, यह तो बड़ी सुंदर है। भूखी-प्यासी फटे कपड़ीं में भी कितनी खुश लग रही है। क्या करे हालात की सताई है बेचारी।

     अम्मा ने चुटकी से पूछा बिस्कुट खाओगी बिटिया, उसने झट से हाँ कर दी। अम्मा ने बड़े प्यार से उसे बिस्कुट,नमकीन खाने को दिए। फिर उसको अपने हाथों से नहला-धुलाकर साफ कपड़े पहनने को दिए और कहा। तुम दोनों बहन-भाई आज से मेरे साथ रहकर, मेरे काम में हाथ बंटाया करो। पास में ही एक स्कूल है वहां जाकर पढ़ाई भी किया करो।

    दोनों बच्चे हंसी-खुशी अम्मा के काम में हाथ बंटाते। और समय से स्कूल भी जाते।

    अम्मा बड़ी व्याकुलता से उनके स्कूल से लौटने की राह देखती। बच्चे भी आकर अम्मा को प्रणाम करते और सबसे कहते देखा,, कितनी अच्छी है हमारी चाय वाली अम्मा।

✍️  वीरेन्द्र सिंह "बृजवासी", मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत, मोबाइल फोन नम्बर 9719275453

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बुधवार, 3 नवंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी के पांच दोहे ----


 कुछ दोहे!

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धनतेरस,दीपावली,गोधन, भैया दूज,

नत मस्तक हो पूजिए,होवे पावन सूझ।


बनें सहायक सभी के,लक्ष्मी और कुवेर,

यश वैभव के दान में, करें न तनिक अवेर।


दीप मालिका से करें, घर भर का श्रृंगार,

मन अंधियारा दूर कर, भरो सकल उजियार।


फल,मेवा, मिष्ठान संग रखो खिलोने खीर,

खुशी-खुशी हो बांटिए,खुश होंगे रघुवीर।


जहरीला वातावरण,देता सबको पीर,

प्राण वायु निर्मल रखो, हो करके गंभीर।

   ✍️ वीरेंद्र सिंह बृजवासी, मुरादाबाद ,उत्तर प्रदेश, भारत 

  

शुक्रवार, 3 सितंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेन्द्र सिंह बृजवासी की लघु कहानी---- घर का न घाट का!


 लाला रामगुलाम मोहल्ले के संभ्रांत नागरिक होने के साथ-साथ जाने-माने आभूषण विक्रेता भी थे। पूरे शहर में उनके मधुर व्यवहार एवं ईमानदारी की खूब चर्चाएं सुनने को मिलती।

    उनके पूरे खानदान में इनके पास ही एक बेटा था।बाकी और भाइयों पर दो-दो बेटियां ही थीं।सभी लोग लाला रामगुलाम जी के बेटे बबलू पर ही अपनी जान छिड़कते थे।उसके लिए मुंह मांगा तोहफा हाजिर करने में देर करने का तो मतलब ही नहीं था।

     सभी चाचा-ताऊ बबलू को खूब पढ़ा -लिखा कर बड़ा अधिकारी बनते देखना चाहते।बबलू जब बारहवीं क्लास में था तभी अचानक उसके मन में मुम्बई जाकर फ़िल्म कलाकार बनने की सनक सवार हो गई। हर समय फिल्मी एक्टरों की नकल करता,उनके फिल्मी संवाद बोल बोलकर एवं फिल्मी गानों पर डांस करके अपने दोस्तों और अपनी चचेरी बहनों को दिखाता रहता।

     एक दिन बबलू अपने किसी दोस्त के घर जाने की बात कहकर घर से निकल गया,और रेलवे स्टेशन पहुंचकर मुम्बई जानेवाली गाड़ी में सवार हो गया।काफी रात तक भी जब बबलू घर नहीं आया तो घर वाले गहरी चिंता में पड़ गए।सब जगह टेलीफोन घुमा दिए गए।हर संभव ढूंढने के प्रयासों की होड़ लग गई।मगर उसके फ़िल्म नगरी मुम्बई जाने का अंदाज़ा किसी को नहीं लगा।

     उसकी तलाश करते -करते महीनों बीत गए।उधर बबलू मुम्बई पहुंच तो गया लेकिन उसे वहां कौन जानता,उसके पास जो भी रुपए -पैसे थे वह धीरे-धीरे खत्म होने लगे।एक समय वह आया जब वह एक प्याली चाय तक को तरसने लगा।कई दिन से बिना नहाए धोए रहने के कारण कपड़ों में से भी दुर्गंध आने लगी।ऊपर से भूख भी दम निकालने पर आमादा,,

     किसी को खाता देखकर मुंह में आए पानी को चुचाप निगलने के सिवाय कोई चारा नही था।बिखरे बाल,सूखे होंठ,भूखा पेट कुछ भी करने के लिए मजबूर करने की मजबूरी बनते जा रहे थे।आखिरकार उसने अपनी कमीज़ उतार कर आती जाती गाड़ियों को साफ करके पेट भरने का साधन तलाश ही लिया।

    उसके हाथ देने पर एक गाड़ी वाले बुजुर्ग ने गाड़ी रोककर बबलू से पूछा बेटे तुम कहाँ के रहने वाले हो और यहां किस उद्देश्य को लेकर आए हो।तब बबलू ने रोते हुए अपने संभ्रांत परिवार के बारे में सब कुछ बता दिया।

     दयावान बुजुर्ग ने पहले तो उसे अपने थैले से निकालकर बड़ा पाव खाने को दिया, बिसलरी का पानी पिलाकर उसको खड़ा होने लायक किया और उसके माता-पिता को मोबाइल पर अपना पता देते हुए बेटे को अपने पास सरक्षित होने की सूचना दी।

      तब उन्होंने बबलू को भी बहुत समझाते हुए कहा बेटा घर से भागने वाले बच्चों की हालत कैसी हो जाती है, क्या तुम्हें इसका अंदाज़ा है।कभी भी ऐसा कदम न उठाना। यह कहावत बिल्कुल सही है कि--- घर छोड़ने वाला न घर का रहता है न घाट का।बबलू ने कान पकड़कर अपनी ग़लती को मानते हुए बुजुर्ग सज्जन की दयालुता पर उनको साष्टांग प्रणाम किया।

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी", मुरादाबाद, उप्र, मोबाइल फोन नम्बर 9719275453

               

                   

गुरुवार, 26 अगस्त 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघु कहानी- मेथी-आलू की भुजिया!


पेशकार, पंडित राम भरोसे लाल दीक्षित तैयार होकर नाश्ते के इंतज़ार में बैठे थे।यकायक उन्हें ख़याल आया कि आज तो घर पर कोई है ही नहीं।घर के सभी सदस्य करीबी रिश्तदार की शादी में शामिल हेने दिल्ली गए हुए हैं।

    दीवार पर टंगी घड़ी को देखा तो उसमे पूरे नौ बज रहे थे।जब कि उनको साढ़े दस बजे तक कचहरी पहुंचना भी जरूरी था।

   गांव से मुख्य सड़क तक आने के लिए शार्टकट रास्ता बाल्मीकि बस्ती से होकर ही जाता।

    दीक्षित जी ने झट-पट फाइलों का थैला उठाया और ताला डालकर घर से निकल लिए।तेज कदमों से चलते हुए कुछ ही पलों में बाल्मीकि बस्ती के नुक्कड़ तक पहुंच गए।

    थोड़ा सा आगे बढ़े ही थे कि हरिया बाल्मीकि की पत्नी अतरी देवी जो लोहे की कढ़ाई में मेथी-आलू की भुजिया बना रही थी।जिसकी सुगंध घर के  बाहर  तक  अपना असर छोड़ रही थी।

    पंडित रामभरोसे लाल दीक्षित को देखकर हरिया की पत्नी अतरी देवी ने आवाज़ लगाकर कहा देवर जी कहाँ जा रहे हो।बड़ी जल्दी में लग रहे हो। हाँ भाभी,साढ़े दस बजे तक कचहरी जो पहुंचना है।अतरी ने पुनः प्रश्न किया पेशकार जी कुछ नाश्ता-वास्ता भी कर लिया है या ऐसे ही भूखे पेट भागे जा रहे हो।मुझे पता है घर पर कोई नहीं है।नाश्ता भी किसने कराया होगा।

    मैंने तो मेथी-आलू की भुजिया बनाई है।गेंचनी की हाथ पानी की रोटी भी सेक रही हूँ।अगर एतराज न हो तो खाकर ही चले जाते।परंतु कंजूस स्वभाव दीक्षित जी भूख से व्याकुल तो थे।परंतु जाति-बिरादरी की लोकशंका से व्यथित होना भी स्वाभाविक ही था।

     चलते-चलते उन्होंने सोचा  कि इतने प्यार से कौन किसको बुलाता है।भाभी ने खाने के लिए आवाज़ दी है तो कुछ अपना समझकर ही दी होगी।

    फिर हाथ धोकर ही सब्ज़ी काटी होगी,काटी हुई सब्ज़ी की भी कई बार धोया होगा।तेल भी शुद्ध सरदों का डाला होगा,इसके साथ ही वही मसाले,धनियां,नामक -मिर्च,हल्दी डाली होगी जो हम अपने घर पर भी रोज़ खाते हैं। साफ सुथरी लोहे की कढ़ाई में खूब अच्छी तरह ढंग से पकाकर भुजिया बनाई होगी।ऊपर से गेंचनी की रोटी चूल्हे पर खूब करारी सेक कर ही तो मुझे खाने को देगी।इसमें अतरी भाभी का क्या दोष।

    पंडित जी ने अतरी से पूछा भाभी नहा धोकर ही तो रसोई बना रही होगी। अतरी बोली और क्या, बिना नहाए धोए,गंदे-संदे ही खाना बनाएंगे।आप मुझे ऐसी-वैसी मत समझना।मैं तो बिना पूजा करे चाय तक भी नहीं पीती, देवर जी।

    मैंने तो इंसानियत के नाते  पूछ लिया आगे आपकी इच्छा।मैं तो फिर कहूंगी खा लो,,पेट पड़े गुन देगी।

       अच्छा भाभी जब तुम इतना कह रही हो तो ,,,,मना करना भी अच्छा नहीं लगता।

पंडित जी ने इधर-उधर देखा और घर के अंदर जाकर चारपाई पर जा बैठे। और खाना आने का इन्तज़ार करने लगे।तभी चमचमाती थाली में सुगंधित मेथी-आलू की सब्ज़ी वह भी घी से तरबतर।गेंचनी की हाथ की मोटी-मोटी चार रोटी साथ में पुदीने की चटनी की महक भी भूख को दोगुना कर रही थी।

    जल्दी से दीक्षित जी ने अतरी के हाथ से थाली लेकर  मंत्रोच्चारण के पश्चात खाना प्रारंभ कर दिया।शीघ्र ही भोजन समाप्त करके संतुष्टि की डकार के साथ ही भाभी जी के स्वादिष्ट खाने की प्रसंशा करए हुए धन्यवाद दिया।

 अब तक घड़ी भी दस बजने का स्पष्ट संकेत दे रही थी।पंडित जी भी तेज कदमों के साथ कार्य स्थल के लिए प्रस्थान कर गए।

जाते-जाते सोचने लगे कि खाना बनाना और प्यार से खिलाना भी एक कला है।जो सबके पास नहीं मिलती।इस खाने में प्यार भी था,विश्वास भी था,वात्सल्य और समर्पण  भी था।इसके साथ मिठास भरा अपनापन भी तो कम नहीं था।

     पर इस भेदभाव के लिए कोई और नहीं हम स्वयं ही दोषी हैं।परहेज मनुष्य से नहीं और ना ही उसकी दरिद्रता से करना चाहिए,बल्कि अपने कुसंस्कारों,मिथ्या अहम और हैवानियत से करना चाहिए।

    यही परमपिता परमात्मा की सच्ची उपासना है।

✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद,उप्र, भारत, मोबाइल फोन नम्बर 9719275453

              

                     

बुधवार, 28 जुलाई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत ---सुरसा सी महंगाई देखो, मुँह बाए प्रत्यक्ष खड़ी है, भूख, गरीबी, लाचारी की, आज किसे परवाह पड़ी है,


ओढ़ झूठका स्वयं लबादा,

बन   बैठे   साधू  सन्यासी,

झूठों को सम्मानित करके,

सच्चों  को  ये  देते  फांसी।

         

बिल्ली भाग्य टूटते  छींके, 

फिरहरपल इतरातेक्योंहो,

साम-दाम से सत्ता पाकर,

ईश्वर को झुठलाते क्योंहो,

वैर भाव का पाठ पढ़ाकर,

जन-मानस में भरें उदासी।


सुरसा  सी  महंगाई  देखो,

मुँह  बाए प्रत्यक्ष खड़ी  है,

भूख, गरीबी, लाचारी  की,

आज किसे परवाह पड़ी है,

हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई,

लगते  सारे  धर्म  सियासी।


खेती - बाड़ी, उद्योगों  की,

खुले आम बोली लगती है,

इनको   चेताने  वालों   के,

सीनों में  गोली  लगती  है,

सिर्फ आंकड़ों में जिंदा  हैं,

सूख रही हैं फसलें प्यासी।


आसमान छू  रही   पढ़ाई,

किसने इसपर रोक लगाई,

मनचाहा  व्यापार बनाकर,

शिक्षा   की  दे  रहे  दुहाई,

पुश्तैनी   धंधे   की    नेता,

सीख दे रहे अच्छी-खासी।


लोगों  में  सद्भाव  नहीं  है,

सर्व धर्म समभाव  नहीं  है,

सिर्फ वोटकी राजनीति से,

बढ़कर कोई दांव  नहीं  है,

पर उपदेश कुशल  बहुतेरे,

फंसते इसमें नगर निवासी।

             

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी", मुरादाबाद/उ,प्र, भारत,  मोबाइल फोन नम्बर 9719275453

                  

                       

मंगलवार, 27 जुलाई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की कहानी ------- बेटी क्यों बेचारी है!


अरे लाला बनवारी लाल,बड़ी जल्दी में हो,ऐसी क्या बात है जो दो मिनिट रुककर दो बात भी नहीं कर सकते।नहीं-नहीं ऐसी कोई बात नहीं शंकर लाल।मैं अपने बेटे के लिए कुछ ताजे फल,मेवे और उसकी पसंद के नुक्ती के लड्डू लेकर आया था सोचा उसे जाकर देआऊं।मैं चाहता हूँ कि वह खूब तंदरुस्त और सुंदर हो।अभी उसके खाने-पीने की उम्र है।कोई हारी-बीमारी उसे छू भी न पाए।बड़े होकर वही तो हमारा सहारा बनेगा।

 बनवारी लाल की बात बीच ही में काटते हुए शंकर लाल ने कहा उस सुंदर बिटिया लक्ष्मी के लिए कुछ भी नहीं।ऐसी क्या बात है वह कोई पराई है क्या।

      तुमने ठीक कहा शंकर लाल बेटी तो पराया धन होती ही है।उससे क्या मोह, उसको तो एक न एक दिन यह घर छोड़कर जाना ही जाना है।फिर मैं फ़िज़ूल उसके ऊपर खर्चा क्यों करूं।

   मैंने लक्ष्मी की माँ को बोल दिया है कि अब यह लगभग पांच साल की हो रही है।इसे घर का काम धंधा भी सिखाओ।सबेरे उठकर पूरे घर में झाड़ू,दोपहर का खाना, चौका-बर्तन के साथ-साथ कुछ सिलाई-कढ़ाई करना भी सिखाया करो।खाली पड़े-पड़े खाएगी तो मोटी और हो जाएगी।शंकर लाल उसकी बात सुनकर चुचाप अपने घर लौट गए।

      यह सुकर बेटी ने पापा से कहा।पापा अगर मैं सारे दिन घर का ही काम करूंगी तो पढ़ने स्कूल कैसे जाऊँगी। मुझे भी तो पढ़-लिख कर आगे बढ़ना है।

      बनवारी लाल झल्लाते हुए,,,,,चल,चल आई बड़ी पढ़लिख कर आगे बढ़ने वाली।पढ़-लिख कर तू कौन सी कलेक्टर बनेगी।तेरे लिए उतनी ही पढ़ाई काफी है ताकि तू चिट्ठी-पत्री बांच सके।

       बेटी लक्ष्मी अपना सा मुंह लेकर आंखों में आंसू भरे माँ के पास जाकर अपने पढ़ने के बारे में पिता जी को समझाने की ज़िद करने लगी। माँ ने कहा बेटी तेरे पिता जी ठीक ही तो कह रहे हैं।

कल से घर के काम में मेरा हाथ बटाना सीख।

     बेटा मोहन भी अब काफी बड़ा हो चुका था।परंतु पढ़ाई में फिसड्डी ही निकला।वह हाई स्कूल भी पास नहीं कर सका।फिर भी पापा कहते क्या हुआ,अगर पास नहीं हुआ वह तो घर का चिराग है चिराग।कुछ नहीं तो दुकान पर बैठकर ही नौ के सौ कर लेगा।अब तो उसकी शादी वाले भी घर का चक्कर काटने लगे।

     बनवारी लाल पत्नी से बोला क्यों भाग्यवान लड़की तो अपने घरवार की हो चुकी।अब मोहन की भी शादी हो जाए तो कैसा रहे।ठीकठाक रिश्ते भी आ रहे हैं। जैसी आपकी इच्छा।

     शादी होते ही मोहन के स्वर बदलने लगे।अब वह केवल वही करता जो उसकी पत्नी कहती।कभी-कभी तो माता-पिता पर बेतहाशा चीख-चीखकर घर से निकल जाने की धमकी भी देने लगा।

       बेटी लक्ष्मी से यह सब देखा न गया।उसने माता-पिता से बड़े विनम्र भाव से प्रार्थना की कि आप चिंता क्यों करते हो ,अगर भैया आपके साथ नहीं रहना चाहते, वह अकेले रहना चाहे हैं तो रहें।आप दोनों अभी इसी वक्त हमारे साथ चलो।

      यह सुनकर बनवारी लाल सुबुक-सुबुककर रोने लगे और रो-रोकर बस यही कहते रहे बेटी मुझे माफ़ करना मैंने तुम्हारा बड़ा अपमान किया।मैं बेटे के प्यार में अंधा हो गया था।पर अब समझा बेटियां ही घर का चिराग होती हैं।

वह एक नहीं दो-दो घरों को रौशन करके भी मां-बाप का साथ निभाना नहीं भूलतीं।

मैं तो यही कहूंगा----

   बेटी   क्यों   बेचारी   है,

   वह  तो  राजदुलारी   है,

   बेटी  ही  तो जीवन  की,

   महक भरी फुलवारी  है।

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी",  मुरादाबाद/उ,प्र, 9719275453

                 

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बुधवार, 21 जुलाई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की कहानी ---भूत बंगला


शहर से दूर एक विशाल बंगला जो सदियों साल पुराना हो चुका था।जिसके चारों ओर तमाम कटीली झाड़ियां और घनी घास- फूस उग आने के कारण वह साफ- साफ नजर भी नहीं आता था।

 वैसे तो वह सरकारी डाक बंगला था।

     कुछ समय से उसमें ठहरने वाले कई अफसरों की अनायास मृत्यु हो जाने के कारण उसमें रुकने को कोई भी तैयार नहीं होता।होते-होते उसका नाम भूत बंगला पड़ गया।

      एक बार एक दिलेर फौजी अफसर ने उसमें ठहरने की इच्छा जताते हुए जिलाधिकारी से आज्ञा लेने का मन बनाया।जिलाधिकारी ने उस फौजी अफसर को उसके बारे में विस्तार से बताकर वहां न ठहरने की सलाह दी।परंतु फौजी ने उस बंगले के रहस्य को जानने का प्रण करते हुए अपना मंतव्य उजागर कर दिया।

     जिला अधिकारी ने कुछ मजदूर लगाकर उसकी सफाई करा दी।फौजी अफसर एक कमरे में बिस्तर लगाकर लेट गया।लेटते ही उसे नींद आ गई।रात्रि के ठीक बारह बजे कमरे के दरवाजे पर ठक,ठक की आवाज़ हुई।फौजी की आंख खुल गई।उसने आवाज़ लगाई कौन है,कौन है।कोई उत्तर न मिलने पर दिल में थोड़ी घबराहट लिए वह सो गया।थोड़ी सी आँख लगने पर वही ठक-ठक की दस्तक फिर हुई।फौजी उठा और दरवाजा खोकर देखा परंतु वहां कोई नज़र न आया मगर दूर किसी कोने से एक खौफनाक हंसी उसके कानों में अवश्य पड़ी।

    फौजी दिल पक्का करके हनुमान चालीसा पढ़ते हुए कमरे में आकर बैठ गया। पुनः हिम्मत बटोरते हुए वह ऊपर छत के एक कोने में छुपकर बैठ गया।और फिर से उसी दस्तस्क का इंतज़ार करने लगा।

    तभी उसने देखा एक सफेद सी आकृति दरवाज़े के समीप आकर रुकी और चारों ओर देखते हुए दरवाज़ा बजाने का प्रयास किया।जैसे ही उसका हाथ दरवाज़े तक पहुंचता,फौजी अफसर ने ऊपर से छलांग लगा दी।और उस सफेद पोश बुरी आत्मा को दबोचते हुए पूछा, बता तू कौन है और क्या चाहता है। फौजी ने उसके ऊपर पड़ी चादर को हटाया तो वह वहां का पुराना चौकीदार कल्लू निकला।

       फौजी अफसर ने उसे कमरे में लेजाकर पहले तो उसकी जमकर धुलाई की। फिर उसके मुंह से वह सत्य उगलवा लिया,जिसके बल पर कल्लू दहशत से मरने वाले अधिकारी का सारा सामान लेकर रफूचक्कर हो जाता।इसके पहले भी वह नौ लोगों को अपना शिकार बना चुका था। जिसके कारण ही उस बंगले को भूत बंगला कहा जाने लगा।

       फौजी अफसर ने कल्लू को साथ लेजाकर जिला अधिकारी के सम्मुख पेश करके उसके काले कारनामों का खुलासा  किया। जिलाधिकारी महोदय ने फौजी अफसर की बहादुरी को सलाम करते हुए प्रशासन से उक्त बंगला उन्हीं के नाम करने की शफारिश करते हुए,अपराधी कल्लू को जेल भिजवा दिया।

       इस प्रकार वह भूत बंगला सदा-सदा के लिए इस पैशाचिक नाम से मुक्त हुआ। फौजी अफसर ने यह प्रमाणित कर दिया कि हौसले में ही जीत छुपी होती है।

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी", मुरादाबाद/उ,प्र,

                 

                  

                       

गुरुवार, 15 जुलाई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की कहानी----एक इंच ज़मीन!


एक दूसरे के खून के प्यासे बने दो ऐसे परिवारजो आपस में सगे चाचा-ताऊ की औलाद होते हुए भी आपस में एक दूसरे की सूरत तक देखना भी पसंद नहीं करते।

      दोनों ओर के लोगों के हाथों में एक से एक भयानक हथियार देखकर मुहल्ले के लोगों के साथ-साथ वहां से गुजरने वाले हर एक व्यक्ति के मन में एक अजीब सा भय व्याप्त था।पता नहीं कब कोई अनहोनी हो जाए।

     किसकी तरफ से कौन काल के गाल में समा जाए।इतना विस्फोटक माहौल देखकर कोई  भी उनके पास जाकर उनसे इसका कारण जानने की हिम्मत तक नहीं कर जुटा पाता।

     तभी एक बूढ़ा व्यक्ति जो फटे-पुराने कपड़े पहने था।पैरों में जूते भी न होने के कारण दोनों पैर  बुरी तरह से घायल और ऊपर तक सूजे हुए थे। रूखा-रूखा चेहरा,बिखरे-बिखरे  बाल,बुझी-बुझी सी आँखें,सूखी हुई काया किसी अस्थिपंजर से कम नहीं लग रही थी। ने पास जाकर उन दोनों क्रोधित परिवार के सदस्यों को शांत करते हुए पूछा, बेटा ऐसी क्या समस्या है जिसका परिणाम इतना भयंकर होने जा रहा है।

   तभी दोनों परिवारों के सदस्य एक साथ बोल पड़े बाबा यह हमारी एक इंच जमीन पर जबरदस्ती कब्ज़ा करना चाहते हैं।जो हम इन्हें करने नहीं देंगे।चाहे कुछ भी क्यों न हो जाए।

    तभी दूसरी तरफ के लोगों ने भी अपने कागजात दिखाते हुए कहा कि इन पर हम सबके नाम देखकर आप खुद ही फैसला करें बाबा,कि कौन सही और कौन ग़लत है।

      बाबा ने मुस्कुराते  हुए दोनों पक्षों से एक सवाल किया कि आप मुझे यह बताएं कि आप अपने परिवार के किस-किस सदस्य को खोना पसंद करेंगे।अपने बाप-दादा को,अपने भाइयों को,चाचा-ताऊ, या अपनी माँ,बहन,बेटियों के अलावा अन्य सगे रिश्तेदारों को।

    अगर एक इंच ज़मीन का टुकड़ा आपकी शांति को भंग करके आपको मेरी तरह बेसहारा और भिखारी बना दे,क्या यह अच्छा लगेगा आपको,,,

   मेरा भी बहुत सम्पन्न परिवार था।सभी में बहुत एका था।सब एक दूसरे पर जान छिड़कते थे।सब हमारे परिवार की एकता की मिसालें देते नहीं थकते थे। परन्तु

तभी  मेरे परिवार में भी सिर्फ एक इंच ज़मीन के टुकड़े को लेकर ऐसा महाभारत हुआ कि मेरे सिवाय पूरा परिवार ही लालच की भेंट चढ़ गया।

      आज मैं अकेला इस संसार में अपने दिन पूरे कर रहा हूँ।भीख मांग कर पेट भर लेता हूँ।कभी-कभी तो भूखे पेट ही सो जाता हूँ।हर समय अपने उन सुनहरे दिनों की शानदार यादों को 

संजोते हुए केवल और केवल अपनी आंखों से आंसू बहा कर अपने मन को हल्का कर लेता हूँ।

    ओ प्यारे बच्चो आपसी झगड़ों से कुछ हासिल नहीं होता।मिलती है तो सिर्फ बर्बादी की चुभन।

   इसलिए आपस में गले मिलो और भयानक अपराध से बचो।इसी में समस्त परिवार का भला है।सभी ने बाबा की बातों पर अमल करते हुए अपने-अपने हथियार फेंक कर एक दूसरे को प्यार से गले लगाते हुए अनर्थ होने से बचा लिया।     बाबा ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए आशीर्वाद देते हुए कहा। सभी का कल्याण हो।            

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी",मुरादाबाद/उ,प्र,

मोबाइल फोन नम्बर  9719275453

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