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सोमवार, 27 अक्टूबर 2025
मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा ( बाद में मुंबई निवासी) के साहित्यकार स्मृतिशेष म न नरहरि ( महेंद्र नाथ नरहरि) का नवगीत ...खुशबू और आंसू । यह प्रकाशित हुआ है मुरलीधर पांडेय के सम्पादन में मुम्बई से प्रकाशित त्रैमासिक हिन्दी डाइजेस्ट संयोग साहित्य के अक्टूबर- दिसम्बर 2007 के अंक में पेज 60 पर (वर्ष 10, अंक 4)
रविवार, 26 अक्टूबर 2025
शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2025
सोमवार, 20 अक्टूबर 2025
मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल के दस दोहे
घोर अमावस की निशा छिपा रही मुख आज।
जगमग है दीपावली, उसको आती लाज।।1।।
ज्यों दीपों की ज्योत से मिटे धरा का शोक।
ऐसे ही करते रहें जग भर में आलोक।।2।।
दीप देहरी पर सखे, करें प्रज्वलित आप।
धन्वंतरि काटें सभी, पाप ताप, संताप।।3।।
जो समर्थ हैं बाल दें, दीपक कई हजार।
घना ॲंधेरा दूर हो, जगमग सब संसार।।4।।
कोना कोना झाड़ कर, स्वच्छ करें घर द्वार।
मन के नरकासुर मिटें, खुशियां मिलें हजार।।5।।
दीप और रंगोलियां, तोरण वंदनवार।
लक्ष्मी स्वागत हेतु सब, सजे हुए घर द्वार।।6।।
मात्र कनिष्ठा पर उठा, गोवर्धन गिरि राज।
कौतुक लीलाधर किया, हर्षित गोप समाज।।7।।
मिल जुलकर सबने लिया, अन्नकूट का भोग।
सिखा दिया श्रीकृष्ण ने, समरसता का योग।।8।।
यमुना के घर यम गये, हुआ खूब सत्कार।
भगिनी को निज बंधु से, मिला प्यार उपहार।।9।।
सुख संपति वैभव बढ़े, और बढ़े व्यापार।
मंगलमय हो आपको, दीपों का त्योहार।।10।।
✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल
T-5/1103
आकाश रेजीडेंसी एपार्टमेंट्स
आदर्श कालोनी, कांठ रोड
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक के छह दोहे
बना लिया जिनको यहाँ, निर्धनता ने दास।
धनतेरस पर हो भला, उनमें क्या उल्लास।।1।।
खील-बताशे-फुलझड़ी, दीपों सजी क़तार।
ले आई दीपावली, कितने ही उपहार।।2।।
हो जाये संसार में, निर्धन भी धनवान।
लक्ष्मी माता दीजिए, कुछ ऐसा वरदान।। 3।।
हो जाये संसार में, अँधियारे की हार।
भर दे यह दीपावली, हर मन में उजियार।। 4।।
निर्धन को देें वस्त्र-धन, खील और मिष्ठान।
उसके मुख पर भी सजे, दीपों सी मुस्कान।। 5।।
दीवाली के दीप हों, या होली के रंग।
इनका आकर्षण तभी, जब हों प्रियतम संग।।6।।
✍️ओंकार सिंह विवेक
रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार शशि त्यागी के दस दोहे ...
दीपक राह निहारते, है अँधियारी रात।
सबसे पहले सुमर लें,गणपति जी की बात।।1।।
अंतर्मन गणपति बसा, जीमे छप्पन भोग।
मोदक सोहे हाथ में, कैसा शुभ संयोग।।2।।
राम चरित मानस भला,सु रचित तुलसी संत।
जन -मन की पीड़ा हरे, करें कष्ट का अंत।।3।।
इस अंधेरी रात में, दीप दिखाता राह।
सुमिरन हो श्री राम का, कष्टों का हो दाह।।4।।
श्वास -श्वास में राम हैं, तन में मन में राम।
हर पल मन यह गा रहा,राम नाम अविराम।।5।।
राम नाम विश्वास है, सुमिरन का आधार।
राम नाम की नाव से, भव सागर हो पार।।6।।
दीप कहो दीपक कहो, या कहो शुभ चिराग।
उर सदा उल्लसित रहे, गूंँजे जीवन राग।।7।।
सूनि देहरी साजते, जलते बाती तेल।
जलते दीपक कह रहे,बिछड़ों का हो मेल।।8।।
पिता तुल्य इह लोक में, अन्य नहीं इनसान।
हर बालक के मन बसा, यथा होत भगवान।।9।।
सारी धरती गेह है, अंबर तक फैलाव।
मानवता अपनाइए, तब ही होत लगाव।।10।।
✍️शशि त्यागी
अमरोहा
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद जनपद के बिलारी निवासी साहित्यकार नवल किशोर शर्मा नवल का गीत ....आओ तम को दूर भगायें
दीप प्रज्ज्वलित करके यारो,
आओ तम को दूर भगायें।
अन्तर्मन को करें प्रकाशित,
जन-जन में जागृति हम लायें।
मन के कलुषित पाप मिटेंगे,
द्वेष कुहासा छट जायेगा।
जीवन है अनमोल धरा पर,
हर बन्धन फिर कट जायेगा।
मुक्त कण्ठ से गीत खुशी के,
आओ सब मिलजुलकर गायें।
दीप प्रज्ज्वलित करके यारो
आओ तम को दूर भगायें।
सुख,समृद्धि अरु खुशहाली का
सूर्य उदय होगा घर-घर में।
निर्धन की किस्मत चमकेगी
खूब धान्य होगा हर कर में।
मुस्काते बच्चों के चेहरे,
उछल-कूद करते इतरायें।
दीप प्रज्ज्वलित करके यारो,
आओ तम को दूर भगायें।
चौदह बरस बाद फिर रघुवर
लौटेंगे अपने महलों में।
वनवासी कष्टों को सहकर
दुष्ट दलन कर कठिन पलों में।
सभी नगरवासी खुश होकर
स्वागत में हँस दीप जलायें।
दीप प्रज्ज्वलित करके यारो
आओ तम को दूर भगायें।
✍️नवल किशोर शर्मा नवल
बिलारी
जनपद मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह 'ओंकार' की सजल ......आज तो दीपावली है ....
दीप-शोभा को निरखकर, खिल गई मन की कली है।
हर तरफ दिखता उजाला, आज तो दीपावली है।।
हो रहे बच्चे मगन सब, छोड़कर वे बम पटाखे।
फुलझड़ी को छोड़ने की, होड़ अब उनमें चली है।।
झालरें अब टँग रही हैं, द्वार, घर, दीवार पर।
रोशनी से जगमगाती, दिख रही सुंदर गली है।।
बन रहे पकवान घर-घर, गृहणियाँ मिलकर बनातीं,
एक पूड़ी बेलती है, दूसरी ने फिर तली है।।
बेटियाँ आँगन सजातीं, खींचकर सुंदर रँगोली।
दिख रहा सुंदर अधिक है, घर जहाँ छोटी लली है।।
पूजते 'ओंकार' मिलकर, आज देवी लक्ष्मी को।
स्वच्छ मन से पूजता जो, लक्ष्मी उसको फली है।।
✍️ओंकार सिंह 'ओंकार'
मुरादाबाद 244001
भारत, उत्तर प्रदेश
रविवार, 14 सितंबर 2025
मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेन्द्र सिंह बृजवासी का गीत ......अपनी प्यारी हिन्दी
झूठ-मूठ ही क्यों खाते हो,
हिन्दी की सौगंध?
अंग्रेजी संग खुश रहने का,
किया स्वयं अनुबंध !
अपनी माँ को माँ कहने से,
डर क्यों लगता है?
हिन्दी की गोदी में बैठो,
मिट जाएं सब फंद !
हिन्दी भाषा सबकी भाषा,
सकल विश्व में व्याप्त,
सब भाषाओं की जननी है,
तनिक न इसमें द्वन्द्व !
लिखने-पढ़नेमें रुचिकर है,
अपनी प्यारी हिन्दी,
बसी हुई सबके मन में ज्यों,
फूलों में मकरंद !
माँ का पहलाशब्द सभीको,
हिन्दी ने सौंपा,
केवल हिन्दी में बसता है,
ममता का आनंद !
सबको साथमें लेकर चलती,
रखे न मन में मैल,
हिन्दी के बिन पूर्ण न होते,
गीत, गजल के बंद !
हिन्दी पढ़ो पढ़ाओ जग को,
बांटो यह सौगात,
सच कहता हूँ कभी न होगी,
हिन्दी की गति मंद !
विश्व हिन्दी दिवस हमारा,
पावनतम उत्सव हो
सदियों-सदियों तक महकेगी
पावन हिन्दी गंध !
✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9719275453
मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद संभल) के साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम् की घनाक्षरी.
आंचल में भरे हुए,ढेर सारे हीरे मोती।
भाव प्रेम भरा हुआ, विजय उद्घोष है।
बिहारी का कृष्ण प्रेम,जायसी की नागमती।
मीरा की दीवानगी है,भूषण का रोष है।
भाल ऊंचा किए हुए,सीना तान खड़ी हुई।
संस्कृत की प्रिय पुत्री,नहीं पितृ दोष है।
दुनिया में भाषा बोली,बोली जाती चाहे जो भी।
भाषा हिंदी प्रिय बड़ी, बड़ा शब्द कोष है।
✍️त्यागी अशोका कृष्णम्
कुरकावली,संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
मंगलवार, 22 जुलाई 2025
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष माहेश्वर तिवारी की याद में भोपाल के साहित्यकार मनोज जैन का गीत ...
याद माहेश्वर तिवारी जी हमें,
अब आ रहे हैं।
हों जहाँ भी वहीं महफ़िल,
लूट लेते थे।
आरोह या अवरोह में कब,
छूट लेते थे।
हैं जहाँ भी इस समय वह मगन,
हो मुस्का रहे हैं।
याद माहेश्वर तिवारी जी हमें,
अब आ रहे हैं।
प्रेम रस के थे पुजारी,
प्रेम करते थे।
बोल हों ज्यों मोंगरे के,
फूल झरते थे।
गीत गजलों में पराई वेदना,
को गा रहे हैं।
याद माहेश्वर तिवारी जी हमें,
अब आ रहे हैं।
वह समय की नब्ज़ पर,
रख हाथ गाते थे।
गीत की संवेदना में,
देश लाते थे।
मार्गदर्शक बन सभी को
राह नव,
दिखला रहे हैं।
याद माहेश्वर तिवारी ,
जी हमें,
अब आ रहे हैं।
✍️ मनोज जैन,
संस्थापक संपादक
समूह / ब्लॉग वागर्थ
106 विट्ठलनगर
गुफ़ामन्दिर रोड लालघाटी
भोपाल 462030
मध्य प्रदेश,भारत
मंगलवार, 15 जुलाई 2025
मुरादाबाद के साहित्यकार ( वर्तमान में नोएडा निवासी) नरेन्द्र स्वरूप विमल का गीत.... धड़कनें यह पूछती हैं
धड़कनें यह पूछतीं हैं,
पत्थरों से प्यार क्यों है,
नीर बिन इन भावनाओं की
डगर में ज्वार क्यों है?
घन बिना बरसात होती,
शून्यता आंसू पिरोती,
ग्रीष्म की सूखी नदी का,
तट भला मझधार क्यों है।
होंठ सूखे ,गाते सूखे,
लग रहे, संबंध रूखे,
उम्र के मधुमास का,
यह ठूठ सा पतझार क्यों है।
भेद पल पल,पल रहे हैं,
हम स्वयं को छल रहे हैं,
जीत में भी कुलबुलाती,
आह भरती, हार क्यों है।
धड़कनें यह पूछतीं हैं
पत्थरों से प्यार क्यों है।
✍️नरेन्द्र स्वरूप 'विमल'
ए 220.से,122, नोएडा, उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9999031466
रविवार, 13 जुलाई 2025
मुरादाबाद के साहित्यकार उमाकान्त गुप्त की एक रचना जिन्दगी के नाम
ऐ मेरी जिन्दगी साथ चल तू जरा,
तुझको सच मै दिखा दूं यहां का जरा।
कौन किसका भला बन सका है यहां,
स्वार्थ की सब दुकानें खुली हैं यहां।
मज़हबी इस जहां के,सभी रंग हुए,
रंग कैसा चुनेगी,बता तू यहां ।
अट्टालिका व्यथा हर,छपती यहां,
मड़ैया की सदा, कौन सुनता यहाँ।
आद्र स्वर तंग गलियों का तू भूलकर,
राजपथ की हुई,अनुगामिनी यहां ।
✍️उमाकान्त गुप्त
सिविल लाइन
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में दिल्ली निवासी) आमोद कुमार का गीत ....
तुम तो नीले अम्बर मे जा मस्त पवन के संग संग फिरतीं
मै धरा पर तुम्हें पुकारुॅं तुम न आतीं नभ पर उड़तीं
कुछ दिन तुम सपनों मे आईं
कुछ दिन तुमको गीत मे पाया
बहुत दूर तक मन तुम्हारे
संग संग जाकर वापस आया
राह क्षितिज तक सीधी जाकर
जाने कौन दिशा मे मुड़तीं
मै धरा पर तुम्हें पुकारुॅं
तुम न आतीं नभ पर उड़तीं
जब जब फूल खिले बगिया मे
याद किया टूटे सपनों को
भीड़ मे खुद ही गुम हो गए हम
हमने जब खोजा अपनो को
गए दिनों की ठहरी यादें
तुम्हारी स्मृति से आ जुड़तीं
मै धरा पर तुम्हें पुकारुॅं
तुम न आतीं नभ पर उड़तीं
बचपन के वह खेल निराले
याद बाबरी घर आंगन की
प्यार का अन्तिम भाव क्षमा है
मन मे ही रह जाती मन की
अनकही सफर की बातें
आॉंसू बनकर गिर गिर पड़तीं
मै धरा पर तुम्हें पुकारुॅं
तुम न आतीं नभ पर उड़तीं
तुम तो नीले अम्बर मे जा
मस्त पवन के संग संग फिरतीं
✍️ आमोद कुमार, दिल्ली
सोमवार, 30 जून 2025
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य संगम अध्यक्ष वरिष्ठ कवि रामदत्त द्विवेदी के 90वें जन्म दिवस की पूर्व संध्या 29 जून 2025 को काव्य संध्या का आयोजन
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य संगम के अध्यक्ष वरिष्ठ कवि रामदत्त द्विवेदी के 90वें जन्मदिन की पूर्व संध्या रविवार 29 जून 2025 को काव्य संध्या का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ मां शारदे की प्रतिमा पर माल्यार्पण करके किया गया। इसके पश्चात मयंक शर्मा ने माॅं शारदे की वन्दना प्रस्तुत की।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रघुराज सिंह निश्चल ने कहा...
बड़ों का मन लुभाओगे, सदा ही मुस्कुराओगे।
कृपा भगवान की होगी, सदा ही खिलखिलाओगे।।
मुख्य अतिथि डॉ. महेश दिवाकर ने हिन्दी के प्रति उनके समर्पण को नमन करते हुए उनको जन्मदिन की बधाई दी ।
विशिष्ट अतिथि डॉ. कृष्ण कुमार नाज़ का कहना था ......
ये जो रिश्ते हैं ये लगते तो हैं जीवन की तरह,
कैफियत इनकी है लेकिन किसी बंधन की तरह।
तुम अगर चाहो तो इक तुलसी का पौध बन जाओ,
मेरे एहसास महक उटठेंगे आंगन की तरह।।
विशिष्ट अतिथि डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने सुनाया-
अब सम्बन्धों की गरमाहट, विदा हुई घर-घर से।
सभी सुखी दिखते ऊपर से, दुखी दिखे अंदर से।।
विशिष्ट अतिथि योगेन्द्र वर्मा व्योम ने सुनाया-
लोभ, क्रोध, मद, द्वेष, छल,
अहम-वहम सब छोड़।
चलों बना लें खुशनुमा,
जीवन का हर मोड़।
रामदत्त द्विवेदी ने सुनाया-
इस चमकती ज़िन्दगी में प्यार छिनता जा रहा है,
जान से प्यारा था जो, वह यार छिनता जा रहा है।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मयंक शर्मा ने सुनाया -
जन्म सार्थक हो धरा पर
स्वप्न हर साकार हो।
हम चलें कर्तव्य पथ पर
और जय - जयकार हो।
राम सिंह नि:शंक ने सुनाया-
अवलम्बन इनसे मिले, राह दिखाते नेक।
इनको हम सम्मान दें, खुशियां मिलें अपने।।
नकुल त्यागी ने कहा-
मानव जीवन संघर्ष भरा और अनगिन बाधा आती हैं!
बाधाएं हैं क्षणिक और कुछ देर में ही हट जाती हैं !
डॉ मनोज रस्तोगी ने गीत प्रस्तुत करते हुए कहा-
महकी आकाश में चांदनी की गंध,
अधरों की देहरी लांघ आए छंद,
गंगाजल से छलके नेह के पिटारे।
मनोज वर्मा मनु ने सुनाया-
उसने भी ऐतबार जता कर नहीं किया,
हमने भी उसे प्यार बता कर नही किया।
समीर तिवारी ने सुनाया-
रिश्ते नातों में पतझर है,
तरुवर की क्या बात करुं,
बदल रहा मौसम सारा,
घर-घर की क्या बात करुं।
ज़िया ज़मीर ने सुनाया-
जाने वालों को मुसलसल देखता रहता हूं मैं,
किस लिए जाते हैं यह भी पूछता रहता हूं मैं।
एक दरिया है कि जो करता नहीं मुझको क़ुबूल,
बैठ कर साहिल पे अक्सर डूबता रहता हूं मैं।।
दुष्यन्त बाबा ने कहा-
हम भारत के शूर समर में,
भीषण विध्वंस मचाते हैं।
आँख उठे भारत माता पर,
हम अपना शौर्य दिखाते हैं।
डॉ प्रीति हुंकार ने सुनाया-
दादा-दादी नाना-नानी,
ये सब हैं अनुभव की खान।
प्यारे बच्चों नित करना है,
जीवन में इनका सम्मान।।
पदम सिंह बेचैन ने सुनाया-
सारे आलम की खुशियां मुबारक तुम्हें,
मेरे मालिक जन्मदिन मुबारक तुम्हें।
जितेन्द्र कुमार जौली ने सुनाया-
दिशाहीन थे हम अज्ञानी,
दिया आपने हमको ज्ञान।
नमन करें सौ बार आपको,
आप ही हो मेरे भगवान।।
इस अवसर पर बाबा संजीव आकांक्षी, इशांत शर्मा ईशु, श्रीकृष्ण शुक्ल,केपी सिंह सरल, राजीव प्रखर, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ सहित अनेक रचनाकार उपस्थित रहे। कार्यक्रम में उपस्थित विभिन्न समाजसेवियों एवं साहित्यकारों ने रामदेव द्विवेदी जी को सम्मानित किया एवं उपहार भी भेंट किए। संस्था के महासचिव जितेन्द्र कुमार जौली ने सभी का आभार व्यक्त किया।






























































































