रविवार, 29 अक्तूबर 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ सीमा अग्रवाल की रचना .... ध्वज अपने प्रतिमानों का, विश्व में फहराए हिन्दी...


भारती के भाल सजे, सम्मान जग में पाए हिन्दी।

स्वर्णिम इतिहास अपना, आज फिर दोहराए हिन्दी।


मात्र भाषा ही नहीं ये, जान है निज संस्कति की,

ध्वज अपने प्रतिमानों का, विश्व में फहराए हिन्दी।


एक ताल पर इसकी, थिरक उठे ये जग ही सारा, 

गूँज उठें सकल दिशाएँ, गीत कोई जब गाए हिन्दी।


गंध निज माटी की सोंधी, वर्ण-वर्ण से इसके आए,

संस्कारों की खुशबू भीनी, देश-देश बगराए  हिन्दी।


बँधें बोलियाँ एक सूत्र में, माला के रंगीं मनकों-सी,

उन्नत भाल भरा हो गर्व से, कंठहार बन जाए हिन्दी।


ओछे खेल में राजनीति के, जन-मन भटक न पाए,

भाषायी सब झगड़े, सूझ से अपनी सुलझाए हिन्दी।


विविधता में एकता की, झलक जहाँ पर दे दिखाई,

बन-ठन आएँ सभी बोलियाँ, ऐसा पर्व मनाए हिन्दी।


बात ही निराली मातृभाषा की, माँ- सी लगती प्यारी,

दिखावे का प्यार और का, नेह माँ-सा छलकाए हिन्दी।


हो ग्रसित जो हीन ग्रंथि से, अंग्रेजी के पीछे दौड़ रहे,

उस भाषा में क्या है ऐसा, जो न तुम्हें सिखलाए हिन्दी।


गुलामी के व्यामोह से, अब तो मन अपना मुक्त करो,

बड़े गर्व से बड़ी शान से, अधरों पे तुम्हारे आए हिन्दी।

✍️ डॉ सीमा अग्रवाल

जिगर कालोनी

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार आनन्द वर्धन शर्मा की कविता ...ये बूढ़ी आँखें.

 


खुद कम देखतीं,

 हमें सब कुछ दिखातीं,

 ये बूढ़ी आँखें।

जीवन का सार बतातीं,

ये बूढ़ी आँखें।

कभी हँस कर नेह  बरसातीं,

ये बूढ़ी आँखें।

कभी इशारों में डाँट लगातीं,

 ये बूढ़ी आँखें।

ममता का सुखद संसार,

 ये बूढ़ी आँखें।

 हमारा सारा प्यार-दुलार,

 ये बूढ़ी आँखें।

 घर का मान-सम्मान,

 ये बूढ़ी आँखें।

सबका स्वाभिमान,

 ये बूढ़ी आँखें।

यूँ हीं सदा बनी रहें,

ये बूढ़ी आँखें।

अनुभव के पाठ पढ़ाती रहें,

 ये बूढ़ी आँखें।

 ✍️आनन्द वर्धन शर्मा

लाजपत नगर

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

              

शुक्रवार, 20 अक्तूबर 2023

मुरादाबाद मंडल के चंदौसी (जनपद संभल) के साहित्यकार अतुल मिश्र का व्यंग्य ....रेलवे प्लेटफार्म की गतिविधियां


 रेलवे प्लेटफार्म कई सारी गतिविधियों को संपन्न करने के काम आते हैं ! ‘ गतिविधियाँ ‘ हम उन तमाम हरकतों के गतिशील बने रहने को कहते हैं, जो किसी भी नंबर के प्लेटफार्म पर किसी भी वक़्त, किसी भी रूप में की जा सकती हैं ! इसमें बिना टिकिट गाड़ी में बैठने से पहले टी टी या गार्ड से ‘ सेटिंग ‘ की गुज़ारिश के अलावा किसी वीरान और तनहा पड़े प्लेटफार्म पर किसी से इश्क फरमाने जैसी बातें शामिल हैं !इन गतिविधियों में रेलवे कर्मियों के अलावा पुलिस, यात्री या कोई भी प्रतिभागी हिस्सा ले सकता है ! इधर-उधर के मंहगे होटलों में जाने से क्या फायदा ?


    रेलवे प्लेटफार्म पर कई ऐसे भी डिब्बे खड़े दिखाई देते हैं, जो ब्रिटिश काल से वैसे ही खड़े हैं, जैसे कि अंग्रेज उन्हें छोड़ कर गए थे ! भारी होने कि वजह से वे इन्हें अपने साथ नहीं ले जा सके ! ये डिब्बे अब लैलाओं और मजनूओं के सांस्कृतिक कार्यों के काम आते हैं ! यूं तो रेलवे स्टेशनों पर आपको विभिन्न किस्म के नज़ारे देखने को मिलते होंगे, मगर गौर से देखें तो भारतीय संस्कृति का अध्ययन करने के लिए देश-भ्रमण करने कि कोई ज़रुरत नहीं पड़ेगी ! सब कुछ यहीं मिल जाएगा !

    नाक पौंछकर फिर उसी हाथ से रोटी सकते बैल्डर, पागल किस्म की लड़की में विभिन्न किस्म की संभावनाएं तलाशते पुलिस वाले, बिना टिकिट-यात्री को पकड़कर उनसे मोल-भाव करते टीसी, बदबूदार पानी पीकर रेलवे को कोसते यात्री, किसी भी दशा में कहीं भी सो जाने वाले सिद्धांत में विश्वास करने वाले ग्रामीण या ज़हरखुरानी के शिकार व्यक्ति पर ज़्यादा शराब पीकर ज़मीन पर गिरे होने के आरोप लगाते रेलवे और पुलिस के न्यायशील कर्मी , जैसे सैकडों दृश्य हैं, जिमें ‘ इंडियन कल्चर ‘ तलाशी जा सकती है !

    देखने के नज़रिए हैं कि आप किसको किस नज़रिए से देख रहे हैं ? टिकिट होने के बाबजूद टीसी आपको और आपकी पर्स वाली जेब को किस नज़रिए से देख रहा है या ‘ बम-चेकिंग अभियान ‘ पर निकले रेलवे पुलिस कर्मी आपकी अटैची को बैंत मार कर आपको किस नज़रिए से देख रहे हैं ? या अन्य सीटें खाली होने के बाबजूद लड़कियों से सट कर बैठने वाले खूसट , मगर भाग्यशाली बूढे को वहां बैठे लड़के किस नज़रिए से देख रहे हैं आदि ऐसी अनेक बातें हैं, जो रेलवे से जुडी हैं, मगर हमारा नजरिया जो है, वो वही है, जो हमेशा से रहा है ! उसमें कोई बदलाव नहीं है ! 

✍️अतुल मिश्र 

श्री धन्वंतरि फार्मेसी 

मौ. बड़ा महादेव 

चन्दौसी, जनपद सम्भल 

उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 14 अक्तूबर 2023

मुरादाबाद मंडल के चंदौसी (जनपद संभल) निवासी साहित्यकार अतुल मिश्र का व्यंग्य....मौसम, छतरी और उधार




        "मौसम अच्छा हो गया आज।" यह जानते हुए भी कि अच्छे मौसम में हर व्यक्ति ऐसा ही महसूस कर रहा होगा, एक दोस्त ने अपने दोस्त को बिना अंधा साबित किये अपनी बातचीत का पहला वाक्य छोड़ा।

        "हां यार, कल कितना बुरा मौसम था ? गर्मी के मारे हालत ख़राब थी।" दूसरे दोस्त ने मौसम-सम्बंधी अपना विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए पहले दोस्त का ज्ञानवर्धन करने के लिहाज़ से कहा।

       "लगता है, बारिश होगी।" मौसम की भविष्यवाणी में अपनी माहिरी प्रदर्शित करके पहले वाले ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा।  

       "बारिश हुई, तो भीगना पड़ेगा हमें।" दूसरे दोस्त ने बारिश के पानी में गीलापन होने की बुराई करते हुए जवाब दिया।

       "छतरी होती तो शायद इतना नहीं भीगते।" भीगने से पूर्व जल-रक्षक छतरी की भूमिका और फिर उसकी प्रंशसा भी बात की बात में हो गई।

      "छतरी से बैटर बरसाती रहती है। नीचे का हिस्सा भी नहीं भीगता उसमें।" स्वज्ञानजन्य  बेहतर विकल्प का तात्कालिक प्रदर्शन करते हुए दूसरे दोस्त ने चारों  दिशाओं में अपनी गर्दन घुमाकर ऐसे देखा कि अगर और लोग भी उसकी यह बात सुन रहे हों, तो 'क्या बात कही है आपने,' वाले अंदाज़ में उसकी तारीफ़ 

करें।

      "वो तो है ही। छतरी अपनी जगह है, बरसाती अपनी जगह ।" पहले दोस्त ने यह बात कुछ इस अंदाज़ से की, जैसे उसने 'प्राचीन वर्णाश्रम-व्यवस्था  में हर वर्ण का अपना अलग महत्त्व था, जैसी कोई बहुत ज्ञानपरक और गूढ़ बात कही हो और जिसकी कि तारीफ़ होनी चाहिए।

       "लेकिन बारिश के साथ अगर आँधीनुमा हवा चल पड़े, तो छतरी किसी की नहीं रहती । कई मर्तबा तो वह उल्टी भी हो जाती है । " जीवन की तरह छतरी की भी निरर्थकता को सिद्ध करने की  गरज से दूसरे दोस्त ने अपना पक्ष प्रस्तुत किया ।

      "देखा जायेगा । अभी कौन सी बारिश हो रही है।" वार्ता-समापन की शैली में पहले वाला दोस्त 

बुदबुदाया।

     "और क्या। बातों-बातों में असली बात तो मैं भूल ही गया । यार, दौ सौ रुपये उधार दे दो। एक तारीख़ को लौटा दूँगा।" दूसरे ने अच्छे मौसम में अर्थदान की भूमिका प्रस्तुत करते हुए कहा।

      और इस तरह पहले वाले दोस्त का अच्छा-ख़ासा आंतरिक मौसम ख़राब हो गया।

✍️अतुल मिश्र 

श्री धन्वंतरि फार्मेसी 

मौ. बड़ा महादेव 

चन्दौसी, जनपद सम्भल 

उत्तर प्रदेश, भारत

शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2023

मुरादाबाद मंडल के चंदौसी (जनपद संभल)निवासी साहित्यकार अतुल मिश्र का व्यंग्य....हमारे शहर के निराले कुत्ते...



धर्मराज युधिष्टिर ने जो सबसे गलत काम किया, वह यह था कि वे खुद तो स्वर्ग की सीड़ियां पार करके चले गए, मगर अपने उस कुत्ते को पीछे ही छोड़ गए, जिसके नाम को लेकर अभी भी एकमत होने के चक्कर में इतिहासकार एकमत नहीं हो पाए हैं. अखबारों में अपना नाम ना छापने की शर्त पर कुछ इतिहासकारों ने यह मानने का दावा किया है कि इंडिया में कुत्तों का आदि पूर्वज वही कुत्ता था और बाकी सब जो देश भर में घूम रहे हैं, वे उसके वंशज हैं. प्राचीन काल में कुत्तों को वह सम्मान प्राप्त था, जो वफादारी की कमी होने की वजह से आदमी का भी नहीं रहा होगा. बेवफाई की कसमें खाने पर लोग कहा करते थे कि "खा, अपने कुत्ते की कसम कि तूने बेवफाई नहीं की." बाद में यही बेवफाई शायरी में महबूबा के लिए इस्तेमाल की जाने लगी.

    हमारे शहर में नगर पालिका होने की वजह से कुत्तों की पैदावार भी खूब हो रही है. ऐसा क्यों है, यह रिसर्च का विषय होने के बावज़ूद अभी तक किसी शोधार्थी के गाइड के दिमाग में नहीं आ पाया है. रास्ता चलते कौन सा कुत्ता, कब काट ले, कुछ नहीं कहा जा सकता. जो लोग कुत्तों से डरते हुए साइड में निकलने की कोशिशें करते हैं, कुत्ते सबसे ज़्यादा उसी शख्स की तरफ मुखातिब हो लेते हैं और तब अपनी पैंट में मौजूद टांगों की रक्षा के लिए उसके अन्दर से भर्राई सी आवाज़ निकलती है कि "बचा लो, यार, यह किन सज्जन का कुत्ता है ?" वह आदमी इस बात को जानता है कि अगर "यह किस कमबख्त का कुत्ता है," जैसी कोई बात बोल दी, तो वह कभी भी अपने कुत्ते से कटवाए बिना बाज नहीं आएगा.

    हमारी कॉलोनी को ही ले लीजिये. ऐसी-ऐसी नस्लों के कुत्ते लोगों ने पाले हुए हैं कि वे लाख 'हट-हट' या 'शीट-शीट' जैसी ध्वनियां करने के बावज़ूद, जब तक अच्छे भले आदमी की रही सही जान नहीं ले लेंगे, उसे यूं ही घूरते रहेंगे. इन कुत्तों से डरकर भागने  की ज़रा सी बात अगर मन में भी सोच ली, तो समझें कि वे या तो शराफत से आपको आपके घर के अन्दर तक दौड़ाकर आयेंगे या बहुत मूड में हुए, तो ऐसी जगह पर काटेंगे कि आप यह बताने की पोज़ीशन में भी नहीं रहेंगे कि यहीं पर क्यों काटा, अन्य किसी उपयुक्त स्थान पर क्यों नहीं ?

    भौंकने की अवस्था में काटने के संकेत देने पर कुत्ते को चुपाने का एक ही तरीका है और जो बहुत कारगर माना जाता है. जितनी जोर से कुत्ता भौंक रहा है, उससे भी जोर से अगर भौंक दिया जाये, तो कुत्ते को थोड़ी सी तसल्ली मिल जाती है कि आदमी और कुत्ते का कॉम्बिनेशन है, इसलिए इसे ना काटा जाये तो ही सही है. ना काटे जाने वाला आदमी अपनी इस गुप्त विद्या को अपने बच्चों को भी सिखा जाता है, ताकि इंजेक्शनों का खर्चा बचाने के काम आये. अब कोई कुत्ता पागल है या नहीं है, यह जानने के चक्कर में कभी नहीं पड़ना चाहिए, वरना हर कुता अपने आप को पागल समझने की गुस्ताखी के एवज़ में इस कदर काट खाता है कि इंजेक्शन लगाने लायक जगह भी ढूंढनी मुश्किल हो जाये कि अब ये कहां लगाएं ?

✍️अतुल मिश्र 

श्री धन्वंतरि फार्मेसी 

मौ. बड़ा महादेव 

चन्दौसी, जनपद सम्भल 

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार ज़मीर दरवेश की ग़ज़ल ...तोड़ना है घमंड पर्वत का, चल इसे रास्ता किया जाए!

 


جب کوئی فیصلہ کِیا جائے

دل سے بھی مشورہ کِیا جائے۔

जब कोई फ़ैसला किया जाए,

 दिल से भी मशविरा किया जाए।

خود کو ہی آئِنہ دکھانا ہے،

 آ  تجھے  آئِنہ  کِیا  جائے۔

ख़ुद को ही आइना दिखाना है,

 आ तुझे आइना किया जाए ।

کی ہے تا زندگی وفا پہ وفا ،

 اور اے عشق کیا کِیا جائے۔

की है ता ज़िन्दगी वफ़ा  पे वफ़ा,

 और ए इश्क़ क्या किया जाए।

 یہاں ظالم کے ہوش اڑائے ہیں،

یہاں  سجدہ ادا کِیا جائے۔

यहां ज़ालिम के होश उड़ाएं हैं,

 यहां सजदा अदा किया जाए।

توڑنا ہے گھمنڈ پربت کا ،

چل اسے راستہ کِیا جائے

तोड़ना है घमंड पर्वत का,

 चल इसे रास्ता किया जाए!

ہے جو بے بس کے آنسوؤں کی لڑی،

 اس  کو  موجِ  بلا   کِیا  جائے !

हैं जो बेबस के आंसूओं की लड़ी,

 उसको मौजे-बला किया जाए।

✍️ज़मीर दरवेश                ضمیر درویش

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल (वर्तमान में गुरुग्राम निवासी) के साहित्यकार डॉ गिरिराज शरण अग्रवाल की बाल कविता ....गीत लिखें हम प्यार के



गुरुवार, 12 अक्तूबर 2023

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार राजीव कुमार भृगु का बाल गीत ....चलो मेला चलें

 


मेला एक लगा है भारी,

खेल खिलौने न्यारे।

मन को रोक न पाओगे तुम 

लगते हैं सब प्यारे।


चलो खरीदें ये लाला है,

इनका पेट बड़ा है।

ये किसान है काॅंधे पर हल,

बैलों बीच खड़ा है।


ये सैनिक, बंदूक हाथ में,

सीमा पार निहारे ।


चलो चलें आगे भी घूमें,

मेला रंग बिरंगा।

वहाॅं खड़े नेता जी देखो,

थामे हाथ तिरंगा।


उनके पीछे खड़ा भिखारी,

दोनों हाथ पसारे।


चलो वहाॅं पर चलें देख लें,

भीड़ लगी है भारी।

अपने तन को बेच रही है 

बेटी एक बिचारी।


चढ़ी बाॅंस पर नाच दिखाती

भूखे तन से हारे।


सब धर्मों के कैसे कैसे ,

प्यारे ग्रन्थ सजे हैं।

अलग अलग दूकानें इनकी,

न्यारे साज बजे हैं।


भला कौन इनको पढ़कर जो,

अपना भाग्य सॅंवारे।

✍️राजीव कुमार भृगु 

सम्भल 

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में दिल्ली निवासी) आमोद कुमार के 19 मुक्तक


हर कोलाहल का अंत एक,सूनापन ही होता,

हर बसंत पतझर का, अभिनंदन ही होता,


बिटिया के नेह का,जीवन कितना सीमित ये,


तनिक देर के बाद पिता,अपने आँगन ही रोता ।।1।।


लोकतंत्र का कत्ल हुआ है, आज़ादी भी खतम हुई,

मीसातंत्र चलाकर सत्ता पागल और बेशरम हुई।

अन्याय और शोषण का अब राज न चलने पायेगा,

ठैर सकी कब रैन अंधेरी तरुणाई जब गरम हुई।। 2।।


बहुत याद आती हैं तुम्हारी बातें वो सारी,

ज़िन्दगी ही बदल दी जिन्होंने हमारी।

जब मंज़िल जुदा हों तो मुड़ना ही बेहतर,

कुछ इस तरह से रहना,न याद आए हमारी।।3।।

         

उषा की पहली किरणों, खिलते शाखसारों में,

बादलों के संग आता सावनी फुहारों में,

मन्दिरों के घंटों की ध्वनियाँ यादें लाती,

कोई झिलमिलाता है रात को सितारों में ।4।।


नेह की बतियाँ रात रात भर, कहने वाला कोई नहीं,

एक दिन भी अपनो के घर, रहने वाला कोई नहीं,

सबकी अपनी अपनी मंज़िल, अपनी अपनी कश्ती हैं,

मेरी तरह यूँ पानी के संग, बहने वाला कोई नहीं ।।5।।


रोज़ चेहरे पे नया चेहरा लगाने वाले,

खुद गुमराह हैं मुझे राह दिखाने वाले,

ये होते हैं कुछ और दिखते हैं कुछ,

झूठे वादों से मेरा दिल बहलाने वाले ।।6।।


बिताया खेल कर बचपन जहाँ,वह आँगन नहीं था,

न वह पेड़ पर झूला कहीं,वह सावन  नहीं था,

पता पूछतीं है आज भी गलियाँ गाँव की,

जहाँ छोड़ा था वह बचपन वहाँ यौवन नहीं था ।।7।।


जान जाती है तो हम जाने देंगे

ऐ वतन तुझपे आँच न आने देंगे

यूँ तो सदा से अहिंसा के पुजारी हैं हम

वक्त पड़ा तो बम भी बरसाने देंगे।।8।।

     

कौन जाने किस घट की बूंदें किस प्यासे की प्यास बुझाएं, 

निराश मन के घोर तिमिर में आलोक का विश्वास दिलाएं, 

शासन, सत्ता,हमसफर सब, राह में तन्हा छोड़ गए जब, 

जाने किस कवि के गीत, मंज़िल की फिर आस जगाएं।।9।।


दिन गए तो चली गईं संग, प्यार की वो कहानियाँ, 

कौन, कब, कहाँ मिला था, शेष अब हैं निशानियाँ, 

गुरबत में भी कैसा हम में एक अज़ब सा आकर्षण था, 

सुन्दरता वो मासूम कितनी, लाज में थीं जवानियाॅं।।10।।

                        

कोई औरों की खुशियों के वास्ते ही जी रहा है, 

और कोई दूसरों के रक्त की मय पी रहा है, 

हम ही सुख हैं, हम ही दुख हैं, हम ही अपने दोस्त-दुश्मन, 

आदमी ही ज़ख्म देता, आदमी ही सी रहा है।।11।।


अस्त होता वो सूरज गोल, बोल रहा है अवसान के बोल, 

संध्या चुपके चुपके पूछे, दामन में हैं कितने झोल, 

कितने ज़ख्म मिले हैं तुझको, कितने ज़ख्म दिए हैं तूने, 

क्या पाया,क्या खोया जग में, तराजू में ये कभी तू तोल ।।12।।


लम्हा, लम्हा ज़िन्दगी को जी तो लिया, 

कांच पिघला हुआ जैसे पी तो लिया, 

सैंकड़ों सर्प दंश की पीड़ा हो ज्यों, 

ज़ख्म रिसते रहे, यूँ सी तो लिया ।।13।।


तुम्हारे विलुप्त प्यार की प्रतिध्वनि हूँ मैं, 

जादू से उस रूप की करतल ध्वनि हूँ मैं, 

बेझिझक हॅसी वो और बोलती आंखें तुम्हारी, 

सिमटी हुई यादों की अंर्तध्वनि हूँ मैं ।।14।।

    

रुग्ण मन, जर्जर तन

एक सत्य, परिवर्तन

बुझता दीपक शनै:शनै:

धुंआ पहन, ताप सहन।।15।।


कैसा धुंधला उदासी का घेरा, 

शाम लगता है आज सवेरा, 

एक रात हस्ती की बितानी, 

न होंगे जो कल होगा सवेरा।।16।।


वह तो तुम थे, तुम ही थे वह जिसको चाहा हर पल हमने, 

देख अकेला गम ने हमको, घेर लिया हमको कल गम ने, 

गर खंडहर ही जब होना था, क्यों सपनों के महल बनाए, 

मुस्कान अधर से दूर फिर भी, पी लिया सब अश्रु जल हमने।।17।।


वह जीवन था, जीवन था वह,अपना पराया भान नहीं था, 

अजनबी संग मन लगता था, किसी मे कोई मान नहीं था, 

भूख लगी तो किसी पड़ोसी या दोस्त के घर खा लेते, 

जिस दिन कालेज दोस्त न आता, पढ़ाई में भी ध्यान नहीं था।।18।।


दिल रोता है पहले फिर आंख रोती है, 

हर रिश्ते की यहाँ एक उम्र होती है, 

हम मरते नहीं,रिश्ते मरते यहाँ, 

बाद उसके तो ज़िन्दगी लाश ढोती है।।19।।


✍️ आमोद कुमार

दिल्ली, भारत


सोमवार, 2 अक्तूबर 2023

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा का गीत ....प्रौढ़ावस्था हुयी सयानी, बोनसाइ त्योहार हुए हैं



पर्व मनाते यंत्रवत् हम

थके हुए त्योहार हुए हैं

पृथक आत्मा तन के ज्यों 

रीतिबद्ध त्योहार हुए हैं । 


कलाइयों पर सजी राखियाँ 

मन ,बच्चे जैसे निर्मल थे

प्रौढ़ावस्था हुयी सयानी 

बोनसाइ त्योहार हुए हैं ।

  

पर्वों की अवतंस श्रंखला

सुखधाम धरा की निश्चलता

स्थिर और ठहरे जीवन में

सक्रियता के नाम हुए है । 


त्योहारी इस सभ्यता का

संयम से संपोषण करना

जीवन जीने के अर्थों में   

ये सकाम  ललाम हुए है । 


पर्व मनाते यंत्रवत् हम 

थके हुए त्योहार हुए हैं 

पृथक आत्मा तन की ज्यों  

रीतिबद्ध त्योहार हुए हैं ।। 


✍️ मनोरमा शर्मा

जट्बाजार

अमरोहा

उत्तर प्रदेश, भारत

रविवार, 1 अक्तूबर 2023

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से 1 अक्टूबर 2023 को आयोजित काव्य गोष्ठी .....

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की मासिक काव्य-गोष्ठी रविवार 1 अक्टूबर 2023 को मिलन विहार स्थित आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कॉलेज में हुई। 

राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने गीत प्रस्तुत करके सभी के हृदय को जीता - 

बांट रहीं दिनकर की किरणें,

 उल्लासित उजियारे।

ऊषा रानी भर लायी है, 

आंचल में सुख सारे। 

 मुख्य अतिथि रामसिंह निशंक की अभिव्यक्ति थी -

अपनी जननी को माॅं कहना किसे नहीं अच्छा लगता। 

सुत का आज्ञाकारी दिखना, किसे नहीं अच्छा लगता। 

विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. महेश 'दिवाकर' की इन पंक्तियों ने सभी के हृदय को छुआ - 

देने को दो शब्द नहीं हैं, भैया पास तुम्हारे। 

कैसे तुमको जगत कहेगा, अपना प्रियतम प्यारे।

 विशिष्ट अतिथि नकुल त्यागी ने कहा - 

लाल बहादुर शास्त्री जी का नारा 

जय जवान जय किसान, 

भारत राष्ट्र बने महान। 

रामदत्त द्विवेदी का दर्द कुछ इस प्रकार झलका - 

समझो, वृद्धों के महत्व को, उनकी कर लो चरण वन्दना। 

दर्जा उनका देवतुल्य है, इसको याद उन्हें है रखना।। 

रामेश्वर प्रसाद 'वशिष्ठ' ने संदेश दिया - 

मानव बन तू दीप सामान,

दीपक सा तू जल जल करके

 कर कर्तव्य महान।

पद्म सिंह बेचैन ने कहा - 

प्यार के इस गीत को मैं गुनगुनाऊॅं किस तरह, 

अपने दिल के दर्द को तुमको बताऊॅं किस तरह। 

 योगेन्द्र वर्मा व्योम ने सामाजिक परिस्थितियों का चित्र खींचा - 

आये दिन यदि हो नहीं, आपस में तकरार। 

मन के आँगन में कभी, उठे न फिर दीवार ।। 

मिल-जुलकर हम-तुम चलो, ऐसा करें उपाय। 

अपनेपन की लघुकथा, उपन्यास बन जाय।। 

संचालन करते हुए राजीव प्रखर ने बालमन की अभिलाषा को व्यक्त किया - 

मनभावन यह प्रीत तुम्हारी, किन शब्दों में तोलूं। 

चिड़िया रानी मन है मेरा, साथ तुम्हारे डोलूं। 

 रचना-पाठ करते हुए जितेन्द्र जौली ने कहा - 

एक साफ मैदान में, पत्ते, फूल गिराय। 

झाडू हाथों में उठा, फोटो लिया खिंचाय।। 

कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मनोज रस्तोगी ने उपस्थित रहकर सभी का उत्साहवर्धन किया।‌ राजीव प्रखर ने आभार-अभिव्यक्त किया ।












मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर का गीत .....चिड़िया रानी मन है मेरा साथ तुम्हारे डोलूं ...

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