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सोमवार, 15 सितंबर 2025

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति द्वारा हिन्दी दिवस 14 सितम्बर 2025 को आयोजित समारोह में साहित्यकार राजीव सक्सेना को 'हिन्दी साहित्य गौरव सम्मान' से किया गया सम्मानित -----------

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति द्वारा हिन्दी दिवस पर विश्नोई धर्मशाला , लाइनपार में  सम्मान समारोह एवं काव्य-गोष्ठी का आयोजन 14 सितम्बर 2025 को किया गया जिसमें मुरादाबाद के वरिष्ठ रचनाकार  राजीव सक्सेना को संस्था की ओर से 'हिन्दी साहित्य गौरव सम्मान' से अलंकृत किया गया।  सम्मान स्वरूप श्री सक्सेना को अंगवस्त्र, मानपत्र एवं सम्मान राशि प्रदान की गयी। सम्मानित रचनाकार श्री राजीव सक्सेना को प्रदत्त मानपत्र का वाचन प्रशांत मिश्र ने किया। 

      रामसिंह निशंक द्वारा प्रस्तुत माॅं शारदे की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. रमेश यादव 'कृष्ण' ने की। मुख्य अतिथि ओंकार सिंह ओंकार एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. कृष्ण कुमार नाज़ उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन राजीव 'प्रखर' द्वारा किया गया।               सम्मानित साहित्यकार राजीव सक्सेना ने कहा - "हिन्दी की प्रगति का प्रमाण यह है कि उसका  बाजार पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा है यद्यपि हिन्दी के सम्मुख कुछ भाषा विकृति की समस्या भी है। इसके बावजूद हिन्दी आम व्यक्ति तक लगातार पहुॅंच बना रही है। वर्तमान साहित्यकारों की पीढ़ी का यह दायित्व है कि वह इन विकृतियों को दूर करने के लिए भी प्रयत्नशील रहे। कार्यक्रम के अगले चरण में काव्य-गोष्ठी हुई जिसमें अमर सक्सेना, प्रशांत मिश्र, राजीव प्रखर, रामसिंह निशंक, डॉ मनोज रस्तोगी, हरि प्रकाश शर्मा, विवेक निर्मल, चिरंजीलाल, डॉ. राकेश चक्र, रामगोपाल, योगेन्द्र पाल विश्नोई, डॉ. कृष्ण कुमार नाज़, ओंकार सिंह ओंकार एवं रमेश यादव कृष्ण ने हिन्दी की महिमा गरिमा को दर्शाती काव्यात्मक एवं गद्यात्मक अभिव्यक्ति की। रामसिंह निशंक द्वारा आभार अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा। 















































रविवार, 16 मार्च 2025

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ आर सी शुक्ल की काव्य कृति ....एक छोटा आदमी बड़ा हो ही नहीं सकता की राजीव सक्सेना द्वारा की गई समीक्षा ....कविताओं के जरिए बिखरे सामाजिक यथार्थ की पड़ताल

 पुरुष कितना भी बड़ा हो जाये

  स्त्री से छोटा ही रहेगा

  स्त्री उसकी माँ है .....

  इन कालजयी पंक्तियों के रचनाकार हैं मुरादाबाद  के वरिष्ठ कवि -   डॉ राजेश चन्द्र शुक्ल। हिंदी -अंग्रेजी में अनक़रीब बीस कविता संग्रहों के  रचनाकार  शुक्ल जी केवल पीतल नगरी के ही नहीं बल्कि देश के उन चुनिंदा कवियों में से हैं जो अपने विशद रचनाकर्म के जरिये एक बड़े कैनवास पर 'यथार्थ की रचना  और पुनर्रचना ' करते हैं। इसका जीवंत प्रमाण है उनका सद्य प्रकाशित कविता संकलन --'एक छोटा आदमी कभी बड़ा हो ही नहीं सकता'

  संकलन की कविताओं में शुक्ल जी एक 'जेनुइन' अथवा खाँटी कवि के तौर पर हमारे आसपास के यानी समाज के बिखरे हुए और प्रायः अनचीन्हे यथार्थ की व्यापकता और गहनता से  ही नहीं बल्कि क्वांटम स्तर पड़ताल करते हैं। दरअसल,कविता केवल यथार्थ की पड़ताल ही नहीं हैं बल्कि उसकी रचना और पुनर्रचना भी है।प्रस्तुत संकलन  में  सर्वत्र यही प्रयत्न कवि शुक्ल जी ने पूरी ईमानदारी से किया है। तभी उन्होंने  अपनी अधिकांश कविताओं के विम्ब अपने आसपास के परिवेश और सामान्य जनजीवन से उठाए हैं।प्रस्तुत संकलन की कविताओं के विम्ब और विषय किसी वायवी या रहस्यलोक की सृष्टि नहीं है बल्कि हमारे सामने के यथार्थलोक की सृष्टि ही अधिक हैं। संकलन की भूमिका में कवि शुक्ल जी स्वयं कहते हैं --"कवि के रूप में मैंने चील की तरह ऊँचे आकाश में उड़ने का प्रयास कभी नहीं किया है..."

  कवि शुक्ल कविता संकलन की एक कविता में समाज की विसंगतियों , विद्रूपों  और मनुष्य की नियति पर निर्ममतापूर्वक प्रहार करते हुए कहते हैं --

 कथावाचक खूब सुनाते हैं ऐसी कहानियां

 कि पूजा --पाठ करने से

बदल सकती है आदमी की हैसियत

किन्तु यह सच नहीं है

अंधविश्वासों की मदिरा 

पिलाई जा रही है गरीबों को सदियों से....

  संकलन की संभवतया सबसे तीखी कविता--'रिक्शावाला ' में शुक्ल जी एक विचलित कर देने वाले यथार्थ को उद्घाटित करते हुए कहते हैं--

  तुम हर वक्त

  जूझते रहते हो ऐसे प्रश्नों से

  जिनका कोई हल

  नहीं है तुम्हारे पास

  रिक्शावाला प्रश्न नहीं करता

  किसी मुसीबत के आने पर .....

  अगर कवि शुक्ल जी ने निरंतर क्षरणशील समाज और उसके छिन्न -भिन्न  हो रहे ताने -बाने को अपनी कविताओं का विषय बनाया है तो  अपनी स्त्री विषयक कविताओं में'पछाड़ खाती स्त्री ' को  एक नए आलोक और जीवन संदर्भों के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत कर स्त्री विमर्श और उसकी मूल संवेदना की अनदेखी भी नहीं की है।स्त्री को लेकर कवि शुक्ल जी ने सचमुच अनूठे विम्ब रचे हैं।

  कभी कथाकार राजेन्द्र यादव ने 'कविता के अंत ' की घोषणा की थी किन्तु प्रभात प्रकाशन प्रकाशन बरेली से प्रकाशित कवि राजेश चन्द्र शुक्ल का यह कविता संकलन न केवल कविता की जययात्रा में सृजनात्मकता के नए प्रस्थान बिंदु उपस्थित करता है अपितु कविता में एक आम पाठक की रुचि और उसके विश्वास को भी  बहाल करता है।कुछ नया पढ़ने और  कुछ क्षण ठहरकर सोचने की दृष्टि से यह काव्य संकलन  पाठकों को निराश नहीं करेगा।



कृति :  एक छोटा आदमी बड़ा हो ही नहीं सकता (काव्य संग्रह)

कवि : आर सी शुक्ल

प्रकाशन वर्ष : 2024

मूल्य : 550₹ 

प्रकाशक : प्रकाश बुक डिपो, बड़ा बाजार, बरेली 243003 

समीक्षक: राजीव सक्सेना, डिप्टी गंज, मुरादाबाद 244001,उत्तर प्रदेश,भारत। मोबाइल फोन नंबर 94126 77565 ई - मेल -rajjeevsaxenaa @ gmail.com

गुरुवार, 12 सितंबर 2024

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ विश्व अवतार जैमिनी पर केंद्रित राजीव सक्सेना का आलेख....कक्षा बनी चौपाल

   


 बात उन दिनों की है जब महाराजा हरिश्चन्द्र महाविद्यालय में मैंने स्नातक कक्षा में नया -नया प्रवेश लिया था।

    कक्षाएं शुरू होने का पहला दिन था।हिंदी साहित्य का पीरियड था।जैमिनी साहब  हमारे अध्यापक थे।मैं और मेरे सहपाठी उनसे पहली बार रूबरू होने जा रहे थे।सभी बड़े रोमांचित थे। तभी जैमिनी साहब ने कक्षा में प्रवेश किया।उनके सुदर्शन व्यक्तित्व से सभी प्रभावित थे।

  अपने सभी छात्रों का परिचय प्राप्त करने के बाद वे बोले --"आज हम हिंदी साहित्य के इतिहास पर चर्चा करेंगे ।पहले यह बताइए आप में से किस -किसने आल्हा पढ़ा -सुना है ?" 

   दरअसल, जगनिक का लिखा 'आल्हखंड 'हमारे पाठ्यक्रम में था और हिंदी साहित्य के इतिहास यानी वीरगाथाकाल की चर्चा इसी ग्रंथ से शुरू होनी थी।

  बहरहाल, जैमिनी साहब द्वारा पूछे गए प्रश्न के उत्तर में कई हाथ ऊपर उठ गए ।हाथ उठाने वाले छात्रों में मैं भी शामिल था।

  जैमिनी सर ने सभी पर एक दृष्टिपात किया।उन्होंने फिर कहा --"अच्छा, कोई आल्हा की दो  -चार पंक्तियाँ सुनाएगा?" 

   अब तो पूरी कक्षा में एकदम सन्नाटा खिंच गया।

  "अरे,जब आप सभी ने आल्हा सुना है तो एक-दो पंक्तियाँ तो याद होंगी ही।अच्छा ,यह बताइए  कि गांव से कौन -कौन हैं ? शहर वालों ने तो आल्हा शायद न भी सुना हो ...." 

   प्रत्युत्तर में फिर कई हाथ ऊपर उठ गये ।

  "आप लोग सुनाइये आल्हा ..."

   लेकिन ग्रामीण क्षेत्र से आये छात्रों को तो जैसे काठ ही मार गया था। एक तो पहला दिन और ऊपर से हिंदी साहित्य का पहला पीरियड ! ग्रामीण क्षेत्र के छात्र चुप बैठे रहे।जैमिनी सर ने उनके असमंजस और हिचकिचाहट को जैसे भांप लिया।

    वे बोले --"कोई बात नहीं ,  मैं सुनाता हूँ --

    "आल्हा -ऊदल बड़े लड़इया

     इनकी मार सही न जाय,

     एक को मारैं ,दुइ मार जावैं

     तीसरा खौफ खाय मर जाय.."

 जैमिनी सर ने बड़ी लय में और किसी प्रोफेशनल अल्हैत की शैली में जो आल्हा सुनाया तो एकदम समां बंध गया।

  बस , फिर क्या था!

  अभी तक संकोचवश चुप बैठे ग्रामीण क्षेत्र के छात्रों के हाथ भी एक -एककर ऊपर उठने लगे --"सर , हम सुनाएं, सर हम सुनाएं ..."

  "हाँ- हाँ ...सभी सुनेंगें ...."

   

ग्रामीण छात्रों का सारा संकोच एकदम हवा हो गया।फिर तो एक -एककर  कई छात्रों ने अपने -अपने अंदाज में आल्हा शुरू कर दिया। 

    अल्हैती के सारे रिकॉर्ड टूट गए,कुछ समय के लिए हिंदी साहित्य की हमारी कक्षा जैसे गांव की चौपाल बन गयी। वीररस की अविरल धारा प्रवाहित होने लगी।सभी ने आल्हा गायन का खूब आनंद लिया।

  जैमिनी सर यही तो चाहते थे --छात्र निस्संकोच अपनी बात कहना सीखें।आल्हा  तो एक बहाना था।

  अगले दिन जब जैमिनी सर ने वीरगाथा काल के बारे में  बताना शुरू किया तो सभी छात्रों ने इसमें बड़ी रुचि ली।मेरे जो सहपाठी हिन्दी साहित्य और इसके इतिहास को एक नीरस विषय मानते थे उनके लिए यह अनायास ही एक रोचक विषय बन गया।

 यह सन अस्सी की बात है ।अब से करीब तैंतालीस साल पुरानी   यह घटना मेरे छात्र जीवन की एक यादगार घटना बन गयी।यह हम छात्रों के लिए तो एक प्यारा सबक थी ही उन अध्यापकों के लिए भी एक सबक थी जो हिंदी साहित्य जैसे रोचक विषय को भी बेहद नीरस ढंग से या  फिर अकादमिक शैली में पढ़ाते हैं

  एक लंबा कालखंड व्यतीत होने के बाद आज जब मैं इस घटना का 'टोटल रिकॉल ' करता हूँ तो बरबस ही मेरे होठों पर एक मुस्कान आ जाती है और जैमिनी सर की याद एक मीठा दंश देने लगती है 


✍️राजीव सक्सेना

डिप्टी गंज

मुरादाबाद 244001,

 उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल -9412677565